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Incest लाड़ला देवर _ पार्ट-2 (by Anspandit)

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Disclaimer : I am not a Original Writer, It is c/p Stories From Net.

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The original Author of this story is - Anspandit. so thanks to him for this great story.

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Jitna muzhe yaad hai iss story ko Xossip par 79+ million views mile the aur ye aage bhi continue rehti agar Xossip band na hui hoti.... so aap iss baat se andaaza laga sakte hai ki ye story kitni popular thi.

Ladla dewar xossip ki one of the best stories mein se ek thi, aur Ansh bhai ne iska 2nd part bhi likha tha magar us waqt Xf available nahi thi to unhone mere kehne par dusri site par ye story shuru ki thi, magar waha par viewers ki kami ke kaaran unka interest kam ho gaya tha.

so meri XF par sabhi members se request hai agar kisi ka unse contact hai to please unhe XF par aane ka nimantran de...:)
 
Last edited:

Love 1994

1000 years of death jutsu
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The original Author of this story is - Anspandit. so thanks to him for this great story.

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Ladla dewar xossip ki one of the best stories mein se ek thi, aur Ansh bhai ne iska 2nd part bhi likha tha magar us waqt Xf available nahi thi to unhone mere kehne par dusri site par ye story shuru ki thi, magar waha par viewers ki kami ke kaaran unka interest kam ho gaya tha.

so meri XF par sabhi members se request hai agar kisi ka unse contact hai to please unhe XF par aane ka nimantran de...:)
Tum is story ke writer nahi ho to tumhe ye story nahi likhni chahiye
Kyu ki original writer khud aake use likhega :dazed:

Thik wese hi jese Casinar Pritam.bs lover of darkness jese legend yaha aaye aur apni story likhne lage hai
Wese hi wo bhi aayenge aur likhna start kar denge
 

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Update - 1

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अब तक आपने इस कहानी में पढ़ा, किस तरह से कामिनी (अपने हीरो अंकुश के मनझले भाई कृष्ण कांत की पूर्व पत्नी) उस एनकाउंटर में बच निकलती है और मुंबई जाकर अपने पुराने धंधे को खड़ा कर लेती है.., जिसे खड़ा करने में दो नये शख्स युशुफ़ ख़ान और संजू शिंदे नाम के दो दोस्त जो ग़रीबी के कारण मुंबई आते हैं और मूषिबतों का सामना करते हुए एक दूसरे से मिलते हैं.

संजू विधार्व महाराष्ट्रा के एक गाँव का छोटा सा किसान होता है, जो अल्प आयु में ही पिता की असमय मौत के बाद अपनी माँ और बेहन के लिए अपनी पढ़ाई छोड़कर घर की सारी ज़िम्मेदारियों को संभालने लगता है.

अपनी कड़ी मेहनत से उसने अभी हालातों पर काबू पाया ही था कि गाँव के ही दबंगों ने मौका पाकर उसकी माँ के साथ जबरन बलात्कार कर डाला, और अपनी बेटी को बचाते हुए वो खुद भी मौत को प्राप्त हो गयी…!

गुस्से से तमतमाए संजू ने उन सभी दबंगों को कुल्हाड़ी से काट डाला और अपनी छोटी बेहन को लेकर मुंबई भाग आया.., जहाँ हालातों से लड़ते लड़ते उसकी बेहन वेश्या बनने पर मजबूर हो गयी, और उसे गुप्त रोग की घातक बीमारी के कारण वो भी उसका साथ छोड़ कर भगवान को प्यारी हो गयी…!

अपनी नाकामियों ने दुखी होकर संजू समंदर में डूबकर अपनी जान देने वाला होता है की तभी एक और हालातों का मारा हुआ युशुफ़ ख़ान नाम का व्यक्ति जो वहीं अपने दुखों के लिए रो रहा होता है वो उसे बचा लेता है..!

दो दुखी मन एक हो जाते हैं और मिलकर अपने हालातों से जूझने के लिए छोटी-मोटी चोरियाँ, मार-पीट, गुंडा गर्दि करने लगते हैं. युसुफ जहाँ अपने दिमाग़ का इस्तेमाल भी कर लेता था वहीं संजू अपने हाथ पैर ज़्यादा चला लेता था.., वो बहुत ही निडर और किसी पर भी टूट पड़ने के लिए तैयार रहता था…!

अभी वो दोनो अपने पाँव जमाने की कोशिश कर ही रहे थे कि एक दिन कामिनी जो कि अपना नाम बदलकर लीना के नाम से उनसे मिली.., लीना ने उन दोनो की जन्म कुंडली निकाल रखी थी.., लिहाजा वो दोनो पैसा कमाने के लालच में और कुच्छ अपने खूबसूरत बदन का इस्तेमाल करके लीना ने उन दोनो को फँसा लिया, उन दोनो की मदद से लीना का धंधा एक बार फिर चमकने लगा….!

चूँकि युसुफ ख़ान यूपी के एक गाँव का रहने वाला था, जहाँ उसका भरा पूरा परिवार था, माँ-बाप, तीन बहनें जिनके लिए कमाने को वो मुंबई गया था.., इधर लीना को भी अपना कारोबार एक बार फिर अपने पुराने एरिया में लाना था, सो युशुफ़ के गाँव के पास वाले शहर में जो कि उसके पुराने शहर के पास ही था उन दोनो की मदद से उसने डेरा जमा दिया…!

संजू को पैसे से कोई खास लगाव नही था.., वो एक सॉफ दिल लेकिन ख़तरनाक स्वाभाव का लड़का था, वहीं युशुफ़ लालची किस्म का था…, चूँकि उसने संजू की जान बचाई थी सो इसलिए वो उसके साथ जुड़ा रहा और देखते देखते उन दोनो ने उस शहर और आस-पास के इलाक़े में ड्रग्स का धंधा जमा लिया…!

लीना की तो पौ बारह थी.., उसे इस इलाक़े में आना ही था कुच्छ अपने पुराने हिसाब-किताब चुकाने थे…, इसी दौरान उसका पुराना बफ़दार भानु प्रताप जो कि उसी शहर में भेष बदलकर पोलीस से बचता बचाता रह रहा था, एक दिन उसने लीना को पहचान लिया और वो उसके साथ एक बार फिर मिल गया…!

उधर अंकुश और उसकी नयी भाभी ने मिलकर एक प्राइवेट डीटेक्टिव एजेन्सी खोल ली थी, उनकी इन्वेस्टिगेशन के फल स्वरूप लीना के पनप रहे ड्रग्स के धंधे का पता चला.., प्राची गुप्त रूप से उनके पीछे लग गयी और उसने काफ़ी हद तक ये पता लगा लिया कि उसकी शाखायें कितनी फैली हुई हैं…!

चूँकि संजू खुला खेल फर्रखाबादी खेलता था तो लाजिमी था उसके तार कहाँ तक थे.., प्राची ने संजू की कुंडली निकाली और नाम बदलकर उसने कुच्छ ऐसा जाल बिच्छाया की संजू उसमें फँस गया…!

ना केवल फँसा, बल्कि उसने निर्मला यानी प्राची को अपनी बेहन बना लिया. दिल से काम लेने वाले संजू ने निर्मला को अपने गॅंग में भी शामिल कर लिया.

