नींव - पहली लड़की - Update 19
हमको ऐसे बोलते देख कर माँ मुस्कुरा दीं, और अपने कमरे में चली गईं आराम करने। बाथरूम से हम सीधा मेरे कमरे में चले गए। जब हम अपने कमरे के अंदर गए, तो मैंने कमरे के किवाड़ लगा लिए। आज यह मैंने पहली बार किया था। न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि रचना और मुझे थोड़ी प्राइवेसी चाहिए। रचना ने भी यह नोटिस किया, लेकिन वो कुछ बोली नहीं। हम जब बिस्तर पर लेट गए, तब मैंने रचना से पूछा,
“रचना, तुमको कैसा लड़का चाहिए?”
“किसलिए?” वो जानती थी, लेकिन जान बूझ कर नादान बन रही थी।
“अरे शादी करने के लिए! कैसे लड़के की बीवी बनना चाहोगी?”
“तुम में क्या खराबी है?”
“मतलब मैं तुम्हारे लिए अच्छा हूँ?”
“हाँ! तुम अच्छे हो। हैंडसम दिखते हो। तुम्हारे माँ और डैड भी कूल हैं!” वो आगे कुछ कहना चाहती थी, लेकिन कहते कहते रुक गई।
मैंने कुछ पल इंतज़ार किया कि शायद वो और कुछ बोले, लेकिन जब उसने कुछ नहीं कहा, तो मैंने ही कहा,
“मैं तुमको प्यार कर लूँ?”
“मतलब?”
“मतलब, एस अ हस्बैंड?”
“अच्छा जी? मतलब आपका छुन्नू अभी अभी खड़ा होना शुरू हुआ है, और आपको अभी अभी मेरा हस्बैंड भी बनना है?”
“करने दो न?”
“हा हा हा! मैंने रोका ही कब है?”
रचना का यह कहना ही था कि मैंने लपक कर उसके कुर्ते का बटन खोलना शुरू कर दिया। मेरी अधीरता देख कर वो खिलखिला कर हँसने लगी। मैंने उसकी टी-शर्ट / ब्लाउज / शर्ट तो उतारी थी, लेकिन कुरता कभी नहीं। खैर, निर्वस्त्र करने की प्रक्रिया तो एक जैसी ही होती है। कुरता उतरा तो मैंने देखा कि उसने ब्रा पहनी हुई है।
“इसको क्यों पहना?” मुझे उत्सुकता हुई।
“बिना ब्रा पहने कैसे घर से बाहर निकलूँगी? मम्मी जान खा लेंगी!”
“वो क्यों?”
“अरे - इसको नहीं पहनती हूँ तो कपड़े के नीचे से मेरे निप्पल दिखने लगते हैं। और ब्रेस्ट्स को भी सपोर्ट मिलता है।”
“ओह तो इसलिए माँ भी बाहर जाते समय इनको पहनती हैं?”
“और क्या! नहीं तो आदमियों की आँखें खा लें हमको!”
मैंने उसके स्तनों की त्वचा को छुआ,
“कितने सॉफ्ट हैं तुम्हारे ब्रेस्ट्स!” फिर मैंने उनका आकार देखा, “थोड़े बड़े लग रहे हैं, पहले से!”
“हा हा! हाँ, माँ के हाथ का खाना मेरे शरीर को लग रहा है!”
“इतना कसा हुआ है! दर्द नहीं होता?”
“अरे बहुत दर्द होता है! मुझे इसे पहनने से नफरत है!”
कह कर वो मुड़ गई; उसकी पीठ मेरी तरफ हो गई। मेरी ट्यूबलाइट जलने में कुछ समय लगा, फिर समझा कि वो मुझे ब्रा हटाने या उतारने के लिए कह रही है। मैंने देखा कि पीठ पर ब्रा के पट्टे पर दो छोटे छोटे हुक लगे हुए थे। मैंने उनको खोला, और उसकी ब्रा उतार दी। उसके स्तनों और पीठ पर जहाँ जहाँ ब्रा का किनारा था, वहाँ वहाँ लाल निशान पड़ गए थे।
“अरे यार! इस पर कुछ लगा दूँ? कोई क्रीम?”
