शुरुआत में सब कुछ ठीक था परन्तु जैसे जैसे मसूरी में आने वाले पर्यटकों कि संख्या बढ़ने लगी कई नई और अत्याधुनिक होटले खुलती गई, परन्तु मयूर के पिता अपनी होटल का मूल स्वरूप बदलने को तैयार नही थे और ऑनलाइन बुकिंग और बड़ी बड़ी होटलों के बीच उनकी होटल दब सी गयी थी सीजन में तो कोई दिक्कत नही थी पर बारिश के मौसम में वो शाम को एक आध चक्कर बस स्टैंड का लगा लिया करता था, और कई बार उसे अपने होटल के लिए ग्राहक मिल जाते थे, और आज भी कुछ ऐसा ही दिन था, परन्तु उसे कुछ खास उम्मीद नही थी कि कोई पर्यटक उसे यहाँ मिलेगा, फिर भी उसने सोचा एक ट्राय मरने में क्या हर्ज है |
बस के चिर परिचित हॉर्न कि आवाज ने उसकी तन्द्रा भंग कर दी उसने देखा बस मोड़ काटकर अपने स्टॉपेज पर रुक गयी थी वो उठा लेकिन आगे नहीं बढ़ा क्योकि उसने सोचा बारिश में भीगने से अच्छा है कुछ देर यही रुक जाता हूँ, अगर कोई टूरिस्ट होगा तो ही आगे जाऊंगा |
उतरने वाले पेसेंजर में सभी उसके जाने पहचाने लोग थे जिनसे उसको कुछ खास लेना देना नही था वो तो ऐसे चेहरे तलाशता था जिनको उसने पहले कभी नही देखा हो, एक एक करके बस में से उतरती सवारी में से सभी स्कूल जाने वाले स्टूडेंट, दून से नौकरी करके आने वाले अंकल आंटीस और लोकल रहवासी ही थे, मतलब आज कोई सैलानी नही आया था वो मुड़ा और उसने अपने पर्स में से पैसे निकाल कर चाय वाले को दिए और उसकी नजर वापिस बस कि तरफ कि और तभी बस के पायदान पर कुछ हलचल हुई - पहले एक लाल बेग आया और बस के दरवाजे पर स्थित पायदान कि पहली और आखरी पंक्ति के बीच में फंस गया | एक बड़ा लाल बेग मतलब निश्चित ही कोई सैलानी है, उस समय बस स्टैंड किसी और होटल का कोई और एजेंट नही था उसने सोचा चलकर देखना चाहिए शायद कोई ग्राहक मिल जाये वो आगे बढ़ा और बस कि उतरने कि सीढियों तक पहुचा, बादल अपने प्लान को अंजाम देने कि पुरजोर कोशिश में लगे थे और उनका क्या प्लान था ये वो ही जानते थे
सीढियों पर पहुच कर रुका और उसने स्थिति का जाएजा लिया लाल ट्राली बेग रस्ते में कुछ इस तरह फंस गया था कि न बाहर निकाल रहा था और न ही अन्दर कि तरफ वापिस जा रहा था बेग का मालिक उसको अन्दर से धक्का दे रहा था पर बेग आगे खिसकने का नाम ही नहीं ले रहा था |
मयूर को अंदाजा लगा कि बेग के आगे एक पॉकेट था जिसमे कुछ सामान रखा हुआ था बेग से अगर आगे वाली चैन खोल कर सामान निकाल लीया जाये तो वो आसानी से बाहर आ जायेगा उसने कहा - रुको अगर हम पॉकेट का सामान निकाल ले तो बेग आसानी से बाहर आ जायेगा बारिश अपने प्लान के हिसाब से बहुत तेज हो गयी थी, और उसने बेग कि चैन खोली उसमे कुछ मेकअप के सामान के अलावा जो चीज रास्ता रोक रही थी वो थी एक मोटी किताब | उसने किताब निकाल कर अपने हाथ में ले ली,इधर उसने किताब निकली और उधर ऊपर से बेग के मालिक ने एक जोरदार धक्का दिया शायद उसे नही मालूम था कि मयूर ने किताब निकाल ली है, और अब बेग पहले कि तुलना में इतना पतला हो चूका है कि आसानी से बाहर आ जाये पूरा बेग फिसल कर मयूर के हाथ में आ गया और वो लडखडा गया | अगर उसका बदन पहाड़ी मजबूत नही होता तो इस धक्के को वो नही झेल पाता और कीचड़ में गिर जाता परन्तु उसने लडखडाते हुए अपना संतुलन संभाला और कैसे तैसे उस बेग को अपने हाथ से छोड़कर जमीन पर रखा, उस बड़े बेग के दरवाजे से हटते ही उसके दोनों तरफ का दृश्य साफ दिखाई पड़ने लगा और मयूर ने अपना संतुलन सम्भालते हुए बस के अन्दर गुस्से से देखा पर यह क्या अन्दर का दृश्य देखते ही उसका सारा गुस्सा रफूचक्कर हो गया अन्दर दरवाजे पर एक उसकी उम्र कि लड़की खड़ी थी, वो सामान्य चेहरे वाली सांवली सी लडकी थी, उसकी आखे बड़ी और काली, तीखे नाक नक्श, और कुल मिला कर उसका चेहरा आकर्षक था, उसने सादगी से लाइट पिंक कलर कि चिकेन की कुर्ती और वाइट लेगी पहनी थी, उसके बाल खुल्ले थे और चेहरे पर बुद्धिमानी कि छाप थी, लम्बाई ओसत इंडियन वीमेन कि लगभग 5”5 और फीचर मिस इंडिया के नहीं शायद मिस यूनिवर्स उसने सोचा उसने देखा और देखता ही रह गया, झमाझम गिरती बारिश में वो सावली सुन्दरी उसको पहली नजर में ही भा गई थी |
