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Fantasy राज-रानी (एक प्रेम कथा)

amita

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☆राज-रानी (बदलते रिश्ते)☆

**अपडेट** (01)

उस रात बहुत ही ख़राब मौसम था, हर तरफ अॅधेरा फैला हुआ था। मूसलाधार बारिश के साथ साथ आसमान में चमचमाती बिजलियाॅ और बादलों की भयंकर गर्जना से संपूर्ण वातावरण बेहद ही भयावह लग रहा था। ऐसा लगता था जैसे आज ही प्रलय आने वाली थी। रात के एक या दो बज रहे थे और इस वक्त घर से बाहर किसी इंसानी जीव का होना महज असंभव सी बात थी। इधर उधर लगे पेड़ पौधे हवा के तीब्र वेग से मानो जड़ से उखड़ रहे थे।

ऐसे भयंकर वातावरण में भी एक कार पक्की सड़क पर नागिन की तरह लहराती हुई दौड़ी जा रही थी। ब्लैक कलर की कार में लगे शीशों पर ब्लैक फिल्म थी जिससे अंदर का कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। ये माधवगढ़ की सीमा थी किन्तु वो कार इस सीमा से पार होकर आगे उस जंगल की तरफ बढ़ गई जिस घनघोर जंगल में किसी को दिन में भी जाने की हिम्मत नहीं होती। लोगों का कहना है कि ये जंगल मायावी तथा भूत प्रेतों से भरा है। यहाॅ जो भी गया वो फिर कभी वापस लौटकर नहीं आया। भारत सरकार ने कानूनी रूप से इस जंगल में प्रवेश करना भी वर्जित कर रखा है। कुछ लोग कहते हैं कि इस जंगल के पेड़ पौधे भी बड़े खतरनाक हैं, ये किसी भी जीव को अपनी गिरफ्त में लेकर उसकी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं।

वो कार इसी जंगल के अंदर बेकाबू होकर आगे बढ़ती जा रही थी। कार की हेडलाइट के प्रकाश में आगे बढ़ती हुई कार अचानक ही रुक गई।

"क्या हुआ शंकर?" कार के अंदर बैठा एक शख्स कार चला रहे शंकर नाम के आदमी से अचानक ही कार रोंक देने पर पूॅछा था__"तूने गाड़ी क्यों रोंक दी?"

"अबे मैंने जानबूझ कर नहीं रोंकी है ये गाड़ी।" ड्राइविंग सीट पर बैठे शंकर ने कहा__"वो तो अपने आप ही रुक गई है।"
"अ अपने आप ही रुक गई??" दूसरा आदमी चौंका__"ये क्या बकवास कर रहा है तू? लगता है तुझे चढ़ गई है। बोला था कि अंग्रेजी न पी बल्कि अपनी देसी दारू ही पी, मगर नहीं...मेरा सुने तब न। मुफ्त की मिल रही थी न इसी लिए तो गले तक गपागप पी गया, अब भुगत साले।"

"ओए ज्यादा बकवास न कर।" शंकर ने उसे घुड़क कर कहा__"तुझे क्या लगता है ये अंग्रेजी मुझे चढ़ गई है? अरे ये साली क्या चीज़ है इसमें तो कोई नशा ही नहीं होता। तभी तो गपागप पी गया, मैं देखना चाहता था कि इसमें कोई बात है कि नहीं।"

"तो क्या समझा फिर?" दूसरे आदमी ने कहने के साथ ही अपनी सर्ट की ऊपरी जेब से एक बीड़ी का बंडल निकाला और उससे एक बीड़ी निकालकर माचिस से जलाया। फिर दो तीन गहरे कस खींचने के बाद धुआॅ छोंड़ते हुए बोला__"नशा हुआ कि नहीं?"

"घंटा नशा हुआ।" शंकर ने बुरा सा मुह बनाया__"साला फालतू में पेट ज़रू फूल गया। इससे अच्छी तो अपनी देसी ही थी, दो पउआ पिया और कचरा साफ करने वाली उस रूपा साली को जमीन में पटक कर रगड़ दिया। कसम से दीनू बड़ा मज़ा देती है साली।"

"ओए मेरा दिमाग़ न खराब कर समझा क्या।" दीनू ने आखें दिखाई__"साला खुद तो उस रंडी के मज़े ले लेता है और मुझे कभी उसकी सूरत तक नहीं दिखाई। साला दोस्त नहीं दुश्मन है तू मेरा।"

"फिक्र मत कर ये काम करके जब हम वापस चलेंगे न तो आज रात तेरा भी दिल खुश कर दूॅगा।" शंकर ने मुस्कुरा कर कहा__"अब चल ज़रा देखूॅ तो इस साली कार को। कैसे अपने आप अचानक बंद हो गई है?"

"चल मैं भी तेरे साथ ही चलता हूॅ।" दीनू ने कार का दरवाजा खोल कर नीचे उतरते हुए कहा__"वैसे भी तू तो सिर्फ कार चलाना ही जानता है, जबकि मैं कार चलाने के साथ साथ कार का मिस्त्री भी हूॅ।"

"चल ठीक है तू ही देख ले कि क्या समस्या हो गई है।" शंकर वापस अपनी ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए कहा__"वैसे भी हम दोनो एक साथ कार से नीचे उतर उधर नहीं जा सकते।"

"अरे तू उसकी चिंता मत कर भाई।" दीनू ने लापरवाही से कहा__"वो बेहोश है और बेहोशी की हालत में वो कहीं नहीं जा सकता। फिर तू ये मत भूल कि वो अभी बच्चा ही है, वो इस भयावह जगह को देख कर डर जाएगा और कार से निकल कर कहीं भाग जाने का ख़याल नहीं करेगा वो।"

"तेरी बात ठीक है।" शंकर ने अजीब भाव से कार की पिछली सीट की तरफ देखा, फिर वापस पलट कर कहा__"मगर फिर भी मैं इसे यूॅ अकेला छोंड़ कर बाहर नहीं आऊॅगा। तू जल्दी से देख ले कि कार में क्या प्राब्लेम हुई है?"

"बस दो मिनट में मैं सारी प्राब्लेम को दूर कर देता हूॅ।" दीनू ने कार का बोनट उठाते हुए कहा__"तू बस देखता जा।"

दीनू ने कार का बोनट उठा कर देखा, शुकर था कि बोनट के अंदर का बल्ब जल उठा था जिससे वह अंदर की तरफ देख सकता था। बोनट के अंदर अच्छी तरह देखने के बाद दीनू ने अपना सिर उठाकर शंकर से कहा__"ओए शंकर यहाॅ तो सब ठीक ही नज़र आ रहा है। तू ज़रा कार को फिर से स्टार्ट कर।"

दीनू के कहने पर शंकर ने कार की इग्नीशन पर लगी चाभी को अपने दाहिने हाॅथ से घुमाया मगर कोई आवाज़ तक न हुई। शंकर ने कई बार ऐसा किया किन्तु परिणाम वही ढाॅक के तीन पात जैसा।

"क्या हुआ?" उधर सामने दीनू ने ऊॅची आवाज़ में कहा__"साले सो गया क्या? कार स्टार्ट क्यों नहीं कर रहा?"
"अबे सो नहीं गया मैं।" शंकर ने झुॅझलाकर कहा__"ये साली स्टार्ट ही नहीं हो रही है। हैरत की बात है कोई आवाज़ तक नहीं कर रही।"

"चल छोंड़ मैं देखता हूॅ।" दीनू ने पास आते हुए कहा__"तुझसे कुछ नहीं हो सकता। साला उस रूपा को ठोंकना बस जानता है। चल हट इधर से।"

"भड़क क्यों रहा है साले?" शंकर ने ड्राइविंग सीट से हटते हुए कहा__"आ तू भी देख ले। मैं भी तो देखूॅ कि कैसे स्टार्ट करता है तू इसे?"

दीनू ने भी शंकर की तरह कई बार चाभी घुमा कर स्टार्ट करने की कोशिश की मगर कार स्टार्ट न हुई। दीनू भी ये देखकर हैरान हुआ कि इग्नीशन पर चाभी घुमाने से कोई आवाज़ तक क्यों नहीं हो रही? जबकि वह खुद देखकर आया था कि बोनट में कहीं भी कोई प्राब्लेम नहीं है।

"ये कैसे हो सकता है?" दीनू शंकर की तरफ देख कर बोला।
"साले मुझसे क्या पूॅछता है?" शंकर ने कहा__"मिस्त्री तो तू है, बड़ा बोल रहा था कि मेरे से कुछ नहीं होगा। अब क्या हुआ....माॅ चुदवा ली न अपनी।"

"अब क्या करें?" दीनू के चेहरे पर पहली बार गंभीरता के भाव नुमायां हुए__"अगर ये स्टार्ट न हुई तो हम यहाॅ से इस बच्चे को लेकर कैसे जाएंगे?"

"कुछ तो करना ही पड़ेगा।" शंकर ने भी गंभीर होकर कहा__"साला दारू का नशा और बेमतलब की बातों ने काम तमाम कर दिया। समझ ही न आया कि किधर आ गए?"

"श शंकर।" दीनू ने एकाएक बुरी तरह चौंकते हुए कहा"यहाॅ पर बारिश नहीं हो रही। जबकि उधर देख, अभी भी आसमान में बिजलियाॅ कड़कने के साथ बारिश हो रही है। ये क्या चक्कर है?"

"अरे तो इसमें हैरान होने वाली क्या बात है साले?" शंकर ने कहा__"ऐसा तो होता ही रहता है। कोई जरूरी थोड़े न होता है कि अगर एक जगह बारिश हो तो उसी समय हर जगह बारिश हो।"

"मुझे बड़ा अजीब लग रहा है बे।" दीनू ने अपने चारो तरफ नज़रें घुमाते हूए कहा__"ये किस जगह आ गए हैं हम? यहाॅ तो हर तरफ भयानक जंगल और अॅधेरा फैला हुआ है।"

"अबे डर गया क्या?" शंकर ने हॅस कर कहा__"अबे साले मेरे रहते हुए तुझे कुछ नहीं होगा।"

अभी दीनू कुछ बोलने ही वाला था कि एक भयानक आवाज़ सुन कर चुप रह गया।

"ओए दीनू ये कैसी आवाज़ थी?" शंकर ने चौंकते हुए कहा__"ऐसा लगा जैसे कोई उल्लू चीखा हो।"
"मुझे भी ऐसा ही लगता है।" दीनू ने भयभीत होते हुए कहा__"मैं तो कहता हूॅ भाग लेते हैं यहाॅ से।"

"अबे डरता क्यों है?" शंकर ने दिलेरी से कहा__"मैं हूॅ न।"
"साले डरने वाली बात है इस लिए डर रहा हूॅ।" दीनू ने कहा__"ज़रा सोच यहाॅ आते ही हमारी कार अचानक बंद हो गई, जबकि उसमें कोई ख़राबी नहीं दिखी मुझे। हम यहाॅ इस भयानक अॅधेरे जंगल में फॅस गए हैं। कुछ होश है तुझे?"

"तो तू क्या चाहता है अब?" शंकर ने कहा__"हम यहां से निकल चलें?"
"अबे यहाॅ रुकने का कोई मतलब भी क्या है?" दीनू ने कहा__"मुझे किसी अनहोनी की आशंका हो रही है। चल यहाॅ से मैं तेरे हाॅथ जोड़ता हूॅ चल जल्दी।"

तभी किसी के रोने की आवाज़ सुन कर दोनो की हवा निकल गई। रोने की आवाज़ किसी औरत की थी। ऐसा लगा था जैसे वह किसी के द्वारा बुरी तरह तड़पाई जा रही हो।

"अबे यहाॅ तो हमारे अलावा कोई औरत भी है।" शंकर कह उठा__"लगता है किसी मुसीबत में है।"
"तो तू क्या उस औरत को उसकी मुसीबत से बचाने जाने वाला है?" दीनू ने अजीब भाव से कहा__"साले समझता क्यों नहीं कि यहाॅ कोई औरत नहीं है और न ही कोई मुसीबत में है। यहाॅ तो हम खुद ही मुसीबत में हैं।"

शंकर कुछ बोलने ही वाला था कि उस रोने की आवाज़ फिर से आई मगर इस बार पास से आई थी। दोनो की हालत खराब होने लगी। कार की हेडलाइट में सामने का मंज़र नज़र आ रहा था। जहाॅ घने पेड़ पौधे और झाड़ियाॅ दिख रही थी। साथ ही अजीब सा धुआॅ जैसा जंगल की ज़मीन पर मॅडराता नज़र आ रहा था। रोने की आवाज़ निरंतर आ रही थी। तभी हेडलाइट की रोशनी में सामने कुछ दूरी पर एक औरत नज़र आई। सफेद पोशाक पहने, बाल बिखरे हुए थे उसके। चेहरा दूसरी तरफ था, इन लोगों की तरफ उसकी पीठ थी। उस औरत के हाॅथ किसी चीज़ को लिए हुए जान पड़ते थे क्योंकि वो बार बार अपने दोनों हाॅथों को कभी ऊपर नीचे करती तो कभी दाएॅ से बाएॅ करती। वह उसी मुद्रा में निरंतर रोए जा रही थी। उसके रोने की आवाज़ इंसानी कलेजा चीरने के लिए काफी थी। अचानक ही उसका रोना बंद हो गया, साथ ही वह अपना सिर नीचे किए हुए कुछ करती नज़र आई फिर अचानक ही वह अपने दोनो हाथों को दाएं बाएं हिलाते हुए पुनः रोने लगी।

दीनू और शंकर साॅस बाॅधे एकटक उसी की तरफ देख रहे थे।

"अबे ये क्या चक्कर है?" शंकर कह उठा__"चल देखें ज़रा कि उसे क्या तक़लीफ़ है?"
"अबे तेरा दिमाग़ फिर गया है क्या?" दीनू ने कहा__"जो तू उसकी तकलीफ़ देखने जाने की बात कर रहा है। मैं तो कहता हूॅ कि यहाॅ से निकल लेते हैं वर्ना कहीं हम लोग किसी ऐसी मुसीबत न फॅस जाएॅ कि बाद में उससे बच कर निकल भी न पाएॅ।"

"इस बच्चे को यहीं छोंड़ देगा क्या?" शंकर ने कहा__"भूल मत कि बाॅस ने क्या कहा था?"
"बाॅस को मार गोली।" दीनू कह उठा__"जब हम न ज़िंदा बचेंगे तो कोई क्या कर लेगा भला?"