“ओह, ये? नहीं, अभी ठीक हो जायेगा।” लेकिन अपने लिए मेरी चिंता देख कर रचना प्रभावित ज़रूर हुई।
मैंने उन निशानों पर सहलाते हुए उंगली चलाई, तो रचना की आह निकल गई। जल्दी ही मैं उसके चूचकों को छूने लगा। मैंने एक स्तन को हाथ में पकड़ कर थोड़ा सा दबाया - फलस्वरूप उसका चूचक सामने की तरफ और उभर आया - मानों मुझे आमंत्रित कर रहा हो, या फिर मानों वो मेरे मुँह में आने को लालायित हो रहा हो। मैंने उस कोमल अंग को निराश नहीं होने दिया, और मुँह में भर कर उसको चूसने लगा। उसके कोमल चूचक की अनुभूति मेरे मुँह में हमेशा की ही तरह अद्भुत थी। रचना मीठे दर्द से कराह उठी, और मुस्कुरा दी। मैं उसकी सांसों को गहरी होते हुए सुन रहा था, जैसा कि उसके साथ हमेशा ही होता था। एक स्तन को पीते पीते ही मेरा लिंग पुनः स्तंभित हो गया। जब रचना ने यह देखा तो वो बहुत खुश हुई और हैरान भी!
“अरे वाह! तुम्हारे छुन्नू जी तो फिर से सल्यूट मारने लगे!”
मैं पीते पीते ही मुस्कुराया।
“डैडी का तो इतनी जल्दी कभी खड़ा नहीं होता!”
“आर यू इम्प्रेस्सड?” मैंने पूछ ही लिया।
उसने हाँ में सर हिलाया, “बहुत!”
“तो फिर ईनाम?”
“हा हा ... होने वाले पतिदेव जी, आपने अपना ईनाम अपने हाथ में पकड़ा हुआ है!” उसने मुझे प्रसन्नतापूर्वक याद दिलाया।
“बीवी जी, अपना दूध तो आप मुझे हमेशा ही पिलाती हैं। इस बार मुझे अपने अंदर जाने दीजिये न?”
रचना शरमा कर हँसी। वह समझ गई कि मैं क्या चाहता हूं। मुझे लगता है कि वो भी मन ही मन हमारे समागम की संभावना के बारे में सोच रही होगी। उसने संकोच नहीं किया। उसने अपनी शलवार का नाड़ा खोलना शुरू किया, और एक ही बार में उसने अपनी शलवार और चड्ढी दोनों ही नीचे की तरफ़ खिसका दिया। आज महीनों बाद वो इतने करीब वो बाद मेरे सामने नंगी बैठी हुई थी। वह बिस्तर पर लेट गई और मुझे ठीक से देखने के लिए उसने अपनी जाँघें फैला दी। साथ ही साथ उसने मेरे उत्तेजित लिंग पर अपना हाथ फेर दिया।
“तुम एक शरारती लड़के हो,” वह हंसी, “मैं तुमसे बड़ी हूँ, लेकिन मुझको नंगा करने में तुमको शर्म नहीं आती?”
मैं मुस्कराया, “तुम मेरी बीवी हो!”
उसने मेरा हाथ थाम लिया और मुझे अपनी ओर खींच लिया। जब मैं उसके ऊपर आ गया तो उसने मेरे माथे को चूमा और फुसफुसाते हुए कहा, “तुम एक बहुत हैंडसम और एक बहुत शरारती लड़के हो!”
मैं मुस्कुराया।
“लेकिन जब हमारी शादी होगी, तब मैं तुम्हारे पैर नहीं छूवूँगी! तुम मुझसे छोटे हो। तुम मेरे पैर छूना!”
मैं उठा, और उठ कर उसके पैरों की तरफ गया। मैंने बारी बारी से उसके दोनों पैरों की अपने सर से लगाया और चूमा। वो मेरी इस हरकत से दंग रह गई। मैंने अपने सामने नंगी लेटी रचना को प्यार से देखा। कितनी सुन्दर लड़की! माँ का सपना था कि वो हमारे घर में आए! शायद अब ये होने वाला था। मेरा लिंग रक्त प्रवाह के कारण झटके खा रहा था। रचना बहुत कमसिन, छरहरी, लेकिन मज़बूत लड़की थी! उसके पैर लंबे और कमर क्षीण लग रही थी; उसके नितम्ब गोल नहीं, बल्कि अंडाकार, और ठोस थे! उसकी योनि बाल वसीम के जैसे ही घुँघराले और थोड़े कड़े हो गए थे। योनि के दोनों होंठ अभी भी पतले ही थे; उनमें कोई परिवर्तन नहीं आया था।
“पसंद आई अपनी बीवी?” उसने बड़ी कोमलता, बड़े स्नेह से पूछा।
मैंने ‘हाँ’ सर हिलाया, और वो भी बड़े उत्साह से।
“और मैं?”
