• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy राज-रानी (एक प्रेम कथा)

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,137
115,930
354
दोस्तो कैसे हैं आप सब?????

होली का रंग और भाॅग का नशा उतरा कि नहीं?????

दोस्तो, अभी तो मैं अपने पूरे परिवार के साथ ही घर में हूॅ। यहाॅ से दो तीन दिन बाद निकलूॅगा। उसके बाद ही आपको अच्छा सा अपडेट दे पाऊॅगा। आज घर से दूर यहाॅ मार्केट आया था तो जियो का नेटवर्क मिला तो सोचा आप लोगों से थोड़ी गुफ्तगू हो जाए। अभी तो घर में बड़ा मज़ा आ रहा है दोस्तो, सब एक साथ हैं कुछ रिश्तेदार भी आए हुए हैं।

दोस्तो, थोड़ा और इन्तज़ार कर लीजिए। 25 या 26 को पहुॅच जाऊॅगा मैं अपनी कर्मभूमि पर। उसके बाद मैं आपको अपडेट देने लगूॅगा।
 

Heartnot4u

Member
102
193
58
दोस्तो कैसे हैं आप सब?????

होली का रंग और भाॅग का नशा उतरा कि नहीं?????

दोस्तो, अभी तो मैं अपने पूरे परिवार के साथ ही घर में हूॅ। यहाॅ से दो तीन दिन बाद निकलूॅगा। उसके बाद ही आपको अच्छा सा अपडेट दे पाऊॅगा। आज घर से दूर यहाॅ मार्केट आया था तो जियो का नेटवर्क मिला तो सोचा आप लोगों से थोड़ी गुफ्तगू हो जाए। अभी तो घर में बड़ा मज़ा आ रहा है दोस्तो, सब एक साथ हैं कुछ रिश्तेदार भी आए हुए हैं।

दोस्तो, थोड़ा और इन्तज़ार कर लीजिए। 25 या 26 को पहुॅच जाऊॅगा मैं अपनी कर्मभूमि पर। उसके बाद मैं आपको अपडेट देने लगूॅगा।
Okk...enjoy with family.... Ye bht kimti wqt hota h....iske bich koi rukawat nii honi chahiye....
We'll wait.....
 

Mr. Perfect

"Perfect Man"
1,434
3,733
143
दोस्तो कैसे हैं आप सब?????

होली का रंग और भाॅग का नशा उतरा कि नहीं?????

दोस्तो, अभी तो मैं अपने पूरे परिवार के साथ ही घर में हूॅ। यहाॅ से दो तीन दिन बाद निकलूॅगा। उसके बाद ही आपको अच्छा सा अपडेट दे पाऊॅगा। आज घर से दूर यहाॅ मार्केट आया था तो जियो का नेटवर्क मिला तो सोचा आप लोगों से थोड़ी गुफ्तगू हो जाए। अभी तो घर में बड़ा मज़ा आ रहा है दोस्तो, सब एक साथ हैं कुछ रिश्तेदार भी आए हुए हैं।

दोस्तो, थोड़ा और इन्तज़ार कर लीजिए। 25 या 26 को पहुॅच जाऊॅगा मैं अपनी कर्मभूमि पर। उसके बाद मैं आपको अपडेट देने लगूॅगा।
Ok bhai take your time. Ham intjar karenge____
 

Zas23

Well-Known Member
4,624
4,624
158
राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 10 )

अब तक,,,,,,

"अब ये तो तुम पर और तुम्हारी कूटनीति पर निर्भर करता है सम्राट कि तुम इस सबके बाद कैसी नीति अपनाते हो अथवा कैसे उस बालक पर हावी हो सकते हो?" महापंडित ने कहा__"तुमने उपाय का पूछा था सो मैने तुम्हें उपाय बता दिया है। अब आगे कैसे क्या करना है इसके बारे में सोचना तुम्हारा काम है।"

"अच्छी बात है पंडित।" विराट ने कहा__"तुमने यकीनन हमें ये सब बता कर खुश कर दिया है। तुम हमारे लिए बड़े ही काम के आदमी हो इस लिए अगर तुम चाहो तो तुम यहाॅ हमारी दुनियाॅ में सुखपूर्वक रह सकते हो।"

"मैं अपनी दुनियाॅ में ही ठीक हूॅ सम्राट।" उस महापंडित ने कहा__"अब मुझे वापस मेरी दुनियाॅ में जाने की आज्ञा दो।"
"अच्छी बात है पंडित।" विराट ने कहा__"लेकिन तुम हमें इस बात का वचन दो कि जब भी हमें किसी प्रकार की तुम्हारी ज़रूरत पड़ेगी तो तुम हमारे पास ज़रूर आओगे।"

