- 15,762
- 22,912
- 229
जानकी हँसी, उसकी आवाज़ मंदिर की घंटियों जैसी थी। "मैं चाहती थी कि आपको घर जैसा महसूस हो। स्तनापुर छोटा है, लेकिन हमारे दिल बड़े हैं। आपको कई सवाल पूछने होंगे, है ना? हम आपको सब कुछ दिखाएँगे।" उसने उसे अपनी छाती दबाकर अपनी क्लीवेज दिखाई।
अब आगे...............
शादी को एक साल हो गया था, फिर भी इस जोड़े के अभी तक कोई बच्चा नहीं था। फिर भी, जैसे-जैसे वे छायादार गलियों में चल रहे थे, लुई ने देखा कि कैसे बच्चे जानकी के पास झुंड में आ रहे थे। छोटे बच्चे उसकी उंगलियाँ पकड़े हुए थे; बड़े लड़के उसके चुटकुलों पर खिलखिलाते हुए उसके पास झुके हुए थे। उसके पास हर किसी के लिए कुछ न कुछ था—कोई चिढ़ाने वाला शब्द, कोई लोरी, किसी के कान पर हल्की सी झप्पी। वह खुलकर देती थी, और बच्चे उसकी खुशी को धूप की तरह सोख लेते थे।
रास्ते के एक मोड़ पर, लगभग छह साल का एक लड़का दौड़कर आया और उसकी कमर से चिपक गया, उसका चेहरा उसके कूल्हे से सटा हुआ था।
"अरे, तुम फिर से!" जानकी ने झुककर चिढ़ाते हुए कहा। "क्या मैंने तुम्हें आज सुबह खाना नहीं खिलाया? अब क्या शरारत करने आये हो?"
उसने उसे आसानी से उठा लिया, उसे अपने कूल्हे पर टिकाकर एक नीची पत्थर की दीवार पर बैठ गई। लुई उत्सुकता से देख रहा था कि कैसे उसने एक हाथ से अपना पल्लू ठीक किया, जिससे उसके भरे हुए, सुंदर स्तन का उभार दिखाई दे रहा था। उसका बड़ा और कोमल निप्पल, गर्मी से नरम पड़े सांवले रंग के एरिओला के बीच में था, और उस स्तन की सुन्दरता को बढ़ावा दे रहा था। बिना किसी हिचकिचाहट के, उसने लड़के को अपने पास खींच लिया। उसके होंठ सहज ही खुल गए, और वह उससे चिपक गया, उसके गाल गोल हो गए और वह दूध चूसते हुए पीने लगा।
आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी: एक धीमी, लयबद्ध खिंचाव, गीली और उद्देश्यपूर्ण। लड़के की पलकें फड़फड़ा रही थीं, उसके हाथ ढीले पड़ गए थे, उसकी साँसें पोषण की लय के साथ धीमी हो रही थीं। जानकी उसे बेहतर सहारा देने के लिए थोड़ा झुकी, अपनी हथेली से उसका सिर सहलाया, उंगलियाँ उसके घने बालों में फिरा रही थीं। मैत्री और फनलवर की अनुवादित रचना है।
"वे जानते हैं कि मेरे पास दूध है," उसने शांत, आत्मविश्वास से भरी मुस्कान के साथ लुई की ओर देखते हुए कहा। "भले ही मेरा अपना कभी बच्चा नहीं रहा। प्यार से भी दूध बनता है।"
लुई श्रद्धा और अविश्वास के बीच फँसा हुआ, जड़वत खड़ा था। उसने प्रतीकात्मक दूध पिलाने की रस्मों, सामुदायिक दूध पिलाने की रस्मों और विभिन्न महाद्वीपों की मातृ-कथाओं का अध्ययन किया था - लेकिन यह अलग था। यहाँ कोई रस्म नहीं थी, कोई प्रदर्शन नहीं। बस एक महिला खुले में, शांति से, बच्चे को दूध पिला रही थी।

रमेश, लुई के विस्मय को भाँपकर, धीरे से हँसा। "हमारे गाँव में," उसने कहा, "दूध सबके लिए है, यही हमारे गाव की पहचान है।"
जानकी ने सिर हिलाया, अभी भी दूध पिला रही थी, उसकी आवाज़ कोमल और दृढ़ थी। "हम इसे बाँटते हैं। कहानियों की तरह। गर्मियों में आमों की तरह। लड़के मज़बूत होते हैं, और हम भी। तुम्हें हैरानी हो रही होगी, शायद। लेकिन तुम देखोगे - प्यार से दूध पिलाने में कोई शर्म नहीं है।"