"ठीक है मगर एक बार देख तो ले उसे कहीं होश में तो नहीं आ गया वह?" शंकर बोला__"होश में आकर अगर उसने हमें पहचान लिया तो मुसीबत हो जाएगी।"

"पहचान भी लिया तो अब क्या कर लेगा वो?" दीनू ने कहा__"उसे तो मरना ही है अब। वहाॅ नहीं तो यहीं सही। बाॅस को बता देंगे कि हमने बच्चे का काम तमाम कर दिया है।"

"ये बड़े लोग भी कितने कमीने होते हैं न दीनू।" शंकर कह उठा__"सोचने वाली बात है कि सिर्फ अपनी खुशी के लिए ये किसी की भी जान ले लेते हैं। अब इस बच्चे को ही देख ले...भला इस मासूम की किसी से क्या दुश्मनी मगर फिर भी किसी और की दुश्मनी में खुद ही मौत के हवाले आ पहुॅचा।"

"ज्यादा साधू न बन।" दीनू ने कहा__"हम लोगों के मुख से ऐसी बातें निकलकर शोभा नहीं देती। हम सिर्फ पैसों से प्यार करते हैं। पैसों के लिए ही इस बच्चे को इसके स्कूल से उठाया है।"

अभी ये लोग बातें ही कर रहे थे कि अचानक ही कार के ऊपर कोई कूदा। जिससे कार बुरी तरह हिल गई साथ ही कार के अंदर बैठे ये दोनों भी। दोनो को समझ न आया कि ये क्या हुआ?

सामने नज़र पड़ी तो चौंक पड़े क्योकि हेडलाइट की रोशनी में कुछ दूरी पर पहले दिख रही वो औरत अब वहाॅ नहीं थी। कार के ऊपर से अजीब तरह के गुर्राने की आवाज़ आ रही थी जैसे कोई जंगली भेड़िया कार की छत पर मौजूद हो। इस सोच ने ही दोनो की हालत खराब कर दी।

अभी ये दोनो अपने होशो हवाश में आए भी न थे कि सामने नज़र आ रहे पेड़ एकाएक ही अपनी जगह से चलकर इनकी तरफ बढ़ने लगे। दीनू और शंकर ये देख बुरी तरह डर गए। आॅखें हैरत और भय से फट पड़ी तथा चेहरा पीला ज़र्द पड़ता चला गया। कार के ऊपर मौजूद कोई चीज़ ऊपर से नीचे कूद कर दरवाजे के पास आ गई।

कार के दरवाजे अंदर से बंद थे तथा शीशों पर चढ़ी काली फिल्म की वजह से उस तरफ का ठीक से कुछ नज़र न आया कि कार की छत से नीचे कूदने वाला कौन था किन्तु बाहर से गुर्राने की आवाज़ ज़रूर आ रही थी। इधर सामने हेडलाइट की रोशनी थी इस साफ साफ दिख रहा था कि कई सारे पेड़ चलकर कार के नजदीक आ चुके थे।

दीनू और शंकर की ये सब देखकर घिग्घी बॅध गई थी। थर थर काॅपते हुए दोनो एक दूसरे से लिपटे हुए थे। तभी उन दोनो की ये देख कर चीख निकल गई कि हेडलाइट की रोशनी में वही बच्चा खड़ा है जिसे वो किडनैप करके तथा कार की पिछली सीट पर बेहोश करके लिटाया हुआ था। दीनू और शंकर ने बड़ी मुश्किल से गर्दन घुमाकर पिछली सीट की तरफ देखा। और दोनो ये देख कर उछल पड़े कि बच्चा पिछली सीट से गायब है। पिछली सीट से गर्दन घुमाकर जब फिर से सामने की तरफ देखा तो एक बार फिर वो दोनो उछल पड़े। दोनो के मुख से चीख निकल गई। सामने रोशनी में बच्चे के साथ वही औरत खड़ी थी जिसका चेहरा पूरी तरह आग में जला हुआ नज़र आ रहा था जबकि औरत की गर्दन से नीचे का पूरा हिस्सा किसी खूबसूरत औरत की तरह ही सही सलामत दिख रहा था। औरत और बच्चे के पीछे ही वो सारे पेड़ आकर खड़े हो गए थे।

तभी कार के बगल वाले दरवाजे की खिड़की का शीशा झनाक से टूटा और कोई चीज़ अंदर की तरफ आई। दीनू ड्राइविंग सीट पर था इस लिए वह डर के मारे जल्दी से ड्राइविंग डोर खोलकर बाहर कूद गया जबकि पीछे से शंकर की ह्रदय विदारक चीख वातावरण में गूॅज गई। शंकर को किसी चीज़ ने पकड़कर कार से बाहर की तरफ खींच लिया। उधर दीनू शंकर की चीख सुनकर पहले तो ठिठका फिर एक तरफ को दौड़ पड़ा मगर तभी किसी चीज़ से टकरा कर वह नीचे ज़मीन पर गिर गया। डर के मारे उसका पेशाब निकल गया। किसी तरह हिम्मत जुटा कर वह उठा और दूसरी तरफ दौड़ पड़ा।

इधर शंकर को किसी ने खींचकर बाहर हेडलाइट की रोशनी की तरफ फेंक दिया। शंकर मौत के डर से थर थर काॅपते हुए जल्दी से उठ कर खड़ा हुआ कि तभी उसके सामने कोई आकर खड़ा हो गया। शकल सूरत इंसानों जैसी ही थी किन्तु चेहरा बिलकुल सफेद तथा आंखें लाल थीं उसकी। शंकर को देखकर उसने अजीब से अंदाज़ में अपना मुह खोला। शंकर ये देखकर बुरी तरह चीखा कि वह कोई शैतान था। उसके मुह खोलते ही उसके ऊपर के अगल बगल वाले दाॅत जो बाॅकी सभी दाॅतों से बड़े थे वो चमक उठे थे।