महापंडित ने विराट को इस बात के लिए वचन दे दिया। उसके बाद उसे वापस उसकी दुनिया में भेजने के लिए नील को कह दिया गया। किन्तु वहाॅ पर मौजूद कोई भी शैतान ये नहीं जान पाया था कि अब तक यहाॅ पर जो भी बातें हुई थी उन बातों को किसी के दोनो कानों ने भली भाॅति सुन लिया था और फिर मुस्कुराते हुए वह वहाॅ से गायब हो गया था।

अब आगे,,,,,,,

शैतानों के पहले किंग यानी सोलेमान की पत्नी मारिया सारी बातें सुनने के बाद दबे पाॅव विराट के राजमहल से लौट आई थी। अपने महल में आकर वह उस जगह पहुॅची जहाॅ पर सोलेमान को बड़ी हिफाज़त से एक बड़े से संदूख के अंदर रखा गया था।

मारिया ने संदूख को खोल कर वहीं सोलेमान के सिर के पास एक स्टूल रख कर बैठ गई। संदूख के अंदर सोलेमान पत्थर के रूप में लेटा हुआ था। मारिया कुछ देर तक उसे अपनी छलक आई आॅखों से देखती रही तथा उसके सिर पर प्यार और स्नेह की भावना से हाथ फेरती रही।

"आप यहाॅ इस तरह पत्थर बने पड़े हुए हैं सम्राट।" मारिया अधीर भाव से किन्तु भारी आवाज़ में कह रही थी__"जबकि उधर आपका मित्र अपके लिए एक ऐसी कब्र खोदने के इन्तजाम में लगा हुआ है जिसमें आपको हमेशा के लिए दफना दिया जाए। देख रहे हैं न आप? आपके मित्र ने आपकी मित्रता का ये सिला देने का सोच रखा है। वो नहीं चाहता कि आप फिर से जीवित हो जाएं, और अपने राज्य को अपने उस मित्र से वापस ले लें। कितना समझाती थी मैं आपको कि आपका मित्र विराट अच्छे नेचर का नहीं है बल्कि छल कपट का जीता जागता एक पुतला है मगर आपने कभी मेरी इन बातों पर यकीन नहीं किया। आप हमेशा यही कहते थे कि आपका मित्र इस दुनिया में मित्रता का एक उदाहरण स्वरूप है।" मारिया कहते कहते कुछ पल के लिए ख़ामोश हो गई।

मारिया के चुप होते ही इतने बड़े महल में मौत जैसा सन्नाटा छा गया। इस महल में मारिया के सिवा दूसरा कोई नहीं रहता था। हलाॅकि सम्राट विराट ने सोलेमान के पत्थर बनते ही मारिया की देख रेख और उसकी उचित सेवा के लिए बहुत से मेल और फिमेल वैम्पायर्स रख दिये थे किन्तु मारिया ने ये कह कर उन सबको हटवा दिया था कि वो अपने पत्थर बन गए पति के साथ अकेली ही यहाॅ रहेगी। उसे अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किसी की आवश्यकता नहीं है। विराट भला उसकी इन बातों को कैसे टाल देता इस लिए फिर वैसा ही हुआ जैसा मारिया चाहती थी।

दरअसल मारिया को विराट की नीयत पर पहले से ही कोई भरोसा नहीं था इस लिए जब विराट ने उसके लिए ये सब किया तो मारिया को लगा कि विराट ये सब उस पर नज़र रखने के लिए कर रहा है। इस ख़याल की वजह से मारिया ने इस सबके लिए मना कर दिया था। दूसरी बात ये थी कि वह यहाॅ अकेली रह कर ही उस बालक के बारे में पता करना चाहती थी। वह नहीं चाहती थी इस सबकी जानकारी विराट को हो। जबकि महल में बहुत से वैम्पायर्स के रहने पर उसे हमेशा ये अंदेशा रहता कि उसकी गतिविधियों की जानकारी कोई न कोई वैम्पायर विराट को ज़रूर दे देगा।

