सूचना बड़ी साफ थी। शक्तिसिंह को उपनी धोती से सिर्फ लंड बाहर निकालना था और महारानी को घाघरा उठाकर अपनी चुत खोल देनी थी। अब इस वृतांत में सिर्फ दो ही पात्रों की भूमिका थी... लंड और चुत!! शक्तिसिंह को महारानी पद्मिनी के ऊपर चढ़ना जरूर था पर यह ध्यान रखते हुए की उसकी छाती महारानी के स्तनों का ना छूए!!
महारानी को जितनी हो सके उतनी टाँगे चौड़ी करनी थी ताकि शक्तिसिंह का शरीर उससे कम से कम संपर्क में आए।
इतनी सूचनाओ को बावजूद, महारानी ने कब शक्तिसिंह के लंड को अपने हाथ में ले लिए उसका उन्हे खुद पता न चला। आखिर इस अंधेरे में चुत में घुसने के लिए दिशा निर्देश की आवश्यकता भी थी। पर लंड हाथ में लेने के बाद, उसकी लंबाई और मोटाई का अंदाजा लगने के बाद, महारानी के कंठ से "आहह" निकल जाना काफी स्वाभाविक था। महाराज के लंड के मुकाबले वह सभी मामलों में चार गुना था... ऐसा लंड अपनी गरम गीली चुत में लेकर वह धन्य होने वाली थी इस विचार से ही उनका मन गुनगुना उठा।
पर महारानी की "आहह" ने राजमाता को तुरंत ही सतर्क कर दिया।
"पद्मिनी... !!! " उन्होंने बड़े तीखे सुर में आवाज लगाई
राजमाता की आवाज सुनते ही महारानी की लंड पर पकड़ ढीली हो गई पर उन्होंने उसे छोड़ा नहीं। वह अब भी इस कड़े स्नायु के खंबे को ओर महसूस करना चाहती थी। पूरे लंड पर हल्के से हाथ फेरते हुए उसने लंड की चमड़ी, उसके नसें, उसका सुपाड़ा सब कुछ नाप लिया।
अब कराहने की बारी शक्तिसिंह की थी। बेहद खूबसूरत महारानी का काम-जवर से तपता बदन उसके नीचे सोया था। महारानी के विशाल स्तन उनकी चोली फाड़कर बाहर आने के लिए तड़प रहे थे। महारानी की चुत गीली होकर भांप छोड़ रही थी और उसकी गंध पूरे तंबू में फैल गई थी।
शक्तिसिंह का गला सुख गया। उसे अब एहसास हो रहा था की कितना कठिन कार्य था!! उसका तो मन कर रहा था की वह नीचे सोई महारानी को रगड़ रगड़ कर भरपूर चुदाई करे। पर राजमाता की उपस्थिति में उनकी आज्ञा का पालन न करना मतलब मौत को दावत देने के बराबर था।
शक्तिसिंह ने धीरे से महारानी के हाथों से अपने लंड को छुड़वाया, उस दौरान उसके सुपाड़े पर लगी वीर्य की बूंदों को अपनी उंगली से महारानी को पोंछते देख वह सहम गया। जिस सख्ती से महारानी ने लंड को पकड़ रखा था उससे यह साफ था की वह बेहद उत्तेजित हो गई थी।
"महारानी साहिबा की जय हो!!" शक्तिसिंह ने इस तरह से कहा ताकि राजमाता सुन सके, और उन्हे यह एहसास हो की वह अपनी जिम्मेदारी और आदेश को भुला नहीं था।
शक्तिसिंह की सलामी से महारानी भी सतर्क हो गई और उसने अपने दोनों हाथ बिस्तर पर नीचे रख दिए, जिस तरह उन्हे कहा गया था। राजमाता थोड़े से तनाव में इस द्रश्य को देख रही थी। महारानी को अपने हाथ नीचे रखता देख उन्हे स्थिति नियंत्रण में आती लगी। इन दोनों को अंतरंग होते देख राजमाता की चुत भी गीली होने लगी थी।
शुरुआत में राजमाता को यह डर था की शक्तिसिंह का हथियार देखकर कहीं महारानी घबरा न जाए। पर महारानी की शारीरिक भाषा से यह स्पष्ट था की वह उसके लंड को अपनी राजवी गुफा में लेने के लिए आतुर थी। राजमाता भी गरम साँसे छोड़ रही थी। आगे जो होने वाला था उसकी अपेक्षा में उनकी चुत ने नीचे बिछी रजाई पर गीला धब्बा बना दिया था।
महारानी पद्मिनी ने शक्तिसिंह की आँखों में आँखें डालकर देखा और फिर अपनी दोनों जांघें मस्ती से चौड़ी कर दी। उनका जिस्म, शक्तिसिंह के लंड-प्रवेश के लिए तत्पर हो चुका था।
रानी ने अपनी दोनों मुठ्ठियों को मजबूती से बंद कर रखा था। हकीकत में वह आनेवाली आनंद की घड़ी के स्वागत के लिए खुद को तैयार कर रही थी।
शक्तिसिंह के सुपाड़े का मुंह महारानी पद्मिनी की गुलाबी चुत के पंखुड़ी जैसे होंठों पर लगते ही, महारानी का पूरा जिस्म सिहर उठा। एक अजीब सा कंपन सारे शरीर को झुंझुनाने लगा। शक्तिसिंह को अपने लंड पर महारानी के चुत के बालों का नुकीला स्पर्श हुआ। अब वह हमला करने के लिए तैयार था।
