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Incest रिश्तों का कामुक संगम

vyabhichari

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सावन

गांव में बारिश का मौसम शुरू होने ही वाला था। आज का मौसम सुबह से ही कुछ बेईमान सा था। तेज हवाओं के साथ, आसमान में घने काले बादल आ चुके थे। तेज़ पूर्वा हवा खेतों में हरी लहलहाती फसल को लहरा रही थी। पेड़ों के झुरमुट आपस में टकड़ा रहे थे। लंबे लंबे तार के पेड़ के पत्तों की सरसराहट दूर तक सुनाई दे रही थी। गांव के तालाब में तरंगे उठ रही थी। कुमुदनी के पौधे बह कर हवा के विपरीत किनारों तक पहुंच गए थे। कुछ देर बाद बारिश की बूंदे कमल के पत्तों पर तर तर कर बरसने लगी। पानी की सतह पर बारिश की बूंदे गिरने लगी। चारों तरफ गीली मिट्टी की खुशबू उठने लगी। ऐसे में सावन अपने साथ सोए जज्बातों को जगा देता है। बीना के जज्बातों से इन बरसाती हवाओं ने आवरण उड़ाना शुरू कर दिया था। बीना का जिस्म जवानी में धरमदेव के साथ खासकर इस मौसम में कमरे में कपड़ों के लिए तरस के रह जाता था। जैसे ही बारिश शुरू होती, बीना को धरमदेव कमरे में बुला के नंगी करने में देर नहीं लगाते थे। बीना ऊपर से तो नखरे दिखाती, लजाती, पर अंदर से उसे बहुत मज़ा आता था। नंगी होते ही फिर वो भी शरम लिहाज छोड़, अपने पति की खास सेवा में लग जाती थी। बंद कमरों में देसी औरतें अक्सर वो सब कुछ करती हैं, जो लोग नीली फिल्मों में भी नहीं देख पाते। बीना किसी चरित्रहीन महिला की तरह पति के ऊपर चढ़ जाती थी। उसका ये मानना था कि स्त्री, पुरुष की भोग की वस्तु है। मर्द जितना ही उसे भोगेगा उसे भी, उतना ही संभोग का आनंद मिलेगा। पुरुष चुदाई के दौरान अगर दर्द और पीड़ा देता है, तो स्त्री का कर्तव्य है उसे सहना और उसे चरम सुख देना। धरमदेव ने उसे जवानी में खूब चूसा और चोदा था, जिसपर बीना को गर्व था। बीना बाद में काफी खुल गयी थी, और पति के साथ छिनारपन करने में उसे बहुत मज़ा आता था। कई बार बीना पति को रिझाने के लिए, तंग ब्लाउज, गाँड़ मटका मटका के चलती थी। धरमदेव उसका इशारा समझ, उसे जबरदस्ती अंदर ले जाते, और अंदर फिर बीना की चुदाई तबियत से करते थे। बीना कई बार, धरमदेव की बहन बनकर चुदवाती थी जिसमें दोनों को बहुत मज़ा आता था। धीरे धीरे धरमदेव जहां बूढ़े होते चले जा रहे थे, और उनकी क्षमता घटती जा रही थी, वहीं बीना की प्यास बढ़ती उम्र के साथ बढ़ रही थी। अब धरमदेव बीना की पहली की तरह चुदाई नहीं कर पाते थे। जब से गुड्डी की शादी हुई थी, तबसे तो बीना की पहल को भी नकार दे रहे थे। ऐसी स्त्री आखिर क्या करे, अगर उसे कोई प्यासा छोड़ दे। इस उम्र में उनकी कामुकता खुद उनके बस में नहीं होती। पति अगर बिस्तर में तन्हा छोड़ दे, तो कुछ और उपाय सोचने को मजबूर हो जाती है। क्योंकि लण्ड की इतनी गंदी आदत लग जाती है कि बूर में उसके सिवाय कुछ भी गवारा नहीं होता है। बैगन, खीरा, ककड़ी सब एक तरफ और मजबूत फनफनाता लण्ड एक तरफ। बीना की गीली रिसती बूर में अब एक मजबूत लण्ड की आवश्यकता थी। बीना के प्यासे होंठ, उसकी मस्त चूचियाँ, उसकी रिसती बूर एक अदद लण्ड को तरस गए थे। ऐसे में उसका ध्यान घर में ही मौजूद जवान लण्ड की ओर आकर्षित हो रही थी। उसे ऐसे खुशनुमा मौसम में एक मर्द की जरूरत थी। मर्द जो उसके साथ यौनाचार करे और यौनसुख का असीम आनंद दे सके। कहते हैं उम्र के इस पराव पर औरत की कामुकता इस कदर होती है कि पराए मर्द से संबंध बनाने में उसे ज्यादा हिचक नहीं होती। ऐसे में पति के द्वारा अनदेखी पर, वो यौनसुख की अति प्यासी होने लगी थी। कहते हैं कि स्त्रियां मर्यादा में तो रहती है, पर इस मर्यादा के चक्कर में वो अपना यौवन, अपनी वासना की बलि दे बैठती हैं। लेकिन क्या हो अगर स्त्री ये बलिदान ना देकर, खुद को किसी और के हाथों इस्तेमाल करवा बैठे। बीना जैसी देहाती औरत जब मर्यादा तोड़ती है तो, उसे फिर पता नहीं लगता ये सही है या गलत? वो बस तरंगों में बहती रहती है और खुद को समर्पित कर लुटा बैठती है। बीना बाहर गिरती बूंदों को देख यही सब सोच रही थी। लेकिन अगर कोई घर के मर्द के साथ मर्यादा टूटती है, तो नुकसान क्या ही होगा। शारीरिक जरूरत को भी तो पूरा करना जरूरी है। अगर घर का मर्द उसका बेटा राजू उसके साथ....छि छि..... ना ना ऐसा नहीं हो सकता। बेटे के साथ माँ कितनी घटिया और घिनौनी बात है। उसने खुद को कोशा कि आखिर वो ऐसा सोच भी कैसे सकती है। लेकिन राजू का खयाल आते ही उसके मस्त लण्ड की तस्वीर तैर उठी, और उसकी बूर भीगने लगी। बीना को अपनी गीली बूर के लिए अब लण्ड चाहिए था। घर पर कोई इस वक़्त नहीं था, बीना अकेली थी। उसने मन में कुछ सोचा और एक मोटा खीरा अपने आँचल में छुपा अपने कमरे में चली गयी। उसने दरवाज़ा बंद किया और अपनी साड़ी साये के साथ कमर तक उठा ली। उसने अपनी पैंटी उतार कर किनारे रख दी। उसके बाल खुले हुए थे, और चेहरे पर कामुक भाव तैर रहे थे। हाथों की चूड़ियां और पैरों की पायल का शोर कमरे में गूंज रहा था। बीना की बूर पूरी गीली पड़ी हुई थी। अगर इस समय धरमदेव होते तो उसका लण्ड लेने के लिए खुद उसपर चढ़ जाती। लेकिन उस बेचारी के पास सिर्फ एक खीरा था। कमरे की खिड़की खुली थी, बाहर जोरों की बारिश हो रही थी। बीना ने एक झलक बाहर देखा और अपनी हथेली पर थूक लगाके बूर पर मल दिया। फिर अपनी बूर को तीन चार बार थपथपा, लण्ड की तरह खीरा बूर में घुसाने लगी। उसे बूर में एक अजीब सी कुलबुलाहट महसूस हो रही थी। उसकी आंखें बंद हो गयी और वो सिसियाते हुए बूर में खीरा घुसा रही थी। बारिश की बूंदों के शोर में उसकी सिसयाहट दब रही थी। बीना की बूर इतनी वर्षों की चुदाई के बाद भी, लण्ड के लिए तड़पती रहती थी। उसकी बूर सांवली और झांटों से भरी थी। लेकिन झांटें बूर के ठीक ऊपर थी, और बूर की मोटी फांके चिकनी थी। बीना की सांवली बूर के बीच हरा हरा खीरा बहुत ही दर्शनीय लग रहा था। आखिर ऐसी प्यासी औरत इसके अलावा कर ही क्या सकती है, जब पति ने चोदना छोड़ दिया हो। बीना की नंगी चिकनी जाँघे और खूबसूरत लग रही थी। बीना सिसयाते हुए बुदबुदाई,"
