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Fantasy राज-रानी (एक प्रेम कथा)

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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354
राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 20 )

अब तक,,,,,,,,,

"रुक जाइये आप सब।" रानी ने आवाज़ दी थी, पास आकर मुझसे बोली___"क्या इस ग्रुप में मेरे लिए भी कोई जगह है?"

रानी ने इतनी मासूमियत से ये कहा था कि उसका एक एक शब्द मेरे दिल में उतरता चला गया। मैं जानता था कि वो बेचारी मेरे करीब आना चाह रही थी। मेरी असलियत मेरे ही मुख से जानना चाहती थी। मुझे उस पर तरस भी आया और प्यार भी।

"जी बिलकुल जगह है।" मैने संतुलित भाव से कहा___"पर ये कोई ग्रुप नहीं है। ये एक रिश्ता है, दोस्ती का, भावनाओं का।"
"हाॅ जी।" रानी ने कहा___"मेरा मतलब वही है कि इस दोस्ती के रिश्ते में क्या मेरे लिए भी कोई जगह है? मुझे भी आप सबके बीच उसी रिश्ते से रहना है।"

"अच्छी बात है।" मैने कहा___"अब से आप भी हमारे साथ हैं, क्यों दोस्तो?"

मेरी इस बात से सबने एक साथ सहमति जताई। उसके बाद हम सब पार्क की तरफ बढ़ गए। सुधीर बार बार मुझे देख कर मुस्कुरा देता था। मुझे उसका मुस्कुराना अच्छी तरह समझ में आ रहा था पर मैंने उसे कुछ कहा नहीं। ख़ैर, कुछ ही देर में हम सब पार्क में पहुॅच गए। मैं सोच रहा था कि रानी के सामने अब मैं इन लोगों को क्या और कैसे अपने बारे में बताऊॅगा?
_____________________

अब आगे,,,,,,,

कुछ ही देर में हम सब पार्क में पहुॅच गए। पार्क के एक साइड लगी बेन्चों पर हम सब बैठ गए। मैं सोच रहा था कि रानी के सामने कैसे मैं उन सबको अपने बारे में बता पाऊॅगा। लेकिन अब बताना तो पड़ेगा ही क्योंकि सबको मैं कह चुका था।

"चलो अब बताओ भाई।" शेखर ने ही सबसे पहले कहा था।
"क्या जानना चाहते हो तुम सब लोग मेरे बारे में?" मैने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"यार मैं भी तुम सब की तरह एक इंसान ही हूॅ।"

"वो तो हम मानते हैं भाई कि तुम भी हम सबकी तरह एक इंसान ही हो।" पंकज ने कहा___"लेकिन ये भी मानते हैं कि इंसान हो कर भी तुम हम सब से थोड़ा अलग हो।"
"ऐसा कैसे कह सकते हो तुम?" मैने पंकज की तरफ देखते हुए कहा था।

"पता नहीं भाई।" पंकज ने कहा___"पर तुम्हें और तम्हारी गतिविधियों को देख कर ऐसा ज़रूर लगता है कि तुम कोई रहस्यमयी इंसान हो।"
"पता नहीं क्या अनाप शनाप बके जा रहे हो तुम?" मैने कहा___"भला ऐसा भी क्या कर दिया मैने कि तुम मुझे रहस्यमयी कहने लगे?"

"कई रीजन हैं भाई।" पंकज ने कहा__"शुरू से शुरू करता हूॅ____पहले दिन जब तुम काॅलेज आते हो तो एक हाई फाई कार से आते हो, जो ये साबित करता है कि तुम कोई दौलतवाले घर से हो। कल कालेज में तुमने जिस तरीके से रोनी और उसके दोस्तों को सहजता से मगर इतनी खतरनाक तरीके से मारा था वो कोई आम लड़का नहीं कर सकता। मतलब साफ है कि तुमने जूड़ो कराटे, कुंगफू या मार्शल आर्ट्स की बाकायदा जानकारी रखते हो। रोनी जैसे अमीर और खतरनाक बाप के बेटे को मारने के बाद भी अब तक सही सलामत कालेज में हो। ये बेहद हैरानी की बात है कि रोनी का बाप अपने बेटे की उस हालत का बदला लेने के लिए तुम्हारे साथ अब तक कुछ नहीं किया। अरे करने की तो बात दूर बल्कि वह तो तुम्हें देखने तक नहीं आया। कल के हादसे के बाद प्रिंसिपल ने भी इस बारे में तुम्हारे खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं लिया। बल्कि वो इस तरह खामोश हो गया जैसे तुमने कुछ किया ही नहीं है। आज पहले पीरियड में जब तुमने टीचर को अपना इंट्रो दिया तो ये कहा कि मुझे मेरे गुरू तो राजवर्धन ही कहते हैं बाॅकी घर के सब लोग राज कह कर बुलाते हैं। अब सवाल ये उठता है कि तुम अपने किस गुरू की बात कर रहे थे? ये सारी बातें साफ साफ कहती हैं राज भाई कि तुम यकीनन रहस्यमयी इंसान हो।"

मैं पंकज की बात और उसकी बुद्धि को देखता रह गया। मैं सोच भी नहीं सकता था कि एक मामूली सा लड़का इस सबके बारे में इस तरह सोच कर कह सकता था।

"पंकज की बात का हम सब समर्थन करते हैं राज भाई।" निखिल ने कहा___"और अगर पंकज की बात सही मानी जाए तो सचमुच तुम रहस्यमयी हो। इस लिए हम सब जानना चाहेंगे कि तुम वास्तव में हो कौन?"

