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Erotica यकीन होना मुश्किल है

aamirhydkhan

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यकीन होना मुश्किल है


मेरा नाम आरा है. मैं उस वक़्त 21 साल की थी और उस वक़्त मैने बी.ए. पास कर लिया था. मेरे घर मे शुरू से ही लड़कियो को अकेले बाहर जाने की इजाज़त नही है. मैं एक लोवर मिड्ल क्लास की लड़की हूँ और बड़े ही साधारण से परिवार से हूँ. हम वही लोग हैं जो एक छोटे से कस्बे मे अपनी सारी उमर बिता देते हैं. हम मोटर साइकल ही अफोर्ड कर सकते है.

मैं भी एक आम लड़की जिसकी आम सी सहेलिया और आम सी ज़िंदगी थी. मैने बी.ए प्राइवेट किया है और मैं इंग्लीश मे अच्छी नही हूँ.

मेरी ज़िंदगी मे मैं अपने शौहर,देवर, ससुर और भाई से संबंध बना चुकी हूँ. इस बात पर यकीन करना बड़ा मुश्किल है लेकिन यही मेरी ज़िंदगी है. मैं तो सिर्फ़ अपने शौहर को ही अपना जिस्म देना चाहती थी लेकिन कुदरत के खेल मे फँस कर हार कर रह गयी.

आज जब मैं पीछे देखती हूँ तो सिर्फ़ तकलीफ़ के कुछ और नही पाती. रोना मेरी किस्मत और लुटना मेरी किस्मत की लकीर बन गयी है.

आज भी याद है मुझे सब मेरे ससुराल वाले मुझे देखने आए थे.
लालची लोग लेकिन बातो से शरीफ.
मैं अपने मा बाप की एकलौती लड़की हूँ और अपने बड़े भाई से छोटी हूँ.


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UPDATE 01




ये बात करीब एक साल पहले की है, मेरे इम्तेहान का रिज़ल्ट आ चुका था. मैने बी.ए. पास कर लिया था, घर मे सब ने राहत की साँस ली. ऐसा नही था कि मेरी पढ़ाई पर ज़्यादा खर्चा हो रहा था लेकिन लड़कियो की पढ़ाई से फ़ायदा ही क्या होता है. मैं खुश थी.

मेरी मा मुझे पढ़ाने के लिए बिल्कुल राज़ी ना थी. मैने भी ज़्यादा ज़िद्द नही की.
मा मेरी शादी के लिए बाबा को रोज़ कहने लगी,मेरे भी अरमान थे कि मैं कुछ बन जाउ लेकिन फिर मैं खामोश हो गयी.

फिर एक दिन ऐसा आया जब मुझे देखने के लिए लड़के वाले आने वाले थे. मैं थोड़ा घबरा सी गयी, मा तो मुझसे भी ज़्यादा घबराई हुई थी. मेरे पहनने के लिए कोई नये कपड़े भी ना थे. मैने अपनी खाला ज़ाद बहेन जो मेरी ही उमर और मेरे ही डील डौल की थी उससे कपड़े लिए. मेरी खाला जो मुझसे कई मकान दूर रहती थी घर पर आ गयी. उनका नाम हिना है. मेरी मा हयात उनको बहुत मानती हैं.

खाला हिना पैसे के मामले मे हम से थोड़ा बेहतर हैं. उनके शौहर दिलशाद की सेमेंट की एजेन्सी है. मेरी खाला ने मेरी मा से कहा कि मुझसे कस्बे के ब्यूटी पार्लर भेज दें ताकि मैं खूबसूरत लगूँ. सुबह के 9 ही बजे थे. मेरी मा ने मुझे मेरे भाई के साथ कस्बे के एकलौते ब्यूटी पार्लर भेज दिया. मैं पहली बार ब्यूटी पार्लर गयी थी. वहाँ पर पहले से ही दो लड़किया थीं जिनके चेहरे पर कुछ लगा हुआ था.