आह.... ऊऊ... हाय रे ई बूर में लांड के जगह खीरा से काम कइसे चली। ई सावन के महीना बुझाता असही बीती, पतिदेव चोदत नइखे अउर बूर में आग लागल बा। लांड के पानी से ही आग बुझी। बुरिया हाय रे, के आई तहरा चोदे खातिर।" वो अपनी बूर में खीरा बार बार अंदर बाहर कर रही थी। उसकी बूर की चिकनाई की वजह से, बूर से चिपचिपा पानी झाग की तरह बूर के छेद से बह रहा था। ऐसी औरतें और भी कामुक होती हैं। बीना बड़ी देर तक, अपनी बूर को कूटती रही फिर थोड़ी देर बाद शांत होकर बिस्तर पर नंग धरंग ही सोई रही। खुले बाल, माथे में सिंदूर, चेहरे पर अधूरी संतुष्टि, साँसों के साथ उठती गिरती चूचियाँ, कमर से नीचे पूरी तरह नंगी, झाँकती बूर और मदमस्त गाँड़, थोड़ी देर के लिए वो अपनी अवस्था को भूल नींद की आगोश में चली गयी। इस समय वो काम की देवी से कम नहीं लग रही थी। थोड़ी देर बाद जब उसे खिड़की से आती ठंडी हवाओं और खुले देह की वजह से जोरों की पेशाब लगी तो वो उठी। फिर अपनी हालात देख तनिक लजाई। इसके बाद उसने अपने बाल बांधे, और कपड़े व्यवस्थित किए। दरवाज़ा खोला तो बारिश रुकने को हो चुकी थी। पर बूंदा बूंदी अभी भी हो रही थी। बीना घर के पिछवाड़े गयी और फिर साड़ी कमर तक उठाके मूतने के लिए बैठने लगी। उसकी मोटी सुडौल गाँड़ पूरी नंगी हो गयी थी। वो बेधड़क बैठी हुई थी, और बूर से मीठी बंसी की तरह पेशाब की सुरीली धार मार रही थी। मिट्टी तो पहले से गीली थी, उसकी पेशाब की धार ने वहां झाग ला दिया था। बीना ने सावन की वजह से हारे रंग की चूड़ी और नेल पॉलिश लगा रखा था। साथ ही हाथों में मेहेंदी और पैर भी रंगे हुए थे। पैरों की उंगली में बिछिया और पैरों में पायल में कमर से नीचे नंगी वो कहर ढा रही थी। यही देहाती देसी औरतों का श्रृंगार और आकर्षण होता है। ऐसी औरतों को चोदने में जो सुकून मिलता है वो किसी और में नहीं। घरेलू, संस्कारी और पारिवारिक औरत को चोदने का मज़ा ही कुछ और होता है। बिस्तर में ये औरतें किसी रण्डी का रूप ले लेती है, और चुदाई का भरपूर आनंद देती है। पेशाब करते हुए देसी औरतों को देखने से ज़्यादा सेक्सी दृश्य और कोई नहीं। बीना की मूत की धार कमज़ोर पड़ रही थी, तभी उसके सामने सांपों का एक जोड़ा संसर्ग करते हुए आपस में लिपटे हुए लोट रहे थे। बीना सांपों को देख डर गई। क्योंकि वो साधारण नहीं नाग सांप थे। बीना उठी और साड़ी उठाये ही घर के अंदर की ओर भागी। वो सीधे जाके घर के अंदर मर्द के सीने से टकराई। उसने उसे जोर से पकड़ लिया। बीना जोर जोर से बोली," बाड़ी में सांप रहल, राजू के बाबूजी। नाग नागिन दुनु खेलात रहे। बाप रे बाप बड़ा डर लागल हमके।" बीना की साड़ी और साया उसकी कमर में फंसी हुई थी। वो इस बात से अनजान थी, कि उसकी जाँघे नंगी है। सामने वाले मर्द ने उसकी पीठ को सहलाते हुए सांत्वना दी। बीना को उसकी बांहों में सुकून मिल रहा था, उसे उन बाहों में सुरक्षित महसूस हो रहा था। कुछ ही क्षण बाद उसकी धड़कन शांत हुई और फूलती सांसें भी थमने लगी। उसने ऊपर देखा वो कोई और नहीं राजू था, जो पूरी तरह गीला था। राजू ने मुस्कुराते हुए बीना को देखा। बीना को कुछ समझ नहीं आया। उसके केश खुले थे, और आँचल सीने से नीचे लुढ़का हुआ था। उसकी मदमस्त बड़ी चूचियाँ अपने बेटे के सीने में धंसी हुई थी। चूचियों के बीच मलंग बाबा की ताबीज़ फंसी हुई थी। बीना जो थोड़ी देर पहले तक लण्ड के अभाव में, बूर में खीरा पेल रही थी इस समय अधनंगी हो बेटे से चिपकी हुई थी। राजू को बीना को ऐसे थामने में मज़ा आ रहा था। वो उसे बांहों के घेरे में कस के चिपकाए हुए था। राजू ने उसकी कमर को थाम रखा था। बीना के माथे और होठों पर पानी की बूंदे गिर रही थी। राजू ने उसके होठों को छूने के लिए अपनी उंगली उसके होंठों की ओर बढ़ाई। वो जैसे ही उसे छूने वाला था, कि बीना बोली," बेटा, देखआ ना बाड़ी में, सांप बा।"
राजू बोला," माई देखावा ना, चल हमरा साथे, डर मत।"
बीना बोली," लाठी ले लअ सुरक्षा खातिर।"
राजू लाठी लेकर बीना के पीछे पीछे चल दिया। बीना की मटकती गाँड़ देख, राजू उसका दीवाना हुए जा रहा था। उसने मन में सोचा," इस उम्र में भी क्या कातिल लग रही है ये।"
थोड़ी ही देर में बीना और राजू घर के पिछवाड़े पहुंच चुके थे। वहां पहुंच के बीना ने देखा, कि वो सांप वहां से जा चुके थे। बीना ने अपने बेटे को वो जगह दिखाई जहां सांप संसर्ग कर रहे थे। राजू ने झाड़ियों की ओर बढ़ के देखा, तो उसे कुछ नहीं दिखा। बीना ने उसे आगे जाने से मना कर दिया और डांटते हुए बोली," राजू वापस आ जो। जाय दे, जाने कहां छुपके बइठल होई।"
राजू वापिस चला आया और बीना के साथ घर के अंदर चला आया। राजू ने घर के अंदर आते ही कपड़े बदलने की तैयारी शुरू कर दी। राजू ने अपनी पैंट, टी शर्ट और बनियान उतार दी। वो सिर्फ चड्डी में खड़ा था। बीना भी अपनी ब्लाउज बदलने के लिए अंदर गयी हुई थी। राजू ने चड्डी डालके कमरे में टी वी ऑन की। उसने संगीत का चैनल लगाया, जिसमें गाना आ रहा था," देखा है पहली बार साजन की आंखों में प्यार"। माधुरी दीक्षित उस गाने में नाच रही थी। राजू को जाने क्यों माधुरी में, बीना दिखने लगी। बीना की कल्पना में उसका लण्ड जाने कब तन गया था। उसने एक झलक कमरे में देखा, बीना की नंगी पीठ उसे साफ दिख रही थी। बीना ने ब्लाउज उतार दी थी और दूसरी ब्लाउज ढूंढ रही थी। राजू ने चड्डी के ऊपर से लण्ड मसलते हुए बुदबुदाया," का माल बिया, ई साली के चोदहि के सुकून मिली।" उसने बिना बताए बीना के कमरे में प्रवेश किया। वो इधर उधर देख रहा था, तभी उसकी नज़र बिस्तर पर पड़े खीरे पर गयी। उसे क्या पता था कि थोड़ी देर पहले खीरा उसकी माँ की बूर में घुसा हुआ था। राजू ने खीरा उठाया और उसे कुतर कुतर के खाने लगा। वो चाव से उसे खाने लगा। बीना ने जब उसे खीरा खाते देखा तो अवाक रह गयी। उसने राजू से कहा," उ खीरा काहे खात बारआ, उ ठीक नइखे।"
राजू को खीरे में बूर की गंध मिल गई थी, वो तो अब उसे शौक से खा रहा था। राजू बोला," काहे माई? वो अब किस मुंह से बोलती की ये खीरा उसकी बूर में घुसा हुआ था। राजू उसकी आँखों में देखते हुए, खीरा खाते हुए बाहर निकल गया।
बीना अपनी ब्लाउज बदल के, बाहर आई तो राजू बिस्तर पर लेट के गाना देख रहा था। बीना की सांसें उसे देख, तेज हो उठी। राजू जैसा हृष्ट पुष्ट लड़का, गठीला बदन देख कोई भी औरत की नीयत फिसल सकती हैं। बीना ने उससे कुछ कहा नहीं, बल्कि सब्ज़ी लाके उसके बगल में बैठ गयी और साथ में टी वी देखने लगी। राजू सिर्फ चड्डी में लेटा हुआ था। उसकी पैंट में तंबू बना हुआ था। राजू ने लण्ड सहलाते हुए, बीना की ओर कनखियों से देखा। बीना ने जताया जैसे वो उधर देख ही नहीं रही। राजू की चड्डी लण्ड के पानी से भीग चुकी थी। दो तड़पते बदन घर में जल रहे थे। बीना जब सब्ज़ियां काट चुकी तो, उसने राजू से पूछा," खीरा कइसन रहे बेटा?
राजू," मस्त, बढ़िया पर जाने का उमे अलग गंध रहे।
बीना," कइसन गंध?
राजू," जइसन, पहिल बारिश के बाद मिट्टी के गंध, नमकीन कसैला।"
बीना," अच्छा"। वो मुस्कुराके उठ के जाने लगी। उसकी नज़र एक बार फिर राजू पर पड़ी, उसने कहा," कपड़ा पहन ले, ना त सर्दी लग जाइ।"
राजू ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। कुछ देर बाद धरमदेव घर आये। आज बीना ने लिट्टी और चोखा बनाया था। बारिश के मौसम में अक्सर लोग लिट्टी चोखा खाना पसंद करते हैं। रात के समय सबने खाना खाया, और राजू कमरे में आकर लेट गया। राजू सोने के लिए लेटा ही था कि उस छेद से उसे मां बाप के कमरे की शोर सुनाई दी। राजू ने गुड्डी की चुदाई के साथ उस कमरे में मां बाप की चुदाई भी देखी थी। धरमदेव बिस्तर पर बैठा हुआ था और बीना अपने पति के जांघ पर बैठी उसे चूम रही थी। धरमदेव को कुछ ज़्यादा रुचि नही हो रही थी। धरमदेव ने एक दो बार अपना मुंह फेर लिया, तो बीना ने अपनी ब्लाउज को ब्रा सहित ऊपर कर लिया और अपने चूचियों के बीच उसका सर रख लिया।
बीना बोली," ऐ राजाजी आजकाल रउवा हमरा पर ध्यान नइखे देत, बहुत दिन से रउवा कुछो कइनी ना। रउवा जइसन मरद नसीब से मिलेला, लेकिन जब पेलबे ना करब, त हमार जइसन औरत के मेहरारू रखके का फायदा। आज सावन के पहिला बारिश ह, तनि आज खूंटा गारके हमार बिलवा में, मन हरिया दा।"
धरमदेव उसकी चूचियों को चूमते हुए बोला," का बताई, बड़ा टेंशन में बानि, गुड्डी के दहेज पूरा ना भईल। ओकर ससुरारी से बार बार फोन आवेला। एहीसे तहरा पर ध्यान ना दे पईनि। अब तू भी तनि अपना पर काबू करल करा।"
बीना अपनी साड़ी उठाके बूर दिखाते हुए बोली," देखी ना केतना पनियाईल बा, लांड खातिर। रउवा कहत बानि काबू करे खातिर। जाने का हो गइल बा, उमर के साथ साथ अउर मन मचलअता। अब ई रउवा के अलावा के करि।" ऐसा बोल वो धरमदेव को लिटा के उसके मुरझाए लण्ड को चूमने लगी। धरमदेव की धोती पहले ही खुल चुकी थी, वो अपनी बीवी को देख, मुस्कुराते हुए लेट गए। बीना लण्ड को जब करीब से देखी, तो उसे राजू का लण्ड याद आ गया। अपने पति और बेटे के लण्ड में उसे बहुत हद तक समानता लग रही थी। दूसरी ओर राजू अपना सख्त लण्ड लिए हिला रहा था। बीना ने जीभ निकालके धरमदेव का लण्ड हुए चाटा और राजू को ऐसा महसूस हुआ कि बीना उसके लण्ड का सुपाड़ा चूस रही है। धरमदेव ने बीना की साड़ी और साया एक साथ कमर तक उठा नंगा कर दिया था। उसने अपनी ब्लाउज खुद ही उतार कर बिस्तर के कोने में पटक दी थी। बीना बड़े मज़े से लण्ड पर थूक बरसाते हुए, उसे होठों से पुचकार रही थी। बीना का पूरा ध्यान अब लण्ड की चुसाई और उसकी तैयारी पर था ताकि उसकी बूर की अच्छे से पेलाई हो सके। वो बेचारी चुदने को परेशान थी, इसलिए पूरी मेहनत कर रही थी। राजू अपनी माँ को ऐसे देख, काफी उत्तेजित हो चुका था, उसने कभी सोचा नहीं था कि उसकी माँ चुदाई के लिए इतनी प्यासी हो सकती है। पर तभी रंग में भंग पड़ गया, धरमदेव तुरंत ही झड़ गए। वो बीना की चुसाई बर्दाश्त ही नहीं कर पाए, उसके मुंह की गर्मी उसके लण्ड को पिघलाकर पानी निकालने पर मजबूर कर दिया। बीना के मुंह मे मूठ भर गया, कुछ ही पल में लण्ड मुरझाने लगा। बीना चाह कर भी अब कुछ नहीं कर सकती थी। धरमदेव ने उसे छोड़ बिस्तर का कोना पकड़ लिया। बीना ने मुंह का पानी गटक लिया और अपनी प्यासी बूर और अधूरी चाहत को लिए बिस्तर पर लेट गयी। राजू अपनी माँ को देख रहा था, उसे अपनी माँ के ऊपर तरस आ रहा था। आखिर ऐसी प्यासी औरत का सावन के महीने में यूं तड़पना उसे अच्छा नहीं लग रहा था। उसने अपने बाप को मन में कोशा, अगर बीवी को खुश नहीं कर पाते तो लोग शादी क्यों करते हैं। तभी उसने देखा कि बीना बिस्तर से उठी और ब्लाउज पहन के साड़ी व्यवस्थित की। फिर वो कमरे से बाहर निकल गयी। राजू दरवाज़े के पास गया और उसने देखा कि उसकी माँ पेशाब करने आंगन में बनी नाली के मुंह पर बैठने लगी थी। बीना ने अपनी साड़ी साया समेत उठायी और उसकी गाँड़ बिल्कुल नंगी हो गयी। मस्त भारी चूतड़ राजू उस अंधेरी रात में भी भांप सकता था। ऐसी औरत को कौन नहीं देखना चाहेगा, भले ही वो उसकी माँ क्यों ना हो। आंगन में हल्की बूंदा बांदी हो रही थी। बीना को देख के कोई नहीं कह सकता था कि, वो अभी अभी यौनक्रिया करके आयी है। राजू उसे चुपके से देख रहा था। तभी बीना की बूर से पेशाब की धार," सुर्रर्रर..... की आवाज़ के साथ बह निकली। बीना को तो इसकी आदत थी, पर राजू के कानों से जब ये ध्वनि टकराई, तो उसका लण्ड टनटना गया। एक परिपक्व महिला को मूतते देखना राजू की उम्र के लड़कों का सपना होता है। बीना की बूर से लगातार पेशाब का खाड़ा पानी नाली में बह रहा था। बीना ने अपनी बूर फैला रखी थी, ताकि पेशाब की धार सीधी निकले, पर औरतों की बूर से पेशाब की धार धीमे पड़ते ही इधर उधर हो उठती है और उनके बूर से चिपककर बहते हुए चूतड़ों को गीला कर बैठती है। बीना के साथ ऐसा ही हुआ, बीना पहले से ही चिढ़ी हुई थी। उसने बूर पर दो चपत लगाई, और बड़बड़ाते हुए बोली," खाली तंग करेला ई साली, लांड खोजेली त लांड नइखे मिलत, अब पेशाब के धार पर भी काबू नइखे।"
फिर वो उठी और साड़ी उठाये हुए, नंगी गाँड़ मटकाते हुए आंगन में हैंडपंप की ओर जाने लगी। राजू उसकी नंगी गाँड़, देख लण्ड मसल रहा था। बीना इस बात से अनजान थी, कि राजू उसे देख रहा है। बीना ने गाँड़ उठाये हुए हैंड पंप चलाया, उफ़्फ़फ़ क्या नज़ारा था बीना की चौड़ी गदरायी मस्त गाँड़ का। बीना की गाँड़ हैंड पंप चलाने से मादक तरीके से हिल रही थी। बीना ने तीन चार हैंडल मारे तो, मग में पानी भर गया। बीना फिर वहां बैठ गयी और बांये हाथ से पानी छपाक छपाक बूर पर मारी और उसे रगड़के साफ किया फिर चूतड़ों पर लगा पेशाब भी वैसे ही साफ किया। बीना फिर उठी और चेहरा धोया। उसने मन को शांत करने के लिए पानी पिया और फिर कमरे के अंदर चल दी। राजू उसके जाते ही वहाँ पहुंचा जहां बैठके उसकी माँ मूत रही थी। उसने झुककर मूत के खाड़े महक को सूंघा और वहीं पर मूठ मारने लगा। वो बीना की चुच्ची और गाँड़ को याद करते हुए याद करके मूठ मार रहा था। उसके भाग्य में बीना के बूर के दर्शन अभी नहीं लिखे थे। पर उससे उसको मूठ मारने में कोई दिक्कत नहीं हुई। थोड़ी ही देर में उसने बीना के मूत पर मूठ मार दी। फिर उसने वहीं खड़े खड़े उसी जगह पेशाब पर मूतने लगा। बीना के मूत पर मूतने से उसे एक अजीब सी संतुष्टि मिल रही थी। उसके मुँह से बार बार," माई.....माई.... निकल रहा था। तभी उसे पीछे से खिड़की बंद होने की आवाज़ आई, बीना के कमरे की खिड़की अभी बंद हुई थी। इसका मतलब क्या वो राजू की सारी हरकतें देख चुकी थी। राजू थोड़ी देर चुप चाप खड़ा रहा और फिर भाग के कमरे में आ गया। उसने एक बार बीना के कमरे में झांका वहां पूरा अंधेरा था, उसे कुछ भी दिख नहीं रहा था। वो चादर खींच के लेट गया और सोच रहा था जाने कल क्या होगा हो ना हो वो मां ही थी और कौन होगा।" ये सब सोचते हुए जाने से कब नींद आ गयी।
अगली सुबह धरमदेव जल्दी उठे, और खेतों पर जाने को हुए तो बीना बोली," राजू के बाबू जी सुनि ना, हम गुड्डी के शादी खातिर मन्नत मांगने रहनि। दु दिन खातिर, बिशुनपुर के तीरथ जाय के बा। हम सोचत रहनि कि ई दु दिन में हो जाई, सावन के पवित्र महीना भी बा।"
धरमदेव," हमरा लंग समय नइखे, कइसे जइबू।"
बीना," रंजू अउर हम चल जाईब साथे।"
धरमदेव," लेकिन बिना मरद के तू दुनु कइसे रहबू।"
बीना," ओकर बेटा अरुण भी जाई, रउवा कही त राजू भी हमनी के साथ चल जाई। ठीक रही ना?
धरमदेव," हां, ई ठीक बा। आज ढेर लोग जात होइन्हें, चौक पर पिकउप में। तू सब भी दुपहर तक निकल जो। काल परसु स्नान कइके, फिर वापिस हो जाइन्हे।"
बीना," जी जरूर...लेकिन तनि पईसवा त रख जायीं।" धरमदेव ने दो हज़ार दे दिए और चला गया। राजू सब सुन रहा था। वो ये सोचके उत्तेजित था, कि उसे बीना के साथ अकेले रहने का मौका मिलेगा। तभी बीना ने राजू को उठने की आवाज़ लगाई। राजू उठा और बाहर आया। वो आदत के मुताबिक पहले शौच गया और फिर दातुन रख के गाय को दुहने के लिए मड़ई में घुस गया। जब वो गाय को दुह करके बाहर आया तो बीना ने उसे जल्दी से तैयार होने को कहा।
राजू," माई कहां जायके बा?
बीना," बिशुनपुर बेटा, हमार मन्नत रहे, गुड्डी के बियाह हो जाई, त गंगा नहाएब।"
राजू," अच्छा, अकेले हम तू जाइब का?
बीना," ना बेटा, रंजू अउर ओकर बेटा भी जाई।
राजू," ठीक बा। हम तैयार होत बानि।"
राजू को अरुण और रंजू जे संबंध के बारे में पहले से पता था। वो अब इसी उम्मीद में था कि बीना और सजे बीच भी वैसा रिश्ता बन जाये। ये तीर्थ इसका एक माध्यम हो सकता है। बीना तो पहले ही नहा धोके तैयार थी, और उसने एक थैले में जरूरी सामान और कपड़े रख लिए थे। दूसरी ओर राजू भी नहा धोकर बाहर आया और तैयार हो गया। उसने भी उसी थैले में अपने कपड़े डाल दिये। फिर दोनों घर पर ताला लगाए और पड़ोसी को चाबी दे, रंजू और अरुण के घर की ओर चल दिये। कुछ ही देर में दोनों उनके घर के आगे थे, वहां से उस माँ बेटे की जोड़ी इन माँ बेटे की जोड़ी के साथ हो ली। सब चौक पर पहुंच गाड़ी का इंतज़ार करने लगे। राजू और अरुण चाय की दुकान पर बैठे थे। बीना और रंजू एके साथ बैठी हुई थी।
अरुण राजू से बोला," अरे सरवा, तहार माई त एकदम मस्त लग रहल बा। एकरा पटा ले, जइसे हम करत हईं।"
राजू," चुप साला, ओकरा पर गंदा नज़र मत डाल। आपन माई से मन भर गईल का।"
अरुण," अरे, हम कहां कहत बानि की हम लेब। माई के बूर बेटा चोदी तभी मज़ा आवेला। देख ई मउका बढ़िया बा। एकरा पटा के चोद ले।"
राजू," हट साला, सबके अपना जइसन मादरचोद बुझले का।"
अरुण," जब मादरचोद बनबू ना त ओकर सुख के पता चली। माई के जब बेटा चोदेला त बेटा माई के केतना मजा आवेला।"
तभी गाड़ी आ गयी। उसमें काफी भीड़ थी। राजू और अरुण अपनी माँओं के साथ गाड़ी( पिकउप) में चढ़ गए। गाड़ी के अंदर सभी खड़े थे। रंजू और बीना अपने अपने बेटों के आगे ही खड़ी थी। गाड़ी कुछ ही देर में खुल गयी और एक रोमांचकारी सफर की शुरुआत हो चुकी थी।
क्या इस सफर में सीमाएं टूटेंगी, और रिश्तों में कामुकता के बीज अंकुरित होंगे??? क्या संभावनाएं पनपेगी राजू और बीना के बीच?
अगले अपडेट में जानेंगे... सावन का पवित्र तीर्थ....
