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Incest रिश्तों का कामुक संगम

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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हां भाई जरूर, दुबारा कोशिश करूंगा, कहानी पूरी हो, कुछ दूसरी नई कहानी भी लिखूंगा, पर अब अपने ही प्लेटफार्म पर, अपना ही एक ब्लॉग स्टार्ट करने जा रहा हूं, वहीं पर सारी कमी पूरी कर दूंगा। मुझे याद रखने के लिए आप सब लोगों का तहे दिल से शुक्रिया।
S_Kumar भाई, हमें भी आपके लेखनी के जादू कि प्रतिक्षा है... ज्यादा विलंब नहीं कराइयेगा
 

Ravi2019

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परिणाम

राजू और गुड्डी के दिन पूरे मस्ती में कट रहे थे। दोनों एक दूसरे के साथ यौनाचार के लिए तत्पर रहते थे। गुड्डी ने अपने छोटे भाई को पूरी छूट दे रखी थी। रोज़ सुबह गुड्डी राजू का लण्ड चूमके उठाती थी, और अपनी बूर को चोदने का निमंत्रण देती थी। राजू गुड्डी का न्योता स्वीकार कर, उसकी बूर को खूब चोदता था। गुड्डी को राजू से अपनी बूर चुदवाने में बहुत आनंद आता था। फिर दोनों कोचिंग चले जाते थे। उसके बाद गुड्डी राजू से पहले आकर घर को सजाती थी, जैसे कोई पत्नी अपने पति के लिए करती है। गुड्डी राजू का बेसब्री से इंतज़ार करती थी। राजू के आते ही गुड्डी का चेहरा खिल जाता था, राजू को खाना खिलाके वो खाना खाती थी। कुछ देर पढ़ाई करके, गुड्डी राजू के साथ छेड़खानी करने लगती थी। वो राजू के सामने अश्लील हरकतें करने लगती, राजू उसे समझाता तो, अपनी पैंटी उतारके, अपनी फ्रॉक उठाके गीली बूर दिखा देती। राजू गुड्डी की बूर की खुशबू सूंघ, उसे वहीं नंगी कर देता था। गुड्डी को राजू के हाथ कपड़े उतरवाने में बड़ा मजा आता था। गुड्डी नंगी होकर बेशर्मों की तरह राजू के साथ और भी उत्तेजनावर्धक हरकते करती थी। गुड्डी का बस चलता तो वो नंगी ही रहती, पर राजू के साथ गैर ज़िम्मेदारना अल्हड़ हरकते उसे और मज़ा देती थी। राजू के साथ वो ऐसी चिपकती की, जब तक राजू उसे मन भर चोद ना लेता। गुड्डी का शरीर भी भरने लगा था। राजू के मूठ का वो खूब सेवन कर रही थी। कभी उसे पूरे चेहरे पर मल मल कर लगा लेती, ताकि उसके चेहरे में ताजगी और रौनक आये। कभी उसे पी लेती थी, ताकि उसकी बुद्धि राजू की तरह तेज़ हो जाये। गुड्डी ने ये भी देखा था कि मूठ पीने से उसका पाचन भी ठीक रहता था। राजू को गुड्डी की भोलेपन का फायदा उठा मूठ पिलाना बड़ा अच्छा लगता था। साथ ही अब वो जब मर्ज़ी उसकी गाँड़ भी चोद लेता था।
एक दिन गुड्डी को कब्ज़ की शिकायत हो गयी। गुड्डी ने राजू के पास आ कहा," राजू आज हम ठीक से हगनी ना।"
राजू," काहे का भईल?
गुड्डी," गईल त रहनि पर तनि सा भईल। पेट भारी भारी बुझाता। घड़ी घड़ी पाद भी छूट रहल बा अउर ढेर महक भी रहल बा।"
राजू," गरम पानी पिलु की ना, उसे कब साफ हो जाई।"
गुड्डी," पिनी हअ, पर कुछ खास ना भईल।"
राजू," जमाइन के पानी पी लअ, पीके तहार पेट पक्का साफ हो जाई।"
गुड्डी ने तभी जोर से पाद मारी" पूऊऊऊऊ........" उसमें हल्की बदबू भी थी। राजू और गुड्डी नाक बंद कर हंस रहे थे। राजू ने गुड्डी के चूतड़ पर एक थप्पड़ धर दिया। गुड्डी चूतड़ सहलाते बोली," पी लेनी, रह रहके पाद छूट रहल बा।"
राजू," त कइसे ठीक होई।"
गुड्डी," तू चाहबू त ठीक हो जाई।
राजू," बोल ना कउन दवाई लाके दी।"
गुड्डी," राते इंटरनेट पर पढ़नी कि, मूठ पियला से, पाचन भी ठीक रहेला।"
राजू उसकी ओर देख बोला," उ त तू, वइसे ही खूब पिएलु रानी।"
गुड्डी," तीन दिन से खाली चेहरा पर लगा रहल बानि। चेहरा पर दाग धब्बा ज्यादे आ गईल रहला।"
राजू," अभी पिबु का?
गुड्डी," जल्दी से ताज़ा ताज़ा मूठ पिला दअ ना।"
राजू ने गुड्डी की आंखों में देख बोला," पिला देब, पर उसे पहिले तहार गाँड़ खोल के देखा।"
गुड्डी," उ काहे राजू?
राजू," गुड्डी दीदी, हम तनि तहार गाँड़ के चेक करब, कहीं ऊंहा त कउनु दिक्कत नइखे।"
गुड्डी," ठीक बा, देखा ना।" ऐसा बोलके उसने राजू की तरफ पीठ घुमाके फ्रॉक का चेन खोलने को कहा। राजू ने ज़िपपप से उसकी चेन खोल दी। फिर राजू ने उसकी फ्रॉक उतार दी। गुड्डी की मदमस्त जवानी खुल चुकी थी। राजू ने उसे अपने गोद में पेट के बल लेटने को कहा। गुड्डी ने बेहिचक वैसा ही किया। राजू ने उसे अपनी चूतड़ों को फैलाने को बोला, उसने ऐसा ही किया। गुड्डी की सांवली गाँड़ की छेद राजू के सामने ही थी। राजू ने बड़े गौर से उसे देखा।
राजू बोला," गाँड़ में उंगली डालके देखे के पड़ी।"
गुड्डी," त घुसावा ना थूक लगाके।"
राजू," का बेजोड़ गाँड़ बा गुड्डी दीदी तहार। मन करेला चुतड़ के बीच मुँहवा डालके पड़ल रही।"
गुड्डी," तहरा केहू मना कइलस का, पर अभी मत डाल दिहा, काहे से कभियो पाद निकल जाई।"
राजू," त का होई तहार पाद भी हमार रोम रोम के सुगंधित कर दी।"
गुड्डी," अच्छा, लेकिन पहले चेक त कर ले।"
राजू ने गुड्डी की गाँड़ में थूक लगाके, उंगली अंदर डाल दी। राजू तो बहाने से अपनी बड़ी बहन की गाँड़ में उंगली कर रहा था। उसने गाँड़ में उंगली पूरा अंदर डालके, उंगली नचाई। गुड्डी कराही पर, राजू को कोई फर्क नहीं पड़ा। राजू काफी देर तक गुड्डी की कसी गाँड़ में उंगली करता रहा फिर उसने उंगली निकाल ली। राजू उंगली नाक के पास लाके सूंघा, वो मस्त हो गया। क्योंकि वो गुड्डी की गाँड़ का दीवाना था। राजू बार बार गुड्डी की गाँड़ में उंगली डाल देता और खूब उंगली कर रहा था। वो नजदीक आकर गुड्डी की गाँड़ की छेद को मनभर देख रहा था। फिर गुड्डी बोली," राजू कुछ पता चलल, गाँड़ में कउनु समस्या बा का।"
राजू," हाँ, गुड्डी दीदी तहार गाँड़ के छेद पूरा बढ़िया से नइखे खुल रहल बा, उहू से दिक्कत हो रहल बा।"
गुड्डी," हाय दैय्या त अब का होई राजू, गाँड़ ना खुली ढंग से त, हम हगब कइसे। हमार कब्जियत ठीक कइसे होई।"
राजू बोला," देख गाँड़ के छेद खोले खातिर गाँड़ के चुदाई करे के पड़ी। लांड घुसाके तहार गाँड़ के छेद पूरा खोल देब।"
गुड्डी," कउनु अउर तरीका नइखे ना।"
राजू," लांड पूरा भीतरी तक घुसी अउर जहां पर गूंह अटकल बा ऊंहा तक रास्ता साफ खोल दी।"
गुड्डी ये समझ रही थी कि राजू बस बहाने से उसकी गाँड़ चोदना चाहता है, वो बनते हुए बोली," तू गाँड़ मारे खातिर झूठ त नइखे बोलत बारू।"
राजू ने फौरन कहा," ना गुड्डी दीदी, बिल्कुल ना।"
गुड्डी फिर बोली," त फेर लांड के घुसा दे, गाँड़ के छेदवा में अउर जमके चोदके गाँड़ पूरा खोल दअ।"
राजू ने गुड्डी को बिस्तर पर पीठ के बल लिटा दिया और लण्ड पर तेल लगाके सीधा गुड्डी की गाँड़ जो थूक से गीली हो चुकी थी, गहराई में उतार दिया। गुड्डी कुछ देर दर्द महसूस की फिर, उसकी गाँड़ ने लचीलेपन का सबूत देते हुए लण्ड रूपी घुसपैठिये को पर्याप्त जगह दे दी। राजू के सामने गुड्डी की रिसती हुई बूर और ढुलकती हुई चूचियाँ एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रही थी।
राजू नीचे झुका और गुड्डी की गाँड़ मारते हुए उसके गाल चाटने लगा।
गुड्डी बोली," आह...उउम्म.... र..र....राजू का करआ तारआ?
राजू," तहार मलाई जइसन गलिया चाटत बानि, रसगुल्ला जइसन मुलायम अउर रसीला बुझाता।"
गुड्डी," जब से तू आपन मूठ से हमार चेहरा के फेसिअल करलू ना, चेहरा खिल गईल बा। हम पहिले से बढ़िया दिख रहल बानि। तू जाने हमरा खातिर, का का करबू। मूठ पियाके हमार दिमाग तेज करत बारआ अउर, अब गाँड़ मारके कब्जियत के भी इलाज कर रहल बारू।" ऐसा बोल गुड्डी ने उसे चूम लिया।
गुड्डी फिर लण्ड के धक्के से हिलते हुए बोली," राजू उ दिन तू हमरा बहुत गंदा तरीका से चोदलु। हमार मुंह काला करके, कुतिया के तरह पूरा घर घुमेलु।"
राजू," गुड्डी दीदी, तहरा पसंद नइखे आईल का?
गुड्डी ने अपनी जीभ से राजू के होठ पर थूक मल दी और लजाते हुए बोली," तहरा साथ अब हर चीज़ बढ़िया बुझावेला, तहरा जे मन करे उ करल करआ।"
राजू ने ये सुनते ही गुड्डी की आंखों में देखते हुए उसके गालों पर और मुंह में थूक दिया। गुड्डी उस थूक को निगल गयी और फिर मुंह खोल के बोली," राजू अउर थूक पिला द।"
राजू ने तीन चार बार उसके मुंह में थूका और गुड्डी उसे हर बार दिखाते हुए लील जाती थी। गुड्डी के गाल और ठुड्ढी भी राजू की लार से चमक रहे थे। दोनों एक दूसरे में डूबे और खिलवाड़ करते हुए गुदा मैथुन/गाँड़ चुदाई का आनंद ले रहे थे।

गुड्डी," ऊँहह.... राजु.... तहार लांड त गाँड़ के पूरा खोल के रख देले बा, अब त पूरा अंदर तक आराम से जा रहल बा। गाँड़ भी ढीला हो गइल ह। का अब हम ठीक से हग पाइब ?
राजू," गुड्डी दीदी, एतना जल्दी ना, अभी त तहार गाँड़ के हर हिस्सा के लांड से कूट के ढीला करेके बा। अभी त बढ़िया से कुटाई करब तब तहार कब्जियत ठीक होई।"
गुड्डी," अच्छा राजू, फेर तू तनि बढ़िया से कुटाई कर द। हमार गाँड़ के एक एक नस खोल दआ।"
राजू," ओकर चिंता तू मत कर, तहार इलाज हम बढ़िया से करब।"
गुड्डी," तहरे पर त भरोसा बा राजू।"
राजू उसकी गाँड़ में बार बार थूक लगाता और फिर चुदाई करने लगता था। राजू बार बार लण्ड बाहर निकालके उस चुदे हुए नन्हे छेद का फैलाव देखता। गुड्डी की गाँड़ पूरी तरह खुल गयी थी। उसके अंदर का लाल हिस्सा भी अब दिखने लगा था। फिर भी राजू ने उस पर कोई रहम नहीं किया। गुड्डी के गाँड़ का लचीलापन भी अब पहले से काफी बढ़िया हो चुका था। उसने गाँड़ का छेद में अब थूक लगाके एक उंगली भी लण्ड के साथ डाल ली। राजू को ये देख अच्छा लगा गुड्डी खुद अपनी गाँड़ खोलना चाहती है। गुड्डी," राजू गाँड़ अब बढ़िया से खुली।"
राजू," गुड्डी दीदी तहार गाँड़ के ठोके में अब मज़ा भी बहुत आ रहल बा। दीदी हमरा एगो आईडिया आईल बा, रुक हम आवत बानि एक मिनट में।"
राजू ने गुड्डी की गाँड़ से पुक से लण्ड निकाला और किचन से दो तीन नींबू उठा लाया। पीले पीले नींबू का साइज टेबल टेनिस की गेंद जितना था। गुड्डी की नन्ही भूरी गाँड़ के छेद को राजू ने चूम लिया। फिर गुड्डी की गाँड़ में उसे डालने लगा। गुड्डी ने अपनी गाँड़ के छेद को ढीला छोड़ रखा था। एक नींबू अंदर घुसा तो गुड्डी की आह निकल गयी। राजू ने एक एक करके गुड्डी की गाँड़ में तीन नींबू डाल दिये।
गुड्डी बोली," आह...राजू ई का करत बारआ। नींबू गाँड़ में काहे घुसा देले बारआ।"
राजू," गुड्डी दीदी नीबू के रस में बहुत शक्ति होखेला, तहार गाँड़ में सब गंदगी नीबू से साफ होई।"
गुड्डी," राजू, तू सच कहआ तारआ। उसे सब ठीक हो जाई। पर तु नीबू के साबुत डाल देलु, रस कइसे निकली।"
राजू," हमार लांड तहार गाँड़ में नींबू के कुटाई करि, तब रस निकली।"
गुड्डी," राजू तू बहुत होशियार बारआ। तहरा बिना हम का करब।"
राजू उसकी गाँड़ में लण्ड घुसा दिया और बोला," हमरा बिना त तू खाली बूर में उंगली कर सकेलु।" दोनों की हंसी छूट गयी। गुड्डी की कसी हुई गाँड़ और, राजू का कड़ा लण्ड से नींबू अंदर ही अंदर दबने लगे। नींबू गुड्डी की गाँड़ के अंदर राजू के कड़क लण्ड की मार झेल रहे थे। गुड्डी के लिए ये एहसास नया था, उधर राजू भी उसकी गाँड़ में अलग ही अनुभव पा रहा था। दोनों एक दूसरे को चूमते हुए, इस असीमित आनंद का लुत्फ उठा रहे थे।
गुड्डी," राजू बहुत मज़ा आ रहल बा, गाँड़ में घुसल नींबू अउर तहार लांड बहुत ही निम्मन बुझाता, मोर चोदू राजा।"
राजू," मज़ा ले गुड्डी दीदी, इहे मज़ा त असली मज़ा हअ। गाँड़ चुदाई के जे मज़ा आवेला उ बूर चुदाई में भी ना ह। कसल गाँड़ में कड़ा लांड जब घुस के गाँड़ ढीला करेला, त आनंद के अलग दरवाज़ा खुल जाला।"
गुड्डी अपनी बूर रगड़ रही थी और राजू उसके चूचियों को चूसने लगा। गुड्डी की गाँड़ में नींबू फट गए और उनका रस बहने लगा था। आधा घंटा की लंबी चुदाई के बाद राजू ने गुड्डी के मुँह पर लण्ड का सफेद पानी फेंक दिया। गुड्डी लपक के सब पानी अपने चेहरे पर ले ली, उसे फेसिअल जो करना था। राजू के लण्ड से पूरे चेहरे पर उसने वो पानी मल दिया। फिर राजू ने गुड्डी से हगने की पोजीशन में बैठने को कहा और बोला," अब गाँड़ से जोर लगाके नींबू निकाल त रानी।"
गुड्डी ने वैसे ही किया, गुड्डी कूथ कर गाँड़ से जोर लगाके फटे हुए नींबू एक एक कर बाहर निकालने लगी। पहले तो नींबू का ढेर सारा रस उसकी गाँड़ से चू गया फिर नींबू निकले। ऐसा लग रहा था, जैसे गुड्डी अंडे दे रही हो। गुड्डी ये कर ही रही थी कि, तभी वो उठ कर भागी। राजू ने पूछा," का भईल गुड्डी दीदी?
गुड्डी बाथरूम का दरवाज़ा बंद करते हुए चिल्ला के बोली," राजू जोर से हगास लाग गईल।"
राजू," तहार कब्जियत ठीक हो गइल ना रानी।"
गुड्डी बोली," हाँ... थैंक यू भैया।"
राजू अपना लण्ड गुड्डी की पैंटी में पोंछ लिया और गमछा लपेट के बालकनी में आ गया। वहां उसे कुछ आवाज़ सुनाई दी, जो मकानमालिक के कमरे से आ रही थी। राजू नीचे उतर के उस कमरे में झांका तो उसके होश उड़ गए।

राजू ने देखा कि निधि अपने बाप के गोद में नंगी बैठी हुई थी। उसका बाप अनुराधा के जाने के बाद निधि के पास आकर उसके साथ छेड़खानी करता था, फिर निधि भी जवानी की दहलीज पर कदम रखे हुए थी, उसे भी अब मर्द के छुवन से मस्ती चढ़ने लगी थी। निधि राजू की लगभग हमउम्र ही थी, तो राजू ने जब हवस की खातिर अपनी बहन को नहीं छोड़ा, तो निधि भी अपने बाप के साथ कुछ गलत थोड़े ही कर रही थी। प्रताप अपनी जवान बेटी को नंगी करके, उसके स्तनों/चूचियों को बेतहाशा चूस रहा था। निधि अपने बाप का सर पकड़े हुए, उसपर हाथ फेर रही थी। निधि अपनी चूचकों को प्रताप के मुंह में महसूस कर सिसिया रही थी। प्रताप का लण्ड निधि के गाँड़ में चुभ रहा था।
निधि नशीली आंखे खोलके बोली," पापा, आप बहुत बदमाश हैं, बेटी को बेहकाके उसके साथ गंदे काम कर रहे हैं। माँ के जाते ही आप मुझे नंगी कर देते हैं और मेरे बदन को रगड़ के रख देते हैं। अभी मेरी शादी भी नहीं हुई है पर आपने मुझे कली से फूल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।"
प्रताप," देख मेरी तो नाईट डयूटी रहती है मेरी जान। तेरी माँ और मेरी रातों का सामंजस्य नहीं बैठ रहा। तेरी माँ का अधूरा काम तो तुझे ही पूरा करना होगा। और ये कोई गंदा काम नहीं है, ये तो तेरी उम्र की लड़कियों का सबसे पसंदीदा खेल है। मेरे सामने नंगी हो गयी तो क्या हुआ बचपन में तो पापा की गोद में सुसु कर देती थी। रही तेरी शादी की बात तो, मैं अगले चार पांच साल तक तेरी शादी का सोच भी नहीं रहा। तब तक तेरा यौवन और निखर जाएगा।"
निधि अपने बाप के टकले को चूम के बोली," प्रीतू जान, तब मैं बच्ची थी, अब पूरी जवान हो गयी हूँ, लेकिन फिर भी आप जबरदस्ती मुझे अपनी गोद में सुसु करने बोलते हैं। जाने आपको क्या मज़ा आता है। अपनी रात की ड्यूटी की थकान मुझे चोद कर दूर करते हैं। सच कहूं तो जवानी के इस मोड़ पर गलतियां भी हसीन हो जाती हैं। जी भर के मजे लीजिए, और अपने बाग में खिले इस फूल का रस चूस लीजिए।"
प्रताप," आजकल मेरी ड्यूटी ज्यादा कड़ी हो गयी है मेरी बिटिया।"
निधि," क्यों प्रीतू जान, आजकल कहां ड्यूटी लगी हुई है?
प्रताप बोला," जानती हो आजकल मैं दसवीं के पेपर की निगरानी में लगा हूँ। मंत्री जी ने कुछ पेपर लीक करवा लिया है और उसे मेरे पास छोड़ दिया है।"
निधि ने हंस कर कहा," आपकी निगरानी में आपकी बेटी ही सुरक्षित नहीं है, तो पेपर का क्या हाल होगा।"
प्रताप बोला," ये राज़ है बेटी, और तेरे मेरे बीच ये संबंध को मैं सुरक्षित रखे हूँ, इसलिए वो भी सुरक्षित रखूंगा।"

प्रताप ने उसे पटक दिया और उसकी बूर को फैला के उसमें लण्ड रगड़ने लगा, उसकी मासूम बेटी सिसिया रही थी। तभी राजू उसके सामने आ गया। प्रताप ने उसे देखा तो घबराकर बोला," तू यहां कैसे आये, अंदर घुस कैसे गए? निधि वहीं अपने बाप के पीछे बैठी थी।
राजू बोला," आराम से आप लोग जो कर रहे थे, वो करते रहिए मुझे इससे कोई एतराज नहीं है। बस मैंने आप से एक मदद मांगने आया हूँ।"
प्रताप," ममम ...ममदद? कैसी मदद ?
राजू," मंत्री जी के यहां जो दसवीं के पेपर लीक करने के लिए रखे हुए हैं, उनमें से हर विषय का पेपर मुझे भी दे दीजिएगा।"
प्रताप," जानता भी है तू क्या माँग रहा है, और अगर वो तुझे ना दूं तो?
राजू," इतने नादान ना बनिये प्रीतू जान, मैं किसी तरह का दबाव नहीं डालना चाहता हूँ। इसकी कीमत दूंगा आपकी और निधि का ये राज़ अपने दिल के किसी कोने में छिपा दूंगा।"
प्रताप," पुलिस वाले को ब्लैकमेल करेगा?
राजू," ना मैं बस मजबूर हूँ, मुझे गुड्डी दीदी को पास कराना है। आप दोनों आपस में जो भी करें उससे मेरा क्या लेना देना। निधि जवान है और आपके साथ खुश है और क्या चाहिए। आप दोनों सलामत रहें। आप एक बढ़िया पिता और प्रेमी हैं।"
प्रताप," तुम्हें क्यों लगता है कि मैं तुम्हारी मदद करूंगा?
राजू," मैंने ऐसा कुछ सोचा नहीं, पर आपकी मदद से मेरी दीदी जो कि तीन साल से फेल हो रही है वो पास हो जाएगी। मेरे बाबूजी ने बहुत पैसे खर्च कर हम दोनों को यहां भेजा था। अगर ये पास नहीं हुई, तो इस साल भी इसकी शादी नहीं हो पाएगी।"
प्रताप," अच्छा, क्या उम्र हो गयी है उसकी?
राजू," जी इस साल 24 की हो जाएगी।"
प्रताप," तू पागल है, अपनी बहन को किसी और के हवाले क्यों कर रहा है? उसे अपने साथ रख और उसके साथ खूब चुदाई के मज़े ले।"
राजू," प्रताप जी मैं और मेरी दीदी दोनों ही गांव से पढ़ाई के बहाने यहां अकेलेपन का फायदा उठा चुदाई का भरपूर आनंद उठाने आए थे। हम दोनों पहले दिन से ही यहां अपनी मनमानी कर रहे हैं।"
निधि ने ये सुना तो चौंक गयी और उसका चेहरा खिल उठा।
प्रताप," अच्छा, तो तुम दोनों यहां अपनी शारीरिक भूख शांत करने आये हो ना कि पढ़ने। वैसे तेरी बहन है कमाल की। क्या वो मुझसे चुदवा लेगी??
राजू गुस्से से बोला," प्रताप जी गुड्डी सिर्फ मेरे लिए बनी है। इस दुनिया में हम दोनों भाई बहन सही, पर वो मेरी जानेमन है। उसके बारे में कुछ गलत नहीं सुनूंगा।"
प्रताप कुछ बोल नहीं पा रहा था।
तभी निधि बोली," करा दीजिए ना पापा, राजू भैया गुड्डी दीदी को पास कराने के लिए अपने राज़ भी खोल दिये। सोचिए वो गुड्डी दीदी के लिए क्या कुछ नहीं कर सकते हैं?
निधि की बात सुन प्रताप बोला," नहीं रानी, ऐसा कैसे होगा?
निधि," प्लीज पापा, प्लीज...मेरी खातिर।"
प्रताप," लेकिन ..... उम्म्म"
निधि ने उसके होंठ चूम कहा," लेकिन वेकिन कुछ नहीं पापा, आप राजू भैया की मदद कीजिये।"
प्रताप," ठीक है मेरी जान। राजू तुम हर रोज़ परीक्षा से एक दिन पहले हर विषय का पेपर ले जाना। मेरी बेटी, की वजह से तुम्हारी मदद कर रहा हूँ।"
राजू," ठीक है प्रतापजी, बहुत धन्यवाद।"
प्रताप बोला," अब जाओ मुझे मेरी बेटी को जी भर कर प्यार करने दो। तुम भी अपनी प्यासी दीदी को जाके प्यार करो।"
राजू दरवाज़ा लगाके चला गया। प्रताप और निधि आलिंगन में फँसे हुए बिस्तर की ओर बढ़ चले। उधर गुड्डी भी अपने आशिक़ भाई के साथ गुलछर्रे उड़ाने लगी। उस रात गुड्डी और निधि उन चुनिंदा औरतों में से थी, जो अपने ही घर के मर्दों के साथ चुदती रहती हैं। गुड्डी के पेपर चौथे रोज़ से थे। वैसे तो राजू ने गुड्डी को काफी तैयारी करवाई थी, पर गुड्डी की मंद बुद्धि के लिए वो कभी काफी नहीं था। राजू और गुड्डी ने उन दस रोज़ में चुदाई ना करने की कसम ली। फिर परीक्षा से एक रात पहले प्रताप ने उन्हें पेपर लाकर दे दिया। राजू ने गुड्डी को उसकी अच्छी तैयारी करवा दी। साथ साथ राजू के भी पेपर चल रहे थे। हर परीक्षा से एक दिन पहले उन्हें वो पेपर मिल जाता था। गुड्डी के सभी पेपर अच्छे गए। उस बेचारी ने अपनी गीली बूर को कैसे मनाया हुआ था, सिर्फ वो जानती थी। आखरी दिन तो वो चाहती थी कि, कब घंटी बजे और वो राजू के पास भागी भागी जाए। आखिर वो घड़ी आ गयी। आज राजू का भी आखरी इम्तेहान था। वो भी गुड्डी को चोदे बिन तड़प रहा था।

