गुड्डी का इंतज़ार
गुड्डी अपनी छत पर सूर्य को जल दे रही थी। तभी उसकी नज़र सामने दरवाजे पर पड़ी। गुड्डी ने उसे देखा तो एक पल को खुश हुई पर अगले ही पल वो नाराज़ हो गयी। वो राजू से मन ही मन गुस्सा थी, कि उसने उसका बच्चा गिरवा दिया था, और उसका मानना था कि भगवान ने उसे एक नपुंसक के साथ ब्याह कर इसकी सजा दी है। लेकिन वो मन ही मन खुद को सांत्वना देती थी कि वो तो उस बच्चे को जन्म देना चाहती थी, पर राजू ने उसे बहका कर बच्चा गिरवा दिया। इसलिए वो खुद से ज्यादा राजू को दोषी मानती थी।
राजू जैसे ही घर के अंदर आया, गुड्डी के ससुर ने उसे देखा और उसका हाल चाल लेने लगा। राजू ने उनके पैर छुए और समान वहीं बरामदे में रख दिया। राजू को वहीं कुर्सी पर बैठा वो बातचीत करने लगे और फिर आवाज़ लगाई," बहुरिया...बहुरिया...देख तहार भाई आईल बा?"
अंदर से गुड्डी की ननद बोली," पापा, भौजी छत पर पूजा करत बिया।"
गुड्डी का ससुर बोला," अच्छा...मीरा बेटी सुनअ, देख भौजी के भाई आईल बा। तनि इनका खातिर चाय पानी नाश्ता ले आवा।" वो फिर उससे बातचीत में समधी और घरबार की जानकारी लेने लगे। इतने में गुड्डी की ननद मीरा पानी और चाय लेकर बाहर आई। वो कोई इक्कीस साल की होगी। दिखने में बेहद खूबसूरत, उसके बाल खुले थे। उसकी ऊंचाई कोई पांच फीट चार इंच की होगी। उसका रंग गेंहुआ और चेहरा लंबा था। नाक बहुत तीखी और होठ हल्के चौड़े गुलाबी थे। आंखें उसकी बड़ी बड़ी और कजरारी थी। वो इस वक़्त मेहेंदी रंग की सलवार सूट में थी। उसके छाती और गाँड़ का उभार बेहद कामुक रूप से फैला हुआ था। उसने झुक कर राजू को चाय और पानी दिया। उसके झुकते ही उसकी चूचियों के बीच की गहरी दरार और बांई चुच्ची के ऊपर तिल राजू के सामने प्रस्तुत हो गया। राजू की नज़र तो ऐसी कोमल तितलियों के यौनांग को कपड़ों के ऊपर से भांप लेते हैं यहां तो, उसकी झलक साफ साफ मिल रही थी। राजू एकटक वहीं देख रहा था। उधर मीरा भी राजू को देख मुग्ध थी, उसने पहली बार इतना खूबसूरत नौजवान देखा था। मीरा राजू को देख उसकी एक नज़र में ही खो गयी। दोनों एक दूसरे को देख रहे थे। मीरा चाय का प्याला बढ़ाते हुए बोली," चाय ली ना रउआ।" राजू ने चाय ले ली और एक मुस्कान दी। राजू ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा," बहुत निम्मन चाय बा, के बनौले बा?
मीरा," जी हम, रउआ के निम्मन बुझाईल, शुक्रिया।" मीरा का बाप उसे अंदर जाने को कहता है। मीरा अपनी मस्तानी चाल में चली जाती है और राजू उसकी मटकती गाँड़ देख एक आह भरता है। कुछ देर बाद राजू कमरे में जाकर फ्रेश होता है और लेट जाता है। चुकि वो थका हुआ था, उसे नींद आ गयी। लेकिन तभी पायल की रुनझुन रुनझुन की शोर ने उसे उठा दिया। उसने आंखे खोली तो उसकी नज़र फर्श पर गयी, जहां उसे जनाना के दो पैर दिखे जिनके बीच की दो उंगलियों में बिछिया थी। राजू ने नजरें उठायी तो देखा, उसके सामने गुड्डी थी, जो उसके लिए खाना परोस के ले आयी थी।
गुड्डी बिल्कुल औरतों की तरह सजी धजी हुई थी। राजू ने जब उसे देखा तो उसे लगा जैसे बीना ही खड़ी हो।
गुड्डी की बूर राजू को देखते ही फड़कने लगी थी। बूर से पानी किसी जल प्रपात सी रिसने लगी थी। उसका मन तो था कि वो राजू से अभी चुदवा ले। लेकिन उसने खुद पर काबू किया। वहीं राजू ने उसे देखा तो, साड़ी और सिंदूर में उसकी बहन बेहद खूबसूरत देहाती औरत लग रही थी। वो पहले से ज्यादा भरी हुई और परिपक्व लग रही थी। गुड्डी हमेशा सर पर आँचल रखती थी। उसका मंगलसूत्र हमेशा उसके गले में चमचमाता जो उसके विवाहिता होने का सुंदर प्रमाण देता था। गुड्डी के हाथों में चूड़ियां बहुत अच्छी लग रही थी। राजू को पीली साड़ी में गुड्डी बहुत सेक्सी लग रही थी। सामने से गुड्डी की ढोढ़ी उभरी हुई थी, जो उभरकर उसकी कामुकता बढ़ा रही थी। राजू की नज़र अपनी ढोढ़ी पर देख, वो समझ गयी कि उसके भाई के दिमाग में क्या चल रहा होगा क्योंकि खुद उसके दिमाग में पुरानी बातें चल रही थी जब वो राजू के साथ रंगरेलियां मनाया करती थी। बहुत दिनों बाद उसकी नज़र एक आकर्षक पुरुष पर पड़ी थी। उसने देखा राजू के चेहरे पर दाढ़ी और मूछ प्रचुर मात्रा में निकल आये हैं। उसकी बाँहे पहले से ज्यादा मजबूत हो चुकी है। उसका कंधा और चौड़ा हो गया था, और छाती के बाल कमीज से बाहर आ रहे थे।
गुड्डी," कइसन बाड़अ तू राजू, घर पर सब कइसन बाड़े?"