शुरुआत में उसे थोड़े से प्रतिरोध सा महसूस हुआ क्योंकी महारानी ने अपना पूरा शरीर ऐसे भींच रखा था की चुत का द्वार सिकुड़ सा गया था और उसके होंठ भी अंदर की तरफ दब गए थे। उस सुराख के मुकाबले शक्तिसिंह का सुपाड़ा काफी बड़ा भी था।
शक्तिसिंह एक कर्त्तव्यनिष्ठ सैनिककी तरह, दर्द या चोट रूपी परिणाम की परवाह किए बगैर आगे बढ़ता रहा। नौसिखिया होने की वजह से उसे यह भी द्विधा थी की जिस छेद में वह घुसा रहा था वह सही था भी या नहीं। यह एक ऐसा युद्ध था जिसमे ना कोई नक्शा, ना कोई आयोजन और ना ही किसी युक्ति-प्रयुक्ति को अवकाश था। यह तो शक्तिसिंह और महारानी के जननांगों के बीच आपस की लड़ाई थी।
शुरुआती शारीरिक प्रतिरोध के पश्चात जब प्रथम प्रवेश सफलता पूर्वक हो गया फिर आगे की राह आसान बनती गई। रानी की चुत की दीवारों ने बड़े ही उन्माद के साथ लंड का स्वागत करते हुए मार्ग दे दिया था... साथ साथ उन दीवारों ने पर्याप्त मात्र में स्निग्ध रस का रिसाव शुरू कर दिया था ताकि मेहमान को जरा सी भी तकलीफ का एहसास ना हो।
लंड को स्वीकृति मिलते ही, वह महारानी पद्मिनी की चुत की अंधेरी गलियों में मस्ती से अंदर बाहर करने लगा। चिकनी चिपचिपी सतह पर लंड रगड़ खाते ही शक्तिसिंह की सिसकी निकल गई।
"आउच... आहह... हाँ... आह" महारानी ने भी कराहते हुए तुरंत अभिवादन किया।
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आखिरकार शक्तिसिंह का कौमार्यभंग हो ही गया। उसके टट्टों में अजीब सनसनी हो रही थी। वास्तविक चुदाई का अनुभव उसे हस्तमैथुन से काफी भिन्न महसूस हुआ। गरम, गीली और उत्तेजित चुत की तुलना ऋक्ष हथेली से कदापि नहीं की जा सकती। स्त्री को भोगने के लिए पुरुष क्यों इतने पगलाये रहते है इसका ज्ञान आज भलीभाँति हो गया शक्तिसिंह को!!
शुरुआती प्रवेश के आनंद से अभी वह उभर भी नहीं पाया था की तभी उसके कानों पर राजमाता की रूखी आवाज पड़ी.. "अब जैसा मैंने सिखाया था वैसे ही अंदर बाहर करना शुरू कर दे!!"
महारानी पद्मिनी, जो शक्तिसिंह के सख्त लंड को अपनी चुत की दीवारों के गिरफ्त में लेकर दुहने का आनंद ले ही रही थी तभी अपनी सास की आवाज ने उसकी मस्ती में खलल डाल दिया। तगड़े लंड के मोटे सुपाड़े ने चुत की दीवारों को जिस तरह चौड़ा कर रखा था, महारानी पद्मिनी तो वहीं उसकी कायल हो चली थी। वह चाहती थी की जितना लंबा हो सके इस समय को खींचा जाए।
क्या राजमाता ने खुद इस मूसल का भरपूर मज़ा, अभ्यास के बहाने लिया होगा? हो सकता है की उसकी कमीनी सास ने इस मुस्टंडे से भरपूर चुदवाया हो और अब वह उसे आनंद लेने से रोक रही हो!! पद्मिनी के दिमाग में ऐसे कई विचारों की शृंखला सी चल पड़ी थी। मन के किसी कोने में उसे इस बात का यकीन था की राजमाता ने पहले ही शक्तिसिंह के संग गुलछर्रे उड़ा लिए थे।
लिंग-प्रवेश के दौरान ही रानी की चुत ने स्खलित होते हुए एक डकार मार ली थी। चुत के अंदर काम-रस का गरम प्रवाह शक्तिसिंह को और उकसा रहा था। प्रथम योनि प्रवेश के कारण उसके लिए भी यह अनुभव नया और अनोखा था। इस गर्माहट के एहसास से फिर से शक्तिसिंह की आह निकल गई।
चुत गीली होने पर घर्षण कम होगा और स्खलन तक पहुचने की अवधि का बढ़ जाने का अंदेशा था। इस बारे में राजमाता ने पहले ही उसे चेतावनी दे रखी थी। संभोग की सीमा को न्यूनतम रखनी थी और उसे लंबा करने की जरा सी भी कोशिश नहीं करनी थी। जितना जल्दी हो सके उसे स्खलित होना था। उसने तुरंत अपना लंड रानी की चुत से बाहर निकाला और अपनी धोती के कपड़े से पोंछ लिया। पोंछते वक्त एक पल के लिए उसे लगा की वही स्खलित हो जाएगा। बड़ी मुश्किल से उसने अपने स्खलन को काबू में रखा। यदि उसका वीर्य चुत के बाहर ही निकल जाता तो पता नहीं राजमाता उसका क्या हश्र करती!!
