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Adultery राजमाता कौशल्यादेवी

LustyArjuna

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अपने उस अनुभव के बारे में वह बूढ़ी नौकरानी ने विस्तारपूर्वक बताया

"वह चौकड़ी लगाए साधना में लीन बैठे थे। हम उनके कहे हुए समय पर गए थे इसलिए उन्हे साधना में बैठा देख हमे बेहद आश्चर्य हुआ। हमें तो अपेक्षा थी की वह इस कार्य के लिए तैयार बैठे होंगे। वह ना कोई बिस्तर था, ना ही तकिया या रजाई। जो भी करना था वह जमीन पर ही करना था।" पुरानी बातें बताते हुए ज्ञान बाँट रही थी वह बूढ़ी नौकरानी

"हमारी रानी काफी नाजुक और बेहद सुंदर थी। योगी को देख वह अभिभूत हो गई थी पर साथ ही साथ गर्भवती होने की इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के चलते काफी तनाव में भी थी। उन्हे यह पता नहीं चल पा रहा था की उस कार्य की शुरुआत आखिर कैसे करे!!

"नौकरानियाँ और रानी की खास दासी उन्हे योगी के समक्ष ले गई। रानी अपने हाथ जोड़े उस साधन में लीन योगी के सामने प्रस्तुत हो गई। नौकरानियों ने बड़ी ही सफाई से रानी के घाघरे का नाड़ा खोल दिया। पूरा घाघरा रानी के कदमों के इर्दगिर्द गिरकर फैल गया। वैसे तो हम नौकरानियों ने नहलाते और मालिश करते वक्त कई बार रानी को नंगा देखा था, पर उस दिन उन्हे पराए पुरुष के सामने यूं नग्न खड़ा देख बड़ा अजीब और अटपटा सा लग रहा था। "

"रानी अभी भी अपनी चोली पहने थी इसलिए उनके स्तन ढंके हुए थे। उन्हे कुछ पता नहीं चल रहा था की आगे क्या करे!! ध्यान में बैठे योगी अपनी आँखें बंद किए हुए थे। हम नौकरानियों ने रानी को उनके समक्ष धकेल दिया। अब वह बिल्कुल उनके नजदीक खड़ी थी। योगी का मुख उनकी जांघों के सामने था। रानी डर के मारे इस हद तक कांप रही थी की यदि हम दासियों ने उन्हे दोनों तरफ से पकड़े न रखा होता तो वह योगी के ऊपर गिर ही जाती। "

"हम रानी को पलंथी मारकर बैठे योगी के ओर नजदीक ले गए। अब रानी की योनि योगी के मुख के बिल्कुल सामने थी। उनकी दाढ़ी के लंबे बाल रानी की जांघों पर फरफरा रहे थे। रानी अब थरथरा रही थी। खिड़की सी आती हिमालय की ठंडी हवा उनकी चुत के होंठों को सरसरा रही थी। उनका चेहरा शर्म से लाल लाल हो गया था। अगर हमने रानी को पकड़कर ना रखा होता तो वह वहाँ से भाग खड़ी होती। हमने उनके कंधों को हल्के से दबाकर धीरे धीरे योगी की गोद में बैठा दिया। घुटने झुकाकर शरमाते हुए रानी अपनी आँखें झुकाए और चुत फैलाए वह योगी के चेहरे के बिल्कुल सामने आ गई। योगी के तरफ से अभी भी कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। रानी ने चुपके से योगी की तरफ से उनकी हरकत देखने के लिए आँखें खोली। योगी अभी भी शांत बैठा था।

"हम सब दासियाँ मंत्रमुग्ध होकर इस द्रश्य को देख रही थी। इस तरह की घटना का साक्षी बनाने का हमारे लिए भी यह पहला मौका था। हम सब नजरें झुकाएँ खड़े थे पर फिर भी बार बार तिरछी आँखों से आगे की गतिविधि जानने की उत्कंठा से हम देखते रहे। कमरे में एक छोटा सा दिया जल रहा था। मंद रोशनी और अंधेरे के विरोधाभास में द्रश्य काफी अनोखा लग रहा था। रानी जांघे फैलाए ऐसे खड़ी थी की अगर योगी आँखें खोलता तो उसे रानी की चुत का अंदरूनी हिस्सा भलीभाँति नजर आता। लेकिन उसकी आँखें बंद थी। "

"सब यहीं सोच में था की आगे क्या होगा? एक योगी के सामने एक खुली तरसती चुत का भला क्या काम? रानी की दोनों तरफ खड़ी दासियाँ उन्हे सहारा देकर योगी की गोद में उनका संतुलन बनाए रखने में मदद कर रही थी। अचानक रानी के मुंह से एक बड़ी आह निकल गई। उनकी चुत के झांटों पर उभरे हुए लंड का स्पर्श हुआ। योगी की दोनों जांघों के मध्य में से एक मोटा तगड़ा लंड प्रकट हुआ जो बिल्कुल सीधा कोण बनाकर खड़ा हुआ था। लंड के छूते ही रानी उठ खड़ी हुई। दासियों ने उन्हे फिरसे पकड़कर योगी की गोद में धकेला। इस बार रानी की खुली चुत में योगी का लिंग सरपट प्रवेश कर गया!! रानी का ऐसा महसूस हुआ जैसे वह खुली तलवार पर कूद गई हो और वह उसकी चुत को चीरते हुए अंदर घुस गई हो!!"

"अब रानी के कूल्हे योगी की गोद में धंस गए थे और लँड उनकी चुत में फंस गया था। कुल मिलकर स्थिति यह थी की रानी चाहकर भी हिल नहीं सकती थी। लंड बेहद अंदर गर्भाशय के मुख तक पहुँच चुका था। चौकड़ी मारकर बैठे योगी की कमर के इर्दगिर्द अब रानी ने अपनी टाँगे फैला ली थी। "

"संतुलन बनाए रखने के हेतु से रानी ने अपने दोनों हाथों को योगी के कंधों पर रख दिया और नीचे लंड के झटकों का इंतज़ार करने लगी। उसके सुर्ख होंठ एक गहरे चुंबन की अभिलाषा लिए बैठे थे। उनके स्तन चाहते थे के उन्हे मरोड़ा और मसला जाए। उनकी चुत की दीवारें फैलकर इस गधेनुमा लंड के लिए मार्ग देकर अपना रस द्रवित कर रही थी। रानी ने महसूस किया कि वह एक अप्रत्याशित लेकिन अपरिहार्य संभोग क्रिया के प्रति बहती जा रही थी। पर ना ही लंड के झटके लगे, ना ही योगी ने कोई चुंबन किया और ना ही उनके स्तनों को छुआ। रानी के चुत का रस योनि के होंठों से द्रवित होकर योगी के पैरों को गीला कर रहा था।"

"रानीजी ने हमे बाद में बताया की यह संभोग उनके लिए अवर्णनीय और बड़ा ही अनूठा था। इतना अनोखा की वह शायद जीवन भर इसे भूल नहीं पाएगी। इतने सख्त मर्द से संवनन का अवसर मिलने पर वह खुद को धन्य महसूस कर रही थी। इतने विकराल लंड को अपने गुहयानगों में समाकर उसने दिव्यता का एहसास कर लिया था। जिस तरह से संभोग दौरान उस योगी ने उन्हे नियंत्रित किया था वैसा कोई पुरुष कर न सका था। अकेले में रानी ने कुबूल किया था की राजा के अलावा वह कई मर्दों के संग अपना बिस्तर गरम कर चुकी थी। पर इस योगी जैसा अनुभव किसी के साथ नहीं मिला था। इस अनुभव के बाद उनकी कामेच्छा में तीव्र बढ़ोतरी भी महसूस की थी और फिर से योगी के साथ ऐसा संभोग करने की बेहद अभिलाषा हो रही थी। संभोग के दौरान, उस योगी ने एक मर्तबा भी रानी को आँखें खोलकर नहीं देखा था। रानी इस अनुभव से अभिभूत हो गई थी। "

"वह बार बार इस घटना का उल्लेख और वर्णन हम दासियों के समक्ष करती रही। उसका असर हम नौकरानियों पर भी कुछ ऐसा हुआ की अब हम जब भी चुदवाती तब वह योगी के लिंग के साथ तुलना करने लगती। योगी हमारे मस्तिष्क में भी हावी हो चुका था"
बडा लड़ रानीओ से लेकर दासीओ के मस्तिष्क पर हावी होना ही था।
 
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LustyArjuna

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सूचना बड़ी साफ थी। शक्तिसिंह को उपनी धोती से सिर्फ लंड बाहर निकालना था और महारानी को घाघरा उठाकर अपनी चुत खोल देनी थी। अब इस वृतांत में सिर्फ दो ही पात्रों की भूमिका थी... लंड और चुत!! शक्तिसिंह को महारानी पद्मिनी के ऊपर चढ़ना जरूर था पर यह ध्यान रखते हुए की उसकी छाती महारानी के स्तनों का ना छूए!!