राजू," सब ठीक बा गुड्डी दीदी, तहरा सब खूब याद करतआ?"
गुड्डी," राजू बाबूजी कइसन बाड़े?
राजू," ठीक बाड़े, तनि खेत के लेके चिंतित रहेलन। जउन तहरा बियाह में गिरवी रखले रहलन।"
गुड्डी चुप हो गयी, उसकी आँखों में आंसू तैर आये। तभी राजू ने इधर उधर देख उसका हाथ पकड़ लिया और उसे करीब खींच लिया। गुड्डी उसका एहसास पा सनसना उठी। तभी राजू ने उसे अपने बगल में बिठा लिया। राजू गुड्डी की आंखों से गिरते आंसू पोछ बोला," तू कानत काहे बारू, हम हईं ना, हम सब ठीक कर देब।"
राजू," तू बता इँहा कइसन लागतआ? जीजाजी तहार ध्यान राखेलन कि ना? देखअ तानि पहिले से तनि हरिया गईल बारू?
गुड्डी उसकी ओर देखी फिर उठ खड़ी हुई, राजू को ऐसा लगा जैसे उसने गुड्डी की दुखती रग पर हाथ रख दिया है। गुड्डी ने कहा," तू खाना खा ले अउर आराम कर, अभी घर में बहुत काम बा। हम सब निपटाके आवत बानि।" गुड्डी ये बोलकर वहां से चली गयी। राजू उसकी बलखाती कमर देख आह भरी। राजू खाना खाते हुए सोच रहा था कि जरूर गुड्डी और उसके जीजा के बीच संबंध ठीक नहीं है, इसीलिए वो इतना भड़क उठी।
वो खाना खाके लेटा ही था कि उसका फोन बज उठा। उसने फोन उठाया, तो उधर से आवाज़ आयी," राजू आज रात माल उतरवा के गोदाम में राखवावे के बा।"
राजू," जी हो जाई, हम शाम तक पहुंच जाएब।"
उधर से आवाज़ आयी," तू होशियार बारअ, एहीसे ई काम तहरा देल गईल बा।"
राजू," रउवा चिंता न करि, सब काम ठीक से हो जाई हमरा पर भरोसा करि।"
फोन कट गया। राजू अभी लेटा ही था कि, उसकी नज़र कमरे के दरवाजे पर गयी जहां गुड्डी की ननद झांक कर उसे देख रही थी। घर में इस वक़्त सिर्फ गुड्डी उसकी सास और ननद थी, गुड्डी के ससुर रोज़ दस ग्यारह बजे निकल जाते थे और शाम तक आते थे। गुड्डी का पति भी काम पर निकल गया था। उसकी सास अपने कमरे में पूजा पाठ कर रही थी। राजू ने उसे ऐसा करते देखा तो इशारा कर अंदर बुलाया। वो चुपके से दबे पांव कमरे में आ गयी। वो धीमे धीमे मुस्कुरा रही थी। राजू ने उससे पूछा," मीरा जी इँहा आयी, ऊंहा से का देखत रहलु।"
मीरा," कुछ ना बस असही।"
राजू," कुछ बात बा त बोली।"
मीरा मुस्कुराई और फिर बिना कुछ बोले भाग गई। राजू उस जाते देख मुस्कुराया और समझ गया कि वो उसे पसंद करने लगी है। राजू शाम को पटना निकल गया और वहां काम खत्म करके वापिस नौ बजे तक आ गया। राजू ने गुड्डी से कई बार बात करनी चाही, पर वो बस उसके सवाल का जवाब दे कन्नी काट लेती। राजू को उसका ये व्यवहार समझ नहीं आ रहा था। वो बहन जो उसके साथ अंतरंग रिश्ते बना चुकी है, वो आखिर क्यों उससे बात ढंग से नहीं कर रही। कहीं उसे उन अश्लील अंतरंग लम्हों का पछतावा तो नहीं हो रहा। कहीं सगे भाई संग कौटुम्बिक व्यभिचार उसे कचोट तो नहीं रहा। ये सब जानने के लिए उसने एक दिन जीजा, गुड्डी, मीरा के साथ फ़िल्म का प्लान बनाया। सबकी सीटें एक ही रो में थी। मीरा जानबूझ कर राजू के पास बैठ गयी। फिर ऐसा हुआ कि पहले मीरा फिर राजू उसके बाद उसका जीजा फिर उसकी गुड्डी दीदी बैठे थे। मीरा फ़िल्म शुरू होते ही राजू के साथ छेड़खानी शुरू कर दी। उसने अपनी चुन्नी उतार, राजू को अपने चूंचियाँ दिखा रही थी। वो पैर से राजू के पैर को छेड़ती। कभी उसके हाथ को छूती और उसका हाथ अपने हाथों में ले गोद में ले लेती। राजू को उसकी छेड़खानी से ज़्यादा गुड्डी की खामोशी परेशान की हुई थी। वो बार बार गुड्डी को देख रहा था। राजू बस मौका ढूंढ रहा था कि कब गुड्डी से बात करने का मौका मिले। तभी गुड्डी को उसने उठकर कहीं जाते हुए देखा वो समझ गया कि वो पक्का बाथरूम करने जा रही है। राजू भी चुपके से निकल गया। वो लगभग भागते हुए महिला प्रसाधन की ओर गया। गुड्डी बस अंदर घुस ही गयी थी। राजू भी हिम्मत दिखाकर अंदर घुस गया। चुकी फ़िल्म अंदर चल रही थी, तो वहां उन दोनों के अलावा कोई नहीं था। राजू गुड्डी के दरवाजे पर खड़ा बोला," गुड्डी दीदी, खोल ना तहरा से बात करे के बा। तू काहे हमसे ठीक से न बोलत बारू? बोल ना। घर पर तहरा से बात करे जे मौका मिलते नइखे।"
गुड्डी अंदर सब सुन रही थी, बोली," राजू निकल इँहा से, ई कोई जगह बा बात करे खातिर, ई महिला सबके मूते के जगह बा। केहू देख ली त तहरा पीट दी।"
राजू," ना, सुन हम बहुत बेचैन बानि। तहार ई रुखल व्यवहार हमके जिये न दी।"
गुड्डी बोली," चल जो राजू, बाद में बात करब।" इतने में किसी के आने की आवाज़ आयी। गुड्डी ने दरवाजा खोला और राजू को अंदर खींच दरवाजा बंद कर दिया। दोनों अंदर एक दूजे की बांहों में थे। दोनों खामोश चुपचाप खड़े थे। कुछ देर बाद वो आहट चली गयी। गुड्डी राजू को देख बोली," काहे तू हमके परेशान कइले बारआ?
