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Incest ये तो सोचा न था…

Alka Sharma

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( ११ - ये तो सोचा न था…)

[(१० – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :

जगदीश ने शालिनी के हाथ पर हाथ रख कर कहा.’नसीब तो मेरा भी अच्छा है जो मामला ज्यादा बिगड़ने से पहले सम्हाल पाया.’

तभी एक हवालदार आ कर उनके सामने बैठते हुए बोला. ‘जी बयान लिखवाइए.’

***

आज दूसरी बार जुगल का नशा हवा हो गया था. एक बार अनचाहा अश्लील देख सुन कर और दूसरी बार अनन्य सौंदर्य को निर्वस्त्र देख कर…

उसी सोफे के नीचे से फिर उसने शराब की बोतल ढूंढ निकाली. नसीब से अभी उसमे शराब बाकी बची थी. उसने तेजी से पेग बनाया. जाम होठों से लगाने से पहले उसे एक नारी स्वर सुनाई दिया : एक्सक्यूज़ मी…’


जुगल ने सर घुमा कर देखा तो वो ही लड़की जिसे कुछ पल पहले वो अजीब स्थिति में मिला था, सामने खड़ी थी… ]



‘हवा पर कोई पहरा नहीं होता और गांड पर कोई पर्दा नहीं होता.’

चिलम बाबा ने गांजे का कश ले क्र धुंआ छोड़ते हुए किसी फिलोसोफर की अदा में कहा था. जुगल को ऐसी भाषा बिलकुल पसंद नहीं थी पर चिलम बाबा का एक अपना तरीका था बात करने का सो वो चुप रहा.

पूना शादी के लिए जुगल अपनी भाभी के साथ मुंबई से निकला उसके आठ दस रोज पहले की यह बात है.

जोगेश्वरी पूर्व में गुफा रोड पर एक छोटा सा मंदिर है. उस मंदिर के टूटे फूटे पायदान पर जुगल एक बार कोई एड्रेस ढूंढ ढूंढ कर थका बैठ गया था.

फिर उसे उत्सुकता हुई की यह मंदिर किस भगवान का है. छोटे से अंधेरे कोने में कौनसी मूर्ति है यह देखने की वो सर झुका कर कोशिश कर रहा था तब किसी की आवाज आई थी : ‘भगवान तेरे घर पर तेरे साथ है रे बावरे यहां कहां ढूंढ रहा है?’

‘जी?’ जुगल ने कोने बैठे उस बेतरतीब से दीखते साधु से पूछा था.

-यह था जुगल का और चिलम बाबा का प्रथम संवाद. और इस बातचीत में जुगल इस कदर इस चिलम बाबा से प्रभावित हो गया की चिलम बाबा की भाषा उबड़ खाबड़ होने के बावजूद वो फिर कई बार उनसे मिलने आने लगा.

उस पहली मुलाकात में चिलम बाबाने उसे बताया था की तेरा बड़ा भाई ही तेरा भगवान है. तब जुगल ने आश्चर्य से पूछा था कि क्या वो जगदीश भैया को जानते है? साधू ने सामने प्रश्न किया था : क्या तू अपने भाई को जानता है?

धीरे धीरे जुगल को समझ में आया की चिलम बाबा से ढंग से बात नहीं हो सकती. वो आदमी अपनी दुनिया में गुम रहता है. कब बोलेगा, क्या बोलेगा और कितना बोलेगा इसका कोई ठिकाना नहीं. जब वो चिलम बाबा से तीन चार बार मिल चूका तब उस खंडहर जैसे मंदिर के आसपास के पान बीड़ी, किराने की दुकानवालों ने ताज्जुब से जुगल को पूछा था कि चिलम बाबा बात भी करता है? क्योंकि अब तक किसी से उसने बात नहीं की.. तब जुगल को एक अजीब गर्व हुआ था की चिलम बाबा उसे बात करने योग्य मानते है!