इसी बीच भानु के साथ मिलकर लीना ने अंकुश की भाभी मोहिनी और उसकी बेटी रूचि जिनपर वो अपनी जान छिड़कता था को किडनप करा लिया, लेकिन ये बात ना तो संजू या निर्मला को पता थी और ना ही युसुफ को…!

लेकिन अंकुश ये जानता था कि भानु अभी जिंदा है और हो ना हो ये काम उसी ने किया है, लेकिन अब उसके हालत ऐसे नही थे कि वो ये काम अकेले अंजाम दे पाता.., लिहाजा लीना की संजू और युसुफ के प्रति बेरूख़ी और छद्म्भेश में गॅंग में शामिल हुए भानु के प्रति अधिक तबज्जो के चलते प्राची को शक़ हो गया..!

लेकिन वो कभी कामिनी से मिली नही थी, इसलिए वो उसे पहचान तो नही सकी, लेकिन उसका पीछा करते हुए संजू और प्राची उस जगह तक पहुँच गये जहाँ भानु ने मोहिनी और उसकी बेटी को क़ैद कर रखा था, इसी बीच गुप्त रूप से वो अंकुश को भी बता देती है.., और एक लोकेशन डिवाइस की मदद से समय रहते वो भी वहीं पहुँच जाता है..,

जमकर मुकाबला होता है और अंततः भानु और कामिनी उर्फ लीना मारे जाते हैं.., संजू ने इस परिवार को चुन लिया जहाँ उसे अपनी माँ और बेहन के रूप में मोहिनी भाभी और प्राची मिल गयी थी.…!

कुच्छ दिनो में ही संजू को इस परिवार के बारे में सब कुच्छ पता चल गया था.., वो उनके साथ गाँव भी जाने लगा था जहाँ का वातावरण उसे बेहद पसंद आया…!

शहर की चका चौंध उसे शुरू से ही पसंद नही थी.., मार-पीट वाली जिंदगी उसने मजबूरी में चुन ली थी.., इसलिए उसने एक दिन अंकुश से कहा - वकील भैया, अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहूँ..?

संजू – क्यों ना में गाँव में ही रहकर आपकी खेती वाडी सम्भालूं, वैसे भी मे ये काम बचपन से ही करता आ रहा हूँ और मुझे शहर में रहने का कोई इंटेरेस्ट नही है…!

उस समय परिवार के सभी सदस्य वहाँ मौजूद थे जब उसने ये बात कही थी..,

मेने (अंकुश) ने बारी-बारी से सबकी तरफ देखा, फिर संजू से बोला – क्या यार, हम तो सोच रहे थे कि तुम्हारे जैसे दिलेर और सच्चे आदमी प्राची के साथ जासूसी के काम के लिए अच्छा रहेगा और तुम हो की गाँव की धूल फाँकना चाहते हो…!

संजू – क्या भैया आप भी.., मेरे जैसा दिमाग़ से पैदल आदमी और जासूस…, मेरे पुरखों ने भी ये शब्द नही सुना होगा और आप मुझे जासूस बनाना चाहते हो.., जो इंशान ज़रा ज़रा सी बात पर लात घूँसे चलाने लगता हो वो क्या खाक जासूसी करेगा..? जासूसी के लिए तो धीर-गंभीर गुस्से को पचाकर अपनी पहचान छुपा के रख सके ऐसा आदमी चाहिए…!

संजू की ये बातें सुनकर मेने ताली बजाते हुए मोहिनी भाभी से कहा – देखा भाभी कॉन मान लेगा कि ये बंदा बिना दिमाग़ के काम करता होगा.., एक जासूस के अंदर क्या-क्या गुण होने चाहिए इसने वो क्या बखूबी बयान कर दिए…!

खैर तेरी मर्ज़ी भाई.., आप क्या कहते हो बाबूजी, भैया…? मेरे ख्याल से इसकी बात पर विचार करने में कोई बुराई नही है…!

बाबूजी – बुराई तो नही है.., लेकिन उन लोगों से पूच्छे बिना हम कोई फ़ैसला नही ले सकते.., आख़िर हमने सामने से ही उनको खेत करने की ज़िम्मेदारी सौंपी है.., अब अचानक यौं माना करदें तो उन लोगों को बुरा भी लग सकता है…!

कुछ समय दो एक बार सब लोग चलकर आमने सामने बैठकर बात करते हैं तभी कुच्छ कहा जा सकेगा…!

बाबूजी की बात भी जायज़ थी.., घर का मामला था, चाचाओं के बिना सलाह मशबिरा के फ़ैसला लेना ही उचित है.., सो अगली बार गाँव जाने तक के लिए संजू की इच्छा को विराम देना पड़ा…..!

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...to be continued
 

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Thik wese hi jese Casinar Pritam.bs lover of darkness jese legend yaha aaye aur apni story likhne lage hai
Wese hi wo bhi aayenge aur likhna start kar denge

sir ji aap chinta na kare main isko likh nahi raha hu .... balke iske updates post kar raha hu..
 

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Update - 2

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लीना का धंधा चौपट होने का सबसे ज़्यादा फ़ायदा युसुफ को हुआ.., लीना की मौत की खबर सुनते ही उसने अड्डे में जितना माल था उसे वहाँ से सॉफ कर दिया यही नही लीना के बंगले को भी खोलकर जो हाथ लगा उसे सॉफ करके वो रातों रात उस शहर से ही चंपत हो गया…!

ख़ुफ़िया फोन कॉल से पोलीस को लीना के अड्डे की जानकारी मिली उस बिना पर उन्होने वहाँ दबिश दी लेकिन खाली हाथ लौटना पड़ा…!

संजू को बचाने के लिए उन्होने खुलकर पोलीस की मदद नही की… लेकिन प्राची तो सब कुच्छ जानती ही थी कि संजू के अलावा और कॉन कॉन मेन थे उसके धन्धे में.

संजू उसके बारे में कुच्छ बताना नही चाहता था, आख़िरकार उसने युसुफ से एक तरफ़ा ही सही दोस्ती तो की ही थी जिसे वो निभा रहा था.., लेकिन प्राची के ज़ोर देने पर संजू ने युसुफ के घर का पता बताया लेकिन वो उन्हें वहाँ भी नही मिला यहाँ तक कि उसकी बड़ी बेहन और उसका शौहर भी गायब थे…!

युसुफ को पता चल चुका था कि संजू और निर्मला की वजह से ही ये सब हुआ है, इसलिए एक पल गँवाए बिना उसने सारा माल कहीं छुपा दिया और सब नकद नारायण लेकर अपने पूरे परिवार के साथ गायब हो गया जिसका उसके आस पड़ौस में भी किसी को पता नही था.

संजू बेचारा बा-मुश्किल 12थ पास कर पाया था, तो शहर में कोई अच्छी नौकरी मिल नही सकती थी.., शर्मा परिवार के स्टेटस के हिसाब से पेओन या कोई और 4थ क्लास की नौकरी ठीक नही थी उसके लिए…!

