नया सफ़र - लकी इन लव - Update #12
इतना कह कर जयंती दी उठीं, और दूसरे कमरे में जाने लगीं। मैंने उनको उठते हुए देखा। मैं आश्चर्यचकित था कि जयंती दी हमको सेक्स करने के लिए कह रही थीं। यह एक अभूतपूर्व सी बात थी! वो कैसे हम दोनों के मन की बात यूँ समझ गईं! समझ गईं तो समझ गईं, लेकिन वो हमको हमारी इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए प्रोत्साहित भी कर रही थीं! इसके पहले केवल माँ ही मुझको ऐसे करने के लिए कहती थीं। जयंती दी की इस बात ने मेरे शरीर में उत्तेजना की एक अबूझ सी झुनझुनी फैला दी! मेरा लिंग तेजी से खड़ा होने लगा। तब तक जयंती दी दूसरे वाले कमरे में चली गई थीं। देवयानी उनकी बात पर बेहद शर्मिंदा हो गई थी - यह कोई कहने वाली बात नहीं है।
“अरे दीदी, रुको तो!” देवयानी ने उनसे कहा।
“पिंकी, शरमाओ मत! ... तुम कर लो! मैं यहीं बगल वाले कमरे में हूँ!” जयंती दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा, “आई नो कि तुम्हारा मन है! इसलिए शरमाओ मत!”
इतना कह कर जयंती दीदी कमरे से बाहर चली गईं। दीदी के जाते ही मैंने उनकी अनुमति पर क्रियान्वयन करना शुरू कर दिया।
“जानेमन...” मैंने हाथ बढ़ा कर डेवी का एक स्तन छुआ।
“धत्त! बदमाश!” डेवी ने हँसते हुए मेरे हाथ पर एक चपत लगाई!
“अरे, धत्त काहे को? अब तो दीदी ने भी हमको ‘नो ऑब्जेक्शन सर्टिफ़िकेट’ दे दिया है! आओ, करें।” मैं फुसफुसाया; साथ ही साथ उसके ब्लाउज के ऊपर से उसके स्तन को थोड़ा दबाया।
“क्या करना चाहते हैं, सिंह साहब?” डेवी ने हँसते हुए मुझे छेड़ा।
“तुम्हारे साथ एक हॉट सेक्स!” मैंने भी बेशर्मी से कहा।
“धत्त! पागल हो गए हो क्या? दीदी बगल में ही हैं। उनके रहते हुए मैं ऐसा कुछ नहीं कर सकती!” डेवी ने मुस्कुराते, शरमाते हुए कहा; लेकिन वो शरारत से मुस्कुराते हुए मेरे पीछे देख रही थी कि जयंती दी वाकई दूसरे कमरे में चली गई कि नहीं!
“अरे यार! ऐसे मत करो! चलो न! बहुत मन हो रहा है!”
“कहाँ चलना है?”
“कहीं नहीं! बस यहीं बैडरूम में! वहीं कर लेंगे! बहुत मन हो रहा है!”
“कर लेंगे? क्या कर लेंगे? किस बात का मन हो रहा है?” डेवी ने मुझे छेड़ते हुए कहा।
“तुम्हारा बाजा बजाने का मेरी जान!” मैंने भी डेवी को छेड़ा।
“हट्ट! बद्तमीज़!”
“अरे कर लो! नहीं तो ये सूज जाएगी और दर्द करेगी!”
“सूज जाएगी नहीं, सूज गई है!” डेवी ने शर्माते हुए कहा।
“इसीलिए तो! एक बार और कर दूँगा तो दर्द कम हो जायेगा, और तुमको अच्छा लगेगा। थोड़ी राहत भी मिलेगी!” मैं हँसा।
“हा हा हा!” डेवी भी जानती थी कि यह केवल एक बहाना था, “तुम्हारा तो बस एक ही, युनी-डायरेक्शनल चलता रहता है!”
“तुम कहो तो बाई-डायरेक्शनल चला दूँ?” डेवी का मंतव्य कुछ और था, लेकिन मैंने उसकी ही बात को द्विअर्थी बना दिया। उसको समझ नहीं आया, लेकिन बात आई गई हो गई।
उसने नीचे देखा और पाया कि मेरा लिंग मेरे शॉर्ट्स के सामने वाले हिस्से पर ज़ोर से दबाव डाल रहा है।
“वाह, सिंह साहब तो पूरी तरह तैयार हैं!” उसने मेरे लिंग पर गुदगुदी गुदगुदी करते हुए, एक दबी हुई हँसी निकाली।
मैं कराह उठा, “हाँ! और नहीं तो क्या!”
“अले मेले बच्चे को मेले शाथ शेक्श कलना है!”
वो मुझको छेड़ने की गरज से तुतला कर बोली। लेकिन मैंने उसको अनसुना कर दिया।
डेवी को अपनी बाँहों में खींचकर, मैंने उसे चूमा और अपने नितंबों को उसकी श्रोणि पर रगड़ा, जिससे वो मेरे लिंग के स्तम्भन को अपनी योनि पर महसूस कर सके। हम दोनों बहुत देर कर चूमते रहे; हमारी जीभें एक-दूसरे के मुँह को किसी पुरातत्ववेत्ता के समान खोजती रहीं - कोमलता से, लेकिन पूरे ढंग से! कुछ देर के बाद हम दोनों को ही साँस लेने में दिक्कत होने लगी, लिहाज़ा हमने चुम्बन तोड़ा।
“आह!” डेवी को अपने चूचक कठोर होते हुए महसूस होने लगे; उसने हाँफते हुए कहा, “एक तो आप खुद बदमाश हैं, और अब मुझे भी अपनी बदमाशियाँ सिखाते रहते हैं!”
“मेरी जान, बदमाशी करने में ही तो मज़ा है!” मैंने डेवी को छेड़ते हुए कहा, “चलिए जल्दी से बैडरूम में! थोड़ी और बदमाशियाँ करते हैं।”
मैंने डेवी का हाथ थाम लिया और उसे ‘हमारे’ शयनकक्ष में ले जाने लगा।
हमने अपने पीछे कमरे का दरवाजा बंद नहीं किया, और जल्दी जल्दी एक दूसरे के कपड़े उतारने लगे। जब मैंने अपने शॉर्ट्स को नीचे खींचा, तो मेरे लिंग को देख कर डेवी बोली,
“हाय भगवान्!!” डेवी शरमा गई, और मेरे स्तम्भन को अपनी मुट्ठी में पकड़ते हुए बोली, “तुम वाकई बहुत शरारती हो गए हो!”
“सब तुम्हारी गलती है।” मैं मुस्कुराया, उसके पास बैठ गया।
“हम्म.... सब अच्छी चीजें मेरी ही गलती हैं!” डेवी ने मुस्कुराते हुए कहा।
वो इस बात पर अचंभित थी कि मेरे लिंग की मोटाई पर उसकी मुट्ठी बंद होने के बाद भी, कम से कम एक उंगली की जगह छूट गई थी। जाहिर ही बात है, मेरा लिंग मोटा तो था! अंततः, अनायास ही सही, डेवी मेरे लिंग की नाप-तौल कर रही थी!
“ओह गॉड! ये तो मेरी कलाई से भी मोटा है।” उसने अंत में बोल ही दिया।
“अरे! अभी क्यों शर्मा रही हो? कल तो इसको पूरे का पूरा निगल लिया था तुमने! भूल गई?”
मैंने चुटकी ली, और उसकी चड्ढी को नीचे सरकाने लगा।
डेवी शर्म से लाल हो गई, और चंचलता से उसने मेरे गाल पर एक चपत लगाई, “मैंने इसे निगला नहीं था। तुमने ही इसको जबरदस्ती मेरे अंदर ठेल दिया था।”
डेवी शिकायत तो कर रही थी, लेकिन साथ ही साथ वो मुझे अपनी ब्लाउज उतरवाने में मदद भी कर रही थी।
“जबरदस्ती?”
“और नहीं तो क्या! अपनी बातों में बहका कर, अपनी मन मर्ज़ी कर ली मेरे साथ!”
“तुम्हारे मन का नहीं हुआ क्या?”
डेवी ने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया!