मैं अंदर दाखिल हुई तो, ब्यूटी पार्लर की लड़किया मुझे देखने लगी. उन्होने मुझे सर से पैर तक देखा और उनके चेहरे पर एक हसी सी आ गयी. शायद वो मुझपर और मेरी ग़रीबी पर हंस रही थी. एक लड़की जो लंबी सी थी उसने मुझे पूछा क्या करवाना है? क्या शादी के लिए तैय्यार होना है? मैने कहा की नही लड़के वाले देखने आ रहे हैं. मेरी इस बार पर वो दो लड़किया वो पहले ही से कुर्सी पर बैठी थीं खिलखिला कर हंस पड़ी. मैं शर्मसार सी हो गयी. जाने क्यूँ हम लोवर मिड्ल क्लास के लोग हर बात पर शर्मिंदा हो जाते हैं.चाहे हमारी ग़लती हो या ना हो. ये अमीर लोग और रुतबे वाले अगर कोई बात ज़ोर से कहें तो हम उनकी बात मान लेते हैं. हमारा मुल्क चाहे गुलामी से आज़ाद हो गया हो लेकिन हम अपनी ग़रीबी से अभी तक आज़ाद नही हुए.

मुझे कोने मे पड़े एक सोफे बार बैठ कर इंतेज़ार करना का इसारा किया गया. कुछ देर बाद एक और लड़की पार्लर मे दाखिल हुई. मुझसे एक खाली पड़ी कुर्सी पर बैठने को कहा गया. उस लड़की ने मुझसे वही सवाल किया ही था कि पहले से मौजूद दो लड़कियो मे से एक ने कहा कि मेडम को लड़के वाले देखने आ रहे हैं लेकिन इस बात पर इस लड़की हो हसी नही आई. वो तुनक कर बोली कि इन "लोगो ने लड़कियो को बाज़ार मे सजी हुई एक चीज़ समझ रखा है".

फिर वो शुरू हो गयी मेरी चेहरे,गर्दन,पैर के नाख़ून, हाथ के नाख़ून, पॅल्को और ना जाने क्या क्या. मुझे एहसास ही नही था कि ये सब भी होता है.

खैर काफ़ी टाइम बाद उन्होने मुझे 850 रुपये माँगे, जो मैने अपने भाई आरिफ़ जो बाहर खड़ा था उससे ले कर पार्लर वाली लड़कियो को दे दिए.

घर पहुँची तो घर को पहचान ना पाई, घर मे कुछ फूलों के गमले, नयी चद्दर,नया फर्निचर था. ये सब मेरी खाला के यहाँ से आया था.

जारी रहेगी
 

aamirhydkhan

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UPDATE 02


कुछ ही देर में लड़के वाले आ गये, मेरा तो मारे घबराहट के बुरा हाल था,

ये एक ऐसी फीलिंग होती है जो सिर्फ़ एक लड़की ही जान सकती है, ऐसा महसूस होता है कि हम लड़कियो की ज़िंदगी बाज़ार में बिकती किसी बकरी की तरहा होती है जिसे देख कर टटोल का कोई कसाई पसंद करता है और अगर कसाई को ना पसंद आए तो बकरी का मालिक बकरी को ही लताड़ लगता है।

मुझे अपनी होने वाली सास और ननद के पास चाइ लेकर जाना था। मुझे सब कुछ मेरी खाला ने समझा दिया था, मैं जब जनानखाने में पहुँची तो सब ही मुझे घूर कर देख रहे थे। मैने नाश्ता वगेरा रख और पास पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गयी।

मेरी होने वाली सास एक मोटा चस्मा लगाए मेरी तरफ़ घूर रही थी, उसकी आँखे बड़ी-बड़ी थीं और वह एक मोटी औरत थी, बालो में सफेदी आ चुकी थी, सूट सलवार कुछ ख़ास नहीं था, हाथो में सोने के कंगन और कानो में मोटी-मोटी बालिया। आँखो में एक दम रुबाब, उसको अपनी तरफ़ घूरता हुआ देखा तो ऐसा लगा जैसे कोई दारोगा किसी मुजरिम की पहचान कर रहा हो।