पर कैसी बातें ? कभी कोई बड़बड़ाहट, कभी कोई जुमला, कभी कोई शेर… समझ में आया तो ठीक, नहीं आया तो ठीक. चिलम बाबा अगर मूड में हो तो ‘अरे शून्य बुद्धि… कहने के माने है…’ जैसी फटकार के साथ समझा भी देते थे और कभी पूछ पूछ के आप का गला सुख जाए वो एक शब्द नहीं बताते थे!

पर जुगल को उनकी बात समझ में आये या न आये वो सुनने के लिए उत्सुक रहता. क्योंकि चील बाबा जो बोलते वो बड़े गूढ़ अर्थ में कोई सच होता. क्या चिलम बाबा में कोई अज्ञात शक्ति थी? पता नहीं. पर जुगल को उन पर एक भरोसा था.

चिलम बाबा के आसपास कुत्ते बैठे रहते. कभी कभी जुगल कुत्तो के लिए बिस्कुट ले जाता. एक बार चिलम बाबा ने जुगल से कहा था ‘अब की बार कम बिस्कुट लाना.’

कुत्तों को तो बिस्कुट भाते थे फिर चिलम बाबा ने कम लाने क्यों बोला होगा?

उस दिन जुगल चिलम बाबा से अलग हो कर जा रहा था तब उसकी आँखों के सामने चिलम बाबा के इर्द गिर्द रहते कुत्तों में से एक की कार एक्सीडेंट में मौत हो गई थी.

जुगल चौंक पड़ा था. - क्या चिलम बाबा को इस मौत की जानकारी थी इस लिए बिस्कुट कम लाने कहा होगा?

बाबाने एक बार जुगल को कहा था की तुम्हारा परिवार बहुत बड़ा है. जुगल ने जवाब दिया था की भैया भाभी और पत्नी - कुल चार ही लोग परिवार में है. तब मंद मंद मुस्कुरा के बाबा ने कहा था. ‘अरे शून्य बुद्धि ! तेरी दो मां है, दो बाप है, चार पत्नी है, दो बहनें है और कितने लोग चाहिए तुझे रे!’

जुगल सोच सोच के परेशान हो गया की बाबा के इस गूढ़ वाक्य का क्या अर्थ होगा पर उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ा था.

खेर, चिलम बाबा का इतना विस्तृत परिचय अभी इसलिए क्योंकि पूना निकलने के आठ दस रोज पहले जुगल बाबा से मिला था और बताया था की वो पूना जाने वाला है. तब बाबा ने हँसकर कहा था. ‘जाओ जाओ जरूर जाओ. एक नया सबक सीखोगे पूना की मुलाकात से..’

‘कौन सा सबक?’ जुगल ने पूछा था तब बाबा ने कहा था : ‘हवा पर कोई पहरा नहीं होता और गांड पर कोई पर्दा नहीं होता.’

जुगल यह सुन कर भौचक्का रह गया था और बाबा ने हंसते हुए समझाया था : शून्य बुद्धि ! इस के माने है की हवा को लाख कोशिशों के बावजूद आप बाँध नहीं सकते वो आखिर बह निकलती है और अपनी गांड को लाख कोशिशों के बावजूद आप बचा नहीं सकते, वो मार दी जाती है…’

यह सुन कर जुगल को पूना की मुलाकात को ले कर एक भय लगने लगा था. पर बाबा ने कहा था - ‘चिंता मत कर, खिड़कियां खुल जायेगी…’

***

जब पूना में शादी के अगली रात में जुगल तीसरी बार शराब पी कर मदहोश होने की कोशिश कर रहा था और एक सुंदर कन्या जिसे अनजाने में उसने वस्त्र हीन दशा में देख लिया था वो कन्या उसके पास आ कर बोली ‘ एक्सक्यूज़ मी ?’ तब जुगल को चिलम बाबा की यह बात याद आ गई थी… -क्या इस लड़की से उसके जीवन में कोई नया खतरा आनेवाला होगा ? क्या बाबा इसी बारे में मुझे आगाह कर रहे होंगे?

