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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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kamdev99008

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अध्याय 48

“विक्रम!” आवाज सुनते ही रणविजय ने नजर उठाकर सामने देखा तो अनुराधा को अपने साथ चिपकाए ममता खड़ी हुई थी

अब आगे :-

“ममता चलो तैयार हो जाओ किशनगंज चलते हैं” विक्रम ने कहा

“विक्रम! में तुमसे कुछ कहना चाहती थी” ममता ने विक्रम के चेहरे पर नजरें जमाये हुये कहा

“अब जो भी बात करनी है वहीं बैठकर करेंगे.... सबके साथ। मोहिनी चाची, शांति, रागिनी दीदी और सुशीला भाभी सब वहीं हैं.... चलो जल्दी तैयार हो जाओ” विक्रम ने कहा तो ममता ने अपनी नजरें झुका लीं

“आप अपने पिताजी को ले जाओ.... में वहाँ नहीं जाऊँगी” ममता ने कहा और नजर उठाकर विजयराज की ओर देखने लगी। विजयराज ने उससे नजर मिलते ही अपनी नजरें झुका लीं और विक्रम का हाथ पकड़ कर ममता को यहीं बने रहने देने का इशारा किया

इस पर अनुराधा ने अपना फोन निकाला और किसी को कॉल मिलाकर स्पीकर पर कर दिया।

“अनुराधा! कहाँ हो तुम और विक्रम?” फोन उठते ही दूसरी ओर से रागिनी की आवाज आयी

“माँ! में और विक्रम भैया नोएडा आए हुये हैं विजय बाबा के पास... इनको लेकर हम वापस आ रहे हैं अभी.... आपको कुछ और भी बताना था” अनुराधा ने रुँधे हुये गले से कहा

“क्या बात है अनुराधा तुम रो क्यों रही हो? क्या विक्रम या पिताजी ने तुमसे कुछ कहा? तुम्हें रोने की जरूरत नहीं है.... चुप हो और यहाँ वापस चली आओ..... इन बाप बेटे को इनके हाल पर छोड़ दो” उधर से रागिनी ने कहा

“माँ यहाँ आपके पिताजी एक औरत के साथ रह रहे हैं....” आगे अनुराधा के मुंह से शब्द ही नहीं निकले...उधर अनुराधा की इतनी बात सुनते ही रागिनी का गुस्सा फिर बढ़ गया और उसने अनुराधा के आगे बोलने का इंतज़ार भी नहीं किया

“ये बाप बेटे ज़िंदगी में कभी नहीं सुधरेंगे.... सारा घर-परिवार खत्म हो गया लेकिन इनके कारनामे अभी भी वो ही हैं” छोड़ो इनको और तुम यहाँ वापस चली आओ.... वैसे कौन है वो?” रागिनी ने उधर से कहा

“माँ...मेरी माँ ममता” अनुराधा के इतना बोलते ही उधर से रागिनी की कोई आवाज ही नहीं निकली

“ममता! अब भी ये दोनों फिर से साथ में........ अब क्या जो बच गए हैं उन्हें भी ठिकाने लगाके ही मानेंगे” रागिनी ने गुस्से से कहा तो उनके साथ खड़ी हुयी सुशीला ने धीरे से कहा कि वो जेल से निकलने के बाद से नोएडा में ही रह रही है आपके भाई के साथ और उन्होने ही विजयराज चाचाजी को ममता के पास छोड़ा हुआ है। सुशीला की आवाज और उनके कहने के अंदाज से ममता के चेहरे पर दर दिखने लगा

“रागिनी मेंने तुम्हारे साथ बहुत कुछ बुरा किया उसके लिए तुम सारी ज़िंदगी भी माफ ना करो......लेकिन सुशीला दीदी को गलतफहमी है...मेंने उनके घर को तोड़ने वाला कोई काम नहीं किया है.... रवि भैया ने मुझ पर दया करके सर छुपने को जगह दे दी...इससे ज्यादा मेरे उनके बीच कोई रिश्ता नहीं है...... लेकिन में समझती हूँ कि तुम्हें मेरे बारे में जानकार कैसा लगेगा इसीलिए इन सबके कहने पर भी में वहाँ नहीं आ रही थी” ममता ने अनुराधे के पास जाकर उसके फोन पर कहा तो रागिनी ने भी उधर से कोई जवाब नहीं दिया....वो भी सोच में पड़ गयी कि ममता को अगर यहाँ नहीं बुलाती तो अनुराधा को बुरा लगेगा.... चाहे जैसी भी है उसकी माँ है वो...और आज पहली बार मिली है तो अनुराधा भी उससे कुछ कहना सुनना चाहती होगी, उसके साथ कुछ समय रहना चाहती होगी। और अगर वो ममता को यहाँ बुलाती है तो पहले कि बातें तो सामने आएंगी ही....अब ये रवि के साथ रहने का नया मामला लेकर कहीं सुशीला से भी मतभेद न हो जाएँ

“अनुराधा! तुम अगर ममता भाभी के पास रुकना चाहो तो रुक जाओ ....बल्कि 1-2 दिन तो उनके पास रुको...फिर चाहे चली आना......आखिरकार वो तुम्हारी माँ हैं, उन्होने तुम्हें जन्म दिया है जैसे तुम आज पहली बार उनसे मिली हो...ऐसे ही वो भी एक तरह से पहली बार ही तुमसे मिल रही हैं.... मेंने तुम्हें माँ की तरह ही पाला है....में भी उनका दर्द समझती हूँ........... और विक्रम! तुम पिताजी को लेकर यहाँ चले आओ.... इनका फैसला अब यहीं बैठकर होगा” रागिनी ने सोच समझकर कहा तभी पीछे से सुशीला ने रागिनी को रोकते हुये स्वयं ममता से बात करने को कहा