मेरा विचार था कि संजू को प्राची के साथ डीटेक्टिव एजेन्सी में ही फिट कर दिया जाए, लेकिन उसके लिए संजू तैयार नही था.., उसे तो बस वो गाँव का रहन सहन भा गया था, उसके लिए पूरे परिवार से बात करके ही कोई फ़ैसला लिया जा सकता था…!

फिर भी समय गुजारने की गर्ज से मेने उसे अपने डीटेक्टिव एजेन्सी के ऑफीस भेजना शुरू कर दिया, शायद उसे इंटेरेस्ट आने लगे और वो उसमें पार्टिसिपेट करने लग जाए…!

एक आध केस में उसे प्राची के साथ भी भेजा लेकिन जो व्यक्ति किसी बात को मन में ठान चुका हो, भले ही लाख तर्क क्यों ना दिए जायें वो उसी के पीछे भागता रहता है..!

खैर हमने भी अब उस’से ज़्यादा कहना ठीक नही समझा वरना क्या पता वो हमें छोड़कर फिर किसी ग़लत रास्ते पर चल पड़े..,

इसी बीच छोटी चाची शहर आई, कुच्छ पंचायत का भी काम था इसी बहाने हम लोगों से मिल लिया करती थी.., उनका बेटा भी हमारे साथ ही था जो स्कूल जाने लगा था.

चाची के साथ मज़े करने का मौका तो नही था, लेकिन मेने संजू की बात चलाई, संजू से वो पहले भी गाँव में मिल चुकी थी.., मेरी बात सुनकर वो फ़ौरन तैयार हो गयी और खेतों को संभालने की बात पर बोली…!

वैसे तो फ़ैसला आप लोगों के ही हाथ में है, मुझे नही लगता इसमें किसी को कोई एतराज होना चाहिए फिर भी जेठ जी उनसे पूच्छना चाहते हैं तो बेशाक़ पूछ लें.

मे तो कहती हूँ, फ़ैसला बाद में लेते रहना, अगर संजू की गाँव में ही रहने की इक्षा है तो अभी चले मेरे साथ, तुम्हारे चाचा स्कूल चले जाते हैं, मुझे भी पंचायत के 50 काम रहते हैं, गाँव में रहेगा तो कुच्छ सहारा ही मिलेगा मुझे तो…!

चाची की बात पर संजू फ़ौरन तैयार हो गया जाने को, और उसी दिन वो छोटी चाची के साथ गाँव चला गया…!

गाँव में आकर संजू की मौज ही मौज थी.., छोटी चाची ने उसके लिए एक भैंस और खरीद ली.., घर के और खेतों में जम के पसीना बहाता और जम के दूध और मक्खन उड़ाता.., कुच्छ ही दिनों में वो लाल हो गया..!

था तो वो शुरू से ही कसरती बदन वाला, गाँव की आओ हवा ने उसे और चौड़ा कर दिया, किसी पहलवान सरीखा…!

बड़े और मझले चाचाओं के घर भी आना जाना रहता ही था.., सोनू-मोनू की शादियाँ भी हो चुकी थी, वक़्त निकाल कर दोनो भाभियों के साथ गप्पें उड़ाता रहता था…!

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Pratibha Chachi

प्रतिभा चाची जो कि अब गाँव की सरपंच थी वो जब भी गाँव के दौरे पर निकलती तो वो उनके साथ किसी नेता के बॉडीगार्ड की तरह हमेशा साथ ही रहता इस वजह से लगभग सारे गाँव वालों से भी उसका परिचय हो चुका था…!

पुराने सरपंच को अभी भी अपना पद छिन जाने का मलाल रहता था..,

एक दिन गाँव के दौरे के समय उनका आमना सामना पूर्व सरपंच के उसी बिगड़ैल लौन्डे से हो गया जिसे एक बार हमने दलित लड़की के चक्कर से बचाया था.

उसके साथ दो और उसके चेले चपाटे थे, सामना होते ही उसने टॉंट मारते हुए कहा – क्यों भाई बॉडीगार्ड अपनी मालकिन की बॉडी को अच्छे से गार्ड करता है या नही…? कोई कमी रह जाती हो तो बता हम कुच्छ मदद करें..?

उसकी बात सुनकर संजू के नथुने फूलने पिचकने लगे.., उसने अपनी कमीज़ की बाहें चढ़ाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि चाची ने उसकी कलाई थाम ली और आँखों के इशारे से समझाया कि इसके मूह मत लगो…!

लेकिन बराबर में आते ही वो बोली – मेरी बॉडी को गार्ड करने वाला तो मेरे पास है, अगर तुम्हें अपने घर में अपनी किसी माँ-बेहन या अपनी लुगाई की बॉडी को गार्ड करना हो तो बोलो, मे संजू को भेज देती हूँ…!

वो – अरे चाची ! हमें पता नही है क्या कि चाचा में कितना दम खम है.., ऐसे ही गार्ड करने वाले होते तो एक बच्चा पैदा करने में दस साल ना निकल जाते.., अब रहने दो.. क्यों ज़ुबान खुल्बाति हो…!

उसकी बात पूरी होते ही चाची का एक करारा तमाचा उसके गाल पर पड़ा.., हरामखोर तू बिना मार खाए मानेगा नही…!

वो साला कुच्छ देर तो अपने सुन्न पड़ गये गाल को सहलाता रहा फिर चाची जैसे ही आगे बढ़ी, उसने पीछे से उनका हाथ ही पकड़ लिया…,

चाची ने पलटते हुए अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा – हरामजादे तेरी इतनी हिम्मत हो गयी कि यौं बीच रास्ते मेरा हाथ पकड़े.., छोड़ मेरा हाथ वरना ये तेरे लिए ठीक नही होगा…!

वो अपने हाथ पर दबाब बढ़ाते हुए बोला – अरे दम है तो हाथ छुड़ाकर दिखा सरपंचनी.., ये कहते हुए उसने एक झटका मारा…!

झटके के कारण चाची उसके सीने से जा टकराई…, उस हरामी ने यही हद नही की, उसका एक हाथ उनके गोल-मटोल सुडौल मखमली नितंबों पर जा पहुँचा और उन्हें सहलाते हुए बोला –

वाह क्या मस्त बॉडी है चाची तुम्हारी.., एकदम मक्खन….!

चाची ने कसमसाते हुए अपने आप को उससे छुड़ाने की कोशिश की लेकिन कोई खास सफलता नही मिली…, ज़िल्लत के मारे उनकी आँखों में पानी आगया…,

डबडबाइ आखों से उन्होने संजू की तरफ देखा जो मारे गुस्से के उबल रहा था, इंतेजार था तो बस चाची के एक इशारे का जो अब मिल चुका था…!

उसने पीछे से अपने मजबूत हाथ से उसकी गर्दन को दबोच लिया…, दबाब डालते ही उसे अपनी गर्दन की हड्डी टूटती सी महसूस होने लगी…!

चाची को छोड़कर अब वो अपनी गर्दन को छुड़ाने का प्रयास करने लगा.., लेकिन अपनी गर्दन छुड़ाना तो दूर, वो अपने शरीर को भी अपनी मर्ज़ी से हिला नही पाया…!

उसने गले से दबी दबी सी चीख निकली, अपने चम्चो से कहा – अबबे सालो तमाशा ही देखते रहोगे छुड़ाओगे मुझे वरना ये साला मेरी गर्दन ही तोड़ डालेगा…!

उसकी गुहार सुनकर वो दोनो संजू के उपर झपटे, लेकिन वो उस तक पहुँच पाते, उससे पहले संजू का दूसरा हाथ घूमा और भड़ाक से एक घूँसा उनमें से एक की नाक पर पड़ा..!

वो जहाँ से आया था वहीं गान्ड के बल जा गिरा, भलभला कर उसकी नाक से खून बहने लगा.., शायद उसकी नाक की हड्डी ही टूट गयी थी…, दूसरे को उसकी एक टाँग का सामना करना पड़ा जो सीधी उसकी छाती पर पड़ी…!

नतीजा वो कई कालाबाज़ियाँ ख़ाता हुआ 10-15 कदम दूर जा गिरा…, लात इतनी जोरदार पड़ी कि कुच्छ देर तक उसकी साँस ही वापस नही आई…!

इधर उसकी गर्दन पल-प्रतिपल दबति ही जा रही थी, साँस रुकने लगी थी, चेहरा लाल भभूका हो चुका था, आँखें उबल्कर बड़ी होने लगी थी…!

चाची को लगा.., कि अब अगर संजू को नही रोका तो ये इसकी जान ही ले लेगा.., सो उन्होने संजू की कलाई थाम कर उसे छोड़ देने के लिए बोली…

चाची – अब छोड़ दे संजू इसे, बहुत सज़ा मिल गयी इसे…!

संजू गुस्से से फुफ्कार्ते हुए बोला – नही चाची, इस हरामी की हिम्मत कैसे हुई आपको हाथ लगाने की…!

चाची उसकी मिन्नत करते हुए बोली – अब बस कर मेरे बच्चे, देख इसकी क्या हालत हो रही है.., कुच्छ देर में ये मर जाएगा.., छोड़ वरना लेने के देने पड़ जाएँगे…!

चाची की बात सुनकर.. पहली बार संजू का ध्यान उसकी तरफ गया.., उसकी हालत वाकयि में खराब होने लगी थी.., यहाँ तक की पाजामा में ही उसका मूत निकल गया था…!

संजू के छोड़ते ही वो अनाज से भरी बोरी की तरह धम्म से ज़मीन पर जा गिरा…!

चाची ने उसे चेतावनी देते हुए कहा – उम्मीद है तेरी अकल ठिकाने आ गयी होगी हरामी के पिल्ले.., अब कभी हमारे सामने पड़ने की हिमाकत मत करना वरना…!

अपना वाक्य अधूरा छोड़कर वो संजू का हाथ पकड़े अपने घर की तरफ चल दी…!

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...to be continued
 
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sir ji aap chinta na kare main isko likh nahi raha hu .... balke iske updates post kar raha hu..
Are tum jo post kar rahe ho wo bhi original writer ne naa likha ho to use post mat karo
 
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उस वाकिये के बाद जिसको वहाँ तमाम और लोगों ने अपनी आँखों से देखा था, गाँव के अंदर संजू के नाम की धाक सी बन गयी…!

अब्बल तो पूर्व सरपंच रामसिंघ के लौन्डे से किसी की कुच्छ कहने सुनने की हिम्मत नही होती थी.., उसका संजू ने इतने लोगों के सामने ये हाल कर दिया था कि उसे उठाकर उसके घर छोड़ने जाना पड़ा था…!
उसके दोस्तों की भी हालत कुच्छ ज़्यादा अच्छी नही थी….!

हालाँकि रामसिंघ के लड़के ने जो किया था वो किसी भी दृष्टि से उचित नही था…, इसलिए ज़्यादातर लोग इस बात से सहमत नज़र आए कि संजू का उसे सबक सिखाना उचित था…,

वहीं संजू के प्रति लोगों में भय भी पैदा हो गया था…, ये सोच कर की ग़लती से भी उसका भारी भरकम ढाई किलो का हाथ किसी के थोब्डे पर पड़ गया तो उसका हश्र वो अपनी आँखों से देख ही चुके थे…!

लेकिन अपने बिगड़ैल लड़के की ये हालत देखकर रामसिंघ तिलमिला उठा.., उसने फ़ौरन कस्बे के थाने जाकर मनोनीत सरपंच प्रतिभा देवी और संजू के नाम से फिर कर दी…!

थाने का इंचार्ज शेरखान रामसिंघ का खास आदमी था, उसने फ़ौरन से पेश्तर आक्षन लिया और अपने दल-बल के साथ दोनो को गिरफ्तार करने निकल पड़ा…

इधर जैसे ही रामसिंघ अपने लड़के और उसके दोस्तों के साथ थाने के लिए निकला, उसी समय हमारे ही किसी खास आदमी ने चाची को भी ये खबर दे दी.., उन्होने बिना देर किए मुझे फोन पर सारी बातें बता दी…!

मेने फ़ौरन गाँव पहुँचने का वादा करके अदालत से दोनो की अग्रिम जमानत करा ली और अपनी गाड़ी गाँव की तरफ दौड़ा दी…!

रास्ते में ही मेने कृष्णा भैया को भी फोन करके मामले की सूचना दे दी…!

मे अभी रास्ते में ही था तबतक पोलीस बल हमारे घर जा धमका, और उन्हें गिरफ्तार करके थाने ले जाने की जल्दबाज़ी दिखाने लगा, हमारा पूरा परिवार एकजुट होकर उसका विरोध करता रहा लेकिन उसने एक नही सुनी…!

सोनू ने मुझे फोन लगा कर वस्तुस्थिति से अवगत कराया तब तक वो गाँव में ही था, मेने शेरखान को बोला कि मेने जमानत ले ली है लेकिन उसने एक नही सुनी और बोला…!

रामसिंघ जी ने लिखित में एफआईआर कर दी है, अब कुच्छ नही हो सकता.., मुझे इन्हें थाने ले जाना ही पड़ेगा, आप लोग जमानत के पेपर लेकर वहीं आ जाओ, एक बार रिजिस्टर में एंट्री होने के बाद ही मे इन्हें छोड़ सकता हूँ.

क़ायदे से उसकी बात भी सही थी, इसलिए मेने उसे ज़्यादा कुच्छ नही कहा और फोन बंद करके गाड़ी की स्पीड और बढ़ा दी…!

जब तक मे थाने पहुँचा तब तक वो उन दोनो को थाने ला चुका था, पीछे से परिवार के और सदस्य भी थाने जा पहुँचे.

उधर जैसे ही वो थाने पहुँचे, कृष्णा भैया ने भी थाने फोन लगा दिया और उन्हें जल्दी से जल्दी रिहा करने को कहा…!

एक-ढेढ़ घंटा की कार्यवाही के बाद मे उन दोनो को जमानत कराकर घर ले आया.., इस बात से रामसिंघ और ज़्यादा भिन्नाया लग रहा था, मेने उससे कोई बात करने की ज़रूरत महसूस नही कि और अपने घर लौट लिए…!

लेकिन इस वाकिये से चाची बहुत अपसेट दिखाई दे रही थी, मेने उन्हें समझाने की कोशिश भी की लेकिन उन्होने मेरी बात का भी कोई जबाब नही दिया और पूरे रास्ते गुम-सूम सी बनी रही…!

मेने एक-दो दिन गाँव में ही गुजारने का सोचा जिससे समय निकाल कर चाची का मूड ठीक कर सकूँ…!

थाने से लौटकर बहुत देर तक हम सब आपस में बातें करते रहे, दोनो बड़े चाचाओं का विचार था कि एक बार रामसिंघ के साथ बैठकर इस मसले का स्थाई समाधान निकाल लेना चाहिए..,

ख़ामाखाँ की रंजिश बढ़ाना ठीक नही है.., उनकी बात मानकर मे उन दोनो के साथ रामसिंघ के घर भी गये लेकिन वो नही माना और मामले को कोर्ट में घसीटने की धमकी देने लगा…!

मेने उसे प्यार से समझाया, देखो चाचा.., कोर्ट कचहरी के मामले मेरे से ज़्यादा आप नही समझ सकते.., ग़लती आपके लड़के की है इस बात को साबित करने में मुझे ज़्यादा वक़्त नही लगेगा…!

एक सभ्य महिला के साथ बदतमीज़ी और छेड़-छाड़ (मोलेस्टेशन) करने के जुर्म में उसे लंबी जैल भी हो सकती है.., बेहतर होगा इस मामले को यही रफ़ा दफ़ा कर लें.., हम भी नही चाहते कि एक गाँव में रहकर आपस में कोई मन मुटाव रहे…!

मेरी बात का उसपर असर तो हुआ और वक़्ती तौर पर वो मान भी गया.., लेकिन उसके अंदर की कसक जो उसके चेहरे से दिख रही थी वो अभी वाकी थी…!

दिन ढले में खेतों की तरफ निकल गया जहाँ मुझे संजू काम करते हुए मिल गया.., मेने उससे सारा वाकीया पुछा जिसे सुनकर मुझे भी थोड़ा गुस्सा आया.., आख़िर हमारे घर की इज़्ज़त का मामला था जिसके लिए एक गैर इंशान ने गाँव के दबंग आदमी से पंगा ले लिया था…!

कुच्छ देर बाद मे और संजू गाँव की तरफ चल दिए, गाँव में घुसते ही रामदुलारी का घर पड़ता था, हम दोनो यौंही खैर खबर लेने उसके घर के अंदर चले गये…!

घर में इस वक़्त श्यामा के अलावा और कोई नही था.., मुझे देखते ही वो मेरे साथ लिपट गयी.., उसने ये भी ध्यान नही दिया कि मेरे पीछे संजू भी आ रहा है जो अभी थोड़ा ओट में था…!

ये सीन देखकर संजू की आँखें फटी रह गयी.., उसे मेरे इस तरह के कॅरक्टर के बारे में कतयि अनुमान नही था.., मेने श्यामा को अपने से अलग करते हुए कहा – तुम्हारी जीजी दिखाई नही दे रही कहाँ हैं वो?

तब तक उसकी नज़र संजू पर भी पड़ गयी और उसे देख कर वो बुरी तरह से झेंप गयी.., अपनी नज़रें ज़मीन में गढ़ाए हुए ही बोली – जीजी बाहर गयी हैं किसी काम से आप बैठिए, आती ही होंगी…!

ये कहते हुए उसने हमारे लिए एक चारपाई वहीं आँगन में ही बिच्छा दी.., मेने बात आगे चलाते हुए कहा – तुम इनको तो जानती होगी..?

श्यामा – हां, ज़्यादातर इनको आपकी सरपंच चाची के साथ ही देखा है.., जीजी बता रही थी कि इन्होने रामसिंघ के लड़के को बहुत मारा है, पोलीस इन्हें थाने ले गयी थी…!

मे- हां लेकिन अब सब ठीक है.., वैसे तुम्हें अगर किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो इनसे कह सकती हो.., इनमें और मुझमें कोई फरक नही है.., क्यों संजू इनकी मदद करोगे ना…?

संजू – क्यों नही वकील भैया.., जब ये आपके इतने नज़दीक हैं तो फिर मेरे लिए तो खास ही हो गयी ना…ये कहते हुए संजू मुस्करा उठा और अपनी एक आँख भी दबा दी…!

मेने भी मुस्कराते हुए जबाब दिया - मेरे इतने नज़दीक से तुम्हारा क्या मतलब है ?

संजू – अरे वही.., कुच्छ देर पहले ये आपके गले में झूला झूल रही थी.., ऐसा तो कोई खास ही कर सकता है ना…!

मे – नही जैसा तुम सोच रहे हो वैसा कुच्छ नही है.., मेने तो बस इसकी कुच्छ ज़रूरतें पूरी की हैं..,

संजू – अरे आप चिंता ना करो भैया.., ये जब कहेंगी मे भी इनका हर काम कर दूँगा.., क्यों श्यामा जी करवाएँगी मुझसे अपने काम या फिर ये ही…?

संजू की बात सुनकर श्यामा बुरी तरह शरमा गयी.. लेकिन उसकी ये शर्म, हया तो बिल्कुल नही थी.., क्योंकि उसके बाद वो संजू को तिर्छि कातिल नज़रों से देख रही थी…!

मे समझ गया कि अब ये संजू से ज़्यादा समय तक दूर नही रह पाएगी.., उन्हें एकांत देने के गर्ज से चारपाई से उठाते हुए मेने कहा – अच्छा संजू तुम अपनी जान-पहचान बढ़ाओ.., मुझे थोड़ा ज़रूरी काम है..,

इतना कहकर मे संजू को वहीं छोड़कर छोटी चाची के घर की तरफ बढ़ गया….

श्यामा के आँगन से मे जैसे ही बाहर आने के लिए चला…, वो भी मेरे पीछे-पीछे आने लगी और ओट में आते ही वो मेरे शरीर से लिपट गयी…

ऐसा ज़ुल्म मत करो पंडितजी…, अपनी दासी को यौं प्यासा छोड़कर तो ना जाओ…!

मेने उसके गोल मटोल फुटबॉल जैसे चुतड़ों को अपने पंजों में कसते हुए कहा – तुम्हारे लिए एक अपने जैसे ही मर्द का इंतेजाम करके जा रहा हूँ मेरी जान…, क्या तुम्हें संजू जैसा गबरू जवान पसंद नही आया…?

श्यामा – हाए पंडितजी…, क्या मे रंडी हूँ..? मेने तो आपको दिलोजान से अपना सब कुच्छ सौंपा था.., फिर मे आपके अलावा किसी और के साथ कैसे सो जाउ..?

मे – समझा करो श्यामा, मे शहर में अपने काम में व्यस्त हो गया हूँ, गाँव अब आना जाना नही हो पाता है.., तुम्हारे उस पप्पू पति से कुच्छ होता जाता है नही… इसलिए मेने सोचा, संजू अब गाँव में ही रहने वाला है...

अब अगर तुम्हें उसके साथ संबंध बनाना पसंद नही है तो कोई बात नही, तुम उसे मना कर देना…., ठीक है, इतना बोलकर मेने उसके दोनो चुतड़ों को दबाकर उसे अपने लंड पर कस लिया…!

श्यामा – ऐसी बात नही है.., संजू जी तो बहुत ही सुंदर और मजबूत कद काठी के पहलवान सरीखे नौजवान हैं.., बस मुझे उनके साथ थोड़ी झिझक सी लग रही है…, फिर उसने मेरे लौडे को पॅंट के उपर से ही मसालते हुए कहा… मुझे तो बस ये चाहिए था…!

मेने उसके दोनो कठोरे अनारों को हाथों में भरकर ज़ोर्से मसल दिया…वो बुरी तरह सिसक पड़ी…सस्सिईइ…आअहह…दर्र्रद्द…होता है…!

मेरी जान…इसका तो तुम मज़ा ले ही चुकी हो…, अब संजू के लौडे का स्वाद भी लेकर देखो…शायद वो तुम्हें मेरे से भी ज़्यादा पसंद आ जाए…!

श्यामा – अब आप इतना बोल रहे हैं तो ठीक है मे कोशिश करूँगी.., वैसे कभी कभार तो आ ही सकते हैं ना…!

मे – कोशिश करूँगा, लेकिन वादा नही कर सकता कि कब आ पाउन्गा, इतना कहकर एक बार फिरसे उसकी गान्ड सहला कर मे वहाँ से निकल आया….!

********
...to be continued
 

firefox420

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Are tum jo post kar rahe ho wo bhi original writer ne naa likha ho to use post mat karo

iss story ko maine starting se end tak follow kiya tha... so i know ki Anspandit bhai ne ye kaha tak likhi thi....

aur main isme apni taraf se kuch bhi extra add nahi karunga... so calm down and enjoy the story... :)
 

Love 1994

1000 years of death jutsu
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iss story ko maine starting se end tak follow kiya tha... so i know ki Anspandit bhai ne ye kaha tak likhi thi....

aur main isme apni taraf se kuch bhi extra add nahi karunga... so calm down and enjoy the story... :)
To start se kyu nahi post kar rahe?

Agar post karni hai start se post karo
Aur jitni writer ne post ki thi utni hi post karo
 
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Update - 3

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सूरज पश्चिम में अपनी लालिमा बिखेरने की तैयारी में था…साथ ही दूर दराज को गये पक्षी आसमान में कतार बनाए हुए अपने अपने घरों की ओर लौटने लगे थे जब मेने चाची के घर में कदम रखा…!

वो शायद अपने आँगन में चारपाई डाले मेरा ही इंतेज़ार कर रही थी.., मुझे देखते ही लपक कर उठते हुए बोली – कहाँ चले गये थे लल्ला…, मे कब से तुम्हारी राह देख रही हूँ…!

मेने अपने होठों पर मुस्कान बिखेरते हुए कहा – क्या हुआ चाची… इतनी बैचैन क्यों हो.. फिर कोई बात हो गयी क्या..?

वो मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली – बिना कोई मुशिबत आए क्या मुझे तुम्हारी ज़रूरत नही पड़ सकती..? शहर जाकर मुझे पराया कर दिया लगता है..?

मेने अपना एक हाथ चाची की कमर में डाला और झटके से अपने बदन से उनके गुदाज बदन को सटाते हुए बोला – आपको पराया कैसे कर सकता हूँ चाची.., आप तो मेरी फावोरिटे चाची हो…!

वो अपनी दोनो बड़ी बड़ी मखमली गुदाज चुचियों को मेरे सीने में दबाते हुए बोली – तुम्हारे चाचा कस्बे में गये हैं, मे अकेली बोर हो रही थी.., तुम पता नही कहाँ चले गये तो बस पुच्छ लिया…!

चाची की मखमली गान्ड जो हमेशा से मेरी कमज़ोरी थी जिसे मेरी रिक्वेस्ट पर एक बार चाची ने बलिदान भी कर दिया था उसे मसल्ते हुए कहा – क्या सच में बोर हो रही थी इसलिए मेरी चिंता हो रही थी या कुच्छ और भी बात है..?

चाची ने इतराते हुए बड़े प्यार से मेरे सीने पर एक धौल जमाते हुए कहा – सब जानते हुए अंजान बनाने की तुम्हारी पुरानी आदत गयी नही…!

रूको मे दरवाजा बंद करके आती हूँ, फिर अंदर कमरे में बैठकर बातें करेंगे…!

दरवाजा बंद करके चाची मुझे कमरे में ले गयी और जाते ही वो मेरे बदन से लिपट गयी…!

देखते ही देखते हम दोनो के बदन कपड़ों से मुक्त हो गये.., चाची का शरीर पहले से भी ज़्यादा मांसल हो गया था.., उनके मखमली बदन को अपनी बाहों में समेट कर मे पलंग पर आगया और फिर वही हुआ जो हमेशा होता था…!

बहुत दिनो बाद आज हमारा मिलन संभव हो पाया था… वो आज कोई कसर बाकी रखना नही चाहती थी.., मेने भी आज अपना तन मन उनके हवाले कर दिया और लगभग 1 घाटे मेने चाची को जमकर चोदा…!

वो अब पूर्ण रूप से तृप्त दिखाई दे रही थी, मेरी बाहों में लिपटी मेरे नंगे बदन को सहलाते हुए बोली – कितने महीनो से तरस रही थी तुम्हारे इस मजबूत हथियार के लिए…!

मेने उनकी 36 की गोल-गोल चुचियों को सहलाते हुए कहा – अब तो खुश हो.., और कोई कसर बची हो तो बताओ…!

चाची मेरी क़ैद से अलग होते हुए बोली – नही लल्ला अब कोई कसर नही बची.., वैसे भी अब संजू के भी आने का समय हो रहा है, तुम्हारे चाचा भी लौटते ही होंगे चलो कपड़े पहन कर बाहर आ जाओ…मे चाइ बनाती हूँ..!

उधर मुझे विदा करके श्यामा संजू के पास पहुँची, संजू चारपाई पर ज़मीन को पैर लटका कर बैठा था…, चारपाई के पास खड़ी होकर उसने संजू से कहा – संजू जी आप बैठिए मे आपके लिए चाइ पानी लेकर आती हूँ…!

संजू ने अपना हाथ बढ़ाकर उसकी माजुक कलाई पकड़ी और एक झटका देते ही वो सीधी उसकी गोद में जा गिरी…, उसकी पतली कमर में हाथ डालकर उसके गोरे मुलायम कचौरी जैसे फूले हुए गाल से अपनी चार दिन पुरानी दाढ़ी को रगड़ते हुए बोला…

चाइ पानी तो रोज़ ही पीते हैं रानी, आज तो कुच्छ और ही पीने का मन कर रहा है….! उसके पतले पतले रसीले सुर्ख होठों पर अपने अंगूठे को रगड़ते हुए बोला – आज तो इनका रस पीने का मन कर रहा है… पिलाओगी..?

श्यामा उसके बंधन में कसमसाते हुए बोली - छि.. कितने गंदे हैं आप.., छोड़िए मुझे, मे ऐसी वैसी नही हूँ…!

संजू उसके गोरे पतले सपाट पेट को सहला कर बोला – वाकयि मेरी जान तुम ऐसी वैसी औरत नही हो.., तुम तो दिल में रखने वाली चीज़ हो तभी तो वकील भैया मुझे तुम्हारा ख्याल रखने का बोलकर गये हैं…! तुम उनकी खास जो हो…. है ना…!

उउउन्न्ह….छोड़िए ना..! हम क्यों उनके खास होंगे…? उनकी खास तो उनकी पत्नी हैं…, वो तो बस ऐसे ही हमारे परिवार से हित रखते हैं, इसलिए कभी-कभार मिलने चले आते हैं बस…!

संजू – लेकिन मुझे तो उन्होने कुच्छ और ही बताया था…!

श्यामा – क्या..? क्या कहा उन्होने मेरे बारे में..?

संजू के हाथ अब उसके कठोर गेंद जैसे उभारों पर पहुँच चुके थे, उसने उन्हें बड़े नाज़ुक अंदाज में सहलाया और फिर उसके कड़क हो रहे निप्प्लो पर अपनी उंगली के पोर से दबाब डालते हुए बोला –

वो कह रहे थे.., संजू मे तुम्हें अपनी एक खास और दिल अज़ीज से मिलवाने ले जा रहा हूँ.., ख्याल रहे मेरे पीछे उसे किसी चीज़ की कमी ना रहे…,तुम उसका तन मन से ख्याल रखना…!

श्यामा संजू की तरफ घूमकर बोली – क्या सच में उन्होने ऐसा कहा..?

संजू उसके उभारों पर दबाब बढ़ते हुए बोला – हां…, बिल्कुल यही कहा था उन्होने…ये कहते हुए उसने उसके अनारों को ज़ोर्से मसल दिया…!

सस्सिईईई…आअहह…व.उूओ.. बहुत अच्छे इंशान हैं…, मेरा कितना ख्याल है उन्हें…

संजू ने उसे किसी बच्ची की तरह पलटकर उसका मूह अपनी तरफ कर लिया, उसके सुन्दर से गोल-मटोल चेहरे को अपने दोनो हाथों में भरकर उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला – और मे कैसा इंशान लगा तुम्हें…?

श्यामा पर संजू की लच्छेदार बातों और उसकी हरकतों से वासना का खुमार चढ़ने लगा था.., आँखों में लाल डोरे तैरने लगे थे…, अपनी लरजती ज़ुबान से बड़ी मुश्किल से वो बोली – आ..आअप्प्प..भीइ..बहुत अच्छे हैं…संजूऊू..ज्जिि…!

उसके मूह से ये शब्द सुनते ही संजू के तपते होंठ उसके लरजते होठों पर चिपक गये और श्यामा के वाकई के शब्द उसके अंदर ही जप्त हो कर रह गये…!

वो दोनो एक दूसरे के होठों को लेमन्चूस की तरह चूसने लगे…, संजू का लंड उसके कपड़ों में ही खड़ा होकर श्यामा की मुलायम गान्ड में ठोकरें मारने लगा…!

संजू के हाथ उसके कठोरे उभारों का मर्दन करते जा रहे थे…, श्यामा जैसी नाज़ुक कमसिन औरत पर इतने सारे हमले एक साथ होने से उसकी चूत अपना कामरस छोड़े बिना ना रह सकी…!

संजू की उंगलियों ने भी करतब करना शुरू कर दिया और किस करते हुए उसने उसकी चोली के सारे बटन खोल डाले…!

वो उसे वहीं चारपाई पर लिटाकर उसके अनारों को मसल्ते हुए, उसकी सुराइदार गर्दन को चूमते हुए पैरों से उसके घांघारे को उपर सरकाने लगा…!

घुटनो से उपर आते ही उसका एक हाथ उसकी गोरी-चिकनी जांघों पर फिसलने लगा और धीरे धीरे उसका वो हाथ जैसे ही उसके यौनी प्रदेश पर पहुँचा.. श्यामा के मूह से एक मादक सिसक फुट पड़ी…!

उसकी चड्डी उसी के कामरस से गीली हो चुकी थी.., चड्डी के उपर से ही उसकी एक उंगली उसकी फांकों के बीच की दरार में घूमने लगी…!

सस्सिईइ…आअहह…उउउम्म्मंणणन्…करते हुए श्यामा ने अपनी दोनो जांघों को और खोल दिया…, संजू को समझते देर नही लगी की लौंडिया अब पूरी तरह से तैयार हो चुकी है…,

सो उसने उसके पैरों के पास पहुँचकर जैसे ही उसकी कच्छी को उतारने के लिए हाथ बढ़ाया….. तभी एक आवाज़ उसके कानों में पड़ी…., ये क्या हो रहा है यहाँ..??????


संजू ने हड़बड़ा कर आवाज़ की दिशा में देखा…, सामने श्यामा की जेठानी राम दुलारी अपने मूह पर हाथ रखे हुए विश्मय से अंदर चल रही काम लीला को देख रही थी…!

संजू ने झट-पाट श्यामा के घांघारे को उसके पैरों तक खिसका कर चारपाई से नीचे उतारने के लिए अपना एक पैर ज़मीन से टीकाया ही था कि पीछे से श्यामा ने उसकी कलाई थाम ली…!

संजू ने पलटकर उसकी तरफ देखा….. मुझे यौं अधूरा छोड़कर कहाँ जा रहे हो संजुज़ी… श्यामा किसी घायल हिरनी की तरह तड़प्ते हुए बोली…!

संजू के मूह से कोई बोल नही फूटा…, उसने बस मूक निगाहों से रामदुलारी की तरफ इशारा किया…, श्यामा ने एक नज़र अपनी जेठानी पर डाली और मुस्कुरा कर बोली…..!

तुम उनकी चिंता मत करो…, बस अपना काम पूरा करते रहो…, आओ मेरे राजा.. ये कहते हुए उसने संजू को फिरसे अपने उपर खींच लिया…!

उसकी इस हरकत पर रामदुलारी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी…, वो उन दोनो के पास आकर बोली – अरी करम्जलि… साली छिनाल… चुदास की मारी कुतिया, कम से कम दरवाजा तो बंद कर लेती…, अभी मेरी जगह कोई और होता तो…?

आअहह…जीज्ज़िि…कुच्छ मत कहो…, तुम्हारे उस ना मर्द देवर से तो कुच्छ होता जाता नही है.., भला हो पंडितजी का जो वो संजुज़ी को यहाँ छोड़ गये हैं…!

हाए संजुज़ी…प्लीज़ कुच्छ करो ना..ये कहते हुए उसने संजू के हाथ अपने खुले हुए अनारों पर जमा दिए…!
संजू ने एक नज़र रामदुलारी पर डाली और ज़ोर्से श्यामा के अनारों को मसल दिया…..!

सस्स्सिईईई…आअहह…रजाअ.. ज्जिि…आराम से…, कहते हुए श्यामा उसे अपने उपर खींचने लगी…!

इन दोनो के प्रेम प्रलाप को देख कर रामदुलारी की चूत में भी खुजली होने लगाई थी, वो अपने लहँगे के उपर से ही अपनी चूत को खुजाते हुए बोली – अरईइ तो कम से कम कोठे में तो चल.., खुला आँगन है, इधर उधर से किसी ने
झाँक लिया तो बड़ी बदनामी वाली बात हो जाएगी…!

दुलारी की बात सुनकर संजू नीचे उतर गया.., श्यामा ने भी चारपाई से नीचे पैर रखते हुए कहा – हाए संजू जी मुझे अपनी गोद में उठा लो ना..प्लीज़, ये कहते हुए वो सचमुच उसके गले में बाहें डालकर झूल गयी…!

संजू ने किसी गुड़िया की तरह उसे अपनी गोद में उठा लिया…, श्यामा ने अपनी दोनो टाँगें उसकी कमर में लपेट ली…, उसका पाजामे के अंदर पूरी तरह फन फैला चुका नाग श्यामा की गान्ड पर जा टिका…!

लंड की गर्मी से उसकी चूत पिघलने लगी.., संजू उसे गोद लिए कोठे के अंदर तक आगया.., आगे आगे बेसबरी में कदम बढ़ती हुई दुलारी थी…!

दुलारी ने फुर्ती से ज़मीन पर गद्दा बिच्छा दिया.., जिसपर जाकर संजू ने शयामा को खड़ा कर दिया…!
श्यामा चुदने के लिए इतनी उतबली हो रही थी कि उसने एक मिनिट के अंदर अपने सारे कपड़े अपने शरीर से अलग कर दिए और वो संजू के कपड़ों पर भी टूट पड़ी…!

श्यामा के नंगे छरहरे साँचे में ढले 34-28-34 फिगर वाले बदन को देख कर संजू की बान्छे खिल उठी.., उसने अपनी शायरट उतार कर एक तरफ फेंक दी.., तब तक श्यामा उसके पाजामा को उतार चुकी थी.., और अंडर वेअर के उपर से ही उसके कड़क मस्त लंड को मुट्ठी में लेकर मसल्ने लगी…!

उनकी कॉम्क्रीडा का असर दुलारी पर भी हो रहा था…, उसने भी अपनी चोली के बटन खोल डाले और अपने भारी भारी स्तनों को अपने ही हाथों में लेकर मसलने लगी…!

संजू श्यामा के पतली कमर में एक हाथ डालकर उसके होठों का रस पीने लगा.., साथ ही उसका दूसरा हाथ उसके
अनारों का रस निचोड़ने में व्यस्त हो गया….!

इस दो तरफ़ा मार से श्यामा सिहर उठी…, उसकी चूत से बूँद बूँद करके काम रस बिस्तर पर टपकने लगा…!

संजू ने उसे बिस्तर पर टिका दिया और खुद उसकी कड़क कठोर गोल-गोल चुचियों से खेलने लगा…, एक चुचि को मूह में लेकर चूसने लगा और दूसरे को स्पंज की गेंद के तरह मुट्ठी में कसकर दबाने लगा…!

श्यमा का पल-पल बुरा हाल होता जा रहा था…, उसकी आँखों में चुदने की याचना साफ-साफ दिखाई दे रही थी…, लेकिन संजू तो बस अपनी ही धुन में मगन उसे बिस्तर पर धकेलता हुआ उसकी जांघों के बीच जा पहुँचा….!

उसकी मुनिया से लार के तार निकल रहे थे जिन्हें संजू ने अपनी जीभ ले जाकर चाट लिया…, संजू की जीभ का स्पर्श पाते ही श्यामा का बदन जुड़ी के मरीज की तरह थरथरा उठा…..!

सस्स्सिईईईई….हाअयईी…मेरे राज्जाआ…क्या कर रहे हो…?? अब नही रहा जाता मुझसे…उउउम्म्मननन्ग्घ…जीज्ज़िि…बोलो ना…!

रामदुलारी से अपनी प्यारी छोटी बेहन की तड़प सहन नही हुई…, उसने संजू का अंडरवेर नीचे सरका कर उसके लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर श्यामा की रसीली चूत की गीली गरम फांकों पर टिका दिया…!

संजू ने भी मौके की नज़ाकत को समझते हुए श्यामा की सुडौल मुलायम जांघों को अपनी जांघों पर चढ़ाया और अपने लंड को 2-3 बार उसकी अधखुली चूत के मूह पर उपर से नीचे तक फिराया…!

श्यामा सिसकते हुए बोली… आअहह….सस्सिईईई.. अब देर मत करो राजा…, चोदो मुझे वरना मे मर ही जाउन्गि…अब..!

उपर से दुलारी ने भी उसकी पीठ सहलाते हुए आगे बढ़ने का इशारा करते हुए उसकी गान्ड पर चपत लगाते हुए कहा… अब डाल भी दे भडुये…क्यों तडपा रहा है बेचारी को…!

दुलारी की बात पर संजू के चेहरे पर मुस्कान आ गयी.. और उसने एक जबरदस्त धक्का देकर एक ही झटके में अपना
मोटा ताज़ा लंड ¾ तक श्यामा की गुफा में उतार दिया…!

इस हमले से श्यमा का मूह खुला का खुला रह गया…, उसके मूह से मादक कराह निकल पड़ी…आआहह…मार डाला..हरजाई….धीरे…उउउफफफ्फ़…

संजू ने एक लंबी साँस लेकर अपने लौडे को थोड़ा बाहर किया.., और फिर उससे भी तगड़ा झटका मारकर जड़ तक अपना
लंड श्यामा की चूत में पेल दिया…..!

बहुत मस्त लौंडिया थी श्यामा, थोड़ी देर बाद ही वो अपनी पतली कमर उच्छाल-उच्छाल कर लंड का मज़ा लेने लगी…,
झड़ने तक उसकी गान्ड बिस्तर से नही टिकी....

उसने संजू को भी ये एहसास दिला दिया कि इस लौंडिया को चोदना माने जन्नत के नज़ारे देखने से कम नही है…

बाजू में बैठी दुलारी ने भी अपना लहंगा कमर तक चढ़ा लिया और अपनी तीन-तीन उंगलियों को अपनी चूत की गहराइयों में उतारकर अपनी चूत को चोदने लगी….!

एक बार श्यामा को जमकर चोदने के बाद दुलारी भी अपनी भारी भरकम गान्ड खोलकर उसके सामने पसर गयी.., जिसका संजू को पहले से ही अनुमान भी था…!

लेकिन पहलवान सरीखे संजू पर क्या फ़र्क पड़ना था.., सो वो दोनो बहनों को अच्छी तरह से ठंडा करके अपने कपड़े संभालता हुआ, नयी नयी कटारीदार मूँछो पर ताव देता हुआ दुलारी के घर से चाची के घर को निकल लिया…!

मे और चाची अपना मनपसंद खेल खेलकर आँगन में बैठे बातें कर ही रहे थे जब संजू वहाँ पहुँचा…!

हम दोनो की नज़र आपस में टकराई.., इशारों ही इशारों में उसने बता दिया कि काम अच्छे से हो गया है…..!!

थोड़ी देर बाद चाचा भी आगये, चाची उठकर खाने के इन्तेजाम में जुट गयी.., और हम तीनों आपस में बातें करते हुए खाने का इंतजार करने लगे……..!!

********
...to be continued
 
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