pawanqwert
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Sach kaha Rakesh Bhai . Isko seriously le , mazak me na le . Ye vinti meri aapse Rakesh bhaiItni humbleness
Aap ek achche lekhak hone ke saath saath ek achche insan bhi hai
Dono quality ek me hona kuch logo me hi hoti hai![]()
नहीं मजाक नहीं समझ रहा.Sach kaha Rakesh Bhai . Isko seriously le , mazak me na le . Ye vinti meri aapse Rakesh bhai
Behtreen update२६ – ये तो सोचा न था…
[(२५ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
‘तुम्हारी कॉलेज तो नहीं आता था पर तुम्हारी कॉलेज के बाहर कुछ मनचले नौ जवान खड़े हो कर कॉलेज की लड़कीओ को सताते थे वो याद है?
‘मतलब?’ चांदनी और टेन्स हो गई.
‘मैं उन मनचले लड़को में से एक था.’
‘फ़ालतू बातें जाने दो अजिंक्य, तुम मुझे यहां क्यों ले आये हो?’
‘डिटेल में बताऊं या शॉर्ट में?’
‘एक वाक्य में बताओ.’
‘तुम्हारी गांड की वजह से. चांदनी, यहां मैं तुम्हे तुम्हारी गांड की वजह से ले आया हूं.’
यह सुन चांदनी भौचक्की रह गई… ]
जुगल
अन्ना के घर के आसपास लगे हुए रास्तों पर कार घुमा घुमा कर जुगल थक गया. उसे लगा यह तो कोई तरीका नहीं हुआ किसी को ढूंढ़ने का !
पर क्या करना चाहिए? भाभी का फोन भी तो नहीं लग रहा था?
उसने झनक को फोन लगाया. वो भी आउट ऑफ़ कवरेज!
जुगल फ्रस्ट्रेट हो गया. कार के स्टीयरिंग पर सर झुका कर बैठ गया…
***
जगदीश
चाय पीने के बाद शालिनी ने जगदीश को धीमी आवाज में पूछा. ‘अब ठीक है आपको? या दर्द हो रहा है अब भी?’
‘अब दर्द नहीं, और मालिश की फिलहाल जरूरत नहीं.’
‘पक्का?’
‘मैं एक बार सूझन कम हुई कि नहीं वह चेक कर लेता हूं.’ कह कर जगदीश वॉशरूम जाने के लिए उठा. सुभाष ने बिल चुका दिया और सेलफोन पर बात करने लगा.
वॉशरूम में जगदीश ने अपने अंडकोष का मुआयना किया. शालिनी की मेहनत ने असर दिखाया था. सूझन नहीं के बराबर थी. न ही दर्द रहा था. वो मुतमइन हो कर वॉशरूम के बाहर निकला.
वॉशरूम के बाहर का पैसेज बहुत संकरी गली जैसा था. होटल से उस गली में आते पहले लेडीज़ वॉशरूम था फिर कोने में जेंट्स वॉशरूम. उस गली में एक वक्त एक ही आदमी गुजर सकता था. जगदीश उस गली के बीच पहुंचा तभी तूलिका उस गली में सामने से दाखिल हुई. जगदीश ने तेजी से गली के बाहर निकलने की कोशिश की पर वो और तूलिका आमने सामने हो ही गए. जगदीश ने अपने आपको गली की दीवार के साथ बिलकुल सटा कर तूलिका को जाने का रास्ता दिया पर तूलिका जगदीश के शरीर से खुद के शरीर को रगड़ कर आगे जाने के बजाय रुक गई. जगदीश फंस कर रुक गया. दोनों के चेहरे मुश्किल से आधे फुट की दूरी पर थे…जगदीश ने ऑक्वर्ड फील करते हुए कहा. ‘प्लीज़ आगे बढ़िए तूलिका दीदी…’
‘दीदी?’ तूलिका ने आंखें नचा कर मुस्कुरा के पूछा.
‘आप मोहिते की दीदी हो तो मेरी भी दीदी हुई.’
‘और सुभाष की बीवी हूं तो तुम्हारी क्या हुई?’ तूलिका ने हंस कर पूछा.
दोनों संकरी गली में लगभग चिपके से खड़े थे. तूलिका यह स्थिति एन्जॉय कर रही थी और जगदीश अनकम्फर्टेबल महसूस कर रहा था.
‘आप तब भी मेरे लिए दीदी ही रहोगी...अब प्लीज़ जाइए, मुझे भी जाने दीजिये.’
अचानक तूलिका ने अपना चहेरा जगदीश के चहेरे की और बढ़ाया और जगदीश को कुछ समझ में आये उससे पहले तूलिका ने अपनी जीभ से जगदीश के होठ चाटना शुरू कर दिया…
‘आप…’ ऐसा जगदीश बोलने गया तब तूलिका ने अपनी जीभ जगदीश के बोलने के लिए खुले होठों के बीच डाल दी, जगदीश बोल नहीं पाया और एक अप्रत्याशित जीभ युक्त चुंबन हो गया. जगदीश अपसेट हो गया. तूलिका हंस कर आगे खिसकी. जगदीश बाहर निकलने फ्री हुआ. अपने होंठों को पोंछते हुए उसने नाराजगी से कहा.
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‘ये क्या हरकत हुई! मैं आपको दीदी कह रहा हूं और आप-’
तूलिका ने हंस कर कहा, ‘बड़ी दीदी हूं तुम्हारी, लाड तो करूंगी ना अपने भाई से?’
जगदीश कोई जवाब दिए बिना वहां से निकल कर शालिनी बैठी थी वहां चला गया.
***
झनक
वो जहां गिर पड़ी थी उस तहखाने जैसी जगह में झनक को शुरू में तो कुछ समझ में नहीं आया की वो कहां आन पड़ी है… धीरे धीरे अंधेरे से उसकी आंखें अभ्यस्त हुई. उसने अपने मोबाइल की टॉर्च से उस जगह के अंधेरे को चीरते हुए मुआयना किया. वो एक स्टोर रूम जैसी जगह थी छोटे मोठे बक्से और भंगार सामान बिखरा पड़ा था. एक दीवार के बहुत उपरके हिस्से में -उस तहखाने की छत को लग कर एक छोटी सी खिड़की दिख रही थी. पर उस खिड़की तक की ऊंचाई कमसे कम आठ फुट थी. और इस आठ फुट को तय करने का कोई तरीका नहीं था…
***
चांदनी
चांदनी भौचक्की रह गई क्योंकि उसने ऐसी भाषा कभी बोली या सुनी नहीं थी. और किसी ने उससे ऐसी भाषा में कभी बात नहीं की थी.
‘अजिंक्य, बोलने की तमीज रखो.’
‘सॉरी चांदनी, मुझे नहीं पता की गांड को गांड नहीं कहते तो क्या कहते है! क्यों तुम लोग क्या कहते हो?’
‘बेकार बहस नहीं करनी मुझे, मैं यहां से जा रही हूं.’ चांदनी ने सोफे पर से उठते हुए कहा.
‘अरे वाह ! तुम चली जाओगी तो मैं क्या जुगल की गांड मारूंगा ?’
चांदनी सहम गई.