“ममता! मुझे तुम पर विश्वास नहीं लेकिन अपने पति पर है.... उन्होने मुझे सिर्फ इतना बताया है कि तुम उनके छोटे भाई यानि बुआ के बेटे की पत्नी हो.... इस रिश्ते से तुम मेरी देवरानी हो... और जब मेरे पति ने तुम्हें शरण दी हुई है तो में तुमसे कैसे कुछ कह सकती हूँ...... तुम भी विजयराज चाचाजी, विक्रम और अनुराधा के साथ यहाँ आ जाओ.... अगले सोमवार को रागिनी दीदी की शादी हो....उसमें क्या परिवार के सदस्य के रूप में भी शामिल नहीं होगी” सुशीला ने कहा तो ममता कि आँखों में आँसू आ गए

“सुशीला दीदी! आप वास्तव में रवि भैया कि सच्ची जीवन-साथी हो....आप भी भैया की तरह परिवार को जोड़ना के लिए सबको बरदास्त कर लेती हो....लेकिन में किस मुंह से आप सबका सामना करूंगी”

“सबकुछ भूल जाओ....कब तक बीती बातें याद करके एक दूसरे से दूर होकर ये परिवार बिखरा रहेगा....कब तक एक दूसरे से दुश्मनी रहेगी..... आज उन रागिनी दीदी कि शादी में भी क्या तुम नहीं आओगी जिनके साथ तुमने सालों-साल बिताए...में तो दीदी को चंद दिनों से जानती हूँ” सुशीला ने दूसरी ओर से कहा तो ममता हिचकियाँ लेकर रोने लगी

“समय ने मेरी बुद्धि खराब कर दी वरना एक दिन वो भी था जब में रागिनी को अपने हाथों से विदा करना चाहती थी..... पूरे घर में मेरे लिए रागिनी से बढ़कर कोई नहीं था....और उनके लिए भी मुझसे बढ़कर कोई नहीं था....अपने पिताजी, भाई और बुआ से भी ज्यादा वो मुझे मानती थीं..... दीदी में आ रही हूँ...चाहे रागिनी मुझे गालियां दे या मारे भी....फिर भी में एक बार रागिनी को देखना चाहती हूँ....अपने अपराध कि क्षमा मागूँगी” ममता ने रोते हुये कहा तो

“भाभी! में भी आपसे मिलना चाहती हूँ.........बस अब जल्दी से आ जाओ” रोते हुये रागिनी ने भी कहा

ममता ने फोन अनुराधा को दिया और खुद कमरे में जाकर तैयार होने लगी अनुराधा भी फोन काटकर उसके पीछे पीछे गई लेकिन कमरे के दरवाजे पर ही रुक गयी। ममता किसी को फोन करके बता रही थी अपने जाने का और उससे कह रही थी की वो शाम को वापस आ जाएगी। ममता ने फोन पर ये भी कहा कि खाना बना रखा है आकर खा लेगा और पूंछा कि घर कि चाबियाँ उसके पास है या नहीं। अनुराधा के दिमाग में एकदम गुस्से की लहर दौड़ गयी, कि अब ये कौन है जिसके बारे में माँ ने कुछ बताया भी नहीं, इनके साथ भी रहता है और उसके पास घर की चाबियाँ भी हैं। लेकिन इस समय अनुराधा ने ममता से कुछ भी पूंछना सही नहीं समझा और वापस आकर विक्रम के पास ही खड़ी हो गयी। विक्रम कि भी नजर उसकी ही हरकतों पर थी। विक्रम ने इशारे से अनुराधा से पूंछा कि क्या बात है लेकिन उसने इशारा किया कि वो घर जाकर ही बताएगी बाद में।

थोड़ी देर बाद सभी तैयार होकर घर से बाहर निकले और किशनगंज जा पहुंचे। किशनगंज पहुंचकर ममता कि आँखें भर आयीं, शायद पुरानी बातें याद करके। घर पर गाडियाँ रुकते ही देखा तो मोहिनी, रागिनी, सुशीला, शांति और सभी बच्चे गाते पर खड़े हैं.... अचानक रागिनीयागे बढ़ी और ममता की ओर से गाड़ी का दरवाजा खोलकर उसका हाथ पकड़कर बाहर निकाला.... ममता ने अपने सिर पर पड़ी साड़ी के पल्लू को थोड़ा और आगे खींचकर चेहरे पर घूँघट कर लिया और रागिनी का हाथ पकड़े मेन गेट कि ओर बढ़ी तभी अपने घर से निकलकर रेशमा ने भी ममता का दूसरा कंधा पकड़ा। मेन गेट पर पहुँचकर ममता ने दहलीज पर हाथ लगाकर अपने माथे पर लगाए फिर सामने खड़ी सुशीला के पैर छूए। मोहिनी और शांति को हाथ जोड़कर नमसकर किया। विक्रम, रागिनी और सभी बच्चों को ये सबकुछ अजीब सा लग रहा था। सभी अंदर हॉल में आकर बैठ गए तो रेशमा ने ममता का घूँघट ऊपर उठाया। ममता कि आँखों ही नहीं पूरे चेहरे पर आँसू ही आँसू थे।