महारानी को जितनी हो सके उतनी टाँगे चौड़ी करनी थी ताकि शक्तिसिंह का शरीर उससे कम से कम संपर्क में आए।

इतनी सूचनाओ को बावजूद, महारानी ने कब शक्तिसिंह के लंड को अपने हाथ में ले लिए उसका उन्हे खुद पता न चला। आखिर इस अंधेरे में चुत में घुसने के लिए दिशा निर्देश की आवश्यकता भी थी। पर लंड हाथ में लेने के बाद, उसकी लंबाई और मोटाई का अंदाजा लगने के बाद, महारानी के कंठ से "आहह" निकल जाना काफी स्वाभाविक था। महाराज के लंड के मुकाबले वह सभी मामलों में चार गुना था... ऐसा लंड अपनी गरम गीली चुत में लेकर वह धन्य होने वाली थी इस विचार से ही उनका मन गुनगुना उठा।

पर महारानी की "आहह" ने राजमाता को तुरंत ही सतर्क कर दिया।

"पद्मिनी... !!! " उन्होंने बड़े तीखे सुर में आवाज लगाई

राजमाता की आवाज सुनते ही महारानी की लंड पर पकड़ ढीली हो गई पर उन्होंने उसे छोड़ा नहीं। वह अब भी इस कड़े स्नायु के खंबे को ओर महसूस करना चाहती थी। पूरे लंड पर हल्के से हाथ फेरते हुए उसने लंड की चमड़ी, उसके नसें, उसका सुपाड़ा सब कुछ नाप लिया।

अब कराहने की बारी शक्तिसिंह की थी। बेहद खूबसूरत महारानी का काम-जवर से तपता बदन उसके नीचे सोया था। महारानी के विशाल स्तन उनकी चोली फाड़कर बाहर आने के लिए तड़प रहे थे। महारानी की चुत गीली होकर भांप छोड़ रही थी और उसकी गंध पूरे तंबू में फैल गई थी।

शक्तिसिंह का गला सुख गया। उसे अब एहसास हो रहा था की कितना कठिन कार्य था!! उसका तो मन कर रहा था की वह नीचे सोई महारानी को रगड़ रगड़ कर भरपूर चुदाई करे। पर राजमाता की उपस्थिति में उनकी आज्ञा का पालन न करना मतलब मौत को दावत देने के बराबर था।

शक्तिसिंह ने धीरे से महारानी के हाथों से अपने लंड को छुड़वाया, उस दौरान उसके सुपाड़े पर लगी वीर्य की बूंदों को अपनी उंगली से महारानी को पोंछते देख वह सहम गया। जिस सख्ती से महारानी ने लंड को पकड़ रखा था उससे यह साफ था की वह बेहद उत्तेजित हो गई थी।

"महारानी साहिबा की जय हो!!" शक्तिसिंह ने इस तरह से कहा ताकि राजमाता सुन सके, और उन्हे यह एहसास हो की वह अपनी जिम्मेदारी और आदेश को भुला नहीं था।

शक्तिसिंह की सलामी से महारानी भी सतर्क हो गई और उसने अपने दोनों हाथ बिस्तर पर नीचे रख दिए, जिस तरह उन्हे कहा गया था। राजमाता थोड़े से तनाव में इस द्रश्य को देख रही थी। महारानी को अपने हाथ नीचे रखता देख उन्हे स्थिति नियंत्रण में आती लगी। इन दोनों को अंतरंग होते देख राजमाता की चुत भी गीली होने लगी थी।

शुरुआत में राजमाता को यह डर था की शक्तिसिंह का हथियार देखकर कहीं महारानी घबरा न जाए। पर महारानी की शारीरिक भाषा से यह स्पष्ट था की वह उसके लंड को अपनी राजवी गुफा में लेने के लिए आतुर थी। राजमाता भी गरम साँसे छोड़ रही थी। आगे जो होने वाला था उसकी अपेक्षा में उनकी चुत ने नीचे बिछी रजाई पर गीला धब्बा बना दिया था।

महारानी पद्मिनी ने शक्तिसिंह की आँखों में आँखें डालकर देखा और फिर अपनी दोनों जांघें मस्ती से चौड़ी कर दी। उनका जिस्म, शक्तिसिंह के लंड-प्रवेश के लिए तत्पर हो चुका था।

रानी ने अपनी दोनों मुठ्ठियों को मजबूती से बंद कर रखा था। हकीकत में वह आनेवाली आनंद की घड़ी के स्वागत के लिए खुद को तैयार कर रही थी।

शक्तिसिंह के सुपाड़े का मुंह महारानी पद्मिनी की गुलाबी चुत के पंखुड़ी जैसे होंठों पर लगते ही, महारानी का पूरा जिस्म सिहर उठा। एक अजीब सा कंपन सारे शरीर को झुंझुनाने लगा। शक्तिसिंह को अपने लंड पर महारानी के चुत के बालों का नुकीला स्पर्श हुआ। अब वह हमला करने के लिए तैयार था।

शुरुआत में उसे थोड़े से प्रतिरोध सा महसूस हुआ क्योंकी महारानी ने अपना पूरा शरीर ऐसे भींच रखा था की चुत का द्वार सिकुड़ सा गया था और उसके होंठ भी अंदर की तरफ दब गए थे। उस सुराख के मुकाबले शक्तिसिंह का सुपाड़ा काफी बड़ा भी था।

शक्तिसिंह एक कर्त्तव्यनिष्ठ सैनिककी तरह, दर्द या चोट रूपी परिणाम की परवाह किए बगैर आगे बढ़ता रहा। नौसिखिया होने की वजह से उसे यह भी द्विधा थी की जिस छेद में वह घुसा रहा था वह सही था भी या नहीं। यह एक ऐसा युद्ध था जिसमे ना कोई नक्शा, ना कोई आयोजन और ना ही किसी युक्ति-प्रयुक्ति को अवकाश था। यह तो शक्तिसिंह और महारानी के जननांगों के बीच आपस की लड़ाई थी।

शुरुआती शारीरिक प्रतिरोध के पश्चात जब प्रथम प्रवेश सफलता पूर्वक हो गया फिर आगे की राह आसान बनती गई। रानी की चुत की दीवारों ने बड़े ही उन्माद के साथ लंड का स्वागत करते हुए मार्ग दे दिया था... साथ साथ उन दीवारों ने पर्याप्त मात्र में स्निग्ध रस का रिसाव शुरू कर दिया था ताकि मेहमान को जरा सी भी तकलीफ का एहसास ना हो।

लंड को स्वीकृति मिलते ही, वह महारानी पद्मिनी की चुत की अंधेरी गलियों में मस्ती से अंदर बाहर करने लगा। चिकनी चिपचिपी सतह पर लंड रगड़ खाते ही शक्तिसिंह की सिसकी निकल गई।

"आउच... आहह... हाँ... आह" महारानी ने भी कराहते हुए तुरंत अभिवादन किया।
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आखिरकार शक्तिसिंह का कौमार्यभंग हो ही गया। उसके टट्टों में अजीब सनसनी हो रही थी। वास्तविक चुदाई का अनुभव उसे हस्तमैथुन से काफी भिन्न महसूस हुआ। गरम, गीली और उत्तेजित चुत की तुलना ऋक्ष हथेली से कदापि नहीं की जा सकती। स्त्री को भोगने के लिए पुरुष क्यों इतने पगलाये रहते है इसका ज्ञान आज भलीभाँति हो गया शक्तिसिंह को!!

शुरुआती प्रवेश के आनंद से अभी वह उभर भी नहीं पाया था की तभी उसके कानों पर राजमाता की रूखी आवाज पड़ी.. "अब जैसा मैंने सिखाया था वैसे ही अंदर बाहर करना शुरू कर दे!!"