उसके साथ उसी की शक्ल की उसकी बेटी थी जो बहुत ज़्यादा सज धज के आई थी, ये पतली दुबली-सी लड़की थी जिसकी गोद में कोई 2 साल का एक बच्चा था। ये थोड़ा खुश मिजाज़ लग रही थी, अपनी मा की तरहा इसके नयन नक्श तीखे थे।

इतने में उसकी मा ने मुझसे पूछा कि "बेटी आरा कहाँ तक पढ़ी हो"

इसका जवाब मेरी खाला ने दिया "जी बी.ए किया है"

इसपर उस औरत ने मेरी खाला को घूरा जैसे कोई नापसंद बात कह दी गयी हो और लगभग फटकार लगाते हुए जवाब दिया की "बहेनजी ज़रा बच्ची को भी बोलने दीजिए"

फिर मेरी तरफ़ मुख़ातिब होकर कहा कि "बताओ मेरी बच्ची कहाँ तक पढ़ी हो"

मैने जवाब दिया "जी बी.ए. कर चुकी हूँ"

मेरी होने वाली सास "प्राइवेट किया है"

मैं: "जी"

मेरी होने वाली सास "आगे पढ़ना नहीं चाहती हो"

मैं: "जी इतना काफ़ी है"

मेरी होने वाली सास "क़ुरान पढ़ी हो"

मैं: "जी"

मेरी होने वाली सास: "खाना पकाना, कढ़ाई सिलाई जानती हो"

मैं: "जी"

मेरी होने वाली सास: "बहुत अच्छी बात है, अच्छा ज़रा मेरे लिए थोड़ा ठंडा पानी ले आओ"

मैं: "जी अभी लाती हूँ"

ये कहकर मैं बाहर आ गयी।

कुछ घंटो बाद वह लोग चले गये। मैं अपनी मा से जानना चाहती थी कि वह लोग क्या कह गये हैं लेकिन शर्म की वज़ह से कुछ ना पूंछ पाई. मा ना तो खुश थी और ना ही परेशान लग रही थी।

इसी तरहा कुछ दिन बीत गये और एक सुबह मेरी खाला हिना मेरी अम्मा के पास आई और बड़ी खुश लग रहीं थी। उन्होने आते ही मेरी मा को गले से लगा लिया और कहा "उन लोगों ने हाँ कह दी है और वह लोग जल्द तारीख पक्की करना चाहते है"

इसपर मेरी मा ने पूछा "उन लोगों की कोई ख़ास माँग वगेरा" ,

खाला "अर्रे नही, उन लोगों का यही कहना है कि बच्ची बड़ी खूबसूरत और सेहतमंद है और उन्हे कुछ ख़ास नहीं चाहिए" ।

अम्मा "चलो बड़े ख़ुशी की बात है"

खाला "" और क्या, वरना आज कल तो 4 पहिए की गाड़ी का चलन निकल आया है"

मेरे आबू जो दूर बैठे थे कहने लगे "वो लोग तो हाँ कह गये लेकिन हमको भी एक बार लड़के को देख लेना चाहिए कि कैसा है"

मेरा भाई भी इस चर्चा में जुड़ गया "बाबा बिकुल सही कह रहे हैं"

खाला "ठीक है तो मैं उनसे कहलवा देती हूँ कि हम लड़के से मिलना चाहते हैं"

कुछ दिनो बाद हमारे यहाँ के लोग वहाँ गये और शाम को जब लौट कर आए तो ज़्यादा खुश नहीं दिख रहे थे।

मैं कुछ पूछना मुनासिब नहीं समझा। रात को खाने के वक़्त भाई बोल पड़ा

"बाबा मुझे वह लड़का अच्छा नहीं लगा"

बाबा "क्यूँ, क्या ऐब है बेचारे में?"

