- 1,883
- 4,476
- 159
शुक्रिया -ये मेरी प्रथम कहानी है -Aapki aur koi kahani ho to uska bhi link dijiyega... is kahani ko khatam jarur kijiyega, incomplete mat chhoriyega
शुक्रिया -ये मेरी प्रथम कहानी है -Aapki aur koi kahani ho to uska bhi link dijiyega... is kahani ko khatam jarur kijiyega, incomplete mat chhoriyega
दोस्त आपकी कहानी बहुत बेहतर होगी इतना तो लग गया हे आपने जिस तरह से कहानी को पाठकों के सामने रखा हे और इतने व्यवस्थित तरीके से लिखी हे वाकई काबिले तारीफ हे शुरुआत में ही इंडेक्स देकर आपने पाठकों पर उपकार ही किआ हे बिना किसी इमेज के भी कहानी कही जा सकती हे, ये आपकी रचना दिखा रही हे बाकि पढकर कहूँगा धन्यवाद(२० - ये तो सोचा न था…)
[(१९ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
हुस्न बानो ने जगदीश को बांहों में भर कर उसके कान पर जीभ फेरनी शुरू की... जगदीश विह्वल हो उठा. पिछले कुछ दिनों से जाने अनजाने अपनी बहु शालिनी के इस तरह के संपर्क में वो बार बार आया था की उसकी कामेच्छा हर बार तंग धनुष्य की तरह टंकार बजाने लगती थी और हर बार वो किसी तरह अपने आप को संयम में बांध कर रह जाता था. पर हुस्न बानो जिस तरह उसे उकसा रही थी, जगदीश के लिए काबू में रहना मुश्किल होता जा रहा था... जगदीश की उंगलियों में उसकी प्यास स्थानांतरण कर के हुस्न बानो के अंगों को सहला कर तृप्ति खोजने की कोशिश में लग गई....]
हुस्न बानो के भरे भरे स्तनों को छूकर, दबोच दबोच कर भी जगदीश का जैसे मन नहीं भर रहा था... उसे समझ में नहीं आ रहा था की इन स्तनों के साथ क्या किया जाए तो मन की यह अतृप्ति मिटे. हुस्न बानो के स्तन इतने गदराये हुए थे की जगदीश की हथेली उन्हें पूरी तरह से थाम नहीं पा रही थी. वो जितनी भी कोशिश करे, जितना भी अलग अलग तरीका आजमाए दोनों स्तन इस तरह काबू के बाहर रह जाते थे जैसे झाग के बने हुए गुब्बारों को कितनी भी कोशिश कर लो, हम छू सकते है पर थाम नहीं सकते. हर कोशिश के बाद जगदीश हारा जुआरी दुगना खेले उस तरह ज्यादा जोश से उन्हें हाथ करने की कोशिश करता था और फिर निराश हो जाता था...
फिर जगदीश ने स्तनों के सिरे पर कब्ज़ा जमाना सोचा... उसने अपने दोनों हाथ के अंगूठे और पहली उंगली में हुस्न बानो के निपलों को जकड़ा फिर धीरे धीरे अपनी जकड़ को सख्त किया. इस दबाव के कारण निप्पलों के दाने तन कर अंगूठा और उंगलियों से फिसल कर बाहर की और निकल आये और जगदीश को यूं तकने लगे जैसे पूछ रहे हो की इतना जुल्म क्यों कर रहे हो हम पर! जगदीश उनको निहारते हुए मन में बोला : जुल्म नहीं करना है मुझे, मैं उलझ रहा हूँ की क्या करूं तो मेरे अंदर यह जो बेचैनी है उसे सुकून मिले. और फिर उसने उन दोनों अंगूर जैसे मुलायम पर किसमिस जैसे लचीले किंतु चेरी जैसे सख्त निपलों को अपने अंगूठे और उंगलियो की पकड़ में घेरा. उसे आश्चर्य हुआ की आखिर इन निप्पलों का मूल चरित्र क्या होगा? कोई एक ही वक्त मुलायम, लचीला और सख्त कैसे हो सकता है? उसने पेशोपेश में हुस्न बानो की ओर देखा. हुस्न बानो जगदीश की इन बचकानी हरकतों को स्नेह से निहार रही थी. जब जगदीश ने हुस्न बानो के चेहरे की ओर देखा तब उसने मुस्कुराकर जैसे उसे अपनी आंखों से पूछा : क्या हुआ? जगदीश क्या जवाब दे? उसने फिर से अपने कब्जे में गिरफ्तार दोनों निपलों को देखा. उसे लगा वो दोनों उसे घुर रहे है...नहीं घुर नहीं ललकार रहे है की तुम हमारा क्या बिगाड़ लोगे? जगदीश को लगा की वो दोनों उसे चुनौती दे रहे है. क्या सच में वो उनका कुछ नहीं कर सकता? बिलकुल कर सकता है वो उन दोनों को यूं मसल सकता है जैसे पके हुए काले शहतूत को पीसकर उनका रस निकाल कर चूसा जा सकता है वैसे. या फिर खट्टे भूरे बेर में ज्यों दांत गडा कर चखा जा सकता है वैसे इन्हें भी तो चखा जा सकता है! या फिर जैसे पुराने जमाने की घडी को चाबी देते थे वैसे इन निप्पलों को लेफ्ट टू राइट घुमाया जा सकता है! क्या निपलों को चाबी की तरह घुमाने से यह खुली तिजोरी जैसा बदन भी घड़ी की तरह चलने लगेगा? पर ये बदन और क्या चलेगा! ये ही तो चल रहा है बल्कि मचल रहा है अटल स्तनों की लहराती हुई धजाओं को लिए! निश्चल तो मैं खुद हूं- जगदीश ने सोचा. पर मुझे यूं निश्चल नहीं रहना...इस क्षण को, इस प्रस्तुति को, इस भरपूर कामुक देह के हर एक अंग को भोगना है... -जगदीश स्तन मंडल से इतना प्रभावित हो गया था की ‘बहुत कुछ करना है...’ ऐसे ख्याल से निजात पाकर ‘कुछ करने’ में प्रवृत्त नहीं हो पा रहा था.. हुस्न बानो ने जगदीश की इस सम्मोहित अवस्था को काफी देर निहारा फिर अंततः जगदीश के माथे को सहलाते हुए उसने अपना एक स्तन जगदीश के होठों पर रगडा. जगदीश की सोच और स्तनपान की प्रक्रिया आपस में धुल मिल गई... मुंह में आन पड़े निपल को जगदीश ने इस तरह जीभ से सहलाया जैसे लोग आचार का बंद डिब्बा खोलने के बाद उसके ढक्कन के साथ के पेकिंग मटिरियल को फेंकने से पहेले चाट लेते है. इस बात का जगदीश को हमेशा आश्चर्य होता था की लोग आचार का पूरा डिब्बा सामने होने के बावजूद ढक्कन के पेकिंग पेपर में लगे थोड़े से मसाले का मोह क्यों करते होंगे! और वही आश्चर्य उसे इस क्षण हुस्न बानो के अपने होठों के बीच आन पड़े निपल को चाटते वक्त भी हो रहा था की पूरा का पूरा स्तन उसके होठों के सामने मौजूद है और वो निपल को चाटने में क्यों अटका हुआ है? पर उसे मज़ा आ रहा था... निपल को वो इस तरह चाटने लगा जैसे चाट चाट कर वो निपल का कोई छिद्र खोल देगा और उस छिद्र में से दूध रिसना शुरू हो जाएगा...
निपल गिला हो कर अलग सा स्वाद दे रहा था. जगदीश को लगा शायद उसने कोई निपल में कोई छिद्र खोल दिया है और अब रस की धारा शुरू हो गई है... वो इतनी तन्मयता से उस स्तन के निपल को चूसने लगा जैसे कोई जोंक त्वचा को चिपक कर रक्त चूसती है...पर वो इतना व्याकुल क्यों हो रहा है! किस चीज की जल्दी है! किस बात की असुरक्षा है? पल भर थम कर उसने निपल को अपने मुंह से निकाल कर हुस्न बानो की ओर देखा,हुस्न बानो के चहेरे पर ऐसा सुकून था जैसे सूरज से तपते सूखे बियाबान में अपनी शीतल छाया में सोये हुए किसी यात्री को देख एक हरे भरे पेड़ के चहेरे पर हो सकता है. जगदीश को हुस्न बानो के चेहरे पर छाये इस सुकून की ईर्ष्या हो आई. उसे लगा मैं क्यों इतना बैचेन हूँ और यह क्यों इतनी तुष्ट है! जगदीश की आंखों में गोया यह सवाल हुस्न बानो ने पढ़ लिया हो उसने होले से मुस्कुराकर फिर अपना निपल जगदीश के होठों को सुपुर्द किया. जगदीश फिर निपल को चूसने लगा... अपनी आंखें मूंद कर जगदीश ने उस पूरे स्तन को दोनों हाथ से थाम कर दबाते हुए धीरे धीरे अपना मुंह खोल कर अंदर ले लिया जैसे सारा का सारा स्तन निगल लेना चाहता हो... उसका दम घुटने लगा.... पूरा स्तन तो मुंह में जा नहीं सकता था पर जितना गया था उससे जगदीश को सांस लेने में दिक्कत होने लगी थी. पर वो स्तन को छोड़ना नहीं चाहता था... उसे लग रहा था भले सांस रुक जाए, इसे आज नहीं छोडूंगा.....
