भाग 6
जैसे-जैसे दोपहर की धूप सुनहरी गर्मी में ढलने लगी, लुई और जानकी घुमावदार रास्ते से उसके घर की ओर चल पड़े। खेत हवा में फुसफुसा रहे थे, और गाय के गोबर और सूखे अनाज की खुशबू हवा में घुली हुई थी। लुई को अभी भी दुर्गम्मा के साथ सुबह की मुलाक़ात का भारीपन महसूस हो रहा था—एक ऐसा संवेदी अनुभव जो उसके विचारों में गहराई से अंकित था।
जब वे छोटे से, मिट्टी से लिपे-पुते घर पहुँचे, तो जानकी के दो छोटे देवर, संजीव और सुमित, पहले से ही सामने के आँगन में इंतज़ार कर रहे थे। दोनों लड़के, धूप से झुलसे और दुबले-पतले, जानकी को देखकर खिल उठे।
लुई का अभिवादन करने से पहले ही, वे उसके पास दौड़े। उसने अपनी कमर से साड़ी का छोर खोलते हुए हँसते हुए कहा, "अरे, पहले मुझे बैठने तो दो!"
लेकिन लड़कों की ज़रूरतें कुछ और ही थीं। एक आह भरते हुए, जो शिकायत से ज़्यादा मनोरंजन थी, जानकी ने धीरे से अपना ब्लाउज़ ठीक किया और उसे एक तरफ़ खींच दिया। लगातार दूध पिलाने से उसके स्तन, भरे हुए और भारी, जैसे ही उसने उन्हें खोला, थोड़ा हिल गए। त्वचा चिकनी और कसी हुई थी, गहरे रंग के एरोला हाल ही में दूध पिलाने से थोड़े फूले हुए थे। उसने एक-एक स्तन अपने दोनों हाथों में लिया और थोड़ा आगे की ओर झुक गई। संजीव पहले सीधा और शांत खड़ा हुआ, जबकि सुमित दूसरी तरफ़ से उसके पास आ गया। उनके मुँह एक लय में हिल रहे थे, गाल अभ्यास से सहजता से खिंच रहे थे।
जैसे ही उसके स्तनों को दुहना शुरू हुआ की एक बच्क बच्क की सुमधुर संगीत आसपास गूंज उठा। यहाँ आवाज भी एक लयबद्ध ताल से सुनाई दे रहा था लेकिन यह सिर्फ लूई को सुनाई दे रहा था बाकि जो भी वह थे उनके लिए यह आम सी बात थी। एक अपने स्तनों को दुहा रही थी जब की दुसरे दो उसके थानों को दुहोके अपने पेट भर रहे थे। किसी को कोई आमन्या का परदा नहीं था। दोनों लडके जानकी को दुहो भी रहे थे और उसकी झांगो को सहलाते भी थे। कभी जानकी के पेट से तो कभी जानकी की पीठ पर तो कभी जानकी के बूब्स को दबाते थे। लूई को लग रहा था की यह दोनों अपनी भूख से ज्यादा अपने आप को मनोरंजित कर रहे थे। वह जानकी के शरीर से खेल रहे थे। और जानकी भी उन्हें खेलने दे रही थी। जानकी भी तो कभी कभी उनके सिर सहलाती थी टी कभी उनके पीठ को। एक दो बार लूई ने देखा की जानकी के हाथ दोनों लड़को के बिच के भाग को भी सहलाया करती थी।
लुई दहलीज़ के ठीक अंदर जड़वत खड़ा था, उसके हाथ में नोटबुक ढीली थी। दृश्य बहुत ही सहज था—उनके लिए बिल्कुल जाना-पहचाना—और फिर भी बहुत ही निडरता से अंतरंग।
जानकी ने उसकी तरफ़ देखा और हँस पड़ी। "क्या? तुमने उन्हें पहले भी दूध पिलाते देखा है।"
"हाँ," लुई ने कहा। "लेकिन... ऐसे?"
"वे इंतज़ार नहीं करते," उसने सुमित के बालों में हाथ फेरते हुए कहा। "कभी-कभी वे खाना बनाते समय भी मेरे पास आ जाते हैं। जैसे हमेशा भूखी रहने वाली छोटी परछाइयाँ। तुम्हें उन्हें तब देखना चाहिए जब वे ज़्यादा बेताब हों, बैलों की तरह मेरे पैरों के बीच उछल रहे हों।"
लुई शरमा गया, उसकी बेरुखी से उसका मुँह थोड़ा खुला रह गया। मैत्री और नीता की रचना।
जानकी ने आँख मारी। "अरे, शरमाओ मत साहब। यह सब बढ़ते लड़कों का हिस्सा है। और मैं चाहती हूँ कि वे अजीबोगरीब आदतें डालने के बजाय मेरे पास आएँ, मुझे ही चुसे, मेरे पास उनके लिए बहोत कुछ है।" उसने लुई का लिंग पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया। “इधर आ जाओ।“
उसने अपनी उँगलियों के बीच उसके लिंग को सहलाया। लड़कों ने कई मिनट तक दूध पिया, अपने माथे को धीरे से उसकी छाती से टिकाए रखा। जानकी ने उनके सिर को शांत स्नेह से थामे रखा, बीच-बीच में जैसे-जैसे उनका चूसना धीमा होता गया, वे अपनी स्थिति ठीक करती रहीं। जब वे आखिरकार पीछे हटे, तो उनके मुँह के कोनों से दूध टपकने लगा। उन्होंने उसे अपने हाथों के पिछले हिस्से से पोंछा और जानकी को नींद भरी, संतुष्ट मुस्कान दी।
तभी जानकी ने लुई की ओर पूरी तरह से मुड़कर कहा, "अब अंदर आओ। तुम ऐसे लग रहे हो जैसे तुमने कोई भूत देख लिया हो। या फिर मैंने कुछ गलत कर दिया हो जिस से डर तुम्हे लग रहा हो।"
"मुझे लगता है तुम्हें मेरे लिंग पर से अपनी पकड़ ढीली कर देनी चाहिए, मैं पहले ही दो बार झड़ चुका हूँ," लुई ने धीरे से कहा, "आज मैंने अपने पहले स्पर्श का अनुभव किया है, कुछ बहुत ही पवित्र।"
"अरे,बेकार का अन्दर ही झड ने से क्या फायदा! जैसे हमारे पास कुछ है, वैसे ही तुम्मार्दो के पास हमारे लिए भी कुछ है। हमारी भूख भी तो वही से मिट सकती है। वह जो मेहनत कर के हमारे पेट में भी चरक जाता है।"
जानकी: “सब से पहले एक बात समज लो की यह गाँव है और एक सामान्य गाँव जहा शिक्षित लोग नहीं है। जिसे तुम लिंग कहते हो वह यहाँ “लंड” के नाम से प्रचलित है। अगर तुम लिंग कहोगे तो कोई इसे समजेगा नहीं। तुम्हे यहाँ के रित-रिवाजो से पहले यहाँ की देसी भाषा भी समजनी चाहिए। इस से बात-चित बड़े आराम से हो सकती है।“
जानकी मुस्कुराई। "तो फिर तुम समझने लगे हो।" उसने उसकी लुंगी के ऊपर से उसके अंडकोषों को पकड़ा और उसके होंठों पर एक चुम्बन दिया, शरारत से। "पता है लुई... अगर तुम अभी भी उत्सुक हो, तो मैं तुम्हें कोशिश करने दे सकती हूँ। तुम कभी-कभी इन दोनों से ज़्यादा मासूम लगते हो।"
लुई चौंककर पलकें झपकाईं। "तुम्हारा मतलब है—" नीता और मैत्री की सहयारी रचना।
उसने चिढ़ाते हुए एक भौं उठाई, फिर खाट पर बैठ गई, उसका एक स्तन अभी भी नंगा था, दूसरा उसके ब्लाउज के नीचे छिपा हुआ था। "आओ अगर तुम चाहो तो। यहाँ कोई शर्म की बात नहीं है। अब तुम हम जैसे हो। मुझे दुहो ना चाहते हो तो कोइसंकोच नहीं है। यहाँ अगर कोई तुम्हे मुझको दुहोते देखेगा तो भी कोई कुछ नहीं कहेगा, सब सामान्य तरीके से लेंगे।"
उनके बीच कुछ अनकहा सा गुज़रा—विश्वास, खुलापन, अनुभव करने का निमंत्रण, दखलअंदाज़ी करने का नहीं। लुई, धड़कते दिल के साथ, पास आया। वह घुटनों के बल बैठ गया, बस थोड़ी देर हिचकिचाया, फिर झुक गया। उसके होंठों ने उसके निप्पल को छुआ, और जानकी ने धीरे से उसके सिर के पिछले हिस्से को सहलाया।
उसकी त्वचा की गर्माहट, दूध का धीमा प्रवाह, साँसों की लय—उस पर छा गई। जानकी ने उसके माथे से बालों का एक बिखरा हुआ गुच्छा हटाते हुए धीरे से हँसी। "देखा? इतना भी अजीब नहीं है। आराम से चुसो।"
लुई एक पल बाद पीछे हट गया, स्तब्ध लेकिन शर्मिंदा नहीं। उसने उसे नए सिरे से श्रद्धा से देखा।
"तुम बहोत दयालु और महान हो," उसने फुसफुसाया। "और मैंने जितने लोगों को देखा है, उनमें से ज़्यादा बहादुर हो।"
जानकी मुस्कुराई। "हम गाँव की औरतें हैं, बाबू। हमारे शरीर राज़ नहीं हैं—वो ज़िंदगी हैं। हम एक साथ कई जिंदगी को सवारते है। हमारे बोबले है ही इसके लिए जो जीवन को आगे की ओर ले जाए। हम निचे से जिंदगी देते है तो ऊपर से जिंदगी को आगे ले जाते है।"
हमारी चूते बड़े काम की है लूई साब, यहाँ किसी का भी राज नहीं चलता जो आया वह उसका और लंड खाली हो जाये तब वह किसी और का।“ उसने लूई के अन्डकोशो को सहलाते हुए आगे जोड़ा;
"मैं एक दिन तुम्हारे गोरे बदन को निहारना चाहूँगी," उसने उसे अपने निप्पल चूसते हुए और एक हाथ से लूई को अपना लंड सहलाते हुए देखकर कहा।
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जाऐगा नहीं ....आगे बहोत कुछ है ......पर फिलहाल बाकी बाद में.....
।।जय भारत।।