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Incest राजकुमार देव और रानी माँ रत्ना देवी

Nevil singh

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Update 3
राजमाता देवकी आईने के सामने बैठी रहती है और रन्झा उसे तैयार कर रही होती है, देवकी राजपरिवार की जो ठहरी. रन्झा चंदन की लकड़ी से बने कंघे से देवकी के बाल सवारति है. फिर मलाई और गुलाब से बने क्रीम उसके चेहरे पे लगाती है. फिर थोड़ी सी क्रीम लेकर उसके स्तनों पे मलती है और अपनी उँगलियों से उसके चुचुक को मसल देती है जिससे देवकी सिसक जाती है और एक हल्की सी चपत रन्झा के हाथ पे लगाती है जिस पे रन्झा मुस्कुरा देती है. थोड़ी सी क्रीम लेकर अब रन्झा नीचे बैठ जाती है और अपने हथेलियों मे फैलाकर देवकी की योनि पर अच्छे से लगा देती है.
देवकी गुस्सा दिखाते हुए - ये क्या कर रही है रण्डी
रन्झा - हे हे हे, तुमने आज अपनी बुर को सुबह सुबह कष्ट दिया है ना. इसलिए मै थोड़ा मलहम लगा देती हूँ , , आखिर आपकी योनि का भी तो ख्याल रखना है मुझे और दांत निपोरने लगती है.
देवकी - मुस्कुराते हुए, मेरी योनि है, मै इसके साथ जो करूँ, तुझे इससे क्या. तु अपनी योनि देख और उसे संभाल. और बातें कम कर और जल्दी तैयार कर मुझे, खुद तो तैयार हो कर आ गई गई है बरचोदि और मुझे तंग करती है.
अब रन्झा देवकी को तैयार करने लगती है. उसके स्तन पर पहले कपड़े का पट्टा बांधती है. फिर उसे एक हीरे जवाहरात से जड़ी एक लाल रंग की चोली पहनाती है. अब देवकी खड़ी हो जाती है जिसे रन्झा एक हीरे का कमरबंध पहनाती है. फिर एक मलमल के कपड़े का बना लंगोट जैसा अंतःवस्त्र उसकी योनि पे पहनाती है जो उस समय की औरत पहनती थी. फिर लाल रंग का रत्न जडित घाघरा पहनाती है क्यों कि आज राजकुमार के जन्मदिन का अवसर जो था. इसके उपर राजमाता को एक हरे रंग की चुन्नी ओढा देती है. आँखों पे काजल और होंठो पे लाली लगाकर रन्झा राजमाता देवकी को कहती है
रन्झा- अब अपने को शीशे मे देख लो राजमाता. बिल्कुल दुल्हन लग रही हो.
देवकी - धत्त, कुछ भी बोलती हो. मै विधवा हूँ. मैं कहाँ से दुल्हन लग सकती हूँ.
रन्झा - चलो बातें मत बनाओ. अभी तो इतनी जवान हो कि कोई भी तुम्हें देखकर पागल हो जाए. और हाँ इस चुन्नी से अपनी जवानी को ढके रहना नहीं तो आयोजन में ही लोग अपना लंड निकाल कर हिलाने लगेंगे.
और ऐसा कह कर वह जोर से देवकी की चूची को दबा देती है जिससे उसकी आह निकल जाती है और रन्झा को बनावटी गुस्सा दिखाती है.
फिर देवकी को जैसे कुछ याद आता है और कहती है देख कितनी देर हो गई छिनाल. सूर्योदय होने वाला है. जल्दी कर. अभी देख राजकुमारी नंदिनी जगी है कि नहीं.
( राजकुमारी नंदिनी राजा विक्रम सेन की बडी बहन है जो उससे 2 साल बड़ी है और अपनी माँ और भाई की तरह बला की खूबसूरत है. अपनी माँ की तरह ही गोरी, तीखे नैन नखस् और लंबाई 5 फीट 3 इंच, उन्नत वक्ष, चौडी कमर और छरहरा बदन. उसकी नीली आँखे लगता था अभी बोल पड़ेंगी. उसके उन्नत नितंब देखकर सभी आहें भरते थे)
राजमाता देवकी फटाफट तैयार हो कर अपने कक्ष से निकल कर नंदिनी के कक्ष की ओर जाने लगती है. जैसे ही वह बाहर निकलती है सभी संतरी सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाते हैं. पीछे से रन्झा भागे भागे आती है. देवकी अब नंदिनी के कक्ष के बाहर पहुँचती है और सेविकावों से पुछती है.
देवकी - राजकुमारी तैयार हो गई है क्या?
सेविका - हकलाते हुए, नहीं राजमाता, अभी राजकुमारी सो रही हैं.
देवकी - ( बड़बड़ाते हुए कमरे में घुस जाती है और राजकुमारी को सोया हुआ देखकर जगाती है) उठ जाओ राजकुमारी.
नंदिनी आँखे मलते हुए उठती है.
देवकी - मेरी लाडो राजकुमारी, जल्दी से तैयार हो जा, आज तेरे भ्राता का जन्मदिन है. और लाडो ये क्या तु ठीक से सोया कर. देख तेरी सलवार घुटने तक सरकी हुई है. कोई आता तो देखकर क्या बोलता. वैसे भी तेरी शादी की उम्र हो गई है.
अब राजकुमारी क्या बताये की वो अंदर से पुरी नंगी है. ( राजकुमारी नंगी क्यों है ये राज बाद में खुलेगा.)
नंदिनी - माते आप मेरे अतिथि कक्ष में बैठे, मै तुरंत स्नान कर के आती हूँ. ठीक है पुत्री मै तुम्हारे अतिथि कक्ष में इंतजार करती हूँ तब तक तुम जल्दी से तैयार हो जाओ. और इतना कहकर देवकी दूसरे कक्ष में चली जाती है. देवकी के जाते ही राजकुमारी नंदिनी अपनी सलवार निकाल कर फेकती है और चादर ओढ़ कर सनानागर् मे भाग जाती है और अंदर पहुँच कर राहत की साँस लेती है. पहले राजमहल मे कमरो मे दरवाजे नहीं होते थे, बल्कि बड़े बड़े परदे लगे होते थे. राजकुमारी नंदिनी अपना चादर हटाती है जिससे वह पुरी मदरजात नंगी हो जाती है. सबसे पहले वह जल्दी से अपनी योनि को पानी से साफ करती है. इधर रन्झा भी अतिथि कक्ष में पहुँच जाती है और देवकी से पुछती है कि राजकुमारी नंदिनी तैयार हुई की नहीं.
देवकी - अरे वो लाडो को जानती नहीं हो, कभी समय से तैयार होती है क्या.
रन्झा - राजमाता, अब नंदिनी भी जवान हो गई है. अब अपनी लाडो को लण्ड दिला दो उसकी बुर चोदने के लिये, नहीं तो कहीं किसी से बुर ना चुदवा ले.
देवकी - चुप कर बुरचोदि, तुम्हारे मन मे केवल लंड, बुर की चुदाई की बात ही चलती रहती है. जा, जाकर देख नंदिनी तैयार हो गई क्या. और अगर वो तैयार ना तो उसे तैयार कर दे.
ये सुनकर रन्झा नंदिनी के कक्ष में जाती है. उसे स्नानागार से पानी गिरने की आवाज आती है और वह ये देखने के लिये की नंदिनी क्या कर रही है चुपचाप स्नानागार मे परदा हटा कर घुस जाती है और राजकुमारी को अपनी बुर साफ करते हुए देखती है. रन्झा की अनुभवी आँखे कुछ गड़बड़ महसुस करती है और तब आवाज देती है राजकुमारी. रन्झा की आवाज सुनकर नंदिनी अचानक से पीछे मुड़ती है जिसे नंगा देखकर रन्झा का मुह खुला रह जाता है.
रन्झा - राजकुमारी आप क्या कर रही हैं.
नंदिनी - आप अंदर कैसे आई धाई माँ. रन्झा को राजकुमारी और राजकुमार धाई माँ बुलाया करते थे.
रन्झा - मै तो तुम्हें खोजते हुए आई हूँ. राजमाता ने मुझे आपको तैयार करने के लिए भेजा है.
नंदिनी - मै कोई दुध पीती बच्ची थोड़े ही हूँ की मुझे तैयार करवाना पड़ेगा.
रन्झा - वो तो मै भी देख रही हूँ कि आप दुध पीती बच्ची नहीं हैं. बल्कि आप किसी को दुध पिला दीजियेगा. ऐसा कहते हुए रन्झा नंदिनी के पास पहुँच कर उसकी दोनों चूची को अपने हाथ मे ले कर मसल देती है. नजदीक आने से रन्झा को नंदिनी के शरीर पर दाँत काटने के निशान देखती है. साथ ही नंदिनी की योनि की लालिमा रन्झा के मन मे शंका पैदा करती है. रन्झा बोलती है कि आप भी अपनी माँ की तरह बला की खूबसूरत हैं. वैसे ही स्तन, नयन नखस् और वैसी ही सुन्दर योनि. जो भी ईस बुर को देख ले, वो तो हस्तमैथुन करते करते मर जाए.
नंदिनी - ( मन ही मन खुश होती है और कहती है) धत् धाई माँ, आप कैसी बातें करती हैं. आपने माँ की बुर देखीं है क्या? और आपके पास भी तो बुर है. सबकी योनि तो एक ही तरह की होती है.
रन्झा - (मन में, अब आई ये लाईन पर.) राजकुमारी मैंने आपकी माँ को बचपन से देखा है और उन्हें रोज तैयार करती हूँ. तो इसके लिए वो मेरे सामने नंगी होती हैं. और हाँ सबकी बुर एक जैसी नहीं होती. मेरी बुर पे घनी झांटे है. आपदोनों की बुर कोई देख ले तो बिना चोदे नहीं मानेगा. आप तो अभी चुदवा लें तो बच्चा पैदा हो जाये. वैसे एक बात पूछूँ. नंदिनी ने कहा पुछो.

