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Incest रिश्तों का कामुक संगम

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शर्त

गुड्डी और राजू के अंतरंग संबंध स्थापित हुए दो- तीन दिन बीत चुके थे। गुड्डी की जैसी चुदाई राजू ने की उस वजह से वो एक दिन स्कूल भी नहीं जा पाई। नए नए जोश,उत्साह में दोनों ने जो घमासान यौनाचार किया था, उससे गुड्डी का बदन टूट रहा था। उसे तो चलने में भी दिक्कत हो रही थी। उसकी माँ ने उससे पूछा भी कि क्या हुआ? तो उसने कोई बहाना बना दिया। अगले दिन ही वो सामान्य हो पाई थी। वो बेचारी फिर भी भीगी हुई बूर से परेशान ही थी। उसे बस अब राजू के साथ एक ही सुख भोगना था। उसकी चाल ढाल भी बदल गयी थी। चुदी हुई लड़की में चुदने के बाद एक अलग ही लचक आ जाती है। गुड्डी अब राजू को देखते ही बहकने लग जाती, और उसके करीब आने के बहाने ढूंढती थी। वो राजू के साथ चिपकना चाहती थी, पर बेचारी मां बाप की वजह से डरती थी। राजू भी उसके साथ फिर से सेक्स करना चाहता था। राजू तो अब उसे गंदे गंदे इशारे करता था और गुड्डी हँसके मज़े लेती थी। उसके गंदे इशारे उसे और भी उत्तेजित करते थे। राजू ने तो अकेले में उसे कई बार धर दबोचा था और जबरदस्ती चुम्मा ले लेता था। गुड्डी डरती भी थी पर उसे ये राजू की जबरदस्ती अच्छी भी लगती थी। राजू ने एक दिन दोपहर को उसे पकड़ लिया और दरवाज़े के पीछे ले गया।
गुड्डी घबराते हुए," राजू कोई आ जाइ त, जाय दे।"
राजू उसकी आँखों में देख बोला," तहार ओठवा त चूसे दे, मन भरके गुड्डी दीदी।"
गुड्डी," काहे, अइसन का बा ओठवा में।"
राजू बोला," अइसन बुझाता तहार ओठवाँ के रस पीके, जइसे शहद के डिब्बा खोलके पियत बानि।"
गुड्डी," तू चूस चूस के सब शहद खत्म कर देबू।"
राजू," ना, ई कभू खत्म ना होई।" गुड्डी लजा गयी। फिर राजू ने उसकी ठुड्ढी पकड़के चेहरा उठाया और उसके होठ को अपने होठों में दबा उनका रसास्वादन करने लगा। गुड्डी ने उसका पूरा सहयोग दिया। एक लंबे और प्रगाढ़ चुम्बन के बाद, दोनों जब अलग हुए तो, राजू ने कहा," अब तहार दोसर ओठ के रस चखा दे ना।"
गुड्डी को एक बार समझ ही नहीं आया, फिर समझ में आया तो बोली," उ ओठ, अभी ना मिली चूसे खातिर।"
राजू बोला," तू भी ना दीदी, बड़ा दगाबाज़ बारू, तू हमसे वादा कइले रहलु कि, माई बाबूजी के रहते तू हमरा से चुदयिबु।"
गुड्डी," हॉं, हमरा याद बाटे, आ उ शरत हम पूरा करब। तहरा से चुदाबे खातिर, देहिया के अंग अंग तरसअता, बूर से एतना पानी चुवेला की का बताईं, राजाजी। ए राजा ई जवानी ना समहरत बा हमरा से।"
राजू," ऐ गुड्डी रानी, ई तहार जवानी सम्हारे खातिर ना लुटाबे खातिर बिया। दु दिन पहिने भी लूटने रहनि, पर ई खजाना जेतना लूटब, उतना बढ़ी कभू घटी ना। कब मौका देबू।"
गुड्डी बोली," आज रात राजा, माँ बाबूजी के सुते के बाद, तू हमरा कमरा में आ जहिया। आज तीन दिन के बाद सच में फेर से चुदाबे के बहुत मन कर रहल बा।"
राजू," आज रात पक्का ना रानी, आज कउनु बहाना ना चली।"
गुड्डी उसकी गिरफ्त से शरमाकर वहां से भाग खड़ी हुई। गुड्डी ने फिर अचानक पलटकर एक हाथ की उंगलियों से गोल बनाया और, दूसरे हाथ की उंगली उसमें डाल कर लण्ड और बूर की चुदाई का भद्दा इशारा किया। राजू को गुड्डी से इसकी उम्मीद नहीं थी इसलिए उसकी हरकत उसे और भी उम्दा लगने लगी। फिर वो मुस्कुराते हुए ही बाहर चली गयी। दोनों रात का बेसब्री से इंतज़ार करने लगे।

दूसरी ओर गुड्डी के बाप को स्कूल के हेडमास्टर गांव के रास्ते में मिले। गुड्डी के परीक्षा के परिणाम अच्छे नहीं आये थे। धरमदेव को समझाते हुए बोले कि गुड्डी इस बार भी फेल हो सकती है, इसलिए उसकी पढ़ाई पर ध्यान देने की जरूरत है। धरमदेव ने उनकी बात सुन, उसपर विचार करते हुए आगे बढ़ गए। जिस उम्र में गुड्डी को बी.ऐ. पास करना चाहिए था, वो अभी तक दसवीं भी नहीं कर पाई थी। धरमदेव अपनी बेटी को बहुत दुलार करता था और वो चाहता था कि गुड्डी की शादी जल्दी ही अच्छे परिवार में हो जाये। लेकिन आजकल पढ़ी लिखी लड़की का जमाना था, अच्छे परिवार में दसवी फेल लड़की कोई नहीं लेना चाहता था। वो चिंतित ही घर की ओर चल दिया। शाम को जब घर आया तो उसे चिंता में देख बीना ने कारण पूछा तो, उसने हेडमास्टर से हुई बातचीत बताई। बीना बोली," रउवा बेकार में चिंता करत बानि, ना पास करि गुड्डी त, का बियाह ना करब का? अरे उमर भी ओकर हो गइल हअ। परसु हमार चचेरा भैया के भउजी कहत रहलअ साली के गाँव में एगो लइका बा। लइका खेतिहर घर के बा। ऊंहा बात करि अउर गुड्डी के बियाह कर दी।"
धरमदेव गंभीर स्वर में बोले," एगो त लइकी बिया अउर तू माई बारू। ओकरा निम्मन घर में देबू कि ना। गाय निहन कउनु खूँटा से बान्ह दी का?
बीना खींजते हुए बोली," उ हमार भी त बेटी बिया। माई कभू बेटी के खराब सोची का। एकरा उमर के लइकी सबके बच्चा हो गइल बा। बढ़िया घर के चक्कड़ में कहीं कुंवारे ना रह जाये। पूरा जिनगी घर में रही का, सोच ली।" ऐसा बोल वो, कमरे के बाहर निकल गयी, और बाकी काम में लग गयी।
धरमदेव ने कुछ नहीं कहा, बल्कि गुड्डी के बारे में ही सोचने लगा। देखते देखते उसकी फूल सी बेटी जवान हो गयी, और आज नहीं तो कल उसे इस घर से जाना होगा। वो लेटे लेटे ही सोच रहे थे, कि तभी बीना कमरे में खाने की थाली लेकर आई। धरमदेव ने कहा," अभी ना खाएब, तनि देर बाद। तू एतना जल्दी खाना भी बना लेलु।"
बीना बोली," एतना जल्दी, दु घंटा हो गइल। रउवा के बुझाईल नइखे का।"
धरमदेव ने अपनी घड़ी देखी, तो देखके आश्चर्यचकित रह गया, वास्तव में काफी देर हो चुकी थी। सोच में डूबे डूबे वक़्त का पता ही नहीं लगा। धरमदेव ने कहा," हम खाएब ना, तू खाना खा ले।" ऐसा बोलके वो बाहर जाने लगा, तो बीना ने उसे रोका और बोली," कहां जात बानि रउवा, खिसिया गइनी का। तभी हम खीजके, उल्टा सीधा बोल देले रहनि। हमार भूल के माफ क दी।" बीना एक आदर्श पत्नी थी, पति को भगवान मानती थी, इसलिए खुद को धरमदेव की पत्नी कम और दासी ज्यादा मानकर उसकी सेवा करती थी। धरमदेव ने हमेशा बीना को घर की मर्यादा में बांधके रखा था। बीना ने आजतक उससे ऊंची आवाज में बात नहीं की थी। लेकिन आज उसने ये मर्यादा पार कर दी थी। बीना उसके पैरों में गिर पड़ी। वो रोने लगी, धरमदेव ने उसे उठाया और कहा," एक शर्त पर माफ करब, आज रात तू हमार बहिन बसुरी बनके हमार लांड से बूर चुदायिबु।"
बीना की हंसी छूट गयी बोली," रउवा अभी भी बसुरी दीदी, के खातिर बेचैन रहत बानि। अगर रउवा के बस चलत रहे, त ओकरे से बियाह करते ना। केतना दिन त हम बसुरी बनके रउवा से चुदौनी हअ। अउर जब जब रउवा चोदनी हअ, तब तब अगला दिन हमार हालत ख़राब हो जाता।"
धरमदेव ने कहा," बीना, एगो तुहि बिया जउन ई बतिया जानत बारू। बच्चा सब सुत गईल कि ना। आज रात घमासान चुदाई होई।"
बीना," गुड्डी त सुते चल गईल, राजू जागल बाटे।"
धरमदेव ने दरवाज़ा बंद कर दिया, और बीना के करीब पहुंचा। उधर राजू ने जैसे ही दरवाज़ा बंद होते देखा वो अपनी बहन के कमरे की ओर तेज़ी से भागा। अंदर लाइट बंद थी। राजू जैसे ही अंदर गया उसने देखा, गुड्डी दीवार के छेद से माँ बाप के कमरे में झांक रही है। गुड्डी ने उसे चुप रहने का इशारा किया और अपने पास बुलाया। राजू गुड्डी के करीब जाकर बोला," का बात बा ?
गुड्डी बोली," आज रात उ सच में शर्त पूरा हो जाई। देख उ कमरा में बाबूजी माई का रंगा रंग कार्यक्रम चालू कइलन। बाबूजी माई के बसुरी बुआ बनाके चोदे के तैयारी में बाटे।"
राजू बोला," का बोलत बारू, बाबूजी अइसन कभू ना कर सकिले।"
गुड्डी मुस्काते हुए बोली," खुदे देख ले, कइसे अंदर खेल चलत बा।"
राजू और गुड्डी एक साथ झांकने लगे, अंदर का माहौल देख उनके होश उड़ गए।
धरमदेव बीना की साड़ी खोल रहा था और बोला," जानत बारू हम तहरा काहे पसंद कईनी, काहे कि तहार डील डौल पूरा बसुरी दीदी जइसन बा। तहरा जइसन ही वुहु पूरा सीधा औरत बिया। बिछाउना पर जब तू, बसुरी दीदी बनके चुदवात बारू तब कमरा के पूरा माहौल मज़ेदार हो जाता।"
बीना बोली," एहीसे त रउवा हमके रगड़ के चोदत बानि। अब पूरा रात राउर लांड बिना शिलाजीत के भी खड़ा रही। सारा रात हमार बूर में अइसे तन के खड़ा रही जइसे जइसे जंगल में बाँस।"
धरमदेव बोला," हमार बसुरी दीदी, बिना कपड़ा के ज़्यादा सुंदर लागत बिया। उ हमसे दस साल बड़ बा, अउर उ हमके गोदी में खेलावत रहे। दीदी बड़ा जल्दी जवान हो गइल रहे। अठारह बरख में बाबूजी ओकर बियाह कर दिहलन।" धरमदेव बीना की साड़ी उतार के फेंक दिया, फिर उसके ब्लाउज के हुक एक एक करके खोल दिया। बीना जानती थी, कि उसके बदन पर कपड़े ज़्यादा देर टिकने वाले नहीं थे। उसने भी आगे बढ़ धरमदेव का कुर्ता उतार दिया, और धोती भी खोल दी। धरमदेव का तना हुआ काला लण्ड लहरा गया। बीना के बदन पर सिर्फ पेटीकोट था। धरमदेव ने उसकी डोरी खींच दी, बीना अगले ही पल सम्पूर्ण नंगी हो उठी। कमरे की रोशनी में बीना की नग्नता अमूल्य लग रही थी।
बीना शर्माते हुए बोली," ऐ धरमु, आपन बहिनिया के लंगटे कइके मज़ा आ रहल बा का।"
धरमदेव," दीदी, तहरा बदन पर कपड़ा के कउन काम, पहिले भी त असही लंगटे कइले रहनि तहराके। चल अब हमके गोदी में लेके खाना खिया दे, जइसे बचपन में खियाइले रहलु।"
बीना एकदम नंगी होकर बैठ गयी और धरमदेव भी पूरी तरह नंगा होकर बीना के चुच्ची पर सर रखके उसकी गोद में लेट गया। बीना धरमदेव को प्यार से पुचकारते हुए खाना खिला रही थी। धरमदेव बीना के अंग अंग को सहला रहा था। बीना वैसे तो बड़ी संस्कारी थी, पर कमरे में उसकी निर्लज्जता देखते बन रही थी। अपने पति के सामने लाज और शर्म का वैसे भी क्या काम? पति के यौनेच्छा के लिए स्त्री को मर्यादाओं की सीमाएं लांघनी पड़ती है। बीना जैसी स्त्री तो, इसे अपना धर्म और कर्तव्य मानती हैं। पति के साथ अनैतिक यौनाचार, अवैध संबंधों की परिकल्पना में उसे भी बहुत आनंद आता था। जब जब वो अपनी ननद बनके अपने पति के साथ चुदती थी, तो उसे भी बहुत आनंद आता था। थोड़ी देर में खाना खत्म हो गया। धरमदेव ने बीना को बांहों में उठा लिया और बिस्तर पर पटक दिया।
बीना बोली," धरमु, बहिनिया के साथ आज का सलूक करबू।"
धरमदेव," तू बोल का सलूक करि। एकदम लंगटे तू, हमार बिस्तर पर पड़ल बारू। अइसन हालत में का करि एक आदमी औरत के साथ।"
बीना मुस्कुराते हुए बोली," चुदाई राजा चुदाई। लौड़ा से बूर के चुदाई। देख ले बहिनिया के भीजल बुरिया, एमे लौड़ा डाल दअ। हम पियासल बानि तहार लांड खातिर। आपन भाई के मस्त लांड खातिर। देखा ना कइसे बूर पनिया गईल बा। आजो जल्दी हमरा पास, तहरा बहनचोद बना दी।" ऐसा बोलके उसने धरमदेव का हाथ पकड़ अपनी ओर खींच लिया। दरअसल बीना को भी चुदे काफी दिन हो चुके थे।
धरमदेव उसके बदन पर गिर पड़ा। वो बीना की दोनों चूचियों को अपनी मुट्ठी में पकड़ भींच लिया। बीना कराह उठी," आहहहहहहह... उहहउहहहहहह.... । धरमदेव को मज़ा आ रहा था, जब बीना चुच्चियों के मर्दन से सिसक रही थी। बीना की चुच्ची की दोनों घुंडीया/चूचक कड़क हुए पड़े थे। धरमदेव ने चूचक को मुंह में लेके चूसना शुरू कर दिया था। बीना के बाल खुले हुए थे, वो अपने दोनों हाथ ऊपर की ओर कर धरमदेव को पूरी छूट दे रखी थी। उसके कांख में बाल पसीने से भीगे हुए थे। उसकी गंध धरमदेव को बड़ी मादक लग रही थी। बीना का पूरा बदन मचल रहा था। उसे अपनी खूबसूरत जवानी को पति से लुटवाने में बहुत आनंद आता था। वो दरअसल खुद को पति की भोग की वस्तु समझती थी। इसलिए बिस्तर पर वो उसे जो भी करने को कहता वो पूरा दिल से करती थी। उसे भाई बहन के बीच के अनैतिक संबंध भी उचित लगते थे। कई बार धरमदेव चुदाई के दौरान इतने उत्तेजित और आक्रामक हो जाते थे, कि उसे गालियां देते, कभी उसे घोड़ी बनाके चोदते हुए, चूतड़ों को मार मार के लाल कर देते, उसके बाल खींचते, उसकी चूचियों पर काट लेते। पर बीना इसकी शिकायत नहीं करती, बल्कि इनका आनंद लेती थी। उसका मानना था कि, मर्द का चुदाई में आक्रामक होना, स्त्री की ही जीत है। स्त्री ही अपने यौनाचार/ कामुक व्यवहार से दर्द सहके भी, असीम आनंद पुरुष को दे सकती है। स्त्री का जन्म ही पुरुष के यौनेच्छाओं की पूर्ति के लिए हुवा है। स्त्री के लिए ये बहुत अच्छा होता है, कि पुरुष चुदाई के दौरान कुछ और ना सोचे और उसकी अप्राकृतिक यौनाचार जैसे, गाँड़ चुदाई, गाँड़ से निकले लण्ड को चाटना, मर्द को मूत पिलाना, उसका मूत पीना, उसकी गाँड़ की छेद चाटना, इत्यादि और इससे भी गंदी यौन इच्छाएं को पूरा करती रहे ताकि वो किसी और स्त्री के बारे में ना सोचे। बीना को पता था कि आज रात उसकी गजब की दुर्गति होगी, क्योंकि धरमदेव अपनी बहन समझ के उसे जब जब चोदता है, उस रात बीना के तीन छेद अर्थात मुंह, बूर और गाँड़ उसके लण्ड से बेहिसाब मसले जाते थे।
बीना," आह.... बहिनचोद ..... उफ़्फ़फ़फ़...डाल दे ना लांड राजा। बहिन के बूर के काहे तड़पावत बारू, बहिनचोद.....
धरमदेव," आह.... रण्डी साली, भाई के लौड़ा बूर में लेबु, हमरा बहिनचोद बनाबे।"
बीना को पता था कि चुदाई के दौरान गंदी और घटिया बातें बोलना धरमदेव को अच्छा लगता है, वो खुद भी इसका पूरा आनंद लेती थी।
बीना," बहिन के भउजी के बिस्तर पर लंगटे कइके चांपले बारू। ई बिस्तर पर खाली बूर अउर लांड के रिश्ता चलत बा। बूर के लौड़ा चाही, चाहे उ भाई के ही काहे ना हो।"
धरमदेव उसके होंठों को चूमने लगा और उन दोनों की जुबान एक दूसरे से कुश्ती लड़ने लगी। उनका मुँह अखाड़ा बन गया था। दोनों मगन हो एक दूसरे में उलझे थे, और अनजाने में अपने बेटे बेटी के लिए एक अपवित्र आदर्श बन रहे थे। राजू और गुड्डी उन दोनों को इस घटिया और बेहद कामुक चुदाई के साक्षी थे। गुड्डी और राजू ने एक दूसरे को अंधेरे में ही देखा और अनायास ही उनके होंठ आपस में उलझ गए। राजू और गुड्डी अपने माँ बाप को देख काफी उत्तेजित हो चुके थे। राजू गुड्डी के होंठों को लगातार चूस रहा था। उनके जीभ भी एक दूजे से उलझ रहे थे। राजू ने गुड्डी के मुंह में चुम्मे के दौरान ढेर सारा थूक डाला, गुड्डी उसे स्वीकार कर चुम्मे के दौरान पी गयी। वो अपनी जीभ से इशारा करके, राजू से और देने को बोल रही थी। राजू समझ गया, उसने चुम्मा तोड़ा और बोला," का भईल गुड्डी दीदी, कुछ चाही का?
गुड्डी," चुम्मा काहे तोड़ देले, अउर दे ना?
राजू उसके गाल को सहलाते हुए पूछा," का चाही हमार दीदी के ?
गुड्डी कामुक स्वर में बोली," राजू हमके मुंह में थूक दअ ना।" ऐसा बोलके उसने मुँह खोल दिया।
राजू ने अपने मुंह में थूक इकट्ठा किया और गुड्डी के खुले मुंह में थूक दिया। गुड्डी उसे झट से पी गई और दुबारा मुंह खोल दी। राजू ने फिर से उसके मुंह में थूका। इस बार कुछ थूक उसके गालों और ठुड्ढी पर गिरा, जिसे गुड्डी जीभ से चाट पी गयी। ऐसा कुछ चार पांच बार राजू ने उसके मुँह में थूका। गुड्डी हर बार किसी प्यासी कुत्ती की तरह उसे पी लेती थी। राजू ने अपनी टी शर्ट निकाली और गुड्डी ने उसकी पैंट निकालने में मदद की। गुड्डी राजू की चड्डी को लण्ड के ऊपर से सूंघने लगी। राजू ने गुड्डी के बाल की क्लिप खोल दी और उसे अपने हाथों में ले लिया। गुड्डी इस वक़्त सलवार सूट में थी। गुड्डी राजू के लण्ड को चड्डी के ऊपर से ही चूम रही थी। वो बार बार जीभ निकालके उसे चाटती भी थी। चड्डी में राजू के लण्ड की मादक महक के अतिरिक्त, उसके मूत की और पसीने की भी महक शामिल थी। गुड्डी को उसकी गंदी चड्डी की महक उत्तेजित कर रही थी। अब उसे पता चला कि राजू उसकी चड्डी और मूत का इतना दीवाना क्यों है। उसके लार से राजू की चड्डी गीली होने लगी थी। आज गुड्डी की उत्तेजना देखने लायक थी। गुड्डी ने राजू की चड्डी खोल दी और उसको दिखाके चड्डी सूंघने लगी।
राजू उसकी हरकत देख बोला," पसंद आईल तहके हमार चड्डी का।"
गुड्डी चड्डी सूंघते हुए बोली," बहुत पसंद आईल, अब बुझनी की तू हमार चड्डी काहे सूँघत रहलु। हमार पेशाब के काहे पियत बारू उफ़्फ़फ़फ़.... का कामोत्तेजक सुगंद बा।"
राजू," गुड्डी दीदी, तहरा पर आज ज्यादे खुमारी छाईल बाटे चुदाई के। माई बाबूजी के देखके का।"
गुड्डी," बाबूजी भी आपन बड़ बहिन के चोदे चाहेलन, तू त आपन बड़ बहिन के चोद चुकल बारू। जब खून में ही अइसन चाह बा, त व्यभिचार के कउन रोक सकेला। ई घर के सब मरद बहनचोद बाटे।" ऐसा बोल वो मुस्कुराई।
राजू ने उसके बाल को खींचके कहा," जब अइसन बहिनिया घर में होंहि, त भाई बहनचोद बनबे करि।"
गुड्डी राजू के बात का जवाब देती, इससे पहले राजू ने अपना लण्ड उसके मुँह में घुसा दिया। गुड्डी राजू का लण्ड चूसने लगी। उसने देखा उसकी माँ उसके बाप का लण्ड चूस रही थी। बीना कुत्ती बनके, उसका लण्ड चूस रही थी, धरमदेव उसके सामने घुटनों पर था। राजू की नज़र बीना पर गयी। उसने देखा उसकी माँ एक बेहद आकर्षक और खूबसूरत जिस्म की मालकिन है। ना जाने क्यों उसे अपनी माँ के नंगे बदन को देख और उत्तेजना हो रही थी। धरमदेव बीना की नंगी पीठ सहलाते हुए, लण्ड चुसाई का आनंद ले रहा था। बीना एक कुशल लण्ड चूसक औरत थी। वो लण्ड के सुपाड़े पर जल्दी जल्दी जीभ चला रही थी। राजू ने बीना को देख, अपनी बहन से कहा," गुड्डी दीदी तू भी लंगटे हो ना, देख ऊंहा माई भी कुल लंगटे बिया। जब माई लंगटे बिया, त बेटी कइसे कपड़ा में रही।"
गुड्डी ने लण्ड को छोड़ कहा," अब लंगटे भी हम खुद से होई का, तहरा हाथ नइखे। बहिन के भाई के हाथ से लंगटे होवे में मज़ा आवेला।"
राजू ने उसकी बात सुन उसकी समीज़ एक झटके में उतार दी। गुड्डी ने दोनक हाथ ऊपर कर खुद उतरवाने में मदद की। फिर गुड्डी आगे आयी और राजू का हाथ अपने सलवार के नाड़े पर ले गयी। राजू ने वो डोर बिना देर किए खोल दी। फिर उसने गुड्डी की सलवार उसकी जांघों से निकाल के फेंक दी। गुड्डी ने राजू से कहा," ई टेप उतार दे, अउर ई चड्डी भी।" राजू ने अगले ही पल उसकी टेप उतार दी। उसकी चूचियाँ फुदक के बाहर आ गयी। गुड्डी बिल्कुल लजा नहीं रही थी, बल्कि उसने तो अपने दोनों चूचियों को कंधों के जोर से हिलाया। उसकी चूचियाँ मस्तानी चाल में हिल रही थी। उसके भूरे चूचक तनके राजू को अपनी ओर लुभा रहे थे। गुड्डी के बदन पर सिर्फ छोटी सी पैंटी बची थी। अपने छोटे भाई के सामने, गुड्डी बेशर्म की तरह मस्त हो रही थी।
राजू उसकी हिलती चूचियों को घूरते हुए बोला," उफ़्फ़, का मस्त नज़ारा बा, केतना मस्त चुच्ची बा दीदी तहार।"
गुड्डी उसके चेहरे को अपने चूचियों में समेट ली और बोली," मस्त बा, त देखत का बाटे, चूस लअ। चुचिया के निचोड़ लअ, अइसे चूस लअ कि ई भूरा भूरा चूचक से दूध निकल जाय। हमार चुच्ची के खूब चूस के अउर मीजके के साइज बढ़ा दअ। माई जेतना बड़ा कर दअ, फेर त तहरो मज़ा आई राजा।"
राजू को अपनी माँ के बारे में सुनके और सोचके बहुत अधिक उत्तेजना हो रही थी। उसने गुड्डी की दोनों चूचियाँ पकड़के मीजते हुए, उसकी आँखों में देखते हुए उन चूचकों के साथ छेड़खानी कर रहा था। गुड्डी ने अपनी बांहों में उसे पकड़ रखा था। वो लगातार चूचियों के मर्दन से सिसकारियां ले रही थी। उधर उसकी माँ बिल्कुल छिनार बनके, शराफत का चोला उतार बेशर्म रण्डी की ही तरह लण्ड चूस रही थी। तभी राजू को भी लगा कि गुड्डी के चूचियों का सेवन काफी हो गया। अब उसे अपनी मां की तरह लण्ड चूसना चाहिए। राजू ने गुड्डी के सामने अपना लौड़ा लहराया। गुड्डी उसे देख मचल उठी, वो लण्ड को पकड़ना चाह रही थी। तभी वो तना हुआ लण्ड, उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसके मुंह में समाने के लिए, तेजी से उसकी ओर बढ़ रहा है। देखते देखते उसका मुंह उस सुपाड़े से भर गया।
राजू ने लण्ड उसके मुंह में घुसा बोला," उफ़्फ़फ़फ़ तहार मुंह के गर्माहट से लांड अउर फूली, मज़ा आ रहल बा।"
गुड्डी लण्ड को मुंह में चलाते हुए बोली," ओह्ह...उम्म्म... उममह.... का गजब लांड बा हमार भाई के।" वो जीभ से लण्ड को आइसक्रीम की तरह चाट रही थी, बेशर्म और बेबाक होकर। राजू ने उसके बाल मुट्ठी में भींच रखे थे। जिससे गुड्डी का चेहरा खिचने की वजह से ऊपर उठा हुआ था। राजू गुड्डी के चेहरे का कोई भी हाव भाव खोना नहीं चाहता था। वो उसकी आँखों में आंखें डाल काम वासना को महसूस कर रहा था, वहीं गुड्डी भी इसका उतना ही आनंद ले रही थी। राजू एक तरफ तो अपनी माँ बीना को नंगी चुदवाते देख रहा था और एक तरफ अपनी सगी बड़ी बहन के साथ मुख मैथुन का सुख ले रहा था। उधर बीना भी धरमदेव की कामवासना भड़काने के लिए उसकी बड़ी बहन बसुरी का किरदार निभा रही थी। बीना धरमदेव का लण्ड काफी देर तक चूसती रही, फिर बोली," धरमु अब आपन बड़की बहन के चोद दे। हम बहुत पियासल बानि, तहार .....लांड खातिर। तहार लौड़ा टनटना...... गईल बा, घुसा दे ना बहिनिया के बूर में। आह.... देख ना केतना पनिया गईल बा। बूर से पानी छुल छुल बहतआ।"
धरमदेव ने बीना की बूर को छुवा और हथेली से उसे रगड़ते हुए उसकी बूर का पानी चाटने लगा। उस नमकीन पानी का स्वाद, धरमदेव को एक अद्भुत एहसास दे रहा था। बीना सिसियाते हुए मचल रही थी, और धरमदेव के बाल को भींच रही थी। उसकी जीभ जब बूर से टकराती,बीना खुद ही बेचैन हो कमर हिला बूर रगड़ने लगती थी।
बीना अब इतनी कामातुर हो चुकी थी कि, वो क्या बड़बड़ा रही थी, उसे खुद पता नहीं चल रहा था। बूर की फांकों के बीच उसकी जुबान, ऐसे ऊपर नीचे हो रही थी, जैसे बूर की खुदाई हो रही हो। काफी देर बूर चाटने के बाद धरमदेव ने बीना को अपनी गोद में ले लिया और उसकी बूर में लण्ड घुसा दिया। बीना लण्ड के एहसास से गनगना उठी। बीना अनायास बोल उठी," आह....इससस्स आह... बहन चोदके भैया, बन गईल सैयां। बूर में घुसाके लण्ड, पार लगा दआ नैय्या।"
राजू ने ये सुना और देखा तो उसके मुंह से निकला," माई भी गजब के चुदक्कड़ माल बिया। उफ्फ्फ का बढ़िया से चुदवात बिया। देख ना केतना उत्तेजित होखे, बूर चुसा रहल बा। काश हमहुँ माई के बूर के पानी पी सकती।"
गुड्डी उसकी बात सुनके उत्तेजित हो उठी। उसका भाई अपनी ही मां के बारे में इस तरह सोच रहा है। गुड्डी उसका लण्ड चूसना छोड़ बोली," अब तू बुझलु कि हमार तहार अंदर व्यभिचार खून में बा। देख ना माई बाबूजी जब अइसन सोचके चुदाई करत बारे। बाबूजी बसुरी बुआ के चोदे के सोचत बारे। एहीसे तुहु आपन बहिन के चोद के कुछ गलत नइखे करत। लेकिन लागत बा तू, बाबूजी से भी एक कदम आगे बारू, तू त माई पर भी गंदा नज़र रखत बारे।" ऐसा बोल वो जोर से हँस दी। गुड्डी राजू के गोद में चढ़ बैठी, राजू ने उसकी पैंटी जांघों के नीचे कर दी थी। उसके सामने एक मस्ती से बहती बूर थी। राजू ने उस मखमली झांटों वाली लगातार रिसती बूर को हाथ से छुआ, तो उसे गुड्डी की उत्तेजना का अंदाज़ लगा। गुड्डी ने अपनी जाँघे फैलाके उसे पूरा सहयोग दिया। उसके हाथ राजू के गर्दन के इर्द गिर्द घेरे हुए थे।
गुड्डी बोली," राजू आहहहह..... देख लेले बहिन के बूर के हाल, तहार लौड़ा खातिर केतना बेचैन बिया। जबसे तहार लांड के स्वाद लागल बा, तबसे, असही बहअता। बहिन के जवानी का अइसे तड़पी, अइसन भाई के रहत।"
राजू गुड्डी की बूर को हथेली में भींच के बोला," गुड्डी दीदी, तहार तड़पत जवानी के जोगार ई लांड बा। तहार बूर में जाके ही एकराके आराम मिली। लेकिन हम सोचत बानि की तहरा पटना ले जाके, खूब मजा कराई। पर बाबूजी के कइसे मनाई।"
गुड्डी मुस्कुराते हुए बोली," लागत बा तहार काम आसान हो जाई, काहे से कि अभी तनिक देर पहिले, बाबूजी माई से कहत रहले, कि हेडमास्टर कहलस कि गुड्डी के कुछ व्यवस्था करे के पड़ी। हमार नंबर कम आईल बाटे। काल तू बात कर ले बाबूजी से जउन ट्यूबवेल पर राते कहले रहुवे तू। लागत बा उ पटना जाय खातिर मान जांहियाँ। फेर हमरा संग में ले चलके मस्ती करआ।"
राजू उसकी बात सुन खुश हो गया," सच गुड्डी दीदी, तब त कल्हे, बात करत बानि। तहरा ऊंहा संगे ले जाके, हर रात सुहागरात मनाइब।"
गुड्डी," आह.... सच में केतना मज़ा आयी। ऊंहा केहू तंग ना करि ना केहू के डर रही। तू त अइसन बोलके हमर अन्दर के रण्डी जगा देले बारू। अब रण्डी बोल हमरा।"
राजू," मोर रण्डी दीदी, गुड्डी रण्डी बिया। उफ़्फ़फ़फ़ एतना मस्त रण्डी घर में बिया। उ त हमार नज़र पड़ गईल, ना त तहरा जइसन रण्डी, ई घर के इज्जत लुटवा दिती। रण्डी.... उफ्फ्फ मस्त रण्डी।"
गुड्डी अपने लिए ऐसे गंदे शब्द सुनके उत्तेजित हो उठी और बोली," सच कहलु तु, इज़्ज़त संवारत भी लइकी, अउर लुटावेले भी लइकी। ई घर के इज़्ज़त देख तहरा गोदी में बिया। ई तहरे संभाल के रखे के पड़ी। चाहे त तुहि लूटल कर, जब मन करे।"
राजू," आह अइसन ही बहिन हर परिवार में होई त केतना मज़ा आइत। चल तू पटना ऊंहा तहार जवानी लूटब बढ़िया से। ऊंहा कउनो लाज शरम के गुंजाइश नइखे। ऊंहा खाली चुदाई चली।" ऐसा बोलके उसने गुड्डी की चूचियों को मीज दिया। फिर वो उसका लण्ड, उसकी तपती बूर में उतारने लगा। गुड्डी लण्ड बूर में घुसते ही सिसिया उठी।
गुड्डी बोली," आह... ओहह हहम्म बूर में लांड एकदम टाइट बा, आह बहनचोद.... भैया।" गुड्डी बहुत जोर से बोल पड़ी। इससे पहले वो कुछ और बोलती राजू ने अपनी खोली हुई चड्डी उसके मुंह में डाल दी और उसका हाथ थाम लिया। राजू को डर था कि जिस मस्ती में गुड्डी थी, कहीं उसके मां बाप ना सुनले।
राजू ने कहा," रण्डी साली एतना आवाज़ मत कर, उन्ने माई बाबूजी सुन ली। एतना चुदाई के खुमारी बा कि भूल गईलु कहां बारू। आवाज़ ना करबू त चड्डी निकाल देब।" गुड्डी ने इशारे से हॉं में सर हिलाया। फिर राजू ने चड्डी मुंह से निकाल दी।
गुड्डी बोली," राजू बूर में लांड घुसल त, बेकाबु हो गइनी। आह.... तहार मजबूत अउर दमदार लांड के कमाल रहला। तहरा सामने त बहिन भी रण्डी बनके खुश बिया।"
राजू गुड्डी की बूर में लण्ड जड़ तक पेल दिया और बोला," तू गोदी में हमरा तरफ पीठ करके बइठ जो। दुनु साथे देखब अंदर माई कइसे कइसे चुदवात बिया।"
गुड्डी ने राजू का कहा मान लिया और झट से घूम कर बूर में लण्ड ले बैठ गयी। अब दोनों भाई बहन अंदर अपनी माँ बाप की चुदाई देखने लगे। राजू के गोद मे गुड्डी बैठी हुई, खुद व्यभिचार करते हुए, कामुकता के समुद्र में गोते लगा रही थी।
अंदर उनकी माँ बेहद काम पिपासु हो चली थी, धरमदेव के घुसते निकलते लण्ड से उसकी गीली बूर फैल गयी थी। धरमदेव बीना की मदमस्त तनी हुई चुच्चियों को भींच रहा था, और चूचकों को बारी बारी मुँह में लेके पी रहा था। राजू ने कभी उन चूचकों से भर भर के बीना का दूध पिया था। बीना पसीने से लतपथ थी, लेकिन ऐसे में वो और अधिक कामुक और आकर्षक लग रही थी। एक तरफ बीना धरमदेव की गोद में, दूसरी ओर उसकी बेटी उसके बेटे की गोद में यौनक्रिया में संलिप्त थे। दोनों का आचरण बिस्तर में एक जैसा ही था। कुछ देर ऐसे चोदने के बाद, धरमदेव झड़ गया और बीना भी चरमसुख को प्राप्त कर ली। बीना धरमदेव की बांहों में पसीने से भीगी, बिना आवरण के अति विशिष्ट स्त्री लग रही थी। पति की बहन बनके भी, उसे बहन चोदने का एहसास देना हर औरत नहीं करती है। राजू गुड्डी अपनी माँ को जब ऐसा करते देखा, तो उन्हें ये अच्छा लगा कि उनके मां बाप भी कौटुम्बिक व्यभिचार से परिचित हैं। गुड्डी राजू से खुलके चुदवा रही थी। गुड्डी की कमर पकड़े राजू उसकी बूर में लण्ड डाले हुए था, और गुड्डी खुद ही कमर हिला हिला के बूर में लण्ड का मज़ा ले रही थी। राजू ने भी गुड्डी को सारी रात अलग अलग आसन में तीन बार चोदा। गुड्डी अपने भाई से लगाई शर्त पूरी कर चुकी थी। अपने भाई के बांहों में नंगी लेटे हुए, उसके गाल चूमके बोली," राजू आज त मज़ा आ गईल। अइसन मज़ा रोज मिले खातिर, अब तहरा के बाबूजी के पटा के हमरा पटना साथे ले जाए के पड़ी। अब काल बाबूजी से बात करके, जल्दी हमरा अपना साथ ले चल। ऊंहा अउर मज़ा आयी राजा।"
राजू गुड्डी के चूतड़ सहलाते हुए बोला," काले बात करब दीदी बाबूजी से। तू टेंशन मत ले, हमनी ई हफ्ता के अंत तक पटना में रहब।"
गुड्डी राजू के मुरझाए लण्ड को भींच बोली," कसम से राजू। ऊंहा देखिहा हम तहराके जन्नत देखाएब।"
राजू गुड्डी को अपने नीचे झट से पटक दिया और बोला," हमरा से ज्यादा तू बेताब बारू रण्डी साली। तू त एकदम छिनार लइकी जइसे बतियात बारू।"
गुड्डी हंसी और बोली," हम त बानि छिनार, लेकिन बहनचोद त तुहु बारू।"
इसी तरह बातें चल रही थी।
सुबह तीन बजे के आसपास राजू गुड्डी के कमरे से निकलके अपने कमरे में चला गया।
अगले दिन राजू ने धरमदेव को अपनी बातों की जाल में ऐसा उलझाया और फंसाया कि धरमदेव गुड्डी के दसवीं पास करने के लिए, उसे राजू के साथ शहर भेजने को तैयार हो गया। राजू ने उन्हें समझाया कि गांव के माहौल में गुड्डी कभी ठीक से पढ़ाई नहीं कर पायेगी। फिर उसने अपनी भी पढ़ाई का हवाला दिया और बताया कि वो गुड्डी को अच्छे से पढ़ायेगा ताकि दोनों पास हो जाये। धरमदेव ने हेडमास्टर से भी सलाह ली तो उन्होंने इसे ठीक बताया। उन्होंने गुड्डी की हाज़िरी के लिए उन्हें निश्चिन्त रहने को कहा। अगले दिन दोनों बाप बेटे पटना गए और वहां एक रूम को फाइनल करके आ गए। दो दिन बाद गुड्डी और राजू अपने बाप के साथ शहर के लिए रवाना हुए। गुड्डी के मन में तो लड्डू फूट रहे थे। सबकुछ इतनी जल्दी और आसानी से हो जाएगा उसे इसकी उम्मीद नहीं थी। गुड्डी ने अपना सारा सामान बांध लिया। उसने किताबों के साथ वो गंदी किताबें भी रख ली। राजू भी उत्साहित था, क्योंकि अब गुड्डी के साथ उसे खुली छूट मिलने वाली थी। दो दिन बाद दोनों धरमदेव के साथ शहर की ओर निकल पड़े। गुड्डी ने पीले रंग की सलवार सूट पहन रखी थी और बाल खुले हुए थे। वो और राजू एक साथ बैठे हुए थे। धरमदेव अगली सीट पर बैठे थे।
राजू गुड्डी के साथ चिपक कर बैठा था। गर्मी की वजह से गुड्डी को पसीना आ रहा था। गुड्डी ने अपनी ओढ़नी उतार दी। उसकी सलवार सूट के ऊपर से चुच्ची की दरार दिख रही थी। पसीना बहकर उनके बीच जा रहा था। गुड्डी ने शीशा खोला तो हवा के झोंके से उसकी जुल्फें लहरा गयी।
राजू बोला," उफ़्फ़फ़फ़ तहार ई कातिल अदा गुड्डी दीदी, मार डालबु का।"
गुड्डी बोली," धत्त.... का बोलत बारू, मरे तहार दुश्मन। तू त हमरा संगे रहबू।"
राजू," अउर का करब तहरा साथे रहके?
गुड्डी," पढिहा अउर हमके पढहाइया।
राजू," का गुड्डी दीदी।"
गुड्डी," जउन तहार मन करे। हम दिल लगाके तहार साथ देब।" ऐसा बोल वो मुस्कुराई।
राजू ने बोला," पढाईब त गुरुदक्षिणा भी लेब।"
गुड्डी अनजान बनते हुए बोली," हमरा पास का बा जे हम तहरा गुरुदक्षिणा में देब?
राजू बोला," बा गुड्डी दीदी, उ तहरा पास बा।" ऐसा बोल उसने गुड्डी की चूचियों की ओर गंदी नज़र से देखा।"
गुड्डी मुस्कुराती हुई बोली," गुरु के आशीर्वाद और मार्गदर्शन खातिर कउनो भेंट कम बा। तहार जउन मन करे उ ले लिहा। अगर दे पाइब त पाछे ना हटब।"
राजू ने सबकी नजर चुराते हुए गुड्डी की हथेली पकड़ ली। गुड्डी ने भी उसका हाथ कसके पकड़ लिया और अपनी ओढ़नी से हाथ ढक दिया। गुड्डी ने प्यार भरी नजरों से राजू की ओर देखा और होठ गोल कर एक उड़ता चुम्मा उछाल दी। राजू का बस चलता तो वहीं गुड्डी को नंगी करके चोदने लगता। गुड्डी फिर बाहर सड़क की ओर देख हसने लगी। राजू को उसकी ये हंसी बहुत भा रही थी। बस अपनी रफ्तार से पटना की ओर भाग रही थी।
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सफरनामा

" आह..... राजू खूब चोद हमके, हमके रण्डी बना ले। का सुंदर लांड बा, हमार बूर पर कउनु रहम ना कर। बहुत परेशान करत बिया, साली हमेशा लौड़ा खातिर बहेली। आह...ई सुंदर लौड़ा के मजबूत सुपाड़ा भीतरी जाके हमार रोम रोम पुलकित कर देवेला। देख ना केतना कसल बूर के खोल देले बा, तहार महान लौड़ा। हमरा त अब कउनु दोसर लौड़ा से मन ना भरी, राजा...। आपन बहिन के ना तरसहिया, हम त अब तहार रखैल भी बनके खुशी से रहब। असही बहिन के चोदल करा आह...आ.."