और हुस्न बानो जगदीश के इस लड़कपन को खुश होते हुए यूं देखती रही जैसे कोई हथिनी अपने छोटे बच्चे को बेवजह का उधम मचाते देखती है…
***
कहीं दूर, एक आलीशान फ्लैट में :
झनक थक गई थी. उसने तेजी से नहा कर शॉर्ट्स और स्लीवलेस टी शर्ट पहने. चद्दर ओढ़ कर अभी सोने के लिए आंख मूंद रही थी की उसके रूम का दरवाजे पर दस्तक हुई.
‘कौन पापा?’ झनक ने पूछा.
पापा रूम में दाखिल हुए. झनक के पास पलंग पर बैठ गए. उनके हाथ में व्हिस्की का एक पेग था पीते पीते वो झनक के कमरे में आये थे.
‘सोहनलाल दीक्षित...’ झनक कुछ बोलने गई पर पापाने उसकी बात काटते हुए कहा. ‘भूल जाओ उसे. रात गई बात गई.’
‘मुझे यही जानना था की जो डेटा मैं सोहनलाल दीक्षित के लैपटॉप से ले आई, कुछ काम तो आएगा ना?’
‘बिलकुल बेटा बहुत काम आएगा, यु आर माय लकी चार्म.’ कहकर पापाने पेग से एक घूंट ले कर झनक को ऑफर करते हुए पूछा. ‘एक सीप?’
‘आप मुझे हर बुराई में धकेल कर ही दम लोगे!’ मुस्कुराकर झनक उठ बैठी और पापा के हाथ से पेग ले कर एक सीप लिया.
झनक के शरीर से चद्दर हट जाने पर दीखते हुए उसके शरीर को ताकते हुए पापाने पूछा. ‘ब्रा नहीं पहनी?’
‘सोते वक्त कोई ब्रा पहनता है?’ झनक ने झल्लाकर पूछा.
‘मै तो जागते वक्त भी नहीं पहनता.’ हंस कर पापाने कहा और पेग से सीप लिया.
‘वेरी बेड जोक ओके? चलो अब जाओ मुझे सोने दो.’ झनक फिर चद्दर ओढ़ कर लेटते हुए बोली.
पापा ने झुक कर झनक के गाल चूम कर कहा. ‘तेरा क्या करू, समझ में नहीं आता.’
कह कर जाते हुए पापा का हाथ झनक ने थाम लिया. पापा ने मुड कर झनक की ओर देखा.
‘शादी कर लो ना मुझसे?’ झनक ने मुस्कुराकर कहा.
‘बेवकूफ लड़की.’ अपना हाथ छुड़ा कर जाते हुए पापा ने कहा.
‘बीस की तो हूं पापा... अब मुझसे जवान तो मिलने से रही आप को.’
‘अब तू बेड जोक कर रही है...’ पापा ने कहा.
‘हर्ज ही क्या है पापा? मुझ से सुहागरात तो आप मना ही चुके हो!’
‘बेटा, यू डिजर्व यंग मेन. ओके?’
‘मै आप को डिजर्व नहीं करती?’
‘सो जाओ चुपचाप.’ कह कर पापा रूम के बाहर चले गए.
‘देखना पापा, शादी तो मैं तुम से ही करूंगी.’ पापा के जाने के बाद झनक बडबडाइ और आंखें मूंद कर सोने की कोशिश करने लगी.
***
मोहिते और जगदीश लौटे तब शालिनी बुवा को किचन में हेल्प कर रही थी. दोनों के लिए वो पानी ले कर आई. जगदीश ने एक बड़ा थेला शालिनी को देते हुए कहा. ‘कुछ कपडे लाया हूं.’
‘ओह अच्छा.’ कह कर शालिनी ने थेला एक ओर रखा.