रन्झा - आपने रात्रि मे किसी पुरुष के साथ सम्भोग किया है क्या?
ये सुनकर नंदिनी के होश उड़ गये. उसने कहा आप ये क्या कह रही है. रन्झा कहती है की मै सही कह रही हूँ. मेरी अनुभवी आँखे कह रही हैं की रात में आपने मस्त चुदाई का मजा लिया है. आपकी लाल योनि और स्तन पे दाँत के निशान इसकी गवाही दे रहे हैं. नंदिनी समझ जाती है कि छुपाने से अब कोई फायदा नहीं है, उसकी चोरी पकड़ी गयी है.
नंदिनी- आप सत्य कह रही हैं धाई माँ. रात में मैने सम्भोग किया है. क्या करूँ इस जवानी की गर्मी सही ही नहीं जा रही. अब आप ही बताओ इस 20 साल के उम्र में मै लण्ड के बिना कैसे जियूँ.
रन्झा - मै समझती हूँ राजकुमारी. तभी तो मैने राजमाता को अभी कहा है कि लाडो को अब एक लण्ड दिला दो.
नंदिनी - धत्त, सच मे आपने राजमाता से ऐसा कहा. उन्होंने क्या कहा.
रन्झा - राजमाता भी समझती हैं. मै समझती हूँ की बुर की आग क्या होती है. मै राजमाता को कुछ नहीं बताऊंगी, नहीं तो वो तुम्हारी चुदाई बन्द करा देंगी. लेकिन लाडो मै भी तुम्हारी धाई माँ हूँ, तुम्हारा भला चाहती हूँ. इसलिए एक सलाह देती हूँ की चुदाई के बाद पुरुष का वीर्य अपनी योनि मे मत गिरने देना, नहीं तो तुम गर्भवती हो जाओगी. और हाँ सम्भोग किसी अपने नजदीकी से ही करना जिस पर तुम्हें विश्वास हो, नहीं तो बाहर वाले से चुदवाओगी तो काफी बदनामी होगी.
नंदिनी - जैसा आप कहे धाई माँ और ऐसा कहकर वह रन्झा को अपने आलिंगन मे भर लेती है जिसे रन्झा दूर हटाती है और कहती है जल्दी तैयार हो जाओ. वैसे धाई माँ आप इतना कैसे जानती हैं. किसी नजदीकी से अपनी बुर चुदवा रही हैं क्या और ऐसा कहकर चोली के ऊपर से ही रन्झा की चूची दबा देती है और घाघरे के उपर से ही उसकी बुर दबोच लेती है. रन्झा भी मुस्कुरा देती है और नंदिनी की नंगी बुर को सहला देती है. तब तक बाहर से देवकी आवाज देते हुए अंदर आ जाती है की नंदिनी तैयार हुई की नहीं. आवाज सुनते ही दोनों अलग हो जाती हैं और नंदिनी जल्दी टब मे घुसकर नहाने लगती है. लेकिन तब तक देवकी नंदिनी की नंगी बुर और नंगा बदन देख चुकी थी. और वह रन्झा के कान में धीरे से बोलती है की तू सही कह रही थी. लाडो को अब लंड चाहिए. ये बात नंदिनी सुन लेती है और उसके तन बदन मे सुरसुरी दौड़ जाती हैं और वह मन में कहती है कि मै कैसे बताऊँ माँ की मैने अपनी योनि मे लण्ड ले लिया है लेकिन किसका लिया है ये समय आने पर बताऊंगी. फिर देवकी उसको जल्दी तैयार होने को बोल कर बाहर आ जाती है. फिर नंदिनी फटाफट तैयार होकर अपने वस्त्र कक्ष में जाकर गुलाबी रंग की घाघरा चोली पहन कर बाहर आ जाती है. जिसकी सुंदरता देखकर देवकी दंग रह जाती है. वह क्या जानती है की ये बदलाव रात की चुदाई का कमाल है. नंदिनी फिर कहती है कि ये चुन्नी तो ले ले लाडो, सबको अपना बड़ा दूध दिखाती रहेगी क्या. और तु जल्दी जाकर पूजा कक्ष मे पूजा की सामग्री देख लो तब तक मै अपने लाड़ले पुत्र को देखकर आती हूँ कि वह तैयार हुआ की नहीं और ऐसा कहकर राजमाता देवकी अपने लाड़ले पुत्र राजा विक्रम सेन के कक्ष की ओर चल देती है. पीछे पीछे रन्झा भी दौड़ते हुए आती है.

अगले update मे आप देखेंगे की राजा विक्रम सेन के कक्ष में क्या क्या होता है....
Kadak update dost
 

®@ju1

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Update 5 थोड़ा जल्दी मे लिखा गया है. इसीलिए मैने इसमें अभी edit कर लय बनाने की कोशिश की है. आप सभी के सुझाओं के लिए धन्यवाद. लेकिन हौसला अफजाई भी जरूरी है ताकि अच्छे update लिखे जा सके
Bhai pics grief bhi add karo aur maja aaega
 

Nevil singh

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Update 4
आज राजमाता देवकी इसलिए सबको सुबह सुबह जगाने जा रही है क्यों कि आज राजा विक्रम सेन के जन्मदिन के अवसर पर सूर्योदय के समय ही कुल देवता के मंदिर में पूजा अर्चना करनी थी, आखिर राजज्योतिषी ने मुहूर्त जो निकाला था. देवकी के तो पैर ही जमीन पे नहीं पड़ रहे थे और वो तो मानो हवा में उड़ रही थी. वह राजा के कक्ष में कभी नहीं जाती है. लेकिन आज की तो बात ही कुछ और थी. अपनी ही धुन मे वह अपने पुत्र राजा विक्रम सेन के कक्ष के सामने पहुँचती है. देवकी को देखकर द्वारपाल भी चौंक जाता है. उसे उम्मीद नहीं थी की राजमाता राजा के कक्ष में पधारेंगी. देवकी द्वारपाल से पुछती है की क्या राजा अपने कक्ष में है. द्वारपाल हाँ मे अपना सर हिलाता है और राजमाता को आदर पूर्वक राजा के कक्ष मे अंदर ले जाता है. राजा के कक्ष में जाने के लिये एक लम्बा गलियारा था और द्वारपाल को उस गलियारा के बाद आगे जाने की अनुमति नहीं थी. सो द्वारपाल देवकी को गलियारा पार कराकर राजा के कक्ष के सामने छोड़कर अनुमति ले लेता है तथा पुनः राजा के कक्ष के मुख्य द्वार पे चला जाता है.
इधर अपने कक्ष मे राजा विक्रम सेन सुबह सुबह निश्चिंत उठता है और नंगा ही अपने कक्ष में टहलने लगता है. राजा अपने कक्ष में पूर्ण नग्न ही सोता था . उसके कक्ष मे उसकी अनुमति के बिना कोई नहीं आता था. ये बात तो द्वारपाल भी जानता था की राजा के कक्ष में कोई नहीं जाता है. लेकिन उस बेचारे की क्या बिसात थी राजमाता को अपने ही पुत्र के कक्ष में जाने से रोक सके. इधर कक्ष में राजा भी निश्चिन्त था की कोई उसके कक्ष मे कोई नहीं आयेगा और राजमाता के आने की तो वह कल्पना भी नहीं कर सकता था क्योंकि राजकीय नियम के अनुसार यदि राजमाता को राजा से मिलना हो तो राजा ही राजमाता के कक्ष में जाता था ना कि राजमाता राजा के कक्ष में जाती थी. लेकिन आज राजमाता देवकी तो अलग ही धुन मे थी. वह सारे राजकीय नियम ताक पे रख कर राजा के कक्ष के द्वार पर पहुँच गई थी. इधर राजा अपने कक्ष से अपना लण्ड लटकाये हुए स्नानागर मे दैनिक क्रिया के लिए घुस जाता है और अपने लिंग को अपने हाथ मे लेकर पेशाब पात्र में पेशाब करने लगता है. सुबह के समय ढेर सारा पेशाब निकलता है और वह अपने लिंग के सुपाडे पर लगे पेशाब की अंतिम बूँद को अपनी उँगली पर लेकर उसे सूंघता है और मदहोस होने लगता है. राजा विक्रम की शुरु की ही ये आदत थी की वह सुबह सुबह अपने पेशाब की बूँद को सूंघता था और फिर अपने लण्ड की चमड़ी को उल्टा करके सुपाड़े पर लगे सफेद परत को अपनी उँगली पर लगा कर सूंघता था. आज भी उसने ऐसा ही किया और फिर आँखे बन्द कर अपने लण्ड और अंडकोष से खेलने लगा. फिर उसे याद आया की आज तो उसे जल्दी तैयार होना है मंदिर जो जाना है. वह स्नानागर के आदमकद आईने के सामने खड़ा हो कर खुद को निहारने लगता और अपनी मर्दानगी पर गर्व करते हुए सोचने लगता है की आज तो पड़ोसी राज्यों के राजा अपनी रानियों और राजकुमारियों के साथ पधारेंगे, आज तो लण्ड महाराज दिन भर अपना सिर ही उठाते रहेंगे. यही सोच कर वह अपने हाथ नीचे ले जाकर लण्ड को सहला देते हैं जिससे लण्ड मे कडापन आ जाता है.

