तो जुगल और चांदनी का मिलन हो गया मगर होशोहवास में आने के बाद इसका क्या परिणाम होगा वो देखना होगा क्या ये मिलन उनके नए रिश्ते को जन्म देगा या पुराने रिश्ते को भी तोड़ देगा। सुंदर अपडेट।( १४ - ये तो सोचा न था…)
( १४ - ये तो सोचा न था…)
[(१३ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
अनजाने में चांदनी कमर से झुक कर अत्यंत कामुक मुद्रा बना रही थी.
अचानक उसका गाउन कमर के ऊपर तक चला गया. वो कुछ समझे उससे पहले उसका कमर के नीचे का हिस्सा नंगा हो गया. और दूसरे ही पल उसने अपने योनिमार्ग में लिंग रगड़ खाता हुआ महसूस किया. वो जोरों से कुछ बोलने गयी पर उसका गला बैठ चुका था. इतने में उसने जो सुना वो उसे आघात दे गया.
उसने सुना की जुगल की आवाज है. चांदनी को जुगल के मुंह से शराब की तीव्र गंध आने लगी… वो अपना लिंग उसकी योनि द्वार पर रगड़ते हुए कह रहा था. ‘थेंक यु सो मच शालिनी, मुझे पता ही नहीं था कि तुम आ गई. कब आई ? और मेरे लिए इतने सेक्सी पोज़ में राह देख रही हो…? लव यू शालू -’ और कमर पर हाथ बांधते हुए उसने चांदनी की योनि को सहला कर कहा. ‘रेडी ? वन टू एंड थ्री….’
चांदनी की योनि में जुगल का लिंग एक जोश के प्रवेश कर गया… ]
जुगल और चांदनी के बीच जो कुछ हुआ उसका विस्तार से वर्णन कारण मुश्किल है.
कारण, जुगल और चांदनी दोनों सरल और सहज मन स्थिति में नहीं थे.
चांदनी में दोष भावना थी जब जुगल के लिंग ने अचानक तिरोधान किया.
और जुगल में मदहोश भावना थी, शराब निर्मित.
जुगल शराब के नशे में सोया हुआ था. पेशाब करने का शरीर में दबाव आने पर वो उठा. जैसे तैसे वो वॉशरूम तो पहुंच गया पर वहां से फारिग होने के बाद उसके हाथ का दर्द बहुत बढ़ गया. और टुकड़ो टुकड़ो में उसने आज कुछ ज्यादा ही शराब पी ली थी सो सर चकरा रहा था.
-सिर जागने नहीं दे रहा था और हाथ का दर्द सोने नहीं देगा ऐसा लग रहा था. इस हालात में वो अपना कमरा ढूंढ रहा था. सुधींद्र उससे टकरा गया. उसे समझ में आ गया की जुगल ने काफी पी रक्खी है और अब अपना कमरा उसे मिल नहीं रहा. सुधींद्र ने कहा ‘चलो जुगल भाई, मैं आपको आपका कमरा दिखा दूँ…’
बहुत ना मरजी के साथ जुगल ने सुधींद्र की सहायता स्वीकार की. सुधींद्र के साथ अपने कमरे की और जाते हुए बार बार यही विचार आ रहे थे : खुद की बहन के साथ सेक्स करने की नियत रखनेवाले कमीने इंसान की मदद लेनी पड़ रही है?