"आपको तो ये भी एहसास नहीं हुआ कभी कि आपका मित्र आपकी ही पत्नी पर हमेशा बुरी नीयत रखता था।" मारिया ने धीर गंभीर भाव से पुनः कहना शुरू किया__"वो तो अच्छा हुआ कि आपने अपनी सारी शक्तियाॅ मुझे दे दी थी जिसके डर से उसने कभी मुझ पर हाथ डालने की कोशिश नहीं की वरना वह आपके पत्थर बनते ही मुझे अपनी रखैल बना लेता। वो जानता है कि आपकी सारी शक्तियाॅ मेरे पास हैं इसी लिए उसने कभी मुझ पर ग़लत नीयत से हाथ डालने का दुस्साहस नहीं किया। उसका बस ही नहीं चलता इस बात पर कि वो मेरे रहते आपको कोई नुकसान पहुॅचा सके। वरना वो तो कब का आपको समाप्त भी कर चुका होता।" मारिया ने कहने के साथ ही झुक कर पत्थर बने सोलेमान के होठों पर चूमा और फिर बोली__"फिक्र मत कीजिए सम्राट। अब वो समय बहुत जल्द आने वाला है जब आप फिर से जीवित हो जाएंगे। आप नहीं जानते नाथ कि आपसे प्यार करने के लिए मैं कितना तड़प रही हूॅ। पाॅच सौ वर्ष बीत गए, मगर इन पाॅच सौ वर्षों में ऐसा कोई दिन ऐसा कोई पल नहीं गया जब मैने आपकी याद में आॅसू न बहाये हों। आपकी आगोश मे फिर से समाने के लिए मेरा मन और मेरा ये जिस्म कितना ब्याकुल हो चुका है, आप इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। आपके लिए इतनी मोहब्बत भला दूसरा कौन कर सकेगा इस दुनिया में?? हाॅ नाथ, ये मेरी मोहब्बत ही है जो दिन प्रतिदिन और भी बढ़ती जा रही है। कहीं ऐसा न हो कि मैं आपकी इस मोहब्बत में किसी दिन पागल हो जाऊॅ।" मारिया फूट फूट कर रो पड़ी। पत्थर बने सोलेमान के शरीर से लिपट गई वह। काफी देर तक यूॅ ही लिपटी वह रोती रही फिर वैसे ही लिपटे हुए उसने कहा__"नाथ, जब वो दिव्य बालक मुझे मिल जाएगा तब उससे मुझे आपके सामने ही संभोग करना पड़ेगा और उसी बालक के वीर्य को आपके इस पत्थर बने शरीर पर छिड़कना पड़ेगा। तभी आप इस पत्थर शरीर से जीवित हो पाएंगे। ये सब तो आप भी जानते हैं नाथ, लेकिन कैसे कर पाऊॅगी मैं ऐसा? किसी दूसरे पुरुस से संभोग करना कैसे मुमकिन होगा मेरे लिए? मेरा तन मन सब कुछ सिर्फ आपका है सम्राट। आपकी मुक्ति का ये कैसा अनुचित उपाय बताया था उस महर्षि ने? कैसे वो किसी पतिव्रता पत्नी को इस तरह किसी और से संभोग करने पर मजबूर कर सकते हैं नाथ? ये कैसा विधान है इन ऋषियों का?"

पत्थर बना सोलेमान भला मारिया की इन सब बातों या सवालों का क्या जवाब देता? लेकिन मारिया की ये बातें और उसका ये करुण विलाप कोई न कोई तो ज़रूर सुन रहा होगा। ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में ऐसे भी प्राणी पैदा हो जाते हैं जो शैतान की योनि में होकर भी ऐसे महान बन जाते हैं। मारिया उन महान प्राणियों का एक उदाहरण थी। वो शैतान की योनि में थी लेकिन इस योनि में भी उसका मन उसकी आत्मा जैसे पवित्र थी।

"मुझे माफ़ करना नाथ।" मारिया गंभीरता से कह रही थी__"मुझे आपको फिर से जीवित करने के लिए ये कार्य करना ही पड़ेगा। लेकिन आप तो जानते हैं न कि मेरे मन मंदिर में सिर्फ आप ही हैं, दूसरा कोई नहीं। मुझे पता चल चुका है सम्राट कि वो बालक जल्द ही हिमालय से आ रहा है। इस लिए मैं उसे रास्ते में ही किसी तरह अपने बस में कर लूॅगी, और उसे यहाॅ ले आऊॅगी। आपको फिर से जीवित करने के लिए ये काम मैं ज़रूर करूॅगी नाथ, ये मेरा वचन है आपसे।"
--------------------------

उधर सम्राट विराट ने उस बालक यानी राज को किसी भी कीमत पर हासिल करने के लिए बहुत कुछ किया हुआ था। उसने वैम्पायर्स की भारी सेना तैयार कर ली थी। इतना ही नहीं उसने इस सबके लिए उन शैतानों को भी शामिल कर लिया था जो खुद कभी उसके ही सबसे बड़े दुश्मन हुआ करते थे।

विराट ने समझौता कर इसमें वेयरवोल्फ के किंग अनंत को भी अपने साथ मिला लिया था। सम्राट अनंत ने शर्त रखी थी कि वो विराट की बेटी मेनका से अपने बेटे जयंत की शादी करेगा। विराट को अनंत की इस शर्त से कोई आपत्ति नहीं थी इस लिए उसने अनंत की शर्त को स्वीकार कर लिया था। अब दोनो की शक्तियाॅ मिल चुकी थी राज एण्ड पार्टी से भिड़ने के लिए। विराट को किसी भी सूरत में राज को हासिल करना था। अपने बच्चों को तो वह वैसे भी इस बात के लिए दण्ड देना चाहता था कि उन्होने उसको बिना बताए और अपनी मर्ज़ी से उस बालक यानी राज को उसकी शैतानी दुनिया से ले जाकर हिमालय पहुॅच गए थे।
----------------------

तो एक तरफ महेन्द्र और रंगनाथ माधवगढ़ के लिए रवाना हो गए थे। जहाॅ पर उन्हें अशोक की बेटी रानी को महाशैतान के लिए उठाना था। माधवगढ़ पहुॅच कर वो दोनो सबसे पहले घर गए। महेन्द्र सिंह के घर में पहुॅच कर उन लोगों ने देखा कि महेन्द्र सिंह की बेटी पूनम आई हुई थी। महेन्द्र सिंह अपनी बेटी को यहाॅ देख कर हैरान रह गया था। उसकी बेटी अब काफी जवान दिख रही थी।
ईश्वर की बनाई हुई खूबसूरत रचना थी वह। जिसकी सुंदरता में वो खुद कुछ पल के लिए सम्मोहित सा हो गया था।
images

पूनम ड्राइंगरूम में रखे सोफे पर कानों में हेडफोन लगाए मोबाइल से गाने सुन रही थी। महेन्द्र सिंह पर नज़र पड़ते ही उसके हाव भाव बदल गए। वह तुरंत ही सोफे से उठ कर ऊपर अपने कमरे की तरफ तेज़ी से बढ़ गई।

अपनी बेटी को इस तरह उससे बिना कुछ बोले चले जाते देख महेन्द्र सिंह को झटका सा लगा। उसे इस बात की बड़ी तक़लीफ हुई कि उसकी बेटी ने उससे बात तक नहीं की और उसे देखते ही इस तरह ऊपर चली गई जैसे अगर वह यहाॅ पर रुकी रहती तो उसका बाप उसे नोंच कर खा जाता।

महेन्द्र सिंह कुछ कह न सका, जबकि उसके बगल से ही खड़ा रंगनाथ उसके कंधे पर सहानुभूति के अंदाज़ से अपना हाॅथ रख हल्का सा दबा दिया। दोनो पिछले एक हप्ते से कृत्या के पास थे। दोनो के चेहरों पर दाढ़ी मूॅछें बढ़ गई थी। हुलिया बड़ा ही अजीब सा हो गया था दोनो का। ऐसा जैसे किसी ने उन्हे गीले कपड़ों की तरह निचोड़ लिया था। बात भी सही थी, निचोड़ ही तो लिया था कृत्या ने उन्हें। शाम सुबह दोनो वक्त वो दोनो कृत्या की हवस को मिटाने की कोशिश करते थे। मगर कृत्या तो फिर कृत्या ही थी जिसमें हवस की आग इस तरह कूट कूट कर भरी हुई थी मानो हवस का अथाह सागर समाहित हो उसमे। जो कभी खत्म ही नहीं हो सकता था।

महेन्द्र और रंगनाथ दोनो ही अपने अपने कमरों की तरफ बढ़ गए। जहाॅ पर उन्हें अपना हुलिया दुरुस्त करना था। पूनम की बेरुखी ने महेन्द्र सिंह के दिल को ठेस ज़रूर पहुॅचाई थी किन्तु वह जानता था कि ये सब उसकी पत्नी मोहिनी और बेटा पूरन की वजह से ही हुआ था। उसका खुद का कोई दोष नहीं था किन्तु हाॅ इस सबमें ख़ामोश रहना ही जैसे उसका सबसे बड़ा गुनाह हो गया था।

पूनम गर्मियों की छुट्टियों में यहाॅ आई थी, वो भी अपने मामा जी के साथ। वह आना तो नहीं चाहती थी किन्तु मामा जी की वजह से उसे आना पड़ा था। उसने आज तक किसी को नहीं बताया था कि वह क्यों अपने माता पिता के पास नहीं रहना चाहती थी। वह हमेशा ही इस सवाल पर अपने होंठ सिल लेती थी।

अपना हुलिया सही करने के बाद महेन्द्र और रंगनाथ दोनो ही घर से निकल गए। ये बड़ी अजीब बात थी कि किसी ने उनसे कोई बात नहीं की थी। महेन्द्र का साला इस वक्त घर पर था नहीं और उसकी बीवी व बेटा कंपनी में थे। मोहिनी कभी कंपनी नहीं जाती थी किन्तु घर पर पूनम थी इस लिए वह अपने बेटे के साथ कंपनी चली गई थी। घर के नौकर चाकर से ज्यादा इन सबका मतलब नहीं होता था।

महेन्द्र और रंगनाथ दोनो ही अशोक के घर की तरफ जाने का विचार किया। मकसद वही था अशोक की बेटी को उठाना।
----------------------

