भाग ६
लल्लू सपना से सेटिंग करके घर की ओर चल दिया। लल्लू और लल्लू के अंदर का पिशाच बहुत खुश था की आज उसे मखन मलाई जैसी चूत मिलेगी। वो रास्ते भर सपना के गदराय जिस्म की कल्पना करता रहा। जब वो घर के करीब पहुंचा तब उसे कमला अपनी बड़ी बहन दिखाई दी छत पर। लल्लू के मुंह में उसको देखते ही पानी आ गया। कमला घाघरा चोली पहने छत पर टहल रही थी। लल्लू के मन में कमला के साथ मस्ती करने की सूझी।
लल्लू घर के अंदर घुस अपने चाचा के कमरे से पतंग और चकरी ले आया और छत की तरफ जाने लगा।
माया देवी: अरे लल्लू पतंग लिए कहा जा रहा हैं।
लल्लू: छत पर पतंग उड़ाने और कहा।
रतना: तुझे पतंग उड़ानी आती भी है। (हस्ते हुए)
लल्लू: चाची मैं हर तरह की पतंग उड़ा सकता हूं। कभी ढील देनी है और कब खींचा मरना है मुझे सब आता है।
लल्लू ने बात तो बोल दी पर उसके इशारे कुछ अलग थे। जब उसने बोला की कब ढील देनी है तो लल्लू की कमर का नीचे का हिस्सा आगे हुआ और कब खींचा मरना है तो झटके से कमर के नीचे के हिस्से को वापस खीच लिया। लल्लू की बात सुन और इशारे माया देवी और रतना मुस्कुरा पड़ी और उनकी आंखे शर्म से नीचे हो गई। लल्लू छत पर पहुंच गया और उसकी आंखे कमला से चार हुई। कमला भी लल्लू को पतंग के साथ देख बहुत हैरान हुई।
कमला: क्यू रे, तुझे आती है पतंग उड़ानी।
लल्लू: अभी थोड़ी देर में देखना दीदी पूरा आसमान साफ कर दूंगा।
लल्लू अपनी पतंग उड़ाने में लग गया और कमला रतना द्वारा लल्लू के लन्ड के व्यक्खायन में खो गई। वो खो गई लल्लू के लन्ड में। कैसा दिखता होगा, कितना लंबा होगा, कितना मोटा होगा और जब उसकी कुंवारी चूत में जायेगा तो कैसा लगेगा। इन सब के बारे में सोच कर ही उसकी पलके भारी होने लगी और नीचे चूत में चुनमुनी से लगने लगी।
"हाई बो काटे" इस आवाज के साथ कमला अपनी चुदासी दुनिया से बाहर निकली। उसने नजर उठाके देखा तो लल्लू की पतंग आसमान छू रही थी। वो एक कुशल पतंगबाज के तरह हर पेचा लड़ा रहा था और सबकी पतंगे धूल चाटती जा रही थी। आसमान पे अब सिर्फ लल्लू का राज था।
कमला: (प्रशंसा भरे स्वर में) अरे वाह लल्लू, तू तो बहुत बढ़िया पतंग उड़ाता है।
लल्लू: मैने पहले ही कहा था दीदी की आसमान साफ कर दूंगा।
कमला: वो तो है भाई। मुझे भी सिखा दे।
लल्लू: तो आ जाओ दीदी। पकड़ो डोर।
कमला भी लल्लू के करीब चली गई। लल्लू अब ऐसी जगह था छत पर जहा से उसे नीचे से कोई नही देख सकता था। सबसे ऊंचा घर होने से कोई छत से भी नही देख सकता। दोपहर का समय कोई खेत में भी नही था। लल्लू अब निश्चिंत होकर कमला से मजे ले सकता था। कमला आगे खड़ी हुई और लल्लू उसके पीछे। उसने कमला के इर्द गिर्द अपनी बाहें डाली और कमला को डोर पकड़ा दी। कमला और लल्लू बिलकुल चिपक गए।
लल्लू ने अपना विकराल लन्ड कमला की गांड़ से सटा दिया। जैसे ही लल्लू के लन्ड का स्पर्श कमला को अपनी अनछुई गांड़ पर हुआ, उसकी सिसकारी निकल गई।
कमला: आह आह लल.. ल लल्लू।
लल्लू: क्या हुआ दीदी।
कमला: (झेंपते हुए) कुछ नही लल्लू।
कमला की सांसे उसके काबू में न थी। उसकी धड़कन तेजी से धड़क रही थी। उसकी चूचियां ऊपर नीचे हो रही थी। लल्लू के लन्ड का एहसास होते ही कमला की कुंवारी चूत पानी रिसने लगी। उसको अपनी पैंटी पर गीलेपन का एहसास होने लगे। उसकी आंखे बंद होने की कगार पर थी।
लल्लू: आप ठीक से खड़ी हो जाओ दीदी।