दूसरी और दरवाजे पर खड़ी लडकी ने पहली बार अपने मददगार को देखा और पहला ख्याल जो उसके मन में आया वो था ये तो हीरो है, नहीं वो कंफ्यूज हो गयी इंडिया का कामदेव नही ये तो युनिवर्सल काम देव है, अपने ख्याल से उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी फिर उसने सोचा है भगवान क्या आपने मेरी मदद के लिए साक्षात् कामदेव को ही भेज दिया ? उसे अपने ही विचारो से शर्म और हसी का मिला जुला अहसास हुआ उसने अपने ख्यालो को झटका और सपनो कि दुनिया से बाहर आ गयी, उसने अपने आपको सँभालते हुए मयूर से कहा - थैंक यू वैरी मच ?
तभी उसकी नजर अपने बेग और किताब पर पड़ी और उसके चेहरे के भाव तेजी से बदल गये उसने अपना मुंह रोने जैसा कर लिया और अपने पांव पटकती हुए बोलने लगी – ये क्या किया तुमने मेरा बेग कीचड़ में कर दिया और मेरी किताब देखो पूरी गीली हो गयी |
मयूर जो एकटक उसी को ही देखे जा रहा था ने हडबडाकर कहा - आई ऍम सोरी लेकिन मेरे पास और कोई चारा भी नहीं था | पर उसे समझ में आ गया था कि उसकी मिस यूनिवर्स नाराज हो गई है लडकियों के अपने अनुभव से वो जानता था कि इससे पहले कि ये भारतीय नारी उसपर भारी पड़े अब उसके पास चुपचाप निकाल लेने के सिवा और कोई चारा नही है |
फिर भी उसने कहा – मैं तो तुम्हारी मदद कर रहा था तुमको जरूरत क्या थी इतनी जोर से धक्का देने कि ये कोई व्रेस्लिंग थोड़ी थी केवल फंसा हुआ बेग निकालना था, उसके लिए दिमाग कि जरूरत थी जो लगा कर मेने तुम्हारा बेग निकाल दिया अब वो गंदा हो गया तो मेरी क्या गलती थी |
लडकी के चेहरे के भाव नही बदले उसने चुपचाप अपनी किताब अपने बेग में रखी और आसपास देखा वहा कोई उसकी मदद के लिए नही दिखाई दिया सिवाय चाय वाले के, कीचड़ में ट्राली बेग का कोई मायना नहीं था क्योकि उसके पहिये कीचड़ में धंस सकते थे फिर भी उसने अपना बेग घसीटा और चाय कि होटल कि तरफ चल दी |
मयूर ने भी स्थिति कि गम्भीरता को समझा और उसके उलटे डायरेक्शन कि और बढ़ चला, उसने अब तक अपनी जिन्दगी में कई सैलानी लड़कियां और औरते देखी थी, पर इसकी बात कुछ और ही थी, इतने सालो से वो हर खुबसूरत लडकी का ऑफर इसी के इन्तजार में ठुकरा रहा था और जब वो मिली तो पहली ही मुलाकात में मनमुटाव हो गया, उसका मन एक अजीब से दर्द से भर गया |
वो मुस्कुराया अभी तो प्यार शुरू ही नही हुआ और लड़ाई हो गई, लेकिन इसमें उसका कोई दोष नही था सही में इसके अलावा उसके पास और कोई चारा भी नहीं था | उसने असमान में बादलो कि तरफ देखा क्या पता ये आज क्या साजिश कर के आये थे उसके खिलाफ ? अगर आज नही बरसते तो क्या होता कम से कम मिस यूनिवर्स कि किताब और बेग तो खराब नही होता और न वो नाराज होती और न उसके हाथ से उससे नजदीकी बढ़ाने का मौका चुकता |
उसने मुड कर देखा धीरे धीरे अपने बेग को कीचड़ में घसीटती हुए मिस यूनिवर्स चाय कि दुकान पर पहुच चुकी थी | उसका मन वाकई में एक दर्द से भरा हुआ था शायद इसी को प्यार और जुदाई बोलते है, जो उसके जीवन में आते ही चला गया उसके चेहरे पे एक मुस्कुराहट उभर आई जब उसने सोचा दुनिया कि सबसे छोटी प्रेम कहानी |
क्रमश:
पढकर अपनी राय अवश्य दें।