तभी गुड्डी की नींद खुली, वो बस की सीट पर ही ऊंघते हुए सो गई थी। उसकी बेशर्म यौनेच्छाओं ने उसे आने वाले समय की झलक दिखा दी थी। उसने महसूस किया कि, उसकी बूर से चिपचिपा पानी बह रहा है, और राजू उसके कंधे पर ही सो रहा है। गुड्डी ने अपने छोटे भाई के गाल को सहलाया। वो अब कामुक हो चुकी थी, उसने अपनी सलवार का नारा खोला और फिर इधर उधर देख, उसका हाथ अपनी कच्छी के अंदर गीली बूर पर रख लिया। उसके हाथ का एहसास पाकर, वो सिसक उठी। राजू अभी भी नींद में था। गुड्डी ने उसके हथेली से अपनी बूर की फांकों के बीच रगड़ना और मसलना शुरू कर दिया। गुड्डी को राजू के हाथों का स्पर्श बिल्कुल, अलग और मस्त कर रहा था। अब तक तो उसने बूर को अपने हाथों से मसला था, पर चलती हुई बस में अपने छोटे भाई के हाथ से बूर को सहलाने का अलग ही अनुभव था। गुड्डी बार बार दांये बांये देख रही थी, और बूर को सहला रही थी, उसका बाप जबकि आगे ही बैठा था। बूर जैसी कोमल और अद्भुत चीज़ का एहसास, किसी सोते इंसान को भी उठा सकता है, और वही हुआ। राजू अपनी हथेली पर गुड्डी की चुलबुली रिसती बूर का एहसास पाकर, उठ ही गया। उसने देखा, गुड्डी अपने होठों को दांत से काट रही थी, उसकी आँखों में काम वासना तैर रही थी, राजू की हथेली से जोर से बूर को रगड़ रही थी। तभी राजू ने गुड्डी की बूर को पकड़ के भींच लिया। गुड्डी उसका एहसास होते ही राजू की ओर देखी, उसकी वासना उसके चेहरे पर स्पष्ट थी। राजू ने भंवे उठाकर इशारे से पूछा कि क्या कर रही हो?
गुड्डी ने उसकी हथेली को बूर पर दबा के आंखों ही आंखों में कहा, बूर चुदवाने का मन कर रहा है।"
राजू अपनी बहन की वासना की प्यास देख, उत्तेजित और खुश हुआ। उत्तेजना तो होनी ही थी, पर उसकी चुदने की लालसा देख, पटना में वो क्या क्या करेगी उसके बारे में सोच खुश हो रहा था। तभी गुड्डी, राजू से पूछी," चोदबु हमरा।"
राजू," इँहा कइसे चोदब, तनि बर्दाश्त कर दीदी।"
गुड्डी," नइखे बर्दाश्त होत राजा, छूले त बारआ बूर के, केतना पनियाईल बिया, हमके लांड चाही तहार।"
राजू ने देखा कि अगर इसको लंड ना दिया, तो ये खुद उसका लण्ड ले लेगी, बस के अंदर बगैर किसी की परवाह किये। उसने गुड्डी को समझाते हुए बोला," गुड्डी दीदी, इँहा कोई देख ली त, कुछ देर रुक जो, अभी गाड़ी ढाबा पर रुकी..।"
गुड्डी," राजू अगर पांच मिनट में ना रुकी, त हम तहार गोदी में बइठ के लांड ले लेब।" उसकी आँखों में वासना का नशा और दृढ़ता दोनों दिख रही थी। दोनों भाई बहन सांसें रोके, बस के रुकने का इंतज़ार कर रहे थे। पांच मिनट बीत गए, दस मिनट बीत गए और धीरे धीरे पंद्रह मिनट भी हो गए। गुड्डी से अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था। राजू को भी डर लग रहा था कि गुड्डी कहीं अब उसके लण्ड पर कूद ना पड़े। गुड्डी अब प्यासी निगाहों से उसे देख रही थी, लेकिन शायद उन दोनों पर कामदेव की कृपा थी। कुछ ही देर में बस एक ढाबे पर रुकी। गुड्डी और राजू अलग हुए। लोग उतरकर ढाबे पर जाने लगे। धरमदेव ने भी उनको साथ आने को कहा और उतर गए। गुड्डी और राजू ने खिड़की से बाहर देखा, तभी गुड्डी बोली," हम पेशाब करे जाइब त तू ऊंहा आ जहिया।" ऐसा बोल वो कपड़े व्यवस्थित कर बस से उतर गई। राजू उसके पीछे पीछे उतर गया। गुड्डी ने देखा, पेशाब करने के लिए महिलाएं ढाबे पर, शौचालय में लाइन लगी हुई थी। वो ढाबे के पीछे झाड़ियों की ओर चल दी। झाड़ियों की ओर कोई नहीं था, और वो काफी छुपा हुआ था। गुड्डी ने उधर जाते हुए, राजू की ओर देखा और राजू से नज़र मिलते ही वो उधर की ओर तेज़ी से चल दी। राजू ने भी इधर उधर नज़र दौड़ाकर चुपके से अपनी बड़ी बहन के पीछे हो लिया। जब वो वहां पहुंचा तो उसने देखा, गुड्डी वहां झाड़ियों के बीच अपनी सलवार और कच्छी घुटनों तक उतारकर मूत रही है। राजू के लिए ये नज़ारा सपनों के जैसा था। गुड्डी की मदमस्त, मखमली गोरी गाँड़, अपने ही नंगेपन में नहाए राजू की आँखों को चौंधिया रही थी। ऐसी सुंदर, सुडौल और गुदाज गाँड़ को देख शायद धरमदेव भी बेटी को बिस्तर में समेट लेता। गुड्डी मूतते हुए जान रही थी कि राजू उसे देख रहा है। वो पेट से जोर लगाके मूत की धार जोर से मारने का प्रयास कर रही थी। गुड्डी बूर से बरसती मूत की धार की मधुर आवाज राजू को सुना रही थी। पेशाब की बहती तेज़ धार से पौधों की जड़ में झाग बन रहा था। गुड्डी की बूर से पेशाब की धार, कई बार बूर की मोटी फांकों से टकड़ा रही थी, जिससे बिगड़ी धार उसकी गाँड़ की छेद, चूतड़ को गीला कर रही थी। गुड्डी के साथ अक्सर ऐसा होता था, पेशाब करते हुए। बूर से झड़ती पेशाब की मधुर सीटी की आवाज़ उन खामोश पलों में कामुकता का रस घोल रही थी। गुड्डी पेशाब करते हुए ही, राजू की ओर कामुकता से देखी, जैसे उसे अपने पास आने का न्योता दे रही हो। राजू के सामने खुद को अर्धनग्न पाकर, उस बहन की आंखों में शर्म और कामुकता से उभरी, एक व्याकुल स्त्री को भाई में मर्द ही नज़र आ रहा था। गुड्डी का मूतना खत्म हो चुका था। राजू गुड्डी की ओर तेजी से बढ़ रहा था और गुड्डी राजू के बढ़ते कदम देख उठ खड़ी हुई। उसकी सलवार पैरों में गिर गयी, लेकिन उसे इस बात की परवाह नहीं थी। राजू जब उसके करीब आया, तो गुड्डी खुद उछल कर उसके गोद में चढ़ गई। दोनों का चेहरा एकदम करीब था, और प्यासे होठ एक दूसरे पर बादल बनके बरस पड़े। गुड्डी के होठ राजू के लबों में कैद थे। एक दूसरे की मुंह में अपनी लार गिराके, दोनों चुंबन का असीम आनंद उठा रहे थे। राजू गुड्डी के बड़े चूतड़ों को पकड़ उसे सहारा दिए हुए था। राजू उसे चूमते हुए, एक पेड़ की ओट में ले आया। फिर गुड्डी को वहीं उतारा और दोनों अलग हुए।
राजू," गुड्डी दीदी, ई पेड़वा पकड़के झुक जो। तहार बूर में पाछे से लांड डालब।"
गुड्डी झट से दोनों हाथों से पेड़ पकड़ झुकी और अपनी गाँड़ बाहर की ओर उठा दी। उसकी गाँड़ और गीली बूर पीछे से स्पष्ट दिख रही थी। बूर की फांक, उसके चिपचिपे पानी से पूरी तरह गीली थी। राजू अब तक पैंट खोल लण्ड निकाल चुका था। उस काले मस्त लण्ड को गुड्डी पीछे मुड़ प्यासी और प्यार भरी नजरों से निहार रही थी।
गुड्डी," राजू जल्दी से घुसावा ना?
राजू ने थोड़ा मज़ा लेने के लिए बोला," का गुड्डी दीदी?
गुड्डी," तू जानत त बारू, दे दआ दीदी के।"
राजू," का चाही दीदी के, बोलआ ना?
गुड्डी," दीदी के परेशान मत कर न राजू, जल्दी जल्दी करअ, देखअ लेट करबू त बस खुल जाइ।"
राजू ने गुड्डी की ओर देख बोला," खुल के बताबा ना स्पष्ट, त काम जल्दी होई। अच्छा बोलअ, तू के बारू?
गुड्डी," हम तहार बड़ बहिन, तहार दीदी बानि गुड्डी।
राजू," तू साली लांड के पियासल हउ रण्डी, बोल ना।
गुड्डी अब खेल समझ गई और बोली," हॉं, राजू हम पियासल रण्डी बानि, जेकराके तहार लौड़ा चाही, राजा।"
राजू," लौड़ा लेके का करबू ?
गुड्डी," लौड़ा घुसा दे बहिनिया के बूर में।" राजू आगे आकर उसकी गीली बूर को फैलाया। बूर के दोनों फांक अलग हुए, तो चिपचिपा पानी धागे की तरह दोनों फांकों से लटक गया। राजू ने अपना लण्ड उसकी बूर से छुवा दिया। गुड्डी ने कमर पीछे कर बूर में लण्ड लेने की कोशिश की, तो राजू ने लण्ड खींच लिया। गुड्डी के चूतड़ों पर एक चाटा मारा, गुड्डी आह कर उठी। राजू ने फिर बूर से लण्ड छुआया गुड्डी सिसिया उठी। गुड्डी सिसियाते हुए बोली," डाल ना बूर में लौड़ा, तड़पा मत अपन बहिन के।"
राजू उसके बाल पकड़ बोला," अच्छा से बोल कि तहरा का चाही ?
गुड्डी काम वासना की अंधी चाह में बोली," हम तहार रण्डी बहिन बानि, हमार बूर लांड खातिर पनियाईल बा। आपन मस्त लौड़ा बूर में घुसा दअ।"
राजू ने आहिस्ते लण्ड उसकी बूर में घुसाने लगा। एक भाई अपनी बहन की बूर में लण्ड डाल रहा था। लण्ड का एहसास पाते ही गुड्डी के मुंह से राहत की सांस आयी। राजू ने लण्ड पूरी तरह गुड्डी के बूर में डाल कर पूछा," अब का करि, बोलआ छिनरी दीदी।"
गुड्डी अपनी चुच्ची दबाते हुए बोली," अब बुर में लांड घुसाके आगे पीछे करआ।" उसकी आवाज़ मदभरी लग रही थी।
राजू," बूर में लांड घुसाके आगे पीछे करेके का कहल जाता ?
गुड्डी उसकी आँखों में देख बोली," उफ़्फ़, ओकरा चुदाई कहल जाता, जब कउनु लइका लइकी के बूर में लांड घुसावेला अउर आगे पीछे करेला त ओकरा चुदाई कहल जाता।"
राजू गुड्डी से ये सुन उत्तेजित हो गया और उसे खूब कसके पीछे से धक्के मारने लगा।
राजू गुड्डी के बूर में लण्ड डाल अपना सुपाड़ा उसकी बच्चेदानी से टकड़ा रहा था। गुड्डी के अंदर जगी हवस को राजू के लण्ड रूपी इंजेक्शन से ही राहत मिल सकती थी जो उसे भरपूर मिल रही थी। गुड्डी के सिसयाने की आवाज़ राजू को और उत्तेजित कर रही थी। गुड्डी एक हाथ से पेड़ का तना और दूसरे से अपनी दांयी चूतड़ फैलाये धक्के खा रही थी। वो राजू को बीच बीच में मुड़के गंदी नज़रों से देख रही थी। उसके होठ दांतों के बीच पिस रहे थे। जब तेज़ धक्के पड़ते तो, उसका मुंह कामुकता से खुलके आँहें भरता। राजू समझ गया था, कि गुड्डी को लण्ड की लत लग चुकी है, और गुड्डी अब पटना में उसके साथ हर वो चीज़ करेगी, जो वो उसे कहेगा। उसे अंदाज़ हो गया था, कि गुड्डी और उसके बीच सब खुल्लम खुल्ला होगा।
राजू बोला," तहरा चुदाई चाही ना रानी, तहरा एतना चोदब कि तू परेशान हो जइबू। तहार बूर चोदत चोदत भोंसड़ा बना देब।"
गुड्डी उसे उकसाते हुए बोली," उफ़्फ़.... केतना मज़ा आ रहल बा, आपन छोट भाई से एतना गंदा अउर घटिया बात सुने में। आह.... आह..... राजा चोद ना बूर के, बना द भोंसड़ा, एकरा त खाली लांड चाही। देख केतना पनियाईल बा, फच फच के आवाज़ आ रहल बा... उई....चोद दे.....ऊऊऊ.....उफ़्फ़फ़फ़....उहहह..... हहम्म।

राजू गुड्डी को इतनी तेजी से चोद रहा था, कि वो 10 मिनट में ही झड़ने को हुई। राजू को अंदाज़ था कि बस बीस पच्चीस मिनट से ज्यादा नहीं रूकेगी, उसे जल्दी से गुड्डी को चोद के शांत भी करना था। गुड्डी बड़ी जोर से झड़ने लगी, वो काफी जोर से सीत्कारें मार रही थी। राजू ने उसका मुंह हाथ से बंद किया। कुछ क्षणों के बाद गुड्डी शांत हुई, उधर बस ने भी हॉर्न बजाया। राजू बेचारा अभी भी उत्तेजना में था, उसका लण्ड कड़क था। खड़े लण्ड पर धोखा शायद इसी को बोलते हैं। खैर उसके पास कोई उपाय नहीं था, उसने पैंट पहनी और गुड्डी ने पैंटी पहनकर सलवार बांधा। दोनों एक साथ बस में आकर बैठ गए। गुड्डी की प्यास शांत हो गयी थी, पर वो जानती थी कि राजू अभी भी तड़प रहा है। वो उसके करीब आकर उसके लण्ड को पकड़ना चाहती थी, पर अभी आसपास के लोग जागे हुए थे। गुड्डी राजू की बेचैनी समझ सकती थी। बस अपनी मंजिल की ओर चल निकली। बस में अब काफी लोग और चढ़ आये, जो खड़े खड़े सफर कर रहे थे। अब गुड्डी चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी। कुछ लोग तो उन दोनों के पास ही खड़े थे। दोनों एक दूसरे को देख, तड़प रहे थे। एक घंटे बाद वो पटना पहुंच गए। सारे लोग बस से उतर रहे थे। राजू और धरमदेव भी समान उठाये बस से उतर गए। गुड्डी भी एक थैला उठाये उनके साथ थी। धरमदेव ने राजू के साथ आकर एक कमरे का किराया का आवास देख लिया था। तीनों ऑटो में बैठकर उधर चल दिये। कोई पंद्रह बीस मिनट बाद वो लोग वहां पहुंच चुके थे। ज्यों ज्यों मंज़िल करीब आ रही थी राजू के अंदर एक अलग ही उत्साह और बेचैनी थी। तीनों वहां पहुंच कर मकानमालिक से मिले। वो वहीं नीचे रहता था, गुड्डी और राजू के लिए ऊपर एक कमरा, किचन और बाथरूम था। किराया आठ हजार था, जो कि एरिया के हिसाब से ठीक था। सारी चीज़ की सुविधा पास ही मौजूद थी। ट्यूशन कोचिंग क्लास भी पास थे। उस एरिया में काफी विद्यार्थी रहते थे। मकान मालिक उन सबको ऊपर ले गए और कमरे की चाभी दे दी। अंदर एक चारपाई लगी थी, पीछे जाकर ही किचन था और कमरे में घुसते ही दांयी ओर बाथरूम था। गुड्डी को कमरा बहुत पसंद आया। धरमदेव ने कहा," गुड्डी खातिर एगो चारपाई अउर चाही।"
गुड्डी बोली," ना बाबूजी, हम नीचवा सुत जाइब, रउवा एतना खर्चा ना करि।"
राजू बोला," अब रउवा जाई, हम अउर गुड्डी दीदी आराम से रहब। माई भी गांव में अकेले बिया।"
धरमदेव ने गुड्डी और राजू से कहा," आराम से रहिया। गुड्डी आपन भाई के ध्यान रखिहा, अउर राजू तू भी गुड्डी के खूब बढ़िया से पढहाइया। गुड्डी बेटी राजू के सब बात मानिहआ, एकरा से पूछ के ही बाहर जहिया आ कोशिश करिहा राजू के साथ ही कहूँ जायके। हम आवत रहब, मिले खातिर।"
फिर धरमदेव ने अपने झोले से एक मोबाइल निकालके राजू को दिया और बोला," ऐसे बात होत रही।"
वो निकल के जाने लगा तो राजू और गुड्डी ने उसके पैर छुवे। गुड्डी और राजू के पास अब तीन महीने का समय था। राजू अपने पिता को छोड़ने और घर के लिए समान लेने उनके साथ ही हो लिया। गुड्डी घर की साफ सफाई कर सब व्यवस्थित करने लगी। राजू ने पहले तो धरमदेव को बस में बिठाया और उनसे दो महीने का खर्च ले लिया, जिसमे राशन और ट्यूशन का खर्च भी शामिल था। पिता को विदा कर राजू दुकान से किराने का सामान और अन्य जरूरी चीज जैसे बाल्टी, चादर, इत्यादि सब लेकर घर पहुंचा। गुड्डी ने घर साफ कर लिया था, किचन में एक छोटा सिलिंडर और चूल्हा लगाया था। राजू जब घर पहुंचा तो, गुड्डी उसका इंतजार कर रही थी। दोनों एक दूसरे को देख मुस्कुराए। राजू के हाथों से सामान लेकर गुड्डी ने किचन में रख दिया। राजू ने अंदर घुसते ही दरवाज़ा बंद कर दिया।
गुड्डी ने जैसे ही समान रखा, राजू उसे पीछे से पकड़ लिया। गुड्डी राजू से बोली," का करत बारू राजू, पहिले खाना त बना लेवे दे, भूख लागल होई तहरा।"
राजू ने गुड्डी को अपनी ओर घुमाया और बोला," भूख त लागल बा, पर अन्न के ना, तहार जोवन के धन के।"
गुड्डी बोली," उहे लूटे खातिर, त तू हमके गांव से इँहा लईलु।"
राजू," अच्छा, तू भी त तैयार रहलु। तहार जे मन रहल उ अब अंजाम पर आ गईल बा। अब केहू के डर ना होई, सब खुलके मज़ा ले। घर के अंदर का चली, बाहर केहु के का पता चली।"
गुड्डी बोली," सच राजू, तू बहुत होशियार बारू। जाने कइसे बाबूजी के पटिया लेलु। हमके त अभियो विश्वास नइखे होत, कि हम तहार साथे इँहा अकेले बानि, अउर केहू हमनीके इँहा गलत करत पकड़ी ना।"
राजू बोला," का गलत करबू जे कउनु पकड़ी ना रानी?
गुड्डी हँसके बोली," उहे जउन काम ढाबा पर तू अधूरा छोड़ दिहलस।"
गुड्डी ने राजू को चूम लिया, तो राजू ने गुड्डी के नितम्भ मसलने लगा। गुड्डी बोली," खाना बना लेबे दअ, फेर सारा रात जे मन करे, उ करिहा।" राजू उसे छोड़ने को तैयार नहीं था, पर तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई तो, दोनों अलग हुए। दरवाज़े पर मकान मालिक की बीवी अनुराधा खड़ी थी। उसकी उम्र पैंतालीस के आसपास होगी। वो अपनी बेटी निधि के साथ वहां रहती थी। उसका पति एक सिक्योरिटी गार्ड नाईट ड्यूटी करता था। वो गुड्डी से बातचीत करने लगी, राजू नहाने चला गया। गुड्डी ने सादी सब्ज़ी और रोटी बनाई। राजू इसी बीच नहाके निकला, तो अनुराधा उसका गठीला बदन देखती रह गयी। उसे राजू का शरीर और व्यक्तित्व काफी आकर्षक लगा। थोड़ी देर बाद अनुराधा चली गयी, तो गुड्डी ने राजू को खाना दिया। राजू सिर्फ बनियान और गमछे में था। दोनों भाई बहन एक ही थाली में खाने लगे। राजू के आने से पहले गुड्डी ने फर्श पर ही बिस्तर सजा दिया था। राजू वैसे ही लेट गया, गुड्डी बाथरूम में चली गयी। उसने अपने सारे कपड़े उतारे और पूरे बदन को गीले गमछे से पोछा। गुड्डी जानती थी कि बाहर राजू उसका बेसब्री से इंतज़ार कर रहा होगा। तभी गुड्डी को जोर से पेशाब लग गयी। वो अंदर ही पानी के निकास के नाली पर बैठ कर मूतने लगी। छुल छुल कर पेशाब उसकी बूर से बह रहा था। गुड्डी अंदर बिल्कुल नंगी बैठी थी। उसी समय उसके ऊपर एक छिपकली गिर गई। गुड्डी चिल्लाने लगी" राजू राजू बचावा.... जल्दी आवा..." । राजू उसकी आवाज़ सुन उठ खड़ा हुआ और उसकी ओर भागा। गुड्डी बाथरूम में डरी हुई खड़ी थी। राजू उसके पास आया तो देखा, छिपकली को उसने झटक के भगा दिया था।
राजू उसके करीब आया और उसे बांहों में भर लिया। गुड्डी डरी हुई थी तो उसने भी राजू को पकड़ लिया। गुड्डी सर से लेकर पाऊँ तक पूरी नंगी थी। राजू उसकी नंगी पीठ सहला रहा था। गुड्डी के अचानक उठने से पेशाब उसकी जांघों को गीला कर गया था। राजू ने गुड्डी को काफी देर बांहों में रखा। थोड़ी देर बाद गुड्डी को अपने नंगेपन का एहसास हुआ, तो राजू की बांहों से अलग होकर गमछा लपेट लिया। गुड्डी के बाल खुले हुए थे, छोटा सा गमछा उसकी जवानी को किसी तरह ढके हुवा था। बड़ी मुश्किल से उसकी चूचियों के चूचक और नीचे बूर ढकी हुई थी। गुड्डी का ये रूप राजू को आमंत्रण दे रहा था, कि ढाबे का अधूरा काम पूरा कर ले। गुड्डी की नजरें झुकी हुई थी, फिर वो पीछे मुड़के अपने कंधे को पानी से पोछने लगी जहां छिपकली गिरी थी। वो जैसे ही झुकी पानी लेने के लिए, पीछे से उसकी गाँड़ का निचला हिस्सा दिखने लगा। उसने उसे ढकने की कोशिश की, तो गमछा निकल गया और वो दुबारा नंगी हो गयी। राजू उसके पास पहुंचा और उसका गमछा उसके हाथों से ले लिया और गिरा दिया, साथ ही उसने अपना भी गमछा गिरा दिया। राजू ने अपनी बनियान भी उतार दी। दोनों भाई बहन अब एक दूजे के सामने बिल्कुल नंगे थे। गुड्डी राजू की ओर देखी और उससे चिपक गयी। राजू उसे लेकर बाहर कमरे में आया। गुड्डी उसके साथ चलते हुए बिस्तर पर आ गयी। राजू ने अपनी बहन को बिस्तर पर पीठ के बल लिटा दिया। गुड्डी अपनी दोनों टांगे भींचके लेट गयी। राजू ने गुड्डी की टांगे खोलने की कोशिश की, तो गुड्डी ने उसकी ओर देख टांगे खोल दी। सामने गुड्डी की बूर चमक रही थी। गुड्डी अपने मुंह में उंगली लिए, राजू की ओर देख रही थी। राजू उसकी जांघों के बीच लेट गया और बूर को निहारने लगा। उसने मन में सोचा इससे खूबसूरत चीज़ दुनिया में कुछ नहीं हो सकता। राजू ने गुड्डी की झांटों की झुरमुट के बीच बूर की फांक साफ दिख रही थी। पेशाब और पसीने की महक उसे अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। राजू ने उसकी बूर को उंगलियों से फैलाया। अंदर का गुलाबी मांसल हिस्सा स्पष्ट दिख रहा था। राजू उसकी बूर को सूंघ रहा था। गुड्डी उसे देख मन ही मन खुश हो रही थी। राजू उसकी बूर को सूंघते हुए जाने कब उसकी बूर को चूसने लगा उसे पता ही नहीं चला। राजू की लपलपाती जीभ, गुड्डी की बूर की दरार को चाटे जा रही थी। गुड्डी बूर की चटाई से आनंद में भर कमर से झटके मार रही थी। राजू उसकी बूर में नाक और होठ भी ऊपर नीचे कर रहा था। राजू गुड्डी के बूर के आसपास की जांघो को भी चाट रहा था। लगातार चाटने की वजह से वो त्वचा गीली होकर चमक रही थी। राजू बेझिझक गुड्डी के बूर का स्वाद ले रहा था। बूर से रिसता हुआ नमकीन पानी, राजू को किसी मिठाई की चासनी से भी मीठा और स्वादिष्ट लग रहा था। उस फूली हुई बूर को चूसते हुए राजू ने एक उंगली भी घुसा दी थी। गुड्डी इस दोहरे हमले से, खुद को सीत्कारें मारने से रोक ना पाई। कुछ ही देर में कमरे में कामुकता से भरा एक अत्यंत उत्तेजक माहौल बन गया। गुड्डी की सीत्कार और राजू की जीभ समानुपात में चल रहे थे। कुछ देर बूर चुसवाने के बाद गुड्डी बोली," राजू बूर में उंगली ना, लौड़ा चाही। बहुत चाट लेलआ बुरवा के, अब चोद दअ।" उसकी आँखों में प्यास और शब्दों में विनती थी।
राजू ने उसकी बात सुन अपना लौड़ा उसे दिखाया और बोला," गुड्डी दीदी ई त तहार बूर में घुसबे करि।" ऐसा बोल वो गुड्डी की बूर की दरार में लण्ड का सुपाड़ा रगड़ने लगा। गुड्डी सुपाड़े के एहसास से मचल उठी, उसकी बूर फिर पानी छोड़ने लगी। राजू का सुपाड़ा उस पानी से भीगने लगा। गुड्डी के माथे में बल पड़ गए थे। वो अब चुदने की चाह में खुद कमर हल्के हल्के उठा रही थी। राजू उसे ऐसे तड़पता देख खुश था, वो जानता था गुड्डी जितना तड़पेगी उतनी ही मस्ती में चुदवायेगी। राजू उसे उत्तेजना के शिखर पर लाना चाहता था। गुड्डी के साथ वो ऐसे ही खिलवाड़ कर रहा था, और गुड्डी सुलग रही थी। अचानक से गुड्डी बोली," राजू अब मत तड़पा, घुसा दे ना लौड़ा हमार बुरिया में। अब बर्दाश्त नइखे होत।" राजू ने देखा गुड्डी सच में तड़प रही थी। वो अपनी चूचियों को खुद ही मसल रही थी। उसके चूचक कड़े होकर तने हुए थे। राजू गुड्डी के बूर में आखिरकार लण्ड घुसेड़ दिया। गुड्डी लण्ड के एहसास से पगला गयी। वो उठी और राजू को पलट के नीचे ले गयी और खुद उसके लण्ड पर बैठ चुदने लगी। वो अपने बिखरे बालों को समेटने की कोई कोशिश नहीं कर रही थी, अपने उन्नत हिलती चूचियों को दबा रही थी और राजू का पूरा लण्ड बूर में लील कर कमर ऊपर नीचे कर रही थी। राजू गुड्डी की मदमस्त गाँड़ को सहला रहा था। गुड्डी का उत्साह देखने वाला था, क्योंकि आज उसे किसी का डर नहीं था। गुड्डी काम वासना में डूबी, बेशर्मी की सारी हदें पार करते हुए, राजू से बोली," राजू, आज आपन बहिन के मनमानी करे दअ, हमरा रोकिहा ना। तहराके पूरा मज़ा आयी, एकर गारंटी बा। अबसे अगला तीन महीना तक असही मज़ा कराईब। खूब पेलवाईब तहरा से।"
राजू गुड्डी के चूतड़ पर चाटा मारते हुए बोला," तू अभी एकदम रण्डी, जइसन बुझात बारू। आह... दीदी रहे त तहरा जइसन, पियासल छिनार जइसन भाई के लांड पर कूदे वाली। उफ़्फ़ देख तहार चुच्ची कइसे ऊपर नीचे हिलत बिया।"
गुड्डी राजू के सीने पर हाथ रख कूदते हुए बोली," उफ्फ्फ.... कबूतर जइसन फुदकेला हमार चुच्ची। देखा न तहरा चिढ़ा रहल बा। आह.... उम्म... राजू तू बड़ा होशियारी से हमके इँहा लेके आइलु, अब मज़ा लूटआ।"
राजू गुड्डी की गाँड़ की दरार में उंगली रगड़ते हुए बोला," रानी अब तहरा केहू के डर नइखे करेके। अब इँहा तहरा बस तीन काम बा, पढ़ाई, खाई अउर चुदाई।"
गुड्डी बोली," आह... राजा पढ़ाई के त पता ना पर चुदाई त खूब होई अउर मन लगाके होई। ना कोई रोकेवाला, ना केहू से पकड़ावे के डर। ना कोई करि शक, कि भाई बहन के कमरा में चोदत बा।"
राजू गुड्डी के बाल पकड़ बोला," सही कहलु रानी, लेकिन इँहा बहिन ही भाई के चोद रहल बा।"
गुड्डी हंस पड़ी और बोली," खरबूजा चाकू पर गिरे, चाहे चाकू खरबूजा पर कटत त खरबूजे बा। लइकी ऊपर रहे चाहे नीचे लांड ही बूर के चोदेला। अगर केहू के पता चली त, बहिनचोद के गारी तहके पड़ी, हमरा कुछ ना।"
राजू गुड्डी को देख बोला," तू अइसे मस्त बात करत बढ़िया लाग रहल बारू। आह... असही खुलके बात करल करा रानी।"
गुड्डी उसे चूमकर और चूचियाँ छाती से रगड़ते हुए बोली," राजू अब त तू देखत रहा कि तहार दीदी का का करत बिया। अब हम देखाएब कि चुदाई के असली मज़ा का होखेला। तू खुद हैरान हो जइबू, कि हम तहार संस्कारी दीदी बानि की ना जउन गांव में रहे।"
राजू उसके चूतड़ों पर कसके चपत लगाया तो कमरे में चटाक की आवाज़ गूंज उठी। गुड्डी के मुंह से दर्दभरी आह निकली और राजू बोला," सच में गुड्डी दीदी, अब तू इँहा खुलके रहबू त हमके लागत बा कि तू हमरा रोज़ चौंका देबू। अइसन मस्त माल हमरा हाथ लागल बाटे।"
गुड्डी चूचियाँ मीजते हुए बोली," मस्त माल तहरा हाथ लागल बाटे ना राजा, त छोड़िहा ना अब। लेकिन इहो मत भूलिहा कि हम पहिले तहार बड़ बहिन बानि। अउर जब जब रिश्ता के दायरा में रखके चोदबु त मज़ा दूना हो जाई। बहनचोद साला....."
राजू बोला," अइसन बहन मिली त बहनचोद गाली ना, उपाधि होई। तू भी भाईचोदी बिया रण्डी साली।"
गुड्डी सुनके हंस पड़ी," का गाली खोजलस हउ, भाईचोदी। गंदी बहन के काम बा भाई के संगे, गंदा गंदा काम करेके।"
राजू और गुड्डी इसी तरह गंदी गंदी कामोत्तेजक बातें करते हुए चुदाई का भरपूर आनंद ले रहे थे। काफी देर लण्ड की सवारी करने के बाद गुड्डी का बदन अकड़ने लगा और वो झड़ने लगी। राजू उसे बांहों में थाम पूरा लण्ड उसकी बूर के अंतिम छोड़ तक घुसाए था। गुड्डी कुछ देर तक वैसे ही पड़ी रही। कुछ देर बाद वो उठी तो राजू ने उसे कुत्ती की तरह चौपाया बना दिया और पीछे से उसकी बूर का जायजा लिया। फिर थूक लगाके उसकी बूर गीली की और लण्ड वापिस से बूर में ठेल दिया। गुड्डी की बूर अभी भी गीली थी और उसे लण्ड का एहसास मज़ेदार लग रहा था।
गुड्डी के साथ इस आसन में उसे उसकी बूर की पूरी गहराई का अनुभव हो रहा था। उसकी बूर पहले से काफी लचीली हो गयी थी और लण्ड को अच्छी तरह से लील रही थी। राजू बार बार पूरा लण्ड उसकी बूर से निकाल फिर से अंदर पूरा घुसा देता था। बूर की दीवारों से लण्ड के घर्षण के एहसास से दोनों को यौनसुख की प्राप्ति हो रही थी। गुड्डी मस्ती में आके फिर अपनी कमर आगे पीछे कर रही थी।
गुड्डी बोली," सससस..... चुदाबे के असल मज़ा असही कुत्ती के तरह झुक के आ रहल बा। आह... केतना मज़ा आ रहल बा जब तहार लांड पूरा बूर के अंदर तक घुस जाता। इससस्स....देखा ना अभिये झड़ल रहनि, फेर से बूर मस्ती में मचलत बिया।"
राजू उसकी नंगी पीठ को सहलाते हुए बोला," त मचले द दीदी, हम त इन्हेँ बानि, तहार बूर के अपन लांड से चोद चोद के शांत कर देब।"
गुड्डी," हम जानत बानि राजू, तभी त तहरा संग अइनी, ताकि बूर के इलाज होई।"
राजू उसके गाँड़ को पकड़के लगातार धक्के मार रहा था, अब राजू भी झड़ने वाला था। उसने तबियत से गुड्डी की बूर में चार पांच धक्के लगाए और फिर झड़ने से ठीक पहले गुड्डी की बूर से लण्ड निकाल उसको अपनी ओर घुमा दिया। गुड्डी उसके सामने पालतू कुतिया की तरह दोनों पैरों और हाथों पर, उसके लण्ड से पानी निकलने का इंतज़ार कर रही थी। राजू ने उससे पहले ही बोला था, कि लण्ड का पानी पीने से दिमाग तेज होगा। गुड्डी के चेहरे का भाव देखने लायक था, बिखड़े बाल, कामुक निगाहें, प्यासे होठ और इतराता नंगा बदन। राजू के लण्ड से धार यूं निकली और सीधा गुड्डी के इंतज़ार करते मुंह में गाढ़ा सफेद पानी जमा होने लगा। कुछ तो गुड्डी के होठ, गालों और नाक से भी जा चिपका। राजू का लण्ड पूरी अकड़ में पानी छोड़ रहा था। कुछ ही देर में लण्ड का पानी निकल चुका था, और अब रिस रिस कर लण्ड के दबाने से निकल रहा था। गुड्डी राजू के लण्ड का पानी पी गयी और उसके लण्ड के छेद से रिसता हुआ पानी चूसने लगी। राजू आंखे बंद किये, गुड्डी के हाथों में लण्ड पकड़ा, आँहें भर रहा था। गुड्डी उसके सुपाड़े को चूस चूस कर आखरी बूंद निकालना चाह रही थी। गुड्डी ने फिर अपने गालों और नाक से चिपका लण्ड का पानी समेट कर उंगली से जीभ पर रख लील गयी। गुड्डी फिर राजू को लिटा कर उसके ऊपर नंगी ही लेट गयी।
राजू गुड्डी के उभरे हुए चूतड़ों को थाम, उसपर हल्की हल्की थपकियाँ दे रहा था। गुड्डी राजू के सीने में दोनों चूचियों को गराये हुए, उसके बाल सहला रही थी। फिर राजू ने गुड्डी की बूर को छुवा तो वो अभी भी बह रही थी। राजू आश्चर्यचकित था, उसने गुड्डी से पूछा," गुड्डी दीदी तहार बुरिया से हरदम रस चुवेला का, हमेशा बूर गीले रहता।"
गुड्डी बोली," राजू सच में, हमार बूर हमेशा गीला रहेला, जानत बारा पहिले हम सोचत रहनि कि सब लइकी के साथ अइसन होखेला। पर बिजुरी बतईलस, कि बूर से पानी चुवे मतलब लांड चाही। लेकिन हमार हमेशा चुवता, हमेशा चुदवासी रहेली। कहीं हमरा कउनु बीमारी त नइखे ना।"
राजू गुड्डी का मज़ा लेने के लिए बोला," गुड्डी दीदी हमके लागत बा कि तहरा कउनु बीमारी बा। हमेशा बूर चुवे ई ठीक नइखे, लेकिन ई कउन डॉक्टर के देखैबू। अच्छा एगो बात बतावा, हमेशा लांड बूर में डलवावे के मन करेला का।"
गुड्डी बोली," जबसे तू हमके चोदले बारू, तू आसपास रहलु त बुरिया अपने आप रिसिया जाता। मन होखेला की बूर में लांड घुसवा के खूब चोदबाई तहरा से। राजू अगर अइसे बूर रिसयायी अउर तू कहत बारू ठीक नइखे, त कइसे ई सही होई।"
राजू अपनी भोली भाली बहन की बूर को थाम के बोला," दीदी हम ई कइसे बताई, काहे कि हम कउनु डॉक्टर नइखे। पर हमके ई बुझाता कि इच्छा के पूरा करबू तब धीरे धीरे ई ठीक होई। तहार बूर के, हमार लांड चाही रानी। तहरा खूब निम्मन चुदाई चाही, जब तलिक तहार बूर से पानी के बहाव कम ना हो जाई।"
गुड्डी बोली," सच राजू अगर अइसन बात बा त तू, हमके हर रोज़ चोदल करा। अइसन बतिया त केहू अउर के छोड़आ, माई से भी ना कह सकेनि हम। तू एकरा ठीक कर दे।"
राजू गुड्डी से बोला," गुड्डी दीदी, तहरा चोदे खातिर त हमके शिलाजीत चाही। काहे कि तहार अंदर जलत भट्ठी के, बुझाबे खातिर हमार हथियार तैयार चाही। हम काल शिलाजीत ले आवत हईं।"
गुड्डी उसकी ओर देख बोली," दिन में केतना बार चुदाई करबु, हम झिझकब ना।"
राजू उसे बेवकूफ बनाते हुए बोला," कम से कम दु बेर, सुबह शाम अउर अगर बीच में चुदाई के तलब लगी त अउर चोदे के पड़ी।"
गुड्डी मासूम होके बोली," त ले आवा शिलाजीत अउर कल से इलाज शुरू कर दआ।"
राजू ने फिर गुड्डी को बोला," अभी चाही लांड का ?
गुड्डी उसकी ओर देख बोली," देखते बारआ कि बूर के का हाल बा। चोद दआ हमके फेर से।"
राजू उसे अपने नीचे फट से पलट के लिटा दिया और गुड्डी ने उसे बांहों में लेके अगली चुदाई के लिए टांगे खोल दी।

