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Incest ये तो सोचा न था…

rakeshhbakshi

I respect you.
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( १० - ये तो सोचा न था…)

[(९ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा : ‘फिर? इकबाल- ऐ -जुर्म करना जरूरी था?

‘मैं आपसे झूठ कैसे बोलता?’

इंस्पेक्टर मोहिते फिर कन्फ्यूज़ हो गया. उसने पूछा. ‘क्यों नहीं बोल सकते? मैंने जो जूठा बयान बनाया वो ही बात आप मुझे कह सकते थे! या यह कह देते कि किसी गुंडे ने झूमर पर गोली मार दी!’

‘आप पुलिस हो सर.’ जगदीश ने कहा. ‘आप जनता की रक्षा के लिए दिन रात खुद को खतरे में डालते हो. आप से मैं कैसे झूठ बोलूं?’

इंस्पेक्टर मोहिते यह सुन कर दंग रह गया. उसकी आंखे भीग गई.]


आंखे पोंछते हुए इंस्पेक्टर मोहिते ने जगदीश से कहा. ‘मैं तुम्हे ठीक से समझ नहीं पा रहा.’ फिर पानी पी कर थोड़ा स्वस्थ हो कर पूछा. ‘क्या हम लोग पहले कभी मिले है?’

‘नहीं सर. मुझे नहीं लगता.’

‘किस बात से तुम मेरा इतना लिहाज रखते हो जो बिना किसी परिचय के झूठ बोल कर बचने के बजाय सच बोल गये ?’

‘सर, कुछ पेशे ऐसे है जो अवेज में दी जाती सैलरी से बहुत बेशकीमती है. मसलन फौजी, डॉक्टरी, वकालत, शिक्षक,पत्रकारिता, राजनीति और-’

‘और पुलिस?’ इंस्पेक्टर मोहिते ने चकित हो कर पूछा. फिर शालिनी से पूछा. ‘इतनी कम उम्र में ये इतनी ज्ञान की बात कैसे कर लेते है! शुरू से ऐसे है या आपने इनके जीवन में आ कर इनको इतना बदल दिया!’

इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश और शालिनी को पति पत्नी समझ कर भारी हो चुके माहौल को हलका करने की निर्दोष कोशिश कर रहा था पर जगदीश और शालिनी की हालत यह सुन कर अजीब हो गई. दोनों ने आपस में एक ऑड लुक एक्सचेंज किया.

‘जी उम्र कम है मेरी पर वक्त ने बहुत ठोकर मार मार कर मुझे सबक सिखाये है सर, मैं पांच साल का था तब मेरे मां - पिताजी अलग हो गये. उसके बाद तुरंत मेरी मां ने आत्महत्या करली. मेरी मां के साथ पिताजी ने जो सुलूक किया उसके लिए मैं उन को कभी माफ़ नहीं कर पाया. बालिग़ होते ही खाली जेब मैंने अपने छोटे भाई के साथ बाप का महल जैसा घर छोड़ दिया. रास्ते पर आ गया. सोचिये १८ साल का एक लड़का जिसे दुनिया का कोई अनुभव नहीं वो रास्ते पर खड़ा है- न मां का स्नेह न बाप का साया, न सर पर छत, न हाथ में कोई काम ऊपर से साथ में १५ साल के छोटे भाई की जिम्मेदारी!

इन्स्पेक्टर मोहिते के साथ साथ शालिनी भी यह सुन कर दंग थी. शालिनी अपने ससुराल का फेमिली बैकग्राउंड जानती थी पर जुगल और जेठ जी कभी इतने बेसहारा थे और एकदम ज़ीरो से अपना मकाम बना कर आज शान से समाज में अमीर बने है यह वो नहीं जानती थी.

‘सर,’ जगदीश ने आगे कहा.’ जीवन का पूरा इंद्रधनुष मैंने देख लिया है और अभी भी देख रहा हूँ. इंद्रधनुष में तो केवल सात रंग होते है पर जीवन! जीवन का हर पल एक अलग रंग लिए आता है. मुझे इतना समझ में आया की हमें मिलने वाला हर इंसान एक बंद लिफाफा होता है.वो लिफाफा गुड़ न्यूज़ भी हो सकता है और बेड न्यूज़ भी. और हमें न्यूज़ कैसी होगी इसकी खबर न होते हुए उस लिफाफे को खोलना पड़ता है…’

इंस्पेक्टर मोहिते सुन रहा था, उसे समझ में नहीं आ रहा था की क्या रिएक्ट करें. उसे लगा था की एक भोला, सीधा सादा आदमी गुंडों के हाथों फस गया है, क्यों खामखां इस पर गुनहगार का ठप्पा लगाएं ! और अपने वर्क रूल को थोड़ा लचीला बना कर उसने जगदीश को इस झमेले में से निकालने की कोशिश की. अब जगदीश की बातें सुन कर उसे लग रहा था कि यह आदमी बेगुनाह हो सकता है पर भोला नहीं.

दूसरी ओर शालिनी अपने जेठ की खुल रही नई नई परतों से अवाक थी. हाईवे पर दो नौजवान गुंडों को जगदीश ने चीते की स्फूर्ति से चार सेकंड में चीत कर दिया था वो शालिनी के लिए जगदीश का नया परिचय था. रस्तोगी परिवार भावुक और स्नेह की बुनियाद पर खड़ा था. दो भाई और दोनों की पत्नी. चार लोगों में इतना मेल और आपसी सन्मान था की किसी को कभी ऊँचे आवाज में अपनी बात रखनी पड़े ऐसा भी आज तक हुआ नहीं था.

इसलिए जगदीश को हाथ उठाते हुए देखा वो एक रूप के बाद, मवालीओ के जाने के बाद उसे कार में बैठ जाने के लिए जगदीश ने जो सख्त लहजे में कहा था वो जगदीश का दूसरा परिचय था. जगदीश ने इस लहजे में कभी जुगल से भी बात नहीं की थी! और उसे - छोटे भाई की पत्नी - जिसे वो बहु और कभी बेटा कह बुलाता था -उसे डांट दिया था ! पर वजह थी जगदीश का शालिनी के प्रति का स्नेह- यह बात शालिनी समझ रही थी. उन मवालीओ ने शालिनी के बारे में गन्दी बात कही थी और जगदीश की यह हताशा की उसके छोटे भाई की पत्नी को कोई अनाप शनाप बोल गया - उसे क्रोध में ला चुकी थी.

और इसी क्रोध का विस्तारित स्वरूप था जगदीश का साजन भाई को मार डालना.

जगदीश के इन नये रूप से शालिनी अभी अभ्यस्त हो उससे पहले जगदीश के और नये नये रूप उसके सामने आ रहे थे, जिस स्पष्टता से वो अपने किए के बारे में दलील कर रहा था शालिनी को लगा की उसके जेठ ने वकील होना चाहिए था.

और इतने में यह खस्ता हाल में घर छोड़ने वाला फलेश बेक का सीन !

समझदार, बहादुर, बुद्धिमान, काबिल…. उसका जेठ क्या क्या था!

शालिनी जैसे जगदीश पर फ़िदा हो गई! स्नेह और सम्मान के बहाव में उसने जगदीश का हाथ चूम कर अपने सिर पर रख कर कहा, ‘यह हाथ सदा मेरे सर पर रहे यही मेरी ईश्वर से प्रार्थना है.’

शालिनी की इस हरकत से जगदीश और इन्स्पेक्टर मोहिते दोनों चौंक पड़े. इंस्पेक्टर मोहिते के लिए यह एक पति पत्नी के बीच का इमोशनल मोमेंट था. और जगदीश के लिए बहु की भावुकता!

खेर, शालिनी के इस इमोशनल व्यवधान से जगदीश का अतीत में खो जाना रुका, वो जैसे वर्तमान में लौटा.अपने बहाव में जाने क्या फिलोसोफी झाड़े जा रहा था. उसने गला साफ़ कर के कहा. ‘सोरी, मैं कहीं और ही चल पड़ा था…’

इंस्पेक्टर मोहिते ने कहा. ‘नहीं मि. रस्तोगी, सॉरी वाली कोई बात नहीं. पर हम लोग थोड़ा ब्रेक लेते है.’ कह कर इंस्पेक्टर मोहिते खड़ा हुआ और ‘आप लोगो के लिए चाय भेजता हुं , फिर आगे बात करते है की इस केस का क्या करें.’ कह कर बाहर चला गया.

‘जी.’ कह कर जगदीश सोच में उलझ गया. इतने में उसका फोन बजा. देखा चांदनी का कॉल था. जगदीश ने कॉल काट कर शालिनी से कहा. ‘अपना फोन स्विच ऑफ़ कर दो. तुरंत.’

शालिनी ने अपना फोन स्विच ऑफ़ किया. और जगदीश की और देखा. जगदीश ने कहा. ‘चांदनी का कॉल था. मुझे नहीं पता की उसे क्या कहु. इतना कुछ हो गया और हो रहा है कि बताने से वो टेन्स हो जायेगी. इसलिए तुम्हारा फोन भी बंद रहे वो ही अभी ठीक है.’

शालिनी ने हां में सर हिलाया.

शालिनी कुछ देर जगदीश को तकती रही. अपने में गुम जगदीश को यह सुमार नहीं था की शालिनी उसे एकटक तक रही है. अंतत: शालिनी बोली. ‘भैया!’

जगदीश ने शालिनी की ओर देखा. शालिनी कुछ कहना चाहती थी. पर बोल नहीं पाई. आखिर इतना ही बोली. ‘कुछ नहीं…’

जगदीश खुद इतने खयालो में उलझा हुआ था की उसने शालिनी से ज्यादा पूछताछ नहीं की.

***

जुगल खोया खोया सा गेस्ट हाउस के उस हिस्से में पहुंचा जहां बैठ कर कुछ देर पहले उसने जुआ खेलते हुए शराब पी थी. दीक्षित परिवार के भाई बहन को अश्लील बातें और हरकतें करते देख उसका सारा नशा उतर गया था. उसे शराब पीनी थी.

ताश खेलने वाले सभी बिखर गए थे. एक दो वहीं पर शराब पी कर लुढ़क चुके थे. जुगल को सोफे के नीचे से एक शराब की बोतल मिल गई. उसने फटाफट दो पेग पी लिए जैसे की अभी जो देखा -सुना उसे शराब की सहाय से दिमाग पर से पोंछ लेना चाहता हो.

लेकिन तीसरा पेग लेते ही उसे सुधींद्र ने चांदनी भाभी के लिए जो जुमला कसा था वो याद आया : ‘सही है - उसकी गांड में जैसे समंदर की लहरें उठती है…’

जुगल के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. अलबत्ता उसे पता था की उसकी भाभी के नितंब औसत से अधिक आकर्षक है क्योंकि भाभी जब चलती है तब उनमे एक विशिष्ठ कंपन होती है.

-पर आखिर वो भाभी है, मां समान.

जुगल का लालन पालन गरिमा पूर्ण और घर के लोगों का सम्मान करना चाहिए ऐसी सीख के माहौल में हुआ था. अपनी भाभी के नितंब को लेकर उसने कभी कोई कामुक ख़याल अपने दिमाग में आने नहीं दिए थे.

पर आज एक पराये आदमी को भाभी के नितंबो का इस भाषा में ब्यौरा करते हुए सुन वो विचलित हो गया था.

‘हट तेरे की..’ कहते हुए उसने यह सारी बातें दिमाग से दूर करने के इरादे से अपना सर जोरों से झटका. और गेस्ट हाउस में जा कर अपना कमरा खोज कर सो जाने की ठानी.

