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Erotica लल्लू लल्लू न रहा😇😇

Tiger 786

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भाग १




यह कहानी एक ऐसे गांव की है जिसके यहां की औरतों को अतृप्त रहने का श्राप मिला हुआ था। किसने दिया ये श्राप ये आगे जानेंगे पर अभी के लिए इस गांव की हर औरत अतृप्त है। ये गांव पहले कभी बड़ा गांव हुआ करता था पर श्राप के कारण गिनती के ६० ७० घर ही बचे थे जो आपस में मिल जुल कर अपनी गुजर बसर कर रहे थे। लोगो को ऐसा लगा की गांव छोड़ देंगे तो श्राप भी उनका पीछा छोड़ देगा पर वो नही जानते थे की श्राप तो उनके खानदान पर लग चुका हैं। वो देश विदेश कही भी जाए ये श्राप उनका पीछा नहीं छोड़ेगा। हर शादीशुदा औरत या फिर जवान लड़की हो उनकी चूत हमेशा चुदासी रहती थी। बस औरत ५५ पर करी नही उसकी बेचैनी यकायक खतम हो जाती थी। इस गांव का कमाने का एक ही जरिया था खेती बाड़ी। तो चलते है अपने मुख्य किरदार की तरफ जो इस समय जंगल की तरफ बड़े जा रहा था।

अमावस्या की रात गहराती जा रही थी। जंगल में विभिन्न प्रकार के जीव जंतुओं की आवाजे आ रही थी जो किसी भी साधारण से इंसान के रोंगटे खड़े कर दे। दूर कुत्ते के रोने की आवाज माहोल को और भयानक बना रही थी। पर इन सब चीज़ों से दूर एक लड़का जंगल के अंधेरे की ओर चले जा रहा था। वो मन ही मन बुदबुदाए जा रहा था की अब घर कभी नही जाऊंगा। सब उसे डांटते है कोई प्यार नही करता। ये और कोई नही हमारी कहानी का मुख्य पात्र हैं लल्लू उर्फ वीर प्रताप। लल्लू १९ साल का लड़का हैं।

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बिलकुल साधारण सा और मंद बुद्धि। इसकी बुद्धि अभी भी १० साल के बच्चे के बराबर हैं। इसका दिमाग विकसित ही नही हुआ। ऐसा नहीं की इससे कोई प्यार नही करता, सब इस पर जान छिड़कते है बस परेशान है की उनका इकलौता सहारा ऐसा हैं। तो आइए लल्लू की यात्रा पर निकलने से पहले उसके परिवार के बारे में सब जानते हैं।

१. सबसे पहले लल्लू की मां सुधा। ४४ साल की गदरायी हुई महिला जिसमे यौवन कूट कूट कर भरा था। एक दम गांव की अल्हड़ महिला जिसे पुरुष संसर्ग पिछले १६ सालो से नही मिला क्युकी इसके पति की मृत्यु हो गई थी। ये चाहती तो थी पुरुष संसर्ग पर लोक लाज के डर के मारे अपनी इच्छाएं दबा कर रखी हुई थी। गांव में जब भी ये निकलती तो हर पुरुष की आह निकल जाती। इसके वक्ष तो जैसे कहर और इनकी गांड़ कयामत। हर समय सारी में रहती पर रात को सोते समय सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में क्योंकि कमरे में सोती थी और इनके साथ इनका लाडला लल्लू, जिसे औरत के जिस्म और उसके यौवन का कुछ पता नहीं था।


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२. तेज प्रताप: ये लल्लू के पिता, जो अब मर चुके हैं। सांप काटने से इनका निधन हो गया, कोई रोल नही हैं इनका इस कहानी में।

३. कमला: लल्लू की सबसे बड़ी बहन। उम्र २३ साल। पूरी तरह गदराया हुआ बदन। इसे जवानी इस कदर चढ़ी थी की ये सिर्फ लन्ड और चूत की बात करती थी अपनी सहेलियों से। कुछ सहेलियां इसकी शादीशुदा थी जो जिनसे ये उनके किस्से सुन खुद को उनकी जगह हर रात को उंगली करती। कई मनचले इसके पीछे पड़े हैं पर अपनी मां और ताई के डर से ये किसी को घास नहीं डालती। पूरी तरह गांव की अल्हड़ जवानी।


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४. सरला: लल्लू की छोटी बहन पर लल्लू से १ साल बड़ी। उम्र २० साल। घर की सबसे होशियार और समझदार लड़की। १२ वी क्लास में पूरे जिले में अव्वल आई थी और इसकी जिद्द आगे पढ़ने की थी तो किसी ने उसको माना नही किया। पास के शहर में कॉलेज में पड़ रही हैं। इसका दूसरा साल हैं एम बी बी एस का। हर शनिवार शाम घर आती हैं और संडे को खेत और डेयरी का पूरा हिसाब किताब देखती हैं। अगर फिगर की बात करे तो अपनी मां और बहन से साढ़े उन्नीस ही होगा। इसने थोड़ा अपने घर की औरते का पहनावा बदल दिया(वो आगे जाके पता पड़ेगा)। जवानी तो इस पर भी खूब चढ़ी है पर ये भी इच्छाएं दबा के अपना जीवन व्यापन कर रही हैं।


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६: माया देवी: इस घर की मुखिया और इस गांव की भी और लल्लू की ताई। उम्र ५९ साल। चूत की भूख इनकी काम होने की बजाय बढ़ती जा रही हैं। चूचे इतने बड़े की इक हाथ में समाय ना समय और गांड़ ऐसी थिरक के चलती जैसे हर समय लोड़ा घुसा हो इनकी गांड़ में। गांव के कई मर्दों के साथ हमबिस्तर हो चुकी है पर मजा नही आया। गाली तू हर समय इनके मुंह पर धरी रहती है। इनके गुस्से से घर क्या पूरा गांव घबराता हैं। जब गांव में निकलती तो पहलवानों की फौज चलती थी इनके साथ। किसी भी औरत पे जुल्म इनको बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं था।


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७: समर प्रताप: ये वीर के ताऊ। इक दिन घर से खेत के लिए निकले पर न ही कभी खेत पहुंचे अर्बन ही वापस घर। इनके साथ क्या हुआ कोई नही जानता। आगे ये क्या क्या गुल खिलाएंगे देखते रहे।

माया और समर की दो बेटियां है जिनकी शादी हो चुकी है और हम उनके बारे में बाद में जानेंगे। समय आने पर उनका परिचय दिया जायेगा।

८. सूर्य प्रताप: ये लल्लू के चाचा हैं। उम्र ४४ साल। इनकी रगो में खून कम और शराब ज्यादा थी। हर तरह के नशे के आदि। इनको घर बार या रुपया पैसे से कोई मतलब नहीं। मतलब है तो केवल इतना की इनके नशे का जुगाड हो जाए। इनका भी कोई ज्यादा काम नही हैं कहानी में।

९: रतना: ये लल्लू की चाची। उम्र ३९ साल। ३९ साल का एक दम कोरा मॉल, जिसको किसी ने भी नही छुआ हो। सुहागरात के दिन ही पति की असलियत पता लगी पर माया देवी के कारण कुछ न बोल पाई ना कर पाई। इसके हर एक अंग से मादकता टपकती थी। ये हर रात खुद को शांत करने की कोशिश करती पर होता कुछ भी नही। इसका और कमला का एक खास रिश्ता है। ये दोनो चाची भतीजी कम और सहेलियां ज्यादा थी।


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१०: उषा ताई: ये ५० साल की औरत माया देवी की खास हैं। कहने को तो नौकरानी पर घर में सब इसे बहुत इज्जत देते क्योंकि माया देवी के बहुत मुंह चढ़ी थी। पूरे गांव में क्या हो रहा है इसे सब पता होता। एक नंबर की रण्डी।


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ये तो हो गए चंद किरदार या यूं कहे अहम किरदार। बाकी किरदार समय के साथ जुड़ते जायेंगे। तो वापस चलते है लल्लू की तरफ जो इस समय जंगल के अंधेरे को चीरता हुआ आगे बड़ा जा रहा था।

लल्लू के कदमों की चाप जंगल के सन्नाटे को चीर रही थी। उसकी आंखो में आंसू और चेहरे पर रोश। माथे के बल उसके मजबूत इरादे की गवाही दे रहे थे, वो अंजान सफर पे अग्रसर था जिसकी मंजिल उसे खुद पता नही थी। बस मन में एक बात की अब घर नही जाना, इस गांव ने नही रहना क्युकी सब या तो उसे मरते है या उसका मजाक उड़ाते हैं। तभी उसके पैर एकदम से ठिठक जाते हैं। उसकी रफ्तार पर मानो जैसे किसी ने रोक लगा दी हो। उसकी नजरे को जो सामने दिख रहा था उसपे यकीन नही था। सामने थी इस गांव के जमेंदारो की पुरानी हवेली।


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इस हवेली के बारे में गांव के कुछ लोग ही जानते थे और जो वो जानते थे वो इसके बारे में बात भी करने से डरते थे। ये हवेली २०० सालो से वीरान पड़ी थी पर मजाल है कोई इसकी हालत देख कर ऐसा बोल सके। इस हवेली की शानो शौकत देखते ही बनती थी।

लल्लू की आंखों में चमक आ गई। उसे उसका नया घर मिल गया था। पर बस मुश्किल इतनी थी अंदर कैसे जाया जाए। लल्लू उस हवेली की चार दिवारी के इर्द गिर्द घूम रहा था। तभी उसको एक बड़ा सा द्वार दिखाई दिया। लल्लू भागकर उस द्वार की तरफ गया। अब एक बार फिर लल्लू चौंक गया। द्वार पर इतना बड़ा ताला देख कर।


वो ताला इतना बड़ा था की लल्लू के हाथ भी छोटा था। वो ताला पूरी तरह कलावे से बंधा हुआ था। और द्वार को चारो ओर से लाल धागे से बांधा हुआ था। लल्लू जो देख रहा था उसे यकीन नही हुआ और उसके हाथ ताले को छू कर देखने के लिए आगे बड़े। लल्लू के दिल में डर भी था और जिज्ञासा भी। वो तो बस हवेली के अंदर जाके अपनी थकान मिटाना चाहता था। लल्लू के हाथ जैसे जैसे आगे बड़े वैसे उसके दिल की धड़कने बढ़ती जा रही थी। लल्लू को इस सर्द अमावस्या की रात में पसीने से बुरा हाल था। जैसे ही लल्लू ने ताले को छुआ उसे इतनी तेज करेंट लगा की वो १० फीट दूर जाके गिरा। लल्लू का डर के मारे बुरा हाल था, वो बस उस ताले को घूरे जा रहा था।