"हद हो गई यार।" मैंने कहा___"पंकज ने तो तिल का ताड़ और राई का पहाड़ ही बना दिया। जबकि इसमें रहस्यमयी जैसी कोई बात ही नहीं है। आज के समय में अगर किसी को शौक होता है तो वो मार्शल आर्ट्स जैसी चीज़ों की ट्रेनिंग लेता ही है। मुझे शौक था तो मैने भी मार्शल आर्ट्स की विधिवत शिक्षा ली। और मैंने जिन्हें अपना गुरू कहा था वो मार्शल आर्ट्स की शिक्षा देने वाले मेरे गुरू थे। वो ही मुझे राजवर्धन कहते हैं। इसके पहले मैं और मेरा परिवार इंडिया के बाहर रहते थे। अभी कुछ समय पहले ही हम सब यहाॅ अपने देश आए हैं। विदेश का सारा कारोबार बेच कर हमने यहाॅ पर अपना दूसरा कारोबार शुरू कर लिया है। बस इतनी सी बात है जिसे तुम लोग रहस्यमयी समझ रहे हो।"

"ओह तो ये बात है।" साक्षी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"इस पंकज ने तो सच में राई का पहाड़ बना दिया था।"
"लेकिन एक बात तो है साक्षी।" सुधीर ने कहा___"पंकज ने क्या दिमाग़ लगाया था सारी बातों को कैच करके बताने का।"

"तो तुम अब अपनी फैमिली के साथ हमेशा के लिए यहाॅ आ गए हो?" शेखर ने पूछा।
"हाॅ यार।" मैने कहा__"मेरे चाचू तो मान ही नहीं रहे थे यहाॅ आने के लिए। वो तो दो साल से मैं ही ज़िद कर रहा था कि मुझे अपने देश में रहना है। फिर क्या था मेरी बात उन्हें माननी ही पड़ी।"

"तो कौन कौन हैं तुम्हारी फैमिली में?" सुधीर ने पूछा।
"मैं, मेरी दो माएॅ, एक चाचू और एक मामा जी।" मैने धड़कते दिल से कहा___"हम पाॅच लोगों का ही परिवार है। लेकिन उम्मीद है कि कुछ समय बाद हमारे परिवार में एक दो सदस्यों की और इंट्री हो जाएगी।"

"वो कैसे?" साक्षी चौंकी।
"दरअसल, मामा जी और चाचू दोनो शादी करेंगे तो दो सदस्य और आ जाएॅगे।" मैने बताया।
"ओह।" साक्षी ने कहा।
"और तुम्हारे डैड?" पंकज ने पूछा।
"डैड नहीं हैं।" मैने कहा। ये अलग बात है कि ये कहते वक्त मेरी आवाज़ लड़खड़ा गई थी जिसे सबके साथ साथ रानी ने भी महसूस किया। वो एकटक मुझे ही देख रही थी।

"ओह साॅरी भाई।" पंकज ने कहा___"वैसे क्या हुआ था डैड को?"
"पता नहीं भाई।" मुझे समझ ही न आया कि क्या बताऊॅ।
"पता नहीं, ये क्या बात हुई भाई?" शेखर बरी तरह हैरान हुआ।

"दरअसल माॅ ने कभी बताया ही नहीं।" मैने कहा।
"अरे ऐसा कैसे हो सकता है भाई?" सुधीर कह उठा___"ऑटी ने भला क्यों न बताया होगा? कुछ तो बताया ही होगा। वरना तुम्हारे सर्टिफिकेट में डैड का नाम रिक्त नहीं हो जाता??"

"अरे भाई ये तो पता है मुझे।" मैने कहा___"माॅ ने डैड का नाम तो बताया था। और वही नाम मेरे सभी सर्टिफिकेट में भी है।"
"ओह आई सी।" नितिन ने कहा___"तो क्या तुमने कभी खुद ये जानने की कोशिश नहीं की कि तुम्हारे डैड को हुआ क्या था?"

"उन्हें कुछ हुआ है कि नहीं ये तो ईश्वर ही जाने।" मैने कहा___"क्योंकि मैंने जबसे होश सम्हाला है तब से कभी अपने डैड को नहीं देखा। माॅ ने भी कभी उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया। बस इतना बताया था कि मेरे डैड का नाम अशोक श्रीवास्तव था।"

"क्या????" रानी मेरे मुख से ये नाम सुनकर बुरी तरह उछली थी। हलाॅकि मैं अच्छी तरह जानता था कि उसने उछलने का सबके सामने नाटक किया था। सब उसकी तरफ देखने लगे थे। जबकि,

"ये क्या कह रहे हैं आप?" रानी ने ऑखों में आश्चर्य लेकर कहा___"आपके डैड का नाम अशोक श्रीवास्तव था?"
"हाॅ, मेरी माॅ ने तो यही बताया था मुझे।" मैने भी नाटक किया___"और यही नाम मेरे सभी सर्टिफिकेट पर भी दर्ज है। पर आप ये नाम सुनकर इतना क्यों उछल पड़ी मिस?"