इधर राजा के कक्ष मे राजमाता देवकी पहुँच कर उसे खोजने लगती है. शयन कक्ष, भोजन कक्ष, अतिथि कक्ष सभी जगह अपने लाड़ले पुत्र को खोजती है लेकिन उसे वह कही नहीं मिलता है. वह गुस्से मे बोलती है किसी को कोई फिकर नहीं है. आज सुबह मंदिर जाना है और सहेबजादे की कोई खबर ही नहीं. अंत मे वह थक कर सोचती है एक बार स्नानागर मे देख लेती हूँ. फिर उसके कदम राजा के स्नानागर के तरफ बढ़ चलते हैं. उसे जरा भी अहसास नहीं था की आज वह अपनी जिन्दगी की सबसे खूबसूरत चीज देखने जा रही है. वह परदा हटाकर जैसे ही अंदर दाखिल होती है उसका मुह खुला का खुला रह जाता है. देखती है की उसका लाडला पुत्र पूर्ण नग्न अवस्था में शीशे के सामने खड़ा है. राजा विक्रम देवकी की ओर पीठ करके खड़ा था सो वह देवकी को नहीं देख पा रहा था और देवकी भी ये नहीं देख पा रही थी की उसका लाडला पुत्र अपने लाड़ से खेल रहा है. देवकी अपने पुत्र को पीछे से उसकी पीठ और सुडोल नितंब देख कर मंत्र मुग्ध हो रही थी. उसे कुछ नहीं सूझ रहा था. राजा विक्रम सेन लम्बे तो थे ही उनका बदन भी छरहरा था. उनके कंधे तक बाल और चौड़े कंधे उन्हें और आकर्षक बनाते थे और उनके हल्के उठे हुए चुतड राजमाता देवकी को और पागल बना रहे थे. अचानक वह मंत्र मुग्ध हो कर मन में बोलती है, ये तो हुबहु अपने पिता श्री पे गया है. पीछे से देखने पर लगता है महाराज ही बिल्कुल नंगे खड़े हैं. लेकिन मेरे पुत्र के नितंब महाराज से ज्यादा सुडोल और कामुक है. ऐसा सोचते सोचते वह अपना एक हाथ नीचे ले जाकर घाघरे के उपर से ही अपनी बुर रगड़ देती है और दूसरे हाथ से अपनी चूची को दबाने लगती है और वह ये भुल जाती है की वो यहाँ अपने पुत्र को लेने आई थी. उसे याद आने लगता है की कैसे महाराज भी रोज नंगे हो जाते, उसे भी नंगी करते और रात भर उसकी बुर मे लण्ड डालकर घमासान चुदाई करते. वे भी क्या दिन थे.उधर राजा विक्रम अपने लाड़ से खेल रहा था इधर उसके पीछे उसकी प्यारी माँ देवकी घाघरे के उपर से अपनी बुर सहला रही थी और अपनी चुच्ची दबा रही थी. दोनों अपने मे मगन थे. इसीबीच पंछियों की चहचाहट से दोनों का ध्यान भंग होता है. देवकी को याद आता है की वो यहाँ अपने पुत्र को लेने आई है. वह झट से अपना हाथ अपनी योनि और अपनी चुच्ची पर से हटाती है. लेकिन जल्दबाजी में वह इस स्थिति में स्नानागर से बहार जाने के बजाय अपने पुत्र राजा विक्रम को आवाज देती है. पुत्र.... आवाज सुनकर राजा विक्रम चौक जाते हैं. उन्होंने कभी नहीं सोचा था की उनके स्नानागर मे उनकी अनुमति के बिना कोई आ जायेगा और राजमाता के आने का तो प्रशन ही नहीं उठता है. लेकिन वास्तविक्ता ये थी कि राजमाता राजा के स्नानागर मे खड़ी थी. राजा भी अपनी माँ की आवाज सुनकर उसी स्थिति मे अपनी माँ की ओर घूमता है और अब अपनी माँ की तरफ मुह कर के खड़ा हो जाता है. इस स्थिति में अपने पुत्र को देखकर राजमाता का मुह खुला रह जाता है. उसके पुत्र का 9 इंच लम्बा और 3.5 इंच मोटा लण्ड सामने लटक रहा था जिसमे कडापन आ रहा था. साथ ही राजा की चौडी छाती और कंधे उसकी मर्दांगी दिखा रहे थे. राजमाता अपने ही पुत्र पर मोहित हो रही थी. वहीं दूसरी तरफ राजा का मुह भी अपनी प्यारी माँ की सुंदरता देखकर खुला रह गया. आज वह बिल्कुल परी लग रही थी. अपनी माँ की सुंदरता देखकर राजा के लिंग मे धीरे धीरे तनाव आने लगा और अब उसका लंड पूरा कड़क होकर खड़ा हो गया और अपनी माँ को सलामी देने लगा. देवकी अपने पुत्र का लौड़ा देखकर मुग्ध हो गई. उसके सामने उसके पुत्र का गोरा लण्ड खड़ा था जिसका गुलाबी सुपाड़ा अपनी माँ को प्यार से देख रहा था. लंड के आगे की चमड़ी पीछे खीची हुई थी. देवकी लगातार अपने पुत्र के खड़े लण्ड को प्यार से देखे जा रही थी. देखती भी क्यों नहीं, कितने सालों के बाद तो उसने लण्ड जो देखा था. माँ और बेटे मे से कोई कुछ नहीं बोल रहा था. तभी राजा विक्रम राजमाता से पूछते हैं.... मैया आप यहाँ कैसे.
लेकिन देवकी के मुह से कोई शब्द नहीं निकल पा रहे थे. राजा विक्रम तब धीरे धीरे अपनी माँ की ओर आगे बढ़ते हैं जिनकी नजर अपने लल्ला के लण्ड से हट ही नहीं पा रही थी. बिक्रम अपनी माता के सामने पहुँच कर खड़े हो जाते हैं और देखते हैं की उनकी माँ की नजर उनके लौड़े से हट ही नहीं रही है. उन्हें अपने उपर फक्र महसुस होता है और अपनी माँ को कहते हैं.... ये वही लण्ड है माते जिसे आप मुझे नहलाते समय रगड़ रगड़ धोया करती थी और मुट्ठी में भर कर नाप लेती थी. याद है ना आपको. ये आपकी मालिश का ही नतीजा है माते की आपके लल्ला का ये लण्ड इतना लम्बा और मोटा हो गया है...इस लण्ड पर आपका ही अधिकार है माते...और इतना कह कर वे अपनी माँ का हाथ पकड़ कर अपने लौड़े पर रख देते हैं जिसकी गर्मी देवकी को महसुस होती है. वह कहती है... ये क्या कर रहे हो पुत्र. लेकिन वह अपना हाथ अपने पुत्र के खड़े लौड़े से नहीं हटाती है, बल्कि मुट्ठी में पकडे रहती है. राजा विक्रम यह देखकर मंद मंद मुस्कुराते हैं और बोलते हैं...मां आज आप कितनी सुंदर लग रही है... लगता है आज स्वर्ग से अप्सरा धरती पर अवतरित हो गई है बिल्कुल नई नवेली दुल्हन लग रही है आप यह आपकी उन्नत चूचियां मुझे पागल कर रही है आपके सुंदर चेहरे से मैं नजर नहीं हटा पा रहा हूं.... इतना कहकर राजा अपने हाथ से अपनी माता की चुचियों को सहला देता है और अपने एक हाथ से उसके गालों को प्यार से सहलाने लगता है... अब राजा के स्नानागार में स्थिति यह थी कि राजमाता अपने पुत्र राजा विक्रम के लण्ड अपने को हाथ में पकड़ी हुई थी और राजा विक्रम अपनी माता देवकी की चुच्चियों को पकड़े हुआ था और एक हाथ से धीरे-धीरे गालो को प्यार से सहला रहा था..., राजा विक्रम बोलते हैं माते अब मुझसे रहा नहीं जाता .. मैं आप का दीवाना हो गया हूं ...मैं आपसे प्यार करना चाहता हूं क्या मैं आपकी गालों को चूम सकता हूं...मैं आप के गालों को चूमना चाहता हूं..राज माता कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं थी...इसे मौन सहमति मान कर राजा अपनी माता के गालों पर चुंबन लेने लगता है ....इधर रन्झा भी राजा के कक्ष के बाहर राजमाता का इंतजार कर रही थी .... जब काफी देर हो गई तब वह राजमाता खोजते खोजते राजा के कक्ष के अंदर घुस आई... राजमाता को वहां ना पाकर है वह राजा के दूसरे कक्षों में ढूंढने लगी...जब वह दोनों कहीं नहीं दिखे तब अंततः रांझा राजा के स्नानागार की ओर बढ़ चली और वहां पहुंचकर जैसे ही उसने स्नानागार का पर्दा हटाया उसका मुंह खुला का खुला रहता है ..वह राजमाता राजमाता आवाज लगते हुए अंदर दाखिल होती है और सामने देखती है की राजमाता अपने पुत्र राजा विक्रम का लंड अपने हाथ में लिए हुए हैं... रन्झा की आवाज सुनकर दोनों मां बेटे अपने अलग होते हैं ...राजमाता अपने पुत्र का लंड से अपने हाथ हटाती हैं राजा भी अपना हाथ अपनी मां की वक्ष् से हटाता है और अपनी मां के गालों से चुंबन लेना बंद करके पीछे हट जाता है.. रांझा का मुह मां बेटे को इस स्थिति में देखकर खुला खुला रह जाता है ...वह सोचती है कि क्या राजघराने में भी एक मां और बेटे के बीच ऐसा खुला संबंध हो सकते हैं... रांझा की आवाज सुनकर दोनों मां-बेटे चौक जाते हैं और अलग हो जाते हैं राजमाता के मुख से अभी भी कोई शब्द नहीं निकल पा रहे थे तब तक रांझा की नजर राजा विक्रम की लंड पर पड़ती है जिसे देखकर मंत्रमुग्ध हो जाती हो और मन ही मन सोचती है कि काश इस लंड से मुझे चुदने का मौका मिल जाता.... वह फिर राजमाता को याद दिलाती है की सूर्योदय होने को है पूजा का समय होने जा रहा है.. तब राजमाता के मुख से आवाज निकलती है और वह अपने पुत्र को कहती हैं कि तुम जल्दी से तैयार हो जाओ हमें जल्दी ही पूजा में चलना होगा ..इतना कहकर है वह राजा के स्नानागर से बाहर निकल जाती है तथा पूजा की तैयारियां देखने चली जाती है.... उसके पीछे रन्झा भी भागी चली आती है....
Lovely update dost
 