‘बैठ जाओ चांदनी. अगर जुगल की खैर चाहती हो तो…’
चांदनी विवश हो कर बैठ पड़ी…
***
जुगल
रास्ते के किनारे कार रोक कर ‘अब क्या करें?’ की मानसिकता में बैठे हुए जुगल ने देखा की रास्ते के बगल की झाड़ी में कोई भागता हुआ गया. — कौन होगा? क्या चांदनी भाभी हो सकती है? - जुगल एकदम सावध हो गया. उसे लगा की भाभी हो यह संभावना बिलकुल है क्योंकि भाभी चल कर गई होगी, हो सकता है अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गई हो और वो ही हो?जिसे मैंने देखा!
जुगल कार से बाहर निकल कर झाडी में तेजी से गया….
***
झनक
उस तहखाने में हवा की कोई व्यवस्था नहीं थी. कुछ ही देर में झनक पसीना पसीना हो गई… इतने में अंधेरे में वो बक्सों के ढेर से टकरा गई और एक बक्सा उस के सिर पर गिर पड़ा. उस बक्से में कुछ पावडर जैसा था जो झनक के कपड़ो और शरीर पर बिखर गया. ‘यह कौन सा पाउडर है?’ सोचते हुए झनक ने उस हाथ पर लगे पाउडर को सूंघ कर देखा, गंध से कुछ समझ में नहीं आया पर—-
— पर कुछ ही पलों में झनक को समझ में आ गया की वो पाउडर नहीं था बल्कि खुजली का चुरा था… क्योंकि झनक का सारा बदन खुजलाना शुरू हो गया…
***
चांदनी
‘चांदनी, मैं तुम पर कोई जबरदस्ती नहीं करूंगा. एक सरल सौदा है. - तुम मेरी बात मानो, मैं जुगल की जान नहीं लूंगा. तुम मेरी बात मानने से मना कर दो. मैं जुगल की जान ले लूंगा.मैंने कुछ करना नहीं सिर्फ अन्ना को एक कॉल करना है… ’
‘जुगल है कहां ?’
‘सलामत जगह पर. वो कहां है, यह मुझे बस अन्ना को बताने की देर है. दूसरे ही पल अन्ना के आदमी उसकी जान लेने पहुंच जाएंगे.’
चांदनी उलझ गई.
‘बात करोगी जुगल से?’ अजिंक्य ने पूछा.
-क्या बात करूं !- चांदनी ने सोचा.
अजिंक्य ने फोन लगा कर कहा. ‘जुगल से बात कराओ…’
चांदनी ने आतंकित हो कर अजिंक्य की ओर देखा…
अजिंक्य फोन कान पर लगाए हुए था. अचानक बोला. ‘ओह, नहीं नहीं उसे मारो मत…’ फिर एकदम गरज कर बोला. ‘मैंने बोला क्या हाथ उठाने? इडियट्स ! मुझे बात करनी थी उससे और वो कराह रहा है…! अब खबरदार उसे एक उंगली भी लगाईं तो -’ कह कर अजिंक्य ने गुस्से से फोन काट कर पटक दिया.
चांदनी सहम गई- जुगल को पीटा जा रहा है! पर क्यों! कौन है ये अजिंक्य, ये अन्ना जैसे लोग और क्यों ऐसा वहशीपन है इनमे?
इतने में अजिंक्य चांदनी की ओर देख कर बोला. ‘आई एम सॉरी, इस लाइन के लोग बहुत जाहिल होते है.. पर मैंने बता दिया है -अब वो जुगल पर हाथ नहीं उठाएंगे - कुछ देर में मैं तुम्हारी बात करता हूं -’
चांदनी आघात से दिग्मूढ हो गई थी.
‘पर आप लोग जुगल को मार क्यों रहे हो?’ चांदनी जो बात गुस्से में पूछना चाहती थी वो पूछते पूछते रुआंसी हो गई… उसकी कल्पना में मार खाता हुआ जुगल आ रहा था - उसकी आंखें भर आई…
‘जुगल ने कोई हरकत की होगी उनसे भाग निकलने की या सामने अपनी ताकत दिखाने की - खेर, मैंने कह दिया है तुम्हारे सामने अब कोई नहीं छुएगा उसे- वादा.’
चांदनी ने अपनी आंखें पोंछते हुए अपने हाल को कोसा….
‘अब मैंने बोला उस बारे में बताओ.’ अजिंक्य ने पानी की बोतल से पानी पीते हुए कहा.
चांदनी ने चौंक कर अजिंक्य के सामने देखा.
‘बोलो, टाइम वेस्ट मत करो. मैं कॉल करूं अन्ना को या मेरे सौदे की ऑफर से तुम जुगल को बचाने में इंटरेस्टेड हो?
चांदनी को समझ में आ गया की उसके पास ज्यादा चॉइस है नहीं.
‘मुझे क्या करना होगा?’ चांदनी ने धड़कते हृदय के साथ पूछा.
‘शुरुआत कपडे निकालने से करो.’ अजिंक्य ने कहा.
चांदनी को आघात लगा. वो अजिंक्य को ताकती रह गई.
अजिंक्य ने कुछ पल चांदनी को निहारा फिर अपना फोन हाथ में लेते हुए कहा.
‘इट’ स ओके चांदनी, आई केन अंडरस्टेंड…’ और फोन डायल करने लगा.
‘एक मिनिट…’ चांदनी ने टेन्स हो कर कहा.
अजिंक्य ने चांदनी की ओर देखा.
चांदनी ने कहा. ‘मैं कपड़े निकालती हूं…’
अजिंक्य के चेहरे पर मुस्कान आई…
***
जुगल
झाडी में दिशाहीन सा एक अंदाजे से कुछ देर दौड़ने के बाद जुगल एक डेड एन्ड जैसी जगह पहुंच गया.
सामने खाई जैसा लंबा गड्ढा था. आगे जाने का कोई रास्ता नहीं था…
जुगल को लगा वो क्या मूर्खों की तरह हवा में हाथ पैर मार रहा है!
उसे मुंबई में चिलम बाबा के साथ की मुलाकात याद आ गई…
पूना निकलने के आठ दस रोज पहले जुगल चिलम बाबा से मिला था और बताया था की वो पूना जाने वाला है. तब बाबा ने हँसकर कहा था. ‘जाओ जाओ जरूर जाओ. एक नया सबक सीखोगे पूना की मुलाकात से..’
‘कौन सा सबक?’ जुगल ने पूछा था तब बाबा ने कहा था : ‘हवा पर कोई पहरा नहीं होता और गांड पर कोई पर्दा नहीं होता.’
जुगल यह सुन कर भौचक्का रह गया था और बाबा ने हंसते हुए समझाया था : शून्य बुद्धि ! इस के माने है की हवा को लाख कोशिशों के बावजूद आप बांध नहीं सकते वो आखिर बह निकलती है और अपनी गांड को लाख कोशिशों के बावजूद आप बचा नहीं सकते, वो मार दी जाती है…’
जुगल को लगा इस वक्त उसके साथ जो हो रहा है उसी के बारे में शायद चिलम बाबा उसे आगाह कर रहे थे! पता नहीं चांदनी भाभी कहां किस हाल में होगी और मैं चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रहा - चिलम बाबा की बात इस स्थिति के साथ बिल्कुल फिट बैठ रही है!
इतने में उसका ध्यान खाई के उस पार के छोटे से बंगले के कंपाउंड में भोंकते हुए कुत्तो की आवाज पर गया.