"क्योंकि मेरे पापा का नाम भी अशोक श्रीवास्तव है।" रानी ने अधीरता से कहा।
"अरे ये तो कमाल हो गया राज भाई।" सुधीर ने हैरानी से कहा___"तुम्हारे और इनके यानी दोनो के ही डैड का नाम एक ही है। अनबिलीवेवल भाई।"

"ऐसा हो जाता है किसी न किसी के साथ कि दो अलग अलग ब्यक्तियों के पिता का नाम सेम हो जाए।" सहसा प्रिया ने कहा___"जैसे बहुत से ऐसे लड़के लड़कियाॅ होते हैं जिनके नाम समान होते हैं। सो ऐसा ही है शायद इनके साथ भी।"

"पर मेरे और इनके में और भी कई समानताएॅ हैं प्रिया।" रानी ने कहा___"अगर तुम सब लोग सुनना पसंद करो तो बताऊॅ?"
"हाॅ हाॅ क्यों नहीं।" सबने एक साथ कहा। जबकि रानी की ये बात सुनकर मेरी धड़कनें बढ़ गईं।

"जैसा कि तुम लोग ये जान ही गए हो कि इनके और मेरे पापा का नाम और कास्ट सेम ही है।" रानी ने एक एक शब्दों पर ज़ोर दिया___"मगर कुछ और भी ऐसी चीज़ें हैं जो इनके और मेरे में एक समान है। दरअसल हम दो भाई बहन थे और दोनो जुड़वा पैदा हुए थे। मेरे भाई मुझसे बस पाॅच मिनट के ही बड़े थे। उनका नाम भी राजवर्धन था। घर में सब उन्हें राज ही कहते थे। हम दोनो भाई बहन जब पाॅच साल के थे तो एक साथ ही हम दोनों का स्कूल में पापा ने नाम लिखवा दिया। हम दोनो स्कूल जाने लगे। हम दोनो भाई बहन के बीच बेहद लगाव था। एक को दर्द होता तो दूसरा उस दर्द से रोने लगता था। ख़ैर, फिर एक दर्द भरी ऐसी घटना घटी जिसने हम सबको उस दर्द में डुबो दिया। दरअसल, हम दोनो भाई बहन का स्कूल में नाम लिखे कुछ ही महीने हुए थे कि एक दिन जब हम दोनो स्कूल से आ रहे थे तो अचानक हमारे सामे एक कार आकर रुकी। उससे एक आदमी बाहर निकला और राज भाई को उठा लिया और वापस कार में उनको लेकर बैठ गया। इसके बाद वो कार वहाॅ से ऑधी की तरह चली गई। जबकि मैं रोते हुए उस कार के पीछे दौड़ती रही। मगर वो कार मेरी ऑखों से ओझल हो गई। मैं अपने भइया के लिए वही बीच सड़क पर रोती रही। कुछ लोग मेरे पास आए और मुझे चुप कराने लगे। मगर मैं शान्त ही नहीं हो रही थी। मुझे तो बस मेरे राज भइया चाहिये थे। उन लोगों ने बड़ी मुश्किल से मुझे चुप कराया और मुझसे मेरे घर वालों का नाम पता पूछा तो मैने पापा का नाम बता दिया। मेरे बताने पर वो लोग मुझे मेरे घर ले आए और मुझे मेरी माॅ को सौंप दिया। उन्होंने उन्हें सारी बात बताई कि कैसे मैं बीच सड़क पर रो रही थी। उसके बाद वो लोग चले गए। उन लोगों के जाने के बाद मेरी माॅ ने मुझसे राज भइया के बारे में पूॅछा तो मैने उनको रोते हुए सब बता दिया। मेरी बातें सुन कर माॅ की हालत खराब हो गई। उन्हें लकवा सा मार गया था। मैने रोते हुए ही उनको झिंझोड़ा तब जाकर उनको होश आया। मगर जैसे ही उन्हें होश आया वो मुझे मारने लगी और कहने लगी कि मैं क्यों वापस आ गई। तुझे क्यों नहीं ले गए वो लोग? मेरे बेटे को ही क्यों ले गए? तूने मेरे बेटे को जाने क्यों दिया? मैं भला उनसे क्या कहती? मैं भी तो छोटी सी बच्ची ही थी। उसके बाद पापा को जब पता चला तो वो भी दुखी हो गए। उन्होने राज भइया को तलाशने के लिए धरती आसमान एक कर दिया। वर्षों तक पुलिस उनको तलाशती रही मगर फिर कभी राज भइया का कहीं कुछ पता न चला। धीरे धीरे समय भी गुज़रता रहा। मेरी माॅ ने राज भइया के खो जाने का जिम्मेदार मुझे ही बना दिया। उन्होंने कभी मुझे प्यार नहीं दिया बल्कि हर वक्त अपनी तीखी और कड़वी बातों से मुझे जलील करती रहीं। भइया के खो जाने के दो साल बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली थी। मेरी माॅ उनसे ज्यादा मतलब नहीं रखती थी। वो तो बस हर वक्त बेटे के ग़म में ही अपने कमरे में पड़ी रहती थी। दूसरी माॅ ने ही मुझे प्यार दिया। मेरे ज़ख्मों पर मरहम लगाया। उनको कोई औलाद नहीं हुई। इस लिए दूसरी माॅ ने मुझे ही अपनी सगी बेटी बना लिया और दिलो जान से प्यार किया। तो कहने का मतलब ये कि मेरे में और इनके में ऐसी भी समानताएॅ हैं।"

मैं तो क्योंकि जानता ही था कि रानी सब कुछ सच ही कह रही थी। लेकिन वहाॅ मौजूद बाॅकी सब लोग उसकी बातों को सुन कर बुरी तरह हैरान भी थे और उसके लिए दुखी भी।

"तुम्हारी बातों ने तो सच में हिला दिया रानी।" प्रिया ने कहा___"तो क्या आज भी तुम्हारे भइया तुम्हें वापस नहीं मिले?"
"मिल तो गए हैं प्रिया।" रानी ने ऑसू पोंछते हुए कहा___"मगर मिलने के बाद भी शायद नहीं मिले मुझे।"

"क्या मतलब??" प्रिया के साथ साथ सभी चौंक पड़े थे।
"यही तो हैं में मेरे भइया।" रानी की रुलाई फूट गई, मेरी तरफ इशारा करके बोले जा रही थी वह___"ये मेरे राज भइया ही हैं। मुझे पूरा यकीन है कि यही मेरे राज भइया हैं। मेरी अंतर्आत्मा झूठ नहीं बोल सकती।"

रानी की इस बात ने उन सब पर जैसे बम्ब सा फोड़ दिया था। सबके सब आश्चर्य से ऑखें फाड़े कभी रानी को तो कभी मुझे देखे जा रहे थे। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं कैसा रिऐक्ट करूॅ?

"राज भाई।" सुधीर हैरान परेशान सा बोल पड़ा___" क्या ये जो कह रहीं हैं वो सच है?"
"क्या बताऊॅ यार।" सहसा मैने आवेश में आते हुए कहा___"कल भी इन्होंने कंटीन में मुझसे यही कहा था। मुझे समझ में नहीं आता कि ये मेरे पीछे हाॅथ धोकर क्यों पड़ गई हैं? मैने कल भी इनसे यही था कि मेरा इनसे कोई रिश्ता नहीं है। और आज इन्होने रिश्ते को साबित करने के लिए तुम सबको एक मनगढ़ंत कहानी भी सुना दी। हद है यार ये तो।"

"ये कहानी नहीं है भइया।" रानी ने ज़ार ज़ार रोते हुए कहा___"बल्कि हकीक़त है। अगर आपको मेरी बातों पर यकीन नहीं आता तो मेरे साथ मेरे घर चल कर खुद देख लीजिए। वहाॅ आपको मेरे पापा अशोक श्रीवास्तव भी मिल जाएॅगे और मेरी वो माॅ भी मिल जाएगी जो आज भी आपके विरह में दुखी है और चुपचाप अपने कमरे में पड़ी रहती है। मैं वो सब निशानियाॅ भी दिखाऊॅगी आपको जिनसे आपका ताल्लुक है।"

"देखो मिस।" मैने बड़े सब्र के साथ कहा__"ये सब नाटक बंद करो। मुझको भाई ही बनाना है तो ठीक है मैं भाई बन जाऊॅगा लेकिन ये सब नाटक और ऐसी कहानी गढ़ने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

"ये कहानी नहीं है।" रानी ने खीझते हूए कहा___"कैसे यकीन दिलाऊॅ आपको? आप एक बार मेरे साथ मेरे घर चल कर देख लीजिए न। वहाॅ जाकर तो आपको भी पता चल जाएगा कि मैं सच बोल रही हूॅ या झूॅठ।"

"भाई एक बार इनके घर जा कर के देख ही लो।" शेखर ने कहा___"जब ये कह रही हैं तो जाने में क्या हर्ज़ है? आख़िर तुमको भी तो पता हो जाएगा कि सच क्या है?"
"शेखर सही कह रहा है भाई।" पंकज मेरे पास आते हुए बोला___"एक बार खुद भी ठंडे दिमाग़ से सोचो कि हो सकता है इनकी बात सही ही हो। मेरा मतलब कि हो सकता है कि इनके भाई के खो जाने वाली बात सच ही हो। और अगर ये सच होगा तो खुद सोचो भाई कि इनकी मानसिक अवस्था क्या होगी? एक बहन अपने भाई के लिए कितना दुखी होगी? एक माॅ जैसा कि इन्होने ने बताया कि वो आज भी अपने बेटे के ग़म में दुखी हैं तो सोचो भाई इनका पूरा परिवार ही कितना दुखी होगा। इस लिए एक बार इनके साथ इनके घर चले जाने में कोई हर्ज़ नहीं है। बल्कि मैं तो ये कहता हूॅ कि हम सब इनके घर चलते हैं।"