Sanju@

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Update 5
राजमाता देवकी झटके से राजा के स्नानागार से बाहर निकलती है और बाहर निकलते समय रांझा का हाथ पकड़कर पूजा के कक्ष की ओर चल जाती है अभी उसे होश नहीं था. उसके मन में पश्चाताप की और पाप की भावना घर करने लगती है. वह मन ही मन अपने को कोसने लगती है कि उसने आज यह क्या कर दिया उसे आत्मग्लानि होने लगती हैं कि कैसे उसने अपने पुत्र का लंड अपने हाथ में ले लिया था और सबसे बड़ी बात यह कि अपने पुत्र का लंड अपने हाथ में पकड़े हुए रंझा ने उसे देख लिया। शायद रंझा ने अगर राजमाता को इस स्थिति में नहीं देखा होता तो शायद देवकी को आत्मग्लानि भी ना हो रही होती। वाकई वह खुद ही नहीं समझ पा रही थी कि वह खुश है या उसे पश्चाताप का अनुभव हो रहा है

राजा के कक्ष से पूजा के कक्ष तक पहुंचने में उसे ऐसा लग रहा था मानो यह दूरी खत्म ही नहीं हो रही थी कभी वाह यह सोचकर शर्मा रही थी की क्या वह अभी भी इतनी जवान और सुंदर है कि उसके पुत्र का लंड उसे देख कर खड़ा हो गया है । उसे क्या पता था की हर एक पुत्र अपनी मां को पाने की , उसे चोदने की आकांक्षा रखता है और जो पुत्र अपने माता के प्रति ऐसा प्रेम आकर्षण नहीं रखता है उसके तो पुरुष होने पर ही संदेह है देवकी फिर अपने पुत्र के लंड के स्पर्श के अनुभव को याद कर पुनः उत्तेजना महसूस करनी लगती है और सोचने लगती है कि कितना कड़क और गर्म लौड़ा है मेरे पुत्र का. अपने पुत्र के लंड के गुलाबी सुपारी को याद कर वह मंत्र मुग्ध हो जाती है ।

यही सोचते सोचते देवकी पूजा कक्ष के पहुंच जाती है जहां पूर्व से ही नंदिनी पूजा के सामानों की व्यवस्था में लगी हुई है नंदिनी ने यहां पर पूजा की थाली तैयार कर ली थी जिसमें चंदन रोली अक्षत और पूजा के सभी सामान रखे हुए थे तथा एक दूसरे वाले पात्र में रंग बिरंगे फूल रखे हुए थे राजमाता पूजा कक्ष में पहुंचकर नंदिनी से पूछती है क्या पूजा की सारी तैयारी हो चुकी है आपने पूजा के लिए सभी आवश्यक वस्तुएं एकत्रित कर ली है । नंदनी हां में जवाब देती है और बोलती है कि भ्राता यदि तैयार हो गए हो तो हम सभी चलने को तैयार हैं । देवकी इस पर क्या बोलती है नंदनी के ऐसा पूछने से उसे अभी कुछ समय पहले का घटनाक्रम उसकी आंखों के सामने से गुजर जाता है। वह कैसे बताए कि वह गई तो थी अपने पुत्र को जल्दी तैयार करने के लिए लेकिन वहां उसने खुद ही अपने पूत्रके मोटे लिंग का दर्शन कर लिया है दर्शन तो छोड़िए उसने लिंग को स्पर्श करके उसे मुट्ठी में बांध लिया था फिर भी वह नंदनी को बोलती है कि बेटा आपके भ्राता जल्दी तैयार होकर पर आ रहे हैं।

इधर राजा स्नानागार में इस घटना के बाद तुरंत स्नान करने के लिए दूध से भरे मिट्टी के बड़े टब में घुस जाता है तथा अपने पूरे शरीर को रगड़ करके, अपने मोटे लोड़े को दूध से रगड़ रगड़ कर साफ़ करने लगता है उसे अभी की घटी घटना का कोई पश्चाताप नहीं था बल्कि उसकी तो मनोकामना आज पूर्ण हुई है कि उसने अपनी प्रिय माता को अपना लंड दिखाया ही नहीं है बल्कि उसके हाथ में में अपना लन्ड भी दिया था। वह आज की घटना के एक बात से बहुत खुश था की उसकी माता देवकी ने अपने लल्ला का लंड हाथ में तो पकड़ा था लेकिन वह उसे छोड़ने का नाम नहीं ले रही थी जबकि अगर चाहती तो उसे लंड पर से हाथ हटाने का पूरा अवसर था

यह सोच कर राजा मंद मंद मुस्कुराए लगता है और सोचने लगता है की एक दूसरे के यौन अंगों और जननांगों को देखने की लालसा दोनों माता और पुत्र में लगी हुई है वह सोचने लगता है की मेरी माता की योनि कैसी होगी मेरी जन्मस्थली कैसी होगी क्या मैं कभी अपनी जन्मस्थली के दर्शन पाकर धन्य हो पाऊंगा और वह मन में सोचता है कि आज मैं अपने कुलदेवता से ही यही आशीर्वाद मांगुंगा की मुझे अपनी माता के घाघरे के नीचे स्थित योनि जोकि मेरी जन्म स्थली है मेरा जन्म स्थान है , उसके दर्शन का और उसे स्पर्श करने का आशीर्वाद प्रदान करें ।

