२९ – ये तो सोचा न था…
[(२८ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
जुगल एक क्षण के लिए सहम गया पर वो आगे कुछ बोले उससे पहले चांदनी की आवाज सुनाई दी…
‘मेरे पैर दर्द कर रहे है… प्लीज़ आइए ना !’
जुगल और झनक ने यह सुन कर चौंकते हुए चांदनी की ओर देखा. इस अफरा तफरी में वे दोनों का ध्यान अजिंक्य पर ही था, चांदनी की ओर देखा भी नहीं था…
चांदनी अब भी सोफे को दोनों हाथ से थाम कर अपने नितंब ऊंचे उठाये हुए योनि दिखा रही थी और विनती कर रही थी. ‘.... प्लीज़, पापा…. आई एम बेड गर्ल…. मुझे पनीश कीजिए.....अब आइए ना...’
जुगल और झनक चांदनी की इस स्थिति और ऐसी बात सुनकर हक्के बक्के रह गए…]
रात के करीब ग्यारह बजे होंगे. जुगल की कार पूना हाईवे पर चल रही थी. कार जुगल ड्राइव कर रहा था. उसके बगल में झनक बैठी थी जो लगातार जुगल की ड्राइविंग को जांच रही थी. कार की पीछे की सीट में चांदनी को सुलाया हुआ था. और कार की डिक्की में बेहोश अजिंक्य पड़ा था.
अजिंक्य के घर पर जब जुगल की मारपीट से अजिंक्य बेहोश हो गया तब जुगल और झनक का ध्यान चांदनी पर गया और समझ में आया की चांदनी को गहरा सदमा पहुंचा हुआ है. वो वर्तमान से कट चुकी है और खुद को कठपुतली बना कर व्यवहार कर रही है. जुगल का जैसे कोई परिचय ही नहीं, झनक कौन है यह जानने की परवाह नहीं. वो जुगल को अपने पापा समझ कर बात कर रही थी....
झनक और जुगल ने मिल कर चांदनी को कपड़े पहनाये. जुगल अजिंक्य को बेहोश स्थिति में छोड़ कर के घर को जला कर निकलना चाहता था, पर झनक नहीं मानी. ‘मुझे यह दरिंदा जिन्दा चाहिए, और शायद इसके घर का भी काम पड़ सकता है.’ उसने कहा था.
जुगल को इस पूछताछ में कोई इन्टरस नहीं बचा था की अजिंक्य का तुम्हे क्या काम है और इसके घर की क्या जरूरत पड़ सकती है. वो चांदनी भाभी की स्थिति को लेकर अत्यंत व्याकुल था. इसलिए उसने ज्यादा बहस नहीं की और अजिंक्य को कार की डिक्की में डालने में भी उसने झनक की मदद की.
और अब वो लोग कार में जा रहे थे. जुगल को जो शोक लगा था वो झनक समझ रही थी इसलिए उसका ध्यान जुगल की ड्राइविंग पर था….
अचानक जुगल को ख़याल आया : पर मैं जाऊंगा कहां भाभी को इस हाल में ले कर?
उसने कार रोक दी.
‘क्या हुआ ?’ झनक ने पूछा.
जुगल ने न झनक की ओर देखा न जवाब दिया. कार की विंड स्क्रीन के बाहर अंधेरे में ताकता देखता रहा. उसे लगा उसके सामने फिलहाल ऐसा ही अंधकार छाया हुआ है…
झनक शांत रही और जुगल का निरीक्षण करती रही. उसने जुगल को अपने आप में खोने दिया. उसे लगा शायद जुगल की इस वक्त यह निजी आवश्यकता है की वो कुछ समय अकेला रहे, सोचे, समझे की क्या हो रहा है और अब क्या करना चाहिए, इसलिए उसने जुगल को डिस्टर्ब नहीं किया.
जुगल जो कुछ हो गया उसे पचाने की कोशिश कर रहा था.
