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दोनों लडके अब रमेश की और बढे और कुछ जरुरी खेतकाम के औजार हाथ में पकड़ा और रमेश के साथ चल दिए। लेकिन जानकी ने पाया की उनकी चाल निराश थी। जैसे उन्हों ने अपनी दुनिया खो दी हो।
पीछे जानकी की आँखों में आंसू की एक लकीर उसके गालो तक बह गई। निराश थी की उसके बच्चे को अपने थन नहीं दे पायी।
********
अब आगे..............
तुरंत उसने अपने आप को संभाला और बोली; “चलो माजी खाना बना ले फिर वह उठ जाएगा तो उसे लेकर जाना पड़ेगा। फिर आप अकेली रह जायेगी। वह अपने चूले की ओर बढ़ी।
माँ भी उसके पीछे-पीछे दूसरा काम और मदद करने चल दी।
जानकी जाते जाते फिर से बगलवाले कमरे में एक नजर डाल आई।
माँ; “सो रहा है?”
जानकी: “हाँ, माँ सो रहा है, तबेले के सब घोड़े बेच कर चेन की नींद ले रहा है।“ वह एक निसासा के साथ बोली।
अनुभवी और जानकार माँ ने यह देख लिया और अपने अन्दर ही अन्दर मुस्कुराने लगी।
जानकी ने आके चूल्हे पर फूंक मारी और एक ज्वलन लकड़ी को उठा के केरोसिन में डुबाया और दियासली (मेच बॉक्स) ले के उस लकड़ी को जलाया और चूल्हे के अन्दर रखा ताकि बाकी लकडिया जल सके। माँ उसके करीब आके बैठ गई। अब घर में कोई ना होने की वजह से माँ ऐसे बैठी की उनकी भोस आराम से दर्शनीय थी। उसने अपना घाघरा की डोरी के बिच में से बीडी का पेकेट निकाला और दो बीडी निकाली। जलाने के लिए चूल्हे से एक छोटी सी जलती हुई लकड़ी को उठा के बीडी के दुसरे छेड़े पे चाम्प दी। मुंह में से एक बीडी निकाल के उन्हों ने जानकी को देते हुए कहा।
“पसंद है?”
जानकी ने बीडी हाथ में लेके अपने मुंह पर रखते हुए अपने सिर हिला के पूछा; “क्या पसंद है माँ?”
“वही जिस को अभी भी तुम देख के आई।“
लूई?...इसमें पसंद और नापसंद की क्या बात है माँ? अच्छा पुरुष है, हम से एकदम अलग और भिन्न!”
“अरे तू तो ऐसे बात करती है जैसे मैं अभी नौसिखिया हूँ।“
“सच बता।“
“माँजी आप भी ना! आपके हाथ में कोई बात आनी चाहिए बस, फिर आप बात का बतंगड़ बनाके ही छोड़ते हो। आराम से नशा करो और बहार देखो कोई चुस्नेवाला है तो जरा अपने बोबले को खली करा दो।“
“देख जानकी, तुम मेरी बहु नहीं बल्कि एक बेटी हो, मैंने कभी तुम से कोई भेदभाव नहीं रखा और जहा तक मुझे याद है तुमने कोई भी बात मुझ से आज तक तो छिपाई नहीं। मुझे यकीन है की आगे भी तुम मुझ से तो कुछ छुपाएगी नहीं।“
“माँजी, आप जानते तो हो ना यह सब की मैंने कभी आपसे कुछ भी नहीं छुपाया, और आगे भी नहीं छुपाऊँगी फिर आप वहि की वही बात करते रहते है। उन्हों ने भी आज जाते-जाते यही बात कही थी।
“हाँ, बेटी मुझे पता है रमेश से मेरी बात हो चुकी है। उसका कहना है की तुम अभी डरी हुई हो, मुझे यह बता की तुम्हे किस बात का डर है बेटी?”