राजा को इस बात की थोड़ी भी भनक नहीं थी कि उसकी माता राजमाता देवकी ने चंद घंटे पहले ही उसके लंड की कल्पना करते हुए अपनी योनि में उंगली किया था । उसने अपनी बुर को रगड़ रगड़ के पानी निकाला था उसे क्या पता था कि उसकी माता श्री उसके लंड के प्रति आकर्षित है

तभी राजा को याद आता है कि आज उसे कुलदेवता की पूजा के लिए जल्दी तैयार होना है ऐसा याद आते ही वह तुरंत दूध के टब से बाहर निकलता है और मुलायम कपड़े से जाकर वस्त्र कक्ष में अपने गीले शरीर को पूछता है तथा वह पूजा के लिए पीले रंग का मलमल का कुर्ता और उसके साथ लाल रंग की मलमल की धोती पहनता है उसके ऊपर कधे पर भूरे रंग का उत्तराईया रखता है तथा इसके बाद अपने सिर को रत्नों से चरित्र सोने का मुकुट पहन कर तैयार हो जाता है राजा को भी पूजा के लिए जाना था इसलिए वह नंगे पैर अपने कक्ष से बाहर निकलता है बाहर निकलकर वह आभूषणों से भरे कास्ट अलमारी में से हीरे और मोती से चढ़े माला पहनता है तथा बाजू में बाजू बंद पहनता है और अपने शरीर पर सोने का छत्र पहन कर तैयार हो जाता है

आज राजा खुद ही देवता के समान दिख रहा था उसके कक्ष से बाहर निकलते ही सभी संत्ररी सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाते हैं तथा वह पूजा कक्ष की ओर निकल चलता है उसके साथ 11 सैनिकों की एक टुकड़ी उसकी सुरक्षा देते हुए साथ में चल लेती है ।

राजा पूजा कक्ष में पहुंचकर सबसे पहले देवी देवताओं को प्रणाम करता है फिर वह अपनी माता देवकी के पैर छूता है और आशीर्वाद मांगता है देवकी उसे यशस्वी भव और विश्वविजय होने का आशीर्वाद देती है फिर राजा अपनी बड़ी बहन नंदिनी के पैर छूकर आशीर्वाद मांगता है नंदनी उसको कंधे से पकड़ कर उठाती है और सबसे पहले उसे उसके जन्मदिन की ढेरों बधाइयां देती है और उसे अपने गले से लगा लेती है तथा उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती है

राजा देवकी से पूछता है मां चले, क्या पूजा की सारी तैयारियां हो चुकी हैं और क्या हमें अब कुल देवता के मंदिर की ओर प्रस्थान करना चाहिए इस पर देवकी बोलती है की सारी तैयारियां तो हमारी पुत्री नंदिनी ने ही पूरी कर ली थी सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं इसलिए अब हम मंदिर की ओर प्रस्थान कर सकते हैं राजा अपनी माता देवकी और अपनी बड़ी बहन नंदिनी के साथ राजमहल के द्वार पर पहुंचता है जहां पहले से ही उन्हें ले जाने के लिए सेना की एक टुकड़ी हाथी के साथ खड़ी थी

राजमहल के द्वार पर खड़े हाथी पर राजा अपनी माता और प्रिय बहन के साथ बैठ जाता है । इस राजपरिवार का रिवाज रहा है कि जब भी कुलदेवता के मंदिर में दर्शन करने जाते थे तो हाथी पर ही बैठ कर जाते थे तथा पूरा परिवार एक ही हाथी पर बैठकर जाता था अब स्थिति यह थी कि हाथी के ऊपर बैठने के लिए एक मचान बना हुआ था जिस पर सबसे आगे राजा बैठा था तथा उनके पीछे एक तरफ राजमाता देवकी बैठी थी दूसरी तरफ उनकी बहन नंदिनी बैठी थी। परम्परा के अनुसार पूरा परिवार खुले हाथी पर बैठकर प्रजा का अभिवादन स्वीकार करके जाता था राजमहल से लेकर कुल देवता के मंदिर तक दोनों तरफ प्रजा थी तथा राजा की सेना उन्हें लेकर मंदिर की ओर जा थी । इसके आगे ढोल नगाड़े बजाते हुए सेना की टुकड़ी चल रही थी

प्रजा महाराज विक्रम की जय के नारे लगा रही थी साथ ही प्रजा महाराज विक्रम की जन्मदिन की ढेरों बधाइयां दे रहे थे । राज परिवार पर प्रजा अपने घर की छतों से पुष्प वर्षा कर रही थी पुष्पवर्षा ऐसी लग रही थी मानो पूरी सृष्टि राज परिवार के सदस्यों को पुष्प वर्षा कर आशीर्वाद दे रही थी। हाथी के ऊपर बैठे राजा , उनकी माता और बहन हाथी के चलने से कभी एक तरफ तो कभी दूसरी तरफ झुक जा रहे थे राजा आगे बैठे हुए थे तथा उन्होंने अपने हाथ अपनी जांघों पर रखे हुए थे जिससे उनके कुहुनी मुड़ी हुई थी ।

हाथी के चलने से राजा जैसे दाहिने झुकते हैं उनकी दाहिनी हाथ उनके पीछे बैठी माता की चूच्ची से को छू जा रही थी जिससे राजमाता को उत्तेजना का एहसास हो जाता है इसी तरह जब राजा बाईं तरफ झुकते हैं तब उनका बायां केहुनी नंदिनी के दाहिने चूची को छू जाता था इस तरह राजा की मां और बहन की चूची केबार-बार स्पर्श होने से उनमें उत्तेजना आने लगी थी क्योंकि हाथी के ऊपर बैठने के लिए जगह काफी नहीं था इसीलिए तीनों को सटकर ही बैठना पड़ रहा था । इसके अलावा उत्तेजना का अनुभव होने के कारण राजमाता जानबूझकर अपनी दाईं चूची को राजा केहुनि पर रगड़ती है।राजकुमारी नंदिनी भी अपने दाहिने चुची राजा के हाथ पर रगड़ कर उत्तेजना का मजा ले रही थी । राजमाता देवकि चुन्नी के अं द र से ले जाकर अपना एक हाथ अपनी दाहिनी चूची पर रख कर उसे दबाने लगी है और बाईं चूची को राजा के दाहिने केहूनी पर रगड़ती है ।

इसी तरह राजकुमारी नंदिनी अपनी दाहिनी चूची को राजा के हाथ से रगड़ती है । दूसरी तरफ अपना दाहिने हाथ से अपनी चूचीको रगड़ रहे थे साथ ही वह बीच-बीच में घाघरे के ऊपर से ही योनि को भी सहला देती हैं । राजा का काफिला आगे बढ़ते हुए जैसे ही मंदिर के दरवाजे पर पहुंचता है वहां पर 151 पंडित एक साथ शंख की ध्वनि करने लगते हैं जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी सृष्टि इस राज परिवार पर अपना खुशी दर्शा रही है।

इधर मंदिर के बड़े प्रांगणमें सभी राज्यों से आए हुए राजा अपनी सुंदर और कामुक रानी और राजकुमारियों तथा राजकुमारों के साथ अपना बैठने की निर्धारित स्थान को ग्रहण कर चुके थे ।राजा मंदिर के मुख्य द्वार पर हाथी से अपने माता तथा बहन के साथ उतरते हैं । राजपुरोहित उन्हें मंदिर के मुख्य द्वार पर आकर राजा का अभिनंदन करते हैं राजा के साथ उनकी बहन नंदनी तथा राजमाता देवकी भी खड़ी थी राजा राजपुरोहित का आशीर्वाद लेने के लिए उनके पैर छूते हैं उनके साथी नंदिनी और राज माता भी राजपुरोहित का आशीर्वाद लेने के लिए उनके चरण स्पर्श करती हैं राजपुरोहित का आशीर्वाद लेने के लिए तीनों एक साथ ही झुक जाते हैं और राजपुरोहित एक साथ ही तीनों को यशस्वी भव तथा सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद देते हैं राजा अब मंदिर के गर्भ गृह की तरफ बढ़ने के लिए आगे बढ़ते हैं