गुड्डी और राजू की परीक्षाएं खत्म हो चुकी थी। राजू के घर पहुंचते ही गुड्डी ने कामुक तांडव शुरू कर दिया। एक प्यासी चुदासी लड़की पिछले दस दिनों से काम वासना की लपटें झेल रही थी, जिसे उसके भाई के लण्ड का पानी ही बुझा सकता था। राजू के आते ही गुड्डी सम्पूर्ण नंगी हो चुकी थी। वो राजू के ऊपर कूद के चढ़ गई। राजू ने उसके गाँड़ को थाम उसे गोद में उठा लिया। गुड्डी उसे चूम रही थी। राजू उसकी चूतड़ पर थाप मार रहा था। गुड्डी चुदने को इतनी बेचैन थी कि राजू के थाप पर भी उसकी कामुक सिसकी ही निकल रही थी।
राजू," बड़ा जल्दी में बारू ?
गुड्डी," उउम्म...मम्म.... का करि बड़ा बेचैनी होखेला।
राजू," कहां गुड्डी दीदी?
गुड्डी," गुड्डी दीदी ना रण्डी दीदी बोल।
राजू," बोल ना रण्डी दीदी, कहां बेचैनी होखेला?
गुड्डी," राजू बूर में, तहार रण्डी बहिन के बूर में दस दिन से लांड ना ढुकल राजा।"
राजू," चुच्ची चुसाई ना चाहेलु का?
गुड्डी," चुच्ची चूस लअ, बूर में लांड ढुका के।"
राजू," उ त ढुकाइब रण्डी साली, पर तहार छिनारपन देख मन खुश हो जाता।"
गुड्डी," अइसन बहिन मिली केहुके। नसीबवाला बाड़अ तू राजा। चुदासी ,कामुक, पियासल, बेहया, बेशरम।"

तभी गुड्डी को जोर की उबकाई आई और वो वाश बेसिन की ओर भागी। गुड्डी को उल्टियां हो रही थी। उसे परीक्षा के दौरान भी उल्टियां हुई थी। राजू उसकी पीठ सहला रहा था। राजू बोला," ठीक बा तहार तबियत ?
गुड्डी," मन त ठीक बा, पर जाने काहे रह रहके उबकाई आवेला।"
राजू ने जब ये सुना तो, उसके कान खड़े हो गए। उसने गुड्डी को आराम करने को कहा। और खुद बाजार जाके प्रेगनेंसी टेस्ट किट ले आया। उसने गुड्डी को टेस्ट करने का तरीका बता कर उसे जांच करने को कहा। गुड्डी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने मूत की दो बूंद उसपे डाली और बाहर आके राजू को दिखाया। राजू का शक सही था, गुड्डी प्रेग्नेंट थी। गुड्डी और राजू ने गांव के ट्यूबवेल पर अनजाने की भूल का परिणाम था। अब दोनों चिंता में डूब गए। उस रात दोनों ने कोई संबंध नहीं बनाए।
अगले दिन राजू अपने मकानमालिक से मिला और उसे ये बात बताई। वो बोला," राजू तुम चिंता मत करो। मंत्री साहब भी कई लड़कियों को प्रेग्नेंट कर देते हैं। मैं एक नर्सिंग होम जानता हूँ, जहां वो उन लड़कियों का एबोरसन करवाते हैं। तुम वहां चले जाओ। मेरी वहां बात करा देना वो लोग मुझे जानते हैं। पर आगे से खयाल रखो ऐसी गलती मत करना।"
राजू अगले दिन गुड्डी को लेकर उस प्राइवेट नर्सिंग होम ले गया और, वहाँ गुड्डी के गर्भपात के लिए बात की। उसने प्रताप से बात करवाई। वहां के डॉक्टर ने बिना फीस लिए गुड्डी का गर्भपात कराने को तैयार हो गयी।
डॉक्टर," गुड्डी तुम मंत्री जी के यहां कब गयी थी।"
गुड्डी," मैं किसी मंत्री के पास नहीं गयी थी।"
डॉक्टर," अच्छा, फिर ये कौन है?
गुड्डी," वो मेरा छोटा भाई है।
डॉक्टर मुस्कुराई और पूछी," क्या ये ही तुम्हारे बच्चे का बाप है?
गुड्डी बगले झांकते हुए बोली," वो...प..वो...
डॉक्टर," सब समझती हूँ बेटा, यहां ऐसे ही केस आते हैं। रिश्तेदारों से लड़कियां प्रेग्नेंट होती हैं और बच्चा गिरवाने यहां आती हैं। उनकी गलती की सज़ा उस नन्ही जान को मिलती है। एक बार तो मुझे मजबूरी में पंद्रह साल की लड़की का गर्भपात करना पड़ा था। एक पाप को छुपाने के लिए दूसरा पाप करना पड़ता है।"
गुड्डी," जी, क्या मैं अपने भाई से बात कर सकती हूँ?
डॉक्टर," क्यों नहीं गुड्डी जरूर अभी आधे घंटे बाद, तुम्हारा गर्भपात शुरू करवाउंगी।"
गुड्डी राजू के पास गई और बोली," राजू हमनी के घोर पाप करत बानि। जे भी भईल उमें ई बच्चा के का दोष बा। तहार हमार प्यार के निशानी ह। हमनी के गलती के सज़ा ई बच्चा के मिली।"
राजू," गुड्डी दीदी ई बच्चा के गिराबे के पड़ी। ना त का कहबू माई बाबूजी से। तहार शादी भी होवे वाला बा। गांव समाज मे पता चली की कुंवारी में गर्भवती हो गईलु त केकरो मुंह ना दिखा पइबु। अउर अगर गलती से ई पता चल गईल कि ई बच्चा अउर केकरो ना हमार ह। तब त गांव से भागे के पड़ी। हम जानत बानि की एमे ई बच्चा के कउनु दोष नइखे, लेकिन ई बलिदान त हमरा तहरा के देवे के पड़ी।"
गुड्डी रोते हुए बोली," लेकिन राजू ई पाप बा?
राजू," अगर ई पाप से चार जीवन बचेला त ई पाप ना हअ बल्कि बलिदान बा। एक तरफ ई बच्चा जउन अभी ठीक से आकर भी ना लेले बा, अउर एक तरफ माई बाबूजी हम तू।"
तभी डॉक्टर ने आवाज़ लगाई।
गुड्डी आगे कुछ कह ना सकी और अंदर वापिस चली गयी। कुछ ही देर में गर्भपात हो गया और दो चार घंटे आराम करने के बाद गुड्डी और राजू वापिस आ गए। राजू तो आके सो गया, पर गुड्डी सारी रात जागी रही। उसके अंदर बेचैनी और अपराधबोध भरा हुआ था। उस बीते दिन सब याद आ रहे थे।
दो दिन बाद वो दोनों बस से गांव वापस आ गए। रास्ते में उनदोनों के बीच कुछ भी नहीं हुआ। बीना ने उनके आने पर बढ़िया खाना बना रखा था। इस बार राजू ने धरमदेव को आश्वाशन दिया कि गुड्डी पास हो जाएगी। गुड्डी अगले दिन ही, बिजुरी के पास गई और उसे सारी बात बताई। बिजुरी ने भी राजू को ठीक बताया। गुड्डी तत्काल के लिए तो संतुष्ट थी पर उसके मन में फांस अभी भी अटकी हुई थी। उसे डॉक्टर की बात रह रहके याद आ रही थी।

एक महीने बाद गुड्डी और राजू के परिणाम आ गए। गुड्डी और राजू फर्स्ट डिवीज़न में पास हुए थे। धरमदेव काफी खुश थे। बीना भी खुश थी कि अब गुड्डी की शादी हो जाएगी। उस दिन गुड्डी और राजू को लेके धरमदेव मंदिर भी हो आया। वहां से आने के बाद धरमदेव काम पर चले गए और बीना कहीं बाहर गयी हुई थी। राजू ने गुड्डी को अकेला पाकर उसे बांहों में भर लिया।
राजू," का बात ह गुड्डी दीदी तू फर्स्ट डिवीज़न में पास भइलू।"
गुड्डी," तू पढाईलु बढ़िया से इहे से।"
राजू," सब पूछत रहला कि पटना में कइसन पढ़ाई पढलु कि फेल से सीधा फर्स्ट डिवीज़न आ गईल।"
गुड्डी," लोग का जानी कि कइसन पढ़ाई भईल ऊंहा।"
राजू," चला एक बेर फेर हो जाउ उ पढ़ाई।"
गुड्डी," चुदाई के पढ़ाई।"
राजू ने अपना लण्ड बाहर निकाल दिया और गुड्डी कोने में बैठ कर लण्ड चूसने लगी। गुड्डी काफी दिनों बाद राजू का लण्ड चूस रही थी। राजू की आँहें और गुड्डी की चटखारे कमरे में गूंज रही थी। कुछ देर बाद दोनों जाने कब नंगे होकर, चुदाई करने लगे पता ही नहीं चला। गुड्डी के जांघों के बीच राजू लेटके उसके बूर में लण्ड पेल रहा था। अपनी रिसती बूर पर बेकाबू गुड्डी रण्डी की तरह चुद रही थी। गुड्डी," हम तहार के बानि?
राजू," गुड्डी दीदी अउर का।"
गुड्डी," गुड्डी रण्डी बोल ना राजू।"
राजू," गुड्डी रण्डी...तहार बूर में लांड घुसाके पेलत बानि।"
गुड्डी," ई भईल असली जश्न परीक्षा में पास होके।"
राजू," गुड्डी हम तहार के बानि?
गुड्डी," तू त गुरु हवे राजा।"
राजू," इहे से त गुरु दक्षिणा लेत बानि।"
गुड्डी," जी गुरुदेव जी, हमार रोम रोम तहार बा।"
राजू घपघप कर गुड्डी को पेल रहा था। उनकी सिसयाहट और सीत्कार गूंज रही थी। काफी देर तक दोनों लगे रहे, इस बात से अनजान की उनकी ये हरकत धरमदेव ने देख ली। धरमदेव वापिस आ चुके थे। कमरे से आती आवाज़ की ओर जब गए तो उन्होंने उनकी अश्लील हरकत पकड़ ली। धरमदेव को गुस्सा तो बहुत आया पर उसने कुछ कहा नहीं और चुपचाप वापस चले गए। उन्होंने जल्द से जल्द गुड्डी के हाथ पीले करने का फैसला ले लिया। अगले दिन ही जाकर उन्होंने लड़के के यहां बात कर ली। लड़का सरकारी अस्पताल में कर्मचारी था। दहेज की रकम थोड़ी ज्यादा होने पर भी, वो मान गए। धरमदेव ने धीरे धीरे सालभर में दहेज की राशि और कुछ सामान देने का वादा किया।
एक महीने के अंदर ही गुड्डी की शादी तय हो गयी।
वाह भाई वाह, शानदार अपडेट, राजू और गुड्डी के चूदाई धर्मदेव देख लेले बा, लेकिन कुछ ना बोलल्स ह, अब आगे के अपडेट रोमांचक होई, प्रतीक्षा रही भाई,,
 

vyabhichari

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हल्दी, शादी और विदाई


गुड्डी की शादी की तैयारी जोरों शोरों से चल रही थी। गुड्डी के मां बाप बाजार गए हुए थे, गुड्डी की शादी का सामान खरीदने के लिए। उन्हें बाहर देर हो चुकी थी और आखरी बस छूट गयी थी। उनदोनों को अब शहर में ही रुकना पड़ा। धरमदेव ने घर फोन कर ये बात गुड्डी को बोल दी कि वो सुबह आएंगे। धरमदेव चिंतित थे, क्योंकि वो जानते थे कि एकांत पाकर उनकी संताने क्या गुल खिला रहे होंगे। और उनका सोचना बिल्कुल सही था। गुड्डी मौका देख अपने भाई के पास गई जो खटाल में गाय का दूध दुह रहा था। राजू ने पलट के देखा तो गुड्डी एक चादर ओढ़ के उसके करीब खड़ी थी। राजू का दूध दुहना खत्म हो चुका था, उसने गुड्डी से पूछा," का भईल?
गुड्डी दूध से भरी बाल्टी देख बोली," माई बाबूजी आज ना आ पाइन्हे। काहे से बस छूट गईल ह।"
राजू," अच्छा त अब का करि?"
गुड्डी ने चादर फेंक दी, वो अंदर बिल्कुल निर्वस्त्र, नंगी थी और बोली," कल से हमार हरदी के रश्म शुरु हो गईल राजू। देख के बताबा ना हम केतना सुंदर लागत बानि। दिन में माई अउर सहेलियन सब कइले रहले। लेकिन आज उ रश्म हम तहरा हाथ से करवावे चाहत बानि।" गुड्डी ने हाथ में सिल बट्टे पर पिसी हुई गीली हल्दी का कटोरा ले बोली।
राजू," तू हमरा से का चाहत बारू?
गुड्डी," आज भी रश्म होई, पर माई अउर सहेली के हाथ ना तहरा हाथ से। हमरा पाछे छत पर आवा।"
गुड्डी नंगी ही गाँड़ मटकाते हुए छत पर चल दी। राजू उसके पीछे पीछे छत पर चला गया। गुड्डी छत पर पहुंच राजू को पास आने का इशारा की। राजू उसके करीब आया और उसके हाथ से कटोरा ले लिया। गुड्डी बिल्कुल निर्वस्त्र बेशर्म होकर खड़ी थी बोली," हमार हर अंग में हरदी लगा दअ अपन बहिन के ई रिवाज पूरा करआ।"
राजू ने गुड्डी को छत पर पड़ी पुआल पर बैठने को कहा। गुड्डी बैठ गयी और राजू ने भी एक एक कर कपड़े उतार दिए, अब दोनों भाई बहन छत पर नंगे थे। गुड्डी ने राजू से कहा," ई उबटन में तहार मूठ बहुत जरूरी बा।"
गुड्डी उसका लण्ड अपने ओर खींच ली और उसके अंडकोषों को चूम ली और बोली," जब तलिक तू मूठ ना मिलेबु, हम उबटन ना लगाएब।" वो राजू का सुपाड़ा सूंघ जीभ से लण्ड के छेद को चाटने लगी। गुड्डी पूरी लगन से राजू के लण्ड को चूस रही थी। राजू का लण्ड उसे देख फुंफकार रहा था।
गुड्डी सुपाड़ा चूमते हुए बोली," उउम्म.. पुच... पुच... केतना प्यारा बा ई.... लेकिन हमार तरफ फुफकारत काहे राजा?
राजू," गुड्डी रानी... ई जेतना फुफकारी समझ लअ, उतना तहरा ई चाहेला।"
गुड्डी सुपाड़ा चाटते हुए बोली," उम्म्म... राजू दीदी ना हमके रण्डी बोल, हम तहार रण्डी बानि चुदाई घड़ी।" ऐसा बोलके वो उसका लण्ड मुँह में भरके चूसने लगी। राजू ने गुड्डी के सर को पकड़ लिया, और अपने नियंत्रण में ले लिया। राजू ने उसके बाल को अपनी मुट्ठी में भींच रखा था। राजू के लण्ड को गुड्डी अपने मुंह से पूरा सम्मान दे रही थी। राजू का लण्ड पूरी तरह गीला हो चुका था। तभी राजू ने लण्ड बाहर निकाला और गुड्डी के पूरे चेहरे पर उसे मलने लगा। गुड्डी हंसते हुए अपना चेहरा राजू के और करीब ले गयी। राजू ने अपने लण्ड पर थूक लगाया, और गीले लण्ड से गुड्डी के गालों पर सुपाड़ा चमकाने लगा, जैसे कि वो कोई धार तेज़ कर रहा हो। गुड्डी उसके दोनों आंड़ को जीभ निकालके चाट रही थी। गुड्डी का पूरा चेहरा थूक से चमक रहा था। राजू उसे देख हँसा और बोला," हरदी के रशम से पहिले, तहार चेहरा चमक गईल थूक से। थूक से फेस वाश हो गइल।"
गुड्डी होठों को गोल कर और थूक निकाल बोली," उम्म्म... फेस वाश जरूरी बा ना..... " राजू के लण्ड से होंठों पर थूक फैलाके बोली।"
राजू गुड्डी का मुख चोदन मन मर्जी से कर रहा था, उसे गुड्डी ने पूरी छूट दे रखी थी। गुड्डी के गले तक लण्ड उतार कभी उसके साँसों का नियंत्रण देखता था। गुड्डी भी मुंह में उसका लण्ड किसी माहिर की तरह समा रही थी। आखिर कर गुड्डी की मुंह की गर्मी और उसके लण्ड चूसने की कला रंग लाई और राजू झड़ने को हुआ। गुड्डी होशियारी दिखाते हुए राजू का लण्ड हिलाते हुए हल्दी की कटोरी लण्ड के आगे रख दी। राजू के लण्ड से पिचकारी की तरह दस से बारह धार निकली और कटोरी में इकठ्ठा हो गयी। गुड्डी उसे देख मुस्कुरा रही थी, जैसे उसकी तमन्ना पूरी हो गयी हो। राजू ने उस कटोरी में लण्ड का आखरी बूंद तक झाड़ दिया। गुड्डी आंखों में चमक और होठों पर मुस्कान उस कटोरी में उंगली से हल्दी और मूठ मिलाने लगी। राजू अपनी बहन की हरकत देख रहा था। गुड्डी ने जब उसे मिला लिया तो राजू की ओर कटोरी बढ़ाते हुए बोली," ई लअ अब हमरा उबटन लगावा।"
गुड्डी के ठीक सामने बैठ राजू ने हल्दी हाथों में लगाई और गुड्डी के गालों पर मल दिया। गुड्डी उसकी ओर ही देख रही थी। राजू फिर उसके माथे और नाक पर भी मल दिया।
गुड्डी उसकी ओर देख बोली," बहनचोद, तहरा सामने लंगटे बइठल बानि, मुंह पर हल्दी लगावे खातिर? चुच्ची पर लगावा, बूर पर लगावा, जांघ पर लगावा, गाँड़ पर मल दआ।" ऐसा बोल उसका हाथ पकड़ बूर पर धर दी। राजू उसकी झांटों और बूर पर हल्दी लगा रहा था। गुड्डी की बूर रिस रही थी, हल्दी के रंग में सिमटकर वो और मस्त लग रही थी। राजू गुड्डी की बूर के एकदम पास से देख रहा था, ताकि बूर का कोई हिस्सा छूट ना जाये। गुड्डी अपने भाई के हाथों हल्दी की रश्म की शुरुवात कर चुकी थी। राजू ने उसकी बूर की फांकों पर खूब तोप तोप कर हल्दी लगाई।राजू उस बूर को कई बार चोद चुका था, फिर भी उसे वो हर बार नया लगता था। गुड्डी बूर पर हल्दी मलवाते हुए सिसिया रही थी उसकी आँखों में वासना और चुदाई की ललक साफ दिख रही थी। राजू दूसरे हाथ से उसकी चूचियों पर हल्दी मलने लगा। राजू ने उसे खड़ी होने को कहा, गुड्डी ने वैसा ही किया। गुड्डी दोनों हाथ ऊपर किये, उठ खड़ी हुई। राजू ने आइस्ते आइस्ते उसकी कमर और पेट पर हल्दी मलने लगा। गुड्डी खुद आगे बढ़ बढ़ के बदन पर हल्दी मलवा रही थी। फिर राजू ने उसकी कदली जैसी जांघों पर बड़ी ही कामुकता से हल्दी मलनी शुरू की। गुड्डी को गुदगुदी हो रही थी, पर वो डटी हुई थी। राजू ने गुड्डी को पीछे मुड़ने को कहा, अब उसके सामने गुड्डी की मदमस्त गाँड़ उभर गयी। राजू ने उसे देख एक चपत लगा दिया। गुड्डी ने गाँड़ सहलाते हुए और थोड़ी बाहर गाँड़ निकाल ली। गुड्डी पीछे मुड़ कामुकता से देख रही थी। राजू भी उसकी ओर देख रहा था। फिर राजू ने हल्दी उठायी और उसके गाँड़ की दरार और चूतड़ों पर मलने लगा। गुड्डी का पिछवाड़ा पूरा पीला हो गया था। राजू ने फिर गुड्डी को अपनी गोद में उठा लिया और बोला," गुड्डी दीदी सच में अईसे तू जबरदस्त दिख रहल बारू। देख हमार लांड कइसे तन गईल बा।"
गुड्डी उसके होठ चूमते हुए बोली," त घुसा दआ ना राजू बुरवा से ढेरी रस चुअतआ।"
राजू उसके बूर में लण्ड घुसा के उसे गोदी में ही चोदने लगा। गुड्डी उसके कंधों पर हाथ जमाये, लण्ड पर बैठी थी। राजू उसके चुतड़ थामे हुआ था। राजू का लण्ड पहले से ही गुड्डी की बूर की गहराईयों से परिचित था। बूर और लण्ड का संगम किसी, बिल में घुसे सांप की तरह हो गया। बिल चाहे जितना छोटा हो, सांप अंदर घुस ही जाता है। गुड्डी के बूर रूपी बिल में राजू का फुंफकारता हुआ लौड़ा समाए हुए था।गुड्डी मस्ती में राजू को चूम रही थी। कुछ देर बाद राजू ने गुड्डी को उसी पुआल के ढेर पर लिटा दिया और गुड्डी बूर फैलाके लेट गयी। राजू ने उसके बूर में लण्ड डाल दिया। गुड्डी सीत्कारते हुए लण्ड का स्वागत कर गयी। राजू और गुड्डी को आज कोई रोकने वाला नहीं था। राजू अपनी बड़ी बहन की कामुक आँहें सुन और उत्तेजित हो रहा था। राजू गुड्डी की बूर को ताबड़तोड़ चोद रहा था। वो बार बार लण्ड निकालके उसकी बूर में ठेल देता था। बूर को एक पल लण्ड के कारण पूरा फैलना पड़ता था और अगले ही पल फिर पूरा ढीला। इस बार बार अंदर बाहर होने से दोनों को ही मज़ा आ रहा था। सुपाड़ा हर बार बूर के द्वार को फैलाते हुए, अपना जड़ बूर से टकड़ा देता था। उसने अपना शरीर गुड्डी की कोमल चूचियों को जकड़ कर संतुलित किया हुआ था। गुड्डी उसकी कमर को थामे हुए, चुदवाने में मस्त हो रही थी। दोनों बीच बीच में एक दूसरे को चूम लेते थे। गुड्डी का गोरा बदन हल्दी के पीलेपन को ले, चमक रहा था। राजू को गुड्डी ऐसे में काफी आकर्षक लग रही थी।
कुछ देर के बाद राजू और गुड्डी चरमसुख की ओर बढ़ गए। राजू ने अंतिम समय पर लण्ड निकाल के उसकी बूर को अपने मूठ से नहला दिया। गुड्डी फिर राजू के ऊपर आकर लेट गयी। और राजू उसके बाल सहलाते हुए कहा," मज़ा आईल गुड्डी दीदी हरदी के रश्म में।"
गुड्डी उसकी ओर देख बोली," तहरा मज़ा आईल?
राजू," बहुत मज़ा आईल।"
गुड्डी," राजू, हमार बियाह हो जाई सात दिन बाद। हम घर से चल जाइब, तब तू का करबू। कइसे रहबू?
राजू ने गुड्डी के बालों को सुलझाते हुए बोला," तहरा जायी के बाद त हम अकेले हो जाइब, तहार याद में लांड हिलाईब।"
गुड्डी ने उसके होठ पर उंगली रख के कहा," अइसन सुंदर लौड़ा के तू हिलाके खराब करबू का। बियाह कर लिहा।"
राजू," हम बियाह ना करे चाहेनि।"
गुड्डी," त तहरा बूर कहां मिली चोदे खातिर।"
राजू," हमके बाहर के औरत में कउनु आकर्षण ना बुझाता। जउन आकर्षण तहरा में अउर माई में बा।"
गुड्डी," का बोललु, तहरा माई के प्रति भी आकर्षण बा का।"
राजू बोला," हाँ, हम सच कहत बानि माई भी हमरा मस्त लागेलि। तू अउर माई ही हमरा मस्त लागत बारू। दुनु के देख के हमार लांड फनफना जाता। उ रात माई जब बाबूजी से चोदात रहल, उकरा देख के लागत रहल ओकरा अंदर साक्षात काम के देवी रहला। भले ही ओकर बेटा बानि, पर हम माई के चोदे चाहत बानि।"
गुड्डी उसकी ओर देखते हुए बोली," ई बतिया तू हमके पहिले काहे ना बताइलु?
राजू," गुड्डी हमके लागत रहुवे, कि तहरा बुरा लागी।"
गुड्डी," बुरा लागल पर, तू हमसे एतना दिन ई बात छुपाइलु।"
राजू," मतलब?
गुड्डी," राजू, जब तू बहिन के चोदत बारू, त माई के चोद लेबु त का हो जाई। माई तहरा बहुत पसंद बिया त ओकरा पटा ले। बन जो मादरचोद।"
राजू," नीचे जाके माई के गंदा कच्छी लेके आ, हमरा उ बूर सूंघे के बा, जेसे तू अउर हम जनम लेनी।"
राजू अपनी बहन के रंडिपने पर खुश था, उसकी चाल ढाल, बातचीत छिनार की तरह लग रही थी। उसने सोचा," काश, हम एकरा अपन रखैल बना के रख पाति। एकर पति त पूरा मज़ा ली। बिस्तर में अउर छिनार बन जात बिया साली।"
गुड्डी उठके नीचे गई और अपनी माँ की उतारी हुई गंदी चड्डी ढूंढने लगी।
थोड़ी ही देर में गुड्डी अपनी मां की पैंटी/कच्छी निकाल कर अपने भाई के पास ले गयी। गुड्डी बोली," राजू ई लआ माई के कच्छी।" राजू गुड्डी के हाथों से पैंटी लेकर उसे सूंघने लगा। गुड्डी उसे देख हँस रही थी और बूर से हथेली पर पानी पोछते हुए बोली," बाप रे अब त संसार में माई सब भी सुरक्षित नइखे, अइसन बेटा होई त। औरत औरत होखेला, मर्द के नज़र में, चाहे उ कोई हो।"
राजू," माई के बूर से पानी नइखे चुवत का, चाहे उ चुदात नइखे। घर के संस्कारी औरत के चोदे के जे मज़ा बा ना उ केहू में ना हआ। अब सच में बीना के चोदे के पड़ी। ओकरा देख अब बर्दाश्त नइखे होत। का गाँड़ अउर चुच्ची बा ई उम्र में भी।"
गुड्डी," राजू तू माई के हमार सौतन बनेबु का? हमरा भूल जइबू का? वइसे चाल त छिनार जइसन बुझात रहल हआ।"
राजू," तू हमार पहिला प्यार बारू, अउर माई हमार दिल के चाहत। दिल से जइसे धड़कन अलग ना हो सकेला, वसही तू दुनु हमार दिल में बसल बारू।"
गुड्डी राजू की छाती चूम के बोली," राजू, ई दिल में हम अकेले रहब त कउनु दिक्कत। तहार हर इच्छा पूरा करब, बस हम रहब अकेले।"
राजू," काहे, माई से जलन होखेला।"
गुड्डी नकली गुस्सा दिखाते हुए बोली," कोई भी औरत मरद के प्यार ना बाटे चाहेला। भले ही उ ओकर बहिन हो या माई।"
राजू," अच्छा, लेकिन तू चल जइबू त हम अकेले का करब लौड़ा हिलायब का?
गुड्डी," उउम्म... राजू ई बात त ठीक बा। त अउर कोई नइखे खाली माई बारि का? बियाह क लिहा।
राजू," सच बताई हम त माई जइसन मदमस्त औरत कभू ना देखनि। काश हम बाबूजी के जगह ओकर पति रहित।रोज़ चोदती उ मदमस्त रण्डी के।"
गुड्डी," लागत बा हमरा से मन भर गईल हमार भाई के। हमरा सामने माई के तारीफ करत बारू। अब त हमार बियाह हो जाई, केहू दोसर तहार ई रण्डी के मज़ा ली राजू भैया। केहू अउर हमरा अपन बिस्तर में पटक के चोदी।"
राजू ने गुड्डी के बाल कसके पकड़ लिया और गुड्डी के मुँह में पैंटी घुसेड़ दी। और बोला," खबरदार तू केहू अउर के साथ सुते के बात करबू। तू हमार हउ रण्डी गुड्डी।"
गुड्डी ने हां में सिर हिलाया। चुकी घर में कोई था नहीं तो कोई रोक टोक के लिए था नहीं। रात चांदनी थी, ऐसे में गुड़िया किसी गुड़िया की तरह ही चमक रही थी। गुड्डी छत पर नंगी ही दौड़ने लगी। राजू उसके पीछे दौड़ रहा था, जैसे बचपन में दोनों छत पर खेलते थे। गुड्डी की मस्त गाँड़ कातिलाना ढंग से हिल रही थी और चूचियाँ भी इधर उधर छाती पर पके आम की तरह हिल रही थी। अंत में हिरनी शेर के पंजों में फंस ही गयी। राजू ने उसे गोद में उठाये हुए पूरे छत का चक्कर लगाया। गुड्डी किसी बच्ची की तरह अपने छोटे भाई की गोद में इठला रही थी।
राजू बोला," गुड्डी दीदी, दूध से नहा ले, तहार रूप अउर खिल जायी।"
गुड्डी," सच में राजू, दूध भी ताज़ा बा।"
राजू बिना देर किए दूध की बाल्टी उठा लाया और अपनी बहन को नीचे बिठा उसके माथे पर दूध की बाल्टी उड़ेलने लगा। गुड्डी उस दूध की धार के नीचे आंखें मूंद बैठ गयी। अपने बदन पर दूध पड़ने से वो थोड़ी असहज थी, पर फिर आराम से नंगे बदन को उसमें भिगोने लगी। गुड्डी का बदन साफ हो गया और बदन पर दूध पड़ने से शरीर महकने लगा था। गुड्डी किसी राजकुमारी की तरह दूध से स्नान कर रही थी। गुड्डी ने अपना चेहरा और बदन उसमें अच्छे से साफ किया। उसके बाल और बदन दूध से पूरा गीला हो चुका था। राजू ने दूध की बाल्टी से गुड्डी को पूरी तरह नहला दिया था। उस रात राजू और गुड्डी ने सारी रात छत पर एक दूजे की बांहों में बिताई।

गुड्डी की शादी में राजू अपने दोस्त अरुण के साथ पूरी लगन से लगा हुआ था। देखते ही देखते गुड्डी की शादी का दिन आ गया। गुड्डी का घर, दरवाज़ा, गली सब जगह लाइट जगमगा रही थी। धरमदेव पगड़ी पहनने इधर उधर घूम रहे थे, और लोगों का स्वागत कर रहे थे। बीना घर में बनारसी साड़ी पहन काम में लगी हुई थी। आज उनके सारे रिश्तेदार और सगे संबंधी पहुंचे हुवे थे। उनके घर की रौनक आज देखते ही बन रही थी। राजू और अरुण बाइक से शहर के कई चक्कर लगा चुके थे, शादी के घर में समान की जरूरतों की कमी थोड़े ही रहती है। डी जे पर विवाह के सुंदर सुंदर गीत बज रहे थे। अरुण भी दिल ही दिल में गुड्डी को चाहता था, पर उसने किसी से उसका इज़हार नहीं किया था, उसे मालूम था कि राजू खुद अपनी बहन का यार बन बैठा है। अरुण की माँ रंजू भी शादी में शामिल थी। वो बीना के साथ साथ घर का काम कर रही थी। सारे रीति रिवाज में वो शुरू से शामिल थी। गुड्डी किसी राजकुमारी की तरह लाल लहँगे में सजी धजी बैठी थी। बिजुरी और अन्य सहेलिया उसको सजाने संवारने में लगी हुई थी। गुड्डी अंदर ही अंदर राजू से बिछड़ने की डर से रो रही थी। गुड्डी के गले में सोने का हार, माथे पर टिका, नाक में नथिया, कानों में झुमके, कलाइयों में कंगन, हाथों और पैरों में पायल और मेहेंदी, पैर की उंगली में बिछिया, इत्यादि शोभा दे रही थी। बिजुरी ने उसके कान के पीछे काला टिका लगाते हुए कहा," बबुनी के नज़र ना लागे।"
गुड्डी बिजुरी से धीरे से बोली," बिजुरी हमार एक काम कर दे।"
बिजुरी बोली," का?
गुड्डी," हम राजू से अकेले में मिले चाहत बानि।"
बिजुरी," लेकिन काहे?
गुड्डी," आखरी बार...... मदद कर दे।"
बिजुरी ने उसकी आँखों में मदद की गुहार देख ली और वो गुड्डी के कंधों पर हाथ रख बोली," आवत हईं ओकरा देख के।"
बिजुरी ने कई जगह राजू को तलाशा वो उसे बाहर टेंट वालों से बातचीत करता हुआ मिला। बिजुरी ने उसे आवाज़ लगाई और बताया कि गुड्डी उससे मिलना चाहती है, अकेले में। राजू ने उसे घर के पिछवाड़े आने के लिए बोला और खुद उधर निकल गया।
बिजुरी गुड्डी के पास पहुंची और बताया कि राजू उसका घर के पिछवाड़े इंतज़ार कर रहा है। फिर बिजुरी गुड्डी को पेशाब के बहाने वहां ले गयी। राजू को देखते ही गुड्डी उसकी ओर दौड़ पड़ी और राजू भी उसकी ओर बढ़ चला। गुड्डी आके राजू के सीने से लग गयी। दोनों समझ रहे थे कि ये उनका आखरी निजी पल है। बिजुरी उधर दरवाज़े पर खड़ी पहरा दे रही थी।
गुड्डी की आंखों में आंसू थे। वो सुबकते हुए बोली," राजू आज के बाद शायद ही हम तू उ कर पाइब, जे दु प्यार करेवाला करे चाहत बा। अउर उ मरबा (मंडप) पर आज अपन प्यार दम तोड़ दी। काहे से केहू अउर हमार मांग में सेनुर भर के, हमरा आपन बना ली। केहू अउर हमरा साथ सात फेरा लेके, हमरा जीवनसाथी बना ली। उ ई शरीर के त पाई, पर हमार मन के ना छू पाई। आपन बहिन के पवित्रता पर कभू शक मत करिहा। हम तहार बानि, हमार रोम रोम तहार बा। हमार हर सांस हर धड़कन पर सिर्फ राजू नाम बा। ई दुनिया के रीति रिवाज आपन प्यार के कभू समझ ना पाई। एगो बहिन भी आपन भाई से प्यार कर सकेलि, ई उ समाज कभू ना बूझी। कल से एगो अनजान दुनिया में, तहार बहिन नया रिश्ता जोड़ी। जहां केहू हमरा नइखे जानेला, न हम उ लोगन के। फिर भी कल से हम उ घर के मान मर्यादा रहब। लेकिन उ काल से होई। आज ई मउका बा, हमरा संग चुदाई कर लअ।" ऐसा बोलके उसने अपना लहँगा उठाया और बूर सामने खोल दी। राजू ने अपना हाथ उसकी तपती और रिसती बूर पर डाल दिया और उसे वहीं दीवार से लगा दिया। राजू ने अपना लण्ड निकाला, जो गुड्डी को देखते ही तैयार हो चुका था। गुड्डी की बूर से पानी हथेली से ले, लण्ड पर मल दिया। गुड्डी ने खुद मुंह से थूक निकाल उसके लण्ड पर मल दी। राजू ने लण्ड को गुड्डी की इच्छानुसार उसकी बूर में डाल दिया। गुड्डी को ऐसा लगा मानो उसे पूरा संसार मिल गया। अपनी सांवली बूर में भाई का लण्ड डलवाकर, उसे दैहिक, कामुक और मानसिक सुख मिल रहा था।
राजू," ले रण्डी साली, बूर में लांड चाही ना। साली कुत्ती छिनार कहीं के, बियाह दिन भी बुरिया मचलता का। बूर में लण्ड ना घुसेला,त तहरा चैन नइखे मिलत।"
गुड्डी," उम्म...उम्म्म...उफ़्फ़फ़फ़,,, राजा..जा..…... का करि बुरिया रिसेला ना। अब तक त तू रहलु, अब तहार जीजा जाने का करी। तहार लांड के गंदा आदत लाग गईल बा, ई बुरिया के।"
राजू उसे चोदता रहा, बिना किसी लोक लाज के। गुड्डी को अर्धनग्न अवस्था में चुदते हुए देख, बिजुरी भी मचल उठी। आखिर कर गुड्डी की बूर में राजू ने अपना लण्ड का पानी निकाल दिया। राजू बोला," अब तहार फेरा हमार लांड के पानी के साथ होई रानी।"
गुड्डी राजू को गले लगा हाँफ रही थी। कुछ देर बाद दोनों अलग हुए गुड्डी ने अपने गले से एक धागा उतार राजू के गले में डाल दी। वो उसकी ओर देखती रही फिर कुछ बोले बगैर अपना लहँगा उठाये बिजुरी के साथ चली गयी। दोनों संतुष्ट दिख रहे थी। उधर गुड्डी राजू के वीर्य से भरी बूर ले मंडप में जा बैठी। राजू की कही बात उसे याद आयी," तहार फेरा हमार लांड के पानी के साथ होई।" वो घूंघट के अंदर मुस्कुरा उठी। राजू वही खड़ा, गुड्डी को घूर रहा था। धीरे धीरे पंडित ने मंत्रोजाप कर, शादी की शुरुआत कर दी। गुड्डी का हाथ वर के हाथ में दिया और धरमदेव- बीना ने कन्यादान किया, और फिर थोड़ी देर बाद सिंदूरदान करवाया, राजू तो पहले ही गुड्डी की बूर में वीर्यदान कर चुका था। फिर गुड्डी के गले में मंगलसूत्र डाल दिया। शादी सम्पन्न होते होते सुबह के चार बज चुके थे। काफी लोग जा भी चुके थे, सिर्फ करीबी रिश्तेदार और बाराती रहकर शादी देख रहे थे। उसके बाद दोनों दूल्हा दुल्हन को कमरे में ले जाया गया, लेकिन उनके बीच कुछ हुआ नहीं। दो तीन घंटे बाद विदाई की बेला आयी।
गुड्डी फुट फुट कर रो रही थी। वो बारी बारी सबके गले मिली, पहले बाप के, फिर माँ के फिर अपने भाई के। सब रो रहे थे। गुड्डी ने रोते हुए ही राजू से बोला," माई के छोड़िहा ना राजू" ऐसा बोल वो फिर सुबकने लगी। बाहर गाना बज रहा था," बाबुल का ये घर गोरी, कुछ दिन का ठिकाना है..." आखिरकार गुड्डी अपने पति के साथ विदा हो गयी। उसका पूरा घर बार, संसार सब पीछे छूट गया।
उसके जाने के बाद घर में सबको उसकी कमी महसूस हो रही थी।

गुड्डी के विदा होने के बाद, एक दिन बीना उसकी याद में रो रही थी। राजू ने मौका पाकर अपनी रोती हुई माँ को बांहों में भर लिया। वो भी रोने का अभिनय कर रहा था। उसकी माँ ने उसके सर को अपने सीने से लगा लिया। राजू ने उसकी नंगी पीठ और कमर को थामा हुआ था। राजू बहुत दिनों बाद बीना के स्तनों/चुचियों के करीब था। बीना अपने आँचल से अपनी आंखें और राजू की आंखे पोछ रही थी। इस क्रम में उसका आँचल उसके हाथ से छूट गया। बीना पसीने में लतपथ थी और अब कमर के ऊपर सिर्फ ब्लाउज ही रह गया था जो उसकी चूचियों से कसके चिपका हुवा था। राजू ने अपनी माँ की चूचियों की घाटी जो ब्लाउज के ऊपर से दिख रही थी उसपर अपने होठ रखे हुए था। बीना उसे एक माँ की तरह ही प्यार दे रही थी।
बीना रोते हुए बोली," चुप हो जा बेटा, बेटी त पराया धन होखेला उ त एक न एक दिन दोसर घर जाते बारन स।"
राजू बस बीना के जिस्म को महसूस कर रहा था। उसकी मुलायम चमड़ी, उसके कमर का कटाव, उसकी गहरी पीठ। अपनी माँ के प्रति ही उसका आकर्षण अद्भुत था। राजू बहाने से पीठ सहलाते हुए बोला," माई गुड्डी दीदी इहे घर में सदा खातिर रही त केतना खुशहाल माहौल रहित। हमरा दीदी के कमी खूब खली। अइसन बहिन नसीब वाला के मिलेला।"
बीना बोली," राजू कभू कोई लड़की मां बाप के घर हमेशा के खातिर ना रह सकेला। देख अगर हम तहार नाना के घर ही रह गईल रहति, त तू अउर तहार बहिन कभू ना भईल रहित। औरत हमेशा दोसर के घर सम्भारत बिया, दोसर के घर के आबाद करत बिया, ताकि उ घर के वंश के कोख में नौ महीना पाल के बाप के नाम मिले। औरत हमेशा ममता और प्यार दिल खोलके लुटावेली। हम तहार बाबूजी अउर अपन बच्चा पर लुटाउनी, अब गुड्डी उहे आपन ससुरारी में करि।"
राजू को ज्ञान देते वक्त बीना महसूस ही नहीं कर पाई की वो बेटे की नहीं मर्दाना आलिंगन में है। राजू ने अपने हाथ उसके चुतड़ पर टिकाए हुए थे और हल्के से एक दो बार सहलाक़े दबा रहा था। बीना को अब एहसास हुआ कि वो लगभग अर्धनग्न है। उसने राजू को अलग किया और अपनी पल्लू ठीक कर ली। फिर बीना राजू के बगल में बैठ गयी और उसका सर अपनी गोद में ले पालथी मार बैठ गयी। अपने बेटे के बाल सहला रही थी। राजू उसकी कमर थामे उसके पेट की ओर मुँह करके लेटा हुआ था। सामने उसकी माँ की नाभि दिख रही थी। उसने बीना की नाभि इतने करीब से नहीं देखी थी। मन तो कर रहा था कि उसे चूस ले, पर किसी तरह वो काबू रखें हुए था। तभी बाहर आवाज़ आयी," अलख निरंजन"
ये आवाज़ मलंग बाबा की थी। बीना राजू को छोड़ उनके पास गई। मलंग बाबा ने शादी के बारे में पूछा तो बीना ने बताया कि सब ठीक ठाक हो गया। फिर बाबा ने बीना की ओर गौर से देखा तो बीना चौंक के पूछी," बाबा, अईसे का देखत बानि?

मलंग बाबा," हम देख रहल बानि कि तहार कदम बहके वाला बा।"
बीना," का बाबा कइसे?
मलंग बाबा," बहुत जल्दी तहरा एगो नया मरद फंसाई। बच के रहिया। ओकर शुरुवात भी हो गइल बा।"
बीना," का कहत बानि बाबा, हम पतिव्रता नारी बानि।"
मलंग बाबा," इहे से कहत बानि, कि अपना आप के संभाल के रख।" बाबा ने एक जंतर उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा," ई पहिन ले गला में तहार रक्षा करि, दिमाग स्थिर रखी। मन में गलत विचार के रोकी।"
बीना उसे स्वीकारते हुए बोली," बाबा अपन आशीर्वाद बना के रखब।"
मलंग बाबा मुस्कुराते हुए बोले," जउन भाग में लिखल बा, उसे तू का भगवान भी ना बच पइलन।"

ऐसा बोल के मलंग बाबा फिर निकल गए। बीना उन्हें जाते हुए देखती रही। उसे समझ नहीं आ रहा था, कि मलंग बाबा ने ऐसा क्यों कहा??
 
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