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Adultery लॉकडाउन

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UPDATE - 01

कहानी की शुरुआत 27 मार्च 2020 को अचानक लॉकडाउन लगने से हुई। मेरी पत्नी अपने मायके गई हुई थी। लॉकडाउन लग जाने के कारण वह वही फंस गयी। मैं घर में अकेला था। मुझे खाना बनाना नहीं आता था, रसोई मेरे लिये अनजानी जगह थी जहां मैं कभी नहीं जाता था। पत्नी की जबर्दस्ती के कारण सिर्फ चाय बनाना सीख पाया था सो मेरी हालत बहुत ज्यादा खराब होने वाली थी। सामान्य अवस्था में तो मैं पत्नी के बाहर जाने पर बाहर से खाना मँगा कर खा लेता था लेकिन इस लॉकडाउन में तो सब कुछ बंद हो गया था सो मैं क्या करुं यह मेरी समझ में नहीं आ रहा था।

पहले लगा कि कुछ ही दिनों की ही तो बात है काट लेते है, लेकिन फिर समझ में आया कि दो-चार दिनों की बात नहीं है कम से कम 15 दिन तो ऐसे ही रहना पड़ेगा। पहले दिन तो किचन में पड़ी ब्रेड़ से काम चल गया। वह भी दो दिन में खत्म हो गयी। अब पत्नी से फोन पर पुछ कर दाल चावल बनाने की कोशिश की। पहली कोशिश का स्वाद बहुत बेकार था लेकिन दूसरी बार फोन पर विडियों कॉल करके पत्नी नें सही तरह से सही मात्रा में पानी, मसाले वगैरहा डलवा कर खाने की समस्या का फौरी तौर पर निदान कर दिया था।

चौथे दिन सुबह जब फ्लैट की घंटी बजी तो समझ में नहीं आया कि इस समय कौन आ सकता है, जा कर दरवाजा खोला तो देखा कि पड़ोस के फ्लैट में रहने वाली मिसेज गुप्ता खड़ी थी मैने उन्हें अन्दर आने के लिये रास्ता दिया और दरवाजा बंद करके उन के साथ ड्राईगरुम में आ गया, उन्हें बैठने को कह कर मैं भी उन के सामने बैठ गया। उन से पुछा कि सब सही तो है, तो वह बोली कि यह टूर पर गये थे वही पर फंस गये है। मैं घर में अकेली हूँ तथा दूध खत्म हो गया है। समझ नहीं आ रहा कि क्या करुँ? फिर याद आया कि आप से पुछती हूँ। मैनें कहा कि दूध तो मेरे यहां भी खत्म हो गया है, मैनें उन्हें बताया कि आज समाचार में सुना था कि सब्जी और दूध की दूकानें खोलने की परमीशन दे दी है। लेकिन इस डर के माहौल में घर से निकलने में बड़ा डर लग रहा है। ऐसी हालत में कौन बाहर जाना चाहेगा? उन्होनें सहमति में सर हिलाया। मैनें उनसे कहा कि मैं उन को इस के बारें में बताता हूँ। मेरी बात सुन कर वह वापस चली गयी। मुझे बुरा तो लगा कि मैं उन की कोई सहायता नहीं कर सका, लेकिन और कोई चारा भी नहीं था।

लेकिन मुझे पता था कि अगर चाय पीनी है तो दूध तो लाना ही पड़ेगा। यही सोच कर मैं मास्क लगा कर डरते-डरते बाजार के लिये निकल पड़ा। रास्तें में कोई नहीं मिला। दूध की दूकान पर देखा कि दो-तीन लोग दूर-दूर खड़ें थे। अपना नंबर आने पर मैनें चार लिटर दूध लिया और ब्रेड के बारें में पुछा तो जबाव मिला की है, दो बड़ी ब्रेड ले कर वापस चल दिया। घर आ कर सारें कपड़ें बदलें और नहानें चला गया। नहा कर आया तो दूध ले कर मिसेज गुप्ता के फ्लैट पर जा कर उन की घंटी बजाई। दरवाजा खुलने पर उन्हें दूध थमा कर कहा कि अभी इस से काम चलायें, अगर किसी और चीज की आवश्यकता हो तो मुझे बता दिजियेगा। वह बोली कि दूध के पैसे तो लेते जाईयें। मैं यह सुन कर रुक गया तो वह पैसे लेने चली गयी। वापस आ कर उन्होंनें पांच सौ का नोट मुझे थमा कर कहा कि आप जब भी अपने लिये दूध लेने जाये तो मेरे लिये भी लेते आईयेगा। मैं पैसें ले कर वापस आ गया। घर आ कर मैनें अपने लिये चाय बनायी और ब्रेड सेक कर नाश्ता किया।
 
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UPDATE 2

कुछ देर आराम करने के बाद दोपहर के खाने के लिये चिन्ता करने लगा। सब्जी नहीं मिली थी। सब्जी मुझें बनानी आती भी नहीं थी। पत्नी को परेशान मैं करना नहीं चाहता था। तभी घंटी की आवाज नें मेरी तंद्रा तोड़ी, जा कर दरवाजा खोला तो देखा कि मिसेज गुप्ता थी उन के हाथ में सब्जी से भरी कटोरी थी वह बोली कि मुझे पता है आप को खाना बनाना नहीं आता सो सब्जी ले कर आयी हूं। ब्रेड के साथ खा लिजियेगा। मैनें उन्हें सब्जी के लिये धन्यवाद कहा और अंदर आने को कहा तो वह बोली कि नहीं, फिर किसी समय आऊंगी, अभी काफी काम पड़ें हैं। मैनें कुछ नहीं कहा और सब्जी ले ली। सब्जी अच्छी बनी थी सो ब्रेड सब्जी से खा ली। अब शाम के लिये इंतजाम करना था, तो सोचा कि आज फिर से दाल चावल बना कर देखते है।

यह सोच कर पत्नी को फोन किया कि क्या वह कोई सहायता कर सकती है तो उस ने कहा कि दाल निकाल कर उसे साफ कर लो फिर पानी में भिगों दो। उस के कहें अनुसार दाल निकाल कर साफ की और उस के बाद उसे पानी में भिगोंनें डाल दिया। कुछ देर बाद फिर पत्नी को फोन किया और उस के कहे अनुसार कुकर में दाल डाल कर पानी के साथ मसालें डाल कर ढक्कन लगा कर गैस पर दाल बनाने रख दी। अब चावल का नंबर था सो उसे भी निकाल कर साफ किया और पत्नी के कहे अनुसार नाप कर पानी में भिगों कर रख दिया। फिर दूसरे कुकर में चावल भी बनने के लिये रख दिये। कुछ देर बाद दाल और चावल बन कर तैयार हो गये। इस काम में शाम बीत गयी थी।