इसके पहले वह पड़ोसी राज्यों के आए राजा से मिलने के लिए चल चलते हैं सबसे पहले वह टीकमगढ़ के राजा माधव सिंह से मिलते हैं माधव सिंह राजा के पिता के काफी घनिष्ठ मित्र थे दोनों एक ही गुरु के शिष्य थे राजा आगे बढ़कर उनके चरण स्पर्श करता है जिन्हें माधव सिंह ढेर सारा आशीर्वाद देते हैं राजा आगे बढ़ते हैं तथा रानी से आशीर्वाद लेते हैं रानी से आशीर्वाद लेकर राजा जैसे ही अपना सर ऊपर उठाते हैं उन्हें रानी के बगल में एक अप्सरा दिखाई देती है जिन्हें देखकर राजा का मुंह खुला रह जाता है यह और कोई नहीं टीकमगढ़ के राजा माधव सिंह के पुत्री राजकुमारी रत्ना थी । राजकुमारी रत्ना जो राजा विक्रम सिंह को देखने के लिए काफी उत्सुक थी क्योंकि राजा विक्रम सिंह के गठीला शरीर , चपलता और सुंदरता की दूर-दूर तक ख्याति थी, जिस राजकुमार को देखेने दूर दूर से रानी आई थी वह राजकुमार एक राजकुमारी के सामने प्रणय निवेदन की सोच रहा था उसकी नजरें राजकुमारी के चेहरे से हट ही नहीं रही थी , वह तो स्वर्ग से उतरी साक्षात अप्सरा दिख रही थी । राजकुमारी रत्ना 5 फीट 4 इंच लम्बी थी , संगमरमर जैसा गोरा बदन जिस पर ऐसा लगता था की उंगली रख दो तो चमड़ी फट जाएगी, उसकी खड़ी नाक, झील सी कजरारी आंखें, सुंदर होंठ , सुराही दार गर्दन उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे । उसके उन्नत वक्ष राजा विक्रम को आकर्षित कर रहे थे । सुडौल नितंब राजा के लिंग में तनाव पैदा कर रहा था ।

राजा लगातार राजकुमारी रत्ना को देखे जा रहा था जिससे शरमा कर राजकुमारी रत्ना थोड़ा सा घुंघट कर लेती है लेकिन उसे यह क्या पता था कि भविष्य में यही राजा विक्रम सिंह उसके घूंघट को तो उठाएगा ही साथ ही साथ उसकी योनि के घुंघट को भी वही उठाएगा । लेकिन यह बातें तो भविष्य के गर्त में छुपी हुई थी

राजा को इस तरह बुत बना खड़ा देख राजकुमारी नंदिनी राजा के पास आती है जिससे राजा विक्रम की तन्द्रा टूटती है । अभी राजमाता देवकी विक्रम को छेड़ते हुए कहती है पुत्र अगर आपका हो गया हो तो पुत्र मन्दिर के गर्भ गृह में चलें । मंदिर के गर्भ गृह में पहुंचते ही राजपुरोहित राजा का तिलक करते हैं उनको अक्षत लगाते हैं तथा पूजा आरम्भ करते हैं । मंत्रों का उच्चारण कर कुल देवता का आह्वान करते हैं। राजा, राजमाता और राजकुमारी तीनों पूजा करते हैं

इस दौरान राजा के दाहिनी ओर राजमाता और बाई ओर राजकुमारी नंदिनी थी । राजा की माता और बहन दोनों भी बला की खूबसूरत थी ऐसा लग रहा था मानो दोनों राजा की मां और बहन ना होकर राजा की प्रेमिका , उनकी पत्नियां हैं तीनों साथ में ही जल अर्पण करते हैं ऐसा लगता है तीनों जन्म जनता जन्मांतर से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं ।

पूजा समाप्त होने पर राजपुरोहित राजा को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हैं इस पर राजा राजपुरोहित के पैर छू का आशीर्वाद लेते हैं। फिर राजपुरोहित राजा को अपनी माता से आशीर्वाद लेने को बोलते हैं जिस पर राजा अपनी माता देवकी के पैर छूने के लिए के लिए झुकता है। राजमाता देवकी अपने दोनों हाथ राजा के सर पर रखकर राजा को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती है । राजा आशीर्वाद लेते समय थोड़ा रानी के नजदीक जाकर झुक गया था जिसके कारण उठते समय राजा का चेहरा राजमाता के घाघरे के उस जगह से छू जाती है जिसके नीचे राजमाता का खजाना उसकी योनि थी।

राजमाता की योनि से भीनी भीनी खुशबू आ रही होती है जो राजा को मदहोश कर देती है। राजमाता को इतने लोगों के सामने राजा का मुंह घागरे से छू जाने के कारण वह थोड़ी असहज हो जाती है। राजा के मुंह और राजमाता की योनि के बीच केवल घाघरे का एक कपड़ा था जो अगर इस वक्त नहीं होता तो राजा के सामने राजमाता की योनि, राजा की जन्मस्थली सामने दिख रही होती ।

राजा फिर अपनी बहन राजकुमारी नंदिनी का आशीर्वाद लेने के लिए झुकता है राजकुमारी उसे उठाकर अपने गले लगा लेती है राजकुमारी की दोनों चूचियां राजा की चौड़ी छाती में छिप जाती है जिससे राजा को मजा आता है, पहले से गरम नंदिनी को भी मस्ती चढ़ जाती है और वह राजकुमारी को सबके सामने भीच लेता है और उसकी नरम चूच्चियों को अपने सीने में दबा लेता है राजपुरोहित ने तीनों को हाथ जोड़कर कुलदेवता से आंख बंद करके कुछ मांगने को कहते हैं । इस तरह पूजा समाप्त होती है और राजा अपनी माता और बहन के साथ राजमहल की ओर लौट चलते हैं । आज रात राजमहल में राजा के जन्मदिन के अवसर पर एक बड़े भोज का आयोजन किया है । राजा सभी राजाओं को महाभोज में आने का निमंत्रण देकर वापस राजमहल की ओर अपनी माता और बहन के साथ चल देता हैं ।

रास्ते में राजकुमारी नंदिनी राजा को छेड़ते हुए कहती है भ्राता क्या आपको राजकुमारी रत्ना भा गई थी इस पर राजकुमार जवाब नहीं देते हैं और कहते हैं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन राज माता देवकी ने कहा कि राजकुमारी रत्ना बला की खूबसूरत है तथा वह हमारे लल्ला की छल्ला बनने की पूरी योग्यता रखती है जिस पर राजकुमारी नंदिनी भी मंद मंद मुस्कुराती हुई राजमहल की ओर निकल पड़ते हैं।

अब आगे देखेंगे की भोज में क्या होता है
बहुत ही शानदार अपडेट है
 

Nevil singh

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Update 5
राजमाता देवकी झटके से राजा के स्नानागार से बाहर निकलती है और बाहर निकलते समय रांझा का हाथ पकड़कर पूजा के कक्ष की ओर चल जाती है अभी उसे होश नहीं था. उसके मन में पश्चाताप की और पाप की भावना घर करने लगती है. वह मन ही मन अपने को कोसने लगती है कि उसने आज यह क्या कर दिया उसे आत्मग्लानि होने लगती हैं कि कैसे उसने अपने पुत्र का लंड अपने हाथ में ले लिया था और सबसे बड़ी बात यह कि अपने पुत्र का लंड अपने हाथ में पकड़े हुए रंझा ने उसे देख लिया। शायद रंझा ने अगर राजमाता को इस स्थिति में नहीं देखा होता तो शायद देवकी को आत्मग्लानि भी ना हो रही होती। वाकई वह खुद ही नहीं समझ पा रही थी कि वह खुश है या उसे पश्चाताप का अनुभव हो रहा है

राजा के कक्ष से पूजा के कक्ष तक पहुंचने में उसे ऐसा लग रहा था मानो यह दूरी खत्म ही नहीं हो रही थी कभी वाह यह सोचकर शर्मा रही थी की क्या वह अभी भी इतनी जवान और सुंदर है कि उसके पुत्र का लंड उसे देख कर खड़ा हो गया है । उसे क्या पता था की हर एक पुत्र अपनी मां को पाने की , उसे चोदने की आकांक्षा रखता है और जो पुत्र अपने माता के प्रति ऐसा प्रेम आकर्षण नहीं रखता है उसके तो पुरुष होने पर ही संदेह है देवकी फिर अपने पुत्र के लंड के स्पर्श के अनुभव को याद कर पुनः उत्तेजना महसूस करनी लगती है और सोचने लगती है कि कितना कड़क और गर्म लौड़ा है मेरे पुत्र का. अपने पुत्र के लंड के गुलाबी सुपारी को याद कर वह मंत्र मुग्ध हो जाती है ।

यही सोचते सोचते देवकी पूजा कक्ष के पहुंच जाती है जहां पूर्व से ही नंदिनी पूजा के सामानों की व्यवस्था में लगी हुई है नंदिनी ने यहां पर पूजा की थाली तैयार कर ली थी जिसमें चंदन रोली अक्षत और पूजा के सभी सामान रखे हुए थे तथा एक दूसरे वाले पात्र में रंग बिरंगे फूल रखे हुए थे राजमाता पूजा कक्ष में पहुंचकर नंदिनी से पूछती है क्या पूजा की सारी तैयारी हो चुकी है आपने पूजा के लिए सभी आवश्यक वस्तुएं एकत्रित कर ली है । नंदनी हां में जवाब देती है और बोलती है कि भ्राता यदि तैयार हो गए हो तो हम सभी चलने को तैयार हैं । देवकी इस पर क्या बोलती है नंदनी के ऐसा पूछने से उसे अभी कुछ समय पहले का घटनाक्रम उसकी आंखों के सामने से गुजर जाता है। वह कैसे बताए कि वह गई तो थी अपने पुत्र को जल्दी तैयार करने के लिए लेकिन वहां उसने खुद ही अपने पूत्रके मोटे लिंग का दर्शन कर लिया है दर्शन तो छोड़िए उसने लिंग को स्पर्श करके उसे मुट्ठी में बांध लिया था फिर भी वह नंदनी को बोलती है कि बेटा आपके भ्राता जल्दी तैयार होकर पर आ रहे हैं।