अशोक जब अपने घर पहुॅचा तो पूरे घर को सुनसान पाया किन्तु अंदर कहीं से किसी के बोलने की कुछ आवाज़ें भी सुनाई दी उसे। शाम हो रही थी इस वक्त और इस वक्त घर के सभी नौकर अपना अपना काम कर रहे होते थे। किन्तु आज ऐसा नहीं था। बल्कि घर में कहीं किसी नौकर का नामों निशान तक न था। हलाकि अशोक के लिए ये कोई नई बात नहीं थी। वह जानता था कि ये सब उसकी पहली पत्नी रेखा की वजह से होता था। रेखा अपने बेटे की वजह से आज कल अर्धपागल अवस्था को पहुॅच चुकी थी। वह कब किसके साथ क्या कर दे कोई नहीं समझ सकता था। आज भी ऐसा ही हुआ था। अभी कुछ देर पहले ही रेखा ने बड़े ही अच्छे मूड में होने का सबूत दिया था। उसने ऐसा ज़ाहिर किया जैसे वह एकदम ठीक है। उसने घर के सभी नौकरों को कह दिया कि वो सब घर से कुछ ही दूरी पर बने सर्वेन्ट क्वार्टर पर अपने अपने कमरों में चले जाएं। आज वह घर का सारा काम खुद करेगी क्योंकि आज उसका वर्षों का खोया हुआ बेटा आ रहा है। इस लिए वह उसके स्वागत के लिए सब कुछ अपने हाॅथों से ही करेगी। रेखा की इस बात पर नौकर भला क्या कहते? उन्हें तो अशोक का शख़्त आदेश था कि रेखा की कोई भी बात टाली न जाए। इस लिए रेखा के ऐसा कहते ही सारे नौकर चाकर घर से चले गए थे। नौकरों को रेखा की हालत का बखूबी पता था किन्तु आज उन लोगों के लिए भी एक नई बात थी और वो ये थी कि रेखा ने आज पहली बार ये कहा था कि आज उसका बेटा आ रहा है। और जितने आत्मविश्वास तथा स्वाभाविक रूप से कहा था उससे ऐसा लग रहा था जैसे रेखा की बात एकदम सच ही हैं। पर अर्धपागल की किसी बात का भला क्या भरोसा? ये नौकर भी समझते थे इस लिए उन लोगों ने कहा कुछ नहीं और चुपचाप चले गए थे अपने अपने कमरों में।

नौकरों के जाते ही रेखा ने बड़ी खुशी से घर का सारा काम किया और एक से बढ़ कर एक पकवान बनाया। इतना सबकुछ उसने अकेले ही किया और बहुत ही कम समय में किया। उसके बाद वह अपने कमरे में पहुॅची और अपने कमरे को इस तरह सजाया जैसे उसका बेटा इसी कमरे में आकर रहेगा उसके पास।

ये सब करने के बाद रेखा ने खुद को भी अच्छी तरह किसी दुल्हन की तरह सजाया। उसके बाद वह फूलों से सजे बड़े से बेड पर जाकर बैठ गई। तकिये के नीचे से उसने फोटुओं का एक एलबम निकाला और उसे खोल कर अपने बेटे की उन तस्वीरों को देखने लगी जिनमें राज पैदा होने से लेकर पाॅच साल तक का था। राज की हर तस्वीर को वो बड़े प्यार से देखती उन्हें चूमती और फिर उन्हें अपने सीने से लगा लेती। उसकी आॅखों से आॅसू बहने लगते।

"अब जल्दी से आ जा मेरे बेटे।" रेखा भर्राए गले से कह रही थी__"अब तेरे बिना मुझसे एक पल भी जिया नहीं जाता। मैं तुझसे इतना प्यार करती हूॅ और तू.....तू अपनी माॅ को इतना सताता है, इतना रुलाता है? क्या तुझे अपनी इस दुखियारी माॅ पर थोड़ा सा भी तरस नहीं आता? इतना क्यों तड़पाता है मुझे? भला मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है रे...जो तू मुझे हर पल इस तरह दुख देता रहता है? मैं तो तेरी माॅ हूॅ न...तेरा कुछ बिगाड़ने का मैं भला सोच भी कैसे सकती हूॅ? मैं तो तेरी तरफ आने वाली हर मुसीबत को अपने ऊपर ले लूॅ...तुझे किसी भी प्रकार की खरोंच तक न लगने दूॅ। फिर क्यों अपनी माॅ को इस तरह अपनी यादों से पल पल रुला रहा है?" रेखा ने कहने के साथ ही एक तस्वीर को देख उसे चूम लिया।

फिर उसने एलबम का एक पेज पलटा। उसकी निगाहें दूसरे पेज पर मौजूद राज की उस तस्वीर पर पड़ीं जिसमें राज बिलकुल छोटा सा था। एकदम नंगा था वह, और उसमें वह रो रहा था। ये देख कर जैसे तड़प उठी रेखा। उसने सीघ्र ही उस तस्वीर पर अपना हाथ फेरा।

"मत रो मेरे बेटे।" रेखा ने एलबम उठाकर उस तस्वीर को अपनी छलक आई आॅखों से देखकर किन्तु पुचकारते हुए कहा__"मत रो मेरे लाल, किसने रुलाया तुझे? बता मुझे, मैं उसकी टाॅगें तोड़ दूॅगी। चुप हो जा
बेटे...मत रो..मेरा राजा बेटा।"