वो कुत्ते एक छोटी सी खिड़की की ओर देख कर भौंक रहे थे…
क्या होगा उस खिड़की में जो कुत्ते भौंक रहे है?
कहीं कुदरत उसे कोई इशारा तो नहीं दे रही ?
जब चिलम बाबा की बातें सुनकर जुगल को पूना की मुलाकात को ले कर एक भय लगने लगा था. तब बाबा ने कहा था - ‘चिंता मत कर, खिड़कियां खुल जायेगी…’
उन कुत्तो को उस खिड़की की और देख भौंकते देख जुगल को लगा : शायद मुझे वहां जाना चाहिए…
वो उलटे पैर रास्ते की और दौड़ा - जहां उसने अपनी कार छोड़ी थी…
***
झनक
जी हां, जुगल ने अभी देखे हुए भौंकते हुए कुत्ते उसी खिड़की को देख रहे थे जिस खड़की को तहखाने से झनक ने देखा था.
पर कुत्ते भौंक क्यों रहे थे?
क्योंकि झनक ने एक लकड़ी का टुकड़ा फेंक कर उस खड़की के सलाखों में फ़साने की कोशिश की थी…
कैसे?
यह जानने हमें पांच मिनिट पीछे जाना पड़ेगा जब खुजली वाला चूर्ण झनक के शरीर पर बिखर गया था….
कुछ ही देर में झनक खुजली से परेशान हो गई और उसे अपने कपडे निकालने पड़े… वो जुगल को बचाने के लिए अन्ना के घर में देहाती कपड़ो में घुसी थी - चोली, घाघरा और ओढ़नी… इन सारो कपड़ो में खुजली का पाउडर जैसा चूर्ण पसर गया था… मजबुरन उसे सब निकाल देना पड़ा. इस कपडे निकालने की हरकत में उसकी ब्रा में भी खुजली का पाउडर चला गया. सो ब्रा भी निकाल दी.. अब पेंटी में भी जलन होने लगी थी… झनक ने झल्ला कार पेंटी भी निकाल दी और पूर्ण नग्न हो कर अपने कपडे झटकने शुरू किये…. कुछ देर सारे कपड़े झटकने के बाद वो अपनी इस स्थिति को कोसते हुए थक कर नंगी ही फर्श पर बैठ पड़ी. तब उसकी नजर एक लकड़ी के टुकड़े पर पड़ी.
झनक स्मार्ट लड़की थी. उसने लकड़ी का टुकड़ा देखा, तहखाने की छत से सटी खिड़की देखि और अपने कपड़ो का ढेर देखा…
और तुरंत अपने सारे कपड़े एक दूसरे से बाँध कर उसने एक डोर बना दी. उस डोर के एक छोर पर उस लकड़ी के टुकड़े को बराबर बीच के हिस्से में बांधा और फिर जोर लगा कर फेंका उस खिड़की की ओर - इस उम्मीद में की वो लकड़ी का टुकड़ा खिड़की की सलाखों में फंस जाए..
लकड़ी का टुकड़ा सलाखों से टकरा कर फिर झनक के पास आ गया…
झनक ने उम्मीद नहीं छोड़ी. उसने दुबारा कोशिश की….
इस तरह उसने कोशिश जारी रखी.
बार बार लकड़ी का टुकड़ा सलाखों से टकरा कर आवाज पैदा करता था.
सो लकड़ी का टुकड़ा सलाखों में फंसा नहीं पर उस आवाज से एक कुत्ता आकर्षित हो कर खिड़की के पास आ कर देखने लगा. और इस तरह लकड़ी के टुकड़े को बारबार आ कर सलाखों से टकराता देख वो भौंकने लगा.
उसे भौंकते देख और तीन चार कुत्ते आ गए और सभी लकड़ी के टुकड़े को देख भौंकने लगे…
इस तरह कुत्तो की सामूहिक भौंक काफी दूर, गढ्ढे के दूसरी और खड़े जुगल तक पहुंच पाई…
खेर.
क्या लकड़ी के उस टुकड़े को खिड़की के सलाखों में फ़साने में झनक कामियाब होगी?
जो इस वक्त अपने बदन के सारे वस्त्र - ब्रा पेंटी तक को दूसरे कपड़ों के साथ जोड़ जोड़ कर डोर बना कर यह कोशिश कर रही है?
बिल्कुल नग्न अवस्था में!
***
चांदनी
चांदनी भी इस वक्त बिलकुल नग्न अवस्था में थी …
पूना से मुंबई की सफर में लाइट ड्रेसिंग ठीक रहेगा इस ख़याल से उसने एक क्रीम कलर का टीशर्ट और जींस की पेंट पहने थे.
जो अब अजिंक्य के सोफे पर पड़े थे. बगल में उसकी ब्रा और पेंटी भी….
और अजिंक्य के आदेश पर वो मूड कर अपने नितंब उसे दिखा रही थी.
अजिंक्य अपने पेंट की ज़िप खोलकर अपना लिंग सहलाते हुए चांदनी के नितंब देख कर उत्तेजना से बोला.
‘यस…यस…यस…!! चांदनी —--उफ्फ्फ क्या नजारा है! उफ्फ्फ उफ्फ्फ्फ़ उफ्फ्फ… ऐसे ही मैंने तुम्हारा नाम ‘गांड सुंदरी’ नहीं रखा…!’
***
जहां दो कन्या निर्वस्त्र हो चुकी है. - दोनों की नग्न हो जाने की वजह भिन्न भिन्न किस्म की खुजली है…
वहां -क्या जुगल सही वक्त पर इस बंगले पर पहुंच पाएगा ?
(२६ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश![]()
२५ – ये तो सोचा न था…
[(२४ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
अचानक सुभाष ने झटके के साथ कार स्लो कर दी…. और तूलिका के हाथ से पानी की बोतल का ढक्क्न उछल कर जगदीश के पैर के पास पड़ा. जगदीश वो ढक्क्न उठाने झुके उससे पहले उसकी कमर से नेपकिन निचे गिर पड़ा और बोतल का ढक्क्न लेने पीछे मूड कर झुकी हुई तूलिका ने देखा की शालिनी का हाथ जगदीश की पेंट की खुली हुई ज़िप में है… शालिनी का सर जगदीश के पेट की ओर था और वो अपने काम में खोई हुई थी. जगदीश ने तेजी से नैपकिन उठा कर शालिनी के हाथ को फिर ढक दिया. तूलिका ने बोतल का ढक्कन उठाया और जगदीश को देख मुस्कुराई और फिर मूड कर बैठ गई और बोतल से पानी पीते हुए ड्राइविंग मिरर से जगदीश को देखने लगी…]
जुगल
अन्ना के घर से बाहर आने के बाद जुगल अपनी कार की ओर मुड़ते हुए बोला: ‘झनक अपनी कार यहां है. ‘
बाहर खड़े हुए अन्ना के आदमी के सामने झनक और जुगल ने अगुवा करने वाली, और अगुवा होनेवाला का अभिनय जारी रखा. कार स्टार्ट कर के १०० फुट की दूरी पर जा कर जुगल ने कार रोकी और अपना पेंट ठीक करते हुए झनक से कहा. ‘यार तेरे जैसी लड़की मैंने आज तक देखी नहीं…’
‘यु मीन कपडे पहने हुए भी मैं लाजवाब हूं ?’ झनक ने हंस कर पूछा.