“भाभी इतना क्यों रो रही हो... भूल जाओ सब पुरानी बातों को.... अब फिर हम सभी साथ रहेंगे.....पहले की तरह” रागिनी ने अपने हाथों से ममता के आँसू पोंछते हुये कहा। सबकी नजरें इस समय ममता पर थीं लेकिन शांति एकटक भानु और प्रबल के बीच बैठे विजयराज को देखे जा रही थी। हालांकि विजयराज ने इस पर ध्यान नहीं दिया था वो चुपचाप नजरें जमीन में गड़ाए बैठे थे। इधर अनुभूति भी हॉल में अंदर आने की बजाय बाहर ही दरवाजे के पर्दे के पीछे खड़ी एकटक विजयराज सिंह की ओर देख रही थी। लेकिन यहाँ किसी का भी ध्यान उन माँ-बेटी पर नहीं था।

तभी अनुभूति को अहसास हुआ कि उसके पीछे कोई और भी खड़ा है। अनुभूति ने पलटकर देखा तो उसकी आँखें एकदम बड़ी हो गईं और वो खुशी से एकदम उछल पड़ी।

“पापा!........” कहती हुई वो उस व्यक्ति के गले लग गयी, अनुभूति के मुंह से पापा सुनते ही सबकी नजरें उस दरवाजे की ओर गईं लेकिन किसी के मुंह से कोई आवाज नहीं निकली। इधर अनुभूति के मुंह से पापा सुनकर विजयराज ने भी उधर देखा लेकिन अनुभूति जिससे लिपटी हुई थी उसे देखते ही विजयराज कुछ कहने की कोशिश करने लगे। जैसे वो उस व्यक्ति से कुछ जानना चाहते हों।

.....................................

“दीदी! अब आप तो जानती ही हैं कि उनको कोई भी समझा नहीं सकता। उनका कोई भी फैसला बाद के लिए नहीं होता। तुरंत होता है। अच्छा हो या बुरा” धीरेंद्र ने रागिनी को समझाते हुये कहा

“लेकिन उसे मेरी बात भी तो सुननी चाहिए थी.... मेरी क्या गलती थी उस में... जो भी किया पिताजी ने किया” कहती हुयी रागिनी ने गुस्से से विजयराज सिंह की ओर देखा तो विजयराज ने नजरें झुका लीं।

“दीदी! आप क्यों परेशान हैं.... उनके कहने से क्या होता है.... हम तो आपके साथ हैं ही... आप चुपचाप सबकुछ भूलकर अपने ऊपर ध्यान दो.... आपकी शादी है... हम सब तो बाकी तैयारियों में लगे हैं....अपनी तैयारियां तो आपको ही करनी हैं.... और आपके भाई को..... अब छोड़ो सब चिंता... आपके सब भाई, बहन, भाभियाँ तो यहाँ आपके साथ ही हैं ना....... और ममता तू क्यों ऐसे उदास बैठी है.... मेरे मन में या उनके मन में कभी ना कोई बात थी और ना होगी.... ये सब तेरी वजह से नहीं किया उन्होने..... इस सबके बारे में उन्होने पहले ही सोच लिया होगा” सुशीला ने उदास बैठी रागिनी और ममता को समझते हुये कहा और आसपास बैठे सभी परिजनों की ओर देखा तभी विजयराज ने रणविजय की ओर देखा तो रणविजय उठ खड़ा हुआ।

“भाभी सही कह रही हैं दीदी.... आप इन बातों को ज्यादा दिमाग में मत घुसाओ... आपको अपने घर जाना है.... फिर शादी यहाँ से हो या गाँव से... क्या फर्क पड़ता है। फर्क पड़े तो हमें पड़ना चाहिए.... लेकिन में भैया के फैसले को सही मानता हूँ... वो कितनी भी जल्दबाज़ी मे फैसला क्यूँ ना करें.... सोच समझकर ही लेते हैं। में भैया के फैसले का समर्थन करता हूँ....” रणविजय की बात सुनकर रागिनी ने गुस्से से कुछ कहना चाहा तो सुशीला और मोहिनी ने उसको चुपचाप बने रहने का इशारा किया

.............................

इधर सरला का पूरा परिवार भी अपनी ओर से तैयारियों में लगा हुआ था। सरला की माँ यानि निर्मला की बहन सुमित्रा देवी तो अब रही नहीं लेकिन संबंध तो वही था ....इसलिए उनका बेटा सर्वेश भी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ दिल्ली आ गया। रिश्ते में सर्वेश रागिनी के चाचा लगते थे लेकिन उम्र में रवीन्द्र के बराबर के ही थे। उन्होने ही आकर बताया कि सरला के परिवार वाले सब इकट्ठे होकर श्योपुर और गाँव दोनों जगह से बारात लेकर आएंगे। शादी के बाद सभी रस्मों के लिए गाँव जाएंगे फिर श्योपुर। लेकिन जब उन्होने कहा कि वो रवीद्र के नोएडा वाले घर में ही रुकेंगे... तो सभी को आश्चर्य हुआ कि वो वहाँ क्यों रुकना चाहते हैं। इस पर सर्वेश ने कहा कि उनके पत्नी बच्चे तो यहीं रहेंगे लेकिन वो अकेले रवीद्र के साथ रहेंगे.... क्योंकि उनका रिश्ता दोनों पक्षों से है तो वे लगातार संवाद बनाए रखने के लिए रवीद्र के साथ रहना चाहते हैं। रवीद्र बेशक रागिनी के भाई हैं.... लेकिन वहाँ देवराज के घर में कोई ऐसा जिम्मेदार व्यक्ति नहीं स्वयं देवराज के अलावा... सो वहाँ की पूरी व्यवस्था रवीद्र और वो मिलकर देख रहे हैं....उन लोगों से लगातार संपर्क में रहकर। यहाँ तो पूरा परिवार ही मौजूद है तो उनकी और रवीद्र की इतनी ज्यादा आवश्यकता नहीं है।

इस पर सबने पहले तो विरोध किया लेकिन ज्यादा ज़ोर देने पर ये शर्त रखी कि खाना खाने उन्हें यहाँ ही आना पड़ेगा...इस पर सुशीला ने बताया कि वहाँ से इतना आना जाना व्यावहारिक नहीं पड़ेगा.... वहाँ राणा जी की अपनी पूरी व्यवस्था है... कोई परेशानी नहीं होगी।

...........................