महारानी पद्मिनी, जो शक्तिसिंह के सख्त लंड को अपनी चुत की दीवारों के गिरफ्त में लेकर दुहने का आनंद ले ही रही थी तभी अपनी सास की आवाज ने उसकी मस्ती में खलल डाल दिया। तगड़े लंड के मोटे सुपाड़े ने चुत की दीवारों को जिस तरह चौड़ा कर रखा था, महारानी पद्मिनी तो वहीं उसकी कायल हो चली थी। वह चाहती थी की जितना लंबा हो सके इस समय को खींचा जाए।

क्या राजमाता ने खुद इस मूसल का भरपूर मज़ा, अभ्यास के बहाने लिया होगा? हो सकता है की उसकी कमीनी सास ने इस मुस्टंडे से भरपूर चुदवाया हो और अब वह उसे आनंद लेने से रोक रही हो!! पद्मिनी के दिमाग में ऐसे कई विचारों की शृंखला सी चल पड़ी थी। मन के किसी कोने में उसे इस बात का यकीन था की राजमाता ने पहले ही शक्तिसिंह के संग गुलछर्रे उड़ा लिए थे।

लिंग-प्रवेश के दौरान ही रानी की चुत ने स्खलित होते हुए एक डकार मार ली थी। चुत के अंदर काम-रस का गरम प्रवाह शक्तिसिंह को और उकसा रहा था। प्रथम योनि प्रवेश के कारण उसके लिए भी यह अनुभव नया और अनोखा था। इस गर्माहट के एहसास से फिर से शक्तिसिंह की आह निकल गई।

चुत गीली होने पर घर्षण कम होगा और स्खलन तक पहुचने की अवधि का बढ़ जाने का अंदेशा था। इस बारे में राजमाता ने पहले ही उसे चेतावनी दे रखी थी। संभोग की सीमा को न्यूनतम रखनी थी और उसे लंबा करने की जरा सी भी कोशिश नहीं करनी थी। जितना जल्दी हो सके उसे स्खलित होना था। उसने तुरंत अपना लंड रानी की चुत से बाहर निकाला और अपनी धोती के कपड़े से पोंछ लिया। पोंछते वक्त एक पल के लिए उसे लगा की वही स्खलित हो जाएगा। बड़ी मुश्किल से उसने अपने स्खलन को काबू में रखा। यदि उसका वीर्य चुत के बाहर ही निकल जाता तो पता नहीं राजमाता उसका क्या हश्र करती!!

लंड को दोबारा चुत में डालते ही महारानी की आह निकल गई। जिस तरह का आनंद उन्हे मिल रहा था उस वजह से उनकी ऐसी आवाज़ें निकल जाना स्वाभाविक था। पर फिलहाल इस खेल के नियम अलग थे और उनका पालन करवाने हेतु राजमाता उनके सर पर बैठी थी।

"ऊँहहह ... " महारानी पद्मिनी से रहा न गया और एक और आवाज निकल गई। रानी के दोनों हाथ तकिये के कौनों को पकड़कर भींच रहे थे। अगर उसने अपने हाथों को रोके नहीं रखा होता तो अब तक वह अपने नाखूनों से शक्तिसिंह की छाती को चीर देती। पर अफसोस, एक दूसरे को छूने की इजाजत नहीं थी। रानी अपनी कमर उठाकर शक्तिसिंह को जितना ज्यादा हो सके अपने अंदर ग्रहण करने की कोशिश कर रही थी।

रह रह कर शक्तिसिंह के मन में राजमाता के आदेश मंडरा रहे थे। आदेश था की लंड को केवल अंदर बाहर करना था और कुछ भी नहीं। राजमाता का आदेश उसका कर्तव्य था। उसके शरीर में प्रवेश चुके कामरूपी राक्षस को नियंत्रित करने की शक्तिसिंह ने ठान ली।

वह अपने आप से संवाद करने लगा "तुम्हें बस अंदर बाहर करना है... अंदर और बाहर.. अंदर और बाहर.. अंदर और बाहर.. और कुछ भी नहीं!!"

अब वह यंत्रवत रानी की चुत में अंदर और बाहर धक्के लगाने लगा। उसने अपनी उमड़ रही सारी भावनाओ को किनारे कर दिया। वह बस आँखें बंद कर धक्के लगाने लगा। इस बीच वह यह भी भूल गया की उसका लंड फिर से रानी के चुत रस से लिप्त होकर चिपचिपा हो गया था और उसे पोंछने की जरूरत थी।

वह ये भी भूल गया की उसके नीचे वासना से तड़पती हुई स्त्री थी जो चाहती थी की ऐसे यंत्रवत रूखे झटकों के बजाए उसकी जानदार चुदाई हो। वह चाहती थी की उनकी दोनों टांगों को शक्तिसिंह के कंधों पर टाँगकर अपनी चुत को इस हद तक चौड़ा करे की लंड के धक्के उसकी चुत की हर गहराई तक महसूस हो। उसकी चूचियाँ चोली फाड़कर बाहर आना चाहती थी ताकि मर्दाना हाथों से उन्हे मसला जा सके। पर राजमाता की उपस्थिति में ऐसा कुछ भी करना मुमकिन ना था।

फिर भी वह अपने चूतड़ों को झटके देने से रोक ना पाई। उसकी साँसे बेहद तेज चल रही थी। उसके उभार ऊपर नीचे हो रहे थे। वह रानी नहीं पर एक भूखी चुदक्कड़ स्त्री का स्वरूप धारण कर चुकी थी।

इन सारी बातों से बेखबर उनका वफादार सिपाही, आनन फानन में धक्के लगाए जा रहा था। शक्तिसिंह के मस्तिष्क में फिलहाल राजमाता के शब्द हावी हो चले थे।

पद्मिनी के जिस्म में आग लग चुकी थी। फिलहाल वह इतना चाहती थी की शक्तिसिंह के साथ उसकी चुदाई जितनी लंबी हो सके उतनी चलती रहे। उसने आखिर उत्तेजित होकर शक्तिसिंह का दाहिना हाथ पकड़ लिया। उस तरफ का द्रश्य राजमाता की नज़रों से बाहर था। इस निराशा में की वह अपने स्तनों को नहीं मसल पा रही, वह अपने दूसरे हाथ से अपनी गर्दन को सहलाने लगी।

अब तक जो कुछ भी चल रहा था वह राजमाता को योजना के मुताबिक होता नजर आया। वह जानती थी की वीर्य स्खलन के लिए शक्तिसिंह को अभी कुछ और झटकों की जरूरत थी। पिछली रात को शक्तिसिंह का लंड हिलाकर स्खलित होने में कितना वक्त लगा था उसकी गणना उनका दिमाग करने लगा। उसने कोई हस्तक्षेप करने से पहले थोड़ा और वक्त देने का फैसला किया।

राजमाता यह देख नहीं पा रही थी पर शक्तिसिंह यह महसूस कर पा रहा था की महारानी नीचे से अपनी कमर और चूतड़ उठाकर सामने से झटके लगा रही थी। उसने अपनी आँखें खोलकर अपनी नीचे लेटी वासना से लिप्त स्त्री की तरफ देखा। दोनों की नजरें मिली। महारानी पद्मिनी की आँखों में बस चुदाई का बहुत शक्तिसिंह को बखूबी नजर या रहा था। रानी के चेहरे की त्वचा उत्तेजना के कारण लाल और पसीने से लथबथ हो गई थी। रानी ने अपना चेहरा दाहिनी ओर किया और चुपके से शक्तिसिंह के उस तरफ के हाथ को चूम लिया।

शक्ति सिंह पिछले दिन से महारानी की खूबसूरती को बड़ी बेशर्मी से निहार रहा था। उसके सुडौल कूल्हे, लंबे पैर , और इन सबके ऊपर थे उसके बड़े बड़े मोटे भरे हुए स्तन!!! महारानी के चूमते ही वह बावरा हो गया। उसके लंड को स्खलन का एहसास भी होने लगा। पर वह अभी इस सिलसिले को खतम करना बिल्कुल नहीं चाहता था। अभी तो शुरुआत ही हुई थी... !! महारानी के सारे अंग, उनके हावभाव, यह चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे की उस दौर को चलते रहने देना चाहिए। इस बात की अनदेखी वह कैसे कर सकता था!! शक्तिसिंह ने एक नजर राजमाता पर डाली जो बड़े चाव से उन दोनों के संसर्ग को देख रही थी। वापिस उसने धक्के लगाने पर ध्यान केंद्रित किया।

शक्तिसिंह ने अब थोड़ा सा पीछे की तरफ होकर अपने हाथों को बिस्तर से उठा लिया। उसका आधा लंड महारानी की चुत से बाहर निकल गया। राजमाता यह देख पा रही थी की शक्तिसिंह का स्खलन अभी भी नहीं हुआ था, फिर ये बीच में रुक क्यूँ गया? उन्होंने गुस्से भरी आँखों से उसकी और देखा... शक्तिसिंह को उनकी क्रोधित नजर से जैसे ज्यादा फरक नहीं पड़ा। आधे से ज्यादा लंड चुत से बाहर निकल चुका था और केवल सुपाड़ा ही अंदर फंसा था। अगर वह हल्का सा खींचता तो पूरा लंड महारानी की चुत से निकल जाता। महारानी इस हरकत से बेचैन हो उठी थी। उन्होंने शक्तिसिंह के हाथ को पकड़कर अपनी तरफ खींचना चाहा पर वह उनकी पहुँच से दूर था।