लंड को दोबारा चुत में डालते ही महारानी की आह निकल गई। जिस तरह का आनंद उन्हे मिल रहा था उस वजह से उनकी ऐसी आवाज़ें निकल जाना स्वाभाविक था। पर फिलहाल इस खेल के नियम अलग थे और उनका पालन करवाने हेतु राजमाता उनके सर पर बैठी थी।
"ऊँहहह ... " महारानी पद्मिनी से रहा न गया और एक और आवाज निकल गई। रानी के दोनों हाथ तकिये के कौनों को पकड़कर भींच रहे थे। अगर उसने अपने हाथों को रोके नहीं रखा होता तो अब तक वह अपने नाखूनों से शक्तिसिंह की छाती को चीर देती। पर अफसोस, एक दूसरे को छूने की इजाजत नहीं थी। रानी अपनी कमर उठाकर शक्तिसिंह को जितना ज्यादा हो सके अपने अंदर ग्रहण करने की कोशिश कर रही थी।
रह रह कर शक्तिसिंह के मन में राजमाता के आदेश मंडरा रहे थे। आदेश था की लंड को केवल अंदर बाहर करना था और कुछ भी नहीं। राजमाता का आदेश उसका कर्तव्य था। उसके शरीर में प्रवेश चुके कामरूपी राक्षस को नियंत्रित करने की शक्तिसिंह ने ठान ली।
वह अपने आप से संवाद करने लगा "तुम्हें बस अंदर बाहर करना है... अंदर और बाहर.. अंदर और बाहर.. अंदर और बाहर.. और कुछ भी नहीं!!"
अब वह यंत्रवत रानी की चुत में अंदर और बाहर धक्के लगाने लगा। उसने अपनी उमड़ रही सारी भावनाओ को किनारे कर दिया। वह बस आँखें बंद कर धक्के लगाने लगा। इस बीच वह यह भी भूल गया की उसका लंड फिर से रानी के चुत रस से लिप्त होकर चिपचिपा हो गया था और उसे पोंछने की जरूरत थी।
वह ये भी भूल गया की उसके नीचे वासना से तड़पती हुई स्त्री थी जो चाहती थी की ऐसे यंत्रवत रूखे झटकों के बजाए उसकी जानदार चुदाई हो। वह चाहती थी की उनकी दोनों टांगों को शक्तिसिंह के कंधों पर टाँगकर अपनी चुत को इस हद तक चौड़ा करे की लंड के धक्के उसकी चुत की हर गहराई तक महसूस हो। उसकी चूचियाँ चोली फाड़कर बाहर आना चाहती थी ताकि मर्दाना हाथों से उन्हे मसला जा सके। पर राजमाता की उपस्थिति में ऐसा कुछ भी करना मुमकिन ना था।
फिर भी वह अपने चूतड़ों को झटके देने से रोक ना पाई। उसकी साँसे बेहद तेज चल रही थी। उसके उभार ऊपर नीचे हो रहे थे। वह रानी नहीं पर एक भूखी चुदक्कड़ स्त्री का स्वरूप धारण कर चुकी थी।
इन सारी बातों से बेखबर उनका वफादार सिपाही, आनन फानन में धक्के लगाए जा रहा था। शक्तिसिंह के मस्तिष्क में फिलहाल राजमाता के शब्द हावी हो चले थे।
पद्मिनी के जिस्म में आग लग चुकी थी। फिलहाल वह इतना चाहती थी की शक्तिसिंह के साथ उसकी चुदाई जितनी लंबी हो सके उतनी चलती रहे। उसने आखिर उत्तेजित होकर शक्तिसिंह का दाहिना हाथ पकड़ लिया। उस तरफ का द्रश्य राजमाता की नज़रों से बाहर था। इस निराशा में की वह अपने स्तनों को नहीं मसल पा रही, वह अपने दूसरे हाथ से अपनी गर्दन को सहलाने लगी।
अब तक जो कुछ भी चल रहा था वह राजमाता को योजना के मुताबिक होता नजर आया। वह जानती थी की वीर्य स्खलन के लिए शक्तिसिंह को अभी कुछ और झटकों की जरूरत थी। पिछली रात को शक्तिसिंह का लंड हिलाकर स्खलित होने में कितना वक्त लगा था उसकी गणना उनका दिमाग करने लगा। उसने कोई हस्तक्षेप करने से पहले थोड़ा और वक्त देने का फैसला किया।
राजमाता यह देख नहीं पा रही थी पर शक्तिसिंह यह महसूस कर पा रहा था की महारानी नीचे से अपनी कमर और चूतड़ उठाकर सामने से झटके लगा रही थी। उसने अपनी आँखें खोलकर अपनी नीचे लेटी वासना से लिप्त स्त्री की तरफ देखा। दोनों की नजरें मिली। महारानी पद्मिनी की आँखों में बस चुदाई का बहुत शक्तिसिंह को बखूबी नजर या रहा था। रानी के चेहरे की त्वचा उत्तेजना के कारण लाल और पसीने से लथबथ हो गई थी। रानी ने अपना चेहरा दाहिनी ओर किया और चुपके से शक्तिसिंह के उस तरफ के हाथ को चूम लिया।
