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चलो अमर तो पहले ही शादी का प्रस्ताव रख चुका था काजल के सामने आज सुनील ने भी अपना काम कर दिया अब देखना है कि किसकी अर्जी स्वीकार होती है और किसकी निरस्त।
सुमन के अपने तर्क है निरस्त करने के और काजल के अपने।
बस फर्क इतना है कि अमर और काजल बिना शादी के प्रेमी प्रेमिका है
और और सुनील और सुमन का अभी तो फिलहाल कोई सीन नहीं दिखाई दे रहा है। मगर सुमन के दिल में कुछ तो खयाल है सुनील को ले कर मगर की वो खयाल इतने मजबूत होंगे कि सुमन अपना निर्णय बदल पाए।
भावनाओ की खिचड़ी या फिर भेलपुरी बन गई है घर में। देखते है अब क्या होता है आगे।
या सुनील की बहन इस काम में उसका साथ देगी सुमन को मानने में क्योंकि अभी तक एक वोही तो राजदार है सुनील के इस राज की ।
Arey arey, aap to romance k George RR Martin ho, jis kirdar se pyaar hota usi ko khatam kr dete. Aur bol rahe ki main predictable hu.बहुत बहुत धन्यवाद मित्र!
मेरी कहानियाँ सरल होती हैं। इसलिए कहानी की दिशा को predict करना आसान होता है!
Thanks bhaiBahut hi shandar upadet hai sir.
वो तो अति-महान लेखक हैं। उनसे मुकाबले का सोचना ही क्या?Arey arey, aap to romance k George RR Martin ho, jis kirdar se pyaar hota usi ko khatam kr dete. Aur bol rahe ki main predictable hu.
इस तरह से मैंने अपनी कहानी में गानों से भाव आदान-प्रदान करा था सुकुमार अंकल और गायत्री आंटी जी के बीच पर कहानी की लंबाई का ध्यान रखते हुए मैं वह कांट छाँट कर दी थीअंतराल - पहला प्यार - Update #1
सोमवार :
सुबह दौड़ते समय माँ ने महसूस किया कि सुनील आज अपने सामान्य एनर्जी में नहीं दौड़ रहा था। रोज़ तो वो दौड़ते समय माँ से आगे निकल जाता था, लेकिन आज वो माँ के साथ साथ ही दौड़ रहा था। माँ कम समय के लिए दौड़ती थीं - अधिकतर ब्रिस्क वाक ही करती थीं। लेकिन आज सुनील धीरे दौड़ रहा था, और उसके कारण माँ भी दौड़ने लगीं। माँ ने उसकी तरफ़ देखा - ऐसा लगा कि जैसे सुनील किसी गहरी तन्द्रा में डूबा हुआ हो। माँ ने उसको बहुत देर तक कुछ नहीं कहा। लेकिन अंततः उनको कहना ही पड़ा,
“अब बस करें?”
“हम्म?” सुनील जैसे नींद से उठा हो।
“मैंने कहा अब बस करें?” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा - उनका चेहरा पसीने से लथपथ हो गया था, और रक्त संचार के कारण थोड़ा लाल भी, “रोज़ दस चक्कर लगाते हैं! अभी बारह हो गए!”
“ओह! हाँ हाँ!” सुनील ने शरमाते हुए कहा।
“सब ठीक है?”
“हहहाँ! सब ठीक है!” वो बुदबुदाते हुए बोला।
माँ को सब ठीक तो नहीं लग रहा था, लेकिन उन्होंने इस बात को तूल नहीं दिया। शीघ्र ही दोनों वापस घर आ गए।
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दोपहर :
सुबह से ही सुनील थोड़ा गंभीर मुद्रा में था। थोड़ा चुप चुप, थोड़ा गुमसुम! देख कर ही लगता था कि वो किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था। काजल को मालूम था कि उसके दिमाग में क्या उथल पुथल चल रही है। सुनील की सोच में थोड़ी बहुत आग तो उसने भी लगाई हुई थी! काजल जानती थी कि उसने सुनील पर एक तरीके से दबाव बनाया था, लेकिन संकोच करते रहने से बात आगे नहीं बढ़ती।
‘अच्छी बात है! शादी ब्याह जैसे मामले में कोई भी निर्णय, गंभीरता से, पूरी तरह से सोच समझ कर ही लेने चाहिए।’
काजल ने सोचा और सुनील को किसी तरह से छेड़ा नहीं।
काजल और सुनील के बीच सामान्य तरीके से ही बातचीत होती रही। वो अलग बात है कि सुनील अनमने ढंग से बर्ताव कर रहा था। माँ ने भी सुनील को इस तरह से उसके अपने प्राकृतिक प्रवृत्ति के विपरीत धीर गंभीर बने हुए देखा। लेकिन जहाँ काजल को इस बात से कोई चिंता होती प्रतीत नहीं हो रही थी, वहीं माँ को यह सब देख कर चिंता हुई।
“क्या बात है बेटा? तबियत तो ठीक है?” उन्होंने पूछा।
उत्तर में सुनील केवल एक फीकी सी मुस्कान में मुस्कुराया। कुछ बोला नहीं।
“अरे, क्या हो गया?” माँ वाकई चिंतित हो गईं; उनका ममतामय पहलू सामने आ गया, “सवेरे से ही ऐसे हो!”
उन्होंने अपनी हथेली के पिछली साइड से उसका माथा छू कर देखा कि कहीं उसको बुखार तो नहीं चढ़ा हुआ है। सुनील का तापमान थोड़ा तो बढ़ा हुआ अवश्य था, लेकिन इतना नहीं कि उसको बुखार कहा जा सके। लेकिन माँ की प्रवृत्ति ऐसी थी कि इतने पर ही उनको चिंता होने लगी।
“बुखार जैसा लग तो रहा है!”
“नहीं,” सुनील ने खिसियाए हुए कहा, “कोई बुखार नहीं है। आप चिंता मत कीजिए!” सुनील माँ की पूछ-ताछ से जैसे तैसे पीछा छुड़ाना चाहता था।
“ऐसे कैसे चिंता नहीं करूँगी? रुको, मैं अदरक वाली चाय बना लाती हूँ तुरंत! अगर थोड़ी बहुत हरारत है शरीर में, तो वो निकल जाएगी! उसके बाद सो जाना आराम से!”
“आप तो नाहक ही परेशान हो रही हैं!” सुनील ने लगभग अनुनय विनय करते हुए कहा!
लेकिन माँ उसकी कहाँ सुनने वाली थीं। वो सीधा रसोईघर पहुँचीं।
“क्या हुआ दीदी?” काजल ने माँ को रसोई में देख कर पूछा।
“सुनील को बुखार जैसा लग रहा है। मैंने सोचा कि उसके लिए अदरक वाली चाय बना दूँ!”
“अरे, तो मुझसे कह देती! तुम क्यों आ गई?”
“काजल, तुम सब काम तो करती हो घर के! मुझे भी कर लेने दिया करो!”
“हा हा हा! अरे दीदी, तुम तो इस घर की मालकिन हो! जैसा मन करे, करो। तुम पर कोई रोक टोक है क्या?”