राजमाता के आदेश अनुसार महारानी का उपरार्ध वस्त्रों से ढंका हुआ था। उन्होंने केवल घाघरा ऊपर कर अपनी चुत को ही खोल दिया था। चोली और घाघरे के बीच में उनका पूरा पेट भी खुला था।

राजमाता की आँखों में देखते हुए शक्तिसिंह ने घाघरे के नीचे अपनी दोनों हथेलियों को घुसाकर महारानी के चूतड़ों को पकड़ लिया। उसकी मजबूत बाहों को महारानी के नाजुक बदन का वज़न उठाने में कोई दिक्कत नहीं हुई। कूल्हों से उठाकर उसने महारानी के पूरे जिस्म को इस तरह उठाया की उसका लंड वापिस पद्मिनी की चुत में समय गया।

महारानी पद्मिनी अभी भी बिस्तर पर लेटी हुई थी पर उसकी कमर अब शक्तिसिंह की जांघों पर थी।

जननांगों के अलावा यह पहला अंदरूनी शारीरिक संपर्क था उस सैनिक और महारानी के बीच। अब शक्तिसिंह का लंड इस तरह कोण बनाकर चुत में घुसा था जिससे वह चुत के ऊपरी हिस्से पर दबाव बना रहा था। महारानी के मुंह से एक गरम आँह सरक गई और चुत में ऐसी सुरसुरी होने लगी जैसे उनका मूत्र निकलने वाला हो।

इन संवेदन का कारण यह था की शक्तिसिंह का सुपाड़ा उनके जी-स्पॉट पर जा टकराया था। योनि के अंदर करीब दो इंच के बाद, ऊपर की तरफ चर्बी का गद्दीनुमा भाग बेहद संवेदनशील होता है। अगर कोई भी मर्द अपने लिंग या उंगली से उसका मर्दन करे तो वह अपनी स्त्री को निश्चित रूप से तुरंत स्खलित कर सकता है। शक्तिसिंह आगे पीछे होते हुए ऐसे झटके लगा रहा था की उसका लंड, नगाड़े को पीट रहे डंडे की तरह, महारानी के जी-स्पॉट पर फटके लगा रहा था। महारानी की उत्तेजना की कोई सीमा न रही।

"ये क्या कर रहे हो..!!!" राजमाता चिल्लाते हुए खड़ी हो गई।

उनकी आवाज सुनकर शक्तिसिंह वहीं ठहर गया। उसकी नजर कभी अपने दो पैरों के बीच चुत खोलकर चुदवाती महारानी पर जाती तो कभी परदे के पीछे खड़ी क्रोधित राजमाता पर। जिस वक्त राजमाता उसपर चिल्ला रही थी उस वक्त महारानी अपनी चुत मांसपेशियों को संकुचन कर शक्तिसिंह के लंड को ऐसे दुह रही थी जैसे किसी गाय के थन को दुह रही हो।

शक्तिसिंह को अंदाजा तो लग गया था की राजमाता क्यों गुस्सा हुई थी!! पर अचंभा इस बात का था की इतनी अनुभवी औरत क्या यह भी नहीं समझती की ऐसी स्थिति में कुछ हरकतों का अपने आप ही हो जाना स्वाभाविक था!! क्या वह अपनी बहु की तड़पती हुई दशा नहीं देख पा रही थी? क्या वह बिना किसी प्रतिक्रिया के ही धक्के लगाए जाए? हालांकि नियम तो यही थे पर क्या उसका इतनी हद तक पालन करना जरूरी था? जब उसे महारानी को गर्भवती बनाने की छूट दे दी गई है तो इस प्रक्रिया में, दोनों पक्ष थोड़ा सा आनंद ले ले तो इसमें कौन सा आसमान टूट पड़ता!!

राजमाता को इन दोनों के बीच तुरंत हस्तक्षेप करने की तीव्र इच्छा हुई पर वह इसलिए हिचकिचाई क्योंकी अभी मंजिल हासिल नहीं हुई थी।

महारानी अपनी चुत की सुरसुरी को अपने अंदर ही रोके रखी थी, यह सोचकर की कहीं उनका पेशाब ना निकल जाए। वह चाहती थी की शक्तिसिंह दोबारा पूर्ण जोश से धक्के लगाकर उसे चोदे। वह अपने आप को चरमसीमा के बिल्कुल करीब महसूस कर रही थी जब राजमाता ने इस लाजवाब कबाब में हड्डी डाल दी। उनका शरीर तड़प रहा था... वह बिस्तर पर नागिन की तरह लोट रही थी... स्खलन की पूर्वानुमान से उनकी चूचियाँ फूल गई थी और उनकी निप्पलों में जैसी बिजली सी कौंध रही थी। दोनों चूचियाँ रेशम के चोली में कैद ऐसे छटपटा रही थी जैसे शिकारी के जाल में फंसे कबूतर!!

अब छातियों का दबाव उनसे सहा नहीं जा रहा था। बिस्तर पर कराहते वक्त, राजमाता के डर के कारण उसने यह ध्यान रखा था की वह शक्तिसिंह को उत्तेजना-वश कहीं छु न ले। पर उसकी जांघों के दाहिनी ओर, वह शक्तिसिंह की कलाइयों को बड़ी मजबूती से पकड़े हुए थी और अपने नाखून उसके हाथ में गाड़ चुकी थी। बिस्तर के दाहिनी ओर का द्रश्य राजमाता को नजर नहीं आ रहा था, यह गनीमत थी।

जब सहनशक्ति की सभी हदें पार हो गई तब महारानी ने अपने दूसरे हाथ से अपनी चूचियों को धर दबोचा। शक्तिसिंह के लंड को महारानी की मांसपेशियाँ इस कदर निचोड़ रही थी की उसे डर था किसी भी वक्त उसका वीर्य निकल जाएगा। हालांकि वह अभी स्खलन करना नहीं चाहता था। उसने अपना लंड महारानी की चुत से बाहर खींच लिया। ऐसा करते वक्त उसने संतुलन गंवा दिया और महारानी की छातियों पर जा गिरा। महारानी कराह उठी। उनकी सूजी हुई चूचियाँ अब किसी भी वक्त चोली फाड़कर बाहर निकल आने की धमकी दे रही थी। चोली के ऊपर से भी शक्तिसिंह को अपनी छाती पर उनकी कड़ी निप्पलों का एहसास हो रहा था। वह भी चाहता था की उन निप्पलों को बाहर निकालकर उन्हे मुंह में भरकर चुस ले।

शक्तिसिंह के सर पर अब शैतान सवार हो गया। उसने एक झटके में दोनों हाथों से महारानी की चोली को फाड़कर उनके मोटे मोटे बड़े स्तनों को आजाद कर दिया!! दोनों स्तन चोली से ऐसे बाहर निकले जैसे बड़ी बड़ी गोभी के फूल जमीन फाड़कर बाहर निकले हो। स्तनों की त्वचा लाल गुलाबी दिख रही थी और निप्पल तो इतनी कड़ी थी की त्वचा खरोंच दे।

महारानी ने अपने दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों से बुरी तरह मसला। शक्तिसिंह तो बस इन शानदार उरोजों को बस देखता ही रह गया। महारानी दोनों स्तनों को मींजते हुए अपनी निप्पलों को पकड़कर मरोड़ने लगी। वह चाहती थी की शक्तिसिंह उसकी दोनों निप्पलों को बारी बारी चूसे। उसने अपनी निप्पल को इतनी जोर से खींच लाई की उनके कंठ से एक मध्यम चीख निकल गई...

"आह्ह..."

"रुक जाओ, पद्मिनी.. !!" राजमाता दहाड़ी..