शक्ति सिंह पिछले दिन से महारानी की खूबसूरती को बड़ी बेशर्मी से निहार रहा था। उसके सुडौल कूल्हे, लंबे पैर , और इन सबके ऊपर थे उसके बड़े बड़े मोटे भरे हुए स्तन!!! महारानी के चूमते ही वह बावरा हो गया। उसके लंड को स्खलन का एहसास भी होने लगा। पर वह अभी इस सिलसिले को खतम करना बिल्कुल नहीं चाहता था। अभी तो शुरुआत ही हुई थी... !! महारानी के सारे अंग, उनके हावभाव, यह चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे की उस दौर को चलते रहने देना चाहिए। इस बात की अनदेखी वह कैसे कर सकता था!! शक्तिसिंह ने एक नजर राजमाता पर डाली जो बड़े चाव से उन दोनों के संसर्ग को देख रही थी। वापिस उसने धक्के लगाने पर ध्यान केंद्रित किया।
शक्तिसिंह ने अब थोड़ा सा पीछे की तरफ होकर अपने हाथों को बिस्तर से उठा लिया। उसका आधा लंड महारानी की चुत से बाहर निकल गया। राजमाता यह देख पा रही थी की शक्तिसिंह का स्खलन अभी भी नहीं हुआ था, फिर ये बीच में रुक क्यूँ गया? उन्होंने गुस्से भरी आँखों से उसकी और देखा... शक्तिसिंह को उनकी क्रोधित नजर से जैसे ज्यादा फरक नहीं पड़ा। आधे से ज्यादा लंड चुत से बाहर निकल चुका था और केवल सुपाड़ा ही अंदर फंसा था। अगर वह हल्का सा खींचता तो पूरा लंड महारानी की चुत से निकल जाता। महारानी इस हरकत से बेचैन हो उठी थी। उन्होंने शक्तिसिंह के हाथ को पकड़कर अपनी तरफ खींचना चाहा पर वह उनकी पहुँच से दूर था।
राजमाता के आदेश अनुसार महारानी का उपरार्ध वस्त्रों से ढंका हुआ था। उन्होंने केवल घाघरा ऊपर कर अपनी चुत को ही खोल दिया था। चोली और घाघरे के बीच में उनका पूरा पेट भी खुला था।
राजमाता की आँखों में देखते हुए शक्तिसिंह ने घाघरे के नीचे अपनी दोनों हथेलियों को घुसाकर महारानी के चूतड़ों को पकड़ लिया। उसकी मजबूत बाहों को महारानी के नाजुक बदन का वज़न उठाने में कोई दिक्कत नहीं हुई। कूल्हों से उठाकर उसने महारानी के पूरे जिस्म को इस तरह उठाया की उसका लंड वापिस पद्मिनी की चुत में समय गया।
महारानी पद्मिनी अभी भी बिस्तर पर लेटी हुई थी पर उसकी कमर अब शक्तिसिंह की जांघों पर थी।
जननांगों के अलावा यह पहला अंदरूनी शारीरिक संपर्क था उस सैनिक और महारानी के बीच। अब शक्तिसिंह का लंड इस तरह कोण बनाकर चुत में घुसा था जिससे वह चुत के ऊपरी हिस्से पर दबाव बना रहा था। महारानी के मुंह से एक गरम आँह सरक गई और चुत में ऐसी सुरसुरी होने लगी जैसे उनका मूत्र निकलने वाला हो।
इन संवेदन का कारण यह था की शक्तिसिंह का सुपाड़ा उनके जी-स्पॉट पर जा टकराया था। योनि के अंदर करीब दो इंच के बाद, ऊपर की तरफ चर्बी का गद्दीनुमा भाग बेहद संवेदनशील होता है। अगर कोई भी मर्द अपने लिंग या उंगली से उसका मर्दन करे तो वह अपनी स्त्री को निश्चित रूप से तुरंत स्खलित कर सकता है। शक्तिसिंह आगे पीछे होते हुए ऐसे झटके लगा रहा था की उसका लंड, नगाड़े को पीट रहे डंडे की तरह, महारानी के जी-स्पॉट पर फटके लगा रहा था। महारानी की उत्तेजना की कोई सीमा न रही।
"ये क्या कर रहे हो..!!!" राजमाता चिल्लाते हुए खड़ी हो गई।
उनकी आवाज सुनकर शक्तिसिंह वहीं ठहर गया। उसकी नजर कभी अपने दो पैरों के बीच चुत खोलकर चुदवाती महारानी पर जाती तो कभी परदे के पीछे खड़ी क्रोधित राजमाता पर। जिस वक्त राजमाता उसपर चिल्ला रही थी उस वक्त महारानी अपनी चुत मांसपेशियों को संकुचन कर शक्तिसिंह के लंड को ऐसे दुह रही थी जैसे किसी गाय के थन को दुह रही हो।
शक्तिसिंह को अंदाजा तो लग गया था की राजमाता क्यों गुस्सा हुई थी!! पर अचंभा इस बात का था की इतनी अनुभवी औरत क्या यह भी नहीं समझती की ऐसी स्थिति में कुछ हरकतों का अपने आप ही हो जाना स्वाभाविक था!! क्या वह अपनी बहु की तड़पती हुई दशा नहीं देख पा रही थी? क्या वह बिना किसी प्रतिक्रिया के ही धक्के लगाए जाए? हालांकि नियम तो यही थे पर क्या उसका इतनी हद तक पालन करना जरूरी था? जब उसे महारानी को गर्भवती बनाने की छूट दे दी गई है तो इस प्रक्रिया में, दोनों पक्ष थोड़ा सा आनंद ले ले तो इसमें कौन सा आसमान टूट पड़ता!!
