भाग ७
शाम ढल चुकी थी। चांद अपनी चांदनी बिखेरने को बेताब था पर एक घर के आंगन में बने हुए कूवे की मुंडेर के सहारे दो जिस्म अपनी तेज चलती हुई सांसों की दुरुस्त करने में लगे हुए थे। ये वोही दोनो हैं जिन्होंने अभी अभी चुदाई का दूसरा राउंड समाप्त किया है।
ये दोनो और कोई नही सपना और लल्लू थे। सपना लल्लू के पास से उठकर जाने लगी को लल्लू ने उसका हाथ पकड़ लिया।
लल्लू: कहा जा रही है मेरी छमिया।
सपना: मूतने जा रही हूं मेरे राजा।
लल्लू: जाने की क्या जरूरत है, यही पे मूत ले।
सपना: धत पागल! यहां पर तुझे कौन सी नाली दिख रही हैं।
लल्लू: नाली नही है तो क्या हुआ मेरा मुंह तो है।
लल्लू ने इतना बोलकर सपना को मोड़कर उसकी मूत्र वाले छेद पर अपनी जीव चलानी शुरू कर दी। सपना इस हमले के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी। उसे सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि लल्लू ऐसा कुछ करेगा। एक बलशाली पुरुष जिसने उसको अभी दो बार बिस्तर पर चित किया है वो उसका मूत पियेगा।
सपना: आह लल्लू छोड़ मुझे, रोकना मुश्किल है, मेरा मूत निकल जायेगा। आह ओह
लल्लू ने सपना की बात को जैसे सुना ही नहीं वो सपना के छेद को अपनी जीव से कुरेदता रहा और वो समय भी आ गया जब सपना ने अपना नियंत्रण खो दिया।
सपना: आह लल्लू। हट जा। आई
पर लल्लू नहीं हटा और पूरी शिद्दत से सपना का मूत्र अपने गले से नीचे उतारता गया। उसने सपना के मूत्र की आखिरी बूंद तक अपना मुंह नही हटाया। सपना जिसने कभी न ऐसा सुना न देखा, वो उन्माद के नए स्तर पर पहुंच गई। कोई मूत पीकर किसी को इतना आनंद दे सकता है उसने सपने में भी नही सोचा था। लल्लू ने जब अपना मुंह अलग किया सपना के जिस्म से तो दोनो की आंखे मिली। एक बार फिर सपना की आंखों में नशा था।
सपना: छी गंदा। कोई मूत भी पीता है क्या।
लल्लू: मैं पीता हूं। तुझे मजा नही आया। सच बता मेरी रानी और वैसे भी चुदाई में कुछ भी गंदा नही होता।
सपना: (आंखे झुक गई और चेहरे पर मुस्कान) आया बहुत आया।
लल्लू: आया ना जब तू मूत पिएगी न तब और मजा आयेगा।
सपना: छी, मुझे नही पीना मूत।
सपना ने बोल दिया पर जैसे ही लल्लू ने सपना को जोर का झटका देकर नीचे बैठाया, सपना बैठ गई और सामने जो पाया उसे देख कर वो हैरत में थी। लल्लू का लोड़ा फिर खड़ा था, अपने पूरे आकार में। दो बार शाम से झड़ चुका हैं और एक बार फिर तन कर खड़ा हुआ है। लल्लू ने अपना लोड़ा आगे बढ़ाया और सपना का मुंह खुलता चला गया।
एक गरम गरम धार सपना के कंठ को भीगाने लगी। सपना मूत को ऐसे पी रही थी जैसे कोई अमृत हो। जैसे ही लल्लू का मूत खतम हुआ सपना ने अपने अंदर से एक अजीब सी संतुष्टि महसूस करी। उसके जिस्म में जैसे कोई स्फूर्ति आ गई हो। उसकी दिन भर की थकान गायब थी।
जैसे ही लल्लू के मूत की धार सपना ने अपने कंठ पे महसूस की दूर आश्रम में ध्यान में बैठे हुए साधु की आंखे खुल गई, वो कुछ बुदबुदाने लगा, उसकी आवाज सुन उसके शिष्यों की भी आंखे खुल गई।
शिष्य: क्या हुआ गुरुदेव।
साधु: घोर अनर्थ का प्रारंभ हो चुका है। घर अनर्थ।
शिष्य: क्या हुआ गुरुदेव। विस्तार से बताएं।
साधु: पिशाच अपना पहला वार कर चुका है। उसने आज एक स्त्री से अभिसार किया और उसको अपना मूत्र पिलाया। अब वो गुलामों की फौज तैयार करेगा।
शिष्य: दोनो में ज्यादा खतरनाक क्या है अभिसार या फिर मूत्र।
साधु: इक पिशाच की शक्ति उसके मूत्र में होती है। जब वो अभिसार के बाद उस स्त्री का मूत्र ग्रहण करता है तो और अधिक शक्तिशाली हो जाता है और जब पिशाच खुद से अपना मूत्र किसी को पिलाता है तो वो व्यक्ति उसका गुलाम बन जाता है। वो व्यक्ति उसके अधीन हो जाता है और उसके सोचने समझने की शक्ति खतम हो जाती है। इसलिए पिशाच का अभिसार करना और मूत्र पीना और पिलाना सब खतरनाक हैं।
शिष्य: अब हम क्या करेंगे और कैसे रोकेंगे इस पिशाच को।
गुरुजी: हम तो यज्ञ कर ही रहे है पर उस पिशाच को एक औरत का प्रेम ही रोक सकता है। एक ऐसी स्त्री का प्रेम जो की कामवासना से ऊपर हो। जो त्याग और प्रेम की मूरत हो। जो उस पिशाच को अपनी आगोश में समा ले। वो स्त्री ही पिशाच को बांध सकती है।
लल्लू बिलकुल तैयार खड़ा था घर जाने को। उसका मन तो बहुत था सपना की कुंवारी गांड़ मारने का पर समय का अभाव था, वो नही चाहता था की कोई उसे ढूंढता हुआ यहां पर आए। और वो सोच भी चुका था सपना की गांड़ वो उसके बेटे राजू के सामने मरेगा। इतना सोच कर ही लल्लू उर्फ पिशाच को बड़ा मजा आया। लल्लू ने चलते वक्त सपना की गांड़ पे एक जोर से चपत लगाई।
सपना: आउच। क्यों जाते जाते दर्द दे रहा है।
लल्लू: ताकि तुझे याद रहे तू सिर्फ अब मेरी रण्डी है।
सपना: अच्छा! अगर लाला के यहां से बुलावा आया तो।
लल्लू: तो कह दियो की हफ्ते भर में पूरा हिसाब कर दूंगी। अब गई तो तुझे वही काट दूंगा रण्डी।
सपना इसको प्रेम समझ बैठी और उसकी आंखे नम हो गई पर पिशाच ने तो अपनी नई गुलाम को चेतावनी दे थी। लल्लू चलने लगा।
सपना: अब कब आएगा।
लल्लू: कल मैं शहर जा रहा हूं वापस आते ही आऊंगा मेरी रण्डी।
सपना को छोड़ लल्लू अपने घर की ओर निकल पड़ा।
जब लल्लू अपने घर पहुंचा तो रात अपने पूरे शबाब पर थी। तीनों जेठानी और देवरानी आंगन में बैठे हुए शराब की चुस्कियां ले रही थी, आखिर अपने दुख दर्द की तीनो को यही एक सांझी दवा लगी। शराब देखते ही पिशाच के मुंह में पानी आ गया और वो उन तीनो की तरफ चल दिया। तीनों ने भीं लल्लू को देखा।
माया देवी: बड़ा समय लगा दिया राजू के घर।
लल्लू: खेलने में समय का पता ही नही लगा।
मायादेवी: चल हाथ मुंह धो ले, रतना इसे खाना लगा दे।