राजू ने हाथ आगे कर कमरे की बत्ती बुझा दी।
Ekdam garama garam
 

lovlesh2002

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वासना की आंधी भाग-३

सुबह पौ फटने को थी। चिड़ियों की चहचहाट धीरे धीरे सुनाई दे रही थी। बारिश अब काफी हल्की हो चली थी। बीना पर अभी भी बूर में लण्ड लिए, राजू के ऊपर लेटी थी। दोनों आपस में चिपके हुए थे। उनके जननांगों से मदन रस चू रहा था। उनके बदन आपस में गर्मी खा पसीने से तर थे। बीना सर से लेकर पैर तक पसीने से गीली थी। उसके बदन से पसीने की बदबू आ रही थी। राजू के लिए वो कामोत्तेजक गंध थी। बीना की चूंचियों, गाँड़ और जांघों के बीच काफी पसीना था। राजू बीना के गाँड़ की दरार में उंगली से छेड़ते हुए, उसके गाँड़ के छेद को कुरेद रहा था। बीना अपनी चुच्ची के चूचक राजू के मुँह में घुसाए हुए थी। राजू के मुंह में उसके भूरे चुचकों की कड़ी चुसाई हो रही थी। दोनों ने रातभर नींद की एक झपकी भी नहीं ली थी। इस समय दोनों की ही आंखों में एक दूसरे के प्रति वासना के अतिरिक्त कुछ नहीं दिख रहा था। दोनों ही कामक्रीड़ा में लीन, एक दूसरे को कामसुख देने और लेने में व्यस्त थे। राजू ने लण्ड को पूरा अंदर तक ठूस रखा था। इतने में बीना मस्ती में बोली," आह...आह...भर रतिया से चुदा रहल बानि, मन नइखे भरत। आ...बेटा माई के चोदे में मज़ा आ रहल हअ। तहार लांड त पूरा भीतरी बच्चेदानी से टकड़ा रहल बा। जइसे तू चोद रहल बारू, हमके गाभिन कर देबु।"
राजू," का कहलु?"
बीना," अइसे सच में एतना चुदायिब त गाभिन हो जाएब।"
राजू," आह..उफ़्फ़फ़ सोच के, सुने में एतना बढ़िया लागतअ। त जब सच में तू हमसे गाभिन हो जइबू, त अउर मज़ा आई।"
बीना," मज़ा काहे?"
राजू," एतना भोली मत बन, बेटा से चुदेबु अउर ओकर वीर्य जाई त तू अपने बेटा के बच्चा के माई बन जइबू।"
बीना," अरे हाँ, सच......उफ़्फ़फ़ अपने बेटा के बच्चा जनब। हाय, ओह, सशहह... हमार त अभी महीना भी आवेला, हे भगवान सच बच्चा त सच में ठहर सकेला।"
राजू," आह...केतना मज़ा आयी, जब तू हमार बच्चा के माई बनबु।
बीना," सारा रतिया में तू तीन बेर बूर में लांड के पानी निकाल देले बारू। ई उमर में बच्चा ठहरी, त लोग का कहिअनस।" बीना मुँह में उंगली दबाते हुए बोली।
राजू बीना के गाँड़ पर चपत लगा बोला," अगर तू पेट से हो जइबू, त हम तहार पूरा ध्यान रखब। वइसे भी तू अभी तहार उमर पैंतीस से ज्यादा ना बुझाता, औरतिया सब एतना उम्र में माई बनते बिया, तू भी बन जइबू त गलत नइखे।"
बीना," सच में हम पैंतीस के लागेनि?
राजू बीना की बूर में झटका मारते हुए बोला," अउर न त का रानी। तहरा देख के त केहू फिसल सकेला।"
बीना," हाँ, शायद एहीसे उ दिन स्वास्थ्य केंद्र में उ हरामी हमरा ऊपर हाथ फेरत रहल हअ।"
राजू ने बीना से पूछा," के माई?
बीना," उ हरामी कम्पाउण्डर जउन दवाई देता ऊंहा। उहे छेड़त रहल।"
राजू," हमार माई हमार जान के छेड़लस उ कुकूर मादरचोद। ओकरा त छोड़ब ना।" राजू गुस्से में था।
बीना समझ गयी कि उसने माहौल बिगाड़ने वाली बात बोल दी और राजू का चुदाई से मन हट सकता है। इसलिए उसने राजू के साथ गंदी और कामुक बातें करने लगी। वो बोली," राजू, लेकिन अगर तू हमके पेट से कर देबु, त हम अउर तू चुदाई न कर पाइब। फेर त बूर ना मिली चोदे खातिर। तहरा जइसन रसिया के त बूर जइसन फूल हमेशा चाही, चोदे खातिर।" वो हँसते हुए बोली।
राजू उसकी हंसी देख बोला," बीना ओकर बाद हम कली के रस लेब।" ऐसा बोल उसने बीना की भूरी सिंकुड़ी गाँड़ के छेद पर उंगली का दबाव बढ़ाया और उंगली उसकी गाँड़ में उतार दी। बीना का मुँह खुला रह गया और उसने कहा," मतलब तू छोड़बु न, जब आगे बूर ना मिली त पाँछे से गाँड़ में लांड देबु।"
राजू," का तू लांड के बिना रह पाईबु?
बीना बेशर्मी से बोली," हम लांड के बिना न रह पाइब।"
राजू," ई बोलत तू केतना कामुक,भोली अउर सुंदर लागेलु। तहरा जइसन चुदक्कड़ माल सबके न मिलेला।"
बीना," तहरा त मिल गईल ना, त ई चुदक्कड़ माल के भरपूर इस्तेमाल करआ। तहरा बच्चा चाही त बच्चा भी देब। अगर भगवान के इहे मर्ज़ी बा त इहे सही।"
राजू बीना की गाँड़ में उंगली करते हुए उसे चोदने लगा। इस बार दोनों पहले से ज्यादा उत्साह में चुदाई कर रहे थे। राजू और बीना एक दूसरे को प्यार और वासना में डूबो देना चाहते थे। थोड़ी देर बाद राजू ने एक बार फिर बीना की बूर में अपना वीर्य बहा दिया।

कुछ देर बाद बीना राजू के गोद में नग्नावस्था में बैठ उसके कंधों पर सर रख सो गई थी। पूरी रात मेहनत कर दोनों थक चुके थे। राजू को इतना मज़ा तो अपनी बहन गुड्डी के साथ भी नहीं आया था। दोनों आधे घंटे तक सोए हुए थे, उसके बाद बीना की नींद खुली। दोनों एक साथ जगे। बीना की मखमली त्वचा, सूरज की रोशनी पड़ने से चमक रही थी। उसके बाल बिखड़े हुए थे। बीना के सूजे होठ अपने चूसे जाने की कहानी बयान कर रहे थे। उसकी चूचियाँ और चूचक पर राजू के काटने के निशान स्पष्ट थे। बूर चुदाई से पूरी तरह खुली हुई थी। अत्यधिक लण्ड बूर में घुसने से वो काफी खुल चुकी थी। कुल मिलाकर वो बीती रात वासना की आंधी में उड़ी ऐसी शाख लग रही थी जिसे अपने लुट जाने का गम नहीं फक्र था।
राजू ने बीना के बाल संवारते हुए कहा," बीना, सारा रात हमनी ई मचान पर हवस के खेल खेलनी जा। लेकिन अब भोर हो गइल। ई रात हम जिनगी भर याद राखब। मन नइखे होत, तहरा से अलग होखि।"
बीना राजू के आंखों में देख शरमा गयी, फिर उससे कसके चिपकते हुए बोली," राजा, हम त चाहत बानि कि केहू हमरा प्यार से राखे, खूब प्यार करे, अउर बदला में हम भी ओकरा आपन प्यार से खुश कर दी। तहार बाबूजी के साथ, अब हमके वइसन खुशी अउर प्यार न मिलेला। अब ई प्यार केकरा पर लुटाई। पूरा तन बदन में काम वासना लहू संग दउड़ रहल बा। हम निर्लज्ज ना हईं, पर चुदाई के पियास से मजबूर बानि। हम तहरा अंखिया में सारा रात खुद के माई के साथ साथ एगो रंडी जइसन छिनारपन करत कामुक स्त्री के भी देखनी ह। पर औरत के इहे रूप होखेला। समाज के बंधन के डर जब न रहेला, अउर रात के अनहार में शराफत के चोला उतार के, हर स्त्री रिसत बूर में लांड घुसाके सुकून चाहेलि। स्त्री जब लंगटी रहेली अउर वासना उफान मारेला, त उ खुद मरद के सामने बिछ जात बिया। उ समय मरद के धरम बा कि उ ओ स्त्री के भोगके सुख देवे। उ समय न ओकर जात पूछल जाता, न धरम, न उमर, न रिश्ता देखल जाता, न रंग रूप, न काया। उ समय बस स्त्री और पुरुष धर्म निभावल जाता। काल रात जउन भईल, उमे हमके भी मज़ा आईल। अब जब मौका मिली तब हमनी ई करब जा। लेकिन होशियारी से।"
फिर बीना मचान से उतरने लगी। कुछ ही देर में वो नीचे उतर गई। राजू भी उसके साथ नीचे उतर आया। नीचे बारिश की वजह से काफी मिट्टी गीली हो चुकी थी।
बीना," राजू, हमार साड़ी साया सब त गन्ना के खेतवा में पड़ल होई। उ त खराब हो गइल होई। अब इँहा से मड़ई तक असही लंगटी जाय के पड़ी।"
राजू," तू लंगटी ज्यादा सुंदर लागेलु।"
बीना," हट बेशरम कहीं के। तहरा शरम नइखे आवत कि माई से अइसे बोलेलु।"
राजू," अब काहे के शरम तू माई से ज्यादा रखैल लागेलु। रंडी साली सारा रात तहरा चोदनी तब लाज कहाँ रहल हअ।"
बीना बोली," हमार लाज त बूर के पानी साथे बह गईल। अब तहरा मुँह से गाली सुनके भी लाज न आवेला।"
राजू," अगर कपड़ा चाही त, ऊपर घाघरा चोली बा। ले आई का?
बीना," ना उ गंदा हो जाई। हमनी असही लंगटे चलल जाई।" बीना समझ रही थी कि राजू उसे वो जबरदस्ती पहनना चाहता था। बीना आगे चल रही थी और पीछे राजू था। राजू की गंदी नज़र और सामने बीना का नंगा जिस्म। राजू की नज़र उसकी गाँड़ पर थी। तभी बीना का पैर फिसल गया और वो नीचे गिर गयी। बीना पूरी खेतों के बीच कीचड़ में गिर पड़ी। वो पूरी तरह कीचड़ में सन गयी। राजू उसे देख हँसने लगा। और उसे उठाने आगे बढ़ा तो बीना ने उसे कीचड़ में गिरा दिया। अब दोनों माँ बेटे कीचड़ में गिर चुके थे। बीना हंसते हुए राजू के बदन पर कीचड़ मलने लगी। राजू नीचे गिरा था और बीना उसके ऊपर चढ़ बैठी थी। राजू के सीने और मुँह पर बीना कीचड़ मल रही थी। राजू उसे रोक नहीं रहा था, बल्कि उसे उसकी मर्जी करने दे रहा था। उसे बीना की स्वच्छंद हंसी, बेबाक अंदाज़ बेहद अच्छा लग रहा था।
तभी बीना उसे देख बोली," अइसे का घूरत हउ, तहरा कीचड़ बढ़िया लागेला का?
राजू," न रानी, तहरा एतना खुश एतना हँसत कभू न देखनि। केतना मासूम और प्यारा चेहरा बा।"
बीना राजू को अपने चूंचियों पर लगा बोली," हाँ, राजू हमार ई रूप केहू न देखले, देख जब औरत खुश होखेलि त आपन मरद के साथ केतना मज़ा लूटेली। का हम तहरा अइसे बढ़िया लागेलि?
राजू बीना को नीचे गिरा बोला," हाँ, रानी तू सच में बहुत मस्त लागेलु। ई तहार हँसी, ई बिल्कुल रंडी जइसन व्यवहार, हम तहरा अइसे देख बहुत खुश बानि। तहरा जइसन शरीफ औरत त हर आदमी के चाही। तहरा पर प्यार आ रहल बा।"
बीना उसे धक्का दे दूसरी ओर गिरा दी और उठकर भागने लगी, फिर बोली," प्यार आ रहल बा, त मैय्या चोदबु मादरचोद कहीं के?
राजू उठा," कहाँ भागत बारू रंडी साली। तू माई के साथ साथ औरत भी त बारू। तहरा इंहे पटक के चोदब, रुक कुत्ती।"
बीना आगे आगे भाग रही थी। उसकी चूंचियाँ पूरी तरह ऊपर उठती और फिर नीचे गिरती। आपस में टकराती और फिर विपरीत दिशा में भाग जाती। उसके चूचक कड़े और तने हुए थे। बीना नंग धरंग किसी बच्ची की तरह एक खेत से दूसरे खेत भाग रही थी। राजू उसके पीछे उसकी हिलती बड़ी बड़ी नंगी गाँड़ को आपस में टकराते और ऊपर नीचे होते साफ देख रहा था। उसके गीले मिट्टी में सने हुए बाल, भी उछाल मार रहे थे। राजू का लण्ड कड़क हो गया। राजू चाहता तो उसे आसानी से पकड़ लेता, पर उसने जानबूझकर बीना को अपने आगे दौड़ने दिया। राजू उसे गंदी गंदी गालियां देते हुए भगा रहा था। राजू," रुक जा छिनरी, तोर माई के चोदब, साली कहाँ भागत बारू, रात भर चुदेलु, त अब काहे भागत बारू रंडी के बेटी, मादरचोद।"
बीना आगे आगे भाग रही थी वो एक एक गाली स्पष्ट सुन रही थी, पर उसके बदले भागते हुए वो बोली," दम ह त पकड़ ल, अउर फेर चोदे लिहा। खाली मुँह न चलावा, तनि हाथ पैर भी चलावा।" ऐसा बोल उसने जुबान बाहर निकाल राजू को चिढ़ाया।
राजू," साली, पकड़ब न, त लांड से भी चोदब, अउर मुँह से भी।"
बीना हंसते हुए," उ कइसे?
राजू," बूर में लांड घुसाके, खूब गंदा गंदा गरियाईब।"
बीना," अच्छा, लेकिन पहिले पकड़ त ले।"
थोड़ी दूर दौड़ने के बाद, बीना की सांस उखड़ने लगी और वो धीमी हो गयी। राजू ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और गोद में उठा लिया।
राजू," अब बोल?
बीना," अब का अब त जे करे के बा उ तहरे करे के बा। जउन हुकुम करबा उ हमके करे के पड़ि।"
राजू," चल कुत्ती बन।"
बीना झट से कुत्ती बन गयी और अपनी गाँड़ उठा ली। राजू ने उसकी बूर को टटोला तो हैरान रह गया वो अभी भी पूरी गीली थी। राजू बोला," हरामजादी तू कइसन रंडी बारू, अभी चुदवाके भी बूर एतना गीला बा। उफ़्फ़फ़....हाय ई बूर बा कि झड़ना, लांड खातिर बरस रहल बिया। कउनु रंडी के भी एतना गीला न होत होई, बुरचोदी साली।"
बीना," उफ़्फ़फ़... राजू राजाजी रउवा एकदम सही बानि। हम सच में कउनु जन्म में छिनार होखब। जाने कइसन बूर ह कि शांत नइखे होत। जेतना चुदाबेलि ओतना बहेलि। हम सच में ई कामज्वर से परेशान बानि। रातभर चुदाबे के बावजूद काम वासना शांत न होखेला। हमके गरियाके चोदअ, खूब गंदा गंदा गाली दअ। जब तू गरियावेलु न त सुने में बड़ा अच्छा लागतआ। आवा अउर आपन माई के चोदअ।"
राजू," छिनार के जनमल रंडी बारू तू। ई बूर के एतना बुरा हाल कर देब कि, जब तहरा बच्चा होई त दरद न होई। साली हरामिन कहीं के।" ऐसा बोल उसने लण्ड बीना की बूर में मक्खन की तरह उतार दिया। बीना, सिसयाते हुए बोली," आराम से डाल न मादरचोद। तहार बहुत बड़ा बा।" राजू ने जवाब में बीना की गाँड़ पर चटाक चटाक पांच छः थप्पड़ बरसा दिए और बोला," रंडी तू आपन औकात में रह, तहरा अब ई कीचड़ में कुतिया जइसन पेलब। इँहा तू केतना भी किकियाबे केहू ना सुनी अउर हमसे रहम के कउनु उम्मीद ना करिहा।" राजू तेज धक्के लगाने लगा। बीना भी अब कमर पीछे लेके बूर में लण्ड ले रही थी।बीना को बहुत मज़ा आ रहा था। राजू बीना को मस्ती में देख उत्तेजित हो रहा था, उसने बीना की गाँड़ में उंगली घुसा दी। बीना की गाँड़ का छेद सख्त पर मुलायम था।
बीना उसकी ओर देख बोली," आह... ऊई गाँड़ में उंगली काहे कर देलु। तनि दरद होता पर अच्छा लागत बा।"
राजू उसके बाल पकड़ते हुए बोला," अभी त खाली उंगली कइनी ह, बाद में लांड घुसाइब त अउर मज़ा आई।"
बीना," राजू, हमके गाली दअ, हम सच कहेनी कि चुदाई में औरत के खूब जलील करे के चाहि। ऐसे तहरा मज़ा आयी, अउर हमके अउर मज़ा आयी। चुदाई में जब तक गाली न होखेला, तब तक कामसुख अधूरा बा।"
राजू," लेकिन माई औरत के ही काहे गाली देवे के चाही, अउर उहे काहे हमेशा गारी सुनी।"
बीना," काहे कि गाली के केंद्र बिंदु हमेशा औरत ही होखेलि। चाहे केतना भी शरीफ आदमी काहे न होता, उ कभू न कभू मन में जरूर गाली दी। मादरचोद, बहिनचोद, बेटीचोद सब त माँ, बहन, बेटी के ऊपर ही बा। रंडी, छिनार, रखैल ई सब से औरत के ही संबोधित करल जाता। मरद सब आपन भड़ास निकाले खातिर हम औरत के इस्तेमाल करेले। लेकिन सच बात त ई बा कि हमके ई गंदा गंदा गारी सुने में अच्छा लागेला। सोचत बानि कि ई सब होत बा तभी न लोग अइसन गाली देता। अभी तू भी आपन माई के चोद रहल बारू। तू अभी मादरचोद ही कहाबे। मादरचोद बने में केतना मज़ा अउर सुकून बा, ई बस तू ही जान सकेलु। मगर सबलोग जब आमतौर पर तहरा मादरचोद कहियाँ त तहरा अच्छा ना लागी। वसही त हम औरतन भी बानि। जब चुदाई होता त गंदा गंदा बतियाबे से काम सुख बढ़ जाता। एहि से गाली गलौज के ई उत्तम जगह बा।"
राजू हंसते हुए कहता है," वाह....अइसन रंडी माई त सबके मिले। लागतआ तहरा माई के भी ओकर बेटा चोदके तहरा पैदा कइने होई। साली तहरा त अंग अंग में वासना और छिनारपन बा। तू सच में हरामजादी बारू, तहरा चोद चोद के तहार औकात देखाएब। साली आज तू आपन बेटा से ई रंगरेली मनात बारू, हमके लागत बा तू आपन बाप से भी चुदवात होई। तहार बुर के खुजली मिटा देब बीनू।"
बीना ने मुड़के राजू को देखा, जैसे कुछ याद आया हो, पर फिर बोली," आह... हाँ हमसे सम्भालल न जाता ई जवानी। ई देहिया हमेशा मजबूत मरद के लालसा में कामुक रहेला। अभी त ई शुरुआत ह, देखत हईं आपन ई रंडी बीनू के केतना चोदबु।"
राजू बीना की गाँड़ में उंगली कर उसकी गाँड़ की सख्ती का अनुमान लगा रहा था। बीना उसके गंदे इरादों से थोड़ी भी वाकिफ नहीं थी। लेकिन राजू भी आज बीना की गाँड़ नहीं खोलना चाहता था। उसने सोचा जिस दिन ये साली मेरे दिए हुए घाघरा चोली पहनेगी उसी दिन उसकी गाँड़ चोदेगा।
राजू ने बीना को पलट दिया और उसके दोनों चूचियों के ऊपर कीचड़ मल दिया। बीना अभी भी बूर में लण्ड लिए पेलवा रही थी। राजू उसके पूरे जिस्म पर कीचड़ मल रहा था और बीना बस हंस रही थी। कुछ ही देर में राजू और बीना एक दूसरे से चिपक कर ताबड़तोड़ चुदाई करने लगे। उनका अंत निश्चित था, राजू ने लण्ड बीना की बूर में ही खाली कर दिया। बीना एक बार फिर चुद चुकी थी और चरमसुख प्राप्त कर चुकी थी। बीना घुटनों के बल बैठ गयी और अपने ऊपर और कीचड़ मलने लगी।
राजू," माई ई का करेलु तू?
बीना," राजू ई माटी बढ़िया माटी ह। एकरा देह पर लगाबे से चमड़ी गोरा, मुलायम अउर उमे निखार आवेला। एहीसे हम ई माटी आपन देहिया में लगात बानि।"
राजू," अच्छा रुक हम तहरा ई माटी से पूरा पोत देत बानि। तू माटी के मूरत लगबु।" ऐसा बोल राजू ने बीना के ऊपर खूब गीली मिट्टी उठा उठाकर डालने लगा। बीना कुछ ही देर में पूरी तरह मिट्टी से ढक चुकी थी। राजू उसे किसी औसधि की तरह जो लेप रहा था। फिर राजू ने बीना के दोनों चूतड़ों और उनकी दरार में मिट्टी लेपने लगा। फिर बीना की बूर और आसपास के क्षेत्र पर। बीना के कमर और पेट पर भी वो खूब कसके मिट्टी लगा रहा था। बीना की जाँघे भी अंदर और बाहर से मिट्टी की परत से ढक गयी। बीना की चूचियाँ भी राजू के हाथों अपने ऊपर मिट्टी लिपवाने को बेताब थी। राजू ने उसके ऊपर और चूचकों पर बड़े आराम से लगाया। इसके बाद उसने बीना के गाल, माथा और गर्दन पर भी लेप लगाया। बीना बिल्कुल किसी मिट्टी की मूरत जैसी लग रही थी। बीना बोली," राजू हम एक बात त भूल गइनी?
राजू," का?
बीना," एकरा त गरम पानी से धोवे के चाही, अब गरम पानी कइसे आयी इँहा?"
राजू," ई बात तहरा पहिले बताबे के चाही रानी। अब का करबू?"
बीना," एगो उपाय बा?"
राजू," का, बोल?
बीना," तहार गरम गरम पेशाब, हमके उसे नहा दे।"
राजू," का तू सच में ई करे चाहेलु बीना?
बीना," अउर कउनु उपाय नइखे। आपन माई के मदद न करबू।"
राजू," काहे ना, तहरा आपन मूत से नहात देखके मज़ा आ जाइ। लेकिन ओकर बाद हम भी असही तहार मूत से नहाएब।"
बीना," लेकिन तू मरद जात होके, औरत के पेशाब से नहेबु? तहरा ई ठीक लागी?
राजू," तहार बूर से मूत न अमृत निकली माई। मरद जात के ई सब त पसंद बा जब औरत खुलके अइसन गंदा गंदा विचार रखेलि।"
बीना हंस पड़ी और राजू को खुद से चिपका ली। और उसके ऊपर भी मिट्टी का लेप डालने लगी। उसके छाती पर, उसके बाजुओं पर, उसके चूतड़ और उसके लण्ड अंड पर। जैसे बचपन में राजू को बीना नहाती थी, वैसे ही राजू उसका लुत्फ उठा रहा था। जब दोनों पूरी तरह सरोबार हो गए, तभी उन्हें किसी के आने की आहट सुनाई दी।
बीना डरते हुए बोली," राजू अब का होई, कोई आ रहल बा?
राजू," तू घबरा मत माई। चिंता मत कर, चुप चाप रह।"
कुछ ही देर में वहाँ, गांव का एक 13 14 साल का बच्चा आ गया, जो अपनी भैंसे चड़ाने आया था। राजू ने उसे देखा तो, उससे बचने का एक उपाय लगाया। उसे ज्यादा कुछ करना नहीं था। दोनों माँ बेटे कीचड़ में लिपे पुते भूत लग रहे थे। राजू और बीना दोनों ने और कीचड़ अपने ऊपर मल ली। वो लड़का अभी कोई बीस बाइस गज की दूरी पर खड़ा था। राजू और बीना दोनों उसकी ओर शोर मचाते हुए दौड़ गए। उन दोनों को इस तरह अपनी ओर आता जब उसने देखा तो, उसे लगा ये दोनों पक्का कोई भूत हैं। वो बेचारा जान बचाकर वहां से चीखते हुए भागा। उसे भागता देख दोनों बहुत खुश हुए और जोर जोर से हंसने लगे। थोड़ी ही देर में वहां उन दोनों के अलावा कोई नहीं था। राजू ने बीना से कहा," उ त गईल अब, तहरा गरम पानी से नहाए के बा ना।"
बीना बेशर्मी में बोली," हां निकाल पिचकारी, अउर गिराबा ना।"
राजू ने बीना को अपने सामने घुटनों पर बिठा दिया। फिर वो बोला," अब तहार मुँह धुआई शुरू करि का ?
बीना," आन्ह हहहह... मूत न जल्दी, ई गरम गरम मूत जब देहिया पर गिरी, त अच्छा लागी राजा।"
राजू," हमार मूत से नहेबु का?
बीना," हाँ, हम तहार मूत से नहाएब राजा बेटा। बचपन में तू हमार गोदी में मूतत रहलु। लेकिन अब हमके आपन मूत से नहा दे, ताकि तहार माई के चेहरा में निखार आ जाये। माथा से लेके हमार पैर तक हर हिस्सा तहार मूत के धार से गिल हो जाए।"
राजू," छिनार साली, ले फिर नहा हमार मूत के धार में।" ऐसा बोल उसने अपने लण्ड से खाड़े पानी की पीली धार बीना के मांग पर गिरी। फिर वो धार बीना के चेहरे पर सीधी तरह गिरने लगी। बीना के चेहरे से गीली मिट्टी झड़कर बहने लगी। वो किसी मूरत की तरह बैठी पेशाब की धार से चेहरा पोछने लगी। बीना सांस रोके पेशाब की धार चेहरे पर ले रही थी, कुछ क्षण बाद उसने सांस लेने के लिए मुँह खोला, तो मूत की मोटी धार उसके खुले मुँह में गिरी। राजू बिना हिले बीना के ऊपर मूत रहा था। बीना के मुंह में गिरते पेशाब को, देख वो हंसने लगा। बीना फिर अपना हाथ आगे कर, पेशाब को चुल्लू में भर अपने मुंह पर रगड़ने लगी। फिर उसने पेशाब की धार के सामने अपनी नंगी चुच्चियाँ आगे कर दी। बीना को इस तरह बेचैन देख राजू उसे ऊपर से नीचे तक भिगोने लगा। बीना के चुचकों से मिट्टी साफ हुई और अब उसकी चुच्ची भी तनी हुई खड़ी थी। बीना बिल्कुल बेशर्म रंडी की भांति अब उस लण्ड से गिरते पेशाब रूपी झड़ने में नहाने लगी। राजू को उसे देखकर बहुत खुशी हो रही थी।
राजू ने उसके चारों ओर घूम घूम के उसे अपने पेशाब से सरोबार कर दिया। बीना को ये ज़िल्लत नहीं बल्कि इज़्ज़त का एक रूप लग रहा था। बीना पूरी तरह तो नहीं पर लगभग राजू के पेशाब में बहुत हद तक गीली हो चुकी थी। उसके देह पर मिट्टी की अब हल्की परत सी रह गयी थी। राजू की मूत की धार भी कमजोर पड़ गयी और बंद होने लगी।
राजू," कइसन रहल ह रानी, हमार मूत में नहाई अउर चाट के?
बीना शरमाते हुए मुँह ढ़क ली। राजू ने फिर कहा," अब हम भी आपन माई के बूर से बहत पेशाब के धार में नहाएब।" बीना शरमा रही थी। राजू जमीन पर पालथी मारकर बैठ गया। बीना उठी और अपना एक पैर उसके कंधे पर रख बोली," अब हमार बूर के बारिश में खुद के भिगा ले राजा बेटा।" ऐसा बोल वो अपनी बूर को हाथों से फैला सीटी की मीठी आवाज़ से मूत की धार बरसाने लगी। बूर के मूत्रद्वार से बही नमकीन पानी की धार राजू के चेहरे, बदन पर गिरने लगी। बीना बिल्कुल बेशर्म रंडी की तरह खड़े खड़े उसके मुंह पर मूत रही थी।राजू इस समय ना सिर्फ मूत का स्वाद ले रहा था, बल्कि उसके कानों में बूर से बहती धार मिसरी घोल रही थी। राजू बीना के बूर का खाड़ा पानी लप लप कर चाट रहा था। राजू ने काफी मूत पी, और उसके बाद उससे अपना मुंह और शरीर पोछने लगा। बीना बोली," बढ़िया लागतआ बेटा की ना ? तहरा सामने आज हम पूरे बेशर्म हो गइल बानि। अइसन त हम तहार नानी नाना के सामने न कइनी।"
राजू बस बीना के छिनारपन का पूरा मज़ा ले रहा था। राजू अपनी मातृ मूत्र का सेवन गौ मूत्र की पवित्रता के जैसे ही कर रहा था। बीना ने आज तक किसी के मुंह में नहीं मूता था। राजू अब तक बीना के मूत से आधा साफ हो चुका था। बीना भी कुछ देर मूत कर वापिस खड़ी हो गयी। राजू बीना की बूर अभी तक लप लप कर चाट रहा था। बीना राजू के सर में हाथ फेर बोली," छोड़अ दअ।"
राजू उसके ओर देख बूर चूमते हुए मुस्कुराया," छोड़अ दे तनि।"
बीना बोली," चल अब नदी में नहा लेत बानि। ऐसे पहिले कोई आ जाये। अउर हम पैदल न चलब, तहार गोदी में जाएब।" वो शैतानी मुस्कान देते हुए बोली।
राजू ने बीना की गाँड़ के नीचे अपने दोनों मजबूत हाथ लगा, उसे गोद में उठा लिया।
फिर राजू बीना को गोद में उठा नदी की ओर चल दिया।बीना राजू की बांहों में थी। राजू और वो एक दूसरे को देख रहे थे।
थोड़ी देर में ही दोनों नदी के किनारे पहुंच गए। राजू बीना को गोद में लिए ही नदी में उतर गया। बीना और राजू कुछ ही देर में कमर तक डूबे हुए थे। दोनों सिर्फ एक दूसरे को देखे जा रहे थे। राजू ने बीना को पानी में उतार दिया। और फिर उसके चूचियों पर अपना सर रख दिया। बीना ने उसे अपने सीने में भर लिया। राजू और बीना कुछ देर ऐसे ही पानी में एक दूसरे से चिपके रहे।
बीना," तहरा छाती से लगाबे में पहिले एक माई के सुकून आवत रहल ह, पर अब एक औरत के सुकून मिल रहल बा।"
राजू," माई, अब तहरा चिंता करे के जरूरत नइखे। अब तू हमार बारू।"
बीना," माई न हमके बीना बोल।"
राजू बीना के बदन को सहलाते हुए बोला," बीना, कभू नदी में चुदाई कइलु कि ना?
बीना," न राजा।"
राजू ने बीना को साथ ले पानी में डुबकी लगाई। पानी के नीचे बीना के बाल बादलों की तरह तैरने लगे। राजू ने पानी के नीचे ही बीना के होठों को चूमना शुरू कर दिया। बीना भी चुम्मा का मज़ा ले रही थी। दोनों पानी के अंदर कुछ देर रुके और फिर ऊपर आ गए। दोनों की सांसें उखड़ रही थी। राजू और बीना दोनों हंस रहे थे और सांस के लिए मुँह पूरा खोला हुआ था।
राजू," मज़ा आईल ?
बीना," बहुत बढ़िया, एक बेर फेर चल।" ऐसा बोल दोनों फिर पानी के नीचे चले गए। इस बार राजू ने उसके तैरते चूचियों को पकड़ लिया और फिर जोरदार चुम्बन शुरू हो गया। बीना और राजू के होठों आपस में किसी रबर बैंड की तरह खिंच और सिंकुड़ रहे थे। आपस में पानी के नीचे एक दूसरे को देखते हुए चूमने का आनंद अद्भुत था। कुछ देर बाद फिर वो ऊपर आ गए। बीना राजू के बांहों में समाते हुए बोली," अब चुम्मा त लेलु, हमके अब पानी में चोद भी लअ।"
राजू ने बीना की बूर में पानी के अंदर ही लण्ड घुसा दिया। बीना सिसयाते हुए चुदने लगी। राजू के हाथों में उसके दूध के थन समाए हुए थे। बीना अपने दोनों हाथ राजू के कंधों पर रखी हुई थी। उसने पानी के अंदर अपन्स पैर राजू की कमर पर रख दिये। पानी के उत्प्लावन बल से बीना राजू को बेहद हल्की लग रही थी। बीना और राजू एक बार फिर अपने भ्रष्ट मन में व्यभिचार की रिश्वत खा रहे थे। राजू बीना को कभी चूमता, कभी चूचियाँ मसलता। बीना हालांकि बहुत चुद चुकी थी, पर उसके अंदर की भूखी कामुक शेरनी को और चाहिए था। वो थकी हुई थी,पर अगर वो पानी में नहीं होती तो शायद वो अभी चुदवाती नहीं। पर नदी के धार में चुदवाने का मज़ा ही कुछ अलग था। बीना आंहे भरते हुए, सिसयाते हुए चुद रही थी। बूर में घुसते निकलते लण्ड का आनंद ही कुछ और था। राजू को भी एक अलग एहसास हो रहा था। अंत में राजू ने बीना के बूर में ही निकाल दिया। बीना भी उत्तेजना और उन्माद में चीख उठी। थोड़ी देर बाद दोनों शांत हुए। इसके बाद दोनों नहा के, वापिस झोपड़ी में चले गए और वहां कपड़े और समान इकठ्ठा कर वापस अपने घर की ओर चल दिये। रास्ते में दोनों हाथ में हाथ डाल चल रहे थे। दोनों घर पहुंच सो गए क्योंकि दोनों काफी थक चुके थे।
उनदोनों को घर के अंदर जाते रंजू देख मुस्कुरा रही थी।