आरिफ़ मेरा भाई "बाबा उसकी आँखें देखी, पूरा चरसी लगता है वो"

बाबा "तुझे कैसे यक़ीन है"

आआरिफ: "बाबा मैं कई ऐसे लड़को को जानता हूँ जो इसी आदत में मुब्तिल हैं"

बाबा "अच्छा अच्छा खाना खा ले, बड़ा डाक्टर बना फिरता है"

अम्मा: "लड़के की बहेन बड़ी चालाक और लालची लग रही थी, कह रही थी कि लड़के के बड़े भाई के यहाँ से उसके मिया के लिए मोटर साइकल आई थी"

बाबा: "अर्रे ख़ाक डालो उसपर, हमारे पास इतनी रक़म नहीं है कि लड़के की बहेन को दहेज दे दें, मेरी आरा के ससुर से बात हो चुकी है वह सिर्फ़ लड़के के लिए मोटर साइकल और तमाम चीज़ें जो चलन में है वही चाहते हैं"

अम्मा: "तो तारीक़ क्या तय हुई है?"

बाबा: "अगले महीने की 25 तारीख"

अम्मा: "यही लगभग एक महीना?"

बाबा: "हाँ इतना काफ़ी है, एक हफ्ते में फ़सल के पैसे आ जायें गे और फिर तैयारी सुरू हो जाएगी"

अम्मा: "चलो ऊपर वाला खैर करे मेरी बच्ची पर"

जारी रहेगी
 

aamirhydkhan

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UPDATE 03

फिर वह दिन भी आ गया जब मैं दुल्हन बनी थी, सुबह से ही कलेजा मूह को आ रहा था। मेरी खाला की शादी शुदा लड़की यानी मेरी बहेन मेरा पास अकेले में कुछ कहने आई उसका नाम रीना है।रीना मुझसे 2 साल बड़ी है

रीना "आरा मैं तुझ से वह कुछ कहना चाहती हूँ जो तुझे मालूम होना चाहिए"

मैं: "ऐसा क्या कहना चाहती है कि मुझे अकेले में ले आई"

रीना: "ध्यान से सुन और अपनी गाँठ बाँध ले"

मैं: "अब बक भी क्या कहना चाह रही है"

रीना: "आज की रात के बारे में" ये कहकर उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी।

मैं: "चल पगली, हट यहाँ से"

रीना: "ये कोई मज़ाक नहीं है अगर ये नहीं जानेगी तो हो सकता है रोना पड़े"

मैं: "मुझे नहीं जानना ये सब, तू दिमाग़ मत खा"

रीना: "शूकर कर मैं तुझे बता रही हूँ, ये बात मुझे मेरी सहेलियो ने बताई थी"

मैं "क्या बताई थी?"

रीना: "आज की रात मियाँ बीवी का मिलन होता है"

मैं: "तो इसमे कौनसी नयी बात है"

रीना: "पगली, दो जिस्मो का मिलन होता है और तुझे मालूम होना चाहिए कि मिया क्या-क्या करता है और उसको क्या नहीं करना चाहिए"

मैं: "क्या बक रही है?"

रीना: "देख, आज की रात के बाद तू कुँवारी नहीं रहेगी और आज तेरा कुँवारापन चला जाएगा"

मुझे ठीक से तो नहीं पता था लेकिन रीना की बातो से मैने कुछ-कुछ अंदाज़ा लगा लिया था।

रीना: "आज तेरी गुलाबो से हो सकता है खून निकल पड़े या थोड़ा ज़्यादा दर्द हो लेकिन तुझे आज सब बर्दाश्त करना पड़ेगा"