‘यस. हर हाल में लाजवाब. क्या दिमाग लगाया- अन्ना ने तुरंत ही छोड़ दिया.’
‘शायद अन्ना को पता चल गया होगा की उसकी बहन का रेप किसने किया है..’
‘तुम को सब कैसे पता? तुम्हे कैसे पता की मुझे अन्ना ने यहां पकड़ रखा है?, ये कैसे पता की अन्ना की बहन का रेप हुआ है? और ये कैसे पता की वो रेप मैंने नहीं किसी और ने किया है?’
‘तुम यहां हो यह मुझे कैसे पता उसका जवाब मैं तुम्हे अभी नहीं दे सकती.’
‘मेरा पीछा कर रही थी?’
‘पीछा तो नहीं पर हां , तुम्हें ट्रैक कर रही थी.’
‘वो क्यों?’
‘बताउंगी. पर नथिंग पर्सनल -’
‘मतलब तुमको मुझसे प्यार हो गया है - ऐसा कुछ नहीं ना ?’
‘नहीं. पर हुआ भी हो तो क्या? टेंशन क्या है?’
‘झनक, मैं शादीशुदा हूं.’
‘तो?’
‘तो? मतलब…’ जुगल को सुझा नहीं की क्या बोलना.
‘ओके. शादीशुदा हो तो प्यार के लिए अवेलेबल नहीं...सिर्फ सेक्स कर सकते हो?’
‘क्या बोल रही हो?’
‘जो देखा था वो. वो तुम्हारी बीवी थी क्या?’
‘मैं वैसा आदमी नहीं हूं झनक, तुमको मैंने बताया था की उसे बीवी समझ के–’
‘ओके ओके, तुम जैसे बोरिंग आदमी का कुछ नहीं हो सकता.’
‘पर अन्ना की बहन के रेप के बारे में भी तुम जानती हो?’
‘कल रात मेरे नसीब में यही देखना लिखा था - कौन किस के साथ सेक्स कर रहा है..’
‘ओह!’
‘चलो, अपने बम्स पेंट में बांध दिए हो तो अब गाड़ी चलाओ.’
‘एक प्रॉब्लम अभी बाकी है झनक, मेरी भाभी के साथ मैं यहां लाया गया था. बीच में पांच मिनिट के लिए लाइट गई तो वो गायब हो गई.’
‘ओह! फोन लगाओ अपनी भाभी को-’
***
चांदनी
चांदनी जिस कार की डिक्की में थी उस कार को अजिंक्य ड्राइव कर रहा था. उसका सेलफोन बजा. ड्राइव करते हुए अजिंक्य ने फोन रिसीव किया.
‘हां अन्ना ? अब तक मिली नहीं वो… ढूंढ रहा हूं -’
‘मत ढूंढ. भेन के साथ बुरा किया वो कुट्टी. ये दोनों को भूल जाओ.’ - फोन पर अन्ना ने कहा.
‘ओके अन्ना. तो कुट्टी को उठाना है ?’
‘अभी नहीं. मैं बोलता. मैं बाद में फोन करता.’ कह कर अन्ना ने फोन काटा.
अजिंक्य के चेहरे पर मुस्कान आई.
चांदनी डिक्की में परेशान थी. और उसका फोन आउट ऑफ़ सिग्नल…
***
जगदीश
शालिनी की मुलायम उंगलियों से जगदीश के टेस्टिकल का मसाज चल ही रहा था. कार भी चल रही थी, सुभाष सूरी की बातें भी और तूलिका की ड्राइविंग मिरर से जगदीश के साथ नजरबाजी भी…
हाइवे पर एक होटल देखते हुए सुभाष ने कार स्लो करते हुए कहा. ‘चाय पीते है जगदीश - क्या बोलते हो?’
‘जरूर.’ कहते हुए जगदीश ने शालिनी की पीठ होले से थपथपाई. शालिनी सावधानी से अपना हाथ जगदीश पेंट से निकालते हुए उठ बैठी. और नेपकिन तले जगदीश ने पेंट की ज़िप ठीक से लगा दी.
कार रुकी. सुभाष बाहर निकला. शालिनी भी बाहर निकली. तूलिका बाहर निकल कर अपनी सीट पर झुक कर कुछ ढूंढ ने लगी. जगदीश ने बाहर निकलते हुए रुक कर सहज ही तूलिका से पूछा. ‘कुछ गिर गया है?’
‘हां, तूलिका ने मुस्कुराकर कहा. ‘मेरे बालो का क्लिप मिल नहीं रहा. देखो आप की तरफ गिरा है क्या ?’
जगदीश अपनी सीट के पास देखने लगा. अब तूलिका आगे की दो सीट के बिच से अपना सिर पीछे की सीट तक लाते हुए बोली. ‘ठीक से देखिए ना, दिख जाएगा… ‘
जगदीश ने तूलिका की ओर देखा. जिस तरह तूलिका झुकी हुई थी उसकी साडी का पल्लू निचे ढल चूका था और ब्लाउज़ की धार से उसके स्तन बहार छलक रहे थे. एक क्षण जगदीश की नजर उन स्तनों पर टिकी, तभी तूलिका ने पूछा. ‘दिखा ? देखिये न ठीक से बड़ा वाला क्लिप है….’ जगदीश ने चौंक कर तूलिका क्या बोल रही है - इस अचंभे के साथ उसकी और देखा तब तूलिका ने मुस्कुराकर कहा. ‘हाथ टटोलिए… शायद मिल जाये…’
जगदीश शॉक्ड हो गया.
बाहर राह देख रहे सुभाष ने कंटालते हुए कहा. ‘अग जाऊ दे, दुसऱ्या क्लिप नाही का तुझ कळे? (अब छोड़ो भी, दूसरा क्लिप नहीं है क्या तुम्हारे पास?)
शालिनी ने कहा. ‘अरे तूलिका दीदी, मेरे पास है बड़ी क्लिप… ‘
तूलिका ने पल्लू ठीक करते हुए कार से अपना सिर बाहर कर, कहा. ‘हां आपकी क्लिप भी बड़ी है…’ इतना बोल कर तब तक कार के बाहर आ चुके जगदीश को एक लुक दिया. जगदीश ने अपना मुंह फेर कर सुभाष से कहा. ‘चाय का आइडिया अच्छा है…चलो चाय पीते है.’
***
जुगल
‘भाभी का फोन नहीं लग रहा….’
‘नेटवर्क नहीं होगा.’ झनक ने जवाब दिया.
इतने में झनक का फोन बजा. : ‘हां पापा ?’
सामने पापाने जो कुछ कहा वो झनक ने सुना फिर इतना ही पूछा. ‘अभी? इसी वक्त? ओके? आप तस्वीर और डिटेल भेजिए.’
और फोन काट कर जुगल से कहा. ‘मुझे जाना होगा. अभी.’
‘पर झनक मुझे तुम्हारी हेल्प की जरूरत है, भाभी को ढूंढना है…’
‘ तुम ढूंढो, मैं तुम्हें एक घंटे में ज्वाइन करूंगी. पर अभी मैं रुक नहीं सकती.’
इतने में झनक के फोन में मेसेज का टोन बजा. झनक ने चेक किया. अजिंक्य की तस्वीर थी. फिर अजिंक्य का एड्रेस भी आया. झनक ने अजिंक्य की तस्वीर को ध्यान से निहारा. फिर जुगल से कहा. ‘सोरी जुगल. अर्जन्ट जाना होगा.पर मैं यह काम घंटे भर में निपटा लुंगी फिर तुम्हारी भाभी को ढूंढ़ लेंगे. डोंट वरी. उनका फोन नंबर मुझे भेज दो.’