राजू," तू हमार सवाल के जवाब दे दअ, का तहरा केहू ग्लानि बा, कोई पछतावा? हमरा से प्यार बा कि ना? अउर बा त ई नाराज़गी काहे?
गुड्डी चुपके से उसके करीब आयी और बोली," राजू भाई, हम तहरा से नाराज़ बानि। तू हमसे हमार पहिला बच्चा छीन ले लु। उ मासूम जान के का कसूर रहे, जउन गलती भईल उ त हमरा तहरा से। प्यार के नशा में भूल गईल रहनि कि बच्चा भी ठहर सकेला। जब उ ठहर गईल त भगवान के देन के हमनी ठुकरा देहनि जा। ओकर सज़ा हमरा अब सास के ताना सुनके मिलेला। हड़बड़ी में अइसन मरद संग बियाह हो गइल कि साला ओकर लांड खड़ा ही ना होखेला। खुद लौंडिया जइसन गाँड़ मरवावेला। अइसन पुरुख के बच्चा कइसे होई। तहरा संग दिल लगा लेनि। अब केहू अउर के साथ हम चुदाई सोच भी ना पाइब। तुहि हमार करेजा में दिल बनके धरकेलु।"
राजू," त सुनाबअ आपन दिल के धड़कन?
गुड्डी ने राजू के चेहरे को थाम अपने सीने से लगा लिया। राजू ने साड़ी का पल्लू हटा दिया और उसके ब्लाउज के ऊपर से चुच्चियों के चूचकों को छेड़ने लगा।
राजू," गुड्डी दीदी, तू हमसे नाराज़ होबु त तहार आशिक़ के का होई। तहार देह के हर कोना के रस पीके भी हम तहरा खातिर बेचैन रहेनी। हम जउन कइनी तहरा खातिर कइनी, तहार सुरक्षित भविष्य खातिर। जब से तू घर से विदा भइलू तबसे शायद ही केहू दिन होई जब तहरा हम याद ना कइनी। हर रोज़ तू हमार सपना में आवत रहलु।"
गुड्डी," अच्छा, अउर सपना में का करत रहनि?
राजू," आके, तू हमार सामने एक एक कपड़वा उतार के लंगटी हो जात रहलु। ओकर बाद हमार लांड के सामने ठेहुना पर बइठ के ओकरा प्रणाम करत रहलु। फेर लंगटी ही हमरा सामने नाचत रहलु। ओकर बाद हमार लांड पकड़के हमरा आपन सुहागरात के सेज पर ले जावेलु। सारा सारा रात तहरा हम उ सेज पर सुताके चोदनी।"
गुड्डी," अच्छा, सुहागरात त हमार कभू भईल ही ना। तहार जीजा त पहिल रात में ही फुस्स हो गइल। हमार देहिया के सगरो गर्मी बूर से पानी जइसन बहेला। राजू हम बुरा लइकी नइखे, हमार तक़दीर बुरा बा। मरद त औरत के चाही, जउन ओकर यौन इच्छा के शांत करे। न त बेचैन बेताब औरत कब दोसर मरद के बिस्तर में घुस जाली, पता न चलेला। इसशहशश.... हमार चुच्ची छेड़के हमके बहकावेलु। छोड़ द हमके।"
राजू," हम कुछ अइसन त न कइनी जउन पहिले न कइनी? शादी से पहिले त खुद चुच्ची चुसवात रहलु।"
गुड्डी," अब हमार शादी हो गइल बा, हम दोसर के पत्नी बानि। लाज आवेला।"
राजू, गुड्डी के चूचियों को मसलते हुए बोला," जान ले लेब तहार अउर ओकर भी, जउन तहरा अउर हमरा बीच आयी। तहार ऊपर खाली हमार हक़ बा। तहरा केहू अउर छुई त हम सच में ओकरा जिंदा न छोड़ब।"
गुड्डी," आह...आह.... हम तहार रहनि, बानि अउर रहब। लेकिन तू भी खुद के हमार मालिक बुझेलु त काहे हमार बियाह एगो नपुंसक से करा दिहलु।"
राजू," अच्छा भईल कि तहार बियाह नपुंसक से भईल, अगर केहू अउर से भईल रहित त तू बच न सकेलु। अउर भगवान हमनीके एक मौका देले बारे, जउन गलती हमनी कइनी, ओकरा सुधारे के।"
गुड्डी," का साफ साफ बोलअ, हम समझनि ना।"
राजू," अरे बुरबक, सोच अब तहार बियाह हो गइल बा। उ बखत त तू कुमारी कन्या रहलु, एहीसे बच्चा गिरावे पड़ल। पर अब अगर तू चहबू त हम तहार गोद भर देब, अउर केहू शक ना करि। तहार कोख में बच्चा हमार रहि, पर सब बुझी कि ई बच्चा तहार पति के बा।"
गुड्डी," लेकिन पति के त पता रही कि उ बच्चा ओकर नइखे?
