अब महारानी ने अपनी टांगों से शक्तिसिंह को इतनी सख्ती से जकड़ा की उसे लगा जैसे उसकी हड्डियाँ तोड़ देगी। शक्तिसिंह से ओर बर्दाश्त ना हुआ... उसके सुपाड़े ने गरम गरम वीर्य की ८ - १० लंबी पिचकारियाँ महारानी की चुत में छोड़ दिए। महारानी के गर्भाशय ने उस मजेदार वीर्य का खुले दिल से स्वागत किया।
दोनों एक दूसरे के सामने देख मुस्कुराये। नीचे लंड और चुत भिन्न रसों से द्रवित हो चुके थे। दोनों के जिस्म पसीने से तरबतर हो गए थे। आँखों में संतुष्टि की अनोखी चमक भी थी।
स्खलन के बाद भी शक्तिसिंह का लंड नरम नहीं पड़ा। शक्तिसिंह ने अब धीरे से अपने घुटने मोड और संभालकर महारानी को जमीन पर लिटा दिया। उस दौरान उसने यह ध्यान रखा की एक पल के लिए भी उसका लंड महारानी की चुत से बाहर ना निकले।
इसने नए आसन में लंड और चुत को अनोखा मज़ा आने लगा। शक्तिसिंह ने महारानी की दोनों टांगों को अपने कंधे पर ले लिया और उनके शरीर के ऊपर आते हुए जोरदार धक्के लगाने लगा।
ऐसा प्रतीत हो रहा था की आज रात शक्तिसिंह का लंड नरम होगा ही नहीं। अमूमन महारानी भी यही चाहती थी की यह दमदार चुदाई का दौर चलता ही रहे। सैनिक और महारानी दोनों अब काफी थक भी चुके थे। चुदते हुए महारानी ने अपने हाथों से शक्तिसिंह के टट्टों को पकड़कर सहलाना शुरू किया। शक्तिसिंह अब फिरसे चिल्लाते हुए वीर्यस्खलित करने लगा और साथ ही साथ महारानी का भी पानी निकल गया।
वह थका हुआ सैनिक, महारानी के स्तनों पर ही ढेर हो गया और उसी अवस्था में दोनों की आँख लग गई।
राजमाता दबे पाँव अपने तंबू की तरफ निकल ली। इन दोनों ने तो अपनी आग बुझा ली थी पर उनकी चुत में घमासान मचा हुआ था।
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आश्रम के एक कक्ष में, महारानी पद्मिनी एक बड़े से पत्थर पर लेटी हुई थी। ऊपर लटके हुए कलश के छेद से तेल की धारा रानी के सर पर ऊपर गिरकर उन्हे एक अनोखी शांति अर्पित कर रही थी। महारानी को गजब का स्वर्गीय सुख मिल रहा था। योगी के आश्रम में इन जड़ीबूटी युक्त तेल से चल रहा उपचार महारानी के रोमरोम को जागृत कर रहा था।
ऐसी सुविधाएं तो उनके महल में भी मौजूद थी। पर यहाँ के शुद्ध वातावरण और परिवेश में बदलाव ने उन्हे अनोखी ऊर्जा प्रदान की थी।
पिछले कुछ दिनों से शक्तिसिंह द्वारा मिल रही सेवा ने उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बड़ा ही सकारात्मक बदलाव किया था। दोनों के बीच रोज बड़ी ही दमदार चुदाई होती थी और महारानी को बड़े ऊर्जावान अंदाज में चोदा गया था। लगातार चुदाई के कारण उनकी जांघों का अंदरूनी हिस्सा छील गया था और उनकी चुत भी काफी फैल गई थी। अंग अंग दर्द कर रहा था पर उस दर्द में ऐसी मिठास थी की दिल चाहता था की उसमे ओर इजाफा हो।
आश्रम मे मालिश करने वाली स्त्री बड़ी ही काबिल थी। उसने महारानी के जिस्म के कोने कोने पर जड़ीबूटी वाला तेल रगड़ कर पूरे जिस्म को शिथिल कर दिया था। शरीर में नवचेतन का प्रसार होते ही महारानी पद्मिनी की चुत फिर से अपने जीवन में आए नए मर्द के लंड को तरसने लगी थी। हवस ऐसे सर पर सवार हो रही थी की वह चाहती थी की अभी वह मालिश वाली औरत को ही दबोच ले। पर अब शक्तिसिंह के वापिस लौटने का समय या चुका था और वह उसके संग एक आखिरी रात बिताना चाहती थी।
पिछले कुछ दिनों में राजमाता ने महारानी और शक्तिसिंह जिस कदर चुदाई करते देखा था उसके बाद उन्हे महारानी के गर्भवती हो जाने पर जरा सा भी संशय नहीं बचा था। उस तगड़े सैनिक ने कई बार महारणी की चुत में वीर्य की धार की थी। यहाँ तक की उन दोनों की चुदाई देख देख कर राजमाता की भूख भड़क चुकी थी।
लेकिन अपनी जिम्मेदारियों को संभालते हुए, योजना के तहत उन्होंने शक्तिसिंह को अपने दल के साथ सूरजगढ़ वापिस लौट जाने का हुकूम दे दिया था। अब कुछ गिने चुने सैनिक और दासियाँ आश्रम में महारानी के साथ तब तक रहेंगे जब तक गर्भाधान की पुष्टि ना हो जाए। जब वापिस जाने का समय आएगा तब उन्हे संदेश देकर बुलाया जाएगा पर अभी के लिए उनकी कोई आवश्यकता नहीं थी।