लल्लू ने कमला के चिकने सपाट पेट पर हाथ रखा और कमला को बिलकुल खुद से चिपका लिया। अगर कपड़े न होते तो अबतक लल्लू का लन्ड कमला की गांड़ की वादियों के सैर कर रहा होता। पहली बार कमला को लल्लू के लन्ड की लंबाई और मोटाई का एहसास हो रहा था। कमला की सांस जैसे उसके गले में अटक गई और उसका मुंह खुला का खुला रह गया।
लल्लू वहा रुका नही वो एक हाथ से कमला के पेट सहला रहा था और नीचे अपने लन्ड को कमला की गांड़ पे रगड़े जा रहा था। कमला ठंडी ठंडी आहे भरने लगी।
कमला: आह ह ल ल ओ लल्लू क्या कर रहा है।
लल्लू ने कोई जवाब नही दिया और अपना काम जारी रखा। उसके होठ कमला की पीठ पर घूमने लगे। वो अपनी जुबान से कमला की गोरी पीठ चाटने लगा। कमला मुंह से तो लल्लू से पूछ रही थी पर उसका जिस्म कुछ और कहानी बयां कर रहा था। लल्लू की रगड़ से ताल से ताल मिलके उसकी गांड़ हिल रही थी। चाची के साथ वो ये सब कर चुकी थी पर लन्ड से इतना मजा आता है उसने सपने में भी नही सोचा था। लल्लू को कमला की हालत का अंदाजा हो रहा था वो मंद मंद मुस्कुरा रहा था।
लल्लू ने अब पतंग की डोर बिलकुल छोड़ दी और थाम लिए कमला के रस भरे आम। लल्लू ने कमला की चुचियों को दबाना शुरू कर दिया। कमला अब आपे से बाहर हो चली थी। उसे एहसास हो चला की चूत का पानी रिस के उसकी जांघें गीली करने लगा है। उसने अपना सिर लल्लू के कंधे पर रख दिया और मस्ती के सागर में गोते लगाने लगी।
कमला: आह ह ओ आई ल ल लल्लू मत कररररररररर। बहन हु तेरी।
लल्लू बिलकुल कमला के कान के पास
लल्लू: कल रात को तू ही तो कह रही थी लन्ड लन्ड होता है। बस चुपचाप मजे कर। (और उसके कान की लो को चूसने लगा)
कमला अब कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं थी। लल्लू ने चारो तरफ से कमला को घेर लिया था। पहली लन्ड की रगड़ गांड़ पे, दूसरी उसके पेट को सहलाना, तीसरा उसकी चूचियों का मर्दन और चौथा उसके होठ जो कमला के जिस्म का हर कोना चूम रहे थे। लल्लू ने रगड़ना छोड़ दिया पर कमला उस पड़ाव पर पहुंच चुकी थी की वहा से वापस आना उसके लिए नामुमकिन था। कमला खुद अपनी गांड़ लल्लू के लन्ड पर रगड़ने लगी। उसकी आहे रूके न रुक रही थी।
कमला: आह आह आई ओह आह
लल्लू ने अपना आखिरी दांव खेला। उसने घाघरे के ऊपर से ही कमला की चूत को दबोच लिया। बस लल्लू ने इतना ही किया की कमला के सब्र का बांध टूट गया। कमला झड़ने लगी। कमला का सिर लल्लू की छाती पर लुड़क गया और भारी भारी सांसे लेने लगी। लल्लू के हाथ अभी भी कमला की चूत को दबोचे हुए थे।
कमला की सांसे जब दुरुस्त हुई तब वो समझी उसके साथ क्या हुआ अभी अभी। उसकी आंखे शर्म से झुक गई। उसे अपनी स्थिति का अंदाजा हुआ की लल्लू के हाथ एक चूत पर और दूसरा उसकी रस भरी चुचियों पर। कमला ने तुरंत लल्लू को पीछे धक्का दिया और नीचे की तरफ भागी। उसने पीछे मुड़ एक बार देखा तो लल्लू उसके रस से सनी हुई अपनी उंगलियां चाट रहा था। ये देखते ही कमला की चूत एक बार फिर फड़फड़ाने लगी, पर वो रुकी नहीं और नीचे भाग गई।
लल्लू ने अपनी पतंग को देखा जो एक पेड़ में अटकी हुई थी। उसने अपने लन्ड को ठीक किया जो अब पूरी औकात में था और चरखी लपेटने लगा।
सब रसोई में बैठकर खाना खा रहे थे।
माया देवी: और कैसी रही तेरी पतंगबाजी लल्लू।
लल्लू: बहुत बढ़िया ताई मां। सब का पानी निकाल दिया मैंने चाहे तो कमला दीदी से पूंछ लो।
कमला का निवाला उसके गले में अटक गया और वो खांसने लगी। सब लोग कमला को पानी पिलाने में लग गए। कमला कुछ ठीक हुई और बिना खाना खाए अपने कमरे में चली गई।
सब खाना खाके आंगन में बैठे हुए थे। तभी लल्लू एक गन्ने की गांठ(जिसमे १५ २० गन्ने एक साथ बंधे हुए होते हैं) उठाए हुए आया। लल्लू के बल की प्रशंसा सब की आंखों में थी।
लल्लू: माई मैं राजू के घर जा रहा हूं।
सुधा: अरे राजू तो तुझे परेशान करता है ना लल्लू।
लल्लू: हां माई करता था पर आज सपना काकी ने हमारी दोस्ती करा दी, तो उसने मुझे अपने घर मालपुए खाने बुलाया है।
सुधा: अच्छा ठीक है जा। दीदी ललन(लठैत) को साथ भेज दो।
लल्लू: अरे नही माई, अब वो मेरा दोस्त है। चिंता मत कर।
माया देवी लल्लू में आए नए आत्मविश्वास से बहुत प्रभावित थी।
माया देवी: रहने दे सुधा। लल्लू खुद अपनी देख रेख कर सकता है। क्यों लल्लू।
लल्लू: जी ताई मां।
माया देवी: ये गन्ने की गांठ क्यों उठा लाया है।
लल्लू: ताई मां उसने मालपूए खाने अपने घर बुलाया है, तो गांव की मुखिया के यहां से कोई खाली हाथ कैसे जा सकता है। और फिर मेरी नई नई दोस्ती हुई है तो कोई उपहार तो लेके जाऊ।
लल्लू की बुद्धिमानी पर सारे के सारे निहाल हो गए।
लल्लू घर से निकल दिया अपने पहले शिकार की ओर।
उधर सपना जब से घर आया थी उसकी चूत कुलबुलाए जा रही थी। उसे हर आहट पर ऐसा लगता जैसे लल्लू आ गया हो। चूत चिकनी करने के बाद सपना ने अपने शरीर पर भी बाल साफ किए। वो बस लल्लू के इंतजार में पलके बिछाए बैठी थी।
तभी उसके घर के प्रविष्ट द्वार पर सांकल बजने की आवाज आई। सपना दौड़ती हुई द्वार पर पहुंची। उसने द्वार खोला तो सामने लल्लू खड़ा था कंधे पर गन्ने की गाठ लेके। लल्लू अंदर आया तो सपना ने दरवाजा बंद किया और लल्लू की तरफ देखा तो पाया लल्लू को उसके हुस्न में खोया हुआ हैं। लल्लू का मुंह खुला का खुला रह गया और रहता भी क्यों न सपना लग ही इतनी कातिल रही थी। सपना ने एक घाघरा चोली पहना हुआ था बिना चुन्नी के। चोली इतनी कसी हुई की सपना के दूध से भरे कटोरे आधे से ज्यादा दिख रहे थे। पीठ पर एक छोटी सी डोरी बस बाकी बिलकुल नंगी थी। घाघरा केवल उसके घुटनो तक था जो उसकी केले के तने के समान चिकनी टांगों की नुमाइश कर रहा था। सपना समय बरबाद नहीं करना चाहती थी।
सपना: क्यू रे लल्लू ये गन्ने की गांठ क्यों लाया।
लल्लू: अरे काकी जब तुम अपना रस से भरा हुआ मालपुआ मुझे खिलाऊंगी तो मैं भी तुम्हें अपने गन्ने का रस पिलाऊंगा।
लल्लू की बात सुनते ही सपना की चूत बहने लगी। उसने सोचा जब कपड़े खोलने ही है तो शर्म क्यों करू। उसने लल्लू के सामने ही अपनी चूत को दबोच दिया। लल्लू की आंखे भी सपने के जांघें के जोड़ पर अटक गई। जब सपना ने हाथ हटाया तो वहा पर एक छोटा सा गिला धब्बा था। लल्लू के तो मुंह में पानी आ गया।
लल्लू: काकी लगता है मालपुआ पूरा रस से भरा हुआ हैं।
सपना: (लल्लू की बात पर हल्का सा झेप गई) हां लल्लू पूरा रस से भरपूर हैं पर ये तो बता की तेरे गन्ने में इतना रस हैं की मेरी प्यास भुजा सके।
लल्लू: काकी इतना रस हैं मेरे गन्ने में की तुझे पूरा रस से नहला दूंगा।
दोनो दुइआर्थी बातो से एक दूसरे को गरम कर रहे थे। सपना की चूत और लल्लू का लन्ड दोनो उफ़्फान पर थे।
लल्लू: काकी बाते ही करती रहेगी या फिर मालपुआ भी खिलाएगी।
सपना फट से उठ के रसोई में गई और मालपुआ इक कटोरी में करके ले आई। जब वापस कमरे में पहुंची तो लल्लू को देख उसकी आंखे फटी रह गई। लल्लू सामने बैठा एक गन्ना छील रहा था और उसके जिस्म पे केवल एक कच्छा था जो उसके उठान को छुपाने में कामयाब नही था। लल्लू सपना की आंखों में तैरते हुए वासना के लाल डोरे साफ साफ देख पा रहा था।
लल्लू: काकी तेरे लिए गन्ना छील रहा हू ताकि तू आराम से चूस सके।
सपना: (लल्लू के कच्छे में उठान को घूरे जा रही थी।) तू ऐसे क्यू बैठा है लल्लू, कपड़े उत्तार कर।
लल्लू: उफ्फो काकी, अगर तुम्हारा मालपुआ खाते हुए रस कपड़ो पे गिर गया तो कपड़े खराब हो जायेंगे और माई गुस्सा करेंगी।
सपना ने लल्लू की बात को समझते हुए अपनी गर्दन हिलाई और लल्लू को मालपुए की कटोरी पकड़ा दी। लल्लू ने छिला हुआ गन्ना सपना को दे दिया। सपना लल्लू के सामने ऐसे बैठी थी जिससे लल्लू को उसके घाघरे के अंदर का पूरा नज़ारा मिले।
लल्लू भी महा कमीना था वो एक टक सपना के घाघरे के अंदर नजर टिकाए मालपुए को चूस चूस उसका रस निचोड़ने लगा। सपना ने जब ये देखा तो उसे ऐसा लगा जैसे लल्लू उसकी चूत का रस चूस रहा हूं। सपना की चूत फिर पानी छोड़ने लगी, सपना को इस खेल में बड़ा मजा आ रहा था वो भी पीछे कहा रहने वाली थी वो भी गन्ने को ऐसे चूसने लगी जैसे उसका लन्ड चूस रही हूं। कभी गन्ने को अंदर लेजाती कभी बाहर लाती और होठों के बीच में फंसाकर उस गन्ने पे चुपे लगती। लल्लू भी उसकी हरकत देख अपने लन्ड को सहलाने लगा। दोनो की आंखों में गजब की हवस थी।
सपना: लल्लू कैसा लगा मालपुआ।
लल्लू: काकी एक दम रस से भरा हुआ और कितना मुलायम है। जी करता बस इसका रस चूसता रहूं। वैसे काकी मेरा गन्ना कैसा लगा।
सपना: बिलकुल वैसा जैसा मुझे पसंद है। मोटा लंबा और पूरा रस से भरा हुआ।
लल्लू: मुझे मालूम था तुझे ऐसे ही पसंद होंगे काकी इसलिए ढूंढ कर ऐसे गन्ने लाया हू। पर काकी मालपुआ में एक कमी रह गई।
सपना: वो क्या भला लल्लू।
लल्लू: बस रबरी और होती मालपुआ के ऊपर तो मजा आ जाता।
सपना: बनाई थी रबरी पर राजू सारी चट कर गया। और दुबारा बनाने के लिए दूध बचा ही नहीं।
लल्लू: (सपना के दूध से भरे हुए कटोरे घूरते हुए) काकी पर तुझे देख के लगता नही की तेरे यहां दूध की कोई कमी होगी।
सपना लल्लू की बात का अर्थ समझ शर्मा गई। लल्लू उठा तो सपना को हैरत हुई।
सपना: कहां जा रहा हैं लल्लू।
लल्लू: मालपुआ लेने रसोई में।
सपना: ला मैं लाती हूं।
लल्लू: अरे काकी तू आराम से मेरा गन्ना चूस मैं अभी लेकर आता हूं।
लल्लू रसोईघर के लिए उठा और उसका औजार बिलकुल सीधा खड़ा था और सपना की प्यासी जवानी को सलामी दे रहा था। सपना आंखे फाड़े बस लल्लू के विशाल लन्ड को घूरे जा रही थी। उसकी चूत में इतनी खुजली होने लगी जैसे हजारों चींटियां उसकी चूत में छोड़ दी गई हो। वो दोनो जांघो से अपनी चूत में उठ रहे तूफान को रोके बैठी थी।
लल्लू को आगे क्या करना है ये वो सोच चुका था। जब वो रसोई से वापस आ रहा था तो उसने चाशनी से भरी हुई कटोरी सपना के ऊपर लुढ़का दी। चाशनी ने सपना के पूरे जिस्म को तर कर दिया। उसके कोमल कंधे, उसकी पहाड़ समान चुचियों हो, उसका मुलायम पेट हो या फिर उसकी चिकनी टांगे। रस से भीग जाने पर सपना को लल्लू पे थोड़ा गुस्सा आया पर उसे क्या मालूम ये चाशनी ही उसे चरमसुख तक लेके जायेगी।
सपना: ये क्या किया लल्लू।
लल्लू: माफ कर दो काकी। तुम्हारी चौखट से ठोकर लग गई। मैं अभी इसे साफ किए देता हूं।
लल्लू ने सपना को सोचने समझने का मौका नहीं दिया। वो फटाक से अपनी जीभ से सपना के कंधे पे गिरी चाशनी को चाटने लगा। ये पहला स्पर्श था लल्लू का। सपना के पूरे जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई। उसकी आंखे मदहोशी में बंद होने लगी।
सपना: आह क्या कर रहा है लल्लू।
लल्लू: काकी तुम्हे साफ कर रहा हूं। रस मैंने गिराया तो साफ भी मैं ही करूंगा।
लल्लू फिर से सपना के कंधे और गर्दन पर जीभ चलाने लगा। लल्लू रस के साथ साथ सपना के जिस्म का हर रस भी पी रहा था। सपना की आहे पूरे वातावरण को और कामुक बना रही थी। सपना भी लल्लू के बालो में उंगली फेरती और जब उन्माद और बड़ जाता तो बालो को मुट्ठी में भींच लेती।
लल्लू के हाथ भी अब चलने लगे, सपना के गुंदाज पेट पर। वो चाशनी लेता अपनी उंगली में और सपना की नाभी में उस उंगली को घुमा देता। सपना तो बस इतने पर ही पानी पानी हो रही थी। हर एक सेकंड के साथ उसकी मदहोशी बड़ती जा राहिब्थी। उसकी आंखे हवस के नशे से पूरी तरह बंद थी, वो तो बस लल्लू की हर हरकत का आनंद उठा रही थी।
लल्लू ने वो कदम उठाया जिसकी कल्पना सपना शाम से कर रही थी। लल्लू के हाथ में उसके मुलायम चूचियां थी जिनका लल्लू चोली के ऊपर से बड़े प्रेम से मर्दन कर रहा था। कभी एक चूची का कभी दूसरी चूची का मर्दन चालू था। सपना को आज एक मर्द के हाथो का एहसास हो रहा था, थोड़ा दर्द पर मजा बहुत ज्यादा। सपना की चूत इतना पानी छोड़ रही थी की उसका घाघरा तक गिला हो गया था। वो अपने हाथो से अपनी चूत सहला रही थी। लल्लू अभी भी सपना के दुग्ध भंडार में खोया हुआ था।
लल्लू: सपना तू तो कह रही थी घर में दूध नहीं है, पर इनमे तो दूध भरा हुआ है। (और जोर से दुग्ध कलश दबा दिए)
सपना: (लल्लू के मुंह से अपना नाम सुन अचंभा हुआ पर अच्छा भी लगा) काकी से सीधा नाम पर। बहुत कमीना है तू।
लल्लू: (हस्ते हुए) कमीना नही होता तो थोड़ी ना इस समय तेरे दूध से भरे हुए थन दबा रहा होता।
सपना: आह मूहे धीरे दबा। हा कही भागे थोड़ी ना जा रही हूं।
लल्लू ने पीछे से सपना की चोली में हाथ डाला पर हाथ ठीक से घुस नही पा रहा था क्योंकि चोली बहुत तंग थी। सपना हाथ पीछे लेजाकर अपनी चोली खोलने ही वाली थी की चिरररररररर की आवाज के साथ उसकी चोली दो पाटों में बट गई और कुदरत के बनाए हुए विशाल खरबूजे ताज़ी हवा में सांस लेने लगे। अब लल्लू के दोनो हाथो में सपना के दूध की भरी भरी टंकिया थी जिन्हें वो बेदर्दी से निचोड़े जा रहा था।
सपना: आह लल्लू उई आ चोली क्यू फाड़ दी लल्लू।
लल्लू: तुझे चोली की चिंता हो रही है अभी तो न जाने क्या क्या फटेगा। रही चोली की तो तुझे में इतनी चोलिया दिला दूंगा की दिन में छह छह बदलियों।
और लल्लू ने सपना के दूध से भरे हुए कलशों को मुंह में भर लिया। कभी वो रस भरे आमो की घुंडी को जीव से कुरेदता कभी दांतो से काटता या फिर कभी उन विशाल आमो को अपने मुंह में भरने की कोशिश करता। सपना तो बस मजे की कश्ती में सवार एक आनंद भरी यात्रा पर निकली हुई थी जिसमे उसकी आहे उसका भरपूर साथ दे रही थी।
सपना: आह ओह काट चूस ले लल्लू। खा जा इन्हे। और जोर से मसल। आई ओह ह आ बहुत अकड़ती हैं। सारी अकड़ निकाल दे इनकी। आह और बता इन्हे की एक मर्द ओह उह कैसे इनका मर्दन करता है।
सपना के आनंद की कोई सीमा नहीं थी। उसे इतना मजा कभी भी नही आया। सिर्फ चूचियां चूसने भर से उसे ऐसा लगा की वो झड़ जाएगी। वो बार बार अपने हाथ से अपनी चूत मसल रही थी। लल्लू ने उसका हाथ पकड़ा और अपने लन्ड पे रख दिया।
लल्लू: तुम मेरे मालपुए की चिंता छोड़ो और अपने गन्ने की चिंता करो।
सपना के हाथ लल्लू के लन्ड पर कसते चले गए, वो उसकी लंबाई मोटाई का अंदाजा लगाने लगी और जैसे ही उसे अंदाजा लगा वो अंदर तक सिहर गई। वो उस भीमाकर लन्ड को कच्छे के ऊपर से सहलाने लगी।
लल्लू के इतना चूसने से सपना के चूचे लाल पड़ चुके थे। जगह जगह लल्लू के काटने के निशान बने हुए थे, जिनमे मीठा मीठा दर्द हो रहा था। सपना भी अब लल्लू के लन्ड की गर्मी को महसूस करना चाहती थी वो लल्लू का कच्छा उतरने के कोशिश करने लगी पर सफलता मिल नही पा रही थी।
लल्लू: गन्ने के छिलके को ठीक से उतार तभी तो ठीक से रस चूस पाएगी।
सपना को लल्लू की बात समझ में आ गई और उसने दोनो हाथो से जोर लगाकर लल्लू का कच्छा नीचे कर दिया और जो सामने आया सपना का मुंह खुला रह गया। वो उस विकराल लन्ड के आकार को देख कर दंग रह गई।
लल्लू: चूस इसे। इसे प्यार दे और ये तुझे वो सुख देगा जिसकी तूने कल्पना भी नहीं की होगी।
लल्लू ने जैसे सपना को आदेश दिया। सपना भी जैसे कोई कटपुतली की तरह उस लन्ड को अपने हाथो में भर लिया। एक बड़े प्यार से उसे सहलाने लगी। लन्ड का सुपाड़ा जब चमड़ी से बाहर निकला तो सपना के मुंह में पानी आ गया और उसका मुंह खुलता चला गया। सिर्फ सुपाड़े को मुंह में भर के वो उसे जीव से कुरेदने लगी।
लल्लू: आह सपना आह ह आ क्या मस्त लन्ड चुस्ती हैं तू।
सपना अपनी तारीफ सुन पूरी शिद्दत से उस गधे समान लन्ड को चूसने लगी। वो हाथ से मुठयाती और मुंह से चूपे लगती। उसकी चुपो की गति धीरे धीरे बड़ने लगी और साथ साथ लल्लू के भारी भरकम टट्टो को भी सहलाती। पिशाच को ये सुख २०० साल बाद मिल रहा था। वो तो इस लन्ड चुसाई की मस्ती में सपना का मुंह चोदने लगा।
लल्लू: चूस मेरी रांड सपना। आह ओह हा आ चूस रण्डी साली।
सपना को ये सब गाली नहीं खुद की तारीफ लग रही थी। वो और जोर जोर से लन्ड को चूसने लगी।
लल्लू भी सपना का पूरा साथ दे रहा था और उसने पहली बार सपना के घाघरे के अंदर हाथ दिया और सपना के मालपुए को अपनी मुट्ठी में दबोच लिया। सपना के मुंह से लल्लू का लन्ड निकाल गया।
सपना: आह लल्लू।
लल्लू: क्या फूला हुआ रस से भरा मालपुआ हैं सपना मेरी रानी।
लल्लू ने सपना को दिखाते हुए अपनी उंगलियां जो सपना की चूत के रस से भरी हुई थी उन्हें अपने मुंह में डाला और चूसने लगा।
सपना के आंखे ये दृश्य देख कर बंद हो गई। उसने भी लल्लू के लन्ड को अपनी जीव से चाटकर लल्लू को जवाब दिया।
लल्लू ने सपना को खड़ा किया और सपना के मुंह से उसकी पसंदीदा मिठाई निकल गई। लल्लू ने सपना के होठों को अपने होठों की गिरफ्त में ले लिया और दोनो एक दूसरे के होठों को चूसने लगे।
सपना लल्लू के होठों को चूसने में इतनी मगन थी की उसे आभास ही नही हुआ की उसका घाघरा अब उसके जिस्म से उतर के धरती की आगोश में पड़ा हुआ है। इस कमरे में एक ही आवाज गूंज रही थी दो तपते हुए जिस्मों की रगड़ की। होठ से होठ, छाती से छाती और लन्ड से चूत की रगड़।
लल्लू ने सपना को अपनी गोद में उठा लिया। सपना आश्चर्य भरी निगाहों से लल्लू को देख रही थी। सपना लल्लू की असीम ताकत की कायल हो गई। लल्लू ने तभी सपना को उल्टा कर दिया। अब सपना के चेहरे के सामने लल्लू का विकराल लन्ड था और लल्लू के सामने रस से भरा हुआ मालपुआ। लल्लू की जीव लपलपाने लगी। सपना अगर इस समय लल्लू उर्फ पिशाच की जीव देख लेती तो शायद बेहोश हो जाती। गज भर लंबी ज़ुबान जो सपना की चूत में जाने को बेताब थी।
सपना ने लल्लू के लहराते हुए लन्ड को अपने मुंह में पनाह दी। वो फिर से जुट गई लल्लू के लन्ड को चूसने में। लल्लू भी कहा पीछे रहता उसकी लपलपाती जीव ने भी सपना की चूत में शरण ले ली। पहली बार जब लल्लू की जीव ने सपना की चूत के होठों को छुआ तो उसकी आंखे बंद हो गई।
सपना के लिए नया अनुभव था। आज तक किसी ने भी उसकी चूत को जीव से नही छेड़ा था। लल्लू की जीव सपना की चूत के हर अनछुए भाग को भेद रही थी। जितनी अंदर तक लल्लू की जीव सपना की चूत को कुरेद रही थी उतनी ही शिद्दत से सपना लल्लू का लोड़ा चूस रही थी। आलम कुछ ऐसा था की लल्लू ने नीचे से झटके देने शुरू किए और सपना का मुख चोदन करने लगा। लल्लू की जीभ ने सपना के अंदर वो उबाल पैदा कर दिया जिस के लिए सपना वर्षो से तड़प रही थी। सपना की गांड़ भी हिलने लगी क्योंकि उबाल उफान पर था।
लल्लू ऐसी ही सपना को उठाए उसे अंदर कमरे की तरफ ले गया और बिस्तर पर लेट गया। लल्लू नीचे से सपना की चूत चटाई चालू थी और सपना उप्पर लन्ड चुसाई चालू।
सपना के मुंह में लल्लू का लोड़ा न होता तो अब तक पूरे गांव को पता चल जाता की सपना की चूत चटाई चल रही है। आखिर वो समय भी आ गया जब सपना के आनंद को सीमा लांघनी पड़ी और उसकी चूत ने मदन रस छोड़ दिया।
सपना: आह आ हो आई आ ओ ल लल्लू ये क्या कर दिया तूने। बिना चोदे हो झाड़ दिया।
लल्लू को सपना की बात का कोई असर नहीं हुआ, वो तो बस सपना की चूत से निकली एक भी बूंद बरबाद नही करना चाहता था। सरप सरप की आवाजे पूरे कमरे में गूंज रही थी।
लल्लू: कितना मीठा रस है तेरी चूत का मेरी रण्डी। (और अपने होठों पर जुबान फेरने लगा)
सपना: काकी से रानी और रानी से रण्डी। बहुत बड़ा कुत्ता हैं तू।
लल्लू ने सपना के होठ चूम लिए।
लल्लू: अभी तो तुझे कुत्तीया भी बनाऊंगा। (और सपना की जांघें मसल दी)
सपना: आह तो बना ना। रोका किस ने हैं। मैं तो कब से तड़प रही हूं।
लल्लू ने अब देर करना ठीक नहीं समझा। उसने अपना लन्ड सपना की चूत पर घिसना शुरू कर दिया। सपना तड़प उठी।
सपना: मत तड़पा लल्लू। घुसेड़ दे अपना मूसल। भर दे मेरी चूत। आह
लल्लू ने लन्ड को चूत के मुहाने पर रखा और हल्का सा झटका दिया सिर्फ लन्ड का टोपा ही घुस पाया।
सपना: आई मां। इंसान का है या गधे का लोड़ा है। आई ऊऊई
लल्लू ने सपना के बातो पर ध्यान नहीं दिया और अपने लोड़े को उसकी मंजिल तक पहुंचाने में लगा रहा। लल्लू ने टोपा बाहर को खींचा और एक तेज तर्रार शॉट मारा। धक्का इतना तेज था की सपना भी ऊपर को सरक गई पर लन्ड अभी एक तिहाई ही घुस पाया। सपना की चीख से पूरा घर गूंज उठा।
सपना: आ आई मां। आराम से कर लल्लू। बहुत बड़ा हैं तेरा। आई मां मर गई।
लल्लू एक कुशल खिलाड़ी की तरह डटा रहा। लल्लू ने सपना की चुचियों को चूसना शुरू कर दिया। कभी चूचियां चूसता तो कभी गर्दन। क्षण भर के भीतर सपना को आराम मिला और वो नीचे से अपनी गांड़ उठाने लगी। लल्लू ने इस बार सपना के होठों को चूसना शुरू कर दिया और अपना लोड़ा बाहर खींचा और फिर एक जोरदार धक्का मारा जिससे सपना की आंखे बाहर को निकल आई। वो अपना सर पटकना चाहती थी और इस दर्द को बयां करना चाहती थी पर लल्लू की पकड़ ने करने ना दिया। लल्लू शांत ऐसे ही पड़ा रहा और सपना के होठों को चूसता रहा। उसके हाथ सपना के दुग्ध भंडार का मर्दन कर रहे थे। फिर वो क्षण भीं आया जब सपना एक बार फिर से अपनी गांड़ उठाने लगी। पर इस बार लल्लू का धक्का उसे उसकी मंजिल तक ले गया। सपना की चूत में लल्लू का लन्ड जड़ तक समा चुका था। सपना को ऐसा लगा की जैसे उसकी चूत की दीवारों को किसी ने दो पाटों में बांट दिया हो। असीम पीड़ा हो रही थी उसे। सपना की आंखे दर्द के मारे हल्की सी नम थी पर इक खुशी भी की उसने इतना बड़ा लन्ड अपने अंदर समा लिया। दोनो शांत थे। ये वासना के तूफान से पहले की शांति थी।
सपना की गांड़ की हरकत से लल्लू समझ गया की लन्ड अपनी जगह बना चुका है। अब तूफान नही थमेगा सब कुछ उड़ा ले जायेगा। लल्लू ने धीरे धीरे झटके मरने शुरू किए। हर झटका सपना को अपनी बच्चेदानी पर महसूस हो रहा था।
धीरे धीरे लल्लू के धक्कों की रफ्तार बड़ने लगी और दर्द की जगह सपना को स्वर्गिक आनंद की प्राप्ति होने लगी। लल्लू ने सपना के होठ अपनी गिरफ्त से रिहा कर दिए। सपना के हाथ लल्लू की उठक बैठक करती हुई कमर पर चलने लगे। वो लल्लू को पूरा अपने अंदर समा लेना चाहती थी। उसने जितनी हो सके अपनी टांगे खोल दी।
सपना: आह ओह आह ऊ ओ ल लल्लू चोद हा आह
सपना की गांड़ लल्लू के धक्कों से ताल से ताल मिलाने लगी। लल्लू ने जब यह देखा तो उसने अपनी रफ्तार और बड़ा दी। सपना को जीवन में पहली बार अपनी चूत भरी हुई लग रही थी। लल्लू को भी ऐसी कसी हुई चूत मारने में मजा आ रहा था।
लल्लू: क्या कसी हुई चूत है रण्डी। इसे चोद चोद के भोसड़ा बना दूंगा।
सपना: आह बना दे हा ओ जा भोसड़ा। चोद और चोद कुत्ते।
लल्लू भी अब पूरे जोश में था। वो तबापतोड धक्कों पे धक्के मर रहा था। और हर धक्के के साथ सपना चुदाई की नई परिभाषा जान पा रही थी। सपना को आज औरत होने का पूर्ण सुख मिल रहा था।
सपना: आह ओ हा ऊ आह आज तूने आह औरत होने का पूर्ण सुख दिया है। मैं तेरी गुलाम हो गई। आह ऊ हा। चोद मुझे। बना ले रण्डी अपनी। आह अब से जो बोलेगा वो करूंगी। आह बस मुझे चोदता रह। आई ऊ ए
लल्लू: जो बोलूंगा करेगी।
सपना: हां। तू जो बोलेगा वो करूंगी।
लल्लू: अपने बेटे के सामने चुदवाइगी। बताएगी उसे हराम के जने को की उसका बाप कौन है।
सपना: आह आई मां। आह उस निकम्मे के सामने क्या तुझसे तो मैं पूरे गांव के सामने चुदवा सकती हूं। आई ओह
लल्लू सपना की बात सुन और वेग से चोदने लगा पर सपना भी कम नहीं थीं भरपूर सहयोग कर रही थी। पूरे कमरे में सपना की आहे और फच फच की आवाजे गूंज रही। लल्लू ने सपना को चोदते चोदते ही उठा लिया और चोदने लगा।
सपना को ऐसा लगा की अब तो लन्ड बच्चेदानी को फाड़ कर आगे का रास्ता तय करेगा। लल्लू सपना जैसी गदराई औरत को बिना किसी मुश्किल के उठाए चोदे जा रहा था। सपना ने भी लल्लू को बाहों में कस लिया और वो उसे पुरुषार्थ पर फिदा हो गई। सपना की चूत तो ऐसे निहाल हो गई थी वो खुशी ने रोए जा रही थी। उसका पानी निकलना बंद ही नही हो रहा था। सपना ने लल्लू के होठों को चूम लिया।
लल्लू: लाला ऐसे चोद पता है तुझे।
सपना: ना। आह
लल्लू: क्या वो इतनी देर तक चोदता है।
सपना: आह ओह ये तो उसका साल भर का कोटा हो गया। आह
लल्लू: अब से तू लाला के पास नही जायेगी। आज से तू मेरी पर्सनल रण्डी है। समझी।
सपना: ओ आह आई हा।
लल्लू सपना को चोदे जा रहा था, उधर सपना भी न जाने कितनी बार झड़ चुकी थी उसे याद भी नहीं। वो बस लल्लू को निराश नही करना चाहती थी। सपना अपने ही बिस्तर पर घोड़ी बनी हुई थी और लल्लू उसकी दनादन सवारी कर रहा था।
लल्लू का भी धैर्य अब जवाब देने लगा था। उसके धक्कों की रफ्तार इस बात की गवाही दे रही थी। एक घंटे से लल्लू सपना की बजाए जा रहा था।
लल्लू: बोल कहा लेगी मेरा मॉल। बता मेरी रानी।
सपना: आह भर दे मेरी कोख। तूझ जैसे मर्द की औलाद पैदा करना सौभाग्य की बात होगी। ओह आह भर दे मेरी कोख।
लल्लू से भी अब सब्र नहीं हुआ और दहकता हुआ लावा उसने सपना की चूत में छोड़ दिया।
लल्लू: आह ले ले मेरी रानी।
लावें की हर धार सपना को सीधे अपनी बच्चेदानी पर महसूस हो रही थी। सपना की चूत को इतना सुख मिला की उसने एक बार फिर अपना बांध खोल दिया। सपना अपने चरम को पाके इतनी खुश थी की उसने लल्लू को अपनी बाहों में समा लिया और उसके कानो में बोला " सपना आज से तेरी रखैल हैं लल्लू"