कुछ देर आराम कर के दाल चावल प्लेट में ले कर खाने बैठा ही था कि फिर से घंटी बजी। दरवाजा खोला तो देखा कि मिसेज गुप्ता खड़ी थी बोली कि शाम को खाने के लिये कुछ है? मैनें उन्हें बताया कि मैनें तो दाल चावल बना लिये है तो वह आश्चर्य से बोली कि आप को कब बनाना आ गया तो मैनें हंस कर कहा कि आज ही सीखा है। फिर मैनें उन्हें बताया कि पत्नी से फोन पर पुछ-पुछ कर बनाये हैं, अभी चखे नहीं है इस लिये स्वाद के बारें में कुछ नहीं कह सकता लेकिन वह चाहे तो चख सकती है। यह कह कर मैनें उन्हें चावल चम्मच में डाल कर पकड़ा दिये। उन्होनें उन्हें मुह में डाला और कुछ देर बाद बोली कि सही बनें है। काम तो चल ही जायेगा। मैनें कहा कि रोज बनानें पड़ेगें तो कुछ दिन बाद अच्छें बनानें आ ही जायेगें। वह यह सुन कर हंसी और बोली कि अब मुझे आप के खाने की चिन्ता नहीं करनी पड़ेगी, नहीं तो लग रहा था कि आप का क्या होगा?

मैनें उन से कहा कि आप तो है ही, आप को परेशान कर लेता। वह बोली कि मैं तो वैसे ही आपकी चिन्ता कर रही थी क्योकि आप की पत्नी नें मुझे बताया था कि इन को तो चाय के सिवा कुछ नहीं आता। इस कारण से लग रहा था कि इस समय तो आप को बड़ी परेशानी होगी। मैनें कहा कि परेशानी का हल ढुढ़नें की आदत पुरानी है, कुछ न कुछ उपाय तो कर ही लेता। फिर आप तो थी ही। आप से ही खाना बनाना सीख लेता। वह बोली कि मैं सीखानें की बजाए बना कर खिलाना ज्यादा अच्छा कर पाती। मैनें मजाक में कहा कि सिखने वाले गुरु के पीछे पड़ कर सीख ही लेते है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि कल जब दूध लेने जाये तो अगर सब्जी मिल रही हो तो लेते आये, जो भी मिल रहा हो उसे ले आइयेगा। उसी से काम चला लेगें।

यह कह कर वह चली गयी। मैं भी वापस आ कर दाल-चावल खाने बैठ गया, बड़ी जोर की भुख लग रही थी। अपने हाथ के दाल-चावल ज्यादा बुरें नहीं लग रहे थे। तीसरी बार के हिसाब से सही ही बने थे। खाने के बाद पत्नी का फोन आया कि दाल-चावल कैसे बने थे तो उसे बताया कि सही थे काम चल जायेगा। तो वह बोली कि कल सब्जी मिले तो ले आना, उसे भी ऐसे ही बनवा दूंगी।

मैनें उस से कहा कि यह सब तो सही है लेकिन रात काटना मुश्किल है तो वह बोली कि मेरे साथ भी यही है। दिन तो कट जाता है लेकिन रात मुश्किल से कटती है। ऐसी ही बातें कर के हम नें फोन बंद कर दिया। हमारी बातों नें मेरे मन में उत्तेजना बढ़ा दी, कुछ किया तो नहीं जा सकता था सो टीवी पर पोर्न फिल्म लगा कर उसे देखने बैठ गया। देखने के दौरान उत्तेजना बहुत बढ़ गयी तो हस्तमैथून कर के उसे शान्त किया। अब नींद आ रही थी सो टीवी बंद कर के सोनें के लिये लेट गया। लेटते ही नींद आ गयी।

अचानक दरवाजे की घंटी की आवाज से नींद खुली, देखा तो रात के 1 बज रहे थे। कपड़ें डाल कर दरवाजा खोला तो देखा कि मिसेज गुप्ता खड़ी थी, उनके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था वह जल्दी से अंदर आ गयी और बोली कि दरवाजा बंद कर ले। मैनें दरवाजा बंद किया और उन्हें बैठने को कहा वह डरी हुई सी लग रही थी सो उन्हें किचन से गिलास में पानी ला कर दिया। पानी पी कर उन की सांस आयी और वह बोली कि मुझे अपने घर में डरवानी सी चीज दिखायी दी है। इस कारण से ना चाहते हुये भी मुझे आप को जगाना पड़ा। इस पर मैनें कहा कि कोई बात नहीं है। आप थोड़ा आराम कर ले फिर आप के घर चल कर देखते है कि क्या बात है तो वह बोली कि मैं अभी वहां नहीं जाऊंगी, दरवाजे पर ताला लगा कर आयी हूँ।

उन की ऐसी हालत देख कर मैं भी बड़ा परेशान था। रात को किसी औरत का दूसरे के घर में होना सामान्य बात नही थी। वह कांप सी रही थी मैनें उन से पुछा कि चाय पीयेगी तो उन्होंनें हां में सर हिलाया। मैं उठ कर चाय बनाने के लिये किचन में चला गया। चाय ले कर आया तो वह वैसी ही अवस्था में बैठी थी। उन के हाथ में चाय का कप दे कर कहा कि आप यहीं पर आराम कर ले सुबह देखेगें। वह बोली कि मुझे बहुत डर लग रहा है। मैनें उन के पास जा कर उन के कंधें थपथपायें और उन की बगल में बैठ गया। वह चुपचाप चाय पीती रही। चाय पीने के बाद मैनें उन्हें कहा कि वह कमरें में लेट जाये और अंदर से बंद कर ले मैं यही बाहर सो जाता हूं तो वह कुछ नहीं बोली और कमरें में चली गयी। दरवाजा बंद करने की आवाज भी आयी तो मैं वही दीवान पर लेट गया।
 
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Update 3

मुझे जोर से नींद आ रही थी लेकिन दिमाग उन की हालत देख कर परेशान था। कुछ देर के लिये आंख लगी थी कि दरवाजा खुलने की आवाज आयी और वह मेरे पास आ कर खड़ी हो गयी और बोली कि मुझे वहां पर भी डर लग रहा है आप भी वहां पर आ कर सो जाये। मैं सोच रहा था कि आज की रात कुछ ऐसा होगा जो मेरी पुरी जिन्दगी पर असर डालेगा। मैं इस बात से बचना चाहता था लेकिन वह मेरा हाथ पकड़ कर कमरें में ले गयी। तब मैनें ध्यान दिया कि वह मेक्सी पहने हुई थी।

मैं भी जल्दी में बाक्सर ही पहन पाया था। बेड पर आ कर वह लेट गयी और मैं भी दूसरें किनारे की तरफ लेट गया। उन के साथ एक बिस्तर पर लेटने में मुझे संकोच हो रहा था लेकिन इस समय कुछ किया नहीं जा सकता था। कुछ देर बाद वह चीख कर मुझ से लिपट गयी। वह थर थर कांप रही थी। मैनें उन्हें अपने से अलग किया और उन से पुछा कि वह डर क्यों रही है तो वह कुछ नहीं बोली लेकिन उन का कांपना बंद नहीं हुआ। डर के कारण वह पसीने से नहा गयी थी।