‘ये क्या भाभी आप देखेंगे भी नहीं की कैसे कपड़े है!’ मोहिते ने आश्चर्य से कहा. यह सुन कर शालिनी और जगदीश – दोनों को अजीब लगा. मोहिते ने आगे कहा. ‘पता है भाभी इन्हों ने आप के लिए कपड़े चुनने में जितना समय लिया इतना समय लेते हुए तो किसी औरत को भी मैंने नहीं देखा... दुकानदार कपड़े दिखा दिखा कर थक गया पर इन को कुछ पसंद ही नहीं आया. चार दुकान बदली तब कहीं ये कपडे ले पाए... यु आर सो लकी भाभी... इतना डिटेल से पत्नी के लिए कपड़े खरीदना आम बात नहीं है...’
जगदीश और शालिनी –दोनों मोहिते की बात से ऑकवर्ड स्थिति में आ गए. शालिनी ने जगदीश को मुस्कुराकर कहा. ‘अब कौन सी शादी में जाना है? कुछ भी ले लेते...’
‘हां, कोई खास शॉपिंग नहीं की है... तुम मोहिते की बातों में मत आओ.’ कह कर जगदीश बाहर निकल गया. मोहिते ने शालिनी को धीमी आवाज में कहा. ‘मजाक नहीं कर रहा हूँ – सच में अच्छी शॉपिंग की है आप खुद देख लो.’ और जगदीश के पीछे चला गया.
शालिनी को शर्म और सुकून की मिश्र भावना हो आई.
शर्म इसलिए क्योंकि जेठजी ने उसके कपड़ो के लिए इतना समय दिया और सुकून इसलिए क्योंकि इस का अब यह भी मतलब होता था की वो डर रही थी उतना जेठजी उससे नाराज नहीं.
बाहर जगदीश और मोहिते खुले में बैठे थे.
‘बहुत अच्छा लगता है यहां मोहिते. जी करता है यहीं रह जाऊं कुछ दिन.’
‘तो रहो आराम से! प्रॉब्लम क्या है? भाभीजी भी साथ में ही है – दोनों को ऐसा आउटिंग कब मिलेगा!’
मोहिते ने सरलता से कही हुई बात ने जगदीश को वास्तव में ला पटका : यहां ऐसे ज्यादा नहीं रुक सकते, साथ में शालिनी भी है…
‘नहीं यार, जाना पड़ेगा.’ कह कर जगदीश ने बात टाल दी.
‘मसाज कैसा किया हुस्न बानो ने? तुम तो कुछ बोले ही नहीं बाद में!’ मोहिते ने पूछा.
‘बहुत अच्छा मसाज किया. इतना अच्छा की नशा सा हो गया. कुछ बोलने का मन ही नहीं हो रहा था...’ जगदीश ने हंस कर कहा.
हुस्न बानो और उसके बीच जो हुआ वो किसी को बताने का कोई मतलब नहीं था. वैसे ही वो औरत अपनी सेक्स इच्छा के लिए बदनाम है. ऐसे में और एक किस्सा जोड़ना हुस्न बानो के लिए ठीक नहीं होगा ऐसा जगदीश का सोचना था. उसकी एक वजह यह भी थी कि जगदीश ने हुस्न बानो के साथ जो भी काम क्रीडा की उस दौरान उसे हुस्न बानो ‘सेक्स के लिए भूखी औरत’ कतई नहीं लगी थी. यह सच है की जगदीश को हुस्न बानो ने ही उकसाया पर हुस्न बानो की वो सारी हरकते अत्यंत नाजुक और प्रेमपूर्ण थी, कोई वासना से पीड़ित व्यक्ति का आक्रमण नहीं था. और हुस्न बानो के बारे में जो धारणाए उसने सुनी थी उसमे वो ग़लतफ़हमी नहीं जोड़ना चाहता था.
‘ओके. पर साजन भाई की बात उससे की तुमने? कुछ रिएक्ट किया क्या उसने?’
‘नहीं. साजन भाई के नाम पर भी वो चुप ही रही...पता नहीं.और एक दो बार कोशिश करते है फिर से मिल कर.’ जगदीश ने जवाब दिया. पर जवाब देते ही उसके मन ने उससे पूछा : सच बोलो जगदीश, क्या वाकई तुम सिर्फ साजन भाई के बारे में बात करने हुस्न बानो को फिर से मिलना चाहते हो?’