रात के एक बजे बंसुरिया उठी, उसका पति गहरी नींद में जोर जोर से खर्राटे मार रहा था। उसे बड़ी जोर से सूसू आयी थी, बंसुरिया दबे पैर चल रही थी। बंसुरिया रात में घर के आंगन में ही बैठ पेशाब कर रही थी। वो पेशाब कर उठ ही रही थी, कि उसे किसी ने पीछे से पकड़ लिया और उसे कमरे में खींच दरवाजा बंद कर दिया। रात के अंधेरे में बंसुरी का मुँह दबा उसे दीवार से लगा दिया। फिर जब वो नजदीक आया तो बंसुरी ने उसकी आंखें देखी। सामने से उसने कहा," चिल्ला मत, हम हईं।"
बंसुरी उसका हाथ मुँह से हटा बोली," अइसे काहे कइलस, बात त भईल रहे न कि रात सबके सुते के बाद हम खुद चल आईब। हम त पेशाब कइके आवते रहनि।"
सामने से वो बोला," तहार इंतज़ार में जगले रहनि। लेकिन तहार पायल के आवाज़ सुनके, ओकर बाद तहार मूत के आवाज़ के सुरसुराहट सुनके मन भईल उठा ली तहरा।"
बंसुरी," अच्छा, सबर नइखे होत का राजा।"
वो बोला," ना, देख ई नाग कइसे फुफकारत बा।" ऐसा बोल उसने अपनी लुंगी उतार दी।"
बंसुरी," तब त नाग के बिल में ढुका के शांत करे के पड़ी।"
ऐसा बोल बंसुरी उसके लण्ड को पकड़ सहलाने लगी। बंसुरी उसके होठ पर होठ रख चुदाई का पहला सुर छेड़ दिया। कुछ ही देर में दोनों एक दूसरे के बदन को टटोल रहे थे। कुछ ही देर में बंसुरी की साड़ी और चोली साया,कच्छी समेत फर्श पर अपनी किस्मत को रो रहे थे। बंसुरी उसके साथ चिपकी हुई,चुम्बनलीन खटिए पर उसके नीचे पसर गयी। वो आदमी उसके स्तनों को मसलते हुए उसकी पनियाई बूर में लण्ड घुसेड़ दिया। बंसुरी ने उसकी कमर पर कैंची बनाई और बूर में लण्ड लेने लगी।
बंसुरी अपने होठ काटते हुए उसे देख रही थी। उसके दोनों हाथ उस मर्द के गले में थे।
मर्द," कइसन बुझाता?
बंसुरी," आह...आ..वइसन जइसे केहू आपन बड़ भाई से चुदाबेली, धरम भैया।"
धरम," भैया न, हम तहार सैंया बानि।"
बंसुरी," हाँ, दिन में भैया रात में सैयां। पिछला उन्नीस साल से त तू, भतार अउर भाई दुनु बारअ। हमके आपन लांड से चोद के, बहिनचोद अऊर बहनोई दुनु हो गइल बारआ।"
धरम," आह....बहिनचोद सुनके, केतना अच्छा बुझाता। हमार प्यारी बहिनिया, बिया हमार सजनिया।"
बीना," चढ़के हमार ऊपर आजा, भैया राजा बजायी बंसुरिया के बाजा।"
धरमदेव," आज भी तहरा, ई गीत याद बा।"
बंसुरी उसके गाँड़ पर हथेली से जोर लगाते हुए बोली," काहे न याद रही, उ होली के दिन रहे, जब तू भांग पीके हमके घर के पाँछे, खटाल में चोद देलु। हम केतना भी तहसे रुके कहनी, पर रउआ सुनबे न कइनी।"
धरम," अच्छा, माने तहरा उ पसंद न आईल रहे। सारा दिन घर में घघरा अउर चोली में मटक मटक के चलत रहलु। गाँड़ अउर चुच्ची झलकात रहलु, हमके देखके। जब खुद न्योता देबु, त भंडारा होबे करि ना। वइसे भी हम नशा में रहनि उ दिन।"
बंसुरी," भंडारा त तू खूब कइलु। लेकिन नशा में तू उ दिन रहलु ना, अउर बाकी दिन त सब होश हवास में कइलु।"
धरमदेव उसके बाल पकड़ बोला," अच्छा, अउर बाद में के कहत रहल कि, भैया हमके तहरा से प्यार हो गइल ह। हमके तहार मेहरू बने के मन बा, छिनार साली।"
बंसुरी," भैया हम मात्र अट्ठारह साल के रहनि उ घड़ी। लेकिन तू त हमार बड़ भाई रहलु। हमके समझावे के बजाय, तू हमके मौका मिलते चोद देत रहलु।"
धरम," समझदारी के काम कइनी, तहार बियाह इँहा करवा देनी। ताकि हम तहरा जब भी मौका लागे चोद दी। तहार पति भी एक दम पियक्कड़ रहल, ओकरा तहार चिंता कहां रही।"
बीना," प्यार त तू हमरा खूब करलु, ओकरे नतीजा बा कि मधु तहार बेटी अउर भांजी दुनु बा। अब तहार बेटी अठारह के हो गइल।"
धरम उसको चूमते हुए बोला," बिल्कुल तहरा जइसन लागत हिया। अइसने नाक, गाल, ठोर, केश, वइसन ही चाल।"
बंसुरी उसके धक्कों से हिलते हुए बोली," हाँ, भैया ओकर आँखिया अउर कान तहरे जइसन बा। हम तहार धन्यवाद करे चाहेनि, अगर तू हमके पेट से न कइने रहतु, त लोग हमके बांझ बुझत रहतनि। भाई अउर बहिन के अइसन प्यार भी हो सकेला ई शायद ही केहू अउर जानी।"
धरमदेव," होत बिया बंसुरी, भाई बहिन के बीच ई खूब होता।"
तभी दोनों अपनी चरमसुख की ओर अग्रसर हो चुके थे। कुछ ही देर में बंसुरी की बूर में लण्ड का पानी लावे की तरह फूटा। बंसुरी धर्मदेव के साथ ही झड़ गयी। कुछ देर बाद बंसुरी धर्मदेव की बांहों में नंगी लेटी हुई थी। वो उसके छाती को सहला रही थी। धरमदेव बीड़ी फूंक रहा था।
बंसुरी," धरम भैया, अब रउवा जल्दी झड़ जावेलु। पहिने त हमके दु बेर झड़वा के फेर झड़त रहलु।"
धरमदेव," बहुत चिंता बा, खेत सब गिरवी पड़ल बा। फसल होत नइखे, होत त दाम नइखे मिलत। कर्जा ढेरी हो गइल ह। उमर भी हो गइल बा।"
बंसुरी," रउवा चिंता न करि सब ठीक हो जायीं। राजू सब सम्भाल ली।"
धरमदेव," उ का करि। जाने कउन पढ़ाई करेला। गुड्डी के साथे उ....।"
बंसुरी," का? उ अउर गुड्डी।
धरमदेव," दुनु पटना में चोदम चुदाई करत रहलन स। एहीसे गुड्डी के जल्दी बियाह कर देनी।"
बंसुरी," उ भी आपन बहिन के चोद लेलस। तहार हमार नक्शा कदम पर। ऐमे उ दुनु के का गलती बा?
दोनों की नज़रे मिली तो बंसुरी बोली," अइसे का देखेलु? ई त होवे के रहे। दुनु उहे उमर में बारन जउन में हम अउर तू रहनि।"
धरमदेव," हम दुनु कभू पकड़ल ना गइनी।"
बंसुरी," हां, ई बात त बा। दुनिया के नज़र से ई सब बचल रहे तबे ठीक होता।"
धरमदेव," अच्छा छोड़, मधु पर ध्यान रख उ कहूँ बहक न जाये। अइसन सुंदर चेहरा अउर देह वाली लइकी के सब बहकाके मज़ा लेत बारे।"
बंसुरी," हमके त तहरे आँखिया में मधु खातिर हवस दिखत रहल, दुपहरिया में जब उ बिना ओढ़नी के झाड़ू लगावत रहल। हम देखनि तहराके तू ओकर चुच्ची निहारत रहलु।" बोलके वो हंसी।
धरमदेव," अच्छा, तू देखलु। सच में उ बहुत सुंदर नौजवान युवती बिया।"
बंसुरी," बहिन के त ना छोड़लु, अब बुझातअ बेटियो के ना छोड़बु। पहिले बहिनचोद बनलु अब बेटीचोद बनबु।"
दोनों हंसी मजाक करते हुए रात बिताई और सुबह बंसुरी अपने कपड़े पहन वापिस सोने चली गयी।
धरमदेव भी सो गया और अगले दिन वापिस गांव चला गया।
धरमदेव के आने के बाद राजू और बीना ऐसे बर्ताव कर रहे थे जैसे उनके बीच कुछ हुआ ही नहीं। धरमदेव ने एक दिन राजू से पूछा कि अपनी जमीन कैसे छुड़ाई जाए। राजू ने धरमदेव से कहा कि उसका सेशन कॉलेज में लेट चल रहा है। तो वो लोग परीक्षा जल्दी ले रहे हैं, उसकी ग्रेजुएशन अगले दो महीने में खत्म हो जाएगी, फिर वो भी काम शुरू करेगा और नौकरी की तैयारी करेगा। तीन साल का कोर्स डेढ़ साल में खत्म हो जाएगा। राजू ने दरअसल झूठ बोला था। वो दरअसल कुछ गैर कानूनी काम में संलिप्त हो चुका था। वो पढ़ाई में तेज तो था ही, उसने जुगाड़ से दो साल के पेपर जल्दी दे दिए थे। वो बीच बीच में पटना जाता रहता था। उधर बीना के साथ उसके नाजायज व्यभिचारिक संबंध हर दिन परवान चढ़ रहे थे। दोनों को जब भी मौका मिलता, तुरंत चुदाई में संलिप्त हो जाते। बीना के चेहरे पर अब चमक और खिलखिलाहट बरकरार रहती थी। राजू से अपनी कामज्वर का इलाज कराने में उसे बहुत मज़ा आता था। वो दोनों धरमदेव के जाने के बाद बिल्कुल निर्वस्त्र हो जाते, खासतौर से बीना को तो राजू अपने हाथों से नंगी करता था। फिर बीना घर का सारा काम वैसे ही करती थी। दोनों साथ में नहाते थे और बिल्कुल बेफिक्र हो रतिक्रिया किया करते थे। बीना उसे खूब काजू बादाम खिलाती, उसने राजू को शिलाजीत भी देनी शुरू कर दी। राजू अब हमेशा उसकी चुदाई के लिए बेताब,बेचैन और तैयार रहता था। बीना उसके साथ खुश रहती थी। ऐसी प्यासी औरत को चुदवाने के लिए हट्टा कट्टा नौजवान मिले तो उसका मस्ती में रहना लाजमी है। उसका त्रियाचरित्र अब साफ दिख रहा था। धीरे धीरे उनकी हिम्मत बढ़ने लगी। अब तो वो रातों को धरमदेव को सोता छोड़, राजू के साथ सोती थी। सुबह उठकर वापस अपनी जगह पर लेट जाती।
एक दिन राजू और बीना आपस में चुदाई कर रहे थे तो राजू बोला," बीना, अब हम तहरा केहू के साथ बांटे न चाहेनि। तहार ई गुलाबी ओठ, ई गोर गाल, ई कजरारी आँखिया, ई भरल जवानी सब हमरा चाही अउर खाली हमार होखे के चाही।"
बीना," सब तोरे बा राजा, ई कुल खजाना तू लूटबे करेलु।"
राजू ने कुछ जवाब नहीं दिया लेकिन वो अब इस घर पर पूरा नियंत्रण चाहता था। वो पैसे तो बनाना शुरू कर दिया था, लेकिन काफी नहीं था। वो जानता था कि घर पर नियंत्रण के लिए उसे अपनी गिरवी जमीन छुड़ानी होगी। वो अपने पिता के विरुद्ध नहीं था, लेकिन उसे बीना चाहिए थी। इसी खिसियाहट में उसका अपने बाप से झगड़ा भी होता था। बीना सब समझती थी, इसलिए वो बार बार बीच बचाव करती थी। इसी बीच दिन बीत रहे थे और फागुन आ चुका था। एक दिन धरमदेव ने इसी बीच बचाव में बीना को थप्पड़ मार दिया। राजू को उस दिन अपने बाप पर बहुत गुस्सा आया। बीना पर हाथ उठाना उसे बर्दाश्त नहीं हुआ। बीना ने बड़ी मुश्किल से राजू को रोका। बीना ने राजू का गुस्सा शांत करने के लिए उसे, गुड्डी के ससुराल जाने को बोला। गुड्डी को गए साथ आठ महीने हो चुके थे। राजू बीना से अलग नहीं होना चाहता था, पर वो गुड्डी से भी बहुत दिन से नहीं मिला था। गुड्डी से मिलने वो अगले दिन उसके ससुराल की ओर निकल पड़ा।
कहानी वापस राजू और गुड्डी दोनों भाई बहन के पास पहुंच गई है अब और मजा आएगा अब देखते हैं राजू गुड्डी को उसके पति के सामने ही लेता है या खेतों में या फिर कुछ और तरीके से वासना की प्यास बुझता है गुड्डी भी तड़प रही है दोनों का मिलन क्या गुल खिलाता है देखते है,
 
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वासना की आंधी भाग-३

सुबह पौ फटने को थी। चिड़ियों की चहचहाट धीरे धीरे सुनाई दे रही थी। बारिश अब काफी हल्की हो चली थी। बीना पर अभी भी बूर में लण्ड लिए, राजू के ऊपर लेटी थी। दोनों आपस में चिपके हुए थे। उनके जननांगों से मदन रस चू रहा था। उनके बदन आपस में गर्मी खा पसीने से तर थे। बीना सर से लेकर पैर तक पसीने से गीली थी। उसके बदन से पसीने की बदबू आ रही थी। राजू के लिए वो कामोत्तेजक गंध थी। बीना की चूंचियों, गाँड़ और जांघों के बीच काफी पसीना था। राजू बीना के गाँड़ की दरार में उंगली से छेड़ते हुए, उसके गाँड़ के छेद को कुरेद रहा था। बीना अपनी चुच्ची के चूचक राजू के मुँह में घुसाए हुए थी। राजू के मुंह में उसके भूरे चुचकों की कड़ी चुसाई हो रही थी। दोनों ने रातभर नींद की एक झपकी भी नहीं ली थी। इस समय दोनों की ही आंखों में एक दूसरे के प्रति वासना के अतिरिक्त कुछ नहीं दिख रहा था। दोनों ही कामक्रीड़ा में लीन, एक दूसरे को कामसुख देने और लेने में व्यस्त थे। राजू ने लण्ड को पूरा अंदर तक ठूस रखा था। इतने में बीना मस्ती में बोली," आह...आह...भर रतिया से चुदा रहल बानि, मन नइखे भरत। आ...बेटा माई के चोदे में मज़ा आ रहल हअ। तहार लांड त पूरा भीतरी बच्चेदानी से टकड़ा रहल बा। जइसे तू चोद रहल बारू, हमके गाभिन कर देबु।"
राजू," का कहलु?"
बीना," अइसे सच में एतना चुदायिब त गाभिन हो जाएब।"
राजू," आह..उफ़्फ़फ़ सोच के, सुने में एतना बढ़िया लागतअ। त जब सच में तू हमसे गाभिन हो जइबू, त अउर मज़ा आई।"
बीना," मज़ा काहे?"
राजू," एतना भोली मत बन, बेटा से चुदेबु अउर ओकर वीर्य जाई त तू अपने बेटा के बच्चा के माई बन जइबू।"
बीना," अरे हाँ, सच......उफ़्फ़फ़ अपने बेटा के बच्चा जनब। हाय, ओह, सशहह... हमार त अभी महीना भी आवेला, हे भगवान सच बच्चा त सच में ठहर सकेला।"
राजू," आह...केतना मज़ा आयी, जब तू हमार बच्चा के माई बनबु।
बीना," सारा रतिया में तू तीन बेर बूर में लांड के पानी निकाल देले बारू। ई उमर में बच्चा ठहरी, त लोग का कहिअनस।" बीना मुँह में उंगली दबाते हुए बोली।
राजू बीना के गाँड़ पर चपत लगा बोला," अगर तू पेट से हो जइबू, त हम तहार पूरा ध्यान रखब। वइसे भी तू अभी तहार उमर पैंतीस से ज्यादा ना बुझाता, औरतिया सब एतना उम्र में माई बनते बिया, तू भी बन जइबू त गलत नइखे।"
बीना," सच में हम पैंतीस के लागेनि?
राजू बीना की बूर में झटका मारते हुए बोला," अउर न त का रानी। तहरा देख के त केहू फिसल सकेला।"
बीना," हाँ, शायद एहीसे उ दिन स्वास्थ्य केंद्र में उ हरामी हमरा ऊपर हाथ फेरत रहल हअ।"
राजू ने बीना से पूछा," के माई?
बीना," उ हरामी कम्पाउण्डर जउन दवाई देता ऊंहा। उहे छेड़त रहल।"
राजू," हमार माई हमार जान के छेड़लस उ कुकूर मादरचोद। ओकरा त छोड़ब ना।" राजू गुस्से में था।
बीना समझ गयी कि उसने माहौल बिगाड़ने वाली बात बोल दी और राजू का चुदाई से मन हट सकता है। इसलिए उसने राजू के साथ गंदी और कामुक बातें करने लगी। वो बोली," राजू, लेकिन अगर तू हमके पेट से कर देबु, त हम अउर तू चुदाई न कर पाइब। फेर त बूर ना मिली चोदे खातिर। तहरा जइसन रसिया के त बूर जइसन फूल हमेशा चाही, चोदे खातिर।" वो हँसते हुए बोली।
राजू उसकी हंसी देख बोला," बीना ओकर बाद हम कली के रस लेब।" ऐसा बोल उसने बीना की भूरी सिंकुड़ी गाँड़ के छेद पर उंगली का दबाव बढ़ाया और उंगली उसकी गाँड़ में उतार दी। बीना का मुँह खुला रह गया और उसने कहा," मतलब तू छोड़बु न, जब आगे बूर ना मिली त पाँछे से गाँड़ में लांड देबु।"
राजू," का तू लांड के बिना रह पाईबु?
बीना बेशर्मी से बोली," हम लांड के बिना न रह पाइब।"
राजू," ई बोलत तू केतना कामुक,भोली अउर सुंदर लागेलु। तहरा जइसन चुदक्कड़ माल सबके न मिलेला।"
बीना," तहरा त मिल गईल ना, त ई चुदक्कड़ माल के भरपूर इस्तेमाल करआ। तहरा बच्चा चाही त बच्चा भी देब। अगर भगवान के इहे मर्ज़ी बा त इहे सही।"
राजू बीना की गाँड़ में उंगली करते हुए उसे चोदने लगा। इस बार दोनों पहले से ज्यादा उत्साह में चुदाई कर रहे थे। राजू और बीना एक दूसरे को प्यार और वासना में डूबो देना चाहते थे। थोड़ी देर बाद राजू ने एक बार फिर बीना की बूर में अपना वीर्य बहा दिया।

कुछ देर बाद बीना राजू के गोद में नग्नावस्था में बैठ उसके कंधों पर सर रख सो गई थी। पूरी रात मेहनत कर दोनों थक चुके थे। राजू को इतना मज़ा तो अपनी बहन गुड्डी के साथ भी नहीं आया था। दोनों आधे घंटे तक सोए हुए थे, उसके बाद बीना की नींद खुली। दोनों एक साथ जगे। बीना की मखमली त्वचा, सूरज की रोशनी पड़ने से चमक रही थी। उसके बाल बिखड़े हुए थे। बीना के सूजे होठ अपने चूसे जाने की कहानी बयान कर रहे थे। उसकी चूचियाँ और चूचक पर राजू के काटने के निशान स्पष्ट थे। बूर चुदाई से पूरी तरह खुली हुई थी। अत्यधिक लण्ड बूर में घुसने से वो काफी खुल चुकी थी। कुल मिलाकर वो बीती रात वासना की आंधी में उड़ी ऐसी शाख लग रही थी जिसे अपने लुट जाने का गम नहीं फक्र था।
राजू ने बीना के बाल संवारते हुए कहा," बीना, सारा रात हमनी ई मचान पर हवस के खेल खेलनी जा। लेकिन अब भोर हो गइल। ई रात हम जिनगी भर याद राखब। मन नइखे होत, तहरा से अलग होखि।"
बीना राजू के आंखों में देख शरमा गयी, फिर उससे कसके चिपकते हुए बोली," राजा, हम त चाहत बानि कि केहू हमरा प्यार से राखे, खूब प्यार करे, अउर बदला में हम भी ओकरा आपन प्यार से खुश कर दी। तहार बाबूजी के साथ, अब हमके वइसन खुशी अउर प्यार न मिलेला। अब ई प्यार केकरा पर लुटाई। पूरा तन बदन में काम वासना लहू संग दउड़ रहल बा। हम निर्लज्ज ना हईं, पर चुदाई के पियास से मजबूर बानि। हम तहरा अंखिया में सारा रात खुद के माई के साथ साथ एगो रंडी जइसन छिनारपन करत कामुक स्त्री के भी देखनी ह। पर औरत के इहे रूप होखेला। समाज के बंधन के डर जब न रहेला, अउर रात के अनहार में शराफत के चोला उतार के, हर स्त्री रिसत बूर में लांड घुसाके सुकून चाहेलि। स्त्री जब लंगटी रहेली अउर वासना उफान मारेला, त उ खुद मरद के सामने बिछ जात बिया। उ समय मरद के धरम बा कि उ ओ स्त्री के भोगके सुख देवे। उ समय न ओकर जात पूछल जाता, न धरम, न उमर, न रिश्ता देखल जाता, न रंग रूप, न काया। उ समय बस स्त्री और पुरुष धर्म निभावल जाता। काल रात जउन भईल, उमे हमके भी मज़ा आईल। अब जब मौका मिली तब हमनी ई करब जा। लेकिन होशियारी से।"
फिर बीना मचान से उतरने लगी। कुछ ही देर में वो नीचे उतर गई। राजू भी उसके साथ नीचे उतर आया। नीचे बारिश की वजह से काफी मिट्टी गीली हो चुकी थी।
बीना," राजू, हमार साड़ी साया सब त गन्ना के खेतवा में पड़ल होई। उ त खराब हो गइल होई। अब इँहा से मड़ई तक असही लंगटी जाय के पड़ी।"
राजू," तू लंगटी ज्यादा सुंदर लागेलु।"
बीना," हट बेशरम कहीं के। तहरा शरम नइखे आवत कि माई से अइसे बोलेलु।"
राजू," अब काहे के शरम तू माई से ज्यादा रखैल लागेलु। रंडी साली सारा रात तहरा चोदनी तब लाज कहाँ रहल हअ।"
बीना बोली," हमार लाज त बूर के पानी साथे बह गईल। अब तहरा मुँह से गाली सुनके भी लाज न आवेला।"
राजू," अगर कपड़ा चाही त, ऊपर घाघरा चोली बा। ले आई का?
बीना," ना उ गंदा हो जाई। हमनी असही लंगटे चलल जाई।" बीना समझ रही थी कि राजू उसे वो जबरदस्ती पहनना चाहता था। बीना आगे चल रही थी और पीछे राजू था। राजू की गंदी नज़र और सामने बीना का नंगा जिस्म। राजू की नज़र उसकी गाँड़ पर थी। तभी बीना का पैर फिसल गया और वो नीचे गिर गयी। बीना पूरी खेतों के बीच कीचड़ में गिर पड़ी। वो पूरी तरह कीचड़ में सन गयी। राजू उसे देख हँसने लगा। और उसे उठाने आगे बढ़ा तो बीना ने उसे कीचड़ में गिरा दिया। अब दोनों माँ बेटे कीचड़ में गिर चुके थे। बीना हंसते हुए राजू के बदन पर कीचड़ मलने लगी। राजू नीचे गिरा था और बीना उसके ऊपर चढ़ बैठी थी। राजू के सीने और मुँह पर बीना कीचड़ मल रही थी। राजू उसे रोक नहीं रहा था, बल्कि उसे उसकी मर्जी करने दे रहा था। उसे बीना की स्वच्छंद हंसी, बेबाक अंदाज़ बेहद अच्छा लग रहा था।
तभी बीना उसे देख बोली," अइसे का घूरत हउ, तहरा कीचड़ बढ़िया लागेला का?
राजू," न रानी, तहरा एतना खुश एतना हँसत कभू न देखनि। केतना मासूम और प्यारा चेहरा बा।"
बीना राजू को अपने चूंचियों पर लगा बोली," हाँ, राजू हमार ई रूप केहू न देखले, देख जब औरत खुश होखेलि त आपन मरद के साथ केतना मज़ा लूटेली। का हम तहरा अइसे बढ़िया लागेलि?
राजू बीना को नीचे गिरा बोला," हाँ, रानी तू सच में बहुत मस्त लागेलु। ई तहार हँसी, ई बिल्कुल रंडी जइसन व्यवहार, हम तहरा अइसे देख बहुत खुश बानि। तहरा जइसन शरीफ औरत त हर आदमी के चाही। तहरा पर प्यार आ रहल बा।"
बीना उसे धक्का दे दूसरी ओर गिरा दी और उठकर भागने लगी, फिर बोली," प्यार आ रहल बा, त मैय्या चोदबु मादरचोद कहीं के?
राजू उठा," कहाँ भागत बारू रंडी साली। तू माई के साथ साथ औरत भी त बारू। तहरा इंहे पटक के चोदब, रुक कुत्ती।"
बीना आगे आगे भाग रही थी। उसकी चूंचियाँ पूरी तरह ऊपर उठती और फिर नीचे गिरती। आपस में टकराती और फिर विपरीत दिशा में भाग जाती। उसके चूचक कड़े और तने हुए थे। बीना नंग धरंग किसी बच्ची की तरह एक खेत से दूसरे खेत भाग रही थी। राजू उसके पीछे उसकी हिलती बड़ी बड़ी नंगी गाँड़ को आपस में टकराते और ऊपर नीचे होते साफ देख रहा था। उसके गीले मिट्टी में सने हुए बाल, भी उछाल मार रहे थे। राजू का लण्ड कड़क हो गया। राजू चाहता तो उसे आसानी से पकड़ लेता, पर उसने जानबूझकर बीना को अपने आगे दौड़ने दिया। राजू उसे गंदी गंदी गालियां देते हुए भगा रहा था। राजू," रुक जा छिनरी, तोर माई के चोदब, साली कहाँ भागत बारू, रात भर चुदेलु, त अब काहे भागत बारू रंडी के बेटी, मादरचोद।"
बीना आगे आगे भाग रही थी वो एक एक गाली स्पष्ट सुन रही थी, पर उसके बदले भागते हुए वो बोली," दम ह त पकड़ ल, अउर फेर चोदे लिहा। खाली मुँह न चलावा, तनि हाथ पैर भी चलावा।" ऐसा बोल उसने जुबान बाहर निकाल राजू को चिढ़ाया।
राजू," साली, पकड़ब न, त लांड से भी चोदब, अउर मुँह से भी।"
बीना हंसते हुए," उ कइसे?
राजू," बूर में लांड घुसाके, खूब गंदा गंदा गरियाईब।"
बीना," अच्छा, लेकिन पहिले पकड़ त ले।"
थोड़ी दूर दौड़ने के बाद, बीना की सांस उखड़ने लगी और वो धीमी हो गयी। राजू ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और गोद में उठा लिया।
राजू," अब बोल?
बीना," अब का अब त जे करे के बा उ तहरे करे के बा। जउन हुकुम करबा उ हमके करे के पड़ि।"
राजू," चल कुत्ती बन।"
बीना झट से कुत्ती बन गयी और अपनी गाँड़ उठा ली। राजू ने उसकी बूर को टटोला तो हैरान रह गया वो अभी भी पूरी गीली थी। राजू बोला," हरामजादी तू कइसन रंडी बारू, अभी चुदवाके भी बूर एतना गीला बा। उफ़्फ़फ़....हाय ई बूर बा कि झड़ना, लांड खातिर बरस रहल बिया। कउनु रंडी के भी एतना गीला न होत होई, बुरचोदी साली।"
बीना," उफ़्फ़फ़... राजू राजाजी रउवा एकदम सही बानि। हम सच में कउनु जन्म में छिनार होखब। जाने कइसन बूर ह कि शांत नइखे होत। जेतना चुदाबेलि ओतना बहेलि। हम सच में ई कामज्वर से परेशान बानि। रातभर चुदाबे के बावजूद काम वासना शांत न होखेला। हमके गरियाके चोदअ, खूब गंदा गंदा गाली दअ। जब तू गरियावेलु न त सुने में बड़ा अच्छा लागतआ। आवा अउर आपन माई के चोदअ।"
राजू," छिनार के जनमल रंडी बारू तू। ई बूर के एतना बुरा हाल कर देब कि, जब तहरा बच्चा होई त दरद न होई। साली हरामिन कहीं के।" ऐसा बोल उसने लण्ड बीना की बूर में मक्खन की तरह उतार दिया। बीना, सिसयाते हुए बोली," आराम से डाल न मादरचोद। तहार बहुत बड़ा बा।" राजू ने जवाब में बीना की गाँड़ पर चटाक चटाक पांच छः थप्पड़ बरसा दिए और बोला," रंडी तू आपन औकात में रह, तहरा अब ई कीचड़ में कुतिया जइसन पेलब। इँहा तू केतना भी किकियाबे केहू ना सुनी अउर हमसे रहम के कउनु उम्मीद ना करिहा।" राजू तेज धक्के लगाने लगा। बीना भी अब कमर पीछे लेके बूर में लण्ड ले रही थी।बीना को बहुत मज़ा आ रहा था। राजू बीना को मस्ती में देख उत्तेजित हो रहा था, उसने बीना की गाँड़ में उंगली घुसा दी। बीना की गाँड़ का छेद सख्त पर मुलायम था।
बीना उसकी ओर देख बोली," आह... ऊई गाँड़ में उंगली काहे कर देलु। तनि दरद होता पर अच्छा लागत बा।"
राजू उसके बाल पकड़ते हुए बोला," अभी त खाली उंगली कइनी ह, बाद में लांड घुसाइब त अउर मज़ा आई।"
बीना," राजू, हमके गाली दअ, हम सच कहेनी कि चुदाई में औरत के खूब जलील करे के चाहि। ऐसे तहरा मज़ा आयी, अउर हमके अउर मज़ा आयी। चुदाई में जब तक गाली न होखेला, तब तक कामसुख अधूरा बा।"
राजू," लेकिन माई औरत के ही काहे गाली देवे के चाही, अउर उहे काहे हमेशा गारी सुनी।"
बीना," काहे कि गाली के केंद्र बिंदु हमेशा औरत ही होखेलि। चाहे केतना भी शरीफ आदमी काहे न होता, उ कभू न कभू मन में जरूर गाली दी। मादरचोद, बहिनचोद, बेटीचोद सब त माँ, बहन, बेटी के ऊपर ही बा। रंडी, छिनार, रखैल ई सब से औरत के ही संबोधित करल जाता। मरद सब आपन भड़ास निकाले खातिर हम औरत के इस्तेमाल करेले। लेकिन सच बात त ई बा कि हमके ई गंदा गंदा गारी सुने में अच्छा लागेला। सोचत बानि कि ई सब होत बा तभी न लोग अइसन गाली देता। अभी तू भी आपन माई के चोद रहल बारू। तू अभी मादरचोद ही कहाबे। मादरचोद बने में केतना मज़ा अउर सुकून बा, ई बस तू ही जान सकेलु। मगर सबलोग जब आमतौर पर तहरा मादरचोद कहियाँ त तहरा अच्छा ना लागी। वसही त हम औरतन भी बानि। जब चुदाई होता त गंदा गंदा बतियाबे से काम सुख बढ़ जाता। एहि से गाली गलौज के ई उत्तम जगह बा।"
राजू हंसते हुए कहता है," वाह....अइसन रंडी माई त सबके मिले। लागतआ तहरा माई के भी ओकर बेटा चोदके तहरा पैदा कइने होई। साली तहरा त अंग अंग में वासना और छिनारपन बा। तू सच में हरामजादी बारू, तहरा चोद चोद के तहार औकात देखाएब। साली आज तू आपन बेटा से ई रंगरेली मनात बारू, हमके लागत बा तू आपन बाप से भी चुदवात होई। तहार बुर के खुजली मिटा देब बीनू।"
बीना ने मुड़के राजू को देखा, जैसे कुछ याद आया हो, पर फिर बोली," आह... हाँ हमसे सम्भालल न जाता ई जवानी। ई देहिया हमेशा मजबूत मरद के लालसा में कामुक रहेला। अभी त ई शुरुआत ह, देखत हईं आपन ई रंडी बीनू के केतना चोदबु।"
राजू बीना की गाँड़ में उंगली कर उसकी गाँड़ की सख्ती का अनुमान लगा रहा था। बीना उसके गंदे इरादों से थोड़ी भी वाकिफ नहीं थी। लेकिन राजू भी आज बीना की गाँड़ नहीं खोलना चाहता था। उसने सोचा जिस दिन ये साली मेरे दिए हुए घाघरा चोली पहनेगी उसी दिन उसकी गाँड़ चोदेगा।
राजू ने बीना को पलट दिया और उसके दोनों चूचियों के ऊपर कीचड़ मल दिया। बीना अभी भी बूर में लण्ड लिए पेलवा रही थी। राजू उसके पूरे जिस्म पर कीचड़ मल रहा था और बीना बस हंस रही थी। कुछ ही देर में राजू और बीना एक दूसरे से चिपक कर ताबड़तोड़ चुदाई करने लगे। उनका अंत निश्चित था, राजू ने लण्ड बीना की बूर में ही खाली कर दिया। बीना एक बार फिर चुद चुकी थी और चरमसुख प्राप्त कर चुकी थी। बीना घुटनों के बल बैठ गयी और अपने ऊपर और कीचड़ मलने लगी।
राजू," माई ई का करेलु तू?
बीना," राजू ई माटी बढ़िया माटी ह। एकरा देह पर लगाबे से चमड़ी गोरा, मुलायम अउर उमे निखार आवेला। एहीसे हम ई माटी आपन देहिया में लगात बानि।"
राजू," अच्छा रुक हम तहरा ई माटी से पूरा पोत देत बानि। तू माटी के मूरत लगबु।" ऐसा बोल राजू ने बीना के ऊपर खूब गीली मिट्टी उठा उठाकर डालने लगा। बीना कुछ ही देर में पूरी तरह मिट्टी से ढक चुकी थी। राजू उसे किसी औसधि की तरह जो लेप रहा था। फिर राजू ने बीना के दोनों चूतड़ों और उनकी दरार में मिट्टी लेपने लगा। फिर बीना की बूर और आसपास के क्षेत्र पर। बीना के कमर और पेट पर भी वो खूब कसके मिट्टी लगा रहा था। बीना की जाँघे भी अंदर और बाहर से मिट्टी की परत से ढक गयी। बीना की चूचियाँ भी राजू के हाथों अपने ऊपर मिट्टी लिपवाने को बेताब थी। राजू ने उसके ऊपर और चूचकों पर बड़े आराम से लगाया। इसके बाद उसने बीना के गाल, माथा और गर्दन पर भी लेप लगाया। बीना बिल्कुल किसी मिट्टी की मूरत जैसी लग रही थी। बीना बोली," राजू हम एक बात त भूल गइनी?
राजू," का?
बीना," एकरा त गरम पानी से धोवे के चाही, अब गरम पानी कइसे आयी इँहा?"
राजू," ई बात तहरा पहिले बताबे के चाही रानी। अब का करबू?"
बीना," एगो उपाय बा?"
राजू," का, बोल?
बीना," तहार गरम गरम पेशाब, हमके उसे नहा दे।"
राजू," का तू सच में ई करे चाहेलु बीना?
बीना," अउर कउनु उपाय नइखे। आपन माई के मदद न करबू।"
राजू," काहे ना, तहरा आपन मूत से नहात देखके मज़ा आ जाइ। लेकिन ओकर बाद हम भी असही तहार मूत से नहाएब।"
बीना," लेकिन तू मरद जात होके, औरत के पेशाब से नहेबु? तहरा ई ठीक लागी?
राजू," तहार बूर से मूत न अमृत निकली माई। मरद जात के ई सब त पसंद बा जब औरत खुलके अइसन गंदा गंदा विचार रखेलि।"
बीना हंस पड़ी और राजू को खुद से चिपका ली। और उसके ऊपर भी मिट्टी का लेप डालने लगी। उसके छाती पर, उसके बाजुओं पर, उसके चूतड़ और उसके लण्ड अंड पर। जैसे बचपन में राजू को बीना नहाती थी, वैसे ही राजू उसका लुत्फ उठा रहा था। जब दोनों पूरी तरह सरोबार हो गए, तभी उन्हें किसी के आने की आहट सुनाई दी।
बीना डरते हुए बोली," राजू अब का होई, कोई आ रहल बा?
राजू," तू घबरा मत माई। चिंता मत कर, चुप चाप रह।"
कुछ ही देर में वहाँ, गांव का एक 13 14 साल का बच्चा आ गया, जो अपनी भैंसे चड़ाने आया था। राजू ने उसे देखा तो, उससे बचने का एक उपाय लगाया। उसे ज्यादा कुछ करना नहीं था। दोनों माँ बेटे कीचड़ में लिपे पुते भूत लग रहे थे। राजू और बीना दोनों ने और कीचड़ अपने ऊपर मल ली। वो लड़का अभी कोई बीस बाइस गज की दूरी पर खड़ा था। राजू और बीना दोनों उसकी ओर शोर मचाते हुए दौड़ गए। उन दोनों को इस तरह अपनी ओर आता जब उसने देखा तो, उसे लगा ये दोनों पक्का कोई भूत हैं। वो बेचारा जान बचाकर वहां से चीखते हुए भागा। उसे भागता देख दोनों बहुत खुश हुए और जोर जोर से हंसने लगे। थोड़ी ही देर में वहां उन दोनों के अलावा कोई नहीं था। राजू ने बीना से कहा," उ त गईल अब, तहरा गरम पानी से नहाए के बा ना।"
बीना बेशर्मी में बोली," हां निकाल पिचकारी, अउर गिराबा ना।"
राजू ने बीना को अपने सामने घुटनों पर बिठा दिया। फिर वो बोला," अब तहार मुँह धुआई शुरू करि का ?
बीना," आन्ह हहहह... मूत न जल्दी, ई गरम गरम मूत जब देहिया पर गिरी, त अच्छा लागी राजा।"
राजू," हमार मूत से नहेबु का?
बीना," हाँ, हम तहार मूत से नहाएब राजा बेटा। बचपन में तू हमार गोदी में मूतत रहलु। लेकिन अब हमके आपन मूत से नहा दे, ताकि तहार माई के चेहरा में निखार आ जाये। माथा से लेके हमार पैर तक हर हिस्सा तहार मूत के धार से गिल हो जाए।"
राजू," छिनार साली, ले फिर नहा हमार मूत के धार में।" ऐसा बोल उसने अपने लण्ड से खाड़े पानी की पीली धार बीना के मांग पर गिरी। फिर वो धार बीना के चेहरे पर सीधी तरह गिरने लगी। बीना के चेहरे से गीली मिट्टी झड़कर बहने लगी। वो किसी मूरत की तरह बैठी पेशाब की धार से चेहरा पोछने लगी। बीना सांस रोके पेशाब की धार चेहरे पर ले रही थी, कुछ क्षण बाद उसने सांस लेने के लिए मुँह खोला, तो मूत की मोटी धार उसके खुले मुँह में गिरी। राजू बिना हिले बीना के ऊपर मूत रहा था। बीना के मुंह में गिरते पेशाब को, देख वो हंसने लगा। बीना फिर अपना हाथ आगे कर, पेशाब को चुल्लू में भर अपने मुंह पर रगड़ने लगी। फिर उसने पेशाब की धार के सामने अपनी नंगी चुच्चियाँ आगे कर दी। बीना को इस तरह बेचैन देख राजू उसे ऊपर से नीचे तक भिगोने लगा। बीना के चुचकों से मिट्टी साफ हुई और अब उसकी चुच्ची भी तनी हुई खड़ी थी। बीना बिल्कुल बेशर्म रंडी की भांति अब उस लण्ड से गिरते पेशाब रूपी झड़ने में नहाने लगी। राजू को उसे देखकर बहुत खुशी हो रही थी।
राजू ने उसके चारों ओर घूम घूम के उसे अपने पेशाब से सरोबार कर दिया। बीना को ये ज़िल्लत नहीं बल्कि इज़्ज़त का एक रूप लग रहा था। बीना पूरी तरह तो नहीं पर लगभग राजू के पेशाब में बहुत हद तक गीली हो चुकी थी। उसके देह पर मिट्टी की अब हल्की परत सी रह गयी थी। राजू की मूत की धार भी कमजोर पड़ गयी और बंद होने लगी।
राजू," कइसन रहल ह रानी, हमार मूत में नहाई अउर चाट के?
बीना शरमाते हुए मुँह ढ़क ली। राजू ने फिर कहा," अब हम भी आपन माई के बूर से बहत पेशाब के धार में नहाएब।" बीना शरमा रही थी। राजू जमीन पर पालथी मारकर बैठ गया। बीना उठी और अपना एक पैर उसके कंधे पर रख बोली," अब हमार बूर के बारिश में खुद के भिगा ले राजा बेटा।" ऐसा बोल वो अपनी बूर को हाथों से फैला सीटी की मीठी आवाज़ से मूत की धार बरसाने लगी। बूर के मूत्रद्वार से बही नमकीन पानी की धार राजू के चेहरे, बदन पर गिरने लगी। बीना बिल्कुल बेशर्म रंडी की तरह खड़े खड़े उसके मुंह पर मूत रही थी।राजू इस समय ना सिर्फ मूत का स्वाद ले रहा था, बल्कि उसके कानों में बूर से बहती धार मिसरी घोल रही थी। राजू बीना के बूर का खाड़ा पानी लप लप कर चाट रहा था। राजू ने काफी मूत पी, और उसके बाद उससे अपना मुंह और शरीर पोछने लगा। बीना बोली," बढ़िया लागतआ बेटा की ना ? तहरा सामने आज हम पूरे बेशर्म हो गइल बानि। अइसन त हम तहार नानी नाना के सामने न कइनी।"
राजू बस बीना के छिनारपन का पूरा मज़ा ले रहा था। राजू अपनी मातृ मूत्र का सेवन गौ मूत्र की पवित्रता के जैसे ही कर रहा था। बीना ने आज तक किसी के मुंह में नहीं मूता था। राजू अब तक बीना के मूत से आधा साफ हो चुका था। बीना भी कुछ देर मूत कर वापिस खड़ी हो गयी। राजू बीना की बूर अभी तक लप लप कर चाट रहा था। बीना राजू के सर में हाथ फेर बोली," छोड़अ दअ।"
राजू उसके ओर देख बूर चूमते हुए मुस्कुराया," छोड़अ दे तनि।"
बीना बोली," चल अब नदी में नहा लेत बानि। ऐसे पहिले कोई आ जाये। अउर हम पैदल न चलब, तहार गोदी में जाएब।" वो शैतानी मुस्कान देते हुए बोली।
राजू ने बीना की गाँड़ के नीचे अपने दोनों मजबूत हाथ लगा, उसे गोद में उठा लिया।
फिर राजू बीना को गोद में उठा नदी की ओर चल दिया।बीना राजू की बांहों में थी। राजू और वो एक दूसरे को देख रहे थे।
थोड़ी देर में ही दोनों नदी के किनारे पहुंच गए। राजू बीना को गोद में लिए ही नदी में उतर गया। बीना और राजू कुछ ही देर में कमर तक डूबे हुए थे। दोनों सिर्फ एक दूसरे को देखे जा रहे थे। राजू ने बीना को पानी में उतार दिया। और फिर उसके चूचियों पर अपना सर रख दिया। बीना ने उसे अपने सीने में भर लिया। राजू और बीना कुछ देर ऐसे ही पानी में एक दूसरे से चिपके रहे।
बीना," तहरा छाती से लगाबे में पहिले एक माई के सुकून आवत रहल ह, पर अब एक औरत के सुकून मिल रहल बा।"
राजू," माई, अब तहरा चिंता करे के जरूरत नइखे। अब तू हमार बारू।"
बीना," माई न हमके बीना बोल।"
राजू बीना के बदन को सहलाते हुए बोला," बीना, कभू नदी में चुदाई कइलु कि ना?
बीना," न राजा।"
राजू ने बीना को साथ ले पानी में डुबकी लगाई। पानी के नीचे बीना के बाल बादलों की तरह तैरने लगे। राजू ने पानी के नीचे ही बीना के होठों को चूमना शुरू कर दिया। बीना भी चुम्मा का मज़ा ले रही थी। दोनों पानी के अंदर कुछ देर रुके और फिर ऊपर आ गए। दोनों की सांसें उखड़ रही थी। राजू और बीना दोनों हंस रहे थे और सांस के लिए मुँह पूरा खोला हुआ था।
राजू," मज़ा आईल ?
बीना," बहुत बढ़िया, एक बेर फेर चल।" ऐसा बोल दोनों फिर पानी के नीचे चले गए। इस बार राजू ने उसके तैरते चूचियों को पकड़ लिया और फिर जोरदार चुम्बन शुरू हो गया। बीना और राजू के होठों आपस में किसी रबर बैंड की तरह खिंच और सिंकुड़ रहे थे। आपस में पानी के नीचे एक दूसरे को देखते हुए चूमने का आनंद अद्भुत था। कुछ देर बाद फिर वो ऊपर आ गए। बीना राजू के बांहों में समाते हुए बोली," अब चुम्मा त लेलु, हमके अब पानी में चोद भी लअ।"
राजू ने बीना की बूर में पानी के अंदर ही लण्ड घुसा दिया। बीना सिसयाते हुए चुदने लगी। राजू के हाथों में उसके दूध के थन समाए हुए थे। बीना अपने दोनों हाथ राजू के कंधों पर रखी हुई थी। उसने पानी के अंदर अपन्स पैर राजू की कमर पर रख दिये। पानी के उत्प्लावन बल से बीना राजू को बेहद हल्की लग रही थी। बीना और राजू एक बार फिर अपने भ्रष्ट मन में व्यभिचार की रिश्वत खा रहे थे। राजू बीना को कभी चूमता, कभी चूचियाँ मसलता। बीना हालांकि बहुत चुद चुकी थी, पर उसके अंदर की भूखी कामुक शेरनी को और चाहिए था। वो थकी हुई थी,पर अगर वो पानी में नहीं होती तो शायद वो अभी चुदवाती नहीं। पर नदी के धार में चुदवाने का मज़ा ही कुछ अलग था। बीना आंहे भरते हुए, सिसयाते हुए चुद रही थी। बूर में घुसते निकलते लण्ड का आनंद ही कुछ और था। राजू को भी एक अलग एहसास हो रहा था। अंत में राजू ने बीना के बूर में ही निकाल दिया। बीना भी उत्तेजना और उन्माद में चीख उठी। थोड़ी देर बाद दोनों शांत हुए। इसके बाद दोनों नहा के, वापिस झोपड़ी में चले गए और वहां कपड़े और समान इकठ्ठा कर वापस अपने घर की ओर चल दिये। रास्ते में दोनों हाथ में हाथ डाल चल रहे थे। दोनों घर पहुंच सो गए क्योंकि दोनों काफी थक चुके थे।
उनदोनों को घर के अंदर जाते रंजू देख मुस्कुरा रही थी।

रात के एक बजे बंसुरिया उठी, उसका पति गहरी नींद में जोर जोर से खर्राटे मार रहा था। उसे बड़ी जोर से सूसू आयी थी, बंसुरिया दबे पैर चल रही थी। बंसुरिया रात में घर के आंगन में ही बैठ पेशाब कर रही थी। वो पेशाब कर उठ ही रही थी, कि उसे किसी ने पीछे से पकड़ लिया और उसे कमरे में खींच दरवाजा बंद कर दिया। रात के अंधेरे में बंसुरी का मुँह दबा उसे दीवार से लगा दिया। फिर जब वो नजदीक आया तो बंसुरी ने उसकी आंखें देखी। सामने से उसने कहा," चिल्ला मत, हम हईं।"
बंसुरी उसका हाथ मुँह से हटा बोली," अइसे काहे कइलस, बात त भईल रहे न कि रात सबके सुते के बाद हम खुद चल आईब। हम त पेशाब कइके आवते रहनि।"
सामने से वो बोला," तहार इंतज़ार में जगले रहनि। लेकिन तहार पायल के आवाज़ सुनके, ओकर बाद तहार मूत के आवाज़ के सुरसुराहट सुनके मन भईल उठा ली तहरा।"
बंसुरी," अच्छा, सबर नइखे होत का राजा।"
वो बोला," ना, देख ई नाग कइसे फुफकारत बा।" ऐसा बोल उसने अपनी लुंगी उतार दी।"
बंसुरी," तब त नाग के बिल में ढुका के शांत करे के पड़ी।"
ऐसा बोल बंसुरी उसके लण्ड को पकड़ सहलाने लगी। बंसुरी उसके होठ पर होठ रख चुदाई का पहला सुर छेड़ दिया। कुछ ही देर में दोनों एक दूसरे के बदन को टटोल रहे थे। कुछ ही देर में बंसुरी की साड़ी और चोली साया,कच्छी समेत फर्श पर अपनी किस्मत को रो रहे थे। बंसुरी उसके साथ चिपकी हुई,चुम्बनलीन खटिए पर उसके नीचे पसर गयी। वो आदमी उसके स्तनों को मसलते हुए उसकी पनियाई बूर में लण्ड घुसेड़ दिया। बंसुरी ने उसकी कमर पर कैंची बनाई और बूर में लण्ड लेने लगी।
बंसुरी अपने होठ काटते हुए उसे देख रही थी। उसके दोनों हाथ उस मर्द के गले में थे।
मर्द," कइसन बुझाता?
बंसुरी," आह...आ..वइसन जइसे केहू आपन बड़ भाई से चुदाबेली, धरम भैया।"
धरम," भैया न, हम तहार सैंया बानि।"
बंसुरी," हाँ, दिन में भैया रात में सैयां। पिछला उन्नीस साल से त तू, भतार अउर भाई दुनु बारअ। हमके आपन लांड से चोद के, बहिनचोद अऊर बहनोई दुनु हो गइल बारआ।"
धरम," आह....बहिनचोद सुनके, केतना अच्छा बुझाता। हमार प्यारी बहिनिया, बिया हमार सजनिया।"
बीना," चढ़के हमार ऊपर आजा, भैया राजा बजायी बंसुरिया के बाजा।"
धरमदेव," आज भी तहरा, ई गीत याद बा।"
बंसुरी उसके गाँड़ पर हथेली से जोर लगाते हुए बोली," काहे न याद रही, उ होली के दिन रहे, जब तू भांग पीके हमके घर के पाँछे, खटाल में चोद देलु। हम केतना भी तहसे रुके कहनी, पर रउआ सुनबे न कइनी।"
धरम," अच्छा, माने तहरा उ पसंद न आईल रहे। सारा दिन घर में घघरा अउर चोली में मटक मटक के चलत रहलु। गाँड़ अउर चुच्ची झलकात रहलु, हमके देखके। जब खुद न्योता देबु, त भंडारा होबे करि ना। वइसे भी हम नशा में रहनि उ दिन।"
बंसुरी," भंडारा त तू खूब कइलु। लेकिन नशा में तू उ दिन रहलु ना, अउर बाकी दिन त सब होश हवास में कइलु।"
धरमदेव उसके बाल पकड़ बोला," अच्छा, अउर बाद में के कहत रहल कि, भैया हमके तहरा से प्यार हो गइल ह। हमके तहार मेहरू बने के मन बा, छिनार साली।"
बंसुरी," भैया हम मात्र अट्ठारह साल के रहनि उ घड़ी। लेकिन तू त हमार बड़ भाई रहलु। हमके समझावे के बजाय, तू हमके मौका मिलते चोद देत रहलु।"
धरम," समझदारी के काम कइनी, तहार बियाह इँहा करवा देनी। ताकि हम तहरा जब भी मौका लागे चोद दी। तहार पति भी एक दम पियक्कड़ रहल, ओकरा तहार चिंता कहां रही।"
बीना," प्यार त तू हमरा खूब करलु, ओकरे नतीजा बा कि मधु तहार बेटी अउर भांजी दुनु बा। अब तहार बेटी अठारह के हो गइल।"
धरम उसको चूमते हुए बोला," बिल्कुल तहरा जइसन लागत हिया। अइसने नाक, गाल, ठोर, केश, वइसन ही चाल।"
बंसुरी उसके धक्कों से हिलते हुए बोली," हाँ, भैया ओकर आँखिया अउर कान तहरे जइसन बा। हम तहार धन्यवाद करे चाहेनि, अगर तू हमके पेट से न कइने रहतु, त लोग हमके बांझ बुझत रहतनि। भाई अउर बहिन के अइसन प्यार भी हो सकेला ई शायद ही केहू अउर जानी।"
धरमदेव," होत बिया बंसुरी, भाई बहिन के बीच ई खूब होता।"
तभी दोनों अपनी चरमसुख की ओर अग्रसर हो चुके थे। कुछ ही देर में बंसुरी की बूर में लण्ड का पानी लावे की तरह फूटा। बंसुरी धर्मदेव के साथ ही झड़ गयी। कुछ देर बाद बंसुरी धर्मदेव की बांहों में नंगी लेटी हुई थी। वो उसके छाती को सहला रही थी। धरमदेव बीड़ी फूंक रहा था।
बंसुरी," धरम भैया, अब रउवा जल्दी झड़ जावेलु। पहिने त हमके दु बेर झड़वा के फेर झड़त रहलु।"
धरमदेव," बहुत चिंता बा, खेत सब गिरवी पड़ल बा। फसल होत नइखे, होत त दाम नइखे मिलत। कर्जा ढेरी हो गइल ह। उमर भी हो गइल बा।"
बंसुरी," रउवा चिंता न करि सब ठीक हो जायीं। राजू सब सम्भाल ली।"
धरमदेव," उ का करि। जाने कउन पढ़ाई करेला। गुड्डी के साथे उ....।"
बंसुरी," का? उ अउर गुड्डी।
धरमदेव," दुनु पटना में चोदम चुदाई करत रहलन स। एहीसे गुड्डी के जल्दी बियाह कर देनी।"
बंसुरी," उ भी आपन बहिन के चोद लेलस। तहार हमार नक्शा कदम पर। ऐमे उ दुनु के का गलती बा?
दोनों की नज़रे मिली तो बंसुरी बोली," अइसे का देखेलु? ई त होवे के रहे। दुनु उहे उमर में बारन जउन में हम अउर तू रहनि।"
धरमदेव," हम दुनु कभू पकड़ल ना गइनी।"
बंसुरी," हां, ई बात त बा। दुनिया के नज़र से ई सब बचल रहे तबे ठीक होता।"
धरमदेव," अच्छा छोड़, मधु पर ध्यान रख उ कहूँ बहक न जाये। अइसन सुंदर चेहरा अउर देह वाली लइकी के सब बहकाके मज़ा लेत बारे।"
बंसुरी," हमके त तहरे आँखिया में मधु खातिर हवस दिखत रहल, दुपहरिया में जब उ बिना ओढ़नी के झाड़ू लगावत रहल। हम देखनि तहराके तू ओकर चुच्ची निहारत रहलु।" बोलके वो हंसी।
धरमदेव," अच्छा, तू देखलु। सच में उ बहुत सुंदर नौजवान युवती बिया।"
बंसुरी," बहिन के त ना छोड़लु, अब बुझातअ बेटियो के ना छोड़बु। पहिले बहिनचोद बनलु अब बेटीचोद बनबु।"
दोनों हंसी मजाक करते हुए रात बिताई और सुबह बंसुरी अपने कपड़े पहन वापिस सोने चली गयी।
धरमदेव भी सो गया और अगले दिन वापिस गांव चला गया।
धरमदेव के आने के बाद राजू और बीना ऐसे बर्ताव कर रहे थे जैसे उनके बीच कुछ हुआ ही नहीं। धरमदेव ने एक दिन राजू से पूछा कि अपनी जमीन कैसे छुड़ाई जाए। राजू ने धरमदेव से कहा कि उसका सेशन कॉलेज में लेट चल रहा है। तो वो लोग परीक्षा जल्दी ले रहे हैं, उसकी ग्रेजुएशन अगले दो महीने में खत्म हो जाएगी, फिर वो भी काम शुरू करेगा और नौकरी की तैयारी करेगा। तीन साल का कोर्स डेढ़ साल में खत्म हो जाएगा। राजू ने दरअसल झूठ बोला था। वो दरअसल कुछ गैर कानूनी काम में संलिप्त हो चुका था। वो पढ़ाई में तेज तो था ही, उसने जुगाड़ से दो साल के पेपर जल्दी दे दिए थे। वो बीच बीच में पटना जाता रहता था। उधर बीना के साथ उसके नाजायज व्यभिचारिक संबंध हर दिन परवान चढ़ रहे थे। दोनों को जब भी मौका मिलता, तुरंत चुदाई में संलिप्त हो जाते। बीना के चेहरे पर अब चमक और खिलखिलाहट बरकरार रहती थी। राजू से अपनी कामज्वर का इलाज कराने में उसे बहुत मज़ा आता था। वो दोनों धरमदेव के जाने के बाद बिल्कुल निर्वस्त्र हो जाते, खासतौर से बीना को तो राजू अपने हाथों से नंगी करता था। फिर बीना घर का सारा काम वैसे ही करती थी। दोनों साथ में नहाते थे और बिल्कुल बेफिक्र हो रतिक्रिया किया करते थे। बीना उसे खूब काजू बादाम खिलाती, उसने राजू को शिलाजीत भी देनी शुरू कर दी। राजू अब हमेशा उसकी चुदाई के लिए बेताब,बेचैन और तैयार रहता था। बीना उसके साथ खुश रहती थी। ऐसी प्यासी औरत को चुदवाने के लिए हट्टा कट्टा नौजवान मिले तो उसका मस्ती में रहना लाजमी है। उसका त्रियाचरित्र अब साफ दिख रहा था। धीरे धीरे उनकी हिम्मत बढ़ने लगी। अब तो वो रातों को धरमदेव को सोता छोड़, राजू के साथ सोती थी। सुबह उठकर वापस अपनी जगह पर लेट जाती।
एक दिन राजू और बीना आपस में चुदाई कर रहे थे तो राजू बोला," बीना, अब हम तहरा केहू के साथ बांटे न चाहेनि। तहार ई गुलाबी ओठ, ई गोर गाल, ई कजरारी आँखिया, ई भरल जवानी सब हमरा चाही अउर खाली हमार होखे के चाही।"
बीना," सब तोरे बा राजा, ई कुल खजाना तू लूटबे करेलु।"
राजू ने कुछ जवाब नहीं दिया लेकिन वो अब इस घर पर पूरा नियंत्रण चाहता था। वो पैसे तो बनाना शुरू कर दिया था, लेकिन काफी नहीं था। वो जानता था कि घर पर नियंत्रण के लिए उसे अपनी गिरवी जमीन छुड़ानी होगी। वो अपने पिता के विरुद्ध नहीं था, लेकिन उसे बीना चाहिए थी। इसी खिसियाहट में उसका अपने बाप से झगड़ा भी होता था। बीना सब समझती थी, इसलिए वो बार बार बीच बचाव करती थी। इसी बीच दिन बीत रहे थे और फागुन आ चुका था। एक दिन धरमदेव ने इसी बीच बचाव में बीना को थप्पड़ मार दिया। राजू को उस दिन अपने बाप पर बहुत गुस्सा आया। बीना पर हाथ उठाना उसे बर्दाश्त नहीं हुआ। बीना ने बड़ी मुश्किल से राजू को रोका। बीना ने राजू का गुस्सा शांत करने के लिए उसे, गुड्डी के ससुराल जाने को बोला। गुड्डी को गए साथ आठ महीने हो चुके थे। राजू बीना से अलग नहीं होना चाहता था, पर वो गुड्डी से भी बहुत दिन से नहीं मिला था। गुड्डी से मिलने वो अगले दिन उसके ससुराल की ओर निकल पड़ा।
❤️❤️❤️❤️ bahut umda aur utasaah se bhari kahani hai bhai
 