राजमाता की आवाज सुनते ही महारानी ने अपनी निप्पल छोड़ दी। पर उससे रहा न गया और वह उनके आदेश को अनदेखा कर फिर अपने स्तनों को मसलने लगी। वह बार बार ऐसा कर शक्तिसिंह को उकसाना चाहती थी, जो अभी भी काफी सावधानी बरत रहा था। उसी दौरान महारानी फिर से एक बार स्खलित हो गई। उनकी दोनों जांघों के बीच फंसे लंड के इर्दगिर्द से रस की धाराएँ बहकर बिस्तर पर जमा हो गई।

अपने स्तनों को मसल मसल कर महारानी ने एक और स्खलन प्राप्त कर लिया था। एक तरह से उसने अपनी उत्तेजना को प्राथमिकता देते हुए राजमाता के अंकुश की बेड़ियों को तोड़ दिया था। अब वह शक्तिसिंह के तरफ देख रही थी, यह सोच कर की वो भी उनका अनुकरण करे। हालांकि उसे यह पता था की उनके जितनी हिम्मत वह बेचारा सैनिक कर न पाएगा।

महारानी ने शक्तिसिंह का हाथ अपनी तरफ खींच और स्तनों की तरफ ले जाना चाहा पर उसने अपने हाथ को आगे ना जाने दिया।

"क्या बात है शक्तिसिंह?" महारानी ने पूछा

स्खलित होने के पश्चात अब महारानी की निप्पल नरम हो चुकी थी। शक्तिसिंह की नजर अभी भी उन दो दिव्य स्तनों पर चिपकी हुई थी जिस पर दो अंगूर जैसी निप्पल उसे चूसने के लिए न्योता दे रही थी।

महारानी के हाथ खींचने पर शक्तिसिंह थोड़ा सा सहम गया। उसने राजमाता को बुहार लगाई

"राजमाता जी... " शक्तिसिंह ने परदे के उस तरफ राजमाता की तरफ देखा

"जब तक हम एक दूसरे के पूर्ण रूप से सुखी और संतुष्ट नहीं करते, तब तक आप मुझ में अच्छी तरह से वीर्य नहीं भर पाएंगे" शक्तिसिंह की उंगलियों से खेलते हुए, महारानी ने कहा

"यह तुम क्या कह रही हो पद्मिनी?" राजमाता ने अपना विरोध जाहीर किया

"में सही तो कह रही हूँ, राजमाता। आप मुझ पर भरोसा रखिए बस, आपको अपना पोता मिल जाएगा!!" महारानी ने उत्तर दिया। महारानी ने शक्तिसिंह की आँखों में आँखें मिलाई।

"लेकिन में... " शक्तिसिंह अब भी दुविधा में था क्योंकी राजमाता की तरफ से कोई स्पष्ट स्वीकृति या आदेश अब तक नहीं मिला था

"लेकिन वेकीन कुछ नहीं... यह हमारा हुक्म है। आप महारानी पद्मिनी देवी के आदेश को मना नहीं कर सकते। " महारानी ने थोड़े सख्त सुर में कहा

शायद शक्तिसिंह भी इसी तरह के आदेश के इंतज़ार में था। राजमाता का ना सही पर महारानी का!!

शक्तिसिंह ने अब आव देखा न ताव... दोनों हाथों से महारानी के उन बड़े बड़े स्तनों को ऐसे मसलने लगा जैसे रोटी के लिए आटा गूँदते है। स्तन मसलते हुए उसने निप्पलों को भी उंगलियों से पकड़कर मरोड़ दिया।

पद्मिनी अब पूरे जोश में आ चुकी थी "हाँ शक्तिसिंह, बिल्कुल वैसे ही प्यार करो मुझसे... जो करना है करो मेरे जिस्म के साथ... "

शक्तिसिंह फिर एक बार राजमाता की ओर उनकी प्रतिक्रिया जानने के हेतु से देखा

"उन पर ध्यान मत दो.. वह नहीं समझ पाएगी। ना मेरी हालत और ना ही तुम्हारी" रानी ने भारी साँसे छोड़ते हुए कहा

पद्मिनी ने अपने हाथ दो जांघों के बीच डालकर शक्तिसिंह के चिपचिपे लंड को बड़े ही स्नेह से पकड़ा। उसकी चुत के काम-रस से पूरा लंड लिप्त था।

शक्तिसिंह ने अब दोबारा अपनी हथेलियों से महारानी के कूल्हों को उठाकर अपना औज़ार चुत के अंदर दे मारा। महारानी ने अपने दोनों पैरों से शक्तिसिंह की कमर को चौकड़ी मारकर जकड़ लिया।

महारानी ने अपनी गर्दन को तकिये के ऊपर इस तरह दबाया की उनकी कमर उचककर शक्तिसिंह के लंड को मूल तक निगल गई। शक्तिसिंह के हर धक्के के साथ उनकी पायलों की खनक पूरे तंबू में गूंज उठती थी।

"आह महारानी साहेबा... बहोत मज़ा आ रहा है" शक्तिसिंह अब अपने आप को रोक नहीं पा रहा था

"शक्तिसिंह, तुम जैसे चाहे मुझे रगड़ो... मेरी चुत के परखच्चे उड़ाकर अपनी वफादारी और मर्दानगी का सबूत दो मुझे!!"

दोनों अब ऐसी राह पर चल पड़े थे जहां से वापिस लौटना लगभग नामुमकिन सा था। लय और ताल के साथ लगता प्रत्येक धक्का, कई अनोखी ध्वनियों को जन्म देता था। दोनों के अस्पष्ट उदगार, पायल की खनक, बिस्तर की चरमराहट और गीली चुत के अंदर घुसते लंड से उद्भवीत होती "पुचुक पुचुक" की आवाज!!

हर धक्के पर महारानी को एहसास हो रहा था की महाराज कमलसिंह का लंड तो इस मूसल के मुकाबले कुछ भी नहीं था।

अब महारानी ने अपनी कमर को धनुष्य की प्रत्यंचा की तरह ऊपर की तरफ उठा दिया। इस स्थिति में अब शक्तिसिंह का सुपाड़ा चुत की ऐसी गहराइयों को छु रहा था जो महारानी को अनूठा आनंद देता था।

"आह आह.. अब मेरा निकलने को है... महारानी जीईईई... में अभी इसे समाप्त करना नहीं चाहता.. आह" शक्तिसिंह हर एक "आह" के साथ और जोर से चुत में धक्के लगा रहा था।

महारानी ने शक्तिसिंह के एक हाथ को पकड़कर सांत्वना देते हुए कहा "कोई बात नहीं... करते जाओ"

शक्तिसिंह ने अब झुककर महारानी की निप्पल को अपने मुंह में लेकर बेतहाशा धक्के लगाने शुरू किए।

"पीछे की तरफ हो जाओ... अभी के अभी..." राजमाता ने कहा। उन्हे इस बात का भरोसा था की अब मंजिल करीब थी पर वह फिर भी अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहती थी।

शक्तिसिंह दोनों हाथों से महारानी के स्तनों को मलते हुए उनके पेट को सहलाने लगा। फिर उनकी नाभि को कुरेदते हुए उसका हाथ नीचे गया जहां उसका लंड महारानी की चुत में नए जीव के सर्जन करने की कोशिश कर रहा था। महारानी के झांटों के बीच उसने उनके भगनासा (क्लिटोरिस) को उंगलियों से ढूंढ निकाला।

जैसे ही महारानी के भगनासा को उसने उंगलियों से छेड़ा, पद्मिनी की सांस अटक गई। शक्तिसिंह के कमर पर लपेटे पैरों से वह उसके कूल्हों को बुरी तरह पीटने लगी। उसकी आँखें ऊपर की तरफ चढ़ गई। उसका पूरा जिस्म बुरी तरह कांपने लगा।

"अब उसके अंदर स्खलित हो जाओ, जल्दी से" राजमाता ने जोर लगाया

शक्तिसिंह ने महारानी के दोनों स्तनों को कसकर दबोच लिया और धक्कों की गति और तेज कर दी।

"आह आह... लीजिए महारानी जी, मेरी प्यारी पद्मिनी... लो... मेरा रस ग्रहण करो... "

"हाँ, हाँ... भर दो मुझे, मेरी जान... " पद्मिनी की आँखों से अब आँसू बहने लगे। इस अनोखी मुलाकात से वह अब बेहद भावुक हो गई थी। बार बार स्खलित होकर वह अपनी भावनाओ पर से काबू खो बैठी थी। राजमाता के नियमों और अंकुश ने उन्हे कई तरफ से बांध कर रखा था पर फिर भी वह बेहद खुश थी की उसे अपनी मंजिल प्राप्त हो रही थी।

वीर्य की पहली धार अपनी चुत में महसूस होते ही वह चिल्लाई

"माँ, इसने मेरे अंदर वीर्य रस भर दिया है... !! ओह्ह... आह्ह!!"

हर झटके के साथ अपना गाढ़ा वीर्य छोड़ते हुए शक्तिसिंह का दिमाग सुन्न हो चला था। कुछ झटके लगाने के पश्चात वह रानी के खुले स्तनों पर लाश की तरह ढेर हो गया। यह उसकी पहली चुदाई थी... और वह भी अपनी महारानी के साथ... उसके भाग्यशाली लंड को शाही चुत में स्खलन करने का यह दिव्य मौका प्राप्त हुआ था। थकान के मारे वह अपना पूरा वज़न महारानी की छातियों पर यूं डाले सो रहा था की दोनों चूचियाँ बीच में दब चुकी थी। चुत के अंदर घुसा लंड अभी भी पिचकारियाँ मार रहा था।

महारानी अपने सैनिक की पीठ पर हाथ सहलाकर उसे शांत करने लगी। दोनों बुरी तरह हांफ रहे थे। वह अभी भी अपने भीतर मलाईदार वीर्य की गर्माहट अपनी चुत के हर हिस्से मे महसूस कर सकती थी। जो कार्य हाथ में लिया था वह तो पूरा हो चुका था पर अब बहुत बहुत कुछ और करना बाकी था।

महारानी ने शक्तिसिंह के कान पर एक हल्की सी चुम्मी दी.. और अपनी जीभ फेरकर उसे गुदगुदाया.. अपनी हथेली को शक्तिसिंह की पीठ से लेकर कूल्हों तक सहलाकर वह पश्चात-क्रीडा को अंजाम देने लगी।

दोनों की साँसे जैसे ही पूर्ववत हुई, शक्तिसिंह को पीठ को किसी ने थपथपाया.. वह राजमाता थी और संकेत दे रही थी की अब दोनों के अलग होने का समय आ गया था।

"में तुम्हारे पास दोबारा आऊँगी" अलग होने से पहले महारानी पद्मिनी शक्तिसिंह के कान में फुसफुसाई। शक्तिसिंह अपनी रानी के ऊपर से उठ खड़ा हुआ। ऊपर का वस्त्र उसने अभी भी पहने रखा था जो अथाग परिश्रम के कारण पसीने से भीग चुका था। उसके दो पैरों के बीच झूल रहे लंड अपनी सख्ती छोड़ी नहीं थी। पूरे खुमार से वह यहाँ से वहाँ हिल रहा था।

"बाप रे... " वीर्य और योनि रस से सम्पूर्ण भीगे हुए विकराल लंड को देखकर महारानी बोल पड़ी। साथ ही साथ उसे शक्तिसिंह के इस लंड पर ढेर सारा प्यार भी उमड़ पड़ा...

राजमाता ने तुरंत एक चद्दर उठाई और महारानी के खुले स्तनों को ढँक लिया... साथ ही साथ उन्होंने पैर फैलाए लेटी महारानी का घाघरा नीचे कर, उसकी चुत की दुकान बंद कर दी।

बिस्तर के बिल्कुल बाजू में पड़ी हुई धोती उठाकर शक्तिसिंह वहीं खड़े खड़े पहनने लगा। मस्ती के नशे में झूमती हुई महारानी ने लेटे लेटे ही शक्ति सिंह के लंड पर उँगलियाँ फेर दी और बोली

"जा रहे हो?"

"जी हाँ... क्यों?" शक्तिसिंह ने आश्चर्यसह पूछा

"अभी तो इसमें और जान बाकी है... इसे मेरे हवाले कर दो... फिरसे तैयार हो जाएगा" कुटिल मुस्कुराहट देते हुए महारानी बोली। जैसे राजमाता की उपस्थिति से उसे अब कोई फरक नहीं पड़ता था।

"तुम जाओ यहाँ से अब... " तीखी आवाज में राजमाता ने शक्तिसिंह को आदेश दिया। उसका बादामी रंग का चिपचिपा तगड़ा वीर्य से सना लंड देख राजमाता खुद सिहर गई। "साली ने बड़ी मस्ती से चुदवाकर मजे किए" पद्मिनी की तरफ थोड़ी सी नफरत से देखते हुए वह मन ही मन सोच रही थी।

धोती बांध रहे शक्तिसिंह के लंड पर अभी भी दोनों औरतों की नजर चिपकी हुई थी। महारानी की उँगलियाँ लंड से छूट ही नहीं रही था। राजमाता अब अपने बारे में सोच रही थी... की काश आज रात को यह हथियार का मज़ा मुझे मिल जाए!! शक्तिसिंह उलटे पैर चलते हुए सलाम करते करते तंबू से बाहर निकलने लगा। दोनों की आँखें आखिर तक उसकी धोती पर ही चिपकी रही।

अब यह राजमाता की जिम्मेदारी थी की वह राज्य के उत्तराधिकारी के वाहक की संरक्षा और देखभाल पूरी शिद्दत से करे। इस घनघोर चुदाई के बाद, महारानी के गर्भवती हो जाने की उन्हे पूरी उम्मीद थी।

राजमाता के जिस्म में अब अजीब सी हलचल होने लगी थी। एक घंटे के उस संभोग को देखकर वह असहज हो गई थी। सब योजना के मुताबिक हुआ था पर महारानी और शक्तिसिंह वासना के तारों से जुड़ गए थे, यह बात उन्हे काट कहा रही थी। हालांकि वह जानती थी की ऐसा होना स्वाभाविक था पर उनके आदेश के बावजूद हुई इस गुस्ताखी को उन्हों ने अपनी अवमानना की तरह लिया। शक्तिसिंह ने महारानी के स्तनों को दबोचा, निप्पल को मरडोकर चूस लिया, रानी ने उसकी कमर पर पैर लपेट लिया, इन सब के बावजूद वह कुछ न कर पाई।

"क्या में चाहकर भी रानी की चुत को द्रवित होते रोक पाती? क्या में शक्तिसिंह के लंड को उस क्षण पर नियंत्रित कर पाती?" राजमाता के दिमाग में प्रश्नों की झड़ी लग गई। हस्तक्षेप करने की भी अपनी सीमाए थी। फिर भी देखा जाए तो सब कुछ ठीक ही रहा था। उनके रोकने पर दोनों रुक गए थे और योजना के मुताबिक महारानी की चुत में भरपूर मात्रा में वीर्य भी बहा दिया गया था। कामावेश कम होते ही शक्तिसिंह भी आज्ञाकारी बन गया था और आदेश अनुसार उठ कर चला भी गया।

शक्तिसिंह के पसीने से तरबतर बदन और विकराल लंड का द्रश्य राजमाता की नज़रों से हट ही नहीं रहा था। महारानी ने जिस तरह शक्तिसिंह को अपने वश में कर मनमानी कर ली इससे राजमाता के मन में ईर्षा का भाव जागृत हो गया। शक्तिसिंह का तगड़ा लंड जब चुत को चीरकर अंदर घुसा होगा तब कितना आनंद आया होगा यह सोचते ही राजमाता की चुत द्रवित हो गई। बिस्तर पर लेटे लेटे कब उनका हाथ अपने घाघरे के अंदर चला गया उसका उन्हे पता भी नहीं चला। अपने दाने को घिसकर प्यास बुझाने के बाद ही उनकी आँख लगी।

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थका हुआ शक्तिसिंह अपने तंबू में आते ही ढेर हो गया। जीवन की इस प्रथम चुदाई में जितना आनंद आया था उतना ही उसका दम भी निकल गया। बिस्तर पर गिरते ही उसे गहरी नींद आ गई।

उसकी नींद में तब खलल पड़ी जब उसे अपनी धोती के अंदर कोई हलचल होती महसूस हुई। स्वभाव से चौकन्ने सैनिक ने पास पड़ी कतार उठाकर सामने धर दी। आँख खोलकर देखा तो वह महारानी पद्मिनी थी!! तुरंत ही उसने कतार को म्यान में रख दिया। उसे पता ही नहीं चला की कब रानी उसके तंबू में आकार उसके बिस्तर पर लेट गई और धोती से उसका लंड बाहर निकालकर उसे सहलाने लगी। नींद में भी वह रानी की गद्देदार चुत के सपने देख रहा था। आँख खुली तो वही सामने उसके लंड से खेलती नजर आई।

8
बहुत ही शानदार वर्णन किया है, एक एक पल को जैसे दृश्य सामने चल रहा हो। अपडेट में उत्तेजना अपनी पराकाष्ठा से भी ज्यादा भड़का दिया लेखक महोदय ने।
लेखक का दृश्य विवरण अतुल्य है।