उस सफेद चेहरे और बड़े बड़े नुकीले दाॅतों वाले ने झपट कर शंकर के सिर को दोनो हाॅथों से पकड़ कर एक तरफ को झुकाया और खुद झुक कर उसने अपना मुह फैलाते हुए शंकर की गर्दन के बाएं साइड किसी सर्प की मानिंद डस लिया। शंकर की दर्द भरी चीख निकल गई। वह छटपटाने के सिवा कुछ न कर सका और कुछ ही पल में उस शैतान द्वारा छोंड़ देने पर लहरा कर वहीं ज़मीन पर गिर गया। कुछ देर बुरी तरह तड़पने के बाद शान्त पड़ गया। जबकि उसकी गर्दन में चाबने के बाद शैतान के अजीब भाव से मुह फैलाते हुए औरत और बच्चे की तरफ देखा। उसके दोनो नुकीले दाॅत शंकर के खून से सने हुए थे।

तभी वातावरण में एक चीख गूॅजी। जिसे सुनकर शैतान के साथ साथ वह औरत बड़े ही अजीब ढंग से मुस्कराई।

"लगता है इसका दूसरा साथी काया के द्वारा शिकार कर लिया गया है।" औरत ने हॅस कर कहा।
"हमारे क्षेत्र में आने वाला ज़िंदा बच कर नहीं जा सकता मेनका।" शैतान ने ठंडे स्वर में कहने के साथ ही बच्चे की तरफ देखा__"अब इस बच्चे का भी ताज़ा खून पीकर इसे इसके जीवन से मुक्ति दे दिया जाए।"

"नहीं वीर।" मेनका ने कहा__"ये बच्चा हमारा शिकार नहीं बनेगा।"
"ये क्या कह रही हो तुम?" वीर ने चौंकते हुए कहा__"हमारे क्षेत्र में तथा हमारे बीच किसी इंसान का क्या काम?"

"ये अभी बच्चा है वीर।" मेनका ने कहने के साथ ही अपना रूप बदल लिया, अब उसका आग में जला हुआ नहीं बल्कि बेहद खूबसूरत नज़र आने लगा था, बोली__"मगर ये बहुत खास है। इसमें आम इंसानों वाली बात नहीं है बल्कि इसमें कुछ अलग बात है जो हमसे भी ऊपर है। इसके खून की गंध इंसानी खून के गंध जैसी नहीं है।"

"हाॅ ये तो मैंने भी महसूस किया है लेकिन हम इसे जीवित छोंड़ भी तो नहीं सकते।" वीर ने कहा__"क्योंकि ऐसा करने पर तुम्हारे पिता विराट हम पर गुस्सा करेंगे और मुमकिन हैं मृत्युदंड भी दे दें।"

"फिर क्या करें?" मेनका ने परेशान लहजे से कहा__"ये अभी हमारे संमोहन में है। किन्तु सम्मोहन से बाहर होते ही ये बच्चा इस भयानक जंगल के वातावरण को देख कर भय से मर भी सकता है या फिर इस जंगल के खूॅखार जानवरों द्वारा मारा भी जा सकता है।"

"क्या हुआ तुम लोग किस बारे में बातें कर रहे हो?" तभी वहाॅ पर एक लड़की की आवाज़ गूॅजी।
"हम इस बच्चे के विषय में बातें कर रहें हैं काया।" मेनका ने कहा।

"अरे तुम लोगों ने इसका अभी तक शिकार नहीं किया?" काया ने बच्चे को सही सलामत देख चौंकते हुए कहा__"हैरत की बात है।"

मेनका ने काया को बच्चे के बारे में सब कुछ बता दिया जिसे सुनकर काया हैरान रह गई।

"तो अब क्या सोचा है तुम लोगों ने इसके लिए?" काया ने कहा__"ये तो पक्की बात है कि कोई जीवित इंसान हम वैम्पायर के बीच नहीं रह सकता। पिता जी को इस बारे में पता चला तो अच्छा नहीं होगा हमारे लिए।"

"क्यों न हम लोग इस बच्चे को विराट जी के पास ले चलें?" वीर ने कहा__"वही तय करेंगे कि इस बच्चे का क्या करना है?"
"बात तो तुम्हारी ठीक है वीर।" मेनका ने कहा__"लेकिन पिता जी के स्वभाव को देख कर ऐसा करना उचित नहीं होगा। तुम सब तो जानते हो उनके ख्वाब के बारे में। वो इस दुनिया पर राज करना चाहते हैं, और इस बच्चे की वजह से उनका ख्वाब ज़रूर पूरा हो जाएगा।"

"ये तो अच्छी बात है न।" काया ने मुस्कुराकर कहा__"फिर सारी दुनियाॅ में हम वैम्पायर का ही राज़ होगा।"
"नहीं काया।" मेनका ने कहा__"इस दुनिया में सभी जीव को जीने का अधिकार है। भगवान की बनाई इस दुनियाॅ में सबका अपना अस्तित्व होना भी ज़रूरी है। पिता जी ये सब नहीं सोचते बल्कि वो इस मासूम बच्चे की अद्भुत शक्तियों द्वारा संसार के सभी दूसरे प्राणियों को मार कर संसार में सिर्फ हम वैम्पायर लोगों का ही अस्तित्व शेष रखेंगे। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।"

"तुम तो आज बड़ी आदर्शवादी बातें कह रही हो मेनका।" काया ने कहा__"जबकि अभी थोड़ी देर पहले हमने इंसानों का ही शिकार करके उन्हें खत्म कर दिया है, और तुमने खुद आज तक जाने कितने इंसानों की जानें ली हैं, उनका क्या?"

"मैंने जिनकी भी आज तक जानें ली हैं वो सब इस संसार के पापी लोग थे काया।" मेनका ने कहा__"वीर इस बात का साक्षी है कि मैंने कभी किसी मासूम या निर्दोश की जान नहीं ली।"

"मेनका सच कह रही है काया।" वीर ने कहा__"हम कुछ ही ऐसे वैम्पायर हैं जो ऐसी सोच वाले हैं वर्ना बाॅकी सब तो किसी का भी खून पीने से नहीं चूकते।"

"तो फिर ठीक है आज के बाद मैं भी अपनी बहन की तरह ही किसी भी मासूम या निर्दोश का खून नहीं पीऊॅगी।" काया ने कहा__"ये मेरा वचन है और अब से हम तीनों एक ही सोच और विचार के होंगे।"

"तीनों नहीं दोस्तो।" तभी एक अन्य आवाज़ वहाॅ गूॅजी__"बल्कि चार, तुम लोग रिशभ को कैसे भूल सकते हो?"

"अरे भाई तुम यहाॅ थे नहीं इस लिए ऐसा बोल गए।" वीर ने कहा__"अब आ गए हो तो हम चारों हो गए।"

"गुड, अब बताओ क्या बातें कर रहे थे तुम लोग?" रिशभ ने पूछा।


तीनो ने सब कुछ बता दिया रिशभ को बच्चे के विषय में। सुनकर रिशभ ने कहा__"मेरी मानो तो इसे इस जंगल से बाहर इसकी ही दुनियाॅ में छोंड़ आओ।"

"पर सवाल ये है कि ऐसे कैसे छोंड़ आएं?" मेनका ने कहा__"हम ये नहीं जानते कि ये बच्चा इंसानी दुनियाॅ में किसका बच्चा है? और वो लोग इसे किन हालात में यहाॅ लाए थे?"

"वैसे ये पता करना कोई मुश्किल नहीं है कि ये बच्चा किसका है?" रिशभ ने कहा__"वो तो हम पता कर लेंगे अपनी शक्तियों से किन्तु मेरे दिमाग़ में कुछ खास विचार उत्पन्न हुआ है इसके लिए।"

"कैसा विचार?" काया ने चौंकते हुए पूछा।
"यही कि ये बच्चा अपना प्रारब्ध खुद बनाए।" रिशभ ने कहा__"इसे इसके माता पिता से दूर किसी दूसरी जगह पहुॅचा दिया जाए। ये अपने बलबूते पर अपना भाग्य और अपनी पहचान खुद बनाएगा भी तथा अपनों को ढूॅढ़ेगा भी।"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" मेनका ने हैरत से कहा__"इतने छोटे मासूम से बच्चे को जानबूझ कर दुनियाॅ की ठोंकरें खाने के लिए यूॅ ही छोंड़ दिया जाएगा? नहीं नहीं...ये तो इस मासूम के साथ महापाप और महाअत्याचार है रिशभ।"

"जैसा कि तुमने ही कहा कि ये बच्चा कोई आम बच्चा नहीं है बल्कि इसमें अद्भुत बात है।" रिशभ ने कहा__"तो इसका क्रियाकलाप भी तो बचपन से अद्भुत ही होना चाहिए न। और तुम इसकी फिक्र क्यों करती हो कि ये दुनियाॅ में बेसहारा रहेगा। हम चारो हैं न इसकी देख रेख के लिए।"

"आख़िर मतलब क्या है तुम्हारा?" वीर कह उठा__"हम सब किस तरह इसकी देख रेख करेंगे जबकि हम अपनी दुनियाॅ से बाहर बहुत कम ही निकलते हैं। हम बाहर की इंसानी दुनियाॅ में दिन के उजाले में नहीं रह सकते। फिर कैसे इस बच्चे की देख रेख करेंगे?"

"दिन के उजाले में न सही रात के अॅधेरे में तो देख रेख कर सकते हैं न?" रिशभ ने कहा__"और वैसे भी हमें कौन सा इसके पास चौबीस घंटे रहना है। देख रेख का मतलब है कि दूर से हम देखेंगे कि ये बच्चा अपने बलबूते पर कैसे आगे बढ़ता है?"

"चलो ये समझ आ गया कि तुम क्या करना चाहते हो।" मेनका ने कहा__"किन्तु अब सवाल ये है कि इस बच्चे को आख़िर रखेंगे कहाॅ?"

"बस देखते जाओ।" रिशभ ने मुस्कुराकर कहा।
"कुछ भी करो रिशभ।" मेनका ने अजीब भाव से कहा__"लेकिन एक बात हमेशा याद रखना कि अगर इस बच्चे को किसी भी तरह की तकलीफ हुई तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"

"ये तो सच कहा तुमने।" रिशभ ने हॅस कर कहा__"तुमसे बुरा वास्तव में कोई नहीं है।"
"क्या कहा???" मेनका की भवें तन गईं__"ज़रा फिर से कहना तो।"

"अरे नहीं यार।" रिशभ ने हड़बड़ा कर कहा__"कुछ नहीं मैं तो बस ऐसे ही।"
"तो इस बच्चे को कब ले चलना है इंसानी दुनियाॅ में?" वीर ने कहा।

"अभी ले चलेंगे।" रिशभ ने कहा__"मेरे मन में एक अच्छी जगह है जहाॅ इसे रखना बिलकुल उचित होगा।"
"कौन सी जगह है वो?" काया ने उत्सुकता से पूछा।
"हिमालय।" रिशभ ने बताया।
"हिमालय??" सब एक साथ चौंके थे__"हिमालय क्यों?"

"ऐसे अद्भुत बच्चे को हिमालय में ही रखना उचित है।" रिशभ ने कहा__"वहाॅ पर अध्यात्मिक चीज़ें हैं जिसकी आवश्यकता इस बच्चे को पड़ेगी।"

रिशभ की बात से सब चुप हो गए। कदाचित उनमें से सबको रिशभ की बात और सोच सही लगी थी। फिर क्या था...वो चारो ही उस बच्चे को लेकर इंसानी दुनियाॅ में पहुॅच गए। रास्ते में वीर ने कहा कि हम हिमालय जैसी पवित्र जगह पर कैसे जाएंगे, संभव है वहाॅ पर हम पर ही न कोई मुसीबत आ जाए आखिरकार हैं तो हम शैतान ही। वीर की इस बात पर रिशभ ने मुस्कुरा कर कहा कि हम भले ही शैतान हैं मगर सोच और विचार से ग़लत नहीं हैं और वैसे भी हम एक अच्छे कार्य के लिए पाक नीयत से ही वहाॅ जा रहे हैं। इस लिए हमें किसी बात की चिन्ता नहीं करनी चाहिए।

कौन था वो बच्चा?

बच्चे को किस वजह से किडनैप किया गया था?

बच्चे के माॅ बाप कौन थे तथा बच्चे के गुम हो जाने पर उन पर इसका क्या असर हुआ?

बच्चे में ऐसी क्या खास बात थी कि वैम्पायर लोग उसे जान से मारने का खयाल न करके उसे हिमालय में ले गए?

हिमालय में बच्चे के साथ क्या क्या हुआ?

हिमालय में रह कर बच्चे को अध्यात्म का क्या और क्यों असर हुआ?

बड़ा होकर उस बच्चे ने किस तरह का कार्य करके अपनी पहचान बनाई?

क्या वो बच्चा बड़ा होकर अपने माॅ बाप से मिल सका, यदि हाॅ तो कैसे और फिर उसके जीवन में आगे क्या क्या हुआ??

इन सारे सवालों को जानने के लिए इन्तज़ार कीजिए समय का और कहानी के आने वाले सभी अपडेट्स का>>>>>
Pehla update hi Zabardast
Yeh ek anubhavi lekhak hi kar sakta hai.
Bahut Bahut Mubarak
 

amita

Well-Known Member
6,870
16,737
144
राज-रानी (बदलते रिश्ते)

**अपडेट** (02)

अब तक.....