इधर राजा स्नानागार में इस घटना के बाद तुरंत स्नान करने के लिए दूध से भरे मिट्टी के बड़े टब में घुस जाता है तथा अपने पूरे शरीर को रगड़ करके, अपने मोटे लोड़े को दूध से रगड़ रगड़ कर साफ़ करने लगता है उसे अभी की घटी घटना का कोई पश्चाताप नहीं था बल्कि उसकी तो मनोकामना आज पूर्ण हुई है कि उसने अपनी प्रिय माता को अपना लंड दिखाया ही नहीं है बल्कि उसके हाथ में में अपना लन्ड भी दिया था। वह आज की घटना के एक बात से बहुत खुश था की उसकी माता देवकी ने अपने लल्ला का लंड हाथ में तो पकड़ा था लेकिन वह उसे छोड़ने का नाम नहीं ले रही थी जबकि अगर चाहती तो उसे लंड पर से हाथ हटाने का पूरा अवसर था

यह सोच कर राजा मंद मंद मुस्कुराए लगता है और सोचने लगता है की एक दूसरे के यौन अंगों और जननांगों को देखने की लालसा दोनों माता और पुत्र में लगी हुई है वह सोचने लगता है की मेरी माता की योनि कैसी होगी मेरी जन्मस्थली कैसी होगी क्या मैं कभी अपनी जन्मस्थली के दर्शन पाकर धन्य हो पाऊंगा और वह मन में सोचता है कि आज मैं अपने कुलदेवता से ही यही आशीर्वाद मांगुंगा की मुझे अपनी माता के घाघरे के नीचे स्थित योनि जोकि मेरी जन्म स्थली है मेरा जन्म स्थान है , उसके दर्शन का और उसे स्पर्श करने का आशीर्वाद प्रदान करें ।

राजा को इस बात की थोड़ी भी भनक नहीं थी कि उसकी माता राजमाता देवकी ने चंद घंटे पहले ही उसके लंड की कल्पना करते हुए अपनी योनि में उंगली किया था । उसने अपनी बुर को रगड़ रगड़ के पानी निकाला था उसे क्या पता था कि उसकी माता श्री उसके लंड के प्रति आकर्षित है

तभी राजा को याद आता है कि आज उसे कुलदेवता की पूजा के लिए जल्दी तैयार होना है ऐसा याद आते ही वह तुरंत दूध के टब से बाहर निकलता है और मुलायम कपड़े से जाकर वस्त्र कक्ष में अपने गीले शरीर को पूछता है तथा वह पूजा के लिए पीले रंग का मलमल का कुर्ता और उसके साथ लाल रंग की मलमल की धोती पहनता है उसके ऊपर कधे पर भूरे रंग का उत्तराईया रखता है तथा इसके बाद अपने सिर को रत्नों से चरित्र सोने का मुकुट पहन कर तैयार हो जाता है राजा को भी पूजा के लिए जाना था इसलिए वह नंगे पैर अपने कक्ष से बाहर निकलता है बाहर निकलकर वह आभूषणों से भरे कास्ट अलमारी में से हीरे और मोती से चढ़े माला पहनता है तथा बाजू में बाजू बंद पहनता है और अपने शरीर पर सोने का छत्र पहन कर तैयार हो जाता है

आज राजा खुद ही देवता के समान दिख रहा था उसके कक्ष से बाहर निकलते ही सभी संत्ररी सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाते हैं तथा वह पूजा कक्ष की ओर निकल चलता है उसके साथ 11 सैनिकों की एक टुकड़ी उसकी सुरक्षा देते हुए साथ में चल लेती है ।

राजा पूजा कक्ष में पहुंचकर सबसे पहले देवी देवताओं को प्रणाम करता है फिर वह अपनी माता देवकी के पैर छूता है और आशीर्वाद मांगता है देवकी उसे यशस्वी भव और विश्वविजय होने का आशीर्वाद देती है फिर राजा अपनी बड़ी बहन नंदिनी के पैर छूकर आशीर्वाद मांगता है नंदनी उसको कंधे से पकड़ कर उठाती है और सबसे पहले उसे उसके जन्मदिन की ढेरों बधाइयां देती है और उसे अपने गले से लगा लेती है तथा उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती है

राजा देवकी से पूछता है मां चले, क्या पूजा की सारी तैयारियां हो चुकी हैं और क्या हमें अब कुल देवता के मंदिर की ओर प्रस्थान करना चाहिए इस पर देवकी बोलती है की सारी तैयारियां तो हमारी पुत्री नंदिनी ने ही पूरी कर ली थी सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं इसलिए अब हम मंदिर की ओर प्रस्थान कर सकते हैं राजा अपनी माता देवकी और अपनी बड़ी बहन नंदिनी के साथ राजमहल के द्वार पर पहुंचता है जहां पहले से ही उन्हें ले जाने के लिए सेना की एक टुकड़ी हाथी के साथ खड़ी थी

राजमहल के द्वार पर खड़े हाथी पर राजा अपनी माता और प्रिय बहन के साथ बैठ जाता है । इस राजपरिवार का रिवाज रहा है कि जब भी कुलदेवता के मंदिर में दर्शन करने जाते थे तो हाथी पर ही बैठ कर जाते थे तथा पूरा परिवार एक ही हाथी पर बैठकर जाता था अब स्थिति यह थी कि हाथी के ऊपर बैठने के लिए एक मचान बना हुआ था जिस पर सबसे आगे राजा बैठा था तथा उनके पीछे एक तरफ राजमाता देवकी बैठी थी दूसरी तरफ उनकी बहन नंदिनी बैठी थी। परम्परा के अनुसार पूरा परिवार खुले हाथी पर बैठकर प्रजा का अभिवादन स्वीकार करके जाता था राजमहल से लेकर कुल देवता के मंदिर तक दोनों तरफ प्रजा थी तथा राजा की सेना उन्हें लेकर मंदिर की ओर जा थी । इसके आगे ढोल नगाड़े बजाते हुए सेना की टुकड़ी चल रही थी

प्रजा महाराज विक्रम की जय के नारे लगा रही थी साथ ही प्रजा महाराज विक्रम की जन्मदिन की ढेरों बधाइयां दे रहे थे । राज परिवार पर प्रजा अपने घर की छतों से पुष्प वर्षा कर रही थी पुष्पवर्षा ऐसी लग रही थी मानो पूरी सृष्टि राज परिवार के सदस्यों को पुष्प वर्षा कर आशीर्वाद दे रही थी। हाथी के ऊपर बैठे राजा , उनकी माता और बहन हाथी के चलने से कभी एक तरफ तो कभी दूसरी तरफ झुक जा रहे थे राजा आगे बैठे हुए थे तथा उन्होंने अपने हाथ अपनी जांघों पर रखे हुए थे जिससे उनके कुहुनी मुड़ी हुई थी ।

हाथी के चलने से राजा जैसे दाहिने झुकते हैं उनकी दाहिनी हाथ उनके पीछे बैठी माता की चूच्ची से को छू जा रही थी जिससे राजमाता को उत्तेजना का एहसास हो जाता है इसी तरह जब राजा बाईं तरफ झुकते हैं तब उनका बायां केहुनी नंदिनी के दाहिने चूची को छू जाता था इस तरह राजा की मां और बहन की चूची केबार-बार स्पर्श होने से उनमें उत्तेजना आने लगी थी क्योंकि हाथी के ऊपर बैठने के लिए जगह काफी नहीं था इसीलिए तीनों को सटकर ही बैठना पड़ रहा था । इसके अलावा उत्तेजना का अनुभव होने के कारण राजमाता जानबूझकर अपनी दाईं चूची को राजा केहुनि पर रगड़ती है।राजकुमारी नंदिनी भी अपने दाहिने चुची राजा के हाथ पर रगड़ कर उत्तेजना का मजा ले रही थी । राजमाता देवकि चुन्नी के अं द र से ले जाकर अपना एक हाथ अपनी दाहिनी चूची पर रख कर उसे दबाने लगी है और बाईं चूची को राजा के दाहिने केहूनी पर रगड़ती है ।