“अरे, माँ आपके और आपके बेटे के होते हुए मुझे किस बात का डर होना है? जो है सब आपके सामने है। उन्हों ने कल रात को मुझे कहा की मैं अब थन लूई को दू और उसे दुहाने दू। मैंने वैसा ही किया, मैं उसके सामने गांड रख कर सो गई थी बिच में और लूई के सामने अपने थानों को रख के सोई थी। उसने सुरुआत में नहीं चूसा पर, रमेशजी ने पीछे से मेरी गांड को थपथपाया और इशारा किया मैं ही कुछ आगे बढ और मैंने ही चुन्ची को उसके मुंह में डाला। इसमें क्या छुपाना है आपसे।“
“और रमेश ने कुछ कहा नहीं बच्चे के बारे में?”
जानकी ने माँ की भोस के सामने देखते हुए कहा: माँजी, उन्हों ने कहा की मेरे खेत में उसके पानी से सींच ने दू और एक बच्चा रख लू। पर मैंने अभी मना किया।“
क्यों बेटी? उसमे क्या बुरा है? अगर तेरे ससुर होते तो तुम उनको मना करती एक बच्चा उनसे लेने में? यहाँ घर के सभी का हक है की घ में सभी खेतो में अपने हल चलाये फिर समस्या क्या है? यह तो तेरे नशीब में नहीं था ससुर वरना ...हो सकता था की तुम अब तक उन्केल्न्द से माँ बन गई होती। माँ ने जानकी के माथे पे हाथ फिराया और जोड़ा “गलत कह रही हु मैं?”
“नहीं माँ आप गलत नहीं कह रही हो, लेकिन यह हमारे गाँव का रिवाज है और हमें उसी में चलना है, लेकिन यह विदेशी है कल उठ के यही गाँव वाले मेरी गांड में ऊँगली कर सकते है और पंचायत में फ़रियाद कर सकते है। उस वक़्त मैं इस बच्चे को लेके कहा जाऊ? हो सकता है की पंचायत के डर से आप लोग भी मुझे इस गाँव से निकाल दे।हमरे गाँव में बाहरी से सबंध बनाना पंचायत की मजूरी के बिना गुनाह है। और यह बाहरी ही है।“
“बहनचोद तुम हमें अपना मान ही नहीं रही हो। पंचायत का तुम्हे मालुम ही नहीं है, अगर पति की अनुमति से चूत चोदी जाए तो कोई गुनाह नहीं है और यहाँ तो मैं और रमेश दोनों तेरे साथ है। फिर खेत में हल चलाना पंचायत का कम नहीं है। वैसे भी तेरी जानकारी के लिए कह दू की कल मैं मुखिया से बात कर चुकी हूँ, जब वह मुझे दोहों रहे थे तब मैंने उनके कान में अपनी बात कह दी थी और उन्हों ने भी कहा जब जानकी का पति यानी की रमेश को कोई समस्या नहीं है तो विदेशी हो या पडोशी जानकी अपनी जमीन में उसका बिजदान ले सकती है। लेकिन जानकी उस से शादी नहीं कर सकती लेकिन दुसरे पति की तौर पर रख सकती है। या फिर तुम ही शादी कर लो वैसे भी तुम अभी विधवा हो तो पंचायत को कोई परेशानी नहीं है और वह ससुर के नाते बहु को आराम से चोद सकता है।“
“नहीं ऐसा नहीं हो सकता, मैं उसे नहीं दे सकती।“ जानकी के मुंह से अनायास ही निकल गया जिसे माँ ने प्पकड़ लिया।
जानकी उठी और डिब्बे से कुछ निकाल ने के लिए ऊपर उठी। माँ भी उठी और जानकी को पकड़ते हुए कहा “दुहोअती गाय और चुदासी नार कभी अपने आप को छुपा नहीं सकती, गाय भी जब दुहाती है तो अणि पूंछ से चूत को सहलाती है वैसे ही नार भी अपने आकर्षण को छुपाना नहीं जानती।“
जानकी के चहरे पर एक लालश आ गई। “माँ!!!” बस उतना कह के माँ से लिपट गई।
माँ भी उसे दुलारती रही और बोली: “पता है जब मैं रमेश को ऊँगली पे लेके आई थी, (अगले पति का बच्चे) तब घर में मेरे ससुर और साँस दोनों ने मिलके मेरी चूत की पूजा की थी। बड़ा वाला मेरे ससुर का और छोटावाला तेरे ससुर का।“
****************
आज के लिए बस इतना ही, जैसे ही समय मिलेगा हम इस कहानी में आगे जानेंगे।
बस, आप लोगो से हुजरिश है की आप अपने मंतव्यो देने में कोई कंजुसाई ना रखे।
।। जय भारत ।।
पीछे जानकी की आँखों में आंसू की एक लकीर उसके गालो तक बह गई। निराश थी की उसके बच्चे को अपने थन नहीं दे पायी।
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अब आगे..............
