संतोष चाची : और सुनाओ दीदी तुम्हे तो आजकल मेरे पास बेठने की भी फुर्सत नहीं है।
निर्माला : नहीं रे ऐसी बात नहीं है, बस काम में ही लगी रहती हूँ।
संतोष : गीतिका को सामने टहलते हुए उसके मोटे मोटे लहराते चूतडो को देख कर, क्यों दीदी अब तो गीतिका भी बड़ी हो गई है, इसकी शादी वादी के बारे मे
सोचा है की नही।
निर्माला : अरे अभी तो वह और आगे पढना चाहती है कहती है अभी तो मै छोटी हूँ।
सन्तोष : अरे कहा छोटी है उसके चूतडो का उठाव तो देख, इसकी उम्र में तुम और मै तो बच्चे जन चुकी थी और वह कहती है की छोटी है, अच्छा तुम ही
बाताओ अभी बुढों के सामने नंगी करके खड़ी कर दो तो उनका लंड खड़ा हो जाए।
निर्माला : चुप कर रंडी, अभी वो सुन लेगी तो क्या सोचेगी।
संतोष : अरे दीदी सुन लेगी तो कुछ न सोचेगी, आज कल तो लड़किया आपस में यही सब बाते करती ही है, और सुनाओ जब से भैया ने तुम्हे चोदना बंद किया है तब से तुम कुछ ज्यादा ही गदरा गई हो, अब तो चलने पर भी तुम्हारे चूतड़ खूब मटकने लगे है।
निर्मला : तू भी तो लंड के लिए तरसती रहती है, तेरा आदमी भी तो शहर में ही पड़ा रहता है, इसीलिए तुझे दिन रात यह सब बाते ही सूझती है।
संतोष: अरे दीदी, सुबह से घाघरे से चुत का पानी पोछना शुरू करती हु तो घाघरा पूरा गीला हो जाता है, कई बार तो बिरजु भी कहने लगता है, माँ तेरा घघरा
कहा से गीला हो गया।
निर्माला : लो तो अब हालत इतनी ख़राब है की बेटा खुद माँ को बता रहा है की तेरे चुत से रस बह बह कर तेरे घाघरे को गीला कर रहा है, कही तेरे घाघरे की
गंध सूँघ कर तेरा बेटा समझ न जाये की यह पानी तो उसकी अपनी माँ की फुली चुत से रह रह कर रिस रहा है।
संतोष : अरे दीदी आज कल के लोंडो का कोई भरोषा नहीं हम उन्हें बच्चा समझते है और वह हमें नंगी करके चोदने का सोचने लगते है।
निर्माला : ऐसा क्या हो गया।
संतोष : अरे क्या बताऊ दीदी कल नदी पार करते हुए मेरे पेरो में काँटा लग गया तब मैंने बिरजु से कहा बेटा देख जरा काँटा कहा लगा है तो उसने मेरी टाँगो
को उठा कर देखना शुरू किया और फिर मैंने उसे ध्यान से देखा तो मुआ मेरे घाघरे के अंदर से मेरी चुत देखने की कोशिश कर रहा था।
निरमला : तूने कुछ कहा नही।
संतोष : मैंने कहा क्या कर रहा है जल्दी निकाल, तो कहने लगा माँ निकाल तो रहा हु बहुत गहरा लगा है थोड़ा पैर और ऊपर उठाओ, मुझे तो लगता है उसने मेरी पुरी फटी हुई चुत को खूब अच्छे से देखा है।
निर्माला : वह तो मस्त हो गया होगा तेरी फुली चुत देख कर।
संतोष : हाँ दीदी वह तो मेरा पैर छोड़ ही नहीं रहा था और मेरी टांगो को कस कर पकडे हुए ऊपर उठा रहा था।
निर्माला : तेरा बेटा अब जवान हो गया है उसे भी चोदने का मन करता होगा अब उसके लिए लुगाई का बंदोबस्त कर ले नहीं तो वह कही तुझे ही न छोड़ दे,
यह कहते हुए निर्मला हँस पडी।
संतोष : हसो मत दीदी, जिसके घर खुद शीशे के होते है उसे दूसरो के घरो में पथ्थर नहीं फ़ेकना चहिये।
निर्माला : क्या मतलब।
संतोष : मतलब की केवल मेरे ही घर जवान बेटा नहीं है, तुम्हारे भी एक जवान बेटा है और वह तो और भी मुस्टंडा हो गया है, कही ऐसा न हो की तुम मुझ पर हसो और वह तुम्हे ही चोद दे।
निर्माला : नहीं मेरा बेटा बड़ा भोला है वह ऐसी नजरे मुझ पर डाल ही नहीं सकता।
संतोष : अरे दीदी ऐसे भोले ही तो ज्यादा खुराफ़ाती होते है, कभी गौर करना अपने बेटे की नज़रो पर, जरुर तुम्हारे चूतडो को घूरता होगा।