‘फोन नंबर से तुम क्या करोगी?’
‘भेज दो जुगल. फ़ालतू सवाल मत करो.’
‘क्या तुम पापा से बोल नहीं सकती की अभी तुम नहीं सकती?’
‘नहीं बोल सकती.’
‘तुम क्या पापा की गुलाम हो?’
‘गुलाम नहीं, पापा की रखैल हूं.’
जुगल यह सुन शोक हो कर चुप हो गया. झनक ने कहा. ‘चलो गाड़ी स्टार्ट करो.’
‘मैं तुम्हारे साथ नहीं आऊंगा… मुझे मेरी भाभी का पता लगाना है…’
‘मैं तुम्हे साथ आने नहीं कह रही, मुझे थोड़ा आगे तक छोड़ दो. आगे मेरी गाडी खड़ी है. ‘
जुगल ने बेमन से अपनी कार स्टार्ट की. कुछ फिट कार आगे चलने पर एक कार और एक बाइक साइड में पार्क किये हुए दिखे. झनक ने वो देख कर कहा. ‘रोको, वो रही मेरी गाडी.’
जुगल ने कार रोकी. झनक कार से उतर कर जाने लगी. जुगल ने ऊंची आवाज में पूछा.
‘तुम्हारी गाड़ी कौनसी है? कार या बाइक?’
‘जो स्टार्ट हो जाये…’ कहते हुए झनक ने पहले बाइक ट्राई की. स्टार्ट हो गई. जुगल झनक को देखता रह गया. झनक बाइक मोड़ कर जुगल के पास आई. और बोली.
‘चल हैंडसम. मिलती हूं एक घंटे में.’
‘पक्का?’
‘घोंचू, तुम्हारे काम से नहीं मुझे अपने काम से मिलना है, इसलिए पक्का मिलूंगी.’
और जुगल कुछ बोले उससे पहले बाइक भगाते हुए तेजी से निकल गई. जुगल बाइक को जाती हुई देखता रह गया. उस बाकी की नंबर प्लेट के नीचे लिखा था : मजनू की घोड़ी. वो पढ़ते हुए जुगल ने सोचा : ये बाइक झनक की होगी? या ऐसे ही किसी की बाइक उठा कर चली गई!
***
चांदनी.
अजिंक्य ने कार अपने घर के कंपाउंड में ली. यह एक छोटा सा पुराने स्टाइल का बंगला था.
कार पार्क करके उसने डिक्की खोली. चांदनी बाहर निकली. अगल बगल देखते हुए उसने पूछा.
‘ये कहां आये है हम?’
‘मेरे घर. चलो. वो लोग जुगल को लेकर शायद पहुंच गए होंगे, हमारी राह देख रहे होंगे. आओ.’
कहते हुए वो घर की और बढ़ा. चांदनी का बदन डिक्की में सिकुड़ कर अकड़ गया था. उसने अपने हाथ पैर स्ट्रेच किये. पैर ज्यादा अकड़ गए थे, दोनों पैरो को चांदनी ने बारी बारी जोर से हिलाया. उसके एक पैर से उसकी पायल निकल के गिर पड़ी जिस पर उसका ध्यान नहीं गया. अजिंक्य ने अपने घर के दरवाजे के लॉक को खोलते हुए कहा. ‘चलो चांदनी, आ जाओ…’
चांदनी ने घर की और बढ़ते हुए कहा. ‘यहां तो कोई नहीं.’
‘बस आते ही होंगे. मैं फोन करता हूं. तुम बैठो तो…’
दोनों घर में दाखिल हुए. अजिंक्य ने घर का दरवाजा बंद कर दिया. चांदनी ने वो नहीं देखा. अजिंक्य ने फोन लगाया और बात की. ‘तुम लोग पहुंचे क्यों नहीं? ओके ओके. जुगल ठीक है? फाइन.’ फोन पर बात करते हुए उसने चांदनी को ‘सब ठीक’ के मतलब में अपना अंगूठा वेव किया. चांदनी को इस सुनकर, देख कर राहत हुई.
अजिंक्य ने फोन पर पूछा. ‘पंद्रह मिनिट? ठीक है आ जाओ.’ और फोन काट कर चांदनी से कहा. ‘पंद्रह मिनिट में वो लोग जुगल को ले कर आ जाएंगे.
इतने में चांदनी का फोन बजा. चांदनी ने फोन देखा. अजिंक्य टेन्स हो गया पर उसने सहज स्वर में पूछा. ‘किसका फोन है?’
‘पता नहीं.’ बोल क्र चांदनी रिसीव करने वाली थी की अजिंक्य ने कहा, ‘नहीं चांदनी मत उठाओ. रिस्की है…’
चांदनी सहम गई. फोन बजता रहा. फिर कट गया. अजिंक्य ने फोन चेक कर के कहा. ‘अच्छा हुआ नहीं उठाया, यह फोन अन्ना के आदमी का हो सकता है.’
चांदनी यह सुनकर डर गई.
अजिंक्य ने फोन चांदनी को देने के बजाय स्विच ऑफ़ करते हुए कहा. ‘कुछ देर फोन बंद रहने दो. प्लीज़.’ और फोन एक और रख दिया. और चांदनी से पूछा. ‘तुम क्या लोगी? चाय कोफ़ी?’
‘कुछ नहीं. जुगल आ जाए तो बस, हम लोग मुंबई निकल जाए…’
‘रिलेक्स, अब तुम खतरे से बाहर हो.’
‘थैंक्स अजिंक्य. सोरी पर मुझे तुम्हारी बहन स्वीटी याद ही नहीं आ रही… या फिर उसका घर का नाम स्वीट होगा और कॉलेज का नाम कोई और?’
अजिंक्य यह सुन कर हंस पड़ा और बोला. ‘नहीं नहीं, दरअसल बात कुछ और है. वो हुआ यूं की-’
तभी अजिंक्य के घर की डोर बेल बजी. अजिंक्य खड़ा होते हुए बोला.’लगता है जुगल आ गया.’
और दरवाजे के पास गया. चांदनी हॉल में बैठी थी. हॉल और घर के दरवाजे के बीच एक तीन फुट का बारामदा था और हॉल के दरवाजे पर पर्दा लगा था. सो दरवाजे पर कौन आया यह हॉल में से नहीं दीखता था.
अजिंक्य ने बारमदे में जा कर करीब पड़े टेबल पर से एक रिमोट उठाया और दरवाजा खोला. बाहर झनक खड़ी थी.
‘जी?’ अजिंक्य ने विवेक के साथ पूछा.
‘अजिंक्य?’ झनक ने पूछा.
‘जी हां. आप?’
‘तुम्हारी शामत.’ पलक झपकाए बिना झनक ने कहा.
‘हाव इंटरेस्टिंग ! मिस शामत, अंदर तो आइए…’ अजिंक्य दरवाजे हट कर झनक के आने का रास्ता छोड़ा.’
‘मैं आने नहीं, तुम्हें ले जाने आई हूं.’
‘माय प्लेज़र बेबी. ‘ अजिंक्य ने मुस्कुराकर कर कहा.