“कोई बात नहीं,” मैं भी कहाँ मैदान छोड़ने वाला था, “आज करते हैं सब कुछ तुम्हारी मन मर्ज़ी का!”
डेवी की मुस्कान अब और चौड़ी हो गई थी - उसके सुन्दर से दाँत चमकने लगे।
“क्या तुम नहीं चाहती हो कि मैं फिर से वही सब कुछ करूँ, जो कल किया था?” मैंने पूछा - नहीं, पूछा नहीं, केवल कहा!
अब तक डेवी पूरी तरह से नग्न हो कर मेरे सामने बैठी हुई थी। सच में, उसका सुस्वादु नग्न शरीर, खुद ही एक स्वादिष्ट और शानदार व्यंजन जैसा लग रहा था, जिसको बस तुरंत ही खा लेने की इच्छा हो रही थी।
मैंने डेवी को अपनी ओर खींचा और उसके स्तनों के बीच उसकी छाती पर चूम लिया!
“नोओओओ...” डेवी बड़ी अदा से इठलाई।
“मेरी जान, मैं तो कल से ही तुमको फिर से चोदने का इंतज़ार कर रहा हूँ।” मैंने आहें भरते हुए उसे बिस्तर पर नीचे धकेल दिया।
“गंदे कहीं के!”
“अरे, गन्दा क्यों?” मैंने डेवी की जाँघें खोलते हुए कहा।
“कैसा कैसा बोलते हो?”
“देसी आदमी हूँ, इसलिए चोदूँगा... विदेशी होता, तो फ़क करता!” मैंने हँसते हुए कहा।
मैंने उसकी योनि की ओर देखा - उसके भगोष्ठ कल के सम्भोग की रगड़ के कारण, आज सूजे हुए लग रहे थे। मेरा संदेह सही था। लेकिन क्या करें, मज़ा करना है तो इतना कुछ तो बर्दाश्त करना ही पड़ेगा उसको, और मुझको भी! डेवी का दर्द, मेरा भी तो दर था! डेवी ने मुझे उसको बड़ी दिलचस्पी से देखते हुए देखा, और अपनी जाँघों को फैलाना जारी रखा। उसका योनि-मुख कामुक गीलेपन से चमक रहा था। जाँघें फैलाते समय, प्रारंभ में, डेवी के माँसल भगोष्ठ आपस में चिपके हुए थे, लेकिन जैसे-जैसे वो अपनी जाँघें और फैलाती गई, उसके होंठ एक दूसरे से अलग हो गए और उसकी मुझको ग्रहण करने को तैयार, फिसलन से भरी, सँकरी प्रेम-सुरँग दिखाई देने लगी।
“योर पुसी इस सो ब्यूटीफुल!” मैंने उसकी सुंदरता की प्रशंसा करी!
डेवी अपनी प्रशंसा पर मुस्कुराई।
“कल मेरे ब्रेस्ट्स सुन्दर थे, और आज मेरी पुसी?” उसने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “क्या चक्कर है ठाकुर साहब? आप अपने मतलब के हिसाब से मेरी बढ़ाई करते हैं?”
“मतलब तो मुझे तुमसे पूरे से ही है! और तुम पूरी कमाल की हो! आई ऍम सो लकी!”
उसने मुस्कुरा कर मेरी ओर देखा, “आई ऍम आल्सो लकी! कुछ दिनों पहले तक तो मैं सोचती भी नहीं थी की इस लाइफ में मुझे किसी से मोहब्बत भी होगी! लेकिन तुम... तुम आए और सब कुछ बदल गया!”
मैंने इस बात पर डेवी को चूम लिया - मैं भी तो यही सब सोचता था! प्यार तो एक बार ही होता है न? लेकिन शायद मैं ग़लत था - कुछ लोग ख़ुशक़िस्मत होते हैं! मैं भी उनमे से एक था।
“सच में,” डेवी अपनी सोच में डूबते हुए बोली, “जो भी कुछ मेरे साथ हुआ, वो मैं कुछ भी सोच ही नहीं सकती थी!”
