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धन्यवादfor new story
धन्यवादfor new story
Nice and beautiful update.....UPDATE -2
राज अपने मन से लड़ने में व्यस्त था की तभी दरवाजे की घंटी बजी जिससे राज अपनी दुनिया में वापस आया।
राज: अरे अभी कौन आ गया।
राज जैसे ही दरवाजा खोलता है सामने देख चौंक जाता है। सामने उसकी बहन सविता खड़ी थी
सविता, अंजली के बिलकुल विपरीत है, दोनों एक दूसरे से इतने अलग हैं जैसे की दो विलोम शब्द, सूर्य चांद का अंतर, अंजली जितनी संस्कारी थी, उतनी ही तेज और मॉडर्न थी सविता। इसका नाम इसके किरदार को, इसके चरित्र को बखूबी दर्शाता है। इसे लड़कों से बात करना, उनके साथ घूमना बहुत पसंद है। हालांकि इसकी शादी हो गई है पर इसका पति कहीं बाहर नौकरी करता है जिसके कारण इसकी मन की इच्छाएं इतनी प्रबल हो जाती हैं की बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है। शादी से पहले इसके कई बॉयफ्रेड थे जो बात राज को पता थी। इस बात से राज ने इससे बात करना बंद कर दिया था लेकिन फिर जैसे शादी हुई तो राज को लगा की अब सब ठीक हो जायेगा पर वो उतना ही गलत था जितना एक मांझी शांत समंदर को देख कर होता है की आगे सब ठीक है। यकीन मानिए सविता के बिना ये कहानी आगे बढ़ ही नहीं सकती। सारा खेल इसके इशारों पर होने वाला है आगे।
सविता
सविता: अरे भैया कहां हो गए मैं हूं, सविता
राज: हां हां आओ आओ अंदर आओ। अरे अंजली देखो तो कौन आया है
सविता: भाभी भाभी कहां हो जल्दी आओ। आपकी प्यारी ननद आई है।
अंजली( सविता को देख के खुश भी थी और मायूस भी) : अरे सविता आओ। तुम अचानक?
सविता: क्यों? नहीं आ सकती क्या?
अंजली: अरे कैसी बात करती हो, ये भी तुम्हारा ही घर है।
सविता: अच्छा मेरा घर है? तो करवा दो रजिस्ट्री? हाहाहाहाहा
अंजली( राज को घूरते हुए): अच्छा बातें बाद में अभी एक काम करो तुम नहा धो लो फिर साथ नाश्ता करते हैं।
सविता: तुरंत गई, तुरंत आई।
सविता के जाते ही अंजली गुस्से से राज को देखते हुए कहती है
सविता: तुमने इसे क्यों बुलाया अभी। खुद ही प्लान बनाते हो और खुद ही बिगड़ते हो
राज: अरे मैंने नहीं बुलाया। पता नहीं ये क्यों आई है अभी
अंजली: अब तो तुम्हारी बहन ही बताए की क्यों बुलाया है
इतने देर में सविता बाहर आती है और राज उसको देख के चौंक जाता है। उसके हांथ में वही लिफाफा था। राज को याद आता है की उसने लिफाफा बाथरूम में छुपाया था
सविता: भैया ये आपका है क्या?
अंजली: क्या है ये?
सविता: पता नहीं बाथरूम में था।
राज को कुछ समझ नहीं आता क्या कहे। उसके लिए तो ऐसा हो गया की काटो तो खून नहीं।
राज: वो वो वो व... तू...तुम ये इधर दो ये मेरे ऑफिस की है। हमारे नए प्रोजेक्ट के बारे के कुछ जानकारी है।
इतना कहते हुए वो लिफाफा सविता से चीन लेता है।
सविता: अरे आराम से आप तो ऐसे छीन रहे जैसे इसमें पता नहीं क्या है। हाहाहाहा
अंजली: अच्छा चलो अब सविता जरा किचन में हेल्प करो खाना बन गया है बस निकलना है।
सविता: हां हां भाभी और भैया इतना जरूरी लिफाफा को ऐसे ही कहीं भी नहीं रख देते।
ये कहते हुए वो अंजली के पीछे पीछे किचन में चली जाती है
सविता: क्या यार भाभी सुबह सुबह तो रोमांस का टाइम होता है
अंजली: चुप कर भैया सुन लेंगे तेरे।
सविता: अरे इसमें क्या है। मैने कुछ गलत थोड़ी कहा। कभी आप मेरे घर आना जब ये आए हुए हों फिर देखना माहोल
अंजली: मुझे ये सब बातें पसंद नहीं। छोर एक काम कर तू मेरे रूम में जा और वहा पानी की बॉटल है वो भर कर टेबल पर रख दे
सविता: ठीक ठीक है करवा लो काम
सविता रूम में जाती है तो वहां सारा रूम फैला था क्योंकि थोड़ी देर पहले अंजली पैकिंग कर रही थी। उसे समझते देर ना लगी और वो भाग कर हाल में आई
सविता: अरे भैया आप लोग कहीं जा रहे हैं क्या
सविता के इतना बोलते ही अंजली भी किचन से आई और राज और अंजली एक दूसरे को देखने लगे
राज: हां वो बस थोड़ा ऐसे ही
सविता: ऐसे ही मतलब कहां जा रहे और कब जा रहे
राज: जा तो हम नैनीताल रहे थे और आज ही पर अब लगता है की........
अंजली इतना सुनके मायूस हो जाती है
सविता: अरे क्यों क्या हुआ? मैं आ गई इसीलिए क्या
अंजली: अरे नहीं नहीं कैसी बातें करती हो
सविता: ठीक ही तो कह रही हूं ना। नहीं तो आप लोग प्लान कैंसल करने के जगह मुझे भी कहते की तुम भी साथ चलो।
अंजली राज को देखते हुए: क्या राज मैने कहा था ना की इसे भी ले लेते हैं। अरे सविता तेरे भैया को लगा की तुम व्यस्त होगी अभी।
सविता: व्यस्त कहा रहूंगी।
राज: तो ठीक है फिर चलो चलते हैं सब साथ।
सविता: ये हुई ना बात। चलो भाभी हम दोनो मिल के पैकिंग करते हैं
राज अपने मन में सोचता है की कितनी चालाकी से अंजली ने सविता को नाराज होने से मना लिया। जबकि हमारे बीच ऐसी कुछ बात ही नहीं हुई थी। कितनी समझदार है मेरी अंजली।
इसी सब के बीच शाम के 5 बज के। बाहर टैक्सी खड़ी बार बार हॉर्न बजा रही थी। राज दोनो नन्द भाभी को जल्दी तैयार होने को कह कर बाहर टैक्सी वाले से पैसे की कुछ बात करने निकल गया। सब कह के जब वो वापस गया तो देखा दोनों तैयार हो कर बाहर आ रहे थे।
राज: अंजली, कितनी सुंदर लग रही हो तुम!
जी कर रहा बस देखता रहूं
सच में अंजली लग भी रही थी बला की सुंदर। हरे रंग की सारी, हरे रंग की चूरी, ऊपर से ले के नीचे तक कयामत ढा रही थी
सविता: क्या भैया, सिर्फ भाभी ही अच्छी लग रही क्या? और मैं?
राज: हां, हां दोनों अच्छे लग रहे।
राज ने जब सविता को देखा तो थोड़ा झेंप गया। वो लग ही ऐसी रही थी। उसने कसे हुए टॉप और लेगिस पहने हुए थे। जिसने उसका अंग अंग ऐसे निखर रहा था जैसे ठंड के सुबह पतों के ऊपर ओस निखरते हैं।
राज: अब जल्दी चलो। नहीं तो कल सुबह पहुंचे।
सविता: भैया वो आपने अपना लिफाफा ले लिया ना हाहाहा हो सकता है वहा काम आए
राज: बिना कुछ समझे: हां ले लिया अब चलो।
क्यों की उसे डर था की कहीं ज्यादा रात ना हो जाए। पहली बार अनजान शहर साथ में दो औरत हो तो जिमेदारी का अहसास खुद ब खुद डर पैदा कर हो देती है।खैर सब गाड़ी में बैठ कर नैनीताल के लिए निकल जाते हैं।
Gazabb updateUPDATE -2
राज अपने मन से लड़ने में व्यस्त था की तभी दरवाजे की घंटी बजी जिससे राज अपनी दुनिया में वापस आया।
राज: अरे अभी कौन आ गया।
राज जैसे ही दरवाजा खोलता है सामने देख चौंक जाता है। सामने उसकी बहन सविता खड़ी थी
सविता, अंजली के बिलकुल विपरीत है, दोनों एक दूसरे से इतने अलग हैं जैसे की दो विलोम शब्द, सूर्य चांद का अंतर, अंजली जितनी संस्कारी थी, उतनी ही तेज और मॉडर्न थी सविता। इसका नाम इसके किरदार को, इसके चरित्र को बखूबी दर्शाता है। इसे लड़कों से बात करना, उनके साथ घूमना बहुत पसंद है। हालांकि इसकी शादी हो गई है पर इसका पति कहीं बाहर नौकरी करता है जिसके कारण इसकी मन की इच्छाएं इतनी प्रबल हो जाती हैं की बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है। शादी से पहले इसके कई बॉयफ्रेड थे जो बात राज को पता थी। इस बात से राज ने इससे बात करना बंद कर दिया था लेकिन फिर जैसे शादी हुई तो राज को लगा की अब सब ठीक हो जायेगा पर वो उतना ही गलत था जितना एक मांझी शांत समंदर को देख कर होता है की आगे सब ठीक है। यकीन मानिए सविता के बिना ये कहानी आगे बढ़ ही नहीं सकती। सारा खेल इसके इशारों पर होने वाला है आगे।
सविता
सविता: अरे भैया कहां हो गए मैं हूं, सविता
राज: हां हां आओ आओ अंदर आओ। अरे अंजली देखो तो कौन आया है
सविता: भाभी भाभी कहां हो जल्दी आओ। आपकी प्यारी ननद आई है।
अंजली( सविता को देख के खुश भी थी और मायूस भी) : अरे सविता आओ। तुम अचानक?
सविता: क्यों? नहीं आ सकती क्या?
अंजली: अरे कैसी बात करती हो, ये भी तुम्हारा ही घर है।
सविता: अच्छा मेरा घर है? तो करवा दो रजिस्ट्री? हाहाहाहाहा
अंजली( राज को घूरते हुए): अच्छा बातें बाद में अभी एक काम करो तुम नहा धो लो फिर साथ नाश्ता करते हैं।
सविता: तुरंत गई, तुरंत आई।
सविता के जाते ही अंजली गुस्से से राज को देखते हुए कहती है
सविता: तुमने इसे क्यों बुलाया अभी। खुद ही प्लान बनाते हो और खुद ही बिगड़ते हो
राज: अरे मैंने नहीं बुलाया। पता नहीं ये क्यों आई है अभी
अंजली: अब तो तुम्हारी बहन ही बताए की क्यों बुलाया है
इतने देर में सविता बाहर आती है और राज उसको देख के चौंक जाता है। उसके हांथ में वही लिफाफा था। राज को याद आता है की उसने लिफाफा बाथरूम में छुपाया था
सविता: भैया ये आपका है क्या?
अंजली: क्या है ये?
सविता: पता नहीं बाथरूम में था।
राज को कुछ समझ नहीं आता क्या कहे। उसके लिए तो ऐसा हो गया की काटो तो खून नहीं।
राज: वो वो वो व... तू...तुम ये इधर दो ये मेरे ऑफिस की है। हमारे नए प्रोजेक्ट के बारे के कुछ जानकारी है।
इतना कहते हुए वो लिफाफा सविता से चीन लेता है।
सविता: अरे आराम से आप तो ऐसे छीन रहे जैसे इसमें पता नहीं क्या है। हाहाहाहा
अंजली: अच्छा चलो अब सविता जरा किचन में हेल्प करो खाना बन गया है बस निकलना है।
सविता: हां हां भाभी और भैया इतना जरूरी लिफाफा को ऐसे ही कहीं भी नहीं रख देते।
ये कहते हुए वो अंजली के पीछे पीछे किचन में चली जाती है
सविता: क्या यार भाभी सुबह सुबह तो रोमांस का टाइम होता है
अंजली: चुप कर भैया सुन लेंगे तेरे।
सविता: अरे इसमें क्या है। मैने कुछ गलत थोड़ी कहा। कभी आप मेरे घर आना जब ये आए हुए हों फिर देखना माहोल
अंजली: मुझे ये सब बातें पसंद नहीं। छोर एक काम कर तू मेरे रूम में जा और वहा पानी की बॉटल है वो भर कर टेबल पर रख दे
सविता: ठीक ठीक है करवा लो काम
सविता रूम में जाती है तो वहां सारा रूम फैला था क्योंकि थोड़ी देर पहले अंजली पैकिंग कर रही थी। उसे समझते देर ना लगी और वो भाग कर हाल में आई
सविता: अरे भैया आप लोग कहीं जा रहे हैं क्या
सविता के इतना बोलते ही अंजली भी किचन से आई और राज और अंजली एक दूसरे को देखने लगे
राज: हां वो बस थोड़ा ऐसे ही
सविता: ऐसे ही मतलब कहां जा रहे और कब जा रहे
राज: जा तो हम नैनीताल रहे थे और आज ही पर अब लगता है की........
अंजली इतना सुनके मायूस हो जाती है
सविता: अरे क्यों क्या हुआ? मैं आ गई इसीलिए क्या
अंजली: अरे नहीं नहीं कैसी बातें करती हो
सविता: ठीक ही तो कह रही हूं ना। नहीं तो आप लोग प्लान कैंसल करने के जगह मुझे भी कहते की तुम भी साथ चलो।
अंजली राज को देखते हुए: क्या राज मैने कहा था ना की इसे भी ले लेते हैं। अरे सविता तेरे भैया को लगा की तुम व्यस्त होगी अभी।
सविता: व्यस्त कहा रहूंगी।
राज: तो ठीक है फिर चलो चलते हैं सब साथ।
सविता: ये हुई ना बात। चलो भाभी हम दोनो मिल के पैकिंग करते हैं
राज अपने मन में सोचता है की कितनी चालाकी से अंजली ने सविता को नाराज होने से मना लिया। जबकि हमारे बीच ऐसी कुछ बात ही नहीं हुई थी। कितनी समझदार है मेरी अंजली।
इसी सब के बीच शाम के 5 बज के। बाहर टैक्सी खड़ी बार बार हॉर्न बजा रही थी। राज दोनो नन्द भाभी को जल्दी तैयार होने को कह कर बाहर टैक्सी वाले से पैसे की कुछ बात करने निकल गया। सब कह के जब वो वापस गया तो देखा दोनों तैयार हो कर बाहर आ रहे थे।
राज: अंजली, कितनी सुंदर लग रही हो तुम!
जी कर रहा बस देखता रहूं
सच में अंजली लग भी रही थी बला की सुंदर। हरे रंग की सारी, हरे रंग की चूरी, ऊपर से ले के नीचे तक कयामत ढा रही थी
सविता: क्या भैया, सिर्फ भाभी ही अच्छी लग रही क्या? और मैं?
राज: हां, हां दोनों अच्छे लग रहे।
राज ने जब सविता को देखा तो थोड़ा झेंप गया। वो लग ही ऐसी रही थी। उसने कसे हुए टॉप और लेगिस पहने हुए थे। जिसने उसका अंग अंग ऐसे निखर रहा था जैसे ठंड के सुबह पतों के ऊपर ओस निखरते हैं।
राज: अब जल्दी चलो। नहीं तो कल सुबह पहुंचे।
सविता: भैया वो आपने अपना लिफाफा ले लिया ना हाहाहा हो सकता है वहा काम आए
राज: बिना कुछ समझे: हां ले लिया अब चलो।
क्यों की उसे डर था की कहीं ज्यादा रात ना हो जाए। पहली बार अनजान शहर साथ में दो औरत हो तो जिमेदारी का अहसास खुद ब खुद डर पैदा कर हो देती है।खैर सब गाड़ी में बैठ कर नैनीताल के लिए निकल जाते हैं।
कैसे हो मेरे प्यारे पाठको?
उम्मीद है सब कुछ अच्छा ही होगा। खैर मैं कोई लेखक नहीं पर मुझे पढ़ पढ़ के इतना तजुर्बा हो गया है की सोचता हूं अपना लिखूं कुछ, ऐसा जो लिखा ना गया या लिखा गया तो ठीक से उसको लिखा ना जा सका।
ये एक ऐसी कहानी है जो रोमांच से भरपूर होगी, जगह जगह नए किरदार जुड़ेंगे और कहानी के गाड़ी के पहिए बन कर कहानी को आगे बढ़ाएंगे मेरा काम बस इतना है की मैं गाड़ी को नियंत्रण में रखूं और आप सभी इस गाड़ी के ईंधन हैं जिनके बिना संभव ही नहीं की गाड़ी एक इंच भी बढ़ पाए।
मैं इस जगह नया हूं, मुझे फीचर्स समझने में समय लगेगा तो आपसे विनम्र निवेदन हैं की जो भी चीज मुझे समझने में कष्ट हो या लगे की कैसे किया जाए कौन सा फॉन्ट, पेज, पेज को कैसे एक दूसरे से कनेक्ट करना। मुझे जब भी आप लोगों की जरूरत होगी मैं आवाज दूंगा और अच्छे पाठक का फर्ज है मदद करना।
खैर बातें बहुत हुई अब थोड़ा बता देता हूं कहानी का ऊपर ऊपर का हिस्सा कहानी आज से ठीक 1 हफ्ते बाद आएगी। अब आप बोलेंगे इतना समय क्यों तो वो इसीलिए की मैं कहानी का 10 अपडेट जब लिख लूंगा तो कहानी दूंगा मैं ज्यादा इंतजार करवाने में नहीं मानता क्योंकि मैंने भी कई कहानी पढ़े जो पाठक को बीच मझधार में छोड़ देते हैं, फिर उसके आगे क्या हुआ कैसे हुआ कुछ पता नहीं। तो आइए अब इस नए दुनिया की शुरुआत की जाए।
कहानी मूल रूप से एक परिवार के इर्द गिर्द घूमती है उस परिवार में कहने को तो सब है लेकिन मुख्य किरदार हैं चार एक पति, एक पत्नी
एक नन्द, और एक व्यक्ति जिसकी परिचय आपको बाद में मिलेगा। ये कहानी है रिश्तों की, मर्यादा की, मर्यादा को लांघने की, हिम्मत की, कैसे एक व्यक्ति अपने परिवार के लिए कुछ भी कर सकता है और एक बात मैं विशेष रूप से बता दूं कि ये कहानी थोड़ी धीमी गति से आगे बढ़ेगी। यकीन मानिए इसमें भी वो सब है जो बाकी कहानियों में होती है पर मैं अपने किरदारों के साथ खेलना चाहता हूं उनको इस कहानी के रस में ऐसे घोलना चाहता हूं की लगे की वो निर्जीव नहीं सजीव हैं लगे की ऐसा असल में भी हो सकता है। इतनी मिठास, इतना अपनापन, उम्मीद, आशा हर वो चीज जो इंसान को इंसान बनाती है वो इन किरदारों में होगी, जैसे भारत में एक मध्यम वर्ग का परिवार अपनी जिंदगी बसर करता है, वैसे ही।
तो अब आज से ठीक एक हफ्ते बाद आएगी मेरी माने तो आप लोग इसे बुकमार्क कर के रख लें अब कुछ समय तक ये आपके जीवन का एक हिस्सा बनने जा रही है और मुझे भी इस नए सफर के लिए प्रोत्साहन करें ज्यादा से ज्यादा मात्रा में लाइक्स और कमेंट कर के अब इससे कोई मुझे पैसे मिलने नहीं वाले तो आपका प्यार आप कमेंट में ही जताए, मुझे अच्छा लगेगा।
Nice update...UPDATE -2
राज अपने मन से लड़ने में व्यस्त था की तभी दरवाजे की घंटी बजी जिससे राज अपनी दुनिया में वापस आया।
राज: अरे अभी कौन आ गया।
राज जैसे ही दरवाजा खोलता है सामने देख चौंक जाता है। सामने उसकी बहन सविता खड़ी थी
सविता, अंजली के बिलकुल विपरीत है, दोनों एक दूसरे से इतने अलग हैं जैसे की दो विलोम शब्द, सूर्य चांद का अंतर, अंजली जितनी संस्कारी थी, उतनी ही तेज और मॉडर्न थी सविता। इसका नाम इसके किरदार को, इसके चरित्र को बखूबी दर्शाता है। इसे लड़कों से बात करना, उनके साथ घूमना बहुत पसंद है। हालांकि इसकी शादी हो गई है पर इसका पति कहीं बाहर नौकरी करता है जिसके कारण इसकी मन की इच्छाएं इतनी प्रबल हो जाती हैं की बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है। शादी से पहले इसके कई बॉयफ्रेड थे जो बात राज को पता थी। इस बात से राज ने इससे बात करना बंद कर दिया था लेकिन फिर जैसे शादी हुई तो राज को लगा की अब सब ठीक हो जायेगा पर वो उतना ही गलत था जितना एक मांझी शांत समंदर को देख कर होता है की आगे सब ठीक है। यकीन मानिए सविता के बिना ये कहानी आगे बढ़ ही नहीं सकती। सारा खेल इसके इशारों पर होने वाला है आगे।
सविता
सविता: अरे भैया कहां हो गए मैं हूं, सविता
राज: हां हां आओ आओ अंदर आओ। अरे अंजली देखो तो कौन आया है
सविता: भाभी भाभी कहां हो जल्दी आओ। आपकी प्यारी ननद आई है।
अंजली( सविता को देख के खुश भी थी और मायूस भी) : अरे सविता आओ। तुम अचानक?
सविता: क्यों? नहीं आ सकती क्या?
अंजली: अरे कैसी बात करती हो, ये भी तुम्हारा ही घर है।
सविता: अच्छा मेरा घर है? तो करवा दो रजिस्ट्री? हाहाहाहाहा
अंजली( राज को घूरते हुए): अच्छा बातें बाद में अभी एक काम करो तुम नहा धो लो फिर साथ नाश्ता करते हैं।
सविता: तुरंत गई, तुरंत आई।
सविता के जाते ही अंजली गुस्से से राज को देखते हुए कहती है
सविता: तुमने इसे क्यों बुलाया अभी। खुद ही प्लान बनाते हो और खुद ही बिगड़ते हो
राज: अरे मैंने नहीं बुलाया। पता नहीं ये क्यों आई है अभी
अंजली: अब तो तुम्हारी बहन ही बताए की क्यों बुलाया है
इतने देर में सविता बाहर आती है और राज उसको देख के चौंक जाता है। उसके हांथ में वही लिफाफा था। राज को याद आता है की उसने लिफाफा बाथरूम में छुपाया था
सविता: भैया ये आपका है क्या?
अंजली: क्या है ये?
सविता: पता नहीं बाथरूम में था।
राज को कुछ समझ नहीं आता क्या कहे। उसके लिए तो ऐसा हो गया की काटो तो खून नहीं।
राज: वो वो वो व... तू...तुम ये इधर दो ये मेरे ऑफिस की है। हमारे नए प्रोजेक्ट के बारे के कुछ जानकारी है।
इतना कहते हुए वो लिफाफा सविता से चीन लेता है।
सविता: अरे आराम से आप तो ऐसे छीन रहे जैसे इसमें पता नहीं क्या है। हाहाहाहा
अंजली: अच्छा चलो अब सविता जरा किचन में हेल्प करो खाना बन गया है बस निकलना है।
सविता: हां हां भाभी और भैया इतना जरूरी लिफाफा को ऐसे ही कहीं भी नहीं रख देते।
ये कहते हुए वो अंजली के पीछे पीछे किचन में चली जाती है
सविता: क्या यार भाभी सुबह सुबह तो रोमांस का टाइम होता है
अंजली: चुप कर भैया सुन लेंगे तेरे।
सविता: अरे इसमें क्या है। मैने कुछ गलत थोड़ी कहा। कभी आप मेरे घर आना जब ये आए हुए हों फिर देखना माहोल
अंजली: मुझे ये सब बातें पसंद नहीं। छोर एक काम कर तू मेरे रूम में जा और वहा पानी की बॉटल है वो भर कर टेबल पर रख दे
सविता: ठीक ठीक है करवा लो काम
सविता रूम में जाती है तो वहां सारा रूम फैला था क्योंकि थोड़ी देर पहले अंजली पैकिंग कर रही थी। उसे समझते देर ना लगी और वो भाग कर हाल में आई
सविता: अरे भैया आप लोग कहीं जा रहे हैं क्या
सविता के इतना बोलते ही अंजली भी किचन से आई और राज और अंजली एक दूसरे को देखने लगे
राज: हां वो बस थोड़ा ऐसे ही
सविता: ऐसे ही मतलब कहां जा रहे और कब जा रहे
राज: जा तो हम नैनीताल रहे थे और आज ही पर अब लगता है की........
अंजली इतना सुनके मायूस हो जाती है
सविता: अरे क्यों क्या हुआ? मैं आ गई इसीलिए क्या
अंजली: अरे नहीं नहीं कैसी बातें करती हो
सविता: ठीक ही तो कह रही हूं ना। नहीं तो आप लोग प्लान कैंसल करने के जगह मुझे भी कहते की तुम भी साथ चलो।
अंजली राज को देखते हुए: क्या राज मैने कहा था ना की इसे भी ले लेते हैं। अरे सविता तेरे भैया को लगा की तुम व्यस्त होगी अभी।
सविता: व्यस्त कहा रहूंगी।
राज: तो ठीक है फिर चलो चलते हैं सब साथ।
सविता: ये हुई ना बात। चलो भाभी हम दोनो मिल के पैकिंग करते हैं
राज अपने मन में सोचता है की कितनी चालाकी से अंजली ने सविता को नाराज होने से मना लिया। जबकि हमारे बीच ऐसी कुछ बात ही नहीं हुई थी। कितनी समझदार है मेरी अंजली।
इसी सब के बीच शाम के 5 बज के। बाहर टैक्सी खड़ी बार बार हॉर्न बजा रही थी। राज दोनो नन्द भाभी को जल्दी तैयार होने को कह कर बाहर टैक्सी वाले से पैसे की कुछ बात करने निकल गया। सब कह के जब वो वापस गया तो देखा दोनों तैयार हो कर बाहर आ रहे थे।
राज: अंजली, कितनी सुंदर लग रही हो तुम!
जी कर रहा बस देखता रहूं
सच में अंजली लग भी रही थी बला की सुंदर। हरे रंग की सारी, हरे रंग की चूरी, ऊपर से ले के नीचे तक कयामत ढा रही थी
सविता: क्या भैया, सिर्फ भाभी ही अच्छी लग रही क्या? और मैं?
राज: हां, हां दोनों अच्छे लग रहे।
राज ने जब सविता को देखा तो थोड़ा झेंप गया। वो लग ही ऐसी रही थी। उसने कसे हुए टॉप और लेगिस पहने हुए थे। जिसने उसका अंग अंग ऐसे निखर रहा था जैसे ठंड के सुबह पतों के ऊपर ओस निखरते हैं।
राज: अब जल्दी चलो। नहीं तो कल सुबह पहुंचे।
सविता: भैया वो आपने अपना लिफाफा ले लिया ना हाहाहा हो सकता है वहा काम आए
राज: बिना कुछ समझे: हां ले लिया अब चलो।
क्यों की उसे डर था की कहीं ज्यादा रात ना हो जाए। पहली बार अनजान शहर साथ में दो औरत हो तो जिमेदारी का अहसास खुद ब खुद डर पैदा कर हो देती है।खैर सब गाड़ी में बैठ कर नैनीताल के लिए निकल जाते हैं।
nice .....Update 1
सुबह के चार बज रहे थे। धीरे धीरे रात इस तरफ से हट कर संसार के दूसरे तरफ पैर पसार रही थी, मुर्गे बांग दे रहे थे, ठंडी हवा पतों को हिला रही थी जिससे ऐसी आवाजें आ रही थी की वो un पत्तों के साथ खेल रही। इन्हीं सब के बीच राज अकेला बालकनी में खड़ा, हांथ में सिगरेट लिए कुछ सोच रहा था, उसके हांथ में एक लिफाफा था जो उसे कल शाम को ही मिल गया था पर उस लिफाफे को खोल के देखने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। उसका और सारे परिवार का भविष्य उस लिफाफे में था उसे डर था की जो बात उसे खा रही है कहीं वो सच ना हो। इसी सब के कारण रात भर उसे नींद नहीं आई। कभी इधर कभी उधर तो कभी अपनी पत्नी को प्यार से सोते हुए देखता और खुद को भगशाली मानता की ऐसी पत्नी मिली पर दोष भी देता की वो उसके लायक नहीं। उसने बालकनी में सिगरेट खतम की ओर जैसे ही मुरने को हुआ उसे उसके कंधे पे हांथ महसूस हुआ।
अंजली: क्या हुआ राज? यहां क्या कर रहे हो
राज: अरे अंजली तुम उठ गई आज जल्दी (बात घुमाते हुए)
अंजली: मै तो उठ गई पर तुम्हें क्या हुआ है जो यहां इस वक्त
राज: अरे कुछ नहीं रात को ज्यादा खा लिया था तो थोड़ी एसिडिटी हो गई थी तुम तो जानती हो मुझे ,थोड़ा भी ज्यादा खा लेता हूं तो हालत खराब हो जाती है
अंजली: ओफो जब पता है फिर क्यों करते हो रुको मैं दावा ले के आती हूं
राज: मैने दावा ले ली है अब तुम आराम करो मैं भी आता हूं
अंजली: अब क्या अब तो सुबह होने हो वाली है मैं वैसे भी आधे घंटे में उठ के जॉगिंग जाती, आज थोड़ा जल्दी सही। चलो मैं फ्रेश हो जाती हूं तुम आराम करो
राज ने इस पर कुछ जवाब नहीं दिया बस मुस्करा दिया और अंजली को देख के मन में कहा कैसे बताऊं तुम्हें अंजली मेरे मन में क्या है। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। ऐसा लग रहा जैसे मैं समय में वापस जाऊं और तुमको खुद से शादी करने से रोक दूं। सोचते सोचते राज लेट जाता है रूम में आ कर
अंजली: बाथरूम से निकलकर, अच्छा राज मैं आती हूं तुम आराम करो
राज: ठीक है बेबी, मैं नाश्ता बना कर रखूंगा
अंजली: जी नहीं, आप ऐसा कुछ नही करेंगे, आप चुप चाप बिस्तर पर रहिए
ये कहके अंजली राज को किस कर लेती है और बाई बोले निकल जाती है,
अंजली बाहर दौड़ने निकल गई इतनी सुबह थी कोई नही था वो अकेले बगल के पार्क में दौर रही थी उसे पंछी के कभी पतों के आवाजें काफी भा रही थी। उनका आनंद लेने के लिए वो वहीं बैठ गई और एक तरह से खो गई जब उसका ध्यान टूटा तो उसने देखा कि कोई उसको देख रक्षा है एक तो इतना अंधेरा ऊपर से लाइट भी जा चुकी थी, जैसे की हर लड़की को लगता उसे डर लगने लगा उसने जल्दी अपना बॉटल उठाया और वहां से निकल गई। उसे ये भी जानना नहीं था की वो कौन है उसे बस वहां से जाना था ये बात हमें उसके चरित्रवान होने का एक प्रमाण देती है।
जैसे ही वो घर आई उसने चैन की सांस ली तभी किचन से आवाज आती है बर्तन की
अंजली: कौन है? राज?
राज: नहीं भूत
अंजली: अरे मैंने मना किया था ना तुम्हें, तुम मेरी कोई बात मानते क्यों नहीं
राज: अरे बाबा गुस्सा मत करो वैसे भी मुझे नींद नहीं आ रही थी तो सोचा तुम्हारे लिए कॉफी बना कर रखूं, चलो जाओ चेंज कर लो फिर साथ में पीते हैं
अंजली: (खुश होते हुए) बस अभी आई पति देव
अब आप लोग का परिचय इन दो किरदारों से हो गया है लेकिन मैं फिर भी अपनी ओर से दोनो किरदारों का स्पष्ट रूप से विवरण कर दूं, ताकि आपके आंखों में जो जैसा है उसका ठीक वैसा चित्र बन कर आए
राज एक 32 साल का आदमी है। मेहनती, पढ़ा लिखा, समझदार, भावनात्मक, एक पुरुष में जो भी गुण होते हैं वो इसमें हैं। ये एक सरकारी मुलाजिम है। ये देखने में ठीक ठाक है पर वो कहते हैं ना पुरुष की सुंदरता नहीं देखी जाती बल्कि ये देखी जाती है की वो हर तरह से पुरुष कहलाने लायक है या नहीं।
अंजली: ये 28 साल की है। बहुत ही सुंदर, शुशील, संस्कारी। हर वक्त सारी पहेने वाली। बाहर अगर दौड़ने जाती थी तो भी ऐसे ट्रैक सूट पहनती थी जिससे सारा जिस्म ढका रहे। इसे किसी बाद का घमंड नहीं, जो इससे प्रेम से बात करता उसका ये बहुत इज्जत करती। इसका कद काठी एक सामान्य औरत के जैसा ही है। बस उभार इतने आकर्षित हैं की सांसारिक जीवन वाले पुरुष को तो हटा दीजिए जो बाल ब्रह्मचारी हैं उनका भी मन डोल जाए।
अब चलिए देखते हैं दोनो में क्या बात हो रही
राज: चाय पीते हुए: आज का क्या प्लान है तुम्हारा
अंजली: अरे तुम भी कमाल बात करते हो मैं कौन सा काम करती हूं। दिन भर तो पड़ी रहती हूं घर में। तुम कहीं घुमाने भी नहीं ले जाते।
राज: अच्छा तो ठीक है सामान बांध लो हम आज शाम ही नैनीताल घूम के आते हैं
अंजली: क्या सच में?
राज: हां बाबा चलो जल्दी जाओ इससे पहले मेरा मूड बदल जाए।
अंजली: ufff i love you तुमने तो मुझे खुश कर दिया
राज मन में सोचता है की काश तुम्हे मै हमेशा खुशी दे पाता। अब तुम्हें कैसे बताऊं मैं नैनीताल क्यों जा रहा। इस लिफाफे में क्या है क्यों है कैसे बताऊं तुम्हें। खैर बताना तो होगा ही लेकिन अभी नहीं अच्छा समय देख के बताऊंगा। और बस हिम्मत जुटा लूं इस पहाड़ को अपने ऊपर लेने की।
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सब लोग थके हारे लगभग 5 घंटे बाद करीब 10-10:30 में नैनीताल पहुंच गए। राज ने मोबाइल से ही 2 रूम बुक कर लिए थे होटल में।
उनके आते ही हेल्पर गाड़ी के पास आ कर उनका सामान उतारने लगा। सबसे पहले सविता गाड़ी से उतरी और अंगराई लेने लगी जिससे उसका पूरा उभार आसमान की ओर ऐसे उठ गया जैसे कोई पहाड़। उसका टॉप उसके नाभी तक आ गया जिसे वो हेल्पर अपनी तिरछी आंखों से बार बार देख रहा था। सविता को इस सबसे कोई खास फर्क नहीं पर रहा था उसे तो अपना बदन दिखा कर लोगों को रिझाना बहुत अच्छा लगता है। उसने हेल्पर से कहा।
सविता: ओ हीरो तुम्हारा नाम क्या है
हेल्पर: जी जी सूरज
सूरज: तो मैं कोई चांद नहीं को मुझे देख रहे काम पे ध्यान दो समझे
सूरज: नहीं मैडम जी ऐसा कुछ नहीं है
सविता: अच्छा बच्चू। मैं बिना देखे देख लेती हूं की मर्द की नजर कहां हैं समझे।
सूरज कुछ नहीं बोलता बस नजर झुका लेता है और सामन निकालने लगता है
इतने में राज पैसे देकर, अंजली को बाहर बुलाता है
अंजली: बहुत थक गई हूं
सविता: अरे अरे अभी से
सविता: चुप कर तुझे और कुछ सूझता है को नहीं अब चल
राज: सविता तुम्हारा कमरा है 605 और हमलोग का 606
सविता: ठीक है भैया।
सविता अपने कमरे में चली जाती है और किसी को फोन लगाती है।
सविता: कहां हो जानेमन
आदमी: बस रास्ते में हूं
सविता: मैंने जो कहा था याद है ना। लेते आना हम सब तो पहुंच गए हैं।
आदमी: हां पर ये तो बता तेरा प्लान क्या है
सविता: प्लान? तुम बस देखते जाओ मैं क्या कया करती हूं
आदमी: वैसे तुझे अपने भाई का इतना बड़ा राज पता चला तो चला कैसे
सविता: वो आज सुबह जब मैं नहाने गई थी तब मैने एक लिफाफा देखा। मुझे शक तो पहले से था। लेकिन जब लिफाफा खोला तो सारा खेल समझ में आया।
आदमी: शक? वो कैसे
सविता: अरे जिस लैब से रिपोर्ट आई थी ना वहां मैं कई भैया के साथ गई थी अपनी जांच करवाने अलग अलग। तो बस किसी से दोस्ती हो गई। उसी ने बताया कि आपके भैया आए थे कुछ जांच करवा के गए हैं। जैसे मुझे पता चला मैं यहां आ गई। अब बाकी बात सामने में करना बहुत काम करना है अभी
आदमी: तू भी पूरी खेली खाई है।
सविता: बकवास बंद कर और जल्दी पहुंच।
सविता इतना कह के फोन रख देती है और शीशे में अपने आप को देख के कहती है।
"बहुत हुआ डर डर कर जीना अब तो सब खुल्लम खुल्ला होगा। भैया अब मेरा समय आया है अब देखिए मैं कैसे गिन गिन के बदला लेती हूं, कैसे सबको अपने इशारों पर नाचती हूं। मुझे पता है चल गया है की जब भी घर वाले बच्चे के बारे में पूछते थे तो आप चुप क्यों हो जाते थे। पता चल गया है की शादी के इतने समय बाद भी आपकी कोई औलाद क्यों नहीं है। अब आप देखते जाइए मैं क्या कया करती हूं। अभी तो खेल शुरू हुआ है"
अब तो आप लोग समझ गए होंगे उस लिफाफे में था क्या? उसमे था एक रिपोर्ट जो ये बात पे मोहर लगता था की राज कभी पिता नहीं बन सकता। उसमें ताकत की कोई कमी नहीं बस उसका वीर्य में उतनी शक्ति नहीं जो उसे इस सुख का अनुभव करवा सके। और अंजली ने कई ख्वाब सजाए हुए थे के अगर बेटा हुआ तो ये नाम बेटी हुई तो ये नाम, अब वो उसे कैसे बताए उसे समझ नहीं आ रहा था। शादी के बाद भी जब बच्चा नहीं हुआ बहुत प्रयास करने पर तो उसने अपना और अंजली दोनो का सैंपल लैब भेजवाया। अंजली तो पूरी तरह स्वस्थ थी। दिक्कत राज में ही थी। अब अंजली के सपनो का क्या होगा। सविता क्या करेगी? किस बात की बदले की बात कर रही थी वो? और वो आदमी कौन था? सब जान ने के लिए अपडेट्स का इंतजार।