मैनें उन्हें अपने पास किया और उन को अपने से लिपटा कर पुछा कि क्या हुआ है? तो वह कुछ नहीं बोली, कुछ देर बाद उन्होनें कहा कि मैने कुछ ऐसा देखा है कि उसे याद करते ही मुझे डर लगने लगता है। मैनें उन्हें कस कर अपने से चिपका लिया, इस से उन का कांपना कुछ कम हुआ। उन का डर तो कम हो गया लेकिन मुझे जो डर था वह हो रहा था उन के शरीर की गर्मी से मेरे शरीर की गर्मी बढ़ रही थी। दो जवान शरीर एक दूसरे से चिपके हो तो जो हो सकता है वही हो रहा था। उन के मेरे साथ चिपकने के बाद मुझे पता चला कि वह मेक्सी के नीचे कुछ भी नहीं पहने हुये थी। शायद मेरी तरह ही सोने से पहले अंतः वस्त्र उतार देती होगी।

सारे उतार चढ़ाव मेरे शरीर पर अनुभव हो रहे थे। भरे पुष्ट उरोज और उन के तने कुचाग्र मेरी छाती में चुभ रहे थे। उन के चुभने के कारण वासना भरी उत्तेजना शरीर में भरती जा रही थी। मतिष्क इसे रोकने का प्रयास कर रहा था लेकिन शरीर के अंग कुछ और ही कर रहे थे। खुन का बहाव मेरी जांघों के बीच बढ़ गया था। सारा शरीर गर्म हो रहा था। कान भी गर्म हो गये थे। तभी उन के हाथ मेरे शरीर पर कस गये और हम दोनों के शरीर के बीच में दूरी खत्म हो गयी। अब तो वासना की आग पुरी तरह से लग गयी। उन के होठं मेरे होठों से चुपक गये और उन का रस पीने लगे। फिर मेरी जीभ उन के मुंह में जा कर अठखेलियां करने लगी। दोनों नें एक दूसरें के चेहरे को चुम-चुम कर गीला कर दिया। दोनों पर एक अलग ही तरह का नशा सा छा गया था, उस के कारण और कुछ सोचना समझना, दिखना बंद हो गया था।

मेरे होठ उन की गरदन से होते हुये वक्षस्थल तक आ गये। हाथ मेक्सी के उपर से ही उरोजों को सहलाने और मसलने लगे। इस के कारण वह मुह से आहहहहहहहहहह उहहहहहहहहहहह उईईईईईईईईईईईई की आवाज निकाल रही थी। हम दोनों इस खेल के पुराने खिलाड़ी थे। सो खेल को पुरी मस्ती से खेलनें लगें। मेरे हाथ उन के पिछवाड़ें के उभारों को सहलाते हुये उन की गहराई में समा गये। इस से वह कराहने लगी। अब हम दोनों को अपने कपड़ें अवरोध से लग रहे थे सो दोनों नें अपने कपड़ें उतार दिये। उन्होनें मेक्सी उतार दी और मैनें टीशर्ट और बाक्सर उतार दिया।

दोनों बिना कपड़ों के होने के बाद एक-दूसरे के शरीर का अन्वेष्ण करने लगे। फिर एक दूसरे के अंगों का मर्दन शुरु हुआ और कराहट की आवाज कमरें में भर गयी। दोनों एक आदिम ज्वाला में जल रहे थे। मैनें उन के कुचाग्रों को मुह में ले कर जोर से पीना शुरु किया तो वह मेरी पीठ में अपने नाखुन गढ़ानें लगी। पीठ पर नाखुनों के निशानों की बाढ़ सी आ गयी। मेरा हाथ उन की जांघों के मघ्य की गहराई में जा कर उस के अंदर प्रवेश कर गया वहां उसे कोई प्रतिरोघ का सामना नहीं करना पड़ा।

कुछ देर अन्दर बाहर करने के बाद लगा कि अब रुकना बेकार है तो मैं उन की जांघों के मध्य बैठ गया और अपने लिंग को उन की योनि की पखुडियों के मध्य लगा दिया वहां इतनी नमी थी कि लिंग को अंदर जाने में कोई रुकावट नहीं हुई जब वह पुरा समा गया तब आह की आवाज उन के मुह से निकली। मैनें अपने कुल्हें ऊपर उठा कर पुरे जोर से धक्का दिया और फिर धक्का देने की प्रतियोगिता सी शुरु हो गयी ऊपर से मैं और नीचे से वह धक्कें लगा रही थी। इन धक्कों की गति बहुत अधिक थी। दोनों एक दूसरे को अपने में समा लेना चाहते थे। कुछ देर बाद करवट बदल कर वह मेरे ऊपर आ गयी और उन के कुल्हों की मार मेरी कमर पर पड़ने लगी। उन की गति बहुत तेज थी उस में बहुत शक्ति थी।

कुछ देर में मेरी कमर दर्द करने लगी। कमरा फचाफच की आवाजों से भर गया था। गरमी थी और पसीने से दोनों के बदन नहा गये थे। चरम पर पहुंचने में देर थी सो फिर करवट बदली और वह पेट के बल मेरे नीचे थी और में उन के कुल्हों के पीछे से वार कर रहा था उन के कुल्हें मेरे वार से पिचक से रहे थे वह कराह रही थी। लेकिन कोई रुकना नहीं चाहता था। फिर जाने क्या हुआ कि मेरा लिंग योनि ने निकल गया, दूबारा डालने के लिये कुल्हों की दरार के बीच लगाया तो वह योनि की बजाए गुदा की तरफ हो गया।

मैनें जोर लगाया तो वह गुदा में घुस गया। उन के मुह से तेज चीख निकली लेकिन मैं कुछ सुनने की अवस्था में नहीं था। मैनें पुरी ताकत लगा कर लिंग को गुदा में पुरा घुसेड़ दिया। लिंग योनि द्रव से चिकना होने के कारण पुरा अंदर घुस गया। नीचे से वह चीखती रही और मैं ऊपर से धक्कें लगाता रहा।

फिर से उन्हें करवट दिला कर पीठ के बल कर के योनि में लिंग डाला और शुरु हो गया इस बार उन के हाथ पैर भी मेरे शरीर पर कस गये और हम इसी अवस्था में संभोगरत रहे। कुछ देर के बाद मेरी आंखों के आगें सितारें चमचमाने लगे और मैं स्खलित हो गया। वह भी स्खलित हुई और मेरे लिंग नें गर्मागर्म द्रव की धार से स्नान कर लिया। लिंग संकुचित हो कर योनि से निकल गया और मैं भी उन के ऊपर से उठ कर उन की बगल में लेट गया। अपने जीवन में इतना जोरदार ताकत वाला आदिम संभोग मैनें तो नहीं किया था, इस कारण से में तो बुरी तरह से थक गया था और कुछ देर में ही सो गया।