अपना कमरे वाली मंजिल पर तो वो पहुँच गया पर फिर वो ही कमरा ढूंढ ने की मशक्कत!
जुआ खेल रहा हो उस तरह उसने एक कमरे का दरवाजा धकेल कर देखा. खुल गया. जुगल लड़खड़ाते कदमो से अंदर घुसा. अंदर नजर पड़ते ही उसके होश उड़ गये….

एक अत्यंत जवान और खूबसूरत लड़की बिलकुल नग्न उसके सामने खड़ी थी. किसी अप्सरा जैसा उसका अंग वैभव था. सुडौल कांधे और उस पर बेतरतीब से बिखरे घट्ट श्याम जुल्फें, शिल्प की भांति समप्रमाण स्तन, उस पर अंगूर के दाने समान निपल, मोहक छेद वाली कामोत्तेजक नाभी, गोया वाइन के प्याले जैसी नजाकत से तराशी गई हो वैसी लचीली कमर जो स्तन के उभार से निचे की ओर जाते हुए जानलेवा बल खाते हुए स्वस्थ और पुष्ट नितंबो की गोलाई में खुद का समर्पण सा कर रही थी. मलाई से अगर पुतला बनाया जाए तो जितनी मुलायम रची जा सके उतनी स्निग्ध जांघे, दो जांघों के मध्य में हौशलेवा त्रिकोण. आ...ह जुगल ने सोचा यह वो बरमूडा ट्रायंगल जैसा त्रिकोण है जहां लोग मौत की परवाह किये बिना गोता खाने पर उतारू हो जाए, उस त्रिकोण के ललाट पर महीन ताज़ी हरी घास जैसे तेवर वाला सुकुमार योनिकेश का दुपट्टा….

उफ़ उफ्फ उफ्फ्फ….

जुगल ने उस कन्या के चेहरे की और देखा. उसका चेहरा ऐसे स्तब्ध था जैसे उसने कोई भूत देख लिया हो. उसकी आंखे बड़ी और उत्सुकता की चमक से प्रदीप्त थी. उसके होठों पर उसने अपने नाजुक हाथ को यूं रख दिया था जैसे खुद को चीखने से रोक रही हो.

इतने में बाहर कॉरिडोर में किसी के हंसने की आवाज आई और जुगल का संमोहन टुटा.

एक अनजान वस्त्रहीन लड़की के सामने वो युं खड़े हो कर क्या देखे जा रहा था! उसे खुद पर शर्म आई और ‘सोरी’ कह कर वो तुरंत बाहर निकल गया.

***

चाय के ब्रेक के बाद इंस्पेक्टर मोहिते के साथ बात शुरू करते हुए जगदीश ने कहा. ‘इन शोर्ट सर, पुलिस सेवा की मैं बहुत इज्जत करता हूँ. आप को देख कर झूठ नहीं बोल पाया. सो खुद को आप के सुपुर्द कर दिया.’

‘आज तुमने मुझसे यह कह कर मेरे पद का, मेरे काम का जो सम्मान किया है - शायद मेरी ड्यूटी के लिए खुद राष्ट्रपति कोई अवॉर्ड देते तब भी मुझे इस स्तर के तृप्ति और गर्व का अहसास नहीं होता.’ इन्स्पेक्टर मोहित की आवाज बोलते बोलते जज्बात से भीग सी गई.

शालिनी भी जगदीश को प्रभावित हो कर निहारती रही.

जगदीश ने कुछ पल रुक कर कहा. ‘मुझे नहीं पता की आप मुझे क्यों बचाना चाहते हो. शायद आप को लगता है की एक निर्दोष आदमी हालात के हाथो फंस रहा है. पर एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मेरे किये कराये की जिम्मेदारी ले कर मैंने पुलिस को हेल्प करना चाहिए.’

इंस्पेक्टर मोहिते ने कहा. ‘मैं आप के जज्बों की कदर करता हूँ. अब मेरी बात सुनिए. साजन भाई एक वॉन्टेड मुजरिम था. उसके लिए शूट एट साइट का ऑर्डर ले कर मैं गोडाउन पहुंचा था. न जाने कितनी औरतो को उसने अपनी विकृति का शिकार बनाया था. आपने उसके साथ जो किया वो निजी दुश्मनी से नहीं किया और ना ही निजी फायदे के लिए किया. बल्कि निजी सुरक्षा के चलते एक ऐसा कदम उठाया जिससे सामाजिक सुरक्षा का भी काम हुआ है, जो की पुलिस का जिम्मा है -यही सच है.…. ‘

फिर थोड़ा रुक कर इन्स्पेक्टर मोहिते ने आगे कहा. ‘मि. रस्तोगी, मैं कानून का सिपाही हूँ पर अंधा नहीं हूँ. एक ऐसा काम जिससे समाज को फायदा हुआ है उस के लिए मैं आप को गुनहगार का धब्बा नहीं लगने दे सकता. आप पुलिस को और हेल्प करने की कोशिश न करें आप ने ऑलरेडी हेल्प कर दी है.’

जगदीश यह सुन सोच में पड़ गया फिर बोला. ‘ठीक है मैं अपना बयान बदलने तैयार हूँ.’

‘गुड.’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने मुस्कुराकर कहा. ‘थैंक्स, मेरी बात समझने के लिए. बोलो अब.’ कह कर उन्होंने नया बयान लिखने के लिए कलम उठाई.

‘मेरी एक शर्त है. आप बयान लिखवाने किसी और को भेजिए. आप मुझे इमोशनली कन्फ्यूज़ कर देते हो.’

इंस्पेक्टर मोहिते मुस्कुराकर खड़े हुए और बोले. ‘ओके. पर फिर कुछ उल्टा सीधा मत लिखवा देना.’
और बाहर जाते हुए शालिनी से कहा. ‘आप को गर्व होना चाहिए मैडम रस्तोगी कि आप को एक मर्द आदमी का संग नसीब हुआ है. मर्दानगी गोली चलाने में नहीं होती. मर्दानगी सही वक्त पर सही फैसला लेने की हिम्मत में होती है.आप खुश नसीब हो आप के साथ एक रियल हीरो है.’

शालिनी शर्मा कर बोली. ‘जी शुक्रिया.’

इन्स्पेक्टर मोहिते के जाने के बाद शालिनी ने जगदीश की और देखा. जगदीश ने मुस्कुराकर कहा. ‘उसकी गलती नहीं, उसे लगता है हम पति पत्नी है.’

‘पता है. पर फिर भी मैं खुशनसीब हूँ यह भी सच है, आज क्या क्या हो सकता था यह सोच कर भी मैं कांप उठती हूँ.’

जगदीश ने शालिनी के हाथ पर हाथ रख कर कहा.’नसीब तो मेरा भी अच्छा है जो मामला ज्यादा बिगड़ने से पहले सम्हाल पाया.’

तभी एक हवालदार आ कर उनके सामने बैठते हुए बोला. ‘जी बयान लिखवाइए.’

***

आज दूसरी बार जुगल का नशा हवा हो गया था. एक बार अनचाहा अश्लील देख सुन कर और दूसरी बार अनन्य सौंदर्य को निर्वस्त्र देख कर…

उसी सोफे के नीचे से फिर उसने शराब की बोतल ढूंढ निकाली. नसीब से अभी उसमे शराब बाकी बची थी. उसने तेजी से पेग बनाया. जाम होठों से लगाने से पहले उसे एक नारी स्वर सुनाई दिया : एक्सक्यूज़ मी…’

जुगल ने सर घुमा कर देखा तो वो ही लड़की जिसे कुछ पल पहले वो अजीब स्थिति में मिला था, सामने खड़ी थी…


(१० - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)
 

Sandip2021

दीवाना चूत का
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( १० - ये तो सोचा न था…)

[(९ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा : ‘फिर? इकबाल- ऐ -जुर्म करना जरूरी था?

‘मैं आपसे झूठ कैसे बोलता?’

इंस्पेक्टर मोहिते फिर कन्फ्यूज़ हो गया. उसने पूछा. ‘क्यों नहीं बोल सकते? मैंने जो जूठा बयान बनाया वो ही बात आप मुझे कह सकते थे! या यह कह देते कि किसी गुंडे ने झूमर पर गोली मार दी!’

‘आप पुलिस हो सर.’ जगदीश ने कहा. ‘आप जनता की रक्षा के लिए दिन रात खुद को खतरे में डालते हो. आप से मैं कैसे झूठ बोलूं?’

इंस्पेक्टर मोहिते यह सुन कर दंग रह गया. उसकी आंखे भीग गई.]



आंखे पोंछते हुए इंस्पेक्टर मोहिते ने जगदीश से कहा. ‘मैं तुम्हे ठीक से समझ नहीं पा रहा.’ फिर पानी पी कर थोड़ा स्वस्थ हो कर पूछा. ‘क्या हम लोग पहले कभी मिले है?’

‘नहीं सर. मुझे नहीं लगता.’

‘किस बात से तुम मेरा इतना लिहाज रखते हो जो बिना किसी परिचय के झूठ बोल कर बचने के बजाय सच बोल गये ?’

‘सर, कुछ पेशे ऐसे है जो अवेज में दी जाती सैलरी से बहुत बेशकीमती है. मसलन फौजी, डॉक्टरी, वकालत, शिक्षक,पत्रकारिता, राजनीति और-’

‘और पुलिस?’ इंस्पेक्टर मोहिते ने चकित हो कर पूछा. फिर शालिनी से पूछा. ‘इतनी कम उम्र में ये इतनी ज्ञान की बात कैसे कर लेते है! शुरू से ऐसे है या आपने इनके जीवन में आ कर इनको इतना बदल दिया!’

इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश और शालिनी को पति पत्नी समझ कर भारी हो चुके माहौल को हलका करने की निर्दोष कोशिश कर रहा था पर जगदीश और शालिनी की हालत यह सुन कर अजीब हो गई. दोनों ने आपस में एक ऑड लुक एक्सचेंज किया.

‘जी उम्र कम है मेरी पर वक्त ने बहुत ठोकर मार मार कर मुझे सबक सिखाये है सर, मैं पांच साल का था तब मेरे मां - पिताजी अलग हो गये. उसके बाद तुरंत मेरी मां ने आत्महत्या करली. मेरी मां के साथ पिताजी ने जो सुलूक किया उसके लिए मैं उन को कभी माफ़ नहीं कर पाया. बालिग़ होते ही खाली जेब मैंने अपने छोटे भाई के साथ बाप का महल जैसा घर छोड़ दिया. रास्ते पर आ गया. सोचिये १८ साल का एक लड़का जिसे दुनिया का कोई अनुभव नहीं वो रास्ते पर खड़ा है- न मां का स्नेह न बाप का साया, न सर पर छत, न हाथ में कोई काम ऊपर से साथ में १५ साल के छोटे भाई की जिम्मेदारी!

इन्स्पेक्टर मोहिते के साथ साथ शालिनी भी यह सुन कर दंग थी. शालिनी अपने ससुराल का फेमिली बैकग्राउंड जानती थी पर जुगल और जेठ जी कभी इतने बेसहारा थे और एकदम ज़ीरो से अपना मकाम बना कर आज शान से समाज में अमीर बने है यह वो नहीं जानती थी.