“तुम तो मुझे हमेशा से पसंद हो! मैं किसी बन्दर के पास थोड़े ही जाऊँगी हमेशा! आओ, अब अपना ईनाम ले लो। धीरे धीरे से अंदर आना! ठीक है?”
माँ और डैड ने सिखाया तो था, लेकिन न जाने क्यों मुझे लग रहा था कि कुछ कमी है मेरे ज्ञान में। ये वैसा ही है जैसे टीवी पर देख कर तैराकी सीखना! ख़ैर, मैंने अपने लिंग का सर उसकी योनि के द्वार पर टिका दिया।
“बहुत धीरे धीरे! ठीक है?” उसने मुझे फिर से चेताया।
“तुमने पहले कभी किया है यह?” मैंने पूछ लिया।
“तुम्हें क्या लगता है कि मैं क्या हूँ? वेश्या?” रचना का सारा ढंग एक झटके में बदल गया।
“आई ऍम सॉरी यार! मेरा मतलब उस तरह से नहीं था। मैं बस ये कहना चाहता हूँ मुझे नहीं पता कि कैसे करना है। यदि तुमको मालूम हो, तो तुम मुझे गाइड कर देना! प्लीज!”
मेरी बात का उस पर सही प्रभाव पड़ा। वो फिर से शांत हो गई,
“ओह। अच्छा! मुझे लगता है कि हम खुद ही जान जाएँगे कि कैसे करना है। बस इसे मेरे अंदर धीरे-धीरे स्लाइड करने की कोशिश करो। धीरे धीरे! मुझे अंदर कोई चोट नहीं चाहिए!”
मतलब मुझे डैड ने जो कुछ सिखाया था, उसी पर पूरा भरोसा करना था। अपने लिंग को पकड़कर, मैंने उसकी योनि की फाँकों के बीच फँसाया और धीरे से दबाव बनाया। रचना प्रतिक्रिया में अपनी योनि का मुँह बंद कर ले रही थी, लेकिन धीरे धीरे करने से लिंग का कुछ हिस्सा उसके अंदर चला गया। मुझे यह देखकर खुशी हुई। रचना सांस रोके अपने अंदर होने वाली इस घुसपैठ को महसूस कर रही थी। जब मैं रुका, तो उसने साँस वापस भरी। मैं उसी स्थिति में रुका रहा, और अनजाने में ही उसकी योनि को इस अपरिचित घुसपैठ के अनुकूल होने दिया।
“तुम ठीक हो?” मैं उसके माथे से बालों की लटें हटाते हुए पूछा।
उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“मैं तुम्हारे अंदर आ गया हूँ, देखो?”
रचना ने नीचे की ओर देखा, जहाँ हम जुड़े हुए थे,
“तुम थोड़ा और अंदर आ सकते हो!”
हम दोनों को ही नहीं पता था कि हमारे पहले समागम के दौरान हम किस तरह के अनुभव की उम्मीद करें! लेकिन जैसे जैसे मैं उसके अंदर घुसता गया, रचना के चेहरे पर आश्चर्य, प्रसन्नता, और दर्द का मिला जुला भाव दिखता गया। अंत में उसने आँखें खोल कर मुझे आश्चर्य भरी निगाहों से देखा,
“हे भगवान! अमर... यह बहुत बड़ा है!”
“क्या? मेरा छुन्नू?”
“हाँ!”
“छुन्नू तो उतना बड़ा नहीं है अभी! लेकिन तुम्हारी चूत छोटी सी ज़रूर है।”
रचना ने उत्तर में मेरे गाल पर प्यार भरी चपत लगाईं, “बदमाश लड़का!”