"हाॅ क्यों नहीं।" रानी कह उठी___"तुम सब भी चलो मेरे साथ और खुद भी अपनी ऑखों से देख लो। मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है।"
"ठीक है चलो मान लिया कि इन्होंने जो कुछ भी कहा वो सब सच है।" मैने कहा__"मगर इसका मतलब ये तो नहीं कि मैं ही इनका वो भाई हूॅ जिनकी ये कहानी बता रही हैं कि वो खो गया था।"

"इतनी सारी चीज़ों की समानताएॅ किसी की नहीं होती भइया।" रानी ने मेरी ऑखों में देखते हुए कहा___"मैं ये मानती हूॅ कि आपके पिता का नाम और मेरे पापा का नाम एक समान होना महज एक इत्तेफाक़ हो सकता है। मगर जो दो नाम आपके हैं वहीं दो नाम मेरे भइया के भी हैं तो क्या वो भी इत्तेफाक़ हो गया? मेरी डेट ऑफ बर्थ और मेरे भइया की डेट ऑफ बर्थ सेम है। हम दोनो भाई बहन की डेट ऑफ बर्थ 08-08-1998 है। और मुझे पूरा यकीन है कि आपकी भी यही डेट ऑफ बर्थ होगी। कह दीजिए कि नहीं है? सबसे बड़ी बात चलिये मान लिया हम दोनो के पिता के नाम सेम हैं तो क्या सर्टिफिकेट में माॅ के नाम भी सेम होने चाहिए? मेरे सर्टिफिकेट में मेरी माॅ का नाम रेखा श्रीवास्तव है। अब आप बताइये कि आपके सर्टिफिकेट में आपकी माॅ का नाम क्या है?"

सच कहता हूॅ दोस्तो, रानी की इस बात ने मुझे जैसे निरुत्तर सा कर दिया था। भला मैं कैसे उसे बता देता कि हाॅ मेरे सर्टिफिकेट में भी मेरी माॅ का वही नाम दर्ज़ है जो उसकी माॅ का है? मैं जानता था कि उसके पास जितने भी सबूत थे सब सच ही थे। जबकि मेरे पास अब ऐसा कोई लिखित सबूत नहीं था जिससे कि मैं उसकी बातों को झुठला सकता। रानी की इन सब बातों से बाॅकी सब की निगाहें मेरे चेहरे की तरफ मुड़ गई थी। मतलब साफ था कि वो सब अब ये जानना चाहते थे कि क्या मेरी माॅ का नाम भी वही है जो रानी की माॅ का नाम है? और अगर वही है तो फिर ये आख़िरी सबूत होगा शायद कि हाॅ मैं ही रानी का वर्षों पहले खोया हुआ भाई हूॅ।

"राज भाई तुम चुप क्यों हो?" मुझे चुप देख कर पंकज कह उठा___"मिस रानी की बात का जवाब दो। क्या तुम्हारे सर्टिफिकेट में भी तुम्हारी माॅ का वही नाम दर्ज़ है जो इनकी माॅ का है?"
"तो क्या उससे भी ये साबित हो जाएगा कि मैं ही इनका खोया हुआ भाई हूॅ?" मैने हार न मानते हुए कहा___"ये भी तो संयोग या इत्तेफाक़ हो सकता है।"

"मतलब कि तुम मान रहे हो कि तुम्हारी माॅ का नाम भी वही है।" पंकज ने हैरानी भरे भाव से कहा___"जो इनकी माॅ का नाम है। यानी कि रेखा श्रीवास्तव?"
"हाॅ ये सच है।" अब मानने के सिवा मेरे पास कोई चारा न था, बोला___"पर ये भी महज इत्तेफाक़ ही है। इस सबका ये मतलब हर्गिज़ नहीं हो सकता कि मैं ही इनका भाई हूॅ।"

"क्यों नहीं हो सकता भइया?" रानी एक बार फिर से बुरी तरह रो पड़ी___"आपको और कितने सबूत चाहिए? मैने तो आपको अपना भाई कहने के इतने सारे सबूत दे दिये। क्या आप ऐसा कोई सबूत दे सकते हैं जिससे आप ये साबित कर सकें आप मेरे खोए हुए भइया नहीं हैं? बताइये।"

"मुझे कोई सबूत देने की ज़रूरत ही नहीं है।" मैने कहा___"क्योंकि मैं इस बात को मानता ही नहीं कि मैं ही आपका वो खोया हुआ भाई हूॅ। और हाॅ अब इस मैटर में किसी से कोई बात नहीं करना चाहता।"

मैं ये कह कर वहाॅ से चल दिया। अभी कुछ ही क़दम चला था कि रानी की बहुत ही करुण आवाज़ मेरे कानों में पड़ी।

"रुक जाइये और मेरी एक बात भी सुन लीजिए।" रानी कह रही थी___"आप नहीं मानते न कि आप ही मेरे भइया हैं तो ठीक है। मैं भी अब अपने भइया के बिना जीवित नहीं रहना चाहती। इतने वर्षों से इसी आस में ज़िंदा थी कि जिस दिन मेरे भइया मुझे मिलेंगे उस दिन शायद मेरी माॅ भी भइया के साथ साथ मुझे प्यार करने लगेगी। मगर नहीं, अब और नहीं। इतने दुख दर्द अब और नहीं सह सकती मैं। आप जाइये, अगर मेरे भइया इस दुनियाॅ में हैं ही नहीं तो मेरा भी अब मर ही बेहतर है। उनके लिए ही तो जी रही थी। अब अगर वो ही नहीं हैं तो मैं भी अब इस दुनियाॅ में नहीं रहना चाहती।"

"ये क्या कह रही हो रानी?" साक्षी जो उसके करीब ही थी, वो उछल पड़ी थी।
बाॅकी सबका हाल भी साक्षी की तरह ही था। कुछ ही दूरी पर खड़ा मैं हतप्रभ सा रानी को देखे जा रहा था। मेरा दिल बैठा जा रहा था।

"अलविदा दोस्तो।" रानी ने कहा और अपने बाएॅ हाथ की एक उॅगली में पहनी हुई अॅगूठी को अपने मुह की तरफ बढ़ाया। दूसरे हाॅथ से उसने पहले ही अॅगूठी के छोटे से किन्तु अजीब से नग के ऊपर लगे ढक्कन को खोल लिया था। अॅगूठी वाली उॅगली मुख के पास ले जाकर उसने अपने हाॅथ को उल्टा कर लिया। उसमें से कुछ पीला पीला निकल कर रानी के मुह में गिर गया। रानी का चेहरा ऑसुओं से तर था। किसी को कुछ समझ न आया कि रानी ने ये किया क्या है। समझ तो तब आया जब कुछ ही पलों में रानी का जिस्म चक्कर आने जैसा लहराने लगा। उसको जबरदस्त हिचकी आई, और झटके से उसके मुह से खून बाहर आ गया।

"नहींऽऽऽऽ।।।।" सम्पूर्ण वातावरण में मेरी चीख गूॅज गई। मैं बिजली की सी तेज़ी से रानी की तरफ दौड़ा। सब लोग जैसे स्टेचू में तब्दील हो गए। सबका दिमाग़ सुन्न पड़ गया।

मैं दौड़ कर रानी के पास आया। वो बस ज़मीन पर गिरने ही वाली थी कि मैने उसे अपने दोनो बाजुओं से सम्हाल लिया। रानी के मुख से खून बह रहा था तथा उसकी ऑखें बंद हो रही थी। उसकी ये दशा देख कर मेरी रूह तक काॅप गई। एक मज़ाक जो चल रहा था अब तक वो मुझ पर ही भारी पड़ गया था। मेरी आॅखों से ऑसू झर झर करके बहने लगे।

"ये क्या किया तूने पागल?" मैंने उसे खींच कर खुद से छुपका लिया, रोते हुए बोला__"अरे मैं तो तुझे बस परेशान कर रहा था इतने दिनों से और तूने ये सब कर लिया?"
"इतने वर्षों से मुझे परेशान करके भी आपका दिल नहीं भरा था भइया?" रानी ने अजीब भाव से बिलखते हुए कहा__"मेरे हृदय में झाॅक कर देख लेते एक बार। शायद आपको कुछ नज़र आ जाता वहाॅ।"

"मैं सब जानता हूॅ पगली।" मैने उसके चेहरे पर प्यार से हाथ फैरते हुए कहा___"तुझे कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं है। अरे मैं तो बस अपनी बहन को परेशान कर रहा था, तुझे सता रहा था। पहले तो कभी ऐसा समय ही नसीब नहीं हुआ तो सोचा तेरे साथ एक खेल ही खेल लूॅ। मगर तूने ये क्या कर लिया?"

"आपको खेल ही खेलना था तो बस एक बार ये यो बता देते भइया कि आप ही मेरे भइया हैं।" रानी ने कहा___"आपके मुख से ये सुन कर मुझे सुकून तो मिल जाता। खेल खेलने के लिए तो सारी ऊम्र पड़ी थी न? ख़ैर, जाने दीजिए। आज मैं इस हाल में भी बहुत खुश हूॅ भइया। अपने सबसे अज़ीज़ भइया की बाहों में दम निकल जाएगा मेरा। इससे बढ़ कर खुशी और क्या होगी मेरे लिए?"

"तुझे कुछ नहीं होगा मेरी गुड़िया।" मैने उसके माथे पर चूमते हुए कहा___"तुझे पता नहीं है कि तेरा भइया क्या चीज़ है। मैं यमराज की टाॅगें तोड़ दूॅगा अगर उसने मेरी बहन को छुआ भी तो।"
"मौत से भी कोई जीत सका है भइया?" रानी ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा था।
"कोई और जीता हो या नहीं।" मैने कहा__"पर तेरा ये भाई सब कुछ कर सकता है। यकीन कर छोटी, तुझे कुछ नहीं होने दूॅगा मैं।"

रानी की साॅसें अटकने लगी थी। उसने बहुत ही खतरनाक ज़हर पिया था। उसका समूचा जिस्म नीला पड़ने लगा था। हम दोनो के आस पास मौजूद बाॅकी सब अभी भी ऐसे बैठे और खड़े थे जैसे वो कोई बेजान पुतले हों। मैं तुरंत ही रानी को अपनी बाहों में उठा कर पार्क के बाहर की तरफ भागा। मेरे ऐसा करते ही बाॅकी सबको जैसे होश आया। वो सब भी हैरान परेशान होकर मेरे पीछे पीछे दौड़ पड़े। मैं रानी को लिए बहुत जल्द काॅलेज की पार्किंग में खड़ी अपनी कार के पास पहुॅचा। उसे अनलाॅक किया और गेट खोल कर रानी को अगली सीट पर लेटा दिया और खुद घूम कर जल्दी से ड्राइविंग सीट पर बैठ कर कार को स्टार्ट कर आगे बढ़ा दिया।