रेखा इस तरह बर्ताव कर रही थी एलबम में अपने बेटे की तस्वीर को देख कर जैसे वह तस्वीर नहीं बल्कि सचमुच में ही उसका बेटा जीता जागता उसके सामने बैठा हो।

"तुझे पता है बेटे।" रेखा कह रही थी__"सब मुझे पागल समझते हैं। वो समझते हैं कि मैं तेरे लिए पागल हो गई हूॅ। लेकिन तू तो जानता है न मेरे लाल कि तेरी ये माॅ पागल नहीं है। बस तेरे विरह में मैं किसी से ज्यादा बात नहीं करती। क्योंकि दुनिया में अब कोई भी मुझे अच्छा नहीं लगता। मेरे लिए अब तेरे सिवा दूसरा कोई भी अपना नहीं रहा। तू मेरी जान है, तू मेरी धड़कन है, तू ही मेरा सब कुछ है। बस जल्दी से मेरे पास आ जा मेरे लाल। देख मैंने तेरे स्वागत के लिए क्या क्या इन्तजाम किया हुआ है? तेरे लिए तेरी ही पसंद का मैने हर इक पकवान अपने हाॅथों से बनाया है और अपने हाथों से तुझे खिलाऊॅगी भी। इस लिए जल्दी से आ जा बेटा.. नहीं तो सब कुछ ठंडा हो जाएगा।"

ये कहने के बाद रेखा तस्वीर में मौजूद राज को इस आशा से देखने लगी जैसे वह उसकी ये बात मान कर तुरंत ही तस्वीर से निकल कर बाहर आ जाएगा। काफी देर की प्रतीक्षा के बाद भी जब ऐसा कुछ न हुआ तो रेखा का हृदय जैसे फट पड़ा। उसकी आॅखों से झर झर करके आॅसू बहने लगे। फूट फूट कर रो पड़ी वह।

"क्यों करता है तू ऐसा?" फिर वह बुरी तरह बिफरी सी बोली__"क्यों मेरा कहा नहीं मानता तू? क्या कोई बेटा अपनी माॅ की आज्ञा का इस तरह उलंघन करता है? मैं तो हर दिन हर पल तुझे अच्छे संस्कार और शिष्टाचार सिखाती हूॅ न..फिर कैसे तू मेरे दिये हुए संस्कारों को भूल कर मेरी बात नहीं मान सकता..बता मुझे? आख़िर क्यों इतना सताता है मुझे? आज तुझे बताना ही पड़ेगा मेरे लाल। आज तुझे मेरी हर बात माननी ही पड़ेगी...वरना...वरना तू सोच भी नहीं सकता कि मैं क्या करूॅगी फिर??? आज तू हमेशा की तरह चुप नहीं रह सकता...तुझे बोलना पड़ेगा।"

अचानक ही रेखा का सिर भारी हो गया। उसकी आॅखों के सामने अॅधेरा सा छाने लगा। उसने दोनो हाॅथों से अपने सिर को थाम लिया और लहरा कर वहीं बेड पर गिर पड़ी। तभी कमरे में धुएॅ का गुबार सा फैलने लगा और देखते ही देखते उस धुएं ने एक मानव आकृति का रूप ले लिया।

अभी उस धुएॅ की मानव आकृति ने बेड की तरफ बढ़ना ही चाहा था कि बाहर से किसी के आने की आहट से वह रुक गया। उसने खुद को छिपाने के लिए जल्दी से बेड के नीचे धुएॅ के रूप में ही समा गया। बाहर से आने वाली आहट कमरे के दरवाजे पर आकर रुक गई।

दरवाजे पर दो ब्यक्ति आकर खड़े हो गए। ये दोनो कोई और नहीं बल्कि महेन्द्र सिंह और रंगनाथ ही थे। दोनो ही कमरे के दरवाजे पर आकर कमरे के अंदर की तरफ बेड पर गिरी पड़ी रेखा को देखने लगे थे। रेखा की खूबसूरती और उसके गदराए हुए मादक से जिस्म पर नज़र पड़ते ही दोनों की आॅखों में वासना और हवस के कीड़े कुलबुला उठे। दोनो पिछले एक हप्ते से दोनो टाइम कृत्या के साथ हवस का नंगा नाच करते आ रहे थे, इस लिए रेखा जैसी हुस्न की देवी को देख दोनो ही इस अवस्था में आ गए थे।

दरअसल महेन्द्र व रंगनाथ रानी को उठाने के लिए अपने घर से सीधा अशोक के घर ही आए थे। यहाॅ पहुॅच कर उन्होंने देखा कि घर का मुख्य द्वार अंदर से बंद नहीं है। इस लिए मुख्य द्वार के बाहर ही लगी बेल को बजाए बिना ही घर के अंदर आ गए थे। अंदर आ कर दोनो ने देखा कि उनकी आशा के विपरीत इस वक्त घर में कहीं कोई नौकर चाकर मौजूद नहीं है। ये देख दोनो खुश हो गए थे। उन्हें लगा जिस काम के लिए वो दोनो यहाॅ आए थे वो अब बिना किसी विघ्न बाधा के ही हो जाएगा। इस लिए वो अब रानी की तलाश में लग गए थे लेकिन किसी भी कमरे में जब दोनो ने रानी को न पाया तो खोजते खोजते रेखा के कमरे में आ गए। इस कमरे में आकर दोनो ने बेड पर जब रेखा को इस तरह बेसुध सी पड़ी देखा तो दोनो ही अपने असल मकसद को भूल कर रेखा के रूप जाल में खो से गए।