“मैं नहीं, तुम हो मालकिन!” माँ ने मुस्कुराते हुए, और ईमानदारी से कहा, “सच में काजल! इस घर की मालकिन तो तुम ही हो। लेकिन, इतना सारा काम अकेले न किया करो। छोटे मोटे काम तो मुझको भी कर लेने दिया करो! कुछ काम कर लूंगी, तो घिस नहीं जाऊँगी!”
“हा हा हा! अरे बाबा कर लो, कर लो! घिस जाऊँगी! हा हा हा हा! तुम भी न दीदी! अच्छा - बना ही रही हो, तो फिर मेरे लिए भी बना लेना चाय!”
“हाँ, मैं हम तीनों के लिए चाय बना लाती हूँ!”
माँ ने कहा, और चाय बनाने में व्यस्त हो गईं।
“सोचती हूँ,” काजल ने भूमिका बनाते हुए कहा, “अपनी बहू आ जाती, तो इन सब कामों से थोड़ा आराम मिल जाता!”
“हा हा हा! तुम भी न काजल! बहू आएगी, तो इसके साथ जाएगी न! वो तुम्हारी सेवा कैसे करेगी फिर? तुमको कैसे आराम मिलेगा?” माँ बिना सोचे बोलने लगीं, “या फिर, तुम हमको छोड़ कर अपने बेटे बहू के साथ चली जाना चाहती हो?”
माँ ने मज़ाक में कह तो दिया, लेकिन यह कहते कहते ही उनका दिल बैठने लगा। अपनी सबसे करीबी सहेली का साथ छूटने का विचार कितना अकेला कर देने वाला था उनके लिए!
लेकिन काजल ने बात सम्हाल ली, “अरे नहीं दीदी! मेरा तुमसे वायदा है कि मेरा तुम्हारा साथ नहीं छूटेगा कभी! इतनी आसानी से पीछा नहीं छुड़ा पाओगी मुझसे! हाँ नहीं तो! बहू आती है, तो आती रहे; अपने पति के संग जाती है, तो जाती रहे; उसको अपने पति के संग रहना है, तो रहती रहे! लेकिन मैं रहूँगी हमेशा तुम्हारे साथ! समझी?”
काजल ने बड़े लाड़ से, माँ को गले से लगाते हुए और उनको चूमते हुए कहा। माँ काजल के द्वारा खुद को ऐसे लाड़ किए जाने पर आनंद से मुस्कुरा दीं। काजल हमेशा ही उनका मूड अच्छा कर देती थी। ऐसी ही बातों में चाय बन गई और माँ ही सबके लिए प्याले में चाय ले कर आईं और सुनील और काजल को उनकी उनकी चाय थमा कर, साथ में बैठ कर, पीने लगीं।
“किस्मत वाले हो बेटा,” काजल ने ठिठोली करते हुए कहा, “तुमको तो दीदी के हाथ की स्पेशल, अदरक वाली चाय भी मिल गई! मुझे तो आज तक नहीं पिलाई!”
“अच्छा? कभी नहीं पिलाई? झूठी!” माँ ने काजल की बात का विनोदपूर्वक विरोध करते हुए कहा, “जब से यहाँ आई है, तब से मुझे एक तिनका तक उठाने नहीं देती। और अब ये सब शिकायतें करती है!”
न जाने क्यों ऐसा लगा कि माँ अपना बचाव कर रहीं हों।
“मेरे रहते हुए भी तुमको काम करना पड़े, तो मेरे होने का क्या फायदा?” काजल ने लाड़ से कहा।
“हाँ, यही कह कह कर तुमने मुझे पूरी तरह से बेकार कर दिया है!” माँ ने कहा, फिर सुनील की तरफ देखते हुए कहा, “चाय ठीक लगी, बेटा?”
सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“अदरक का स्वाद आ रहा है?” माँ ने फिर से कुरेदा।
सुनील ने फिर से केवल ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“ये देखो! अभी भी गुमसुम है! तबियत अंदर ही अंदर खराब हो रही लगती है लगता है!” माँ ने चिंतित होते हुए कहा, “सच में सुनील, चाय पी कर सो जाओ!”
“मुझे तो ठीक लग रहा है!” काजल ने अर्थपूर्वक सुनील को देखा, “क्या तबियत ख़राब है भला? चाय पी लो! क्या टेस्टी बनी है! आज से दीदी को ही कहूँगी, तुम्हारे लिए चाय बनाने को!”
“हाँ! कहने की क्या ज़रुरत है!” माँ ने तपाक से कहा, “मैं ही बनाऊँगी अब से!”
सुनील माँ की बात पर मुस्कुराया। कुछ बोला नहीं।
“क्या यार!” इस बार माँ ने हथियार डालते हुए कहा, “ऐसे चुप चुप तुम अच्छे नहीं लगते सुनील! क्या हो गया बेटा तुमको?”
“जी कुछ नहीं! बस कुछ सोच रहा था।”
“आआआआह! किसके बारे में?” अब माँ ने भी सुनील को छेड़ना शुरू कर दिया।
“और किसके बारे में सोचेगा ये, दीदी? उसी के बारे में, जिसके बारे में हम दोनों को रोज़ रोज़ गोली देता रहता है!” काजल ने मुस्कुराते हुए कहा, “रोज़ अपने प्रेम व्रेम के किस्से सुनाता है, तो मैं भी इसके पीछे पड़ गई - मैंने इसको कहा कि बहुत हुआ! अब अपने मन की बात बोल दे, मेरी होने वाली बहू को! कम से कम मुझे मालूम तो पड़े कि मुझे उसका मुँह देखने को मिलेगा भी या नहीं!”
“अम्मा, तुम भी हर बात का न, बतंगड़ बना देती हो!” सुनील ने हँसते हुए कहा, “मैं तो बस यही सोच रहा था कि अपनी बात उससे कैसे कहूँ! बस, और कुछ नहीं!”
“अच्छा! तो ये बात है?” माँ ने भी उसकी टाँग खींचते हुए कहा, “स्ट्रेटेजी बन रही है अपनी होने वाली ‘मैडम’ को प्रोपोज़ करने की! हम्म?”
सुनील मुस्कुराया! तब तक माँ की चाय ख़तम हो गई।
“बनाओ भई, स्ट्रेटेजी बनाओ! लेकिन बहुत देर तक मत बनाना! दिल की बातें हैं, दिमाग से नहीं करी जातीं। बहुत अधिक सोचने से ये बातें खराब हो जाती हैं। जल्दी से बता दो अपनी मैडम को अपने दिल की बातें! ठीक ही तो कह रही है काजल! तुम्हारी शादी हो, कुछ गाना बजाना नाचना हो यहाँ! कुछ खुशियाँ आएँ इस घर में!” माँ ने गहरी साँस भरी, और फिर उठते हुए कहा, “अच्छा - अब मैं ज़रा आज का अखबार पढ़ लूँ!”
**
अखबार पढ़ना माँ का दैनिक काम था - एक हिंदी और एक अंग्रेजी अखबार वो पूरा पढ़ डालती थीं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि कोई उनको डिस्टर्ब नहीं कर सकता था। दरअसल सबसे अधिक गप्पें अखबार पढ़ते समय ही लड़ाई जाती थीं। अख़बार में लिखी किसी न किसी बात को ले कर तीनों बड़े मज़े करते, और खूब हँसते! माँ का अखबार पढ़ना मतलब, तीनों की गप्पों का मैटिनी शो शुरू होना!
जब सुनील ने माँ के कमरे में प्रवेश किया, तो वहाँ रेडियो पर गाना बज रहा था,
“ये दिल दीवाना है, दिल तो दीवाना है
दीवाना दिल है ये दिल दीवाना
आ हा हा
आ हा हा
ये दिल दीवाना है, दिल तो दीवाना है
दीवाना दिल है ये दिल दीवाना
आ हा हा”
“मस्त गाना!” सुनील कमरे के अंदर आते हुए बोला।
माँ ने अखबार से नज़र हटा कर सुनील की तरफ देखा, और मुस्कुराईं, “बन गई स्ट्रेटेजी, या मैं कोई सजेशन दूँ?”
सुनील भी मुस्कुराया, लेकिन बिना कोई उत्तर दिए गाने से साथ लय मिला कर गाने लगा,
“कैसा बेदर्दी है
कैसा बेदर्दी है, इसकी तो मर्ज़ी है
जब तक जवानी है, ये रुत सुहानी है
नज़रें जुदा ना हों, अरमां खफ़ा ना हों
दिलकश बहारों में, छुपके चनारों में
यूं ही सदा हम तुम, बैठे रहें गुमसुम
वो बेवफ़ा जो कहे हमको जाना है
ये दिल
ये दिल दीवाना है, दिल तो दीवाना है
दीवाना दिल है ये दिल दीवाना
आ हा हा”
सुनील ने गाने का यह ‘अंतरा’ गा कर माँ को अगला ‘अंतरा’ गाने के लिए इशारा किया। सुनील ने समां बाँध दिया था, और गाना भी बड़ा मस्त था, इसलिए माँ से भी रहा नहीं गया, और वो भी गाने लगीं,
“बेचैन रहता है
बेचैन रहता है, चुपके से कहता है
मुझको धड़कने दो, शोला भड़कने दो
काँटों में कलियों में, साजन की गलियों में
फ़ेरा लगाने दो, छोड़ो भी जाने दो
खो तो न जाऊंगा, मैं लौट आऊंगा
देखा सुना समझे अच्छा बहाना है
ये दिल
ये दिल दीवाना है, दिल तो दीवाना है
दीवाना दिल है ये दिल दीवाना
आ हा हा”
माँ बहुत ही मीठा गाती थीं। लेकिन देवयानी की मृत्यु के बाद उनके संगीत पर जैसे ताला पड़ गया हो! और फिर, डैड के जाने के बाद तो उन्होंने शायद ही कभी गुनगुनाया भी हो! इसलिए यह बात कि वो इतने दिनों बाद गा रही थीं, एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी! काजल से यह बात छुपी न रह सकी। कमरे के बाहर से उन दोनों के गाने की आवाज़ें आ रही थीं और जब उसने दोनों को गाते हुए सुना तो वो बहुत खुश हुई। अपनी सबसे अच्छी सखी, और अपने एकलौते बेटे को साथ में यूँ हँसते गाते सुन कर उसको बहुत अच्छा लगा। लेकिन कुछ सोच कर वो आज माँ के कमरे के अंदर नहीं गई।
आखिरी वाला अंतरा दोनों ने मिल कर गाया,
“सावन के आते ही
सावन के आते ही
बादल के छाते ही
फूलों के मौसम में
फूलों के मौसम में
चलते ही पुरवाई, मिलते ही तन्हाई
उलझा के बातों में, कहता है रातों में
यादों में खो जाऊं, जल्दी से सो जाऊं
क्योंकि सँवरिया को सपनों में आना है
ये दिल
ये दिल
ये दिल दीवाना है
दिल तो दीवाना है
दीवाना दिल है ये दिल दीवाना
आ हा हा”
गाना ख़तम होने पर दोनों ही साथ में खिलखिला कर हँसने लगे।
“हा हा हा हा! मुझसे रफ़ी साहब वाला पोर्शन गवा दिया!” माँ ने हँसते हुए कहा।
“हा हा! अरे, तो मैंने भी तो लता जी वाला गाया!” सुनील ने कहा, “आप बहुत सुन्दर गाती हैं! मन करता है कि बस आपका गाना सुनते रहा जाए, बिना रुके!”
माँ कुछ कहतीं, कि काजल ने अंदर से चिल्ला कर कहा, “हाँ! बहुत अच्छा गाती हैं दीदी! आज तेरे कारण इतने सालों बाद इनका गाना सुनने को मिला!”
“हा हा हा हा! काजल, आ न इधर!” माँ ने हँसते हुए कहा, “दिन भर रसोई में ही रहोगी क्या?”
“आती हूँ, दीदी! आती हूँ! तुम दोनों ऐसे ही साथ में गाते रहो, मैं आती हूँ! थोड़ा सा समय दे दो!”
“तबियत ठीक हो गई, बेटा?” माँ ने पूछा।
“कभी खराब ही नहीं थी!” सुनील ने कहा, “आप यूँ ही परेशान हो रही थीं!”
गाते गाते सुनील माँ के बिस्तर पर ही बैठ गया था, और उनके पैरों के साइड में आधा लेट गया था। माँ भी तकिए का सहारा ले कर अखबार के साथ लेटी हुई थीं। रेडियो पर ऐसे ही, एक के बाद एक, रोमांटिक गाने बज रहे थे। कभी कभी सुनील उन गानों पर गुनगुना भी ले रहा था। और साथ ही साथ बड़ी देर से वो बड़े ध्यान से माँ के पैर / तलवे देख रहा था।
“तुम जानते हो, तुम्हे क्या चाहिए?” माँ ने न जाने किस प्रेरणा से कहा।
“क्या?”
“तुम्हे चाहिए एक अच्छी सी बीवी!” माँ ने हँसते हुए कहा, “काजल सही कहती है!”
“हाँ! चाहिए तो! ये बात आपने सही कही!”
“हा हा हा! अच्छा, एक बात तो बताओ - ‘अपनी मैडम’ को प्रोपोज़ करने के लिए जो स्ट्रेटेजी बना रहे थे अभी, वो बन गई?”
“पता नहीं!”
“क्यों?”
“बिना ट्राई किए पता नहीं चलेगा न!”
“हम्म्म! तो जल्दी से ट्राई कर लो न!”
सुनील ने कुछ नहीं कहा, बस रेडियो पर बजते गानों के साथ गुनगुनाने लगा। उसका माँ के पैर और तलवे को देखना बंद नहीं हुआ। माँ ने उसको देखते हुए देखा - यह एक नई बात थी। माँ ने कुछ देर तक कुछ नहीं कहा, लेकिन फिर उन्होंने विनोदी भाव से कहा,
“क्या देख रहे हो?”
जैसे उसकी तन्द्रा टूटी हो - सुनील अपने ख़यालों से वापस धरातल पर आते हुए बोला, “आपके पाँव देखे... बहुत हसीन हैं... इन्हें जमीन पर मत उतारिएगा... मैले हो जाएँगे!”