उसका स्तन लड़के की चूसने की लय के साथ ऊपर-नीचे हो रहा था। जब उसका चूसना धीमा हुआ, तो उसने करवट बदली और बिना किसी झिझक के दूसरा निप्पल उसके सामने पेश किया। लड़का, अब लाल और भारी पलकों वाला, लालची परिचितता के साथ नए स्तन की ओर बढ़ा, होंठ उसके चारों ओर लिपटे हुए, जीभ सहज समन्वय के साथ चल रही थी। लुई ने सूक्ष्म बदलाव को नोटिस किया - यह स्तन तेज़ी से ढीला हुआ, और बच्चे का घूँटना तेज़ हो गया, उसके हाथ अब उसके पेट पर धीरे से थपथपा रहे थे। वह लड़के के जबड़े की हरकत, निप्पल पर जीभ की लयबद्ध गति और दूध को स्पंदनों के रूप में बाहर निकालने का तरीका भी देख सकता था। लूई इस बात से परिचित तो था और तभी वह यहाँ था, लेकिन अब वह विस्मित था। जो पढ़ा गया था, वह उसके सामने साक्षात् हो रहा था।
जानकी ने धीरे से साँस छोड़ी, अपने खाली हाथ से कनपटी से पसीना पोंछा। कोई छिपाव नहीं था, कोई माफ़ी नहीं थी - बस ज़िंदगी यही थी। लुई ने सिर हिलाया, उसकी साँस गले में अटक गई। इस क्रिया में - शांत, अघोषित, बिना किसी वर्जना के - उसने कुछ मौलिक देखा। अपनापन, सुकून, निरंतरता। लूई के मस्तिष्क में कोई एसा भाव नहीं था जिस से वह उन्माद हो सकता था। सब कुछ सामान्य।
कुछ समय बाद जानकी ने उस लड़के से अपने निप्पल को छुडाते हुए कहा: “बस, अब हो गया! अब जब भूख लगे आ जाना तब तक खेलो यहाँ।“ लड़का उठ खड़ा हुआ और अपने दोस्तों के पास चला गया। जानकी ने अपने नंगे स्तन को ब्लाउज में सही टिके से समा लिया और उठते हुए बोली, “चलो लूई जी घर चलते है, आपको भी भूख लगी होगी। थोडा नाश्ता कर लीजिये बाद में हम आराम से बात करेंगे और आपकी खोज को अंजाम देने की कोशिश करेंगे।“ आप मैत्री और फनलवर की रचना पढ़ रहे है।
लूई के पास को इजवाब नहीं था। वह बस मुस्कुराके जानकी को आगे बढ़ने का हाथ से इशारा किया और सब चल पड़े। उस दिन, बाद में, जैसे-जैसे रोशनी धीमी हुई और परछाइयाँ लंबी होती गईं, वे मिट्टी की दीवारों और फूस की छत वाले एक साधारण घर में पहुँचे।
घर पहुचके तीनो ने जानकी के द्वारा बनाया गया नाश्ता किया और इधर-उधर की बाते हुई। कुछ गाव के बारे में तो कुछ लूई ने आने बारे में बता के एक दुसरे को जान ने के लिए आदान-प्रदान किया।
******
Ees episode ke baare me aapke opinions me pratiksha rahegi.
अब आगे...............
शादी को एक साल हो गया था, फिर भी इस जोड़े के अभी तक कोई बच्चा नहीं था। फिर भी, जैसे-जैसे वे छायादार गलियों में चल रहे थे, लुई ने देखा कि कैसे बच्चे जानकी के पास झुंड में आ रहे थे। छोटे बच्चे उसकी उंगलियाँ पकड़े हुए थे; बड़े लड़के उसके चुटकुलों पर खिलखिलाते हुए उसके पास झुके हुए थे। उसके पास हर किसी के लिए कुछ न कुछ था—कोई चिढ़ाने वाला शब्द, कोई लोरी, किसी के कान पर हल्की सी झप्पी। वह खुलकर देती थी, और बच्चे उसकी खुशी को धूप की तरह सोख लेते थे।
रास्ते के एक मोड़ पर, लगभग छह साल का एक लड़का दौड़कर आया और उसकी कमर से चिपक गया, उसका चेहरा उसके कूल्हे से सटा हुआ था।
"अरे, तुम फिर से!" जानकी ने झुककर चिढ़ाते हुए कहा। "क्या मैंने तुम्हें आज सुबह खाना नहीं खिलाया? अब क्या शरारत करने आये हो?"
