संसार में केवल 2 ही प्रकृतिक अवश्यकताएँ समस्त चेतन जीव-जंतुओं को पूरी करनी होती हैं
1- भोग : अपने साकार रूप की रक्षा के लिए, उसको ऊर्जा देने के लिए भोग अर्थात भोजन आवश्यक है.... अन्यथा उसका स्वरूप ही समाप्त हो जाएगा.... जिसे हम मृत्यु कहते हैं
2- संभोग : अपने गुण-कर्म की विशेषताओं-विशिष्टताओं (genetics) को आपके संसार छोड़ देने के बाद भी जीवित रखने के लिए ...... संभोग की प्रक्रिया द्वारा प्रजनन किया जाता है।
जबकि वर्तमान युग उपभोग का युग बनता जा रहा है ...........यहाँ पदार्थ से सेवा तक, भावनाओं से सम्बन्धों तक सबका उपभोग किया जा रहा है...........
उपभोग (consumption) एक नकारात्मक और अप्राकृतिक प्रवृत्ति है.... जो साधनों, संसाधनों ही नहीं सम्पूर्ण प्रकृति का ही भक्षण किए जा रही है
आज हर व्यक्ति उपभोग के मद (नशे) में इतना डूब गया है की उसके पास भोग और संभोग का भी "आनंद" लेने का समय नहीं..........बल्कि
वो अपने समय और सुविधा के अनुसार उनका "प्रयोग" कर लेता है............