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Erotica लल्लू लल्लू न रहा😇😇

Gurdep

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भाग १




यह कहानी एक ऐसे गांव की है जिसके यहां की औरतों को अतृप्त रहने का श्राप मिला हुआ था। किसने दिया ये श्राप ये आगे जानेंगे पर अभी के लिए इस गांव की हर औरत अतृप्त है। ये गांव पहले कभी बड़ा गांव हुआ करता था पर श्राप के कारण गिनती के ६० ७० घर ही बचे थे जो आपस में मिल जुल कर अपनी गुजर बसर कर रहे थे। लोगो को ऐसा लगा की गांव छोड़ देंगे तो श्राप भी उनका पीछा छोड़ देगा पर वो नही जानते थे की श्राप तो उनके खानदान पर लग चुका हैं। वो देश विदेश कही भी जाए ये श्राप उनका पीछा नहीं छोड़ेगा। हर शादीशुदा औरत या फिर जवान लड़की हो उनकी चूत हमेशा चुदासी रहती थी। बस औरत ५५ पर करी नही उसकी बेचैनी यकायक खतम हो जाती थी। इस गांव का कमाने का एक ही जरिया था खेती बाड़ी। तो चलते है अपने मुख्य किरदार की तरफ जो इस समय जंगल की तरफ बड़े जा रहा था।

अमावस्या की रात गहराती जा रही थी। जंगल में विभिन्न प्रकार के जीव जंतुओं की आवाजे आ रही थी जो किसी भी साधारण से इंसान के रोंगटे खड़े कर दे। दूर कुत्ते के रोने की आवाज माहोल को और भयानक बना रही थी। पर इन सब चीज़ों से दूर एक लड़का जंगल के अंधेरे की ओर चले जा रहा था। वो मन ही मन बुदबुदाए जा रहा था की अब घर कभी नही जाऊंगा। सब उसे डांटते है कोई प्यार नही करता। ये और कोई नही हमारी कहानी का मुख्य पात्र हैं लल्लू उर्फ वीर प्रताप। लल्लू १९ साल का लड़का हैं।

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बिलकुल साधारण सा और मंद बुद्धि। इसकी बुद्धि अभी भी १० साल के बच्चे के बराबर हैं। इसका दिमाग विकसित ही नही हुआ। ऐसा नहीं की इससे कोई प्यार नही करता, सब इस पर जान छिड़कते है बस परेशान है की उनका इकलौता सहारा ऐसा हैं। तो आइए लल्लू की यात्रा पर निकलने से पहले उसके परिवार के बारे में सब जानते हैं।

१. सबसे पहले लल्लू की मां सुधा। ४४ साल की गदरायी हुई महिला जिसमे यौवन कूट कूट कर भरा था। एक दम गांव की अल्हड़ महिला जिसे पुरुष संसर्ग पिछले १६ सालो से नही मिला क्युकी इसके पति की मृत्यु हो गई थी। ये चाहती तो थी पुरुष संसर्ग पर लोक लाज के डर के मारे अपनी इच्छाएं दबा कर रखी हुई थी। गांव में जब भी ये निकलती तो हर पुरुष की आह निकल जाती। इसके वक्ष तो जैसे कहर और इनकी गांड़ कयामत। हर समय सारी में रहती पर रात को सोते समय सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में क्योंकि कमरे में सोती थी और इनके साथ इनका लाडला लल्लू, जिसे औरत के जिस्म और उसके यौवन का कुछ पता नहीं था।


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२. तेज प्रताप: ये लल्लू के पिता, जो अब मर चुके हैं। सांप काटने से इनका निधन हो गया, कोई रोल नही हैं इनका इस कहानी में।

३. कमला: लल्लू की सबसे बड़ी बहन। उम्र २३ साल। पूरी तरह गदराया हुआ बदन। इसे जवानी इस कदर चढ़ी थी की ये सिर्फ लन्ड और चूत की बात करती थी अपनी सहेलियों से। कुछ सहेलियां इसकी शादीशुदा थी जो जिनसे ये उनके किस्से सुन खुद को उनकी जगह हर रात को उंगली करती। कई मनचले इसके पीछे पड़े हैं पर अपनी मां और ताई के डर से ये किसी को घास नहीं डालती। पूरी तरह गांव की अल्हड़ जवानी।


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४. सरला: लल्लू की छोटी बहन पर लल्लू से १ साल बड़ी। उम्र २० साल। घर की सबसे होशियार और समझदार लड़की। १२ वी क्लास में पूरे जिले में अव्वल आई थी और इसकी जिद्द आगे पढ़ने की थी तो किसी ने उसको माना नही किया। पास के शहर में कॉलेज में पड़ रही हैं। इसका दूसरा साल हैं एम बी बी एस का। हर शनिवार शाम घर आती हैं और संडे को खेत और डेयरी का पूरा हिसाब किताब देखती हैं। अगर फिगर की बात करे तो अपनी मां और बहन से साढ़े उन्नीस ही होगा। इसने थोड़ा अपने घर की औरते का पहनावा बदल दिया(वो आगे जाके पता पड़ेगा)। जवानी तो इस पर भी खूब चढ़ी है पर ये भी इच्छाएं दबा के अपना जीवन व्यापन कर रही हैं।


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६: माया देवी: इस घर की मुखिया और इस गांव की भी और लल्लू की ताई। उम्र ५९ साल। चूत की भूख इनकी काम होने की बजाय बढ़ती जा रही हैं। चूचे इतने बड़े की इक हाथ में समाय ना समय और गांड़ ऐसी थिरक के चलती जैसे हर समय लोड़ा घुसा हो इनकी गांड़ में। गांव के कई मर्दों के साथ हमबिस्तर हो चुकी है पर मजा नही आया। गाली तू हर समय इनके मुंह पर धरी रहती है। इनके गुस्से से घर क्या पूरा गांव घबराता हैं। जब गांव में निकलती तो पहलवानों की फौज चलती थी इनके साथ। किसी भी औरत पे जुल्म इनको बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं था।


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७: समर प्रताप: ये वीर के ताऊ। इक दिन घर से खेत के लिए निकले पर न ही कभी खेत पहुंचे अर्बन ही वापस घर। इनके साथ क्या हुआ कोई नही जानता। आगे ये क्या क्या गुल खिलाएंगे देखते रहे।

माया और समर की दो बेटियां है जिनकी शादी हो चुकी है और हम उनके बारे में बाद में जानेंगे। समय आने पर उनका परिचय दिया जायेगा।

८. सूर्य प्रताप: ये लल्लू के चाचा हैं। उम्र ४४ साल। इनकी रगो में खून कम और शराब ज्यादा थी। हर तरह के नशे के आदि। इनको घर बार या रुपया पैसे से कोई मतलब नहीं। मतलब है तो केवल इतना की इनके नशे का जुगाड हो जाए। इनका भी कोई ज्यादा काम नही हैं कहानी में।

९: रतना: ये लल्लू की चाची। उम्र ३९ साल। ३९ साल का एक दम कोरा मॉल, जिसको किसी ने भी नही छुआ हो। सुहागरात के दिन ही पति की असलियत पता लगी पर माया देवी के कारण कुछ न बोल पाई ना कर पाई। इसके हर एक अंग से मादकता टपकती थी। ये हर रात खुद को शांत करने की कोशिश करती पर होता कुछ भी नही। इसका और कमला का एक खास रिश्ता है। ये दोनो चाची भतीजी कम और सहेलियां ज्यादा थी।


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१०: उषा ताई: ये ५० साल की औरत माया देवी की खास हैं। कहने को तो नौकरानी पर घर में सब इसे बहुत इज्जत देते क्योंकि माया देवी के बहुत मुंह चढ़ी थी। पूरे गांव में क्या हो रहा है इसे सब पता होता। एक नंबर की रण्डी।


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ये तो हो गए चंद किरदार या यूं कहे अहम किरदार। बाकी किरदार समय के साथ जुड़ते जायेंगे। तो वापस चलते है लल्लू की तरफ जो इस समय जंगल के अंधेरे को चीरता हुआ आगे बड़ा जा रहा था।

लल्लू के कदमों की चाप जंगल के सन्नाटे को चीर रही थी। उसकी आंखो में आंसू और चेहरे पर रोश। माथे के बल उसके मजबूत इरादे की गवाही दे रहे थे, वो अंजान सफर पे अग्रसर था जिसकी मंजिल उसे खुद पता नही थी। बस मन में एक बात की अब घर नही जाना, इस गांव ने नही रहना क्युकी सब या तो उसे मरते है या उसका मजाक उड़ाते हैं। तभी उसके पैर एकदम से ठिठक जाते हैं। उसकी रफ्तार पर मानो जैसे किसी ने रोक लगा दी हो। उसकी नजरे को जो सामने दिख रहा था उसपे यकीन नही था। सामने थी इस गांव के जमेंदारो की पुरानी हवेली।


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इस हवेली के बारे में गांव के कुछ लोग ही जानते थे और जो वो जानते थे वो इसके बारे में बात भी करने से डरते थे। ये हवेली २०० सालो से वीरान पड़ी थी पर मजाल है कोई इसकी हालत देख कर ऐसा बोल सके। इस हवेली की शानो शौकत देखते ही बनती थी।

लल्लू की आंखों में चमक आ गई। उसे उसका नया घर मिल गया था। पर बस मुश्किल इतनी थी अंदर कैसे जाया जाए। लल्लू उस हवेली की चार दिवारी के इर्द गिर्द घूम रहा था। तभी उसको एक बड़ा सा द्वार दिखाई दिया। लल्लू भागकर उस द्वार की तरफ गया। अब एक बार फिर लल्लू चौंक गया। द्वार पर इतना बड़ा ताला देख कर।


वो ताला इतना बड़ा था की लल्लू के हाथ भी छोटा था। वो ताला पूरी तरह कलावे से बंधा हुआ था। और द्वार को चारो ओर से लाल धागे से बांधा हुआ था। लल्लू जो देख रहा था उसे यकीन नही हुआ और उसके हाथ ताले को छू कर देखने के लिए आगे बड़े। लल्लू के दिल में डर भी था और जिज्ञासा भी। वो तो बस हवेली के अंदर जाके अपनी थकान मिटाना चाहता था। लल्लू के हाथ जैसे जैसे आगे बड़े वैसे उसके दिल की धड़कने बढ़ती जा रही थी। लल्लू को इस सर्द अमावस्या की रात में पसीने से बुरा हाल था। जैसे ही लल्लू ने ताले को छुआ उसे इतनी तेज करेंट लगा की वो १० फीट दूर जाके गिरा। लल्लू का डर के मारे बुरा हाल था, वो बस उस ताले को घूरे जा रहा था।

इधर जैसे ही लल्लू ने ताले को हाथ लगाया, पूरी हवेली अंदर से एक सेकंड के लिए जगमगा उठी। लल्लू नही देख पाया वो दृश्य पर अगर देख लेता तो डर के मारे भाग जाता। तभी कुछ आवाजे हवेली में गूंजने लगी। कोई आया। कोई जानवर होगा। किसी ने ताले को छुआ। कौन है वो। नही ये तो कोई मनुष्य है। अरे हां एक मर्द है। मिल गया मेरी मुक्ति का सहारा आ गया। शेरा ओ शेरा। और वो आवाजे शांत हो गई।

लल्लू एक टक उस ताले को घूर रहा था की किसी की कु कू ने उसका ध्यान आकर्षित किया। लल्लू को बहुत प्यारा काला कुत्ता दिया। उसकी आंखें एक दम नीली जो इस अंधेरे को चीर रही थी। वो लल्लू की तरफ देख कर पूंछ हिलाने लगा। लल्लू जो की अभी अभी बिजली का झटका खाया था वो अब इस कुत्ते को प्यार से अपने पास बुलाने लगा। कुत्ता भी पूंछ हिलाते हुए लल्लू की तरफ भड़ने लगा। लल्लू के पास पहुंच कर वो कुत्ता लल्लू को प्यार से चाटने लगा और लल्लू भी उससे खेलने लगा। वो भूल गया था की वो इस समय कहां पर हैं। वो कुत्ता लल्लू का कुर्ता खीच कर उसे उठाने लगा। लल्लू को समझ में आ गया की ये कुत्ता उसे कही ले जाना चाहता हैं। लल्लू भी उठ खड़ा हुआ और उस कुत्ते के पीछे चलने लगा। चलते चलते वो लोग हवेली के पीछे की तरफ पहुंच गए वहा दीवार थोड़ी सी टूटी हुई थी। एक आदमी आराम से निकल सकता था। लल्लू को उस कुत्ते पे बहुत प्यार आया। इंसान इंसान को नही समझता पर एक जानवर इंसान को कैसे समझ लेता हैं। हवेली के चारो तरफ बाग बगीचे थे जो की कही से भी उजाड़ नही लग रहे थे। लल्लू घूम कर हवेली के बिलकुल सामने खड़ा था। जो सीडियां हवेली के मुख्य द्वार की ओर जा रही थी उसके दोनो तरफ कुत्ते का स्टेच्यू बना हुआ था, पर एक तरफ का कुत्ता गायब था। लल्लू को थोड़ा अजीब लगा। लल्लू आगे बढ़ता हुआ हवेली के मुख्य द्वार पर आ पहुंचा। लल्लू उस बड़े से द्वार को धकेलता इससे पहले वो द्वार खुद खुल गया और हवेली जगमगा उठी।


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लल्लू की हवा खराब हो गई थी। उसकी सांसे उसके गले में अटकी हुई थी। वो रह रहकर हवेली की मुख्य बैठक को चोर और घूम घूम कर देख रहा था। लल्लू ने हवेली में कदम रखा और वो हवेली की भव्यता में को गया। इतना बड़ा फानूस उसने जिंदगी में नही देखा था। ऐसा कालीन ऐसे सोफे और इतना बड़ा कमरा। जगह जगह पुराने जमींदारों की पेंटिंग लगी हुई। सामने से सीडी ऊपर की तरफ जाती हुई। तभी लल्लू को एक आवाज सुनाई दी।

आवाज: आओ वीर प्रताप, मैं भानु प्रताप तुम्हारा अपनी हवेली और रियासत में इस्तेकबाल करता हु।

लल्लू आवाज सुन के डर गया। पर फिर वो अपने डर को छुपाते हुए बोला।

लल्लू: ककक कौन हो आप। आप दिखाई क्यों नहीं दे रहे।

आवाज: हम मिलेंगे भी और दिखाई भी देंगे पहले तुम्हे भूख लगी होगी आओ पहले कुछ खा लो।

खाने का नाम सुनते ही लल्लू के मुंह में पानी आ जाता हैं और वो आवाज के पीछे पीछे चलने लगता हैं। चौखट पे निकली कील के कारण लल्लू की कलाई छील गई और दो बूंद खून की धरा के पटल पर गिर गई। जैसे ही खून गिरा वो गायब हो गया और तहखाने में एक हंसी गूंज उठी। " हां हां हां हां हां हां। अब आयेगा मजा, ये तो मेरा ही खून है, यानी मेरा वंशज"।

इधर लल्लू खाने की सजी हुई मेज को देख कर पागल हो गया।

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जो जो उसे पसंद था वो सब था। भुना हुआ मुर्गा, मटन, खीर, पूरी, जलेबी, रबरी, पनीर, आलू की सब्जी और उसक मुंह में पानी आ गया। लल्लू ने जी भरके खाना खाया आज उसे रोकने वाला कोई नहीं था। खाना खाके लल्लू अब उस आवाज से मुखातिब हुआ।

लल्लू: बहुत बहुत शुक्रिया! ऐसा स्वादिष्ट भोजन तो मैने कभी नही किया।

आवाज: इसमें शुक्रिया जैसा क्या है, ये तुम्हारा ही घर हैं। अब ऐसा भोजन तुम रोज कर सकते हो।

लल्लू: हा सही है, अब मैं रोज ऐसा ही भोजन करूंगा। यही रहूंगा और घर कभी नही जाऊंगा।

आवाज: क्यू घर क्यू नही जाना हैं तुम्हे वीर प्रताप।

लल्लू: सब मुझे मरते हैं, मुझे मंद बुद्धि, बेवकूफ और पागल बोलते हैं। मैं पूरे गांव से नफरत करता हूं।

आवाज: हम गांव जरूर जायेंगे पर पीटने के लिए नही पीटने और जिसने भी तुमको अपशब्द कहे हैं उसकी खाट खड़ी करने।

बहुत सी बाते हो रही थी उस आवाज और लल्लू में।

उधर लल्लू के घर में उसके घरवालों की लिए ये एक कयामत की रात थी। सब लोग खाना पीना छोड़ कर बस लल्लू की ही प्रतीक्षा कर रहे थे। माया देवी के पहलवान गांव का हर कोना छान रहे थे पर लल्लू का कोई नामोनिशान नहीं। माया देवी के हुक्म से गांव का हर मर्द लल्लू की तलाश कर रहा था। सबको जंगल की तरफ जाने से मना किया था इसलिए वहा कोई नही गया।

घर में सबका रो रोकर बुरा हाल था। सुधा, माया देवी और रतना बस लल्लू की एक आवाज सुनने को व्याकुल थी। माया देवी खुद को कोस रही थी की क्यों उसने लल्लू पे हाथ उठाया। आज की रात इस घर में चौका चूल्हा भी नही हुआ। रोते रोते पूरी रात निकल गई। सूर्य की लालिमा अब अपना प्रकाश फैलाने को बेकरार थी।

सूर्य की पहली किरण के साथ ही हवेली का द्वार खुला। लल्लू ने अपना पहला कदम बाहर निकाला और चारो तरफ से हवेली को देखने लगा। लल्लू के चेहरे का तेज और आत्मविश्वास देखते ही बनता था। लल्लू सीढियां उत्तर कर हवेली के मुख्य द्वार की तरफ बड़ने लगा। उसने पीछे मुड़ कर देखा तो अब वहा दोनो कुत्तो का स्टेच्यू यथावत था। इसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान फैल गई। लल्लू मुख्य द्वार के बिलकुल करीब पुहुच गया और उसने एक हल्की सी फूंक मारी और वो बड़ा सा ताला किसी खिलौने की तरह टूट गया और मुख्य द्वार खुल गया। लल्लू बाहर निकला और पीछे मुडकर देखा तो मुख्य द्वार वापस बंद हुआ और ताला वापस जैसा पहले था वैसे ही लटक गया। लल्लू तेज रफ्तार से भागने लगा। हवा भी पीछे रह जाए इतनी तेज़ी थी लल्लू में। इससे पहली की सूरज की पहली किरण अपना प्रकाश फैलाती लल्लू नदी के तट पर पहुंच गया। कीचड़ से सनी हुई जमीन पे लेट गया। ऐसा लग रहा था की जैसे नदी की लहरे उसे छोर तक लाई हैं।