‘सर,’ जगदीश ने आगे कहा.’ जीवन का पूरा इंद्रधनुष मैंने देख लिया है और अभी भी देख रहा हूँ. इंद्रधनुष में तो केवल सात रंग होते है पर जीवन! जीवन का हर पल एक अलग रंग लिए आता है. मुझे इतना समझ में आया की हमें मिलने वाला हर इंसान एक बंद लिफाफा होता है.वो लिफाफा गुड़ न्यूज़ भी हो सकता है और बेड न्यूज़ भी. और हमें न्यूज़ कैसी होगी इसकी खबर न होते हुए उस लिफाफे को खोलना पड़ता है…’

इंस्पेक्टर मोहिते सुन रहा था, उसे समझ में नहीं आ रहा था की क्या रिएक्ट करें. उसे लगा था की एक भोला, सीधा सादा आदमी गुंडों के हाथों फस गया है, क्यों खामखां इस पर गुनहगार का ठप्पा लगाएं ! और अपने वर्क रूल को थोड़ा लचीला बना कर उसने जगदीश को इस झमेले में से निकालने की कोशिश की. अब जगदीश की बातें सुन कर उसे लग रहा था कि यह आदमी बेगुनाह हो सकता है पर भोला नहीं.

दूसरी ओर शालिनी अपने जेठ की खुल रही नई नई परतों से अवाक थी. हाईवे पर दो नौजवान गुंडों को जगदीश ने चीते की स्फूर्ति से चार सेकंड में चीत कर दिया था वो शालिनी के लिए जगदीश का नया परिचय था. रस्तोगी परिवार भावुक और स्नेह की बुनियाद पर खड़ा था. दो भाई और दोनों की पत्नी. चार लोगों में इतना मेल और आपसी सन्मान था की किसी को कभी ऊँचे आवाज में अपनी बात रखनी पड़े ऐसा भी आज तक हुआ नहीं था.


इसलिए जगदीश को हाथ उठाते हुए देखा वो एक रूप के बाद, मवालीओ के जाने के बाद उसे कार में बैठ जाने के लिए जगदीश ने जो सख्त लहजे में कहा था वो जगदीश का दूसरा परिचय था. जगदीश ने इस लहजे में कभी जुगल से भी बात नहीं की थी! और उसे - छोटे भाई की पत्नी - जिसे वो बहु और कभी बेटा कह बुलाता था -उसे डांट दिया था ! पर वजह थी जगदीश का शालिनी के प्रति का स्नेह- यह बात शालिनी समझ रही थी. उन मवालीओ ने शालिनी के बारे में गन्दी बात कही थी और जगदीश की यह हताशा की उसके छोटे भाई की पत्नी को कोई अनाप शनाप बोल गया - उसे क्रोध में ला चुकी थी.

और इसी क्रोध का विस्तारित स्वरूप था जगदीश का साजन भाई को मार डालना.

जगदीश के इन नये रूप से शालिनी अभी अभ्यस्त हो उससे पहले जगदीश के और नये नये रूप उसके सामने आ रहे थे, जिस स्पष्टता से वो अपने किए के बारे में दलील कर रहा था शालिनी को लगा की उसके जेठ ने वकील होना चाहिए था.

और इतने में यह खस्ता हाल में घर छोड़ने वाला फलेश बेक का सीन !

समझदार, बहादुर, बुद्धिमान, काबिल…. उसका जेठ क्या क्या था!

शालिनी जैसे जगदीश पर फ़िदा हो गई! स्नेह और सम्मान के बहाव में उसने जगदीश का हाथ चूम कर अपने सिर पर रख कर कहा, ‘यह हाथ सदा मेरे सर पर रहे यही मेरी ईश्वर से प्रार्थना है.’

शालिनी की इस हरकत से जगदीश और इन्स्पेक्टर मोहिते दोनों चौंक पड़े. इंस्पेक्टर मोहिते के लिए यह एक पति पत्नी के बीच का इमोशनल मोमेंट था. और जगदीश के लिए बहु की भावुकता!

खेर, शालिनी के इस इमोशनल व्यवधान से जगदीश का अतीत में खो जाना रुका, वो जैसे वर्तमान में लौटा.अपने बहाव में जाने क्या फिलोसोफी झाड़े जा रहा था. उसने गला साफ़ कर के कहा. ‘सोरी, मैं कहीं और ही चल पड़ा था…’

इंस्पेक्टर मोहिते ने कहा. ‘नहीं मि. रस्तोगी, सॉरी वाली कोई बात नहीं. पर हम लोग थोड़ा ब्रेक लेते है.’ कह कर इंस्पेक्टर मोहिते खड़ा हुआ और ‘आप लोगो के लिए चाय भेजता हुं , फिर आगे बात करते है की इस केस का क्या करें.’ कह कर बाहर चला गया.

‘जी.’ कह कर जगदीश सोच में उलझ गया. इतने में उसका फोन बजा. देखा चांदनी का कॉल था. जगदीश ने कॉल काट कर शालिनी से कहा. ‘अपना फोन स्विच ऑफ़ कर दो. तुरंत.’

शालिनी ने अपना फोन स्विच ऑफ़ किया. और जगदीश की और देखा. जगदीश ने कहा. ‘चांदनी का कॉल था. मुझे नहीं पता की उसे क्या कहु. इतना कुछ हो गया और हो रहा है कि बताने से वो टेन्स हो जायेगी. इसलिए तुम्हारा फोन भी बंद रहे वो ही अभी ठीक है.’

शालिनी ने हां में सर हिलाया.

शालिनी कुछ देर जगदीश को तकती रही. अपने में गुम जगदीश को यह सुमार नहीं था की शालिनी उसे एकटक तक रही है. अंतत: शालिनी बोली. ‘भैया!’

जगदीश ने शालिनी की ओर देखा. शालिनी कुछ कहना चाहती थी. पर बोल नहीं पाई. आखिर इतना ही बोली. ‘कुछ नहीं…’

जगदीश खुद इतने खयालो में उलझा हुआ था की उसने शालिनी से ज्यादा पूछताछ नहीं की.

***

जुगल खोया खोया सा गेस्ट हाउस के उस हिस्से में पहुंचा जहां बैठ कर कुछ देर पहले उसने जुआ खेलते हुए शराब पी थी. दीक्षित परिवार के भाई बहन को अश्लील बातें और हरकतें करते देख उसका सारा नशा उतर गया था. उसे शराब पीनी थी.


ताश खेलने वाले सभी बिखर गए थे. एक दो वहीं पर शराब पी कर लुढ़क चुके थे. जुगल को सोफे के नीचे से एक शराब की बोतल मिल गई. उसने फटाफट दो पेग पी लिए जैसे की अभी जो देखा -सुना उसे शराब की सहाय से दिमाग पर से पोंछ लेना चाहता हो.

लेकिन तीसरा पेग लेते ही उसे सुधींद्र ने चांदनी भाभी के लिए जो जुमला कसा था वो याद आया : ‘सही है - उसकी गांड में जैसे समंदर की लहरें उठती है…’

जुगल के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. अलबत्ता उसे पता था की उसकी भाभी के नितंब औसत से अधिक आकर्षक है क्योंकि भाभी जब चलती है तब उनमे एक विशिष्ठ कंपन होती है.

-पर आखिर वो भाभी है, मां समान.

जुगल का लालन पालन गरिमा पूर्ण और घर के लोगों का सम्मान करना चाहिए ऐसी सीख के माहौल में हुआ था. अपनी भाभी के नितंब को लेकर उसने कभी कोई कामुक ख़याल अपने दिमाग में आने नहीं दिए थे.

पर आज एक पराये आदमी को भाभी के नितंबो का इस भाषा में ब्यौरा करते हुए सुन वो विचलित हो गया था.

‘हट तेरे की..’ कहते हुए उसने यह सारी बातें दिमाग से दूर करने के इरादे से अपना सर जोरों से झटका. और गेस्ट हाउस में जा कर अपना कमरा खोज कर सो जाने की ठानी.

अपना कमरे वाली मंजिल पर तो वो पहुँच गया पर फिर वो ही कमरा ढूंढ ने की मशक्कत!
जुआ खेल रहा हो उस तरह उसने एक कमरे का दरवाजा धकेल कर देखा. खुल गया. जुगल लड़खड़ाते कदमो से अंदर घुसा. अंदर नजर पड़ते ही उसके होश उड़ गये….

एक अत्यंत जवान और खूबसूरत लड़की बिलकुल नग्न उसके सामने खड़ी थी. किसी अप्सरा जैसा उसका अंग वैभव था. सुडौल कांधे और उस पर बेतरतीब से बिखरे घट्ट श्याम जुल्फें, शिल्प की भांति समप्रमाण स्तन, उस पर अंगूर के दाने समान निपल, मोहक छेद वाली कामोत्तेजक नाभी, गोया वाइन के प्याले जैसी नजाकत से तराशी गई हो वैसी लचीली कमर जो स्तन के उभार से निचे की ओर जाते हुए जानलेवा बल खाते हुए स्वस्थ और पुष्ट नितंबो की गोलाई में खुद का समर्पण सा कर रही थी. मलाई से अगर पुतला बनाया जाए तो जितनी मुलायम रची जा सके उतनी स्निग्ध जांघे, दो जांघों के मध्य में हौशलेवा त्रिकोण. आ...ह जुगल ने सोचा यह वो बरमूडा ट्रायंगल जैसा त्रिकोण है जहां लोग मौत की परवाह किये बिना गोता खाने पर उतारू हो जाए, उस त्रिकोण के ललाट पर महीन ताज़ी हरी घास जैसे तेवर वाला सुकुमार योनिकेश का दुपट्टा….

उफ़ उफ्फ उफ्फ्फ….

जुगल ने उस कन्या के चेहरे की और देखा. उसका चेहरा ऐसे स्तब्ध था जैसे उसने कोई भूत देख लिया हो. उसकी आंखे बड़ी और उत्सुकता की चमक से प्रदीप्त थी. उसके होठों पर उसने अपने नाजुक हाथ को यूं रख दिया था जैसे खुद को चीखने से रोक रही हो.

इतने में बाहर कॉरिडोर में किसी के हंसने की आवाज आई और जुगल का संमोहन टुटा.

एक अनजान वस्त्रहीन लड़की के सामने वो युं खड़े हो कर क्या देखे जा रहा था! उसे खुद पर शर्म आई और ‘सोरी’ कह कर वो तुरंत बाहर निकल गया.

***

चाय के ब्रेक के बाद इंस्पेक्टर मोहिते के साथ बात शुरू करते हुए जगदीश ने कहा. ‘इन शोर्ट सर, पुलिस सेवा की मैं बहुत इज्जत करता हूँ. आप को देख कर झूठ नहीं बोल पाया. सो खुद को आप के सुपुर्द कर दिया.’

‘आज तुमने मुझसे यह कह कर मेरे पद का, मेरे काम का जो सम्मान किया है - शायद मेरी ड्यूटी के लिए खुद राष्ट्रपति कोई अवॉर्ड देते तब भी मुझे इस स्तर के तृप्ति और गर्व का अहसास नहीं होता.’ इन्स्पेक्टर मोहित की आवाज बोलते बोलते जज्बात से भीग सी गई.

शालिनी भी जगदीश को प्रभावित हो कर निहारती रही.

जगदीश ने कुछ पल रुक कर कहा. ‘मुझे नहीं पता की आप मुझे क्यों बचाना चाहते हो. शायद आप को लगता है की एक निर्दोष आदमी हालात के हाथो फंस रहा है. पर एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मेरे किये कराये की जिम्मेदारी ले कर मैंने पुलिस को हेल्प करना चाहिए.’