और यहां महारानी एवं राजमाता दोनों ही शक्तिसिंह के लिए अब तैयार है।
 
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मध्यरात्री के समय अचानक राजमाता की आँख खुल गई। उन्होंने आँखें खोलकर देखा तो उनका घाघरा ऊपर उठा हुआ था और उनकी एक उंगली चुत की अंदर धँसी हुई थी। अपनी चिपचिपी उंगली को बाहर निकालकर उन्होंने घाघरा ठीक किया और बिस्तर से उठ गई। किसी अनजान सी घबराहट के चलते वह बेचैन हो गई थी।
उन्होंने अपने तंबू के बिल्कुल बगल में बने महारानी के विशाल तंबू में प्रवेश किया। महारानी का बिस्तर खाली पड़ा था। वह वापिस लौटने ही वाली थी की तब किसी की खिलखिलाकर हंसने के आवाज ने उनके पैरों को रोक दिया। उस बड़े से तंबू में दो हिस्से बने हुए थे। बीच में अपारदर्शी पर्दा था जिसके पीछे महारानी तैयार होती थी। राजमाता को पक्का यकीन था की आवाज उस परदे के पीछे से ही आई थी। वह दबे पाँव चुपके से परदे के कोने तक गई और हल्का सा खिसकाकर अंदर देखने लगी। उनकी आँखें अंधेरे से आदि होते ही उन्हे दीपक की रोशनी में दो परछाई नजर आई। ध्यान से देखने पर उन्हे वही दिखा जिसका की उन्हे डर था।

शक्तिसिंह ने महारानी पद्मिनी को चूतड़ों से उठाया हुआ था। रानी के दोनों पैर शक्तिसिंह की कमर पर लपेटे हुए थे। वह रानी को उछाल उछालकर चोद रहा था और रानी खिलखिलाते हुए हंस रही थी। पद्मिनी ने अपनी दोनों बाहें शक्तिसिंह के गले में अजगर की तरह डाल रखी थी। और दोनों प्रगाढ़ चुंबन करते हुए चुदाई कर रहे थे। कई मिनटों तक ऐसे ही झटके लगाने के बाद शक्तिसिंह ने महारानी को संभालकर नीचे उतार और उनको पलटा दिया। महारानी को झुकाकर उसने दो चूतड़ों के बीच उनकी गीली चुत के सुराख में लंड दे मारा। महारानी ने अपने दोनों हाथ घुटनों पर टेककर अपने शरीर का संतुलन बनाए रखा था। बड़े ही मजे से वह शक्तिसिंह के धक्कों को अपनी चुत में समेटकर मजे बटोर रही थी। चोदते हुए शक्तिसिंह अपने दोनों हाथों को आगे की ओर लेकर गया और उनकी चूचियों को रंगेहाथ पकड़ लिया। उन्हे दबोच दबोचकर ऐसा मसला की महारानी की मुंह से आह-ऊँह के उदगार निकल गए। एक दूसरे के नंगे जिस्म को अब वह बिना किसी रुकावट के पूरा महसूस कर पा रहे थे।

राजमाता आश्चर्यसह उन दोनों के इस चुदाई खेल को चुपके से देख रही थी।

शक्तिसिंह किसी घोड़े की तरह महारानी के चूतड़ फैलाकर धमाधम धक्के लगा रहा था। उसके हर धक्के पर महारानी थोड़ी सी आगे चली जाती थी। अपने घुटनों पर हाथ टेके हुए महारानी बदहवासी से चुदवा रही थी।

"चोदो मुझे.. और दम लगाकर चोदो..." महारानी चिल्लाई, यह सूचित करने के लिए की झटके थोड़े धीमे पड़ गए थे। रानी के मुख से ऐसे शब्दों का प्रयोग सुनकर शक्तिसिंह और राजमाता दोनों चोंक गए।

इन दोनों की चुदाई देख बेहद उत्तेजित राजमाता घाघरे के भीतर उंगली डाले ईर्षा से जल रही थी। उनकी खुद की चूचियाँ गरम और सख्त हो चली थी। अपनी पुत्रवधू को बेशर्म की तरह किसी सैनिक से चुदता देख वह अपने आप पर काबू नहीं रख पा रही थी। रानी के बड़े बड़े खरबूजे, शक्तिसिंह के हर धक्के पर, आगे पीछे झूल रहे थे।

और अब जब उसने रानी को खुले शब्दों में चोदने की भीख मांगते हुए सुना तो उसे बहुत जलन महसूस हुई। उसकी चूत, जो अपने पति के निधन के बाद, वर्षों से निष्क्रिय पड़ी थी, अब बेहद गीली और चिपचिपी बन गई थी।

शक्तिसिंह रानी के दोनों स्तनों को आगे से पकड़कर, पीछे धक्के लगाए जा रहा था। हालांकि उसके धक्कों में अब थोड़ी सी थकावट महसूस हो रही थी। रानी ने तुरंत ही पास पड़े एक पत्थर पर अपनी एक टांग जमाई और आसान में तबदीली की। अब शक्तिसिंह आसानी से चुत की गहराइयों तक लंड घुसेड़ सकता था। झटकों की गति और जोर पूर्ववत हो गए।

"लगा दम... जोर से चोद... और जोर से... " रानी सातवे आसमान पर पहुँच गई थी। हर झटके के साथ उसकी भूख बढ़ती जा रही थी।

रानी की उत्तेजना को पहचान कर शक्तिसिंह ने अपने एक हाथ को उसकी दोनों जांघों के बीच से ले जाकर उसके भगनासा (क्लिटोरिस) के दाने को ढूंढ निकाला। अब चुदाई के साथ वह उस दाने को भी रगड़कर महारानी के आनंद में अभिवृद्धि कर रहा था। तभी शक्तिसिंह की आँखें परदे के पीछे खड़ी राजमाता से टकराई। एक पल के लीये वह धक्के लगाते रुक गया पर फिर कुछ सोचकर उसने धक्के लगाना शुरू कर दिया। उसने एक पल के लिए भी अपनी नजर राजमाता से नहीं हटाई। झुकी हुई होने के कारण महारानी को इन सब बातों का जरा सा भी अंदाज ना लग पाया।

राजमाता स्तब्ध होकर यह सब देख रही थी। उनकी योजना पर पानी फेर दिया था इन दोनों ने!! क्रोधित होने के बावजूद इस स्थिति में उसे वह व्यक्त नहीं कर पा रही थी। वह चाहती तो अभी हस्तक्षेप कर उन दोनों को रंगे हाथ पकड़कर रोक सकती थी, पर फिलहाल उनके क्रोध के ऊपर उनकी वासना हावी हो चली थी। गीली चुत ने उनकी टांगों को कमजोर कर दिया। उन्हे यह डर था की इस अवस्था में शक्तिसिंह के करीब जाने के बाद वह अपने आप को उससे लिपटने से कैसे रोक पाएगी!!

राजमाता की तरफ देखते हुए वह महारानी के गोरे गुंबज जैसे चूतड़ों पर हाथ फेरने लगा। महारानी सिसकियाँ भरते हुए और कराहते हुए दोनों टांगों को चौड़ा कर मस्ती से चुदवा रही थी। शक्तिसिंह ने उनके चूतड़ों को अपने हाथों से और फैलाया ताकि लंड और गहराई से अंदर घुस सके। साथ ही साथ उसने एक बार और महारानी के दाने को पकड़कर मसल दिया।

"ऊई माँ... आहहहहहह....!!! इस दोहरे हमले से महारानी उत्तेजना से कांप उठी

अपनी पुत्रवधू की आवाज ने राजमाता को झकझोर दिया... अनायास ही उनके मुख से निकल गया

"बेटा, जरा ध्यान से..!!" आवाज निकल जाने के बाद राजमाता खुद को कोसने लगी।

पद्मिनी अचानक रुक गई। झुकी हुई मुद्रा से वह तुरंत ऊपर उठ गई। शक्तिसिंह का लंड एक झटके में बाहर निकल गया... महारानी की चुत के रस की कुछ बूंदें नीचे टपक गई। महारानी ने डरते हुए सामने देखा और राजमाता को वहाँ खड़ा देखकर वह स्तब्ध बन गई।

इन सारी बातों से अनजान महारानी की चुत, इस रुकावट से परेशान हो गई। इतने मस्त मोटे लंड से चल रही दमदार चुदाई अचानक रुक जाना उसे राज न आया।

महारानी की दुविधा यह थी की इस परिस्थिति में वह कीसे महत्व दे!! अपनी चुत की अभिलाषा को या अपनी सास को??

महारानी के तंबू के भीतर अजीब सा सन्नाटा छा गया था।

पूरे तंबू में केवल एक ही दिया जगमगा रहा था। परदे के उस तरफ खड़ी राजमाता का चेहरा उसमें साफ दिखाई दे रहा था। गनीमत थी की अंधेरे के कारण उन्हे चेहरे के अलावा और कुछ नहीं दिख रहा था वरना... जांघों तक घाघरा उठाकर अपने दाने को रगड़ती हुई राजमाता नजर आती!!