बड़ी मेहनत से उसने अपने बोलने में अभिनेता राजकुमार की अदा डालने की कोशिश करी, लेकिन असफ़ल रहा। सुनील की आवाज़, अभी तक राजकुमार के जैसी पकी हुई नहीं थी। सुनील की कोशिश क्या थी, यह नहीं मालूम, लेकिन अंत में यह केवल एक मज़ाकिया डायलाग बन कर रह गया।
“हा हा हा हा हा हा!” माँ ठठ्ठा मार कर हँसने लगीं।
आज बहुत दिनों के बाद माँ इस तरह खुल कर हँसी थीं। शायद सुनील की यही कोशिश रही हो! क्या पता! रसोई के अंदर से काजल ने भी माँ की हँसी सुनी। वो वहीं से चिल्ला कर बोली,
“मुझे भी सुनना है जोक़! जब आऊँगी, तो फिर से सुनाना!”
काजल की इस बात पर माँ और ज़ोर से हँसने लगीं।
“अरे मैंने कोई जोक नहीं कहा। जो भी बोला, सब कुछ सच सच बोला।” सुनील ने अपनी सफ़ाई में माँ से कहा।
“हा हा हा हा! हाँ हाँ!” माँ ने कहा।
“अरे, आपको मेरी बात मज़ाक क्यों लग रही है? आपके पाँव केवल हसीन ही नहीं, बहुत भाग्यशाली भी हैं!”
“अच्छा?” माँ अभी भी हँस रही थीं।
“हाँ, ये जैसे यहाँ देखिए,” उसने उनके एक तलवे पर एक जगह अपनी ऊँगली से वृत्त बनाते हुए इंगित किया, “यहाँ, आपके इस पैर में चक्र का निशान है, और इस पैर में,” उसने उनके दूसरे तलवे पर अपनी ऊँगली से इंगित करते हुए कहना जारी रखा, “यहाँ पर, स्वास्तिक का निशान है। चक्र और स्वास्तिक - ये दोनों ही चिह्न हैं आपके पैरों में!”
“हम्म अच्छा? और उससे होता क्या है?”
“इसका मतलब ये है कि आपके पति को राजयोग मिलेगा। वो हमेशा एक राजा की तरह रहेगा, और उसके जीवन में धन की कोई कमी नहीं रहेगी।”
“हह!” माँ ने उलाहना देते हुए कहा, “सुनील, तुमको ऐसा मज़ाक नहीं करना चाहिए। तुमसे कोई बात छुपी है क्या?” माँ, डैड की आर्थिक स्थिति का हवाला दे रहीं थीं। घर में सम्पन्नता आई थी, लेकिन बहुत देर से। और उसका आनंद लेने से पहले ही डैड चल बसे।
“कोई ग़लत नहीं कहा मैंने।” सुनील थोड़ी देर चुप रहा, और फिर बहुत नाप-तौल कर आगे बोला, “बाबू जी अगर राजा नहीं थे, तो किसी राजा से कम भी नहीं थे। सम्पन्नता केवल रुपए पैसे और प्रॉपर्टी की ही नहीं होती है। उन्होंने इतना सुन्दर घर बनाया; गाँव में इतने सारे काम करवाए; प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार कराया; कितने सारे लोगों की नौकरी लगवाई; कितनों को उनके काम में मदद दी - यह सब बड़े पुण्य वाले काम हैं! राजाओं जैसे काम हैं! उन्होंने हम सबको सहारा दिया, और आश्रय दिया; भैया को इतना पढ़ाया लिखाया... ज्यादातर लोग तो इसका दसवाँ हिस्सा भी नहीं कर पाते हैं, अपनी पूरी लाइफ में!” सुनील ने कहा।
सुनील की बात में दम तो था! वो रुका, और फिर आगे बोला,
“और ये, यहाँ पर - ये वाली लाइन इस उँगली की तरफ़ जा रही है!” उसने माँ के तलवे पर कोमलता से उंगली फिराई।
उसकी उंगली की कोमल छुवन की गुदगुदी के कारण माँ के पैर का अंगूठा और उँगलियाँ ऊपर नीचे हो गईं। सुनील को यह प्रतिक्रिया बड़ी प्यारी सी लगी।
“अच्छा, और उससे क्या होगा?” माँ ने विनोदपूर्वक पूछा।
“इसका मतलब है कि आप, अपने पति के लिए बहुत भाग्यशाली हैं... बहुत भाग्यशाली रहेंगी। आप जीवन भर अपने पति के प्रति समर्पित रहेंगी, और आपके पति का जीवन हमेशा खुशहाल रहेगा।”
माँ ने उपेक्षापूर्ण ढंग से अपना सर हिलाया; लेकिन कुछ कहा नहीं। उनके होंठों पर एक फीकी सी मुस्कान आ गई। पुरानी कुछ बातें याद हो आईं। लेकिन उनको भी आश्चर्य हुआ कि उन यादों में दर्द नहीं था। ऐसा अनुभव उनको पहली बार हुआ था।
“बाबूजी का भी जीवन खुशहाल था, और…” वो कहते कहते रुक गया।
“और?” माँ से रहा नहीं गया।
“और... आपके होने वाले पति का भी रहेगा!”
“धत्त!” कह कर माँ ने अपना पैर समेट लिया, “कुछ भी बोलते रहते हो!”
न जाने क्यों उनको सुनील की बात पर शर्म आ गई।
लेकिन सुनील ने वापस उसके पैरों को पकड़ कर अपनी तरफ़ लगभग खींच लिया। न जाने क्यों? इस छीना झपटी में माँ की साड़ी का निचला हिस्सा उनके पैरों पर से थोड़ा उठ गया, और उनके टखने के ऊपर लगभग छः इंच का हिस्सा दिखने लगा। सुनील का व्यवहार अचानक ऐसा हो गया, जैसे उसने कोई अद्भुत वस्तु देख ली हो। उसने बड़े प्यार से, बड़ी कोमलता से माँ के पैरों के उघड़े हुए हिस्से को सहलाया। सहलाते हुए जब उसकी उंगलियाँ माँ की साड़ी के निचले हिस्से पर पहुँचीं, तो वो रुकी नहीं, बल्कि वे उसको थोड़ा थोड़ा कर के और ऊपर की तरफ सरकाने लगीं। इससे माँ के पैरों का और हिस्सा उघड़ने लगा।
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यह मधुर गीत फिल्म "इश्क़ पर ज़ोर नहीं" (1970) से है। गीतकार हैं, आनंद बक्शी साहब; गायक : लता जी और रफ़ी साहब; संगीतकार : शंकर जयकिशन जी
द्वंद और अंतर्द्वंदअंतराल - पहला प्यार - Update #2
माँ के लिए यह सब कुछ बहुत अप्रत्याशित और अपरिचित सा था। वो ठिठक गईं और संदेह से बोलीं,
“क्या कर रहे हो सुनील?”