दूसरी ओर शालिनी ने जगदीश ने दिया हुआ कपड़ो का थेला जांचा. चार बढ़िया ड्रेस थे. ‘क्या टेस्ट है जेठ जी का! इतने अच्छे ड्रेस तो मैं भी नहीं ले पाई अब तक...’ ऐसा सोचते हुए अचानक शालिनी की नजर ब्रा और पेंटी के सेट पर गई.... उसने चेक किया. एकदम परफेक्ट साइज़ के थे ब्रा और पेंटी.... शालिनी अपनी आंखों पर हाथ रख कर लजा कर लाल लाल हो गई यह सोचते हुए की : इतना परफेक्ट साइज़…! सिर्फ एक बार देख लिया मुझे ब्रा और पेंटी में इसलिए? या मैंने कही हुई साइज़ वो भूल नहीं पाए!
(२० -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश
Thanks a lot -दोस्त आपकी कहानी बहुत बेहतर होगी इतना तो लग गया हे आपने जिस तरह से कहानी को पाठकों के सामने रखा हे और इतने व्यवस्थित तरीके से लिखी हे वाकई काबिले तारीफ हे शुरुआत में ही इंडेक्स देकर आपने पाठकों पर उपकार ही किआ हे बिना किसी इमेज के भी कहानी कही जा सकती हे, ये आपकी रचना दिखा रही हे बाकि पढकर कहूँगा धन्यवाद
Kya baat hai.. Ek publisher ke pass aapki story padhne ko milegi....Next update dedo bhai..Thanks a lot -
aap ko aagaah kar dun ki ye kahani main poori nahi likh paaya kyonki 40 chapter yaha pulish hone ke baad is kahaani ka ek publisher ke saaath deal ho gaya-
so iss kahani ko maen dobbara naye sire se leekh raha hun -
aap vistrut prtikriya doge to mujhe likhne me saahayta milegi -
aap ka aabhaari hun -
राकेश जी प्रतिक्रिया तो बनती हे बाकि आपकी कहानी काफी लम्बी हे पढने में काफी समय लगेगा बाकि कहानी अपने फोल्डर में सेव करते हुए जो पढने में आया उससे तो आपकी कहानी बहुत मजेदार और बेहतरीन तरीके से कही गई हे आपकी कहानी ने पुराने समय के नोवल्स की याद दिला दी हे रानू गुलशन नंदा इत्यादि के नोवल्स मुझे काफी पसंद रहे हें इस फॉर्म पे भी में कुछ इसी तरह की कहानियां जो तार्किक तरीके से कही गई हों उन्हें अपने फोल्डर में सेव करता रहता हूँ बाकि आपकी कहानी प्रकाशित होने के बाद आगे देखते हें पर आप लिखते रहिये धन्यवाद कसीस करिये आप हिंदी में ही प्रतिक्रिया दें अच्चा लगेगाThanks a lot -
aap ko aagaah kar dun ki ye kahani main poori nahi likh paaya kyonki 40 chapter yaha pulish hone ke baad is kahaani ka ek publisher ke saaath deal ho gaya-
so iss kahani ko maen dobbara naye sire se leekh raha hun -
aap vistrut prtikriya doge to mujhe likhne me saahayta milegi -
aap ka aabhaari hun -
शुक्रिया दोस्तराकेश जी प्रतिक्रिया तो बनती हे बाकि आपकी कहानी काफी लम्बी हे पढने में काफी समय लगेगा बाकि कहानी अपने फोल्डर में सेव करते हुए जो पढने में आया उससे तो आपकी कहानी बहुत मजेदार और बेहतरीन तरीके से कही गई हे आपकी कहानी ने पुराने समय के नोवल्स की याद दिला दी हे रानू गुलशन नंदा इत्यादि के नोवल्स मुझे काफी पसंद रहे हें इस फॉर्म पे भी में कुछ इसी तरह की कहानियां जो तार्किक तरीके से कही गई हों उन्हें अपने फोल्डर में सेव करता रहता हूँ बाकि आपकी कहानी प्रकाशित होने के बाद आगे देखते हें पर आप लिखते रहिये धन्यवाद कसीस करिये आप हिंदी में ही प्रतिक्रिया दें अच्चा लगेगा
इंतजार रहेगा आपकामैंने ये कहानी अधूरी छोड़ी नहीं बल्कि मुझे एक व्यावसायिक प्रकाशन प्रस्ताव के चलते यहाँ पोस्ट करना रोकना पड़ा. अब इसे नए सिरे से लिख रहा हूँ - बहुत सारे परिवर्तन के साथ - जल्द ही ये कहानी नए स्वरूप में किताब की शक्ल में आएगी.
मेरा मनोबल बढाने के लिए धन्यवाद-
Aapane bahut se chahane Wale bhi aapka intezar kar rahe hainइंतजार रहेगा आपका