सुबह शायद पांच बजे फोन में अलार्म बजा तो हम दोनों की नींद खुली, उन्होनें उठ कर मेक्सी डाली और बिस्तर से उठ कर दरवाजा बंद कर के चली गयी, मैं भी जल्दी से बाक्सर पहन कर बाहर लपका तो देखा कि वह अपना दरवाजा खोल कर घर में जा चुकी थी। मैं भी अपना दरवाजा बंद करके वापस बिस्तर पर आ गया। रात की थकान अभी तक थी। यह सोच ही रहा था कि रात को क्या हुआ कि मुझे फिर से नींद आ गयी और मैं सो गया।

एक घंटें बाद फिर से अलार्म की आवाज से नींद खुली तो लगा कि रात को जो हुआ वह सपना तो नहीं था। बिस्तर पर हाथ फिरा कर देखा तो वह सुखा था लेकिन उस पर शरीर के द्रवों के दाग लगे हुये थे इस का मतलब यह था कि सपना नहीं था सब कुछ वास्तविक रुप में घटा था।

उठ कर मैं नित्यक्रम में लग गया और जब नहा कर तैयार हुआ तो पत्नी का फोन आया, उस ने पुछा कि आज क्या खाना है तो मैनें कहा कि आज तुम मुझे आटा गुथना सिखायों, मैं पराठें बना कर खाऊंगा। वह इस के लिये तैयार हो गयी। मैनें परात में आटा लिया और पत्नी के बताए अनुसार पानी मिला कर उसे गुथना शुरु किया पहले तो यह बड़ा मुश्किल लगा लेकिन थोड़ी देर में ही मुझे समझ आ गया कि इसे कैसे गुथना है।

आटा गुथ कर उसे कुछ देर के लिये रख दिया और पराठें बनाने के लिये पत्नी से लेक्चचर सुना, सुन कर लगा कि मैं इन्हें तो बना लूगां, लेकिन जब बनाना शुरु किया तो पता चला कि पराठे बनाना इतना आसान भी नहीं है। लेकिन चार पराठें बना ही लियें, उन की फोटों देख कर पत्नी बोली कि पहली बार के हिसाब से सही लग रहे हैं। खा कर बताना कि कैसा स्वाद है? मैनें चाय बनाने रख दी, तभी घंटी बजी, जा कर दरवाजा खोला तो मिसेज गुप्ता यानी वाणी जी खड़ी थी बोली कि आज जब आप दूध लेने जाये तो सब्जी जरुर ले आना, कुछ भी नहीं है।

मैनें उन्हें देखा तो उन के चेहरें पर कल रात की घटना का कोई निशान नजर नहीं आया था वह पहली जैसी ही लग रही थी। कल रात की घटना, उन को देख कर लगा कि घटी ही नहीं थी। मैं घटना के बारें में सोच रहा था तभी मेरी तन्द्रा उन की आवाज ने तोड़ी कि आप ने नाश्ता कर लिया तो मैं बोला कि नहीं किया है लेकिन करने जा रहा हूँ तो जबाव मिला कि क्या है नाश्तें में? मैनें बताया कि पराठें बनायें है यह सुन कर वह आश्चर्य से बोली कि आप हर दिन मुझे कोई ना कोई शॉक सा देते है, देखे कैसे पराठें बनाये है? यह कह कर पर अंदर आ गयी, फिर किचन में जा कर वहां रखें पराठें देख कर बोली कि पराठें तो बढ़िया लग रहे है।

मैनें कहा कि आप भी मेरे साथ नाश्ता कर सकती है तो वह बोली कि हां पहले में घर बंद कर के आती हूं यह कह कर वह चली गयी। मैं पराठें और चाय लेकर ड्राइग रुम में आ गया। जब वह आयी तो बोली की चलिये खा कर देखते है कैसे बनें है? वह और मैं पराठें खाने बैठ गये। मैनें कहा कि पहली बार बनाये है अगर पसन्द ना आये तो भी खा लिजियेगा। वह हंस कर बोली कि आजकल ना करने का मौका ही नहीं है इस समय जो मिल रहा है वह नियामत है। दो-तीन कौर खा कर बोली कि पराठें तो सही बने है और स्वाद भी बढ़िया है। मैनें उन्हें बताया कि इस में मेरा ज्यादा योगदान नहीं है सारी कलाकारी मेरी पत्नी की है उस ने जैसा बताया वैसा ही मैनें किया है।

वाणी जी बोली कि लेकिन फिर भी बनाया तो आपने ही है। मैनें कहा जर्राऩवाजी है आप की। वह बोली कि आप बहुत जल्दी चीजें सीख लेते हैं। मैनें कहा हां यह गुण तो मुझ में है। वह नाश्ता करती रही फिर बोली कि दोपहर का खाना, मैं बना रही हूं। आप परेशानी मत किजियेगा। मैनें कहा कि आप क्यों मेरे लिये परेशान हो रही है? तो जबाव मिला की अकेली होने के कारण कुछ बनाने का मन ही नहीं करता है। आप के बहाने कुछ बनाने, खाने का मन तो करता है। आप इस के लिये मना नहीं करेंगें। मैनें कहा मैं क्यों मना करुंगा

मेरे साथ भी यही समस्या है अकेले होने के नाते किसी बात के लिये मन ही नहीं करता। बातें करते करते नाश्ता खत्म हो गया। वह वापस अपने घर चली गयी। मैं भी कुछ देर बाद दूध वगैरहा लाने के लिये तैयार हो कर निकल गया। सामान खरीद कर घर के लिये वापस चला तो ऐसे ही आयुर्वेद दवाईयों की दूकान पर चला गया। वहां से कुछ दवाईयां खरीद कर ऐसे ही कुछ ताकत के लिये पुछा तो उन्होनें शिलाजीत के केप्सुल का पैकेट पकड़ा दिया। दवाईयां लेकर घर पर आ गया। वाणी जी को उनके घर पर जा कर दूध और जो सब्जियां लाया था, दे आया।

घर पर वापस आ कर लाई दवाईयों को देखने लगा और फिर रोज खाने के लिये उन्हें अलग कर दिया। तभी ऑफिस से फोन आ गया। उस के बाद समय कब बीत गया पता नहीं चला। दरवाजे की घंटी बजी तो दरवाजा खोल दिया। वाणी जी खाना ले कर आयी थी। उन्हें इशारे से बताया कि मैं कॉल पर हूँ वह खाना शुरु कर सकती है लेकिन वह खाना किचन में रख कर आराम से मेरे इंतजार में बैठ गयी। जब काफी देर हो गयी तो टीवी चला कर समाचार देखने लगी। मैं जब कॉल खत्म करके उनके पास गया तो देखा कि चार बज रहे थे।

मैनें उन से पुछा कि खाना खा लिया तो वह बोली कि नहीं आप का इंतजार कर रही थी। मैनें कहा कि मेरी वजह से आप भुखी रह गयी तो वह बोली कि नहीं उल्टी बात है मेरी वजह से वह खाना खा रही है। मैं चुप रहा। वह किचन में जा कर खाना प्लेटों में लगा कर ले आयी। उन्होनें राजमा चावल बनाये थे, यह मेरी मनपसन्द चीज थी। मैं तो उन पर टूट पड़ा, मेरी जल्दी देख कर वह बोली कि आप हमेशा इतनी जल्दी में क्यों रहते है?

मैनें कहा कि राजमा चावल को देख कर मुझे कुछ हो जाता है। वह हंस कर बोली कि काफी है आराम से खाइयें, खत्म नहीं हो जायेगें। मैनें अपनी रफ्तार पर लगाम लगायी। वह खाते में सिर झुका कर मुस्करा कर बोली कि आप की जल्दी तो मैं देख चुकी हूँ। उन की बात पहले तो मेरी समझ में नहीं आयी लेकिन थोड़ी देर में समझ आयी तो पता चला कि वह रात की घटना की बात कर रही थी। हम दोनों खाना खाते रहे। खाने के बाद मैनें कहा कि राजमा चावल बचपन से मेरी मनपसन्द है आज बहुत दिनों बाद इतने स्वादिष्ट राजमा खाने को मिले थे इस लिये जल्दबाजी थी। अच्छी चीज को देख कर रुका नहीं जाता। वह मंद-मंद मुस्कराती रही।

खाना खत्म होने के बाद मैनें उन से पुछा कि रात को आप किस चीज से डर गयी थी तो वह बोली कि कह नहीं सकती मैनें क्या देखा था लेकिन अगर मैं कुछ देर और वहां रुकती तो शायद मेरी जान निकल जाती। मैनें बात आगे नहीं बढायी। वह बोली कि सब्जी बढ़िया है तीन-चार दिन का काम चल जायेगा। हफ्ता तो बीत गया है, बाकि समय भी बीत जायेगा। मैनें पुछा कि भाई साहब से बात हुई थी तो वह बोली कि हां हुई थी वह भी परेशान है कहीं निकल भी नहीं सकते। खाने की दिक्कत तो अभी तक नहीं हुई है आगे का कुछ कह नहीं सकते। फिर वह खाने के बरतन ले कर वापस चली गयी। मैं सोचने लगा कि रात की घटना वाणी जी को याद है, लेकिन उस की सच्चाई को लेकर मेरे मन में संशय था। मैं उस संभोग से इतना थक गया था कि अभी तक उबरा नहीं था। मुझे देर रात तक ऑफिस का काम भी करना था। लाई हुई दवाई में से शिलाजीत के केप्सुल निकाल कर खा लिये। सोचा कि देखते है इन का क्या असर होता है। टॉनिक की बहुत जरुरत थी।

रात को पत्नी की सहायता से सब्जी बनाई और खाना खा कर काम करने लगा। देर रात तक काम में डुबा रहा। उस के बाद सोनें चला गया। सोते समय भी मन में कल की घटना घुम रही थी। चाहें दूसरी औरत भोगने को मिली थी लेकिन भोगनें की परिस्थिति बहुत अजीबोंगरीब थी, सेक्स तो जोरदार हुआ था लेकिन मन उस का आनंद नहीं उठा पाया था। पत्नी से बेवफाई करने की भी चिन्ता थी। इन्हीं सब बातों को लेकर मन अशान्त था। बैचेनी खत्म नहीं हो रही थी सो पत्नी को फोन किया तो वह सो रही थी बोली कि क्या डर लग रहा है? तो मैनें कहा कि सच तो यही है कि डर लग रहा है लेकिन उसे सच नहीं बताया। बातें कर के फोन काट दिया। उसे कुछ बताने के हालात नहीं थे। थके होने के कारण कुछ देर में नींद आ गयी। रात को कोई घंटी नहीं बजी और मैं सुबह ही ऊठा। देखा तो छः बज रहे थे।

किचन में चाय बनाने लग गया। चाय बना कर पीने बैठा तो घंटी बजी। जा कर दरवाजा खोला तो वाणी जी खड़ी थी उन की हालत बड़ी खराब सी लग रही थी। वह चुपचाप अंदर आकर बैठ गयी। मैनें चाय के लिये पुछा तो कुछ नहीं बोली मैनें अपना चाय का प्याला उन के हाथ में थमा दिया और अपने लिये चाय बनाने किचन में चला गया। वहां से आया तो वह बोली कि रात को मुझे बहुत डर लगा लेकिन मैनें आप को परेशान करना उचित नहीं समझा। लेकिन मेरी हालत तो आप देख रहे है। मैं उन की बगल में बैठ गया और उन से पुछा कि आप ने क्या देखा? तो वह बोली कि एक लम्बें बालों वाली औरत घर में घुमती है। मुझे उस का पीछे का हिस्सा ही दिखायी देता है। चेहरा कभी नहीं दिखायी देता। मैनें पुछा कि पहले कभी ऐसा हुआ है तो वह बोली कि नहीं हम कई सालों से इस मकान में है कभी कुछ भी नहीं हुआ।

यह सुन कर मुझे लगा कि शायद अकेले होने की वजह से वह डर रही है तो उन्होनें कहा कि मैं तो महीनें में 15-20 दिन अकेले ही रहती हूं। ये तो अक्सर टूर पर जाते रहते है। ऐसा अनुभव कभी नहीं हुआ है। आप के सिवा और किसी को कुछ बता भी नहीं सकती। इन को भी नहीं बता सकती, नहीं तो वहाँ पर यह बहुत परेशान होगे। मैनें कहा यह तो सही बात है। चाय पीने के बाद आप के घर चल कर देखते है क्या बात है? यह कह कर मैं अपनी चाय लेने चला गया। हम दोनों चुपचाप चाय पीतें रहे। चाय खत्म होने के बाद मैं उन के साथ उन के घर चला आया। ताला खोल कर हम दोनों घर में प्रवेश कर गये।
 
Last edited:

sunoanuj

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बहुत ही शानदार शुरुआत की है ! अगले भाग की प्रतीक्षा में है !
 
