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Niceचलो अब कहानी शुर करता हुँ। मेरी पहले की कहानी में आपने मेरे घर परीवार और मेरे व मेरी भाभी के सम्बबन्धो के पढा होगा मगर फिर भी मै एक बार उसे संक्षिप्त मे रिफ्रेश कर देता हुँ।
मेरे परीवार मे हम पाँच लोग है। मै, मेरे मम्मी पापा और मेरे भैया भाभी। पापा बैंक से रिटायर्ड है और भैया सेना मे नौकरी करते है। मेरी मम्मी और भाभी हाउसवाईफ है मगर मम्मी की तबियत अधिकतर खराब ही रहती है और इसी के चलते भैया की शादी जल्दी ही कर दी गयी थी।
घर मे एक छोटी सी रसोई, लैटरीन बाथरुम, ड्राईँगरुम और बस दो ही कमरे है जिसमे से एक कमरा मेरे मम्मी पापा का है और एक कमरा मेरे भैया भाभी का है। वैसे भैया का तो वो बस नाम के लिये ही कमरा है क्योकि भैया तो साल मे बस दो तीन महिने ही घर पर रहते है नही तो वो कमरा भाभी का ही है।
वैसे तो मै ड्राईँगरुम मे सोता था मगर उस समय मै बारहवी मे पढ रहा था और मेरी भाभी काफी पढी लिखी है इसलिये उनसे पढने के लिये मै उनके कमरे मे सोने लग गया और मेरे व मेरी भाभी के सम्बन्ध बन गये।
तो ये था पिछली कहानी का फैलश बैक अब चलते है उसके आगे के वाक्ये पर...
मेरी परीक्षाएं समाप्त हुए हफ्ता भर ही हुआ था कि मेरे भैया दो महीने की छुट्टी आ गए जिसके कारण मुझे अब फिर से ड्राईंगरूम में अपना बिस्तर लगाना पङ गया।
मैंने तो सोचा था कि परीक्षाएं समाप्त होने के बाद अपनी पायल भाभी के साथ खुल कर मजे करूंगा.. मगर भैया के छुट्टी आ जाने के कारण मेरे सारे ख्वाब अधूरे रह गए, मेरे दिन अब बड़ी मुश्किल से गुजर रहे थे, भैया को भाभी के कमरे में सोते देखकर, मैं बस अब जलता रहता था और वैसे भी मैं क्या कर सकता था, आखिरकार वो उनकी बीवी है।
बस इसी तरह दिन गुजर रहे थे कि एक दिन पापा ने मुझे बताया कि गाँव से रामेसर चाचा जी काफी बार फोन कर चुके हैं, वो मुझे गाँव बुला रहे हैं।
पापा ने बताया कि फसल की कटाई होने वाली है और गाँव के मकान की हालत देखे भी काफी दिन हो गए हैं इसलिए छुट्टियों में मैं कुछ दिन गाँव चला जाऊँ।
रामेसर चाचा मेरे सगे चाचा नहीं हैं.. वो गाँव में हमारे पड़ोसी हैं जिसके कारण उनसे हमारे काफी अच्छे सम्बन्ध हैं। मेरे पापा की शहर में नौकरी लग गई थी इसलिए हम सब शहर में रहने लग गए थे। गाँव में हमारा एक पुराना मकान और कुछ खेत हैं। घर में तो कोई नहीं रहता है.. पर खेतों में रामेसर चाचा खेती करते हैं, फसल के तीन हिस्से वो खुद रख लेते हैं.. एक चौथाई हिस्सा हमें दे देते हैं।
गाँव में मेरा दिल तो नहीं लगता है.. मगर यहाँ रहकर जलने से अच्छा तो मुझे अब गाँव जाना ही सही लग रहा था इसलिए मैं गाँव जाने के लिए मान गया और अगले ही दिन गाँव चला गया।
Niceअभी तक आपने पढा की घर पर भैया के आ जाने के कारण मेरे अपनी भाभी से तो सम्बन्ध बन नही पा रहे थे इसलिये पापा के कहने पर मै गाँव आ गया अब उसके आगे...
मेरे गाँव जाने पर रानेसर चाचाजी के सभी घर वाले बड़े खुश हो गए। उनके घर में चाचा-चाची, उनकी लड़की सुमन, रेखा भाभी व उनका छः साल का लड़का सोनू है।
रेखा भाभी विधवा हैं उनके पति विनोद भैया का दो साल पहले ही खेत में पानी लगाते समय साँप काटने के कारण स्वर्गवास हो गया था। वैसे तो चाचा जी का एक बङा लङका भी है मगर वो शहर मे नौकरी करता है इसलिये उसका पुरा परिवार शहर मे ही रहता है।
मैं देर शाम से गाँव पहुंचा था इसलिए कुछ देर सभी से बातें करते-करते ही खाने का समय हो गया। वैसे भी गाँव में सब लोग जल्दी खाना खा कर जल्दी सो जाते हैं और सुबह जल्दी उठ भी जाते हैं। इसलिये खाना खाने के बाद सब सोने की तैयारी करने लगे।
गर्मियों के दिन थे और गर्मियों के दिनों में गाँव के लोग अधिकतर बाहर ही सोते हैं इसलिए मेरी चारपाई भी चाचाजी के पास घर के आँगन में ही लगा दी गई।
वैसे तो उनका घर काफी बड़ा है.. जिसमें चार कमरे और बड़ा सा आँगन है, मगर इस्तेमाल में वो दो ही कमरे लाते हैं। जिसमें से एक कमरे में चाची व रेखा भाभीका लङका सोनू सो गए और दूसरे कमरे में सुमन दीदी व रेखा भाभी सो गए। बाकी के कमरों में अनाज, खेती व भैंस का चारा आदि रखा हुआ था।
खैर.. कुछ देर चाचाजी मुझसे बातें करते रहे फिर बाते करते करते चाचा जी तो सो गये मगर उस रात मै रातभर करवट ही बदलता रहा पर मुझे नीँद नही आ सकी। क्योंकि मेरे लिये एक तो वो जगह नयी थी उपर से जहाँ हम सो रहे थे वही पर भैंस भी बँधी हुई थी, जिसके गोबर व मूत्र से बहुत बदबू आ रही थी, साथ ही वहाँ पर इतने अधिक मच्छर थे की बस पुछो मत...!
अब जैसे तैसे मैने वो रात बिताई। वैसे तो मुझे देर तक सोने की आदत है मगर उस रात मै सोया ही कहा था इसलिये सुबह पाँच बजे जब चाची जी भैंस का दूध दोहने के लिए उठीं तो मैं उनके साथ ही उठ गया।
वैसे मै ये बताना तो नही चाहता था मगर चाची जी ने मुझे जब इतनी सवेरे सवरे उठा देखा तो उन्होने खुद ही मुझसे पुछ ही लिया... मैने भी अब उनको सारी बात बता दी जिससे चाची जी हँसने लगीं और कहा- तुम्हें रात को ही बता देना चाहिये था, तुम यहाँ पर नये हो ना.. इसलिए तुम्हें आदत नहीं है, कल से तुम रेखा व सुमन के कमरे में सो जाना।
चाची जी ने मुझे अभी रेखा व सुमन के कमरे मे सोने के लिये कहा भी मगर मैंने मना कर दिया और तैयार होकर चाचा-चाची के साथ खेतों में आ गया। रेखा भाभी के लड़के सोनू को भी हम साथ में ले आए। सुमन की परीक्षाएं चल रही थीं इसलिए वो कॉलेज चली गई। रेखा भाभी को खाना बनाना और घर व भैंस के काम करने होते हैं.. इसलिए वो घर पर ही रहीं।
अब खेतो मे फसल की कटाई चल रही थी.. इसलिए चाचा-चाची तो उसमें लग गए.. मगर मुझे कुछ करना तो आता नहीं था इसलिए मैं सोनू के साथ खेलने लग गया और ऐसे ही खेतों में घूमता रहा।
वैसे तो बाकी दिनो घर से दोपहर का खाना रेखा भाभी लेकर आती थी मगर मै उस दिन खाना लाने के लिये चाचा जी ने मुझे बताया।
मैं भी ऐसे ही फ़ालतू घूम रहा था, इसलिये ग्यारह बजे के करीब मैं खाना लेने के लिए घर आ गया मगर जब मैं घर पहुँचा तो देखा की घर पर कोई नहीं है। मैंने सोचा कि रेखा भाभी यहीं कहीं पड़ोस के घर में गई होंगी.. इसलिए मैं रेखा भाभी के कमरे में ही जाकर बैठ गया और उनके आने का इन्तजार करने लगा।
रेखा भाभी के कमरे मे बैठे हुवे मुझे अब कुछ देर ही हुई थी कि तभी रेखा भाभी दौड़ती हुई सी सीधे कमरे में आई जो की वो मात्र पेटीकोट और ब्रा पहने हुवे थी। रेखा भाभी को इस हाल मे और अचानक ऐसे आने से एक बार तो मैं भी घबरा गया मगर जब मेरा ध्यान रेखा भाभी के कपड़ों की तरफ गया तो मै सारा माजरा समझ गया।
दरअसल रेखा भाभी बाथरुम से नहाकर आई थीं.. इसलिए उन्होने नीचे बस काले रंग का पेटीकोट व ऊपर सफेद रंग की केवल एक ब्रा पहनी हुई थी। सिर के गीले बालों को उन्होने तौलिए से बाँध रखा था जिससे रेखा भाभी का संगमरमर सा सफेद बदन.. ना के बराबर ही ढका हुआ था।
मुझे देखते ही रेखा भाभी अब दरवाजे पर ही ठिठक कर रूक गईं क्योंकि उन्हें अन्दाजा भी नहीं था की कमरे में मैं बैठा हो सकता हूँ। मुझे देखकर वो अब इतनी घबरा गईं की कुछ देर तो वो सोच भी नहीं पाईं की अब क्या करें... जिससे वो कुछ देर तो वहीं बुत सी बनकर खड़ी हो गयी, फिर एकदम से हङबङाकर जल्दी से दूसरे कमरे में भाग गईं।
मगर तब तक मै उनके रँग रूप को आँखों ही आँखो से पी गया था जिससे भाभी के दूसरे कमरे में चले जाने के बाद भी मैं उनके रूप में ही खोया रहा। सच में रेखा भाभी इस रूप में इतनी कयामत लग रही थीं की ऐसा लग रहा था शायद ऊपर वाले ने उनको बड़ी ही फुर्सत से बनाया था।
गोल चेहरा.. काली व बड़ी-बड़ी आँखें, पतले सुर्ख गुलाबी होंठ, लम्बा व छरहरा शरीर, बस एक बड़े सन्तरे से कुछ ही बड़े आकार की उन्नत व सख्त गोलाइयां और भरे हुए माँसल नितम्ब.. आह्ह.. उनको देखकर कोई कह नहीं सकता था कि वो छः साल के बच्चे की माँ भी हो सकती हैं।
मै अभी भी रेखा भाभी के रँगरुप मे ही खोया हुवा था की कुछ देर बाद रेखा भाभी कपड़े पहन कर फिर से कमरे में आईं और उन्होंने मुझसे मेरे आने कारण पूछा। रेखा भाभी मुझसे अब आँखें नहीं मिला रही थीं क्योंकि शायद वो अभी भी उसी सदमे मे थी। वैसे भी वो बहुत ही शरीफ व भोली भाली ही थी ऊपर से विनोद भैया के गुजर जाने के बाद तो वो और भी गुमसुम सी हो गयी थी।
खैर मैंने भी अब भाभी से आँखें मिलाने की कोशिश नहीं की.. बस ऐसे ही उन्हें अपने आने का कारण बता दिया। रेखा भाभी ने भी जल्दी से मुझे अब खाना बाँध कर दे दिया जिसे मै भी बिना कुछ कहे चुपचाप लेकर खेतों के लिए आ गया।
अब रास्ते भर मै रेखा भाभी के बारे में ही सोचता रहा। रेखा भाभी के बारे में पहले मेरे विचार गन्दे नहीं थे.. मगर भाभी का वो रूप देखकर मेरी नियत खराब सी हो रही थी। खेत मे भी मै बस रेखा भाभी के बारे में ही सोचता रहा।
पता नही क्यो मेरे दिल में हवश का शैतान सा जाग रहा था, मैं सोच रहा था कि विनोद भैया का देहान्त हुए दो साल हो गए है इसलिए रेखा भाभी का भी दिल तो करता ही होगा। यही सब सोचते सोचते शाम हो गयी।
अब शाम को मैं चाचा-चाची के साथ ही खेत से वापस आया, घर आकर खाना खाया और फिर सभी सोने की तैयारी करने लगे। चाची ने मेरी चारपाई आज रेखा भाभी व सुमन दीदी के कमरे में लगवा दी थी और साथ ही मेरी चारपाई के नीचे मच्छर भगाने की अगरबत्ती भी जला दी।
उस कमरे में एक डबल बैड था.. जिस पर सुमन व रेखा भाभी सोते थे और साथ ही कुर्सियां टेबल, अल्मारी व कुछ अन्य सामान होने के कारण ज्यादा जगह नहीं थी.. इसलिए मेरी चारपाई बेड के बिल्कुल साथ ही लगी हुई थी।
सुमन दिदी की परीक्षाएं चल रही थीं.. इसलिए खाना खाते ही वो पढ़ाई करने बैठ गयी मगर रेखा भाभी घर के काम निपटा रही थीं.. इसलिए वो थोड़ा देर से कमरे में आईं और आकर चुपचाप सो गईं।
मैंने अब उनसे बात करने की कोशिश की.. मगर उन्होंने बात करने के लिए मना कर दिया क्योंकि सुमन दीदी भी वहीं पढ़ाई कर रही थी।
कुछ देर पढ़ाई करने के बाद सुमन दीदी भी सो गई। दीवार के किनारे की तरफ सुमन दीदी थी और मेरी चारपाई की तरफ रेखा भाभी सो रही थीं। रेखा भाभी के इतने पास होने के कारण मेरे दिल में अब एक अजीब ही गुदगुदी सी हो रही थी।
रेखा भाभी मेरे इतने पास थीं की मैं चारपाई से ही हाथ बढ़ाकर उन्हें आसानी से छू सकता था इसलिये मेरे दिल ही दिल मे उनके लिये सजीब सी भावनाएँ जाग्रत हो रही थी मगर कुछ करने कि मुझमें हिम्मत नहीं थी। वैसे भी उस समय कुछ करना मतलब अपनी इज्जत का फालूदा करवाना था।
मैं पिछली रात को ठीक से नहीं सोया था इसलिये रेखा भाभी के बारे मे सोचते सोचते ही पता नहीं कब मुझे नींद आ गयी...
शानदार bhaiअब इसी तरह हफ्ता भर गुजर गया और इस हफ्ते भर में मैंने रेखा भाभी के साथ कुछ करने की तो कोशिश नही की मगर उनके प्रति मेरी वाशना बढती चली गयी। उनको याद करके मैने काफी बार मुठ मारी होगी.. मगर उनके साथ कुछ करने की मैं हिम्मत नहीं कर सका।
अब ऐसे ही दिन गुजर रहे थे की एक रात सोते हुए अचानक मेरी नींद खुल गई। मैंने सोचा की सुबह हो गयी है इसलिये बिस्तर से उठकर बैठ गया मगर जब रेखा भाभी व सुमन की तरफ देखा, वो दोनों भी सो रही थीं, बाहर भी अभी काफी अन्धेरा था इसलिये मैने फिर से सोने की सोची...
मै अब फिर से सोने ही वाला था की तभी मेरा ध्यान रेखा भाभी पर चला गया जिसे देख मेरी आँखें तो खुली की खुली ही रह गईं, क्योंकि रेखा भाभी के कपड़े सोते हुवे अस्त-व्यस्त हो रखे थे। साड़ी अधखुली सी उनसे लिपटी हुई थी तो पेटीकोट भी उनके घुटनों के ऊपर तक हो रखा था।
वैसे तो कमरे में अन्धेरा था। बस खिड़की से चाँद की थोड़ी सी रोशनी ही आ रही थी..मगर फिर भी रेखा भाभी के संगमरमर सी सफेद गोरी चिकनी पिण्डलियाँ ऐसे दमक रही थीं जैसे कि उन्हीं में से ही रोशनी फूट रही हो।
रेखा भाभी के गोरी चिकने पैरो को देखकर मेरी दबी हुई भावनाये अब ऐसे जाग्रत हो गयी जैसे की ज्वार भाटा उफनकर बाहर फुटता है। एकदम से साँसे फुल सी गयी और मेरा लण्ड तो मानो अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया था।
मुझे डर तो लग रहा था मगर मेरे लिए अपने आप पर काबू पाना अब मुश्किल सा हो रहा था इसलिये मैने धीरे से अपना एक हाथ रेखा भाभी के नंगे घुटने पर रख दिया... अपने हाथ को रेखा भाभी के घुटने पर रखकर मै अब कुछ देर तक बिना कोई हरकत किए ऐसे ही लेटा रहा, ताकि अगर वो जाग भी जाएं तो उन्हें लगे की मैं नींद में हूँ।
अब कुछ देर इन्तजार करने के बाद जब रेखा भाभी ने कोई हरकत नहीं की तो मैं धीरे-धीरे अपने हाथ को रेखा भाभी की जाँघों की तरफ बढ़ाने लगा और साथ ही उनकी साङी व पेटीकोट को भी धीरे धीरे उपर की ओर खिसकाने लगा..
अब जितना मेरा हाथ ऊपर की तरफ बढ़ता वो रेखा भाभी की संगमरमरी सफेद पैरो को भी उतना ही नंगा कर रह था और जैसे-जैसे भाभी के पैर नंगे हो रहर थे.. वैसे वैसे ही मानो कमरे में उजाला सा हो रहा था। क्योंकि उनके पैर इतने गोरे थीं कि अन्धेरे में भी दमक से रहे थे।
ऐसे ही धीरे-धीरे करते मेरा हाथ रेखा भाभी के घुटने पर से होता हुआ उनकी मखमल सी नर्म मुलायम, माँसल व भरी हुई जाँघों पर पहुँच गया जो की इतनी नर्म मुलायम व चिकनी थी कि अपने आप ही मेरा हाथ फिसलने सा लगा।
मै भी उन्हे धीरे धीरे बङे ही प्यार से ससहलता चला गया जिससे मेरा हाथ रेखा भाभी की जाँघो के उपर से होता हुआ सीधा उनकी जाँघो के अन्दर की तरफ पहुँच गया.. मगर रेखा भाभी की तरफ से कोई हरकत नहीं हुई...
शायद वो कुछ ज्यादा ही गहरी नींद में थीं जिससे मेरी भी थोड़ी हिम्मत अब बढ़ गई और मैंने धीरे धीरे अपने हाथ को रेखा भाभी की दोनों जाँघों के बीच अन्दर की तरफ ऊपर की ओर बढ़ाना शुरु कर दिया.. मगर मै अब थोड़ा सा ही ऊपर बढा था की एकदम से डर व घबराहट के कारण मेरा पूरा बदन कँपकँपा सा गया...
दिल की धङकने बढ गयी तो साँसे भी जैसे फुल गयी क्योंकि मेरा हाथ अब रेखा भाभी के जाँघों के जोड़ पर पहुँच गया था। उन्होंने साड़ी व पेटीकोट के नीचे पेंटी पहन रखी थी इसलिये मेरा हाथ उनकी पैँटी के नर्म मुलायम कपङे से जा टकराया था। अन्धेरे के कारण मैं ये तो नहीं देख पा रहा था कि उनकी पेंटी कैसे रंग की थी.. मगर हाँ वो जरूर किसी गहरे रंग की थी।
मैने कुछ देर रुक कर जैसे तैसे अब पहले तो खुद को काबु किया फिर धीरे से, बहुत ही धीरे से हाथ को उनकी पेंटी के ऊपर रख दिया और पेंटी के ऊपर से ही उनकी चुत का मुआयना सा करके देखा। उनकी चुत बालों से भरी हुई थी जो की पेंटी के ऊपर से ही मुझे महसूस हो रहे थे।
मैं धीरे-धीरे उनकी चुत को सहला ही रहा था की तभी अचानक से रेखा भाभी जाग गईं.. उन्होंने मेरा हाथ झटक कर दूर किया और जल्दी से उठकर अपनी साड़ी व पेटीकोट को सही करने लगीं।
ये सभी काम उन्होंने एक साथ और बिजली की सी रफ्तार से किए। डर के मारे मेरी तो साँस ही अटक गई, जिससे मैं जल्दी से अब सोने का नाटक करने लगा मगर भाभी को पता चल गया था की मैं जाग रहा हूँ।
मैंने थोड़ी सी आँख खोलकर देखा तो रेखा भाभी अपने कपड़े सही करके बैठी हुई थीं और मेरी ही तरफ देख रही थीं। मैं डर रहा था कि कहीं रेखा भाभी शोर मचाकर सबको बता ना दें। डर के मारे मेरा दिल अब इतनी जोरों से धड़क रहा था कि मैं खुद ही अपने दिल की धड़कन सुन पा रहा था। मगर फिर कुछ देर बाद रेखा भाभी सुमन की तरफ करवट बदल कर फिर से सो गईं।
जबरदस्त भाईमेरा मुँह अब रेखा भाभी की चुत के उपर तो था मगर अभी भी उनकी चुत मेरी पहुँच से काफी दुर थी, क्योंकि एक तो रेखा भाभी ने अपनी दोनों जाँघों को जोरो से भींचा हुवा था और दूसरा उनके बैठे होने के कारण उनकी चुत दोनो जाँघो के बीच बिल्कुल छिपी हुई थी।
अब मेरा मुँह रेखा भाभी की चुत तक तो नही पहुँच सकता था इसलिए मैं उनकी जाँघों व पेट के जोङ वाले त्रिकोण के ऊपरी भाग को ही अपनी जीभ व होंठों से सहलाने लगा, साथ ही नीचे दोनों हाथों से उनकी जाँघों को अन्दर की तरफ से भी सहलाना शुरु कर दिया... जिससे रेखा भाभी अब और भी जोरो से कसमसाते हुवे मुझे हटाने की कोशिश करने लगी...
मगर मेरे इस दोहरे हमले को वो ज्यादा देर तक सहन नही कर सकी... और कुछ ही देर बाद इसका असर रेखा भाभी पर भी दिखने लगा, उनकी जाँघों की पकड़ अब ढीली सी पड़ने लगी थी..
अब मैं तो इसी मौके की तलाश में था इसलिये अब जैसे ही रेखा भाभी की जाँघो की पकङ कुछ हल्की हुई मैंने धीरे धीरे करके पहले तो रेखा भाभी की पेंटी को खिसका कर उसे पुरा उतार दिया, फिर धीरे से अपबे दोनों हाथों को उनकी जाँघों के बीच घुसा दिया...
मेरी इस चालाकी का शायद अब रेखा भाभी को भी अहसास हो गया था इसलिए उन्होंने अब फिर से अपनी टाँगों को सिकोड़ने की कोशिश भी की.. लेकिन तब तक बहुत देर हो गयी थी... क्योंकि तब तक मैंने अपने दोनों हाथों को उनकी जाँघो के बीच घुसाकर उनकी जाँघों को फैला दिया...
रेखा भाभी की जाँघो को फैलाकर मैने अब अपना सिर सीधा उनकी दोनों जाँघों के बीच घुसा जिससे मेरे प्यासे होठो अब सीधा उनकी नँगी चुत से जा टकराये.. अपनी नँगी चुत पर मेरे होंठों का स्पर्श पाते ही एक बार तो अब रेखा भाभी भी सिहर सी गयी.. मगर फिर वो कसमसाते हुवे मुझे हटाने के लिए फिर से धक्के मारने लगीं...
पर अब मैं कहाँ हटने वाला था, मैं उनकी जाँघों को पकड़ कर उनसे चिपटा रहा और धीरे धीरे भाभी की चुत को चूमता चाटता रहा.. अबकी बार मैने रेखा भाभी की सीधे चुत पर हमला किया था और इस हमले का असर तो जो होना था वही हुवा...
फिर रेखा भाभी तो ना जाने कब से इस प्यार की प्यासी थी इसलिये कुछ ही पलों बाद उनका विरोध क्षीण पड़ गया और मैं उनकी चुत की फाँकों को चूमता चाटता चला गया।
रेखा भाभी की चुत की फाँको को चुमते चाटते हुवे अपनी जीभ से धीरे-धीरे चुत के अनारदाने को भी तलाश रहा था। मगर मुझे चुत का अनारदाना तो नही मिला पर थोड़ा सा नीचे बढ़ते ही मुझे चुत की फाँको के बीच कुछ गीलापन सा महसूस हुआ..
और इसका मतलब ये था की मेरी इस हरकत से रेखा भाभी को भी अब मजा आ रहा था.. इसलिए मैं रेखा भाभी की चुत को चूमते हुवे अब धीरे-धीरे सीधा नीचे उनके प्रेमद्वार की तरफ बढ़ गया।
रेखा भाभी के बैठे होने के कारण उनकी चुत का प्रेमद्वार तो नीचे दबा हुआ था.. इसलिए मैं उनके प्रेमद्वार तक नहीं पहुँच सका। मगर फिर भी रेखा भाभी के प्रेमरस से भीगे चुत के बालों को ही चाट लिया, जो की बङे ही नमकीन व कसैले से रश से भीगे थे।
मेरे होठ व जीभ अब रेखा भाभी के प्रेमद्वार के करीब जाते ही उनके मुँह से ना चाहते हुए भी एक हल्की सीत्कार फूट पड़ी और उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरे सिर के बालो को पकङकर मेरे मुँह को अपनी चुत से दुर हटा दिया...
सिर के बाल खिँचने से मुझे भी अब दर्द हुवा इसलिये एक बार तो मैने भी अपने होठो को उनकी चुत से अलग कर लिया मगर उसके अगले ही पल मैने फिर से से अपने होठो को चुत की फाँको से जोङ दिया..
इस बार रेखा भाभी ने भी मेरा विरोध नही किया बस हल्का सा सिसककर रह गयी। मैंने भी अब एक बार तो रेखा भाभी की चुत से रिसते हुए प्रेमरस को चखकर देखा, फिर वापस अपनी जीभ को ऊपर की तरफ ले जाकर चुत के अनारदाने को तलाश करने लगा...
मगर उनकी चुत इतने घने गहरे बालों से भरी हुई थी की वो मेरे मुँह में आ रहे थे। शायद कई महीनों से..., महिने नही शायद सालो से रेखा भाभी ने उन्हें साफ नहीं किया था। इसलिये मैंने अब रेखा भाभी की जाँघों को छोड़ दिया और दोनों हाथों की उंगलियों से उनकी काम सुरंग की दोनों फांकों को फैलाकर फिर से अपनी जुबान को रेखा भाभी की चुत पर रख दिया।
अब की बार मेरे होठो ने सीधा रेखा भाभी के अनारदाने को स्पर्श किया था इसलिए एक बार फिर उनके मुँह से हल्की सी सीत्कार फूट पड़ी और वो हल्का कसमसाकर थोङा पीछे हट गयी। मेरे होठ अब रेखा भाभी की चुत से अलग हो गये थे मगर मैने अपना काम कर दिया था।
रेखा भाभी अब काफी उत्तेजित लग रही थीं क्योंकि उनका विरोध अब ना के बराबर रह गया था। मौके का फायदा उठाकर मैने उन्हे अब हल्का सा ही धकेला तो वो चुपचाप बैड पर लेट गयी।
जबरदस्त शानदार लाजवाब भाईरेखा भाभी का काम हो गया था.. इसलिए वो अब शाँत हो गई थी मगर मेरे अन्दर तो अब भी ज्वार-भाटा सा जोर मार रहा था, और मेरे लण्ड की तो ऐसी हालत हो रही थी जैसे की उत्तेजना से उसकी नसें अभी ही फट जाएंगी। पानी छोङ छोड़ कर उसने मेरे सारे अण्डरवियर तक को गीला कर दिया था।
अब सुमन दीदी के होते हुए मैं रेखा भाभी के साथ कुछ कर तो सकता नही था.. मगर मैं चाह रहा था की रेखा भाभी मुझे भी इस तड़प से निजात दिला दें। इसलिए मैं धीरे से खिसक कर पुरा बिस्तर पर आ गया और रेखा भाभी के एक हाथ को पकड़ कर कपड़ों के ऊपर से अपने उत्तेजित लण्ड पर रखवा दिया...
मेरे लण्ड को छुते ही रेखा ने अब ऐसा झटका सा खाया जैसे की उन्होंने कोई करेंट का तार को छू लिया हो... उन्होने अब मेरे सिर को तुरन्त ही अपनी जाँघों के बीच से निकालकर अपने कपङो को सही से कर लिया और उस चद्धर को ओढ़कर फिर से सुमन दीदी की तरफ खिसक गयी।
रेखा भाभी का काम हो गया था इसलिए वो अब मुझसे दुर भाग रही थीं.. मगर मैं अभी तक तड़प रहा था। इसलिए मैं अब फिर से रेखा भाभी को अपनी तरफ खींचने की कोशिश करने लगा। मगर वो अपनी जगह से बिल्कुल भी नहीं हिल रही थीं.. बल्कि सुमन दीदी के और अधिक पास खिसक रही थी।
मैंने अब एक-दो बार तो उन्हे खिँचने की कोशिश की मगर जब वो अपनी जगह से नहीं हिलीं.. तो मैं खुद ही उनके पास खिसककर सीधा उनके ऊपर लेट गया, रेखा भाभी मुझे अपने ऊपर से हटाने के लिए अपने हाथों से धकेलने भी लगीं मगर मैं कहाँ मानने वाला था, मैं उनसे चिपटा रहा और धीरे धीरे उनके गालों को चूमना-चाटना शुरु कर दिया...
रेखा भाभी के नर्म चुम्बनो के साथ साथ मुझे अब उनके फूलों से भी नाजुक कोमल बदन का अहसास हो रहा था जिसने मेरा मजा अब दो गुना कर दिया था। मैं पहले ही काफी उत्तेजित था उपर से अब तो रेखा भाभी के मखमली बदन का स्पर्श पाकर मैं और भी अधिक उत्तेजित हो गया।
सुमन दीदी के वहाँ रहते मुझे पता था की रेखा भाभी मुझे अब कुछ करने तो देगी नही इसलिये मैंने रेखा भाभी पर लेटे लेटे ही अपने शरीर को आगे-पीछे करना शुरु करना दिया... जिससे रेखा भाभी अब तो और भी जोरो से कसमसाते हुवे मुझे अपने उपर से हटाने का प्रयास करने लगी।
मुझे रेखा भाभी के मखमली बदन का स्पर्श व उनके नर्म मुलायम गालो का तो मजा मिल ही रहा था उपर से अब आगे पीछे होने से मेरे लण्ड को रेखा भाभी के मखमली बदन का घर्षण भी प्राप्त होने लगा जिससे अब कुछ ही क्षण बाद मै भी अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया...
मैने रेखा भाभी के एक गाल को जोरो से चुमते हुवे उन्हे अब कस कर अपनी बाँहो मे भीँच लिया और हल्के हल्के धक्के मारते हुवे अपने अण्डरवियर के अन्दर ही अपने ज्वार को निकलना शुरु हो गया... जिसका अहसास शायद रेखा भाभी को भी हो गया था इसलिये वो भी अब शाँत पङ गयी।
मगर मैं अभी ठीक से शांत हुआ भी नहीं था की तभी सुमन दीदी ने करवट बदली, जिससे मैं जल्दी से रेखा भाभी को छोड़कर अपनी चारपाई पर आ गया और रेखा भाभी तो ऐसे हो गईं.. जैसे की वो बहुत ही गहरी नींद में सो रही हों। हम दोनों ही डर कर अब ऐसे हो गये.. जैसे की हमे साँप सूँघ गया हो।
खैर उपर से ही सही पर मेरे अन्दर का ज्वार तो अब एक बार शाँत हो ही गया था इसलिए मैंने अब दोबारा से भाभी के पास जाने की कोशिश नहीं की। वैसे भी अभी नही तो
सुबह तो मेरा काम बन ही जाना था. इसलिए मैं अब चुपचाप सो गया और कुछ देर बाद ही मुझे नींद भी आ गई।
जबरदस्त भाईअभी तक रेखा भाभी के होंठों को बस मै ही चूस रहा था.. मगर अब पहली बार रेखा भाभी ने भी हल्का सा मेरे होंठों को अपने होंठों के बीच दबाया।
रेखा भाभी भी अब थोड़ा-थोड़ा मेरे चुम्बन का जवाब देने लगी थीं इसलिए मैंने धीरे से अपनी जीभ को भी उनके मुँह में घुसा दिया. जिसे वो भी अब अपनी जीभ से कभी कभी हल्का सा छेङने लगीं।
मैने भी अब रेखा भाभी के मुँह का रस पीते पीते अपनी कमर की हरकत को थोङा सा बढ़ा दिया.. जिससे अब रेखा भाभी के मुँह से सिसकारियाँ सी में फुटना शुरु हो गयी...
रेखा भा भाभी भी अब धीरे धीरे खुलती जा रही थीं क्योंकि उसने बस एक दो बार तो मेरी जीभ को अपनी जीभ से छेङकर देखा फिर उसे धीरे धीरे चुशना शुरु कर दिया, साथ ही मेरे धक्को के साथ साथ अब उसने भी नीचे से धीरे-धीरे अपने कूल्हों को उचकाना शुरु कर दिया...
रेखा भाभी भी मेरा साथ देने लगी थी इसलिए मैंने भी अब अपनी कमर की गति को थोङा सा बढ़ा दिया और तेजी से धक्के लगाने लगाने लगा, जिससे रेखा भाभी की सिसकीयाँ और भी तेज हो गयी और मेरे साथ साथ उसने भी अब जल्दी-जल्दी अपने कूल्हे उचकाना शुरु कर दिया...
अब रेखा भाभी का इतना जोश देखने के बाद मै कहा कम रहने वाला था, मैने भी अपनी पुरी ताकत से धक्के लगाने शुरु कर दिये जिससे रेखा भाभी की सिसकीयाँ अब और भी तेज हो गयी। साथ ही उसने अपने पैरो को भी अब मेरे पैरो मे फँसा लिया और जल्दी जल्दी अपने कुल्हो को उचकाना शुरु कर दिया
रेखा भाभी अब मेरा पुरा साथ दे रही थी। क्योंकि जितनी ताकत व तेजी से अब मै धक्के लगा रहा था, रेखा भाभी भी मेरे हर एक धक्के का जवाब अब नीचे से अपनी पुरी ताकत से अपने कुल्हो को उचका उचकाकर दे रही थी।
जिससे वो पूरा कमरा अब हम दोनो की धक्कमपेट से निकलने वाली "पट-पट.." की आवाजो के साथ, रेखा भाभी की सिसकारियों से गूँजने लगा मगर हम मे से किसी को भी अब परवाह ही कहाँ थी, हम दोनो तो बस अब जल्दी से जल्दी अपनी मँजिल पर पहुँचने के सुरुर मे थे।
हमारी इस धक्कमपेल से मेरी व रेखा भाभी की साँसें उखड़ने लगी थीं, तो शरीर भी पसीने से तर बतर हो गए थे मगर हम दोनों में से कोई भी पीछे नही रहना चाह रहा था, हम दोनों को ही अपनी अपनी मंजिल पर पहुँचने की जल्दी लगी थी..
फिर तभी अचानक रेखा भाभी के गर्भ की गहराई में जैसे एक कोई विस्फोट सा हुवा, जिससे रेखा भाभी एक बार तो
" इईई.. श्शश.. अआआ.. आह्ह्ह्हह.." कहकर बङी ही जोरों से चिल्लाई फिर...
ईईईई....श्शश....अआआ......आह्ह्ह्हह.........
इईई...श्शश....अआआ.....आह्ह्ह्हह......
इई..श्शश...अआआ....आह्ह्ह्हह.....
इ. श्शश..अआआ...आह्ह्ह्हह... की मीठी मीठी सिसकारीयाँ सी भरते हुवे उनके हाथ-पैर मुझसे लिपटते चले गये। उनका पुरा शरीर अकड़ गया और उनकी चूत रह रहकर हल्के हक्के सँकुचन के साथ मेरे लण्ड को अपने प्रमरश से भीगोती चली गयी।
रेखा भाभी का इतना उत्तेजक कामोन्माद देखकर मैं भी अब जल्दी ही चरम पर पहुँच गया और दो-तीन धक्कों के बाद ही मैंने भी अपने भीतर का सारा लावा रेखा भाभी की चूत में ही उड़ेलना शुरु कर दिया।
रसखलित होने के बाद कुछ देर तक तो मैं रेखा भाभी के ऊपर ही पड़ा रहा और फिर पलट कर उनके बगल में लेट गया।
अब सब कुछ शाँत हो गया था ऐसा लग रहा था जैसे कि अभी-अभी कोई तूफान आकर चला गया है। कमरे में बस मेरी और रेखा भाभी की उखड़ी हुई साँसों की आवाज ही गूँज रही थी.. जिन्हें हम दोनों काबू में करने की कोशिश कर रहे थे।
कुछ देर तक हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे और फिर रेखा भाभी उठ कर अपने कपड़े ठीक करने लगीं। मैंने रेखा भाभी की तरफ देखा तो उन्होंने नजरें झुका लीं.. मगर संतुष्टि के भाव उनके चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रहे थे।
कपड़े ठीक करके रेखा भाभी कमरे से बाहर चली गईं। रेखा भाभी के बाद मैं भी उठकर बाहर आ गया और फिर तैयार होकर रोजाना की तरह ही खेतों में चला गया।
इसके बाद करीब महीने भर तक मैं गाँव में रहा और काफी बार रेखा भाभी से सम्बन्ध बनाये। पहले एक-दो बार तो उसने मना किया.. मगर फिर बाद में तो वो खुद ही मेरे पास आने लग गयी।
!!समाप्त!!
बहुत ही सुन्दर और शानदार update हैतो दोस्तो कैसा लगा ये अपडेट..?
प्लीज कोमेन्टस मे या फोरम पर ही मैसेज करके एक बार बताना जरुर, वैसे इसके लिये सिग्नेचर मे मेरा मेल ऐड्रस भी है आप मुझे मेल भी कर सकते...!
धन्यवाद।।