तुरंत उसने अपने आप को संभाला और बोली; “चलो माजी खाना बना ले फिर वह उठ जाएगा तो उसे लेकर जाना पड़ेगा। फिर आप अकेली रह जायेगी। वह अपने चूले की ओर बढ़ी।
माँ भी उसके पीछे-पीछे दूसरा काम और मदद करने चल दी।
जानकी जाते जाते फिर से बगलवाले कमरे में एक नजर डाल आई।
माँ; “सो रहा है?”
जानकी: “हाँ, माँ सो रहा है, तबेले के सब घोड़े बेच कर चेन की नींद ले रहा है।“ वह एक निसासा के साथ बोली।
अनुभवी और जानकार माँ ने यह देख लिया और अपने अन्दर ही अन्दर मुस्कुराने लगी।
जानकी ने आके चूल्हे पर फूंक मारी और एक ज्वलन लकड़ी को उठा के केरोसिन में डुबाया और दियासली (मेच बॉक्स) ले के उस लकड़ी को जलाया और चूल्हे के अन्दर रखा ताकि बाकी लकडिया जल सके। माँ उसके करीब आके बैठ गई। अब घर में कोई ना होने की वजह से माँ ऐसे बैठी की उनकी भोस आराम से दर्शनीय थी। उसने अपना घाघरा की डोरी के बिच में से बीडी का पेकेट निकाला और दो बीडी निकाली। जलाने के लिए चूल्हे से एक छोटी सी जलती हुई लकड़ी को उठा के बीडी के दुसरे छेड़े पे चाम्प दी। मुंह में से एक बीडी निकाल के उन्हों ने जानकी को देते हुए कहा।
“पसंद है?”
जानकी ने बीडी हाथ में लेके अपने मुंह पर रखते हुए अपने सिर हिला के पूछा; “क्या पसंद है माँ?”
“वही जिस को अभी भी तुम देख के आई।“
लूई?...इसमें पसंद और नापसंद की क्या बात है माँ? अच्छा पुरुष है, हम से एकदम अलग और भिन्न!”
“अरे तू तो ऐसे बात करती है जैसे मैं अभी नौसिखिया हूँ।“
“सच बता।“
“माँजी आप भी ना! आपके हाथ में कोई बात आनी चाहिए बस, फिर आप बात का बतंगड़ बनाके ही छोड़ते हो। आराम से नशा करो और बहार देखो कोई चुस्नेवाला है तो जरा अपने बोबले को खली करा दो।“
“देख जानकी, तुम मेरी बहु नहीं बल्कि एक बेटी हो, मैंने कभी तुम से कोई भेदभाव नहीं रखा और जहा तक मुझे याद है तुमने कोई भी बात मुझ से आज तक तो छिपाई नहीं। मुझे यकीन है की आगे भी तुम मुझ से तो कुछ छुपाएगी नहीं।“
“माँजी, आप जानते तो हो ना यह सब की मैंने कभी आपसे कुछ भी नहीं छुपाया, और आगे भी नहीं छुपाऊँगी फिर आप वहि की वही बात करते रहते है। उन्हों ने भी आज जाते-जाते यही बात कही थी।
“हाँ, बेटी मुझे पता है रमेश से मेरी बात हो चुकी है। उसका कहना है की तुम अभी डरी हुई हो, मुझे यह बता की तुम्हे किस बात का डर है बेटी?”
“अरे, माँ आपके और आपके बेटे के होते हुए मुझे किस बात का डर होना है? जो है सब आपके सामने है। उन्हों ने कल रात को मुझे कहा की मैं अब थन लूई को दू और उसे दुहाने दू। मैंने वैसा ही किया, मैं उसके सामने गांड रख कर सो गई थी बिच में और लूई के सामने अपने थानों को रख के सोई थी। उसने सुरुआत में नहीं चूसा पर, रमेशजी ने पीछे से मेरी गांड को थपथपाया और इशारा किया मैं ही कुछ आगे बढ और मैंने ही चुन्ची को उसके मुंह में डाला। इसमें क्या छुपाना है आपसे।“
“और रमेश ने कुछ कहा नहीं बच्चे के बारे में?”