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Update 4

घर में घुस कर मुझे कुछ अजीब सा लगा। हम दोनों सारा घर देखने लगे। सारी खिड़कियां बंद थी, कहीं कोई खुली जगह नहीं थी जहां से कोई अंदर आ सके। दरवाजे भी बंद थे। बालकानी से भी किसी का आना मुमकीन नहीं लग रहा था। मैनें उन से पुछा कि वह पूजा वगैरहा करती है तो वह बोली कि नहीं करती। पुजा स्थान तो बना रखा था। लेकिन नियमित दिया-बाती नहीं करती थी। मैनें उन्हें सलाह दी कि वह नहा कर साफ कपड़ें पहन कर दीपक जलायें और उस के बाद सारे घर में दीपक को घुमा कर उस की घुनी सी पुरे घर में करें और इस दौरान घंटी भी बजाती रहे। वह बोली की यह तो मुझे आता है, मैनें कहा कि ऐसा रोज किया करें। सारे घर में हर कोनें में दीये का प्रकाश जाना चाहिये, ऐसा करने से नेगेटिव एनर्जी दूर रहती है।

वह मेरी बात समझ गयी और बोली कि आज से ही ऐसा करती हूँ। इस के बाद मैनें उन से कहा कि रात को वह मेरे यहां आ सकती है। यह सुन कर वह मुस्कराई और बोली कि ऐसा कह कर आप ने मेरा संकोच दूर कर दिया। मैनें कहा कि पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है। फिर इस समय तो कोई कहीं आ जा भी नहीं सकता। बड़ा विकट समय है। यह कह कर मैं अपने घर लौट आया। घर आ कर मुझे लगा कि वहां कुछ तो गलत है, वाणी की बात गलत नहीं है। मुझे भी वहां नेगेटिव एनर्जी महसुस हुई थी। मैं इस विषय में ज्यादा तो नहीं जानता था, लेकिन भगवान पर पुरा विश्वास करता हूँ। वहीं सब संकटों से पार उतारता है। ऐसा मेरा विश्वास है। अपने मन में ऐसा सोच कर मैं भी नित्यक्रम में लग गया।

नाश्ता बना कर, खाने को मैं बैठा ही था कि घंटी बजी, दरवाजा खोलने पर वाणी जी थी, बोली कि नाश्ता तो नहीं किया? मैनें कहा कि शुरु करने ही वाला था तो वह बोली कि मैं समय पर आ गयी हूँ, मैनें कहां कि चलिये मिल कर नाश्ता करते है तो वह बोली कि मैं भी यही कहने वाली थी। वह भी आलु के पराठें बना कर लायी थी। मैनें उन्होकें बनाये आलु के पराठे और उन्होनें मेरे बनाये पराठे खाने शुरु कर दिये। पराठा खाते हुये वह बोली कि आज पराठों का स्वाद कल से बेहतर है आप बड़ी जल्दी उन्नति कर रहे है।

मैनें कहा कि चलिये अगर आप कह रही है तो सही ही होगा वह बोली कि मेरे बनाये पराठे कैसे लगे? मैनें कहा कि इन की प्रशंसा के लिये शब्द कम पड़ रहे है तो वह हंस कर बोली कि आप ऐसे ही है या मुझ से फ्लर्ट कर रहे है? मैनें हंस कर कहा कि अब प्रशंसा करना भी फ्लर्ट हो गया है तो मैं कुछ नहीं कह सकता लेकिन पराठें स्वादिष्ट बने है। खा कर मन प्रसन्न हो गया। वह जोर से हंसी और बोली कि ऐसी हिंदी कहां से सिखी है? मैनें उन्हें बताया कि सीखी नहीं पढ़ी है। वह आश्चर्य से बोली कि आप तो इंजीनियर है। मैनें कहा कि यह कहां लिखा है कि इंजीनियर भाषा में एम ए नहीं कर सकते? वह बोली कि एम ए कब कर ली?

मैनें उन्हें बताया कि इंजीनियरिग करने के बाद नौकरी नहीं मिली तो उस दौरान अपने मनपसन्द विषय में पोस्टग्रेजुएशन कर मारी। नौकरी तो पढ़ाई के पहले साल में मिल गयी लेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी और फाइनल पास कर लिया। वह बोली कि आज पहली बार किसी इंजीनियर और भाषा के विद्वान से मिलने का मौका मिला है। मैनें सर झुकाया। वह हंसती रही। मैनें उन्हें देख कर कहा कि आप हंसती हुई अच्छी लगती है ऐसे ही हंसती रहा किजिये।

यह सुन कर वह बोली कि अकेले होने का फायदा उठा कर फ्लर्ट कर रहे है। मैनें कहा कि जो मन को अच्छा लगा वह कह दिया, आप का मन जो सही समझें वही समझ ले। वह यह सुन कर चुप रही। हम दोनों शायद अपनी सीमायें जानते थे लेकिन परिस्थित वश ऐसा कर रहे थे। नाश्ता करने के बाद वह बोली कि दोपहर के खाने के बारें में क्या विचार है तो मैनें उन्हें बताया कि मेरी तो शिफ्ट दोपहर से शुरु हो कर रात तक चलेगी सो कुछ कह नहीं सकता अगर समय मिलेगा तो कुछ सोचुंगा तो वह बोली कि मैं कुछ बना लूं

आप उस से खाना खा लेगें? मैनें कहा कि आप क्यों परेशान होती है मैं कुछ बना लूगा तो वह बोली कि यह परेशानी की बात है आप मेरे लिये इतना कर सकते है तो मैं आप के लिये खाना भी नहीं बना सकती? मैनें हथियार डालते हुये कहा कि बना लिजियेगा। आप के साथ ही खा लुगां, लेकिन देर हो सकती है। वह बोली कि आज कल जल्दी किसे है? मैनें कहा यह तो आप सही कह रही है। वह उठ कर अपने घर चली गयी और मैं ऑफिस की तैयारी में लग गया।

दोपहर तीन बजे घंटी बजी तो वह खाना ले कर खड़ी थी बोली कि मैं इंतजार कर लुगी आप अपना काम कर ले। वह आ कर ड्राइग रुम में टीवी देखने लगी और मैं कमरें में ऑफिस अटैन्ड करने लगा। चार बजे फुरसत मिली तो उन के पास गया वह टीवी देखते-देखते हो गयी थी। सोते समय बहुत सुन्दर लग रही थी लाल रंग की साड़ी में वैसे ही जंच रही थी फिर बिखरे बाल और ढलके पल्लू में बला की सेक्सी दिख रही थी। मैने आवाज दी तो वह जग गयी, अचकचा कर बोली कि आंख लग गयी थी। रात को नींद नहीं आयी थी। आलु प्याज की सब्जी के साथ पराठे बना कर लायी थी।

औरत के हाथ लगते ही हर चीज में अलग ही स्वाद आ जाता है। मैनें पुछा कि खाने के स्वाद की बढ़ाई करुं तो कुछ गलत तो नहीं समझा जायेगा, तो वह मुस्करा कर बोली कि आप ने वह सीमा पार कर ली है जो मन कहे बोलिये। मैनें कहा कि आलु प्याज में स्वाद आ गया है और ठन्डें पराठें तो कहर ही ढा रहे है। खाना खा कर मजा आ गया। वह कुछ नहीं बोली केवल मुस्कराती रही। वह जब जाने लगी तो मैनें कहा कि आप यहां पर कुछ देर आराम कर लिजिये। शाम की चाय पी कर चली जाईयेगा। मेरी बात उन को अच्छी लगी और वह वहीं दिवान पर लेट गयी। मैं अपने कमरे में चला गया। कुछ देर में ही उन के खर्राटों की आवाज मेरे कानों में पड़ने लगी। वह रात भर की जागी हुई थी, इस लिये गहरी नींद में सो रही थी। मैनें सोचा कि अगर रात को वह यही पर रुकी तो वह सिर्फ अपनी नींद ही पुरी करेगी और कुछ नहीं।