दोनो इस तरह कमरे के अंदर दाखिल होकर बेड की तरफ बढ़े जैसे दोनो पर अचानक ही किसी सम्मोहन का असर हो गया हो। बेड के करीब पहुॅच कर दोनो ही रेखा के मादकता से भरे हुए जिस्म को खा जाने वाली नज़रों से घूरने लगे।

कुछ पल इसी तरह घूरने के बाद दोनो ने बेड पर बेसुध पड़ी रेखा पर जैसे ही अपना अपना हाॅथ बढ़ाया तो उसी वक्त जैसे एकदम से कयामत सी आ गई। पल भर में दोनो के जिस्म हवा में लहराते हुए कमरे के दरवाजे पर गुड़ीमुड़ी होकर धड़ाम से गिरे। किसी अज्ञात शक्ति ने बड़ा ज़ोर का झटका दिया था उन्हें।

महेन्द्र और रंगनाथ के हलक से घुटी घुटी सी चीख निकल गई। दोनो बड़ी ही सीघ्रता से उठे। दिलो दिमाग़ में जैसे झनाका सा हुआ। दोनो को अपने आदमियों की वो बातें याद आ गईं जब उनके आदमी इसके पहले रानी को उठाने आए थे और किसी भूत ने उनके आदमियों को भी इसी तरह पटका था।

महेन्द्र और रंगनाथ ये जानकर बुरी तरह घबरा गए कि उनके साथ भी वही हुआ है लेकिन फिर तुरंत सम्हल भी गए वो। दोनो ने कमरे के अंदर बड़ी बारीकी से देखा। तभी बेड के पास उन्हें काले धुएॅ की मानव आकृति खड़ी नज़र आई। ये देख दोनो ही उछल पड़े। वो मानव आकृति अब उनकी तरफ ही बढ़ती चली आ रही थी।

महेन्द्र और रंगनाथ एकदम से सतर्क हो गए। दोनो महान जादूगरनी और काली शक्तियों वाली कृत्या के शिष्य थे। कृत्या ने अब तक उन्हें कई काली शक्तियों से निपुड़ कर दिया था। इस लिए वो दोनो ही अब उस धुए की मानव आकृति से निपटने के लिए तैयार हो गए थे।

महेन्द्र ने सीघ्र ही मुख से कुछ बुदबुदाते हुए अपने दाहिने हाथ को मानव आकृति की तरफ किया। नतीजतन उसके हाथ से एक आग का गोला निकल कर मानव आकृति की तरफ तेज़ी से बढ़ा। जबकि उसके जवाब में मानव आकृति ने भी अपने हाथ को महेन्द्र की तरफ कर दिया। नतीजतन उसके हाथ से पानी का एक गोला निकल कर महेन्द्र द्वारा फेके गए आग के गोले की तरफ तेज़ी से बढ़ गया। कुछ ही पलों में दोनो गोले आपस में टकराए और नस्ट हो गए।

इससे पहले कि महेन्द्र व रंगनाथ कुछ और करते धुएॅ की मानव आकृति ने अपने दोनो हाथों को उनकी तरफ किया। जिससे एक तेज़ बिजली निकल कर उन दोनो के जिस्मों से टकराई और दोनो ही चीखते हुए दरवाजे के उस पार कहीं दूर जा कर गिरे। मानव आकृति तेज़ी से कमरे के बाहर की तरफ बढ़ी। बाहर आकर वह उस जगह पर कुछ दूर ही रुकी जहाॅ पर महेन्द्र और रंगनाथ गिरे पड़े कराह रहे थे।

दोनो तेज़ी से फर्स पर से फिर उठे। अपने सामने वही धुएॅ की मानव आकृति को देख इस बार दोनो ने एक साथ उस पर अपनी काली शक्ति से हमला किया। जवाब में मानव आकृति ने भी हमला किया। काफी देर तक यही चलता रहा। महेन्द्र और रंगनाथ उस मानव आकृति का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे थे। कुछ ही देर में दोनो ही असहाय अवस्था में आ गए। चेहरों पर परेशानी व घबराहट साफ नज़र आने लगी थी।

"कौन तुम?" आख़िर महेन्द्र ने उस मानव आकृति से पूछ ही लिया__"और यहाॅ किस लिए हमसे टकरा कर इन लोगों की रक्षा कर रहे हो?"
"क्यों तुम्हारी उस गुरू ने नहीं बताया?" मानव आकृति के मुख से बहुत ही भयानक आवाज़ निकली थी__"जिसके पास तुम दोनो काली शक्तियाॅ अर्जित करने गए थे?"