“आइए जीजाजी! बड़ी देर लगा दी आने में.... मेहंदी लगवा के आए हो क्या पैरों में?” फ्लॅट का दरवाजा खुलते ही एक साँवली लेकिन लंबी और गठी हुई देह की सुंदर सी औरत ने दरवाजा खोला तो सर्वेश एकदम मुंह फाड़े उसको देखते रह गए। इधर विक्रम/रणविजय भी पीछे से गाड़ी साइड में खड़ी करके आया तो दरवाजे पर ही रुक गया

“जी आप? यहाँ तो रवीद्र प्रताप सिंह जी रहते हैं” रणविजय ने उस औरत से पूंछा। ये वही फ्लॅट था जिसमें ममता और विजयराज रह रहे थे इसलिए रणविजय को भी आश्चर्य हुआ एक अंजान औरत को सामने देखकर हालांकि वो औरत रणविजय से उम्र में कम थी लेकिन 40 के आसपास की थी और गुलाबी सलवार कमीज में लड़की सी लग रही थी... उसकी मांग में सिंदूर लगा हुआ था जिससे उसके विवाहित होने का पता चल रहा था

“बड़े देवर जी आप लोग अंदर तो आइए .... राणा जी का ही घर है....आप तो पहले भी आ चुके हैं ममता दीदी को आप ही तो लेकर गए थे.... अब यहाँ किसी को तो रहना था राणा जी की ‘सेवा’ के लिए” उस औरत ने सेवा शब्द पर ज़ोर देते हुये जब रणविजय को बड़े देवर जी कहा तो रणविजय ही नहीं सर्वेश भी उलझ से गए। लेकिन रणविजय ने सर्वेश को अंदर बढ्ने का इशारा किया और खुद भी अंदर आ गए।

“आपने बताया नहीं कि आप कौन हैं? वैसे आपसे मुलाक़ात तो मुझे बहुत साल पहले कर लेनी चाहिए थी” रणविजय ने तख्त पर बैठते हुये उस औरत से मुस्कुराकर कहा

“मेरा नाम विनीता है.... और जब से आपके भैया से मुलाक़ात हुई किसी से मुलाक़ात का कोई मतलब नहीं रह गया। आपसे अगर वर्षों पहले मुलाक़ात होती तब भी आपकी तो भाभी ही होती...अब भी वही समझो..... वैसे रिश्ते में परिवार के लिए तो में आपकी मामी हूँ.... इसलिए इनको जीजाजी कहा” उन दोनों को बैठकर उसने रणविजय की बात का जवाब दिया और रसोई की ओर चली गयी

...........................
 

DARK WOLFKING

Supreme
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sushila sabko achche se sambhal rahi hai ,,mamta ne gate par aake namaskar kiya aur sushila ke pair chhuwe ,,apno se bado ki ijaat kar rahi hai par isne kya kiya tha ,jo sabse alag reh rahi thi ranvijay ke saath aur uski sewa kar rahi thi ...aur jail bhi huyi thi ..
 

kamdev99008

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nice update ...ye vinita kaun hai ,,ek ko jeeja aur ek ko dewar keh rahi hai ,,kahi vijayraj ne phir shadi to nahi kar li thi ?..
iska rishta ajeeb hai.............vijayraj ke mausere bhai ko jija kaha......matlab vijayraj ki sali hui
lekin vijayraj ke bete ko ..........devar kah rahi hai........... ravindra/ravi ka bhai hone ki wajah se

ye kaun hai..............ravindra ki kahani mein samne ayega.............. yani meri atmkatha me...........
iska parivar se koi khas ya seedha rishta nahi............dur ke rishte me ravi ki mami lagti hai ..........lekin ravi iske liye sabkuchh hai
ye meri jindgi ke un panno mein se hai.........jinhein log 30 saal pahle bhool gaye..........mera pahla pyar.....bachpan ki mohabbat
 

kamdev99008

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sushila sabko achche se sambhal rahi hai ,,mamta ne gate par aake namaskar kiya aur sushila ke pair chhuwe ,,apno se bado ki ijaat kar rahi hai par isne kya kiya tha ,jo sabse alag reh rahi thi ranvijay ke saath aur uski sewa kar rahi thi ...aur jail bhi huyi thi ..
ghar me bada hona...... beti to fir bhi jimmedariyon se dur ho sakti hai jab chahe..........
lekin bade bete bahu ko to chahe-anchahe jimmedari leni bhi hogi aur nibhani bhi hogi..........jo ravindra ne kiya aur sushila kar rahi hai

mamta ki kahani pahle aa chuki hai...........ragini ki bachpan ki saheli sudha ne sunai thi......mamta ke jail jane tak

mamta ranvijay ke sath nahin thi...........vijaraj ke sath thi....ranvijay ke father.........
balki ye donon hi ko ravindra ne yahan apne pas noida me rakha hua tha...........sushila ko sab pata tha

actually................ravindra aur sushila ke beech kuchh bhi chhupa hua nahin hai.......
 