सात बजे के बाद वह उठ गयी और मुझ से बोली कि चाय पीयेगे? मैनें हां में गरदन हिलायी तो वह किचन में चाय बनाने चली गयी। चाय बना कर लायी और मेरी चाय की प्याली मेरे पास रख कर बोली कि मैं अब जा रही हूँ रात का खाना बनाती हूँ । मैनें कहा कि आप सुबह से बना रही है अब मैं बनाता हूँ तो वह बोली कि काम का क्या होगा तो मैनें कहा कि काम तो होता रहेगा। यह कह कर मैं चाय का कप लेकर उन के साथ कमरे से बाहर आ गया। वह बोली कि तो क्या खिला रहे है आप आज रात को? मैनें कहा कि मेरा मीनू तो सीमित है, अरहर की दाल और चावल बना सकता हूँ तो वह बोली की चलेगे। आप बना लिजिये, मैं आ जाऊँगी, जब वह जाने लगी तो मैनें कुछ याद करके कहा कि वाणी जी अपना फोन नंबर तो दे कर जाईये। वह हंस कर बोली कि इतना कुछ हो रहा है लेकिन फोन नंबर का आदान-प्रदान नहीं हुआ। मैनें अपना फोन उन के हाथ में दे दिया। वह अपना नंबर डाइल करने लगी। जब बेल बज गयी तो काट दिया। इस के बाद वह दरवाजा बंद करके निकल गयी।
 
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Update 5

मैं काम खत्म करके खाना बनाने लग गया, पत्नी से फोन पर जानकारी जुटा ली। वह भी शायद वहां पर व्यस्त थी। एक घंटें में खाना बन गया। साढें आठ बजे वाणी जी को फोन किया तो वह आ गयी। दोनों खाना खाने लगे। खाना खाते में वह बोली कि अरहर की दाल तो बढ़िया बनायी है, तो मैनें उन्हें बताया कि यह तरीका मेरी नानी का है बचपन में मैं देखा करता था अभी तक ध्यान में था। खाने के बाद मैनें उन से पुछा कि रात को अगर परेशानी ना हो तो यही पर सो जाये। मैं यहां बाहर सो जाऊँगा आप कमरें में अंदर से बंद करके सो जाना। वह यह सुन कर बोली कि आप से डर थोड़ी ना लगता है तो मैनें हंस कर कहा कि मैं अपने डर की बात कर रहा था। वह बोली कि वहां नींद नहीं आती है, यहीं सोना सही रहेगा।

आप जैसा कहते है वैसा ही करतें है। मैं थोड़ी देर में घर बंद कर के आती हूँ। वह यह कह कर चली गयी। मैं भी ऑफिस का काम खत्म करने लगा। दस बजे के आसपास घंटी बजी तो वह ही थी। अंदर आ कर बोली कि हर चीज अच्छी तरह से देख भाल कर के घर बंद करके आयी हूँ, सुबह ही पता चलेगा कि क्या हूआ? मैनें कहा कि आप चिन्ता ना करें आराम से सोने की कोशिश करें, कोई बात हो तो मैं तो बाहर सो ही रहा हूँ। वह बोली कि आप से कुछ देर बातें करनी है। मैनें कहा बैठियें, हम दोनों आराम से दीवान पर बैठ गये। वह बोली कि आप को मेरा व्यवहार कैसा लग रहा है? मैनें कहा यह कैसा प्रश्न है, वह बोली कि ऐसा तो नहीं लग रहा कि मैं कोई नाटक कर रही हूं।

मैनें कहा कि पहले तो कुछ समझ नहीं आ रहा था। लेकिन आप की हालत देख कर मन कुछ और माननें को तैयार नहीं हो रहा था। उस रात को जो कुछ हुआ उस के लिये मैं अब तक शर्मिंदा हूँ। वह बोली कि मुझे भी कुछ पता नहीं है क्या हुआ था लेकिन मेरी सांस सी घुट रही थी,आप समझ सकते है किसी अकेले आदमी के पास रात में जाना कितना मुश्किल काम है, लेकिन जब जान पर बनी हो तब कुछ और नहीं सुझता, जो सही लगा मैनें किया। आप ने तो मुझे अलग ही सुला दिया था लेकिन वहां भी अकेले में डर गयी थी।

आप के साथ सो कर ही कुछ चैन सा मिला, फिर क्या हुआ कह नहीं सकती, लेकिन आप ने उस दिन कुछ नहीं छोड़ा सब कुछ कर लिया। मैनें कहा कि मैं अब तक समझ नहीं पाया कि उस दिन मेरा संयम कैसे टूट गया? फिर जो कुछ मैनें उस दिन किया वह तो मैं पत्नी के साथ भी नहीं कर सका हूं। आप के साथ, मुझे सोच कर भी अपने पर गुस्सा आता है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि शायद हम दोनों बहुत दिनों से बिना सेक्स के थे और मेरा व्यवहार भी मुझे ही समझ नहीं आ रहा है। जो कुछ हुआ हम दोनों के कारण हुआ था किसी एक को दोष नहीं दे सकते। कुछ गलत था यह सही है लेकिन उस परिस्थिति में मेरी जान भी जा सकती थी ऐसा आज मुझे लगता है।

मैं चुपचाप सुन रहा था। वह बोली कि ना आप बेवफा है और ना मैं बेवफा हुँ। आप ने उस के बाद भी मुझे कुछ नहीं कहा है आज भी बंद कमरें में सोने के लिये कह रहे है। मैं आप पर विश्वास करके ही आप के पास आती हूँ। जो कुछ हमारें बीच में हो गया है या हो रहा हैं वह किसी को पता नहीं चलेगा यह मैं अपनी तरफ से कह सकती हूँ। मैनें कहा कि मेरे पर भी आप भरोसा कर सकती है। यह खास संकटकाल है इस में घटी घटना हम दोनों तक ही सीमित रहेगी। मेरी बात सुन कर वह मुस्कराई और बोली कि आप की पत्नी भाग्यशाली है जो आप जैसे पति उन को मिले है। मैं हंस कर बोला कि यह तो वह ही बेहतर बता सकती है।

अब तक मेरी झिझक दूर हो गयी थी, मैनें उन से पुछा कि उस रात मैनें आप से गुदा मैथुन कर डाला आप को बुरा तो नहीं लगा, मेरी बात सुन कर वाणी जी बोली कि नहीं, दर्द तो बहुत हुया था, लगा कि गुदा में आग लग गयी है लेकिन उस समय सारे शरीर में लावा सा बह रहा था।