रतना: जी दीदी। चल लल्लू।
लल्लू: ताई मां मुझे भी ये पेप्सी पीनी है।
सुधागुस्से में) ये कड़वी पेप्सी होती है। बड़े लोग पीते है। कितनी बार बोला है तुझे।
लल्लू: ताई मां मां तो हमेशा मुझे बच्चा ही समझती है। पूरे २० साल का हो गया हूं मैं। और कितना बड़ा होऊंगा।
सुधा कुछ बोल पाती, इसके पहले माया देवी बोल पड़ी।
माया देवी: जा अंदर से गिलास ले आ।
लल्लू की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वो दौड़ के रसोई घर की तरफ जाने लगा।
सुधा: दीदी बच्चा हैं अभी। और आप।
माया देवी: २० साल का हो गया है और अगर उसका मानसिक संतुलन ठीक होता तो वो अब तक सब कुछ अपने हाथो में ले चुका होता। और जमींदारों का खून है, भोग और विलास की तरफ तो उबाल मारेगा ही।
इतने में लल्लू गिलास लेकर आ गया। सब शांत हो गए। माया देवी ने एक छोटा सा गिलास बना के लल्लू को दिया और लल्लू बिना कुछ सोचे समझे एक सांस में खाली कर दिया। ना जाने क्यों माया देवी को ये सब बहुत अच्छा लग रहा था। एक मर्द की कमी जो पूरे घर में खल रही थी वो उन्हे पूरी होते हुए दिखाई देने लगी। सब के विरोध के बावजूद माया देवी ने लल्लू के लिए दूसरा गिलास भी बना दिया और फिर लल्लू ने वैसा ही किया। महफिल बर्खास्त हो चुकी थी सब लोग खाना खा कर अपने अपने कमरों में थे। कमला रात को भी खाना खाने नीचे नही आई।
लल्लू अपने कमरे में पहुंचा और कान लगा कर सब के कमरों में सुनने लगा। रतना सो रही थी शायद आज उसे ज्यादा हो गई थी। कमला अपने कमरे में ब्रा पैंटी पहने हुए लेटी हुई थी। पैंटी पर से ही वो अपनी चूत सहला रही थी।
उसके जेहन में दिन में घटी घटना बार बार आ रही थी। उसकी चूत थी की रुकने का नाम ही नही ले रही थी। वो दोपहर से तीन पैंटी बदल चुकी थी ये उसकी चौथी पैंटी थी।
माया देवी लेटी हुई थी पर उनकी आंखों में नींद नहीं थी। वो आने वाल कल के सुनहरे सपने बुन रही थी और ईश्वर से एक ही दुआ कर रही थी की कल डॉक्टर लल्लू को सही बोले।
सुधा जब कमरे में पहुंची तब तक लल्लू आंखे बंद कर लेट चुका था। सुधा ने रोज की तरह अपनी साडी और पैंटी उतारी।
रोज जैसे वो पैंटी संभाल के रखती थी आज उसने ऐसे ही जमीन पर छोड़ दी क्युकी उसे लगा कुछ देर में लल्लू उसकी पैंटी में मिठाई गिराएगा। सुधा जाके अपनी जगह पर लेट गई और लल्लू की अगली हरकत का इंतजार करने लगी। आधा घंटा बीत गया पर लल्लू ने कुछ हरकत नही करी। सुधा को लगा शायद थोड़ी देर में करेगा। सुधा को लल्लू के लन्ड की गर्मी याद आने लगी पर वो अभी सिर्फ इंतजार कर सकती थी। लाइट चली गई, कमरे में घुप्प अंधेरा, सुधा की धड़कन तेज हुई क्युकी लल्लू के जिस्म ने हरकत करी पर अगले ही क्षण सुधा को मायूसी हाथ लगी क्युकी लल्लू तो करवट बदल के सो रहा था। सुधा जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी। सुधा से अब बर्दाश्त नहीं हुआ। सुधा खुद से ही अपनी चूत सहलाने लगी। वासना की आग कितना अंधा कर देती है एक मां अपने ही बेटे के बगल में लेट कर उसके ही लन्ड को याद करके अपनी चूत सहला रही थी। सुधा आंखे बंद करती तो उसे बस लल्लू का लहराता हुआ लन्ड ही दिखाई पड़ता। लन्ड से निकलते हुए वीर्य की धार और लल्लू का उसको अपनी पत्नी बोलना और उसे रोज पेलना। ये ही सब चल रहा था सुधा के जेहन में। उसे पता भी नहीं लगा की सेहलाते सहलाते वो कब उंगली से अपनी चूत का चोदन करने लगी।
इतनी उत्तेजक हो गई थी सुधा की उसकी गांड़ भी हिलने लगी। उसकी उंगलियों की रफ्तार किसी इंजन के पिस्टन के भाती तेज तेज अंदर बाहर हो रही थी। सुधा इतनी चुदासी हो गई थी की १० मिनट के भीतर ही उसे कुछ उबलता हुआ सा महसूस होने लगा। उसकी उंगलियों की गति और तेज हो गई।
सुधा: आह ओह आई मां। ल ल लल्लू आह ओह।
और सुधा झाड़ गई। वो इतना झड़ी की पूरा बिस्तर गीला हो गया था। सुधा की आहे इतनी तेज थी की बाहर खड़े भी सुनी जा सकती थी पर इस गांव की सर्द रात सब अपने अपने कंबलों में दुबके हुए आने वाले कल के बारे में सोच रहे थे।
सुधा की जब सांसे दुरुस्त हुई तो उसे खुद से शर्म आने लगी। उसने लल्लू की तरफ देखा जो अभी दिन दुनिया से बेखबर घोड़े बेचकर सो रहा था। उसकी आंखो में एक अजीब सी कशिश थी लल्लू को निहारते हुए। उसके मुंह से कुछ निकला।
सुधा: मुआ कुत्ता कही का।
आंखे बंद कर सोने की कोशिश करने लगी। ऐसा नहीं था की पिशाच को सुधा के साथ मजे नही करने थे या फिर वो थक गया हो, वो तो सुधा को इतना तड़पाना चाहता था की सुधा खुद को उसके लिए पूर्ण रूप से समर्पित कर दे। लल्लू के चेहरे पर बहुत ही कमिनी मुस्कान थी।
सुबह ५ बजे के अलार्म के साथ, सुधा की आंख खुली वो पूरी तरह से लल्लू से लिपटी हुई थी या यूं कहे उसका आधा शरीर लल्लू पर लघा हुआ था।
उसका घुटना ठीक लल्लू के लन्ड के ऊपर था और उसके हाथ लल्लू की चौड़ी छाती पर थे। उसने लल्लू के चेहरे की तरफ देखा तो उसे लल्लू पे बहुत प्यार आया। उसने लल्लू के होठों को हल्का सा चूम लिया जैसे गुड मॉर्निंग बोल रही हो।
पर उसे मालूम था की अभी प्यार दिखाने का समय नहीं है। माया देवी टाइम की बड़ी पाबंद है। सात बजे उन्हे शहर निकलना था। उसे भी लल्लू की तैयारी करनी थी क्योंकि माया देवी ने बोला था हो सकता है दो तीन दिन डॉक्टर की सलाह पर रुकना पड़े। सुधा बिस्तर से उठी और अपने कपड़े उठाए और जैसे ही पैंटी उठाई उसे अपनी मिठाई की खुशबू आने लगी। पैंटी को देखा तो वो पूरी तरह लल्लू के वीर्य से भरी पड़ी थी। सुधा के चेहरे पर खुशी दौड़ गई। उसने अपनी जीव निकले के अपनी पसंदीदा मिठाई को चखा और चखती चली गई जब तक कुछ ना बचा।
सुबह का विटामिन सुधा को मिल गया था। नीचे से चहल कदमी की आवाजे आने लगी। उसने उस पैंटी को अलमारी में डाला और नई पैंटी और साडी पहनी और नीचे को चली गई। सुधा के जाते ही लल्लू उठ खड़ा हुआ और उसके चेहरे पर कुटिल मुस्कान फैल गई।
माया देवी को शायद शहर जाने की बहुत जल्दी थी वो सुबह ६ बजे ही तैयार हो गई। आज वो किसी अप्सरा से कम नही दिख रही थी।
४९ साल की उम्र में भी वो कमला को टक्कर दे सकती थी। गांव में उनकी तुलना में सिर्फ सुधा ही उनसे २० होगी बाकी सब उनके आगे पानी कम चाय थी। ६:६० बजे उनका ड्राइवर भी आ गया। पूरे गांव में माया देवी और लाला ही था जिनके पास कार थी। माया देवी के पास इक मर्सिडीज, एक फॉर्च्यूनर और इक थार थी।
ड्राइवर: कौन सी गाड़ी निकालू।
माया देवी: मर्सिडीज निकालो।
ड्राइवर गाड़ी निकालने चल दिया और माया देवी बेसब्री से लल्लू का इंतजार करने लगी। लल्लू को तैयार करके सुधा नीचे लाई और एक बाग नौकर को दिया गाड़ी में रखने को। दोनो ने हल्का नाश्ता किया। ठीक सात बजे माया देवी की गाड़ी सड़को पर दौड़ने लगी। तीन घंटे का सफर था गाड़ी में गाने चल रहे थे पर कोई किसी से कोई बात नही कर रहा था। गाड़ी में पूर्ण सन्नाटा था गाने चलने के बावजूद।
११:०० बजे का अपॉइंटमेंट लेके दिया था सरला ने। ठीक १०:४५ पर माया देवी की गाड़ी डॉक्टर के क्लिनिक के बाहर खड़ी थी जहा पर बहुत बड़ा बोर्ड लगा था डा. रश्मि देसाई (सेक्सोलॉजिस्ट एंड कंसलटेंट)।
डा. रश्मि देसाई एक बहुत ही खूबसूरत ३६ वर्षीय शादीशुदा गदरई हुई महिला थी। इनके पति भी डॉक्टर है। रश्मि एक खुले विचारों की महिला है। इन्हे चुदाई का इतना शौक है की ये अपने पति के पीठ पीछे कई बार लुफ्त उठाती है।
मायादेवी और लल्लू दोनो इस समय रश्मि के सामने थे। रश्मि को देखते ही लल्लू की लार टपकाने लगी।
रश्मि: बोलिए क्या प्राब्लम है।
मायादेवी ने लल्लू की तरफ देखा।
मायादेवी: मेरी बेटी सरला जो मेडिकल कॉलेज में पढ़ती है उसने आपको बताया होगा।
रश्मि: हां ओके याद आया। बताया था उसने। सो साइज का प्रोब्लम है।
माया देवी: वो ..... वो
रश्मि समझ गई की माया देवी असहज हो रही है उस बच्चे की मौजूदगी में। रश्मि ने नर्स को बुलाया और लल्लू को एग्जामिनेशन रूम में ले जाने को बोला। लल्लू नर्स के साथ चला गया।
रश्मि: अब आप खुल के बोल सकती है। वो दूसरे कमरे में गया।
माया देवी: ये मेरा भतीजा है लल्लू। एक तरह से मानसिक रोगी है। उसके दिमाग का विकास ५ साल की उम्र में रुक गया था।
रश्मि: कोई घटना घटी थी क्या या फिर कोई बीमारी।
माया देवी: जी दोनो चीज हुई थी इसके पिताजी का देहांत और ये ३ महीने बुखार में रहा। फिर उसके बाद जब ये ठीक हुआ तब से इसका विकास नहीं हुआ।
रश्मि: कोई रिपोर्ट्स लाई है।
माया देवी ने सारी रिपोर्ट्स प्रिस्क्रिप्शन सब रश्मि को दे दिया। १५ मिनट तक रश्मि रिपोर्ट्स पड़ती रही।
रश्मि: इन रिपोर्ट्स से साफ पता चलता है कि दिमाग के किसी कोने में कोई घटना दफन है जिसने इस बच्चे का ब्रेन डेवलपमेंट रोक दिया। अब नया प्रोब्लम क्या है।
माया देवी के अंदर संकोच था।
रश्मि: देखिए मैं एक डॉक्टर हू, आप मुझसे खुलके बात कर सकती है।
माया देवी: वो.. वो दो दिन पहले मैंने लल्लू, हम इसे प्यार से बुलाते है वैसे इसका नाम वीर प्रताप है, को डांट दिया था। ये गुस्से में घर छोड़ के चला गया। हमने इसे रात भर ढूंढा पर ये हमे अगली सुबह नदी किनारे बेहोश मिला। जब घर आया तो इसकी मां इसे नहलाने के लिए गई तो वो देखा। (माया देवी चुप हो गई)
रश्मि: क्या देखा आपने। बताइए तभी कुछ हेल्प कर पाऊंगी।
माया देवी: वो .....वो इसका लिंग एक दम से बड़ा हो गया। (माया देवी एक सांस में बोल गई)
रश्मि: बड़ा हो गया कितना बड़ा कुछ आइडिया है। दुगना तिगुना या फिर कम।
माया देवी: जी वो ..... वो कम से कम ५ या ६ गुना बड़ गया और मोटाई कम से कम ४ गुना।
रश्मि की कानो से धुआं निकल गया। उसकी चूत ऐसे लन्ड को देखने के लिए कुलबुलाने लगी। मायादेवी को नही दिखा पर रश्मि ने अपनी चूत की जांघो के बीच भींच लिया। रश्मि ने खुद को संभाला और नर्स को लल्लू को रेडी करने को कहा। लल्लू उन दोनो की सारी बाते सुन रहा था और रश्मि का चुदासी पना भी देख रहा था। नर्स ने लल्लू को एक गाउन दिया पहनने को और उसे पैंट शर्ट उतारने को कहा। लल्लू भी एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह सारी बात मानता गया। कच्छे के उभार को देखे के नर्स समझ गई की अंदर एक नंबर का टंच मॉल हैं।
रश्मि कमरे में दाखिल हुई। नर्स की मुस्कुराहट से वो समझ गई थी कुछ हटके है। रश्मि ने नर्स को बाहर जाने का इशारा किया और बोला नेक्स्ट अपॉइंटमेंट को वैट करने के लिए।
रश्मि: हेलो लल्लू।
लल्लू: (हाथ जोड़ते हुए) नमस्ते डॉक्टर साहिबा।
लल्लू की मासूमियत पर रश्मि के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
रश्मि: अच्छा लल्लू तुम्हे दर्द होता है पेनिस मेरा मतलब लिंग पर।
लल्लू: पेनिस, लिंग मतलब।
रश्मि ने उसके लन्ड की तरफ इशारा किया।
लल्लू: अच्छा लोड़े पर। (सोचते हुए) नही तो।
लोड़ा शब्द सुनते ही रश्मि के कानो से धुआं निकलने लगा। उसकी पहले से ही गीली चूत और रस टपकाने लगी। फिर भी रश्मि ने खुद को संभाला।
रश्मि: कुछ निकलता है इसमें से।
लल्लू: है सुसु निकलता है और क्या।
रश्मि: कुछ और निकला हो कभी रात में दिन में सोते हुए।
लल्लू: (सोचते हुए) हां याद आया परसो मुझे हल्का सा दर्द हुआ तो माई ने लोड़े पर तेल लगाया और थोड़ी मालिश भी की तो फिर इसमें से बहुत सारी चिपचिपी सुसु निकली।
रश्मि: कितना एक चम्मच या दो या तीन।
लल्लू: मेरे खयाल से १५ या २० चम्मच।
रश्मि की हालत खराब होने लगी उसका गीलापन बड़ता जा रहा था बार बार लोड़ा सुनने पर और लल्लू के वीर्य की मात्रा सुन कर।
रश्मि: अच्छा लल्लू मुझे तुम्हारा लिंग देखना होगा कही कोई चोट तो नहीं लगीं। तो अपना गाउन ऊपर करो।
लल्लू ने वैसा ही किया। लालू का गाउन छाती पर पड़ा था और उसके कच्छे का उभार देख कर रश्मि की सांसे ऊपर नीचे होने लगी। रश्मि ने कांपते हाथो से लल्लू का कच्छा नीचे किया और जो सामने देखा उसकी आंखे फटके बाहर आ गई। रश्मि ने पचासों लन्ड खाए होंगे पर इस जैसा कोई नही था। रश्मि की जीव लार टपकाने लगी। ऐसा लंबा और मोटा लोड़ा वाकई में लोड़ा था, उसने आज तक नही देखा।
उसका दिल तो चाह रहा था की अभी कपड़े उतार कर लन्ड को अपनी चूत की गुफा में छुपा ले पर अभी वक्त नहीं था, उसे अभी और भी पेशेंट देखने थे और उसका पति भी कभी भी आ सकता था। रश्मि ने खुद की संभाला पर नजरे लन्ड से हट नही रही थी।
लल्लू: कुछ टेस्ट करने होंगे। तुम इस डिबिया में यूरीन मतलब सुसु कर दो।
लल्लू तुरंत ही खड़ा हो गया और वही पर सुसु करने लगा।
रश्मि: आरे रे लल्लू यहां नही, वाशरूम में करके आओ।
रश्मि ने लल्लू को वाशरूम का रास्ता दिखाया और लल्लू चल पड़ा उस तरफ। लल्लू के जाते ही रश्मि ही अपनी चूत को दबोच लिया और मन में बोली " रो मत कुतिया, खिलाऊंगी तुझे ये लोड़ा भी। बस एक दिन रुक जा"। रश्मि अपने खयालों में गुम थी की लल्लू बाहर आ गया। लल्लू ने मूत से भरी शीशी रश्मि को दी। वैसे तो रश्मि हाथ नही लगाती पर पता नही क्यों उसने लल्लू के हाथ से वो शीशी ली और रखने के लिए पलटी तो न जाने क्यों उसने उस शीशी को सूंघ लिया और सूंघते ही उसकी चूत और बहने लगी। कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था पर उसे करना था।
रश्मि का जिस्म उसका साथ नही दे रहा था पर उसे डॉक्टर होने का पूरा फर्ज निभाना था। उसने कांपते हाथो से लल्लू के लन्ड को पकड़ा। नॉर्मली पेशेंट के साथ ये पकड़ बड़ी ढीली होती है पर आज उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी और बड़ती चली गई। इस समय इक डॉक्टर ने लन्ड नही पकड़ा था बल्कि इक चुदासी औरत जो लन्ड की भूखी थी उसने पकड़ा हुआ था।
लल्लू: आह डॉक्टर साहिबा।
रश्मि: (होश में आई) क्या हुआ दर्द हुआ।
लल्लू: (शरमाते हुए) नही गुदगुदी हुई।
रश्मि के चेहरे पर भी हसी आ गई। वो सोचने लगी की कुदरत भी क्या करिश्मा करती है। जिसके पास इतना नायाब हथियार है उसको इसकी कदर ही नही है।
रश्मि: अच्छा लल्लू हमे तुम्हारा सीमेन मतलब वो चिपचिपी सुसु भी चाहिए।
लल्लू: पर वो तो माई ने कराई थी मै कैसे कर सकता हूं।
रश्मि के लिए नई समस्या पैदा हो गई। वो क्या करे और उसके अंदर की चुदासी औरत ने जवाब दिया " तू ही चूस के निकाल दे इसकी चिपचिपी सुसु" और उसके चेहरे पे कुटिल मुस्कान फैल गई। रश्मि के हाथ में अभी भी लल्लू का लन्ड था और उसकी पकड़ मजबूत होती चली गई। रश्मि ने अपने होठों पर जीव चलाई। रश्मि ने लल्लू के लन्ड की चमड़ी को पीछे किया और उसका सुपाड़ा उभार के सामने आ गया। रश्मि की प्यास और बड़ गई जो अब केवल लल्लू की चिपचिपी सुसु से ही भुज सकती थी। रश्मि झुकती चली गई और उसने लल्लू का सुपाड़ा अपनी जीव से चाट लिया। लल्लू के लन्ड की खुशबू में वो खो गई। अपने होठों से वो लल्लू के संपूर्ण लोड़े को गीला करने लगी।
रश्मि की चूत इतना पानी छोड़ रही थी की उसकी पूरी पैंटी भीग चुकी थी। रश्मि ने लल्लू के लन्ड पर थूका और पूरे लन्ड पर मल दिया।
जितना समा पाया उतना लन्ड मुंह में भर लिया और चुपे लगानी लगी।
लल्लू: आह ओह।
लल्लू की आहे निकलने लगी तो रश्मि ने लल्लू के चेहरे को तरफ देखा तो पाया उसकी आंखे बंद है। रश्मि फिर जुट गई अपने काम पर। वो जितना होता लन्ड मुंह में ले जाती और जब तक चुपे लगाती जब तक उसकी सांस उखड़ नही जाती। रश्मि लल्लू के लन्ड को एक मिनट भी आराम नही लेने दे रही थी जब लन्ड मुंह से बाहर होता तो वो उसे मुठियाती रहती और उसके टट्टे चूसने लगती।
लल्लू तो बस आंखे बंद कर मजे ले रहा था। उसे येडा बनके पेड़ा खाना था। लल्लू कुछ भी हरकत नही कर रहा था। वो बस सर पीछे किए हुए लन्ड चुसाई के मजे ले रहा था।
रश्मि किसी कुशल रण्डी के जैसे लन्ड चूसे जा रही थी। एक हाथ उसका लन्ड पे था और दूसरा उसकी खुद की चूत पर। वो अपनी चूत भी उतनी ही तेजी से रगड़ रही थी जितनी तेजी से लल्लू का लन्ड चूस रहीं थी। वो हैरान थी की उसकी चुसाई से अच्छे अच्छे मर्द १० मिनट में अपना पानी छोड़ देते हैं और ये मंदबुद्धि बालक पिछले आधे घंटे से टीका हुआ हैं। रश्मि पूरा लन्ड निगलने की पूरी कोशिश करती पर उसकी औकात नही थी इस विकराल लन्ड को पूरा अपने मुंह में समाने की। पर फिर भी वो कोशिश करतीं रही और लल्लू का लन्ड चुस्ती रही। और कुछ क्षण बाद वो समय आ गया।
लल्लू: आह ओह डॉक्टर, हट जाओ सुसु आने वाली है। आह
रश्मि ने तो जैसे सुना ही नहीं वो और तेजी से लल्लू का लन्ड चूसने लगी और उतनी ही तेजी से अपनी चूत रगड़ने लगी। वो दूसरी बार झड़ने की कगार पर थी। उसकी प्यास अब सिर्फ लल्लू का वीर्य ही भुजा सकता था। और वो क्षण भी आया जब वीर्य की पहली धार ने रश्मि के मुंह में अपनी उपस्थिति हाजिर करी।
एक दो तीन चार इसके बाद रश्मि गिनती भूल गई की कितनी बार लल्लू के लन्ड ने वीर्य की धार छोड़ी। रश्मि ने भी पूरा फर्श गिला कर दिया था। वो इतना तो चुदके भी नही झड़ी कभी। लल्लू के वीर्य का टेस्ट करके उसके मन में एक ही आवाज निकली "व्हाट आ टैस्ट लल्लू"