इंस्पेक्टर मोहिते ने कहा. ‘मैं आप के जज्बों की कदर करता हूँ. अब मेरी बात सुनिए. साजन भाई एक वॉन्टेड मुजरिम था. उसके लिए शूट एट साइट का ऑर्डर ले कर मैं गोडाउन पहुंचा था. न जाने कितनी औरतो को उसने अपनी विकृति का शिकार बनाया था. आपने उसके साथ जो किया वो निजी दुश्मनी से नहीं किया और ना ही निजी फायदे के लिए किया. बल्कि निजी सुरक्षा के चलते एक ऐसा कदम उठाया जिससे सामाजिक सुरक्षा का भी काम हुआ है, जो की पुलिस का जिम्मा है -यही सच है.…. ‘

फिर थोड़ा रुक कर इन्स्पेक्टर मोहिते ने आगे कहा. ‘मि. रस्तोगी, मैं कानून का सिपाही हूँ पर अंधा नहीं हूँ. एक ऐसा काम जिससे समाज को फायदा हुआ है उस के लिए मैं आप को गुनहगार का धब्बा नहीं लगने दे सकता. आप पुलिस को और हेल्प करने की कोशिश न करें आप ने ऑलरेडी हेल्प कर दी है.’

जगदीश यह सुन सोच में पड़ गया फिर बोला. ‘ठीक है मैं अपना बयान बदलने तैयार हूँ.’

‘गुड.’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने मुस्कुराकर कहा. ‘थैंक्स, मेरी बात समझने के लिए. बोलो अब.’ कह कर उन्होंने नया बयान लिखने के लिए कलम उठाई.

‘मेरी एक शर्त है. आप बयान लिखवाने किसी और को भेजिए. आप मुझे इमोशनली कन्फ्यूज़ कर देते हो.’

इंस्पेक्टर मोहिते मुस्कुराकर खड़े हुए और बोले. ‘ओके. पर फिर कुछ उल्टा सीधा मत लिखवा देना.’
और बाहर जाते हुए शालिनी से कहा. ‘आप को गर्व होना चाहिए मैडम रस्तोगी कि आप को एक मर्द आदमी का संग नसीब हुआ है. मर्दानगी गोली चलाने में नहीं होती. मर्दानगी सही वक्त पर सही फैसला लेने की हिम्मत में होती है.आप खुश नसीब हो आप के साथ एक रियल हीरो है.’

शालिनी शर्मा कर बोली. ‘जी शुक्रिया.’

इन्स्पेक्टर मोहिते के जाने के बाद शालिनी ने जगदीश की और देखा. जगदीश ने मुस्कुराकर कहा. ‘उसकी गलती नहीं, उसे लगता है हम पति पत्नी है.’

‘पता है. पर फिर भी मैं खुशनसीब हूँ यह भी सच है, आज क्या क्या हो सकता था यह सोच कर भी मैं कांप उठती हूँ.’

जगदीश ने शालिनी के हाथ पर हाथ रख कर कहा.’नसीब तो मेरा भी अच्छा है जो मामला ज्यादा बिगड़ने से पहले सम्हाल पाया.’

तभी एक हवालदार आ कर उनके सामने बैठते हुए बोला. ‘जी बयान लिखवाइए.’

***

आज दूसरी बार जुगल का नशा हवा हो गया था. एक बार अनचाहा अश्लील देख सुन कर और दूसरी बार अनन्य सौंदर्य को निर्वस्त्र देख कर…

उसी सोफे के नीचे से फिर उसने शराब की बोतल ढूंढ निकाली. नसीब से अभी उसमे शराब बाकी बची थी. उसने तेजी से पेग बनाया. जाम होठों से लगाने से पहले उसे एक नारी स्वर सुनाई दिया : एक्सक्यूज़ मी…’

जुगल ने सर घुमा कर देखा तो वो ही लड़की जिसे कुछ पल पहले वो अजीब स्थिति में मिला था, सामने खड़ी थी…


(१० - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)
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(९ - ये तो सोचा न था…)

[(८ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :

शालिनी जगदीश के कंधे पर सर रख कर रोने लगी. उसकी आँखों के सामने पूरी दुर्घटना रिवाइंड हो रही थी : मवालीओ का उसे रांड कह कर बुलाना से ले कर साजन भाई को जेठ का मार देना… और फिर पुलिस का पूछना : क्या सजा होगी यह अंदाजा है?

सीधी सादी निश्छल शालिनी के लिए यह सब बहुत बड़े आघात थे.

हे भगवान ये सब क्या हो गया? - सोच कर शालिनी की आँखों में आँसू रुक नहीं रहे थे.

जगदीश का हाथ यंत्रवत शालिनी को सांत्वना देने उसकी की पीठ पर फिरता रहा, शालिनी की कमीज़ में उभरे ब्रा के हुक को महसूस करता रहा और दिमाग में बीते हुए यह अजीब मंजर के नजारो का कोलाज कैलिडोस्कोप की डिज़ाइन की तरह चकराता रहा.]


पूना के दीक्षित परिवार के शादी वाले फ़ार्म हॉउस में चांदनी और जुगल की हालत सदमे में गर्क थी.

चांदनी सोच रही थी : इतने अमीर और पढ़े लिखे लोग है फिर यह क्या जाहिल पन ? की भाई और बहन ही शुरू हो गए? और दोनों की जुबान कितनी सस्ती - किसी बाजारू मवाली लोगों जैसी थी? ‘तेरी क्यों फट गई?’ और ‘मुझे पता था, मेरी लेने के लिए ही मेरे बाबू ने अभी मुझे यहां बुलाया है…’

कैसे बात करते है यह लोग? - मेरी लेने के लिए!

चांदनी का मन खट्टा हो गया.

उसे अपने बड़े भैया नितीश की याद आई. क्या नितीश कभी उसके साथ ऐसा कर सकता है? अरे नितीश छोडो क्या दुनिया में कोई भी भाई अपनी सगी बहन का घाघरा यूँ उठा सकता है?

उसे याद आया की उसका भैया नितीश उसकी शादी के समय कितना उदास रहता था - बहना की विदाई होगी इस गम में.

और यहां तो भाई अपनी पैंट की झीप खोल कर बहन के साथ शुरू हो गया!

चांदनी ने अपना सर थाम लिया.

***

इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश और शालिनी के कमरे में दाखिल हुआ.
‘बताओ क्या हुआ था?’ उसने पूछा. जगदीश बताने लगा कैसे वो लोग गोडाउन जबरदस्ती ले जाए गए. कैसे साजन भाई ने कहा की ‘ऐसे बोबले वाली को रांड ही बोलते है…. ‘ और अचानक बात करते हुए जगदीश उठ के वॉशरूम चला गया. जगदीश के जाते ही इंस्पेक्टर मोहिते शालिनी की छाती को बेशर्मी से घूरने लगा. शालिनी एकदम अनकम्फर्टेबल हो गई. इन्स्पेक्टर मोहिते ने उसे कहा. ‘सच पूछो तो तुम मुझे भी रांड ही लगती हो…’

‘आप को बात करने की तमीज़ नहीं है?’ अपने स्तनों पर दुपट्टा ठीक से ढांकते हुए शालिनी ने क्रोध और अपमान से कांपती हुई आवाज में कहा.

इतने में कमरे में साजन भाई आया…उसके चेहरे पर झूमर के कांच अभी भी धंसे हुए थे. ऐसी हालत में भी वो ठीक से चल के आ गया और इंस्पेक्टर से कहने लगा. ‘अरे सर, साली का दुपट्टा हटा कर देखो तब यकीन होगा…पक्की रांड है एकसो एक टका!’

मोहिते ने हंस कर पूछा. ‘ऐसा?’ और तपाक से उसने शालिनी का दुपट्टा खींच लिया. डर कर शालिनी ने अपने हाथो से अपनी छाती ढांक ली. यह देख साजन भाई गुर्रा कर बोलै. ‘सर, इस रांड को बोलो कमीज़ खोलने…’

मोहिते ने कहा. ‘अपनी कमीज़ के हुक खोलो.’

‘नहीं.’ शालिनी अपने हाथ छाती पर जोरों से दबा कर चीखी.

‘ये छिनाल ऐसे नहीं मानेगी…’ कह कर साजन भाई ने रिवॉल्वर निकाल कर उसकी और ताकी और कहा. ‘बोलाना खोल कमीज़ के हुक ? चल निकाल तेरा बड़ा बड़ा बोबा. दिखा सर को!’

शालिनी के पसीने छूट गए. घबराते हुए उसने सोचा- ये जेठ जी भी एन मौके पर गायब हो गए!

साजन भाई ने चिढ़ते हुए कहा. ‘क्यों शर्माती है? अभी तो मेरे गोडाउन में निकाला था न अपना मक्खन का गोला? फिर क्यों शरीफाई ठोकती है? चल चल… खोल फटाफट-’

बेबस शालिनी ने नजरें झुका कर कांपते हाथो से अपनी कमीज के हुक खोले… और ब्रा हटा कर अपना एक स्तन बाहर किया.

‘देखा सर? है न टनाटन!’ साजन भाई ने यूँ कहा जैसे कोई व्यापारी अपना माल ग्राहक को दिखा रहा हो!. फिर शालिनी से गुर्रा कर कहा. ‘निपल दिखा निपल - कमीनी -हर बार ये बोलना पड़ेगा क्या?’

अचानक तभी जगदीश आ गया और दहाड़ कर बोला. ‘क्या हो रहा है यह सब? ये कोई रांड नहीं समझे?’ और धड़ धड़ उसने साजन भाई और इंस्पेक्टर मोहित को गोली मार दी. दोनों लुढ़क पड़े. शालिनी अपना नंगा स्तन हिलाते हुए दौड़ कर जगदीश को चिपक गई. जगदीश ने कहा. ‘बहु बेटा, अपनी छाती ठीक करो.’ तब उसे याद आया की स्तन अभी बाहर है. पर वो इतनी डर गई थी की स्तन कमीज़ में डालने के बजाय जगदीश को और कस के चिपक गई. जगदीश ने उसकी पीठ सहलाते हुए पूछा. ‘क्या हुआ शालिनी?

शालिनी ने जगदीश की और देखा. वो आश्चर्य से पूछ रहा था. ‘इतना पसीना पसीना क्यों हो गई हो?’

शालिनी को अपना स्तन बाहर है यह याद आया. उसने जगदीश के हाथ को छोड़ अपना स्तन अंदर करना चाहा पर उसका स्तन बाहर नहीं था. उसने कमरे में देखा तो किसी की लाश पड़ी हुई नहीं थी.

ओह क्या यह सपना था ?

कुछ पलों में साजन भाई ने शालिनी के नाजुक दिमाग पर ऐसा आतंक मचाया था की वो मर गया पर उसका खौफ अभी तक शालिनी के दिलो दिमाग पर हावी था. कब जगदीश के कांधे पर सर रखे हुए उसकी आंख लग गई उसे याद नहीं.

उसने दुपट्टे से अपना मुंह पोछा. करीब पड़े एक टेबल पर से जगदीश ने पानी की बोतल उठा कर उसका ढक्क्न खोल कर शालिनी को कहा. ‘लो, थोड़ा पानी पीओ. तुमने शायद कोई बुरा सपना देखा.’

शालिनी बोली. ‘जी, मैं बहुत डर गई थी भैया.’

‘हां, नींद में तुमने मेरा हाथ इतना जोर से कसा की मुझे शक हुआ कुछ भयानक देख लिया है तुमने…’

अब बेचारी बोले तो क्या बोले की उसने क्या देखा!

और तब इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश और शालिनी के कमरे में दाखिल हुआ.

‘सोरी, आप लोगो को वेइट करना पड़ा. बताइये क्या हुआ था?’ उसने एक कुर्सी पर बैठते हुए पूछा.

जगदीश ने कम शब्दों में जो कुछ हुआ था यह बताना शुरू किया. अपने सपने को दोहराता देख शालिनी को फिर टेंशन हो गया अलबत्ता जगदीश ने उनके साथ की गई बदतमीजी के बारे में पूरी डिटेल नहीं बताई की किस तरह दोनों को अधनंगा करके एक दूसरे के अंगो की साइज़ पूछी गई थी. जगदीश ने केवल इतना बताया कि ‘हम लोग पूना जा रहे थे…’

और शालिनी की आंखों के सामने सारा फलेश बैक आने लगा.

‘आप दोनों के नाम ?’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने रजिस्टर खोलते हुए पूछा.

‘मेरा नाम जगदीश रस्तोगी है. मेरा अपना बिज़नेस है. स्टील मैटेरियल सप्लाई का.’ जगदीश ने अपना कार्ड देते हुए कहा.

‘और आप?’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने शालिनी से पूछा.

‘शालिनी जे. रस्तोगी…’ शालिनी ने कहा.

‘ओके, तो आप पति- पत्नी हो…?’ इन्स्पेक्टर ने कहा. शालिनी हिचकिचाई, जगदीश बोलने गया की यह मेरे छोटे भाई की पत्नी है इतने में इंस्पेक्टर का फोन बजा. वो फोन पर बात करने लगा. फोन निपटा कर उसने पूछा. ‘अब बताइए आप उस अड्डे पर कैसे पहुंचे?’

‘हम लोग पूना जा रहे थे, रास्ते में टायर बदलने रुके तब पहले साजन के गुंडों ने शालिनी के साथ बुरा व्यवहार किया. मैंने उन्हें टोका तो हमें जबरन साजन भाई के अड्डे पर ले गए. वहां पर साजन भाई और उसके गुंडे हमारे साथ बदतमीज़ी करने वाले थे इतने में कोई पक्या नामका गुंडा उनके इलाके में आया है ऐसा उन को पता चला सो सारे गुंडे उस किसी पक्या के साथ लड़ने निकल गये. और साजन भाई अड्डे पर ही रुका था. वो हम दोनों से उलटी सीधी बातें करने लगा. एक हद के बाद उस शैतान की हरकतें नाकाबिले बर्दाश्त हो गई. अगर मैं उसको मार नहीं देता तो मैं पागल हो जाता.’

इन्स्पेक्टर मोहिते ने पूछा. ‘आपने इस से पहले कभी मार पीट की है? या और कोई जुर्म किया है?’

जगदीश ने कहा. ‘सर. मैं एक बिज़नेस मेन हूँ. सरकार को टैक्स भरने वाला और सभी कानूनों का पालन करने वाला एक सीधा सादा नागरिक. न आज के पहले मैंने कोई जुर्म किया है न आज. कानून की किताब के मुताबिक मैं एक हत्यारा हूँ पर न्याय की किताब में मेरी हरकत गुनाह नहीं यह मुझे यकीन है.’

‘आप भावुक हो कर बोल रहे हो मि. रस्तोगी. कानून भावुकता से नहीं चलता.’

‘चलना चाहिए भी नहीं. मैं सिर्फ अपना पक्ष बता रहा हु. आप को यह नहीं कह रहा की मुझे अपराधी न माने. सिर्फ यह कह रहा हूँ की जिस तरह सारे अपराधी पकड़े नहीं जाते उसी तरह जो पकडे जाते है वो सारे अपराधी नहीं होते. आप बेशक मुझे अपराधी माने बल्कि इकबाल -ऐ जुर्म तो मैंने ही किया है.मैं आप से कोई रियायत नहीं मांग रहा. आप अपनी कार्रवाई जरूर कीजिये.’

इन्स्पेक्टर मोहिते जगदीश को निहारते रहे. फिर बोले.

‘आप की सारी बात मैंने सुन ली. अब आप मेरी बात सुनिए.’

शालिनी ने डर कर जगदीश का हाथ कस कर पकड़ लिया. इन्स्पेक्टर मोहिते ने यह नोटिस किया. जगदीश ने शालिनी को नजरों से हौसला दिया. और इन्स्पेक्टर मोहिते की बात सुनने लगा.

‘उस गोडाउन में साजन भाई आप दोनों के साथ बदतमीजी कर रहा था. आप को मौका मिलते ही आपने साजन भाई की रिवाल्वर छीन ली और उसे मारने नहीं बल्कि केवल डराने के उद्देश्य से आपने हवा में गोली चलाई. संयोग से गोली झूमर को लगी और झूमर टूट कर साजन भाई पर गिर पड़ा जिससे उसकी मौत हो गई. यह एक दुर्घटना थी और आपका साजन भाई को कोई हानि पहुंचाने का इरादा नहीं था.’

शालिनी और जगदीश यह सुनकर आश्चर्यचकित हो गए.

जगदीश ने पूछा. ‘ये आप क्या बता रहे हो?’

इन्स्पेक्टर मोहिते ने मुस्कुराकर कहा. ‘आपका बयान.’

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा. फिर जगदीश ने कहा. ‘पर मैंने कुछ और कहा!’

‘उसे भूल जाओ और मैंने जो कहा वैसा कहो.’

शालिनी यह सुन कर खुश होने ही वाली थी की जगदीश ने कहा. ‘बिलकुल नहीं. मैं ऐसा बयान नहीं दे सकता.’

अब चौंकने की बारी शालिनी और इन्स्पेक्टर मोहित की थी.

शालिनी ने जगदीश को कहा ‘इंस्पेक्टर साहब खुद कह रहे है फिर आप क्यों?... ‘

जगदीश ने शालिनी की बात काट कर कह. ‘एक मिनिट.’ फिर इंस्पेक्टर मोहिते से कहा. ‘मैं यह कैसे कहूं कि मेरा साजन भाई को हानि पहुंचाने का इरादा नहीं था ? जब की मैं तो उसकी जान दर्दनाक तरीके से लेना चाहता था और ली. यह कोई दुर्घटना नहीं थी. और आप का शुक्रिया पर आप मुझे बचाना क्यों चाहते है?’

‘आप जैसा अजीब आदमी मैंने अब तक देखा नहीं.’ इंस्पेक्टर मोहिते ने कहा. ‘एक बात बताओ. अगर मैं वहां उस गोडाउन में नहीं पहुँचता तब तुम क्या करते? गोडाउन से निकल कर पुलिस स्टेशन आ कर खुद को कानून के हवाले कर देते?’

‘नहीं.’ जगदीश ने कहा. शालिनी और इंस्पेक्टर मोहिते दोनों को जगदीश के जवाब से आश्चर्य हुआ.जगदीश ने आगे कहा. ‘न मैं कानून में फसना चाहता हूँ, न कानून से बचना चाहता हूँ. मै ने क्या सोचा था यह बताता हूँ. मैं रिवाल्वर वहीं पर फेंक कर शालिनी के साथ वहां से भाग निकलता…’

‘और रिवाल्वर पर की आपकी फिंगरप्रिंट की वजह से पुलिस आज नहीं तो कल आप तक पहुँच ही जाती. तब?’

‘मैंने अपने हाथ पर यह दुपट्टा लपेट लिया था. मेरी फिंगरप्रिंट रिवाल्वर पर नहीं मिलती.’

‘ओह. ठीक. पर आप खुद भाग निकलना चाहते थे तो फिर मुझसे अपने गुनाह का इकरार क्यों किया? आप बहुत उलझा रहे हो.’ इंस्पेक्टर मोहिते ने पूछा.

‘मुझे निकलने का मौका मिले उससे पहले दरवाजे पर दस्तक हुई और मुझे नहीं पता था कि दरवाजे पर कौन है सो दुपट्टा वापस शालिनी को दे कर मुझे नंगे हाथ रिवाल्वर थामनी पड़ी. रिवाल्वर पर मेरे फिंगर प्रिंट आ गए. दरवाजा खोला तो आप थे.’

‘फिर? इकबाल- ऐ -जुर्म करना जरूरी था?

‘मैं आपसे झूठ कैसे बोलता?’

इंस्पेक्टर मोहिते फिर कन्फ्यूज़ हो गया. उसने पूछा. ‘क्यों नहीं बोल सकते? मैंने जो जूठा बयान बनाया वो ही बात आप मुझे कह सकते थे! या यह कह देते कि किसी गुंडे ने झूमर पर गोली मार दी!’

‘आप पुलिस हो सर.’ जगदीश ने कहा. ‘आप जनता की रक्षा के लिए दिन रात खुद को खतरे में डालते हो. आप से मैं कैसे झूठ बोलूं?’

इंस्पेक्टर मोहिते यह सुन कर दंग रह गया. उसकी आंखे भीग गई.

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[(९ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा : ‘फिर? इकबाल- ऐ -जुर्म करना जरूरी था?

‘मैं आपसे झूठ कैसे बोलता?’

इंस्पेक्टर मोहिते फिर कन्फ्यूज़ हो गया. उसने पूछा. ‘क्यों नहीं बोल सकते? मैंने जो जूठा बयान बनाया वो ही बात आप मुझे कह सकते थे! या यह कह देते कि किसी गुंडे ने झूमर पर गोली मार दी!’

‘आप पुलिस हो सर.’ जगदीश ने कहा. ‘आप जनता की रक्षा के लिए दिन रात खुद को खतरे में डालते हो. आप से मैं कैसे झूठ बोलूं?’

इंस्पेक्टर मोहिते यह सुन कर दंग रह गया. उसकी आंखे भीग गई.]



आंखे पोंछते हुए इंस्पेक्टर मोहिते ने जगदीश से कहा. ‘मैं तुम्हे ठीक से समझ नहीं पा रहा.’ फिर पानी पी कर थोड़ा स्वस्थ हो कर पूछा. ‘क्या हम लोग पहले कभी मिले है?’

‘नहीं सर. मुझे नहीं लगता.’

‘किस बात से तुम मेरा इतना लिहाज रखते हो जो बिना किसी परिचय के झूठ बोल कर बचने के बजाय सच बोल गये ?’

‘सर, कुछ पेशे ऐसे है जो अवेज में दी जाती सैलरी से बहुत बेशकीमती है. मसलन फौजी, डॉक्टरी, वकालत, शिक्षक,पत्रकारिता, राजनीति और-’

‘और पुलिस?’ इंस्पेक्टर मोहिते ने चकित हो कर पूछा. फिर शालिनी से पूछा. ‘इतनी कम उम्र में ये इतनी ज्ञान की बात कैसे कर लेते है! शुरू से ऐसे है या आपने इनके जीवन में आ कर इनको इतना बदल दिया!’

इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश और शालिनी को पति पत्नी समझ कर भारी हो चुके माहौल को हलका करने की निर्दोष कोशिश कर रहा था पर जगदीश और शालिनी की हालत यह सुन कर अजीब हो गई. दोनों ने आपस में एक ऑड लुक एक्सचेंज किया.

‘जी उम्र कम है मेरी पर वक्त ने बहुत ठोकर मार मार कर मुझे सबक सिखाये है सर, मैं पांच साल का था तब मेरे मां - पिताजी अलग हो गये. उसके बाद तुरंत मेरी मां ने आत्महत्या करली. मेरी मां के साथ पिताजी ने जो सुलूक किया उसके लिए मैं उन को कभी माफ़ नहीं कर पाया. बालिग़ होते ही खाली जेब मैंने अपने छोटे भाई के साथ बाप का महल जैसा घर छोड़ दिया. रास्ते पर आ गया. सोचिये १८ साल का एक लड़का जिसे दुनिया का कोई अनुभव नहीं वो रास्ते पर खड़ा है- न मां का स्नेह न बाप का साया, न सर पर छत, न हाथ में कोई काम ऊपर से साथ में १५ साल के छोटे भाई की जिम्मेदारी!

इन्स्पेक्टर मोहिते के साथ साथ शालिनी भी यह सुन कर दंग थी. शालिनी अपने ससुराल का फेमिली बैकग्राउंड जानती थी पर जुगल और जेठ जी कभी इतने बेसहारा थे और एकदम ज़ीरो से अपना मकाम बना कर आज शान से समाज में अमीर बने है यह वो नहीं जानती थी.

‘सर,’ जगदीश ने आगे कहा.’ जीवन का पूरा इंद्रधनुष मैंने देख लिया है और अभी भी देख रहा हूँ. इंद्रधनुष में तो केवल सात रंग होते है पर जीवन! जीवन का हर पल एक अलग रंग लिए आता है. मुझे इतना समझ में आया की हमें मिलने वाला हर इंसान एक बंद लिफाफा होता है.वो लिफाफा गुड़ न्यूज़ भी हो सकता है और बेड न्यूज़ भी. और हमें न्यूज़ कैसी होगी इसकी खबर न होते हुए उस लिफाफे को खोलना पड़ता है…’

इंस्पेक्टर मोहिते सुन रहा था, उसे समझ में नहीं आ रहा था की क्या रिएक्ट करें. उसे लगा था की एक भोला, सीधा सादा आदमी गुंडों के हाथों फस गया है, क्यों खामखां इस पर गुनहगार का ठप्पा लगाएं ! और अपने वर्क रूल को थोड़ा लचीला बना कर उसने जगदीश को इस झमेले में से निकालने की कोशिश की. अब जगदीश की बातें सुन कर उसे लग रहा था कि यह आदमी बेगुनाह हो सकता है पर भोला नहीं.

दूसरी ओर शालिनी अपने जेठ की खुल रही नई नई परतों से अवाक थी. हाईवे पर दो नौजवान गुंडों को जगदीश ने चीते की स्फूर्ति से चार सेकंड में चीत कर दिया था वो शालिनी के लिए जगदीश का नया परिचय था. रस्तोगी परिवार भावुक और स्नेह की बुनियाद पर खड़ा था. दो भाई और दोनों की पत्नी. चार लोगों में इतना मेल और आपसी सन्मान था की किसी को कभी ऊँचे आवाज में अपनी बात रखनी पड़े ऐसा भी आज तक हुआ नहीं था.


इसलिए जगदीश को हाथ उठाते हुए देखा वो एक रूप के बाद, मवालीओ के जाने के बाद उसे कार में बैठ जाने के लिए जगदीश ने जो सख्त लहजे में कहा था वो जगदीश का दूसरा परिचय था. जगदीश ने इस लहजे में कभी जुगल से भी बात नहीं की थी! और उसे - छोटे भाई की पत्नी - जिसे वो बहु और कभी बेटा कह बुलाता था -उसे डांट दिया था ! पर वजह थी जगदीश का शालिनी के प्रति का स्नेह- यह बात शालिनी समझ रही थी. उन मवालीओ ने शालिनी के बारे में गन्दी बात कही थी और जगदीश की यह हताशा की उसके छोटे भाई की पत्नी को कोई अनाप शनाप बोल गया - उसे क्रोध में ला चुकी थी.

और इसी क्रोध का विस्तारित स्वरूप था जगदीश का साजन भाई को मार डालना.

जगदीश के इन नये रूप से शालिनी अभी अभ्यस्त हो उससे पहले जगदीश के और नये नये रूप उसके सामने आ रहे थे, जिस स्पष्टता से वो अपने किए के बारे में दलील कर रहा था शालिनी को लगा की उसके जेठ ने वकील होना चाहिए था.

और इतने में यह खस्ता हाल में घर छोड़ने वाला फलेश बेक का सीन !

समझदार, बहादुर, बुद्धिमान, काबिल…. उसका जेठ क्या क्या था!

शालिनी जैसे जगदीश पर फ़िदा हो गई! स्नेह और सम्मान के बहाव में उसने जगदीश का हाथ चूम कर अपने सिर पर रख कर कहा, ‘यह हाथ सदा मेरे सर पर रहे यही मेरी ईश्वर से प्रार्थना है.’

शालिनी की इस हरकत से जगदीश और इन्स्पेक्टर मोहिते दोनों चौंक पड़े. इंस्पेक्टर मोहिते के लिए यह एक पति पत्नी के बीच का इमोशनल मोमेंट था. और जगदीश के लिए बहु की भावुकता!

खेर, शालिनी के इस इमोशनल व्यवधान से जगदीश का अतीत में खो जाना रुका, वो जैसे वर्तमान में लौटा.अपने बहाव में जाने क्या फिलोसोफी झाड़े जा रहा था. उसने गला साफ़ कर के कहा. ‘सोरी, मैं कहीं और ही चल पड़ा था…’

इंस्पेक्टर मोहिते ने कहा. ‘नहीं मि. रस्तोगी, सॉरी वाली कोई बात नहीं. पर हम लोग थोड़ा ब्रेक लेते है.’ कह कर इंस्पेक्टर मोहिते खड़ा हुआ और ‘आप लोगो के लिए चाय भेजता हुं , फिर आगे बात करते है की इस केस का क्या करें.’ कह कर बाहर चला गया.

‘जी.’ कह कर जगदीश सोच में उलझ गया. इतने में उसका फोन बजा. देखा चांदनी का कॉल था. जगदीश ने कॉल काट कर शालिनी से कहा. ‘अपना फोन स्विच ऑफ़ कर दो. तुरंत.’

शालिनी ने अपना फोन स्विच ऑफ़ किया. और जगदीश की और देखा. जगदीश ने कहा. ‘चांदनी का कॉल था. मुझे नहीं पता की उसे क्या कहु. इतना कुछ हो गया और हो रहा है कि बताने से वो टेन्स हो जायेगी. इसलिए तुम्हारा फोन भी बंद रहे वो ही अभी ठीक है.’

शालिनी ने हां में सर हिलाया.

शालिनी कुछ देर जगदीश को तकती रही. अपने में गुम जगदीश को यह सुमार नहीं था की शालिनी उसे एकटक तक रही है. अंतत: शालिनी बोली. ‘भैया!’

जगदीश ने शालिनी की ओर देखा. शालिनी कुछ कहना चाहती थी. पर बोल नहीं पाई. आखिर इतना ही बोली. ‘कुछ नहीं…’

जगदीश खुद इतने खयालो में उलझा हुआ था की उसने शालिनी से ज्यादा पूछताछ नहीं की.

***

जुगल खोया खोया सा गेस्ट हाउस के उस हिस्से में पहुंचा जहां बैठ कर कुछ देर पहले उसने जुआ खेलते हुए शराब पी थी. दीक्षित परिवार के भाई बहन को अश्लील बातें और हरकतें करते देख उसका सारा नशा उतर गया था. उसे शराब पीनी थी.


ताश खेलने वाले सभी बिखर गए थे. एक दो वहीं पर शराब पी कर लुढ़क चुके थे. जुगल को सोफे के नीचे से एक शराब की बोतल मिल गई. उसने फटाफट दो पेग पी लिए जैसे की अभी जो देखा -सुना उसे शराब की सहाय से दिमाग पर से पोंछ लेना चाहता हो.

लेकिन तीसरा पेग लेते ही उसे सुधींद्र ने चांदनी भाभी के लिए जो जुमला कसा था वो याद आया : ‘सही है - उसकी गांड में जैसे समंदर की लहरें उठती है…’

जुगल के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. अलबत्ता उसे पता था की उसकी भाभी के नितंब औसत से अधिक आकर्षक है क्योंकि भाभी जब चलती है तब उनमे एक विशिष्ठ कंपन होती है.

-पर आखिर वो भाभी है, मां समान.

जुगल का लालन पालन गरिमा पूर्ण और घर के लोगों का सम्मान करना चाहिए ऐसी सीख के माहौल में हुआ था. अपनी भाभी के नितंब को लेकर उसने कभी कोई कामुक ख़याल अपने दिमाग में आने नहीं दिए थे.

पर आज एक पराये आदमी को भाभी के नितंबो का इस भाषा में ब्यौरा करते हुए सुन वो विचलित हो गया था.

‘हट तेरे की..’ कहते हुए उसने यह सारी बातें दिमाग से दूर करने के इरादे से अपना सर जोरों से झटका. और गेस्ट हाउस में जा कर अपना कमरा खोज कर सो जाने की ठानी.

अपना कमरे वाली मंजिल पर तो वो पहुँच गया पर फिर वो ही कमरा ढूंढ ने की मशक्कत!
जुआ खेल रहा हो उस तरह उसने एक कमरे का दरवाजा धकेल कर देखा. खुल गया. जुगल लड़खड़ाते कदमो से अंदर घुसा. अंदर नजर पड़ते ही उसके होश उड़ गये….

एक अत्यंत जवान और खूबसूरत लड़की बिलकुल नग्न उसके सामने खड़ी थी. किसी अप्सरा जैसा उसका अंग वैभव था. सुडौल कांधे और उस पर बेतरतीब से बिखरे घट्ट श्याम जुल्फें, शिल्प की भांति समप्रमाण स्तन, उस पर अंगूर के दाने समान निपल, मोहक छेद वाली कामोत्तेजक नाभी, गोया वाइन के प्याले जैसी नजाकत से तराशी गई हो वैसी लचीली कमर जो स्तन के उभार से निचे की ओर जाते हुए जानलेवा बल खाते हुए स्वस्थ और पुष्ट नितंबो की गोलाई में खुद का समर्पण सा कर रही थी. मलाई से अगर पुतला बनाया जाए तो जितनी मुलायम रची जा सके उतनी स्निग्ध जांघे, दो जांघों के मध्य में हौशलेवा त्रिकोण. आ...ह जुगल ने सोचा यह वो बरमूडा ट्रायंगल जैसा त्रिकोण है जहां लोग मौत की परवाह किये बिना गोता खाने पर उतारू हो जाए, उस त्रिकोण के ललाट पर महीन ताज़ी हरी घास जैसे तेवर वाला सुकुमार योनिकेश का दुपट्टा….

उफ़ उफ्फ उफ्फ्फ….

जुगल ने उस कन्या के चेहरे की और देखा. उसका चेहरा ऐसे स्तब्ध था जैसे उसने कोई भूत देख लिया हो. उसकी आंखे बड़ी और उत्सुकता की चमक से प्रदीप्त थी. उसके होठों पर उसने अपने नाजुक हाथ को यूं रख दिया था जैसे खुद को चीखने से रोक रही हो.

इतने में बाहर कॉरिडोर में किसी के हंसने की आवाज आई और जुगल का संमोहन टुटा.

एक अनजान वस्त्रहीन लड़की के सामने वो युं खड़े हो कर क्या देखे जा रहा था! उसे खुद पर शर्म आई और ‘सोरी’ कह कर वो तुरंत बाहर निकल गया.

***

चाय के ब्रेक के बाद इंस्पेक्टर मोहिते के साथ बात शुरू करते हुए जगदीश ने कहा. ‘इन शोर्ट सर, पुलिस सेवा की मैं बहुत इज्जत करता हूँ. आप को देख कर झूठ नहीं बोल पाया. सो खुद को आप के सुपुर्द कर दिया.’

‘आज तुमने मुझसे यह कह कर मेरे पद का, मेरे काम का जो सम्मान किया है - शायद मेरी ड्यूटी के लिए खुद राष्ट्रपति कोई अवॉर्ड देते तब भी मुझे इस स्तर के तृप्ति और गर्व का अहसास नहीं होता.’ इन्स्पेक्टर मोहित की आवाज बोलते बोलते जज्बात से भीग सी गई.

शालिनी भी जगदीश को प्रभावित हो कर निहारती रही.

जगदीश ने कुछ पल रुक कर कहा. ‘मुझे नहीं पता की आप मुझे क्यों बचाना चाहते हो. शायद आप को लगता है की एक निर्दोष आदमी हालात के हाथो फंस रहा है. पर एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मेरे किये कराये की जिम्मेदारी ले कर मैंने पुलिस को हेल्प करना चाहिए.’

इंस्पेक्टर मोहिते ने कहा. ‘मैं आप के जज्बों की कदर करता हूँ. अब मेरी बात सुनिए. साजन भाई एक वॉन्टेड मुजरिम था. उसके लिए शूट एट साइट का ऑर्डर ले कर मैं गोडाउन पहुंचा था. न जाने कितनी औरतो को उसने अपनी विकृति का शिकार बनाया था. आपने उसके साथ जो किया वो निजी दुश्मनी से नहीं किया और ना ही निजी फायदे के लिए किया. बल्कि निजी सुरक्षा के चलते एक ऐसा कदम उठाया जिससे सामाजिक सुरक्षा का भी काम हुआ है, जो की पुलिस का जिम्मा है -यही सच है.…. ‘

फिर थोड़ा रुक कर इन्स्पेक्टर मोहिते ने आगे कहा. ‘मि. रस्तोगी, मैं कानून का सिपाही हूँ पर अंधा नहीं हूँ. एक ऐसा काम जिससे समाज को फायदा हुआ है उस के लिए मैं आप को गुनहगार का धब्बा नहीं लगने दे सकता. आप पुलिस को और हेल्प करने की कोशिश न करें आप ने ऑलरेडी हेल्प कर दी है.’

जगदीश यह सुन सोच में पड़ गया फिर बोला. ‘ठीक है मैं अपना बयान बदलने तैयार हूँ.’

‘गुड.’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने मुस्कुराकर कहा. ‘थैंक्स, मेरी बात समझने के लिए. बोलो अब.’ कह कर उन्होंने नया बयान लिखने के लिए कलम उठाई.

‘मेरी एक शर्त है. आप बयान लिखवाने किसी और को भेजिए. आप मुझे इमोशनली कन्फ्यूज़ कर देते हो.’

इंस्पेक्टर मोहिते मुस्कुराकर खड़े हुए और बोले. ‘ओके. पर फिर कुछ उल्टा सीधा मत लिखवा देना.’
और बाहर जाते हुए शालिनी से कहा. ‘आप को गर्व होना चाहिए मैडम रस्तोगी कि आप को एक मर्द आदमी का संग नसीब हुआ है. मर्दानगी गोली चलाने में नहीं होती. मर्दानगी सही वक्त पर सही फैसला लेने की हिम्मत में होती है.आप खुश नसीब हो आप के साथ एक रियल हीरो है.’

शालिनी शर्मा कर बोली. ‘जी शुक्रिया.’

इन्स्पेक्टर मोहिते के जाने के बाद शालिनी ने जगदीश की और देखा. जगदीश ने मुस्कुराकर कहा. ‘उसकी गलती नहीं, उसे लगता है हम पति पत्नी है.’

‘पता है. पर फिर भी मैं खुशनसीब हूँ यह भी सच है, आज क्या क्या हो सकता था यह सोच कर भी मैं कांप उठती हूँ.’

जगदीश ने शालिनी के हाथ पर हाथ रख कर कहा.’नसीब तो मेरा भी अच्छा है जो मामला ज्यादा बिगड़ने से पहले सम्हाल पाया.’

तभी एक हवालदार आ कर उनके सामने बैठते हुए बोला. ‘जी बयान लिखवाइए.’

***

आज दूसरी बार जुगल का नशा हवा हो गया था. एक बार अनचाहा अश्लील देख सुन कर और दूसरी बार अनन्य सौंदर्य को निर्वस्त्र देख कर…

उसी सोफे के नीचे से फिर उसने शराब की बोतल ढूंढ निकाली. नसीब से अभी उसमे शराब बाकी बची थी. उसने तेजी से पेग बनाया. जाम होठों से लगाने से पहले उसे एक नारी स्वर सुनाई दिया : एक्सक्यूज़ मी…’

जुगल ने सर घुमा कर देखा तो वो ही लड़की जिसे कुछ पल पहले वो अजीब स्थिति में मिला था, सामने खड़ी थी…


(१० - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)
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Bahut hee umda update…
 

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( १० - ये तो सोचा न था…)

[(९ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा : ‘फिर? इकबाल- ऐ -जुर्म करना जरूरी था?

‘मैं आपसे झूठ कैसे बोलता?’

इंस्पेक्टर मोहिते फिर कन्फ्यूज़ हो गया. उसने पूछा. ‘क्यों नहीं बोल सकते? मैंने जो जूठा बयान बनाया वो ही बात आप मुझे कह सकते थे! या यह कह देते कि किसी गुंडे ने झूमर पर गोली मार दी!’

‘आप पुलिस हो सर.’ जगदीश ने कहा. ‘आप जनता की रक्षा के लिए दिन रात खुद को खतरे में डालते हो. आप से मैं कैसे झूठ बोलूं?’

इंस्पेक्टर मोहिते यह सुन कर दंग रह गया. उसकी आंखे भीग गई.]



आंखे पोंछते हुए इंस्पेक्टर मोहिते ने जगदीश से कहा. ‘मैं तुम्हे ठीक से समझ नहीं पा रहा.’ फिर पानी पी कर थोड़ा स्वस्थ हो कर पूछा. ‘क्या हम लोग पहले कभी मिले है?’

‘नहीं सर. मुझे नहीं लगता.’

‘किस बात से तुम मेरा इतना लिहाज रखते हो जो बिना किसी परिचय के झूठ बोल कर बचने के बजाय सच बोल गये ?’

‘सर, कुछ पेशे ऐसे है जो अवेज में दी जाती सैलरी से बहुत बेशकीमती है. मसलन फौजी, डॉक्टरी, वकालत, शिक्षक,पत्रकारिता, राजनीति और-’

‘और पुलिस?’ इंस्पेक्टर मोहिते ने चकित हो कर पूछा. फिर शालिनी से पूछा. ‘इतनी कम उम्र में ये इतनी ज्ञान की बात कैसे कर लेते है! शुरू से ऐसे है या आपने इनके जीवन में आ कर इनको इतना बदल दिया!’

इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश और शालिनी को पति पत्नी समझ कर भारी हो चुके माहौल को हलका करने की निर्दोष कोशिश कर रहा था पर जगदीश और शालिनी की हालत यह सुन कर अजीब हो गई. दोनों ने आपस में एक ऑड लुक एक्सचेंज किया.

‘जी उम्र कम है मेरी पर वक्त ने बहुत ठोकर मार मार कर मुझे सबक सिखाये है सर, मैं पांच साल का था तब मेरे मां - पिताजी अलग हो गये. उसके बाद तुरंत मेरी मां ने आत्महत्या करली. मेरी मां के साथ पिताजी ने जो सुलूक किया उसके लिए मैं उन को कभी माफ़ नहीं कर पाया. बालिग़ होते ही खाली जेब मैंने अपने छोटे भाई के साथ बाप का महल जैसा घर छोड़ दिया. रास्ते पर आ गया. सोचिये १८ साल का एक लड़का जिसे दुनिया का कोई अनुभव नहीं वो रास्ते पर खड़ा है- न मां का स्नेह न बाप का साया, न सर पर छत, न हाथ में कोई काम ऊपर से साथ में १५ साल के छोटे भाई की जिम्मेदारी!

इन्स्पेक्टर मोहिते के साथ साथ शालिनी भी यह सुन कर दंग थी. शालिनी अपने ससुराल का फेमिली बैकग्राउंड जानती थी पर जुगल और जेठ जी कभी इतने बेसहारा थे और एकदम ज़ीरो से अपना मकाम बना कर आज शान से समाज में अमीर बने है यह वो नहीं जानती थी.

‘सर,’ जगदीश ने आगे कहा.’ जीवन का पूरा इंद्रधनुष मैंने देख लिया है और अभी भी देख रहा हूँ. इंद्रधनुष में तो केवल सात रंग होते है पर जीवन! जीवन का हर पल एक अलग रंग लिए आता है. मुझे इतना समझ में आया की हमें मिलने वाला हर इंसान एक बंद लिफाफा होता है.वो लिफाफा गुड़ न्यूज़ भी हो सकता है और बेड न्यूज़ भी. और हमें न्यूज़ कैसी होगी इसकी खबर न होते हुए उस लिफाफे को खोलना पड़ता है…’

इंस्पेक्टर मोहिते सुन रहा था, उसे समझ में नहीं आ रहा था की क्या रिएक्ट करें. उसे लगा था की एक भोला, सीधा सादा आदमी गुंडों के हाथों फस गया है, क्यों खामखां इस पर गुनहगार का ठप्पा लगाएं ! और अपने वर्क रूल को थोड़ा लचीला बना कर उसने जगदीश को इस झमेले में से निकालने की कोशिश की. अब जगदीश की बातें सुन कर उसे लग रहा था कि यह आदमी बेगुनाह हो सकता है पर भोला नहीं.

दूसरी ओर शालिनी अपने जेठ की खुल रही नई नई परतों से अवाक थी. हाईवे पर दो नौजवान गुंडों को जगदीश ने चीते की स्फूर्ति से चार सेकंड में चीत कर दिया था वो शालिनी के लिए जगदीश का नया परिचय था. रस्तोगी परिवार भावुक और स्नेह की बुनियाद पर खड़ा था. दो भाई और दोनों की पत्नी. चार लोगों में इतना मेल और आपसी सन्मान था की किसी को कभी ऊँचे आवाज में अपनी बात रखनी पड़े ऐसा भी आज तक हुआ नहीं था.


इसलिए जगदीश को हाथ उठाते हुए देखा वो एक रूप के बाद, मवालीओ के जाने के बाद उसे कार में बैठ जाने के लिए जगदीश ने जो सख्त लहजे में कहा था वो जगदीश का दूसरा परिचय था. जगदीश ने इस लहजे में कभी जुगल से भी बात नहीं की थी! और उसे - छोटे भाई की पत्नी - जिसे वो बहु और कभी बेटा कह बुलाता था -उसे डांट दिया था ! पर वजह थी जगदीश का शालिनी के प्रति का स्नेह- यह बात शालिनी समझ रही थी. उन मवालीओ ने शालिनी के बारे में गन्दी बात कही थी और जगदीश की यह हताशा की उसके छोटे भाई की पत्नी को कोई अनाप शनाप बोल गया - उसे क्रोध में ला चुकी थी.

और इसी क्रोध का विस्तारित स्वरूप था जगदीश का साजन भाई को मार डालना.

जगदीश के इन नये रूप से शालिनी अभी अभ्यस्त हो उससे पहले जगदीश के और नये नये रूप उसके सामने आ रहे थे, जिस स्पष्टता से वो अपने किए के बारे में दलील कर रहा था शालिनी को लगा की उसके जेठ ने वकील होना चाहिए था.

और इतने में यह खस्ता हाल में घर छोड़ने वाला फलेश बेक का सीन !

समझदार, बहादुर, बुद्धिमान, काबिल…. उसका जेठ क्या क्या था!

शालिनी जैसे जगदीश पर फ़िदा हो गई! स्नेह और सम्मान के बहाव में उसने जगदीश का हाथ चूम कर अपने सिर पर रख कर कहा, ‘यह हाथ सदा मेरे सर पर रहे यही मेरी ईश्वर से प्रार्थना है.’

शालिनी की इस हरकत से जगदीश और इन्स्पेक्टर मोहिते दोनों चौंक पड़े. इंस्पेक्टर मोहिते के लिए यह एक पति पत्नी के बीच का इमोशनल मोमेंट था. और जगदीश के लिए बहु की भावुकता!

खेर, शालिनी के इस इमोशनल व्यवधान से जगदीश का अतीत में खो जाना रुका, वो जैसे वर्तमान में लौटा.अपने बहाव में जाने क्या फिलोसोफी झाड़े जा रहा था. उसने गला साफ़ कर के कहा. ‘सोरी, मैं कहीं और ही चल पड़ा था…’

इंस्पेक्टर मोहिते ने कहा. ‘नहीं मि. रस्तोगी, सॉरी वाली कोई बात नहीं. पर हम लोग थोड़ा ब्रेक लेते है.’ कह कर इंस्पेक्टर मोहिते खड़ा हुआ और ‘आप लोगो के लिए चाय भेजता हुं , फिर आगे बात करते है की इस केस का क्या करें.’ कह कर बाहर चला गया.

‘जी.’ कह कर जगदीश सोच में उलझ गया. इतने में उसका फोन बजा. देखा चांदनी का कॉल था. जगदीश ने कॉल काट कर शालिनी से कहा. ‘अपना फोन स्विच ऑफ़ कर दो. तुरंत.’

शालिनी ने अपना फोन स्विच ऑफ़ किया. और जगदीश की और देखा. जगदीश ने कहा. ‘चांदनी का कॉल था. मुझे नहीं पता की उसे क्या कहु. इतना कुछ हो गया और हो रहा है कि बताने से वो टेन्स हो जायेगी. इसलिए तुम्हारा फोन भी बंद रहे वो ही अभी ठीक है.’

शालिनी ने हां में सर हिलाया.

शालिनी कुछ देर जगदीश को तकती रही. अपने में गुम जगदीश को यह सुमार नहीं था की शालिनी उसे एकटक तक रही है. अंतत: शालिनी बोली. ‘भैया!’

जगदीश ने शालिनी की ओर देखा. शालिनी कुछ कहना चाहती थी. पर बोल नहीं पाई. आखिर इतना ही बोली. ‘कुछ नहीं…’

जगदीश खुद इतने खयालो में उलझा हुआ था की उसने शालिनी से ज्यादा पूछताछ नहीं की.

***

जुगल खोया खोया सा गेस्ट हाउस के उस हिस्से में पहुंचा जहां बैठ कर कुछ देर पहले उसने जुआ खेलते हुए शराब पी थी. दीक्षित परिवार के भाई बहन को अश्लील बातें और हरकतें करते देख उसका सारा नशा उतर गया था. उसे शराब पीनी थी.


ताश खेलने वाले सभी बिखर गए थे. एक दो वहीं पर शराब पी कर लुढ़क चुके थे. जुगल को सोफे के नीचे से एक शराब की बोतल मिल गई. उसने फटाफट दो पेग पी लिए जैसे की अभी जो देखा -सुना उसे शराब की सहाय से दिमाग पर से पोंछ लेना चाहता हो.

लेकिन तीसरा पेग लेते ही उसे सुधींद्र ने चांदनी भाभी के लिए जो जुमला कसा था वो याद आया : ‘सही है - उसकी गांड में जैसे समंदर की लहरें उठती है…’

जुगल के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. अलबत्ता उसे पता था की उसकी भाभी के नितंब औसत से अधिक आकर्षक है क्योंकि भाभी जब चलती है तब उनमे एक विशिष्ठ कंपन होती है.

-पर आखिर वो भाभी है, मां समान.

जुगल का लालन पालन गरिमा पूर्ण और घर के लोगों का सम्मान करना चाहिए ऐसी सीख के माहौल में हुआ था. अपनी भाभी के नितंब को लेकर उसने कभी कोई कामुक ख़याल अपने दिमाग में आने नहीं दिए थे.

पर आज एक पराये आदमी को भाभी के नितंबो का इस भाषा में ब्यौरा करते हुए सुन वो विचलित हो गया था.

‘हट तेरे की..’ कहते हुए उसने यह सारी बातें दिमाग से दूर करने के इरादे से अपना सर जोरों से झटका. और गेस्ट हाउस में जा कर अपना कमरा खोज कर सो जाने की ठानी.

अपना कमरे वाली मंजिल पर तो वो पहुँच गया पर फिर वो ही कमरा ढूंढ ने की मशक्कत!
जुआ खेल रहा हो उस तरह उसने एक कमरे का दरवाजा धकेल कर देखा. खुल गया. जुगल लड़खड़ाते कदमो से अंदर घुसा. अंदर नजर पड़ते ही उसके होश उड़ गये….

एक अत्यंत जवान और खूबसूरत लड़की बिलकुल नग्न उसके सामने खड़ी थी. किसी अप्सरा जैसा उसका अंग वैभव था. सुडौल कांधे और उस पर बेतरतीब से बिखरे घट्ट श्याम जुल्फें, शिल्प की भांति समप्रमाण स्तन, उस पर अंगूर के दाने समान निपल, मोहक छेद वाली कामोत्तेजक नाभी, गोया वाइन के प्याले जैसी नजाकत से तराशी गई हो वैसी लचीली कमर जो स्तन के उभार से निचे की ओर जाते हुए जानलेवा बल खाते हुए स्वस्थ और पुष्ट नितंबो की गोलाई में खुद का समर्पण सा कर रही थी. मलाई से अगर पुतला बनाया जाए तो जितनी मुलायम रची जा सके उतनी स्निग्ध जांघे, दो जांघों के मध्य में हौशलेवा त्रिकोण. आ...ह जुगल ने सोचा यह वो बरमूडा ट्रायंगल जैसा त्रिकोण है जहां लोग मौत की परवाह किये बिना गोता खाने पर उतारू हो जाए, उस त्रिकोण के ललाट पर महीन ताज़ी हरी घास जैसे तेवर वाला सुकुमार योनिकेश का दुपट्टा….

उफ़ उफ्फ उफ्फ्फ….

जुगल ने उस कन्या के चेहरे की और देखा. उसका चेहरा ऐसे स्तब्ध था जैसे उसने कोई भूत देख लिया हो. उसकी आंखे बड़ी और उत्सुकता की चमक से प्रदीप्त थी. उसके होठों पर उसने अपने नाजुक हाथ को यूं रख दिया था जैसे खुद को चीखने से रोक रही हो.

इतने में बाहर कॉरिडोर में किसी के हंसने की आवाज आई और जुगल का संमोहन टुटा.

एक अनजान वस्त्रहीन लड़की के सामने वो युं खड़े हो कर क्या देखे जा रहा था! उसे खुद पर शर्म आई और ‘सोरी’ कह कर वो तुरंत बाहर निकल गया.

***

चाय के ब्रेक के बाद इंस्पेक्टर मोहिते के साथ बात शुरू करते हुए जगदीश ने कहा. ‘इन शोर्ट सर, पुलिस सेवा की मैं बहुत इज्जत करता हूँ. आप को देख कर झूठ नहीं बोल पाया. सो खुद को आप के सुपुर्द कर दिया.’

‘आज तुमने मुझसे यह कह कर मेरे पद का, मेरे काम का जो सम्मान किया है - शायद मेरी ड्यूटी के लिए खुद राष्ट्रपति कोई अवॉर्ड देते तब भी मुझे इस स्तर के तृप्ति और गर्व का अहसास नहीं होता.’ इन्स्पेक्टर मोहित की आवाज बोलते बोलते जज्बात से भीग सी गई.

शालिनी भी जगदीश को प्रभावित हो कर निहारती रही.

जगदीश ने कुछ पल रुक कर कहा. ‘मुझे नहीं पता की आप मुझे क्यों बचाना चाहते हो. शायद आप को लगता है की एक निर्दोष आदमी हालात के हाथो फंस रहा है. पर एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मेरे किये कराये की जिम्मेदारी ले कर मैंने पुलिस को हेल्प करना चाहिए.’

इंस्पेक्टर मोहिते ने कहा. ‘मैं आप के जज्बों की कदर करता हूँ. अब मेरी बात सुनिए. साजन भाई एक वॉन्टेड मुजरिम था. उसके लिए शूट एट साइट का ऑर्डर ले कर मैं गोडाउन पहुंचा था. न जाने कितनी औरतो को उसने अपनी विकृति का शिकार बनाया था. आपने उसके साथ जो किया वो निजी दुश्मनी से नहीं किया और ना ही निजी फायदे के लिए किया. बल्कि निजी सुरक्षा के चलते एक ऐसा कदम उठाया जिससे सामाजिक सुरक्षा का भी काम हुआ है, जो की पुलिस का जिम्मा है -यही सच है.…. ‘

फिर थोड़ा रुक कर इन्स्पेक्टर मोहिते ने आगे कहा. ‘मि. रस्तोगी, मैं कानून का सिपाही हूँ पर अंधा नहीं हूँ. एक ऐसा काम जिससे समाज को फायदा हुआ है उस के लिए मैं आप को गुनहगार का धब्बा नहीं लगने दे सकता. आप पुलिस को और हेल्प करने की कोशिश न करें आप ने ऑलरेडी हेल्प कर दी है.’

जगदीश यह सुन सोच में पड़ गया फिर बोला. ‘ठीक है मैं अपना बयान बदलने तैयार हूँ.’

‘गुड.’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने मुस्कुराकर कहा. ‘थैंक्स, मेरी बात समझने के लिए. बोलो अब.’ कह कर उन्होंने नया बयान लिखने के लिए कलम उठाई.

‘मेरी एक शर्त है. आप बयान लिखवाने किसी और को भेजिए. आप मुझे इमोशनली कन्फ्यूज़ कर देते हो.’

इंस्पेक्टर मोहिते मुस्कुराकर खड़े हुए और बोले. ‘ओके. पर फिर कुछ उल्टा सीधा मत लिखवा देना.’
और बाहर जाते हुए शालिनी से कहा. ‘आप को गर्व होना चाहिए मैडम रस्तोगी कि आप को एक मर्द आदमी का संग नसीब हुआ है. मर्दानगी गोली चलाने में नहीं होती. मर्दानगी सही वक्त पर सही फैसला लेने की हिम्मत में होती है.आप खुश नसीब हो आप के साथ एक रियल हीरो है.’

शालिनी शर्मा कर बोली. ‘जी शुक्रिया.’

इन्स्पेक्टर मोहिते के जाने के बाद शालिनी ने जगदीश की और देखा. जगदीश ने मुस्कुराकर कहा. ‘उसकी गलती नहीं, उसे लगता है हम पति पत्नी है.’

‘पता है. पर फिर भी मैं खुशनसीब हूँ यह भी सच है, आज क्या क्या हो सकता था यह सोच कर भी मैं कांप उठती हूँ.’

जगदीश ने शालिनी के हाथ पर हाथ रख कर कहा.’नसीब तो मेरा भी अच्छा है जो मामला ज्यादा बिगड़ने से पहले सम्हाल पाया.’

तभी एक हवालदार आ कर उनके सामने बैठते हुए बोला. ‘जी बयान लिखवाइए.’

***

आज दूसरी बार जुगल का नशा हवा हो गया था. एक बार अनचाहा अश्लील देख सुन कर और दूसरी बार अनन्य सौंदर्य को निर्वस्त्र देख कर…

उसी सोफे के नीचे से फिर उसने शराब की बोतल ढूंढ निकाली. नसीब से अभी उसमे शराब बाकी बची थी. उसने तेजी से पेग बनाया. जाम होठों से लगाने से पहले उसे एक नारी स्वर सुनाई दिया : एक्सक्यूज़ मी…’

जुगल ने सर घुमा कर देखा तो वो ही लड़की जिसे कुछ पल पहले वो अजीब स्थिति में मिला था, सामने खड़ी थी…


(१० - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)
Ekdam mast 👌👌
 
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