राजू," कोई भी आदमी आपन नामर्दी लोगन के ना बताई। ऊपर से हमरा पास अइसन प्लान बा कि उ खुद तहरा हमरा पास भेजी, बच्चा पैदा करे खातिर।"
गुड्डी," उ कइसे?
राजू," उ सब तू हमरा पर छोड़ दे। तू बस अबसे रोज़ पति से कह कि तहरा बच्चा चाही। तू तहार सास के ताना सुनके तंग हो गइल बारि। एहि से तू बच्चा चाहेलु।"
गुड्डी," राजू, केहू आ रहल बा। हम रात के सबके सुते के बाद छत पर आईब।"
ऐसा बोल वो अपने कपड़े ठीक कर चली गयी। राजू का लण्ड तना हुआ ही रह गया। उसके बाद वो लोग किसी होटल में खाना खाकर वापिस आ गए।
रात खाना खाने के बाद, गुड्डी किचन में बर्तन माज रही थी। गुड्डी आज जानबूझकर देर कर रही थी। उसके पति की नाईट ड्यूटी थी अस्पताल में तो वो घर पर अकेली थी। उसके ससुर सास सब सोने चले गए थे। पर उसकी ननद मीरा अभी भी जगी हुई थी। थोड़ी देर बाद उसके कमरे की बत्ती भी बुझ गयी। गुड्डी उसके सोने के बाद अपने कमरे में गयी, फिर अपना चेहरा धोया। इसके बाद चेहरे पर क्रीम और पाउडर लगाया। आंखों में काजल और होठों पर लिपस्टिक घिस लिया। वो फिर वादे के मुताबिक राजू से मिलने दबे पांव ऊपर वाले कमरे की ओर बढ़ चली। उसकी धड़कने तेज़ चल रही थी, आज जाने कितने दिन बाद वो राजू के साथ रात बिताने वाली थी। वो खिड़की के पास पहुंची, जो खुली हुई थी। वहां उसने देखा राजू लेटा हुआ था। गुड्डी ने उसका ध्यान खींचने के लिए अपनी चूड़ियां खनकाई क्योंकि उसे बोलते हुए डर लग रहा था। राजू चूड़ियों की खनक सुन उधर पलटा, गुड्डी को देख वो खुश हुआ। गुड्डी ने इशारे से उसे दरवाजा खोलने को कहा, अगले ही पल राजू ने दरवाजा खोला। गुड्डी अंदर घुसते ही राजू से लिपट उसे अपनी बांहों में भर ली। गुड्डी की आंखों में मिलन और खुशी के आँसू थे। गुड्डी ने दरवाजा लगाया और फिर राजू से लिपट बोली," राजू हमके माफ कर दअ, तहरा साथ बहुत गलत कइनी। तू हमरा से मिले खातिर आईल बारअ, अउर हम हईं कि तहरा सता रहल बानि। तू हमार इज्जत खातिर घर के इज्जत खातिर उ बच्चा गिरवेलु। तहार निर्णय ठीक रहे। हम तहरा अइसन गुनाह के सजा देत रहनि जउन तू कभू कइले न रहलु।"
राजू," गुड्डी दीदी, तू ई सब का कह रहल बारू। तहरा जगह केहू और रहित त उ जरूर अइसन ही व्यवहार करित। तहार आँखिया में आँसू ठीक ना लागेला। चल बइठ के बतिया बा।" राजू गुड्डी को बिस्तर तक ले गया।
राजू," गुड्डी दीदी, तू तनि दुबरा गईल बारू। ठीक से खात नइखे।"
गुड्डी," ससुराल में सब लइकी के साथ असही होता। लेकिन तहरा देखे से मन प्रसन्न हो गइल बा।"
राजू," अउर तहरा देख के हमार।" दोनों एक दूसरे को गौर से देख रहे थे। गुड्डी न जाने कब राजू की गोद में बैठ जाती है। फिर वो राजू से पूछती है," राजू तहरा हमार याद आवत रहे कि ना?
राजू उसके गालों को सहलाते हुए बोला," तहरा हम कभू भूले न पाइनि। तू हमार पहिल प्यार बारू।"
गुड्डी," एतना बोलके तू हमके खरीद लेलु। तू अब जवान हो गइल बारू। तहार छाती, ई मजबूत कंधा जउन लइकी से तहार बियाह होई उ बहुत सौभाग्यशाली होई।"
राजू," एक दिन हम तहरा से बियाह करब।"
गुड्डी," तू एगो बियाहल लइकी से बियाह करबू का।"
राजू," खाली इहे न, तू हमार बच्चा भी जनबु।"
गुड्डी राजू के लण्ड को चूतड़ों से मसलते हुए बोली," बच्चा, चाही त ओकरा खातिर का करे के पड़ी?