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गंदी लड़की भाग-१

गुड्डी की नींद खुली तो, सुबह के दस बज रहे थे। वो राजू के टांगों के नीचे दबी हुई थी। दोनों भाई बहन बिना कपड़ों के नंगे ही बांहों में बांहे डाले एक दूसरे के जिस्म को महसूस करते हुए सो गए थे। गुड्डी ने राजू की ओर प्यार से देखा और मुस्कुराते हुए कल रात की यौनसुख की सुखद यादों को संजो रही थी। राजू ने उसे सुबह पांच बजे तक मज़े से चोदा था या यूं कहे कि गुड्डी चुदवा रही थी। गुड्डी ने खुद की कामुक प्रवृति का नमूना राजू को दिखाया था। गुड्डी राजू के सर को अपने चूचियों से चिपका उसे प्यार देने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। मर्द को चुदाई के बाद औरत की बांहों में बच्चे की तरह सोने में ही असल आनंद आता है। स्त्री को चाहिए अपनी जवानी और कामवासना का स्वाद पुरुष को चखाके, अपनी नंगेपन में डूबे बदन से पुरुष को अपने बच्चे की तरह रखना जिसके साथ वो जब चाहे यौनाचार कर सकते हैं। पुरुष जब थका अपनी महबूबा की बांहों में सोता है, तो ये स्त्री के लिए सुकून, संतुष्टि और गर्व का विषय है। गुड्डी के लिए ये वही क्षण था, अगर उसके चूचियों में दूध होता तो शायद वो उसे पिला भी देती। उसके कड़े चूचक राजू के गालों पर चुभ रहे थे। गुड्डी ने चूचियों की जोर से चूचकों से राजू के चेहरे को छेड़ रही थी। राजू को छेड़ना उसे अच्छा लग रहा था। लेकिन फिर उसे सोता हुआ छोड़ कर वो उठ कर बाथरूम चली गयी। रातभर राजू ने उसे खूब कसके दो बार चोदा था। गुड्डी ने बदन पर गमछा लपेट लिया था। उसे बहुत तेज पेशाब आ रहा था, वो बाथरूम में नाली के पास बैठ गयी और मूतने लगी। बूर से फूटी मूत की मोटी धार, की सुरमई आवाज़ बाथरूम में गूंज रही थी। गुड्डी गर्दन झुकाए अपनी बूर की ओर देखते हुए मूत रही थी। उसे अपनी बूर चुदाई की वजह से सूजी लग रही थी और हल्की जलन भी महसूस हो रही थी। लेकिन रात की रसभरी चुदाई के लिए ये बहुत छोटी कीमत थी। गुड्डी फिर ब्रश करके नहाने लगी। अपने बदन को रातभर मसलवाने के बाद, बदन पर गिरता पानी उसे काफी राहत दे रहा था। उसने अपने अंग अंग को खुशबूदार साबुन से साफ किया, फिर रेशमी बालों को शैम्पू किया। इस समय वो सम्पूर्ण नग्न अवस्था में थी। कुछ देर बाद, वो नहाके बाहर निकली। उसने लाल रंग का सलवार सूट पहन लिया। फिर बालों को गमछे से झटकके सुखाने लगी। बार बार झटकने की आवाज़ से राजू की नींद खुली। उसने देखा गुड्डी सामने ही झुकी हुई बालों को सुखा रही थी। गुड्डी की आधी नंगी चूचियाँ, समीज़ से झांक रही थी। उसको ऐसे देख उसका लण्ड कड़क होने लगा। राजू ने कुछ कहा नहीं बस उसे देख रहा था। कुछ देर बाल सुखाने के बाद, गुड्डी खुले बालों को लहराते हुए, पूजा करने के लिए गयी। उसकी चाल देख राजू खुश था, रातभर की चुदाई से गुड्डी थोड़ा संभल और मटक के चल रही थी। गुड्डी ने भगवान की पूजा की, फिर पूरे घर में अगरबत्ती दिखाई। गुड्डी फिर राजू के पास आई और राजू के सर के पास बैठ उसे उठाने के लिए उसके माथे पर हाथ सहलाया।
फिर राजू के कानों में बोली," राजू.. राजू... उठ ना देख केतना दिन चढ़ गईल, उठआ, आज घर के ढेर समान लेबे के बा। फेर एडमिशन कराबे खातिर, कोचिंग भी जाय के पड़ी।"
राजू उसके सर को पकड़ के अपने करीब लाया, " उठत बानि, तनि रुक तहार चांद जइसन चेहरा देखके दिन त बना ली।"
गुड्डी उसके और करीब आयी और बोली," खाली चांद देखबु, कि पंखुड़ी जइसन ओठ के चूस के मुंह भी मीठा करबू।" ऐसा बोलके उसने अपने होठों को उसके होठों पर रख दिया। गुड्डी ने राजू को खुला निमंत्रण दे दिया था। राजू गुड्डी के होठों को लगभग मुंह में भरके चूस रहा था, गुड्डी उसका भरपूर सहयोग कर रही थी। वो राजू के नटखट जीभ को, अपने मुंह में प्रवेश करने के लिए होठ को गोल खोल दी। राजू ने अपनी जीभ उसके मुंह में डाल दी। गुड्डी भी अपनी जीभ उससे लड़ाने लगी। दोनों एक दूसरे की जीभ से जीभ लड़ा रहे थे। एक क्षण को अलग होते, और फिर चुम्बन में लीन हो जाते। जब राजू ने मन भर गुड्डी के होठों का रस पान कर लिया, तो राजू बोला," अबसे रोज सुबह असही चुम्मा देके जगावल करआ। मज़ा आ जाइ रानी।"
गुड्डी उसकी आँखों में देख बोली," ए राजा भैया, बूर फेर रिसिया रहल बा। हमार बूर के इलाज करआ। खाली चुम्मा से काम ना चली।"
राजू ने उसकी प्यासी आंखों में देखा," गुड्डी दीदी, अभी ढेर देर हो गइल बा, आज काम भी बहुत बा। अभी बर्दाश्त करआ। रात में तहार इलाज करब बढ़िया से। तू खाना बना ले अउर हम तैयार होत बानि।"
गुड्डी उसकी बात मान उठ कर खाना बनाने लगी। राजू बाथरूम में नहाने चला गया। कुछ देर बाद राजू बाहर नहा के निकला और तैयार हो गया। उधर गुड्डी भी खाना बना चुकी थी। उसने राजू के लिए खाना निकाला और खुद भी उसके साथ खाना खाने लगी। दोनों भाई बहन खाना खाके तैयार होकर बाहर निकल गए। राजू ने गुड्डी का एडमिशन एक कोचिंग सेंटर में करवा दिया, जिसका समय सुबह 9 से दोपहर 1 बजे तक था। राजू की कोचिंग का समय सुबह 10 से शाम पांच बजे तक रहता था। इन सब में कोई एक डेढ़ घंटा खत्म हो चुका था। गुड्डी ने देखा कोचिंग की बाकी लड़कियां जीन्स टॉप में आई हुई थी। सलवार समीज़ वाली एक दो लड़कियां थी। कुछ तो फ्रॉक में भी आई थी। उसे ये देख लगा कि वो थोड़ी पिछड़ी हुई है, लेकिन उसने राजू से कुछ नहीं कहा। कुछ देर बाद दोनों वहां से मार्केट की ओर निकल पड़े, जहां उन्होंने घर के कुछ जरूरी सामान खरीदे जैसे बाल्टी, गद्दे, किचन का कुछ सामान, तकिया, चादर, शैम्पू, साबुन, इत्यादि। गुड्डी और राजू बाजार में समान उठाये रास्ते से निकल रहे थे, तो गुड्डी की नज़र लड़कियों के अंतः वस्त्रों की दुकान पर पड़ी। उसने राजू से बोला," राजू हमके ब्रा पैंटी भी खरीदवा दआ ना।"
राजू ने उसकी ओर मुस्कुराके देखा, बिना देर किए उसे पास की दुकान में ले गया।
सेल्सगर्ल बोली," जी, बताइए क्या दिखाऊँ?
राजू ने गुड्डी से कहा," बोल ना तहरा का चाही, बताबा एकराके।
गुड्डी लजाते हुए बोली," हमके लाज आवअतिया। तू बोल दे ना।"
राजू," लाज काहे के समान लेवे खातिर आईल बानि, त का समान चाही बोले के पड़ी।"
गुड्डी धीरे से बोली," ब्रा पैंटी।"
सेल्सगर्ल बोली," क्या साइज चाहिए आपको?
गुड्डी," ब्रा 34C पैंटी 80 cm।
सेल्सगर्ल बोली," आइए दूसरी तरफ आइए।"
गुड्डी और राजू उधर को चल दिये। वहां सेल्सगर्ल ने उनको अच्छी अच्छी ब्रा दिखानी शुरू की।
गुड्डी बोली," डेली यूज़ के लिए दिखाइए।"
सेल्सगर्ल ने फिर उस तरह की ब्रा दिखाई। राजू ने गुड्डी को पसंद करने को कहा। गुड्डी लजाते हुए दो ब्रा पसंद की। फिर उसने गुड्डी को पैंटी भी दिखाई। गुड्डी ने नार्मल पैंटी सेलेक्ट की थी, राजू ने वो अलग रखवा दिए और अपने पसंद की हाफ पैंटी दिलवाई। राजू को ये गुड्डी के लिए चुनने में बहुत मज़ा आ रहा था। फिर सेल्सगर्ल ने गुड्डी को ट्राय करने के लिए कहा। गुड्डी ने मना किया तो, राजू ने उसे ट्राय करने को कहा। गुड्डी राजू की बात ना टालते हुए, वो ब्रा पैंटी लेके ट्रायल रूम में गयी। गुड्डी ने अंदर अपने सारे कपड़े उतारके ब्रा और पैंटी डालके देखा वो सच में बहुत खूबसूरत लग रही थी। गुड्डी ने हड़बड़ी में दरवाज़ा खुला ही छोड़ दिया था, राजू ने ये देख लिया था। उसने इधर उधर देखा और अंदर घुस गया। अंदर गुड्डी को सिर्फ ब्रा पैंटी में देख उसकी आँखें चौंधिया गयी। गुड्डी उस नीले रंग की ब्रा पैंटी सेक्स बम लग रही थी। राजू को देख वो एक पल को घबराई फिर खुद को छुपाते हुए बोली," राजू तू अंदर कइसे आइलु।"
राजू उसे अपनी बांहों में भरते हुए बोला," तू दरवाज़ा खुला छोड़ देले रहलु, अब लजाई के नाटक करत बारू।"
गुड्डी बोली," कोई देख ली राजू, तू बाहर जो।"
राजू," कोई आई त कह देब कि तू हमार होय वाला मेहरारू बारू।"
गुड्डी," अच्छा बड़ बहिन के मेहरू बनाके पेश करबू का।"
राजू," कउनु गलत कहा रहल बानि का, राते मेहरू जइसन दुनु एक्के बिछौना पर सुतल रहनि की ना।"
गुड्डी मुस्कुराई और बोली," अच्छा बताबा मेहरू पर कइसन बुझात बिया, ई ब्रा पैंटी हो?
राजू," अरे रानी, असल बात त इ बा कि, तू ई ब्रा पैंटी पहन के एकर शोभा बढ़ा रहल बारू। तहरा बदन पर मस्त लगत बिया।"
फिर गुड्डी उससे अलग हुई और राजू को सामने खड़ी होके अच्छे से ब्रा पैंटी में कैद अपनी जवानी दिखाने लगी। उसकी चूचियाँ 34 C की ब्रा में मस्त उठी हुई और गोल लग रही थी। गुड्डी की चूचियों की घाटी ऊपर से नज़र आ रही थी, जो कि ब्रा के बीचों बीच नज़र आ रही थी। उसका पेट और कमर सही आकार में और समतल था। गुड्डी की ढोढ़ी के तीन चार इंच नीचे उसकी पैंटी की लाइन नज़र आ रही थी। गुड्डी की बूर की दरार उस चुस्त पैंटी के ऊपर से स्पष्ट हो रही थी। उसकी जाँघे पूरी तरह नंगी थी। राजू ने गुड्डी को फिर पलटने का इशारा किया। गुड्डी बेझिझक पीछे मुड़ी और राजू को अपनी नंगी पीठ और उभरे गाँड़ का मस्त नज़ारा परोस दिया। राजू उसे निहारे जा रहा था। गुड्डी बोली," राजू कइसन लागत बानि हम बोलआ ना?
राजू ने कुछ नहीं कहा और उसके करीब आकर उसकी पैंटी में हथेली घुसा दी। राजू उसकी गाँड़ को दबोच दबोच के मसल रहा था। इतने में उसने गुड्डी को हाथ उठाके रखने के लिए बोला और उसकी कांख को सूंघने लगा। गुड्डी बोली," राजू कोई आ जाई त, छोड़ दे ना। घर चल।"
राजू ने बोला," अइसन बवाल लाग रहल बारू कि, मन होता कि तहरा इँहे पटकके चोद दी।"
गुड्डी," तहरा से चुदाबे में हमरो मज़ा आवेला। लेकिन इँहा तनि सैयम रखा। अभी त शिलाजीत भी लेवे के बा। तब मज़ा अउर दूना हो जाई।"
राजू उसकी पीठ को चूमते हुए बोला," तू शिलाजीत से कम थोड़े बारू। देख लांड एकदम टनटना गईल बा। सुन ना एकरा बाद तहरा मेकअप वाला दुकान भी ले जाईब। ऊंहा लिपस्टिक, क्रीम, सब ले लिहा। अउर गर्दा लगबु।"
गुड्डी," राजू तहार लांड चुभ रहल बा। हमरो पर खुमारी छा रहल बा। चल अब इँहा से जल्दी से मेकअप वाला दुकान से सामान खरीदवा दआ। फेर देख तहार ई दीदी कइसे तहके मज़ा दी।"
राजू ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला। जब वो बाहर निकला तो वो सेल्सगर्ल उसके सामने ही थी। वो मुस्कुराते हुए पूछी," सर सब परफेक्ट है ना, साइज, फिटिंग।"
राजू ने उसकी ओर देख सिर्फ अपना सर हिलाके सहमति दी। गुड्डी ने अंदर कपड़े पहन लिए और दूसरी ट्राई भी नही की। दोनों ने वहां पेमेंट की और गुड्डी को श्रृंगार की दुकान पर ले गए। वहां गुड्डी ने राजू की सहमति से लिपस्टिक, मश्क़रा, क्रीम, पाउडर, इत्यादि ले ली। दोनों को खरीददारी करते हुए शाम के तीन बज चुके थे। गुड्डी अभी और भी चीज़ें ले रही थी, तब तक राजू ने अरुण को फोन लगाया और उससे से शिलाजीत मिलने की दुकान के बारे में पूछ लिया। राजू ने गुड्डी को फिर वहां से घर पर छोड़ा और बोला कि खाना बनाके वो तैयार हो जाये। वो एक घंटे में वापिस आएगा। गुड्डी समझ गयी थी कि वो कहां जा रहा है और तैयार होने से उसका मतलब क्या है। राजू के जाते ही गुड्डी ने पहले तो सारा सामान रखा। फिर खाना चढ़ा के, घर का सारा सामान व्यवस्थित किया। जो नए समान खरीद के लायी थी, उनको भी इस्तेमाल किया। फिर खाना तैयार करके, खुद फ्रेश हुई और तैयार होने लगी।
राजू एक घंटे बाद घर पहुंचा, और दरवाज़ा खटखटाया। गुड्डी ने दरवाज़ा खोला तो, राजू ने बिना उसकी ओर देखे अंदर आकर शिलाजीत की शीशी कमरे में रखने गया। उसे रखके जब वापिस आया तो देखा, गुड्डी वहीं सलवार सूट में खड़ी थी। उसने लिपस्टिक, मश्क़रा, काजल और पाउडर इत्यादि लगाके खुद को तैयार किया हुआ था। गुड्डी को इस तरह तैयार देख राजू उसके करीब आया और बोला," कमाल लग रहल बारू, एतना खूबसूरत त तू कभू ना लागलु।"
गुड्डी शर्माते हुए बोली," जबसे तू हमरा से मिलन कइलु, तबसे निखार आईल बाटे। हमार जवानी, हमार अंग अंग खिलके महकेला। राजू ई जोवन, ई सुंदरता सब तहरा खातिर बा, हमार छोट भाई खातिर। हम तहार हो गइल बानि हमेशा खातिर। तू हमार राजा अउर हम तहार रानी बानि। अब राजा खातिर त रानी के कमाल लगही पड़ी।"
राजू गुड्डी को अपनी बांहों में भर लिया, गुड्डी खुद को उसकी बांहों में समेट रही थी। राजू उसे लेकर धीरे धीरे बिस्तर की ओर बढ़ने लगा, गुड्डी उसके संग संग चल रही थी। दोनों बिस्तर के करीब आये तो राजू खुद बैठा और गुड्डी को बगल में बिठा दिया। दोनों एक दूसरे को निहार रहे थे। अगले ही पल गुड्डी उठ के राजू की दांयी जांघ पर बैठ गयी। राजू ने इशारे से पूछा," ई का ?
गुड्डी," रानी के असल जगह राजा के गोद में होखेला। इहे हमार असली आसन बा राजू राजाजी।"ऐसा बोलके उसने राजू को अपने बांहों का हार पहना दिया।
राजू," रानी के का कर्तव्य होखेला, जब उ राजा के गोद में बइठल रहेली ?
गुड्डी शरारती मुस्कान लिए बोली," राजा के खूब सारा प्यार करेके। राजा के हर इच्छा पूरा करेके। रउवा कहीं ना हम सब पूरा करब राजाजी।"
राजू उसके गालों को सहलाते हुए बोला," हमके आपन सीना से लगावा।" गुड्डी ने बिना एक पल गंवाए उसको अपने चूचियों से लगा लिया।
राजू बोला," अईसे ना।"
गुड्डी," फेर कइसे।"
राजू," गुड्डी रानी दीदी, पहिले जउन ब्रा पैंटी लेलु बाजार से, उ पहिन के देखावा।"
गुड्डी बोली," नीला वाला कि कत्थई वाला?
राजू," कत्थई वाला।"
गुड्डी मुस्कुराई और उसकी गोद से उठ गई, और अपनी समीज़ खोल दी। उसने वही ब्रा पहन रखी थी। फिर उसने सलवार की डोरी राजू को पकड़ा दी और नाड़ा खींचने को बोली। राजू ने उसका नाड़ा खींच दिया। अगले ही पल, उसकी सलवार पैरों में गिर गयी। गुड्डी ने बेझिझक उसे पैरों से निकाल दिया। अब वो सिर्फ ब्रा पैंटी में राजू के सामने मौजूद थी।
राजू उसे देखने लगा, गुड्डी लजा कम और मुस्कुरा ज्यादा रही थी। राजू ने गुड्डी को सर से लेकर पैर की उंगलियों तक निहारा।
गुड्डी उससे बोली," राजाजी कइसन लागत बानि हम?
राजू बोला," तहरा पता रहे कि हम तहरा ई ब्रा पैंटी में देखे चाहेनि, जउन तू पहिले से पहन के तैयार रहलु, वइसे तू एकदम बेजोड़ लाग रहल बारू।" फिर राजू ने उसे पीछे मुड़ने का इशारा किया। गुड्डी पीछे घूम गयी उसकी गाँड़ से पैंटी चिपकी हुई गाँड़ की आकार साफ दिखा रही थी। राजू ने उसकी गाँड़ देख बोला," तहार गाँड़ एक नंबर बुझात बा। का बढ़िया से उभरल बा, जब तू चलत बारू ना रानी तहार गाँड़ हिल हिल के, हमार दिल के घायल करेला।"
गुड्डी उसके करीब आयी और बोली," एतना बढ़िया बुझावेला का तहरा हमार गाँड़।" ऐसा बोल वो अपनी गाँड़ राजू के सामने कर, हल्के से हिला दी। राजू ने उसकी गाँड़ पर सटासट चार पांच चपत लगा दिए।
राजू बोला," हमरा गंदी लड़की पसंद बा।"
गुड्डी बोली," अच्छा राजू, तहरा अच्छी लइकी ना, गंदी लइकी चाही?
राजू बोला," हां, तू गंदी लइकी बनबू ना?
गुड्डी," हां, तहरा खातिर हम कुछ भी कर सकेनि। लेकिन गंदी लइकी कइसे बनल जाला?
राजू बोला," हम तहरा फुल ट्रेनिंग देब रानी। गंदी लइकी के सब गुण सिखा देब।"
राजू गुड्डी की नंगी पीठ सहलाते हुए बोला," वइसे तू बिना ब्रा पैंटी के अउर खूबसूरत लागबु।"ऐसा बोल उसने गुड्डी की ब्रा की क्लिप खोल दी, जिससे दोनों स्ट्रैप्स खुलकर छिटक गए। गुड्डी उसकी ओर आश्चर्य से देखी क्योंकि सब अचानक हुआ था। वो अपनी ब्रा आगे से संभाल कर चूचियों से उतरने से रोक रखी थी। राजू शैतानी हंसी हँस रहा था।
गुड्डी बोली," राजाजी, अइसे लंगटे करबू का?
राजू बोला," गंदी लइकी सब त खुद लंगटे होके, आके गोदिया में बैठेली स।"
गुड्डी ने फिर पैंटी उतार दी और ब्रा भी फिर राजू के पास अपने हाथों से चूचियों और बूर को ढक उसके बिल्कुल सामने खड़ी हो गयी। फिर अचानक राजू के गोद में बैठ गयी। राजू अपनी बड़ी बहन को बेशर्मी करते हुए देख खुश था। राजू ने उसके दोनों हाथ अलग कर दिए और बोला," गंदी लइकी सब खुलके मस्ती करेली। तनियो ना लजावेली। अब इँहा घर के अंदर तू हमार बारू। बहन भी अउर हमार जानेमन भी रानी। बोल तू का बने चाहत बारू?
गुड्डी वासनामयी आंखों से राजू की बातों का जवाब देते हुए बोली," हम तहार गंदी लइकी बने चाहेनि।"
राजू गुड्डी के चूचियों का मर्दन करते हुए बोला," हम जउन भी कहब, हमार बात मानबु ना।"
गुड्डी बोली," सि.... सी .... आह... राजू राजाजी तू कहबू त हम जान भी दे देब। सी..SSS..सी....आह... रउवा जउन कहब अब अंधभक्त जइसन मानब। "
राजू बोला," रानी जान देबे के बात मत कर। अभी त हम तहरा साथ ढंग से चुदाई भी ना कइनी ह।"
गुड्डी," त करआ ना, के रोके वाला बा तहरा इँहा। तहरा जइसन गंदी लइकी चाही हम वइसन बनके दिखाईब।" राजू ने उसके बाल पकड़ बोला," मुँह खोल।
गुड्डी ने आ..आ.. करके मुंह खोला राजू ने उसके मुंह में थूक दिया। राजू बोला," पी जो एकरा।" गुड्डी राजू के थूक को निगल गयी। राजू ने दुबारा थूका तो गुड्डी ने जीभ निकाल के थूक के लौंदे को लिया। गुड्डी की गंदी लड़की बनने की शुरुवात हो चुकी थी।
राजू ने बोला," शाबाश बहुत बढ़िया, रानी।"
गुड्डी ने उसके थूक को मुंह में लिया और मुंह में फिराके निगल गयी। राजू ने गुड्डी को फिर गोद से उठा बिस्तर पर पटक दिया। गुड्डी अपनी चूचियाँ मसलते हुए, अपनी बूर की झलक राजू को साफ साफ दिखा रही थी।
गुड्डी बोली," राजू गंदी लइकी के गंदा गंदा गाली भी देवे के।"
राजू हंसा बोला," हां रण्डी साली, तहरा जइसन कुत्ती के खाली बूर में लांड चाही। छिनार साली, तनिको लजात नइखे छोट भाई के लांड खातिर लंगटे बिछाउना पर पड़ल बारू।"
गुड्डी की बूर उसकी गालियां सुन के रिसने लगी थी। वो ये भी जान गई थी कि आज की चुदाई कुछ अलग होनेवाली है।
गुड्डी अपनी गीली बूर खोलके राजू को ललचा रही थी, वो बोली," राजाजी, बूर के इलाज करबू ना, देख ना फेर केतना पानी चूता।" राजू ने गुड्डी की बूर पर हथेली रखी और उसके हाथ पूरे गीले हो गए। गुड्डी की बूर उसके हाथ के एहसास से मचल रही थी। राजू ने महसूस किया कि उसकी बूर दहक रही थी। राजू ने फिर अपनी कमीज उतारी और फिर अपनी पैंट। राजू ने फिर अपनी जांघिया खोल दी और गुड्डी को अपना चौड़ा खड़ा लण्ड दिखाया। गुड्डी और राजू आंखों ही आंखों में बात कर रहे थे। गुड्डी जैसे प्यासी आंखों से लण्ड की फरमाइश कर रही थी। राजू बिस्तर पर चढ़ा और गुड्डी के मुंह के करीब आकर बोला," ले लौड़ा, एकरा लॉलीपाप जइसन चूस।" अब गुड्डी एक आज्ञाकारी कामुक महिला की तरह राजू के लण्ड पर झपट पड़ी। उसका सुपाड़ा अब गुड्डी के जीभ की सहलाहट महसूस कर रहा था। गुड्डी की जीभ सुपाड़े के छेद से खिलवाड़ कर रही थी। राजू एक हाथ से गुड्डी की बूर सहला रहा था और दूसरे से गुड्डी के बालों को अपनी मुट्ठी में भींच रखा था। गुड्डी उसका लण्ड अपने बांये हाथ से पकड़े हुए कभी अपने होंठों पर लिपस्टिक की तरह रगड़ती तो कभी सुपाड़े को मुंह में लेके भरपूर चूसती। राजू को बहुत आनंद मिल रहा था। वो गुड्डी के गाल सहलाते हुए बोला," वाह रानी, लौड़ा चूसे में बड़ा मन लागेला ना। केतना मन से चूसत बारू। असही चूस... "
गुड्डी उसकी ओर देख मुंह में लण्ड लिए ही मुस्कुरा पड़ी। फिर लण्ड मुंह से निकाल बोली," एतना सुंदर लॉलीपाप मिली त चुसबे करब राजा।" राजू ने उसके चूचियों को छेड़ते हुए कहा," तहार आम भी चूसे वाला बा, पर ससुरा एमे रस नइखे।" गुड्डी बोली," त बूर के नमकीन रस पी ल। मज़ा आई।"
राजू गुड्डी के बूर को मसलके बोला," चल ना रानी, तू हमार लौड़ा चूस, अउर हम तहार बूर के।"
गुड्डी अनजान बनते हुए बोली," उ कइसे होई, एक के त झुके के पड़ी ना?
राजू ने उसके सर पर टपली मारी और बोला," तू असही लेट हम तहार मुँह में लौड़ा देके तहार ऊपर बूर पर मुंह लगाके चुसब।"
गुड्डी बोली," राजाजी, आई ना त देर कउन बात के। रानी के ई नया तरीका से चोदाबे में बड़ा मजा आयी। हमरा चुदाई अउर यौनाचार के हर पाठ के प्रैक्टिकल करे के बा।"
राजू गुड्डी के मुँह पर लण्ड डालके, खुद उसके नीचे उसकी बूर की ओर लेट गया। और उसकी बूर चूसने लगा।अब दोनों भाई बहन एक दूसरे के गुप्तांगों के साथ मुख मैथुन का आनंद ले रहे थे। राजू गुड्डी की रिसती गीली बूर को चटखारे लेके चाट रहा था। उसकी जुबान कुत्ते की तरह चल रही थी, जो बहते नाले से पानी पीता है। बूर का नमकीन स्वाद, राजू के प्यासे होठों को तृप्त कर रहा था। आखिर किसको अपनी सगी बहन की बूर चाटने को मिलती है। दोनों एक दूसरे में लीन हो चुके थे। उधर गुड्डी लण्ड को हर संभव प्रयास से अलग एहसास देना चाहती थी। पूरे कमरे में चपर चपर की आवाज़ गूंज रही थी। शायद काल भी इन दोनों का कामुक मिलन को देखने ठहर गया था। राजू गुड्डी की बूर चाटे जा रहा था। उसकी बूर की पत्तियां खोलके, राजू अंदर अपनी जीभ डालके चूस रहा था।
राजू बूर के दाने को रगड़ते हुए बोला," बूर अपने आप में एकदम बेमिसाल चीज़ होखेला। दुनु जांघ के बीच में ढुकल रहेला, पर हर कोई के लांड एहि में डाले के बा। एहि से संसार के हर प्राणी आवेला। मर्द के वासना और वंश दुनु के एहि जा समाधान मिलेला। ई रिसत बूर एकदम कमाल बा रानी, हमार त पियास भी मिटावेला।"
गुड्डी राजू का लण्ड को थूक से चपोरते हुए बोली," जेतना मर्द पियासल रहेला बूर खातिर ना, उसे कहीं ज्यादा औरत पियासल रहेला लांड खातिर। बस लाज शरम से हम सब कुछ बोलेली ना। जहिया से तहार लांड के स्वाद चखनी ह, कसम से हमेशा हम चुदासी रहेनि। मर्द जब बूर में लांड घुसाके चोदेला, तब वासना के भूख खाली मर्द के ना औरत के भी मिटेला। हाय... अइसन कड़ा लांड मिली, त हमरा जइसन बड़ बहिन भी बूर चियार दी चाहे उ भाई के काहे ना हो।" दोनों की हंसी छूट गयी, लेकिन फिर मुख यौनाचार में लग गए। राजू की नज़र तभी गुड्डी की गाँड़ की छेद पर पड़ी। राजू ने उसके चूतड़ फैला दिए और गुड्डी की उस कसी,भूरी, सिंकुड़ी और चूतड़ों के दो पाटों में घिरी छेद को सूंघ लिया। वाह... क्या अद्भुत महक थी, गुड्डी सचमुच एक सम्पूर्ण स्त्री थी, क्योंकि मर्द को औरत के तीन कामुक अंगों में सबसे ज्यादा उसकी गाँड़ ही ललचाती है। हर मर्द औरत की चाल का पीछे से उसकी हिलती गाँड़ की वजह से ही ताड़ना चाहता है। गुड्डी कोई अपवाद नहीं थी, जाने कितने लोगों ने उसे ताड़ा होगा। राजू के सामने वही सुंदर गाँड़ उसकी जीभ को न्योता दे रही थी, कि आके मुझे चाट ले। अगले ही पल राजू की जीभ गुड्डी की गाँड़ की छेद को थूक से गीला कर कुरेद रही थी। राजू ने साथ साथ उंगली भी उसकी गाँड़ में घुसाने का प्रयास कर रहा था।
गुड्डी उचक उठी और बोली," राजाजी, गाँड़ काहे चाटत बारू, उ गंदा होखेला।"
तभी राजू बोला," तहार गाँड़ के सुगंघ हमके मंत्रमुग्ध कर देले बा। अउर तहार कोई भी चीज़ गंदा नइखे, काम क्रिया के इहो एगो भेद ह, गुदा मैथुन मतलब गाँड़ चुदाई।"
गुड्डी उसकी बात सुन बोली," मतलब गाँड़ में भी लोग लांड घुसावेला अउर चुदाई करेला?
राजू ने उसके चुतड़ पर एक थप्पड़ मारा और बोला," हां, गुड्डी दीदी गाँड़ चुदाई भी बहुत लोग करावेली।"
गुड्डी," हमके नइखे विश्वास हो रहल बा।"
राजू ने बगल से मोबाइल उठायी और एनल सेक्स वाले वीडियो लगाके गुड्डी की ओर बढ़ा दिया। गुड्डी ने देखा ब्लू फिल्मों की हीरोइन, बड़े ही मज़े में गाँड़ मरवा रही थी। काले काले मर्द गोरी गोरी लड़कियों की गुलाबी गाँड़ को चोद चोद के पूरा खोल चुके थे। गुड्डी ने देखा वो लड़कियां गाँड़ चुदाई के दौरान बूर से झड़ भी रही थी। ऐसी खूबसूरत लड़कियों को ऐसे बदसूरत काले मर्दों के साथ ऐसे घृणित और कामोत्तेजक क्रिया करते देख गुड्डी की बूर पनिया गयी। राजू पीछे उसकी गाँड़ के छेद में जीभ घुसाने का असफल प्रयास कर रहा था। गुड्डी की कमर भी मस्ती में हिल रही थी। कुछ देर बाद गुड्डी बोली," आह....राजू का गाँड़ मरवावे में एतना मज़ा आवेला। देख ना केतना कुदक कुदक के गाँड़ में लांड ले रहल बिया ई बेशरम फिरंगी लइकी।"
राजू," देख के त बुझावेला कि, लइकी के बड़ा मजा आ रहल बा।"
गुड्डी," राजू एकरो प्रैक्टिकल करेके पड़ी का।"
राजू," करब अगर तू तैयार हो जइबू तब।"
राजू गुड्डी की गाँड़ को चूसने और चाटने का भरपूर आनंद ले रहा था। कुछ देर बाद गुड्डी राजू के कड़े लण्ड पर सवार हो गयी क्योंकि उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। गुड्डी की आँहें और सिसकारी कमरे के दीवारों से टकरा रही थी। उसकी बेचैनी भी देखने लायक थी, लण्ड के लिए। हवस और वासना गुड्डी के अंग अंग में चढ़ के उसे मस्तानी और प्यासी बना रही थी। गुड्डी बेशर्म लड़की की तरह खुद ही बेझिझक लण्ड बूर में लील गयी थी और कूद रही थी। वो खुद अपने हाथ राजू की छाती पर रख अपनी हिलती चूचियाँ और थिरकती गाँड़ की थप थप महसूस कर रही थी। राजू अपनी दीदी के चूतड़ों को अपने हाथों में समा रहा था। राजू उसके चूतड़ों को नीचे से उछाल के समय उसे सहारा दे रहा था।
गुड्डी कभी अपने होंठ काटती तो कभी अपने मुंह में उंगली ले लेती। कभी अपने बदन को सहलाती तो कभी अपने बाल हाथों से उठा सेक्सी अंदाज़ में सिसकारियां भरती बूर की गहराईयों में लण्ड को उतार लेती। उसे ऐसे करते हुए देख राजू को बड़ा ही मस्त महसूस हो रहा था। राजू ने उसकी चूचियाँ दोनों हाथों से थाम ली और चूचक को छेड़ने लगे। बिस्तर का माहौल काफी वासनामयी और व्यभिचारिक हो चुका था। राजू गुड्डी के होठों को छूता तो ऐसा लगता उससे चिंगारी फूट रही हो। तभी राजू ने गुड्डी के बूर से लण्ड निकाल लिया। गुड्डी को लगा कि लण्ड फिसलके निकला है। उसने राजू का लण्ड पकड़ा और बूर में वापिस डालने लगी तो राजू ने उसे रोक दिया।
राजू बोला," गुड्डी दीदी गंदी लइकी बूर से निकलल लांड के भी चाटेली।"
गुड्डी," आह... उहहह... हां हमहुँ गंदी लइकी बनब।"
राजू बोला," ओकरा खातिर तहरा लांड चुसे के पड़ी। चल चाट ले रानी।"
गुड्डी," त चाटवे करब, ओकरा खातिर जे बन पड़े उ करब।" ऐसा बोलके उ लण्ड सारा चाटने लगी। राजू उसे देख खुश हुआ। वहीं गुड्डी ये नहीं जानती थी, कि राजू उसे आगे की तैयारी करवा रहा था। गुड्डी के बाल खुले हुवे थे तो राजू की गिरफ्त में थे। कुछ देर लण्ड चुसवाने के बाद गुड्डी को राजू ने चौपाया कुत्ती बना दिया और फिर पीछे से उसकी बूर में लण्ड डालके उसकी चुदाई शुरू कर दी। गुड्डी की बूर राजू का लण्ड घपघप ले रही थी। राजू गुड्डी के बाल पकड़े हुए उसके बूर की आखरी गहराई में सुपाड़े का एहसास करा रहा था। मर्द अगर औरत को चोदे, तो औरत को मज़ा तभी आता है जब मर्द उसे उसकी हदों से भी बाहर ले चले। औरतें हमेशा अपने नारीत्व और कामुक हदों को बढ़ाना चाहती है।
गुड्डी मस्ती से चुदवाते हुए बोली," आ...आ.. राजाजी मज़ा आ रहल बा बहिन के बूर चोदे में। तहार लांड बूर के खोल के अंतिम तक घुसल बा। उई... ईशश श... सि... केतना तगड़ा लांड बा हमार भाई के अउर हमार भाग में। भगवान हमरा तहार बहिन बनाके बढ़िया कइलन, सेक्स के पूरा ज्ञान मिली।" गुड्डी बेशर्म हंसी हंसते हुए बोली।
राजू बोला," तहार बूर के त हमार लांड छितरा दी। एतना चोदब ना गुड्डी दीदी, कि जब बच्चा होई त तहरा दरद भी कम होई।"
गुड्डी," राजू हम गंदी लइकी बन सकब की ना?
राजू," तू ओकर टेंसन मत ले, उ त हम तहरा बना देब। तू गंदी ना, महा गंदी लइकी बनबु।" ऐसा बोलकर गुड्डी और राजू एक साथ जोड़ से झड़ने को हुवे। राजू लण्ड मुठियाते हुए गुड्डी से कहा," मूठ पिबु रानी।"
गुड्डी," हां, राजा पियब ना।"
राजू," उ खातिर तहरा हमरा से भीख माँगे के पड़ी। चल आगे कुतिया जइसन बन जो। आपन मुँह खोल, जीभ बाहर निकाल। अउर हमरा से मूठ माँग।"
गुड्डी राजू के लण्ड के नीचे झुक गयी, और राजू की ओर भंवे भींच के मुंह बना ली। फिर गुड्डी बोली," राजाजी उफ्फ्फ देख ना आपन छिनरी दीदी के, हम बहुत पियासल बानि लांड के उजर रस खातिर। हमरा बहुत पसंद पड़ेला तहार लांड के पानी। हमरा दे दे ना, मूठ पिला दे ना।" गुड्डी फिर जीभ बाहर निकाल, राजू की ओर प्रतीक्षा की दृष्टि से देखने लगी। राजू गुड्डी की आंखों में देखा वो सचमुच राजू के मूठ की प्यासी लग रही थी। राजू गुड्डी को देख बोला," हां, असही बहुत बढ़िया। देख लांड तहार गुहार सुन लेलस, मूठ निकले वाला बिया। मुंह खोल के रख।"
गुड्डी पूरा मुंह खोल दी, और जीभ लपलपा रही थी। वो राजू के वीर्य की बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। राजू के लण्ड से वीर्य की सफेद धारा बह निकली। गुड्डी ने अपने खुले मुँह को उस दिशा में किया और लपक कर मुँह में लेने लगी। राजू ने करीब सात आठ झटकों से अपने आंड़ को खाली किया। गुड्डी का पूरा गाल, होठ, मुँह राजू के मूठ से भर चुका था। राजू के लण्ड छोड़ते ही गुड्डी ने उसका लण्ड थाम लिया और उसके लण्ड को निचोड़ते हुए आखरी बूंद तक चूस ली। राजू लेट चुका था। गुड्डी उसका सारा मूठ समेट कर पी गयी।
गुड्डी बोली," राजू तहार मूठ मीठ लागेला। तू केतना बढ़िया बारू, बूर चोद के हमार इलाज करत बारू और लांड के पानी पिलाक़े हमार दिमाग के तेज कराबेलू।" गुड्डी के नाक पर मूठ की मोटी बूंद टिकी हुई थी। राजू ने उसे उंगली से पोछ उसके मुंह में दे दिया। गुड्डी उसे भी चट कर गयी। राजू हंस दिया और गुड्डी मुस्कुराई।
गुड्डी राजू के ऊपर लेट गयी और राजू ने उसे बांहों में भर लिया। गुड्डी बोली," राजू आज मज़ा आ गइल।"
राजू उसके बाल सहलाते हुए बोला," अरे ना रानी अभी त अउर मज़ा आयी। तहरा ब्लू फिल्म जइसन चोदब। देख मोबाइल में इंटरनेट बा, अब ब्लू फिल्म देखल जाई अउर जइसन जइसन उमे चुदाई करि वसही अब तहार चुदाई होई। जब हम कोचिंग में रहब त, तू आराम से घर में देखल करिहा अउर जब मन करे तब देखिहा। इहो तहार बड़का पढ़ाई बा।"
गुड्डी," अच्छा राजाजी। बहुत निम्मन आईडिया बा। हम गंदी लइकी बने में दिन रात एक कर देब।"
राजू गुड्डी एक दूसरे को चूम रहे थे। तभी मोबाइल बज उठा। गांव से उनके मां बाप ने फोन किया था। राजू ने फोन उठाया और गुड्डी उठ के जाने लगी तो, राजू ने उसे वापिस अपनी बांहों में ले लिया। गुड्डी उसकी गोद में बैठ गयी। उसकी गाँड़ के नीचे राजू का लण्ड दबा हुआ था।
राजू," हॉं माई, सब बढ़िया बा, गुड्डी दीदी भी बढ़िया बा।"
बीना," कउनो चीज़ के दिक्कत त नइखे, कुछो कमी होई त बता दिहा।"
राजू," ना कुछो कमी नइखे, जउन चीज़ के कमी रहे उ चीज़ अब खूब मिल रहल बा।"
बीना," कउन चीज़ बेटा?
राजू," गुड्डी दीदी खूब देत बिया, एकदम दिल खोलके।" गुड्डी उसकी ओर गुस्से से देख भंवे तरेर रही थी।
बीना," का देत बिया गुड्डी?
राजू," ई बात त गुड्डी दीदी ही बताई, ले बात कर।
गुड्डी घबराते हुए," अरे ना माई, हम खूब प्यार से खाना देत बानि ना, उहे कहेला राजू। एकर पूरा ध्यान रखे के पड़ी ना। हमार छोटू राजू के।" ऐसा बोलके उसने राजू का लण्ड दबा दिया।
बीना बोली," सुन दुनु भाई बहिन बढ़िया से रहिया। तीन महीना दुनु अकेले रहबा। एक दोसर के ध्यान रखिहा।"
गुड्डी," तू चिंता मत कर माई, राजू के जे भी चाही, उ हम सब देब।"
तभी राजू गुड्डी की दांयी चुच्ची के चूचक को मुंह में भर लिया। गुड्डी सिसक उठी।
बीना बोली," का भईल गुड़िया?
गुड्डी," तहार बेटा, हमार आम लेके चूस रहल बाटे। बिना बताउने लेके चूस रहल बा। अब का करि माई?
बीना," अरे त का भईल चूसे दे, छोट भाई बा। बढ़िया वाला आम दे ओकरा।" गुड्डी और राजू की हल्की हंसी छूट गयी।
गुड्डी बोली," ई वाला आम सबके कहां मिलेला, ई त राजू के नसीब में रहे।"
राजू तभी मज़े लेने को बोला," माई आम में रस नइखे। केतनो चूसेनी त रस ना चुवेला।"
गुड्डी बोली," रस त निकल रहल बा, तू ठीक से देख नीचे से रस बह रहल बा।" गुड्डी ने बूर की ओर इशारा किया।
राजू बोला," माई देख ना आम ऊपर से दबाउनी, पर रस नीचे से निकलेला।"
बीना बोली," त का भईल रस त बा ना, पिले। बेटा दूध भी रोज़ पियल करा।
राजू बोला," माई, गाय दूध नइखे देत। बगल में ही बा, पर अभी ओकरा दूध नइखे होत।"
बीना," उ दूधवाला के बोल कि रोज़ गाय के दुहे, तब जाके एक दिन दूध दी। तू त खुदे दुहत रहला गाय के। जाके बता दआ।"
गुड्डी राजू को अपने सीने से चिपका के बोली," माई, ई गाय ठीक बा, दूध आज ना त कल देबे करी।
बीना," तू भी बड़ा कमज़ोर बारू गुड़िया, तू का का खात बारू?
गुड्डी बोली," माई इँहा त बहुत बढ़िया केला मिलेला मजबूत और टिकाऊ। एकदम मोट मोट अउर लंबा। लेकिन केतना भी खात बानि, मन ना भरेला।"
बीना," अच्छा त मन भर खाहिया अउर छोड़िहा ना। तू दूध पिएला की ना।"
गुड्डी," अरे माई, दूध से बढ़िया त तनि दही खा लेत बानि। बड़ा निम्मन स्वादिष्ट होखेला। तनि खात बानि पर मन संतुष्ट हो जावेला।"
बीना," राजू दीदी के रोज़ दही लाके देल करिहा।
राजू," हां माई, एकर कमी ना होई। खूब खिलाएब दीदी के जेतना मन करे।"
बीना," शाबाश हमार बेटा बेटी खूब बढ़िया से रहा अउर पढ़ाई कइसन चलत बा।"
राजू," इहे खातिर त गुड्डी दीदी के इँहा लेके आइनी ह। इँहा रोज़ गुड्डी दीदी के बढ़िया से पढ़ाई चली, उ भी खूब कड़ाई से। जब तक गुड्डी दीदी हमार परीक्षा पास ना करि, रगड़ के पढ़ाई चली।"
गुड्डी बोली," हां, माई हम खूब मन लगाके पढ़ब। अउर पास होके देखाएब।"
बीना," जुग जुग जिया बच्चा सब। करआ पढ़ाई करआ।" और फोन कट गया।
राजू और गुड्डी एक दूसरे की ओर देख हसने लगे। राजू गुड्डी से बोला," चलआ पढ़ाई आ...ओह.. चुदाई करि।"
गुड्डी बोली," पढ़ाई अउर चुदाई अब खाना के बाद चली राजाजी। उतरे दे हमके गोदी से, खाना ठंढा जाई।" ऐसा बोल गुड्डी खड़ी हुई, तो राजू उसकी गाँड़ सहला दिया। गुड्डी कुछ ना बोली और चली गयी। थोड़ी देर बाद वो बदन पर गमछा लपेट खाना ले आयी। राजू ने गुड्डी से कहा," तू लंगटे ज्यादा बढ़िया लागेलु, ई गमछा फेंक दे।" ऐसा बोल उसने गुड्डी का तौलिया खींच उसे बिल्कुल नंगी कर दिया। इस तरह अपने भाई से नंगी होने में उसे बड़ा मजा आया। फिर बोली," राजू तू असही लंगटे करल करा हमके।" फिर वो राजू के लिए खाना लेके आयी। दोनों एक ही थाली में खाना खाने लगे, पर वो राजू को अपने हाथों से खिला रही थी। दोनों बिल्कुल नंगे खाना खा रहे थे। राजू ने उसे भी अपने हाथों से खाना खिलाया। बड़ा ही रोमांटिक दृश्य था, भाई बहन के व्यभिचारिक प्रेम प्रसंग का। कुछ देर बाद दोनों खा चुके थे। गुड्डी फिर थाली उठा गाँड़ मटकाते हुए किचन की ओर गयी और बर्तन धोने लगी।
बर्तन धोते हुए राजू उसकी मदद करने आया, तो गुड्डी ने उसे कुछ करने नहीं दिया और बोली," तू मरद बारू, इ काम तहार नइखे।" राजू ने उसे पीछे से पकड़ लिया और गाँड़ पर लण्ड से धक्का लगाते हुए बोला," त मरद के कउन काम बा? गुड्डी मुस्कुराते हुए बोली," मरद दुनिया के जिम्मेदारी लेवेला, अउर घर के उ राजा होखेला। राजा कोई काम ना करेला, सिवाय भोग अउर संभोग के।"
राजू गुड्डी से बोला," जानत बारू दीदी, जंगल में शेर खाली खाके सुतेला। शिकार भी शेरनी ही ज्यादातर करेनी। शेर खाली शेरनी सबके चोदेला अउर बच्चा पइदा करेला। शेर खाली ओकरा सब के सुरक्षा करेला।"
गुड्डी बोली," तू भी शेर के तरह ही रहल करा।" दोनों ठहाके मारकर हँसे।
राजू बोला," आज माई के साथ, दोहरा अर्थ के बात करे में मज़ा आइल रहे। तू भी खूब मजा लेलु।"
गुड्डी," हाँ बहुत, लेकिन डर भी लागत रहे, कहीं माई के शक ना हो जाय।"
दोनों वापिस कमरे में आके सोने लगे। क्योंकि आज दिनभर की मार्केटिंग और फिर घमासान चुदाई के बाद दोनों थक चुके थे। दोनों रातभर बिल्कुल नंग धरंग ही सोते रहे।
अगले दिन से दोनों रोज़ सुबह चुदाई करते, फिर गुड्डी खाना बनाती जिसे खाकर, वो दोनों कोचिंग क्लास जाते। फिर शाम में आकर गुड्डी राजू के लिए शिलाजीत का दूध बनाती थी। राजू वो रोज़ पीता, और फिर शुरू होती गुड्डी की चुदाई की प्रैक्टिकल क्लासेज। गुड्डी खुद इसमें बढ़ चढ़के भाग लेती। राजू उसे बहुत जबतदस्त तरीके से चोदता और गुड्डी भी खूब चुदवाती। उनके लिए अब ये एक जरूरत और नशा बन गया था। भाई बहन का रिश्ता, उस नशे को और नशीला और रसेदार बना देता था। रात भर दोनों एक दूसरे की बांहों में नंगे ही सोते थे। उनका डर जो दूर हो चुका था। राजू उसे गंदी किताबों के साथ गंदी गंदी ब्लू फिल्म्स दिखाता था। संभोग के दौरान दोनों एक दूसरे को गंदी गंदी गालियाँ देते थे। पहले तो राजू ही देता था, पर बाद में गुड्डी भी खूब गंदी बातें करती और गालियां देती थी। वो गुड्डी को अपने हिसाब से ढालना चाहता था। गुड्डी को भी ब्लू फिल्म को नशा हो गया था। उसे भी रोज़ ऐसी फिल्में देखने में अब मज़ा आता था। दोनों अब साथ साथ भाई बहन की सेक्स कहानियों की किताब ऑनलाइन पढ़ते, और फिर उसके अनुसार चुदाई भी करते थे। गुड्डी खुद इसमें पहल करती थी। गुड्डी की गंदी लड़की बनने की प्रशिक्षण अच्छे से चल रही थी।
गुड्डी जब कोचिंग जाती, तो सब उसे बहनजी बहनजी बोलती थी। उसकी कोचिंग की सहेली वर्षा ने कहा कि उसकी उम्र ज़्यादा है और वो सलवार सूट पहनती है, जिससे और भी बड़ी लगती है। उसने उसे फ्रॉक और जीन्स पहनने की सलाह दी।
गुड्डी कोचिंग से आकर राजू से ये बात बताई। राजू ने उसे समझाया कि ये कुछ दिन की ही तो बात है, कुछ नहीं होगा। पर वो नहीं मानी। फिर राजू ने गुड्डी की किताबों के बहाने से घर से पैसे मंगवाए और गुड्डी को अपने साथ मारकेट ले गया। दोनों ने एक अच्छी दुकान से एक पोल्का डॉट वाली गुलाबी और हरे रंग की फ्रॉक ले ली। गुड्डी और राजू को भी पता था कि फ्रॉक का उद्घाटन कैसे होगा।
 

lovlesh2002

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आपकी कहानी बहुत ही अच्छी है ग्रामीण परिवेश में बहुत ही अच्छी छिनार परिवार की कहानी को दिखाया है जो कभी कभी बिल्कुल 📽️ फिल्म की तरह का एहसास कराती है, लेकिन कहानी की गति बहुत ही स्लो है। कितनी बार चेक कर लिया लेकिन अपडेट नहीं आया है ऐसे में कहानी के पाठक भूल कर कहानी को पढ़ना छोड़ते जा रहे हैं और आपका उत्साह भी ऐसे में कम होगा आपको जल्दी अपडेट देने की कोशिश करनी चाहिए।
 
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गंदी लड़की भाग २
* इस भाग में किंकी/डर्टी (गंदी सेक्स ) का वर्णन है, कृपया रुचि वाले लोग पढ़े। जिन्हें ना पसंद आये वो इसे छोड़ दे।


राजू को आज घर पहुंचने की जल्दी थी। आज शनिवार था और रविवार की छुट्टी थी, इसलिए उसके कोचिंग वालों ने एक्स्ट्रा क्लास रख दी थी। आज उसकी क्लास साढ़े आठ बजे रात तक चली थी। वो टेम्पो में बैठा जल्दी से जल्दी घर पहुंचना चाहता था, पर टेम्पो वाला भी जब तक पूरी सवारी ना मिल गयी तब तक खोला नहीं। गुड्डी राजू के इंतज़ार में बैठी हुई थी। राजू के घर पहुंचते ही गुड्डी मुस्कुराते हुए दरवाज़ा खोली। गुड्डी इस समय सलवार सूट में खड़ी थी। राजू उसे फ्रॉक में देखने को बेचैन था, उसने कहा," फ्रॉक ना पहन लू का?
गुड्डी उसकी बेसब्री जानती थी, अनजान बनते हुए बोली," ना राजू, आज थाक गईल बानि, ऊपर से आज पानी भी ना आईल, नहा भी ना सकनी। नया कपड़ा बिना नहउने कइसे पहन ली।"
राजू मन मसोस कर बोला," ठीक बात बा, खाना लगा दआ, ओकरा बाद मोबाइल पर फ़िल्म देखल जायी।" पिछले कई दिन से गुड्डी और राजू का शाम में यही रूटीन था। रात को खाना खाने के बाद, गुड्डी राजू को दूध के साथ शिलाजीत देती थी। फिर दोनों एक साथ बैठ मोबाइल पर गंदी फिल्में अर्थात ब्लू फिल्में देखते थे। गुड्डी को राजू कई दिनों से हार्डकोर और रफ़ फिल्में दिखा रहा था। दरअसल गुड्डी के साथ, अब उसे सेक्स करते हुए काफी दिन हो चुके थे। उसे गुड्डी के साथ अब अपनी वासना की पराकाष्ठा को संतुष्ट करना था। गुड्डी को भी राजू के साथ, किसी भी तरह की गंदी और घटिया फ़िल्म देखने में मज़ा आने लगा था। फ़िल्म देखने के बाद, गुड्डी की रगड़ के चुदाई होती थी। आज भी वैसा ही हुआ, राजू के साथ ब्लू फिल्म देखते हुए, गुड्डी के कपड़े कब उतरे, वो राजू के गोद में नंगी हो बैठी पता ही नहीं चला। गुड्डी कामुक स्वर में बोली," राजू, ई औरतिया सब कइसे मज़ा से एतना गंदा गंदा हरकत करेली। देख ना, उहे लांड से गाँड़ मरवा के, ओकरा केतना मज़ा से चूस रहल बिया। तीन तीन मरद एगो मादा के चोद रहल बा। लड़की केतना मस्ती में बूर, गाँड़ और मुँह में एक साथ लण्ड लेके चोदबा रहल बिया। उफ़्फ़फ़फ़... "
राजू गुड्डी की चूचियों को मीजते हुए बोला," गुड्डी दीदी, आजकल असही सेक्स होखेला, लईकिया सब शहर वाली असही चुदबात बिया। बूर चुदाई के साथ साथ गाँड़ चुदाई भी लइकिया, सब के पसंद आ रहल बा। आज कल त लइकिया सब एकर डिमांड खुद से करत बिया। हमनी के गांव में उहे पुराना पद्दति से चुदाई चलत बा। तू खुद देख लआ ज़माना कहां से कहां चल गईल बा। एगो औरत तीन तीन, चार चार आ पांच पांच से चुदा रहल बा। कुछ त दस से बारह मरद के साथ।"
गुड्डी राजू का लण्ड सहलाते हुए बोली," आह, सच में राजू बारह बारह लांड, लइकी के त कचूमर निकल जात होई।"
राजू गुड्डी की गाँड़ के छेद में उंगली से छेड़ते हुए बोला," अरे ना उ सब तहरा जईसन चुदासी अउर चुदक्कड़ होखेलि गुड्डी दीदी।"
गुड्डी उसकी आँखों में देख बोली," राजू हम सच में एतना बड़का चुदक्कड़ लागत हईं का तहरा? देख ना उ निर्लज्ज बेशर्म लइकी सब मरद के पेशाब में मस्ती से नहा रहल बिया। चारु तरफ से लोग मूत रहल बा।"
राजू," गुड्डी दीदी, उ मूठ के साथ साथ मूत भी पियत बिया। अउर बड़ा मजा से स्वाद लेके पियत बिया।"
गुड्डी अपनी बेकाबू रिसती बूर को राजू की हथेली में सौंपते हुए बोली," जइसे तू हमार पेशाब पियत बारू।"
राजू," गुड्डी सच बता, तहार मन ई सब करेके करेला कि ना?
गुड्डी एकाएक हुए सवाल से कुछ देर के लिए चुप हो गयी। राजू ने उसकी बूर मसलते हुए दुबारा पूछा," बोल ना चुप काहे हो गईलु।"
गुड्डी राजू की आंखों से नज़रे फेरके बोली," राजू, सच बताई त हम खुद तहरा से ई बात बताबे चाहत रहनि। पर लाज के कारण, कह ना सकत रहनि। हमरा सच में अइसन ब्लू फिल्म पसंद आवेला, जेमे लइकी गंदा अउर घिनौना कृत्य सब करेनी। जइसे ई फ़िल्म में कर रहल बिया। अइसन करे में मज़ा आत होई, अउर देखा ना हमार बूर केतना चु रहल बा।"
राजू ," मतलब तू गाँड़ मरबैबु?
गुड्डी सर हिलाके बोली," हहम्म.... राजू गांव के लइकी भी शहर के लइकी से कम ना होखेला। हम रोज़ सुनत बानि, कि शहर के लइकी गांव के लइकी से ज़्यादा तेज़ होत बिया। पढ़ाई में त ना चुदाई में त टक्कड़ जरूर देब। तहरा जइसे मर्ज़ी वइसे चोद लआ आपन गाँववाली बहिन के।"
राजू समझ गया, कि गुड्डी को, शहर की लड़कियों की तारीफ अच्छी नहीं लगी। उसे रोज़ ट्यूशन में इस भेद भाव का सामना करना पड़ता था। राजू को पता लग चुका था उसकी बहन की दुखती रग का।"
राजू उसकी तारीफ करते हुए बोला," जे मज़ा देसी में बा, उ मज़ा विदेशी में कहां बा।"
गुड्डी उसकी ओर देख बोली," हम तहरा देसी में विदेशी के मज़ा देब राजू।"
राजू ने उसे एक बार उकसाने को बोला," हमके नइखे लागत तू अइसन कर पइबु। देखत बारू ई लइकी सब त पइसा कमाई खातिर एतना गिरल अउर नीच करम कर रहल बिया। तू त एक घरेलू संस्कारी लइकी बारू।"
गुड्डी बोली," राजू ई लइकी सब पइसा खातिर कर रहल बिया, पर हम मज़ा, मस्ती, खातिर करब। अउर संस्कारी त हम बानि, ई अपन जगह बा अउर सेक्स अपन जगह बा। चुदाई त अपन पसंद से करब, जेमे हमरा खुशी अउर आनंद मिली।"
राजू ने गुड्डी के गाल पर चपत लगाते हुए बोला," तहरा गाँड़ में लांड चाही कि ना?
गुड्डी," हहम्म...
राजू ने गुड्डी को बिस्तर पर पेट के बल लिटा दिया। फिर उसकी टांगों के बीच आकर उसके चूतड़ों को फैलाके उस नन्हे सिंकुड़े छेद को उंगलियों से स्पर्श किया। उस उबर खाबर छेद पर सिंकुड़ी चमड़ी उभरी हुई थी। गाँड़ का छेद गहरे भूरे रंग का, बेहद लुभावना और आकर्षक लग रहा था। राजू ने उस छेद पर थूक दिया और उसे मलने लगा। राजू की उंगली भी गीली हो चुकी थी। राजू ने उंगली से दबाव बनाया तो, गुड्डी की गाँड़ हल्की खुली और उसमें, आधी उंगली घुस गयी। उंगली घुसते ही गुड्डी को दर्द महसूस हुआ, वो आउ आउ कर थोड़ा चिल्लाई, लेकिन राजू ने अपनी पूरी उंगली घुसा दी।
अब गुड्डी तड़पते हुए बोली," आउ... आउ....उफ्फ्फ राजू निकाल ना उंगली, बड़ा दरद हो रहल बा। अइसन बुझाता की गाँड़ फट जायी। आह...निकालआ ना।"
राजू," अरे कुछ ना होई गुड्डी दीदी, तू बड़ा बहादुर बारू। अउर अभी त एगो ओंगरी घुसल बा, अभी अउर घुसी।" ऐसा बोलके उसने और थूक डालके दूसरी उंगली भी घुसा दी। गुड्डी की आंखे बड़ी हो गयी, मुँह खुल गया, चीख फंस गई। राजू की अब दो उंगलियां अंदर घुसी हुई थी, गुड्डी की गाँड़ काफी टाइट थी। गुड्डी की आंखों में आंसू थे। वो अपनी मासूम नज़रों से दया की भीख मांग रही थी। पर राजू आज उसकी गाँड़ को खोलने के लिए बिल्कुल प्रतिबद्ध था। गुड्डी की चिकनी गाँड़ पर उसकी नज़र पहले से ही थी। गुड्डी का कराहना जब शांत नहीं हुआ, तो राजू ने बोला," बस हो गइल ना, इतने बर्दाश्त कर सकेलि देसी लइकी, गांव के लइकी। शहर के लइकी सब एतना हल्ला ना करेला, बल्कि आराम से उंगली का हअ लांड भी लेवेली। बड़का बात कि मज़ा लेवेली, ना कि कुतिया जइसन किलकारी मारत बिया। अच्छा हम निकाल लेत बानि। गांव के लइकी आगे बढ़ ना सकेली।" ऐसा बोलके, उसने निकालने के लिए ज्यूँ कोशिश की तो गुड्डी ने उसकी कलाई पकड़ ली। राजू ने उसकी ओर देखा और उसने राजू की ओर और बोली," राजू, रहे दआ भीतर, हम बर्दाश्त करब। अब धीरे धीरे गाँड़, में राहत बुझाता। हम कउनु शहर के लइकी से कम ना बानि।"
राजू ने बोला," ना ना तहरा से ना हो पाई। ई सब गन्दी लइकी के काम बा। जाने का होई जब हम लांड देब, तब त तू पूरा चिल्लाते रहबू।"
गुड्डी," राजू अब हम उफ़्फ़ ना करब सच बतावत बानि। हम गंदी लइकी बानि।"
राजू ने गुड्डी से पूछा," केतना गंदी लइकी बारू?
गुड्डी ने राजू से कहा," आजमा लआ।"
राजू ने गुड्डी की गाँड़ से उंगली निकाली और बोला," चल चाट के दिखा।"
गुड्डी बोली," सच में ।"
राजू," देखलु, तू फेर पूछे लागलु ना?
राजू का इतना कहना था कि गुड्डी ने, उन उंगलियों को मुंह में झटके में ले लिया। अपनी ही गाँड़ से निकली उंगलियां मुँह में लेने में उसे हिचक तो हो रही थी, पर राजू के सामने उसे खुद को साबित जो करना था। गाँड़ की गंध और उसका स्वाद उसके मुंह के कोने कोने में फैल गया। गुड्डी अपनी भंवे और आंखे सिंकोड कर राजू की उंगलियाँ चाट रही थी। राजू उसे देखता रहा, उसे भी विश्वास नहीं हो रहा था, कि गुड्डी ऐसा कर सकती है, हालांकि वो दिल से यही चाहता था।
राजू ने उसे बोला," शाबाश गंदी लइकी।"
गुड्डी उसकी ओर देखी और, बोली," कआ के देखा देनी ना, राजाजी।"
राजू ने कहा," कइसन बुझाईल गाँड़ के स्वाद रानी?
गुड्डी मुंह बिचकाके बोली," हम जेतना खराब सोचत रहनि, उतना खराब ना रहे। हमके लागत बा, कुछ दिन अगर चाटब, त गाँड़ के स्वाद भाए लगी।"
राजू ने बोला," एकर आदत डाल लें, काहे कि ई अब रोज़ होई।"
राजू फिर गुड्डी की गाँड़ में दुबारा उंगली डालके, उंगली कर रहा था। राजू और गुड्डी एक दूसरे को देखते हुए ये कर रहे थे। गुड्डी इस बार पहले से ज़्यादा मजबूत थी, और गाँड़ में घुसती उंगली को आसानी से ले रही थी। राजू ने गुड्डी की चुच्ची मुँह में ली हुई थी, और उसे निचोड़ रहा था। गुड्डी बोली," आह...बढ़िया बुझा रहल बा। अब गाँड़ में उंगली आवत जात निम्मन बुझा रहल बा। अउर डाल द ना, भीतरी।"
राजू ने उसे गाली दी," रण्डी साली, अब मज़ा आ रहल ना?
बतावत हईं, गाँड़ में जब लेवे लगबु ना, त गाँड़ ही मरवावे चाहबू। ई विदेशी लइकी सब असही थोड़े करत बा, उ सब मस्ती और मज़ा के साथ काम करेले।"
गुड्डी उसकी ओर देख बोली," सच में राजू एकर मज़ा कुछ अउर आ रहल बा। देख ना बूर भी रिस रहल बा।"
राजू फिर गुड्डी की बूर की ओर देखा और बूर चाटने लगे। गुड्डी की गाँड़ में अब तीन उंगलियां थी, पर वो कामुक आँहें भर रही थी। राजू अब उसकी रिसती हुई बूर को चाट रहा था। गुड्डी मस्ती में बूर चटवा रही थी।
राजू उसकी बूर की पत्तियों को जीभ से फैलाके चाट रहा था। अब कमरे का माहौल बदल चुका था। जहां कुछ देर पहले दर्दभरी आँहें थी, वहां अब मस्ती की सीत्कारें गूंज रही थी। बूर का नमकीन पानी, राजू किसी अमृत जलधारा की तरह पी रहा था। गुड्डी खुद सब कुछ भूलकर राजू का सर थामे उसे बूर पर धकेल रही थी। गुड्डी कुछ देर बाद राजू के मुंह में झड़ गयी। राजू ने फिर बोला," आज लांड के पानी से तहार फेसिअल कर देब। चल नीचे बइठ जो।" गुड्डी आज्ञाकारी पत्नी की तरह बैठ गयी। फिर राजू ने गुड्डी के कामवासना से संलिप्त चेहरे की प्यास देख, उसकी आँखों में भी सेक्स की चाहत और निकलनेवाले पानी के प्रति श्रद्धा देख उसके पूरे चेहरे पर मूठ निकाल दिया। गुड्डी की नाक, गाल, माथा सब लण्ड के पानी से सरोबार हो चुका था। राजू को गुड्डी के साथ ऐसा कर बहुत सुकून मिला। राजू फिर लण्ड से पानी को उसके पूरे चेहरे पर घुमा घुमा के लगाया। गुड्डी भी हंस रही थी, वो खुद इसका मज़ा ले रही थी। राजू थक के बैठ गया तो गुड्डी उसके मूठ को चेहरे से चाट रही थी और बोली," आज त सच में हमार फेसिअल हो गइल।"
राजू," ई मूठ से फेसिअल करबू ना, त चेहरा पर ग्लो और जवानी बरकरार रही अउर निखार आवेला।"
गुड्डी," सच।"
राजू," हाँ, आदमी के मूठ में एन्टी ऑक्सीडेंट रहेला, जेसे चमड़ी जवान रहेला।"
गुड्डी," फेर त हफ्ता में दु दिन, जरूर कर देल करा।"
राजू," करवा काहे ना लेबलु, हम तैयार बानि रानी।"
गुड्डी बोली," धो ली का?
राजू," ना ना पूरा रात चेहरा पर लगा के रख।"
गुड्डी ने सारी रात राजू का मूठ चेहरे पर लगाके रखा। दोनों भाई बहन बिस्तर पर चिपक के सो गए थे।