राजमाता को इन दोनों के बीच तुरंत हस्तक्षेप करने की तीव्र इच्छा हुई पर वह इसलिए हिचकिचाई क्योंकी अभी मंजिल हासिल नहीं हुई थी।
महारानी अपनी चुत की सुरसुरी को अपने अंदर ही रोके रखी थी, यह सोचकर की कहीं उनका पेशाब ना निकल जाए। वह चाहती थी की शक्तिसिंह दोबारा पूर्ण जोश से धक्के लगाकर उसे चोदे। वह अपने आप को चरमसीमा के बिल्कुल करीब महसूस कर रही थी जब राजमाता ने इस लाजवाब कबाब में हड्डी डाल दी। उनका शरीर तड़प रहा था... वह बिस्तर पर नागिन की तरह लोट रही थी... स्खलन की पूर्वानुमान से उनकी चूचियाँ फूल गई थी और उनकी निप्पलों में जैसी बिजली सी कौंध रही थी। दोनों चूचियाँ रेशम के चोली में कैद ऐसे छटपटा रही थी जैसे शिकारी के जाल में फंसे कबूतर!!
अब छातियों का दबाव उनसे सहा नहीं जा रहा था। बिस्तर पर कराहते वक्त, राजमाता के डर के कारण उसने यह ध्यान रखा था की वह शक्तिसिंह को उत्तेजना-वश कहीं छु न ले। पर उसकी जांघों के दाहिनी ओर, वह शक्तिसिंह की कलाइयों को बड़ी मजबूती से पकड़े हुए थी और अपने नाखून उसके हाथ में गाड़ चुकी थी। बिस्तर के दाहिनी ओर का द्रश्य राजमाता को नजर नहीं आ रहा था, यह गनीमत थी।
जब सहनशक्ति की सभी हदें पार हो गई तब महारानी ने अपने दूसरे हाथ से अपनी चूचियों को धर दबोचा। शक्तिसिंह के लंड को महारानी की मांसपेशियाँ इस कदर निचोड़ रही थी की उसे डर था किसी भी वक्त उसका वीर्य निकल जाएगा। हालांकि वह अभी स्खलन करना नहीं चाहता था। उसने अपना लंड महारानी की चुत से बाहर खींच लिया। ऐसा करते वक्त उसने संतुलन गंवा दिया और महारानी की छातियों पर जा गिरा। महारानी कराह उठी। उनकी सूजी हुई चूचियाँ अब किसी भी वक्त चोली फाड़कर बाहर निकल आने की धमकी दे रही थी। चोली के ऊपर से भी शक्तिसिंह को अपनी छाती पर उनकी कड़ी निप्पलों का एहसास हो रहा था। वह भी चाहता था की उन निप्पलों को बाहर निकालकर उन्हे मुंह में भरकर चुस ले।
शक्तिसिंह के सर पर अब शैतान सवार हो गया। उसने एक झटके में दोनों हाथों से महारानी की चोली को फाड़कर उनके मोटे मोटे बड़े स्तनों को आजाद कर दिया!! दोनों स्तन चोली से ऐसे बाहर निकले जैसे बड़ी बड़ी गोभी के फूल जमीन फाड़कर बाहर निकले हो। स्तनों की त्वचा लाल गुलाबी दिख रही थी और निप्पल तो इतनी कड़ी थी की त्वचा खरोंच दे।
महारानी ने अपने दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों से बुरी तरह मसला। शक्तिसिंह तो बस इन शानदार उरोजों को बस देखता ही रह गया। महारानी दोनों स्तनों को मींजते हुए अपनी निप्पलों को पकड़कर मरोड़ने लगी। वह चाहती थी की शक्तिसिंह उसकी दोनों निप्पलों को बारी बारी चूसे। उसने अपनी निप्पल को इतनी जोर से खींच लाई की उनके कंठ से एक मध्यम चीख निकल गई...
"आह्ह..."
"रुक जाओ, पद्मिनी.. !!" राजमाता दहाड़ी..