उसकी बातों से मुझे लगा कि जैसे मेरा लिंग उसके अंदर जा कर थोड़ा मोटा हो गया है। मैं उस समय बिलकुल भी हिल-डुल नहीं रहा था, और रचना के अंदर उसी स्थिति में था। योनि के भीतर रहने वाली भावना का वर्णन कैसे किया जाए? यह वैसा सुखद एहसास नहीं था, जैसा कि मेरे माँ और डैड दावा कर रहे थे। लेकिन उसके अंदर जा कर अच्छा लग रहा था - उसकी योनि की माँस-पेशियाँ मेरे लिंग की लंबाई को पकड़े हुए थीं। अंदर गर्मी भी थी, और चिकनाई भी।
“रुके क्यों हो? करो न?”
“क्या?”
“मुझसे प्यार!”
मुझे लगता है कि आप अधिक समय तक प्राकृतिक, सहज-ज्ञान को रोक कर नहीं रख सकते हैं। मैंने लिंग को थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर वापस अंदर डाल दिया। धीरे से।
“फिर से करो?” उसने कहा।
मैंने फिर से किया। उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया। हमारी सहज-वृत्ति हमारे मैथुन को दिशा दे रही थी। चार पांच बार धीरे धीरे करने के बाद मैंने इस बार थोड़ा तेज़ से धक्का लगाया। रचना ने एक दम घुटने वाली आह निकाली। मैंने न जाने क्यों, उसकी आह की परवाह नहीं की, और फिर से उसी गति में धक्का लगाया। रचना भी समझ गई होगी कि जिस पोजीशन में वो थी, उसमे रह कर मुझ पर नियंत्रण कर पाना मुश्किल था। उसने खुद को मेरे रहमोकरम पर छोड़ दिया, और मैंने उसके साथ धीमे और स्थिर लय में सम्भोग करना शुरू कर दिया। शायद उत्तेजना के कारण रचना का मुँह खुल गया। उसकी योनि की आंतरिक माँस-पेशियां मुझे सिकुड़ती हुई महसूस हुईं।
“ओह अमर। आखिरकार तुमने मुझे अपनी बीवी बना ही लिया! ओह्ह्ह! बहुत अच्छा लग रहा है।” रचना बुदबुदाई, “जो तुम कर रहे हो वही करते रहो।”
तो मैंने वही करना जारी रखा। लगभग दो मिनट बाद मैंने महसूस किया कि रचना का शरीर अकड़ने लगा; उसकी आँखें संकुचित हो गई थी, और उसकी उँगलियाँ मेरी बाँहों में जैसे घुसने को बेताब हो रही थी। और मुझे यह भी लगा कि वो धीरे धीरे रो भी रही है। मुझे नहीं मालूम था, लेकिन रचना का सारा शरीर सुख-सागर में गोते लगा रहा था। चूँकि यह मेरा भी पहला अनुभव था, इसलिए मुझे नहीं पता था कि हमारे मैथुन से क्या उम्मीद की जाए! लगभग उसी समय, मेरे लिंग से भी वीर्य की बूँदें छूटीं! एक बार, दूसरी बार, और फिर तीसरी बार! मेरा शरीर भी थरथरा रहा था। रचना ने मेरे शरीर में यह परिवर्तन महसूस किया, तो उसकी आँखें खुशी से चमक उठीं। एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया में, मैंने इस आनंद को थोड़ा और बढ़ाने की उम्मीद में, धक्के लगाने की गति धीमी कर दी। फिर मैंने चौथी बार भी वही आनंद महसूस किया, जो अभी तीन बार किया था। इस बार मैं आनंद से कराह उठा।
जैसे ही मेरा स्खलन समाप्त हुआ, रचना भी अपने चरमोत्कर्ष से बाहर आ गई, लेकिन थकावट के कारण लेटी रही। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, मुझे अपनी ओर खींच लिया और फिर से सामान्य रूप से साँस लेने लगी। न जाने क्यों उसको चूमने का मन हुआ। मैंने उसके कान को चूमा, फिर गले को, और फिर उसके स्तनों के बीच में अपना चेहरा छुपा दिया। रचना मुझे अपने सीने में भींचे लेटी रही।
वो कोमलता से बोली, “क्या तुमको अपना ईनाम पसंद आया?”
“हाँ। बहुत!”
मेरी बात पर हम दोनों ही मुस्कुराने लगे।
“तुझे तो आया मज़ा.... तुझे तो सूझी हँसी.... मेरी तो जान फँसी रे....” उसने एक बहुत ही प्रसिद्द गाने की पंक्तियाँ गुनगुनाई।
“अरे! तुम्हारी जान कैसे फंसी?”