हम लड़किया अपनी शरमगाह को गुलाबो कह कर पुकारती थी, रीना पहले से ही मुझसे खुली हुई थी और अपनी सुहागरात की दास्तान मुझे पहले ही सुना चुकी थी, मैं ये सब नहीं सुनना चाहती थी लेकिन फिर भी मुझे सुनना पड़ा।

मैं: "मुझे तू पहले ही ये सब बता चुकी है"

रीना: "इतना ध्यान रखना कि तेरा मिया तेरे पिछवाड़े में शरारत ना करे"

मैं: "तू जा अब, बहुत हो चुकी ये सब बातें"

शाम को शादी की सारी रस्मे ख़तम हो चुकी थीं और मैं विदा होकर अपने ससुराल के सजे हुए कमरे में बैठी थी और वहाँ पर पहले से ही काफ़ी औरतें मौजूद थी, सब मुझे मूह दिखाई के नेग दे कर एक-एक करके जा रहीं थी,

ये कमरा काफ़ी सज़ा हुआ था, ये कमरा घर के कोने में था, ये एक बड़ा-सा खुला हुआ घर था, जिसमे कई कमरे थे वह बरामदे में आकर जुड़ते है, सभी कमरे एक ही लाइन में थे और सबका एक ही कामन किचन था। घर के कई बाथरूम और टाय्लेट थे।

मुझे अपने मिया का नाम ही मालूम था। उनका नाम शौकत था और वह बॅटरी और इनवेर्टर का काम करते थे।

आख़िर देर रात तक मैने अपने मिया का इंतेज़ार किया करीब 12 बजे वह मेरे कमरे में दाखिल हुए. वह एक औसत दर्जे की हाइट के दुबले पतले से इंसान थे।

जैसी ही वह कमरे में दाखिल हुए मेरी साँसें तेज़ हो गयी, मुझे इतना याद है कि वह आते ही मेरी तरफ़ बैठ गये,

उनका पास से सख़्त बू आ रही थी जो शराब की थी।

मुझे शराब से नफ़रत थी लेकिन मैं आज की रात को बर्बाद नहीं करना चाहती थी।

उन्होने मेरा घूँघट हटाया और कहा "बला की खूबसूरत हो"

मैं ये सुनकर थोड़ी की खुश हुई और शर्म से लाल हो गयी लेकिन इससे पहले की कुछ हो पाता वह लुढ़क कर बिस्तर पर गिर गये।

मुझे एक झटका-सा लगा और मैं सोच में पड़ गयी कि क्या यही वह रात है जिसका हर लड़की इंतेज़ार करती है। अब मैं रोना चाहती थी लेकिन रो भी ना सकी, मेरे बेचारे मा बाप जिन्होने इतनी मेहनत के साथ मेरी शादी की रक़म जमा की थी, मेरी मा जो बेचारी डाइयबिटीस की मरीज़ है, अपना इलाज़ करवाने की बजाई मेरे लिए कुछ ना कुछ जोड़ती रहती थी, बड़े अरमान से मेरी शादी कर चुकी थी, मेरा बाबा जिनके कंधे में अक्सर दर्द रहता था क्यूंकी वह जब खेती का काम नहीं होता था तो ट्रक चलाया करते थे और दिन रात मेहनत करते थे।

उन सब लोगों का चेहरा मेरे सामने घूम रहा था। बड़ा भाई भी अपनी पढ़ाई बीच में रोक कर मेरे दहेज के सामान के लिए काम कर रहा था, रात भर वह भी

अपनी क़लम घिस कर अपनी किताबों में गुम रहता।

इन सब लोगों की ज़िंदगी हमसे जुड़ी हुई थी। मैं किसी तरह अपने शराब में डूबे शौहर को सुला कर सो गयी।

सुबह जब दरवाज़े पर मेरी ननद ने दस्तक दी तो मैं जाग गयी।

मैने उसे अंदर आने को कहा।उसका नाम सबा था।

ये वही लड़की थी जो मुझे मेरे घर में अपनी मा के साथ देखने आई थी।

जारी रहेगी
 

Rinkp219

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Excellent start bro...bhai apne papa aur sasur ko eksath moka dena... waiting
 

aamirhydkhan

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UPDATE 04


बा ने आते ही अंदर बिस्तर पर चारो तरफ देखा और फिर मेरी तरफ देखा, उसके चेहरे पर मायूसी और थोड़ी परेशानी नज़र आई फिर मेरी पास आकर कहा कि नाश्ता तैयार है आप नाश्ता कर लीजिए.