फिर जैसे वो अपनी सोच से बाहर निकलती हुई और मुस्कुराती हुई बोली, “पहले तो अपने छोटे भाई जैसे लड़के से प्यार हो गया,”
मैंने उसकी इस बात पर चौंकने का अभिनय करते हुए उसके एक चूचक पर हलके से चिकोटी काट ली! डेवी मेरी इस हरकत पर हँसते हुए आगे बोली, “और अब अपनी बड़ी बहन के सामने ही सेक्स कर रही हूँ!”
“अभी कहाँ? कुछ ही देर में!” मैंने शरारत से कहा।
डेवी ने फिर मेरे लिंग की ओर देखा - अब तक ये वापस अपने पूरे आकार में आ गया था। मेरे शरीर की हरकतों पर वो किसी मत्त हाथी के समान झूल रहा था!
“मैं सोच भी नहीं सकती थी, कि ये मेरे अंदर फिट भी हो पाएगा,” डेवी फुसफुसाते और सकुचाते हुए बोली, “लेकिन हो गया! ... न जाने कैसे!”
“रिमार्केबल! है ना?” मैंने डेवी की ही तर्ज़ पर कहा, “कि तुम्हारी इस नन्ही सी चूत ने इसको पूरे का पूरा निगल लिया!”
मेरे मज़ाक पर डेवी ने मेरे लिंग पर एक चिकोटी काट ली।
“आऊ!”
मैंने अपने लिंग को अपने हाथ में पकड़ लिया, और धीरे धीरे से उसके पूरी तरह से गीले हो चले चीरे पर फिराया। एक बार लिंग का सिरा गीला हो गया, तो मैंने अपने उसको डेवी की योनि के नरम, गीले होंठों के बीच में नीचे रखा और धीरे-धीरे धड़कते हुए अंग को नीचे की ओर धकेलने लगा।
“ओह गॉड,” डेवी ने हांफते हुए महसूस किया कि मेरा लिंग उसके अंदर फिसलते हुए प्रवेश कर रहा है, “तुम सच में बहुत बड़े हो।”
“ओह!” मैं उसकी गर्म और मखमली कोमलता में अपनी लंबाई को प्रविष्ट करने के लिए सावधानी से जोर देकर कराह उठा, “बहुत अच्छा लगता है तुम्हारे अंदर मेरी जान!!”
“गॉड! हाँ! मुझे भी ये मेरे अंदर अच्छा लगता है!” डेवी ने हांफते हुए कहा - जब उसने मेरी पूरी लंबाई अपने अंदर महसूस की।
जब हम दोनों की श्रोणियाँ आपस में चुम्बन लेने लगीं, तब हम दोनों ही कामुकता से हांफने लगे!
“ओहहहह, आई लव द वे यू लव मी!”
जैसे ही मैं उसकी योनि से अंदर और बाहर खिसकने लगा, डेवी सहम गई। कल से ही हम दोनों ही काम की अगन में जल रहे थे। हमारे प्रथम सम्भोग की संतुष्टि इतनी अधिक थी कि उसने हमारी सम्भोग की भूख बढ़ा दी। अब हम जानते थे कि जब भी हम मिलेंगे, तो बिना सम्भोग किये हमारा कुछ होने वाला नहीं था। डेवी को यह समझ थी - इस कारण से वो हमारी सम्भोग की क्षुदा की तीव्रता से सहम गई।
इस बीच, दूसरे कमरे में जयंती दी बेचैन और जिज्ञासु थी। वो हमें बात करते हुए सुन सकती थी। वो जानना चाहती थी कि हम क्या कर रहे हैं। जयंती दी हमेशा से ही जिज्ञासु थी... हमेशा से ही शरारती। और उनको डेवी से बहुत प्यार भी था। दीदी ने कुछ देर तक इंतजार किया, और फिर धीरे से, दबे पाँव हमारे बेडरूम की ओर बढ़ी। कमरे के दरवाज़े पर पहुँचते ही उसने हमारी आवाज़ें सुनी और उत्सुकता से उसने अंदर की तरफ झाँका। सेक्स को स्वयं करना एक अलग बात है, और किसी अन्य को यह सब अपने सामने करते हुए देखना एक अलग बात है! खासकर तब, जब सेक्स करने वालों में से एक आपकी अपनी, छोटी बहन हो! जयंती दीदी ने जैसे ही अपने सामने का नज़ारा देखा, वो कल्पनातीत रूप से चौंक गई! उनको लगा कि जैसे एक पल के लिए उनके दिल ने धड़कना ही बंद कर दिया।