पर यह उसके बस के बाहर का था. चांदनी भाभी के साथ जो भी हुआ वो सोच कर उसके रोंगटे खड़े हो जाते थे - वो एकदम ढीला पड गया और कार स्टीयरिंग पर सिर झुका कर रो पड़ा. झनक ने होले से उसकी पीठ सहलाई और अपने करीब खींचा, जुगल झनक की बांहों में सिर छुपा कर रोने लगा. झनक बिना कुछ बोले उसका सिर सहलाती रही.
कुछ देर बाद जुगल ने अपने आंसू पोंछे.
‘अब चलें?’ झनक ने पूछा.
‘कहां ?’ पूछ कर जुगल ने आगे कहा. ‘ठीक है तुम्हे तो तुम्हारे घर छोड़ दूं… बताओ कहां जाना है?’
‘मुझे मेरे घर छोड़ कर फिर तुम कहां जाओगे?’
‘पता नहीं… इस हाल में भाभी को कहां ले जाऊं इसी बात से परेशान हूं.’
‘तुम अभी तो मेरे साथ मेरे घर चलो, फिर कल सुबह सोचेंगे की क्या करना है…’
‘तुम्हारे घर!’ जुगल इस विकल्प के लिए निश्चित नहीं था.
‘हां.’
‘पर कैसे झनक! तुम्हारे घर के लोग क्या सोचेंगे…’
‘कोई नहीं, तुम चलो.’
‘नहीं झनक, मुझे यह ठीक नहीं लग रहा…’
‘अरे चलना यार, तू तो मेरा माल है - चल चल, ऐसे कैसे तुझे मझधार छोड़ दूंगी! ‘
‘पर तुम्हारे पापा क्या सोचेंगे?’
‘मैं सम्भाल लुंगी पापा को, आखिर मैं उनका माल जो हूं….’
जुगल ने चौंक कर झनक को देखा. झनक ने उसे आंख मार कर मुस्कुराकर कर कहा.
‘ज्यादा मत सोच. चल.’
जुगल चाहता तब भी ज्यादा सोचने की स्थिति में नहीं था.
‘जुगल.’ जुगल के हाथ पर अपना हाथ रख कर झनक ने कहा. ‘मैं समझ सकती हूं कि तुम पर अभी क्या बीत रही है. तुम अपनी भाभी को बहुत मानते हो, उनकी बहुत इज्जत करते हो, और उनके साथ बहुत बुरा हुआ - तुम अंदर से हिल गए हो पर एक बात समझो जुगल.-’
जुगल ने झनक की और देखा. झनक ने कहा.’अल्लाह मियां की मेहरबानी से भाभी के साथ बुरा होना टल गया, हम लोग सही वक्त पर पहुंच गये.’
जुगल को यह सुनकर अच्छा लगा. इस बात पर तो उसका ध्यान गया ही नहीं था. उसमे थोड़ा आत्म विश्वास उभरा- भाभी के लिए वो कुछ तो कर सका !
‘सच झनक, थैंक्स यह बात मेरे दिमाग से ही निकल गई थी.’
झनक मुस्कुराई. जुगल ने भावुक होकर कहा. ‘तुम बहुत अच्छी हो झनक.’
‘वेलकम टू झनक फैन क्लब.’ झनक ने हंस कर कहा. जुगल भी हंस पड़ा. तभी जुगल का फोन बजा. जुगल ने देखा तो जगदीश भैया का फोन था. वो सहम गया. उसने फोन बजने दिया. कुछ देर बाद फोन की रिंग बंद हो गई. तब जुगल ने एक आह भरी.
‘किसका फोन था?’
‘बड़े भैया का…’
‘बात क्यों नहीं की?’
‘क्या बात करता? सच उनको बताने की हिम्मत नहीं और उनसे झूठ मैं बोलता नहीं!’
झनक ने कहा कुछ नहीं पर मन में बहुत खुश हुई. -ऐसे भाई आज भी होते है! एक दूजे का इतना लिहाज रखते है! -यह सोच कर.