जानकी ने माँ की भोस के सामने देखते हुए कहा: माँजी, उन्हों ने कहा की मेरे खेत में उसके पानी से सींच ने दू और एक बच्चा रख लू। पर मैंने अभी मना किया।“
क्यों बेटी? उसमे क्या बुरा है? अगर तेरे ससुर होते तो तुम उनको मना करती एक बच्चा उनसे लेने में? यहाँ घर के सभी का हक है की घ में सभी खेतो में अपने हल चलाये फिर समस्या क्या है? यह तो तेरे नशीब में नहीं था ससुर वरना ...हो सकता था की तुम अब तक उन्केल्न्द से माँ बन गई होती। माँ ने जानकी के माथे पे हाथ फिराया और जोड़ा “गलत कह रही हु मैं?”
“नहीं माँ आप गलत नहीं कह रही हो, लेकिन यह हमारे गाँव का रिवाज है और हमें उसी में चलना है, लेकिन यह विदेशी है कल उठ के यही गाँव वाले मेरी गांड में ऊँगली कर सकते है और पंचायत में फ़रियाद कर सकते है। उस वक़्त मैं इस बच्चे को लेके कहा जाऊ? हो सकता है की पंचायत के डर से आप लोग भी मुझे इस गाँव से निकाल दे।हमरे गाँव में बाहरी से सबंध बनाना पंचायत की मजूरी के बिना गुनाह है। और यह बाहरी ही है।“
“बहनचोद तुम हमें अपना मान ही नहीं रही हो। पंचायत का तुम्हे मालुम ही नहीं है, अगर पति की अनुमति से चूत चोदी जाए तो कोई गुनाह नहीं है और यहाँ तो मैं और रमेश दोनों तेरे साथ है। फिर खेत में हल चलाना पंचायत का कम नहीं है। वैसे भी तेरी जानकारी के लिए कह दू की कल मैं मुखिया से बात कर चुकी हूँ, जब वह मुझे दोहों रहे थे तब मैंने उनके कान में अपनी बात कह दी थी और उन्हों ने भी कहा जब जानकी का पति यानी की रमेश को कोई समस्या नहीं है तो विदेशी हो या पडोशी जानकी अपनी जमीन में उसका बिजदान ले सकती है। लेकिन जानकी उस से शादी नहीं कर सकती लेकिन दुसरे पति की तौर पर रख सकती है। या फिर तुम ही शादी कर लो वैसे भी तुम अभी विधवा हो तो पंचायत को कोई परेशानी नहीं है और वह ससुर के नाते बहु को आराम से चोद सकता है।“
“नहीं ऐसा नहीं हो सकता, मैं उसे नहीं दे सकती।“ जानकी के मुंह से अनायास ही निकल गया जिसे माँ ने प्पकड़ लिया।
जानकी उठी और डिब्बे से कुछ निकाल ने के लिए ऊपर उठी। माँ भी उठी और जानकी को पकड़ते हुए कहा “दुहोअती गाय और चुदासी नार कभी अपने आप को छुपा नहीं सकती, गाय भी जब दुहाती है तो अणि पूंछ से चूत को सहलाती है वैसे ही नार भी अपने आकर्षण को छुपाना नहीं जानती।“
जानकी के चहरे पर एक लालश आ गई। “माँ!!!” बस उतना कह के माँ से लिपट गई।
माँ भी उसे दुलारती रही और बोली: “पता है जब मैं रमेश को ऊँगली पे लेके आई थी, (अगले पति का बच्चे) तब घर में मेरे ससुर और साँस दोनों ने मिलके मेरी चूत की पूजा की थी। बड़ा वाला मेरे ससुर का और छोटावाला तेरे ससुर का।“
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आज के लिए बस इतना ही, जैसे ही समय मिलेगा हम इस कहानी में आगे जानेंगे।
बस, आप लोगो से हुजरिश है की आप अपने मंतव्यो देने में कोई कंजुसाई ना रखे।
।। जय भारत ।।