राजू," अभी बतावत हईं।" ऐसा बोल उसने गुड्डी को बिस्तर पर पटक दिया और उसके ऊपर चढ़ उसे चूमते हुए उसकी साड़ी उतार फेंकी। कुछ देर में ब्लाउज भी गुड्डी के स्तनों से बिछड़ने का दुख मना रही थी। उसकी ब्रा भी उतर चुकी थी। गुड्डी ने पैंटी नहीं पहन रखी थी। अब राजू गुड्डी के बदन पर ताबड़तोड़ चुम्बन बरसा रहा था। गुड्डी के होठों को चूमते हुए, वो उसके स्तनों से खेल रहा था। गुड्डी स्वयं अब उत्तेजित हो उठी थी। सालभर से दबी चिंगारी भड़क उठी थी। आग दोनों तरफ बराबर लगी थी। वासना ने अपना रंग राजू और गुड्डी पर दिखाना शुरू कर दिया था।
राजू गुड्डी के बदन पर एक भी कपड़ा देखना नहीं चाहता था। उसने गुड्डी का साया भी जोड़ से खींच कर अलग किया और फेंक दिया। गुड्डी को राजू की आंखों में खुद के लिए वहसीपन अच्छा लग रहा था। एक असली मर्द अपनी औरत के साथ ऐसा ही करता है, यही उसकी परिकल्पना थी। गुड्डी बिस्तर में नंगी पड़ी उस आत्मसमर्पित हिरनी की तरह लग रही थी, जो शेर का शिकार होने की प्रतीक्षा में थी। गुड्डी पेट के बल, एक टांग ऊपर कमर तक घुटनों से मोड़े हुए, अपनी गाँड़ हिला रही थी। वो बिखड़े बालों को संवारते हुए पीछे राजू को कामुकता से देख रही थी।
राजू," आज तहार सुहागरात के इच्छा पूरा होई गुड्डी दीदी।"
गुड्डी," पूरा एक साल से चुदवैनी न। बियाह के रोज तुहि चोदले रहलु। सुहागरात में जीजा तहार हमके छूलस भी न, न हम छुए दैनी। आज हमार असली सुहागरात होई। एक बहिन आपन भाई के साथ सुहागरात मनाई।"
राजू गुड्डी के चूतड़ों की घाटी में अपनी हथेली रगड़ रहा था। उसके हाथ बहन की बूर से टकराये तो वो हैरान हो गया। गुड्डी की बूर बेहद गीली और चिपचिपी हो रही थी। उसके बूर से कामरस का रिसाव बेहद तेजी से हो रहा था। राजू," तहार बूर से एतना पानी काहे चु रहल बा।"
गुड्डी," ह्हम्म, बुरबक कहीं के भूल गईलु, बूर गीला होता, लांड घुसाबे खातिर। अउर लांड जब भाई के होता, त बूर अउर पानी छोड़ेला राजा।" वो बड़े ही कामुक अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोली।
राजू उसके बाल पकड़ खींचा और बोला," सच तहरा जइसन लंडखोड़ औरत के सालभर से लांड न मिली त उ अइसन ही छिनार जइसन बूर से पानी चुआवेली।"
गुड्डी," राजू हम केहू अउर के ना, बस तहार छिनार बानि। तहार दीदी बस तहार संग ही खुश रह सकेलि। तहार हमार सच्चा प्यार भाई- बहन के साथ जिस्मानी भी बा। तू हमार प्यास मिटा द।"
राजू अपना लण्ड दिखाते हुए बोला," उफ़्फ़फ़ ..... बहुत दिन बाद तहरा लंगटी देख रहल बानि। तहरा देख साला ई लांड देख कइसे फनफना गईल ह। तहार ई मस्त गोल गाँड़ अउर भूरा रंग के चूचक के ताज से उठल चुच्ची बहुत उत्तेजक लागत बा।"
गुड्डी राजू के छाती में हाथ फेरते हुए, उसके बदन को सूंघ रही थी। राजू के पसीने की गंध में उसकी मर्दाना महक स्पष्ट थी। गुड्डी ने जीभ निकाल उसकी पसीने से भरी छाती को चाट लिया। राजू को ये अच्छा लगा तो उसने गुड्डी से पूछा," तहरा पसीना चाटे में अच्छा लागेला?
गुड्डी," हां, ऐमे असली मरद के गंध बा।" ऐसा बोल वो उसकी छाती और काँख में पसीने को चाट रही थी।
राजू ने उसे अपना पसीना पूरा चटवाया। इसके बाद गुड्डी उसके लण्ड की ओर लपकी। उस नुकीले सुपाड़े को उसने जीभ से चटखारा। फिर जैसे किसी जूते को कपड़े से चमकाते हैं वैसे ही उसने सुपाड़े पर थूक अपनी जीभ से सुपाड़े को चमकाने लगी।
गुड्डी राजू के आगे कुत्ती बनकर लण्ड चाट रही थी। राजू बिस्तर पर खड़ा था और गुड्डी के बाल पकड़ उसपर नियंत्रण रखें हुआ था। गुड्डी तो जैसे किसी बच्चे को मनपसंद खिलौना मिल जाने पर उत्साहित होता है बिल्कुल वैसी ही उत्साह में थी। ये वो खिलौना था जिसके लिए वो साल भर से तड़प रही थी। उस लण्ड रूपी खिलौने से खेलने में वो इतनी मशगूल थी कि राजू के अपने गाँड़ पर बरसते थप्पड़ उसे उत्तेजित कर रहे थे। राजू गुड्डी की नाक बन्द कर मुँह में लण्ड पूरी तरह घुसाता और जब तक वो सांस के लिए छटपटाती नहीं तब तक उसे कोई राहत नहीं देता था। गुड्डी भी काफी ब्लू फिल्मों की हीरोइन की तरह खुद को प्रशिक्षित कर चुकी थी। कभी वो लण्ड को सुपाड़े से जड़ तक अपनी थूक से भिगोती। कभी होठों पर थूक जमा कर बच्चों की तरह बुलबुले बनाती। कभी लण्ड के छेद को जीभ से छेड़ती, तो कभी सुपाड़े को गाल के भीतरी दीवार से टकड़ा ऐसे मुँह बनाती जैसे मुँह में रसगुल्ला रखी हो, और उसपर अपनी हथेली से गाल पर थप्पड़ मारती। राजू को उकसाने के लिए लण्ड निकाल कर अपने चेहरे की लंबाई नापती और हंसती। राजू के आंड़ को वो मुँह में लेके गुलाब जामुन सी चूसती थी। राजू बस गुड्डी की मन ही मन तारीफ कर रहा था, कि वो बिल्कुल अब ब्लू फिल्म की हीरोइन की तरह लण्ड चूस रही थी।
तभी गुड्डी बोली," उम्मह.... उम्म... का मस्त लण्ड बा?