उस रात, शक्तिसिंह और महारानी ने फर्श पर सोते हुए घंटों चुदाई की। एक बार स्खलित हो जाने के बाद महारानी तुरंत उसका लंड मुंह में लेकर चूसने लगती और फिर से चुदने के लिए तैयार हो जाती। कामशास्त्र के हर आसन में वह दोनों चोद चुके थे। महरानी ने सिसकते कराहते हुए तब तक चुदवाया जब तक उनकी चुत छील ना गई। पूरी रात इन दोनों की आवाज के कारण राजमाता भी ठीक से सो नहीं पाई।
दूसरी सुबह, शक्तिसिंह अपना सामान बांध रहा था जब महारानी की सबसे विश्वसनीय दासी ने आकार उसे यह संदेश दिया
"तुम जाओ उससे पहले महारानी साहेब तुम से मिलना चाहती है"
"वो कहाँ है अभी?" शक्तिसिंह को सुबह से महारानी कहीं दिख नहीं रही थी और राजमाता से पूछने पर उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया था
"वहाँ आश्रम के कोने में बनी घास की कुटिया में वह मालिश करवा रही है" दासी ने शरमाते हुए कहा। उसे महारानी और शक्तिसिंह के रात्री-खेल के बारे में पता लग चुका था "शक्तिसिंह सही में गजब की ठुकाई करता होगा तभी तो महारानी ने उसके लिए अपना घाघरा उठाया होगा" वह सोच रही थी
पद्मिनी वहाँ कुटिया में नंगी होकर लैटी हुई थी। मालिश करने वाली ने उसके अंग अंग को मलकर इतना हल्का कर दिया था की उनका पूरा शरीर नवपल्लवित हो गया था। हालांकि शरीर का एक हिस्सा ऐसा था जिसे मालिश के बाद भी चैन नहीं थी। महारानी की जांघों के बीच बसी चुत अब भी फड़फड़ा रही थी। शक्तिसिंह ने महारानी की संभोग तृष्णा इस कदर बढ़ा दी थी की महारानी तय नहीं कर पा रही थी की उसका क्या किया जाए!! वह बेहद व्यथित थी की शक्तिसिंह वापिस सूरजगढ़ लौट रहा था।
शायद उन्हे ज्यादा सावधानी बरत कर राजमाता से छुपकर इस काम को अंजाम देना चाहिए था। अब जब राजमाता को इस बारे में पता चल गया था तो वह अपने नियम और अंकुश लादकर उन्हे एक दूसरे से दूर कर रही थी।
महारानी पद्मिनी का शरीर, शक्तिसिंह के खुरदरे हाथों से ठीक उन्हीं स्थानों पर मालिश करवाने के लिए धड़क रहा था, जहां मालिश करने वाली सेविका के नरम लेकिन दृढ़ हाथ घूम रहे थे।शक्तिसिंह ने उस कुटिया में प्रवेश किया। महारानी को वहाँ नंगा लैटे हुए देख वह एक पल के लिए चोंक गया। मालिश से तर होकर उनकी दोनों गोरी चूचियाँ चमक रही थी। शारीरिक घर्षण के कारण उनकी निप्पल सख्त हो गई थी। वह सेविका अब महारानी की जांघे चौड़ी कर अंदरूनी हिस्सों में तेल मले जा रही थी। शक्तिसिंह के लंड ने महारानी के नंगे जिस्म को धोती के अंदर से ही सलामी ठोक दी।
पिछले कुछ दिनों से शक्तिसिंह का लंड ज्यादातर खड़ा ही रहता था। उसे राहत तब मिलती थी जब उसे महारानी की चुत के गरम होंठों के बीच घुसने का मौका मिले। शक्तिसिंह के आने का ज्ञान होते ही महारानी ने अपनी खुली जांघों के बीच के चुत को उभार कर ऊपर कर लिया, जैसे वह शक्तिसिंह के सामने उसे पेश कर रही हो। चुत के बाल तेल से लिप्त थे और चुत के होंठों पर तेल लगा हुआ था। गरम तो वह पहले से ही थी। छोटी सी कुटिया में उनकी गरम चुत की भांप ने एक अलग तरह की गंध छोड़ रखी थी।
शक्तिसिंह को अपने करीब बुलाते हुए महारानी ने कहा
"शक्तिसिंह, यह मालिश वाली अपना काम ठीक से कर नहीं पा रही है" आँखें नचाते हुए बड़े ही गहरे स्वर में वह फुसफुसाई। यह कहते हुए उन्होंने अपनी एक चुची को पकड़कर मसला और अपना निचला होंठ दांतों तले दबा दिया।
"महारानी साहेबा... " शक्तिसिंह धीरे से उनके कानों के पास बोला
"अममम... महारानी साहेब नहीं, मुझे पद्मिनी कहकर बुलाओ" शक्तिसिंह की धोती के अंदर वह लंड टटोलने लगी
धोती के ऊपर से ही लंड को पकड़कर वह गहरी आवाज में बोली "मेरी अच्छे से मालिश कर दो तुम" अपनी टांगों को पूरी तरह से फेला दिया उन्होंने
इस वासना से भरी स्त्री को शक्तिसिंह देखता ही रहा... उसके जाने का वक्त हो चला था... और अब वह दोनों कभी फिर इस तरह दोबारा मिल नहीं पाएंगे। शक्तिसिंह ने उसकी नरम मांसल जांघों पर अपना सख्त खुरदरा हाथ रख दिया।
जांघों के ऊपर उसे पनियाई चुत के होंठ, गहरी नाभि, और दो शानदार स्तनों के बीच से महारानी उसकी तरफ देखती नजर आई। उसकी नजर महारानी की चुत पर थी और वह चाहता था की अपनी लपलपाती जीभ उस गुलाबी छेद के अंदर डाल दे।