मैं उठी और कमरे से जुड़े बाथरूम की तरफ बढ़ गयी, इस बाथरूम के लिए मुझे अपने कमरे से थोड़ा बाहर जाना पड़ा. बाहर मेरी सास तख्त पर बैठी क़ुरान पढ़ रही थीं.

मेरी नज़र उनसे मिली फिर मैं बाथरूम की तरफ बढ़ गयी. शादी वाला घर था, दूर से आए हुए मेहमान अभी भी घर मे ही थे, मैं अपने साथ कुछ कपड़े लाई थी जो मैने नहा कर पहेन लिए और जब कमरे मे वापस गयी तो मेरे मिया अभी भी सो रहे थे. मैं खामोश होकर बिस्तर के कोने मे बैठी रही. कुछ देर बाद मेरी सास मेरे कमरे मे आ गयी और अपने बेटे को उठाने लगी. लेकिन वो कहाँ उठने वाले थे.

मेरी सास मुझे दूसरे कमरे मे ले गयी और वहाँ मैने उनके साथ नाश्ता किया.

वालीमा का दिन था. ये दावत लड़के वालो की तरफ से लड़की वाले और तमाम रिश्तेदारो के लिए होती है. इसमे मेरी मा और मेरे घरवाले सभी आए.

मेरी बहन रीना मुझसे मिलने के लिए बेताब थी. लेकिन मैने किसी पर ये ज़ाहिर नही होने दिया कि मेरे साथ रात मे क्या हुआ था. ये एक शर्म और सदमे वाली बात थी जिसे मैं किसी से शेअर नही करना चाहती थी. बनावटी मुस्कान के पीछे रात की खलिख और भयानक अंधेरा छुप गया. रात के राज़ राज़ ही रहे और दुनिया मे एक और लड़की सब की खातिर क़ुरबान हो गयी. लड़किया हमेशा से ही क़ुरबान होती रही हैं, क़ानून और मज़हब चाहे कितना ही क्यूँ ना उन्हे हक़ दे लेकिन मर्दो के इस समाज मे औरतें हमेशा क़ुरबान ही होती रही हैं.

धीरे धीरे सब मेहमान जाने लगे. मेरी सास ज़्यादा तर खामोश ही रही.

शाम हो चुकी थी,मेरे मियाँ अब अपने दोस्तो के साथ आँगन मे बैठे बात चीत कर रहे थे.

रात को मेरी ननद सबा मेरे कमरे आ आई और कहने लगी.

"भाभी मैं जानती हूँ कि शायद आपकी पिछली रात ख़ुशगवार नही गुज़री थी,हमारे यहाँ मेरे भाई बड़ी परेशानी से गुज़र रहे है और शायद इसलिए वो शराब पी लेते हैं लेकिन यकीन मानो वो शराबी नही हैं, अब्बा तो उन्हे कई बार पीट भी चुके हैं लेकिन वो कभी कभी अपनी शराब वाली हरकत दोहरा ही देते हैं"

मैं: "शायद मेरी यही किस्मत है" और मैं ये कहकर फूट फूट कर रोने लगी.सबा मेरे करीब आई और मुझे अपने सीने से लगा कर मुझे चुप करने लगी.