पार्किंग के बाहर आते ही वो सब लोग मिल गए। वो सब बहुत ही ज्यादा परेशान व भयभीत से दिख रहे थे।

"तुम सब लोग अपने अपने घर जाओ।" मैने कार को रोंक कर उनकी तरफ देखते हुए कहा___"मैं रानी को लेकर हाॅस्पिटल जा रहा हूॅ।"
"भाई मैं भी चलूॅगा तेरे साथ।" पंकज कह उठा। उसके साथ साथ ही सुधीर व शेखर भी कह उठा।
"चिन्ता मत करो भाई लोग।" मैने उन सबसे कहा___"रानी को कुछ नहीं होने दूॅगा मैं। कल ये सही सलामत तुम सबको काॅलेज में ही दिखेगी। अब जाओ तुम सब।"

सुधीर, पंकज व शेखर मान ही नहीं रहे थे। बड़ी मुश्किल से उन्हें मनाया। लड़कियों की ऑखों में रानी की इस हालत पर ऑसू थे। खैर, मैने सबको आस्वस्त किया और कार को तूफान की तरह आगे बढ़ा दिया।

रानी ने ऐसा ज़हर पिया था जिससे जीवित बचना असंभव था। मैं कार को हवाईजहाज की स्पीड में दौड़ाते हुए शहर से बाहर आ गया। उसे हास्पिटल ले जाने का कोई फायदा नहीं था क्योंकि ये किसी भी डाक्टर के बस की बात नहीं थी कि उसे बचा सकें। इस लिए मैं उसे शहर से बाहर एक ऐसी जगह लाया जहाॅ दूर दूर तक कोई न था।

शाम ढलने लगी थी। मैं जानता था कि सही समय पर अगर रानी अपने घर नहीं पहुॅचेगी तो घर के सब परेशान हो जाएॅगे। मैने कार को सड़क के किनारे लगा कर रोंक दिया। उसके बाद मैं अपनी तरफ से उतर कर रानी की तरफ आया और उसके पास ही बैठ गया। रानी की ऑखें बंद थी। मैने नब्ज चेक की तो बहुत ही धीमी चव रही थी। मैने उसके सिर को अपनी गोंद में रखा और उसके सिर पर अपना दाहिना हाॅथ रख कर ऑखें बंद कर ली।

मेरे ऐसा करते ही मेरे हाॅथ से एक दिव्य ऊर्जा निकल कर रानी के सिर से होते हुए उसके पूरे शरीर पर फैल गई। रानी के शरीर को इससे झटके लगने लगे। कुछ पल बाद ही वो सारी ऊर्जा लुप्त हो गई। उसके बाद मैंने फिर से रानी के सिर पर हाथ रख कर अपनी ऑखें बंद की। अगले ही पल मेरे हाथ से फिर एक तेज़ रोशनी निकली और रानी के शरीर में समाने लगी।

कुछ ही देर में वो रोशनी भी लुप्त हो गई। उसके लुप्त होते ही कुछ पलों बाद रानी की पलकें झिलमिलाते हुए खुल गई। उसके मुख पर लगा खून सब साफ हो गया था। रानी की ऑखें जब खुली तो उसकी नज़र मेरे चेहरे पर पड़ो और वह एकदम से मुझसे लिपट गई।

"भइया।" उसकी ऑखों से ऑसू छलक पड़े।
"चल अब रोना नहीं।" मैने उसकी पीठ पर थपकी देते हुए कहा___"और हाॅ माफ़ कर दे अपने इस भाई को जो उसने तुझे इतना रुलाया और सताया भी।"

"मैं और कुछ नहीं जानती भइया।" रानी ने कहा___"मैं तो बस इस बात से खुश हूॅ कि आप मुझे मिल गए।"
"चल अब तुझे घर छोंड़ आऊॅ नहीं तो सब परेशान हो जाएॅगे।" मैने कहा___"और हाॅ ये सब घर में किसी से मत कहना।"

"ऐसा क्यों भइया?" रानी ने कहा___"मैं तो सबसे खुशी खुशी बताऊॅगी कि आप मिल गए हैं। देखना सबसे ज्यादा कौन खुश होता है। जब माॅ आपको देखेंगी तो आप सोच भी नहीं सकते कि उनकी उस वक्त की दशा क्या होगी।"

"नहीं रानी।" मैने गंभीरता से कहा___"अभी ये सब इतना जल्दी बताना ठीक नहीं है। जब बताने का समय आएगा तब हम दोनो खुद चल कर उन्हें बताएॅगे।"
"पर भइया अभी बताने में हर्ज़ ही क्या है?" रानी ने कहा___"क्या आपको माॅ की हालत पर तरस नहीं आता? क्या आपका दिल नहीं चाहता कि आप भी माॅ और पापा से मिलें?"