सुनील बिना विचलित हुए केवल मुस्कुराया और बोला, “आप अपनी आँखें बंद कर के, जो मैं कर रहा हूँ, उसका आनंद लेने की कोशिश कीजिए!” और माँ के पैरों के पिछले हिस्से को सहलाना जारी रखा।
लेकिन ऐसे कैसे आनंद आता है? माँ की छठी इन्द्रिय काम करने लगी। सुनील जो कुछ कर रहा था वो सही तो नहीं लग रहा था। लेकिन अपना ही लड़का था, इसलिए माँ ने कुछ नहीं कहा! हाँ, उनको बहुत अजीब सा लगा अवश्य।
माँ के कोई विरोध न करने पर सुनील थोड़ा निर्भीक हो गया, और उनकी टांगों को सहलाता रहा! सहलाते सहलाते, ऐसे ही बीच बीच में वो कभी-कभी उनकी साड़ी को थोड़ा ऊपर खिसका देता। कमरे में बहुत सन्नाटा था - दोनों में से कोई भी कुछ बोल नहीं रहा था, और खिड़की के बाहर छोटी-छोटी चिड़ियाँ चहक रही थीं! यही एकमात्र आवाज़ थी को कमरे में आ रही थी, और जिसे कोई भी सुन सकता था। माँ के लिए, और सुनील के लिए भी यह सब बहुत ही नया और अनोखा अनुभव था। सुनील की परिचर्या का माँ पर बेहद अपरिचित और अजीब सा प्रभाव पड़ने लग गया था।
माँ का दिल तेजी से धड़कने लग गया; उनकी सांसें भारी और तेज हो गईं। जब कोई महिला उत्तेजित होती है, तो यही प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं। लेकिन यही लक्षण तब भी प्रकट होते हैं, जब कोई महिला नर्वस होती है, घबराई होती है। थोड़ा-थोड़ा करके खिसकने के कारण, उनकी साड़ी का निचला हिस्सा अब माँ के घुटनों के ऊपर हो गया था, जिसके कारण उनकी जाँघों का निचला, लगभग एक इंच हिस्सा दिख रहा था। मैं यह गारण्टी के साथ कह सकता हूँ कि डैड के बाद सुनील ही दूसरा आदमी होगा, जिसने माँ की टाँगें देखी होंगी [मैंने तो देखे ही हैं, लेकिन मैं उनका बेटा हूँ]।
माँ एक अजीब सी उलझन में थीं। उनको समझ में नहीं आ रहा था कि सुनील जो कुछ कर रहा था, क्यों कर रहा था... उसका इतना दुस्साहस! आखिर वो ये सब कर क्यों रहा है? क्या है उसके मन में? क्या चाहता है वो? कहीं उसके मन में कोई ‘ऐसे वैसे’ विचार तो नहीं हैं? माँ को अधिक समय तक इंतज़ार नहीं करना पड़ा - उनको कुछ ही पलों में अपनी बात का जवाब मिल गया।
“सुमन,” सुनील ने मेरी माँ को उनके नाम से पुकारा - पहली बार, “मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ!” जैसे यंत्रवत, सुनील ने माँ की जाँघों के निचले हिस्से को सहलाते हुए, और अपनी नज़रें उनकी आँखों से मिलाए हुए, अपने प्रेम की घोषणा की।
यह एक अनोखी बात है न - हम अपने माता-पिता की ‘माता-पिता’ वाली पहचान का इतना प्रयोग करते हैं कि हम उनके नाम लगभग भूल ही जाते हैं। हम अपनी माँ को माँ, अम्मा, मम्मी इत्यादि नामों से बुलाते हैं, लेकिन उनके नाम से नहीं। इसी तरह हम अपने पिता को, पापा, डैडी, डैड इत्यादि नामों से बुलाते हैं, लेकिन उनके नाम से नहीं। हमारे लिए वो हमेशा हमारे माता पिता ही रहते हैं, और कुछ नहीं। अगर आप लोगों को याद नहीं है, तो बता दूँ - मेरी माँ का नाम सुमन है।
अपने प्रेम की उद्घोषणा करने के बाद, सुनील ने बहुत धीरे से, बहुत स्नेह से, बहुत आदर से एक-एक करके उनके दोनों पैर चूमे। माँ हतप्रभ, सी हो कर सुनील की बातों और हरकतों को देख रही थीं, और आश्चर्यचकित थीं। कुछ क्षण तो उनको समझ ही नहीं आया कि वो क्या कहें! फिर जब वो थोड़ा सम्हली, तो बोलीं,
“प… पागल हो गए हो क्या तुम?” माँ ने उसकी बकवास को चुनौती देते हुए, फुसफुसाते हुए कहा, “यह क्या क्या बोल रहे हो तुम? शर्म नहीं आती तुमको? तुम्हारी दो-गुनी उम्र की हूँ मैं... तुम्हारी अम्मा जैसी! तुम्हारी अम्मा से भी बड़ी!”
“तो?”
“तो? अरे, पागल हो गए हो क्या? बेटे जैसे हो तुम मेरे! तुमको ये सब करने को किसने कहा? हाँ? क्या काजल ने तुमको मेरे साथ ऐसा करने को कहा?” माँ ने थोड़ा क्रोधित होते हुए कहा!
वो क्रोध में थीं, लेकिन फिर भी उनकी आवाज़ तेज़ नहीं हुई।
सुनील ने कुछ कहा नहीं। माँ की प्रतिक्रिया अप्रत्याशित नहीं थी।
माँ का आक्रोश जारी रहा, “सिर्फ इसलिए कि मैं अब अकेली हूँ... इसका मतलब यह नहीं है कि मुझे किसी आदमी की ज़रुरत है। अकेली हूँ, विधवा हूँ, इसका मतलब यह नहीं है कि कोई भी यह सोच सकता है कि मैं उसके लिए अवेलेबल (उपलब्ध) हूँ।”
माँ ने महसूस किया कि उनका गुस्सा बढ़ रहा था।
माँ आमतौर पर ऐसा व्यवहार नहीं करती थी। आमतौर तो क्या, वो कभी भी ऐसा व्यवहार नहीं करती थीं। उनको केवल हँसते मुस्कुराते ही देखा है मैंने। आज वो अचानक ही अपने व्यवहार के विपरीत जा कर यह सब कह रही थीं। माँ ने शायद यह महसूस किया होगा, इसलिए वो थोड़ा रुक कर साँस लेने लगीं, और खुद को नियंत्रित करने लगीं।
लेकिन माँ ने जो कुछ कहा, उससे सुनील स्वाभाविक रूप से आहत हो गया था।
“सुमन,” माँ की बात से आहत होकर सुनील ने बहुत ही शांत तरीके से कहना शुरू किया, “आपसे एक रिक्वेस्ट है - आप मेरे प्यार का इस तरह से मज़ाक न उड़ाइए, प्लीज! मेरे प्यार को एक्सेप्ट करना, या रिजेक्ट करना, वो आपका अधिकार है! इस बात से मुझे कोई इंकार नहीं है। बिलकुल भी नहीं। लेकिन प्लीज़, मेरे प्यार का यूँ मजाक तो न उड़ाइए। आप प्लीज़ यह तो मत सोचिए कि किसी के कहने पर ही मैं आपसे प्यार करूँगा! यह तो मेरे प्यार की, उसकी सच्चाई की तौहीन है!”
सुनील आहत था, लेकिन वह माँ को बताना चाहता था कि उसके मन में माँ के लिए कैसी भावनाएँ थीं। अब बात तो बाहर आ ही गई थी, इसलिए कुछ छुपाने का कोई औचित्य नहीं था,
“आप... आप... मैं आप से प्यार करता हूँ... बहुत प्यार करता हूँ! लेकिन मैंने आपको ले कर, हमारे रिश्ते के बारे में कोई धारणा नहीं बनाई हुई है! मुझे नहीं मालूम कि आप मेरे साथ कोई रिश्ता रखना चाहती भी हैं, या नहीं। वो आपका अधिकार है। लेकिन मैं आपसे प्यार करता हूँ। यही मेरी सच्चाई है। और मैं यह बात आपसे कह देना चाहता था! सो मैंने कह दिया! अब मेरा मन हल्का हो गया!”