इधर जैसे ही लल्लू ने ताले को हाथ लगाया, पूरी हवेली अंदर से एक सेकंड के लिए जगमगा उठी। लल्लू नही देख पाया वो दृश्य पर अगर देख लेता तो डर के मारे भाग जाता। तभी कुछ आवाजे हवेली में गूंजने लगी। कोई आया। कोई जानवर होगा। किसी ने ताले को छुआ। कौन है वो। नही ये तो कोई मनुष्य है। अरे हां एक मर्द है। मिल गया मेरी मुक्ति का सहारा आ गया। शेरा ओ शेरा। और वो आवाजे शांत हो गई।

लल्लू एक टक उस ताले को घूर रहा था की किसी की कु कू ने उसका ध्यान आकर्षित किया। लल्लू को बहुत प्यारा काला कुत्ता दिया। उसकी आंखें एक दम नीली जो इस अंधेरे को चीर रही थी। वो लल्लू की तरफ देख कर पूंछ हिलाने लगा। लल्लू जो की अभी अभी बिजली का झटका खाया था वो अब इस कुत्ते को प्यार से अपने पास बुलाने लगा। कुत्ता भी पूंछ हिलाते हुए लल्लू की तरफ भड़ने लगा। लल्लू के पास पहुंच कर वो कुत्ता लल्लू को प्यार से चाटने लगा और लल्लू भी उससे खेलने लगा। वो भूल गया था की वो इस समय कहां पर हैं। वो कुत्ता लल्लू का कुर्ता खीच कर उसे उठाने लगा। लल्लू को समझ में आ गया की ये कुत्ता उसे कही ले जाना चाहता हैं। लल्लू भी उठ खड़ा हुआ और उस कुत्ते के पीछे चलने लगा। चलते चलते वो लोग हवेली के पीछे की तरफ पहुंच गए वहा दीवार थोड़ी सी टूटी हुई थी। एक आदमी आराम से निकल सकता था। लल्लू को उस कुत्ते पे बहुत प्यार आया। इंसान इंसान को नही समझता पर एक जानवर इंसान को कैसे समझ लेता हैं। हवेली के चारो तरफ बाग बगीचे थे जो की कही से भी उजाड़ नही लग रहे थे। लल्लू घूम कर हवेली के बिलकुल सामने खड़ा था। जो सीडियां हवेली के मुख्य द्वार की ओर जा रही थी उसके दोनो तरफ कुत्ते का स्टेच्यू बना हुआ था, पर एक तरफ का कुत्ता गायब था। लल्लू को थोड़ा अजीब लगा। लल्लू आगे बढ़ता हुआ हवेली के मुख्य द्वार पर आ पहुंचा। लल्लू उस बड़े से द्वार को धकेलता इससे पहले वो द्वार खुद खुल गया और हवेली जगमगा उठी।


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लल्लू की हवा खराब हो गई थी। उसकी सांसे उसके गले में अटकी हुई थी। वो रह रहकर हवेली की मुख्य बैठक को चोर और घूम घूम कर देख रहा था। लल्लू ने हवेली में कदम रखा और वो हवेली की भव्यता में को गया। इतना बड़ा फानूस उसने जिंदगी में नही देखा था। ऐसा कालीन ऐसे सोफे और इतना बड़ा कमरा। जगह जगह पुराने जमींदारों की पेंटिंग लगी हुई। सामने से सीडी ऊपर की तरफ जाती हुई। तभी लल्लू को एक आवाज सुनाई दी।

आवाज: आओ वीर प्रताप, मैं भानु प्रताप तुम्हारा अपनी हवेली और रियासत में इस्तेकबाल करता हु।

लल्लू आवाज सुन के डर गया। पर फिर वो अपने डर को छुपाते हुए बोला।

लल्लू: ककक कौन हो आप। आप दिखाई क्यों नहीं दे रहे।

आवाज: हम मिलेंगे भी और दिखाई भी देंगे पहले तुम्हे भूख लगी होगी आओ पहले कुछ खा लो।

खाने का नाम सुनते ही लल्लू के मुंह में पानी आ जाता हैं और वो आवाज के पीछे पीछे चलने लगता हैं। चौखट पे निकली कील के कारण लल्लू की कलाई छील गई और दो बूंद खून की धरा के पटल पर गिर गई। जैसे ही खून गिरा वो गायब हो गया और तहखाने में एक हंसी गूंज उठी। " हां हां हां हां हां हां। अब आयेगा मजा, ये तो मेरा ही खून है, यानी मेरा वंशज"।

इधर लल्लू खाने की सजी हुई मेज को देख कर पागल हो गया।

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जो जो उसे पसंद था वो सब था। भुना हुआ मुर्गा, मटन, खीर, पूरी, जलेबी, रबरी, पनीर, आलू की सब्जी और उसक मुंह में पानी आ गया। लल्लू ने जी भरके खाना खाया आज उसे रोकने वाला कोई नहीं था। खाना खाके लल्लू अब उस आवाज से मुखातिब हुआ।

लल्लू: बहुत बहुत शुक्रिया! ऐसा स्वादिष्ट भोजन तो मैने कभी नही किया।

आवाज: इसमें शुक्रिया जैसा क्या है, ये तुम्हारा ही घर हैं। अब ऐसा भोजन तुम रोज कर सकते हो।

लल्लू: हा सही है, अब मैं रोज ऐसा ही भोजन करूंगा। यही रहूंगा और घर कभी नही जाऊंगा।

आवाज: क्यू घर क्यू नही जाना हैं तुम्हे वीर प्रताप।

लल्लू: सब मुझे मरते हैं, मुझे मंद बुद्धि, बेवकूफ और पागल बोलते हैं। मैं पूरे गांव से नफरत करता हूं।

आवाज: हम गांव जरूर जायेंगे पर पीटने के लिए नही पीटने और जिसने भी तुमको अपशब्द कहे हैं उसकी खाट खड़ी करने।

बहुत सी बाते हो रही थी उस आवाज और लल्लू में।

उधर लल्लू के घर में उसके घरवालों की लिए ये एक कयामत की रात थी। सब लोग खाना पीना छोड़ कर बस लल्लू की ही प्रतीक्षा कर रहे थे। माया देवी के पहलवान गांव का हर कोना छान रहे थे पर लल्लू का कोई नामोनिशान नहीं। माया देवी के हुक्म से गांव का हर मर्द लल्लू की तलाश कर रहा था। सबको जंगल की तरफ जाने से मना किया था इसलिए वहा कोई नही गया।

घर में सबका रो रोकर बुरा हाल था। सुधा, माया देवी और रतना बस लल्लू की एक आवाज सुनने को व्याकुल थी। माया देवी खुद को कोस रही थी की क्यों उसने लल्लू पे हाथ उठाया। आज की रात इस घर में चौका चूल्हा भी नही हुआ। रोते रोते पूरी रात निकल गई। सूर्य की लालिमा अब अपना प्रकाश फैलाने को बेकरार थी।

सूर्य की पहली किरण के साथ ही हवेली का द्वार खुला। लल्लू ने अपना पहला कदम बाहर निकाला और चारो तरफ से हवेली को देखने लगा। लल्लू के चेहरे का तेज और आत्मविश्वास देखते ही बनता था। लल्लू सीढियां उत्तर कर हवेली के मुख्य द्वार की तरफ बड़ने लगा। उसने पीछे मुड़ कर देखा तो अब वहा दोनो कुत्तो का स्टेच्यू यथावत था। इसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान फैल गई। लल्लू मुख्य द्वार के बिलकुल करीब पुहुच गया और उसने एक हल्की सी फूंक मारी और वो बड़ा सा ताला किसी खिलौने की तरह टूट गया और मुख्य द्वार खुल गया। लल्लू बाहर निकला और पीछे मुडकर देखा तो मुख्य द्वार वापस बंद हुआ और ताला वापस जैसा पहले था वैसे ही लटक गया। लल्लू तेज रफ्तार से भागने लगा। हवा भी पीछे रह जाए इतनी तेज़ी थी लल्लू में। इससे पहली की सूरज की पहली किरण अपना प्रकाश फैलाती लल्लू नदी के तट पर पहुंच गया। कीचड़ से सनी हुई जमीन पे लेट गया। ऐसा लग रहा था की जैसे नदी की लहरे उसे छोर तक लाई हैं।

रानी मां ओ रानी मां (माया देवी की पूरा गांव रानी मां कह कर बुलाता था) इस आवाज से सुधा, माया देवी और रतना का दिल बैठ गया। उन्हे कोई अनहोनी की आशंका हुई। लल्लू मिल गया। इस आवाज ने जैसे उन सब के कानो में शहद का काम किया। तीनों दरवाजे की तरफ भागी। देखा तो लल्लू को एक पहलवान अपनी गोद में उठाए हुए ला रहा हैं। पूरा कीचड़ में सना हुआ। लल्लू के आंखे खुली देखकर तीनो की सांस में सांस आई। माया देवी ने लल्लू को घर के अंदर लिया और पूरे गांव को धन्यवाद दिया और आज रात की दारु मुफ्त का ऐलान किया और घर के अंदर आ गई। उसने देखा सुधा और रतना लल्लू तो टटोल रही हैं की कही कोई चोट तो नही लगी और बार बार उसका चेहरा चूम रही हैं।

माया: आरी ओ सुधा, पहले निहला दे अपने लाल को फिर जी भर के प्यार कर लेना।

सुधा: (हा में गर्दन हिलाती हुई) चल लल्लू तू गुसलखाने में चल और अपने कपड़े उतार मैं गरम पानी लेके आती हूं।

लल्लू भी सुधा की बात सुनकर सीधे आंगन में बने गुसलखाने में चला गया और अपना कच्छा छोड़े सब कपड़े उतार दिए।

थोड़ी देर में सुधा आई और लल्लू को देखा तो उसे कुछ परिवर्तन लगा। उसकी छाती एक दम मर्दानी लग रही थी। उसके डोले उसके असीम बल की गवाही दे रहे थे और उसकी पुष्ट जांघें उसके पुरोषत्व की गवाही दे रही थी। पर उसको लगा की ये उसका वहम होगा। सारे खयालों को झटक के वो बाल्टी रखते हुए बोली।

सुधा: ये कच्छा कौन उतरेगा। बोला था ना सारे कपड़े उतारे रखना।

सुधा लल्लू के सामने बैठ गई और एक ही झटके में लल्लू का कच्छा नीचे खींच दिया और जो उसने देखा उसके सांसे थम सी गई और मुंह से चीख। और उसके मुंह से बस इतना ही निकल पाया।

सुधा: यययय ये क्या है "लल्लू"।

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भाग २




दो लड़के तेजी से भाग रहे थे और बहुत तेज तेज चिल्ला रहे थे "गुरु जी गुरु जी"। दोनो के चेहरे के भाव को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उन्होंने कोई भूत देख लिया। चेहरे का रंग फीका और आंखो में दहशत। दोनो बालक एक भागते हुए एक कमरे में प्रवेश करते हैं। वो जिस कक्ष में प्रवेश करते हैं, वहां पर एक साधु किस के चेहरे का तेज देखते ही बनता था।

साधु: क्या हुआ शिष्यों। इतने विचलित क्यों हो। क्या समस्या हैं।

एक बालक: गुरु जी मैं और शंभू समाधि वाले मंदिर की सफाई कर रहे थे की हमने देखा सबसे बड़े गुरुजी की प्रतिमा के आंखो से खून निकल रहा है। इसलिए हम इतने विचलित हैं।

साधु समझ गया, जरूर बड़े गुरुजी को बड़ी अनहोनी की तरफ इशारा कर रहे हैं। उसने वही बैठ के ध्यान लगाया और कुछ २ से ३ मिनट के लिए वातावरण में संपूर्ण शांति और तभी उस साधु का सारा तेज गायब हो गया और माथे पे बल पड़ने लगे और चेहरे पर चिंता की लकीर। तुरंत ही उसने आंखे खोल दी। गुरु की हालत देखकर शिष्यों को मन और विचलित हो गया। जिज्ञासा वश वो फिर से साधु से सवाल करने लगा।

शिष्य: क्या हुआ गुरुजी? आप भी विचलित लग रहे हैं।

साधु: (चेहरे पर भय के भाव) बड़े गुरुजी ने एक बहुत ही शक्तिशाली पिशांच को कैद किया था। आज उसी पिशाच को उसी के वंशज ने आजाद कर दिया। सर्वनाश होगा अब।

शिष्य: तो गुरु जी हमे चल के उस पिशाच को रोकना चाहिए।

साधु: अब वो पिशाच और ताकतवर हो गया है। २०० साल से कैद था। तबाही मचेंगी चारो ओर।

शिष्य: तो गुरु जी हम कुछ नही करेंगे, हाथ पर हाथ धरे तबाही देखेंगे।

साधु: नही हम जायेंगे पर पूरी तैयारी से। समय लगेगा पर तब तक ईश्वर से प्रार्थना भी करेंगे की किसी को अधिक क्षति न पहुंचे। तुम लोग हवन की तैयारी करो।

दोनो शिष्य कमरे से निकलकर हवन की तैयारी में लग गए।

उधर लल्लू के घर पर सुधा की चीख सुन कर माया देवी और रतना भी गुसलखाने में पहुंची किसी का भी ध्यान लल्लू की तरफ नही था वो तो बस सुधा की चीख से चिंतित थी।

माया देवी: क्या हुआ सुधा, ऐसे क्यू चीखी।

सुधा के खड़े होने से माया देवी और रतना को लल्लू नही दिख रहा था और जैसे ही सुधा सामने से हटी दोनो की आंखे बड़ी हो गई। ऐसा लग रहा था की आंखों से गोटी निकल कर बाहर गिर गई हो।


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माया देवी: ये क्या है सुधा।

रतना: दीदी परसो मैने ही लल्लू को नहलाया था तब तो इतना सा था, (उसने हाथ का इशारा किया) पर अब तो हाथ में भी नही आयेगा।

सुधा: कही कोई अंदरूनी चोट की वजह से सूज तो नही गया।

रतना: दीदी ये नदी किनारे मिला कही पानी तो नही भर गया।

माया देवी: कुछ भी रतना, मुझे लगता हैं की सुधा सही बोल रही है। परसो में शहर जाऊंगी तब डॉक्टर को दिखा दूंगी।

तीनों की तीनो हैरत में थी जो भी उन्होंने देखा था। किसी ने भी आज से पहले इतना बड़ा नही देखा था। और गोटों का साइज देख कर तो ऐसा लग रहा था जैसे समस्त संसार का मॉल इनमे बसा हूं। लेकिन इक बात ये भी सत्य थी कि तीनों चोर निगाहों से उसे देख रही थी और तीनों की ही चूत रस छोड रही थी। फडप्फड़ा रही थी तीनो की चूत उस विकराल लन्ड को देख कर।

सुधा: (खुद को संभालते हुए) दीदी सरला को बोल दूंगी कोई अच्छा सा डॉक्टर ढुंढ के रखेगी।

माया देवी: (जैसे होश में आई) पागल हो गई है क्या, एक बहन को उसके भाई के बारे में ऐसा कुछ बताएगी।

सुधा: दीदी डॉक्टर और वकील से कभी भी कुछ नही छुपाना चाहिए।

रतना: हां दीदी छोटी दीदी बिलकुल सही कह रही है। सरला ही कोई अच्छा डॉक्टर बता देगी।

माया देवी: ठीक है, पूछ लेना और हो सके उस दिमाग के डॉक्टर से भी समय ले लेना। अच्छा तू अब इसे नेहला दे और सुन लल्लू पूरा दिन घर पे रहना, कई बाहर मत जाना।

लल्लू हा में सर हिलाता हैं, रतना और माया देवी गुसलखाने से बाहर निकल जाती हैं। तीनों अपनी बातो मे इतनी मशगूल थी कि उन्हे लल्लू के चेहरे की कामिनी हसी नही दिखाई दी।

सुधा किसी तरह अपने आप को संभालते हुए लल्लू को नहलाने लगी। जैसे जैसे उसके हाथ लल्लू के शरीर पर घूम रहे थे वैसे वैसे लल्लू का डंडा सख्त होता जा रहा था। लल्लू के दिमाग में भी कुछ आवाजे चल रही थी।

दिमाग की आवाज: आह कितनी दिनों बाद चूत की महक। बड़ा स्वादिष्ट होगा इसका पानी। कितनी सदियों बाद आज मुझे ये महक नसीब हुई है। वीर प्रताप की मां धन्यवाद तुझे, तूने मुझे वो सुख दिया है जिससे मैं वंचित था सदियों से और इसका इनाम तुझे जरूर मिलेगा।

सुधा भी लल्लू के लोड़े में आए तनाव को महसूस कर थी, वो तिरछी नजरों से बार बार अपने बेटे के हाहाकारी लोड़े को देख रही थी। वर्षो बाद उसकी चूत रस बहाए जा रही थी। चीटियां सी रेंग रही थी उसकी चूत में। वो बार बार अपनी चूत के साड़ी के ऊपर से सहला रही थी लल्लू की नजर से बचा के, पर भोली ये नही जानती थी की लल्लू के जिस्म में एक शक्तिशाली पिशाच है जो उसकी इज्जत तार तार कर देगा। उसे वो सुख देगा जिससे वो अभी तक वंचित थी। जैसे जैसे सुधा के हाथ नीचे बड़ते जा रहें थे लल्लू का लुंड पूर्ण रूप इख्तियार कर रहा था। जैसे ही सुधा कमर तक पहुंची उसकी आंखे वही जम गई। लल्लू का डंडा पूरा तन के खड़ा था।


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वो बस उसे देखे जा रही थी। इतना बड़ा और उसकी कलाई जितना मोटा। उसके मन में तरंगे उठने लगी। वो मन ही मन लल्लू के विशालकायी लन्ड की तुलना अपने गुजरे हुए पति की लुल्ली से करने लगी। पर तुलना हो तो वो करे। लन्ड में इतना तेज तनाव था की वो खुद ब खुद ऊपर नीचे होने लगा, जैसे उठक बैठक कर रहा हूं। लल्लू की आवाज से सुधा होश में आई।

लल्लू: मां बहुत दर्द कर रहा है।

सुधा: (परेशान हो कर) कहा दर्द हो रहा हैं मेरे लाल। कही चोट तो नहीं लगीं लल्ला।

लल्लू: नही मां, इधर पेशाब वाली जगह में दर्द हो रहा हैं।

सुधा: लल्ला पहले नाहले, फिर तेल से मालिश कर दूंगी।

सुधा ने जल्दी जल्दी लल्लू को नहलाया और उसके बदन को तौलिए से सुखाया फिर तेल की कटोरी लेकर लल्लू के शरीर पर लगाने लगी। जैसे ही सुधा लल्लू के लुंड के नजदीक पहुंची, वो आश्चर्यचकित थी कि लन्ड में तनाव अभी तक बरकरार हैं। उसने इतनी देर तक किसी का भी लोड़ा खड़ा नही देखा था। सुधा के लिए अब परीक्षा की घड़ी थी। फिर भी उसने हिम्मत करी और लल्लू के लन्ड की मालिश करने लगी।


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जैसे ही उसने लल्लू के लुंड की चमड़ी को पीछे खींचा लाल रंग का सुपाड़ा सुधा की आंखों के सामने आ गया। एक मीडियम आलू के बराबर का सुपाड़ा सुधा की आंखों के सामने था। सुधा अपनी पलके झपकना भूल गई थी। उसकी चूत बहुत बुरी तरह पानिया गई थी। उसे गीलेपन का एहसास अपनी जांघों पर हो रहा था। चमड़ी पीछे खींचने से लल्लू की आह निकल गई और सुधा उस कामवासना से बाहर आई और खुद को ही कोसने लगी। फिर पूरी ममता के साथ लल्लू के डंडे की मालिश करने लगी। वो आगे पीछे कर उसकी मालिश कर रही थी। कोई देखता तो ऐसा लगता की जैसे कामवासना में लिप्त औरत किसी मर्द को पूर्ण रूप से संतुष्ट करने में लगी हुई है। कोई ममतामई सुधा की स्थिति नही समझेगा।

पिशाच को असीम आनंद की प्राप्ति हो रही थी। ये वो स्पर्श था जिसके लिए वो सदियों से तड़प रहा था। वो तो मंत्रमुग्ध सा सुधा द्वारा किए जाने वाली क्रिया का आनंद उठा रहा था। वो खुद पर नियंत्रण रखने में असमर्थ था। जो उबाल उसके अंदर वर्षो से था वो अब बाहर निकलने को बेहाल था। और वो ही हुआ बांध टूट गया। नदी का बहाव इतना तेज था की सुधा का चेहरा पूरा लल्लू के वीर्य से सन गया।


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इतना गाड़ा वीर्य जो जहा गिरा वही चिपक कर रह गया। सुधा इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी। उसके मुंह से सिर्फ इतना ही निकला

सुधा: ये क्या किया लल्लू।




Superb update
 

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भाग ३





लल्लू ने जब देखा की उसकी नुनु से कुछ निकला और सीधे उसकी मां सुधा के ऊपर गिरा वो घबरा गया और पीछे को हुआ तो वही स्लैब पर रखा हुआ दंत मंजन गिर गया। दुर्भाग्यवश वो खुला हुआ था और सारा का सारा सीधे सुधा ले ऊपर गिरा। सुधा जो पहले ही अचंभे में थी लल्लू के मॉल को लेकर, वो मंजन गिरने से और भूचक्की रह गई। इस दोहरी गलती से लल्लू की गांड़ फट गई। वो बस रोने ही वाला था की सुधा ने उसके चेहरे को देखा।

सुधा: कोई बात नही लल्ला, गलती हो गई तूझसे अनजाने में, तू जा कमरे में कपड़े निकाल के रखे हैं उन्हें पहन ले।

लल्लू ने खुद को तौलिए से ढका और कमरे की तरफ चल दिया। लल्लू के जाते ही सुधा ने अपने चेहरे पर गिरे मॉल को उंगली में लिया और सूंघने लगी। उसकी खुशबू में वो मंत्रमुग्ध हो गई। इतना गाड़ा और इतनी मात्रा में वीर्य उस बेचारी ने पहली बार देखा था। ना चाहते हुए भीं उसकी उंगली धीरे धीरे उसके मुंह की तरफ बड़ने लगी।


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अपनी जुबान बाहर निकालकर उसने लल्लू के वीर्य को चखा, बहुत ही नशीला स्वाद था, और वो नशा सुधा के जिस्म पर चढ़ता चला गया। और वो न जाने कितनी देर तक लल्लू का वीर्य चखती रही। उसका मन ही नही हो रहा था की ये नशीली मिठाई खत्म हो क्योंकि इतने साल की भूख थोड़े में ही थोड़ी ना शांत होगी। खुद को शांत करना उसके लिए बहुत जरूरी था इस समय पर घर पर इतनी चहलपहल शुरू हो गई थी की इस समय ये करना सुधा ने मुनासिब नहीं समझा। सुधा ने अपना चेहरा धोया और अपने कमरे की तरफ चल दी जहा एक और चौकाने वाला दृश्य उसकी प्रतीक्षा कर रहा था।

जब सुधा कमरे में पहुंची तब तक लल्लू कपड़े पहन रसोईघर में नाश्ता करने के लिए बैठ गया था। सुधा कमरे में गई और अलमारी खोल नहाने के लिए कपड़े निकालने लगी पर जैसी ही उसकी नजर खुद पे पड़ी उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उसके सर चकराने लगा। ऐसा कैसे हो गए। उसकी मां......मांग कैसे भरी हुई है।



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तब उसे याद आया की दंत मंजन गिरा था उसके ऊपर और मंजन लाल रंग का हैं। वो जैसे ही उसे झाड़ने को हुई तभी उसके अंदर से आवाज आई क्या कर रही हैं सुधा, ये ही विधि का विधान है। तू अब से सुहागन हैं, याद है न उस साधु ने क्या कहा था। सुधा ये आवाज सुन अतीत के पन्ने पलटने लगी।

ये बात आज से कुछ ३ साल पहले की है उनके घर एक साधु आए थे, इस आश्रम की साधना इनके पूर्वज भी करते आए थे। सुधा माया देवी और बच्चो की जिद के कारण रंग बिरंगे कपड़े पहनती थी, माया देवी और बच्चो ने कभी उसे सफेद साड़ी नही पहनने दी। सुधा ने साधु को प्रणाम किया।

साधु: सदा सुहागन रहो। शत पुत्रवती भव।

सब को जैसे वहा पर सांप सूंघ गया हूं। सब बस साधु को घूरे जा रहे थे।

माया देवी: महाराज जी ये क्या आशीर्वाद दे दिया अपने, सुधा तो विधवा हैं।

साधु: देवी मेरा आशिर्वाद व्यर्थ नहीं है, क्युकी जो मुझे इनके तेज से लगा वोही आशीर्वाद मैने दिया। ये पुनः सुहागन होंगी और इनका सुहाग ही इस गांव का उद्धार करेगा। इनका रिश्ता अनैतिक और असमाजिक भी हो सकता हैं। पर ये सत्य हैं ये पुनः सुहागन और गर्भवती होंगी।

अतीत के पन्नो से जब सुधा बाहर निकली तो उसके माथे पर चिंता की लकीरें थी। तो क्या लल्लू? नही नही ऐसा कैसे हो सकता है, वो तो उसका ही बेटा है, पर उसी से उसका रिश्ता अनैतिक और असमाजिक दोनो है। वो सोच में पड़ गई फिर उसका अंतर्मन बोला यही विधि का विधान हैं सुधा। सोच जिस लल्लू पर पूरा गांव हस्ता हैं वोही इस गांव को मुश्किल से निकालेगा और तेरा सिर शान से ऊंचा उठ जायेगा। वो इसी सब उधेड़बुन में थी। ईश्वर ने उसे किस असमंजस में डाल दिया है। जो होगा देखा जायेगा के उसका आखिरी निर्णय था। फिर वो सर झटक कर नहाने की तैयारी करने लगी। नहाने के बाद उसने खुद को आईने में देखा और शर्मा गई। चुपके से उसने चुटकी भर सिंदूर लिया, अपनी मांग में बिलकुल पीछे की तरफ लगा दिया जिससे किसी को भी न दिखे और मुंह से निकल पड़ा "लल्लू की बिह्यता"।

इधर लल्लू नाश्ता करने के बाद बार बार घर से बाहर जाने की सोच रहा था। उसके अंदर के पिशाच को गांव घूमना था, नई नई चुतो की खुशबू सुंघनी थी पर उसकी हर कोशिश धरी की धरी रह जाती। वो घर की छत से ही गांव को भांपने लगा। उसे न जाने कितनी ही असंतुष्ट चूत नजर आ रही थी, उसकी जीव उन चुतो का रसपान करने के लिए बेताब थी और उसका लन्ड उन्हे इस पे झूला झूलने के लिए बेकरार था। दोपहर का खाना भी हो गया उस दोपहर के खाने में पहली बारी घर की कोरी और कमसिन चूत कमला मिली। पिशाच की तो लार टपक गई उसकी चूचियां और गांड़ का उठाव देख के।


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उसका बस चलता तो अभी पटक के चोद देता पर अभी नही कोरी चूत बाद में पहले इन रंडियों को तो टटोल के देख ले। दोपहर बाद सब अपने कमरे में चले गए पर सुधा नही गई क्युकी अंदर ही अंदर वो लल्लू का सामना नहीं करना चाहती थी।

लल्लू कमरे में आया और ध्यान लगा के बैठ गया जैसे कोई पूजा कर रहा हो। उसने देखा कमला अपने कमरे में सो रही है, सुधा और रतना आपस में घर गृहस्ती की बाते कर रही है पर जो उसने देखा माया देवी के कमरे में देखा उसकी जीव लपलापने लगी। उसे चूत की खुशबू आने लगी। मायादेवी अपने कमरे में केवल ब्रा और पैंटी में लेटी हुई थी और उषा ताई ब्लाउज और पेटीकोट में बैठी माया देवी की मालिश कर रही थी।


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उषा ताई: क्या बात हैं, रानी मां। कुछ विचलित लग रही हो।

माया देवी: क्या बताऊं उषा, लल्लू के लिए परेशान हूं।

उषा ताई: क्या हुआ छोटे मालिक को।

माया देवी: एक तो पहले ही मंद बुद्धि है, दूसरा उसके औजार में सूजन आ गई है। पता नही क्या हुआ, किसने काटा या कोई नई बीमारी हो गई हैं।

उषा ताई: (जांघो की मालिश करते हुए) ऐसा क्या हो गया, कल तक तो सब सही था।

माया देवी: हां री पर आज सुबह देखा तो बैठा हुआ भी किसी गधे जैसा लग रहा था। इतना बड़ा औजार तो मैने भी नही देखा कभी।

उषा ताई: ( माया देवी की बात सुनते ही आंखे बड़ी हो गई) क्या बात कर रही हो रानी मां। बीमारी नही इसका मतलब छोटे मालिक अब जवान हो गए हैं। और आपके लिए तो अच्छा ही है। (ये बोलकर उषा ने माया देवी की चूत अपनी मुठ्ठी में भर ली)

माया देवी: आह आ हट रण्डी। क्या मतलब है तेरा कुतिया।

उषा ताई: रानी मां जब इतना बड़ा लोड़ा घर में है तो बाहर जाने की क्या जरूरत। घर में ही छोटे मालिक को फंसा लो और फिर तो हर रात आपकी सुहागरात होगी।

माया देवी: (ये सुनकर उसकी आंखे चमकने लगी) हट छिनाल, बच्चा है वो अभी।

उषा ताई: काहे का बच्चा, अगर इतने बड़े लन्ड से आप को चोदेगा तो वो आपको अपने बच्चे की मां बना देगा। (ये बोलकर उषा माया देवी की चूत को सहलाने लगी)


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माया देवी: ( उषा की बात सुनकर माया देवी की चूत रस छोड़ने लगी और उसकी आंखो के सामने तारे छा गए। वो चाहती तो थी अभी उषा से अपनी चूत चटवाए पर दिन का समय है कोई कभी भी आ सकता हैं। ) छोड़ रण्डी, मालिश पर ध्यान दे। कितनी बार बोला है दिन में मत छेड़ा कर।

उषा ताई: क्या करू रानी मां, जब भी तुम्हारी गदरायी हुआ जिस्म देखती हूं, बस फिर मेरा खुद पर कंट्रोल नही रहता।

माया देवी: चापलूसी छोड़ और जाके भैंसो को चारा डाल।

इन दोनो की बात सुन पिशाच का लन्ड सलामी देने लगा की चलो दो चुतो का तो जुगाड हो गया। और वो इसी खुशी में सो गया।

सुधा: आह आह लल्लू धीरे कर।आह कितना बड़ा लोड़ा हैं तेरा। आह मां

लल्लू बुरी तरह सुधा को चोद रहा था।


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लल्लू : और चिल्ला रण्डी, अब तू बीवी है मेरी, तुझे में हर घड़ी ऐसे ही चोदूंगा। खा मेरा लोड़ा।

सुधा: हा मेरे स्वामी हर पल लूंगी आपका लोड़ा। चोदो मेरे पतिदेव चोदो अपनी बीवी को।

लल्लू के धक्कों की रफ्तार बड़ती जा रही थी और सुधा हर कदम पर लल्लू का साथ दे रही थी। लल्लू पर हवस सवार थी वो किसी वहशी की तरह सुधा को चोदे जा रहा था। सुधा हर धक्के का स्वागत गांड़ उठा उठा के कर रही थी। वो बस अपने पति को खुश रखना चाहती थी। अब वो घड़ी भी आई जब सुधा की चूत ने रस की पहली धार छोड़ी और इधर सुधा की आंखे खुल गई। उसकी पहली प्रतिक्रिया हाथ अपनी चूत पर रखना और पाया पूरी तरह से गीली और उसे समझते देर न लगी की वो झड़ चुकी हैं। ये कैसा सपना था जिसने उसे झड़ने पर मजबूर कर दिया। जो इतने सालो में न हुआ आज वो हो गया।

उधर सोते हुए लल्लू के चेहरे पर मुस्कान थी।


इधर सुधा बस ये ही सोच रही थी "क्या कर दिया तूने मुझे लल्लू"।
Lazwaab superb update
 
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