“वाह जी! पहले तो मार मार के मेरी छोटी सी चूत का भरता बना दिया, और अब पूछते हैं कि मेरी जान कैसे फंसी! अगर मुझे बच्चा ठहर गया, तो मेरे साथ साथ तेरी जान भी फंस जाएगी!”
“सच में ऐसा हो सकता है क्या?”
“उम्म्म नहीं.... शायद। चांस तो कम है। लेकिन हमको सावधान रहना चाहिए।”
रचना ने कहा और बिस्तर से उठ बैठी। इसके तुरंत बाद हमने कपड़े पहने। मै बिस्तर पर बैठा उसको अपने बाल सँवारते हुए देख रहा था। उसने मुझे आईने में मेरे प्रतिबिंब को देखा,
“क्या?” वह मुस्कुराई और धीरे से पूछा।
“रचना?”
“हाँ?”
“क्या हम इसे फिर से करेंगे कभी?”
उसका बाल सँवारना रुक गया, “ओह, अमर।”
“अरे! मैं तो बस पूछ रहा था।” मैंने कहा।
“हा हा! करेंगे! करेंगे!” उसने कहा, “लेकिन किसी को बताना मत!” फिर थोड़ा सोच कर, “उम्म्म माँ और डैड के अलावा किसी और को नहीं! ठीक है? क्योंकि... क्योंकि…” वो बोलते बोलते रुक गई, जैसे उपयुक्त शब्दों की तलाश कर रही हो, “क्योंकि... बाकी लोग कहेंगे कि यह सब नहीं करना चाहिए। या यह कि प्यार करना गन्दा काम है। और फिर हम दोनों मुश्किल में पड़ जाएंगे। हमारे साथ साथ शायद हमारे पेरेंट्स भी।”
मैंने पूछा, “लेकिन किसी और को हम क्या करते हैं वो देख कर बुरा क्यों लगना चाहिए?”
“लोग ऐसे ही होते हैं अमर,” रचना बड़े सयानेपन से बोली, “दूसरों के काम में टाँग लगाने वाले!”
“हम्म्म!” मैंने कुछ देर सोचा और कहा, “रचना, हम ये दोबारा करें या नहीं, लेकिन तुम हमेशा मेरी दोस्त रहना। मेरी बेस्ट फ्रेंड! तुम मुझे सबसे अच्छी लगती हो!”
“वाक़ई?” उसकी आँखों में एक चमक सी उठी।
“हाँ। मुझे तुम्हारा साथ बहुत अच्छा लगता है!”
वह मुस्कुराई, “जानकर खुशी हुई।”
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जीवन का पहला सेक्स अनुभव हमेशा याद रहता है। कोई तीस बत्तीस साल पहले हुई यह घटना मुझे आज भी याद है। सब कुछ मेरे ज़ेहन में ताज़ा तरीन है!
इस प्रकार के अनोखे अनुभव और लोगों से शेयर करने का मन तो होता है, लेकिन मैंने किसी को नहीं बताया - न तो माँ को और न ही डैड को। लेकिन रचना से रहा नहीं गया। उसने माँ से सारी बातें कह दीं। उसी दिन। कमरे से निकल कर जब मैं कोई और काम कर रहा था तब रचना ने हमारे यौन सम्बन्ध का पूरा ब्यौरा माँ को दे दिया। माँ ने उसकी बात को पूरे ध्यान से सुना और उसके बाद उन्होंने जो किया वह अद्भुत था। माँ ने रचना को गले से लगाया और उसको चूम लिया।
“मेरी बिटिया!” माँ ने स्नेह से कहा, “तुम जुग जुग जियो! अगर तू आगे चल कर मेरे अमर को अपनाना चाहेगी, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।”
“हा हा हा! माँ, मैं तो बस आपके लिए ही इस बन्दर से शादी करूँगी।” रचना के कहने के अंदाज़ पर माँ खिलखिला कर हँसने लगीं, “मुझे तो आप माँ के रूप में मिल जाएँ तो आनंद आ जाए! मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ, आपको अपनी माँ मानती हूँ, और मुझे मालूम है कि आपके साथ मैं बहुत खुश रहूंगी!” उसने कहा।
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कहानी जारी रहेगी