***
जगदीश -पूना टू मुंबई हाइवे
जुगल ड्राइव करता होगा? या घर पहुंच कर सो गया होगा?
जुगल के फोन न उठाने पर अपना फोन ऐसा कुछ सोचते हुए जगदीश ने काटा.
वो लोग अब तक पूना से ज्यादा दूर नहीं जा सके थे क्योंकि चाय पीने के बाद सुभाष को कार रोकनी पड़ी थी, सीनियर का कॉल आया था और एक क्रिमिनल मामले में सुभाष से उनको जरुरी इन्फर्मेशन चाहिए थी. वीडियो कॉल में करीब आधा - पौना घंटा निकल गया. हाईवे पर देर रात को चलती ठंडी हवा में तूलिका और शालिनी तो अपनी सीट पर ऊंघने लगे थे. शालिनी का सिर नींद में बार बार लुढ़क रहा था, आखिर कार जगदीश ने शालिनी का सिर अपने पैरो पर रखते हुए उसे लिटा दिया. कुछ ही देर में शालिनी के ड्रेस पर से पल्लू सरक गया और शालिनी के बड़े बड़े स्तन दृश्यमान हो गए. जगदीश को ऑक्वर्ड लगा. सुभाष कार के बाहर वीडियो कॉल में व्यस्त था और तूलिका आगे की सीट पर सो रही थी. जगदीश को लगा सिर्फ मैं और शालिनी के यह दो स्तन ही इस वक्त बिना किसी काम के जाग रहे है! फिर उसे अपनी सोच पर हंसी आ गई : दोनों स्तन जाग रहे है! जैसे स्तन न हुए कोई स्वतंत्र व्यक्ति हो गए! जगदीश ने फिर एक बार शालिनी के स्तनों को निहारा, अब दोनों निपल भी बाहर झांक ने लगे थे, गोया जगदीश से कह रहे हो : हां, हम जाग रहे है!
जगदीश ने शालिनी का पल्लू उन खुले स्तनों पर ढंकते हुए मन ही मन में निपलों से कहा : हां हां, पता है जाग रहे हो - सो जाओ चुपचाप…!
फिर होले से शालिनी का सिर अपनी गोद से हटा कर जगदीश ने कार के बाहर आ कर जुगल को फोन मिलाया था. पर जुगल ने फोन नहीं उठाया.
तभी हाइवे पर से बहुत बड़ी आवाज में हॉर्न बजाते हुए एक ट्रक पास हुई जिसने तूलिका और शालिनी - दोनों को जगा दिया. शालिनी को जगी हुई देख जगदीश कार में दाखिल हो कर शालिनी की बगल में बैठ कर पूछने लगा. ‘नींद हुई ठीक से?’
शालिनी ने मुस्कुराते हुए हां में सिर हिलाया. और अपने सेलफोन में बिज़ी हो गई. एक पल के लिए जगदीश को यूं शालिनी का फोन में बिज़ी हो जाना अखरा पर फिर उसने तुरंत सोचा : अरे! मैं क्या शालिनी के बारे में पजेसिव हो रहा हूं ! उसके जो जी में आए वो करेगी! मैं कैसे तय कर सकता हूं की उसने क्या करना चाहिए और क्या नहीं?
सोचते हुए अनजाने में उसकी नजर आगे की सीट के सामने मध्य में आगे ड्राइविंग मिरर में गई तो वहां तूलिका जैसे ताक में बैठी थी कब जगदीश से नजर मिले- नजर मिलते ही तूलिका ने मिरर में फ़्लाइंग कीस दे दी…
जगदीश ने नजरे फेर कर बाहर सुभाष को देखा जो वीडियो कॉल में व्यस्त था.
तभी उसके सेल फोन का व्हाट्सएप मेसेज रिंग टोन बजा. देखा तो शालिनी का मैसेज था.
जगदीश ने शालिनी की ओर सीखा, वो कार की खिड़की से बाहर देख रही थी. देखते हुए जगदीश ने मैसेज ओपन किया.