सबा "भाभी हम सब इस बात पर खुश नही हैं, अम्मा पर जैसे कहेर ही टूट पड़ा है, सुबह से उन्होने कुछ नही खाया है, हम ने ये सोचा कि एक खूबसूरत बीवी के प्यार से शायद शौकत (मेरे मिया का नाम) सुधर जाए,"

मैं "आप परेशान ना हो, शायद ऐसा ही हो"

सबा: "मेरी प्यारी भाभी, आप का कितना बुलंद हौसला हैं"

मैं: "और इस हालत मे एक लड़की कर भी क्या सकती है"

इतने मे बाहर से मेरी सास की आवाज़ आई तो मैं आँसू पोछ कर सही तरीके से बैठ गयी.

मेरी सास मेरे करीब आकर बैठ गयी, उन्होने इस वक़्त अपना मोटा चस्मा नही पहना था और वो बड़ी शर्मिंदा सी लग रहीं थी, ये वो औरत नही लग रहीं थी जो मुझे देखने आई थी, ये तो कोई मज़लूम बेसहारा सी एक ख़ौफजदा सी ज़माने की सताई औरत की तरहा लग रही थीं, उन्होने मेरी तरफ इस तरहा देखा जैसे वो अपने किसी गुनाह के माफी माँग रही हों.
उन्होने आते ही सबा को बाहर जाने का इशारा किया.

सबा के जाते ही वो भी मुझसे लिपट गयी. और एक मा की तरहा मेरे सर पर बोसा दिया.

फिर कहने लगी "मेरी बच्ची मैं तुझे यकीन दिलाती हूँ कि मैं तेरी ज़िंदगी बर्बाद नही होने दूँगी बस यकीन रख और थोड़ा वक़्त दे"

मैं: "अम्मी आप इस तरहा रोए नही और कुछ खा लें , मुझे उम्मीद है कि मेरे साथ बुरा नही होगा"

सास "शाबाश बेटा, तुझसे यही उम्मीद है"

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UPDATE 05


फिर रात आ गयी और मेरे शौहर फिर मेरे कमरे मे दाखिल हुए. मैं अभी लेटी ही थी कि उनकी आवाज़ आई "सो गयी क्या तुम?"

और मैं घबरा कर उठ गयी और उनकी तरफ देखा. आज मुझे कोई और इंसान नज़र आया. ये तो मेरे शौहर ही थे लेकिन आज नशे मे नही लग रहे थे. नशा इंसान को क्या से क्या बना देता है.

ये इंसान औसत कद काठी का था. नाक बिल्कुल लंबी और सीधी, आँखें लाल और बड़ी बड़ी और चेहरे पे हल्की सी मुस्कुराहट. ऐसा लगता था कि वो मुझसे कह रहा हो कि कहाँ सो गयी थीं. उनकी मुस्कुराहट ने जैसे मेरे सारे घाव भर दिए.

एक औरत को अपने शौहर से चाहिए ही क्या होता है, बस रो जून की रोटी और थोड़ा सा प्यार. इसमे ही वो अपनी जन्नत ढूँढ लेती है और इसके सिवा उसे किसी और चीज़ की चाहत नही होती.

मेरे शौहर मेरे सामने खड़े मुस्कुरा रहे थे और मैं सर झुकाए बिस्तर पर खामोशी से दिल की धड़कन को रोकने मे लगी थी.

पता ही नही चला कि कब वो मेरे सामने आकर बैठ गये और मेरी ठोडी उठा कर मेरी गहरी डूबी हुई आँखो को फिर से उभारने लगे.

मैं खुश थी लेकिन थोड़ी घबराई हुई थी. एक एक पल जैसे पहाड़ मालूम पड़ रहा था,मैं कमरे मे सुई के गिरने की आवाज़ सुन सकती थी,

एक हसीन लम्हा धीरे धीरे मेरी पॅल्को के नीचे से गुज़र रहा था.इतने मे मुझे मेरे हसीन ख्वाब से मेरे शौहर ने जगा दिया. उन्होने हल्के से लहजे मे कहा "कितना बेवकूफ़ हूँ मैं जो शराब का नशा करता हूँ मुझे तो इन आँखो का नशा करना चाहिए"

"आरा हैं ना तुम्हारा नाम"

मैं: जी

शौकत: मुझे कल पी कर नही आना चाहिए था, दर असल मेरे दोस्तो ने मुझे ज़बरदस्ती पिला दी, कम्बख़्त कहीं के, तुम मुझसे नाराज़ तो नही हो?