“तो, किसी ने तुम को यह सब करने या कहने के लिए नहीं कहा?” माँ को भी बुरा लग रहा था कि उन्होंने सुनील की भावनाओं को ठेस पहुँचा दी थी। वो ऐसी महिला नहीं हैं। फिर भी, उनके मन में एक बात तो थी कि कहीं मैंने, या काजल ने तो सुनील को ये सब करने को उकसाया नहीं था!
“किसी ने भी नहीं। प्लीज़, आप मेरा विश्वास कीजिए। किसी ने भी कुछ नहीं कहा। आपको क्यों ऐसा लगता है कि मैं किसी के कहने पर ही आपसे प्यार कर सकता हूँ? क्या मैं आपको अपनी मर्ज़ी से प्यार नहीं कर सकता?”
उसने माँ की जाँघों को सहलाते हुए कहा, और इस प्रक्रिया में माँ की साड़ी का निचला हिस्सा और भी ऊपर खिसक गया। माँ ने घबरा कर थूक गटका।
“यदि तुम मुझसे प्यार करते हो, तो ये जो कर रहे हो, पहले वो करना बंद करो।” माँ जैसे तैसे कह पाईं।
सुनील के अवचेतन में यह बात तो थी कि वो जो कुछ सुमन के साथ कर रहा था, वो किसी स्त्री के यौन-शोषण करने जैसा व्यवहार था, और शुद्ध प्रेम में इसका कोई स्थान नहीं है। एक प्रेमी अवश्य ही अपनी प्रेमिका को निर्वस्त्र कर सकता है, लेकिन केवल तभी जब प्रेमिका ने स्पष्ट रूप से इसके लिए सहमति दी हुई हो। सुनील ने अपनी गलती को महसूस किया, और वो रुक गया। उसने पूरे सम्मान समेत माँ की साड़ी को उनके घुटनों के नीचे तक खींच दिया, जिससे उनकी टाँगें ढँक जाएँ।
“मुझे माफ़ कर दीजिए, सुमन। मुझे तो बस आपके पैरों को देखना अच्छा लगा... इसलिए मैं बहक गया। आई ऍम सॉरी! मैंने जो किया, वो गलत था। लेकिन मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि मैं क्या कर रहा था। ऑनेस्ट! माय मिस्टेक! मैं माफी चाहता हूँ! मुझे सच में अपने किए पर बहुत अफ़सोस है।” उसने माँ से माफ़ी माँगी।
सुनील के रुकने पर माँ ने राहत की सांस ली। वो अब इस स्थिति पर थोड़ा और नियंत्रण महसूस कर रही थीं। अचानक ही उनका मातृत्व वाला पहलू हावी होने लगा। शायद वो इस युवक का ‘मार्गदर्शन’ करना चाहती थीं। उनको लग रहा था कि यह संभव है कि सुनील ने उनके प्रति अपने आकर्षण को ‘प्रेम’ समझने की ‘भूल’ कर दी होगी।
“सुनील,” माँ ने मातृत्व भाव से कहा, “अभी तुम बहुत छोटे हो। मैं यह नहीं कह रही हूँ कि तुम मुझसे या किसी और से प्यार नहीं कर सकते। तुम कैसे सोचते हो, क्या महसूस करते हो, इसको कोई और कण्ट्रोल नहीं कर सकता है, और करना भी नहीं चाहिए… लेकिन एक इंटिमेट रिलेशनशिप में लड़का और लड़की - मेरा मतलब है, दोनों के बीच में कुछ स्तर की अनुकूलता तो होनी चाहिए… कोई तो कम्पेटिबिलिटी होनी चाहिए न?” माँ समझा रही थीं सुनील को, और वो मूर्खों के समान उनके चेहरे को ही देखता जा रहा था।
“तुम्हारे और मेरे बीच में कोई समानता नहीं है! उम्र में मैं तो तुम्हारी अम्मा से भी बड़ी हूँ। ऐसे कैसे चलेगा? ऐसे कहीं शादी होती है? हाँ? और तो और, अमर - मेरा बेटा और तुम्हारी अम्मा प्रेमी हैं... मैं तो उनकी शादी करवाने की भी सोच रही हूँ। सोचो! तुम समझ रहे हो न कि मैं क्या कह रही हूँ?”
“ओह... तो क्या आप वाकई सोचती हैं कि अम्मा और भैया एक दूसरे के लिए एक अच्छा मैच हो सकते हैं? बढ़िया! मैं तो कब से सोच रहा हूँ कि दोनों शादी कर लें! मुझे उनकी खुशी के अलावा और कुछ नहीं चाहिए... लेकिन वो लोग मुझे आपसे प्यार करने से क्यों रोकेंगे?”
“हाय भगवान्! इस घर के लड़कों को क्या हो गया है! वे अपनी ही उम्र की लड़कियों के साथ सरल, सीधे संबंध क्यों नहीं रख सकते?”
“अच्छी लड़कियों से प्यार करने में क्या गलत है?”
“कुछ गलत नहीं है! मैं भी तो यही कह रही हूँ! कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन, लड़कियों से करो न प्यार! किसने मना किया है तुमको लड़कियों से प्यार करने को? लड़कियों से करो! औरतों से नहीं! ख़ास तौर पर ऐसी औरतों से, जो तुम्हारी माँ की उम्र की हैं!”
“सुमन, पहली बात तो यह है कि मैं ‘औरतों’ से नहीं, केवल एक ‘औरत’ से प्यार करता हूँ - आपसे! उम्र में चाहे आप कुछ भी हों, लेकिन आप पच्चीस, छब्बीस से अधिक की तो लगती नहीं! और, प्लीज अब आप इसको ऐसे तो मत ही बोलिए कि जैसे मैं आपसे प्यार करके कुछ गलत कर रहा हूँ …”
“लोग हँसेंगे सुनील। तुम पर भी, और मुझ पर भी। और ये - ये शादी ब्याह - ये सब - करने की अब उम्र है क्या मेरी?” माँ ने परेशान होते हुए कहा, “चलो, मानो मैं इसके लिए राज़ी भी हो जाऊँ! मगर तुमसे? तुमसे कैसे? तुम तो मेरे बेटे जैसे हो। मैंने तुमको इतने सालों तक पाला पोसा है! बड़ा किया है!” माँ कुछ और बोलतीं, उसके पहले सुनील ने उनकी बात काट दी।
“हाँ किया है आपने वो सब! लेकिन मैं आपका बेटा नहीं हूँ… हमारा कोई रिश्ता भी नहीं हैं… और, और बाकी लोगों की परवाह ही कौन करता है? हमारे सबसे कठिन दौर में, हमारे सबसे कठिन समय में, एक भैया ही थे, जो हमारे पीछे एक चट्टान की तरह मज़बूती से खड़े थे… और फिर आप लोग थे! आप लोगों ने हमारे लिए सब कुछ किया… जब हम बेघर थे, तब आप लोगों ने हमारी मदद करी, हमें प्यार दिया, सहारा दिया, और हमारी देखभाल करी। मुझे तो नहीं याद पड़ता कि हमारे सबसे कठिन समय में किसी और ने हमारी तरफ़ हमदर्दी से देखा भी हो! तो बाकी लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे, क्या करेंगे, मुझे इन बातों की एक ढेले की भी परवाह नहीं है।”
सुनील की बात तो पूरे सौ फ़ीसदी सही थी। इसलिए माँ ने कुछ नहीं कहा।
“दूसरे क्या कहते हैं, और दूसरे क्या कहते हैं, और क्या सोचते हैं, इन सब बातों का मेरे लिए कोई मूल्य नहीं है। लेकिन हाँ, आप क्या कहती हैं, अम्मा क्या कहती हैं, पुचुकी क्या कहती है, मिष्टी क्या कहती है, और भैया क्या कहते हैं, इन बातों का मेरे लिए बहुत अधिक मूल्य है। आप सब मेरे लिए मायने रखते हैं! केवल आप सब! आप सभी मेरा परिवार हैं! आप लोग मेरे लिए मूल्यवान हैं - आप लोग मेरे भगवान हैं। आप लोगों के अलावा किसी का कोई मोल नहीं मेरी लाइफ में। मुझे दूसरों की कोई परवाह नहीं!”
“सुनील,” माँ ने तड़पते हुए कहा, “न जाने क्या क्या सोच रहे हो तुम! ठीक है, मैं तुम्हारी माँ नहीं, लेकिन पाला है मैंने तुमको! पाल पोस कर बड़ा किया है तुमको! पालने वाली भी तो माँ ही होती है! और तो और, तुमको मैंने कभी ऐसे... ऐसी नज़र से देखा भी नहीं!”
“हाँ! पालने वाली तो अपने स्नेह में माँ समान ही होती है! मैंने कहाँ इंकार किया इस बात से?” सुनील ने थोड़ा भावुक होते हुए कहा, “आपने तो मेरे पूरे परिवार को अपने स्नेह से सींचा है! हम तीनों तो कटी पतंग समान थे! आपने हमको सहारा दिया। हमको घर दिया! आज हम जो कुछ भी हैं, जो कुछ भी अचीव कर पाए हैं, वो सब आपके कारण हैं! ये सब बातें सही हैं। लेकिन मैं अपने दिल का क्या करूँ? हर समय जो आपकी चाहत इसमें बसी हुई है, उसका मैं क्या करूँ? कैसे समझाऊँ इसको जो ये आपको अपनी पत्नी के रूप में देखता है? आप ही बताइए मैं ऐसा क्या करूँ कि ये आपको अपनी पत्नी न माने? कैसे रोकूँ इसे?”
“ये तो एक-तरफ़ा वाली बात हो गई सुनील!” माँ बहस कर के थक गई थीं।
“एक तरफ़ा बात? हाँ, शायद है! शायद क्या - बिलकुल ही है ये एक तरफ़ा वाली बात! लेकिन, मुझे अपने मन की बात कहनी थी, सो मैंने आपसे कह दी- मैंने अपने प्यार का इज़हार कर दिया! अम्मा ने कहा था, और आपने भी कहा था कि ‘अपनी वाली’ ‘अपनी मैडम’ को अपने प्यार की बात तो बोल दे - सो मैंने बोल दी! क्या पता अब दो-तरफ़ा वाली बात भी हो जाए!” सुनील ने कहा, “मेरे मन की बात अगर मैं न कहता तो मेरा दिल सालता रहता हमेशा! अब बात बाहर आ गई है। मैंने रिस्क ले लिया है - रिस्क इस बात का, कि मुझे मालूम है, कि आज के बाद - अभी के बाद - हम दोनों पहले जैसा व्यवहार नहीं कर सकेंगे! हम दोनों के बीच में कुछ बदल गया है, और यह बदलाव अब परमानेंट है! हो सकता है कि आप मुझसे गुस्सा हो जाएँ, या फिर मुझसे नफरत भी करने लगें! लेकिन मैं केवल इसी बात के डर से आप के लिए अपना प्यार छुपा कर तो नहीं रख सकता न! मैं आपके लिए जो सोचता हूँ, उससे अलग व्यवहार तो नहीं कर सकता न? यह तो सरासर धोखा होता - आपके साथ भी, और मेरे साथ भी! मैंने आपसे कभी झूठ नहीं बोला और न ही आपको धोखा दिया! और ये बात मैं कभी बदलने वाला नहीं!”
सुनील की बातें बड़ी भावुक करने वाली थीं : माँ भी भावुक हो गईं, लेकिन उन्होंने स्पष्ट रूप से दर्शाया नहीं, और लगभग सुनील को चुनौती देते हुए बोलीं,
“तुमको क्या लगता है? क्या अमर हमारे रिश्ते के लिए राजी हो जाएगा? काजल राज़ी हो जाएगी?”
“भैया और अम्मा ने एक दूसरे से प्यार करने के लिए तो मुझसे या आपसे कभी परमिशन नहीं माँगी! माँगी है क्या कभी कोई परमिशन?” सुनील ने भी तपाक से कहा - माँ उसके इस तथ्य पर चुप हो गईं।
सच में प्यार करने के लिए किसी तीसरे की इज़ाज़त की आवश्यकता नहीं होती। मियाँ बीवी की रज़ामंदी के बीच में किसी भी क़ाज़ी का कोई काम नहीं होता। उसने फिर आगे कहा,
“तो फिर मुझे आप से प्यार करने के लिए उनकी परमिशन की ज़रुरत क्यों है?”
सुनील की बातों में बहुत दम था। माँ कुछ कह न सकीं। लेकिन फिर भी यह सब इतना आसान थोड़े ही होता है।
“मैं यह सब नहीं जानती, सुनील! यह सब बहुत गड़बड़ है। तुम अभी छोटे हो, जवान हो। तुमको अभी समझ नहीं है। इस प्रकार के संबंधों को हमारे समाज में वर्जित माना जाता है। कुछ भी कह लो, हमें इसी समाज में रहना है। प्लीज़ जाओ यहाँ से! मुझे अकेला छोड़ दो। जब तुम इस विचार को अपने दिमाग से निकाल देना, तब ही वापस आना मेरे पास।”
माँ ने सोच सोच कर, रुक रुक कर कहा, लेकिन दृढ़ता से कहा। इस नए घटनाक्रम पर अपनी ही प्रतिक्रिया को ले कर वो खुद ही निश्चित नहीं थी! लेकिन उनको ऐसा लग रहा था कि सुनील जो कुछ सोच रहा था वो ठीक नहीं था। उसको सही मार्ग पर वापस लाना उनको अपना कर्त्तव्य लग रहा था। ऐसे तो वो अपने जीवन को बर्बाद कर देगा! और तो और, इसमें सभी की बदनामी भी कितनी होगी!
माँ और सुनील, दोनों के ही मन में खलबली सी मच गई थी।
माँ की प्रतिक्रिया पर सुनील के दिल में दर्द सा हुआ - एक टीस सी! वो कुछ और कहना चाहता था, लेकिन कह न सका। उसने माँ को गौर से देखा, और फिर मुड़ कर कमरे से बाहर निकल गया। उसकी आँखों में आँसू आ गए - वो चाहता था कि उन आँसुओं को जल्दी से छुपा ले - कि कहीं सुमन उनको देख न ले।
लेकिन माँ ने उसकी आँखों से ढलते हुए आँसुओं को देख लिया। यह देख कर उनका भी दिल खाली सा हो गया। लेकिन यह घटनाक्रम इतना अप्रत्याशित था, कि उनसे सामान्य तरीके से कोई प्रतिक्रिया देते ही न बनी। उनके दिमाग में एक बात तो बिजली के जैसे कौंध गई और वो यह कि पिछले कुछ समय में उनके होंठों पर मुस्कान, चेहरे पर जो रौनक, और सोच में ठहराव आए थे, उन सब में सुनील का एक बड़ा योगदान था। उन्होंने अपने दिल पर हाथ रख कर सोचा तो उनको आभास हुआ कि जब से सुनील वापस आया है, वो उसको एक पुत्र के रूप में कम, बल्कि एक पुरुष के रूप में अधिक देखती हैं! यह दिल दहला देने वाला विचार था। लेकिन सच्चा विचार तो यही था।
मूर्खता होगी अगर वो यह कहें कि उनको सुनील की चेष्टाओं को ले कर अंदेशा नहीं था। वो भोली अवश्य थीं, लेकिन मूर्ख नहीं। स्त्री-सुलभ ज्ञान उनको था। सुनील जिस तरह से उनके आस पास रहता था वो उसकी उम्र के लड़कों के लिए सामान्य बात नहीं थी। और तो और, वो जिस तरह से उनको देखता था, जिस तरह से उनसे बर्ताव करता था, और खुद उनकी प्रतिक्रिया - जब सुनील उनके पास होता, उनसे बात करता - ऐसी थी कि माँ बेटे के बीच में हो ही नहीं सकती। कम से कम इस झूठ का आवरण तो उतार देना चाहिए! हाँ, वो उससे उम्र में बड़ी अवश्य थीं।
‘हाँ, उसको यही बात समझानी चाहिए!’ माँ को राहत हुई कि उनके पास सुनील को ‘समझाने’ के लिए एक उचित तर्क है।
सुनील के बाहर आने के पाँच मिनट बाद काजल जब कमरे में आई, तो उसको समझ नहीं आया कि माँ उदास सी क्यों बैठी हैं। उसको और भी आश्चर्य हुआ कि जहाँ बस कुछ ही देर पहले दोनों साथ में गा रहे थे, खिलखिला कर हँस रहे थे, वहीं अब दोनों एक दूसरे से बात भी नहीं कर रहे हैं! काजल चुप ही रही, लेकिन दोनों पूरे दिन भर उदास व अन्यमनस्क से क्यों रहे; दोनों एक दूसरे से परहेज़ क्यों कर रहे थे - उसको इन बातों का कोई उत्तर नहीं मिल रहा था। उसने एक दो बार पूछा भी, लेकिन कोई उचित जवाब नहीं मिला।
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तीसरा अध्याय - पहला प्यार... विवाह प्रस्ताव ।
क्या ही गजब का विवाह प्रस्ताव था ! अमर साहब की तो चांदी ही चांदी हो गई ।
ये जो आप अपने घुमावदार बातों और तर्क से हमें जो फंसा रहे हैं उससे मैं तो नहीं फंसने वाला । अमर के फैंटेसी को अपन प्रेम नहीं मानने वाला ।
वैसे देखा जाए तो यह कहानी नहीं बल्कि बायोग्राफी ज्यादा लगता है मुझे । मतलब अमर की बायोग्राफी । जिसे हम एक व्यक्ति की जीवन यात्रा भी कह सकते हैं ।
अमर का बचपन काफी लाड़ प्यार से बिता । बचपन में दो खुबसूरत कन्याओं से निकटता भी बढ़ी ।
पर जवानी का दौर सबसे ज्यादा अहम होता है किसी भी इंसान के लिए । यह वह दौर होता है जब इंसान गैर जिम्मेदारी से जिम्मेदारी के सफर पर निकलता है । आर्थिक रूप से सशक्त होने की कोशिश करता है । एक नए इंसान का जीवनसाथी के रूप में आगमन होता है जिसे हम धर्मपत्नी कहते हैं ।
यह वह दौर होता है जब नौजवानों को अपनी जिम्मेदारी तय करनी होती है । और यही वो दौर भी होता है जब इंसान गलत रास्ते पर भी निकल पड़ते हैं ।
अमर एक स्वछंद माहौल में पला बढ़ा । महिलाओ का शरीर उसके लिए कभी भी जिज्ञासा का विषय नहीं बना । अच्छी नौकरी पाने के बाद काजल के रूप में एक अच्छी अभिभावक मिली और इस दरम्यान आनलाइन चैटिंग के थ्रू एक ब्राजिलियन हसीना से पहले दोस्ती फिर प्यार हुआ ।
गैबी की कहानी तकरीबन हर मिडिल क्लास की फैमिली की लड़की की कहानी है ।
धरती पर जब से मानव जीवन का अस्तित्व आया तब से ही मर्दों का दबदबा रहा है । कोई भी देश हो , चाहे विकसित देश हो चाहे विकासशील देश हो चाहे गरीब देश हो , कोई भी जाति हो , कोई भी समाज हो , औरतों को मर्दों के बनिस्पत कमजोर ही माना गया है । और मुझे नहीं लगता यह कभी बदल सकता है ।
जहां सेक्सुअल मामलों की बात है , युरोपीयन कंट्री एवं अमेरिकन्स कंट्री हम इंडियन उप महाद्वीप से कहीं ज्यादा खुलेपन विचार के रहे हैं ।
इसलिए गैबी का सेक्सुअल लाइफ जानकर मुझे कोई हैरानी नहीं हुई । लेकिन उसके फेमिली का उसके प्रति सौतेला व्यवहार मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा । यह साफ समझ में आ रहा था कि उसे औरत होने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है ।
अमर ने जिस तरह से उस लड़की को मोटिवेट किया और जिस तरह से उसकी मदद की , उससे अमर के लिए सम्मान की भावना मेरे दिल में घर कर गई ।
यदि गलती से या मजबूरन महिलाएं अपना कौमार्य लुटा बैठती है तो इसमें मैं महिलाओं का कोई कसूर नहीं मानता । गंदगी शरीर में नहीं लोगों के मस्तिष्क में होती है ।
अमर , गैबी का सच जानकार भी उसे अपनाने का मन बनाया । यह अमर की महानता थी ।
गैबी की सोच बिल्कुल भारतीय संस्कृति के अनुरूप ही देखा मैंने । शादी से पहले शारीरिक संबंध नहीं बनाने की । भारतीय कल्चर अपनाने की ( अमर के माता पिता के प्रवास के दौरान ) , प्रत्येक दिन मंदिर जाने की ।
भले ही सभ्य लेंग्वेज का इस्तेमाल किया गया था उस पुरे परिदृश्य पर लेकिन उत्तेजना से भरपूर था वह सिनेरियो ।
देखते हैं आगे चलकर अमर की शादी गैबी से होती है या नहीं ! काजल के साथ कितने दूर तक का साथ रहता है उसका ! और सबसे बढ़कर बचपन के फ्रैंड से कब मुलाकात होती है !
सभी अपडेट्स बेहद ही खूबसूरत थे भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट ।