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Mast jabarjast jindabadसूरज ढलने की कगार पर था और तभी क्षितिज पर महाराज का खेमा लौटता हुआ नजर आया.. उन्हे देखते ही छावनी में हलचल मच गई.. शिकार से वापिस आ रहे सैनिक काफी सुस्त नजर आ रहे थे... क्योंकी काफी गर्मी थी.. पर उनके चेहरे पर खुशी थी.. आज कुल मिलाकर उन्होंने २५ हिरण, २ तेंदुओ और १०० से ज्यादा खरगोशों का शिकार किया था... छावनी के बीच उन शिकार का जैसे ढेर सा बन गया... आज की दावत बड़ी ही खास होने वाली थी..
थकी हुई राजमाता लड़खड़ाती चाल से चलते अपने तंबू में चली गई... लग रहा था की पूरे दिन बाहर घूमने का परिश्रम उन्हे राज नहीं आया था... महाराज भी शराब की तलब को शांत करने अपने तंबू में लौट गए... सारे सैनिक सुस्ताकर यहाँ वहाँ ढेर होकर आराम करने लगे... उनमें शक्तिसिंह भी शामिल था... महारानी से मिलकर वापिस लौटते हुए उसने काफी दूर से जब महाराज के काफिले को देखा तब उनके पीछे न जाकर... दूसरे रास्ते से उनके काफी आगे निकल गया... जब वह काफिला बढ़ते बढ़ते आगे उससे मिला तब सबको यही प्रतीत हुआ की शक्तिसिंह काफी आगे निकल गए होने की वजह से दिख नहीं रहा था... किसी को भी कुछ शंका न हुई..
यहाँ राजमाता अपने तंबू में पहुंचते ही बिस्तर पर ढेर हो गई... पूरा दिन हाथी पर बैठे रहने से उनकी कमर अटक गई थी और बहुत दर्द कर रही थी... ऊपर से गर्मी ने भी उनकी हालत खराब कर दी थी... शिकार पर जाने का निर्णय करने पर वह अपने आप को ही कोसती रही। उन्होंने आवाज देकर अपनी दासी को बुलाया...
"जी राजमाता जी" सलाम करते हुए दासी ने कहा
"में दर्द से मरी जा रही हूँ.. थोड़ा सा गरम तेल ला और मेरी मालिश कर... हाय रे मेरी कमर" राजमाता दर्द से कराह रही थी
दासी थोड़ी ही देर में गरम तेल लेकर हाजिर हुई... राजमाता के बगल में बैठकर उनकी कमर पर मालिश करने लगी..
"आज खाना ठीक से खाया नहीं था क्या तूने?"
"जी भोजन तो मैंने दोपहर में ठीक से किया था"
"तो फिर हाथ का जोर लगा ठीक से... ये क्या हल्के हल्के सहला रही है...!! रात को सैनिकों के लंडों को तो बड़े जोर से मालिश करती है...लगा जोर ठीक से... मेरी कमर के तो जैसे टुकड़े टुकड़े हो गए हो ऐसा दर्द हो रहा है" अब वह दर्द से पागल हुई जा रही थी...
दासी शरमाते हुए दोनों हाथों से तेल मलने लगी.. पर उसके कोमल हाथों में वोह दम खम नहीं था जो राजमाता को चाहिए था... थोड़ी देर और मालिश के बाद राजमाता ने कहा
"तू छोड़ दे... ऐसे तो सुबह तक मालिश करेगी तब भी मेरा कुछ नहीं होगा... एक काम कर... जाकर शक्तिसिंह को संदेश दे की भोजन के बाद तुरंत यहाँ आ जाएँ"
"आप भोजन करने नहीं आएगी?"
"अरे मरी.. यहाँ दर्द से मेरी जान निकली जा रही है... और तुझे भोजन की चिंता है..!! तू जा अब और जो कहा है वो कर.. हाय में मर गई.. !!"
दासी तुरंत उठकर तंबू से बाहर चली गई और शक्तिसिंह को संदेश पहुंचाकर आई.. शक्तिसिंह भोजन निपटाकर तुरंत राजमाता के तंबू पर पहुंचा..
उसकी आशा के विपरीत, राजमाता बिस्तर पर लाश की तरह पड़ी थी.. रोज की तरह उसने तंबू के परदे को दोनों तरफ अंदर से गांठ मारकर बंद कर दिया ताकि कोई अंदर आ न जाए।
वह राजमाता के बिस्तर पर जाकर उनके पास बैठ गया और राजमाता की पीठ पर हाथ सहलाया।
"आज बड़ी जल्दी बुला लिया आपने? चलिए वस्त्र उतार दीजिए ताकि में आपको तृप्त कर सकूँ"
"कमीने, मेरी हालत तो देख...तुझे ठुकाई करने नहीं बुलाया है... मेरी कमर चूर चूर हो रही है... वहाँ गरम तेल पड़ा है उससे मेरी अच्छे से मालिश कर दे आज"
मुसकुराते हुए शक्तिसिंह ने तेल की कटोरी उठाई... और पेट के बल सो रही राजमाता के शरीर पर सवार हो गया। उनकी कमर पर तेल की धार गिराते हुए वह धीरे धीरे मालिश करने लगा... तेल की धार रिसकर उनके घाघरे में जा रही थी।
"राजमाता, अगर दिक्कत ना हो तो आपका घाघरा उतार दीजिए... सफेद रंग के वस्त्र तेल से खराब हो रहे है"
"अब तेरे सामने नंगा होने में मुझे भला कौन सी दिक्कत होगी!! ले मैंने गांठ खोल दी है... अब तू ही घाघरा खींचकर पैरों से निकाल दे... "
राजमाता ने अपने पेट को थोड़ा सा ऊपर किया और शक्तिसिंह ने बड़ी ही सफाई से घाघरा उतारकर नीचे रख दिया।
अब राजमाता के दो गोल ढले हुए चूतड़ों पर चढ़कर शक्तिसिंह अपने बलवान हाथों से मालिश करने लगा... राजमाता को बड़ी राहत मिल रही थी.. उसके प्रत्येक बार जोर लगाने पर वह कराह उठती... पीठ से लेकर चूतड़ों तक शक्तिसिंह जोर लगाते हुए चक्राकार हाथ घुमा रहा था.. राजमाता के मस्त कूल्हों को देखकर उसके मन में शरारती खयाल आया... चूतड़ों को फैलाकर उसने राजमाता की गांड के छेद पर तेल की धार गिराई...
"हाय रे... ये कहाँ तेल डाल रहा है तू!!"
"आप बस लेटी रहे... और देखें में कैसे आपकी सारी थकान दूर भगाता हूँ.. " राजमाता चुपचाप पड़ी रही
राजमाता की गाँड़ के बादामी घेरे वाले छेद पर तेल लगाकर वह उसके इर्दगिर्द उंगली घुमाने लगा... उंगली को थोड़ा सा दबाते छेद खुल जाता और तेल अंदर चला जाता। साथ ही साथ वह चूतड़ों को भी अपने भारी हाथों से मलकर मालिश किए जा रहा था। इस तगड़े मालिश से राजमाता को बड़ा ही आराम मिल रहा था... राहत मिलते ही उनकी आँख लग गई..
यहाँ शक्तिसिंह राजमाता के रसीले कूल्हों को और गाँड़ के छेद को देखकर उत्तेजित हो रहा था... मालिश के बीच रुककर उसने अपनी धोती उतार दी.. और वापिस राजमाता पर चढ़ गया.. अब उसका सारा ध्यान राजमाता के गाँड़ पर केंद्रित था.. दोपहर पहली बार कसी हुई गाँड़ का स्वाद चखकर उसे बड़ा मज़ा आया था.. असावधान राजमाता की गाँड़ देखकर उसकी आँखों में वासना के सांप लोटने लगे।
minuscule lettre
अब वह चूतड़ों को अलग कर उंगली पर काफी मात्रा में तेल लेकर राजमाता की गांड में धीरे धीरे सरकाने लगा। महारानी के मुकाबले राजमाता का छेद थोड़ा फैला हुआ था और उंगली भी तेल वाली थी इसलिए आसानी से अंदर चली गई... राजमाता की गांड के अंदर का मुलायम गरम स्पर्श महसूस करते ही शक्तिसिंह सिहर उठा... उसका लंड ताव में आकर राजमाता के घुटनों के ऊपर नगाड़े बजाने लगा...
राजमाता खर्राटे मार रही थी... इसलिए शक्तिसिंह को ओर प्रोत्साहन मिला... उसने अब दूसरी उंगली भी अंदर डाल दी.. राजमाता के खर्राटे अचानक बंद होने से शक्तिसिंह सावधान हो गया पर उनकी आँखें अभी भी बंद ही थी.. शक्तिसिंह ने दोनों उंगलियों को ज्यों का त्यों राजमाता की गांड में ही रहने दिया... कुछ पल के इंतज़ार के बाद खर्राटे फिर शुरू हो गए और शक्तिसिंह का काम भी...
दोनों उंगलियों को गांड में आगे पीछे करते हुए शक्तिसिंह और तेल डालता ही गया ताकि उनका छेद पूरी तरह से चिकना हो जाए... अधिक आसानी के लिए उसने धीरे से राजमाता की दोनों टांगों को बिस्तर पर फैला दिया... अब वह दोनों जांघों के बीच जा बैठा..
अब उसने अपनी योजना पर अमल करना शुरू किया... काफी सारा तेल लेकर वह अपने कड़े लंड पर मलने लगा.. उसका काल मूसल अब तेल से लसलसित हो चुका था.. अब एक हथेली से उसने राजमाता के कूल्हे को पकड़े रखा और हल्का सा जोर लगाकर अपना सुपाड़ा अंदर घुसेड़ दिया...
थकान के मारे लगभग बेहोश अवस्था में सो रही राजमाता की नींद अब भी नहीं खुली। शक्तिसिंह ने धीरे धीरे अपने लंड को अंदर सरकाना शुरू किया... आधे से ज्यादा लंड अंदर घुसाने पर भी जब राजमाता ने कोई हरकत न की तब उसने एक मजबूत झटका लगाते हुए पूरा लंड अंदर धकेल दिया...
राजमाता की नींद खुल गई.. उन्हे पता नहीं चल रहा था की आखिर क्या हो गया!! होश संभालते ही उन्हे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उनकी गांड में किसी ने जलती हुई मशाल घोंप दी हो!! शक्तिसिंह के शरीर के वज़न तले दबे होने के कारण वह ज्यादा हिल भी नहीं पा रही थी... मुड़कर देखने पर पता चला की शक्तिसिंह उनपर सवार था... फिर उन्हे अंदाजा लगाने में देर न लगी की आखिर उनकी गांड में क्या जल रहा था!!
"क्या कर रहा है कमीने? निकाल अपना लंड बाहर... " गुस्से में आकर राजमाता ने कहा
शक्तिसिंह आज अलग ही ताव में था.. राजमाता की मुलायम चौड़ी गांड का नशा उसके सर पर चढ़ चुका था.. इतने दिनों से राजमाता को चोदने के बाद वह इतना तो जान चुका था की उसकी थोड़ी बहुत मनमानी को सह लिया जाएगा...
"अपना शरीर ढीला छोड़ दीजिए राजमाता जी... फिर देखिए इसमें कैसा आनंद आता है.." उनके कानों में शक्तिसिंह फुसफुसाया
"कैसा आनंद? पीछे भी भला कोई डालता है क्या? पता नहीं कहाँ से ऐसी जानवरों वाली चुदाई सिख आया है"
"मेरा विश्वास कीजिए, आप अगर अपने पिछवाड़े की मांसपेशियों को थोड़ा सा शिथिल कर देगी तो जरा भी कष्ट न होगा और मज़ा भी आएगा"
"मुझे बिल्कुल भी मज़ा नहीं आ रहा है... पीछे जलन हो रही है... इतना मोटा लंड तूने अंदर घुसया कैसे यही पता नहीं चल पा रहा मुझे... "
शक्तिसिंह को लगा की बिना राजमाता को उत्तेजित किए वह उन्हे आगे का कार्यक्रम करने नहीं देगी... उसने उनकी जांघों के नीचे अपना हाथ सरकाया और उनके दाने को अपनी उंगलियों की हिरासत में ले लिया... उसे रगड़ते ही राजमाता सिहरने लगी..
"तुझे चुदासी चढ़ी ही थी तो पहले बता देता... में घूम जाती हूँ... फिर चाहे जितना मन हो आगे चोद ले.. "
"राजमाता जी, अब यह शुरू किया है तो खतम करने दीजिए... आपसे विनती है मेरी.. "
राजमाता मौन रहकर अपने दाने के घर्षण पर ध्यान केंद्रित करने लगी।
शक्तिसिंह धीरे धीरे धक्के लगा रहा था ताकि राजमाता कष्ट से उसे रोक न दे.. अब वह एक हाथ से राजमाता के भगांकुर को रगड़ रहा था और दूसरे हाथ से उनकी चुची... महारानी और राजमाता से इतनी बार चुदाई करके उसे यह ज्ञात हो गया था की स्त्री के कौनसे हिस्सों को छेड़ने से उनकी उत्तेजना तीव्र बन जाती है... उसने उनकी गर्दन के पिछले हिस्से को चाटना और चूमना भी शुरू कर दिया...
इन सारी हरकतों ने राजमाता को बेहद उत्तेजित कर दिया... और उस उत्तेजना ने गांड चुदाई के दर्द को भुला दिया.. वह सिसकियाँ भरते हुए अपने दाने के घर्षण, चुची के मर्दन और गर्दन पर चुंबन का तिहरा मज़ा ले रही थी।
भगांकुर को रगड़ते हुए अपनी उंगली राजमाता के भोसड़े में डालते हुए अंदर के गिलेपन का एहसास होते ही शक्तिसिंह को राहत हुई... अब उसे यह विश्वास हो गया की उसे यह अनोखी गाँड़ चुदाई बीच में रोकनी नहीं पड़ेगी...
अब शक्तिसिंह ने धक्कों की तीव्रता और गति दोनों बढ़ाई... राजमाता उफ्फ़ उफ्फ़ करती रही और वह उनके दाने को दबाकर चुत में उंगली घुसेड़ता रहा... अपने शरीर का पूरा भार रख देने के बाद भी उसका थोड़ा सा लंड का हिस्सा अभी भी बाहर था... राजमाता की गद्देदार गांड को वह बड़े मजे से चोदता रहा... चोदने के इस नए तरीके का ईजाद शक्तिसिंह को बेहद पसंद आया...
"अब बहोत हो गया... या तो तू झड़ जा या फिर मेरी गांड से लँड बाहर निकाल... " राजमाता कसमसाई
"बस अब बेहद करीब हूँ... मुझे मजधार में मत छोड़िएगा.." हांफते हुए धक्के लगाते शक्तिसिंह ने कहा
राजमाता के भोसड़े से हाथ हटाकर अब वह दोनों स्तनों को मजबूती से मसलने लगा... शकतसिंह की जांघें और राजमाता के चूतड़ इस परिश्रम के कारण पसीने से तर हुए जा रहे थे...
"बस अब छोड़ मुझे... खतम कर इसे जल्दी..." राजमाता कराह रही थी...
शक्तिसिंह ने पिस्टन की तरह अपने लंड को राजमाता के इंजन की अंदर बाहर करना शुरू कर दिया... अंतिम कुछ धक्के देते हुए दहाड़कर शक्तिसिंह ने राजमाता की गांड अपने वीर्य से गीली कर दी... अपने पिछवाड़े में गरम तरल पदार्थ का स्पर्श राजमाता को भी अच्छा लगा... अंदर ज्यादा देर ना रुककर उसने अपना लंड बाहर निकाल लिया... राजमाता ने भी चैन की सांस ली और पलट गई... हांफते हुए शक्तिसिंह भी बगल में लेट गया..
"आज के बाद तू मेरी गांड से दूर ही रहना... " इस सदमे से राजमाता अभी उभरी नहीं थी...
"क्यों? आपको मज़ा नहीं आया?" मुसकुराते हुए शक्तिसिंह ने कहा
"खाक मज़ा... मेरी जान हलक में अटक गई थी.. "
"पहली बार में तो दर्द होता ही है ना... आगे करवाओ या पीछे.. "
"बात तो तेरी सही है.. मेरे पति ने जब पहली बार मुझसे संभोग किया था तब मुझे काफी रक्तस्त्राव हुआ था.. और दर्द की कोई सीमा न थी.. पर यह तो काफी अलग था... मैंने कभी अपने पीछे लेने की सोची न थी.. और बिना किसी अंदेशे के तूने अपना गधे जैसा लंड डाल दिया तो दर्द तो होगा ही ना!!"
"पर अब दूसरी बार करेंगे तब दर्द नहीं होगा... बल्कि आप भी आनंद उठा पाएगी.. "
"तू दूसरी बार की बात कर ही मत... एक तो यहाँ पहले से पूरा जिस्म दर्द कर रहा था... ऊपर से तूने पीछे डालकर एक और अंग को दर्द दे दिया।"
"चिंता मत कीजिए राजमाता... इस संभोग से आपके पूरे शरीर में रक्तसंचार तेज हो गया है.. इसलिए अब जिस्मानी दर्द कम हो जाएगा"
"हम्म अब तू जा यहाँ से.. और मुझे विश्राम करने दे" राजमाता ने करवट लेटे हुए कहा
शक्तिसिंह ने अपने कपड़े पहने और मुस्कुराते हुए तंबू से बाहर निकल गया।
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ThanksLajwab update
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Thanks bhaiWow kya update diya bhai ...akhirkaar maharani ki chal Rajmata ki chal pr bhari pad gyi ....maza to tab aayega jab rajmata ko pta lgega ki uski bahurani maharani ne apni gaand bhi marwa li wo bhi uske hii yaar se...fir to pta nhi dono saas bahu me kitna jhagda hoga is baat ko.lekar.....
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ThanksShandar update
Behtreen updateसूरज ढलने की कगार पर था और तभी क्षितिज पर महाराज का खेमा लौटता हुआ नजर आया.. उन्हे देखते ही छावनी में हलचल मच गई.. शिकार से वापिस आ रहे सैनिक काफी सुस्त नजर आ रहे थे... क्योंकी काफी गर्मी थी.. पर उनके चेहरे पर खुशी थी.. आज कुल मिलाकर उन्होंने २५ हिरण, २ तेंदुओ और १०० से ज्यादा खरगोशों का शिकार किया था... छावनी के बीच उन शिकार का जैसे ढेर सा बन गया... आज की दावत बड़ी ही खास होने वाली थी..
थकी हुई राजमाता लड़खड़ाती चाल से चलते अपने तंबू में चली गई... लग रहा था की पूरे दिन बाहर घूमने का परिश्रम उन्हे राज नहीं आया था... महाराज भी शराब की तलब को शांत करने अपने तंबू में लौट गए... सारे सैनिक सुस्ताकर यहाँ वहाँ ढेर होकर आराम करने लगे... उनमें शक्तिसिंह भी शामिल था... महारानी से मिलकर वापिस लौटते हुए उसने काफी दूर से जब महाराज के काफिले को देखा तब उनके पीछे न जाकर... दूसरे रास्ते से उनके काफी आगे निकल गया... जब वह काफिला बढ़ते बढ़ते आगे उससे मिला तब सबको यही प्रतीत हुआ की शक्तिसिंह काफी आगे निकल गए होने की वजह से दिख नहीं रहा था... किसी को भी कुछ शंका न हुई..
यहाँ राजमाता अपने तंबू में पहुंचते ही बिस्तर पर ढेर हो गई... पूरा दिन हाथी पर बैठे रहने से उनकी कमर अटक गई थी और बहुत दर्द कर रही थी... ऊपर से गर्मी ने भी उनकी हालत खराब कर दी थी... शिकार पर जाने का निर्णय करने पर वह अपने आप को ही कोसती रही। उन्होंने आवाज देकर अपनी दासी को बुलाया...
"जी राजमाता जी" सलाम करते हुए दासी ने कहा
"में दर्द से मरी जा रही हूँ.. थोड़ा सा गरम तेल ला और मेरी मालिश कर... हाय रे मेरी कमर" राजमाता दर्द से कराह रही थी
दासी थोड़ी ही देर में गरम तेल लेकर हाजिर हुई... राजमाता के बगल में बैठकर उनकी कमर पर मालिश करने लगी..
"आज खाना ठीक से खाया नहीं था क्या तूने?"
"जी भोजन तो मैंने दोपहर में ठीक से किया था"
"तो फिर हाथ का जोर लगा ठीक से... ये क्या हल्के हल्के सहला रही है...!! रात को सैनिकों के लंडों को तो बड़े जोर से मालिश करती है...लगा जोर ठीक से... मेरी कमर के तो जैसे टुकड़े टुकड़े हो गए हो ऐसा दर्द हो रहा है" अब वह दर्द से पागल हुई जा रही थी...
दासी शरमाते हुए दोनों हाथों से तेल मलने लगी.. पर उसके कोमल हाथों में वोह दम खम नहीं था जो राजमाता को चाहिए था... थोड़ी देर और मालिश के बाद राजमाता ने कहा
"तू छोड़ दे... ऐसे तो सुबह तक मालिश करेगी तब भी मेरा कुछ नहीं होगा... एक काम कर... जाकर शक्तिसिंह को संदेश दे की भोजन के बाद तुरंत यहाँ आ जाएँ"
"आप भोजन करने नहीं आएगी?"
"अरे मरी.. यहाँ दर्द से मेरी जान निकली जा रही है... और तुझे भोजन की चिंता है..!! तू जा अब और जो कहा है वो कर.. हाय में मर गई.. !!"
दासी तुरंत उठकर तंबू से बाहर चली गई और शक्तिसिंह को संदेश पहुंचाकर आई.. शक्तिसिंह भोजन निपटाकर तुरंत राजमाता के तंबू पर पहुंचा..
उसकी आशा के विपरीत, राजमाता बिस्तर पर लाश की तरह पड़ी थी.. रोज की तरह उसने तंबू के परदे को दोनों तरफ अंदर से गांठ मारकर बंद कर दिया ताकि कोई अंदर आ न जाए।
वह राजमाता के बिस्तर पर जाकर उनके पास बैठ गया और राजमाता की पीठ पर हाथ सहलाया।
"आज बड़ी जल्दी बुला लिया आपने? चलिए वस्त्र उतार दीजिए ताकि में आपको तृप्त कर सकूँ"
"कमीने, मेरी हालत तो देख...तुझे ठुकाई करने नहीं बुलाया है... मेरी कमर चूर चूर हो रही है... वहाँ गरम तेल पड़ा है उससे मेरी अच्छे से मालिश कर दे आज"
मुसकुराते हुए शक्तिसिंह ने तेल की कटोरी उठाई... और पेट के बल सो रही राजमाता के शरीर पर सवार हो गया। उनकी कमर पर तेल की धार गिराते हुए वह धीरे धीरे मालिश करने लगा... तेल की धार रिसकर उनके घाघरे में जा रही थी।
"राजमाता, अगर दिक्कत ना हो तो आपका घाघरा उतार दीजिए... सफेद रंग के वस्त्र तेल से खराब हो रहे है"
"अब तेरे सामने नंगा होने में मुझे भला कौन सी दिक्कत होगी!! ले मैंने गांठ खोल दी है... अब तू ही घाघरा खींचकर पैरों से निकाल दे... "
राजमाता ने अपने पेट को थोड़ा सा ऊपर किया और शक्तिसिंह ने बड़ी ही सफाई से घाघरा उतारकर नीचे रख दिया।
अब राजमाता के दो गोल ढले हुए चूतड़ों पर चढ़कर शक्तिसिंह अपने बलवान हाथों से मालिश करने लगा... राजमाता को बड़ी राहत मिल रही थी.. उसके प्रत्येक बार जोर लगाने पर वह कराह उठती... पीठ से लेकर चूतड़ों तक शक्तिसिंह जोर लगाते हुए चक्राकार हाथ घुमा रहा था.. राजमाता के मस्त कूल्हों को देखकर उसके मन में शरारती खयाल आया... चूतड़ों को फैलाकर उसने राजमाता की गांड के छेद पर तेल की धार गिराई...
"हाय रे... ये कहाँ तेल डाल रहा है तू!!"
"आप बस लेटी रहे... और देखें में कैसे आपकी सारी थकान दूर भगाता हूँ.. " राजमाता चुपचाप पड़ी रही
राजमाता की गाँड़ के बादामी घेरे वाले छेद पर तेल लगाकर वह उसके इर्दगिर्द उंगली घुमाने लगा... उंगली को थोड़ा सा दबाते छेद खुल जाता और तेल अंदर चला जाता। साथ ही साथ वह चूतड़ों को भी अपने भारी हाथों से मलकर मालिश किए जा रहा था। इस तगड़े मालिश से राजमाता को बड़ा ही आराम मिल रहा था... राहत मिलते ही उनकी आँख लग गई..
यहाँ शक्तिसिंह राजमाता के रसीले कूल्हों को और गाँड़ के छेद को देखकर उत्तेजित हो रहा था... मालिश के बीच रुककर उसने अपनी धोती उतार दी.. और वापिस राजमाता पर चढ़ गया.. अब उसका सारा ध्यान राजमाता के गाँड़ पर केंद्रित था.. दोपहर पहली बार कसी हुई गाँड़ का स्वाद चखकर उसे बड़ा मज़ा आया था.. असावधान राजमाता की गाँड़ देखकर उसकी आँखों में वासना के सांप लोटने लगे।
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अब वह चूतड़ों को अलग कर उंगली पर काफी मात्रा में तेल लेकर राजमाता की गांड में धीरे धीरे सरकाने लगा। महारानी के मुकाबले राजमाता का छेद थोड़ा फैला हुआ था और उंगली भी तेल वाली थी इसलिए आसानी से अंदर चली गई... राजमाता की गांड के अंदर का मुलायम गरम स्पर्श महसूस करते ही शक्तिसिंह सिहर उठा... उसका लंड ताव में आकर राजमाता के घुटनों के ऊपर नगाड़े बजाने लगा...
राजमाता खर्राटे मार रही थी... इसलिए शक्तिसिंह को ओर प्रोत्साहन मिला... उसने अब दूसरी उंगली भी अंदर डाल दी.. राजमाता के खर्राटे अचानक बंद होने से शक्तिसिंह सावधान हो गया पर उनकी आँखें अभी भी बंद ही थी.. शक्तिसिंह ने दोनों उंगलियों को ज्यों का त्यों राजमाता की गांड में ही रहने दिया... कुछ पल के इंतज़ार के बाद खर्राटे फिर शुरू हो गए और शक्तिसिंह का काम भी...
दोनों उंगलियों को गांड में आगे पीछे करते हुए शक्तिसिंह और तेल डालता ही गया ताकि उनका छेद पूरी तरह से चिकना हो जाए... अधिक आसानी के लिए उसने धीरे से राजमाता की दोनों टांगों को बिस्तर पर फैला दिया... अब वह दोनों जांघों के बीच जा बैठा..
अब उसने अपनी योजना पर अमल करना शुरू किया... काफी सारा तेल लेकर वह अपने कड़े लंड पर मलने लगा.. उसका काल मूसल अब तेल से लसलसित हो चुका था.. अब एक हथेली से उसने राजमाता के कूल्हे को पकड़े रखा और हल्का सा जोर लगाकर अपना सुपाड़ा अंदर घुसेड़ दिया...
थकान के मारे लगभग बेहोश अवस्था में सो रही राजमाता की नींद अब भी नहीं खुली। शक्तिसिंह ने धीरे धीरे अपने लंड को अंदर सरकाना शुरू किया... आधे से ज्यादा लंड अंदर घुसाने पर भी जब राजमाता ने कोई हरकत न की तब उसने एक मजबूत झटका लगाते हुए पूरा लंड अंदर धकेल दिया...
राजमाता की नींद खुल गई.. उन्हे पता नहीं चल रहा था की आखिर क्या हो गया!! होश संभालते ही उन्हे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उनकी गांड में किसी ने जलती हुई मशाल घोंप दी हो!! शक्तिसिंह के शरीर के वज़न तले दबे होने के कारण वह ज्यादा हिल भी नहीं पा रही थी... मुड़कर देखने पर पता चला की शक्तिसिंह उनपर सवार था... फिर उन्हे अंदाजा लगाने में देर न लगी की आखिर उनकी गांड में क्या जल रहा था!!
"क्या कर रहा है कमीने? निकाल अपना लंड बाहर... " गुस्से में आकर राजमाता ने कहा
शक्तिसिंह आज अलग ही ताव में था.. राजमाता की मुलायम चौड़ी गांड का नशा उसके सर पर चढ़ चुका था.. इतने दिनों से राजमाता को चोदने के बाद वह इतना तो जान चुका था की उसकी थोड़ी बहुत मनमानी को सह लिया जाएगा...
"अपना शरीर ढीला छोड़ दीजिए राजमाता जी... फिर देखिए इसमें कैसा आनंद आता है.." उनके कानों में शक्तिसिंह फुसफुसाया
"कैसा आनंद? पीछे भी भला कोई डालता है क्या? पता नहीं कहाँ से ऐसी जानवरों वाली चुदाई सिख आया है"
"मेरा विश्वास कीजिए, आप अगर अपने पिछवाड़े की मांसपेशियों को थोड़ा सा शिथिल कर देगी तो जरा भी कष्ट न होगा और मज़ा भी आएगा"
"मुझे बिल्कुल भी मज़ा नहीं आ रहा है... पीछे जलन हो रही है... इतना मोटा लंड तूने अंदर घुसया कैसे यही पता नहीं चल पा रहा मुझे... "
शक्तिसिंह को लगा की बिना राजमाता को उत्तेजित किए वह उन्हे आगे का कार्यक्रम करने नहीं देगी... उसने उनकी जांघों के नीचे अपना हाथ सरकाया और उनके दाने को अपनी उंगलियों की हिरासत में ले लिया... उसे रगड़ते ही राजमाता सिहरने लगी..
"तुझे चुदासी चढ़ी ही थी तो पहले बता देता... में घूम जाती हूँ... फिर चाहे जितना मन हो आगे चोद ले.. "
"राजमाता जी, अब यह शुरू किया है तो खतम करने दीजिए... आपसे विनती है मेरी.. "
राजमाता मौन रहकर अपने दाने के घर्षण पर ध्यान केंद्रित करने लगी।
शक्तिसिंह धीरे धीरे धक्के लगा रहा था ताकि राजमाता कष्ट से उसे रोक न दे.. अब वह एक हाथ से राजमाता के भगांकुर को रगड़ रहा था और दूसरे हाथ से उनकी चुची... महारानी और राजमाता से इतनी बार चुदाई करके उसे यह ज्ञात हो गया था की स्त्री के कौनसे हिस्सों को छेड़ने से उनकी उत्तेजना तीव्र बन जाती है... उसने उनकी गर्दन के पिछले हिस्से को चाटना और चूमना भी शुरू कर दिया...
इन सारी हरकतों ने राजमाता को बेहद उत्तेजित कर दिया... और उस उत्तेजना ने गांड चुदाई के दर्द को भुला दिया.. वह सिसकियाँ भरते हुए अपने दाने के घर्षण, चुची के मर्दन और गर्दन पर चुंबन का तिहरा मज़ा ले रही थी।
भगांकुर को रगड़ते हुए अपनी उंगली राजमाता के भोसड़े में डालते हुए अंदर के गिलेपन का एहसास होते ही शक्तिसिंह को राहत हुई... अब उसे यह विश्वास हो गया की उसे यह अनोखी गाँड़ चुदाई बीच में रोकनी नहीं पड़ेगी...
अब शक्तिसिंह ने धक्कों की तीव्रता और गति दोनों बढ़ाई... राजमाता उफ्फ़ उफ्फ़ करती रही और वह उनके दाने को दबाकर चुत में उंगली घुसेड़ता रहा... अपने शरीर का पूरा भार रख देने के बाद भी उसका थोड़ा सा लंड का हिस्सा अभी भी बाहर था... राजमाता की गद्देदार गांड को वह बड़े मजे से चोदता रहा... चोदने के इस नए तरीके का ईजाद शक्तिसिंह को बेहद पसंद आया...
"अब बहोत हो गया... या तो तू झड़ जा या फिर मेरी गांड से लँड बाहर निकाल... " राजमाता कसमसाई
"बस अब बेहद करीब हूँ... मुझे मजधार में मत छोड़िएगा.." हांफते हुए धक्के लगाते शक्तिसिंह ने कहा
राजमाता के भोसड़े से हाथ हटाकर अब वह दोनों स्तनों को मजबूती से मसलने लगा... शकतसिंह की जांघें और राजमाता के चूतड़ इस परिश्रम के कारण पसीने से तर हुए जा रहे थे...
"बस अब छोड़ मुझे... खतम कर इसे जल्दी..." राजमाता कराह रही थी...
शक्तिसिंह ने पिस्टन की तरह अपने लंड को राजमाता के इंजन की अंदर बाहर करना शुरू कर दिया... अंतिम कुछ धक्के देते हुए दहाड़कर शक्तिसिंह ने राजमाता की गांड अपने वीर्य से गीली कर दी... अपने पिछवाड़े में गरम तरल पदार्थ का स्पर्श राजमाता को भी अच्छा लगा... अंदर ज्यादा देर ना रुककर उसने अपना लंड बाहर निकाल लिया... राजमाता ने भी चैन की सांस ली और पलट गई... हांफते हुए शक्तिसिंह भी बगल में लेट गया..
"आज के बाद तू मेरी गांड से दूर ही रहना... " इस सदमे से राजमाता अभी उभरी नहीं थी...
"क्यों? आपको मज़ा नहीं आया?" मुसकुराते हुए शक्तिसिंह ने कहा
"खाक मज़ा... मेरी जान हलक में अटक गई थी.. "
"पहली बार में तो दर्द होता ही है ना... आगे करवाओ या पीछे.. "
"बात तो तेरी सही है.. मेरे पति ने जब पहली बार मुझसे संभोग किया था तब मुझे काफी रक्तस्त्राव हुआ था.. और दर्द की कोई सीमा न थी.. पर यह तो काफी अलग था... मैंने कभी अपने पीछे लेने की सोची न थी.. और बिना किसी अंदेशे के तूने अपना गधे जैसा लंड डाल दिया तो दर्द तो होगा ही ना!!"
"पर अब दूसरी बार करेंगे तब दर्द नहीं होगा... बल्कि आप भी आनंद उठा पाएगी.. "
"तू दूसरी बार की बात कर ही मत... एक तो यहाँ पहले से पूरा जिस्म दर्द कर रहा था... ऊपर से तूने पीछे डालकर एक और अंग को दर्द दे दिया।"
"चिंता मत कीजिए राजमाता... इस संभोग से आपके पूरे शरीर में रक्तसंचार तेज हो गया है.. इसलिए अब जिस्मानी दर्द कम हो जाएगा"
"हम्म अब तू जा यहाँ से.. और मुझे विश्राम करने दे" राजमाता ने करवट लेटे हुए कहा
शक्तिसिंह ने अपने कपड़े पहने और मुस्कुराते हुए तंबू से बाहर निकल गया।
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