उस लड़की को देख जुगल सकपका कर खड़ा हो गया.

‘जी?’

‘हम अभी मिले थे… ऊपर-’ लड़की ने कहा.

‘जी जी वो आप को कपडे के साथ पहचानने में देर लगी…’

लड़की ने चौंक कर पूछा ‘क्या कहा?’

बोल कर जुगल को लगा की ये क्या बोल दिया! उसने अपना शराब का पेग बगल में रख दिया और झुक कर सीधा लड़की के पैर पकड़ लिए और कहने लगा. ‘मुझे बक्श दो, माफ़ कर दो, मैं जान बुझ कर आप के कमरे में नहीं आया था. न ही आपका शरीर ताड़ने का मेरा कोई मकसद था. आप प्लीज़ मुझे माफ़ी दे दे..’

लड़की ने हिचकिचा कर कहा. ‘मेरे पैर छोड़िए भाई साहब प्लीज़…मेरी बात सुनिए. मैं एक जरूरी बात कहने आई हूँ और मैं आप पर नाराज नहीं.’

यह सुन कर जुगल की जान में जान आई. लड़की के पैर छोड़ कर वो सीधा हुआ और नजरे झुका कर लड़की को बिना देखे बोला. ‘आप नाराज नहीं? आप बहुत ही अच्छी लड़की हो.’ और अपना पेग उठाकर उसने पूछा. ‘कहिए क्या जरूरी बात थी?’

‘दो बातें आप से बतानी थी, एक तो यह की खामखां खुद को दोषी न मानिए, गलती आप की नहीं मेरी थी जो दरवाजा ठीक से बंद किये बिना कपडे बदल रही थी…’

जुगल बोला. ‘ओह!’

लड़की ने आगे कहा. ‘और दूसरी बात ये की मैं इसलिए भी आप से नाराज नहीं हूँ क्योंकि आप मेरे शरीर को जब देख रहे थे तब मुझे एक पल भी यह नहीं लगा की आप की नजरो में कामुकता है. बल्कि आप यूँ निहार रहे थे जैसे कोई खूबसूरत पेंटिंग को निहार रहा हो. इसलिए मैं चिल्ला न सकी…. आई मीन चिल्लाने जैसा फील नहीं हुआ.’

लड़की के ऐसे बोल सुन कर जुगल को लगा की उतरा हुआ नशा फिर चढ़ रहा है. दिमाग हल्का हो गया सो नशा हावी हो गया.

उसने हाथ जोड़ कर कहा. ‘देवी जी! आप सुंदर हो. तन से भी मन से भी.’

इतना बोल कर वो नशे में लुढ़क गया. लड़की और बात करना चाहती थी पर जुगल की हालत देख हल्का सा मुस्कुराकर वहां से चली गई.

***

बयान लिख कर हवालदार बाहर गया.

जगदीश और शालिनी उस कमरे से बाहर आये. इंस्पेक्टर मोहिते ने जगदीश के करीब जा कर कहा.

‘आपने अपने बयान में साजन को मारने की क्रेडिट मुझे क्यों दे दी!’

‘बजाय संयोग से साजन भाई मरे क्या यह बेहतर नहीं होगा की आप जैसे सिपाही के हाथों मरे?’

‘अरे पर-’

‘सर, या तो इस केस में सर से पैर तक डूबा हुआ हूँ या तो मुझ पर एक छींटा भी नहीं उड़ा - आप डिसाइड कीजिये.’

‘हम्म. ठीक है. समझता हूँ. डोन्ट वरी आप लोग इस केस में हो ही नहीं. ओके? अब बताओ इतनी रात को कहाँ जाओगे?’मोहिते ने जगदीश की और देखा.

जगदीश ने कहा. ‘यह कौन सा एरिया है? हमारी कार यहां से किस ओर होगी?

इंस्पेक्टर मोहिते ने कुछ सोच कर कहा.’आप लोग अभी पूना के लिए रवाना होंगे?’

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा.

मोहिते ने कहा. ‘रात को नौ बजने को है. मेरा मशवरा है की इतनी रात को पूना का सफर आप लोग टाले. बिच में दो तीन मोड़ रिस्की है. लूट के लिए हमला हो सकता है…’

‘ओह. पर रात कहां रुक सकते है? यहाँ कोई होटल है करीब में?’ जगदीश ने पूछा.

‘रुकने की व्यवस्था तो मुश्किल है. पर मै कुछ करता हूँ. आप की कार भी मंगवा लेता हूँ मुझे कार का नंबर दीजिए.’

कुछ देर बाद इन्स्पेक्टर मोहिते की जीप में दोनों बैठे थे. मोहिते जीप ड्राइव करते हुए बात कर रहा था. ‘आप लोग शरीफ है यह मुझे समझ आ गया था. यह साजन बहुत कमीना था. ड्रैग सप्लाय, वुमन ट्रैफिकिंग और हाइवे पर लूट… तीनो गुनाह में उसकी गिरोह का नाम बदनाम था. इस के अलावा आप जैसे सीधे सादे कपल उनके हाथ लग जाए तो उन को बहुत टॉर्चर करता था. उस की बीवी किसी गुंडे के साथ भाग गई थी तीन साल पहले. तब से वो औरत जात से नफरत करता था और जो भी औरत हाथ लगे उसे बहुत जलील करता था….’

यह सुन कर शालिनी कांप उठी, उसने डर कर जगदीश का हाथ थाम लिया. जगदीश ने उसके हाथ पर हाथ रख कर उसे सांत्वना दी.

जीप एक दो मंजिला इमारत के पास रुकी.

‘कमरा बहुत छोटा है. मैंने अपने आराम करने के लिए एक सिंगल बेड रखा है. आज की रात एडजस्ट कर लीजिये.’ कहते हुए मोहिते ने पहली मंजिल पर उनको ले जा कर एक कमरे का ताला खोला. तीनो कमरे में दाखिल हुए. कमरा वाकई बहुत छोटा था. दीवार से सट कर एक सिंगल बेड था. ‘इस वक्त आप को और कहीं कोई कमरा नहीं मिलता, मि. रस्तोगी.’ मोहिते ने कहा. ‘आप की कार मैंने मंगवा दी है. नीचे पार्क करवा दूंगा. सुबह मिलते है…’

‘थेंक यु सो मच मोहिते सर.’ जगदीश ने मोहिते से हाथ मिलाते हुए कहा.

मोहिते ने मुस्कुराकर कहा. ‘मेंशन नॉट.’और चला गया.

जगदीश ने कमरे का दरवाजा बंद किया. शालिनी बेड के एक कोने पर बैठ गई. कमरे में गर्मी हो रही थी शालिनी अपना दुपट्टा निकाल कर उससे अपना मुंह पोंछने लगी. जगदीश ने फेन ऑन किया. दुपट्टा हटने की वजह से जगदीश की नजर सहसा शालिनी की छाती पर पड़ी. शालिनी यह देख लजाई और तुरंत उसने अपनी छाती पर दुपट्टा ढांक लिया.

जगदीश ने नज़रे फेर ली.

‘हम क्या यहां रात रुकेंगे?’ शालिनी ने कमरा देखते हुए पूछा. और आगे कहा. ‘दी और जुगल क्या सोचेंगे भैया?’

जगदीश ने कोई जवाब नहीं दिया और फोन डायल करने लगा. फोन लग गया. जगदीश फोन पर कहने लगा. ‘हेलो चांदनी. कार रास्ते में बंद पड गई. मैकेनिक को ढूंढ ने में दो घंटे लग गए. अब वो कह रहा है की कार सुबह के पहले रिपेयर नहीं हो पाएगी. और यहाँ रात रुकने के लिए कोई होटल भी नहीं. हाईवे पर अजीब जगह हम फंस गए है.’

‘हे भगवान अब तुम लोग क्या रात भर गराज में ही बैठे रहोगे?’ चांदनी ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘नहीं. चिंता की कोई बात नहीं. रात को पेट्रोलिंग करते हुए पुलिस आई थी. वो लोग हमें हेल्प कर रहे है. एक भला इंस्पेक्टर मिल गया. यहां कोई होटल नहीं इसलिए वो हमें उन के घर ले आया है. शालिनी अभी उस इंस्पेक्टर की बीवी के साथ है. और मैं बाहर के कमरे में रुका हूँ.’

‘अरे अब ये क्या मुसीबत आ गई! हाईवे पर रात में यूँ आप दोनों कहाँ अटक गए!’ चांदनी सब सुन कर दंग थी.

‘हां. पर पुलिस के घर रुकने मिला चांदनी, इस से सलामत जगह क्या होगी! अब सुबह ही हम लोग आ पाएंगे. जुगल कहाँ है? बात कराओ मेरी.’

‘जुगल तो यहाँ के लोगों के साथ पिकनिक मूड में मजे कर रहा है. शायद एक ग्रुप के साथ ड्रिंक ले रहा है…’

‘कोई बात नहीं. उसे एन्जॉय करने दो. तुम्हे शालिनी से बात करनी है? मैं उस के पास यह फोन भिजवाता हूँ, उसका फोन बैटरी डाउन होने से बंद पड गया है.’ शालिनी की और देखते हुए जगदीश ने कहा.

‘ओह तभी मैं सोचु शालिनी का फोन क्यों नहीं आया. भेजिए न उस के पास फोन…’

‘होल्ड करो भेजता हूँ…’

कह कर जगदीश ने फोन के स्पीकर पर हाथ रख कर शालिनी के सामने देखा. शालिनी कुछ नहीं बोली. दोनों चुपचाप बैठे रहे. एक मिनट के बाद जगदीश ने शालिनी को फोन दिया. शालिनी ने फोन पर जगदीश ने कही वोही बातें दोहराई. चांदनी ने पूछा. ‘खाने का क्या किया तुम लोगों ने?’

शालिनी ने जगदीश की और देखते हुए कहा. ‘खाना यहां बन रहा है, आप फ़िक्र न करे दी…आप जुगल पर नजर रखना, शादी ब्याह के मौके पर वो ज्यादा ही शराब पी लेता है.’

इस तरह की कुछ बातों के बाद शालिनी ने फोन काटा. और जगदीश से कहा. ‘इस एक शाम में हम ने कितने पाप कर लिए भैया, दी के साथ भी जूठ बोलना पड़ा.’

‘सच बताते तो उसकी जान निकल जाती.’

‘जान तो मेरी भी लगता है निकल जायेगी जब वो सब याद करती हूँ...’

‘भूल जाओ वो सब बातें और सो जाओ इस बेड पर. मैं नीचे बैठा रहूँगा.’

‘सारी रात जमीन पर बैठेंगे आप? और मैं मजे से सो जाउंगी ? मुझे पाप में डालना है क्या?’

‘पर यह बिस्तर कितना छोटा है देखो?’

‘बिस्तर भी छोटा, कमरा भी छोटा…’ कहते हुए शालिनी खड़े होते हुए बोली. ‘और गर्मी कितनी है! मुंह धो लेती हूँ जरा ठंडक लगेगी.’ कहते हुए वो कोने में बाथरूम था वहां जाने लगी. सहसा जगदीश ने बाथरूम जाती हुई शालिनी के नितंब देखें और कुछ समय पहले सलवार निकाल कर शालिनी उसे अपने कमर के तले के यह गुब्बारे दिखा रही थी वो याद आया. उसने इन खयालो से डर कर आँखे मूंद ली.

बाथरूम में शालिनी ने देखा तो वॉश बेसिन नहीं था. दीवार में एक नल था और उसके साथ दो नोब लगे हुए थे. शालिनी ने एक नोब खोल दिया और फररर से पानी उस पर टूट पड़ा. शालिनी कुछ समझे की पानी कहाँ से आ रहा है तब तक उसके बदन का ऊपरी हिस्सा भीग गया. गलती से शावर ओन कर दिया था यह समझ में आने पर उसने तेजी से उस नोब को बंद कर दिया पर तब तक उस की पूरी कमीज़ भीग कर ट्रांसपैरंट हो चुकी थी. दुपट्टा भी भीग गया था. और उस के बड़े बड़े स्तन को किसी तह सम्हालती हुई उस की काली ब्रा भी पूरी भीग चुकी थी. शालिनी की हालत खराब हो गई. ऐसी आधी नंगी हालत में वो बाहर अपने जेठ के सामने कैसे जायेगी? अपनी तक़दीर को कोसती हुई वो अपने भीगे बाल झटकने गई तब गीली फर्श पर उस का पैर फिसला और वो एक चीख के साथ बाथरूम की भीगी फर्श पर गिर पड़ी. फर्श पर गिर कर वो कराहने लगी और उस की चीख सुन कर जगदीश दौड़ कर बायथरम में आ गया. बाथरूम में शालिनी को देख वो ठगा सा रह गया. शालिनी का दुपट्टा गले में अटक कर एक और झूल रहा था. उस की कमीज़ भीग कर पारदर्शी हो कर काली ब्रा में स्तन कितने बड़े है यह नुमाइश कर रही थी और उस की सलवार भी फर्श के पानी से भीग कर उसकी जांघो पर चिपक गई थी......



(११ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)
Amazing 👌
 
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rakeshhbakshi

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बहुत ही अद्भुत लेखनी है लेखक महोदय....
कहानी पढ़ते-पढ़ते अचानक जब अपडेट खत्म होता है तब और पढ़ने की इच्छा होती है। @rakeshbakshi
बहुत बहुत आभार आपका, ऐसी उदार सराहना के लिए -
:dancing2:
:dancing2::dancing2:
 

rakeshhbakshi

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Bro..vry nice story
But story ke sath pics ya gif bhi add karte raho plz
Thanks,
Agar Gif ki kami lag rahi hai toh meri lekhini ki kamjori hai Sir- :(
 
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rakeshhbakshi

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जिस मोड़ पर ‘यह तो सोचा न था...’ का ग्यारहवां प्रकरण ख़त्म हुआ, पाठको को बारहवें प्रकरण की बड़ी उत्सुकता हो रही होगी यह स्वाभाविक है.

बारहवां प्रकरण लिख रहा हूँ और मुझे कोई अंदाज़ा नहीं की यह पढ़ कर आप सब मुझे गालियां देंगे या इसे सराहेंगे पर बोस -यह प्रकरण लिखते हुए मेरा दम निकल रहा है…

मुझे भली भांति ज्ञात है
की
मैं इतना अच्छा लेखक नहीं
जितने
अच्छे आप बतौर पाठक हो.

जो लिखू उसे स्वीकार कर लेना दोस्तों…
_____/\_____
 
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Alka Sharma

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जिस मोड़ पर ‘यह तो सोचा न था...’ का ग्यारहवां प्रकरण ख़त्म हुआ, पाठको को बारहवें प्रकरण की बड़ी उत्सुकता हो रही होगी यह स्वाभाविक है.

बारहवां प्रकरण लिख रहा हूँ और मुझे कोई अंदाज़ा नहीं की यह पढ़ कर आप सब मुझे गालियां देंगे या इसे सराहेंगे पर बोस -यह प्रकरण लिखने मेरा दम निकल गया…

मुझे भली भांति ज्ञात है
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मैं इतना अच्छा लेखक नहीं
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जो लिखू उसे स्वीकार कर लेना दोस्तों…
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