रानी मां ओ रानी मां (माया देवी की पूरा गांव रानी मां कह कर बुलाता था) इस आवाज से सुधा, माया देवी और रतना का दिल बैठ गया। उन्हे कोई अनहोनी की आशंका हुई। लल्लू मिल गया। इस आवाज ने जैसे उन सब के कानो में शहद का काम किया। तीनों दरवाजे की तरफ भागी। देखा तो लल्लू को एक पहलवान अपनी गोद में उठाए हुए ला रहा हैं। पूरा कीचड़ में सना हुआ। लल्लू के आंखे खुली देखकर तीनो की सांस में सांस आई। माया देवी ने लल्लू को घर के अंदर लिया और पूरे गांव को धन्यवाद दिया और आज रात की दारु मुफ्त का ऐलान किया और घर के अंदर आ गई। उसने देखा सुधा और रतना लल्लू तो टटोल रही हैं की कही कोई चोट तो नही लगी और बार बार उसका चेहरा चूम रही हैं।

माया: आरी ओ सुधा, पहले निहला दे अपने लाल को फिर जी भर के प्यार कर लेना।

सुधा: (हा में गर्दन हिलाती हुई) चल लल्लू तू गुसलखाने में चल और अपने कपड़े उतार मैं गरम पानी लेके आती हूं।

लल्लू भी सुधा की बात सुनकर सीधे आंगन में बने गुसलखाने में चला गया और अपना कच्छा छोड़े सब कपड़े उतार दिए।

थोड़ी देर में सुधा आई और लल्लू को देखा तो उसे कुछ परिवर्तन लगा। उसकी छाती एक दम मर्दानी लग रही थी। उसके डोले उसके असीम बल की गवाही दे रहे थे और उसकी पुष्ट जांघें उसके पुरोषत्व की गवाही दे रही थी। पर उसको लगा की ये उसका वहम होगा। सारे खयालों को झटक के वो बाल्टी रखते हुए बोली।

सुधा: ये कच्छा कौन उतरेगा। बोला था ना सारे कपड़े उतारे रखना।

सुधा लल्लू के सामने बैठ गई और एक ही झटके में लल्लू का कच्छा नीचे खींच दिया और जो उसने देखा उसके सांसे थम सी गई और मुंह से चीख। और उसके मुंह से बस इतना ही निकल पाया।

सुधा: यययय ये क्या है "लल्लू"।

NICE UPDATE BHAI
 

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भाग २




दो लड़के तेजी से भाग रहे थे और बहुत तेज तेज चिल्ला रहे थे "गुरु जी गुरु जी"। दोनो के चेहरे के भाव को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उन्होंने कोई भूत देख लिया। चेहरे का रंग फीका और आंखो में दहशत। दोनो बालक एक भागते हुए एक कमरे में प्रवेश करते हैं। वो जिस कक्ष में प्रवेश करते हैं, वहां पर एक साधु किस के चेहरे का तेज देखते ही बनता था।

साधु: क्या हुआ शिष्यों। इतने विचलित क्यों हो। क्या समस्या हैं।

एक बालक: गुरु जी मैं और शंभू समाधि वाले मंदिर की सफाई कर रहे थे की हमने देखा सबसे बड़े गुरुजी की प्रतिमा के आंखो से खून निकल रहा है। इसलिए हम इतने विचलित हैं।

साधु समझ गया, जरूर बड़े गुरुजी को बड़ी अनहोनी की तरफ इशारा कर रहे हैं। उसने वही बैठ के ध्यान लगाया और कुछ २ से ३ मिनट के लिए वातावरण में संपूर्ण शांति और तभी उस साधु का सारा तेज गायब हो गया और माथे पे बल पड़ने लगे और चेहरे पर चिंता की लकीर। तुरंत ही उसने आंखे खोल दी। गुरु की हालत देखकर शिष्यों को मन और विचलित हो गया। जिज्ञासा वश वो फिर से साधु से सवाल करने लगा।

शिष्य: क्या हुआ गुरुजी? आप भी विचलित लग रहे हैं।

साधु: (चेहरे पर भय के भाव) बड़े गुरुजी ने एक बहुत ही शक्तिशाली पिशांच को कैद किया था। आज उसी पिशाच को उसी के वंशज ने आजाद कर दिया। सर्वनाश होगा अब।

शिष्य: तो गुरु जी हमे चल के उस पिशाच को रोकना चाहिए।

साधु: अब वो पिशाच और ताकतवर हो गया है। २०० साल से कैद था। तबाही मचेंगी चारो ओर।

शिष्य: तो गुरु जी हम कुछ नही करेंगे, हाथ पर हाथ धरे तबाही देखेंगे।

साधु: नही हम जायेंगे पर पूरी तैयारी से। समय लगेगा पर तब तक ईश्वर से प्रार्थना भी करेंगे की किसी को अधिक क्षति न पहुंचे। तुम लोग हवन की तैयारी करो।

दोनो शिष्य कमरे से निकलकर हवन की तैयारी में लग गए।

उधर लल्लू के घर पर सुधा की चीख सुन कर माया देवी और रतना भी गुसलखाने में पहुंची किसी का भी ध्यान लल्लू की तरफ नही था वो तो बस सुधा की चीख से चिंतित थी।

माया देवी: क्या हुआ सुधा, ऐसे क्यू चीखी।

सुधा के खड़े होने से माया देवी और रतना को लल्लू नही दिख रहा था और जैसे ही सुधा सामने से हटी दोनो की आंखे बड़ी हो गई। ऐसा लग रहा था की आंखों से गोटी निकल कर बाहर गिर गई हो।


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माया देवी: ये क्या है सुधा।

रतना: दीदी परसो मैने ही लल्लू को नहलाया था तब तो इतना सा था, (उसने हाथ का इशारा किया) पर अब तो हाथ में भी नही आयेगा।

सुधा: कही कोई अंदरूनी चोट की वजह से सूज तो नही गया।

रतना: दीदी ये नदी किनारे मिला कही पानी तो नही भर गया।

माया देवी: कुछ भी रतना, मुझे लगता हैं की सुधा सही बोल रही है। परसो में शहर जाऊंगी तब डॉक्टर को दिखा दूंगी।

तीनों की तीनो हैरत में थी जो भी उन्होंने देखा था। किसी ने भी आज से पहले इतना बड़ा नही देखा था। और गोटों का साइज देख कर तो ऐसा लग रहा था जैसे समस्त संसार का मॉल इनमे बसा हूं। लेकिन इक बात ये भी सत्य थी कि तीनों चोर निगाहों से उसे देख रही थी और तीनों की ही चूत रस छोड रही थी। फडप्फड़ा रही थी तीनो की चूत उस विकराल लन्ड को देख कर।

सुधा: (खुद को संभालते हुए) दीदी सरला को बोल दूंगी कोई अच्छा सा डॉक्टर ढुंढ के रखेगी।

माया देवी: (जैसे होश में आई) पागल हो गई है क्या, एक बहन को उसके भाई के बारे में ऐसा कुछ बताएगी।

सुधा: दीदी डॉक्टर और वकील से कभी भी कुछ नही छुपाना चाहिए।

रतना: हां दीदी छोटी दीदी बिलकुल सही कह रही है। सरला ही कोई अच्छा डॉक्टर बता देगी।

माया देवी: ठीक है, पूछ लेना और हो सके उस दिमाग के डॉक्टर से भी समय ले लेना। अच्छा तू अब इसे नेहला दे और सुन लल्लू पूरा दिन घर पे रहना, कई बाहर मत जाना।

लल्लू हा में सर हिलाता हैं, रतना और माया देवी गुसलखाने से बाहर निकल जाती हैं। तीनों अपनी बातो मे इतनी मशगूल थी कि उन्हे लल्लू के चेहरे की कामिनी हसी नही दिखाई दी।

सुधा किसी तरह अपने आप को संभालते हुए लल्लू को नहलाने लगी। जैसे जैसे उसके हाथ लल्लू के शरीर पर घूम रहे थे वैसे वैसे लल्लू का डंडा सख्त होता जा रहा था। लल्लू के दिमाग में भी कुछ आवाजे चल रही थी।

दिमाग की आवाज: आह कितनी दिनों बाद चूत की महक। बड़ा स्वादिष्ट होगा इसका पानी। कितनी सदियों बाद आज मुझे ये महक नसीब हुई है। वीर प्रताप की मां धन्यवाद तुझे, तूने मुझे वो सुख दिया है जिससे मैं वंचित था सदियों से और इसका इनाम तुझे जरूर मिलेगा।

सुधा भी लल्लू के लोड़े में आए तनाव को महसूस कर थी, वो तिरछी नजरों से बार बार अपने बेटे के हाहाकारी लोड़े को देख रही थी। वर्षो बाद उसकी चूत रस बहाए जा रही थी। चीटियां सी रेंग रही थी उसकी चूत में। वो बार बार अपनी चूत के साड़ी के ऊपर से सहला रही थी लल्लू की नजर से बचा के, पर भोली ये नही जानती थी की लल्लू के जिस्म में एक शक्तिशाली पिशाच है जो उसकी इज्जत तार तार कर देगा। उसे वो सुख देगा जिससे वो अभी तक वंचित थी। जैसे जैसे सुधा के हाथ नीचे बड़ते जा रहें थे लल्लू का लुंड पूर्ण रूप इख्तियार कर रहा था। जैसे ही सुधा कमर तक पहुंची उसकी आंखे वही जम गई। लल्लू का डंडा पूरा तन के खड़ा था।


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वो बस उसे देखे जा रही थी। इतना बड़ा और उसकी कलाई जितना मोटा। उसके मन में तरंगे उठने लगी। वो मन ही मन लल्लू के विशालकायी लन्ड की तुलना अपने गुजरे हुए पति की लुल्ली से करने लगी। पर तुलना हो तो वो करे। लन्ड में इतना तेज तनाव था की वो खुद ब खुद ऊपर नीचे होने लगा, जैसे उठक बैठक कर रहा हूं। लल्लू की आवाज से सुधा होश में आई।

लल्लू: मां बहुत दर्द कर रहा है।

सुधा: (परेशान हो कर) कहा दर्द हो रहा हैं मेरे लाल। कही चोट तो नहीं लगीं लल्ला।

लल्लू: नही मां, इधर पेशाब वाली जगह में दर्द हो रहा हैं।

सुधा: लल्ला पहले नाहले, फिर तेल से मालिश कर दूंगी।

सुधा ने जल्दी जल्दी लल्लू को नहलाया और उसके बदन को तौलिए से सुखाया फिर तेल की कटोरी लेकर लल्लू के शरीर पर लगाने लगी। जैसे ही सुधा लल्लू के लुंड के नजदीक पहुंची, वो आश्चर्यचकित थी कि लन्ड में तनाव अभी तक बरकरार हैं। उसने इतनी देर तक किसी का भी लोड़ा खड़ा नही देखा था। सुधा के लिए अब परीक्षा की घड़ी थी। फिर भी उसने हिम्मत करी और लल्लू के लन्ड की मालिश करने लगी।


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जैसे ही उसने लल्लू के लुंड की चमड़ी को पीछे खींचा लाल रंग का सुपाड़ा सुधा की आंखों के सामने आ गया। एक मीडियम आलू के बराबर का सुपाड़ा सुधा की आंखों के सामने था। सुधा अपनी पलके झपकना भूल गई थी। उसकी चूत बहुत बुरी तरह पानिया गई थी। उसे गीलेपन का एहसास अपनी जांघों पर हो रहा था। चमड़ी पीछे खींचने से लल्लू की आह निकल गई और सुधा उस कामवासना से बाहर आई और खुद को ही कोसने लगी। फिर पूरी ममता के साथ लल्लू के डंडे की मालिश करने लगी। वो आगे पीछे कर उसकी मालिश कर रही थी। कोई देखता तो ऐसा लगता की जैसे कामवासना में लिप्त औरत किसी मर्द को पूर्ण रूप से संतुष्ट करने में लगी हुई है। कोई ममतामई सुधा की स्थिति नही समझेगा।

पिशाच को असीम आनंद की प्राप्ति हो रही थी। ये वो स्पर्श था जिसके लिए वो सदियों से तड़प रहा था। वो तो मंत्रमुग्ध सा सुधा द्वारा किए जाने वाली क्रिया का आनंद उठा रहा था। वो खुद पर नियंत्रण रखने में असमर्थ था। जो उबाल उसके अंदर वर्षो से था वो अब बाहर निकलने को बेहाल था। और वो ही हुआ बांध टूट गया। नदी का बहाव इतना तेज था की सुधा का चेहरा पूरा लल्लू के वीर्य से सन गया।


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इतना गाड़ा वीर्य जो जहा गिरा वही चिपक कर रह गया। सुधा इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी। उसके मुंह से सिर्फ इतना ही निकला

सुधा: ये क्या किया लल्लू।




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भाग ३





लल्लू ने जब देखा की उसकी नुनु से कुछ निकला और सीधे उसकी मां सुधा के ऊपर गिरा वो घबरा गया और पीछे को हुआ तो वही स्लैब पर रखा हुआ दंत मंजन गिर गया। दुर्भाग्यवश वो खुला हुआ था और सारा का सारा सीधे सुधा ले ऊपर गिरा। सुधा जो पहले ही अचंभे में थी लल्लू के मॉल को लेकर, वो मंजन गिरने से और भूचक्की रह गई। इस दोहरी गलती से लल्लू की गांड़ फट गई। वो बस रोने ही वाला था की सुधा ने उसके चेहरे को देखा।

सुधा: कोई बात नही लल्ला, गलती हो गई तूझसे अनजाने में, तू जा कमरे में कपड़े निकाल के रखे हैं उन्हें पहन ले।

लल्लू ने खुद को तौलिए से ढका और कमरे की तरफ चल दिया। लल्लू के जाते ही सुधा ने अपने चेहरे पर गिरे मॉल को उंगली में लिया और सूंघने लगी। उसकी खुशबू में वो मंत्रमुग्ध हो गई। इतना गाड़ा और इतनी मात्रा में वीर्य उस बेचारी ने पहली बार देखा था। ना चाहते हुए भीं उसकी उंगली धीरे धीरे उसके मुंह की तरफ बड़ने लगी।


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अपनी जुबान बाहर निकालकर उसने लल्लू के वीर्य को चखा, बहुत ही नशीला स्वाद था, और वो नशा सुधा के जिस्म पर चढ़ता चला गया। और वो न जाने कितनी देर तक लल्लू का वीर्य चखती रही। उसका मन ही नही हो रहा था की ये नशीली मिठाई खत्म हो क्योंकि इतने साल की भूख थोड़े में ही थोड़ी ना शांत होगी। खुद को शांत करना उसके लिए बहुत जरूरी था इस समय पर घर पर इतनी चहलपहल शुरू हो गई थी की इस समय ये करना सुधा ने मुनासिब नहीं समझा। सुधा ने अपना चेहरा धोया और अपने कमरे की तरफ चल दी जहा एक और चौकाने वाला दृश्य उसकी प्रतीक्षा कर रहा था।

जब सुधा कमरे में पहुंची तब तक लल्लू कपड़े पहन रसोईघर में नाश्ता करने के लिए बैठ गया था। सुधा कमरे में गई और अलमारी खोल नहाने के लिए कपड़े निकालने लगी पर जैसी ही उसकी नजर खुद पे पड़ी उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उसके सर चकराने लगा। ऐसा कैसे हो गए। उसकी मां......मांग कैसे भरी हुई है।



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तब उसे याद आया की दंत मंजन गिरा था उसके ऊपर और मंजन लाल रंग का हैं। वो जैसे ही उसे झाड़ने को हुई तभी उसके अंदर से आवाज आई क्या कर रही हैं सुधा, ये ही विधि का विधान है। तू अब से सुहागन हैं, याद है न उस साधु ने क्या कहा था। सुधा ये आवाज सुन अतीत के पन्ने पलटने लगी।

ये बात आज से कुछ ३ साल पहले की है उनके घर एक साधु आए थे, इस आश्रम की साधना इनके पूर्वज भी करते आए थे। सुधा माया देवी और बच्चो की जिद के कारण रंग बिरंगे कपड़े पहनती थी, माया देवी और बच्चो ने कभी उसे सफेद साड़ी नही पहनने दी। सुधा ने साधु को प्रणाम किया।

साधु: सदा सुहागन रहो। शत पुत्रवती भव।

सब को जैसे वहा पर सांप सूंघ गया हूं। सब बस साधु को घूरे जा रहे थे।

माया देवी: महाराज जी ये क्या आशीर्वाद दे दिया अपने, सुधा तो विधवा हैं।

साधु: देवी मेरा आशिर्वाद व्यर्थ नहीं है, क्युकी जो मुझे इनके तेज से लगा वोही आशीर्वाद मैने दिया। ये पुनः सुहागन होंगी और इनका सुहाग ही इस गांव का उद्धार करेगा। इनका रिश्ता अनैतिक और असमाजिक भी हो सकता हैं। पर ये सत्य हैं ये पुनः सुहागन और गर्भवती होंगी।

अतीत के पन्नो से जब सुधा बाहर निकली तो उसके माथे पर चिंता की लकीरें थी। तो क्या लल्लू? नही नही ऐसा कैसे हो सकता है, वो तो उसका ही बेटा है, पर उसी से उसका रिश्ता अनैतिक और असमाजिक दोनो है। वो सोच में पड़ गई फिर उसका अंतर्मन बोला यही विधि का विधान हैं सुधा। सोच जिस लल्लू पर पूरा गांव हस्ता हैं वोही इस गांव को मुश्किल से निकालेगा और तेरा सिर शान से ऊंचा उठ जायेगा। वो इसी सब उधेड़बुन में थी। ईश्वर ने उसे किस असमंजस में डाल दिया है। जो होगा देखा जायेगा के उसका आखिरी निर्णय था। फिर वो सर झटक कर नहाने की तैयारी करने लगी। नहाने के बाद उसने खुद को आईने में देखा और शर्मा गई। चुपके से उसने चुटकी भर सिंदूर लिया, अपनी मांग में बिलकुल पीछे की तरफ लगा दिया जिससे किसी को भी न दिखे और मुंह से निकल पड़ा "लल्लू की बिह्यता"।

इधर लल्लू नाश्ता करने के बाद बार बार घर से बाहर जाने की सोच रहा था। उसके अंदर के पिशाच को गांव घूमना था, नई नई चुतो की खुशबू सुंघनी थी पर उसकी हर कोशिश धरी की धरी रह जाती। वो घर की छत से ही गांव को भांपने लगा। उसे न जाने कितनी ही असंतुष्ट चूत नजर आ रही थी, उसकी जीव उन चुतो का रसपान करने के लिए बेताब थी और उसका लन्ड उन्हे इस पे झूला झूलने के लिए बेकरार था। दोपहर का खाना भी हो गया उस दोपहर के खाने में पहली बारी घर की कोरी और कमसिन चूत कमला मिली। पिशाच की तो लार टपक गई उसकी चूचियां और गांड़ का उठाव देख के।


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उसका बस चलता तो अभी पटक के चोद देता पर अभी नही कोरी चूत बाद में पहले इन रंडियों को तो टटोल के देख ले। दोपहर बाद सब अपने कमरे में चले गए पर सुधा नही गई क्युकी अंदर ही अंदर वो लल्लू का सामना नहीं करना चाहती थी।

लल्लू कमरे में आया और ध्यान लगा के बैठ गया जैसे कोई पूजा कर रहा हो। उसने देखा कमला अपने कमरे में सो रही है, सुधा और रतना आपस में घर गृहस्ती की बाते कर रही है पर जो उसने देखा माया देवी के कमरे में देखा उसकी जीव लपलापने लगी। उसे चूत की खुशबू आने लगी। मायादेवी अपने कमरे में केवल ब्रा और पैंटी में लेटी हुई थी और उषा ताई ब्लाउज और पेटीकोट में बैठी माया देवी की मालिश कर रही थी।


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उषा ताई: क्या बात हैं, रानी मां। कुछ विचलित लग रही हो।

माया देवी: क्या बताऊं उषा, लल्लू के लिए परेशान हूं।

उषा ताई: क्या हुआ छोटे मालिक को।

माया देवी: एक तो पहले ही मंद बुद्धि है, दूसरा उसके औजार में सूजन आ गई है। पता नही क्या हुआ, किसने काटा या कोई नई बीमारी हो गई हैं।

उषा ताई: (जांघो की मालिश करते हुए) ऐसा क्या हो गया, कल तक तो सब सही था।

माया देवी: हां री पर आज सुबह देखा तो बैठा हुआ भी किसी गधे जैसा लग रहा था। इतना बड़ा औजार तो मैने भी नही देखा कभी।

उषा ताई: ( माया देवी की बात सुनते ही आंखे बड़ी हो गई) क्या बात कर रही हो रानी मां। बीमारी नही इसका मतलब छोटे मालिक अब जवान हो गए हैं। और आपके लिए तो अच्छा ही है। (ये बोलकर उषा ने माया देवी की चूत अपनी मुठ्ठी में भर ली)

माया देवी: आह आ हट रण्डी। क्या मतलब है तेरा कुतिया।

उषा ताई: रानी मां जब इतना बड़ा लोड़ा घर में है तो बाहर जाने की क्या जरूरत। घर में ही छोटे मालिक को फंसा लो और फिर तो हर रात आपकी सुहागरात होगी।

माया देवी: (ये सुनकर उसकी आंखे चमकने लगी) हट छिनाल, बच्चा है वो अभी।

उषा ताई: काहे का बच्चा, अगर इतने बड़े लन्ड से आप को चोदेगा तो वो आपको अपने बच्चे की मां बना देगा। (ये बोलकर उषा माया देवी की चूत को सहलाने लगी)


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माया देवी: ( उषा की बात सुनकर माया देवी की चूत रस छोड़ने लगी और उसकी आंखो के सामने तारे छा गए। वो चाहती तो थी अभी उषा से अपनी चूत चटवाए पर दिन का समय है कोई कभी भी आ सकता हैं। ) छोड़ रण्डी, मालिश पर ध्यान दे। कितनी बार बोला है दिन में मत छेड़ा कर।

उषा ताई: क्या करू रानी मां, जब भी तुम्हारी गदरायी हुआ जिस्म देखती हूं, बस फिर मेरा खुद पर कंट्रोल नही रहता।

माया देवी: चापलूसी छोड़ और जाके भैंसो को चारा डाल।

इन दोनो की बात सुन पिशाच का लन्ड सलामी देने लगा की चलो दो चुतो का तो जुगाड हो गया। और वो इसी खुशी में सो गया।

सुधा: आह आह लल्लू धीरे कर।आह कितना बड़ा लोड़ा हैं तेरा। आह मां

लल्लू बुरी तरह सुधा को चोद रहा था।


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लल्लू : और चिल्ला रण्डी, अब तू बीवी है मेरी, तुझे में हर घड़ी ऐसे ही चोदूंगा। खा मेरा लोड़ा।

सुधा: हा मेरे स्वामी हर पल लूंगी आपका लोड़ा। चोदो मेरे पतिदेव चोदो अपनी बीवी को।

लल्लू के धक्कों की रफ्तार बड़ती जा रही थी और सुधा हर कदम पर लल्लू का साथ दे रही थी। लल्लू पर हवस सवार थी वो किसी वहशी की तरह सुधा को चोदे जा रहा था। सुधा हर धक्के का स्वागत गांड़ उठा उठा के कर रही थी। वो बस अपने पति को खुश रखना चाहती थी। अब वो घड़ी भी आई जब सुधा की चूत ने रस की पहली धार छोड़ी और इधर सुधा की आंखे खुल गई। उसकी पहली प्रतिक्रिया हाथ अपनी चूत पर रखना और पाया पूरी तरह से गीली और उसे समझते देर न लगी की वो झड़ चुकी हैं। ये कैसा सपना था जिसने उसे झड़ने पर मजबूर कर दिया। जो इतने सालो में न हुआ आज वो हो गया।

उधर सोते हुए लल्लू के चेहरे पर मुस्कान थी।


इधर सुधा बस ये ही सोच रही थी "क्या कर दिया तूने मुझे लल्लू"।
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भाग ४




शाम का समय, रतना दूध का गिलास लिए रसोई से बाहर निकली। माया देवी ने उसे रोक दिया।

माया देवी: कहा जा रही है, रतना।

रतना: दीदी लल्लू को उठाने और दूध देने।

माया देवी: ला मुझे दे, मैं दे आती हूं। कल उसे पीटा था आज प्यार से उठाके उससे माफी भी मांग लूंगी।

रतना: (माया देवी को गिलास देते हुए) ठीक हैं दीदी।

माया देवी ने गिलास लिया और चल दी सुधा के कमरे की तरफ जहा लल्लू सो रहा था पर पिशाच जाग रहा था। चूत की खुशबू मिलते ही लल्लू का लन्ड खड़ा हो गया अपने पूर्ण आकार में और माया देवी को सलामी देने लगा। माया देवी ने जैसे ही कमरे में कदम रखा उनके आवाज गले में ही अटक गई क्युकी सामने नाग अपना पूरा फन फैलाए खडा था।


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लल्लू अंडरवियर और बनियान में सोया था जैसे रोज सोता था पर अब उसका विशालकाई लन्ड भी था। माया देवी को काटो तो खून नहीं। उनकी निगाह बस लल्लू के लन्ड पर अटक के रह गई। वो बस उस लन्ड को निहारे जा रही थी। कब उनका हाथ अपनी चूत पर चला गया उन्हें पता भी नहीं पड़ा। माया देवी अपनी चूत साड़ी के ऊपर से सहलाने लगी। माया देवी ने अपनी चूत को मुट्ठी में भींच लिया।

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पिशाच माया देवी की हरकत देख रहा था और बहुत खुश हो रहा था। माया देवी उस विकराल लन्ड को छूना चाहती थी पर हिम्मत नही हो रही थी। उनके हाथ अपनी चूत पर तेज़ी से चल रहे थे वो बस मन ही मन इस लन्ड को अपने अंदर लेने की कल्पना कर रही थी। उनका मन तो था की वो अभी कपड़े उतार कर इस हल्लबी लन्ड की सवारी करे पर अभी ऐसा मुमकिन नहीं था। माया देवी इतनी चुदासी हो गई थी की थोड़ी देर में ही चरम पर पहुंचने वाली थी पर पिशाच ने उन्हे ऐसा नहीं करने दिया। जैसे ही माया देवी को लगा की वो अपनी मंजिल तक पहुंचने वाली हैं तभी एक आवाज ने उनकी तंतरा भंग की।

लल्लू: क्या हुआ ताई मां।

माया देवी: (हड़बड़ा कर, खुद को संभालते हुए) कुछ नही लल्लू बेटा, दूध लाई थी।

माया देवी ने दूध का गिलास वही टेबल पर रखा और तेजी से कमरे से बाहर निकल गई। उन्होंने एक बार भी पीछे मुड़ के नही देखा। पिशाच के चेहरे पर मुस्कान थी उसको अपने कमीनेपन पर नाज था।

पिशाच मन ही मन "तड़पो अभी और तडपो, मैं भी तड़पा हूं २०० साल" और हसने लगा। लल्लू दूध पी कर घर के आंगन में बैठ गया। घर की सारी चुतो को वो यहां वहां काम करते हुए देखने लगा। सुधा जो भैंसो के तबेले से आ रही थी उसे देखते ही लल्लू की लार टपकने लगी और सुधा ने भी जब लल्लू को देखा उसकी चूत में खलबली मच गई। उसके आंखो के सामने उसका दोपहर का सपना आ गया। सुधा बस खड़ी हुई लल्लू को निहारे जा रही थी। तभी रतना ने पीछे से सुधा की पीठ थपथपाई।

रतना: क्यू हुआ दीदी। कहा खो गई।

सुधा: (झेंपते हुए) कुछ नही रतना। लल्लू को देख रही थी कितना भोला और मासूम हैं।

रतना: सो तो हैं दीदी। तभी तो डर लगता हैं दीदी इस कलयुग में इतने भोले आदमी का गुजारा कैसे होगा। बस जल्दी से लल्लू अपनी सारी जिम्मेदारी समझने लगे तो हम सब की चिंताएं दूर हो जाएंगी खास कर बड़ी दीदी की।

सुधा: ठीक कह रही है तू रतना। दीदी कितनी भाग दौड़ करती है इस परिवार के लिए और एक देवर जी है जिन्हे कुछ पड़ी ही नही है। वैसे हैं कहा वो।

रतना: (मायूस होकर) और कहा पड़े होंगे किसी नशे के अड्डे पर। मैं तो बड़ी दीदी के मारे चुप हूं, की उन्होंने कितने एहसान किए मेरे परिवार पर वरना अब तक तो मैं छोड़ के चली गई होती इन्हे।

सुधा: चल छोड़ उनको। अच्छा रसोईघर में कुछ काम हैं।

रतना: नही दीदी लल्लू की पसंद का खाना बना दिया हैं। वैसे आपकी सरला से बात हुई डॉक्टर को लेके।

सुधा: अच्छा हुआ तूने याद दिला दिया, भाग दौड़ में मैं तो भूल ही गई थी। चल मैं सरला को फोन करके आती हूं।

सुधा जल्दी से अपने कमरे में आई और सरला अपनी बेटी को फोन मिला दिया। कॉल वेटिंग आ रही थी। सरला फोन काटने ही वाली थी की तभी दूसरी तरफ से आवाज आई:

सरला: हेलो मम्मी

सुधा: सरला, किस से बात कर रही थी। कितनी देर से मिला रही थी मैं।

सरला: क्या मम्मी अभी तो मिलाया था आपने, और हां मैं अपने ब्वॉयफ्रेंड से बात कर रही थी।

सुधा: सच बता, तेरा ब्वॉयफ्रेंड हैं।

सरला: मम्मी अब हर बात को इतना सीरियस क्यू ले लेती हू। मजाक कर रही थी। मेरी सहेली का फोन आया था वो आज के नोट्स मांग रही थी क्युकी आज वो कॉलेज नही आई थी।

सुधा: सच बोल रही हैं।

सरला: मम्मी आपकी कसम।

सुधा: (निश्चिंत हो गई) अच्छा ठीक हैं।

सरला: अच्छा ये बताओ अपने फोन क्यू किया।

सुधा: हां याद आया। वो लल्लू के लिए डॉक्टर का टाइम चाहिए था।

सरला: दिमाग वाले का।

सुधा: अरे नही। दूसरे डॉक्टर की। वो लल्लू को सूजन आ गई है।

सरला: (घबरा कर) कहा सूजन आ गई है मम्मी और चोट कैसे लगी उसे।

सुधा: अरे चोट नहीं लगी अचानक अब कैसे बताऊं तुझे। उसके लिंग पर सूजन आ गई हैं। (सुधा एक सास में बोल गई)

सरला: ( लिंग सुनके उसके कानो से धुआं निकलने लगा) मम्मी मेरे एक फैकल्टी है, मैं उनसे बात करती हूं।

सुधा: औरत डॉक्टर। क्या ये सही रहेगा।

सरला: मम्मी में कैसी पुरुष डॉक्टर से इस बारे में बात नही कर सकती और वैसे भी क्या पुरुष और क्या महिला डॉक्टर तो डॉक्टर होता है।

सुधा को सरला की बात सही लगी।

सुधा: जैसा तुझे ठीक लगे, समय लेके बता देना परसो दीदी शहर आएंगी

सरला: मम्मी १० मिनट रुको, मैं अभी टाइम ले कर बताती हूं और पता भी।

सुधा ने सरला की खैर खबर ली और फोन रख दिया। ५ मिनट बाद ही सरला का फोन आया उसने टाइम और पता भी बता दिया। सुधा ने जाके ये खबर माया देवी को बता दी और अपने काम में लग गई। सुधा के जाते ही माया देवी ने अपने मन में एक प्लान बनाया की अगर डॉक्टर ने सब कुछ सही बताया तो परसो वो शहर रुकेंगी और लल्लू के लन्ड की परीक्षा लेंगी। इतना सोचते ही उनकी चूत कुलबुलाने लगी। माया देवी ने अपनी चूत को सहलाया।

माया देवी: चिंता मत कर अब तुझे भी तेरा हक मिलेगा। (और अपनी चूत को सहलाते हुए उनका चेहरा खिल उठा)

सब ने साथ खाना खाया। आज उषा ताई अपने घर गई थी उनका पति आज शहर से घर आया था। सब अपने अपने कमरों में चले गए सिवा सुधा के क्युकी उसकी जिम्मेदारी थी रात को घर ठीक से बंद करना, तबेला चेक करना और बैठक बंद करनी।

माया देवी अपने कमरे में लेटी परसो का प्लान बना रही थी। आज उसे उषा की कमी बड़ी खल रही थी पर वो बिस्तर पर लेटी परसो के सपने संजो रही थी। लल्लू अपने कमरे में बैठा सब के कमरे में कान लगा के सुन रहा था। उसे पता लग गया की माया देवी के मन में क्या चल रहा है। मन ही मन वो बहुत खुश था की परसो कितने सालों बाद उसे चूत चोदने को मिलेगी।

उधर कमला और रतना एक दूसरे के अंगो से छेड़छाड़ कर रहे थे। रतना ने कमला के संतरे कुछ जोर से दबा दिए।


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कमला: आउच चाची। क्या बात है। बड़ी गर्मी चढ़ी है।

रतना: क्या बताऊं कमला सुबह से जब से वो देखा हैं।

कमला: (सबसे अंजान थी) क्या देख लिया चाची।

रतना: गधे का देख लिया।

कमला: कौन से गधे का।

रतना: बेवकूफ तेरे भाई का। बस कोई बीमारी ना हो, जैसा हैं वैसा रहे तो उसकी बीवी खुश रहेगी।

कमला: लल्लू का। उसका तो मूंगफली जितना है, मैने भी देखा है।

फिर रतना ने कमला को सारी बात बताई।

कमला: क्या बात कर रही हूं चाची।

रतना: और क्या, तभी तो सुबह से भट्टी बनी हुई है। (उसने कमला का हाथ पकड़ा और अपनी चूत पर लगा दिया)


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कमला: हाय चाची, भट्टी नही गरम पानी की भट्टी हैं। (कमला ने हाथ बाहर निकालकर रतना को दिखाया जो पूरी तरह रतना की चूत के रस से सरोबार था) इतना पानी लल्लू के लोड़े के लिए।

रतना: तू देखती तो तुझे पता लगता। ऐसा लन्ड जीवन में नही देखा।

कमला: चाची ऐसी बात मत करो, मुझे भी कुछ होने लगा हैं।

रतना: अगर देख लेती तो बिन चुदाए रहा नही जायेगा।

कमला: हाय तो चुदवा दो चाची। अब ये आग बर्दास्त नही होती।

रतना: कमिनी, अपने भाई का लोड़ा लेगी।

कमला: तो क्या हुआ, लोड़ा लोड़ा होता है और वैसे भी घर की बात घर में ही रहेगी। मैं तो कहती हूं तुम भी ले लो लल्लू का लोड़ा और बन जाओ मेरी भाभी।

रतना: (कमला के संतरे मुट्ठी ने भर के) भाभी या तेरी सौतन।

दोनो खिलखिलाकर हसने लगी।

रतना: वैसे बात तेरी सही है, घर की बात घर में रहेगी और लल्लू ही तो घर का इकलौता मर्द है। वो हमको नहीं संभालेगा तो और कौन। बस कोई बीमारी ना निकले, मैं तो यही दुआ करती हूं।


दोनो आपस में बात करते हुए एक दूसरे को उत्तेजित करने लगी और एक दूसरे की चूत में उंगली करने लगी

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और जब दोनो झड़ी तो बस यही निकला " हाय लल्लू"।
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भाग ५



पिशाच अब पूरी तरह से लल्लू पर हावी था। लल्लू की मासूमियत का फायदा उठाके वो हर काम करना चाहता था जो वो २०० साल से नही कर पाया। लल्लू की हर प्रतिक्रिया अब पिशाच के नियंत्रण में थी। वो घर की हर औरत के बारे में जान चुका था। ऐसा नहीं की पिशाच सिर्फ लल्लू का उपयोग करके उसे छोड़ना चाहता हो, वो तो लल्लू के शरीर को अपना स्थाई शरीर बनाना चाहता था। वो लल्लू के लिए फिकरमंद भी था की उसका वंशज ऐसा क्यों है, और अतीत की गहराइयों में झाक कर उसने जाना की लल्लू बचपन में ऐसा पैदा नहीं हुआ था, वो तो एक बहुत ही बुद्धिमान, चतुर और चपल बालक था, पर कोई हादसा उसके दिमाग की गहराइयों में दफन हैं, जहा पिशाच अभी तक पहुंच नही पाया हैं। लल्लू नींद की गहराइयों में जाने लगा पर पिशाच जाग रहा था।

सुधा अपने सारे काम निपटा कर अपने कमरे की ओर चली जा रही थी। वो और लल्लू साथ में ही सोते थे। जब सुधा कमरे मे पहुची उसने देखा लल्लू की आंखे बंद हैं। लल्लू केवल एक अंडरवियर पहने सो रहा था।

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सुधा ने दरवाजा बंद किया और वो अपने बिस्तर की ओर बड़ने लगी। हर एक बड़ते कदम के साथ उसके दिल की धड़कन भी बड़ती जा रही थी। सुधा बिस्तर के बिलकुल करीब पहुंचकर लल्लू को निहारने लगी, वो अब लल्लू में बेटा नही अपना पति खोज रही थी, जिसके नाम का सिंदूर उसकी मांग में सुशोभित हैं। वो मंत्रमुग्ध थी लल्लू की चौड़ी छाती पर, उसकी बलिष्ट भुजाओं पर, और उसकी सुडौल टांगो पर। उसका डंडा जो शायद अभी सो रहा था पर अभी भी विकराल लग रहा था। उसके जेहन में सुबह की घटना घूम गई कैसे वो मालिश करने की बजाय उसके लन्ड को मुठियाने लगी और उसके वीर्य से नहा गई। उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया। लल्लू के करवट बदलने से सुधा जैसे सपने से बाहर निकल आई। पिशाच को सुधा की हालत का ज्ञान था, वो अंदर से बहुत खुश था, क्योंकि ऐसी अप्सरा उसने जीवन में नही देखी थी।

सुधा बहुत ही असहज और कामुक दोनो थी। वो आज पहली बार लल्लू अपने बेटे के साथ नही बल्कि लल्लू उसके पति के साथ सोने जा रही थी। सुधा धीरे धीरे अपनी साड़ी उतारने लगी, ऐसा लग रहा था उसे जैसे वो खुद नही बल्कि लल्लू उसकी साड़ी उतार रहा हो।


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साडी ने सुधा के शरीर का दामन छोड़ दिया और फर्श को चूमने लगी। उसने अपने पेटिकोट के अंदर हाथ डाला और अपनी पैंटी उतारने लगी।

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नित्यक्रम में सुधा बिना पैंटी के ही सोती थी। उसकी पैंटी भी अब फर्श पर पड़ी थी। उसे पता भी नहीं पड़ा कब लल्लू को निहारते हुए उसकी चूत रिसने लगी। सुधा ने लाइट बंद करी और नाइट बल्ब जला दिया। वो किसी नई नवेली दुल्हन की तरह असहज पलंग के एक किनारे पर लेट गई। सुधा वापस अपनी रंगीन होती हुई जिंदगी के सपने में खो गई और कब नींद की आगोश में चली गई।

कमरे में गहन अंधेरा। शायद लाइट चली गई थी गांव में अक्सर ऐसा होता है। सिर्फ दो तेज चल रही सांसों की आवाज सन्नाटे को चीर रही थी। सुधा की आंखे खुल गई, उसे आभास हुआ कि लल्लू अपना लन्ड उसकी गांड़ पे रगड़ रहा था और सबसे ज्यादा अचंभा उसे अपनी गांड़ पर हुआ जो लल्लू के लन्ड के इशारे पर थिरक रही थी। जितना लल्लू उसकी गांड़ पर जोर लगाता उसकी गांड़ उतनी ही जोर से पीछे को जाके लल्लू के लन्ड का स्वागत करती।


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लल्लू एक हाथ से उसकी चुचियों को दबोच रखा था। सुधा को उसकी चुचियों पर कितने सालों बाद एक मर्दाना हाथ की रगड़ महसूस हो रही थी।

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अगर पेटीकोट और अंडरवियर न होता तो लल्लू का लन्ड अब तक उसकी गांड़ में समा चुका होता। सुधा से कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था। वो पहले ही चुदासी थी और लल्लू की हरकत ने उसे पागल कर दिया था। लल्लू की रगड़ उसकी गांड़ को दो पाटों में बाट रही थी। उसकी चूचियां लल्लू के मर्दन से तन कर खड़ी हो गई थी, वो ब्लाउज और ब्रा फाड़कर बाहर निकलने को व्याकुल थी। वो चिल्ला चिल्ला के इस सुख को बयान करना चाहती थी पर शर्म अभी भी उसकी चादर बनी हुई थी। सुधा के अंदर का लावा बाहर निकलने को व्याकुल था वो लल्लू को और तेज रगड़ने को बोलना चाह रही थी पर उसकी शर्म अभी भी उस पर हावी थी। और फिर वोही हुआ जो सुधा चाह रही थी, उसके अंदर का उन्माद उसकी चूत के रास्ते पानी बनके बहने लगा और एक तेज सांस जिसकी गूंज बेहरा भी सुन सकता था, सन्नाटे को चीर गई। सुधा की जांघें आपस में जुड़ गई और वो अपनी चूत के इस नए अनुभव का एहसास करने लगी।


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सुधा एकदम शांत पड़ गई। उसके शरीर में जैसे जान ही न बची हू। उसने महसूस किया की लल्लू भी अब कोई हरकत नहीं कर रहा।

सुधा बस आंखे बंद किए हुई, उन बीते हुए लम्हों को याद कर रही थी। वो बहुत ही खुश थी क्युकी किसी पुरष ने आज पहली बार उसे इतना सुख दिया है। वो बस इसी पल में जीना चाहती थी। तभी उसे एहसास हुआ की लल्लू उठ कर कही जा रहा है। उसकी हिम्मत नही हुई को वो आंखे खोल लल्लू किधर जा रहा हैं देख सके। उसकी आंखे अब तक अंधेरे में देख सकने लायक अभ्यस्त हो चुकी थी। लल्लू घूम कर सुधा की तरफ जाके खड़ा हो गया। उसके शरीर पर अब उसका अंडरवीयर नही था और उसका विकराल लन्ड हवा में झूल रहा था जो पूरा खड़ा था।


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सुधा चकित थी ये देख के की लल्लू का लन्ड अभी तक खड़ा है, जबकि उसे झड़े हुए कम से कम १५ मिनट हो चुके थे। सुधा ने एक खिड़की बना ली थी आंखो में जिससे वो लल्लू की हर हरकत पर नजर रख रही थी। लल्लू के हाथ में काला काला कुछ था। वो क्या था सुधा नही पहचान पाईं। जब लल्लू ने उस काली चीज को अपनी नाक पे लगाया तब उसे एहसास हुआ की ये तो उसकी पैंटी हैं। उसने गौर से देखा की लल्लू उसकी पैंटी जहा पर चूत की फांके आती है उसे चाट रहा हैं और अपना लन्ड हिला रहा हैं।


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सुधा को नाक में लल्लू के लन्ड की खुशबू बस गई और वो मदहोश होने लगी। लल्लू का लन्ड इतना करीब था सुधा के मुंह के, उसका मन हुआ की वो मुंह खोल कर लल्लू का लन्ड निगल ले।


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सुधा बस लल्लू के लन्ड को निहारे जा रही थी। वो हैरान थी अभी कुछ देर पहले ही उसकी चूत झड़ी है और अब लल्लू के लन्ड को देख कर फिर से पनियाने लगी। सुधा ने अंधेरे का फायदा उठाते हुए अपनी चूत को अपने हाथ से दबोच लिया। दोनो में से कोई कुछ नही बोल रहा था बस एक दूसरे के प्रति वासना को एक नया आयाम दे रहे थे। सुधा को लल्लू के फुसफुसाने कि आवाजे सुनाई दी तो वो ध्यान लगा कर सुनने लगी, जो उसने सुना उसकी चूत फड़फड़ाने लगी।

लल्लू: आह सुधा, क्या खुशबू हैं तेरी चूत की। तू मां नही बीवी है मेरी। तुझे तो मैं दिन रात चोदूंगा। आह सुधा ओह मेरी रानी। इस लन्ड की असली हकदार है तू। तू हर रोज इस लन्ड की सवारी करेगी। मेरे बच्चे पैदा करेगी तू। आह ओह आह

सुधा ने ध्यान लगाया की लल्लू को कम से कम १५ २० मिनट हो गए हैं अपना लन्ड मुठियाते हुए। पर अभी तक उसका निकला नही था। सुधा लल्लू की मर्दानगी पर मोहित हो उठी। तभी लल्लू के हाथो की गति उसे तेज होती हुई महसूस हुई। लल्लू ने सुधा की पैंटी को अपने लन्ड पर लपेट लिया। और तेज तेज अपने लन्ड को मुठियाने लगा।

लल्लू: आह सुधा मेरी जान मेरी रानी मैं आ रहा हूं। देख तेरा पति तेरी कच्छी में झड़ रहा है। आह ओह आए

और एक गुर्राहट के साथ लल्लू ने अपना सारा रोश निकल दिया। लन्ड की ठुनक से सुधा समझ गई की लल्लू ने काम से काम १० १२ धार मारी है। जब लल्लू शांत हो गया तो उसने सुधा की पैंटी उसके सिरहाने रख दी। सुधा के नुथनो में भीनी भीनी महक जो की लल्लू के वीर्य की थी में बसने लगी। वो बस लेटे लेटे इस महक में खो गई। थोड़ी ही देर में लल्लू के तेज सांसे जो की उसकी नींद में होने की निशानी थी वो गूंजने लगी। सुधा से अब रहा नही गया वो अपनी मिठाई अब चखने को बेताब थी। उसकी जुबान पे सुबह का स्वाद अभी तक था। सुधा ने अपनी पैंटी उठाई जो पूरी तरह से लल्लू के रस भरी पड़ी थी। ऐसा की जैसे वीर्य की बाल्टी में पैंटी को डुबाया हूं। वो मन ही मन सोचने लगी "कितना मॉल छोड़ता है ये लल्लू। एक ही चुदाई में मुझे गर्भवती कर देगा"। वो अपनी जीव निकाल कर अपनी पसंददीदा मिठाई खाने लगी।


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वो इतनी चुदासी हो गई थी की उसे लल्लू की उपस्थिति का भी कोई भास नही था। वो इतनी तेज अपनी चूत को रगड़ रही थी की पूरा पलंग हिल रहा था।

सुधा: आह लल्लू मेरे स्वामी आह। पत्नी हूं मैं आपकी आह। रोज चोदना मुझे और ये मिठाई तो मुझे रोज चाहिए। आह ओह। तड़पाओ मत अपनी इस दासी को आह ओह आ आ जल्द भोग लगा दो अपना।

सुधा इतनी जल्दी झड़ गई, पर खुमारी अभी भी थी। सुधा की चूत मांगे मोर। पर उसे इतना यकीन था उसका भविष्य अब अकेले नहीं कटेगा। उसका जीवन अब लल्लू के साए में कटेगा और उसकी हर रात रंगीन होगी। सुनहरे भविष्य के सपने लिए सुधा नींद के समुंदर में गोते लगाने लगी। लल्लू के चेहरे की मुस्कान वो नही देख पाई। लल्लू उर्फ़ पिशाच चाहता तो सुधा को आज ही चोद देता पर सुधा जैसी गदराई हुई औरत इत्मीनान से भोगने की चीज है।

मां ओ मां ७ बज गए, अभी तक उठी नही हो। बाहर कमला दरवाजा पीट रही थी। सुधा सुबह ५ बजे उठने वाली आज सात बजे तक कैसे सोई रह गई। सुधा ने भलभला कर अपनी आंखे खोली तो पाया वो लल्लू की बाहों में सिमटी हुई है। उसकी बाहों की गर्माहट ने आज उसे उठने नही दिया। वो अभी अपने प्रेम को पहचान पाती की फिर से कमला ने दरवाजा पीट दिया।



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कमला: मां ओ मां।

सुधा: उठ गई कमला। थोड़ी तबीयत ठीक नहीं है अभी आती हूं।

कमला इतना सुन कर नीचे चली गई। सुधा लल्लू की बाहों में आंखे बंद कर पड़ी रही। लल्लू के जिस्म से उठती हुई मर्दाना खुशबू वो अपने रोम रोम में बसा लेना चाहती थी। उसे और कुछ नही चाहिए था बस वो ईश्वर से दुआ कर रही थी की समय थम जाए और वो इस पल को पूरा जी ले। उसके हाथ लल्लू की छाती की चौड़ाई नापने लगे और उसके होठों ने लल्लू की भुजाओं का स्पर्श किया। वो लल्लू पे अपना सम्पूर्ण प्रेम लुटाना चाह रही थी पर समय की नजाकत को समझते हुए उसने अपने दिल में उठ रहे सैलाब पर अंकुश लगाया। वो खड़ी हुई और नीचे जानें की तैयारी करने लगी। तैयार होकर उसने एक बार सोते हुए लल्लू को निहारा और उसकी छवि को अपने मन मंदिर में कैद किया और दरवाजा खोल दिया। सुधा के जाते ही लल्लू उठ कर बैठ गया और उसकी चेहरे का नूर देखते ही बनता था।

सब अपने अपने कामों में व्यस्त हो गए। लल्लू भी नीचे आ गया और हल्का होने के लिए जंगल की तरफ चल दिया। जंगल के रास्ते पर राजू और उसके दोस्त मिले। राजू गांव का एक बिगड़ा हुआ लड़का था। लल्लू को बहुत परेशान करता था। और उसके दोस्त उसका हर काम में साथ देते थे। पिशाच उन्हे देखते ही समझ गया की ये लल्लू को परेशान करते हैं। उसके चेहरे पर बहुत ही जहरीली मुस्कान थी।

राजू: आ गया लल्लू, अपनी अम्मा की गोद से निकल के। अपनी अम्मा को बोल हमे भी अपनी गोद में बिठा ले या फिर मेरी गोद में बैठ जाए।

लल्लू की आंखों में अंगार थे। उसने टेडी निगाह से राजू की तरफ देखा। राजू और उसके दोस्त खिलखिलाकर हस रहे थे। लल्लू ने फिर भी राजू को माफ करने की सोची। वो आगे को बड़ा तो उनमें से एक लड़के ने लल्लू को अडंगी मार दी। लल्लू धड़ाम से नीचे गिरा। उसका चेहरा पूरा मिट्टी में सन गया। लल्लू ने घूर के राजू को देखा।

राजू: आले मेरे लल्लू को गुस्सा आ रहा हैं। क्या करेगा लल्लू। अम्मा की गोद में रोएगा। आले आले।

राजू इसके आगे कुछ नही बोल पाया क्युकी लल्लू की लात सीधे उसके पेट पे पड़ी और कम से कम २० गज दूर राजू गिरा। बाकी के लड़के राजू को पकड़ने के लिए बड़े पर कोई लल्लू को छू भी नहीं पाया। पलक झपकते ही सारे लड़के धरा पर पड़े थे। लल्लू पूरी शिद्दत से उन सब की सुताई करने लगी। किसी को लात पड़ी किसी को घुसा पर सब के सब पिट रहे थे। थोड़ी ही देर में राजू एक पेड़ पर उल्टा लटका हुआ था और उसके सारे दोस्त धूल चाट रहे थे। लल्लू वहा से चल दिया।

लल्लू: राजू अब जाके अपनी अम्मा की आंचल में छुप जाना नही तो वहा भी मैं घुस गया तो तुझे नया भाई या बहन मिलेगी। समझा।

राजू को उसके दोस्तो ने नीचे उतारा, वो इस बात से खुश थे की किसी ने उनकी सुताइ होते हुए नही देखा। सब अपने अपने घर को चल दिए। राजू चद्दर ओढ़ कर बिस्तर पर लेट गया। राजू के मां सपना ने जब ये देखा तो वो गुस्से से पागल हो गई।

सपना: हरामखोर तू और तेरा बाप दोनो निकम्मे है। तुझे आवारागर्दी और ठूंस कर खाना खाने से फुरसत नहीं और तेरे बाप को शराब से। कल भी घर नही आया मादरचोद।

सपना के लिए गाली देना बड़ी बात नहीं थी। वो अपने पति और अपने बेटे से बहुत परेशान थी।

सपना: उठता है या गांड़ में लक्कड़ दू तेरी।

राजू को मालूम था की सपना जो बोलती है वो कर भी देती हैं। राजू तुरंत उठ कर बैठ गया। सपना ने राजू के चेहरे को देखा और ताज्जुब हुआ की जो लड़का पूरे गांव के लड़को को धूल चटा सकता है उसकी ये हालत किसने की।


सपना: कहा गांड़ मरवा के आ रहा हैं।

राजू: मां वो..... वो

सपना: कुत्ते भोकता क्यू नही, किस से पिट के आ रहा हैं।

राजू: (एक सांस में बोल गया) मां वो लल्लू।

सपना लल्लू का नाम सुनते ही हसने लगी।

सपना: तुझे उस पिद्दी से लल्लू ने ठोक दिया, धिक्कार है मेरे दूध पर।

राजू: मां वो पुराना लल्लू नही है। उसने मुझे एक हाथ से उठा लिया। बहुत ताकत आ गई है इसके अंदर।

राजू की बातो ने सपना को अचंभे में डाल दिया।

सपना: भांग तो नही पीली सुबह सुबह। खैर छोड़, खाना बना रखा हैं तेरा और तेरे निठल्ले बाप का। खा लियो और उसे भी ठूसा दियो। मैं जा रही हूं रानी मां के खेती में काम करने।

इतना बोलकर सपना घर से बाहर निकल गई। तो आईए सपना के बारे में थोड़ी जानकारी लेले। सपना एक ४४ वर्षीय गडराई हुई महिला हैं। सपना हर कटाव और उठाव देखते ही बनता था। पति ने तो आज तक इसे निर्वस्त्र भी नही देखा था वो तो ससुर था जो एक बेटा दे गया। जब तक ससुर था तो कही न कही सपना खुश थी, कम से कम रात अकेली तो नही काटनी पड़ती थी पर जबसे ससुर ढेर हुआ तबसे सिंदूर लगी विधवा का जीवन बिता रही थी। एक छोटी जमीन का टुकड़ा है जो लाला के पास गिरवी पड़ा है जिसका ब्याज सपना महीने में तीन दिन उसका बिस्तर गरम कर देती हैं। योन सुख तो मिल जाता है पर योन तृप्ति उससे आज तक नही मिली। पति सुंदर लाल एक नंबर का शराबी और बेटा राजू कामचोर, निकम्मा। यही परिवार था सपना का।


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लल्लू आज पूरा आजाद था उसे कोई आने जाने से नही टोक रहा था। लल्लू सुधा के पास गया।

लल्लू: माई o माई, मैं ज़रा अपने खेतो तक घूम के आऊं।

सुधा: (मन में रात को बीवी बीवी बोल रहा था अब देखो कैसे माई माई चिल्ला रहा है) कितने देर में आयेगा लल्लू।

माया देवी,: अरे जाने दे सुधा, आ जायेगा थोड़ी देर में। क्यू लल्लू।

लल्लू: हां ताई मां थोड़ी देर टहल के आ जाऊंगा।

इतना बोलकर लल्लू निकल गया नई नई चुतो की सुगंध लेने।

माया देवी: देख रही हो सुधा और रतना लल्लू का आत्मविश्वास बड़ता जा रहा हैं। देख कर कितनी खुशी हो रही है।

रतना: हां दीदी। बस लल्लू अपनी जिम्मेदारी संभाल ले तो बस हम सब का उद्धार हो जाएगा।

सुधा अपने मन में " मेरा उद्धार तो कल होते होते रह गया।" और मंद मंद मुस्कुराने लगी। तीनों चूत अपनी अपनी इच्छाएं अपने अंदर दबाए बैठी थी।

उधर लल्लू अपने खेतो पर पहुंच गया उसे तो हर तरफ चूत ही नजर आ रही थी। वो मचान पर चढ़ गया और उन सारी रस से भरी हुई औरतों को ताड़ने लगा। उन्हे अपनी आंखो से निर्वस्त्र करने लगा। तभी उसकी नजर सपना पर पड़ी जो अपने काम में लगी हुई थी। लल्लू को राजू की बात याद आई सुधा को अपनी गोद में बिठाने की। लल्लू के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

सपना जो काम के व्यस्त थी उसे एक दम से बहुत तेज मूत लगा। वो पम्प हाउस के पीछे की तरफ जाने लगी। जैसे ही वहा पहुंची उसके पैरो के नीचे से जमीन खिसक गई और उसकी आंखे बाहर को निकल आई। लल्लू अपना लन्ड निकले मूत रहा था। घोड़े जैसे लन्ड और मोटाई इतनी की उसकी मुट्ठी में भी न आए। मूत की धार, इतनी मोटी और इतनी दूर जा रही थी, जैसी सपना ने आज तक नही देखी हो। उसकी आंखे भारी होने लगी। कोई नशा उस पर हावी हो गया था। लन्ड का नशा जो सबसे गहरा नशा होता है उसके सर चढ़ कर बोल रहा था। वो सोचने पर मजबूर हो गई की ये ही वो लन्ड है जिसकी उसे तलाश थी। सपना की खुमारी इतनी बड़ गई की वो भरी दोपहरी, खुले आसमान के नीचे अपनी चूत को सहलाने लगी। सपना का जिस्म तप के भट्टी के समान हो गया था। उसके सांसे भारी और उसकी रस भरे खरबूजे ऊपर नीचे हो रहे थे। लल्लू तिरछी निगाहों से उसे देख रहा था। सपना की चूत इतनी गीली हो गई थी की उसकी जांघें गीली हो गई। सपना दीन दुनिया से बेखबर थी उसे लल्लू वापस इस दुनिया में लाया।


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लल्लू: क्या हुआ काकी। कहा गुम हो।

सपना: (सर झटक कर) कुछ नही लल्लू बेटा, वो थोड़ा हल्का होने आई हूं।

लल्लू: अच्छा मूतने आई हो।

सपना लल्लू के मुंह से मूतना सुनकर शर्मा गई।

लल्लू: मूत लो, मैने भी अभी मूता है।

लल्लू जाने लगा तो सपना के अंदर की आवाज ने बोला " हाय सपना क्यू जाने दे रही है, इतना बड़ा लन्ड तुझे जिंदगी में नसीब नहीं होगा। रोक ले इसे।"

सपना: लल्लू बेटा।

लल्लू: हां काकी।

सपना: तुझे मालपुआ पसंद हैं ना।

लल्लू: हां काकी बहुत पसंद हैं, मुलायम और रस से भरा हुआ। आपके पास है क्या?

सपना: आज ही रस से भरे है। घर पर हैं। आज शाम को घर पर आना में तुझे अपने हाथो से खिलाऊंगी मालपुआ।

लल्लू: पर काकी वहा पर राजू होगा वो फिर मुझे परेशान करेगा।

सपना: अरे कोई नही होगा, राजू तो अपनी नानी के गांव गया हुआ है, वो कल आयेगा। तू आराम से आ जाना।

लल्लू: अच्छा काकी। मैं शाम को आऊंगा।

लल्लू चलने लगा तो उसे कुछ ध्यान आया।

लल्लू: तुम्हारे वहा जंगल तो नही है।

सपना: (लल्लू की बात सुन झेप गई, वो समझ तो गई लल्लू उसकी झांटों की बात कर रहा है, पर फिर भी) क्या मतलब लल्लू बेटा। (सपना के चेहरे पर हसी थी)

लल्लू: काकी मतलब तुम्हारे घर के रास्ते में जंगल तो नही पड़ता, ताई मां वहा जाने से मना करती हैं।

सपना: लल्लू बेटा चिंता मत कर, जब तू आयेगा तो तुझे चिकना सपाट रास्ता मिलेगा।

लल्लू और सपना दोनो को मालूम था इन बातो का मतलब और वो दोनो बहुत खुश थे।

लल्लू वहा से निकल गया और सपना मूतने के लिए आगे बड़ी। वो उसी जगह पर बैठी जहा लल्लू के मूत की धार गिरी थी। सपना को मूत की दुर्गंध भी किसी इत्र से कम नही लग रही थी। सपना चुदासी हो गई थी।

सपना तुरंत मूत कर मुंशी के पास गई और कोई बहाना बना कर घर की ओर चल दी। घर पहुंचकर उसने राजू को कुछ पैसे दिए और कहा

सपना: तुझे तेरी नानी ने बुलाया हैं। ये कुछ पैसे पकड़ किराए के लिए और ये पैसे अपने बाप को दे दियो वो गांव के बाहर वाले अड्डे पर होगा।

राजू को कुछ भी समझ नही आया सुबह तक तो मां चंडी बनी हुई थी, अब एक दम से नानी के यहा। पर उसे क्या पैसे मिल गए आज रात को नानी के यहां दारू भी मिलेगी और मामी की चूत भी। राजू के दिल में बिल्लियां उछलने लगी। वो तुरंत ही तैयार हो कर निकल गया।

राजू के निकलते ही सपना ने तुरंत खुद को लल्लू के लिए तैयार करने में लग गई। उसे लल्लू को चिकना और सपाट रास्ता तैयार करके देना था। उसने बाल साफ क्रीम लगाई जो की लाला ने उसे शहर से लाकर दी थी। जब उसने अपनी चूत को देखा तो बिलकुल कमसिन लग रही थी। उसने अपनी चूत पर हाथ फेरा और उसके मुंह से बस इतना ही निकला "सब्र नहीं हो रहा जल्दी से आजा लल्लू"।



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भाग ६





लल्लू सपना से सेटिंग करके घर की ओर चल दिया। लल्लू और लल्लू के अंदर का पिशाच बहुत खुश था की आज उसे मखन मलाई जैसी चूत मिलेगी। वो रास्ते भर सपना के गदराय जिस्म की कल्पना करता रहा। जब वो घर के करीब पहुंचा तब उसे कमला अपनी बड़ी बहन दिखाई दी छत पर। लल्लू के मुंह में उसको देखते ही पानी आ गया। कमला घाघरा चोली पहने छत पर टहल रही थी। लल्लू के मन में कमला के साथ मस्ती करने की सूझी।


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लल्लू घर के अंदर घुस अपने चाचा के कमरे से पतंग और चकरी ले आया और छत की तरफ जाने लगा।

माया देवी: अरे लल्लू पतंग लिए कहा जा रहा हैं।

लल्लू: छत पर पतंग उड़ाने और कहा।

रतना: तुझे पतंग उड़ानी आती भी है। (हस्ते हुए)

लल्लू: चाची मैं हर तरह की पतंग उड़ा सकता हूं। कभी ढील देनी है और कब खींचा मरना है मुझे सब आता है।

लल्लू ने बात तो बोल दी पर उसके इशारे कुछ अलग थे। जब उसने बोला की कब ढील देनी है तो लल्लू की कमर का नीचे का हिस्सा आगे हुआ और कब खींचा मरना है तो झटके से कमर के नीचे के हिस्से को वापस खीच लिया। लल्लू की बात सुन और इशारे माया देवी और रतना मुस्कुरा पड़ी और उनकी आंखे शर्म से नीचे हो गई। लल्लू छत पर पहुंच गया और उसकी आंखे कमला से चार हुई। कमला भी लल्लू को पतंग के साथ देख बहुत हैरान हुई।

कमला: क्यू रे, तुझे आती है पतंग उड़ानी।

लल्लू: अभी थोड़ी देर में देखना दीदी पूरा आसमान साफ कर दूंगा।

लल्लू अपनी पतंग उड़ाने में लग गया और कमला रतना द्वारा लल्लू के लन्ड के व्यक्खायन में खो गई। वो खो गई लल्लू के लन्ड में। कैसा दिखता होगा, कितना लंबा होगा, कितना मोटा होगा और जब उसकी कुंवारी चूत में जायेगा तो कैसा लगेगा। इन सब के बारे में सोच कर ही उसकी पलके भारी होने लगी और नीचे चूत में चुनमुनी से लगने लगी।

"हाई बो काटे" इस आवाज के साथ कमला अपनी चुदासी दुनिया से बाहर निकली। उसने नजर उठाके देखा तो लल्लू की पतंग आसमान छू रही थी। वो एक कुशल पतंगबाज के तरह हर पेचा लड़ा रहा था और सबकी पतंगे धूल चाटती जा रही थी। आसमान पे अब सिर्फ लल्लू का राज था।

कमला: (प्रशंसा भरे स्वर में) अरे वाह लल्लू, तू तो बहुत बढ़िया पतंग उड़ाता है।

लल्लू: मैने पहले ही कहा था दीदी की आसमान साफ कर दूंगा।

कमला: वो तो है भाई। मुझे भी सिखा दे।

लल्लू: तो आ जाओ दीदी। पकड़ो डोर।

कमला भी लल्लू के करीब चली गई। लल्लू अब ऐसी जगह था छत पर जहा से उसे नीचे से कोई नही देख सकता था। सबसे ऊंचा घर होने से कोई छत से भी नही देख सकता। दोपहर का समय कोई खेत में भी नही था। लल्लू अब निश्चिंत होकर कमला से मजे ले सकता था। कमला आगे खड़ी हुई और लल्लू उसके पीछे। उसने कमला के इर्द गिर्द अपनी बाहें डाली और कमला को डोर पकड़ा दी। कमला और लल्लू बिलकुल चिपक गए।



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लल्लू ने अपना विकराल लन्ड कमला की गांड़ से सटा दिया। जैसे ही लल्लू के लन्ड का स्पर्श कमला को अपनी अनछुई गांड़ पर हुआ, उसकी सिसकारी निकल गई।

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कमला: आह आह लल.. ल लल्लू।

लल्लू: क्या हुआ दीदी।

कमला: (झेंपते हुए) कुछ नही लल्लू।

कमला की सांसे उसके काबू में न थी। उसकी धड़कन तेजी से धड़क रही थी। उसकी चूचियां ऊपर नीचे हो रही थी। लल्लू के लन्ड का एहसास होते ही कमला की कुंवारी चूत पानी रिसने लगी। उसको अपनी पैंटी पर गीलेपन का एहसास होने लगे। उसकी आंखे बंद होने की कगार पर थी।

लल्लू: आप ठीक से खड़ी हो जाओ दीदी।

लल्लू ने कमला के चिकने सपाट पेट पर हाथ रखा और कमला को बिलकुल खुद से चिपका लिया। अगर कपड़े न होते तो अबतक लल्लू का लन्ड कमला की गांड़ की वादियों के सैर कर रहा होता। पहली बार कमला को लल्लू के लन्ड की लंबाई और मोटाई का एहसास हो रहा था। कमला की सांस जैसे उसके गले में अटक गई और उसका मुंह खुला का खुला रह गया।


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लल्लू वहा रुका नही वो एक हाथ से कमला के पेट सहला रहा था और नीचे अपने लन्ड को कमला की गांड़ पे रगड़े जा रहा था। कमला ठंडी ठंडी आहे भरने लगी।

कमला: आह ह ल ल ओ लल्लू क्या कर रहा है।

लल्लू ने कोई जवाब नही दिया और अपना काम जारी रखा। उसके होठ कमला की पीठ पर घूमने लगे। वो अपनी जुबान से कमला की गोरी पीठ चाटने लगा। कमला मुंह से तो लल्लू से पूछ रही थी पर उसका जिस्म कुछ और कहानी बयां कर रहा था। लल्लू की रगड़ से ताल से ताल मिलके उसकी गांड़ हिल रही थी। चाची के साथ वो ये सब कर चुकी थी पर लन्ड से इतना मजा आता है उसने सपने में भी नही सोचा था। लल्लू को कमला की हालत का अंदाजा हो रहा था वो मंद मंद मुस्कुरा रहा था।

लल्लू ने अब पतंग की डोर बिलकुल छोड़ दी और थाम लिए कमला के रस भरे आम। लल्लू ने कमला की चुचियों को दबाना शुरू कर दिया। कमला अब आपे से बाहर हो चली थी। उसे एहसास हो चला की चूत का पानी रिस के उसकी जांघें गीली करने लगा है। उसने अपना सिर लल्लू के कंधे पर रख दिया और मस्ती के सागर में गोते लगाने लगी।


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कमला: आह ह ओ आई ल ल लल्लू मत कररररररररर। बहन हु तेरी।

लल्लू बिलकुल कमला के कान के पास

लल्लू: कल रात को तू ही तो कह रही थी लन्ड लन्ड होता है। बस चुपचाप मजे कर। (और उसके कान की लो को चूसने लगा)

कमला अब कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं थी। लल्लू ने चारो तरफ से कमला को घेर लिया था। पहली लन्ड की रगड़ गांड़ पे, दूसरी उसके पेट को सहलाना, तीसरा उसकी चूचियों का मर्दन और चौथा उसके होठ जो कमला के जिस्म का हर कोना चूम रहे थे। लल्लू ने रगड़ना छोड़ दिया पर कमला उस पड़ाव पर पहुंच चुकी थी की वहा से वापस आना उसके लिए नामुमकिन था। कमला खुद अपनी गांड़ लल्लू के लन्ड पर रगड़ने लगी। उसकी आहे रूके न रुक रही थी।

कमला: आह आह आई ओह आह

लल्लू ने अपना आखिरी दांव खेला। उसने घाघरे के ऊपर से ही कमला की चूत को दबोच लिया। बस लल्लू ने इतना ही किया की कमला के सब्र का बांध टूट गया। कमला झड़ने लगी। कमला का सिर लल्लू की छाती पर लुड़क गया और भारी भारी सांसे लेने लगी। लल्लू के हाथ अभी भी कमला की चूत को दबोचे हुए थे।

कमला की सांसे जब दुरुस्त हुई तब वो समझी उसके साथ क्या हुआ अभी अभी। उसकी आंखे शर्म से झुक गई। उसे अपनी स्थिति का अंदाजा हुआ की लल्लू के हाथ एक चूत पर और दूसरा उसकी रस भरी चुचियों पर। कमला ने तुरंत लल्लू को पीछे धक्का दिया और नीचे की तरफ भागी। उसने पीछे मुड़ एक बार देखा तो लल्लू उसके रस से सनी हुई अपनी उंगलियां चाट रहा था। ये देखते ही कमला की चूत एक बार फिर फड़फड़ाने लगी, पर वो रुकी नहीं और नीचे भाग गई।

लल्लू ने अपनी पतंग को देखा जो एक पेड़ में अटकी हुई थी। उसने अपने लन्ड को ठीक किया जो अब पूरी औकात में था और चरखी लपेटने लगा।

सब रसोई में बैठकर खाना खा रहे थे।

माया देवी: और कैसी रही तेरी पतंगबाजी लल्लू।

लल्लू: बहुत बढ़िया ताई मां। सब का पानी निकाल दिया मैंने चाहे तो कमला दीदी से पूंछ लो।

कमला का निवाला उसके गले में अटक गया और वो खांसने लगी। सब लोग कमला को पानी पिलाने में लग गए। कमला कुछ ठीक हुई और बिना खाना खाए अपने कमरे में चली गई।

सब खाना खाके आंगन में बैठे हुए थे। तभी लल्लू एक गन्ने की गांठ(जिसमे १५ २० गन्ने एक साथ बंधे हुए होते हैं) उठाए हुए आया। लल्लू के बल की प्रशंसा सब की आंखों में थी।

लल्लू: माई मैं राजू के घर जा रहा हूं।

सुधा: अरे राजू तो तुझे परेशान करता है ना लल्लू।

लल्लू: हां माई करता था पर आज सपना काकी ने हमारी दोस्ती करा दी, तो उसने मुझे अपने घर मालपुए खाने बुलाया है।

सुधा: अच्छा ठीक है जा। दीदी ललन(लठैत) को साथ भेज दो।

लल्लू: अरे नही माई, अब वो मेरा दोस्त है। चिंता मत कर।

माया देवी लल्लू में आए नए आत्मविश्वास से बहुत प्रभावित थी।

माया देवी: रहने दे सुधा। लल्लू खुद अपनी देख रेख कर सकता है। क्यों लल्लू।

लल्लू: जी ताई मां।

माया देवी: ये गन्ने की गांठ क्यों उठा लाया है।

लल्लू: ताई मां उसने मालपूए खाने अपने घर बुलाया है, तो गांव की मुखिया के यहां से कोई खाली हाथ कैसे जा सकता है। और फिर मेरी नई नई दोस्ती हुई है तो कोई उपहार तो लेके जाऊ।

लल्लू की बुद्धिमानी पर सारे के सारे निहाल हो गए।

लल्लू घर से निकल दिया अपने पहले शिकार की ओर।

उधर सपना जब से घर आया थी उसकी चूत कुलबुलाए जा रही थी। उसे हर आहट पर ऐसा लगता जैसे लल्लू आ गया हो। चूत चिकनी करने के बाद सपना ने अपने शरीर पर भी बाल साफ किए। वो बस लल्लू के इंतजार में पलके बिछाए बैठी थी।

तभी उसके घर के प्रविष्ट द्वार पर सांकल बजने की आवाज आई। सपना दौड़ती हुई द्वार पर पहुंची। उसने द्वार खोला तो सामने लल्लू खड़ा था कंधे पर गन्ने की गाठ लेके। लल्लू अंदर आया तो सपना ने दरवाजा बंद किया और लल्लू की तरफ देखा तो पाया लल्लू को उसके हुस्न में खोया हुआ हैं। लल्लू का मुंह खुला का खुला रह गया और रहता भी क्यों न सपना लग ही इतनी कातिल रही थी। सपना ने एक घाघरा चोली पहना हुआ था बिना चुन्नी के। चोली इतनी कसी हुई की सपना के दूध से भरे कटोरे आधे से ज्यादा दिख रहे थे। पीठ पर एक छोटी सी डोरी बस बाकी बिलकुल नंगी थी। घाघरा केवल उसके घुटनो तक था जो उसकी केले के तने के समान चिकनी टांगों की नुमाइश कर रहा था। सपना समय बरबाद नहीं करना चाहती थी।


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सपना: क्यू रे लल्लू ये गन्ने की गांठ क्यों लाया।

लल्लू: अरे काकी जब तुम अपना रस से भरा हुआ मालपुआ मुझे खिलाऊंगी तो मैं भी तुम्हें अपने गन्ने का रस पिलाऊंगा।

लल्लू की बात सुनते ही सपना की चूत बहने लगी। उसने सोचा जब कपड़े खोलने ही है तो शर्म क्यों करू। उसने लल्लू के सामने ही अपनी चूत को दबोच दिया। लल्लू की आंखे भी सपने के जांघें के जोड़ पर अटक गई। जब सपना ने हाथ हटाया तो वहा पर एक छोटा सा गिला धब्बा था। लल्लू के तो मुंह में पानी आ गया।

लल्लू: काकी लगता है मालपुआ पूरा रस से भरा हुआ हैं।

सपना: (लल्लू की बात पर हल्का सा झेप गई) हां लल्लू पूरा रस से भरपूर हैं पर ये तो बता की तेरे गन्ने में इतना रस हैं की मेरी प्यास भुजा सके।

लल्लू: काकी इतना रस हैं मेरे गन्ने में की तुझे पूरा रस से नहला दूंगा।

दोनो दुइआर्थी बातो से एक दूसरे को गरम कर रहे थे। सपना की चूत और लल्लू का लन्ड दोनो उफ़्फान पर थे।

लल्लू: काकी बाते ही करती रहेगी या फिर मालपुआ भी खिलाएगी।

सपना फट से उठ के रसोई में गई और मालपुआ इक कटोरी में करके ले आई। जब वापस कमरे में पहुंची तो लल्लू को देख उसकी आंखे फटी रह गई। लल्लू सामने बैठा एक गन्ना छील रहा था और उसके जिस्म पे केवल एक कच्छा था जो उसके उठान को छुपाने में कामयाब नही था। लल्लू सपना की आंखों में तैरते हुए वासना के लाल डोरे साफ साफ देख पा रहा था।


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लल्लू: काकी तेरे लिए गन्ना छील रहा हू ताकि तू आराम से चूस सके।

सपना: (लल्लू के कच्छे में उठान को घूरे जा रही थी।) तू ऐसे क्यू बैठा है लल्लू, कपड़े उत्तार कर।

लल्लू: उफ्फो काकी, अगर तुम्हारा मालपुआ खाते हुए रस कपड़ो पे गिर गया तो कपड़े खराब हो जायेंगे और माई गुस्सा करेंगी।

सपना ने लल्लू की बात को समझते हुए अपनी गर्दन हिलाई और लल्लू को मालपुए की कटोरी पकड़ा दी। लल्लू ने छिला हुआ गन्ना सपना को दे दिया। सपना लल्लू के सामने ऐसे बैठी थी जिससे लल्लू को उसके घाघरे के अंदर का पूरा नज़ारा मिले।


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लल्लू भी महा कमीना था वो एक टक सपना के घाघरे के अंदर नजर टिकाए मालपुए को चूस चूस उसका रस निचोड़ने लगा। सपना ने जब ये देखा तो उसे ऐसा लगा जैसे लल्लू उसकी चूत का रस चूस रहा हूं। सपना की चूत फिर पानी छोड़ने लगी, सपना को इस खेल में बड़ा मजा आ रहा था वो भी पीछे कहा रहने वाली थी वो भी गन्ने को ऐसे चूसने लगी जैसे उसका लन्ड चूस रही हूं। कभी गन्ने को अंदर लेजाती कभी बाहर लाती और होठों के बीच में फंसाकर उस गन्ने पे चुपे लगती। लल्लू भी उसकी हरकत देख अपने लन्ड को सहलाने लगा। दोनो की आंखों में गजब की हवस थी।

सपना: लल्लू कैसा लगा मालपुआ।

लल्लू: काकी एक दम रस से भरा हुआ और कितना मुलायम है। जी करता बस इसका रस चूसता रहूं। वैसे काकी मेरा गन्ना कैसा लगा।

सपना: बिलकुल वैसा जैसा मुझे पसंद है। मोटा लंबा और पूरा रस से भरा हुआ।

लल्लू: मुझे मालूम था तुझे ऐसे ही पसंद होंगे काकी इसलिए ढूंढ कर ऐसे गन्ने लाया हू। पर काकी मालपुआ में एक कमी रह गई।

सपना: वो क्या भला लल्लू।

लल्लू: बस रबरी और होती मालपुआ के ऊपर तो मजा आ जाता।

सपना: बनाई थी रबरी पर राजू सारी चट कर गया। और दुबारा बनाने के लिए दूध बचा ही नहीं।

लल्लू: (सपना के दूध से भरे हुए कटोरे घूरते हुए) काकी पर तुझे देख के लगता नही की तेरे यहां दूध की कोई कमी होगी।


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सपना लल्लू की बात का अर्थ समझ शर्मा गई। लल्लू उठा तो सपना को हैरत हुई।

सपना: कहां जा रहा हैं लल्लू।

लल्लू: मालपुआ लेने रसोई में।

सपना: ला मैं लाती हूं।

लल्लू: अरे काकी तू आराम से मेरा गन्ना चूस मैं अभी लेकर आता हूं।

लल्लू रसोईघर के लिए उठा और उसका औजार बिलकुल सीधा खड़ा था और सपना की प्यासी जवानी को सलामी दे रहा था। सपना आंखे फाड़े बस लल्लू के विशाल लन्ड को घूरे जा रही थी। उसकी चूत में इतनी खुजली होने लगी जैसे हजारों चींटियां उसकी चूत में छोड़ दी गई हो। वो दोनो जांघो से अपनी चूत में उठ रहे तूफान को रोके बैठी थी।

लल्लू को आगे क्या करना है ये वो सोच चुका था। जब वो रसोई से वापस आ रहा था तो उसने चाशनी से भरी हुई कटोरी सपना के ऊपर लुढ़का दी। चाशनी ने सपना के पूरे जिस्म को तर कर दिया। उसके कोमल कंधे, उसकी पहाड़ समान चुचियों हो, उसका मुलायम पेट हो या फिर उसकी चिकनी टांगे। रस से भीग जाने पर सपना को लल्लू पे थोड़ा गुस्सा आया पर उसे क्या मालूम ये चाशनी ही उसे चरमसुख तक लेके जायेगी।

सपना: ये क्या किया लल्लू।

लल्लू: माफ कर दो काकी। तुम्हारी चौखट से ठोकर लग गई। मैं अभी इसे साफ किए देता हूं।

लल्लू ने सपना को सोचने समझने का मौका नहीं दिया। वो फटाक से अपनी जीभ से सपना के कंधे पे गिरी चाशनी को चाटने लगा। ये पहला स्पर्श था लल्लू का। सपना के पूरे जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई। उसकी आंखे मदहोशी में बंद होने लगी।


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सपना: आह क्या कर रहा है लल्लू।

लल्लू: काकी तुम्हे साफ कर रहा हूं। रस मैंने गिराया तो साफ भी मैं ही करूंगा।

लल्लू फिर से सपना के कंधे और गर्दन पर जीभ चलाने लगा। लल्लू रस के साथ साथ सपना के जिस्म का हर रस भी पी रहा था। सपना की आहे पूरे वातावरण को और कामुक बना रही थी। सपना भी लल्लू के बालो में उंगली फेरती और जब उन्माद और बड़ जाता तो बालो को मुट्ठी में भींच लेती।

लल्लू के हाथ भी अब चलने लगे, सपना के गुंदाज पेट पर। वो चाशनी लेता अपनी उंगली में और सपना की नाभी में उस उंगली को घुमा देता। सपना तो बस इतने पर ही पानी पानी हो रही थी। हर एक सेकंड के साथ उसकी मदहोशी बड़ती जा राहिब्थी। उसकी आंखे हवस के नशे से पूरी तरह बंद थी, वो तो बस लल्लू की हर हरकत का आनंद उठा रही थी।

लल्लू ने वो कदम उठाया जिसकी कल्पना सपना शाम से कर रही थी। लल्लू के हाथ में उसके मुलायम चूचियां थी जिनका लल्लू चोली के ऊपर से बड़े प्रेम से मर्दन कर रहा था। कभी एक चूची का कभी दूसरी चूची का मर्दन चालू था। सपना को आज एक मर्द के हाथो का एहसास हो रहा था, थोड़ा दर्द पर मजा बहुत ज्यादा। सपना की चूत इतना पानी छोड़ रही थी की उसका घाघरा तक गिला हो गया था। वो अपने हाथो से अपनी चूत सहला रही थी। लल्लू अभी भी सपना के दुग्ध भंडार में खोया हुआ था।

लल्लू: सपना तू तो कह रही थी घर में दूध नहीं है, पर इनमे तो दूध भरा हुआ है। (और जोर से दुग्ध कलश दबा दिए)

सपना: (लल्लू के मुंह से अपना नाम सुन अचंभा हुआ पर अच्छा भी लगा) काकी से सीधा नाम पर। बहुत कमीना है तू।

लल्लू: (हस्ते हुए) कमीना नही होता तो थोड़ी ना इस समय तेरे दूध से भरे हुए थन दबा रहा होता।


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सपना: आह मूहे धीरे दबा। हा कही भागे थोड़ी ना जा रही हूं।

लल्लू ने पीछे से सपना की चोली में हाथ डाला पर हाथ ठीक से घुस नही पा रहा था क्योंकि चोली बहुत तंग थी। सपना हाथ पीछे लेजाकर अपनी चोली खोलने ही वाली थी की चिरररररररर की आवाज के साथ उसकी चोली दो पाटों में बट गई और कुदरत के बनाए हुए विशाल खरबूजे ताज़ी हवा में सांस लेने लगे। अब लल्लू के दोनो हाथो में सपना के दूध की भरी भरी टंकिया थी जिन्हें वो बेदर्दी से निचोड़े जा रहा था।


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सपना: आह लल्लू उई आ चोली क्यू फाड़ दी लल्लू।

लल्लू: तुझे चोली की चिंता हो रही है अभी तो न जाने क्या क्या फटेगा। रही चोली की तो तुझे में इतनी चोलिया दिला दूंगा की दिन में छह छह बदलियों।

और लल्लू ने सपना के दूध से भरे हुए कलशों को मुंह में भर लिया। कभी वो रस भरे आमो की घुंडी को जीव से कुरेदता कभी दांतो से काटता या फिर कभी उन विशाल आमो को अपने मुंह में भरने की कोशिश करता। सपना तो बस मजे की कश्ती में सवार एक आनंद भरी यात्रा पर निकली हुई थी जिसमे उसकी आहे उसका भरपूर साथ दे रही थी।


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सपना: आह ओह काट चूस ले लल्लू। खा जा इन्हे। और जोर से मसल। आई ओह ह आ बहुत अकड़ती हैं। सारी अकड़ निकाल दे इनकी। आह और बता इन्हे की एक मर्द ओह उह कैसे इनका मर्दन करता है।

सपना के आनंद की कोई सीमा नहीं थी। उसे इतना मजा कभी भी नही आया। सिर्फ चूचियां चूसने भर से उसे ऐसा लगा की वो झड़ जाएगी। वो बार बार अपने हाथ से अपनी चूत मसल रही थी। लल्लू ने उसका हाथ पकड़ा और अपने लन्ड पे रख दिया।


लल्लू: तुम मेरे मालपुए की चिंता छोड़ो और अपने गन्ने की चिंता करो।

सपना के हाथ लल्लू के लन्ड पर कसते चले गए, वो उसकी लंबाई मोटाई का अंदाजा लगाने लगी और जैसे ही उसे अंदाजा लगा वो अंदर तक सिहर गई। वो उस भीमाकर लन्ड को कच्छे के ऊपर से सहलाने लगी।



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लल्लू के इतना चूसने से सपना के चूचे लाल पड़ चुके थे। जगह जगह लल्लू के काटने के निशान बने हुए थे, जिनमे मीठा मीठा दर्द हो रहा था। सपना भी अब लल्लू के लन्ड की गर्मी को महसूस करना चाहती थी वो लल्लू का कच्छा उतरने के कोशिश करने लगी पर सफलता मिल नही पा रही थी।

लल्लू: गन्ने के छिलके को ठीक से उतार तभी तो ठीक से रस चूस पाएगी।

सपना को लल्लू की बात समझ में आ गई और उसने दोनो हाथो से जोर लगाकर लल्लू का कच्छा नीचे कर दिया और जो सामने आया सपना का मुंह खुला रह गया। वो उस विकराल लन्ड के आकार को देख कर दंग रह गई।


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लल्लू: चूस इसे। इसे प्यार दे और ये तुझे वो सुख देगा जिसकी तूने कल्पना भी नहीं की होगी।

लल्लू ने जैसे सपना को आदेश दिया। सपना भी जैसे कोई कटपुतली की तरह उस लन्ड को अपने हाथो में भर लिया। एक बड़े प्यार से उसे सहलाने लगी। लन्ड का सुपाड़ा जब चमड़ी से बाहर निकला तो सपना के मुंह में पानी आ गया और उसका मुंह खुलता चला गया। सिर्फ सुपाड़े को मुंह में भर के वो उसे जीव से कुरेदने लगी।

लल्लू: आह सपना आह ह आ क्या मस्त लन्ड चुस्ती हैं तू।


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सपना अपनी तारीफ सुन पूरी शिद्दत से उस गधे समान लन्ड को चूसने लगी। वो हाथ से मुठयाती और मुंह से चूपे लगती। उसकी चुपो की गति धीरे धीरे बड़ने लगी और साथ साथ लल्लू के भारी भरकम टट्टो को भी सहलाती। पिशाच को ये सुख २०० साल बाद मिल रहा था। वो तो इस लन्ड चुसाई की मस्ती में सपना का मुंह चोदने लगा।

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लल्लू: चूस मेरी रांड सपना। आह ओह हा आ चूस रण्डी साली।

सपना को ये सब गाली नहीं खुद की तारीफ लग रही थी। वो और जोर जोर से लन्ड को चूसने लगी।

लल्लू भी सपना का पूरा साथ दे रहा था और उसने पहली बार सपना के घाघरे के अंदर हाथ दिया और सपना के मालपुए को अपनी मुट्ठी में दबोच लिया। सपना के मुंह से लल्लू का लन्ड निकाल गया।


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सपना: आह लल्लू।

लल्लू: क्या फूला हुआ रस से भरा मालपुआ हैं सपना मेरी रानी।

लल्लू ने सपना को दिखाते हुए अपनी उंगलियां जो सपना की चूत के रस से भरी हुई थी उन्हें अपने मुंह में डाला और चूसने लगा।


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सपना के आंखे ये दृश्य देख कर बंद हो गई। उसने भी लल्लू के लन्ड को अपनी जीव से चाटकर लल्लू को जवाब दिया।

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लल्लू ने सपना को खड़ा किया और सपना के मुंह से उसकी पसंदीदा मिठाई निकल गई। लल्लू ने सपना के होठों को अपने होठों की गिरफ्त में ले लिया और दोनो एक दूसरे के होठों को चूसने लगे।

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सपना लल्लू के होठों को चूसने में इतनी मगन थी की उसे आभास ही नही हुआ की उसका घाघरा अब उसके जिस्म से उतर के धरती की आगोश में पड़ा हुआ है। इस कमरे में एक ही आवाज गूंज रही थी दो तपते हुए जिस्मों की रगड़ की। होठ से होठ, छाती से छाती और लन्ड से चूत की रगड़।

लल्लू ने सपना को अपनी गोद में उठा लिया। सपना आश्चर्य भरी निगाहों से लल्लू को देख रही थी। सपना लल्लू की असीम ताकत की कायल हो गई। लल्लू ने तभी सपना को उल्टा कर दिया। अब सपना के चेहरे के सामने लल्लू का विकराल लन्ड था और लल्लू के सामने रस से भरा हुआ मालपुआ। लल्लू की जीव लपलपाने लगी। सपना अगर इस समय लल्लू उर्फ पिशाच की जीव देख लेती तो शायद बेहोश हो जाती। गज भर लंबी ज़ुबान जो सपना की चूत में जाने को बेताब थी।


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सपना ने लल्लू के लहराते हुए लन्ड को अपने मुंह में पनाह दी। वो फिर से जुट गई लल्लू के लन्ड को चूसने में। लल्लू भी कहा पीछे रहता उसकी लपलपाती जीव ने भी सपना की चूत में शरण ले ली। पहली बार जब लल्लू की जीव ने सपना की चूत के होठों को छुआ तो उसकी आंखे बंद हो गई।

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सपना के लिए नया अनुभव था। आज तक किसी ने भी उसकी चूत को जीव से नही छेड़ा था। लल्लू की जीव सपना की चूत के हर अनछुए भाग को भेद रही थी। जितनी अंदर तक लल्लू की जीव सपना की चूत को कुरेद रही थी उतनी ही शिद्दत से सपना लल्लू का लोड़ा चूस रही थी। आलम कुछ ऐसा था की लल्लू ने नीचे से झटके देने शुरू किए और सपना का मुख चोदन करने लगा। लल्लू की जीभ ने सपना के अंदर वो उबाल पैदा कर दिया जिस के लिए सपना वर्षो से तड़प रही थी। सपना की गांड़ भी हिलने लगी क्योंकि उबाल उफान पर था।

लल्लू ऐसी ही सपना को उठाए उसे अंदर कमरे की तरफ ले गया और बिस्तर पर लेट गया। लल्लू नीचे से सपना की चूत चटाई चालू थी और सपना उप्पर लन्ड चुसाई चालू।



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सपना के मुंह में लल्लू का लोड़ा न होता तो अब तक पूरे गांव को पता चल जाता की सपना की चूत चटाई चल रही है। आखिर वो समय भी आ गया जब सपना के आनंद को सीमा लांघनी पड़ी और उसकी चूत ने मदन रस छोड़ दिया।

सपना: आह आ हो आई आ ओ ल लल्लू ये क्या कर दिया तूने। बिना चोदे हो झाड़ दिया।

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लल्लू को सपना की बात का कोई असर नहीं हुआ, वो तो बस सपना की चूत से निकली एक भी बूंद बरबाद नही करना चाहता था। सरप सरप की आवाजे पूरे कमरे में गूंज रही थी।

लल्लू: कितना मीठा रस है तेरी चूत का मेरी रण्डी। (और अपने होठों पर जुबान फेरने लगा)

सपना: काकी से रानी और रानी से रण्डी। बहुत बड़ा कुत्ता हैं तू।

लल्लू ने सपना के होठ चूम लिए।

लल्लू: अभी तो तुझे कुत्तीया भी बनाऊंगा। (और सपना की जांघें मसल दी)

सपना: आह तो बना ना। रोका किस ने हैं। मैं तो कब से तड़प रही हूं।

लल्लू ने अब देर करना ठीक नहीं समझा। उसने अपना लन्ड सपना की चूत पर घिसना शुरू कर दिया। सपना तड़प उठी।


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सपना: मत तड़पा लल्लू। घुसेड़ दे अपना मूसल। भर दे मेरी चूत। आह

लल्लू ने लन्ड को चूत के मुहाने पर रखा और हल्का सा झटका दिया सिर्फ लन्ड का टोपा ही घुस पाया।

सपना: आई मां। इंसान का है या गधे का लोड़ा है। आई ऊऊई

लल्लू ने सपना के बातो पर ध्यान नहीं दिया और अपने लोड़े को उसकी मंजिल तक पहुंचाने में लगा रहा। लल्लू ने टोपा बाहर को खींचा और एक तेज तर्रार शॉट मारा। धक्का इतना तेज था की सपना भी ऊपर को सरक गई पर लन्ड अभी एक तिहाई ही घुस पाया। सपना की चीख से पूरा घर गूंज उठा।

सपना: आ आई मां। आराम से कर लल्लू। बहुत बड़ा हैं तेरा। आई मां मर गई।

लल्लू एक कुशल खिलाड़ी की तरह डटा रहा। लल्लू ने सपना की चुचियों को चूसना शुरू कर दिया। कभी चूचियां चूसता तो कभी गर्दन। क्षण भर के भीतर सपना को आराम मिला और वो नीचे से अपनी गांड़ उठाने लगी। लल्लू ने इस बार सपना के होठों को चूसना शुरू कर दिया और अपना लोड़ा बाहर खींचा और फिर एक जोरदार धक्का मारा जिससे सपना की आंखे बाहर को निकल आई। वो अपना सर पटकना चाहती थी और इस दर्द को बयां करना चाहती थी पर लल्लू की पकड़ ने करने ना दिया। लल्लू शांत ऐसे ही पड़ा रहा और सपना के होठों को चूसता रहा। उसके हाथ सपना के दुग्ध भंडार का मर्दन कर रहे थे। फिर वो क्षण भीं आया जब सपना एक बार फिर से अपनी गांड़ उठाने लगी। पर इस बार लल्लू का धक्का उसे उसकी मंजिल तक ले गया। सपना की चूत में लल्लू का लन्ड जड़ तक समा चुका था। सपना को ऐसा लगा की जैसे उसकी चूत की दीवारों को किसी ने दो पाटों में बांट दिया हो। असीम पीड़ा हो रही थी उसे। सपना की आंखे दर्द के मारे हल्की सी नम थी पर इक खुशी भी की उसने इतना बड़ा लन्ड अपने अंदर समा लिया। दोनो शांत थे। ये वासना के तूफान से पहले की शांति थी।

सपना की गांड़ की हरकत से लल्लू समझ गया की लन्ड अपनी जगह बना चुका है। अब तूफान नही थमेगा सब कुछ उड़ा ले जायेगा। लल्लू ने धीरे धीरे झटके मरने शुरू किए। हर झटका सपना को अपनी बच्चेदानी पर महसूस हो रहा था।


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धीरे धीरे लल्लू के धक्कों की रफ्तार बड़ने लगी और दर्द की जगह सपना को स्वर्गिक आनंद की प्राप्ति होने लगी। लल्लू ने सपना के होठ अपनी गिरफ्त से रिहा कर दिए। सपना के हाथ लल्लू की उठक बैठक करती हुई कमर पर चलने लगे। वो लल्लू को पूरा अपने अंदर समा लेना चाहती थी। उसने जितनी हो सके अपनी टांगे खोल दी।

सपना: आह ओह आह ऊ ओ ल लल्लू चोद हा आह

सपना की गांड़ लल्लू के धक्कों से ताल से ताल मिलाने लगी। लल्लू ने जब यह देखा तो उसने अपनी रफ्तार और बड़ा दी। सपना को जीवन में पहली बार अपनी चूत भरी हुई लग रही थी। लल्लू को भी ऐसी कसी हुई चूत मारने में मजा आ रहा था।


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लल्लू: क्या कसी हुई चूत है रण्डी। इसे चोद चोद के भोसड़ा बना दूंगा।

सपना: आह बना दे हा ओ जा भोसड़ा। चोद और चोद कुत्ते।

लल्लू भी अब पूरे जोश में था। वो तबापतोड धक्कों पे धक्के मर रहा था। और हर धक्के के साथ सपना चुदाई की नई परिभाषा जान पा रही थी। सपना को आज औरत होने का पूर्ण सुख मिल रहा था।

सपना: आह ओ हा ऊ आह आज तूने आह औरत होने का पूर्ण सुख दिया है। मैं तेरी गुलाम हो गई। आह ऊ हा। चोद मुझे। बना ले रण्डी अपनी। आह अब से जो बोलेगा वो करूंगी। आह बस मुझे चोदता रह। आई ऊ ए

लल्लू: जो बोलूंगा करेगी।

सपना: हां। तू जो बोलेगा वो करूंगी।

लल्लू: अपने बेटे के सामने चुदवाइगी। बताएगी उसे हराम के जने को की उसका बाप कौन है।

सपना: आह आई मां। आह उस निकम्मे के सामने क्या तुझसे तो मैं पूरे गांव के सामने चुदवा सकती हूं। आई ओह

लल्लू सपना की बात सुन और वेग से चोदने लगा पर सपना भी कम नहीं थीं भरपूर सहयोग कर रही थी। पूरे कमरे में सपना की आहे और फच फच की आवाजे गूंज रही। लल्लू ने सपना को चोदते चोदते ही उठा लिया और चोदने लगा।


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सपना को ऐसा लगा की अब तो लन्ड बच्चेदानी को फाड़ कर आगे का रास्ता तय करेगा। लल्लू सपना जैसी गदराई औरत को बिना किसी मुश्किल के उठाए चोदे जा रहा था। सपना ने भी लल्लू को बाहों में कस लिया और वो उसे पुरुषार्थ पर फिदा हो गई। सपना की चूत तो ऐसे निहाल हो गई थी वो खुशी ने रोए जा रही थी। उसका पानी निकलना बंद ही नही हो रहा था। सपना ने लल्लू के होठों को चूम लिया।

लल्लू: लाला ऐसे चोद पता है तुझे।

सपना: ना। आह

लल्लू: क्या वो इतनी देर तक चोदता है।

सपना: आह ओह ये तो उसका साल भर का कोटा हो गया। आह

लल्लू: अब से तू लाला के पास नही जायेगी। आज से तू मेरी पर्सनल रण्डी है। समझी।

सपना: ओ आह आई हा।

लल्लू सपना को चोदे जा रहा था, उधर सपना भी न जाने कितनी बार झड़ चुकी थी उसे याद भी नहीं। वो बस लल्लू को निराश नही करना चाहती थी। सपना अपने ही बिस्तर पर घोड़ी बनी हुई थी और लल्लू उसकी दनादन सवारी कर रहा था।


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लल्लू का भी धैर्य अब जवाब देने लगा था। उसके धक्कों की रफ्तार इस बात की गवाही दे रही थी। एक घंटे से लल्लू सपना की बजाए जा रहा था।

लल्लू: बोल कहा लेगी मेरा मॉल। बता मेरी रानी।

सपना: आह भर दे मेरी कोख। तूझ जैसे मर्द की औलाद पैदा करना सौभाग्य की बात होगी। ओह आह भर दे मेरी कोख।

लल्लू से भी अब सब्र नहीं हुआ और दहकता हुआ लावा उसने सपना की चूत में छोड़ दिया।

लल्लू: आह ले ले मेरी रानी।


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लावें की हर धार सपना को सीधे अपनी बच्चेदानी पर महसूस हो रही थी। सपना की चूत को इतना सुख मिला की उसने एक बार फिर अपना बांध खोल दिया। सपना अपने चरम को पाके इतनी खुश थी की उसने लल्लू को अपनी बाहों में समा लिया और उसके कानो में बोला " सपना आज से तेरी रखैल हैं लल्लू"
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Gurdep

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भाग ७





शाम ढल चुकी थी। चांद अपनी चांदनी बिखेरने को बेताब था पर एक घर के आंगन में बने हुए कूवे की मुंडेर के सहारे दो जिस्म अपनी तेज चलती हुई सांसों की दुरुस्त करने में लगे हुए थे। ये वोही दोनो हैं जिन्होंने अभी अभी चुदाई का दूसरा राउंड समाप्त किया है।

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ये दोनो और कोई नही सपना और लल्लू थे। सपना लल्लू के पास से उठकर जाने लगी को लल्लू ने उसका हाथ पकड़ लिया।

लल्लू: कहा जा रही है मेरी छमिया।

सपना: मूतने जा रही हूं मेरे राजा।

लल्लू: जाने की क्या जरूरत है, यही पे मूत ले।

सपना: धत पागल! यहां पर तुझे कौन सी नाली दिख रही हैं।

लल्लू: नाली नही है तो क्या हुआ मेरा मुंह तो है।

लल्लू ने इतना बोलकर सपना को मोड़कर उसकी मूत्र वाले छेद पर अपनी जीव चलानी शुरू कर दी। सपना इस हमले के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी। उसे सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि लल्लू ऐसा कुछ करेगा। एक बलशाली पुरुष जिसने उसको अभी दो बार बिस्तर पर चित किया है वो उसका मूत पियेगा।

सपना: आह लल्लू छोड़ मुझे, रोकना मुश्किल है, मेरा मूत निकल जायेगा। आह ओह

लल्लू ने सपना की बात को जैसे सुना ही नहीं वो सपना के छेद को अपनी जीव से कुरेदता रहा और वो समय भी आ गया जब सपना ने अपना नियंत्रण खो दिया।

सपना: आह लल्लू। हट जा। आई



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पर लल्लू नहीं हटा और पूरी शिद्दत से सपना का मूत्र अपने गले से नीचे उतारता गया। उसने सपना के मूत्र की आखिरी बूंद तक अपना मुंह नही हटाया। सपना जिसने कभी न ऐसा सुना न देखा, वो उन्माद के नए स्तर पर पहुंच गई। कोई मूत पीकर किसी को इतना आनंद दे सकता है उसने सपने में भी नही सोचा था। लल्लू ने जब अपना मुंह अलग किया सपना के जिस्म से तो दोनो की आंखे मिली। एक बार फिर सपना की आंखों में नशा था।

सपना: छी गंदा। कोई मूत भी पीता है क्या।

लल्लू: मैं पीता हूं। तुझे मजा नही आया। सच बता मेरी रानी और वैसे भी चुदाई में कुछ भी गंदा नही होता।

सपना: (आंखे झुक गई और चेहरे पर मुस्कान) आया बहुत आया।

लल्लू: आया ना जब तू मूत पिएगी न तब और मजा आयेगा।

सपना: छी, मुझे नही पीना मूत।

सपना ने बोल दिया पर जैसे ही लल्लू ने सपना को जोर का झटका देकर नीचे बैठाया, सपना बैठ गई और सामने जो पाया उसे देख कर वो हैरत में थी। लल्लू का लोड़ा फिर खड़ा था, अपने पूरे आकार में। दो बार शाम से झड़ चुका हैं और एक बार फिर तन कर खड़ा हुआ है। लल्लू ने अपना लोड़ा आगे बढ़ाया और सपना का मुंह खुलता चला गया।



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एक गरम गरम धार सपना के कंठ को भीगाने लगी। सपना मूत को ऐसे पी रही थी जैसे कोई अमृत हो। जैसे ही लल्लू का मूत खतम हुआ सपना ने अपने अंदर से एक अजीब सी संतुष्टि महसूस करी। उसके जिस्म में जैसे कोई स्फूर्ति आ गई हो। उसकी दिन भर की थकान गायब थी।

जैसे ही लल्लू के मूत की धार सपना ने अपने कंठ पे महसूस की दूर आश्रम में ध्यान में बैठे हुए साधु की आंखे खुल गई, वो कुछ बुदबुदाने लगा, उसकी आवाज सुन उसके शिष्यों की भी आंखे खुल गई।

शिष्य: क्या हुआ गुरुदेव।

साधु: घोर अनर्थ का प्रारंभ हो चुका है। घर अनर्थ।

शिष्य: क्या हुआ गुरुदेव। विस्तार से बताएं।

साधु: पिशाच अपना पहला वार कर चुका है। उसने आज एक स्त्री से अभिसार किया और उसको अपना मूत्र पिलाया। अब वो गुलामों की फौज तैयार करेगा।

शिष्य: दोनो में ज्यादा खतरनाक क्या है अभिसार या फिर मूत्र।

साधु: इक पिशाच की शक्ति उसके मूत्र में होती है। जब वो अभिसार के बाद उस स्त्री का मूत्र ग्रहण करता है तो और अधिक शक्तिशाली हो जाता है और जब पिशाच खुद से अपना मूत्र किसी को पिलाता है तो वो व्यक्ति उसका गुलाम बन जाता है। वो व्यक्ति उसके अधीन हो जाता है और उसके सोचने समझने की शक्ति खतम हो जाती है। इसलिए पिशाच का अभिसार करना और मूत्र पीना और पिलाना सब खतरनाक हैं।

शिष्य: अब हम क्या करेंगे और कैसे रोकेंगे इस पिशाच को।

गुरुजी: हम तो यज्ञ कर ही रहे है पर उस पिशाच को एक औरत का प्रेम ही रोक सकता है। एक ऐसी स्त्री का प्रेम जो की कामवासना से ऊपर हो। जो त्याग और प्रेम की मूरत हो। जो उस पिशाच को अपनी आगोश में समा ले। वो स्त्री ही पिशाच को बांध सकती है।

लल्लू बिलकुल तैयार खड़ा था घर जाने को। उसका मन तो बहुत था सपना की कुंवारी गांड़ मारने का पर समय का अभाव था, वो नही चाहता था की कोई उसे ढूंढता हुआ यहां पर आए। और वो सोच भी चुका था सपना की गांड़ वो उसके बेटे राजू के सामने मरेगा। इतना सोच कर ही लल्लू उर्फ पिशाच को बड़ा मजा आया। लल्लू ने चलते वक्त सपना की गांड़ पे एक जोर से चपत लगाई।


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सपना: आउच। क्यों जाते जाते दर्द दे रहा है।

लल्लू: ताकि तुझे याद रहे तू सिर्फ अब मेरी रण्डी है।

सपना: अच्छा! अगर लाला के यहां से बुलावा आया तो।

लल्लू: तो कह दियो की हफ्ते भर में पूरा हिसाब कर दूंगी। अब गई तो तुझे वही काट दूंगा रण्डी।

सपना इसको प्रेम समझ बैठी और उसकी आंखे नम हो गई पर पिशाच ने तो अपनी नई गुलाम को चेतावनी दे थी। लल्लू चलने लगा।

सपना: अब कब आएगा।

लल्लू: कल मैं शहर जा रहा हूं वापस आते ही आऊंगा मेरी रण्डी।

सपना को छोड़ लल्लू अपने घर की ओर निकल पड़ा।

जब लल्लू अपने घर पहुंचा तो रात अपने पूरे शबाब पर थी। तीनों जेठानी और देवरानी आंगन में बैठे हुए शराब की चुस्कियां ले रही थी, आखिर अपने दुख दर्द की तीनो को यही एक सांझी दवा लगी। शराब देखते ही पिशाच के मुंह में पानी आ गया और वो उन तीनो की तरफ चल दिया। तीनों ने भीं लल्लू को देखा।

माया देवी: बड़ा समय लगा दिया राजू के घर।

लल्लू: खेलने में समय का पता ही नही लगा।

मायादेवी: चल हाथ मुंह धो ले, रतना इसे खाना लगा दे।

रतना: जी दीदी। चल लल्लू।

लल्लू: ताई मां मुझे भी ये पेप्सी पीनी है।

सुधा:(गुस्से में) ये कड़वी पेप्सी होती है। बड़े लोग पीते है। कितनी बार बोला है तुझे।

लल्लू: ताई मां मां तो हमेशा मुझे बच्चा ही समझती है। पूरे २० साल का हो गया हूं मैं। और कितना बड़ा होऊंगा।

सुधा कुछ बोल पाती, इसके पहले माया देवी बोल पड़ी।

माया देवी: जा अंदर से गिलास ले आ।

लल्लू की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वो दौड़ के रसोई घर की तरफ जाने लगा।

सुधा: दीदी बच्चा हैं अभी। और आप।

माया देवी: २० साल का हो गया है और अगर उसका मानसिक संतुलन ठीक होता तो वो अब तक सब कुछ अपने हाथो में ले चुका होता। और जमींदारों का खून है, भोग और विलास की तरफ तो उबाल मारेगा ही।

इतने में लल्लू गिलास लेकर आ गया। सब शांत हो गए। माया देवी ने एक छोटा सा गिलास बना के लल्लू को दिया और लल्लू बिना कुछ सोचे समझे एक सांस में खाली कर दिया। ना जाने क्यों माया देवी को ये सब बहुत अच्छा लग रहा था। एक मर्द की कमी जो पूरे घर में खल रही थी वो उन्हे पूरी होते हुए दिखाई देने लगी। सब के विरोध के बावजूद माया देवी ने लल्लू के लिए दूसरा गिलास भी बना दिया और फिर लल्लू ने वैसा ही किया। महफिल बर्खास्त हो चुकी थी सब लोग खाना खा कर अपने अपने कमरों में थे। कमला रात को भी खाना खाने नीचे नही आई।

लल्लू अपने कमरे में पहुंचा और कान लगा कर सब के कमरों में सुनने लगा। रतना सो रही थी शायद आज उसे ज्यादा हो गई थी। कमला अपने कमरे में ब्रा पैंटी पहने हुए लेटी हुई थी। पैंटी पर से ही वो अपनी चूत सहला रही थी।


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उसके जेहन में दिन में घटी घटना बार बार आ रही थी। उसकी चूत थी की रुकने का नाम ही नही ले रही थी। वो दोपहर से तीन पैंटी बदल चुकी थी ये उसकी चौथी पैंटी थी।


माया देवी लेटी हुई थी पर उनकी आंखों में नींद नहीं थी। वो आने वाल कल के सुनहरे सपने बुन रही थी और ईश्वर से एक ही दुआ कर रही थी की कल डॉक्टर लल्लू को सही बोले।

सुधा जब कमरे में पहुंची तब तक लल्लू आंखे बंद कर लेट चुका था। सुधा ने रोज की तरह अपनी साडी और पैंटी उतारी।


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रोज जैसे वो पैंटी संभाल के रखती थी आज उसने ऐसे ही जमीन पर छोड़ दी क्युकी उसे लगा कुछ देर में लल्लू उसकी पैंटी में मिठाई गिराएगा। सुधा जाके अपनी जगह पर लेट गई और लल्लू की अगली हरकत का इंतजार करने लगी। आधा घंटा बीत गया पर लल्लू ने कुछ हरकत नही करी। सुधा को लगा शायद थोड़ी देर में करेगा। सुधा को लल्लू के लन्ड की गर्मी याद आने लगी पर वो अभी सिर्फ इंतजार कर सकती थी। लाइट चली गई, कमरे में घुप्प अंधेरा, सुधा की धड़कन तेज हुई क्युकी लल्लू के जिस्म ने हरकत करी पर अगले ही क्षण सुधा को मायूसी हाथ लगी क्युकी लल्लू तो करवट बदल के सो रहा था। सुधा जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी। सुधा से अब बर्दाश्त नहीं हुआ। सुधा खुद से ही अपनी चूत सहलाने लगी। वासना की आग कितना अंधा कर देती है एक मां अपने ही बेटे के बगल में लेट कर उसके ही लन्ड को याद करके अपनी चूत सहला रही थी। सुधा आंखे बंद करती तो उसे बस लल्लू का लहराता हुआ लन्ड ही दिखाई पड़ता। लन्ड से निकलते हुए वीर्य की धार और लल्लू का उसको अपनी पत्नी बोलना और उसे रोज पेलना। ये ही सब चल रहा था सुधा के जेहन में। उसे पता भी नहीं लगा की सेहलाते सहलाते वो कब उंगली से अपनी चूत का चोदन करने लगी।


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इतनी उत्तेजक हो गई थी सुधा की उसकी गांड़ भी हिलने लगी। उसकी उंगलियों की रफ्तार किसी इंजन के पिस्टन के भाती तेज तेज अंदर बाहर हो रही थी। सुधा इतनी चुदासी हो गई थी की १० मिनट के भीतर ही उसे कुछ उबलता हुआ सा महसूस होने लगा। उसकी उंगलियों की गति और तेज हो गई।

सुधा: आह ओह आई मां। ल ल लल्लू आह ओह।

और सुधा झाड़ गई। वो इतना झड़ी की पूरा बिस्तर गीला हो गया था। सुधा की आहे इतनी तेज थी की बाहर खड़े भी सुनी जा सकती थी पर इस गांव की सर्द रात सब अपने अपने कंबलों में दुबके हुए आने वाले कल के बारे में सोच रहे थे।

सुधा की जब सांसे दुरुस्त हुई तो उसे खुद से शर्म आने लगी। उसने लल्लू की तरफ देखा जो अभी दिन दुनिया से बेखबर घोड़े बेचकर सो रहा था। उसकी आंखो में एक अजीब सी कशिश थी लल्लू को निहारते हुए। उसके मुंह से कुछ निकला।

सुधा: मुआ कुत्ता कही का।

आंखे बंद कर सोने की कोशिश करने लगी। ऐसा नहीं था की पिशाच को सुधा के साथ मजे नही करने थे या फिर वो थक गया हो, वो तो सुधा को इतना तड़पाना चाहता था की सुधा खुद को उसके लिए पूर्ण रूप से समर्पित कर दे। लल्लू के चेहरे पर बहुत ही कमिनी मुस्कान थी।

सुबह ५ बजे के अलार्म के साथ, सुधा की आंख खुली वो पूरी तरह से लल्लू से लिपटी हुई थी या यूं कहे उसका आधा शरीर लल्लू पर लघा हुआ था।



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उसका घुटना ठीक लल्लू के लन्ड के ऊपर था और उसके हाथ लल्लू की चौड़ी छाती पर थे। उसने लल्लू के चेहरे की तरफ देखा तो उसे लल्लू पे बहुत प्यार आया। उसने लल्लू के होठों को हल्का सा चूम लिया जैसे गुड मॉर्निंग बोल रही हो।

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पर उसे मालूम था की अभी प्यार दिखाने का समय नहीं है। माया देवी टाइम की बड़ी पाबंद है। सात बजे उन्हे शहर निकलना था। उसे भी लल्लू की तैयारी करनी थी क्योंकि माया देवी ने बोला था हो सकता है दो तीन दिन डॉक्टर की सलाह पर रुकना पड़े। सुधा बिस्तर से उठी और अपने कपड़े उठाए और जैसे ही पैंटी उठाई उसे अपनी मिठाई की खुशबू आने लगी। पैंटी को देखा तो वो पूरी तरह लल्लू के वीर्य से भरी पड़ी थी। सुधा के चेहरे पर खुशी दौड़ गई। उसने अपनी जीव निकले के अपनी पसंदीदा मिठाई को चखा और चखती चली गई जब तक कुछ ना बचा।


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सुबह का विटामिन सुधा को मिल गया था। नीचे से चहल कदमी की आवाजे आने लगी। उसने उस पैंटी को अलमारी में डाला और नई पैंटी और साडी पहनी और नीचे को चली गई। सुधा के जाते ही लल्लू उठ खड़ा हुआ और उसके चेहरे पर कुटिल मुस्कान फैल गई।

माया देवी को शायद शहर जाने की बहुत जल्दी थी वो सुबह ६ बजे ही तैयार हो गई। आज वो किसी अप्सरा से कम नही दिख रही थी।


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४९ साल की उम्र में भी वो कमला को टक्कर दे सकती थी। गांव में उनकी तुलना में सिर्फ सुधा ही उनसे २० होगी बाकी सब उनके आगे पानी कम चाय थी। ६:६० बजे उनका ड्राइवर भी आ गया। पूरे गांव में माया देवी और लाला ही था जिनके पास कार थी। माया देवी के पास इक मर्सिडीज, एक फॉर्च्यूनर और इक थार थी।

ड्राइवर: कौन सी गाड़ी निकालू।

माया देवी: मर्सिडीज निकालो।

ड्राइवर गाड़ी निकालने चल दिया और माया देवी बेसब्री से लल्लू का इंतजार करने लगी। लल्लू को तैयार करके सुधा नीचे लाई और एक बाग नौकर को दिया गाड़ी में रखने को। दोनो ने हल्का नाश्ता किया। ठीक सात बजे माया देवी की गाड़ी सड़को पर दौड़ने लगी। तीन घंटे का सफर था गाड़ी में गाने चल रहे थे पर कोई किसी से कोई बात नही कर रहा था। गाड़ी में पूर्ण सन्नाटा था गाने चलने के बावजूद।

११:०० बजे का अपॉइंटमेंट लेके दिया था सरला ने। ठीक १०:४५ पर माया देवी की गाड़ी डॉक्टर के क्लिनिक के बाहर खड़ी थी जहा पर बहुत बड़ा बोर्ड लगा था डा. रश्मि देसाई (सेक्सोलॉजिस्ट एंड कंसलटेंट)।


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डा. रश्मि देसाई एक बहुत ही खूबसूरत ३६ वर्षीय शादीशुदा गदरई हुई महिला थी। इनके पति भी डॉक्टर है। रश्मि एक खुले विचारों की महिला है। इन्हे चुदाई का इतना शौक है की ये अपने पति के पीठ पीछे कई बार लुफ्त उठाती है।

मायादेवी और लल्लू दोनो इस समय रश्मि के सामने थे। रश्मि को देखते ही लल्लू की लार टपकाने लगी।

रश्मि: बोलिए क्या प्राब्लम है।

मायादेवी ने लल्लू की तरफ देखा।

मायादेवी: मेरी बेटी सरला जो मेडिकल कॉलेज में पढ़ती है उसने आपको बताया होगा।

रश्मि: हां ओके याद आया। बताया था उसने। सो साइज का प्रोब्लम है।

माया देवी: वो ..... वो

रश्मि समझ गई की माया देवी असहज हो रही है उस बच्चे की मौजूदगी में। रश्मि ने नर्स को बुलाया और लल्लू को एग्जामिनेशन रूम में ले जाने को बोला। लल्लू नर्स के साथ चला गया।

रश्मि: अब आप खुल के बोल सकती है। वो दूसरे कमरे में गया।

माया देवी: ये मेरा भतीजा है लल्लू। एक तरह से मानसिक रोगी है। उसके दिमाग का विकास ५ साल की उम्र में रुक गया था।

रश्मि: कोई घटना घटी थी क्या या फिर कोई बीमारी।

माया देवी: जी दोनो चीज हुई थी इसके पिताजी का देहांत और ये ३ महीने बुखार में रहा। फिर उसके बाद जब ये ठीक हुआ तब से इसका विकास नहीं हुआ।

रश्मि: कोई रिपोर्ट्स लाई है।

माया देवी ने सारी रिपोर्ट्स प्रिस्क्रिप्शन सब रश्मि को दे दिया। १५ मिनट तक रश्मि रिपोर्ट्स पड़ती रही।

रश्मि: इन रिपोर्ट्स से साफ पता चलता है कि दिमाग के किसी कोने में कोई घटना दफन है जिसने इस बच्चे का ब्रेन डेवलपमेंट रोक दिया। अब नया प्रोब्लम क्या है।

माया देवी के अंदर संकोच था।

रश्मि: देखिए मैं एक डॉक्टर हू, आप मुझसे खुलके बात कर सकती है।

माया देवी: वो.. वो दो दिन पहले मैंने लल्लू, हम इसे प्यार से बुलाते है वैसे इसका नाम वीर प्रताप है, को डांट दिया था। ये गुस्से में घर छोड़ के चला गया। हमने इसे रात भर ढूंढा पर ये हमे अगली सुबह नदी किनारे बेहोश मिला। जब घर आया तो इसकी मां इसे नहलाने के लिए गई तो वो देखा। (माया देवी चुप हो गई)

रश्मि: क्या देखा आपने। बताइए तभी कुछ हेल्प कर पाऊंगी।

माया देवी: वो .....वो इसका लिंग एक दम से बड़ा हो गया। (माया देवी एक सांस में बोल गई)

रश्मि: बड़ा हो गया कितना बड़ा कुछ आइडिया है। दुगना तिगुना या फिर कम।

माया देवी: जी वो ..... वो कम से कम ५ या ६ गुना बड़ गया और मोटाई कम से कम ४ गुना।

रश्मि की कानो से धुआं निकल गया। उसकी चूत ऐसे लन्ड को देखने के लिए कुलबुलाने लगी। मायादेवी को नही दिखा पर रश्मि ने अपनी चूत की जांघो के बीच भींच लिया। रश्मि ने खुद को संभाला और नर्स को लल्लू को रेडी करने को कहा। लल्लू उन दोनो की सारी बाते सुन रहा था और रश्मि का चुदासी पना भी देख रहा था। नर्स ने लल्लू को एक गाउन दिया पहनने को और उसे पैंट शर्ट उतारने को कहा। लल्लू भी एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह सारी बात मानता गया। कच्छे के उभार को देखे के नर्स समझ गई की अंदर एक नंबर का टंच मॉल हैं।

रश्मि कमरे में दाखिल हुई। नर्स की मुस्कुराहट से वो समझ गई थी कुछ हटके है। रश्मि ने नर्स को बाहर जाने का इशारा किया और बोला नेक्स्ट अपॉइंटमेंट को वैट करने के लिए।

रश्मि: हेलो लल्लू।

लल्लू: (हाथ जोड़ते हुए) नमस्ते डॉक्टर साहिबा।

लल्लू की मासूमियत पर रश्मि के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

रश्मि: अच्छा लल्लू तुम्हे दर्द होता है पेनिस मेरा मतलब लिंग पर।

लल्लू: पेनिस, लिंग मतलब।

रश्मि ने उसके लन्ड की तरफ इशारा किया।

लल्लू: अच्छा लोड़े पर। (सोचते हुए) नही तो।

लोड़ा शब्द सुनते ही रश्मि के कानो से धुआं निकलने लगा। उसकी पहले से ही गीली चूत और रस टपकाने लगी। फिर भी रश्मि ने खुद को संभाला।

रश्मि: कुछ निकलता है इसमें से।

लल्लू: है सुसु निकलता है और क्या।

रश्मि: कुछ और निकला हो कभी रात में दिन में सोते हुए।

लल्लू: (सोचते हुए) हां याद आया परसो मुझे हल्का सा दर्द हुआ तो माई ने लोड़े पर तेल लगाया और थोड़ी मालिश भी की तो फिर इसमें से बहुत सारी चिपचिपी सुसु निकली।

रश्मि: कितना एक चम्मच या दो या तीन।

लल्लू: मेरे खयाल से १५ या २० चम्मच।

रश्मि की हालत खराब होने लगी उसका गीलापन बड़ता जा रहा था बार बार लोड़ा सुनने पर और लल्लू के वीर्य की मात्रा सुन कर।

रश्मि: अच्छा लल्लू मुझे तुम्हारा लिंग देखना होगा कही कोई चोट तो नहीं लगीं। तो अपना गाउन ऊपर करो।

लल्लू ने वैसा ही किया। लालू का गाउन छाती पर पड़ा था और उसके कच्छे का उभार देख कर रश्मि की सांसे ऊपर नीचे होने लगी। रश्मि ने कांपते हाथो से लल्लू का कच्छा नीचे किया और जो सामने देखा उसकी आंखे फटके बाहर आ गई। रश्मि ने पचासों लन्ड खाए होंगे पर इस जैसा कोई नही था। रश्मि की जीव लार टपकाने लगी। ऐसा लंबा और मोटा लोड़ा वाकई में लोड़ा था, उसने आज तक नही देखा।


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उसका दिल तो चाह रहा था की अभी कपड़े उतार कर लन्ड को अपनी चूत की गुफा में छुपा ले पर अभी वक्त नहीं था, उसे अभी और भी पेशेंट देखने थे और उसका पति भी कभी भी आ सकता था। रश्मि ने खुद की संभाला पर नजरे लन्ड से हट नही रही थी।

लल्लू: कुछ टेस्ट करने होंगे। तुम इस डिबिया में यूरीन मतलब सुसु कर दो।

लल्लू तुरंत ही खड़ा हो गया और वही पर सुसु करने लगा।

रश्मि: आरे रे लल्लू यहां नही, वाशरूम में करके आओ।

रश्मि ने लल्लू को वाशरूम का रास्ता दिखाया और लल्लू चल पड़ा उस तरफ। लल्लू के जाते ही रश्मि ही अपनी चूत को दबोच लिया और मन में बोली " रो मत कुतिया, खिलाऊंगी तुझे ये लोड़ा भी। बस एक दिन रुक जा"। रश्मि अपने खयालों में गुम थी की लल्लू बाहर आ गया। लल्लू ने मूत से भरी शीशी रश्मि को दी। वैसे तो रश्मि हाथ नही लगाती पर पता नही क्यों उसने लल्लू के हाथ से वो शीशी ली और रखने के लिए पलटी तो न जाने क्यों उसने उस शीशी को सूंघ लिया और सूंघते ही उसकी चूत और बहने लगी। कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था पर उसे करना था।

रश्मि का जिस्म उसका साथ नही दे रहा था पर उसे डॉक्टर होने का पूरा फर्ज निभाना था। उसने कांपते हाथो से लल्लू के लन्ड को पकड़ा। नॉर्मली पेशेंट के साथ ये पकड़ बड़ी ढीली होती है पर आज उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी और बड़ती चली गई। इस समय इक डॉक्टर ने लन्ड नही पकड़ा था बल्कि इक चुदासी औरत जो लन्ड की भूखी थी उसने पकड़ा हुआ था।


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लल्लू: आह डॉक्टर साहिबा।

रश्मि: (होश में आई) क्या हुआ दर्द हुआ।

लल्लू: (शरमाते हुए) नही गुदगुदी हुई।

रश्मि के चेहरे पर भी हसी आ गई। वो सोचने लगी की कुदरत भी क्या करिश्मा करती है। जिसके पास इतना नायाब हथियार है उसको इसकी कदर ही नही है।

रश्मि: अच्छा लल्लू हमे तुम्हारा सीमेन मतलब वो चिपचिपी सुसु भी चाहिए।

लल्लू: पर वो तो माई ने कराई थी मै कैसे कर सकता हूं।

रश्मि के लिए नई समस्या पैदा हो गई। वो क्या करे और उसके अंदर की चुदासी औरत ने जवाब दिया " तू ही चूस के निकाल दे इसकी चिपचिपी सुसु" और उसके चेहरे पे कुटिल मुस्कान फैल गई। रश्मि के हाथ में अभी भी लल्लू का लन्ड था और उसकी पकड़ मजबूत होती चली गई। रश्मि ने अपने होठों पर जीव चलाई। रश्मि ने लल्लू के लन्ड की चमड़ी को पीछे किया और उसका सुपाड़ा उभार के सामने आ गया। रश्मि की प्यास और बड़ गई जो अब केवल लल्लू की चिपचिपी सुसु से ही भुज सकती थी। रश्मि झुकती चली गई और उसने लल्लू का सुपाड़ा अपनी जीव से चाट लिया। लल्लू के लन्ड की खुशबू में वो खो गई। अपने होठों से वो लल्लू के संपूर्ण लोड़े को गीला करने लगी।


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रश्मि की चूत इतना पानी छोड़ रही थी की उसकी पूरी पैंटी भीग चुकी थी। रश्मि ने लल्लू के लन्ड पर थूका और पूरे लन्ड पर मल दिया।

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जितना समा पाया उतना लन्ड मुंह में भर लिया और चुपे लगानी लगी।


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लल्लू: आह ओह।

लल्लू की आहे निकलने लगी तो रश्मि ने लल्लू के चेहरे को तरफ देखा तो पाया उसकी आंखे बंद है। रश्मि फिर जुट गई अपने काम पर। वो जितना होता लन्ड मुंह में ले जाती और जब तक चुपे लगाती जब तक उसकी सांस उखड़ नही जाती। रश्मि लल्लू के लन्ड को एक मिनट भी आराम नही लेने दे रही थी जब लन्ड मुंह से बाहर होता तो वो उसे मुठियाती रहती और उसके टट्टे चूसने लगती।


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लल्लू तो बस आंखे बंद कर मजे ले रहा था। उसे येडा बनके पेड़ा खाना था। लल्लू कुछ भी हरकत नही कर रहा था। वो बस सर पीछे किए हुए लन्ड चुसाई के मजे ले रहा था।

रश्मि किसी कुशल रण्डी के जैसे लन्ड चूसे जा रही थी। एक हाथ उसका लन्ड पे था और दूसरा उसकी खुद की चूत पर। वो अपनी चूत भी उतनी ही तेजी से रगड़ रही थी जितनी तेजी से लल्लू का लन्ड चूस रहीं थी। वो हैरान थी की उसकी चुसाई से अच्छे अच्छे मर्द १० मिनट में अपना पानी छोड़ देते हैं और ये मंदबुद्धि बालक पिछले आधे घंटे से टीका हुआ हैं। रश्मि पूरा लन्ड निगलने की पूरी कोशिश करती पर उसकी औकात नही थी इस विकराल लन्ड को पूरा अपने मुंह में समाने की। पर फिर भी वो कोशिश करतीं रही और लल्लू का लन्ड चुस्ती रही। और कुछ क्षण बाद वो समय आ गया।

लल्लू: आह ओह डॉक्टर, हट जाओ सुसु आने वाली है। आह

रश्मि ने तो जैसे सुना ही नहीं वो और तेजी से लल्लू का लन्ड चूसने लगी और उतनी ही तेजी से अपनी चूत रगड़ने लगी। वो दूसरी बार झड़ने की कगार पर थी। उसकी प्यास अब सिर्फ लल्लू का वीर्य ही भुजा सकता था। और वो क्षण भी आया जब वीर्य की पहली धार ने रश्मि के मुंह में अपनी उपस्थिति हाजिर करी।


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एक दो तीन चार इसके बाद रश्मि गिनती भूल गई की कितनी बार लल्लू के लन्ड ने वीर्य की धार छोड़ी। रश्मि ने भी पूरा फर्श गिला कर दिया था। वो इतना तो चुदके भी नही झड़ी कभी। लल्लू के वीर्य का टेस्ट करके उसके मन में एक ही आवाज निकली "व्हाट आ टैस्ट लल्लू"





NICE
 
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Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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We all are waiting for Thakur LALLU... what's going to happen in next update... What is running in Lallu Thakur's mind...? What is next plan he is thinking & who will be the next target of Lallu Thakur?

Dear mitzerotics bhai... Please update

Fairest-Vol-1-4-Textless
Waiting eagerly
 

sunoanuj

Well-Known Member
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Waiting for next update ….
 
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