मैं: नही तो

शौकत: "झूठी कहीं की, ऐसा भी कभी होता है कि,बीवी शौहर के पीने पर नाराज़ ना हो"

मैं:"मैं आपके शराब पीने पर नही बल्कि आपके मुझे गौर से देखे बिना ही सो जाने पर परेशान थी"

शौकत: "हां, होना भी चाहिए, आख़िर बीवी बन कर आई हो, लेकिन जानती हो मैं शराबी नही हूँ और किसी को मारना पीटना गाली गलोच करना मेरी फ़ितरत नही है"

मैं: जी

शौकत: बचपन से ही मैं लगातार हारता रहा हूँ, कई चीज़ें मैं जानबुझ कर हारा,कई चीज़ें ना चाहते हुए भी लेकिन मैं हारता ज़रूर रहा हूँ.

मैं: क्या मैं आपसे एक सवाल कर सकती हूँ

शौकत: क्यूँ नही, पूछो

जारी रहेगी

मैं: क्या आप किसी और से मोहब्बत करते हैं?

शौकत: हां.

ये सुनकर मेरे पैरो तले ज़मीन खिसक गयी, अब यही इंसान जो मुझे प्यारा लगने लगा था, जो दो जुमलो से मुझे जन्नत दिखा रहा था, एक ही हां से मुझे और मेरे वजूद को हिला गया, मैं बेशख्ता ही अचानक सर उठा कर उन्हे देखने लगी,इसपर वो खिल खिला कर हंस पड़े और

शौकत: अर्रे भाई मैं अपने मा बाप, भाई बहेन, रिश्तेदार सब से मोहब्बत करता हूँ.

मैं: नहीं मैं कुछ और पूछ रही थी.

शौकत: जानता हूँ, मैने मोहब्बत की थी अपने स्कूल की एक लड़की से, लेकिन कभी ज़बान पर नयी आ पाई,वो बड़े घर की लड़की थी और दूसरे मज़हब की, बस दिल मे
था कि उससे बात करूँ, वो थी ही इतने खूबसूरत.

मैं: तो क्या मैं खूबसूरत नही हूँ

शौकत: तुम तो एक बला हो, मुझे तो यकीन ही नही होता कि एक इतनी खूबसूरत हसीन लड़की मेरी ज़िंदगी मे आई है, अब दिल चाहता है कि तुम्हारे दामन मे सर रख कर खूब रोया जाए और अपने दिल के सारे राज़ खोल दिए जायें, मैं तुममे अपनी ख़ुसी और ज़िंदगी तलाश करना चाहता हूँ, बोलो दोगि मेरा साथ

मैं: जी बिल्कुल

शौकत: मुझे इतनी जल्दी समझना आसान नही है, खैर अगर तुम्हे नींद आ रही है तो सो जाओ.

मैं खामोश रही.

शौकत: क्या तुम,,,,क्या मैं,,,

मैं: क्या कहना चाहते हैं?

शौकत: मुझसे नही कहा जाता,,उफ़फ्फ़

मैं: क्या नही कहा जाता

शौकत: मैं तुम्हे अपने सीने से लगा कर सोना चाहता हूँ.

मैं खामोश रही.

शौकत: शायद लड़की की खामोशी मे हां होती है.

ये बात उन्होने इतनी मासूमियत से कही कि मुझे हसी आ गयी.

शौकत: हँसी तो फँसी.

मैं अब खिल खिला का हंस पड़ी.
 
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