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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102,859
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सावन

गांव में बारिश का मौसम शुरू होने ही वाला था। आज का मौसम सुबह से ही कुछ बेईमान सा था। तेज हवाओं के साथ, आसमान में घने काले बादल आ चुके थे। तेज़ पूर्वा हवा खेतों में हरी लहलहाती फसल को लहरा रही थी। पेड़ों के झुरमुट आपस में टकड़ा रहे थे। लंबे लंबे तार के पेड़ के पत्तों की सरसराहट दूर तक सुनाई दे रही थी। गांव के तालाब में तरंगे उठ रही थी। कुमुदनी के पौधे बह कर हवा के विपरीत किनारों तक पहुंच गए थे। कुछ देर बाद बारिश की बूंदे कमल के पत्तों पर तर तर कर बरसने लगी। पानी की सतह पर बारिश की बूंदे गिरने लगी। चारों तरफ गीली मिट्टी की खुशबू उठने लगी। ऐसे में सावन अपने साथ सोए जज्बातों को जगा देता है। बीना के जज्बातों से इन बरसाती हवाओं ने आवरण उड़ाना शुरू कर दिया था। बीना का जिस्म जवानी में धरमदेव के साथ खासकर इस मौसम में कमरे में कपड़ों के लिए तरस के रह जाता था। जैसे ही बारिश शुरू होती, बीना को धरमदेव कमरे में बुला के नंगी करने में देर नहीं लगाते थे। बीना ऊपर से तो नखरे दिखाती, लजाती, पर अंदर से उसे बहुत मज़ा आता था। नंगी होते ही फिर वो भी शरम लिहाज छोड़, अपने पति की खास सेवा में लग जाती थी। बंद कमरों में देसी औरतें अक्सर वो सब कुछ करती हैं, जो लोग नीली फिल्मों में भी नहीं देख पाते। बीना किसी चरित्रहीन महिला की तरह पति के ऊपर चढ़ जाती थी। उसका ये मानना था कि स्त्री, पुरुष की भोग की वस्तु है। मर्द जितना ही उसे भोगेगा उसे भी, उतना ही संभोग का आनंद मिलेगा। पुरुष चुदाई के दौरान अगर दर्द और पीड़ा देता है, तो स्त्री का कर्तव्य है उसे सहना और उसे चरम सुख देना। धरमदेव ने उसे जवानी में खूब चूसा और चोदा था, जिसपर बीना को गर्व था। बीना बाद में काफी खुल गयी थी, और पति के साथ छिनारपन करने में उसे बहुत मज़ा आता था। कई बार बीना पति को रिझाने के लिए, तंग ब्लाउज, गाँड़ मटका मटका के चलती थी। धरमदेव उसका इशारा समझ, उसे जबरदस्ती अंदर ले जाते, और अंदर फिर बीना की चुदाई तबियत से करते थे। बीना कई बार, धरमदेव की बहन बनकर चुदवाती थी जिसमें दोनों को बहुत मज़ा आता था। धीरे धीरे धरमदेव जहां बूढ़े होते चले जा रहे थे, और उनकी क्षमता घटती जा रही थी, वहीं बीना की प्यास बढ़ती उम्र के साथ बढ़ रही थी। अब धरमदेव बीना की पहली की तरह चुदाई नहीं कर पाते थे। जब से गुड्डी की शादी हुई थी, तबसे तो बीना की पहल को भी नकार दे रहे थे। ऐसी स्त्री आखिर क्या करे, अगर उसे कोई प्यासा छोड़ दे। इस उम्र में उनकी कामुकता खुद उनके बस में नहीं होती। पति अगर बिस्तर में तन्हा छोड़ दे, तो कुछ और उपाय सोचने को मजबूर हो जाती है। क्योंकि लण्ड की इतनी गंदी आदत लग जाती है कि बूर में उसके सिवाय कुछ भी गवारा नहीं होता है। बैगन, खीरा, ककड़ी सब एक तरफ और मजबूत फनफनाता लण्ड एक तरफ। बीना की गीली रिसती बूर में अब एक मजबूत लण्ड की आवश्यकता थी। बीना के प्यासे होंठ, उसकी मस्त चूचियाँ, उसकी रिसती बूर एक अदद लण्ड को तरस गए थे। ऐसे में उसका ध्यान घर में ही मौजूद जवान लण्ड की ओर आकर्षित हो रही थी। उसे ऐसे खुशनुमा मौसम में एक मर्द की जरूरत थी। मर्द जो उसके साथ यौनाचार करे और यौनसुख का असीम आनंद दे सके। कहते हैं उम्र के इस पराव पर औरत की कामुकता इस कदर होती है कि पराए मर्द से संबंध बनाने में उसे ज्यादा हिचक नहीं होती। ऐसे में पति के द्वारा अनदेखी पर, वो यौनसुख की अति प्यासी होने लगी थी। कहते हैं कि स्त्रियां मर्यादा में तो रहती है, पर इस मर्यादा के चक्कर में वो अपना यौवन, अपनी वासना की बलि दे बैठती हैं। लेकिन क्या हो अगर स्त्री ये बलिदान ना देकर, खुद को किसी और के हाथों इस्तेमाल करवा बैठे। बीना जैसी देहाती औरत जब मर्यादा तोड़ती है तो, उसे फिर पता नहीं लगता ये सही है या गलत? वो बस तरंगों में बहती रहती है और खुद को समर्पित कर लुटा बैठती है। बीना बाहर गिरती बूंदों को देख यही सब सोच रही थी। लेकिन अगर कोई घर के मर्द के साथ मर्यादा टूटती है, तो नुकसान क्या ही होगा। शारीरिक जरूरत को भी तो पूरा करना जरूरी है। अगर घर का मर्द उसका बेटा राजू उसके साथ....छि छि..... ना ना ऐसा नहीं हो सकता। बेटे के साथ माँ कितनी घटिया और घिनौनी बात है। उसने खुद को कोशा कि आखिर वो ऐसा सोच भी कैसे सकती है। लेकिन राजू का खयाल आते ही उसके मस्त लण्ड की तस्वीर तैर उठी, और उसकी बूर भीगने लगी। बीना को अपनी गीली बूर के लिए अब लण्ड चाहिए था। घर पर कोई इस वक़्त नहीं था, बीना अकेली थी। उसने मन में कुछ सोचा और एक मोटा खीरा अपने आँचल में छुपा अपने कमरे में चली गयी। उसने दरवाज़ा बंद किया और अपनी साड़ी साये के साथ कमर तक उठा ली। उसने अपनी पैंटी उतार कर किनारे रख दी। उसके बाल खुले हुए थे, और चेहरे पर कामुक भाव तैर रहे थे। हाथों की चूड़ियां और पैरों की पायल का शोर कमरे में गूंज रहा था। बीना की बूर पूरी गीली पड़ी हुई थी। अगर इस समय धरमदेव होते तो उसका लण्ड लेने के लिए खुद उसपर चढ़ जाती। लेकिन उस बेचारी के पास सिर्फ एक खीरा था। कमरे की खिड़की खुली थी, बाहर जोरों की बारिश हो रही थी। बीना ने एक झलक बाहर देखा और अपनी हथेली पर थूक लगाके बूर पर मल दिया। फिर अपनी बूर को तीन चार बार थपथपा, लण्ड की तरह खीरा बूर में घुसाने लगी। उसे बूर में एक अजीब सी कुलबुलाहट महसूस हो रही थी। उसकी आंखें बंद हो गयी और वो सिसियाते हुए बूर में खीरा घुसा रही थी। बारिश की बूंदों के शोर में उसकी सिसयाहट दब रही थी। बीना की बूर इतनी वर्षों की चुदाई के बाद भी, लण्ड के लिए तड़पती रहती थी। उसकी बूर सांवली और झांटों से भरी थी। लेकिन झांटें बूर के ठीक ऊपर थी, और बूर की मोटी फांके चिकनी थी। बीना की सांवली बूर के बीच हरा हरा खीरा बहुत ही दर्शनीय लग रहा था। आखिर ऐसी प्यासी औरत इसके अलावा कर ही क्या सकती है, जब पति ने चोदना छोड़ दिया हो। बीना की नंगी चिकनी जाँघे और खूबसूरत लग रही थी। बीना सिसयाते हुए बुदबुदाई,"
आह.... ऊऊ... हाय रे ई बूर में लांड के जगह खीरा से काम कइसे चली। ई सावन के महीना बुझाता असही बीती, पतिदेव चोदत नइखे अउर बूर में आग लागल बा। लांड के पानी से ही आग बुझी। बुरिया हाय रे, के आई तहरा चोदे खातिर।" वो अपनी बूर में खीरा बार बार अंदर बाहर कर रही थी। उसकी बूर की चिकनाई की वजह से, बूर से चिपचिपा पानी झाग की तरह बूर के छेद से बह रहा था। ऐसी औरतें और भी कामुक होती हैं। बीना बड़ी देर तक, अपनी बूर को कूटती रही फिर थोड़ी देर बाद शांत होकर बिस्तर पर नंग धरंग ही सोई रही। खुले बाल, माथे में सिंदूर, चेहरे पर अधूरी संतुष्टि, साँसों के साथ उठती गिरती चूचियाँ, कमर से नीचे पूरी तरह नंगी, झाँकती बूर और मदमस्त गाँड़, थोड़ी देर के लिए वो अपनी अवस्था को भूल नींद की आगोश में चली गयी। इस समय वो काम की देवी से कम नहीं लग रही थी। थोड़ी देर बाद जब उसे खिड़की से आती ठंडी हवाओं और खुले देह की वजह से जोरों की पेशाब लगी तो वो उठी। फिर अपनी हालात देख तनिक लजाई। इसके बाद उसने अपने बाल बांधे, और कपड़े व्यवस्थित किए। दरवाज़ा खोला तो बारिश रुकने को हो चुकी थी। पर बूंदा बूंदी अभी भी हो रही थी। बीना घर के पिछवाड़े गयी और फिर साड़ी कमर तक उठाके मूतने के लिए बैठने लगी। उसकी मोटी सुडौल गाँड़ पूरी नंगी हो गयी थी। वो बेधड़क बैठी हुई थी, और बूर से मीठी बंसी की तरह पेशाब की सुरीली धार मार रही थी। मिट्टी तो पहले से गीली थी, उसकी पेशाब की धार ने वहां झाग ला दिया था। बीना ने सावन की वजह से हारे रंग की चूड़ी और नेल पॉलिश लगा रखा था। साथ ही हाथों में मेहेंदी और पैर भी रंगे हुए थे। पैरों की उंगली में बिछिया और पैरों में पायल में कमर से नीचे नंगी वो कहर ढा रही थी। यही देहाती देसी औरतों का श्रृंगार और आकर्षण होता है। ऐसी औरतों को चोदने में जो सुकून मिलता है वो किसी और में नहीं। घरेलू, संस्कारी और पारिवारिक औरत को चोदने का मज़ा ही कुछ और होता है। बिस्तर में ये औरतें किसी रण्डी का रूप ले लेती है, और चुदाई का भरपूर आनंद देती है। पेशाब करते हुए देसी औरतों को देखने से ज़्यादा सेक्सी दृश्य और कोई नहीं। बीना की मूत की धार कमज़ोर पड़ रही थी, तभी उसके सामने सांपों का एक जोड़ा संसर्ग करते हुए आपस में लिपटे हुए लोट रहे थे। बीना सांपों को देख डर गई। क्योंकि वो साधारण नहीं नाग सांप थे। बीना उठी और साड़ी उठाये ही घर के अंदर की ओर भागी। वो सीधे जाके घर के अंदर मर्द के सीने से टकराई। उसने उसे जोर से पकड़ लिया। बीना जोर जोर से बोली," बाड़ी में सांप रहल, राजू के बाबूजी। नाग नागिन दुनु खेलात रहे। बाप रे बाप बड़ा डर लागल हमके।" बीना की साड़ी और साया उसकी कमर में फंसी हुई थी। वो इस बात से अनजान थी, कि उसकी जाँघे नंगी है। सामने वाले मर्द ने उसकी पीठ को सहलाते हुए सांत्वना दी। बीना को उसकी बांहों में सुकून मिल रहा था, उसे उन बाहों में सुरक्षित महसूस हो रहा था। कुछ ही क्षण बाद उसकी धड़कन शांत हुई और फूलती सांसें भी थमने लगी। उसने ऊपर देखा वो कोई और नहीं राजू था, जो पूरी तरह गीला था। राजू ने मुस्कुराते हुए बीना को देखा। बीना को कुछ समझ नहीं आया। उसके केश खुले थे, और आँचल सीने से नीचे लुढ़का हुआ था। उसकी मदमस्त बड़ी चूचियाँ अपने बेटे के सीने में धंसी हुई थी। चूचियों के बीच मलंग बाबा की ताबीज़ फंसी हुई थी। बीना जो थोड़ी देर पहले तक लण्ड के अभाव में, बूर में खीरा पेल रही थी इस समय अधनंगी हो बेटे से चिपकी हुई थी। राजू को बीना को ऐसे थामने में मज़ा आ रहा था। वो उसे बांहों के घेरे में कस के चिपकाए हुए था। राजू ने उसकी कमर को थाम रखा था। बीना के माथे और होठों पर पानी की बूंदे गिर रही थी। राजू ने उसके होठों को छूने के लिए अपनी उंगली उसके होंठों की ओर बढ़ाई। वो जैसे ही उसे छूने वाला था, कि बीना बोली," बेटा, देखआ ना बाड़ी में, सांप बा।"
राजू बोला," माई देखावा ना, चल हमरा साथे, डर मत।"
बीना बोली," लाठी ले लअ सुरक्षा खातिर।"
राजू लाठी लेकर बीना के पीछे पीछे चल दिया। बीना की मटकती गाँड़ देख, राजू उसका दीवाना हुए जा रहा था। उसने मन में सोचा," इस उम्र में भी क्या कातिल लग रही है ये।"
थोड़ी ही देर में बीना और राजू घर के पिछवाड़े पहुंच चुके थे। वहां पहुंच के बीना ने देखा, कि वो सांप वहां से जा चुके थे। बीना ने अपने बेटे को वो जगह दिखाई जहां सांप संसर्ग कर रहे थे। राजू ने झाड़ियों की ओर बढ़ के देखा, तो उसे कुछ नहीं दिखा। बीना ने उसे आगे जाने से मना कर दिया और डांटते हुए बोली," राजू वापस आ जो। जाय दे, जाने कहां छुपके बइठल होई।"
राजू वापिस चला आया और बीना के साथ घर के अंदर चला आया। राजू ने घर के अंदर आते ही कपड़े बदलने की तैयारी शुरू कर दी। राजू ने अपनी पैंट, टी शर्ट और बनियान उतार दी। वो सिर्फ चड्डी में खड़ा था। बीना भी अपनी ब्लाउज बदलने के लिए अंदर गयी हुई थी। राजू ने चड्डी डालके कमरे में टी वी ऑन की। उसने संगीत का चैनल लगाया, जिसमें गाना आ रहा था," देखा है पहली बार साजन की आंखों में प्यार"। माधुरी दीक्षित उस गाने में नाच रही थी। राजू को जाने क्यों माधुरी में, बीना दिखने लगी। बीना की कल्पना में उसका लण्ड जाने कब तन गया था। उसने एक झलक कमरे में देखा, बीना की नंगी पीठ उसे साफ दिख रही थी। बीना ने ब्लाउज उतार दी थी और दूसरी ब्लाउज ढूंढ रही थी। राजू ने चड्डी के ऊपर से लण्ड मसलते हुए बुदबुदाया," का माल बिया, ई साली के चोदहि के सुकून मिली।" उसने बिना बताए बीना के कमरे में प्रवेश किया। वो इधर उधर देख रहा था, तभी उसकी नज़र बिस्तर पर पड़े खीरे पर गयी। उसे क्या पता था कि थोड़ी देर पहले खीरा उसकी माँ की बूर में घुसा हुआ था। राजू ने खीरा उठाया और उसे कुतर कुतर के खाने लगा। वो चाव से उसे खाने लगा। बीना ने जब उसे खीरा खाते देखा तो अवाक रह गयी। उसने राजू से कहा," उ खीरा काहे खात बारआ, उ ठीक नइखे।"
राजू को खीरे में बूर की गंध मिल गई थी, वो तो अब उसे शौक से खा रहा था। राजू बोला," काहे माई? वो अब किस मुंह से बोलती की ये खीरा उसकी बूर में घुसा हुआ था। राजू उसकी आँखों में देखते हुए, खीरा खाते हुए बाहर निकल गया।
बीना अपनी ब्लाउज बदल के, बाहर आई तो राजू बिस्तर पर लेट के गाना देख रहा था। बीना की सांसें उसे देख, तेज हो उठी। राजू जैसा हृष्ट पुष्ट लड़का, गठीला बदन देख कोई भी औरत की नीयत फिसल सकती हैं। बीना ने उससे कुछ कहा नहीं, बल्कि सब्ज़ी लाके उसके बगल में बैठ गयी और साथ में टी वी देखने लगी। राजू सिर्फ चड्डी में लेटा हुआ था। उसकी पैंट में तंबू बना हुआ था। राजू ने लण्ड सहलाते हुए, बीना की ओर कनखियों से देखा। बीना ने जताया जैसे वो उधर देख ही नहीं रही। राजू की चड्डी लण्ड के पानी से भीग चुकी थी। दो तड़पते बदन घर में जल रहे थे। बीना जब सब्ज़ियां काट चुकी तो, उसने राजू से पूछा," खीरा कइसन रहे बेटा?
राजू," मस्त, बढ़िया पर जाने का उमे अलग गंध रहे।
बीना," कइसन गंध?
राजू," जइसन, पहिल बारिश के बाद मिट्टी के गंध, नमकीन कसैला।"
बीना," अच्छा"। वो मुस्कुराके उठ के जाने लगी। उसकी नज़र एक बार फिर राजू पर पड़ी, उसने कहा," कपड़ा पहन ले, ना त सर्दी लग जाइ।"
राजू ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। कुछ देर बाद धरमदेव घर आये। आज बीना ने लिट्टी और चोखा बनाया था। बारिश के मौसम में अक्सर लोग लिट्टी चोखा खाना पसंद करते हैं। रात के समय सबने खाना खाया, और राजू कमरे में आकर लेट गया। राजू सोने के लिए लेटा ही था कि उस छेद से उसे मां बाप के कमरे की शोर सुनाई दी। राजू ने गुड्डी की चुदाई के साथ उस कमरे में मां बाप की चुदाई भी देखी थी। धरमदेव बिस्तर पर बैठा हुआ था और बीना अपने पति के जांघ पर बैठी उसे चूम रही थी। धरमदेव को कुछ ज़्यादा रुचि नही हो रही थी। धरमदेव ने एक दो बार अपना मुंह फेर लिया, तो बीना ने अपनी ब्लाउज को ब्रा सहित ऊपर कर लिया और अपने चूचियों के बीच उसका सर रख लिया।
बीना बोली," ऐ राजाजी आजकाल रउवा हमरा पर ध्यान नइखे देत, बहुत दिन से रउवा कुछो कइनी ना। रउवा जइसन मरद नसीब से मिलेला, लेकिन जब पेलबे ना करब, त हमार जइसन औरत के मेहरारू रखके का फायदा। आज सावन के पहिला बारिश ह, तनि आज खूंटा गारके हमार बिलवा में, मन हरिया दा।"
धरमदेव उसकी चूचियों को चूमते हुए बोला," का बताई, बड़ा टेंशन में बानि, गुड्डी के दहेज पूरा ना भईल। ओकर ससुरारी से बार बार फोन आवेला। एहीसे तहरा पर ध्यान ना दे पईनि। अब तू भी तनि अपना पर काबू करल करा।"
बीना अपनी साड़ी उठाके बूर दिखाते हुए बोली," देखी ना केतना पनियाईल बा, लांड खातिर। रउवा कहत बानि काबू करे खातिर। जाने का हो गइल बा, उमर के साथ साथ अउर मन मचलअता। अब ई रउवा के अलावा के करि।" ऐसा बोल वो धरमदेव को लिटा के उसके मुरझाए लण्ड को चूमने लगी। धरमदेव की धोती पहले ही खुल चुकी थी, वो अपनी बीवी को देख, मुस्कुराते हुए लेट गए। बीना लण्ड को जब करीब से देखी, तो उसे राजू का लण्ड याद आ गया। अपने पति और बेटे के लण्ड में उसे बहुत हद तक समानता लग रही थी। दूसरी ओर राजू अपना सख्त लण्ड लिए हिला रहा था। बीना ने जीभ निकालके धरमदेव का लण्ड हुए चाटा और राजू को ऐसा महसूस हुआ कि बीना उसके लण्ड का सुपाड़ा चूस रही है। धरमदेव ने बीना की साड़ी और साया एक साथ कमर तक उठा नंगा कर दिया था। उसने अपनी ब्लाउज खुद ही उतार कर बिस्तर के कोने में पटक दी थी। बीना बड़े मज़े से लण्ड पर थूक बरसाते हुए, उसे होठों से पुचकार रही थी। बीना का पूरा ध्यान अब लण्ड की चुसाई और उसकी तैयारी पर था ताकि उसकी बूर की अच्छे से पेलाई हो सके। वो बेचारी चुदने को परेशान थी, इसलिए पूरी मेहनत कर रही थी। राजू अपनी माँ को ऐसे देख, काफी उत्तेजित हो चुका था, उसने कभी सोचा नहीं था कि उसकी माँ चुदाई के लिए इतनी प्यासी हो सकती है। पर तभी रंग में भंग पड़ गया, धरमदेव तुरंत ही झड़ गए। वो बीना की चुसाई बर्दाश्त ही नहीं कर पाए, उसके मुंह की गर्मी उसके लण्ड को पिघलाकर पानी निकालने पर मजबूर कर दिया। बीना के मुंह मे मूठ भर गया, कुछ ही पल में लण्ड मुरझाने लगा। बीना चाह कर भी अब कुछ नहीं कर सकती थी। धरमदेव ने उसे छोड़ बिस्तर का कोना पकड़ लिया। बीना ने मुंह का पानी गटक लिया और अपनी प्यासी बूर और अधूरी चाहत को लिए बिस्तर पर लेट गयी। राजू अपनी माँ को देख रहा था, उसे अपनी माँ के ऊपर तरस आ रहा था। आखिर ऐसी प्यासी औरत का सावन के महीने में यूं तड़पना उसे अच्छा नहीं लग रहा था। उसने अपने बाप को मन में कोशा, अगर बीवी को खुश नहीं कर पाते तो लोग शादी क्यों करते हैं। तभी उसने देखा कि बीना बिस्तर से उठी और ब्लाउज पहन के साड़ी व्यवस्थित की। फिर वो कमरे से बाहर निकल गयी। राजू दरवाज़े के पास गया और उसने देखा कि उसकी माँ पेशाब करने आंगन में बनी नाली के मुंह पर बैठने लगी थी। बीना ने अपनी साड़ी साया समेत उठायी और उसकी गाँड़ बिल्कुल नंगी हो गयी। मस्त भारी चूतड़ राजू उस अंधेरी रात में भी भांप सकता था। ऐसी औरत को कौन नहीं देखना चाहेगा, भले ही वो उसकी माँ क्यों ना हो। आंगन में हल्की बूंदा बांदी हो रही थी। बीना को देख के कोई नहीं कह सकता था कि, वो अभी अभी यौनक्रिया करके आयी है। राजू उसे चुपके से देख रहा था। तभी बीना की बूर से पेशाब की धार," सुर्रर्रर..... की आवाज़ के साथ बह निकली। बीना को तो इसकी आदत थी, पर राजू के कानों से जब ये ध्वनि टकराई, तो उसका लण्ड टनटना गया। एक परिपक्व महिला को मूतते देखना राजू की उम्र के लड़कों का सपना होता है। बीना की बूर से लगातार पेशाब का खाड़ा पानी नाली में बह रहा था। बीना ने अपनी बूर फैला रखी थी, ताकि पेशाब की धार सीधी निकले, पर औरतों की बूर से पेशाब की धार धीमे पड़ते ही इधर उधर हो उठती है और उनके बूर से चिपककर बहते हुए चूतड़ों को गीला कर बैठती है। बीना के साथ ऐसा ही हुआ, बीना पहले से ही चिढ़ी हुई थी। उसने बूर पर दो चपत लगाई, और बड़बड़ाते हुए बोली," खाली तंग करेला ई साली, लांड खोजेली त लांड नइखे मिलत, अब पेशाब के धार पर भी काबू नइखे।"
फिर वो उठी और साड़ी उठाये हुए, नंगी गाँड़ मटकाते हुए आंगन में हैंडपंप की ओर जाने लगी। राजू उसकी नंगी गाँड़, देख लण्ड मसल रहा था। बीना इस बात से अनजान थी, कि राजू उसे देख रहा है। बीना ने गाँड़ उठाये हुए हैंड पंप चलाया, उफ़्फ़फ़ क्या नज़ारा था बीना की चौड़ी गदरायी मस्त गाँड़ का। बीना की गाँड़ हैंड पंप चलाने से मादक तरीके से हिल रही थी। बीना ने तीन चार हैंडल मारे तो, मग में पानी भर गया। बीना फिर वहां बैठ गयी और बांये हाथ से पानी छपाक छपाक बूर पर मारी और उसे रगड़के साफ किया फिर चूतड़ों पर लगा पेशाब भी वैसे ही साफ किया। बीना फिर उठी और चेहरा धोया। उसने मन को शांत करने के लिए पानी पिया और फिर कमरे के अंदर चल दी। राजू उसके जाते ही वहाँ पहुंचा जहां बैठके उसकी माँ मूत रही थी। उसने झुककर मूत के खाड़े महक को सूंघा और वहीं पर मूठ मारने लगा। वो बीना की चुच्ची और गाँड़ को याद करते हुए याद करके मूठ मार रहा था। उसके भाग्य में बीना के बूर के दर्शन अभी नहीं लिखे थे। पर उससे उसको मूठ मारने में कोई दिक्कत नहीं हुई। थोड़ी ही देर में उसने बीना के मूत पर मूठ मार दी। फिर उसने वहीं खड़े खड़े उसी जगह पेशाब पर मूतने लगा। बीना के मूत पर मूतने से उसे एक अजीब सी संतुष्टि मिल रही थी। उसके मुँह से बार बार," माई.....माई.... निकल रहा था। तभी उसे पीछे से खिड़की बंद होने की आवाज़ आई, बीना के कमरे की खिड़की अभी बंद हुई थी। इसका मतलब क्या वो राजू की सारी हरकतें देख चुकी थी। राजू थोड़ी देर चुप चाप खड़ा रहा और फिर भाग के कमरे में आ गया। उसने एक बार बीना के कमरे में झांका वहां पूरा अंधेरा था, उसे कुछ भी दिख नहीं रहा था। वो चादर खींच के लेट गया और सोच रहा था जाने कल क्या होगा हो ना हो वो मां ही थी और कौन होगा।" ये सब सोचते हुए जाने से कब नींद आ गयी।
अगली सुबह धरमदेव जल्दी उठे, और खेतों पर जाने को हुए तो बीना बोली," राजू के बाबू जी सुनि ना, हम गुड्डी के शादी खातिर मन्नत मांगने रहनि। दु दिन खातिर, बिशुनपुर के तीरथ जाय के बा। हम सोचत रहनि कि ई दु दिन में हो जाई, सावन के पवित्र महीना भी बा।"
धरमदेव," हमरा लंग समय नइखे, कइसे जइबू।"
बीना," रंजू अउर हम चल जाईब साथे।"
धरमदेव," लेकिन बिना मरद के तू दुनु कइसे रहबू।"
बीना," ओकर बेटा अरुण भी जाई, रउवा कही त राजू भी हमनी के साथ चल जाई। ठीक रही ना?
धरमदेव," हां, ई ठीक बा। आज ढेर लोग जात होइन्हें, चौक पर पिकउप में। तू सब भी दुपहर तक निकल जो। काल परसु स्नान कइके, फिर वापिस हो जाइन्हे।"
बीना," जी जरूर...लेकिन तनि पईसवा त रख जायीं।" धरमदेव ने दो हज़ार दे दिए और चला गया। राजू सब सुन रहा था। वो ये सोचके उत्तेजित था, कि उसे बीना के साथ अकेले रहने का मौका मिलेगा। तभी बीना ने राजू को उठने की आवाज़ लगाई। राजू उठा और बाहर आया। वो आदत के मुताबिक पहले शौच गया और फिर दातुन रख के गाय को दुहने के लिए मड़ई में घुस गया। जब वो गाय को दुह करके बाहर आया तो बीना ने उसे जल्दी से तैयार होने को कहा।
राजू," माई कहां जायके बा?
बीना," बिशुनपुर बेटा, हमार मन्नत रहे, गुड्डी के बियाह हो जाई, त गंगा नहाएब।"
राजू," अच्छा, अकेले हम तू जाइब का?
बीना," ना बेटा, रंजू अउर ओकर बेटा भी जाई।
राजू," ठीक बा। हम तैयार होत बानि।"
राजू को अरुण और रंजू जे संबंध के बारे में पहले से पता था। वो अब इसी उम्मीद में था कि बीना और सजे बीच भी वैसा रिश्ता बन जाये। ये तीर्थ इसका एक माध्यम हो सकता है। बीना तो पहले ही नहा धोके तैयार थी, और उसने एक थैले में जरूरी सामान और कपड़े रख लिए थे। दूसरी ओर राजू भी नहा धोकर बाहर आया और तैयार हो गया। उसने भी उसी थैले में अपने कपड़े डाल दिये। फिर दोनों घर पर ताला लगाए और पड़ोसी को चाबी दे, रंजू और अरुण के घर की ओर चल दिये। कुछ ही देर में दोनों उनके घर के आगे थे, वहां से उस माँ बेटे की जोड़ी इन माँ बेटे की जोड़ी के साथ हो ली। सब चौक पर पहुंच गाड़ी का इंतज़ार करने लगे। राजू और अरुण चाय की दुकान पर बैठे थे। बीना और रंजू एके साथ बैठी हुई थी।
अरुण राजू से बोला," अरे सरवा, तहार माई त एकदम मस्त लग रहल बा। एकरा पटा ले, जइसे हम करत हईं।"
राजू," चुप साला, ओकरा पर गंदा नज़र मत डाल। आपन माई से मन भर गईल का।"
अरुण," अरे, हम कहां कहत बानि की हम लेब। माई के बूर बेटा चोदी तभी मज़ा आवेला। देख ई मउका बढ़िया बा। एकरा पटा के चोद ले।"
राजू," हट साला, सबके अपना जइसन मादरचोद बुझले का।"
अरुण," जब मादरचोद बनबू ना त ओकर सुख के पता चली। माई के जब बेटा चोदेला त बेटा माई के केतना मजा आवेला।"
तभी गाड़ी आ गयी। उसमें काफी भीड़ थी। राजू और अरुण अपनी माँओं के साथ गाड़ी( पिकउप) में चढ़ गए। गाड़ी के अंदर सभी खड़े थे। रंजू और बीना अपने अपने बेटों के आगे ही खड़ी थी। गाड़ी कुछ ही देर में खुल गयी और एक रोमांचकारी सफर की शुरुआत हो चुकी थी।
क्या इस सफर में सीमाएं टूटेंगी, और रिश्तों में कामुकता के बीज अंकुरित होंगे??? क्या संभावनाएं पनपेगी राजू और बीना के बीच?
अगले अपडेट में जानेंगे... सावन का पवित्र तीर्थ....
Shandar super hot erotic update 🔥 💓
 

liverpool244

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Bhai bahut mast update tha...bahut mast...par bhai yaar aap update bahut late dete ho.... please iska bhi koi solution nikal dijiye please ye ek choti si request hai
 
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