झनक ने दहलीज लांघ कर अंदर पैर रखा. तुरंत अजिंक्य ने अपने हाथ का रिमोट का बटन दबाया. झनक ने पैर रखा था वो हिस्सा खिसक गया. झनक ने संतुलन खोया और नीचे के हिस्से में धंस गई. अजिंक्य ने फिर रिमोट का बटन दबाया. झनक गिरी थी वो गेप फिर ठीक हो गया. रिमोट टेबल पर रख कर अजिंक्य हॉल में आया. और चांदनी से कहा.
‘जुगल नहीं आया, कोई और था.’
‘ओह.’ चांदनी ने कहा. ‘अजिंक्य मुझे प्यास लगी है, पानी दो ना…’
‘श्योर. ‘ कह कर अजिंक्य किचन जा कर पानी की बोतल ले आया.
पानी पी कर चांदनी ने पूछा. ‘हां, स्वीटी के बारे में तुम कुछ बता रहे थे.’
‘हां, मैं कह रहा था कि मैं स्वीटी का भाई नहीं हूं . इन फैक्ट तुम्हारी किसी भी सहेली का भाई नहीं हूं…’
चांदनी स्तब्ध हो गई. ‘तो फिर तुम मुझे कैसे जानते हो?’
‘चांदनी तुम नवी मुंबई की एम.सी. एम कॉलेज की स्टूडेंट हो.’
‘हां. तुम मेरी कॉलेज में थे?’ चांदनी टेन्स होने लगी.
‘तुम्हारी कॉलेज तो नहीं आता था पर तुम्हारी कॉलेज के बाहर कुछ मनचले नौ जवान खड़े हो कर कॉलेज की लड़कीओ को सताते थे वो याद है?
‘मतलब?’ चांदनी और टेन्स हो गई.
‘मैं उन मनचले लड़को में से एक था.’
‘फ़ालतू बातें जाने दो अजिंक्य, तुम मुझे यहां क्यों ले आये हो?’
‘डिटेल में बताऊं या शॉर्ट में?’
‘एक वाक्य में बताओ.’
‘तुम्हारी गांड की वजह से. चांदनी, यहां मैं तुम्हे तुम्हारी गांड की वजह से ले आया हूं.’
यह सुन चांदनी भौचक्की रह गई…
(२५ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश![]()
Very nice story२६ – ये तो सोचा न था…
[(२५ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
‘तुम्हारी कॉलेज तो नहीं आता था पर तुम्हारी कॉलेज के बाहर कुछ मनचले नौ जवान खड़े हो कर कॉलेज की लड़कीओ को सताते थे वो याद है?
‘मतलब?’ चांदनी और टेन्स हो गई.
‘मैं उन मनचले लड़को में से एक था.’
‘फ़ालतू बातें जाने दो अजिंक्य, तुम मुझे यहां क्यों ले आये हो?’
‘डिटेल में बताऊं या शॉर्ट में?’
‘एक वाक्य में बताओ.’
‘तुम्हारी गांड की वजह से. चांदनी, यहां मैं तुम्हे तुम्हारी गांड की वजह से ले आया हूं.’
यह सुन चांदनी भौचक्की रह गई… ]
जुगल
अन्ना के घर के आसपास लगे हुए रास्तों पर कार घुमा घुमा कर जुगल थक गया. उसे लगा यह तो कोई तरीका नहीं हुआ किसी को ढूंढ़ने का !
पर क्या करना चाहिए? भाभी का फोन भी तो नहीं लग रहा था?
उसने झनक को फोन लगाया. वो भी आउट ऑफ़ कवरेज!
जुगल फ्रस्ट्रेट हो गया. कार के स्टीयरिंग पर सर झुका कर बैठ गया…
***
जगदीश
चाय पीने के बाद शालिनी ने जगदीश को धीमी आवाज में पूछा. ‘अब ठीक है आपको? या दर्द हो रहा है अब भी?’
‘अब दर्द नहीं, और मालिश की फिलहाल जरूरत नहीं.’
‘पक्का?’
‘मैं एक बार सूझन कम हुई कि नहीं वह चेक कर लेता हूं.’ कह कर जगदीश वॉशरूम जाने के लिए उठा. सुभाष ने बिल चुका दिया और सेलफोन पर बात करने लगा.
वॉशरूम में जगदीश ने अपने अंडकोष का मुआयना किया. शालिनी की मेहनत ने असर दिखाया था. सूझन नहीं के बराबर थी. न ही दर्द रहा था. वो मुतमइन हो कर वॉशरूम के बाहर निकला.
वॉशरूम के बाहर का पैसेज बहुत संकरी गली जैसा था. होटल से उस गली में आते पहले लेडीज़ वॉशरूम था फिर कोने में जेंट्स वॉशरूम. उस गली में एक वक्त एक ही आदमी गुजर सकता था. जगदीश उस गली के बीच पहुंचा तभी तूलिका उस गली में सामने से दाखिल हुई. जगदीश ने तेजी से गली के बाहर निकलने की कोशिश की पर वो और तूलिका आमने सामने हो ही गए. जगदीश ने अपने आपको गली की दीवार के साथ बिलकुल सटा कर तूलिका को जाने का रास्ता दिया पर तूलिका जगदीश के शरीर से खुद के शरीर को रगड़ कर आगे जाने के बजाय रुक गई. जगदीश फंस कर रुक गया. दोनों के चेहरे मुश्किल से आधे फुट की दूरी पर थे…जगदीश ने ऑक्वर्ड फील करते हुए कहा. ‘प्लीज़ आगे बढ़िए तूलिका दीदी…’
‘दीदी?’ तूलिका ने आंखें नचा कर मुस्कुरा के पूछा.
‘आप मोहिते की दीदी हो तो मेरी भी दीदी हुई.’
‘और सुभाष की बीवी हूं तो तुम्हारी क्या हुई?’ तूलिका ने हंस कर पूछा.
दोनों संकरी गली में लगभग चिपके से खड़े थे. तूलिका यह स्थिति एन्जॉय कर रही थी और जगदीश अनकम्फर्टेबल महसूस कर रहा था.
‘आप तब भी मेरे लिए दीदी ही रहोगी...अब प्लीज़ जाइए, मुझे भी जाने दीजिये.’
अचानक तूलिका ने अपना चहेरा जगदीश के चहेरे की और बढ़ाया और जगदीश को कुछ समझ में आये उससे पहले तूलिका ने अपनी जीभ से जगदीश के होठ चाटना शुरू कर दिया…
‘आप…’ ऐसा जगदीश बोलने गया तब तूलिका ने अपनी जीभ जगदीश के बोलने के लिए खुले होठों के बीच डाल दी, जगदीश बोल नहीं पाया और एक अप्रत्याशित जीभ युक्त चुंबन हो गया. जगदीश अपसेट हो गया. तूलिका हंस कर आगे खिसकी. जगदीश बाहर निकलने फ्री हुआ. अपने होंठों को पोंछते हुए उसने नाराजगी से कहा.
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‘ये क्या हरकत हुई! मैं आपको दीदी कह रहा हूं और आप-’
तूलिका ने हंस कर कहा, ‘बड़ी दीदी हूं तुम्हारी, लाड तो करूंगी ना अपने भाई से?’
जगदीश कोई जवाब दिए बिना वहां से निकल कर शालिनी बैठी थी वहां चला गया.
***
झनक
वो जहां गिर पड़ी थी उस तहखाने जैसी जगह में झनक को शुरू में तो कुछ समझ में नहीं आया की वो कहां आन पड़ी है… धीरे धीरे अंधेरे से उसकी आंखें अभ्यस्त हुई. उसने अपने मोबाइल की टॉर्च से उस जगह के अंधेरे को चीरते हुए मुआयना किया. वो एक स्टोर रूम जैसी जगह थी छोटे मोठे बक्से और भंगार सामान बिखरा पड़ा था. एक दीवार के बहुत उपरके हिस्से में -उस तहखाने की छत को लग कर एक छोटी सी खिड़की दिख रही थी. पर उस खिड़की तक की ऊंचाई कमसे कम आठ फुट थी. और इस आठ फुट को तय करने का कोई तरीका नहीं था…
***
चांदनी
चांदनी भौचक्की रह गई क्योंकि उसने ऐसी भाषा कभी बोली या सुनी नहीं थी. और किसी ने उससे ऐसी भाषा में कभी बात नहीं की थी.
‘अजिंक्य, बोलने की तमीज रखो.’
‘सॉरी चांदनी, मुझे नहीं पता की गांड को गांड नहीं कहते तो क्या कहते है! क्यों तुम लोग क्या कहते हो?’
‘बेकार बहस नहीं करनी मुझे, मैं यहां से जा रही हूं.’ चांदनी ने सोफे पर से उठते हुए कहा.
‘अरे वाह ! तुम चली जाओगी तो मैं क्या जुगल की गांड मारूंगा ?’
चांदनी सहम गई.
‘बैठ जाओ चांदनी. अगर जुगल की खैर चाहती हो तो…’
चांदनी विवश हो कर बैठ पड़ी…
***
जुगल
रास्ते के किनारे कार रोक कर ‘अब क्या करें?’ की मानसिकता में बैठे हुए जुगल ने देखा की रास्ते के बगल की झाड़ी में कोई भागता हुआ गया. — कौन होगा? क्या चांदनी भाभी हो सकती है? - जुगल एकदम सावध हो गया. उसे लगा की भाभी हो यह संभावना बिलकुल है क्योंकि भाभी चल कर गई होगी, हो सकता है अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गई हो और वो ही हो?जिसे मैंने देखा!
जुगल कार से बाहर निकल कर झाडी में तेजी से गया….
***
झनक
उस तहखाने में हवा की कोई व्यवस्था नहीं थी. कुछ ही देर में झनक पसीना पसीना हो गई… इतने में अंधेरे में वो बक्सों के ढेर से टकरा गई और एक बक्सा उस के सिर पर गिर पड़ा. उस बक्से में कुछ पावडर जैसा था जो झनक के कपड़ो और शरीर पर बिखर गया. ‘यह कौन सा पाउडर है?’ सोचते हुए झनक ने उस हाथ पर लगे पाउडर को सूंघ कर देखा, गंध से कुछ समझ में नहीं आया पर—-
— पर कुछ ही पलों में झनक को समझ में आ गया की वो पाउडर नहीं था बल्कि खुजली का चुरा था… क्योंकि झनक का सारा बदन खुजलाना शुरू हो गया…
***
चांदनी
‘चांदनी, मैं तुम पर कोई जबरदस्ती नहीं करूंगा. एक सरल सौदा है. - तुम मेरी बात मानो, मैं जुगल की जान नहीं लूंगा. तुम मेरी बात मानने से मना कर दो. मैं जुगल की जान ले लूंगा.मैंने कुछ करना नहीं सिर्फ अन्ना को एक कॉल करना है… ’
‘जुगल है कहां ?’
‘सलामत जगह पर. वो कहां है, यह मुझे बस अन्ना को बताने की देर है. दूसरे ही पल अन्ना के आदमी उसकी जान लेने पहुंच जाएंगे.’
चांदनी उलझ गई.
‘बात करोगी जुगल से?’ अजिंक्य ने पूछा.
-क्या बात करूं !- चांदनी ने सोचा.
अजिंक्य ने फोन लगा कर कहा. ‘जुगल से बात कराओ…’
चांदनी ने आतंकित हो कर अजिंक्य की ओर देखा…
अजिंक्य फोन कान पर लगाए हुए था. अचानक बोला. ‘ओह, नहीं नहीं उसे मारो मत…’ फिर एकदम गरज कर बोला. ‘मैंने बोला क्या हाथ उठाने? इडियट्स ! मुझे बात करनी थी उससे और वो कराह रहा है…! अब खबरदार उसे एक उंगली भी लगाईं तो -’ कह कर अजिंक्य ने गुस्से से फोन काट कर पटक दिया.
चांदनी सहम गई- जुगल को पीटा जा रहा है! पर क्यों! कौन है ये अजिंक्य, ये अन्ना जैसे लोग और क्यों ऐसा वहशीपन है इनमे?
इतने में अजिंक्य चांदनी की ओर देख कर बोला. ‘आई एम सॉरी, इस लाइन के लोग बहुत जाहिल होते है.. पर मैंने बता दिया है -अब वो जुगल पर हाथ नहीं उठाएंगे - कुछ देर में मैं तुम्हारी बात करता हूं -’
चांदनी आघात से दिग्मूढ हो गई थी.
‘पर आप लोग जुगल को मार क्यों रहे हो?’ चांदनी जो बात गुस्से में पूछना चाहती थी वो पूछते पूछते रुआंसी हो गई… उसकी कल्पना में मार खाता हुआ जुगल आ रहा था - उसकी आंखें भर आई…
‘जुगल ने कोई हरकत की होगी उनसे भाग निकलने की या सामने अपनी ताकत दिखाने की - खेर, मैंने कह दिया है तुम्हारे सामने अब कोई नहीं छुएगा उसे- वादा.’
चांदनी ने अपनी आंखें पोंछते हुए अपने हाल को कोसा….
‘अब मैंने बोला उस बारे में बताओ.’ अजिंक्य ने पानी की बोतल से पानी पीते हुए कहा.
चांदनी ने चौंक कर अजिंक्य के सामने देखा.
‘बोलो, टाइम वेस्ट मत करो. मैं कॉल करूं अन्ना को या मेरे सौदे की ऑफर से तुम जुगल को बचाने में इंटरेस्टेड हो?
चांदनी को समझ में आ गया की उसके पास ज्यादा चॉइस है नहीं.
‘मुझे क्या करना होगा?’ चांदनी ने धड़कते हृदय के साथ पूछा.
‘शुरुआत कपडे निकालने से करो.’ अजिंक्य ने कहा.
चांदनी को आघात लगा. वो अजिंक्य को ताकती रह गई.
अजिंक्य ने कुछ पल चांदनी को निहारा फिर अपना फोन हाथ में लेते हुए कहा.
‘इट’ स ओके चांदनी, आई केन अंडरस्टेंड…’ और फोन डायल करने लगा.
‘एक मिनिट…’ चांदनी ने टेन्स हो कर कहा.
अजिंक्य ने चांदनी की ओर देखा.
चांदनी ने कहा. ‘मैं कपड़े निकालती हूं…’
अजिंक्य के चेहरे पर मुस्कान आई…
***
जुगल
झाडी में दिशाहीन सा एक अंदाजे से कुछ देर दौड़ने के बाद जुगल एक डेड एन्ड जैसी जगह पहुंच गया.
सामने खाई जैसा लंबा गड्ढा था. आगे जाने का कोई रास्ता नहीं था…
जुगल को लगा वो क्या मूर्खों की तरह हवा में हाथ पैर मार रहा है!
उसे मुंबई में चिलम बाबा के साथ की मुलाकात याद आ गई…
पूना निकलने के आठ दस रोज पहले जुगल चिलम बाबा से मिला था और बताया था की वो पूना जाने वाला है. तब बाबा ने हँसकर कहा था. ‘जाओ जाओ जरूर जाओ. एक नया सबक सीखोगे पूना की मुलाकात से..’
‘कौन सा सबक?’ जुगल ने पूछा था तब बाबा ने कहा था : ‘हवा पर कोई पहरा नहीं होता और गांड पर कोई पर्दा नहीं होता.’
जुगल यह सुन कर भौचक्का रह गया था और बाबा ने हंसते हुए समझाया था : शून्य बुद्धि ! इस के माने है की हवा को लाख कोशिशों के बावजूद आप बांध नहीं सकते वो आखिर बह निकलती है और अपनी गांड को लाख कोशिशों के बावजूद आप बचा नहीं सकते, वो मार दी जाती है…’
जुगल को लगा इस वक्त उसके साथ जो हो रहा है उसी के बारे में शायद चिलम बाबा उसे आगाह कर रहे थे! पता नहीं चांदनी भाभी कहां किस हाल में होगी और मैं चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रहा - चिलम बाबा की बात इस स्थिति के साथ बिल्कुल फिट बैठ रही है!
इतने में उसका ध्यान खाई के उस पार के छोटे से बंगले के कंपाउंड में भोंकते हुए कुत्तो की आवाज पर गया.
वो कुत्ते एक छोटी सी खिड़की की ओर देख कर भौंक रहे थे…
क्या होगा उस खिड़की में जो कुत्ते भौंक रहे है?
कहीं कुदरत उसे कोई इशारा तो नहीं दे रही ?
जब चिलम बाबा की बातें सुनकर जुगल को पूना की मुलाकात को ले कर एक भय लगने लगा था. तब बाबा ने कहा था - ‘चिंता मत कर, खिड़कियां खुल जायेगी…’
उन कुत्तो को उस खिड़की की और देख भौंकते देख जुगल को लगा : शायद मुझे वहां जाना चाहिए…
वो उलटे पैर रास्ते की और दौड़ा - जहां उसने अपनी कार छोड़ी थी…
***
झनक
जी हां, जुगल ने अभी देखे हुए भौंकते हुए कुत्ते उसी खिड़की को देख रहे थे जिस खड़की को तहखाने से झनक ने देखा था.
पर कुत्ते भौंक क्यों रहे थे?
क्योंकि झनक ने एक लकड़ी का टुकड़ा फेंक कर उस खड़की के सलाखों में फ़साने की कोशिश की थी…
कैसे?
यह जानने हमें पांच मिनिट पीछे जाना पड़ेगा जब खुजली वाला चूर्ण झनक के शरीर पर बिखर गया था….
कुछ ही देर में झनक खुजली से परेशान हो गई और उसे अपने कपडे निकालने पड़े… वो जुगल को बचाने के लिए अन्ना के घर में देहाती कपड़ो में घुसी थी - चोली, घाघरा और ओढ़नी… इन सारो कपड़ो में खुजली का पाउडर जैसा चूर्ण पसर गया था… मजबुरन उसे सब निकाल देना पड़ा. इस कपडे निकालने की हरकत में उसकी ब्रा में भी खुजली का पाउडर चला गया. सो ब्रा भी निकाल दी.. अब पेंटी में भी जलन होने लगी थी… झनक ने झल्ला कार पेंटी भी निकाल दी और पूर्ण नग्न हो कर अपने कपडे झटकने शुरू किये…. कुछ देर सारे कपड़े झटकने के बाद वो अपनी इस स्थिति को कोसते हुए थक कर नंगी ही फर्श पर बैठ पड़ी. तब उसकी नजर एक लकड़ी के टुकड़े पर पड़ी.
झनक स्मार्ट लड़की थी. उसने लकड़ी का टुकड़ा देखा, तहखाने की छत से सटी खिड़की देखि और अपने कपड़ो का ढेर देखा…
और तुरंत अपने सारे कपड़े एक दूसरे से बाँध कर उसने एक डोर बना दी. उस डोर के एक छोर पर उस लकड़ी के टुकड़े को बराबर बीच के हिस्से में बांधा और फिर जोर लगा कर फेंका उस खिड़की की ओर - इस उम्मीद में की वो लकड़ी का टुकड़ा खिड़की की सलाखों में फंस जाए..
लकड़ी का टुकड़ा सलाखों से टकरा कर फिर झनक के पास आ गया…
झनक ने उम्मीद नहीं छोड़ी. उसने दुबारा कोशिश की….
इस तरह उसने कोशिश जारी रखी.
बार बार लकड़ी का टुकड़ा सलाखों से टकरा कर आवाज पैदा करता था.
सो लकड़ी का टुकड़ा सलाखों में फंसा नहीं पर उस आवाज से एक कुत्ता आकर्षित हो कर खिड़की के पास आ कर देखने लगा. और इस तरह लकड़ी के टुकड़े को बारबार आ कर सलाखों से टकराता देख वो भौंकने लगा.
उसे भौंकते देख और तीन चार कुत्ते आ गए और सभी लकड़ी के टुकड़े को देख भौंकने लगे…
इस तरह कुत्तो की सामूहिक भौंक काफी दूर, गढ्ढे के दूसरी और खड़े जुगल तक पहुंच पाई…
खेर.
क्या लकड़ी के उस टुकड़े को खिड़की के सलाखों में फ़साने में झनक कामियाब होगी?
जो इस वक्त अपने बदन के सारे वस्त्र - ब्रा पेंटी तक को दूसरे कपड़ों के साथ जोड़ जोड़ कर डोर बना कर यह कोशिश कर रही है?
बिल्कुल नग्न अवस्था में!
***
चांदनी
चांदनी भी इस वक्त बिलकुल नग्न अवस्था में थी …
पूना से मुंबई की सफर में लाइट ड्रेसिंग ठीक रहेगा इस ख़याल से उसने एक क्रीम कलर का टीशर्ट और जींस की पेंट पहने थे.
जो अब अजिंक्य के सोफे पर पड़े थे. बगल में उसकी ब्रा और पेंटी भी….
और अजिंक्य के आदेश पर वो मूड कर अपने नितंब उसे दिखा रही थी.
अजिंक्य अपने पेंट की ज़िप खोलकर अपना लिंग सहलाते हुए चांदनी के नितंब देख कर उत्तेजना से बोला.
‘यस…यस…यस…!! चांदनी —--उफ्फ्फ क्या नजारा है! उफ्फ्फ उफ्फ्फ्फ़ उफ्फ्फ… ऐसे ही मैंने तुम्हारा नाम ‘गांड सुंदरी’ नहीं रखा…!’
***
जहां दो कन्या निर्वस्त्र हो चुकी है. - दोनों की नग्न हो जाने की वजह भिन्न भिन्न किस्म की खुजली है…
वहां -क्या जुगल सही वक्त पर इस बंगले पर पहुंच पाएगा ?
(२६ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश![]()