"चाहता है रानी।" मैने कहा___"बहुत दिल चाहता है। मगर मुझमें सिर्फ उनका ही बस अधिकार नहीं है। बल्कि उनका भी अधिकार है जिन्होंने आज तक मुझे अपने बच्चे की तरह मान कर प्यार किया। मुझे पाला पोशा है। उनका मुझ पर पूरा अधिकार है बहन। जिस तरह यहाॅ पर तुम्हारी दो माॅ हैं उसी तरह मेरे भी दो माॅ हैं। वो दोनो मुझे ही अपनी दुनियाॅ मानती हैं। उन्होंने किसी से शादी नहीं की। जब से मैं उन्हें मिला हूॅ तब से वो मेरी माॅ बन कर मुझे प्यार दे रही हैं। आज आलम ये है कि वो मेरे बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकती हैं।"

"क्यों उनको पता नहीं है कि आपके अपने माता पिता और एक बहन भी है?" रानी ने पूछा।
"सब कुछ पता है उन्हें।" मैने कहा___"वो तुमको भी अच्छी तरह जानती हैं। वो तो इसके पहले कह भी रही थी कि मैं तुम्हें यूॅ न परेशान करूॅ बल्कि साफ साफ बता दूॅ कि मैं ही तुम्हारा भाई हूॅ।"

"तो फिर समस्या क्या है भइया?" रानी ने कहा__"जब उनको सब कुछ पता है और वो कह भी रही हैं तो आपको माॅ पापा के पास जाकर उन्हें अपने बारे में बताने में क्या समस्या है?"

"समस्या तो है रानी।" मैने कहा__"वो ये सोच कर मुझे आप लोगों को सब कुछ बता देने को कहती हैं ताकि मेरे मन में ये विचार न आए कि वो मुझे अपने स्वार्थ के कारण अपने माता पिता के पास जाने का नहीं कह रही। और मैं ये सोच कर नहीं जा रहा कि उनके मन में ये न आए कि जब मैं सक्षम हो गया तो उन्हें छोड़ कर अपने माता पिता के पास चला गया।"

"ओह तो ये बात है।" रानी ने कहा___"पर ये तो बस आपकी और उनकी सोच व संभावनाएॅ हैं भइया कि आप उनके बारे में ऐसा सोचे बैठे हैं। ख़ैर, इस समस्या का एक हल ये भी है कि या तो हम सब आपके पास ही आ कर रहने लगें या फिर वो सब हमारे पास आकर रहने लगें। हम सब एक साथ रहने लगेंगे। फिर ना आपको लगेगा कि आपने उन्हें छोड़ दिया और ना ही उनको लगेगा कि आप उनकी वजह से आ नहीं सकते थे।"

"तुमने यकीनन बहुत अच्छा सुझाव दिया है मेरी गुड़िया।" मैने कहा___"इस बारे में सोचा जा सकता है। लेकिन उसके पहले हमें दोनो तरफ इस बारे में बात करनी होगी।"

"हाॅ तो ठीक है न।" रानी ने कहा__"यही करते हैं फिर। तो अब बताइये कब बात करना है हमें?"
"देखते हैं हालात कैसे बनते हैं?" मैने कुछ सोचते हुए कहा___"इतना जल्दी तो ये हो नहीं सकता।"

"ऐसा क्यों?" रानी ने कहा__"जल्दी क्यों नहीं हो सकता?"
"मैने कुछ सोचा है इस बारे में।" मैने रहस्यमय तरीके से कहा था।
"क्या सोचा है आपने?" रानी के भाथे पर बल पड़ा।
"अपने कान मेरे मुह के पास करो।" मैने मुस्कुरा कर कहा।

रानी ने अपना कान मेरे मुह के पास कर दिया। मैने उसे बता दिया। सुन कर रानी मुस्कुराई।

"ये तो बड़ा इंटरेस्टिंग है भइया।" रानी मुस्कुराई।
"चलो अब काफी समय हो गया है।" मैने कहा___"मैं तुम्हें तुम्हारे घर के पास तक छोड़ देता हूॅ।"
"ठीक है भइया।" रानी ने कहा।

उसके बाद मैं इस तरफ से उतर कर दूसरी तरफ से ड्राइविंग सीट पर गया और कार को स्टार्ट कर यु टर्न ले लिया। हम दोनो भाई बहन अब खुशी खुशी जा रहे थे।


अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,,,,
 

The_InnoCent

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Update was long but short... Reason of my commenting so you know already.... Still it was nice....
Keep it up...
शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,,,,,,
 

The_InnoCent

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Bhai apki lekhan shelly gajab ki hai. Ap ka her update Shandar hota hai
शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,,,,,,
 

The_InnoCent

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Update 19

Behad hi shandaar or jabardast update bhai.
Bahut khoob superb.

Canteen ka scene to ekdam lajwaab tha bhai.

Batein bhi badi hi dilchasp thi.
Class me jo bhi sir ne kaha ekdam sahi hai bhai.
Sare dosto ki entry bhi shandaar or group me Rani ki entry behtareen h .
Kul milakar ek Chhota Lekin badhiya update bhai.

Or ab ,
Aage ka intjar
शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,,,,,,
 
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