आत्मनिर्भर - नए अनुभव - Update 4
अगले दिन, मैंने अपने ऑफिस से छुट्टी के लिए आवेदन किया और काजल और सुनील अपनी कॉलोनी को पास के ही एक कॉन्वेंट स्कूल में ले गया। उस स्कूल की प्रिंसिपल के सामने एक भावुक भाषण दिया। प्रिंसिपल एक दयालु महिला थीं और उन्होंने मेरे मामले को बड़े धैर्य के साथ सुना। वो सुनील को ले कर मेरी भावनाओं से बहुत प्रभावित थीं और वह जानना चाहती थीं कि काजल और उसके बेटे के साथ मेरा क्या रिश्ता है। जब उन्होंने सुना कि मैं उनका रिश्तेदार नहीं था, उन्होंने पूछा कि बच्चे के पिता क्यों नहीं आए। मैंने कोई बहाना बना दिया कि काजल के पति अपनी नौकरी के कारण आज नहीं आ सके। लेकिन मैंने उनको विश्वास दिलाया कि मैं एक जिम्मेदार नागरिक हूँ, और स्कूल के बाद सुनील की शैक्षिक आवश्यकताओं को मैं पूरा कर सकता हूँ। मैंने प्रिंसिपल महोदया को अपनी शिक्षा और कार्य के बारे में बताया और उनको आश्वासन दिया कि सुनील जैसे होनहार छात्र के लिए प्रतिदिन एक दो घण्टे का मार्गदर्शन पर्याप्त है। बहुत समझाने के बाद, आखिरकार, प्रिंसिपल महोदया सुनील को अपने स्कूल में प्रवेश देने के लिए तैयार हो गईं, और वो भी निःशुल्क! लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि ट्यूशन के अतिरिक्त अन्य खर्चे माता-पिता द्वारा वहन किए जाने चाहिए। हम इस बात पर खुशी-खुशी राजी हो गए।
इस घटना के बाद काजल बहुत खुश हुई...! उनका मेरे प्रति औपचारिक रवैया पूरी तरह से बदल गया। वो अब मुझसे खुल कर बातें करने लगी; मेरी ज़्यादा देखभाल करने लगीं। और तो और, अब वो मुझे अपने जीवन के बारे में कई सारी बातें बताने लगीं। वो अब मेरे घर का अतिरिक्त ख्याल रखने लगी : मैंने अब उनको अपने घर की चाबियाँ दे दी थीं। भरोसेमंद महिला तो वो हमेशा से ही थीं। अब वो जब इच्छा होती, घर आ सकती थीं। सुनील भी जब मन करे, यहाँ आ कर अपनी पढ़ाई लिखाई कर सकता था। तो, एक तरह से वह उस शहर में मेरी ‘मैट्रन’ और अभिभावक बन गईं। मेरा सप्ताहांत अक्सर फ्री हुआ करता था, इसलिए मैं सप्ताहांत के कुछ घंटे सुनील के साथ उसकी पढ़ाई में लगाता था। जैसा कि मैंने ठीक ही सोचा था - सुनील एक होनहार, मेहनती और मेधावी छात्र था। सबसे बड़ी बात, उसको मालूम था कि उसकी माँ उसकी पढ़ाई को ले कर कैसे कैसे पापड़ बेल रही थीं। वो उन सभी कठिनाइयों से अवगत था जो उसकी माँ उस को सिर्फ एक अच्छी शिक्षा प्रदान करने के लिए झेलनी पड़ रही थी। इसलिए, वो पढ़ाई को ले कर बहुत गंभीर था और जल्दी ही पढ़ाई में बढ़िया प्रदर्शन करने लगा।
युवाकाल किसी भी मनुष्य के जीवन में बहुत कीमती समय होता है। अगर आप किसी बूढ़े व्यक्ति को पूछेंगे तो मुझे यकीन है कि वो कहेगा कि 20 की उम्र की जिस्मानी ताक़त और 40 के उम्र का ज्ञान वो हमेशा रखना चाहेगा। अपनी महिला के साथ प्रतिदिन पांच बार सम्भोग करने में सक्षम होना, और मिस्टर वॉरेन बफे के जैसा पैसे बनाने का ज्ञान होना किसी भी आदमी के लिए सर्वश्रेष्ठ कामोन्माद से कम नहीं है! क्षमा करें, मैं यहाँ कहानी के ट्रैक से बाहर चला गया। वापिस आते हैं। ऑफिस में लड़कियाँ कई सारी थीं, और कई मेरी दोस्त भी थीं, लेकिन या तो मैं उनकी तरफ आकर्षित नहीं हुआ, या फिर वो मेरी तरफ आकर्षित नहीं हुईं। सोचा था कि इतनी बढ़िया पढ़ाई करी, इतनी अच्छी नौकरी ली, लेकिन फिर भी सेक्स के मामले में टाँय टाँय फिस्स! इससे अच्छे तो बचपने में ही थे - कम से कम रचना जैसी सुन्दर लड़की का स्नेह तो मिल रहा था। मुझे लगने लगा था कि जब तक मेरी शादी नहीं हो जाती, तब तक इस मामले में मैं भाग्यशाली नहीं रहूँगा। जीवन में कुछ भी नया नहीं हो रहा था - सुबह से शाम रूटीन सेट था - घर से ऑफिस, ऑफिस से घर, घर से जिम, जिम से घर! और उस दिनचर्या में, मुझे कभी कोई ऐसी लड़की नहीं मिली जिसके साथ मैं होना चाहता था। कॉलोनी में भी अगर कोई लड़का अकेला रहता है, तो सभी उसको शक की नज़रों से ही देखते हैं। हद तो इस बात की थी कि इतने दिन बीत जाने पर भी पड़ोसी से जान पहचान भी नहीं हो सकीय। जान पहचान छोड़िए, उनका नाम भी न मालूम हुआ। लेकिन जैसा कि मैंने पहले भी कहा था, किस्मत कई तरह से अवसर प्रस्तुत करती है, और मेरा अवसर भी जल्दी ही आने वाला था।
काजल तब तक मेरे लिए लगभग तीन महीने काम कर चुकी थीं, और इतने समय में, हमारे बीच एक अच्छा व्यक्तिगत बंधन विकसित हो गया था। वो मेरा घर इस तरह सुचारु रूप से चला रही थीं, लगता था कि जैसे वो घर की मालकिन ही हों! उन्होंने मेरे दैनिक जीवन को इतनी कुशलता से प्रबंधित किया कि मैं अक्सर सोचता था कि उनके बिना मैं कैसे जी पाता! मेरा उनको वेतन देने का तरीका भी बहुत उल्टा पुल्टा था। मैं उनको पंद्रह पंद्रह दिनों पर वेतन देता था - कभी-कभी मैं उनको तय से अधिक वेतन दे देता, तो कभी कम! लेकिन मैं उनको जो भी देता, वो ले लेतीं। एक बार उन्होंने बताया कि मैं उनको अधिक वेतन ही देता हूँ। मैंने उनको कहा कि वो मेरे लिए काम भी तो अधिक करतीं हैं! जब से मैंने उनके बेटे की शिक्षा का ध्यान रखना शुरू किया था, तब से वो भी मेरे लिए जीवन को और आरामदायक बनाने के लिए अपनी तरफ से और कोशिश करने लगीं। वो अब अपनी मर्जी से सब्जियां, दूध और किराने के अन्य सामान खरीद लातीं। हमेशा तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन बना कर खिलातीं। मुझे कभी कुछ कहने या पूछने की जरूरत नहीं पड़ती थी। मेरा जीवन अच्छा हो गया था। अब ये और अच्छा होने वाला था।
**
एक शाम, मुझे बहुत तेज बुखार हुआ। मेरे शरीर का तापमान 102 तक पहुँच गया। शरीर में इतना दर्द था कि वो रात नर्क हो गई। बुखार, बेचैनी और शरीर का दर्द - तीनों मिल कर मारे डाल रहे थे। मैं पूरी रात सो नहीं सका, और दर्द से कराहता रहा। लेकिन इतनी तकलीफ में मैं भी थक गया, और सुबह होते होते सो गया। काजल के पास मेरे घर की चाबियाँ थीं, इसलिए जब घंटी बजने पर मैंने अगली सुबह दरवाजा नहीं खोला, तो उन्होंने चाबी से खुद ही दरवाज़ा खोल दिया, और घर के अंदर आ गईं। उनको इस बात का कोई अंदेशा नहीं था कि मैं कमरे के अंदर हो सकता हूँ, क्योंकि आमतौर पर मैं उस समय दौड़ने जाता था। खैर, तो काजल अपने कामों में व्यस्त हो गई। लेकिन जब सफाई करने के लिए उन्होंने मेरे कमरे में प्रवेश किया, तो मुझे बिस्तर पर लेटा हुआ पाया। शायद उन्होंने मुझे आवाज़ लगाई होगी, लेकिन जब मैंने उत्तर नहीं दिया, तो उन्होंने पाया होगा कि मेरा शरीर बुखार से जल रहा था। हालाँकि, मैं काजल को मुझसे बात करते हुए सुन पा रहा था, लेकिन नींद और थकावट के कारण उनको जवाब नहीं दे पा रहा था। मैं उस समय कुछ भी कहने या किसी भी तरह की बातचीत करने के लिए बहुत कमजोर महसूस कर रहा था। मुझे बाद में पता चला कि काजल मेरे लिए कुछ दवाएँ ले कर आई थी [यह एक कठिन और समय खपाऊ काम रहा होगा, क्योंकि मेरे घर के पास अधिकांश केमिस्ट सुबह नहीं खुलते थे, 24x7 फार्मेसी मेरे घर से बहुत दूर थी]।
काजल दवाई और कुछ हल्का नाश्ता और चाय लेकर वापस आईं - उन्होंने ही सहारा दे कर मुझे हल्का खाना खिलाया, क्योंकि मैं बैठने में भी कमजोरी महसूस कर रहा था। काजल ने खुद ही मुझे नाश्ता खिलाया, और फिर मुझे दवा खिला कर सोने की कोशिश करने के लिए कहा। ये दवाएँ नींद बढ़ाती है, इसलिए मैं जल्द ही सो गया। बीच बीच में मैं महसूस कर रहा था कि काजल का हाथ मेरे माथे को छू रहा है। खैर, दोपहर तक भी मेरा बुखार कम नहीं हुआ। जब मेरी आँख खुली, तो काजल को अब भी वहाँ देखकर मैं हैरान रह गया। शायद उन्होंने मेरी देखभाल करने के लिए मेरे साथ रहने का फैसला किया।
इस बार उनके पास एक थर्मामीटर था, जिससे उन्होंने मेरा तापमान लिया। फिर कोई 10 मिनट बाद वो एक बाल्टी में ठंडा पानी और एक छोटा तौलिया लेकर वापस कमरे में आईं। बहुत देर तक उन्होंने मेरे माथे पर ठन्डे पानी की पट्टियाँ रखीं, लेकिन फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ, और बुखार ज्यों का त्यों रहा। अंत में थक कर आकजल ने जो किया, मैं दंग रह गया। काजल ने जो चादर मैंने ओढ़ी हुई थी, उसको हटा दिया। लेकिन गड़बड़ यह हो गई कि मैं अपनी कमर के नीचे नंगा था [एक छोटा सा विवरण - मुझे नंगा हो कर सोना पसंद है]। लेकिन जैसे इस बात से काजल को कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ा। इससे पहले कि मैं कुछ बोल पाता वो मेरी टी-शर्ट उतारने लगी। मैं बहुत हैरान था, और अभी भी कुछ भी कहने के लिए बहुत कमजोर महसूस कर रहा था। एक महिला के सामने नंगा होने, बुखार और शरीर दर्द के संयुक्त प्रभाव से मैंने कोई विरोध नहीं किया। शुक्र है, मेरा लिंग बिलकुल मुरझाया हुआ सा पड़ा था, नहीं तो और शर्मिंदगी झेलनी पड़ जाती [यह भी संभव है कि इस मुरझाए हुए लिंग के कारण और शर्मिंदगी हुई हो]!
लेकिन लग रहा था कि काजल को मेरी नग्नता से कोई सरोकार नहीं था। किसी सिद्धहस्त नर्स की भाँति, उन्होंने मेरे पूरे शरीर को गीले तौलिये पोंछा। मैंने देखा कि उन्होंने मेरे लिंग और वृषण पर आवश्यकता से थोड़ा अधिक ही समय बिताया और उन्हें अपने हाथों में पकड़ कर महसूस भी किया। उन्होंने मेरे शिश्नग्रच्छद को पीछे खिसका कर मेरे शिश्नमुण्ड को भी ठीक से। जब पूरे शरीर को ठण्डक मिली, तो बुखार थोड़ा सा कम हुआ। इस सूखे स्नान के बाद काजल ने मुझे हल्का भोजन, जूस और बुखार कम करने की दवा दी। उन्होंने मुझे पहनने के लिए कोई कपड़े नहीं दिए, और बस मुझे फिर से एक नई चादर से ढक दिया।
शाम तक बुखार कम तो हुआ था, लेकिन बस केवल एक डेढ़ डिग्री! उस शाम काजल मेरे करीब ही रही। अपना काम पूरा करने के बाद वो मेरे पास आई और बैठ गई, फ़िर मेरा सर अपनी गोद में रखकर मेरे चेहरे को प्यार से धीरे धीरे सहलाने लगी। अपनी अधखुली आँखों से मैंने केवल उनके स्तनों को देखा जो उनकी साँसों के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे। उस मरी हुई हालत में भी न जाने कैसे मेरी आँखों में कामेच्छा की एक चमक आ गई। काजल मुझे शुरू से ही अच्छी लगती थी, इसलिए मैंने हमारी अंतरंगता की सम्भावना से कभी इंकार नहीं किया था। कहा जाता है कि किसी पुरुष के मष्तिष्क में चौबीसों घण्टे बस सेक्स वाले ही विचार आते हैं। चौबीसों घण्टे तो नहीं, लेकिन जैसे ही मौका मिलता है, हमको सेक्स वाले विचार आने लगते हैं। लेकिन आश्चर्य वाली बात यह है कि दर्द और बुखार की उस भयानक स्थिति में भी मैं सेक्स के बारे में सोच रहा था! मुझे सुन्दर स्तनों को देखे हुए काफी समय हो गया था, और इस समय मैं काजल के स्तनों को देखने के लिए मरा जा रहा था। मैंने जल्दी से एक योजना के बारे में सोचा।