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ओ बंधुदोस्तों - एक लम्बे ब्रेक पर जा रहा हूँ।
वापस आ कर सारे वृतांत सुनाऊँगा!
तब तक के लिए, अलविदा!
कहां गायब हो गए avsji bhai ? Waiting next update.दोस्तों - एक लम्बे ब्रेक पर जा रहा हूँ।
वापस आ कर सारे वृतांत सुनाऊँगा!
तब तक के लिए, अलविदा!
“ऐसे मत बनो, अमर! तुमको भी मालूम है कि तुम्हारे लिए मेरे प्यार के कई सारे रूप हैं... बस तुम्हारे लिए मैं एक रूप में नहीं आ सकती - और वो है पत्नी का रूप! तुम मुझसे बेहतर डिज़र्व करते हो! ... बेहतर लड़की डिज़र्व करते हो। मैं उस पॉसिबिलिटी में रोड़ा नहीं बन सकती!”
Behtrinअंतराल - समृद्धि - Update #2
ख़ुशी और मेरा - जैसे बैर वाला रिश्ता बना लगता है।
जब जब मैं खुश होता हूँ, तब तब मैं बर्बाद होता हूँ! जी हाँ - अंदाज़ अपना अपना फिल्म के एक संवाद पर ही मैंने ये बात लिख तो दी है, लेकिन मेरे केस में ये बात है पूरे सोलह आने सच! नहीं नहीं - फिलहाल ऐसी बर्बादी वाली कोई बात नहीं हुई है - कम से कम कहानी के इस पड़ाव पर! लेकिन क्या है न कि पिछले कुछ सालों से मैं बेहद स्वार्थी हो गया हूँ (हो गया हूँ, या फिर शायद हमेशा से ही था)। अधिकतर अपने ही बारे में सोचता हूँ; अपनी खुशियों के बारे में! अपने सामने दूसरों का ख़याल ही नहीं आता! इसीलिए जैसे ही कोई मुश्किल सामने आती है - मैं रोने लगता हूँ! बात कुछ यूँ है -
लतिका के हाई स्कूल परीक्षाओं के तीन सप्ताह पहले की बात है। सब कुछ सामान्य था। शाम को काजल मेरे कमरे में आई। कोई अनहोनी बात नहीं है ये। लेकिन आज कुछ अलग सा था।
“अमर?”
“हाँ, काजल?”
“बहू और बच्चों को देखे हुए बहुत दिन हो गए!”
“हाँ! बात तो ठीक है! बस कुछ दिनों की बात है - पुचुकी के एक्साम्स हो जाएँ! फिर चली जाना मुंबई? और इन दोनों शैतानों को भी लेती जाना! माँ भी देख लेंगीं दोनों को?”
मेरी बात सुन कर काजल कुछ देर चुप हो गई।
सच में - एक माँ के दिल का हाल हम आदमी लोग कैसे जान सकते हैं? कितनी भी कोशिश कर लें - लेकिन ममता पर तो स्त्रियों का ही एकाधिकार है। काजल की तो जान ही अपने बच्चों में बसती थी! लेकिन उसकी मुश्किल देखिए - उसके दो बच्चे यहाँ दिल्ली में, और चार वहाँ मुंबई में! जैसे उसके दिल के कई टुकड़े कर के देश के अलग अलग हिस्सों में रख दिए हों विधाता ने! माँ से रोज़ फ़ोन पर बात करती थी वो, लेकिन उससे कहाँ पेट भरता है? तब तक वीडियो कॉल का सिस्टम भी आम नहीं था, और न तो काजल को ही, और न ही माँ को कंप्यूटर और इंटरनेट का समुचित उपयोग करना आया था।
काजल के चुप होने का अंदाज़ सामान्य से थोड़ा अलग था।
मैंने पूछा, “क्या हुआ काजल? कोई प्रॉब्लम है क्या?”
काजल ने कुछ देर कुछ नहीं कहा, और उसके बाद धीमी आवाज़ में कहा, “अमर, वो क्या है न, जब मैं पहली बार सुनील के वहाँ गई थी, तब मुंबई में मैं किसी से मिली।”
“ओके?” मैंने कहा, “किससे?”
“एक आदमी से!” काजल ने थोड़ा हिचकते हुए कहा, “... और मुझे लगता है कि मैं उसे पसंद करती हूँ!”
“क्या! सचमुच?” मैं उसकी बात पर हैरान हो गया!
‘ये क्या हो गया? काजल? किसी और से?’ अब मेरा दिमाग चकराया।
“उससे बातें भी होती हैं - लगभग रोज़ ही! सुनील भी मिला है!”
‘अरे स्साला! बात तो काफी एडवांस्ड स्टेज में है!’ दिमाग में बात कौंधी - लेकिन अभी भी मुझे बात की वास्तविक हद का अंदाज़ा नहीं था।
“क्या वो तुमको पसंद करता है?” मैंने पूछा।
“मुझे ऐसा लगता तो है...” काजल ने थोड़ा अनिश्चित तरीके से कहना शुरू तो किया, लेकिन लगभग तुरंत ही संयत हो कर बोली, “हाँ, वो भी मुझे पसंद करता है। एक्चुअली, उसी ने प्रोपोज़ किया था मुझको!”
“फिर तुमने मुझे बताया क्यों नहीं?”
“सही टाइम का वेट कर रही थी!”
“ओह!”
मैं कभी सोच भी नहीं सकता था - सपने में भी नहीं - कि कभी ऐसा भी एक दिन आएगा, जब काजल मुझसे नहीं, बल्कि किसी और से प्यार करने लगेगी!
तो इसका मतलब, क्या वो मुझे छोड़ कर चली जाएगी?
‘हे भगवान!’
“अमर... अब ऐसे तो बीहेव मत करो,” काजल ने मेरे तेजी से मुरझाते हुए मूड को देखते हुए कहा, “तुम मेरा सबसे पहला प्यार हो, और ये बात कभी नहीं बदलेगी नहीं! ... क्या कुछ नहीं दिया है तुमने मुझे? इतनी इज़्ज़त - इतना मान! ... तुम्हारे कारण मुझे समाज में इतनी इज़्ज़त मिली। तुम्हारे कारण आज मेरा एक भरा पूरा परिवार है, और उसका सुख भी! मेरे बच्चे...”
काजल अतीत के पन्नों में खोते हुए बोली, “मैं और मेरे मेरे बच्चे समाज में आज इतनी इज़्ज़त के साथ खड़े हैं, वो बस तुम्हारे ही कारण है! मेरा सब कुछ तुम्हारे कारण है!”
“तो तुमने मुझे बताने के लिए इतनी देर इंतज़ार क्यों किया...” मेरी शिकायत भी जायज़ थी।
एक झटके में काजल ने मुझको अनजान बना दिया... अपने से अलग कर दिया!
काजल इस प्रश्न पर कुछ कह न सकी। फिर मैंने इस विचार को तुरंत झटका, और उसे अपने बहुत बगल में बैठाते हुए कहा, “अच्छा! अभी शिकायत नहीं करूँगा... मुझे उसके बारे में बताओ... सब कुछ!”
वो मुस्कुराई, “ओके... उसका नाम सत्यजीत है।”
“मराठी?”
उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “... सत्यजीत मुळे! उम्र में मुझसे कम है... चालीस इकतालीस का होगा।”
“वो तो ठीक है न?” काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया; मैंने पूछा, “सिंगल?”
“हाँ! विडोड... बहुत कम उम्र में शादी हो गई थी उसकी... गाँव से है न! उसकी बीवी को मरे बहुत साल हो गए - शायद कोई चौदह पंद्रह साल हो गए! ... सुनील से दो ढाई साल छोटा एक बेटा भी है उसका... लेकिन... उसकी भी शादी हो गई है... और उसका भी एक बच्चा है... डेढ़ दो साल का!”
“हम्म… अच्छा! बढ़िया है... कम से कम पूरा परिवार तो है!” मैं कुछ और कहना चाहता था, लेकिन शायद काजल के दिल में चुभ जाता, इसलिए वो बात कहने के बजाय मैंने पूछा, “क्या करता है?”
“उसका बेकरी का बिज़नेस है।”
“हम्म… हा हा हा हा! तो मतलब, तुम केक लेने मिस्टर सत्यजीत के पास गई, और बदले में अपना दिल दे बैठी?”
काजल मेरी बात पर हँसने लगी, “नहीं! केवल केक ही नहीं... ब्रेड, बिस्किट, स्कोन, पेस्ट्री, कुकीज... भी!”
“हाँ... हाँ... समझ रहा हूँ।” मैंने काजल की टाँग खींची, “दिल्ली वाला नहीं, बल्कि मुंबई वाला बिजनेस-मैन पसंद आ गया है आपको!”
“अमर! ऐसे मत बोलो!” काजल की आँख भर आई, “तुम मेरे लिए क्या हो, वो तुम भी जानते हो! लेकिन, मुझे ये भी मालूम है कि जब तक मैं तुम्हारी ज़िन्दगी से बाहर नहीं जाऊँगी न, तब तक तुम अपनी ज़िन्दगी में आगे नहीं बढ़ोगे!”
मैंने इस बात पर कुछ नहीं कहा, लेकिन काजल की बात मेरे दिल को कचोट गई। शायद वो सही कह रही हो। मेरी आदत है किसी अन्य का सहारा पकड़ कर आगे बढ़ने की - अमरबेल की तरह... पैरासाइट! एक तरह से मैंने सालों साल काजल का शोषण किया है। और आज जब काजल को मौका मिला है कि वो अपना घर बसा सके, तो मैं उसको गिल्ट-ट्रिप पर ले जाने वाला था। कैसा मतलबी था मैं! धिक्कार है!
सच कहते हैं - किसी भी व्यक्ति का बुराई को ले कर नज़रिया ख़र्राटों समान होता है - दूसरों की कमियाँ और बुराईयाँ बखूबी सुनाई देती हैं, अपनी नहीं!
मैंने बात पलट दी, “तो, किसने किसको प्रोपोज़ किया?”
“बताया तो! सत्या ने... मुझे!” वो गर्व से मुस्कुराई।
“और तुमने मान लिया?”
“मानना चाहती हूँ,” काजल बोली, और हिचकिचाई।
“क्यों? क्या हो गया? किसने रोका?”
इस प्रश्न के उत्तर में काजल कुछ नहीं बोली। मुझे उत्तर अपने आप मालूम हो गया।
“सुनील को मालूम है?”
काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “और बहू को भी! दोनों मिले हैं... सत्या से भी, और उसके बेटे और बहू से भी!”
“दोनों ओके हैं?”
काजल ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“तो इंतज़ार किस बात का है?”
“मैं उसके पहले तुमसे बात करना चाहती थी... और... तुम्हारी परमिशन लेना चाहती थी!”
“काजल… मेरी काजल… मैं तुम्हारा मालिक नहीं हूँ कि तुम मुझसे परमिशन लो! तुम इस घर की बड़ी हो... पूरे परिवार की बड़ी हो! मालकिन हो तुम! अपने डिसिशन खुद ले सकती हो! मैंने कभी रोका है तुमको? मैं तो तुमसे कितना प्यार करता हूँ!”
“आई नो! और इसीलिए तो मैं सत्या को हाँ कहने से पहले तुमको बताना चाहती थी!”
“हाँ कहना चाहती हो?”
काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
हम दोनों कुछ देर के लिए चुप हो गए।
काजल के जाने का मतलब है कि लतिका भी उसके साथ ही चली जाएगी! फिर से आभा और मैं अकेले! सबकी ज़िन्दगी संवर रही थी, सबका संसार बस रहा था - बस, मैं ही पीछे छूटा जा रहा था। लेकिन मुझे अपना स्वार्थ छोड़ कर आगे बढ़ना था। अमरबेल जैसा परजीवी बन कर मैं और जीना नहीं चाहता था। अब समय आ गया था कि मैं अपने पाँवों पर खड़ा हो जाऊँ... पैसा कमाना ही अपने पाँव पर खड़ा होना नहीं होता। एक ज़िम्मेदार पुरुष के जैसे ही अपने परिवार की सारी ज़िम्मेदारी लेने का समय आ गया था। हम बचे ही कितने अब? मैं और आभा! बस... दो जने!
इस विचार से मेरा दिल बैठ गया।
प्रत्यक्षतः मैंने कहा, “काजल, अगर तुमको लगता है कि तुम सत्यजीत के साथ खुश रहोगी, तो प्लीज, इतना सब मत सोचो! उसको हाँ कह दो! उसके साथ रहो! उसका घर बसाओ! मुझे केवल तुम खुश चाहिए। और कुछ नहीं!”
काजल मुस्कुराई, लेकिन उसकी आँखों से आँसू ढलक गए, “आई नो!”
वो बहुत इमोशनल हो गई थी, लेकिन उसने खुद को सम्हाला, “मैं चाहती हूँ, कि तुम सत्या से मिल लो! देखो तो, वो मेरे लायक है भी कि नहीं?”
जिस तरह से काजल ने मुझसे ये बात कही, मेरा दिल बाग़ बाग़ हो गया!
मुझे लग गया कि शादी हो जाने के बाद भी काजल का सम्बन्ध मेरे साथ प्रगाढ़ ही रहेगा - वैसे ही जैसे बड़ी बहन जब विदा हो जाती है, तब भी उसका सम्बन्ध अपने भाई से नहीं छूटता। बात सही थी - काजल हमेशा यहाँ नहीं रह सकती थी। अगर यह बात माँ के लिए सच थी, तो काजल के लिए भी उतनी ही सच थी। और अब जा कर मुझे काजल के खिंचाव का कारण समझ में आया। जब दूसरे के साथ प्रीति होने लगे, तो फिर मेरे साथ वो क्यों अंतरंग होगी? अच्छा भी लगा कि काजल सत्यजीत के लिए समर्पित थी; वफादार थी।
“मैं उससे मिलूंगा।”
“हाँ?”
“हाँ! मैं... मैं तुमको बस खुश देखना चाहता हूँ, काजल! कुछ भी नहीं और...”
“थैंक यू, अमर!”
मैंने बड़ी मुश्किल से काजल को देखा।
क्या कुछ नहीं किया... सहा... देखा... हम दोनों ने! बारह साल का साथ! इतने समय में न केवल हमारे परिवारों के दिल भी मिल गए, बल्कि खून भी! हम एक परिवार थे। और काजल इस परिवार का दिल। उसके जाने का सोच कर मुझे ऐसा लगा कि जैसे किसी ट्रक ने मुझे टक्कर मार दी हो! ऐसे अज़ीज़ दोस्त को - मनमीत को - अलविदा कहना बड़ा मुश्किल है! काजल मेरे जीवन की सच्चाई है - वो इतनी करीब, इतनी आत्मीय है! दिल के विचार चेहरे पर आ ही गए - माँ से ये गुण मिला है मुझको। जो मन में चल रहा होता है, वही चेहरे पर भी।
“अमर... ओह अमर! प्लीज ऐसे मत रहो! ऐसे उदास न होवो।”
“मैं उदास नहीं हूँ काजल!” मैंने झूठ कहा, “लेकिन तुम्हारे बिना ये घर बिलकुल खाली हो जायेगा!” ये मैंने सच कहा।
“अरे...” उसने कहा, और मुझे उसने अपनी छाती से लगा कर, और मेरे सर को चूमते हुए कहा, “तुमको चाहने वाली कोई नई आ जाएगी! मुझे मालूम है ये बात!”
“हह!” मैंने टूटे हुए दिल से बोला, “दो बार लकी हो चुका हूँ! बार बार नहीं होता कोई!”
“होगा... मेरा दिल कहता है!”
“हम्म!”
“ऐसे मत बनो, अमर! तुमको भी मालूम है कि तुम्हारे लिए मेरे प्यार के कई सारे रूप हैं... बस तुम्हारे लिए मैं एक रूप में नहीं आ सकती - और वो है पत्नी का रूप! तुम मुझसे बेहतर डिज़र्व करते हो! ... बेहतर लड़की डिज़र्व करते हो। मैं उस पॉसिबिलिटी में रोड़ा नहीं बन सकती!”
उसने कहा और मुझे ज़ोर से अपने गले से लगा लिया।
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इस वर्ष का सबसे प्यारा शब्द (मेरे लिए)।चुदू