DARK WOLFKING

Supreme
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ghar me bada hona...... beti to fir bhi jimmedariyon se dur ho sakti hai jab chahe..........
lekin bade bete bahu ko to chahe-anchahe jimmedari leni bhi hogi aur nibhani bhi hogi..........jo ravindra ne kiya aur sushila kar rahi hai

mamta ki kahani pahle aa chuki hai...........ragini ki bachpan ki saheli sudha ne sunai thi......mamta ke jail jane tak

mamta ranvijay ke sath nahin thi...........vijaraj ke sath thi....ranvijay ke father.........
balki ye donon hi ko ravindra ne yahan apne pas noida me rakha hua tha...........sushila ko sab pata tha

actually................ravindra aur sushila ke beech kuchh bhi chhupa hua nahin hai.......
ha ..mamta vijayraj ke saath thi ?..maine update dobara check kiya tha ,,par edit karna bhul gaya ?..dono naam me vijay common hai to ranvijay hi likh diya jabki vijayraj likhna tha ..par thanks galti clear karne ke liye ..
 

firefox420

Well-Known Member
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Aakhir prabhu aapne apni daya drishti hum haramkhoro par ki uske liye hum aapke aabhaari hai .. ab Sarvesh ka angle soch raha hu .. samjh kar kucch likhunga .. waise agar dekha jaaye to ye Devraj ji ke saale sahab lagenge riste mein .. matlab bade bhai ke saale yaani Ramesh babu ke ...
 

MR SINGH

Cold blood 🔫🕵️‍♂️🦂⏳
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Great aapne bhi update de diya bade bhai. Toh aap ravinder matlab apni atamkatha likh rahe ho. Bahut bada jhol hai bhai isme to. Hamari samajh se pare hai. Bas likhte rahiye shayad kabhi hamari samajh mein aa hi jaye
 
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अध्याय 48

“विक्रम!” आवाज सुनते ही रणविजय ने नजर उठाकर सामने देखा तो अनुराधा को अपने साथ चिपकाए ममता खड़ी हुई थी

अब आगे :-

“ममता चलो तैयार हो जाओ किशनगंज चलते हैं” विक्रम ने कहा

“विक्रम! में तुमसे कुछ कहना चाहती थी” ममता ने विक्रम के चेहरे पर नजरें जमाये हुये कहा

“अब जो भी बात करनी है वहीं बैठकर करेंगे.... सबके साथ। मोहिनी चाची, शांति, रागिनी दीदी और सुशीला भाभी सब वहीं हैं.... चलो जल्दी तैयार हो जाओ” विक्रम ने कहा तो ममता ने अपनी नजरें झुका लीं

“आप अपने पिताजी को ले जाओ.... में वहाँ नहीं जाऊँगी” ममता ने कहा और नजर उठाकर विजयराज की ओर देखने लगी। विजयराज ने उससे नजर मिलते ही अपनी नजरें झुका लीं और विक्रम का हाथ पकड़ कर ममता को यहीं बने रहने देने का इशारा किया

इस पर अनुराधा ने अपना फोन निकाला और किसी को कॉल मिलाकर स्पीकर पर कर दिया।

“अनुराधा! कहाँ हो तुम और विक्रम?” फोन उठते ही दूसरी ओर से रागिनी की आवाज आयी

“माँ! में और विक्रम भैया नोएडा आए हुये हैं विजय बाबा के पास... इनको लेकर हम वापस आ रहे हैं अभी.... आपको कुछ और भी बताना था” अनुराधा ने रुँधे हुये गले से कहा

“क्या बात है अनुराधा तुम रो क्यों रही हो? क्या विक्रम या पिताजी ने तुमसे कुछ कहा? तुम्हें रोने की जरूरत नहीं है.... चुप हो और यहाँ वापस चली आओ..... इन बाप बेटे को इनके हाल पर छोड़ दो” उधर से रागिनी ने कहा

“माँ यहाँ आपके पिताजी एक औरत के साथ रह रहे हैं....” आगे अनुराधा के मुंह से शब्द ही नहीं निकले...उधर अनुराधा की इतनी बात सुनते ही रागिनी का गुस्सा फिर बढ़ गया और उसने अनुराधा के आगे बोलने का इंतज़ार भी नहीं किया

“ये बाप बेटे ज़िंदगी में कभी नहीं सुधरेंगे.... सारा घर-परिवार खत्म हो गया लेकिन इनके कारनामे अभी भी वो ही हैं” छोड़ो इनको और तुम यहाँ वापस चली आओ.... वैसे कौन है वो?” रागिनी ने उधर से कहा

“माँ...मेरी माँ ममता” अनुराधा के इतना बोलते ही उधर से रागिनी की कोई आवाज ही नहीं निकली

“ममता! अब भी ये दोनों फिर से साथ में........ अब क्या जो बच गए हैं उन्हें भी ठिकाने लगाके ही मानेंगे” रागिनी ने गुस्से से कहा तो उनके साथ खड़ी हुयी सुशीला ने धीरे से कहा कि वो जेल से निकलने के बाद से नोएडा में ही रह रही है आपके भाई के साथ और उन्होने ही विजयराज चाचाजी को ममता के पास छोड़ा हुआ है। सुशीला की आवाज और उनके कहने के अंदाज से ममता के चेहरे पर दर दिखने लगा