"ऐसे अद्भुत बच्चे को हिमालय में ही रखना उचित है।" रिशभ ने कहा__"वहाॅ पर अध्यात्मिक चीज़ें हैं जिसकी आवश्यकता इस बच्चे को पड़ेगी।"

रिशभ की बात से सब चुप हो गए। कदाचित उनमें से सबको रिशभ की बात और सोच सही लगी थी। फिर क्या था...वो चारो ही उस बच्चे को लेकर इंसानी दुनियाॅ में पहुॅच गए। रास्ते में वीर ने कहा कि हम हिमालय जैसी पवित्र जगह पर कैसे जाएंगे, संभव है वहाॅ पर हम पर ही न कोई मुसीबत आ जाए आखिरकार हैं तो हम शैतान ही। वीर की इस बात पर रिशभ ने मुस्कुरा कर कहा कि हम भले ही शैतान हैं मगर सोच और विचार से ग़लत नहीं हैं और वैसे भी हम एक अच्छे कार्य के लिए पाक नीयत से ही वहाॅ जा रहे हैं। इस लिए हमें किसी बात की चिन्ता नहीं करनी चाहिए।

अब आगे....

हिमालय, दुनियाॅ में शायद ही कोई ऐसा होगा जो इस नाम तथा इस नाम के बारे में विस्तार से न जानता हो। आप सबको भी हिमालय के संबंध में बहुत कुछ पता होगा।

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कहते हैं हिमालय में बडे-बडे आश्रम हैं। जहां पर आज भी सैकडों साधक अपनी-अपनी साधना में लगे हुए हैं।
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हिमालय में आज भी चमत्‍कारिक साथू संंत रहतेे हैं, वह हिमालय में तपस्या में लीन निराहार रहते है।

प्राचीन काल में हिमालय में ही देवता रहते थे। यहीं पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्थान था और यहीं पर नंदनकानन वन में इंद्र का राज्य था। इंद्र के राज्य के पास ही गंधर्वों और यक्षों का भी राज्य था। स्वर्ग की स्थिति दो जगह बताई गई है: पहली हिमालय में और दूसरी कैलाश पर्वत के कई योजन ऊपर।

दोस्तो यूॅ तो बहुत सी ऐसी बातें हैं इस हिमालय के संदर्भ में किन्तु यहाॅ पर अगर यही सब लिखा जाए तो आज का अपडेट ही नहीं बल्कि आने वाले बहुत से अपडेट सिर्फ हिमालय की गूढ़ बातों से ही भर जाएंगे, इस लिए हम अब कहानी की तरफ ही ध्यान देते हैं।

हिमालय पहुॅचते पहुॅचते सुबह का प्रथम प्रहर शुरू हो गया था। यह ब्रम्हमुहूर्त का समय था। चारो वैम्पायर इस बात को जानते थे। हिमालय जैसी पवित्र जगह पर शैतानों का आ पाना कोई आसान बात न थी, वे किसी अनहोनी की आशंका से डर भी रहे थे। उनके साथ वह बच्चा भी था जिसकी ऊम्र पाॅच साल थी और वह इस समय अचेत अवस्था में था।

"हम यहाॅ तक तो पहुॅच गए भाई लेकिन अब यहाॅ से आगे जाना हमारे लिए खतरे की बात होगी।" वीर ने रिशभ की तरफ देख कर कहा__"इस लिए हमें इसके आगे नहीं जाना चाहिए।"

"कुछ नहीं होगा वीर।" रिशभ ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा__"मुझे पूरा विश्वास है कि इसके आगे देव भूमि पर कदम रखने से हम लोगों को कुछ नहीं होगा। हम शैतान पाप से पूर्ण भले ही हैं लेकिन इस वक्त हम एक अहम और नेक काम करने आए हैं जिसके लिए हमारे मन में कोई मैल नहीं है। हम तो वैसे भी देवभूमि में ईश्वर के घर आए हैं और घर आए अतिथि का भगवान अनिष्ट नहीं करते, वो भी जानते हैं कि कोई भी शैतान बुरी नीयत से उनके पास नहीं आ सकता। इस लिए तुम लोग ब्यर्थ की चिन्ता न करो और मेरे साथ आगे बढ़ो।"

"रिशभ ठीक कह रहा है वीर।" मेनका ने कहा__"इस वक्त हम नेकनीयत से ही देवभूमि में नेक काम के लिए आए हैं। इस अवस्था में कोई भी देवता या ईश्वर हमें किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुॅचाएंगे।"

"मुझे भी इस बात का पूर्ण विश्वास है कि हमें कुछ नहीं होगा।" काया ने कहा__"और वैसे भी जब हम सब इस नेक काम को करने के लिए चल ही पड़े थे तो इसके किसी भी प्रकार के परिणाम के बारे में सोचने का अब कोई मतलब ही नहीं है।"

"तुम बिलकुल ठीक कह रही हो मेरी लाडली बहना।" रिशभ ने मुस्कुरा कर कहा__"और मुझे खुशी है कि तुम्हारा ह्रदय परिवर्तन भी हो गया है। एक बात और..अब इस कार्य में अगर हमें अपना जीवन भी दाॅव पर लगाना पड़े तो हम ज़रा भी पीछे नहीं हटेंगे। अगर तुम लोग मेरी इस बात से सहमत हो तो मिलाओ हाॅथ और चलो मेरे साथ।"

तीनों ने रिशभ के हाॅथ में अपना अपना हाॅथ रखा और फिर बिना कुछ बोले चल दिए वहाॅ से। अब उनमें से किसी के भी मन में किसी प्रकार का कोई विकार नहीं था।

हिमालय की सर ज़मीं पर बेझिझक और बिना डरे अपने अपने कदम रख कर वो चारो आगे बढ़ने लगे। इसके पहले उनमें से किसी ने कभी सोचा भी न था कि उन्हें अपने जीवन में कभी ऐसा भी कार्य करना पड़ सकता है। वे तो शैतान थे और शैतान भला ऐसे कार्य कर भी कैसे सकता है?

लगभग दो घंटे बाद हीमालय के इन दुर्गम और कष्टदाई रास्तों व ऊॅचे ऊॅचे शिखरों पर चलते हुए वो एक ऐसी जगह पहुॅचे जहाॅ के शान्त वातावरण में सिर्फ एक ही नाद गूॅज रहा था। ओऽम् का उच्चारण वहाॅ के समस्त वातावरण में एक लय और एक ही सुर में बिना किसी विघ्न बाधा के अनवरत गूॅज रहा था।

"ये कैसी ध्वनि गूॅज रही है यहाॅ के वातावरण में?" काया ने चकित भाव से इधर उधर देखते हुए कहा__"यहाॅ तो कोई दूर दूर तक दिख भी नहीं रहा है?"

"तुम भूल रही हो काया।" रिशभ ने कहा__"कि हम देवभूमि में हैं इस वक्त और यहाॅ पर बड़े बड़े ॠषि मुनि तथा अनेकों प्रकार के साधु संत करोड़ों वर्षों से ईश्वर की कठोर तपस्या व अराधना में लीन हैं। ये जो ओऽम् शब्द की ध्वनि निरंतर गूॅज रही है न ये उन्हीं तपस्वियों की है।"

"मगर वो हमें कहीं दिख क्यों नहीं रहे फिर?" वीर ने कहा__"जबकि इस ध्वनि से ऐसा लगता है जैसे वो सब हमारे आस पास ही हैं।"

"वो सब हमारे आस पास ही हैं मेरे दोस्त।" रिशभ ने कहा__"लेकिन अदृश्य रूप में। हम क्या कोई भी आम इंसान उन्हें सहजता से देख नहीं सकता।"

"ऐसा क्यों?" काया ने सवाल किया।
"वो सब सांसारिक चीज़ों से परे हो चुके हैं।" रिशभ ने कहा__"अपनी कठिन तपस्या व अराधना से वो सब देवताओं से भी ऊपर जा चुके हैं। सोचो जब हम देवताओं को नहीं देख सकते तो फिर उन्हें कैसे देख पाएंगे जो देवताओं से भी ऊपर पहुॅच चुके हैं। दूसरी बात, अदृश्य रूप से ईश्वर की तपस्या करने से उन्हें कोई देख नहीं सकता इस लिए वो किसी अन्य के द्वारा किसी भी प्रकार विचलित भी नहीं हो सकते और बगैर किसी बाधा के वो अपनी तपस्या में लगे रहेंगे।"

"ओह तो ये सब बातें हैं।" काया ने समझने वाले भाव से कहा__"ख़ैर अब हमें आगे क्या करना है?"
"हम जिस चीज़ के उद्देश्य से यहाॅ आए थे वो इसी जगह पर पूरा होगा।" रिशभ ने कहा__"इस बच्चे को यहीं रहना होगा, इन बड़े बड़े तपस्वियों के बीच।"

"तो क्या हम इस बच्चे को यूॅ ही छोंड़ कर यहाॅ से चले जाएंगे?" मेनका ने चौंकते हुए कहा।
"ये यहाॅ अकेला नहीं है मेनका।" रिशभ ने कहा__"इसके चारो तरफ अदृश्य रूप में ये सब बड़े बड़े महात्मा हैं, तपस्वी हैं। ये सब इस बच्चे की रक्षा भी करेंगे और अपने संरक्षण में इसे बड़ा भी करेंगे।"

"नहीं भाई।" मेनका कह उठी__"ये सब तो जाने कब से अपनी अपनी तपस्या में लीन हैं। इन सबका ध्यान सिर्फ अपने ईश्वर पर लगा हुआ है। ये कैसे इस बच्चे की देखभाल कर सकेंगे? जब तक कोई स्पष्ट रूप से इसकी देखरेख करने वाला नहीं मिलेगा तब तक हम इसे अकेला यूॅ छोंड़ कर नहीं जाएंगे।"

"मेनका ठीक कह रही है भाई।" वीर ने कहा__"और वैसे भी ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस बच्चे का ख़याल रखें। इसे यूॅ किसी और के भरोसे छोंड़ कर यहाॅ से चले जाना उचित नहीं है। या तो हम सब यहीं रह कर इस बच्चे की देखभाल करेंगे या फिर हमें इसका कोई उचित प्रबंध करना चाहिए।"

"क्या हम लोग इन अदृश्य तपस्वियों को इनकी तपस्या से जगा नहीं सकते?" काया ने कहा__"अगर ऐसा हो जाए तो संभव है सारी समस्या का समाधान ही हो जाए।"

"तपस्वियों को उनकी तपस्या से जगाना क्या उचित होगा?" मेनका ने कहा__"और सबसे बड़ी बात हम उन्हें उनकी तपस्या से जगा पाएंगे भी कि नहीं?"

"हमें कोशिश तो करनी ही चाहिए इसके लिए।" वीर ने कहा__"हो सकता है हमें इस काम में कामयाबी मिल ही जाए।"

"मुझे तो डर लग रहा है।" काया ने अजीब भाव से कहा__"सुना है कि बड़े बड़े तपस्वियों को उनकी तपस्या भंग करके जगा देने से उनके भयंकर क्रोध का सामना भी करना पड़ जाता है, और वो तपस्वी अपने क्रोध से जगाने वाले को भस्म भी कर देते हैं।"

"ये बात तो मैंने भी सुनी है।" वीर कह उठा__"सचमुच अगर ऐसा हुआ तो फिर तो गए हम लोग काम से।"

"तुम भूल रहे हो दोस्त।" रिशभ ने कहा__"कि यहाॅ आने से पहले हम लोगों ने उस जगह क्या फैंसला किया था एक साथ? अब इस नेक काम के लिए इन तपस्वियों की क्रोधाग्नि द्वारा भस्म भी होना पड़े तो हो जाएंगे लेकिन ये काम करके ही दम लेंगे।"

"फिर ठीक है भाई।" वीर ने कहा__"अब हम सब तैयार हैं जो होगा हमें स्वीकार है। तुम इन्हें जगाने की कोशिश करो।"

"रुको।" मेनका ने सहसा कुछ सोचते हुए कहा__"मैने सुना है कि अगर हम अपने हाॅथ जोड़ कर किसी चीज़ के लिए किसी भी देवता या ईश्वर की सच्चे दिल से प्रार्थना करें तो हमारी प्रार्थना सहज ही सुन लेते हैं भगवान।"

"तुम्हारी बात में यकीनन सच्चाई है मेरी बहना।" रिशभ ने मुस्कुरा कर कहा__"अब हम सब यही करेंगे। हम सब सच्चे दिल से हाॅथ जोड़ कर इसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करेंगे।"

फैंसला हो चुका था, इस लिए वो चारो वहीं ज़मीन पर एक लाइन से बैठ गए। चारों ने अपने अपने हाॅथ जोड़ लिए तथा अपनी अपनी आॅखें बंद करके मन ही मन ईश्वर को याद कर प्रार्थना करने लगे।

ऐसा करते करते उन्हें दो घंटे गुजर गए मगर वो चारो उसी मुद्रा में उसी तरह बैठे प्रार्थना में लीन रहे।

"आॅखें खोलो पुत्रों हम तुम्हारी इस अनूठी प्रार्थना से खुश हुए।"

अचानक ही ये वाक्य उन चारो के कानों से टकराया। सभी ने अपनी अपनी आखें धीरे धीरे खोली और सामने की तरफ देखा तो एक बहुत ही तेजस्वी ॠषी को सामने बैठा पाया।
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अपने सामने एक ॠषी को शेर की खाल के आसन पर बैठे देख चारो चौंक पड़े। उन सबकी आॅखें आश्चर्य से फैल गई। फिर जल्दी ही उन सबने खुद को सम्हाला और अपने अपने हाॅथ जोड़ कर उस ॠषि को प्रणाम किया।

"हम तुम चारो के श्रद्धा भाव से अतिप्रसन्न हैं पुत्रो।" उस तेजस्वी ऋषि ने मुस्कुरा कर कहा__"हम जानते हैं कि तुम चारो शैतान हो, मगर इस समय तुम चारो का मन निर्मल है, दोष से रहित है। हम यहीं पर अदृश्य रूप में विद्दमान थे और तुम लोग जो कुछ भी आपस में बातें कर रहे थे उसे भी सुन रहे थे। तुम लोगों ने बहुत ही समझदारी से यह काम किया। एक शैतान होते हुए भी तुम चारो ने जिस कार्य को किया है वह तुम्हारे धर्म और कर्म के विपरीत है इस लिए हम तुम चारो से अति प्रसन्न हैं।"

"हे ऋषिवर! हम चारो शैतान ज़रूर हैं मगर।" रिशभ ने कहा__"मगर आपके दर्शन से हम चारो धन्य हो गए हैं। अब ऐसा लगता है जैसे हमारे अंदर सब कुछ नया और खास पैदा हो गया है। यहाॅ आकर तथा आपके दर्शन से ऐसा महसूस हो रहा है जैसे हम चारो का दूषित मन अब साफ और पवित्र हो गया है।"

"ये देवभूमि है पुत्रो।" ऋषि ने कहा__"और तुम लोग तो उसी समय मन से साफ और पवित्र हो गए थे जिस समय तुम लोगो ने इस बच्चे को इस प्रकार यहाॅ लाने का विचार किया था। अगर ऐसा नहीं होता तो तुम चारो यहाॅ की धरती पर कदम नहीं रख पाते।"

"आप बिलकुल सत्य कह रहे हैं भगवन।" मेनका ने कहा__"मेरे भाई को पूर्ण विश्वास था कि यहाॅ की पवित्र धरा पर कदम रखने से हम में से किसी को कुछ नहीं होगा।"

"जब मन हर विकार से रहित होकर गंगा की तरह पवित्र हो जाता है तो फिर किसी भी प्रकार संसय नहीं रह जाता।" ऋषि ने कहा__"और ये सब तो वैसे भी विधि का विधान था, जिसके परिणामस्वरूप तुम चारो आज इस बच्चे के साथ यहाॅ आए हो।"

"हे ऋषिवर! हम विधि के विधान को तो नहीं जानते कि कब क्या होगा?" रिशभ ने कहा__"हमें तो बस इतना महसूस हुआ कि इस बच्चे में कुछ ऐसी बात है जो आम इंसानों में नहीं हो सकती। इस लिए हम लोगों के मन में उस समय जैसे विचार उत्पन्न हुए वैसा ही करते चले गए।"

"सब ईश्वर की ही माया थी पुत्रो।" ऋषि ने मुस्कुराकर कहा__"जिसकी वजह से तुम चारों के मन में ऐसे विचार उत्पन्न हुए और तुम चारो इस बच्चे को यहाॅ ले आए, वर्ना बिरला ही ऐसा होता है कि कोई शैतान किसी इंसानी जीव को जीवित छोंड़ कर ऐसे विचार के तहत उसे यहाॅ ले आए।"

"आप तो सब कुछ जानते हैं मुनिवर।" वीर ने कहा__"क्या आप हमें ये बताने की कृपा करेंगे कि ये सब क्यों हुआ?"
"हम जानना चाहते हैं भगवन कि इस बच्चे में क्या खास बात है?" काया ने उत्सुकतावश पूॅछा__"जिसके लिए हम लोग एक शैतान होकर भी ये सब करते चले आए?"

"हम सब कुछ जानते हैं पुत्रो।" ऋषि ने कहा__"किन्तु भविष्य की बातें इस तरह बताई नहीं जा सकती क्योंकि ये अनुचित है और ईश्वर के बनाए गए नियमों के खिलाफ़ है। तुम लोगों को हम इतना ज़रूर बता सकते हैं कि इस बच्चे के द्वारा इस संसार का कल्याण होगा। ईश्वर इस बच्चे के द्वारा इस धरती पर बढ़ रहे पाप और बुराई का अंत करेगा।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है भगवन।" मेनका ने कहा__"किन्तु मेरी आपसे एक विनती है।"
"कहो पुत्री।" ऋषि ने कहा__"क्या कहना चाहती हो तुम?"

"हे ऋषिवर! मेरी विनती ये है कि भविष्य में इस बच्चे द्वारा होने वाले संसार के कल्याण में मैं भी इसके साथ रहूॅ। इस बच्चे से मेरा स्नेह जुड़ गया है, वैसा ही स्नेह जैसे एक माॅ का अपने पुत्र से होता है। मैं इसकी माॅ बनकर इसके साथ ही रहना चाहती हूॅ।"

"हम तुम्हारे इस करुणामयी भाव को देखकर खुश हुए पुत्री।" ऋषि ने मुस्कुरा कर कहा__"तुम चिन्ता मत करो, अब से तुम चारो ही इस बच्चे के साथ इसका कवच बनकर रहोगे। अब तुम चारो ही अपनी शैतानी दुनियाॅ से अपना नाता तोड़ चुके हो। तुम चारो यहाॅ रह कर हमारे द्वारा बताई गई कुछ महत्वपूर्ण साधनाओं को मन लगा कर करो जिससे तुम लोग भी आम इंसानों की तरह रह सको। दिन में सूर्य की रोशनी से तुम लोगों को जो समस्या होती है उसे हमारे द्वारा बताई गई प्रक्रिया से दूर कर सकोगे।"

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद भगवन।" रिशभ ने कहा__"हम चारो इस सबसे बहुत प्रसन्न हैं कि ईश्वर ने हमें अपने इस महान कार्य में शामिल किया।"

"अब हम तुम लोगों को रहने के लिए एक उचित और अच्छी जगह बताते हैं जहां पर तुम स्वयं अपने लिए कुटिया बना कर रह सको।" ऋषि ने कहा__"ये जगह सिर्फ ध्यान और ईश्वर की तपस्या के लिए है।"

इसके बाद ऋषि अपने आसन से उठे और एक तरफ चले। उनके पीछे पीछे वो चारो भी उस बच्चे को लेकर चल दिए।


अपडेट हाज़िर है दोस्तो.......
आप सबकी राय, सुझाव और प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,
bahut hi umda,
Sahi shabdo ka chunav va unka sarjan bahut hi behtarin
 

rishirajrebel

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Dost i think ab aapko jaldi jaldi update dekar iss story ko aage badhana chahiye waise story aap bhaut achi likhte ho haan aapke shabdo mein kabhi kabhi galtiyan hoti hain but aap likhte bhaut acha hain waiting jaldi update dijiyega
 
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