राजमाता की आवाज सुनते ही महारानी ने अपनी निप्पल छोड़ दी। पर उससे रहा न गया और वह उनके आदेश को अनदेखा कर फिर अपने स्तनों को मसलने लगी। वह बार बार ऐसा कर शक्तिसिंह को उकसाना चाहती थी, जो अभी भी काफी सावधानी बरत रहा था। उसी दौरान महारानी फिर से एक बार स्खलित हो गई। उनकी दोनों जांघों के बीच फंसे लंड के इर्दगिर्द से रस की धाराएँ बहकर बिस्तर पर जमा हो गई।
अपने स्तनों को मसल मसल कर महारानी ने एक और स्खलन प्राप्त कर लिया था। एक तरह से उसने अपनी उत्तेजना को प्राथमिकता देते हुए राजमाता के अंकुश की बेड़ियों को तोड़ दिया था। अब वह शक्तिसिंह के तरफ देख रही थी, यह सोच कर की वो भी उनका अनुकरण करे। हालांकि उसे यह पता था की उनके जितनी हिम्मत वह बेचारा सैनिक कर न पाएगा।
महारानी ने शक्तिसिंह का हाथ अपनी तरफ खींच और स्तनों की तरफ ले जाना चाहा पर उसने अपने हाथ को आगे ना जाने दिया।
"क्या बात है शक्तिसिंह?" महारानी ने पूछा
स्खलित होने के पश्चात अब महारानी की निप्पल नरम हो चुकी थी। शक्तिसिंह की नजर अभी भी उन दो दिव्य स्तनों पर चिपकी हुई थी जिस पर दो अंगूर जैसी निप्पल उसे चूसने के लिए न्योता दे रही थी।
महारानी के हाथ खींचने पर शक्तिसिंह थोड़ा सा सहम गया। उसने राजमाता को बुहार लगाई
"राजमाता जी... " शक्तिसिंह ने परदे के उस तरफ राजमाता की तरफ देखा
"जब तक हम एक दूसरे के पूर्ण रूप से सुखी और संतुष्ट नहीं करते, तब तक आप मुझ में अच्छी तरह से वीर्य नहीं भर पाएंगे" शक्तिसिंह की उंगलियों से खेलते हुए, महारानी ने कहा
"यह तुम क्या कह रही हो पद्मिनी?" राजमाता ने अपना विरोध जाहीर किया
"में सही तो कह रही हूँ, राजमाता। आप मुझ पर भरोसा रखिए बस, आपको अपना पोता मिल जाएगा!!" महारानी ने उत्तर दिया। महारानी ने शक्तिसिंह की आँखों में आँखें मिलाई।
"लेकिन में... " शक्तिसिंह अब भी दुविधा में था क्योंकी राजमाता की तरफ से कोई स्पष्ट स्वीकृति या आदेश अब तक नहीं मिला था
"लेकिन वेकीन कुछ नहीं... यह हमारा हुक्म है। आप महारानी पद्मिनी देवी के आदेश को मना नहीं कर सकते। " महारानी ने थोड़े सख्त सुर में कहा
शायद शक्तिसिंह भी इसी तरह के आदेश के इंतज़ार में था। राजमाता का ना सही पर महारानी का!!
शक्तिसिंह ने अब आव देखा न ताव... दोनों हाथों से महारानी के उन बड़े बड़े स्तनों को ऐसे मसलने लगा जैसे रोटी के लिए आटा गूँदते है। स्तन मसलते हुए उसने निप्पलों को भी उंगलियों से पकड़कर मरोड़ दिया।
पद्मिनी अब पूरे जोश में आ चुकी थी "हाँ शक्तिसिंह, बिल्कुल वैसे ही प्यार करो मुझसे... जो करना है करो मेरे जिस्म के साथ... "
शक्तिसिंह फिर एक बार राजमाता की ओर उनकी प्रतिक्रिया जानने के हेतु से देखा
"उन पर ध्यान मत दो.. वह नहीं समझ पाएगी। ना मेरी हालत और ना ही तुम्हारी" रानी ने भारी साँसे छोड़ते हुए कहा
पद्मिनी ने अपने हाथ दो जांघों के बीच डालकर शक्तिसिंह के चिपचिपे लंड को बड़े ही स्नेह से पकड़ा। उसकी चुत के काम-रस से पूरा लंड लिप्त था।
शक्तिसिंह ने अब दोबारा अपनी हथेलियों से महारानी के कूल्हों को उठाकर अपना औज़ार चुत के अंदर दे मारा। महारानी ने अपने दोनों पैरों से शक्तिसिंह की कमर को चौकड़ी मारकर जकड़ लिया।
महारानी ने अपनी गर्दन को तकिये के ऊपर इस तरह दबाया की उनकी कमर उचककर शक्तिसिंह के लंड को मूल तक निगल गई। शक्तिसिंह के हर धक्के के साथ उनकी पायलों की खनक पूरे तंबू में गूंज उठती थी।
"आह महारानी साहेबा... बहोत मज़ा आ रहा है" शक्तिसिंह अब अपने आप को रोक नहीं पा रहा था
"शक्तिसिंह, तुम जैसे चाहे मुझे रगड़ो... मेरी चुत के परखच्चे उड़ाकर अपनी वफादारी और मर्दानगी का सबूत दो मुझे!!"
दोनों अब ऐसी राह पर चल पड़े थे जहां से वापिस लौटना लगभग नामुमकिन सा था। लय और ताल के साथ लगता प्रत्येक धक्का, कई अनोखी ध्वनियों को जन्म देता था। दोनों के अस्पष्ट उदगार, पायल की खनक, बिस्तर की चरमराहट और गीली चुत के अंदर घुसते लंड से उद्भवीत होती "पुचुक पुचुक" की आवाज!!
हर धक्के पर महारानी को एहसास हो रहा था की महाराज कमलसिंह का लंड तो इस मूसल के मुकाबले कुछ भी नहीं था।
अब महारानी ने अपनी कमर को धनुष्य की प्रत्यंचा की तरह ऊपर की तरफ उठा दिया। इस स्थिति में अब शक्तिसिंह का सुपाड़ा चुत की ऐसी गहराइयों को छु रहा था जो महारानी को अनूठा आनंद देता था।
"आह आह.. अब मेरा निकलने को है... महारानी जीईईई... में अभी इसे समाप्त करना नहीं चाहता.. आह" शक्तिसिंह हर एक "आह" के साथ और जोर से चुत में धक्के लगा रहा था।
महारानी ने शक्तिसिंह के एक हाथ को पकड़कर सांत्वना देते हुए कहा "कोई बात नहीं... करते जाओ"
शक्तिसिंह ने अब झुककर महारानी की निप्पल को अपने मुंह में लेकर बेतहाशा धक्के लगाने शुरू किए।
"पीछे की तरफ हो जाओ... अभी के अभी..." राजमाता ने कहा। उन्हे इस बात का भरोसा था की अब मंजिल करीब थी पर वह फिर भी अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहती थी।
शक्तिसिंह दोनों हाथों से महारानी के स्तनों को मलते हुए उनके पेट को सहलाने लगा। फिर उनकी नाभि को कुरेदते हुए उसका हाथ नीचे गया जहां उसका लंड महारानी की चुत में नए जीव के सर्जन करने की कोशिश कर रहा था। महारानी के झांटों के बीच उसने उनके भगनासा (क्लिटोरिस) को उंगलियों से ढूंढ निकाला।
जैसे ही महारानी के भगनासा को उसने उंगलियों से छेड़ा, पद्मिनी की सांस अटक गई। शक्तिसिंह के कमर पर लपेटे पैरों से वह उसके कूल्हों को बुरी तरह पीटने लगी। उसकी आँखें ऊपर की तरफ चढ़ गई। उसका पूरा जिस्म बुरी तरह कांपने लगा।
"अब उसके अंदर स्खलित हो जाओ, जल्दी से" राजमाता ने जोर लगाया
शक्तिसिंह ने महारानी के दोनों स्तनों को कसकर दबोच लिया और धक्कों की गति और तेज कर दी।
"आह आह... लीजिए महारानी जी, मेरी प्यारी पद्मिनी... लो... मेरा रस ग्रहण करो... "
"हाँ, हाँ... भर दो मुझे, मेरी जान... " पद्मिनी की आँखों से अब आँसू बहने लगे। इस अनोखी मुलाकात से वह अब बेहद भावुक हो गई थी। बार बार स्खलित होकर वह अपनी भावनाओ पर से काबू खो बैठी थी। राजमाता के नियमों और अंकुश ने उन्हे कई तरफ से बांध कर रखा था पर फिर भी वह बेहद खुश थी की उसे अपनी मंजिल प्राप्त हो रही थी।
वीर्य की पहली धार अपनी चुत में महसूस होते ही वह चिल्लाई
"माँ, इसने मेरे अंदर वीर्य रस भर दिया है... !! ओह्ह... आह्ह!!"
हर झटके के साथ अपना गाढ़ा वीर्य छोड़ते हुए शक्तिसिंह का दिमाग सुन्न हो चला था। कुछ झटके लगाने के पश्चात वह रानी के खुले स्तनों पर लाश की तरह ढेर हो गया। यह उसकी पहली चुदाई थी... और वह भी अपनी महारानी के साथ... उसके भाग्यशाली लंड को शाही चुत में स्खलन करने का यह दिव्य मौका प्राप्त हुआ था। थकान के मारे वह अपना पूरा वज़न महारानी की छातियों पर यूं डाले सो रहा था की दोनों चूचियाँ बीच में दब चुकी थी। चुत के अंदर घुसा लंड अभी भी पिचकारियाँ मार रहा था।
महारानी अपने सैनिक की पीठ पर हाथ सहलाकर उसे शांत करने लगी। दोनों बुरी तरह हांफ रहे थे। वह अभी भी अपने भीतर मलाईदार वीर्य की गर्माहट अपनी चुत के हर हिस्से मे महसूस कर सकती थी। जो कार्य हाथ में लिया था वह तो पूरा हो चुका था पर अब बहुत बहुत कुछ और करना बाकी था।
महारानी ने शक्तिसिंह के कान पर एक हल्की सी चुम्मी दी.. और अपनी जीभ फेरकर उसे गुदगुदाया.. अपनी हथेली को शक्तिसिंह की पीठ से लेकर कूल्हों तक सहलाकर वह पश्चात-क्रीडा को अंजाम देने लगी।
दोनों की साँसे जैसे ही पूर्ववत हुई, शक्तिसिंह को पीठ को किसी ने थपथपाया.. वह राजमाता थी और संकेत दे रही थी की अब दोनों के अलग होने का समय आ गया था।
"में तुम्हारे पास दोबारा आऊँगी" अलग होने से पहले महारानी पद्मिनी शक्तिसिंह के कान में फुसफुसाई। शक्तिसिंह अपनी रानी के ऊपर से उठ खड़ा हुआ। ऊपर का वस्त्र उसने अभी भी पहने रखा था जो अथाग परिश्रम के कारण पसीने से भीग चुका था। उसके दो पैरों के बीच झूल रहे लंड अपनी सख्ती छोड़ी नहीं थी। पूरे खुमार से वह यहाँ से वहाँ हिल रहा था।
"बाप रे... " वीर्य और योनि रस से सम्पूर्ण भीगे हुए विकराल लंड को देखकर महारानी बोल पड़ी। साथ ही साथ उसे शक्तिसिंह के इस लंड पर ढेर सारा प्यार भी उमड़ पड़ा...