“रागिनी मेंने तुम्हारे साथ बहुत कुछ बुरा किया उसके लिए तुम सारी ज़िंदगी भी माफ ना करो......लेकिन सुशीला दीदी को गलतफहमी है...मेंने उनके घर को तोड़ने वाला कोई काम नहीं किया है.... रवि भैया ने मुझ पर दया करके सर छुपने को जगह दे दी...इससे ज्यादा मेरे उनके बीच कोई रिश्ता नहीं है...... लेकिन में समझती हूँ कि तुम्हें मेरे बारे में जानकार कैसा लगेगा इसीलिए इन सबके कहने पर भी में वहाँ नहीं आ रही थी” ममता ने अनुराधे के पास जाकर उसके फोन पर कहा तो रागिनी ने भी उधर से कोई जवाब नहीं दिया....वो भी सोच में पड़ गयी कि ममता को अगर यहाँ नहीं बुलाती तो अनुराधा को बुरा लगेगा.... चाहे जैसी भी है उसकी माँ है वो...और आज पहली बार मिली है तो अनुराधा भी उससे कुछ कहना सुनना चाहती होगी, उसके साथ कुछ समय रहना चाहती होगी। और अगर वो ममता को यहाँ बुलाती है तो पहले कि बातें तो सामने आएंगी ही....अब ये रवि के साथ रहने का नया मामला लेकर कहीं सुशीला से भी मतभेद न हो जाएँ

“अनुराधा! तुम अगर ममता भाभी के पास रुकना चाहो तो रुक जाओ ....बल्कि 1-2 दिन तो उनके पास रुको...फिर चाहे चली आना......आखिरकार वो तुम्हारी माँ हैं, उन्होने तुम्हें जन्म दिया है जैसे तुम आज पहली बार उनसे मिली हो...ऐसे ही वो भी एक तरह से पहली बार ही तुमसे मिल रही हैं.... मेंने तुम्हें माँ की तरह ही पाला है....में भी उनका दर्द समझती हूँ........... और विक्रम! तुम पिताजी को लेकर यहाँ चले आओ.... इनका फैसला अब यहीं बैठकर होगा” रागिनी ने सोच समझकर कहा तभी पीछे से सुशीला ने रागिनी को रोकते हुये स्वयं ममता से बात करने को कहा

“ममता! मुझे तुम पर विश्वास नहीं लेकिन अपने पति पर है.... उन्होने मुझे सिर्फ इतना बताया है कि तुम उनके छोटे भाई यानि बुआ के बेटे की पत्नी हो.... इस रिश्ते से तुम मेरी देवरानी हो... और जब मेरे पति ने तुम्हें शरण दी हुई है तो में तुमसे कैसे कुछ कह सकती हूँ...... तुम भी विजयराज चाचाजी, विक्रम और अनुराधा के साथ यहाँ आ जाओ.... अगले सोमवार को रागिनी दीदी की शादी हो....उसमें क्या परिवार के सदस्य के रूप में भी शामिल नहीं होगी” सुशीला ने कहा तो ममता कि आँखों में आँसू आ गए

“सुशीला दीदी! आप वास्तव में रवि भैया कि सच्ची जीवन-साथी हो....आप भी भैया की तरह परिवार को जोड़ना के लिए सबको बरदास्त कर लेती हो....लेकिन में किस मुंह से आप सबका सामना करूंगी”

“सबकुछ भूल जाओ....कब तक बीती बातें याद करके एक दूसरे से दूर होकर ये परिवार बिखरा रहेगा....कब तक एक दूसरे से दुश्मनी रहेगी..... आज उन रागिनी दीदी कि शादी में भी क्या तुम नहीं आओगी जिनके साथ तुमने सालों-साल बिताए...में तो दीदी को चंद दिनों से जानती हूँ” सुशीला ने दूसरी ओर से कहा तो ममता हिचकियाँ लेकर रोने लगी

“समय ने मेरी बुद्धि खराब कर दी वरना एक दिन वो भी था जब में रागिनी को अपने हाथों से विदा करना चाहती थी..... पूरे घर में मेरे लिए रागिनी से बढ़कर कोई नहीं था....और उनके लिए भी मुझसे बढ़कर कोई नहीं था....अपने पिताजी, भाई और बुआ से भी ज्यादा वो मुझे मानती थीं..... दीदी में आ रही हूँ...चाहे रागिनी मुझे गालियां दे या मारे भी....फिर भी में एक बार रागिनी को देखना चाहती हूँ....अपने अपराध कि क्षमा मागूँगी” ममता ने रोते हुये कहा तो

“भाभी! में भी आपसे मिलना चाहती हूँ.........बस अब जल्दी से आ जाओ” रोते हुये रागिनी ने भी कहा

ममता ने फोन अनुराधा को दिया और खुद कमरे में जाकर तैयार होने लगी अनुराधा भी फोन काटकर उसके पीछे पीछे गई लेकिन कमरे के दरवाजे पर ही रुक गयी। ममता किसी को फोन करके बता रही थी अपने जाने का और उससे कह रही थी की वो शाम को वापस आ जाएगी। ममता ने फोन पर ये भी कहा कि खाना बना रखा है आकर खा लेगा और पूंछा कि घर कि चाबियाँ उसके पास है या नहीं। अनुराधा के दिमाग में एकदम गुस्से की लहर दौड़ गयी, कि अब ये कौन है जिसके बारे में माँ ने कुछ बताया भी नहीं, इनके साथ भी रहता है और उसके पास घर की चाबियाँ भी हैं। लेकिन इस समय अनुराधा ने ममता से कुछ भी पूंछना सही नहीं समझा और वापस आकर विक्रम के पास ही खड़ी हो गयी। विक्रम कि भी नजर उसकी ही हरकतों पर थी। विक्रम ने इशारे से अनुराधा से पूंछा कि क्या बात है लेकिन उसने इशारा किया कि वो घर जाकर ही बताएगी बाद में।