राजू," लागत बा तू बहुत ही पियासल बारू।"
गुड्डी," हां, तहार लांड खातिर....पपप्पललप्प....पप्पललप्प।"
राजू," गुड्डी दीदी, तू सच में लांड चूसे में न.१ बारू। एतना बढ़िया से त केहू न चूसलस।"
गुड्डी," अउर केकरा से चूसौलस ?
राजू," तहार रंडी माई से गे रंडी के जनमल। रंडी त रंडी जइसन ही ना चूसी।"
गुड्डी," रंडी माँ त बेटी भी रंडी। राजू मज़ा आईल आपन रंडि माई के चोदे में।
राजू," उ साली त गजब के रंडी बा? वइसन बेचैन, बेबस, चुदक्कड़ लइकी केहू ना होई।"
गुड्डी बोली," अच्छा अब तू हमार ऊपर आके बूर चोद। बूर चोदत चोदत तू माई अउर आपन कहानी सुनाबअ।"
गुड्डी राजू को अपने टांगे फैला बीच में ले आयी और उसने उसकी भूखी बूर में उसका कड़ा लण्ड घुसा दिया। राजू उसकी चूचियों को दोनों हाथों में भींच उन्हें चूमते हुए लण्ड बूर में पेलने लगा। राजू उसके चुचकों को मसलते हुए बोला," ई बेर जब हम तहरा पेट से कर देब, तहरा बच्चा होई त हम भी दूध पियब।"
गुड्डी मुस्कुराते हुए बोली," ई भी कोई बोले बला बात बा। तहरा जेतना मन होई उतना दूध पी लिहा। बच्चा केतना पीबे करि। बाकि दूध तहरे खातिर रही।"
राजू," जानत बारू, माई के लंगटी कइके पूरा घर में चोद लेनी ह। लेकिन सबसे ज्यादा मज़ा आईल जब बीना के हम बाबूजी के बिस्तर पर चोदनी। जहां माई लजात रहे अउर हम उसे पहिले शिलाजीत खा लेने रहनि। ओकरा गोदी में उठाके सारा रात चोद चोद के धन्य कर दैनी। सच बताई त माई जइसन बेधड़क चुदक्कड़ हम देखनि ना।"
गुड्डी," आह...आह... माई के भी पेट से कर देबु?
राजू," हम चाहत बानि कि तू अउर माई हमार बच्चा के जन्म दे, हमरा बाप बने के सुख दे।"
गुड्डी," आह..आ..आ..उफ़्फ़फ़ औरत के असली काम त इहे बा, मरद के बच्चा देबे के। तहरा खातिर त हम पहिले भी पेट से हो गइल रहनि। उ समय दिक्कत रहे, पर अब त लाइसेंस बा। हम सच में तहरा से ही आपन गोद भराई करबाईब। लेकिन उ खातिर तहरा हमके अबसे रोज़ चोदे के पड़ी। रोज़ आपन मूठ हमार बूर में गिराबा। हमार सास के त पता ही नइखे कि ओकर बेटा नपुंसक बा। अब बताईब हम बांझ नइखे।"
राजू," गुड्डी दीदी तहार बूर अभी भी उतने टाइट बा। उफ़्फ़फ़ लागतआ तहार बच्चेदानी से टकड़ात बा। देख किस्मत में तू हमार बारू, बियाह त भईल दूसरा से पर उ साला नामर्द बा। अब तू फिरसे हमार संग बारू।" राजू धक्के लगाते हुए बोला।
गुड्डी," खाली इहे न हम हर जनम तहार किस्मत में बानि राजा।"
राजू गुड्डी की बूर में कमर के भरसक प्रयास से धक्के मार रहा था। गुड्डी उन धक्कों में आनंद के नए सागर में लीन हो रही थी। कुछ देर बाद राजू ने लण्ड का पानी उसकी बूर में बहा दिया और उसके साथ लेट गया। गुड्डी जैसे उस वीर्य को बूर में नहीं आत्मा में उतार रही थी। राजू और वो पिछले दो घंटों से कामलिप्त थे। गुड्डी ने राजू के छाती पर सर रख उसे बांहों में भर लिया। राजू ने पास ही तकिए के नीचे से सिगरेट निकाल सिगरेट जलाई। उसने एक कस लिया ही था कि गुड्डी बोली," राजू तू ई सिगरेट कबसे पिये लगलु?
राजू," गुड्डी दीदी, बस आदत लग गईल। तहरा पटना में मकान मालिक याद बा। जहां उ नर्सिंग होम में तहार गर्भपात करावे में मदद कइले, उहे हमरा एक बार मंत्री से मिलवइलस। मंत्री के हम आपन बात में पटा लेनी। अब हम ओकर गोदाम में आवेवाला गैर कानूनी समान के ठिकाना लगावत बानि। एहि खातिर उ दिन हम शाम में गईल रहनि। ऊंहा ढेरी लोग ई सब पीएले। बस पहिले कभू कभार रहे, अब आदत हो गइल बा। पर अभी तक घर में केहुके नइखे पता।"
गुड्डी," गैर कानूनी समान मतलब?