पर दुखते हाथ और डूबते सिर के साथ के दोहरे युद्ध के कारण जुगल बेबस था. सुधींद्र मिलने के कारण बार बार उसकी आंखो के सामने दुल्हन बनने वाली उसकी बहन पियाली का घाघरा सुधींद्र का तपाक से उठा देना और पियाली के पेंटी हीन नितंबों का दिख जाना, फिर सुधींद्र को पियाली का ‘जल्दी से निपटा ले..’ ऐसा कहना और सुधींद्र का तुरंत अपना लिंग बाहर करना - यह सब उसे याद आ रहा था. जुगल को न चाहते हुए भी यह सब याद आते लिंग में तनाव सा महसूस होने लगा. उसे उलझन हुई की अगर उसे सुधींद्र की इस बेहया हरकत पर गुस्सा आ रहा है तो उसी हरकत से उसे उत्तेजना कैसे हो सकती है? अचानक उसे लगा की हाथ और सिर बाद बगावत का तीसरा मोर्चा लिंग में खुल गया है. वो बहुत परेशान हो गया. ऐसे में कॉरिडोर में पहुंचने पर जब अपना कमरा कहां है वो जुगल को याद आ गया तब उसने सुधींद्र से कहा. ‘अब मैं चला जाऊँगा, वो है मेरा कमरा, याद है…’
‘ओके जुगल भाई, सम्हल कर जाना…’ कह कर सुधींद्र उसे छोड़ कर लौट गया. तब जुगल ने सुकून महसूस किया. लिंग के तनाव का क्या करें अब -ऐसा सोचते हुए उसने अपना कमरा खोला तब दरवाजा खोलने के कारण कमरे में कॉरिडोर की लाइट की रोशनी का एक टुकड़ा बिखरा उसमे उसने कमरे की एक दीवार के पास एक स्त्री आकार को कमर से झुका हुआ देखा. वो शालिनी के अलावा कौन हो सकता है! कमरा उसका था और उस स्त्री के शरीर पर गाउन शालिनी का था. इसलिए तने लिंग को पेंट की झीप खोल, उसे बाहर निकाल, हाथ में लिए, सहलाते हुए, झुकी हुई शालिनी की और वो बढ़ा… कमरे में उसके दाखिल होनेके बाद खुद उसकी परछाई में जिसे वो शालिनी समझ रहा था वो चांदनी का शरीर ढक रहा था, जो हल्की फुलकी रौशनी का असर था वो जुगल को शालिनी का एक कामोत्तेजक पोज़ दिखा रहा था.
इस तरह जुगल दर्द, शराब और लैंगिक ऐसे तीन मोचो में बंटा हुआ कमरे में दाखिल हुआ और चांदनी की निमंत्रक अंग भंगिमा निहार कर उसका सारा ध्यान लैंगिक मोर्चे की और मूड गया.
दूसरी और चांदनी अपनी ऊँगली छुड़ाने की पेशोपेश में अनजाने में कामुक शैली में झुके हुए परेशान थी, ऐसे में अचानक उसकी पेंटी हीन योनि को ठंडी हवा की लहर लगी. उसे समझ में आया की शालिनी का गाउन जो उसने अभी पहना हुआ है उसकी जोड़ की सिलाई कहीं खुल गई होगी और उस छेद से हवा अंदर घुस कर उसकी मांसल जांघो के बीच गर्मी से बेहाल योनि को छू रही है. यह हल्का सा ठंडा अहसास वो अभी तो भोगे इतने में उसका गाउन कमर तक ऊपर हो गया और फिर…
जुगल की आवाज से चांदनी को झटका लगा. जुगल उसे शालिनी समझ कर यह हरकत कर रहा है ये तो वो समझ गई पर न वो उससे कुछ कह पाई, न रोक पाई, न मूड कर उसे अपना चेहरा दिखा पाई. क्योंकि बर्फ की एलर्जी से बैठ चूका गला आवाज नहीं निकाल पाया,फंसी हुई ऊँगली उसे न मुड़ने दे रही थी न अन्य किसी तरह इस अनपेक्षित आक्रमण से बचने का रास्ता दे रही थी…
इस तरह चांदनी गलत समय, गलत हाल में, निजी कमजोरी के चलते एक ऐसी स्थिति में फंस गई थी की खुद को मां समान आदर देनेवाले देवर को अनजाने में अपने साथ मैथुन क्रीड़ा के लिए प्रेरित करने का स्रोत बन गई थी - इस दोष भावना में चांदनी क्षुब्ध हो गई थी.
तो मत्त जुगल के उन्नत लिंग ने क्षुब्ध चांदनी की बेपर्दा योनि में प्रवेश कर लिया.
जब जुगल के उत्साह व उग्रता से कृत निश्चयी लिंग ने चांदनी की योनि में धड़ल्ले से प्रवेश किया तब चांदनी की योनि के आंतरिक महीन विस्तार में हलबली मच गई. क्योंकि ऐसा सख्त मेहमान आ धमकेगा ऐसी न कोई पूर्वसूचना थी न उसके आव भगत की कोई पूर्व तैयारी. यह एक किस्म का जुर्म था - अनजाने में हमला हो जाना!