उसने उसे आसानी से उठा लिया, उसे अपने कूल्हे पर टिकाकर एक नीची पत्थर की दीवार पर बैठ गई। लुई उत्सुकता से देख रहा था कि कैसे उसने एक हाथ से अपना पल्लू ठीक किया, जिससे उसके भरे हुए, सुंदर स्तन का उभार दिखाई दे रहा था। उसका बड़ा और कोमल निप्पल, गर्मी से नरम पड़े सांवले रंग के एरिओला के बीच में था, और उस स्तन की सुन्दरता को बढ़ावा दे रहा था। बिना किसी हिचकिचाहट के, उसने लड़के को अपने पास खींच लिया। उसके होंठ सहज ही खुल गए, और वह उससे चिपक गया, उसके गाल गोल हो गए और वह दूध चूसते हुए पीने लगा।
आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी: एक धीमी, लयबद्ध खिंचाव, गीली और उद्देश्यपूर्ण। लड़के की पलकें फड़फड़ा रही थीं, उसके हाथ ढीले पड़ गए थे, उसकी साँसें पोषण की लय के साथ धीमी हो रही थीं। जानकी उसे बेहतर सहारा देने के लिए थोड़ा झुकी, अपनी हथेली से उसका सिर सहलाया, उंगलियाँ उसके घने बालों में फिरा रही थीं। मैत्री और फनलवर की अनुवादित रचना है।
"वे जानते हैं कि मेरे पास दूध है," उसने शांत, आत्मविश्वास से भरी मुस्कान के साथ लुई की ओर देखते हुए कहा। "भले ही मेरा अपना कभी बच्चा नहीं रहा। प्यार से भी दूध बनता है।"
लुई श्रद्धा और अविश्वास के बीच फँसा हुआ, जड़वत खड़ा था। उसने प्रतीकात्मक दूध पिलाने की रस्मों, सामुदायिक दूध पिलाने की रस्मों और विभिन्न महाद्वीपों की मातृ-कथाओं का अध्ययन किया था - लेकिन यह अलग था। यहाँ कोई रस्म नहीं थी, कोई प्रदर्शन नहीं। बस एक महिला खुले में, शांति से, बच्चे को दूध पिला रही थी।

रमेश, लुई के विस्मय को भाँपकर, धीरे से हँसा। "हमारे गाँव में," उसने कहा, "दूध सबके लिए है, यही हमारे गाव की पहचान है।"
जानकी ने सिर हिलाया, अभी भी दूध पिला रही थी, उसकी आवाज़ कोमल और दृढ़ थी। "हम इसे बाँटते हैं। कहानियों की तरह। गर्मियों में आमों की तरह। लड़के मज़बूत होते हैं, और हम भी। तुम्हें हैरानी हो रही होगी, शायद। लेकिन तुम देखोगे - प्यार से दूध पिलाने में कोई शर्म नहीं है।"
उसका स्तन लड़के की चूसने की लय के साथ ऊपर-नीचे हो रहा था। जब उसका चूसना धीमा हुआ, तो उसने करवट बदली और बिना किसी झिझक के दूसरा निप्पल उसके सामने पेश किया। लड़का, अब लाल और भारी पलकों वाला, लालची परिचितता के साथ नए स्तन की ओर बढ़ा, होंठ उसके चारों ओर लिपटे हुए, जीभ सहज समन्वय के साथ चल रही थी। लुई ने सूक्ष्म बदलाव को नोटिस किया - यह स्तन तेज़ी से ढीला हुआ, और बच्चे का घूँटना तेज़ हो गया, उसके हाथ अब उसके पेट पर धीरे से थपथपा रहे थे। वह लड़के के जबड़े की हरकत, निप्पल पर जीभ की लयबद्ध गति और दूध को स्पंदनों के रूप में बाहर निकालने का तरीका भी देख सकता था। लूई इस बात से परिचित तो था और तभी वह यहाँ था, लेकिन अब वह विस्मित था। जो पढ़ा गया था, वह उसके सामने साक्षात् हो रहा था।
जानकी ने धीरे से साँस छोड़ी, अपने खाली हाथ से कनपटी से पसीना पोंछा। कोई छिपाव नहीं था, कोई माफ़ी नहीं थी - बस ज़िंदगी यही थी। लुई ने सिर हिलाया, उसकी साँस गले में अटक गई। इस क्रिया में - शांत, अघोषित, बिना किसी वर्जना के - उसने कुछ मौलिक देखा। अपनापन, सुकून, निरंतरता। लूई के मस्तिष्क में कोई एसा भाव नहीं था जिस से वह उन्माद हो सकता था। सब कुछ सामान्य।
कुछ समय बाद जानकी ने उस लड़के से अपने निप्पल को छुडाते हुए कहा: “बस, अब हो गया! अब जब भूख लगे आ जाना तब तक खेलो यहाँ।“ लड़का उठ खड़ा हुआ और अपने दोस्तों के पास चला गया। जानकी ने अपने नंगे स्तन को ब्लाउज में सही टिके से समा लिया और उठते हुए बोली, “चलो लूई जी घर चलते है, आपको भी भूख लगी होगी। थोडा नाश्ता कर लीजिये बाद में हम आराम से बात करेंगे और आपकी खोज को अंजाम देने की कोशिश करेंगे।“ आप मैत्री और फनलवर की रचना पढ़ रहे है।
लूई के पास को इजवाब नहीं था। वह बस मुस्कुराके जानकी को आगे बढ़ने का हाथ से इशारा किया और सब चल पड़े। उस दिन, बाद में, जैसे-जैसे रोशनी धीमी हुई और परछाइयाँ लंबी होती गईं, वे मिट्टी की दीवारों और फूस की छत वाले एक साधारण घर में पहुँचे।
घर पहुचके तीनो ने जानकी के द्वारा बनाया गया नाश्ता किया और इधर-उधर की बाते हुई। कुछ गाव के बारे में तो कुछ लूई ने आने बारे में बता के एक दुसरे को जान ने के लिए आदान-प्रदान किया।
******
Ees episode ke baare me aapke opinions me pratiksha rahegi.
Last edited: