Naina
Nain11ster creation... a monter in me
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अध्याय 47
“सुशीला! ये विक्रम यहाँ क्या कर रहा है” रागिनी ने गुस्से से कहा तो सुशीला को हंसी आ गयी
“दीदी! आप भी ना। अब ऐसे मौके पर भाई ना हो तो कौन होगा। लगता है कन्यादान नहीं करना आपको। इसी घर में जमे रहना है” सुशीला ने हँसते हुये मज़ाक में कहा लेकिन रागिनी के तेवर नहीं बदले
“आप हैं मेरे पास और रवीद्र भी। मुझे इसकी जरूरत नहीं अपनी शादी में, मेरा कन्यादान भी आप लोग ही करेंगे” रागिनी ने फिर से गुस्से में कहा तो कमरे के बाहर किसी काम से सुशीला को बुलाने आए अनुराधा और भानु वहीं रुक गए और एक दूसरे की ओर देखने लगे।
Yeh joh bhi ho raha hai bilkul bhi thik nahi ho raha... yeh sarasar na insafi aur jyatti hai.. bechari raginee jiiiiiiiiiiiiiii bina modeling kiye hi shaadi karne jaa rahi hai.. batao jara yeh kahan ki insafi huyi...
itni door yeh sab baatein karne aaye the yeh dono kya ab nikle dono noida..apne pita se milneतभी उन्हें अपने पीछे किसी के होने का आभास हुआ तो पलटकर देखा। पीछे रणविजय आँखों में आँसू लिए खड़ा हुआ था। शायद रणविजय ने भी अंदर चल रही सुशीला और रागिनी के बीच की बातों को सुन लिया था। उन दोनों से नज़रें मिलते ही रणविजय वापस मुड़कर ड्राइंग हॉल की ओर चल दिया। अनुराधा भी उसके पीछे गयी और ड्राइंग हॉल में उसके सामने पहुँचकर उसका हाथ पकड़ा और बाहर की ओर चल दी। बाहर आकर अनुराधा ने अपनी गाड़ी का लॉक खोला और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठती हुई रणविजय को दूसरी ओर बैठने का इशारा किया।
रणविजय अपनी भावनाओं में इतना डूबा हुआ था की बिना सोचे समझे सिर्फ अनुराधा के इशारे पर उसके साथ गाड़ी में बैठ गया और वो दोनों वहाँ से चल दिये......। लगभग आधे घंटे बाद अनुराधा ने गाड़ी ले जाकर राजघाट के पास यमुना नदी के किनारे किनारे बनाए गए उपवन में खड़ी की। यहाँ शाम के समय तो काफी भीड़ रहती थी...लेकिन इस समय कोई भी नहीं था.... कई किलोमीटर में फैले इस उपवन में कहीं 100-200 मिटर दूर ही कुछ नगर निगम कर्मचारी पेड़ों के नीचे पड़े सोते हुये दिख रहे थे। अनुराधा ने गाड़ी पार्किंग लें में लगाई और उतरकर विक्रम का हाथ पकड़कर अंदर गयी और एक पेड़ के नीचे खुद बैठते हुये रणविजय को भी बैठा लिया।
“आप जानते हैं में हमेशा से आपसे प्यार और माँ से नफरत करती थी?” अनुराधा ने चुप्पी तोड़ते हुये कहा तो रणविजय ने चौंकते हुये उसकी ओर देखा
“क्या कहा तुमने? और दीदी ने ऐसा क्या कर दिया जो तुम उनसे नफरत करने लगीं” रणविजय ने खुद को जो अभी तक दर्द में डुबोया हुआ था ...उससे बाहर आते हुये कहा
“आज वो आपके लिए दीदी हो गईं....जो कल तक रागिनी हुआ करती थीं। याददास्त उनकी गयी थी या आपकी?”
“अब तुम भी मुझपर वही इल्जाम लगा दो जो दीदी ने लगाया....कि मेरी ही नियत में खोट था” रणविजय ने उसकी आँखों में देखते हुये वेदना भरे स्वर में कहा
“नहीं में आप पर कोई इल्जाम नहीं लगा रही.... आप मुझसे बड़े हैं...तो आप मुझसे ज्यादा समझदार भी होंगे ये उम्मीद रखती हूँ... इसीलिए ऐसा कहा” अनुराधा ने थोड़ा रुककर आगे कहना शुरू किया “में आपसे इसलिए प्यार करती थी क्योंकि आपने हम सबके लिए इतना कुछ किया लेकिन कभी कुछ न तो हमसे पाना चाहा और ना ही अपनी ज़िंदगी के लिए कुछ किया ......... जबकि माँ मतलब रागिनी बुआ आपके एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार थी। मुझे आपके हवस भरे चरित्र के बारे में भी बहुत कुछ समझ में आ गया था... लेकिन आपने कभी मेरी या माँ की ओर नजर उठाकर भी नहीं देखा... इसीलिए में आपसे प्यार करती थी....कभी-कभी मुझे लगता था कि आपने मुझसे भाई का रिश्ता क्यों जोड़ा?”
“भाई का रिश्ता क्यों जोड़ा? क्या मतलब हुआ इसका.... क्या तुम्हें पहले ही पता चल गया था कि तुम मेरी बहन नहीं हो?” रणविजय ने चौंकते हुये कहा
“हाँ! में जैसे ही कुछ समझदार हुई साथ पढ़ने वाली लड़कियों से जो जानकारी मिली...उसके हिसाब से में रागिनी बुआ की बेटी हो ही नहीं सकती थी.... उनकी उम्र और मेरी उम्र में इतना अंतर ही नहीं था.... में उन्हें सौतेली माँ समझती थी। और उनके मन में आपके लिए प्यार का अहसास पाते ही मेरे मन में उनके लिए नफरत के सिवा कुछ भी नहीं बचा......” अनुराधा ने कहा तो रणविजय एक ठंडी सांस भरकर रह गया
“लेकिन अब तो सबकुछ तुम्हारे सामने है.... जो बीत गया उसमें मेंने गलत किया या सही... उसके लिए अब मुझे यू नफरत कि आग में झोंकना कहाँ सही है दीदी का। और तुम मुझे यहाँ क्यों लेकर आयी ये भी मेरी समझ से परे है” रणविजय ने थोड़ी देर चुप रहने के बाद कहा
“में माँ के आज के रवैये को देखकर समझ चुकी हूँ कि उनको समझा पाना आपके बस की बात नहीं... उल्टा आप जितना उन्हें समझाने कि कोशिश करोगे उतना ही वो और भी चिढ़कर नफरत करने लगेंगी... इसलिए अब में आपको किसी के पास लेकर जाना चाहती हूँ... अकेले वो ही हैं जो अब माँ को समझा सकते हैं” अनुराधा ने कहा
“कौन? कौन हैं वो.... रवीन्द्र भैया?” रणविजय ने कहा
“नहीं... आपके...” कहते कहते अनुराधा रुक गयी जैसे सोच रही थी कि बताए या न बताए
“मेरे कौन? रुक क्यों गयी... बताओ” रणविजय बोला
“आपके पिताजी” सुनते ही रणविजय के चेहरे पर गुस्सा और नफरत दिखने लगी। वो कुछ कहने को हुआ तभी अनुराधा ने आगे बोलना शुरू किया “ना...ना... गुस्से से नहीं ठंडे दिमाग से काम लो.... अभी किसी का समझाया कुछ भी माँ की समझ में नहीं आयेगा.... न उनका गुस्सा कम होगा.... लेकिन आपके पिताजी के सामने आने पर जो गुस्सा और नफरत माँ के मन मे भरी है वो आपकी बजाय उनके ऊपर केन्द्रित हो जाएगी... उस स्तिथि में आपको वो अपना भी सकती हैं”
“लेकिन तुम्हें उनका पता कैसे चला कि वो हैं कहाँ... में और शांति इतने सालों से ढूंढ रहे हैं.... हमें क्यूँ नहीं पता चला और तुम्हें तुरंत ही मालूम हो गया उनके बारे में” रणविजय बोला
“क्योंकि आपने अपना दिमाग चलाया अपने तरीके से.... जबकि इस परिवार में दिमाग से तो कोई भी कमजोर नहीं है.... तो पता कैसे चल सकता था.... लेकिन रवीन्द्र ताऊजी की एक सबसे बड़ी विशेषता जो मेंने आप सबके अनुभवों से जानी.... वो यही है.... कि वो दिमाग और दिल का खतरनाक संयोग हैं....इस घर में चाहे कोई किसी के बारे में ना जानता हो लेकिन वो सब के बारे में जानते हैं और सब उनके बारे में .... ये उनकी सोची समझी व्यवस्था है.... वरना जब आप ही नहीं आपके पिताजी सभी भाई भी कभी गाँव में नहीं रहे....हमेशा शहर बल्कि बड़े बड़े शहरों में रहे ....तो वो इस पिछड़े गाँव में आकर क्यों रहने लगे?”
“हम्म! कह तो तुम सही रही हो” रणविजय ने मुसकुराते हुये कहा “अच्छा में अब तुम्हारी बात समझ गया.... चलो अब जल्दी से वहीं चलते हैं...... लेकिन वो हैं कहाँ?”
“चलिये बैठिए.... कुछ ज्यादा दूर नहीं यहीं पास में ही हैं........ आपके पुराने शहर........नोएडा में”
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ab itni jod jod se chilla chilla ke baatein Karoge undono ko hi kya idhar readers bhi jaan gaye saari baat...“दीदी क्या हुआ ये विक्रम और अनुराधा कहाँ भेजे हैं..... मेंने आवाज भी दी तब भी नहीं रुके” नीलिमा ने आकर रागिनी से कहा तो वो दोनों चौंक गईं
“हम ने तो कहीं नहीं भेजा....और न ही विक्रम न अनुराधा यहाँ आए” सुशीला ने कहा
“लेकिन दीदी वो तो यहीं आपके पास आए थे और फिर यहीं से बाहर निकले चले गए बड़े तेजी से.... अनुराधा ने उनका हाथ पकड़ा हुआ था” नीलिमा ने फिर से अपनी बात पर ज़ोर देते हुये कहा
“माँ! चाची जी सही कह रही हैं.... और हम तीनों ने ही आपकी सब बातें सुन ली थीं इसीलिए चाचा बाहर निकाल गए.... पीछे पीछे अनुराधा भी उनके साथ ही निकल गयी....वो विक्रम चाचा को लेकर नोएडा गयी है..... विजय बाबा से मिलवाने” तभी भानु ने कमरे में घुसते हुये कहा तो तीनों अवाक रह गईं
“विजय बाबा! मतलब पिताजी.... वो नोएडा में रहते हैं” भानु की बात समझ में आते ही रागिनी एकदम बोली
“जी बुआ जी” भानु ने कहा
“लेकिन उनका पता अनुराधा को कैसे मालूम है....???” रागिनी ने आश्चर्य से कहा तो सुशीला कुछ कहते कहते रुक गयी और भानु की ओर घूरकर देखने लगीं तो भानु ने अपनी नजरें झुका ली
“बुआ जी! उन्हें फ़ालिज (पैरालिसिस) हो गया था पिछली साल तब से हमारे ही साथ रह रहे थे गाँव में.... उनका इलाज नोएडा में चल रहा था.... जब वो चलने-फिरने लायक कुछ सही सलामत हो गए तो पिताजी उन्हें नोएडा ले आए थे और यहीं रखा हुआ था....” भानु ने कहा
“लेकिन अनुराधा को कैसे पता चला?” रागिनी ने फिर पूंछा
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Toh Anuradha ko uski mom mil gayi..“क्या विजयराज सिंह यहीं रहते हैं” अनुराधा ने दरवाजा खोलने वाली औरत से पूंछा
“जी हाँ! आप कौन?” उस औरत ने जबाब में अनुराधा से फिर सवाल किया
“जी ये मेरे साथ उनके बेटे आए हुये हैं .... उनसे मिलने” अनुराधा ने उस औरत को बताया
“आइये!” कहती हुई वो औरत दरवाजे से हटकर खड़ी हो गयी और अनुराधा के पीछे कुछ सोच में डूबे जमीन की ओर देखते रणविजय को घूरकर देखने लगी
“ विक्रम! कितना बदल गया...” अनुराधा जब उस औरत के बराबर से घर मे घुसी तो रणविजय को देखते हुये उस औरत के मुंह से हल्का सा निकला और वो पलटकर अंदर रसोईघर में को चली गयी
विक्रम ने भी नजरें उठाकर उसकी ओर देखा लेकिन तब तक वो पलट चुकी थी इसलिए विक्रम को उसका चेहरा नहीं दिखाई दिया सिर्फ पीठ ही दिखी। अनुराधा अंदर पहुंची तो हॉल में सामने एक तरफ सोफा पड़ा हुआ था और दूसरी ओर एक तख्त पर गेरुए कपड़े पहने एक बुजुर्ग बैठे हुये थे जिनकी निगाह दरवाजे की ओर ही थी। रणविजय (विक्रम) के अंदर घुसते ही जैसे उस व्यक्ति ने पहचान लिया हो और कुछ बोलने की कोशिश करने लगा।
रणविजय भी सीधा उनके पास गया और हाथ पकड़कर पास ही बैठ गया। रणविजय के हाथ पकड़ते ही उस आदमी यानि विजयराज की आँखों से आंसुओं की धार बंध गयी और वो विजयराज के गले लगकर रोने लगे। रणविजय भी उनको गले लगाए रोने लगा। हालांकि उनके पास आने तक उसके मन मे भी बहुत गुस्सा भरा हुआ था विजयराज के लिए.... बल्कि नफरत भरी हुई थी। लेकिन कुछ भी हो आज 20 साल बाद अपने पिता को देखा तो उसका भी मन पिघल गया और जब विजयराज ने उसे अपने गले लगाकर रोना शुरू किया तो वो भी रोये बिना नहीं रह पाया।
कुछ देर रोने बाद विजयराज ने रणविजय से अलग होते हुये सामने खड़ी अनुराधा की ओर देखा और उसे अपने पास आकर बैठने का इशारा किया तो अनुराधा भी आकर दूसरी तरफ उनके बराबर में वहीं तख्त पर बैठ गयी। विजयराज ने अनुराधा के सिर पर हाथ फेरा और उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर चूमा। फिर रणविजय की ओर देखकर इशारे से अनुराधा के बारे में पूंछा। लेकिन विक्रम का ध्यान इस बात पर था की वो कुछ बोल क्यों नहीं रहे।
“पिताजी! आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे....ऐसे इशारे से क्यूँ पूंछ रहे हैं?” रणविजय ने कहा विजयराज ने अपने होठों पर उंगली रखते हुये चुप रहने का इशारा किया...जो रणविजय की समझ मे नहीं आया कि उन्होने चुप रहने को क्यूँ कहा है
“चाचाजी! बाबा बोल नहीं सकते, पिछले साल इनको फ़ालिज हो गया था...दिमाग की कोई नस फटने से एक तरफ के आधे शरीर ने काम करना बंद कर दिया था। अब हाथ पैर तो कुछ काम करने लगे हैं लेकिन इनकी जुबान ने काम करना बिलकुल बंद कर दिया है...” अनुराधा ने रणविजय की बात का जवाब देते हुये कहा
“बेटी चाय ले जाओ आप?” तभी रसोई से उस औरत की आवाज आयी तो अनुराधा और रणविजय दोनों को ही अजीब लगा कि वो न तो तब से सामने आयीं और अब चाय भी लेकर यहाँ आने की बजाय अनुराधा को बुला रही हैं... लेकिन फिर भी अनुराधा चाय लेने रसोई की ओर चल दी। इधर उस औरत की बात सुनते ही विजयराज सिंह को गुस्सा आ गया और वो रणविजय को गुस्से में कुछ इशारे करने लगे। रणविजय ने ध्यान दिया तो वो अनुराधा को रोकने और रसोई से उस औरत को बाहर बुलाने को कह रहे थे। रणविजय ने देखा तो तब तक अनुराधा रसोई में जा चुकी थी इसलिए उसने विजयराज का हाथ अपने हाथों में लेते हुये शांत होने को कहा।
अनुराधा चाय लेकर उनके पास पहुंची और वहीं तख्त पर ही ट्रे रख दी... उस ट्रे में तीन कप देखकर विजयराज ने अनुराधा को इशारा कर रसोई में मौजूद उस औरत के बारे में पूंछा की उसकी चाय कहाँ है तो अनुराधा ने कहा की वो रसोई में ही चाय पियेंगी। अनुराधा का जवाब सुनकर विजयराज ने एक बार रणविजय की ओर गौर से देखा और फिर कुछ सोचकर ठंडी सांस भरते हुये चाय पीने लगा। रणविजय और अनुराधा ने भी अपनी चाय ली और चुसकियाँ भरने लगे।
थोड़ी देर बाद अचानक विजयराज को कुछ याद आया तो उसने दोबारा रणविजय से अनुराधा के बारे में इशारे से पूंछा कि वो कौन है। इस पर रणविजय थोड़ी देर चुप बैठा रहा फिर कुछ सोच-समझकर बोला
“पिताजी ये अनुराधा है” रणविजय के मुंह से अनुराधा सुनते ही विजयराज कि आँखें फिर से नाम हो गईं और उन्होने अपने सीने पर हाथ रखते हुये इशारा किया ‘अपनी अनुराधा’ जिसे समझकर रणविजय ने फिर कहा “जी हाँ अपनी अनुराधा... विमला बुआ की पोती” और विजयराज की ओर देखा तो वो रसोई की ओर देखते हुये कुछ इशारा कर रहा था तो रणविजय की नजरें भी उनकी नजरों का पीछा करते हुये रसोई की ओर उठीं वहाँ वो औरत रसोई से बाहर झांक रही थी लेकिन उसने अपनी साड़ी से अपना मुंह ऐसे ढक रखा था जैसे आँखों से आँसू पोंछ रही हो रणविजय को अपनी ओर देखते पाकर वो तुरंत वापस रसोई में घुस गयी। अनुराधा भी उसी ओर देखने लगी थी।
अब रणविजय को भी कुछ शक हुआ तो उसने विजयराज से पूंछा कि ये औरत कौन है और उसके सामने क्यों नहीं आ रही है। इस पर विजयराज ने कुछ इशारा किया लेकिन रणविजय या अनुराधा की समझ में नहीं आया तो दोनों फिर से विजयराज की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगे। इस पर विजयराज ने अपनी दोनों बाहों को आपस में मिलकर इशारा किया जैसे बच्चे को गोद में लेते हैं और अनुराधा की ओर देखते हुये अपने होठों को हिलाया। रणविजय ने होठों को पढ़ते हुये चौंककर विजयराज और अनुराधा की ओर देखा फिर रसोई की ओर देखते हुये बोला
“ममता! ये ममता है.... अनुराधा की माँ”
विजयराज ने हामी भरते हुये अनुराधा को रसोई की ओर इशारा किया लेकिन अनुराधा तो मुंह फाड़े कभी विजयराज तो कभी रणविजय को देख रही थी। विजयराज ने फिर रणविजय को इशारा किया अनुराधा को लेकर रसोई की ओर जाने का तो रणविजय ने उठकर अनुराधा का हाथ पकड़ा और रसोई की ओर चल दिया। अनुराधा बेसुध सी उसके पीछे-पीछे खिंचती हुई चली जा रही थी। रसोई के दरवाजे पर कदम रखते ही रणविजय ने देखा कि ममता दरवाजे से टिकी हुई रसोई के फर्श पर बैठी हुई साड़ी का पल्लू मुंह में दबाये रोये जा रही थी। रणविजय ने अनुराधा को आगे करके ममता की गोद में धकेल दिया और ममता के सिर पर हाथ फिरा के वापस बाहर चला आया और विजयराज के पास बैठकर जमीन पर नजरें गड़ाए कुछ सोचता रहा। बहुत देर तक दोनों बाप-बेटे चुपचाप बैठे रहे। उधर रसोई में से अनुराधा और ममता कि हल्की-हल्की सिसकियों की आवाज बाहर तक कभी-कभी सुनाई दे रही थी।
“विक्रम!” आवाज सुनते ही रणविजय ने नजर उठाकर सामने देखा तो अनुराधा को अपने साथ चिपकाए ममता खड़ी हुई थी
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waise kaafi sharmili hai mamta..
bichare Vijay bhi mute ho gaye
Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skill
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