राजू," शराब, चरस, गांजा, हेरोइन, कोकेन ड्रग्स इत्यादि। इहे सब। ई सब से मंत्री खूब माल कमावेला। पुलिस के भी डर नइखे काहे सब त मिलल बा। खाली विपक्ष वाला सबसे बचके रहे पड़ेला। घर में केहू के न बतौनी सिवाय तहरा। हम और अरुण दुनु अब इहे काम में लग गईल बानि। बहुत जल्दी हम बाबूजी के ज़मीन छुड़ा लेब। पइसा त अभी भी बा बहुत, पर एकाएक सब निकालब त सबके नज़र में आ जाएब। पढ़ाई भी ई साल खत्म हो जायीं।"
गुड्डी अपने भाई को सिगरेट पीते हुए देखती रही और सुनती रही।
कुछ देर रुक वो बोली," लेकिन ई गलत काम बा ना राजू। तू त बड़ा शरीफ रहलु। ई सब काम काहे शुरू कइलु?
राजू," गुड्डी दीदी, तू का चाहत बारू बाबूजी के गिरवी ज़मीन बिक जाए। हम सब हमेशा गरीब बनके रही। तहार बियाह में दहेज खातिर बाबूजी, केतना परेशान भइलन, भूल गईलु। हम सब ठीक कर देब। उ ठीक करे खातिर हम सब करब। बाबूजी के बाद घर परिवार के ज़िम्मेदारी हमार बा, अउर हम अभी से ओकरा संवारत बानि।"
गुड्डी राजू को चूमते हुए बोली," गुस्सा न हो राजू। तू सच में जिम्मेदार बारू। लेकिन ई सब खतरनाक काम बा। तहरा कुछ हो जाई त हमार का होई, माई के का होई?
राजू सिगरेट का धुंआ छोड़ते हुए बोला," अरे हम पूरा जिनगी ई काम न करब, साल दु साल में खूब पइसा हो जाई त हम खुद ही छोड़ देब ई सब।"
गुड्डी बोली," राजू कोई अइसन जुगाड़ कर ना, जइसे तू हमके वापस राघोपुर ले चल। हम उंहे तहरा साथ रहब।"
राजू," हम खुद तहरा अपना साथ रखे चाहेनि। कुछ न कुछ जुगाड़ करेके पड़ी। लेकिन हम तहरा से वादा करत बानि कि तहरा इँहा से ले जाएब।"
गुड्डी," सच राजू... तहरा राखी के कसम।"
राजू," राखी के कसम देले बारू, अब त निभाबे के पड़ी।अरे तहरा खातिर सोना के करधनी लेके आईल रहनि। तनि देख त कइसन बा।"
राजू ने टेबल पर रखे बैग से कमरबंद निकाली, जिसमें सोने की लड़ियाँ लगी हुई थी। गुड्डी उसे देख खुश हो गयी। गुड्डी ने वो लेते ही राजू के चेहरे पर चुम्बन बरसा दिया। उसी वक़्त वो खड़ी होकर कमर में बांध ली और राजू को दिखाने लगी।

गुड्डी," कइसन लागेनि राजा?
राजू, " बस कातिल लागेलु। ऐसा बोलके वो गुड्डी को फिर बिस्तर पर पटक दिया।
गुड्डी," राजू, हमार पति कभी हमरा खातिर कुछ न लाइले। तू एतना महंगा चीज़ लावलु।"
राजू," हम तहार भैया भी बानि अउर सैयां भी बानि।
गुड्डी," अउर हम तहार बहिनिया भी बानि अउर सजनिया भी।" ऐसा बोलके दोनों ने एक दूसरे को चूमा।
गुड्डी," हम तहरा का दी। तहार तोहफा के बदला में।"
राजू," छोड़ तहरा से का लेब, तू आपन प्यार लुटाबआ खाली हमरा पर।"
गुड्डी," ह्हम्म... बोल ना। हमरा पास कुछ त होई जउन तहरा पसंद होई।"
राजू," न अइसन कुछ नइखे हमके कुछ न चाही।"
गुड्डी," तहरा मीरा के चोदे के मन बा ना। उ बहुत कड़क माल बिया। उ तहरा पर खूब लाइन मारेली, तू ओकरा कल चोद लअ। परसु होली बा, कुछ जुगाड़ कइके चोद ले।"
राजू," होली बा त हमार होली तहार संग होई।"
गुड्डी," अरे हम त रहब पर, तहरा एगो नया बूर मिली चोदे खातिर। लोग नया कली सबके फूल बनाबे चाहिले अउर तहरा त काल खुला मैदान मिली। तहार जीजा अउर ससुरजी त मित्र मंडली के साथ व्यस्त रहियन अउर भांग पीके मस्त। सास बाहर आयी ना, त मीरा, तू अउर हम खेलब होली। फगुआ में हमार ननद के मिली रसिया मरद।"
राजू," लेकिन हम त तहरा के इँहा लाके चोदे के सोचने रहनि। सब भाँग के रस पिहि, पर हम त तहार यौन रस पियब। काल असली जोबन के रस के होली खेलब।"
गुड्डी," लागत बा तू फेर कुछ शैतानी करबू। सुनके ही रोमांच आ रहल बा। लेकिन तहरा दुगो लौंडिया मिली त एमे तहार फायदा बा।"
राजू," गुड्डी लेकिन मीरा के साथ हमके मज़ा न आई। जउन मज़ा आपन माई बहिन चोदे में बा उ दोसर औरत में कहाँ?