अचानक लिंग के इस प्रवेश से योनि में ऐसा माहौल हुआ जैसे लकड़ी के तख़्त पर अचानक मिल्ट्री जूते पहने हुआ कोई मजबूत सैनिक सलामी की परेड करते वक्त अपना भारी पैर ठोक दे. एक पल के लिए योनि सुन्न हो गई. लिंग अपने छोर की उग्रता से योनि के अंदरूनी माहौल में हल्ला बोल कर बाहर जाने लगा. तब तक योनि का अंदरूनी विस्तार सचेत होने लग गया था. इस तरह के हमलों का उनका अनुभव कहता था कि यह प्रहार फिर होगा…इसलिए जब क्षणार्ध के बाद लिंग ने दूसरी बार जोश भरा प्रवेश किया तब योनि का अंदरूनी विस्तार बचाव के तेवर में आंशिक रूप से सख्त हो चुका था. सो इस दूसरे प्रवेश के वक्त मामला लकड़ी के तख़्त और और मिल्ट्री नुमा जूते की ठपकार न रह कर अब किसी टीन के दरवाजे पर मजबूत हाथ मुष्टिप्रहार कर रहा हो वैसा इस आंतरिक मुठभेड़ का चित्र बना. फिर से किंचित उग्रता पसारते हुए लिंग ने पीछेहठ की - इतने में एक मोड़ आया…
वो मोड़ यह था की योनि का आंतरिक चेतातंत्र इस लिंग के स्पर्श और आकार से विस्मित था : कौन है यह? हमेशा वाला मुलाकाती तो नहीं है!
चांदनी की योनि ने जगदीश के अलावा अन्य किसी के लिंगस्पर्श का अनुभव नहीं किया था.जगदीश के लिंग की लम्बाई सात इंच के करीब थी जबकि जुगल का लिंग साढ़े आठ इंच लंबा था, जगदीश का लिंग चौड़ाई में अधिक था और जुगल का लिंग तुलना में पतला था….
सो योनि के ज्ञान तंतुओं ने तेजी से खबर जारी कर दी : यह तो कोई और है - और फिर तुरंत योनि की सूक्ष्म शिराओं में खलबली उठी : कौन आया.... कौन आया !
इस खलबली के बिच लिंग ने तीसरा प्रवेश किया. योनि के हर कण कण ने स्पर्श के जरिये इस नवांगतुक की शिनाख्त करने की कोशिश की : नियमित मुलाकाती के मुकाबले यह कुछ बड़ा है और कुछ पतला! किंतु आकार के इस फर्क का तीव्रता के जोश में कोई भी कमतर प्रमाण नहीं था!
योनि और लिंग के ऐसी युद्धनुमा मुलाकातों का परिणाम अक्सर योनि और लिंग के दौरान एक लयपूर्ण जुगलबंदी के स्तर पर पहुंच कर सुखांत में पलटता है यह योनि को भली भांति पता था, योनि का भय इस अनजाने लिंग से प्रेरित जुगलबंदी के संभवित बेसुरे हो जाने की आशंका से था. इस लिए लिंग के तीसरे प्रवेश के वक्त योनि के समूचे संवेदनक्षेत्र ने इस नए लिंग को संरक्षण के हेतु से परखने की कोशिश की….
जिस तरह योनि विस्मित थी उसी तरह लिंग को भी आश्चर्य हो रहा था. तीसरे प्रवेश तक लिंग भी इस अनजान योनि के संसर्ग की नवीन अनुभूति से चकित और कुछ हद तक शंकित था कि “ यह कहां आ गए हम….!” सो तीसरे प्रवेश के वक्त लिंग में उग्रता कम और व्यग्रता अधिक थी.
योनि के लिए लिंग में आये इस उग्रता से व्यग्रता के परिवर्तनने संवाद के लिए विश्वसनीय वातावरण खड़ा करने का हितैषी काम किया. इस व्यग्रता को नर्मी जानकार प्रतिसाद में योनि ने लिंग के आगमन के प्रति स्वीकार का स्नेहांकित रुख अपनाया. इस नये स्नेह सभर ऊष्मा के स्वीकार से लिंग में आत्म सम्मान की नई लहर फैला दी और अब तक की दो अहंकारी दस्तक के बजाय इस बार लिंग ने योनि को करीबी दोस्तों के बीच हाई फाइव वाला ठप्पा सा मैत्रीपूर्ण आघात दिया और वो चौथे प्रवेश के लिए बाहर निकला…
एक ओर योनि और लिंग में यह सब शिखर यंत्रणा व स्पर्श मंत्रणा चल रही थी तब चांदनी और जुगल के क्या हाल थे?
उन दोनों में खास कोई फर्क नहीं आया था….