इसी तरह राजकुमारी नंदिनी अपनी दाहिनी चूची को राजा के हाथ से रगड़ती है । दूसरी तरफ अपना दाहिने हाथ से अपनी चूचीको रगड़ रहे थे साथ ही वह बीच-बीच में घाघरे के ऊपर से ही योनि को भी सहला देती हैं । राजा का काफिला आगे बढ़ते हुए जैसे ही मंदिर के दरवाजे पर पहुंचता है वहां पर 151 पंडित एक साथ शंख की ध्वनि करने लगते हैं जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी सृष्टि इस राज परिवार पर अपना खुशी दर्शा रही है।

इधर मंदिर के बड़े प्रांगणमें सभी राज्यों से आए हुए राजा अपनी सुंदर और कामुक रानी और राजकुमारियों तथा राजकुमारों के साथ अपना बैठने की निर्धारित स्थान को ग्रहण कर चुके थे ।राजा मंदिर के मुख्य द्वार पर हाथी से अपने माता तथा बहन के साथ उतरते हैं । राजपुरोहित उन्हें मंदिर के मुख्य द्वार पर आकर राजा का अभिनंदन करते हैं राजा के साथ उनकी बहन नंदनी तथा राजमाता देवकी भी खड़ी थी राजा राजपुरोहित का आशीर्वाद लेने के लिए उनके पैर छूते हैं उनके साथी नंदिनी और राज माता भी राजपुरोहित का आशीर्वाद लेने के लिए उनके चरण स्पर्श करती हैं राजपुरोहित का आशीर्वाद लेने के लिए तीनों एक साथ ही झुक जाते हैं और राजपुरोहित एक साथ ही तीनों को यशस्वी भव तथा सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद देते हैं राजा अब मंदिर के गर्भ गृह की तरफ बढ़ने के लिए आगे बढ़ते हैं

इसके पहले वह पड़ोसी राज्यों के आए राजा से मिलने के लिए चल चलते हैं सबसे पहले वह टीकमगढ़ के राजा माधव सिंह से मिलते हैं माधव सिंह राजा के पिता के काफी घनिष्ठ मित्र थे दोनों एक ही गुरु के शिष्य थे राजा आगे बढ़कर उनके चरण स्पर्श करता है जिन्हें माधव सिंह ढेर सारा आशीर्वाद देते हैं राजा आगे बढ़ते हैं तथा रानी से आशीर्वाद लेते हैं रानी से आशीर्वाद लेकर राजा जैसे ही अपना सर ऊपर उठाते हैं उन्हें रानी के बगल में एक अप्सरा दिखाई देती है जिन्हें देखकर राजा का मुंह खुला रह जाता है यह और कोई नहीं टीकमगढ़ के राजा माधव सिंह के पुत्री राजकुमारी रत्ना थी । राजकुमारी रत्ना जो राजा विक्रम सिंह को देखने के लिए काफी उत्सुक थी क्योंकि राजा विक्रम सिंह के गठीला शरीर , चपलता और सुंदरता की दूर-दूर तक ख्याति थी, जिस राजकुमार को देखेने दूर दूर से रानी आई थी वह राजकुमार एक राजकुमारी के सामने प्रणय निवेदन की सोच रहा था उसकी नजरें राजकुमारी के चेहरे से हट ही नहीं रही थी , वह तो स्वर्ग से उतरी साक्षात अप्सरा दिख रही थी । राजकुमारी रत्ना 5 फीट 4 इंच लम्बी थी , संगमरमर जैसा गोरा बदन जिस पर ऐसा लगता था की उंगली रख दो तो चमड़ी फट जाएगी, उसकी खड़ी नाक, झील सी कजरारी आंखें, सुंदर होंठ , सुराही दार गर्दन उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे । उसके उन्नत वक्ष राजा विक्रम को आकर्षित कर रहे थे । सुडौल नितंब राजा के लिंग में तनाव पैदा कर रहा था ।

राजा लगातार राजकुमारी रत्ना को देखे जा रहा था जिससे शरमा कर राजकुमारी रत्ना थोड़ा सा घुंघट कर लेती है लेकिन उसे यह क्या पता था कि भविष्य में यही राजा विक्रम सिंह उसके घूंघट को तो उठाएगा ही साथ ही साथ उसकी योनि के घुंघट को भी वही उठाएगा । लेकिन यह बातें तो भविष्य के गर्त में छुपी हुई थी

राजा को इस तरह बुत बना खड़ा देख राजकुमारी नंदिनी राजा के पास आती है जिससे राजा विक्रम की तन्द्रा टूटती है । अभी राजमाता देवकी विक्रम को छेड़ते हुए कहती है पुत्र अगर आपका हो गया हो तो पुत्र मन्दिर के गर्भ गृह में चलें । मंदिर के गर्भ गृह में पहुंचते ही राजपुरोहित राजा का तिलक करते हैं उनको अक्षत लगाते हैं तथा पूजा आरम्भ करते हैं । मंत्रों का उच्चारण कर कुल देवता का आह्वान करते हैं। राजा, राजमाता और राजकुमारी तीनों पूजा करते हैं

इस दौरान राजा के दाहिनी ओर राजमाता और बाई ओर राजकुमारी नंदिनी थी । राजा की माता और बहन दोनों भी बला की खूबसूरत थी ऐसा लग रहा था मानो दोनों राजा की मां और बहन ना होकर राजा की प्रेमिका , उनकी पत्नियां हैं तीनों साथ में ही जल अर्पण करते हैं ऐसा लगता है तीनों जन्म जनता जन्मांतर से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं ।

पूजा समाप्त होने पर राजपुरोहित राजा को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हैं इस पर राजा राजपुरोहित के पैर छू का आशीर्वाद लेते हैं। फिर राजपुरोहित राजा को अपनी माता से आशीर्वाद लेने को बोलते हैं जिस पर राजा अपनी माता देवकी के पैर छूने के लिए के लिए झुकता है। राजमाता देवकी अपने दोनों हाथ राजा के सर पर रखकर राजा को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती है । राजा आशीर्वाद लेते समय थोड़ा रानी के नजदीक जाकर झुक गया था जिसके कारण उठते समय राजा का चेहरा राजमाता के घाघरे के उस जगह से छू जाती है जिसके नीचे राजमाता का खजाना उसकी योनि थी।

राजमाता की योनि से भीनी भीनी खुशबू आ रही होती है जो राजा को मदहोश कर देती है। राजमाता को इतने लोगों के सामने राजा का मुंह घागरे से छू जाने के कारण वह थोड़ी असहज हो जाती है। राजा के मुंह और राजमाता की योनि के बीच केवल घाघरे का एक कपड़ा था जो अगर इस वक्त नहीं होता तो राजा के सामने राजमाता की योनि, राजा की जन्मस्थली सामने दिख रही होती ।

राजा फिर अपनी बहन राजकुमारी नंदिनी का आशीर्वाद लेने के लिए झुकता है राजकुमारी उसे उठाकर अपने गले लगा लेती है राजकुमारी की दोनों चूचियां राजा की चौड़ी छाती में छिप जाती है जिससे राजा को मजा आता है, पहले से गरम नंदिनी को भी मस्ती चढ़ जाती है और वह राजकुमारी को सबके सामने भीच लेता है और उसकी नरम चूच्चियों को अपने सीने में दबा लेता है राजपुरोहित ने तीनों को हाथ जोड़कर कुलदेवता से आंख बंद करके कुछ मांगने को कहते हैं । इस तरह पूजा समाप्त होती है और राजा अपनी माता और बहन के साथ राजमहल की ओर लौट चलते हैं । आज रात राजमहल में राजा के जन्मदिन के अवसर पर एक बड़े भोज का आयोजन किया है । राजा सभी राजाओं को महाभोज में आने का निमंत्रण देकर वापस राजमहल की ओर अपनी माता और बहन के साथ चल देता हैं ।

रास्ते में राजकुमारी नंदिनी राजा को छेड़ते हुए कहती है भ्राता क्या आपको राजकुमारी रत्ना भा गई थी इस पर राजकुमार जवाब नहीं देते हैं और कहते हैं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन राज माता देवकी ने कहा कि राजकुमारी रत्ना बला की खूबसूरत है तथा वह हमारे लल्ला की छल्ला बनने की पूरी योग्यता रखती है जिस पर राजकुमारी नंदिनी भी मंद मंद मुस्कुराती हुई राजमहल की ओर निकल पड़ते हैं।

अब आगे देखेंगे की भोज में क्या होता है
Jakash update dost
 

sunoanuj

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Bahut hee barhiya kkahani hai … 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻🌷🌷🌷
 

Ravi2019

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शुक्रिया दोस्तों... यदि आप लोगों को ये कहानी पसन्द आ रही है, तभी मै ये कहानी continue करूंगा। हौसला आफजाई के लिए शुक्रिया
 
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