अगले दिन राजू किसी काम से बाहर गया हुआ था।
राजू करीब आधे घंटे बाद, जब वापिस आया तो देखा गुड्डी मकान मालकिन के साथ, बातें कर रही थी। जब राजू पास आया तो, पता चला कि उनका पूरा परिवार किसी रिश्तेदार के यहां, गांव जा रहा है। वो अपने घर की चाभी उसे देने आई हुई थी। उन्हें चाभी देकर वो चली गयी। कुछ ही देर में वो दोनों भाई बहन पूरे मकान में अकेले थे। दोनों का तन जवानी की आग में तप रहा था और ऐसे में ऐसा एकांत का माहौल उनके लिए, वरदान था। राजू ने सबसे पहले तो मकान का मुख्य दरवाज़ा बंद कर दिया। फिर वापिस आया और ऊपर अपने कमरे में आकर वो दरवाज़ा भी बंद कर दिया। राजू खुद पर काबू रखें हुए था, क्योंकि आज उसका प्लान अलग था। वो गुड्डी का टेस्ट लेकर, उसे फेल करके फिर उसके साथ मनमाने ढंग से मस्ती करना चाहता था। गुड्डी राजू के सामने पहुंची तो राजू ने गंभीर स्वर में बोला," गुड्डी दीदी, आज तहार टेस्ट लेब, याद बा ना?
गुड्डी," हाँ, राजू याद बा।"
राजू," राजू ना हमके मास्टरजी बोलआ।"
गुड्डी," अच्छा मास्टरजी, लेकिन का हम नहा ली। काल्हो ना नहा पईनि।"
राजू उसके हाथ से तौलिया खींचकर बोला," कोई जरूरत नइखे। तहार टेस्ट हो जाय त नहा लिहा। जाके आपन बैग लेके आवा।" गुड्डी बैग लेकर चली आयी। राजू ने उसकी कॉपी में पलट के देखा और जो पढ़ाया गया था, उससे संबंधित अध्याय से, उसके सामने करीब दस सवाल उसे बनाने को दिए। राजू गुड्डी का स्तर जानता था, इसलिए उसने गुड्डी से उसके स्तर अनुसार थोड़े कड़े सवाल किए थे। राजू ने उसे कॉपी देते हुए कहा," बढ़िया से सवाल बनाबा, ना त सजा मिली।"
गुड्डी उसके दिए हुए सवाल बनाने लगी। शुरू में वो सवालों से जूझती रही, फिर काफी देर मशक्कत करने के बाद, वो पांच सवाल ही कर पाई। राजू ने उससे कॉपी लेके चेक किया, उसमें से दो ही सही थे और तीन गलत थे। गुड्डी बेशर्मों की तरह खड़ी हंस रही थी। राजू ने उसकी ओर देखा फिर गुड्डी को घुटनों के बल सामने बैठने को कहा।
राजू," का पढ़े में मन नइखे लागत का?
गुड्डी," ना पढ़े में बिल्कुल मन नइखे लागत।""
राजू," सच बताबा कउन चीज में मन लागेला?
गुड्डी," चुदाबे में, बूर में लांड लेबे में।"
राजू," चुदाई के पढ़ाई करबू, लेकिन चुदाई के कउनु जगह पढ़ाई ना होखेला।"
गुड्डी," तू बारआ ना मास्टरजी, चुदाई में P HD करवा दआ। एमे शिकायत के मौका ना देब तनिको।"
राजू," गुड्डी रानी, चल आज तहार चुदाई के क्लास लेब अउर तू फ़ेल भइलू ओकरो हिसाब लेब।"
गुड्डी," त कहां से शुरू करबू बताबा।" राजू ने उसकी ओर देखा और बोला," तू कुतिया बन दुनु हाथ, अउर दुनु ठेहुना पर।" गुड्डी राजू के कहे अनुसार फौरन चौपाया हो गई। फिर राजू ने उसकी फ्रॉक पीछे से उठा दी। गुड्डी ने अंदर नीली कच्छी पहन रखी थी। राजू ने उसके गाँड़ से पैंटी उतार कर घुटनो पर ला दी। गुड्डी की चौड़ी गाँड़ नंगी हो लहरा उठी। गुड्डी धीरे धीरे गाँड़ मटका रही थी, पीछे से उसकी झांटों भरी बूर जांघों के बीच से झांक रही थी। राजू ने चूतड़ों को सहलाक़े गाँड़ की चिकनाई का जायजा लिया। गुड्डी पीछे देख मस्ती में गाँड़ हिला रही थी। तभी राजू ने गुड्डी के चुतड़ पर चाटों की बौछार लगा दी। गुड्डी की कराह हर चिपकते चाटे के साथ तेज हो रही थी, और साथ ही चुतड़ भी लाल हो रहे थे। गुड्डी अपनी गाँड़ फिर भी बहादुरी से टिकाए टिकी थी। आज राजू अपनी बड़ी बहन को सबक सिखाने के लिए तत्पर था। कुछ देर के बाद राजू बोला," चल पूरा घर के असही कुत्ती बनके चक्कड़ लगा। तू कुत्ती बने लायक बारू, चुदक्कड़ रांड साली। पढ़ लिखके तहरा कोई फायदा नइखे। तू खाली चुदाबे खातिर पटना आइलु।" ई बोल बोल के चक्कड़ लगा जोर जोर से।"
गुड्डी की आंखों में थोड़े आंसू थे, उसने हां में सर हिलाया और फिर बोली," हम चुदक्कड़ रण्डी बानि, हम कुत्ती बने लायक बानि। हम तहरा से चुदाबे खातिर पटना आइनी ह। हमार बूर बेहिसाब बहेला।" फिर वो राजू के इशारे पर ये बोलते हुए कमरे में घूम रही थी। राजू को ये काफी संतोषजनक लग रहा था। कभी बचपन में गुड्डी उसे अपनी पीठ पर बिठाके कुत्ती बनती थी।
गुड्डी जब एक दो चक्कड़ लगा ली, तो राजू ने उसे अपने पास बुलाया। गुड्डी उसके पास पहुंची, तो राजू ने गुड्डी के माथे पर हाथ फेरा, जैसे लोग कुत्ते को करते हैं। राजू ने उसे जीभ बाहर निकालने और हाथ कुतिया की तरह उठाने को कहा। गुड्डी ने वैसा ही किया। राजू बोला," मज़ा आईल रण्डी साली।"
गुड्डी," ऊँहह..ऊँहह
राजू ने उसके मुँह में थूक दिया, गुड्डी उसे पी गयी, राजू ने फिर थूका गुड्डी फिर पी गयी।
गुड्डी बोली," राजू हमके आज कइसे चोदबु।
राजू बोला," तहार बूर चोदे बिना हमका चैन ना मिली।
गुड्डी," उ त चोदबे करबू, पर कल तू तनि कड़ा अउर सख्त रहलु। आज गाँड़ मारबू का हमार।" गुड्डी तपाक से पूछ बैठी।
राजू," हाँ, गुड्डी दीदी, तहार गाँड़ के उद्घाटन आज कर देब।"
गुड्डी," लेकिन ब्लू फिल्म दिखाके करबू तब मज़ा आयी।"
राजू," आज तहरा टी वी पर देखाएब।"
गुड्डी," कइसे?
राजू ने कहा," अनुराधा आपन घर के चाभी देले बिया ना लेके नीचे चल।"
गुड्डी फिर चाभी लेकर उसे, बोली," इँहा मज़ा नइखे आवत का?
राजू," गुड्डी दीदी नया जगह में अउर मज़ा आयी।"
गुड्डी," राजू तू नीचे जो, हम फ्रॉक पहन के आवत बानि।" गुड्डी शरारती मुस्कान देते हुए बोली। राजू मान गया और नीचे की चाभी लेके नीचे उतर आया।

घर के अंदर राजू ताला खोलके प्रवेश हुआ। अंदर घुसके तो राजू सबसे पहले टी वी के पास गया। टी वी चालू करने के बाद, उसने ब्लू फिल्म लगाई। राजू फ्रिज से पानी निकाल पी रहा था। तभी गुड्डी नीचे आ गयी। उस लाल पोल्का डॉट वाली शार्ट फ्रॉक में वो पटाखा लग रही थी। उसने अपने बाल खुले छोड़ थे। फ्रॉक उसकी आधी जांघों से भी काफी ऊपर था। उस फ्रॉक में वो बेहद कामुक और चुदासी दिख रही थी। वो खुद भी चुदासी हो रही थी। गुड्डी बेहद आकर्षक और लंपट मुस्कान से राजू के करीब आयी और बोली," आज त सारा दिन इँहा बीती।" राजू उसे अपने पास लाकर चूमने लगा। गुड्डी उसके चुम्बन का उतनी ही तेजी से प्रतिक्रिया कर रही थी। गुड्डी को ऐसे देख किसी का भी मन डोल जाता। राजू गुड्डी को चूमते हुए सोफा के पास ले आया जहां टी वी सामने थी। राजू उसपर बैठ गया और गुड्डी के भारी चूतड़ों को मसलते हुए अपनी जांघ पर बैठने के लिए इशारा किया।
गुड्डी राजू का इशारा मानकर उसके गोद में चूतड़ टिका बैठ गयी। ब्लू फिल्म की शुरुवात में लड़की बेहद कामुक और वासनामयी अंदाज़ में गाँड़ और चुच्ची मटका रही थी। वो सेक्सी अंदाज़ में कपड़े उतार के फेंक रही थी। फिर नंगी ही कुत्ती की तरह चार पैरों पर चल रही थी। खुद को किसी सस्ती रांड की तरह प्रस्तुत कर रही थी। तभी एक काला आदमी उसके पास आया और उसके माथे पर मार्कर से WHORE लिख दिया। उस लड़की ने बड़े शौक से ये लिखवाया, उसके चेहरे पर शिकन बिल्कुल नही थी। वो खुश थी और मस्ती में हंस रही थी। तब राजू ने गुड्डी की ओर देखा और बोला," अइसन लइकी बनबू ?
गुड्डी," मास्टरजी तू बनाके त देखआ, ई लइकी से भी गंदी बनके देखाएब। लेकिन ई ओकरा माथा पर का लिख दिहले उ आदमी।"
राजू," अंग्रेज़ी में ओकरा माथा पर रण्डी लिख देले बा।"
राजू ने उसकी ओर देखा और उससे कोयला का डब्बा लाने को कहा, गुड्डी ने राजू की बात मानके अगले ही पल वो ले आयी।
राजू ने उसे फर्श पर घुटनों पर, अपने ठीक सामने बैठने का इशारा किया। गुड्डी बैठ गयी, फिर राजू ने गुड्डी के चेहरे को ऊपर उठाने को कहा। गुड्डी ने अपना चेहरा ऊपर उठाया, तो राजू ने उसके गालों पर थूक दिया। गुड्डी ने सोचा कि राजू उसके चेहरे का फेसिअल करेगा, जैसे मूठ से किया था। गुड्डी बोली," राजू, अबकी अपन थूक से फेसिअल करबा का।"
राजू ने उसके बांये गाल पर थूक फेंक दिया और बोला," ना रण्डी साली, अभी त तहार चांद सन चेहरा के, कोयला जइसन कारी बनायेब। ई कोयला इहे खातिर लावनि ह। वइसे त तू घर के मुंह काला करबाईबु, पर पहिले तहार मुंह काला कर दे तानि। इसे चेहरा के बढ़िया साफ सफाई होखेला।"
गुड्डी," सच राजू, चेहरा साफ होखेला, त बढ़िया से लगा दे। हम अउर गोर हो जाईब, दाग धब्बा भी खत्म हो जाई।"
राजू," होई रण्डी साली, बुरचोदी, अगर तू चुपचाप हमार बात मानबु। हम जे भी कहब, तहरा एकदम लगन से करे के पड़ी। हम जे भी करब तहार फायदा ही होई।" ऐसा बोलके राजू पुनः गुड्डी के माथे पर थूक दिया, जिसे गुड्डी हंसते हुए स्वीकारी। फिर राजू ने कपड़े से उस थूक को उसके चेहरे पर हर जगह मला। जब गुड्डी का चेहरा पूरी तरह गीला हो गया, तो उसने गुड्डी के चेहरे पर कोयला का चूरा हाथ में लेकर अच्छी तरह से मलने लगा। राजू उसके गाल और ठुड्डी पर मल रहा था। गुड्डी उसे रोक टोक नहीं रही थी। फिर उसने गुड्डी के माथे को भी उस कोयले से रंग दिया।
गुड्डी की नाक उसकी पलकें सब कोयले से रंग दी थी। गुड्डी का चेहरा पूरी तरह से काला हो चुका था। सिर्फ उसके गुलाबी होठ, आँखे और नाक के छेद साफ दिखाई दे रहा था। राजू ने गुड्डी की नाक में भी थूक दिया, और गुड्डी उसकी थूक सांस से खींच अंदर ले ली। गुड्डी किसी नशेड़ी की तरह उसे खींच गयी थी। फिर राजू की ओर मुस्कुराती हुई देख रही थी। फिर राजू ने बोला," का रण्डी मज़ा आ रहल बा ना?
गुड्डी," बहुत बढ़िया राजाजी, रउवा हमार सम्मान के चिंता बिल्कुल मत करआ। हमार इहे असली औकात बा, तहार सामने। अउर गंदी लइकी के ई सब असल सम्मान होखेला।"
राजू हंसते हुए बोला," ई भईल असल गंदी रण्डी वाला बात। तू त मन खुश कर देवेलु।" राजू उसके चेहरे को अच्छे से पोतते हुए और काला कर दिया। गुड्डी का चेहरा अब कोयले जैसा पूरा काला दिख रहा था। ऐसा लग रहा था, कि वो चारकोल फेस मास्क लगाई हुई है। फिर राजू वापिस आके बैठ गया। गुड्डी उसके सामने ही बैठी रही। राजू ने अपने मोबाइल से गुड्डी की इसी अवस्था में, बेहद कामुक तस्वीरें ली। गुड्डी भी छिनारपन में कम थोड़े ही थी। वो कभी मुंह में उंगली लेके तो कभी लंबी जीभ निकालके, कभी चौंकते हुए तस्वीरे खिंचवाई। गुड्डी इतनी मस्त और सेक्सी अदाएं कर रही थी, कि लण्ड खिंचना तय था। राजू ने गुड्डी को पिछले दो दिन से नहाने के लिए भी मना कर दिया था। गुड्डी का पूरा बदन अब बदबू दे रहा था, पर राजू को उसके पसीने की खुशबू में डूबी उसकी कोमल देह और आकर्षित और उत्तेजित कर रही थी। राजू ने गुड्डी को बोला," आज तू हमार टेस्ट में फेल हो गईलु। एहीसे आज तहार पूरा दुर्गति कर देब। तहरा से हम खाली पास, के उम्मीद कइनी, पर तू उ भी ना होखे दिलहु। पढ़ाई के त पता न, तहार चुदाई के प्रति हवस हर दिन बढ़ रहल बा। इतना चोदनी ह, तहरा तब भी बूर रिसेला, मुँह लांड खातिर खुलल रहेला, तहार बस चली त दिन रात गाँड़ में लांड लेके बइठल रहबू। बोल अब तू खुद बोल, का करि तहरा साथे।"

गुड्डी बोली," राजू... तभी राजू ने तपाक से एक थप्पड़ मारा उसे, फिर बोला," मास्टरजी बोल, औकात मत भूल आपन।"
गुड्डी," मास्टरजी, जउन रउवा के ठीक बुझावेला, करि हम रोकब ना।"
राजू," तहरा के खुद बताबे के पड़ी, कि का करि।" ऐसा बोलके उसने गुड्डी के सामने कागज़ के तीन छोटे मुड़े हुए टुकड़े फेंक दिया। फिर गुड्डी से बोला कि इनमें से एक कागज उठा लो। गुड्डी ने एक कागज उठाके उसकी ओर दिया, राजू ने कागज़ ले लिया और खोलके पढ़ लिया। फिर मुस्कुराते हुए गुड्डी से बोला," हहम्म, जानत बारू का आईल बा।"
गुड्डी उत्सुकतावश पूछी," का ?
राजू बोला," गाँड़ चुदाई।"
गुड्डी," अच्छा राजाजी।"
राजू," ह्म्म्म, लेकिन उसे पहिले तू जे गलत सलत सवाल बनाइलु , ओकर सही जगह पहुँचाबे के पड़ी।" ऐसा बोलके राजू ने वो सात आठ पन्ने फाड़ दिए और उसको मोड़के गोल कर दिया। फिर उसकी बत्ती सी बना करके गुड्डी के पीछे आकर, गाँड़ में घुसाने लगा। गुड्डी को हल्का दर्द हुआ इसलिए वो आह.. आह करते हुए कराह रही थी। राजू ने गाँड़ में उंगली कर, उसे थोड़ा ढीला किया और जैसे तैसे वो कागज़ की बत्ती गुड्डी की गाँड़ में घुसा डाली। राजू बोला," गुड्डी गलत जवाब के बत्ती बनाके लोग गाँड़ में डाल लेबे कहेला, हम सच में तहार साथे ई कर देनी।"
गुड्डी बोली," ई गलत सवाल के जगह गाँड़ में ही बा।"

फिर राजू ने अपना काला लण्ड उसके सामने लहरा दिया। गुड्डी किसी भूखी कुत्ती की तरह राजू के तने लण्ड की ओर झपट पड़ी। राजू को उसकी उत्सुकता ब्लू फिल्म की हीरोइन से प्रेरित लग रही थी, और वो चाहता भी यही था।
गुड्डी पूरा लण्ड पकड़ के चाट रही थी। वो लण्ड का सुपाड़ा से लेकर जड़ तक, अपनी जीभ को समान रूप से चला रही थी। राजू उसके बाल सहलाते हुए बोला," रण्डी साली, हमार तरफ हमार आँखिया में देखके तब चूसआ।"
गुड्डी बोली," त चुसब ना राजा, एमे कउनु शरम नइखे।"
राजू," उहहह... चूस चूस कुत्ती ।
गुड्डी उसका लण्ड पूरी शिद्दत से चूस रही थी। वो कभी सुपाड़ा मुंह में रख उसपे अंदर ही अंदर जीभ चलाती। राजू का लण्ड पूरा गुड्डी के थूक से पूरी तरह गीला हो चुका था। गुड्डी के ठुड्ढी और होंठों के आसपास चूसने की वजह से थूक बह रहा था। लण्ड के बार बार अंदर बाहर होंठों से निकलने से थूक बहुत चु रहा था। राजू ने गुड्डी के बाल पकड़ अपना लण्ड उसके गालों और होठों पर पटक रहा था। गुड्डी वासना में डूबी, राजू को मनमानी करने दे रही थी। वो बहुत देर तक लण्ड चूस रही थी और राजू उसके साथ मुख मैथुन लगातार किया जा रहा था। अब राजू गुड्डी की गाँड़ का उद्घाटन और गुड्डी की फ्रॉक में चुदाई का उद्घाटन करने के विचार से गुड्डी की फ्रॉक गाँड़ से उठाया तो, देखा गुड्डी की चिकनी गाँड़ में एक बैगन घुसा हुआ था। गुड्डी खुद गाँड़ के फैलाव के लिए, गाँड़ में लण्ड लेने के लिए, ये काम की थी। राजू ये देखा तो अवाक रह गया था। गुड्डी छिनार की तरह हँस रही थी।"
गुड्डी," कइसन लागेला गुड्डी दीदी के गाँड़ के नज़ारा अउर तैयारी।"
राजू उसके गाँड़ को सहलाते हुए बोला," मस्त गुड्डी दीदी, तू एकदम रण्डी जइसन रेडी हो रहल बारू।"
गुड्डी," राजू हम गंदी लइकी बने चाहत बानि, जइसन तहरा पसंद बा।"
राजू," अरे हमार जानेमन, तू सच में गंदी लइकी बारू।
गुड्डी," राजू आज हमार गाँड़ मार लअ, आज गाँड़ चुदाबे खातिर हम रेडी बानि।"
राजू," आज के रात यादगार होई।" ऐसा बोलके उसने गुड्डी के चुतड़ पर कसके थप्पड़ मारे। गुड्डी की आह घर मे गूंज गयी। गुड्डी अपनी आधी उठी हुई फ्रॉक में खुली नंगी गाँड़ का न्योता राजू को दे रही थी। राजू ने उसकी गाँड़ से बैगन निकाला, तो गुड्डी की गाँड़ की छेद पूरी खुली और गाँड़ से बैगन धीरे धीरे बाहर आया। राजू जानबूझ के ऐसा कर रहा था, ताकि गुड्डी की गाँड़ फैल जाए। राजू उसमें थूक भी फेंक रहा था, ताकि वो पूरी गीली हो जाये। गुड्डी अपने चुतड़ थामे, राजू का सहयोग कर रही थी।
गुड्डी बोली," आह... गाँड़ में अलग ही मज़ा आ रहल बा। हमके त लागेला कि ई दर्द में भी गाँड़ चुदाई के आनंद अलग बा।"
राजू," अइसन हो जइबू कि तू बोले लगबु कि गाँड़ के चुदाई कर दअ, बूर के बाद में।"
गुड्डी," राजू सच में अइसन होखेला का।"
राजू," सच बताई, तहरा जइसन लइकी के गाँड़ चुदाबे में बड़ा मज़ा आवेला। अइसन लइकी जउन प्यार खातिर कउनु हद तक जावेली। कउनु बंधन ना बस मन मे चुदाबे के लालसा।"
गुड्डी के फ्रॉक की चेन राजू पीठ पर खोल दिया था। ज्यों ज्यों चेन खुल रही थी, गुड्डी मुस्कुरा रही थी। अब लाज शरम तो गुड्डी कर भी नही रही थी। गुड्डी की पीठ नंगी हो चुकी थी। राजू गुड्डी की गाँड़ में तेल लगाने लगा। गुड्डी राजू के लण्ड को गाँड़ में लेने को काफी उत्सुक थी। राजू ने गुड्डी की गाँड़ की छेद में सुपाड़ा छुवा दिया। गुड्डी एक पल को सहम उठी। अधनंगी गुड्डी कहर ढा रही थी। राजू उसके गाँड़ का एक बार फिर जायजा लिया और अब लण्ड का दबाव गाँड़ के छेद पर देने लगा। गुड्डी चादर भींचे, लण्ड के बढ़ते दबाव को आत्मसात कर रही थी। धीरे से राजू ने सुपाड़ा अंदर प्रवेश कर दिया। गुड्डी तड़प रही थी, पर राजू को आज उसपे बिल्कुल तरस नहीं था। गुड्डी अपने चुतड़ सहलाते हुए बोली," उफ्फ्फ.. बड़ा टाइट बा... लांड। आह... उहहह ओह....
राजू अब वासना के नशे में मुग्ध हो बोला," चुप रण्डी भोंसड़ीवाली, आराम से लांड गाँड़ में घुसाबे दे। आज त तहार गाँड़ चोद चोद के फइला देब।"
गुड्डी की आँहें दर्दभरी सिसकारियां गुड्डी की गाँड़ के छेद के फैलने से बढ़ रही थी। जल्द ही गाँड़ के अंदर लण्ड समा चुका था। गुड्डी और राजू कुछ देर तक वैसे ही पड़े रहे। राजू ने गुड्डी की गाँड़ को लण्ड के आकार में अभ्यस्त होने का पूरा मौका दिया। गुड्डी भी लंबी लंबी सांसें ले रही थी। राजू गुड्डी की रिसती बूर के साथ छेड़छाड़ कर रहा था। थोड़ी देर बाद गुड्डी बोली," राजू अब का करबू?
राजू बोला," तहार गाँड़ मारब रानी, सच में बहुत दिन से इंतज़ार रहे जानेमन।" ऐसा बोलके वो धक्का लगाया तो गुड्डी दर्द से कराह उठी। राजू ने गुड्डी से कहा," अब तनि बर्दाश्त करबू, त खुद लांड आवे जाए के रास्ता बन जायी।"
गुड्डी," राजू हमार ई नन्हा छेद तहार मुसड़ जइसन लांड से कहीं फाट ना जाये।"
राजू," अरे कुछ ना होई, देखलस ना दीदी ब्लू फिल्म में दु दु लांड गाँड़ में एकसाथ लेवेली। अभी देख ना केतना मज़ा आयी।" दर्द के शुरुवाती झटके झेल के गुड्डी धीरे धीरे अभ्यस्त हो गयी थी। अब वो खुद गाँड़ पीछे की ओर हिला हिला के लण्ड लेने का प्रयास कर रही थी। राजू समझ गया कि अब गुड्डी गाँड़ में लण्ड खुलके लेगी। राजू ने तेजी से झटके लगाने शुरू किए। गुड्डी की आँहें कामुक लंपट सीत्कारी में बदल गयी। राजू उसकी कमर में फंसी फ्रॉक पकड़ ताबड़ तोड़ चोद रहा था। अब तो गुड्डी को गाँड़ के संवेदनशील दीवारों से घिसता लण्ड उतना ही आनंद दे रहा था जितना बूर चुदवाने में आता था।
गुड्डी," आह...राजू सच में गाँड़ मरवाबे में बहुत मज़ा आवेला। उफ़्फ़फ़फ़ राजू तू पहिले अपन गुड्डी दीदी के गाँड़ काहे ना मारलु। अइसन मज़ा से हमके दूर काहे रखलु। आह.. चोदआ, चोदआ, राजाजी बहिन के गाँड़ के...उई माँ।"
राजू," माफ कर दे गुड्डी दीदी, कि तहार गाँड़ ना मारनी पहिले। पर सच कहत बानि, तहार गाँड़ पर हमार गंदा नज़र बहुत पहिले से रहे। आज हमार सपना पूरा हो गइल। तहार गाँड़ के चोदे में बहुत मज़ा आ रहल बा।"
गुड्डी बोली," राजू बूर के भी सहलात रहा, अउर मज़ा आ रहल बा।" ऐसा बोलके गुड्डी मुंह से थूक निकाल गाँड़ पर मल रही थी। राजू ने भी थूक दिया। इतनी मस्ती से दोनों सेक्स को एन्जॉय कर रहे थे। राजू उसकी गाँड़ मारता और फिर लण्ड बाहर निकाल लेता, गुड्डी की गाँड़ राजू के लण्ड की चौड़ाई में खुली हुई दिखती। राजू को ये नज़ारा बहुत भाता था। गाँड़ चुदाई चलती रही, गुड्डी अनाप शनाप बोलते हुए, गाँड़ मरवाती रही। राजू और गुड्डी कुछ ही देर में झड़ने को हुए तो राजू ने लण्ड निकालके गुड्डी को चाटने को कहा।" गुड्डी शुरू में तो झिझकी पर, राजू का इशारा पा उसकी आँखों में देखते हुए लण्ड को अपनी जीभ से चाटने लगी। राजू को ये बड़ा ही गर्व का पल था। राजू उसके सर पर हाथ फेरते हुए, उसे लण्ड चूसने को प्रेरित कर रहा था। असली प्रेमिका का काम भी यही है प्रेमी को चुदाई में गर्व महसूस कराए। गुड्डी उसका लण्ड बड़ी ही शिद्दत और मज़े से चूस रही थी। वो ब्लू फिल्म की लड़कियों के बराबर ही सेक्स कर रही थी। राजू ने अंत में गुड्डी के काले चेहरे पर लंड का पानी, निकाल दिया। गुड्डी हंसते हुए उस पानी को पूरे चेहरे पर मल ली। वो बोली," राजू जाने केतना बच्चा बर्बाद हो गइल हमार चेहरा के खूबसूरती खातिर।"
राजू," गुड्डी दीदी, तहार खूबसूरती के लेल जेतना मूठ लागी लग जाये दे। जाने केतना बच्चा तहरा पीछे बहा देले बानि। अब ई कम से कम तहार काम त आ रहल बा।"
गुड्डी हंसते हुए बोली," अब राति के का प्लान बा?
राजू," आज रात चली खाली चुदाई अउर कुछ ना रानीजी। लेकिन उ से पहिले तनि तहार नमकीन बदन चख ली।"
गुड्डी दो दिन से नहाई नहीं थी। राजू ने गुड्डी के कांख को और ढोढ़ी को चाटना शुरू कर दिया। गुड्डी मचल रही थी और राजू उसके नंगे बदन से खेल रहा था। गुड्डी के शरीर की गंध और पसीना राजू को अपनी ओर और भी आकर्षित कर रही थी। राजू चाट चाट के गुड्डी के एक एक अंग को गीला कर रहा था। राजू उसके चुतड़ और गाँड़ की दरार भी चाट गया। राजू की इस हरकत से गुड्डी मचल रही थी।
उसके बाद दोनों फिर तैयार हो चुके थे।
राजू गुड्डी पूरी रात मकान मालिक के घर चुदाई करते रहे। पूरी रात टी वी पर ब्लू फिल्म चल रही थी। राजू ने शिलाजीत का एक एक कतरा गुड्डी की बेदर्द चुदाई पर लुटा दिया था। गुड्डी को खुद अपनी परवाह नहीं थी, वो अपनी हर हसरत पूरी कर रही थी। उसकी दसवी की पढ़ाई का पता नहीं पर चुदाई की वो P Hd कर चुकी थी। उसकी गाँड़ का खुला चुदा छेद अपने साथ हुई भीषण चुदाई की गवाही दे रहा था। उसकी गाँड़ चुदाई के दौरान गुंह भी राजु के लण्ड पर लग गया था। राजू ने गुड्डी से बोलकर उसीसे अपना लण्ड चटवाया और साफ करवाया। गुड्डी को शुरू में झिझक हुई पर राजू से एक दो थप्पड़ खाने के बाद वो बिना समय गंवाए लण्ड चाटने लगी। अपने ही गाँड़ का स्वाद और गुंह को चखकर वो थोड़ी असहज थी। राजू ने उसे और भी गंदी गालियां देकर चोदा था। गुड्डी को आज का सेक्स मसालेदार और रोमांचक लगा। वो राजू के साथ इस गंदी चुदाई के पूरे मज़े ली थी। उसे ये भी एहसास हुआ कि सेक्स के दौरान साफ सफाई ना भी हो, तो मज़ा पूरा आता है। उसकी फ्रॉक अभी भी उसकी कमर में फंसी हुई थी।

इस तरह गुड्डी गंदी लड़की बन चुकी थी।
🔥👍🏼
 

angelshin

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आपके अगले भाग का इंतजार है
 

vyabhichari

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गुड्डी का इंतज़ार

गुड्डी अपनी छत पर सूर्य को जल दे रही थी। तभी उसकी नज़र सामने दरवाजे पर पड़ी। गुड्डी ने उसे देखा तो एक पल को खुश हुई पर अगले ही पल वो नाराज़ हो गयी। वो राजू से मन ही मन गुस्सा थी, कि उसने उसका बच्चा गिरवा दिया था, और उसका मानना था कि भगवान ने उसे एक नपुंसक के साथ ब्याह कर इसकी सजा दी है। लेकिन वो मन ही मन खुद को सांत्वना देती थी कि वो तो उस बच्चे को जन्म देना चाहती थी, पर राजू ने उसे बहका कर बच्चा गिरवा दिया। इसलिए वो खुद से ज्यादा राजू को दोषी मानती थी।
राजू जैसे ही घर के अंदर आया, गुड्डी के ससुर ने उसे देखा और उसका हाल चाल लेने लगा। राजू ने उनके पैर छुए और समान वहीं बरामदे में रख दिया। राजू को वहीं कुर्सी पर बैठा वो बातचीत करने लगे और फिर आवाज़ लगाई," बहुरिया...बहुरिया...देख तहार भाई आईल बा?"
अंदर से गुड्डी की ननद बोली," पापा, भौजी छत पर पूजा करत बिया।"
गुड्डी का ससुर बोला," अच्छा...मीरा बेटी सुनअ, देख भौजी के भाई आईल बा। तनि इनका खातिर चाय पानी नाश्ता ले आवा।" वो फिर उससे बातचीत में समधी और घरबार की जानकारी लेने लगे। इतने में गुड्डी की ननद मीरा पानी और चाय लेकर बाहर आई। वो कोई इक्कीस साल की होगी। दिखने में बेहद खूबसूरत, उसके बाल खुले थे। उसकी ऊंचाई कोई पांच फीट चार इंच की होगी। उसका रंग गेंहुआ और चेहरा लंबा था। नाक बहुत तीखी और होठ हल्के चौड़े गुलाबी थे। आंखें उसकी बड़ी बड़ी और कजरारी थी। वो इस वक़्त मेहेंदी रंग की सलवार सूट में थी। उसके छाती और गाँड़ का उभार बेहद कामुक रूप से फैला हुआ था। उसने झुक कर राजू को चाय और पानी दिया। उसके झुकते ही उसकी चूचियों के बीच की गहरी दरार और बांई चुच्ची के ऊपर तिल राजू के सामने प्रस्तुत हो गया। राजू की नज़र तो ऐसी कोमल तितलियों के यौनांग को कपड़ों के ऊपर से भांप लेते हैं यहां तो, उसकी झलक साफ साफ मिल रही थी। राजू एकटक वहीं देख रहा था। उधर मीरा भी राजू को देख मुग्ध थी, उसने पहली बार इतना खूबसूरत नौजवान देखा था। मीरा राजू को देख उसकी एक नज़र में ही खो गयी। दोनों एक दूसरे को देख रहे थे। मीरा चाय का प्याला बढ़ाते हुए बोली," चाय ली ना रउआ।" राजू ने चाय ले ली और एक मुस्कान दी। राजू ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा," बहुत निम्मन चाय बा, के बनौले बा?
मीरा," जी हम, रउआ के निम्मन बुझाईल, शुक्रिया।" मीरा का बाप उसे अंदर जाने को कहता है। मीरा अपनी मस्तानी चाल में चली जाती है और राजू उसकी मटकती गाँड़ देख एक आह भरता है। कुछ देर बाद राजू कमरे में जाकर फ्रेश होता है और लेट जाता है। चुकि वो थका हुआ था, उसे नींद आ गयी। लेकिन तभी पायल की रुनझुन रुनझुन की शोर ने उसे उठा दिया। उसने आंखे खोली तो उसकी नज़र फर्श पर गयी, जहां उसे जनाना के दो पैर दिखे जिनके बीच की दो उंगलियों में बिछिया थी। राजू ने नजरें उठायी तो देखा, उसके सामने गुड्डी थी, जो उसके लिए खाना परोस के ले आयी थी।
गुड्डी बिल्कुल औरतों की तरह सजी धजी हुई थी। राजू ने जब उसे देखा तो उसे लगा जैसे बीना ही खड़ी हो।