‘छोटे महाराज के सिपाही ठीक है अब?’
जगदीश को कुछ समझ में नहीं आया. ये क्या पूछ रही है! उसने शालिनी की ओर देखा पर वो तो अब भी खिड़की की ओर सर किये बाहर देख रही थी!
तो यह सेलफोन पर बिज़ी हुई तब खामखां मैंने बुरा माना की शालिनी किसी और एक्टिविटी में कैसे बिज़ी हो गई जबकि मुझसे बात करने ही उसने सेलफोन हाथ में लिया था!
अपनी नादानी को कोसते हुए जगदीश ने सोचा : पर यह छोटे महाराज के सिपाही यानी क्या होगा?
जगदीश ने उस मैसेज के रिप्लाय में प्रश्न चिह्न भेज दिया.
मेसेज टोन बजने पर शालिनी ने उत्सुकता से मैसेज जांचा पर जगदीश ने प्रश्न चिह्न भेजा है यह देख उसे निराशा भी हुई और गुस्सा भी आया, उसने जगदीश की ओर चिढ़ते हुए देखा तो वो नजरो में सवाल लिए उसे देख रहा था. शालिनी ने अंगड़ाई लेते हुए गुस्से से ‘उफ्फ !’ कह कर खिड़की के बाहर अपना सिर कर दिया. जगदीश हैरान रह गया. तूलिका ने शालिनी की ‘उफ्फ…’ सुन कर पूछा.
‘क्या हुआ?’
‘कोई नहीं, बस यह सोच कर गुस्सा आ रहा है की बड़ी बड़ी बातें करने वाले लोग छोटी छोटी बातें समझ नहीं सकते!’ कहते हुए शालिनी ने जगदीश को एक काटती निगाह से देखा.
तूलिका को कुछ पल्ले नहीं पड़ा. ‘छोटी छोटी बातें?’ उसने दोहराते हुए पूछा.
‘छोटी याने इतनी छोटी-’ तूलिका को शालिनी ने अपने दाहिने हाथ के अंगूठे और पहली उंगली से गोलाकार बनाकर कहा. ‘लड्डू जितनी छोटी बातें भी भेजे में नहीं जाती…’
शालिनी ने तूलिका को समझाने के बहाने दिखाया हुआ अंगूठा और उंगली से बनाया हुआ गोल आकार और ‘लड्डू’ शब्द से जगदीश को क्लिक हुआ : कहीं यह मेरे टेस्टिकल के बारे में तो नहीं पूछ रही!
उसने तुरंत मैसेज किया:‘तुम मेरे टेस्टिकल के बारे में पूछ रही हो?’
शालिनी ने मेसेज रिंग टोन बजने पर बड़ी बेरुखी से जांचा. फिर उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान आई. उसने टाइप किया : शुक्र है - देरी से ही सही समझ में तो आया - प्लीज़ बताओ अब तो दर्द नहीं हो रहा ना ?’
पढ़ कर जगदीश ने सुकून की सांस ली. फिर मुस्कुराया और टाइप किया : छोटे महाराज के सिपाही! कितना अनूठा नाम दिया तुमने टेस्टिकल को! पर मैं एकदम से कैसे समझ जाता !
खेर, बिल्कुल दर्द नहीं - थैंक्स टू योर मसाज विथ सच अ लाइट टच…
शालिनी के चहेरे पर राहत आई , उसने जवाब में लिखा : थेंक गोड़…! इतने टेंशन में मसाज कर रही थी की मेरी जान हलक में अटक सी गई थी, चालू कार में उंगलियों को बैलेंस करके उन मुर्गी के चूजे जैसे नाजुक सिपाहियों की मालिश करना कितना रिस्की था! अगर एक धक्का भी लग जाता तो फिर कबाड़ा हो जाता ! भैया, एक तो कार और वो भी किसी और की, उपर से दूसरे लोग भी आसपास हो तो क्या कर सकते है! अगर हम अकेले होते तो यकीं मानों में यह मसाज अपनी जीभ से ही करती…
जीभ से टेस्टिकल का मसाज ! यह पढ़ कर जगदीश के लिंग में तनाव का झटका लगा. शालिनी उसके टेस्टिकल को अपनी जीभ से सहला रही है यह दृश्य जगदीश की कल्पना में खड़ा हो गया और वो उत्तेजित हो गया, पल भर के लिए फोन बगल में रख कर आंखें मूंद कर जगदीश ने एक गहरी सांस ली. फिर तुरंत उसका विवेक जागृत हुआ. शालिनी ने यह बात कोई कामुक संदर्भ में नहीं कही थी बल्कि उसके टेस्टिकल की चिंता करते हुए फ़िक्र के कारण कहा था और ऐसी नाजुक भावना को दूसरे अर्थ में ले कर उत्तेजना महसूस करना तो शालिनी के जज्बातो का अपमान करने जैसा है! दोष भावना महसूस करते हुए जगदीश ने जवाब दिया : क्या बच्चों जैसी बातें करती हो! जीभ से मसाज कैसे संभव है! मसाज के लिए तेल जरूरी है -सरसों का तेल जीभ पर कैसे लगाती?’
‘लगाती. क्या हो जाता जुबान को एक दिन तेल लग गया तो?’ शालिनी का तुरंत जवाब आया.
‘तुम से बहस करना बेकार है-’ लिख कर जगदीश ने नमस्कार का इमोजी जोड़ा और आगे लिखा -‘खेर, अब मैं और मेरे छोटे महाराज के सिपाही बिलकुल ठीक है. तुम जरा भी फ़िक्र मत करो.’ और फिर स्माइली टाइप किया.
शालिनी ने जवाब में गुलाब का फूल टाइप किया.
जगदीश ने लिखा. ‘और छोटे महाराज के सिपाही - यह बहुत कमाल का नाम दिया तुमने शालिनी-’ और स्माइल टाइप किया.
‘ओह तो ऐसे नाम से बड़े महाराज खुश हुए !थैंक्स भैय्या. ’ लिख कर शालिनी ने लाफटर का इमोजी डाला.
‘महाराज भी कहोगी और भैया भी?’ टाइप करते हुए जगदीश को हंसी आ गई…
‘तो भैया महाराज ठीक रहेगा?’ शालिनी ने मुस्कुराते हुए पूछा.
यूं कार की पीछे की सीट पर जगदीश और शालिनी एक दूजे को देखे बिना एक दूजे से उलझे हुए थे तब आगे की सीट पर तूलिका लगातार ड्राइविंग मिरर में ताक ताक कर परेशान हो रही थी की जगदीश मिरर में कब देखेगा !
तूलिका को क्या पता की जगदीश इस वक्त दिल के मिरर में खोया हुआ है!
इतने में शालिनी की नजर हाइवे से सटे जंगल में जुगनू के झुंड पर पड़ी. वो उत्साहित हो गई. शहर में जुगनू कहां देखने मिलते है!
‘वो देखो जुगनू !’ कहते हुए फोन बगल में रख कर वो प्रसन्न होते हुए कार के बाहर निकली.
उसी वक्त अपनी कॉन्फरन्स कॉल निपटा कर सुभाष ने अपना फोन बंद किया.
और
उसी वक्त हाईवे से सटी झाड़ियों में से किसी ने सुभाष पर निशाना दागा : धांय धांय…
पहली गोली सुभाष को छाती पर लगी, वो चीखते हुए कार के बोनेट पर लुढ़क गया…
और दूसरी गोली दो सेकंड पहले कार के बाहर निकली हुई शालिनी की बांह और दाहिने स्तन की गोलाई के दरमियान से पार हुई…
(२९ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश
awesome update hai
rakeshhbakshi bhai,
saare pange in dono bhaiyon ke saath hi ho rahe hain,
Ab ek aur nayi musibat aa gayi,
Shalini to baal baal bachi hai,
Ab dekhte hain ki aage kya hota hai,