"तु..तुम ये सब कैसे जानते हो?" रंगनाथ ने चौंकते हुए पूछा__"और...और कौन हो तुम?"
"मैं सबकुछ जानता हूॅ तुम दोनो के बारे में।" उस मानव आकृति ने कहा__"और तुम्हारी गुरू उस कृत्या के बारे में भी। तुम दोनो जिस रास्ते पर चल पड़े हो उस रास्ते से अपने कदम वापस कर लो और सत्य की राह पर चलो। क्योंकि इसी में तुम दोनो का कल्याण है। अन्यथा तुम दोनो का अंत हो जाना निश्चित है।"

"तुम हमें धमका रहे हो?" महेन्द्र ने सहसा आवेशयुक्त स्वर में कहा__"तुम शायद जानते नहीं कि हमारी गुरू कृत्या में कितनी शक्तियाॅ हैं। इस लिए अगर अपना भला चाहते हो तो हमारे रास्ते से हट जाओ वर्ना अंजाम अच्छा नहीं होगा।"

"हाहाहाहाहा।" धुएॅ की उस मानव आकृति ने हॅसते हुए कहा__"तुम तो अपनी गुरू का इस तरह गुणगान कर रहे हो जैसे तुम्हारी गुरू कृत्या कोई देवी है जिसे कोई मार ही नहीं सकता। अरे मूर्खो इस धरती पर पैदा होने वाले हर चर अचर जीव की नियति एक न एक दिन इस संसार से मिट जाना ही होती है। तुम्हारी गुरू कृत्या, तुम दोनो और मैं भी यहाॅ तक कि हर कोई एक दिन इस दुनिया से मिट जाएगा।"

"तुम हमें साधु संतों जैसा प्रवचन सुना रहे हो लेकिन हमें तुम्हारे इस प्रवचन से कोई लेना देना नहीं है समझे?" रंगनाथ ने कहा__"अपनी भलाई चाहते हो तो हमारे रास्ते से हट जाओ और हमें हमारा काम करने दो।"

"तुम जिस काम को करने यहाॅ आए हो उस काम में तुम कभी सफल नहीं हो सकते।" मानव आकृति ने कहा__"क्यों कि तुम उस लड़की को हाथ भी नहीं लगा सकते। अगर हाथ लगाने की कोशिश करोगे तो जल कर खाक़ में मिल जाओगे। लेकिन उससे पहले तो तुम दोनो को मुझसे सामना करना पड़ेगा तभी इस घर के सदस्यों तक पहुॅच पाओगे।"

"लेकिन तुम हो कौन?" महेन्द्र ने कहा__"और इस घर के सदस्यों से तुम्हारा क्या वास्ता है?"
"इस बात का पता बहुत जल्द ही तुम्हें चल जाएगा।" मानव आकृति ने कहा__"अब जाओ यहाॅ से। ये तुम्हारे लिए सत्य की राह पर चलने का आख़िरी अवसर है, इसके बाद भी अगर तुम दोनो ने इस घर के सदस्यों की तरफ बुरी नीयत से देखा तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।"

महेन्द्र सिंह को लगा इससे बहस करने का कोई मतलब नहीं है। दूसरी बात वो दोनो समझ भी चुके थे कि इससे टकराना अभी उनके बस का नहीं है। अभी वो इतने सक्षम नहीं हुए थे कि वो इस जैसे किसी रहस्यमय इंसान का मुकाबला कर सकें। ये सोच कर उन दोनो ने यहाॅ से चुपचाप निकल जाना ही बेहतर समझा।

दोनो चुपचाप वहाॅ से निकल गए जबकि धुएं की मानव आकृति भी देखते ही देखते अपने स्थान से गायब हो गई। इन सबके जाते ही वहीं एक कोने में दीवार के उस पार छुपा अशोक सामने आ गया। उसके चेहरे पर बारह क्या बल्कि पूरे के पूरे चौबीस बजे हुए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा था उसकी आॅखों के सामने?? महेन्द्र और रंगनाथ को तो वह अच्छी तरह पहचान गया था किन्तु वह यह देखकर चकित था कि वो दोनो ऐसी शक्तियाॅ जानते थे और उसका प्रयोग भी उस मानव आकृति पर कर रहे थे। ये अलग बात है कि वो दोनो उस मानव आकृति से पार नहीं पा रहे थे। अशोक तो उस मानव आकृति को देख कर आश्चर्यचकित था और सोच रहा था कि ये क्या बला है? उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब किस लिए हो रहा था? दिलो दिमाग़ कुंद सा पड़ गया था उसका।
------------------------

अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,,,

अब यहाॅ से जंग शुरू होगी दोस्तो,,,,
Nice update
 

Raj

Well-Known Member
4,444
15,227
158
waiting for next update
 
Top