गुड्डी की बूर राजू को देखते ही फड़कने लगी थी। बूर से पानी किसी जल प्रपात सी रिसने लगी थी। उसका मन तो था कि वो राजू से अभी चुदवा ले। लेकिन उसने खुद पर काबू किया। वहीं राजू ने उसे देखा तो, साड़ी और सिंदूर में उसकी बहन बेहद खूबसूरत देहाती औरत लग रही थी। वो पहले से ज्यादा भरी हुई और परिपक्व लग रही थी। गुड्डी हमेशा सर पर आँचल रखती थी। उसका मंगलसूत्र हमेशा उसके गले में चमचमाता जो उसके विवाहिता होने का सुंदर प्रमाण देता था। गुड्डी के हाथों में चूड़ियां बहुत अच्छी लग रही थी। राजू को पीली साड़ी में गुड्डी बहुत सेक्सी लग रही थी। सामने से गुड्डी की ढोढ़ी उभरी हुई थी, जो उभरकर उसकी कामुकता बढ़ा रही थी। राजू की नज़र अपनी ढोढ़ी पर देख, वो समझ गयी कि उसके भाई के दिमाग में क्या चल रहा होगा क्योंकि खुद उसके दिमाग में पुरानी बातें चल रही थी जब वो राजू के साथ रंगरेलियां मनाया करती थी। बहुत दिनों बाद उसकी नज़र एक आकर्षक पुरुष पर पड़ी थी। उसने देखा राजू के चेहरे पर दाढ़ी और मूछ प्रचुर मात्रा में निकल आये हैं। उसकी बाँहे पहले से ज्यादा मजबूत हो चुकी है। उसका कंधा और चौड़ा हो गया था, और छाती के बाल कमीज से बाहर आ रहे थे।
गुड्डी," कइसन बाड़अ तू राजू, घर पर सब कइसन बाड़े?"
राजू," सब ठीक बा गुड्डी दीदी, तहरा सब खूब याद करतआ?"
गुड्डी," राजू बाबूजी कइसन बाड़े?
राजू," ठीक बाड़े, तनि खेत के लेके चिंतित रहेलन। जउन तहरा बियाह में गिरवी रखले रहलन।"
गुड्डी चुप हो गयी, उसकी आँखों में आंसू तैर आये। तभी राजू ने इधर उधर देख उसका हाथ पकड़ लिया और उसे करीब खींच लिया। गुड्डी उसका एहसास पा सनसना उठी। तभी राजू ने उसे अपने बगल में बिठा लिया। राजू गुड्डी की आंखों से गिरते आंसू पोछ बोला," तू कानत काहे बारू, हम हईं ना, हम सब ठीक कर देब।"
राजू," तू बता इँहा कइसन लागतआ? जीजाजी तहार ध्यान राखेलन कि ना? देखअ तानि पहिले से तनि हरिया गईल बारू?
गुड्डी उसकी ओर देखी फिर उठ खड़ी हुई, राजू को ऐसा लगा जैसे उसने गुड्डी की दुखती रग पर हाथ रख दिया है। गुड्डी ने कहा," तू खाना खा ले अउर आराम कर, अभी घर में बहुत काम बा। हम सब निपटाके आवत बानि।" गुड्डी ये बोलकर वहां से चली गयी। राजू उसकी बलखाती कमर देख आह भरी। राजू खाना खाते हुए सोच रहा था कि जरूर गुड्डी और उसके जीजा के बीच संबंध ठीक नहीं है, इसीलिए वो इतना भड़क उठी।
वो खाना खाके लेटा ही था कि उसका फोन बज उठा। उसने फोन उठाया, तो उधर से आवाज़ आयी," राजू आज रात माल उतरवा के गोदाम में राखवावे के बा।"
राजू," जी हो जाई, हम शाम तक पहुंच जाएब।"
उधर से आवाज़ आयी," तू होशियार बारअ, एहीसे ई काम तहरा देल गईल बा।"
राजू," रउवा चिंता न करि, सब काम ठीक से हो जाई हमरा पर भरोसा करि।"
फोन कट गया। राजू अभी लेटा ही था कि, उसकी नज़र कमरे के दरवाजे पर गयी जहां गुड्डी की ननद झांक कर उसे देख रही थी। घर में इस वक़्त सिर्फ गुड्डी उसकी सास और ननद थी, गुड्डी के ससुर रोज़ दस ग्यारह बजे निकल जाते थे और शाम तक आते थे। गुड्डी का पति भी काम पर निकल गया था। उसकी सास अपने कमरे में पूजा पाठ कर रही थी। राजू ने उसे ऐसा करते देखा तो इशारा कर अंदर बुलाया। वो चुपके से दबे पांव कमरे में आ गयी। वो धीमे धीमे मुस्कुरा रही थी। राजू ने उससे पूछा," मीरा जी इँहा आयी, ऊंहा से का देखत रहलु।"
मीरा," कुछ ना बस असही।"
राजू," कुछ बात बा त बोली।"
मीरा मुस्कुराई और फिर बिना कुछ बोले भाग गई। राजू उस जाते देख मुस्कुराया और समझ गया कि वो उसे पसंद करने लगी है। राजू शाम को पटना निकल गया और वहां काम खत्म करके वापिस नौ बजे तक आ गया। राजू ने गुड्डी से कई बार बात करनी चाही, पर वो बस उसके सवाल का जवाब दे कन्नी काट लेती। राजू को उसका ये व्यवहार समझ नहीं आ रहा था। वो बहन जो उसके साथ अंतरंग रिश्ते बना चुकी है, वो आखिर क्यों उससे बात ढंग से नहीं कर रही। कहीं उसे उन अश्लील अंतरंग लम्हों का पछतावा तो नहीं हो रहा। कहीं सगे भाई संग कौटुम्बिक व्यभिचार उसे कचोट तो नहीं रहा। ये सब जानने के लिए उसने एक दिन जीजा, गुड्डी, मीरा के साथ फ़िल्म का प्लान बनाया। सबकी सीटें एक ही रो में थी। मीरा जानबूझ कर राजू के पास बैठ गयी। फिर ऐसा हुआ कि पहले मीरा फिर राजू उसके बाद उसका जीजा फिर उसकी गुड्डी दीदी बैठे थे। मीरा फ़िल्म शुरू होते ही राजू के साथ छेड़खानी शुरू कर दी। उसने अपनी चुन्नी उतार, राजू को अपने चूंचियाँ दिखा रही थी। वो पैर से राजू के पैर को छेड़ती। कभी उसके हाथ को छूती और उसका हाथ अपने हाथों में ले गोद में ले लेती। राजू को उसकी छेड़खानी से ज़्यादा गुड्डी की खामोशी परेशान की हुई थी। वो बार बार गुड्डी को देख रहा था। राजू बस मौका ढूंढ रहा था कि कब गुड्डी से बात करने का मौका मिले। तभी गुड्डी को उसने उठकर कहीं जाते हुए देखा वो समझ गया कि वो पक्का बाथरूम करने जा रही है। राजू भी चुपके से निकल गया। वो लगभग भागते हुए महिला प्रसाधन की ओर गया। गुड्डी बस अंदर घुस ही गयी थी। राजू भी हिम्मत दिखाकर अंदर घुस गया। चुकी फ़िल्म अंदर चल रही थी, तो वहां उन दोनों के अलावा कोई नहीं था। राजू गुड्डी के दरवाजे पर खड़ा बोला," गुड्डी दीदी, खोल ना तहरा से बात करे के बा। तू काहे हमसे ठीक से न बोलत बारू? बोल ना। घर पर तहरा से बात करे जे मौका मिलते नइखे।"
गुड्डी अंदर सब सुन रही थी, बोली," राजू निकल इँहा से, ई कोई जगह बा बात करे खातिर, ई महिला सबके मूते के जगह बा। केहू देख ली त तहरा पीट दी।"
राजू," ना, सुन हम बहुत बेचैन बानि। तहार ई रुखल व्यवहार हमके जिये न दी।"
गुड्डी बोली," चल जो राजू, बाद में बात करब।" इतने में किसी के आने की आवाज़ आयी। गुड्डी ने दरवाजा खोला और राजू को अंदर खींच दरवाजा बंद कर दिया। दोनों अंदर एक दूजे की बांहों में थे। दोनों खामोश चुपचाप खड़े थे। कुछ देर बाद वो आहट चली गयी। गुड्डी राजू को देख बोली," काहे तू हमके परेशान कइले बारआ?
राजू," तू हमार सवाल के जवाब दे दअ, का तहरा केहू ग्लानि बा, कोई पछतावा? हमरा से प्यार बा कि ना? अउर बा त ई नाराज़गी काहे?
गुड्डी चुपके से उसके करीब आयी और बोली," राजू भाई, हम तहरा से नाराज़ बानि। तू हमसे हमार पहिला बच्चा छीन ले लु। उ मासूम जान के का कसूर रहे, जउन गलती भईल उ त हमरा तहरा से। प्यार के नशा में भूल गईल रहनि कि बच्चा भी ठहर सकेला। जब उ ठहर गईल त भगवान के देन के हमनी ठुकरा देहनि जा। ओकर सज़ा हमरा अब सास के ताना सुनके मिलेला। हड़बड़ी में अइसन मरद संग बियाह हो गइल कि साला ओकर लांड खड़ा ही ना होखेला। खुद लौंडिया जइसन गाँड़ मरवावेला। अइसन पुरुख के बच्चा कइसे होई। तहरा संग दिल लगा लेनि। अब केहू अउर के साथ हम चुदाई सोच भी ना पाइब। तुहि हमार करेजा में दिल बनके धरकेलु।"
राजू," त सुनाबअ आपन दिल के धड़कन?
गुड्डी ने राजू के चेहरे को थाम अपने सीने से लगा लिया। राजू ने साड़ी का पल्लू हटा दिया और उसके ब्लाउज के ऊपर से चुच्चियों के चूचकों को छेड़ने लगा।
राजू," गुड्डी दीदी, तू हमसे नाराज़ होबु त तहार आशिक़ के का होई। तहार देह के हर कोना के रस पीके भी हम तहरा खातिर बेचैन रहेनी। हम जउन कइनी तहरा खातिर कइनी, तहार सुरक्षित भविष्य खातिर। जब से तू घर से विदा भइलू तबसे शायद ही केहू दिन होई जब तहरा हम याद ना कइनी। हर रोज़ तू हमार सपना में आवत रहलु।"
गुड्डी," अच्छा, अउर सपना में का करत रहनि?
राजू," आके, तू हमार सामने एक एक कपड़वा उतार के लंगटी हो जात रहलु। ओकर बाद हमार लांड के सामने ठेहुना पर बइठ के ओकरा प्रणाम करत रहलु। फेर लंगटी ही हमरा सामने नाचत रहलु। ओकर बाद हमार लांड पकड़के हमरा आपन सुहागरात के सेज पर ले जावेलु। सारा सारा रात तहरा हम उ सेज पर सुताके चोदनी।"
गुड्डी," अच्छा, सुहागरात त हमार कभू भईल ही ना। तहार जीजा त पहिल रात में ही फुस्स हो गइल। हमार देहिया के सगरो गर्मी बूर से पानी जइसन बहेला। राजू हम बुरा लइकी नइखे, हमार तक़दीर बुरा बा। मरद त औरत के चाही, जउन ओकर यौन इच्छा के शांत करे। न त बेचैन बेताब औरत कब दोसर मरद के बिस्तर में घुस जाली, पता न चलेला। इसशहशश.... हमार चुच्ची छेड़के हमके बहकावेलु। छोड़ द हमके।"
राजू," हम कुछ अइसन त न कइनी जउन पहिले न कइनी? शादी से पहिले त खुद चुच्ची चुसवात रहलु।"
गुड्डी," अब हमार शादी हो गइल बा, हम दोसर के पत्नी बानि। लाज आवेला।"
राजू, गुड्डी के चूचियों को मसलते हुए बोला," जान ले लेब तहार अउर ओकर भी, जउन तहरा अउर हमरा बीच आयी। तहार ऊपर खाली हमार हक़ बा। तहरा केहू अउर छुई त हम सच में ओकरा जिंदा न छोड़ब।"
गुड्डी," आह...आह.... हम तहार रहनि, बानि अउर रहब। लेकिन तू भी खुद के हमार मालिक बुझेलु त काहे हमार बियाह एगो नपुंसक से करा दिहलु।"
राजू," अच्छा भईल कि तहार बियाह नपुंसक से भईल, अगर केहू अउर से भईल रहित त तू बच न सकेलु। अउर भगवान हमनीके एक मौका देले बारे, जउन गलती हमनी कइनी, ओकरा सुधारे के।"
गुड्डी," का साफ साफ बोलअ, हम समझनि ना।"
राजू," अरे बुरबक, सोच अब तहार बियाह हो गइल बा। उ बखत त तू कुमारी कन्या रहलु, एहीसे बच्चा गिरावे पड़ल। पर अब अगर तू चहबू त हम तहार गोद भर देब, अउर केहू शक ना करि। तहार कोख में बच्चा हमार रहि, पर सब बुझी कि ई बच्चा तहार पति के बा।"
गुड्डी," लेकिन पति के त पता रही कि उ बच्चा ओकर नइखे?
राजू," कोई भी आदमी आपन नामर्दी लोगन के ना बताई। ऊपर से हमरा पास अइसन प्लान बा कि उ खुद तहरा हमरा पास भेजी, बच्चा पैदा करे खातिर।"
गुड्डी," उ कइसे?
राजू," उ सब तू हमरा पर छोड़ दे। तू बस अबसे रोज़ पति से कह कि तहरा बच्चा चाही। तू तहार सास के ताना सुनके तंग हो गइल बारि। एहि से तू बच्चा चाहेलु।"
गुड्डी," राजू, केहू आ रहल बा। हम रात के सबके सुते के बाद छत पर आईब।"
ऐसा बोल वो अपने कपड़े ठीक कर चली गयी। राजू का लण्ड तना हुआ ही रह गया। उसके बाद वो लोग किसी होटल में खाना खाकर वापिस आ गए।

रात खाना खाने के बाद, गुड्डी किचन में बर्तन माज रही थी। गुड्डी आज जानबूझकर देर कर रही थी। उसके पति की नाईट ड्यूटी थी अस्पताल में तो वो घर पर अकेली थी। उसके ससुर सास सब सोने चले गए थे। पर उसकी ननद मीरा अभी भी जगी हुई थी। थोड़ी देर बाद उसके कमरे की बत्ती भी बुझ गयी। गुड्डी उसके सोने के बाद अपने कमरे में गयी, फिर अपना चेहरा धोया। इसके बाद चेहरे पर क्रीम और पाउडर लगाया। आंखों में काजल और होठों पर लिपस्टिक घिस लिया। वो फिर वादे के मुताबिक राजू से मिलने दबे पांव ऊपर वाले कमरे की ओर बढ़ चली। उसकी धड़कने तेज़ चल रही थी, आज जाने कितने दिन बाद वो राजू के साथ रात बिताने वाली थी। वो खिड़की के पास पहुंची, जो खुली हुई थी। वहां उसने देखा राजू लेटा हुआ था। गुड्डी ने उसका ध्यान खींचने के लिए अपनी चूड़ियां खनकाई क्योंकि उसे बोलते हुए डर लग रहा था। राजू चूड़ियों की खनक सुन उधर पलटा, गुड्डी को देख वो खुश हुआ। गुड्डी ने इशारे से उसे दरवाजा खोलने को कहा, अगले ही पल राजू ने दरवाजा खोला। गुड्डी अंदर घुसते ही राजू से लिपट उसे अपनी बांहों में भर ली। गुड्डी की आंखों में मिलन और खुशी के आँसू थे। गुड्डी ने दरवाजा लगाया और फिर राजू से लिपट बोली," राजू हमके माफ कर दअ, तहरा साथ बहुत गलत कइनी। तू हमरा से मिले खातिर आईल बारअ, अउर हम हईं कि तहरा सता रहल बानि। तू हमार इज्जत खातिर घर के इज्जत खातिर उ बच्चा गिरवेलु। तहार निर्णय ठीक रहे। हम तहरा अइसन गुनाह के सजा देत रहनि जउन तू कभू कइले न रहलु।"
राजू," गुड्डी दीदी, तू ई सब का कह रहल बारू। तहरा जगह केहू और रहित त उ जरूर अइसन ही व्यवहार करित। तहार आँखिया में आँसू ठीक ना लागेला। चल बइठ के बतिया बा।" राजू गुड्डी को बिस्तर तक ले गया।
राजू," गुड्डी दीदी, तू तनि दुबरा गईल बारू। ठीक से खात नइखे।"
गुड्डी," ससुराल में सब लइकी के साथ असही होता। लेकिन तहरा देखे से मन प्रसन्न हो गइल बा।"
राजू," अउर तहरा देख के हमार।" दोनों एक दूसरे को गौर से देख रहे थे। गुड्डी न जाने कब राजू की गोद में बैठ जाती है। फिर वो राजू से पूछती है," राजू तहरा हमार याद आवत रहे कि ना?
राजू उसके गालों को सहलाते हुए बोला," तहरा हम कभू भूले न पाइनि। तू हमार पहिल प्यार बारू।"
गुड्डी," एतना बोलके तू हमके खरीद लेलु। तू अब जवान हो गइल बारू। तहार छाती, ई मजबूत कंधा जउन लइकी से तहार बियाह होई उ बहुत सौभाग्यशाली होई।"
राजू," एक दिन हम तहरा से बियाह करब।"
गुड्डी," तू एगो बियाहल लइकी से बियाह करबू का।"
राजू," खाली इहे न, तू हमार बच्चा भी जनबु।"
गुड्डी राजू के लण्ड को चूतड़ों से मसलते हुए बोली," बच्चा, चाही त ओकरा खातिर का करे के पड़ी?
राजू," अभी बतावत हईं।" ऐसा बोल उसने गुड्डी को बिस्तर पर पटक दिया और उसके ऊपर चढ़ उसे चूमते हुए उसकी साड़ी उतार फेंकी। कुछ देर में ब्लाउज भी गुड्डी के स्तनों से बिछड़ने का दुख मना रही थी। उसकी ब्रा भी उतर चुकी थी। गुड्डी ने पैंटी नहीं पहन रखी थी। अब राजू गुड्डी के बदन पर ताबड़तोड़ चुम्बन बरसा रहा था। गुड्डी के होठों को चूमते हुए, वो उसके स्तनों से खेल रहा था। गुड्डी स्वयं अब उत्तेजित हो उठी थी। सालभर से दबी चिंगारी भड़क उठी थी। आग दोनों तरफ बराबर लगी थी। वासना ने अपना रंग राजू और गुड्डी पर दिखाना शुरू कर दिया था।
राजू गुड्डी के बदन पर एक भी कपड़ा देखना नहीं चाहता था। उसने गुड्डी का साया भी जोड़ से खींच कर अलग किया और फेंक दिया। गुड्डी को राजू की आंखों में खुद के लिए वहसीपन अच्छा लग रहा था। एक असली मर्द अपनी औरत के साथ ऐसा ही करता है, यही उसकी परिकल्पना थी। गुड्डी बिस्तर में नंगी पड़ी उस आत्मसमर्पित हिरनी की तरह लग रही थी, जो शेर का शिकार होने की प्रतीक्षा में थी। गुड्डी पेट के बल, एक टांग ऊपर कमर तक घुटनों से मोड़े हुए, अपनी गाँड़ हिला रही थी। वो बिखड़े बालों को संवारते हुए पीछे राजू को कामुकता से देख रही थी।
राजू," आज तहार सुहागरात के इच्छा पूरा होई गुड्डी दीदी।"
गुड्डी," पूरा एक साल से चुदवैनी न। बियाह के रोज तुहि चोदले रहलु। सुहागरात में जीजा तहार हमके छूलस भी न, न हम छुए दैनी। आज हमार असली सुहागरात होई। एक बहिन आपन भाई के साथ सुहागरात मनाई।"
राजू गुड्डी के चूतड़ों की घाटी में अपनी हथेली रगड़ रहा था। उसके हाथ बहन की बूर से टकराये तो वो हैरान हो गया। गुड्डी की बूर बेहद गीली और चिपचिपी हो रही थी। उसके बूर से कामरस का रिसाव बेहद तेजी से हो रहा था। राजू," तहार बूर से एतना पानी काहे चु रहल बा।"
गुड्डी," ह्हम्म, बुरबक कहीं के भूल गईलु, बूर गीला होता, लांड घुसाबे खातिर। अउर लांड जब भाई के होता, त बूर अउर पानी छोड़ेला राजा।" वो बड़े ही कामुक अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोली।
राजू उसके बाल पकड़ खींचा और बोला," सच तहरा जइसन लंडखोड़ औरत के सालभर से लांड न मिली त उ अइसन ही छिनार जइसन बूर से पानी चुआवेली।"
गुड्डी," राजू हम केहू अउर के ना, बस तहार छिनार बानि। तहार दीदी बस तहार संग ही खुश रह सकेलि। तहार हमार सच्चा प्यार भाई- बहन के साथ जिस्मानी भी बा। तू हमार प्यास मिटा द।"
राजू अपना लण्ड दिखाते हुए बोला," उफ़्फ़फ़ ..... बहुत दिन बाद तहरा लंगटी देख रहल बानि। तहरा देख साला ई लांड देख कइसे फनफना गईल ह। तहार ई मस्त गोल गाँड़ अउर भूरा रंग के चूचक के ताज से उठल चुच्ची बहुत उत्तेजक लागत बा।"
गुड्डी राजू के छाती में हाथ फेरते हुए, उसके बदन को सूंघ रही थी। राजू के पसीने की गंध में उसकी मर्दाना महक स्पष्ट थी। गुड्डी ने जीभ निकाल उसकी पसीने से भरी छाती को चाट लिया। राजू को ये अच्छा लगा तो उसने गुड्डी से पूछा," तहरा पसीना चाटे में अच्छा लागेला?
गुड्डी," हां, ऐमे असली मरद के गंध बा।" ऐसा बोल वो उसकी छाती और काँख में पसीने को चाट रही थी।
राजू ने उसे अपना पसीना पूरा चटवाया। इसके बाद गुड्डी उसके लण्ड की ओर लपकी। उस नुकीले सुपाड़े को उसने जीभ से चटखारा। फिर जैसे किसी जूते को कपड़े से चमकाते हैं वैसे ही उसने सुपाड़े पर थूक अपनी जीभ से सुपाड़े को चमकाने लगी।
गुड्डी राजू के आगे कुत्ती बनकर लण्ड चाट रही थी। राजू बिस्तर पर खड़ा था और गुड्डी के बाल पकड़ उसपर नियंत्रण रखें हुआ था। गुड्डी तो जैसे किसी बच्चे को मनपसंद खिलौना मिल जाने पर उत्साहित होता है बिल्कुल वैसी ही उत्साह में थी। ये वो खिलौना था जिसके लिए वो साल भर से तड़प रही थी। उस लण्ड रूपी खिलौने से खेलने में वो इतनी मशगूल थी कि राजू के अपने गाँड़ पर बरसते थप्पड़ उसे उत्तेजित कर रहे थे। राजू गुड्डी की नाक बन्द कर मुँह में लण्ड पूरी तरह घुसाता और जब तक वो सांस के लिए छटपटाती नहीं तब तक उसे कोई राहत नहीं देता था। गुड्डी भी काफी ब्लू फिल्मों की हीरोइन की तरह खुद को प्रशिक्षित कर चुकी थी। कभी वो लण्ड को सुपाड़े से जड़ तक अपनी थूक से भिगोती। कभी होठों पर थूक जमा कर बच्चों की तरह बुलबुले बनाती। कभी लण्ड के छेद को जीभ से छेड़ती, तो कभी सुपाड़े को गाल के भीतरी दीवार से टकड़ा ऐसे मुँह बनाती जैसे मुँह में रसगुल्ला रखी हो, और उसपर अपनी हथेली से गाल पर थप्पड़ मारती। राजू को उकसाने के लिए लण्ड निकाल कर अपने चेहरे की लंबाई नापती और हंसती। राजू के आंड़ को वो मुँह में लेके गुलाब जामुन सी चूसती थी। राजू बस गुड्डी की मन ही मन तारीफ कर रहा था, कि वो बिल्कुल अब ब्लू फिल्म की हीरोइन की तरह लण्ड चूस रही थी।
तभी गुड्डी बोली," उम्मह.... उम्म... का मस्त लण्ड बा?
राजू," लागत बा तू बहुत ही पियासल बारू।"
गुड्डी," हां, तहार लांड खातिर....पपप्पललप्प....पप्पललप्प।"
राजू," गुड्डी दीदी, तू सच में लांड चूसे में न.१ बारू। एतना बढ़िया से त केहू न चूसलस।"
गुड्डी," अउर केकरा से चूसौलस ?
राजू," तहार रंडी माई से गे रंडी के जनमल। रंडी त रंडी जइसन ही ना चूसी।"
गुड्डी," रंडी माँ त बेटी भी रंडी। राजू मज़ा आईल आपन रंडि माई के चोदे में।
राजू," उ साली त गजब के रंडी बा? वइसन बेचैन, बेबस, चुदक्कड़ लइकी केहू ना होई।"
गुड्डी बोली," अच्छा अब तू हमार ऊपर आके बूर चोद। बूर चोदत चोदत तू माई अउर आपन कहानी सुनाबअ।"
गुड्डी राजू को अपने टांगे फैला बीच में ले आयी और उसने उसकी भूखी बूर में उसका कड़ा लण्ड घुसा दिया। राजू उसकी चूचियों को दोनों हाथों में भींच उन्हें चूमते हुए लण्ड बूर में पेलने लगा। राजू उसके चुचकों को मसलते हुए बोला," ई बेर जब हम तहरा पेट से कर देब, तहरा बच्चा होई त हम भी दूध पियब।"
गुड्डी मुस्कुराते हुए बोली," ई भी कोई बोले बला बात बा। तहरा जेतना मन होई उतना दूध पी लिहा। बच्चा केतना पीबे करि। बाकि दूध तहरे खातिर रही।"
राजू," जानत बारू, माई के लंगटी कइके पूरा घर में चोद लेनी ह। लेकिन सबसे ज्यादा मज़ा आईल जब बीना के हम बाबूजी के बिस्तर पर चोदनी। जहां माई लजात रहे अउर हम उसे पहिले शिलाजीत खा लेने रहनि। ओकरा गोदी में उठाके सारा रात चोद चोद के धन्य कर दैनी। सच बताई त माई जइसन बेधड़क चुदक्कड़ हम देखनि ना।"
गुड्डी," आह...आह... माई के भी पेट से कर देबु?
राजू," हम चाहत बानि कि तू अउर माई हमार बच्चा के जन्म दे, हमरा बाप बने के सुख दे।"
गुड्डी," आह..आ..आ..उफ़्फ़फ़ औरत के असली काम त इहे बा, मरद के बच्चा देबे के। तहरा खातिर त हम पहिले भी पेट से हो गइल रहनि। उ समय दिक्कत रहे, पर अब त लाइसेंस बा। हम सच में तहरा से ही आपन गोद भराई करबाईब। लेकिन उ खातिर तहरा हमके अबसे रोज़ चोदे के पड़ी। रोज़ आपन मूठ हमार बूर में गिराबा। हमार सास के त पता ही नइखे कि ओकर बेटा नपुंसक बा। अब बताईब हम बांझ नइखे।"
राजू," गुड्डी दीदी तहार बूर अभी भी उतने टाइट बा। उफ़्फ़फ़ लागतआ तहार बच्चेदानी से टकड़ात बा। देख किस्मत में तू हमार बारू, बियाह त भईल दूसरा से पर उ साला नामर्द बा। अब तू फिरसे हमार संग बारू।" राजू धक्के लगाते हुए बोला।
गुड्डी," खाली इहे न हम हर जनम तहार किस्मत में बानि राजा।"
राजू गुड्डी की बूर में कमर के भरसक प्रयास से धक्के मार रहा था। गुड्डी उन धक्कों में आनंद के नए सागर में लीन हो रही थी। कुछ देर बाद राजू ने लण्ड का पानी उसकी बूर में बहा दिया और उसके साथ लेट गया। गुड्डी जैसे उस वीर्य को बूर में नहीं आत्मा में उतार रही थी। राजू और वो पिछले दो घंटों से कामलिप्त थे। गुड्डी ने राजू के छाती पर सर रख उसे बांहों में भर लिया। राजू ने पास ही तकिए के नीचे से सिगरेट निकाल सिगरेट जलाई। उसने एक कस लिया ही था कि गुड्डी बोली," राजू तू ई सिगरेट कबसे पिये लगलु?
राजू," गुड्डी दीदी, बस आदत लग गईल। तहरा पटना में मकान मालिक याद बा। जहां उ नर्सिंग होम में तहार गर्भपात करावे में मदद कइले, उहे हमरा एक बार मंत्री से मिलवइलस। मंत्री के हम आपन बात में पटा लेनी। अब हम ओकर गोदाम में आवेवाला गैर कानूनी समान के ठिकाना लगावत बानि। एहि खातिर उ दिन हम शाम में गईल रहनि। ऊंहा ढेरी लोग ई सब पीएले। बस पहिले कभू कभार रहे, अब आदत हो गइल बा। पर अभी तक घर में केहुके नइखे पता।"
गुड्डी," गैर कानूनी समान मतलब?
राजू," शराब, चरस, गांजा, हेरोइन, कोकेन ड्रग्स इत्यादि। इहे सब। ई सब से मंत्री खूब माल कमावेला। पुलिस के भी डर नइखे काहे सब त मिलल बा। खाली विपक्ष वाला सबसे बचके रहे पड़ेला। घर में केहू के न बतौनी सिवाय तहरा। हम और अरुण दुनु अब इहे काम में लग गईल बानि। बहुत जल्दी हम बाबूजी के ज़मीन छुड़ा लेब। पइसा त अभी भी बा बहुत, पर एकाएक सब निकालब त सबके नज़र में आ जाएब। पढ़ाई भी ई साल खत्म हो जायीं।"
गुड्डी अपने भाई को सिगरेट पीते हुए देखती रही और सुनती रही।
कुछ देर रुक वो बोली," लेकिन ई गलत काम बा ना राजू। तू त बड़ा शरीफ रहलु। ई सब काम काहे शुरू कइलु?
राजू," गुड्डी दीदी, तू का चाहत बारू बाबूजी के गिरवी ज़मीन बिक जाए। हम सब हमेशा गरीब बनके रही। तहार बियाह में दहेज खातिर बाबूजी, केतना परेशान भइलन, भूल गईलु। हम सब ठीक कर देब। उ ठीक करे खातिर हम सब करब। बाबूजी के बाद घर परिवार के ज़िम्मेदारी हमार बा, अउर हम अभी से ओकरा संवारत बानि।"
गुड्डी राजू को चूमते हुए बोली," गुस्सा न हो राजू। तू सच में जिम्मेदार बारू। लेकिन ई सब खतरनाक काम बा। तहरा कुछ हो जाई त हमार का होई, माई के का होई?
राजू सिगरेट का धुंआ छोड़ते हुए बोला," अरे हम पूरा जिनगी ई काम न करब, साल दु साल में खूब पइसा हो जाई त हम खुद ही छोड़ देब ई सब।"
गुड्डी बोली," राजू कोई अइसन जुगाड़ कर ना, जइसे तू हमके वापस राघोपुर ले चल। हम उंहे तहरा साथ रहब।"
राजू," हम खुद तहरा अपना साथ रखे चाहेनि। कुछ न कुछ जुगाड़ करेके पड़ी। लेकिन हम तहरा से वादा करत बानि कि तहरा इँहा से ले जाएब।"
गुड्डी," सच राजू... तहरा राखी के कसम।"
राजू," राखी के कसम देले बारू, अब त निभाबे के पड़ी।अरे तहरा खातिर सोना के करधनी लेके आईल रहनि। तनि देख त कइसन बा।"
राजू ने टेबल पर रखे बैग से कमरबंद निकाली, जिसमें सोने की लड़ियाँ लगी हुई थी। गुड्डी उसे देख खुश हो गयी। गुड्डी ने वो लेते ही राजू के चेहरे पर चुम्बन बरसा दिया। उसी वक़्त वो खड़ी होकर कमर में बांध ली और राजू को दिखाने लगी।

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गुड्डी," कइसन लागेनि राजा?
राजू, " बस कातिल लागेलु। ऐसा बोलके वो गुड्डी को फिर बिस्तर पर पटक दिया।
गुड्डी," राजू, हमार पति कभी हमरा खातिर कुछ न लाइले। तू एतना महंगा चीज़ लावलु।"
राजू," हम तहार भैया भी बानि अउर सैयां भी बानि।
गुड्डी," अउर हम तहार बहिनिया भी बानि अउर सजनिया भी।" ऐसा बोलके दोनों ने एक दूसरे को चूमा।
गुड्डी," हम तहरा का दी। तहार तोहफा के बदला में।"
राजू," छोड़ तहरा से का लेब, तू आपन प्यार लुटाबआ खाली हमरा पर।"
गुड्डी," ह्हम्म... बोल ना। हमरा पास कुछ त होई जउन तहरा पसंद होई।"
राजू," न अइसन कुछ नइखे हमके कुछ न चाही।"
गुड्डी," तहरा मीरा के चोदे के मन बा ना। उ बहुत कड़क माल बिया। उ तहरा पर खूब लाइन मारेली, तू ओकरा कल चोद लअ। परसु होली बा, कुछ जुगाड़ कइके चोद ले।"
राजू," होली बा त हमार होली तहार संग होई।"
गुड्डी," अरे हम त रहब पर, तहरा एगो नया बूर मिली चोदे खातिर। लोग नया कली सबके फूल बनाबे चाहिले अउर तहरा त काल खुला मैदान मिली। तहार जीजा अउर ससुरजी त मित्र मंडली के साथ व्यस्त रहियन अउर भांग पीके मस्त। सास बाहर आयी ना, त मीरा, तू अउर हम खेलब होली। फगुआ में हमार ननद के मिली रसिया मरद।"
राजू," लेकिन हम त तहरा के इँहा लाके चोदे के सोचने रहनि। सब भाँग के रस पिहि, पर हम त तहार यौन रस पियब। काल असली जोबन के रस के होली खेलब।"
गुड्डी," लागत बा तू फेर कुछ शैतानी करबू। सुनके ही रोमांच आ रहल बा। लेकिन तहरा दुगो लौंडिया मिली त एमे तहार फायदा बा।"
राजू," गुड्डी लेकिन मीरा के साथ हमके मज़ा न आई। जउन मज़ा आपन माई बहिन चोदे में बा उ दोसर औरत में कहाँ?
गुड्डी," तू बहुत बड़का हरामी बारू, साला माई बहिन के ही बूर पसंद ह। अभी रात बाकी बा, तहार सगा दीदी तहरा सामने लंगटी पड़ल बा, अब अगर कुछ होखो के चाही त खाली चुदाई।"
राजू गुड्डी की गाँड़ के छेद में उंगली घुसा बोला," गाँड़ चोदेबु।"
गुड्डी," हाय तहार नवाबी शौक़, ले लआ पहिले भी त ले चुकल बारू। तहार चीज़ बा।"
राजू हंसा और गुड्डी के गाँड़ के छेद पर उंगली रख थूक मलने लगा। गुड्डी खुद अपने हाथों से चूतड़ फैलाके अपनी गाँड़ की गहरी घाटी उभार दी। राजू ने धीरे से अपना सुपाड़ा उसकी गाँड़ के छेद पर रखा और लण्ड घुसा दिया। गाँड़ के छेद की मांसपेशियां खुलकर राजू के सुपाड़े को जगह दे रही थी। गुड्डी पहले भी राजू से गाँड़ मरवा चुकी थी इसलिए वो राजू को रोकने की बजाय दर्द को आत्मसात कर उसे अपने पिछवाड़े में घुसने की अनुमति दे चुकी थी।
गुड्डी थोड़ी देर बाद राजू का पूरा आठ इंच लण्ड गाँड़ में ले चुकी थी।
राजू," गुड्डी दीदी तहरा कउनु दिक्कत बा का। हमरा त बड़ा मजा आ रहल बा।"
गुड्डी सिसयाते हुए," बहिनचोद हमार गाँड़ के पूरा भीतरी तक लांड घुस गईल बा। लागत बा कहीं तहार लांड में हमार पीला मल ना लग जाये। लेकिन दरद के साथ मज़ा भी आ रहल बा। आपन लांड से गाँड़ के छेदा के खोल द राजा। आपन दीदी के कसके गाँड़ मारआ।"
राजू लण्ड गाँड़ की अंदरूनी दीवार में रगड़ते हुए घर्षण का आनंद ले रहा था। राजू गुड्डी के पीछे लेटा हुआ उसके बाल थामे गाँड़ चोद रहा था। अब गुड्डी भी अपने सिंकुड़े छेद के खुलने से आनंद उठा रही थी। गुड्डी को अपनी गाँड़ की नसें खुल जाने से घर्षण का आनंद मिल रहा था। उसकी गाँड़ से अंदर बाहर होता लण्ड किसी अजगर की तरह प्रतीत हो रहा था।
गुड्डी और राजू पौन घंटे गुदा मैथुन का सुख भोगते रहे। बाद में राजू ने गुड्डी के मल द्वार में अपना माल गिरा दिया। गुड्डी अपनी खुली गाँड़ की छेद से चूते राजू के वीर्य को हाथ से थाम रही थी। उसकी गाँड़ के छेद से अंदर की लाल मांसपेशियां दिख रही थी, और उनके बीच से रिस रिस कर चूता राजू का सफेद माल बहुत ही संतुष्टि देने वाला दृश्य था।
गुड्डी," बूर में चुआबे के बाद एतना माल निकललु। देख पूरा बिस्तर गीला हो जाई, अगर ई सारा रस हाथ से गिर जायीं त।"
राजू जानता था कि गुड्डी को वो पीने का और चखने का बहुत मन है। राजू ने कहा," एक काम कर दीदी तू चाट ले।"
गुड्डी," ठीक बा, वसही तहार मूठ में काफी एन्टी ऑक्सीडेंट बा, चेहरा पर निखार आयी।" गुड्डी उस लसलसेदार, चिपचिपा पदार्थ को अपने मुंह के पास लेकर चाटने लगी। गुड्डी को ऐसा करते देख राजू को बहुत सुकून मिल रहा था। गुड्डी उसका सारा वीर्य सफाचट कर गयी और राजू के सामने बेशर्मी से हंस बोली," धन्यवाद राजू, आपन बहिन के मूठ पिएलु। बहुत स्वादिष्ट रहे, तहार मूठ। ताज़ा कुछ भी मिले उ बढ़िया होखेला चाहे उ दूध रहे, तारी रहे या मूठ। मरद आपन सारा ताकत लगा देवेला औरत के गर्भ में ई देबे में। मरद केतना त्याग करेला। मूठ के उचित सम्मान इहे बा कि औरत ओकरा प्रसाद जइसन ग्रहण करे।"
राजू," गुड्डी दीदी तहार गाँड़ के भी स्वाद आईल होई तहार मुँह में मूठ के साथ। हमार मूठ के साथ तहार गाँड़ भी मीठा होई।"
गुड्डी हंसते हुए," त एमे गलत नइखे, गाँड़ के स्वाद भी निम्मन बा। तहार लांड पर भी कामरस के मिश्रण बा, लावा चाटे दे।"
राजू ने गुड्डी से अपना लण्ड चुसवाया ऑर वो बेहिचक उसका लण्ड चाट गयी। अपने मलद्वार से निकला लौड़ा उसे किसी चॉक्लेट बार जैसा लग रहा था। गुड्डी को राजू ने गाँड़ से मुँह में चूसने की आदत पहले ही लगा दी थी। उसे इस कृत्य के घिनौनेपन और गंदगी में मज़ा आने लगा था। गुड्डी राजू का लण्ड तब तक चूसती रही, जब तक वो उसके आंड़ से रिसता हुआ सफेद मलाईदार मूठ का आखरी बूँद चूसकर खींच नहीं लिया। फिर दोनों आधे घंटे पड़े रहे। सुबह के साढ़े तीन होने वाले थे। गुड्डी राजू को सोता छोड़ बिस्तर से उठी और कमरे में घूम घूम कर अपने कपड़े उठाये और अंधेरे का फायदा उठा वापिस अपने कमरे में चली आयी। उसने कमरे की छिटकनी लगाई और दरवाजा से पीठ लगा खड़ी हो गयी। गुड्डी के चेहरे पर खुशी और कामसुख की प्राप्ति का संतोष साफ दिख रहा था। गुड्डी का इंतज़ार खत्म हो चुका था।
 
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