राजमाता ने तुरंत एक चद्दर उठाई और महारानी के खुले स्तनों को ढँक लिया... साथ ही साथ उन्होंने पैर फैलाए लेटी महारानी का घाघरा नीचे कर, उसकी चुत की दुकान बंद कर दी।
बिस्तर के बिल्कुल बाजू में पड़ी हुई धोती उठाकर शक्तिसिंह वहीं खड़े खड़े पहनने लगा। मस्ती के नशे में झूमती हुई महारानी ने लेटे लेटे ही शक्ति सिंह के लंड पर उँगलियाँ फेर दी और बोली
"जा रहे हो?"
"जी हाँ... क्यों?" शक्तिसिंह ने आश्चर्यसह पूछा
"अभी तो इसमें और जान बाकी है... इसे मेरे हवाले कर दो... फिरसे तैयार हो जाएगा" कुटिल मुस्कुराहट देते हुए महारानी बोली। जैसे राजमाता की उपस्थिति से उसे अब कोई फरक नहीं पड़ता था।
"तुम जाओ यहाँ से अब... " तीखी आवाज में राजमाता ने शक्तिसिंह को आदेश दिया। उसका बादामी रंग का चिपचिपा तगड़ा वीर्य से सना लंड देख राजमाता खुद सिहर गई। "साली ने बड़ी मस्ती से चुदवाकर मजे किए" पद्मिनी की तरफ थोड़ी सी नफरत से देखते हुए वह मन ही मन सोच रही थी।
धोती बांध रहे शक्तिसिंह के लंड पर अभी भी दोनों औरतों की नजर चिपकी हुई थी। महारानी की उँगलियाँ लंड से छूट ही नहीं रही था। राजमाता अब अपने बारे में सोच रही थी... की काश आज रात को यह हथियार का मज़ा मुझे मिल जाए!! शक्तिसिंह उलटे पैर चलते हुए सलाम करते करते तंबू से बाहर निकलने लगा। दोनों की आँखें आखिर तक उसकी धोती पर ही चिपकी रही।
अब यह राजमाता की जिम्मेदारी थी की वह राज्य के उत्तराधिकारी के वाहक की संरक्षा और देखभाल पूरी शिद्दत से करे। इस घनघोर चुदाई के बाद, महारानी के गर्भवती हो जाने की उन्हे पूरी उम्मीद थी।
राजमाता के जिस्म में अब अजीब सी हलचल होने लगी थी। एक घंटे के उस संभोग को देखकर वह असहज हो गई थी। सब योजना के मुताबिक हुआ था पर महारानी और शक्तिसिंह वासना के तारों से जुड़ गए थे, यह बात उन्हे काट कहा रही थी। हालांकि वह जानती थी की ऐसा होना स्वाभाविक था पर उनके आदेश के बावजूद हुई इस गुस्ताखी को उन्हों ने अपनी अवमानना की तरह लिया। शक्तिसिंह ने महारानी के स्तनों को दबोचा, निप्पल को मरडोकर चूस लिया, रानी ने उसकी कमर पर पैर लपेट लिया, इन सब के बावजूद वह कुछ न कर पाई।
"क्या में चाहकर भी रानी की चुत को द्रवित होते रोक पाती? क्या में शक्तिसिंह के लंड को उस क्षण पर नियंत्रित कर पाती?" राजमाता के दिमाग में प्रश्नों की झड़ी लग गई। हस्तक्षेप करने की भी अपनी सीमाए थी। फिर भी देखा जाए तो सब कुछ ठीक ही रहा था। उनके रोकने पर दोनों रुक गए थे और योजना के मुताबिक महारानी की चुत में भरपूर मात्रा में वीर्य भी बहा दिया गया था। कामावेश कम होते ही शक्तिसिंह भी आज्ञाकारी बन गया था और आदेश अनुसार उठ कर चला भी गया।
शक्तिसिंह के पसीने से तरबतर बदन और विकराल लंड का द्रश्य राजमाता की नज़रों से हट ही नहीं रहा था। महारानी ने जिस तरह शक्तिसिंह को अपने वश में कर मनमानी कर ली इससे राजमाता के मन में ईर्षा का भाव जागृत हो गया। शक्तिसिंह का तगड़ा लंड जब चुत को चीरकर अंदर घुसा होगा तब कितना आनंद आया होगा यह सोचते ही राजमाता की चुत द्रवित हो गई। बिस्तर पर लेटे लेटे कब उनका हाथ अपने घाघरे के अंदर चला गया उसका उन्हे पता भी नहीं चला। अपने दाने को घिसकर प्यास बुझाने के बाद ही उनकी आँख लगी।
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थका हुआ शक्तिसिंह अपने तंबू में आते ही ढेर हो गया। जीवन की इस प्रथम चुदाई में जितना आनंद आया था उतना ही उसका दम भी निकल गया। बिस्तर पर गिरते ही उसे गहरी नींद आ गई।
उसकी नींद में तब खलल पड़ी जब उसे अपनी धोती के अंदर कोई हलचल होती महसूस हुई। स्वभाव से चौकन्ने सैनिक ने पास पड़ी कतार उठाकर सामने धर दी। आँख खोलकर देखा तो वह महारानी पद्मिनी थी!! तुरंत ही उसने कतार को म्यान में रख दिया। उसे पता ही नहीं चला की कब रानी उसके तंबू में आकार उसके बिस्तर पर लेट गई और धोती से उसका लंड बाहर निकालकर उसे सहलाने लगी। नींद में भी वह रानी की गद्देदार चुत के सपने देख रहा था। आँख खुली तो वही सामने उसके लंड से खेलती नजर आई।