उनके सामने मैं उनकी प्यारी छोटी बहन की सवारी कर रहा था, और उसकी योनि के अंदर बाहर धक्के लगा रहा था। मेरे हर धक्के पर जिस तरह से मेरे और देवयानी के शरीरों की मांस-पेशियाँ तरंगित हो रही थीं, उसको देख कर जयंती दीदी के दिल की धड़कनें बढ़ गईं। और वो लज्जा और उत्तेजना से हाँफने लगीं! हमारा सम्भोग पूरी तरह से निर्लज्ज था - बिना किसी की परवाह किए हम दोनों ही एक दूसरे में मस्त थे - लगभग पाशविक उत्तेजना! हम दोनों के शरीर जहाँ जुड़े हुए थे, जयंती दी वहाँ से अपनी आँखें ही नहीं हटा पा रही थी! मेरा लिंग, उनकी छोटी बहन की अनुमति और सहर्ष इच्छा से उसकी योनि के अंदर - बाहर शक्तिशाली रूप से फिसल रहा था! प्रत्येक धक्के के साथ, मेरे अंडकोष देवयानी के नितंबों पर थपकी मार रहे थे। जयंती दीदी मेरे लिंग के आकार पर भी चकित थी। उनके पति का लिंग मेरे लिंग के माप से छोटा था। यह सब देख कर उनको देवयानी की किस्मत से ईर्ष्या भी हुई, और ख़ुशी भी! सबसे आश्चर्य वाली बात यह थी कि हमको यौनाचार करते देख कर वो भी उत्तेजित हो गई थी। लेकिन फिर उनको इस बात पर शर्मिंदगी महसूस हुई कि वो हमें ऐसी अंतरंग अवस्था में देख रही हैं, और प्रतिक्रिया में उत्तेजित भी हो रही हैं। फिर अचानक ही - लेकिन मन मार कर - उन्होंने हमें देखना बंद कर दिया, और बड़ी अनिच्छा से वो दूसरे कमरे में चली गईं।
दूसरी ओर, मैं अपने हर धक्के के साथ, खुद को डेवी के अंदर जितना संभव हो सके, उतना अंदर ले जाने का प्रयास कर रहा था। यह एक तरीके का शैतानी भरा खेल था - जिसको देवयानी भी समझ रही थी। कामोत्तेजना की पराकाष्ठा पर पहुँच कर भी वो इस बात को जानने के बाद अपना मुस्कुराना नहीं रोक सकी। उधर मैं हर धक्के पर हल्की सी गुर्राहट और कराह निकाल रहा था - कोई कुछ भी कहे - एक जोश भरे सम्भोग में ताक़त बहुत जाया होती है! देवयानी के अधिक से अधिक मज़ा दिलाने के लिए मैं अपने लिंग को उसके अंदर जितना हो सकता था, उतना गहरा घुसा रहा था। अंततः उसने अपने चरम पर पहुँच कर अपने पैरों को मेरी कमर के चारों ओर लपेट लिया, और मुझे अपनी योनि में और भी गहराई तक खींच लिया। आठ दस धक्कों के बाद मैंने भी अपना चरम प्राप्त कर लिया, लेकिन अभी भी धक्के लगाना बंद नहीं किया। उसकी वजह से मेरे लिंग की लम्बाई के इर्द गिर्द से मेरा वीर्य बाहर निकलने लगा। अब हर धक्के से मेरा वीर्य, और देवयानी के प्रेम-रस का मिश्रण बाहर आ रहा था। लेकिन फिर भी जब तक स्तम्भन में कठोरता थी, तब तक मैं धक्के लगाता रहा और अपना बीज उसके अंदर भरता - निकालता रहा; और फिर अंत में, उसके ऊपर ही गिर पड़ा।
इतने श्रमसाध्य सम्भोग के बाद मुझे थकावट सी महसूस होने लगी, और हम दोनों ही आलिंगनबद्ध हो कर बहुत देर तक आराम करने लगे! बिना कुछ बोले! सच में - सम्भोग के बाद अगर केवल उस अद्भुत अनुभूति का आनंद उठाया जाए, तो उसका आनंद और बढ़ जाता है! हाँलाकि मेरे लिंग का स्तम्भन कम हो गया था, लेकिन अभी भी मैं और डेवी अपने जननांगों से जुड़े हुए थे। एक हलकी सी भी हरकत से मैं उससे बाहर निकल सकता था। तो अंततः मेरा लिंग उसकी योनि से बाहर निकल ही गया। अब जब हमारा बंधन टूट गया, तो मैं बिस्तर से उठा और बाथरूम में जाकर खुद को साफ करने लगा। साफ़ सफाई के बाद, देवयानी को साफ करने के लिए मग में थोड़ा पानी और एक छोटा सा तौलिया लेकर वापस लौटा।
“इजैकुलेशन के बाद तुम्हारा छुन्नू कितना प्यारा सा लगता है, जानू!” उसने कहा और धीरे से हँसी, “उसके पहले ऐसा लगता है कि इसमें कितना गुस्सा भरा हुआ है... किसी गुण्डे जैसा! लेकिन उसके बाद! उसके बाद ये एक बहुत खुश, उछलता और कूदता हुआ बच्चे जैसा दिखता है। क्यूट!”
“तुमको कौन सा रूप पसंद है - गुण्डे वाला या बच्चे वाला?”
“दोनों!” वो प्यार से मुस्कुराई, “मुझे आप पसंद हैं, मेरी जान!”
मैं केवल मुस्कुराया। क्या कहूँ? मैंने देवयानी की योनि की साफ़ सफ़ाई करनी शुरू कर दी।
“मुझे नहीं लगता कि आपने पहले इस तरह का काम किया है?”
‘क्या कह रही थी?’ मुझे डेवी की बात समझ में नहीं आई।
“क्या मतलब है? मैं समझा नहीं!”
“मेरा मतलब है, सेक्स!” उसने शरमाते हुए कहा।
मैं हँसा - कैसी बुद्धू लड़की है - “मैं पहले एक शादीशुदा आदमी रह चुका हूँ, डेवी! याद है? आपको क्या लगता है कि एक शादीशुदा आदमी सेक्स नहीं करेगा, हम्म?”
“नहीं। मेरा मतलब... मेरा मतलब गैबी से नहीं था। मेरा मतलब है, दूसरी औरतों से था।”
“दूसरी औरतें? हा हा! किसी आदमी से उसके सेक्सुअल पास्ट के बारे में कभी मत पूछना,” मैं हँसा, “लेकिन मैं इस समय तुमको एक बात का आश्वासन ज़रूर दे सकता हूँ - मैं जब तक तुम्हारे साथ हूँ, तब तक केवल तुम्हारे साथ हूँ!”
“दिस इस क्रिप्टिक!” देवयानी ने मीठी शिकातय करी।
किसी भी सम्बन्ध में पूरी ईमानदारी आवश्यक है - मुझे यह बात समझ में पहले भी आती थी और अभी भी।
“डेवी, क्या तुमको कोई परेशानी होगी, या कोई ऑब्जेक्शन होगा, अगर मेरी गैबी के अलावा कोई और सेक्सुअल पार्टनर रही हो?”
“आई डोंट नो!” डेवी ने असमंजस से कहा, “हो सकता है! नहीं?”
“लेकिन आपने भी तो मेरे अलावा किसी और के साथ सेक्स किया है!”
“आई नो! आई थिंक... मुझे शिकायत नहीं होगी - बस एक जेलेसी (ईर्ष्या) वाली फीलिंग होगी कि मुझसे पहले, और गैबी के अलावा, किसी और ने भी आपके साथ इस अद्भुत अनुभव का मज़ा लिया है।”
“हा हा! अरे, यह बात तो मैं भी कह सकता हूँ, न।” मैं मुस्कराया।
“क्या आपको लगता है कि मेरे साथ सेक्स करना एक अद्भुत फीलिंग होती है?”