क्योंकि जुगल का पूरा होशोहवास लिंग विस्तार ने सम्भाल लिया था. निष्क्रिय राजा को पता नहीं होता की उसके तंत्र में क्या गतिविधि चल रही है उस तरह जुगल लिंग - योनि के बीच के परामर्श से बेखबर था. उसे सिर्फ यह ज्ञात हो रहा था कि शुरू में कुछ हिचकिचाहट थी पर अब मामला ‘सेट’ हो रहा है....और यह खबर उसके लिए पर्याप्त भी थी और सुखदायक भी.
चांदनी तो दोष भावना से इस कदर ग्रस्त थी की योनि से मिल रहे ‘सब सलामत’ के संकेत उस तक पहुँच ही नहीं रहे थे. ‘हाय , मैं कितनी मूर्ख!’, ‘हाय, मैं कितनी अभागन!’ ‘हाय, मैं कितनी बेबस!’ के लूप में ही अभी वो अटकी हुई थी.
जब की योनि और लिंग ने एक संवादिता हासिल कर ली थी सो लिंग के चौथे प्रवेश के मौके तक योनि के अंत:पुर ने स्वयं को लचनशील बना कर मोटे आगंतुक की जगह लंबे मुलाकाती के लिए अवकाश निर्मित कर लिया था.
इस लिए लिंग के पांचवे प्रवेश में योनि ने उस का मंद रस के स्त्राव से स्वागत किया गोया किसी वीर को गृह प्रवेश के मौके पर फूलों से सम्मानित किया जाता है.
योनि और लिंग के सुर आपस में मिल गये थे और दोनों कव्वाली के लिए उत्साहित थे…
जुगल की जांघे चांदनी के नितंबो पर तबले पर पड़ती थाप का ध्वनि पैदा करने लगी, वायोलिन के तंग तारो पर रगड़ खाती बो की तह लिंग योनिमार्ग में आवा गमन करने लगा, योनि की शिराओ में इस ताल मेल के संगीत की सुरीली झनझनाहट प्रसरने लगी और कव्वाली शुरू हो गई.
ज्यों ज्यों कव्वाली समां बांधती गई, जुगल और चांदनी दोनों के बदन में इस तनोहारी मधुर धुन का लय फैलने लगा....
जुगल सुखानुभव के परम लोक में विहार करने लगा.
चांदनी को उन्माद और उत्तेजना का सुख महसूस भी हो रहा था और साथ में दोष भावना का विक्षेपित ध्वनि भी परेशान कर रहा था कि ये तेरा देवर है चांदनी ! इस समागम को तू एन्जॉय कैसे कर सकती है? इस नादान को तो पता नहीं की वो अपनी पत्नी नहीं बल्कि अपनी भाभी जिसे वो मां का दर्जा देता है उसके साथ अभी मैथुन कर रहा है पर तू? अरे बेशर्म तू तो जानती है की यह लिंग जो अभी तेरी योनि में पागल सांढ़ की तह अफरातफरी मचा रहा है वो तेरे बेटे समान देवर का है! यह जानक्र भी तू इस कामक्रीड़ा से उन्मुक्त कैसे हो सकती है?
पर तू तो हो रही है…
नहीं चांदनी नहीं… इस तरह अपने आप को सुख के सागर में गोते मत लगाने दो यह गलत है….
पर लिंग और योनि का संगीत इस विरोधी सुर को दबाता गया, दबाता गया और अंतत: चांदनी भी इस सुर समाधि की समर्पित भोक्ता बन गई…
लिंग अपने उफान पर एक सुरीली धुन रचने की महत्वाकांक्षा में टकराता रहा.
योनि लिंग की महत्वाकांक्षी धुन के लिए चुस्त कसाव देती रही.
और द्रुत विलंबित राग पंचम सुर की ओर बढ़ता गया…
कव्वाली अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंची और योनि ने रस स्त्राव से लिंग की बलैय्या ले ली. योनि के इस भीगे भीगे प्रतिसाद से लिंग भी भावुक हो कर रिसने लगा…
सारे वाद्य रस से सराबोर हो गए….योनि का अंत:पुर , बाहरी विस्तार, नितंबों की गोलाइयां, लिंग - सभी रस की फुहार में नहा उठे.
अब योनि रस स्नान से लथपथ थी और लिंग सुर साधना के बाद थकान से मृदु…
एक ऐसी धुन की रचना हो गई जिसे कभी किसी ने सोचा न था…
(१४ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश