Update 6
आज सुबह से ही राजमाता ,राजकुमारी और राजा विक्रम सेन सुबह से जगे होने के कारण काफी थके हुए थे और अभी तो संध्या का कार्यक्रम भी बचा हुआ था। तीनों थोड़ी देर अपने कक्ष में आराम करते हैं और फिर शाम के महाभोज के लिए तैयार होने लगते हैं । आज पूरा राजमहल दीपक की रोशनी से जगमगाया हुआ था ऐसा लग रहा था मानो राजा के जन्मदिन की खुशी में पूरी सृष्टि भी खुशी मना रही हो। शाम का वक्त था और हल्की हल्की धीमी धीमी हवा चल रही थी जो माहौल को और भी खूबसूरत बना रही थी आज शाम सभी अतिथि राजा अपनी रानियों और परिवार के साथ महा भोज पर आमंत्रित थे राजकुमारी नंदिनी स्वयं कार्यक्रम की सारी व्यवस्था देख रही थी आखिरकार वह राजा की बड़ी बहन जो ठहरी
धीरे-धीरे सभी अतिथियों का आगमन शुरू होता है तथा सभी मंत्री गण द्वार पर ही सभी अतिथियों का स्वागत करने के लिए खड़े रहते हैं राजमहल में राजा के कक्ष के बाहर एक बहुत बड़ा खुला स्थान था जिसपर राज्य के बड़े कार्यक्रम हुआ करते थे इसी बीच तूरहरी बजने लगती है तथा द्वारपाल टीकमगढ़ के राजा माधव सिंह के आगमन की घोषणा करता है राजा माधव सिंह अपनी सुंदर रानी तथा अत्यंत ही नाजुक राजकुमारी रत्ना के साथ राजमहल में प्रवेश करते हैं । राजकुमारी रत्ना राजा माधव सिंह की इकलौती संतान है जो देखने में किसी अप्सरा से कम नहीं है शायद अप्सरा भी इतनी खूबसूरत नहीं होगी जितनी खूबसूरत राजकुमारी रत्ना थी। महामंत्री राजा को द्वार से स्वागत के साथ आंगन में उनके बैठने हेतु निश्चित स्थान पर ले जाते हैं और उन्हें आदरपूर्वक बैठाते हैं तथा राज्य कर्मियों को उनके उनके लिए जलपान की व्यवस्था करने का आदेश देते हैं
राजकुमारी नंदिनी को भी राजा माधव सिंह की आगमन की सूचना मिलती है तो वह दौड़े-दौड़े राजा के पास पहुंचती है और कहती है कि उसे बहुत खुशी है कि राजा इस कार्यक्रम में पधारें। राजा माधव सिंह उसे बताते हैं कि उसके पिता बड़े अच्छे दोस्त थे और उनकी मृत्यु के बाद उनका यह दायित्व है कि वह उनके सारे कार्यक्रम में उपस्थित हो और यथासंभव सहायता करें यह सुनकर राजकुमारी नंदिनी गदगद हो जाती है
आज राजकुमारी नंदिनी भी सुबह से ही कहर ढा रही थी राजा माधव सिंह की पत्नी राजकुमारी नंदिनी की चपलता देखकर आश्चर्यचकित रह जाती है तथा उसके उन्नत वक्ष स्थल तथा उन्नत नितंबों को देखकर सोच में डूब जाती है की क्या किसी कुवारी राजकुमारी के वक्ष तथा नितंब बिना चुदाने के इतनी उठी हो सकती है। रत्ना अपनी माता को सोचमे डुबा देख कहती है
मातें आप किस सोच में डूबी हैं
तब रानी अपनी सोच से बाहर आती है और कहती है कि और कुछ भी तो नहीं सोच रही थी
तभी राजा विक्रम सेन अपने एक कक्ष से बाहर निकल कर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचते हैं संतरी उन्हें सूचित करता है कि राजा माधव सिंह कार्यक्रम स्थल पर पहुंच चुके हैं राजा सम्मान पूर्वक राजा माधव सिंह के पास पहुंचता है तथा उनके चरण स्पर्श करता है तथा उनके आने पर उनके प्रति आभार व्यक्त करता है तभी राजा विक्रम सिंह की नजर राजकुमारी रत्ना पर पड़ती है जिसके सामने आज अप्सराएं भी पानी मांग रही थी राजा विक्रम सिंह की नजर रत्ना से मिलती है तो राजकुमारी भी नजरें नीची कर सोचती है की क्या मै इतनी सुंदर हो कि राजा मुझसे नजरें नहीं हटा पा रहे हैं उसका मन भी राजा को देखने को व्याकुल हुआ जा रहा था राजा विक्रम सिंह के शारीरिक शक्ति और गठीले शरीर की चर्चा दूर-दूर तक थी । राजकुमारी नंदिनी को नहीं रहा गया उन्होंने धीरे से अपनी आंखें उठाकर राजा विक्रम सिंह को देखा जिन को देखते ही उनके तन बदन में झुनझुनी सी दौड़ गई । राजा विक्रम सेन अभी अपने राजा के पूरे परिधान में थे । उन्होंने लाल रंग की धोती पीले रंग का अचकन बाजू मे बाजू बंद सोने का कवच जो उनकी चौड़ी छाती पर लगा था तथा सोने का मुकुट पहना था ऐसा लग रहा था मानो देवता स्वयं धरती पर अवतरित हो गये हो । रत्ना की नजर भी राजा विक्रम सिंह से हटती ही नहीं थी । इधर आज राजा विक्रम द्वारा लगातार राजकुमारी देवकी को देखता देख कर राजा विक्रम माधव सिंह और उनकी पत्नी मन ही मन बड़े खुश होते हैं
लेकिन राजकुमारी नंदिनी को थोड़ा सा अटपटा लगा था । वह धीरे से खांसती है और अपने छोटे भाई राजा विक्रम सेन को कहती है की अभी कई सारे काम बचे हुए हैं । इस पर राजा विक्रम सेन की तंद्रा टूटती है और कहते हैं कि
हां हां जल्दी चलो और भी कार्यक्रम की व्यवस्था देखनी है की नहीं
यह कहते हुए राजा चला जाता है लेकिन मन को काबू नहीं कर पाते हैं । उनकी नजरें राजकुमारी रत्ना को खोजती रहती हैं और इस दौरान उनकी नजर राजकुमार रत्ना से एक हो जाती है जिससे राजकुमारी देवकी शरमा जाती है और शर्म से नजरें नीची कर लेती हैं।
तभी राजमाता देवकी भी तैयार होकर इन लोगों के पास पहुंचती है राजमाता भी राजकुमारी देवकी की सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध हो जाती है। राजमाता आज स्वयं परी लग रही थी जिन्होंने आज सुबह-सुबह राजा विक्रम सेन का लंड हाथ में पकड़ा था तथा अपनी दोनों चूचियों को अपने पुत्र राजा विक्रम सिंह के ऊपर भी रगड़ा था । राजकुमारी देवकी की सुंदरता देखकर राजमाता भी मंत्रमुग्ध हो जाती हैं तथा वह राजा माधव सिंह को कहती हैं की उनकी पुत्री राजकुमारी रत्ना अब यौवनावस्था में प्रवेश कर चुकी है तथा उनसे राजकुमारी रत्ना के लिए एक अच्छा सा वर ढूंढ कर उसके हाथ पीले करने को कहती है । इधर राजा विक्रम सेन कार्यक्रम की सारी व्यवस्था भी देख रहे थे लेकिन उनकी नजर केवल और केवल राजकुमारी रत्ना पर ही थी। वह जिधर भी जाते उनकी नजर राजकुमारी रत्ना पर ही हुआ करते थे । इस बात को राजकुमारी नंदिनी तो देख ही रही थी राजकुमारी रत्ना को भी इसका पूरा ध्यान था ।
राजकुमारी नंदिनी बार-बार अपने भ्राता राजा विक्रम सेन द्वारा रत्ना को देखे जाने दे उकता कर कहती है
अब अगर देख लिया हो तो और भी काम कर लो
ये सुनकर राजा विक्रम सेन शर्मा जाते थे लेकिन राजा विक्रम सिंह की तो पांच उंगली घी ही में थे क्योंकि उनकी माता राजमाता तथा बड़ी बहन राजकुमारी नंदिनी भी सुबह से ही कहर बरपा रही थी । राजकुमारी नंदिनी मन ही मन सोचती है कि आज राजमाता से अपने छोटे भाई राजा विक्रम सिंह की शादी राजकुमारी रत्ना से कराने का प्रस्ताव अवश्य रखेगी। इसी बीच राजमाता देवकी को जोर से मूत्र त्याग की इच्छा होती है और वह अपनी सेविका रांझा को इशारे से बुला कर कहती है की उसे तुरंत ही मूत्र त्याग इच्छा हो रही है और वह यहां उसके मूत्र त्याग की व्यवस्था करें । इस पर रंझा बोलती है कि राजमाता आपका कक्ष यहां से काफी दूर है और वहां तक पहुंचते-पहुंचते हो सकता है कि आप अपने घागरे में ही मूत्र त्याग कर दें। इससे अच्छा होगा कि आप किसी नजदीक के कक्ष में ही जाकर मूत्र त्याग करें । वह कहती है की राजा विक्रम सेन का कक्ष भी पास में ही है । राजमाता उसे यह देखने भेजती है कि राजा विक्रम सेन का स्नानागार खाली है और कोई वहां है तो नहीं। रांझा जाकर देख आती है कि राजा के कक्ष में कोई नहीं है और राजमाता को सूचित करती है कि राजा विक्रम सिंह का स्नानागार बिल्कुल खाली है ।राजमाता को जोर से मूत्र त्याग की इच्छा हो रही थी ।अतः बिना कुछ ध्यान दिए हुए वह राजा विक्रम सिंह के कक्ष में घुस जाती है।
इधर राजा विक्रम सेन को भी बहुत जोरों से पेशाब आई हुई थी क्योंकि उन्होंने तो सुबह से ही मूत्र त्याग नहीं किया था । तो वह भी मूत्र त्याग के लिए स्नानागार की ओर निकल पड़ते हैं । इधर राजमाता राजा विक्रम सेन के स्नानागार में पहुंचकर अपने घागरे को ऊपर उठा कर नीचे बैठ जाती है और अपनी बुर को फैला कर जोर से पेशाब करने लगती है । इधर राजा विक्रम सेन भी दौड़ते हुए अपने हाथ से लंड को दबाए हुए स्नानघर का परदा हटाकर दाखिल होते हैं। और दाखिल होते ही वहां का नजारा देखकर उनका मुंह खुला का खुला राज आता है । थोड़ी ही दूर पर उनकी माता अपना घाघरा उठा हुए चूत खोल कर मूत्र त्याग कर रही हैं । इधर राजा विक्रम सेन भी जोर से पेशाब लगने के कारण अपना पेशाब रोक नहीं पाते हैं और अपना लंड निकाल कर अपनी माता को देखते हुए पेशाब करने लगते हैं जिसकी छीटें राजमाता तक चली जाती है। अभी दोनों मां-बेटे एक दूसरे के सामने अपने योनागो को दिखाते हुए खड़े थे ।यह देख कर राजा विक्रम सेन को अलग ही अनुभूति हो रही थी की उन्होंने अपनी ही माता के योनि के दर्शन कर लिए और सुबह अपना लन्ड अपनी माता को दिखा चुका है।
राजा पीछे घूमते हैं और तेजी से अपने कक्ष से बाहर निकल जाते हैं इधर राजमाता भी इस घटना से हक्का-बक्का रह जाती हैं और अपना घाघरा नीचे करके जल्दी से बाहर निकल जाती है तथा कार्यक्रम में शरीक होने चली जाती हैं । कार्यक्रम में तो दोनों ही मां बेटे ऐसे व्यवहार कर रहे थे जैसे अभी उनके बीच कुछ हुआ ही न हो जबकि इन्होंने अभी - अभी एक दूसरे के योनांगों का दर्शन किया है । इधर महाभोज का कार्यक्रम शुरू होता है । एक बड़े टेबल के सामने राजा माधव सिंह उनकी पत्नी और उनकी बेटी राजकुमारी रत्ना बैठी हैं तो दूसरी तरफ राजा विक्रम सिंह राजमाता और राजकुमारी नंदिनी बैठे हुए हैं । सेवक भांति भांति के पकवान इन लोगों के सामने परोस रहे थे । इसी बीच राजमाता राजा माधव सिंह से कहती है कि राजकुमारी रत्ना इतनी यौवनावस्था को प्राप्त कर चुकी है तो क्यों ना इसकी शादी संपन्न करा दी जाए ।इस पर राजा माधव सिंह राजमाता को बताते हैं कि कोई अगर योग्य वर हो तो वे अपनी पुत्री रत्ना का विवाह संपन्न कराने को तैयार हैं । छूटते ही राजमाता ने कहा कि क्यों ना राजकुमारी रत्ना की शादी विक्रम सेन से करा दी जाए ।
सभी हतप्रभ रह जाते हैं कि क्या राजा माधव सिंह अपनी पुत्री का विवाह राजा विक्रम सिंह से करेंगे ।राजा माधव सिंह इस पर अत्यंत के प्रसन्न हुए तथा उन्होंने कहा
राजमाता आपने तो हमारे मुंह की बात छीन ली हम तो यह चाहते ही थी की राजकुमारी देवकी का विवाह राजा विक्रम सिंह से संपन्न हो जाए किंतु हम सभी आपके सामने विवाह का प्रस्ताव रखने में हिचकीचा रहे थे क्योंकि आप इतने बड़े राज्य के राजा हैं और मैं एक छोटे से राज्य का राजा हूं शायद आप हमारे घर विवाह करना पसंद नहीं करते ।
राजकुमार देवकी की से विवाह का प्रस्ताव तो मैंने स्वयं दिया है तो इसमें छोटे बड़े होने की क्या बात है, राजमाता ने कहा
विवाह की बात सुनकर राजकुमारी रत्ना भी मन ही मन बहुत खुश होती है और वह सोचती है की उसके बुर् भी वनवास खत्म होगा तथा जल्दी ही उसकी बुर को एक मोटा तगड़ा लंड मिलेगा जो उसकी बुर को चोद कर उसकी बुर् की गर्मी को ठंडा करेगा और वह मन ही मन अपनी चुदाई के सपने देखने लगती है ।अपनी शादी की बात होती सुन राजकुमारी रत्ना शरमा कर प्रांगण के दूसरी ओर चली जाती है और दीवार की ओट में खड़े होकर इनकी बात सुनने लगती है। राजा माधव सिंह राजमाता को कहते हैं कि एक बार राजा विक्रम सिंह जी भी उनकी इच्छा जान ली जाए और राजकुमारी रत्ना से वह इस बारे में बात कर लेंगे ।राजमाता ने इन दोनों की राय जानने में अपनी कोई आपत्ति व्यक्त नहीं की। बल्कि उन्होंने तो यहां तक कहा कि इन दोनों को अपना जीवन गुजारना है इसलिए दोनों की राय लेना सर्वथा उचित है ।
राजमाता राजा विक्रम सिंह से उनकी राय जानना चाहती है जिस पर राजा विक्रम सिंह ने तुरंत ही अपनी सहमति अपना सिर हिला कर दे दी। राजा विक्रम सिंह तो सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि वे राजकुमारी रत्ना से विवाह करने में विलंब करें । फिर राजा माधव सिंह अपनी पत्नी को राजकुमारी दिल की बात जानने को भेजते हैं । राजकुमारी रत्ना दीवाल की ओट में खड़े होकर यह सारी बातें सुन रही थी ।जैसे ही राजकुमारी सुनती है उसकी मां उसकी राय जानने के लिए आ रही है तो वह और आश्चर्य में पड़ जाती है । इधर रानी सोचती है कि राजा विक्रम सिंह को देखकर उसकी खुद की बुर में खलबली मची हुई है तो उसको देख कर मेरी पुत्री क्यों नहीं विवाह करना चाहेगी। जब रत्ना से उसकी मां पूछती है कि क्या वह राजा विक्रम सिंह के साथ शादी करना चाहती है । इस पर वह चुप रहती है और कोई जवाब नहीं देती है । रानी सोचती है कि शायद मेरी पुत्री को यह विवाह पसंद नहीं है और आश्चर्यचकित होती है कि जिस राजा विक्रम सेन के बारे में सोच कर उसकी बुर सुबह से पनियाई हुई है , उससे शादी करने को उसकी पुत्री ही हां क्यों नहीं कह रही है ,,,लगता है कि मेरी पुत्री को यह विवाह पसंद नहीं है और जाने लगती है।
अपनी माता को जाता देख राजकुमारी रत्ना जल्दी से बोलती है कि हां हां हां मुझे मुझे यह विवाह मंजूर है । अपनी पुत्री की सहमति लेकर राजा माधव सिंह के पास पहुंचती है तथा उन्हें राजकुमारी की सहमति की सूचना देती है। इस पर राजा माधव सिंह जी बड़े प्रसन्न होते हैं और राजमाता को विवाह तय होने की बधाई देते हैं । राजमाता मिठाई मंगाती है और मिठाई से राजा माधव सिंह का मुंह मीठा कराती हैं । राजमाता राजज्योतिषी को बुलावा भेजती हैं जो कि उस वक्त राजमहल में उपस्थित थे । राज ज्योतिषी के आते ही राजमाता राजा विक्रम सिंह के शादी तय होने की सूचना देती हैं तथा उनसे शादी का शुभ मुहूर्त बताने का आग्रह करते हैं। राजपुरोहित चार माह पश्चात् की तिथि शादी के लिए निश्चित करते हैं जिस पर दोनों पक्ष खुशी-खुशी राजी हो जाते हैं। राजकुमारी रत्ना शादी तय हो जाने के बाद ख्वाबों में डूब जाती है कि राजा विक्रम सिंह का लौंडा कैसा होगा और वह कैसे मेरी बुर को चोदगा।