“बिल्कुल, डेवी! तुम्हारे साथ मुझे सेक्स करने में बहुत मज़ा आता है!” मैंने सहमति व्यक्त की, “और अब हम जल्दी ही एक साथ हो जाएँगे - मैं तो यही सोच सोच कर खुश होता रहता हूँ,” मैं रुका, और फिर आगे जोड़ा, “लेकिन ओनेस्टली, मुझे लगता है कि किसी वर्जिन लड़की को डिफ्लावर करने का अनुभव दिलचस्प होगा!”
मेरी बात पर डेवी ने मेरे कंधे पर चपत लगाई, “डिफ्लॉवरिंग? बद्तमीज़! क्या तुम आदमी लोग ऐसे ही बात करते हो? कितनी ओछी बात!” उसने फिर से चपत लगाने के लिए हाथ उठाया।
“अरे यार! अगर मैं अपनी बीवी से खुल कर बातें नहीं कर सकता, तो और किससे कर सकता हूँ?” मैंने डेवी के उठे हुए हाथ को चूमते है कहा, “और बाई दी वे मैडम, मैं अपनी सेक्स लाइफ के दूसरे आदमियों से बात नहीं करता।”
मेरी बात पर डेवी संतुष्ट हुए, “हम्म... डिफ्लॉवर! यह एक इंटरेस्टिंग वर्ड है। लेकिन यह वर्ड है क्यों?”
उत्तर देने से पहले मैंने देवयानी की जाँघें खोलीं, और उसकी ताज़ी ताज़ी भोगी गई योनि को अपनी उँगलियों से सहलाते हुए कहा, “देखो इसको? देखने पर यह किसी फूल की तरह लगती है! है ना? ट्यूलिप की कली जैसी? लेकिन जब इसमें पीनस घुसता है तो ऐसा लगता है न कि इस कली को जबरन खोल दिया गया हो! है न?” मैंने देवयानी के योनि-पुष्प की पंखुड़ियों को खोलते हुए आगे कहा, “जैसे ये - जैसे तुम्हारी कली की पंखुड़ियाँ खिल गई हैं!”
मेरी बात पर देवयानी शरमा गई, “ठीक है बाबा, समझ गई कि यह एक मेटाफर (रूपक) है। लेकिन... मैं... मुझे कोई जबरदस्ती जैसा नहीं लग रहा है!”
“बिलकूल भी नही! मैंने तुमसे जबरदस्ती नहीं, तुमसे प्यार किया है। और तुमने भी!” मैंने कहा; देवयानी की प्रतिक्रिया का इंतजार किया और उसके कुछ न कहने पर आगे जोड़ा, “हम तो मज़े करते हैं न!”
“क्या गैबी कुंवारी थी?” डेवी ने मासूमियत से पूछा।
मैंने पहले से ही सोच रखा था कि मैं डेवी को अपने रिश्तों के बारे में पूरी ईमानदारी से बता दूँगा। वैसे भी यह कोई छुपाने वाली बात नहीं थी।
“नहीं।”
“डिड दैट बॉदर यू?”
“नहीं यार। कैसी बात करती हो? हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे। हम एक दूसरे के लिए बने थे। हाऊ कुड दैट बॉदर मी? वैसे भी, उसने मुझसे मिलने से पहले जो कुछ किया, वो मेरे लिए कोई ख़ास मायने नहीं रखता था।”
पुरानी बातें याद आने लगीं - मुझे लग रहा था कुछ देर गैबी के बारे में बातें कीं तो मेरे आँसू निकलने लगेंगे!
“अमर,” देवयानी ने कोमलता से कहना शुरू किया, “मैं भी वर्जिन नहीं हूँ! विल दैट बॉदर यू?”
“इट विल बॉदर मी, इफ यू कीप टॉकिंग अबाउट विर्जिनिटी !”
लेकिन अभी भी डेवी को मेरी बात समझ नहीं आई, “हम्म्म तो,” उसने घबराते हुए कहना शुरू किया, “क्या तुम्हारी कोई और भी... यू नो, कोई और सहेली थी? गैबी के अलावा?”
“हाँ,”
“कौन?” उसकी आवाज डूब गई।