थोड़ी देर बाद सभी तैयार होकर घर से बाहर निकले और किशनगंज जा पहुंचे। किशनगंज पहुंचकर ममता कि आँखें भर आयीं, शायद पुरानी बातें याद करके। घर पर गाडियाँ रुकते ही देखा तो मोहिनी, रागिनी, सुशीला, शांति और सभी बच्चे गाते पर खड़े हैं.... अचानक रागिनीयागे बढ़ी और ममता की ओर से गाड़ी का दरवाजा खोलकर उसका हाथ पकड़कर बाहर निकाला.... ममता ने अपने सिर पर पड़ी साड़ी के पल्लू को थोड़ा और आगे खींचकर चेहरे पर घूँघट कर लिया और रागिनी का हाथ पकड़े मेन गेट कि ओर बढ़ी तभी अपने घर से निकलकर रेशमा ने भी ममता का दूसरा कंधा पकड़ा। मेन गेट पर पहुँचकर ममता ने दहलीज पर हाथ लगाकर अपने माथे पर लगाए फिर सामने खड़ी सुशीला के पैर छूए। मोहिनी और शांति को हाथ जोड़कर नमसकर किया। विक्रम, रागिनी और सभी बच्चों को ये सबकुछ अजीब सा लग रहा था। सभी अंदर हॉल में आकर बैठ गए तो रेशमा ने ममता का घूँघट ऊपर उठाया। ममता कि आँखों ही नहीं पूरे चेहरे पर आँसू ही आँसू थे।

“भाभी इतना क्यों रो रही हो... भूल जाओ सब पुरानी बातों को.... अब फिर हम सभी साथ रहेंगे.....पहले की तरह” रागिनी ने अपने हाथों से ममता के आँसू पोंछते हुये कहा। सबकी नजरें इस समय ममता पर थीं लेकिन शांति एकटक भानु और प्रबल के बीच बैठे विजयराज को देखे जा रही थी। हालांकि विजयराज ने इस पर ध्यान नहीं दिया था वो चुपचाप नजरें जमीन में गड़ाए बैठे थे। इधर अनुभूति भी हॉल में अंदर आने की बजाय बाहर ही दरवाजे के पर्दे के पीछे खड़ी एकटक विजयराज सिंह की ओर देख रही थी। लेकिन यहाँ किसी का भी ध्यान उन माँ-बेटी पर नहीं था।

तभी अनुभूति को अहसास हुआ कि उसके पीछे कोई और भी खड़ा है। अनुभूति ने पलटकर देखा तो उसकी आँखें एकदम बड़ी हो गईं और वो खुशी से एकदम उछल पड़ी।

“पापा!........” कहती हुई वो उस व्यक्ति के गले लग गयी, अनुभूति के मुंह से पापा सुनते ही सबकी नजरें उस दरवाजे की ओर गईं लेकिन किसी के मुंह से कोई आवाज नहीं निकली। इधर अनुभूति के मुंह से पापा सुनकर विजयराज ने भी उधर देखा लेकिन अनुभूति जिससे लिपटी हुई थी उसे देखते ही विजयराज कुछ कहने की कोशिश करने लगे। जैसे वो उस व्यक्ति से कुछ जानना चाहते हों।

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“दीदी! अब आप तो जानती ही हैं कि उनको कोई भी समझा नहीं सकता। उनका कोई भी फैसला बाद के लिए नहीं होता। तुरंत होता है। अच्छा हो या बुरा” धीरेंद्र ने रागिनी को समझाते हुये कहा

“लेकिन उसे मेरी बात भी तो सुननी चाहिए थी.... मेरी क्या गलती थी उस में... जो भी किया पिताजी ने किया” कहती हुयी रागिनी ने गुस्से से विजयराज सिंह की ओर देखा तो विजयराज ने नजरें झुका लीं।

“दीदी! आप क्यों परेशान हैं.... उनके कहने से क्या होता है.... हम तो आपके साथ हैं ही... आप चुपचाप सबकुछ भूलकर अपने ऊपर ध्यान दो.... आपकी शादी है... हम सब तो बाकी तैयारियों में लगे हैं....अपनी तैयारियां तो आपको ही करनी हैं.... और आपके भाई को..... अब छोड़ो सब चिंता... आपके सब भाई, बहन, भाभियाँ तो यहाँ आपके साथ ही हैं ना....... और ममता तू क्यों ऐसे उदास बैठी है.... मेरे मन में या उनके मन में कभी ना कोई बात थी और ना होगी.... ये सब तेरी वजह से नहीं किया उन्होने..... इस सबके बारे में उन्होने पहले ही सोच लिया होगा” सुशीला ने उदास बैठी रागिनी और ममता को समझते हुये कहा और आसपास बैठे सभी परिजनों की ओर देखा तभी विजयराज ने रणविजय की ओर देखा तो रणविजय उठ खड़ा हुआ।

“भाभी सही कह रही हैं दीदी.... आप इन बातों को ज्यादा दिमाग में मत घुसाओ... आपको अपने घर जाना है.... फिर शादी यहाँ से हो या गाँव से... क्या फर्क पड़ता है। फर्क पड़े तो हमें पड़ना चाहिए.... लेकिन में भैया के फैसले को सही मानता हूँ... वो कितनी भी जल्दबाज़ी मे फैसला क्यूँ ना करें.... सोच समझकर ही लेते हैं। में भैया के फैसले का समर्थन करता हूँ....” रणविजय की बात सुनकर रागिनी ने गुस्से से कुछ कहना चाहा तो सुशीला और मोहिनी ने उसको चुपचाप बने रहने का इशारा किया

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इधर सरला का पूरा परिवार भी अपनी ओर से तैयारियों में लगा हुआ था। सरला की माँ यानि निर्मला की बहन सुमित्रा देवी तो अब रही नहीं लेकिन संबंध तो वही था ....इसलिए उनका बेटा सर्वेश भी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ दिल्ली आ गया। रिश्ते में सर्वेश रागिनी के चाचा लगते थे लेकिन उम्र में रवीन्द्र के बराबर के ही थे। उन्होने ही आकर बताया कि सरला के परिवार वाले सब इकट्ठे होकर श्योपुर और गाँव दोनों जगह से बारात लेकर आएंगे। शादी के बाद सभी रस्मों के लिए गाँव जाएंगे फिर श्योपुर। लेकिन जब उन्होने कहा कि वो रवीद्र के नोएडा वाले घर में ही रुकेंगे... तो सभी को आश्चर्य हुआ कि वो वहाँ क्यों रुकना चाहते हैं। इस पर सर्वेश ने कहा कि उनके पत्नी बच्चे तो यहीं रहेंगे लेकिन वो अकेले रवीद्र के साथ रहेंगे.... क्योंकि उनका रिश्ता दोनों पक्षों से है तो वे लगातार संवाद बनाए रखने के लिए रवीद्र के साथ रहना चाहते हैं। रवीद्र बेशक रागिनी के भाई हैं.... लेकिन वहाँ देवराज के घर में कोई ऐसा जिम्मेदार व्यक्ति नहीं स्वयं देवराज के अलावा... सो वहाँ की पूरी व्यवस्था रवीद्र और वो मिलकर देख रहे हैं....उन लोगों से लगातार संपर्क में रहकर। यहाँ तो पूरा परिवार ही मौजूद है तो उनकी और रवीद्र की इतनी ज्यादा आवश्यकता नहीं है।

इस पर सबने पहले तो विरोध किया लेकिन ज्यादा ज़ोर देने पर ये शर्त रखी कि खाना खाने उन्हें यहाँ ही आना पड़ेगा...इस पर सुशीला ने बताया कि वहाँ से इतना आना जाना व्यावहारिक नहीं पड़ेगा.... वहाँ राणा जी की अपनी पूरी व्यवस्था है... कोई परेशानी नहीं होगी।

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“आइए जीजाजी! बड़ी देर लगा दी आने में.... मेहंदी लगवा के आए हो क्या पैरों में?” फ्लॅट का दरवाजा खुलते ही एक साँवली लेकिन लंबी और गठी हुई देह की सुंदर सी औरत ने दरवाजा खोला तो सर्वेश एकदम मुंह फाड़े उसको देखते रह गए। इधर विक्रम/रणविजय भी पीछे से गाड़ी साइड में खड़ी करके आया तो दरवाजे पर ही रुक गया

“जी आप? यहाँ तो रवीद्र प्रताप सिंह जी रहते हैं” रणविजय ने उस औरत से पूंछा। ये वही फ्लॅट था जिसमें ममता और विजयराज रह रहे थे इसलिए रणविजय को भी आश्चर्य हुआ एक अंजान औरत को सामने देखकर हालांकि वो औरत रणविजय से उम्र में कम थी लेकिन 40 के आसपास की थी और गुलाबी सलवार कमीज में लड़की सी लग रही थी... उसकी मांग में सिंदूर लगा हुआ था जिससे उसके विवाहित होने का पता चल रहा था

“बड़े देवर जी आप लोग अंदर तो आइए .... राणा जी का ही घर है....आप तो पहले भी आ चुके हैं ममता दीदी को आप ही तो लेकर गए थे.... अब यहाँ किसी को तो रहना था राणा जी की ‘सेवा’ के लिए” उस औरत ने सेवा शब्द पर ज़ोर देते हुये जब रणविजय को बड़े देवर जी कहा तो रणविजय ही नहीं सर्वेश भी उलझ से गए। लेकिन रणविजय ने सर्वेश को अंदर बढ्ने का इशारा किया और खुद भी अंदर आ गए।

“आपने बताया नहीं कि आप कौन हैं? वैसे आपसे मुलाक़ात तो मुझे बहुत साल पहले कर लेनी चाहिए थी” रणविजय ने तख्त पर बैठते हुये उस औरत से मुस्कुराकर कहा

“मेरा नाम विनीता है.... और जब से आपके भैया से मुलाक़ात हुई किसी से मुलाक़ात का कोई मतलब नहीं रह गया। आपसे अगर वर्षों पहले मुलाक़ात होती तब भी आपकी तो भाभी ही होती...अब भी वही समझो..... वैसे रिश्ते में परिवार के लिए तो में आपकी मामी हूँ.... इसलिए इनको जीजाजी कहा” उन दोनों को बैठकर उसने रणविजय की बात का जवाब दिया और रसोई की ओर चली गयी

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कामदेव भाई उर्फ रविन्द्र प्रताप सिंह.... आप तो सच में कामदेव के अवतार निकले । :crosseyed:
सुशिला जैसी संस्कारिक और बहुत अच्छी पत्नी के रहते हुए गरिमा से शादी कर लिए और उपर से विनीता नाम की एक और हसीना से चक्कर चलाए बैठे हैं ।
सर्वेश को रागिनी और देवराज की शादी में देवराज की तरफ से ही शादी में होना चाहिए आखिर उसकी बहन सरला का देवर जो है देवराज ।
ममता और रागिनी का कई सालों बाद मिलना बहुत बढ़िया लगा । और ममता के लिए जो सपोर्ट सुशिला ने दिखाया वो उसके अच्छाई का एक और मिशाल था ।
शांती की बेटी अनुभूति.... वो तो अपने बाप विजयराज को अपने होशोहवास में पहली बार ही देख रही होगी.... वो समय उसके लिए बहुत इमोशनल भरा रहा होगा ।

कामदेव भाई आप की ये आत्मकथा सच में बहुत लाजवाब है... मुझे जानना है कि आगे क्या क्या हुआ ? जल्द ही अगले अपडेट पर काम करना शुरू कर दिजिए ।
 
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