तीनों एक दूसरे के सामने देख रहे थे। पर शक्तिसिंह और पद्मिनी यह नहीं समझ पाए की राजमाता का गुस्सा अभी तक फटा क्यों नहीं!! अब तक तो वह उनपर बरस चुकी होती... पता नहीं क्यों फिलहाल वह गरीब सा चेहरा बनाकर आँखें मुँदती उनके सामने मूर्ति की तरह खड़ी थी... दोनों बड़े ही आश्चर्य से राजमाता को देखते रहे। कुछ क्षणों तक जब उनके तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना मिली तब उसे मुक सहमति समझकर शक्तिसिंह ने फिर से महारानी को झुकाकर घोड़ी बना दिया।

हवस का असर इस कदर सर पर सवार था की महारानी ने भी ज्यादा कुछ ना सोचते हुए जांघें चौड़ी कर दी, झुक गई और अपनी वासना को अधिक महत्व देने का फैसला कर चुदवाने में व्यस्त हो गई। शक्तिसिंह ने अपनी सारी ऊर्जा इस संभोग में झोंक दी थी। अब उसे किसी बात का कोई डर न था। वह भी अब महारानी की पीठ के ऊपर झुककर उनके दोनों स्तनों को हाथ में पकड़कर मसलने लगा।

एक बार फिर शक्तिसिंह ने राजमाता की तरफ नजर की। उनकी आँखों में गुस्से के बजाए महारानी के प्रति जलन स्पष्ट दिख रही थी।

महारानी भी अब ताव में आ गई थी। शक्तिसिंह ने दोनों चूचियाँ पकड़ रखी थी तो उन्होंने खुद ही अपनी क्लिटोरिस को मलना शुरू कर दिया। फैली हुई चुत में मूसल सा लँड किसी यंत्र की तरह अंदर बाहर हो रहा था। चुत से काम-रस की नदी सी बह रही थी। चूचियों को मसल मसलकर शक्तिसिंह ने उसे लाल कर दिया था।

महारानी को इतनी मस्ती से चुदते देख राजमाता को अपराध भावना परेशान करने लगी, यह सोचकर की उसका पुत्र, राजा कमलसिंह, अपनी पत्नी को ऐसा सुख प्रदान करने में विफल रहा। पराकाष्ठा और चरमसुख देने वाली दमदार चुदाई, हर स्त्री का हक है और उसे मिलनी ही चाहिए, ऐसा उनका मानना था। शक्तिसिंह का मूसल चुत के अंदर कितना आनंद दे रहा होगा उसकी कल्पना करते ही राजमाता की चुत ने गुनगुना पानी छोड़ दिया। उन्हे लग रहा था की जो कुछ भी महारानी कर रही थी उसमे उसकी कोई गलती नहीं था। सालों से जो स्त्री ठीक से चुदी ना हो वह ऐसा लंड देखकर खुद को कैसे रोके!! और शुरुआत तो राजमाता ने ही करवाई थी... अब उस चुदाई के बाद अगर महारानी शक्तिसिंह के लंड की ग़ुलाम बन गई तो भला उसमे उस बेचारी का क्या दोष!!

राजमाता ने उस संभोग-रत जोड़े के करीब जाने का फैसला किया। उसने सोचा की जिस तरह से उन्होंने दोनों को अंकुश में रखने का प्रयत्न किया था उसी कारण इन दोनों की कामवासना और भड़क उठी। उन्हे लगा की इन दोनों के करीब जाकर उन्हे मौन स्वीकृति देनी चाहिए।

राजमाता उन दोनों के करीब जाकर खड़ी हो गई। महारानी ने उनको देखते हुए अनदेखा कर दिया और अपनी आनंद यात्रा में लगी रही। वह अभी भी पागलों की तरह अपनी चुत को रगड़ रही थी। शक्तिसिंह ने राजमाता की तरफ एक नजर डाली और फिर महारानी के कूल्हों को पकड़कर वही रफ्तार से चुदाई करने में व्यस्त हो गया।

राजमाता ने पहले शक्तिसिंह की पीठ को सहलाया। उसकी पीठ की मांसपेशियाँ इस परिश्रम से बेहद सख्त और पसीने से लथबथ हो गई थी।

"करो... करते रहो... और खतम करो इसे.. " उन्होंने बड़ी ही धीमी आवाज में कहा और फिर पद्मिनी के सर पर हाथ पसारने लगी।

पद्मिनी ने इशारे से शक्तिसिंह को चुदाई रोकने के लिए कहा। काफी देर से झुककर चुदवाते हुए वह थक गई थी। शक्तिसिंह ने संभालकर अपना लंड उसकी चुत से निकाला.. काले, चिपचिपे लंड जैसे ही बाहर निकला, राजमाता की नजर चुंबक की तरफ उस पर चिपक गई। महारानी अब खड़ी होकर शक्तिसिंह की तरफ मुड़ी। उनका इशारा मिलते ही शक्तिसिंह ने वापिस उन्हे उठाया लिया, रानी ने कमर पर पैर लपेटे और शक्तिसिंह के लंड पर बैठ गई। इस आसान में महारानी को थकान भी नहीं हो रही थी और लंड भी काफी गहराई तक अंदर जाता था।

शक्तिसिंह ने महारानी के होंठों को चूम लिया। महारानी ने भी सामने एक और दीर्घ चुंबन कर उसे प्रतिसाद दिया। नागिन की जीभ की तरह वह शक्तिसिंह के मुंह के हर कोने को नापने लगी। ऐसा प्रतीत हो रहा था की जिस तरह शक्तिसिंह का लंड उनकी चुत को चोद रहा था बिल्कुल वैसे ही वह अपनी जीभ से उसके मुँह को चोदना चाहती थी।

राजमाता भी अब अस्वस्थ सी होने लगी। परदे के पीछे तो वह अपनी उंगली से चुत कुरेदकर अपने आप को संभाल रही थी... पर अब उन दोनों को सामने ऐसा करना संभव नहीं था। वह सोच रही थी की वापिस अपने तंबू में जाकर लकड़ी का डंडा अंदर घुसेड़कर प्यास बुझानी पड़ेगी। पद्मिनी के मस्त मोटे गरम उरोजों को शक्तिसिंह द्वारा मसलवाते देख राजमाता बेहद गरम हो गई। हालांकि अब उनकी चूचियों में अब पद्मिनी जैसा कसाव तो नहीं था पर फिर भी उतनी कटिली तो जरूर थी की किसी मर्द की नजरे चिपक जाए।

और बर्दाश्त ना होने पर वह मुड़कर वापिस अपने तंबू के तरफ जाने लगी तभी, शक्तिसिंह ने उनकी कलाई पकड़कर रोक दिया। राजमाता चकित रह गई। उसने पलटकर देखा तो शक्तिसिंह एक हाथ से महारानी को चूतड़ से पकड़े हुए था और दूसरे हाथ में उनकी कलाई थी। आँख बंद कर लंड पर उछल रही पद्मिनी को जब अपने चूतड़ों के नीचे एक ही हाथ का अनुभव हुआ तब दूसरे हाथ की तलाश में उन्होंने आँखें खोली।

शक्तिसिंह को राजमाता का हाथ पकड़े देख वह क्रोधित हो उठी

"शक्तिसिंह.... " कहते हुए उसने शक्तिसिंह का हाथ झटक कर अपने तरफ कर लिया...

ऐसा करने पर शक्तिसिंह का संतुलन थोड़ा सा बिगड़ गया। अपने आपको गिरने से बचाने के लिए उसने अपनी टाँगे फैलाई। ऐसा करने से उसका लंड महारानी की बच्चेदानी को जा टकराया और उनकी आह निकल गई।

"मुझे चोदते रहो शक्तिसिंह... में अब अपनी मंजिल पर पहुचने वाली हूँ... अपना ध्यान भटकने मत दो.. आह आह.. भर दो मुझे... चोदो मुझे... " पागलों की तरह महारानी बड़बड़ाने लगी।

दोनों ने एक दूसरे को सख्त आगोश में जकड़ रखा था। झांट से झांट उलझ गए थे... लंड और चुत एक दूसरे के रस का आदान-प्रदान कर रहे थे, महारानी की निप्पल शक्तिसिंह की छाती से रगड़ खा रही थी और साथ ही दोनों एक दूसरे के होंठों को चूसते जा रहे थे। शक्तिसिंह के हर धक्के के साथ महारानी का गांड का छिद्र सिकुड़ जाता।


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Super sexiest update bro...
Maharani apni kamukta k chalte shakti Singh k camp tak pahuch gyi.
Ab to lag rha h threesome hoga 😀😀😀
 
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