गुड्डी," तू बहुत बड़का हरामी बारू, साला माई बहिन के ही बूर पसंद ह। अभी रात बाकी बा, तहार सगा दीदी तहरा सामने लंगटी पड़ल बा, अब अगर कुछ होखो के चाही त खाली चुदाई।"
राजू गुड्डी की गाँड़ के छेद में उंगली घुसा बोला," गाँड़ चोदेबु।"
गुड्डी," हाय तहार नवाबी शौक़, ले लआ पहिले भी त ले चुकल बारू। तहार चीज़ बा।"
राजू हंसा और गुड्डी के गाँड़ के छेद पर उंगली रख थूक मलने लगा। गुड्डी खुद अपने हाथों से चूतड़ फैलाके अपनी गाँड़ की गहरी घाटी उभार दी। राजू ने धीरे से अपना सुपाड़ा उसकी गाँड़ के छेद पर रखा और लण्ड घुसा दिया। गाँड़ के छेद की मांसपेशियां खुलकर राजू के सुपाड़े को जगह दे रही थी। गुड्डी पहले भी राजू से गाँड़ मरवा चुकी थी इसलिए वो राजू को रोकने की बजाय दर्द को आत्मसात कर उसे अपने पिछवाड़े में घुसने की अनुमति दे चुकी थी।
गुड्डी थोड़ी देर बाद राजू का पूरा आठ इंच लण्ड गाँड़ में ले चुकी थी।
राजू," गुड्डी दीदी तहरा कउनु दिक्कत बा का। हमरा त बड़ा मजा आ रहल बा।"
गुड्डी सिसयाते हुए," बहिनचोद हमार गाँड़ के पूरा भीतरी तक लांड घुस गईल बा। लागत बा कहीं तहार लांड में हमार पीला मल ना लग जाये। लेकिन दरद के साथ मज़ा भी आ रहल बा। आपन लांड से गाँड़ के छेदा के खोल द राजा। आपन दीदी के कसके गाँड़ मारआ।"
राजू लण्ड गाँड़ की अंदरूनी दीवार में रगड़ते हुए घर्षण का आनंद ले रहा था। राजू गुड्डी के पीछे लेटा हुआ उसके बाल थामे गाँड़ चोद रहा था। अब गुड्डी भी अपने सिंकुड़े छेद के खुलने से आनंद उठा रही थी। गुड्डी को अपनी गाँड़ की नसें खुल जाने से घर्षण का आनंद मिल रहा था। उसकी गाँड़ से अंदर बाहर होता लण्ड किसी अजगर की तरह प्रतीत हो रहा था।
गुड्डी और राजू पौन घंटे गुदा मैथुन का सुख भोगते रहे। बाद में राजू ने गुड्डी के मल द्वार में अपना माल गिरा दिया। गुड्डी अपनी खुली गाँड़ की छेद से चूते राजू के वीर्य को हाथ से थाम रही थी। उसकी गाँड़ के छेद से अंदर की लाल मांसपेशियां दिख रही थी, और उनके बीच से रिस रिस कर चूता राजू का सफेद माल बहुत ही संतुष्टि देने वाला दृश्य था।
गुड्डी," बूर में चुआबे के बाद एतना माल निकललु। देख पूरा बिस्तर गीला हो जाई, अगर ई सारा रस हाथ से गिर जायीं त।"
राजू जानता था कि गुड्डी को वो पीने का और चखने का बहुत मन है। राजू ने कहा," एक काम कर दीदी तू चाट ले।"
गुड्डी," ठीक बा, वसही तहार मूठ में काफी एन्टी ऑक्सीडेंट बा, चेहरा पर निखार आयी।" गुड्डी उस लसलसेदार, चिपचिपा पदार्थ को अपने मुंह के पास लेकर चाटने लगी। गुड्डी को ऐसा करते देख राजू को बहुत सुकून मिल रहा था। गुड्डी उसका सारा वीर्य सफाचट कर गयी और राजू के सामने बेशर्मी से हंस बोली," धन्यवाद राजू, आपन बहिन के मूठ पिएलु। बहुत स्वादिष्ट रहे, तहार मूठ। ताज़ा कुछ भी मिले उ बढ़िया होखेला चाहे उ दूध रहे, तारी रहे या मूठ। मरद आपन सारा ताकत लगा देवेला औरत के गर्भ में ई देबे में। मरद केतना त्याग करेला। मूठ के उचित सम्मान इहे बा कि औरत ओकरा प्रसाद जइसन ग्रहण करे।"
राजू," गुड्डी दीदी तहार गाँड़ के भी स्वाद आईल होई तहार मुँह में मूठ के साथ। हमार मूठ के साथ तहार गाँड़ भी मीठा होई।"
गुड्डी हंसते हुए," त एमे गलत नइखे, गाँड़ के स्वाद भी निम्मन बा। तहार लांड पर भी कामरस के मिश्रण बा, लावा चाटे दे।"
राजू ने गुड्डी से अपना लण्ड चुसवाया ऑर वो बेहिचक उसका लण्ड चाट गयी। अपने मलद्वार से निकला लौड़ा उसे किसी चॉक्लेट बार जैसा लग रहा था। गुड्डी को राजू ने गाँड़ से मुँह में चूसने की आदत पहले ही लगा दी थी। उसे इस कृत्य के घिनौनेपन और गंदगी में मज़ा आने लगा था। गुड्डी राजू का लण्ड तब तक चूसती रही, जब तक वो उसके आंड़ से रिसता हुआ सफेद मलाईदार मूठ का आखरी बूँद चूसकर खींच नहीं लिया। फिर दोनों आधे घंटे पड़े रहे। सुबह के साढ़े तीन होने वाले थे। गुड्डी राजू को सोता छोड़ बिस्तर से उठी और कमरे में घूम घूम कर अपने कपड़े उठाये और अंधेरे का फायदा उठा वापिस अपने कमरे में चली आयी। उसने कमरे की छिटकनी लगाई और दरवाजा से पीठ लगा खड़ी हो गयी। गुड्डी के चेहरे पर खुशी और कामसुख की प्राप्ति का संतोष साफ दिख रहा था। गुड्डी का इंतज़ार खत्म हो चुका था।