दर्द भी अच्छा लग रहा था, मैनें शायद इतना लम्बा संभोग नहीं किया था। हम दोनों ही उस समय होश में नहीं थे जो आप कर रहे थे मैं बस उस में साथ दे रही थी मैने भी आप को शायद काटा था नोचा था? मैनें उन्हें बताया कि मेरी पीठ पर अभी भी उन के नाखुनों के लगाये जख्म भरे नहीं है। उन के नाखुन मेरे कुल्हों के मांस में गड़ गये थे। वह सब कुछ जो हम कर रहे थे पाशविक था। उस के बारें में जितना भी सोचता हूँ मुझे आश्चर्य होता है कि मैं इतना सब कैसे कर पाया।

होश में तो मैं किसी को जबरदस्ती पकड़ने की भी नहीं सोच सकता। वह बोली कि मुझे उस रात लगा कि आप को हर काम करने की बहुत जल्दी रहती है इस लिये आप सेक्स में इतनी जल्दबाजी कर रहे है। उस का आनंद नहीं ले रहे। मैनें कहा कि पता नहीं क्या पता मैं भी उस समय किसी और के वश में था। उस समय लग रहा था कि यह जो आग शरीर में लगी है वह जल्दी से बुझ जाये, लेकिन आग बुझने की बजाए भड़क रही थी। उस समय जाने कहाँ से ताकत आ गयी कि योनि की बजाए गुदा में लिंग डाल दिया, डाला ही नहीं पुरा घुसेड़ दिया, जहां तक मुझे पता है ऐसा करना पहली बार में बहुत कठिन है।

शायद लिंग पुरी तरह से चिकना हुआ पड़ा था, जरा ज्यादा जोर लगाया उसे जहां जगह मिली घुस गया। वाणी जी बोली कि मुझे तो लगा कि मैं मर जाऊंगी, मेरी शायद चीख भी निकली थी लेकिन आप पर कोई असर ही नहीं पड़ा आप अंदर बाहर करते रहे। बाद में मुझे मजा आने लगा था। तभी आप नें लिंग गुदा से निकाल कर मुझे सीधा करके फिर से योनि में डाल दिया। योनि तो सुन्न सी हो गयी थी। आप जब स्खलित हुये तो गर्म सा लगा। मैनें उन्हें बताया कि उस के बाद वह भी स्खलित हुई थी और मेरा सारा लिंग गर्म लावें से नहा गया था। जब मेरा लिंग बाहर निकला तभी मुझे आराम पड़ा था।

उन्होनें भी कहा कि इस के बाद उन के शरीर को आराम मिला था और वह गहरी नींद में सो गयी थी। मैनें भी कहा कि यही मेरा भी हाल हुआ था। हम दोनों एक दूसरे के साथ इतनी सरलता से यह बातें कर रहे थे इतनी सहजता से तो मैं यह बातें अपनी पत्नी से भी नहीं कर पाता, जबकि वह ऐसी बातें आराम से कर लेती है। वह बोली कि आप के साथ मैं सहज महसुस कर रही हूँ। इस का कारण रात का संभोग तो नहीं हो सकता। वह तो इस सहजता की वजह से हुआ था।

मैनें वाणी जी से कहा कि उस दिन से पहले मैनें किसी के साथ गुदा मैथुन नहीं किया था। वह मुस्कराई और बोली कि एक बार इन्होनें ट्राई किया था लेकिन अंदर नहीं जा पाये थे। आप तो एक बार में ही पुरा अंदर डाल दिया था। उस समय आप में बहुत ताकत आ गयी थी। मैनें सहमति में सर हिलाया। वह मुस्कराई और बोली कि दूबारा कभी ऐसा होगा तो आप जल्दीबाजी मत करना। मैं उन की तरफ देखता रह गया। वह मेरी तरफ देख कर बोली कि किसी भी औरत को ऐसी संतुष्टि की लालसा होती है, मैनें उस का स्वाद चख लिया है तो लालसा जग गयी है। लेकिन आप के बारें में कह नहीं सकती? मैनें उन की आंखों में देख कर कहा कि मैं आप से सहमत हूँ, वैसा संभोग तो मैनें कभी नहीं किया। आगे का कुछ कह नहीं सकता। मेरी बात सुन कर वह मुस्कराई और उठ कर कमरें में चली गयी। कुछ देर बाद दरवाजा बंद होने की आवाज आयी। मैं भी दीवान पर लेट गया। नींद अभी आसानी से कहा आनी थी। कहानी तो अभी शुरु हो रही थी। आगे क्या होगा यह कौन बता सकता था?

रात बिना किसी घटना के बीत गयी। सुबह उठ कर वह चाय पी कर जाने लगी तो मेरी तरफ देख कर बोली कि आप बहुत संयमी है, किसी औरत के साथ बिना उसे छुये अलग से सो पाये यह आप के संयम को दर्शाता है। फिर वह मुस्कराती हूई चली गयी।

मैं पहले दूध लेने गया और वापस आ कर नहा धो कर नाश्ता बनाने लग गया। नाश्ता करने के बाद कुछ देर आराम करनें के लिये बैठ गया। कुछ देर बाद घंटी बजी और दरवाजे पर वाणी जी दिखाई दी। अंदर आने के बाद वह बोली कि आज दोपहर का खाना मैं बना रही हूँ, बताए क्या खाना चाहते है? मैनें उन से कहा कि मैं इस बारें में क्या कहुं? वह बोली कि कल दूध से पनीर बनाया था, सो पनीर की सब्जी बनाती हूँ उस के साथ चावल सही लगते है। मैनें सहमति में सर हिलाया तो वह बोली कि दो-तीन बजे तक खाना बना कर लाती हूँ आप अपना काम खत्म कर लिजियेगा। यह कह कर वह चली गयी।

मैं अपने कामों में लग गया। दोपहर के खाने के बारें में सोचने की आवश्यकता नहीं है। जरुरी काम करके ऑफिस का काम करने बैठ गया। तीन बजें घंटी बजी और वाणी जी खाना ले कर अंदर आ गयी। मैनें उन्हें कहा कि वह कुछ देर इंतजार करें मैं काम खत्म करके खाना खाने आता हूँ। वह टीवी देखने बैठ गयी। मैं वापिस काम में लग गया। चार बजे के करीब काम से छुटकारा पा कर वाणी जी के पास आया तो वह टीवी देखते देखतें सो गयी थी। मेरे ड्राइगरुम में आने की आहट पा कर वह उठ कर बैठ गयी। बोली कि आंख लग गयी थी। मैं कुछ नहीं बोला लेकिन यह समझ आ गया कि कल रात वह सही तरीके से सो नहीं पायी थी। आज इस का कोई उपाय करना पड़ेगा। लेकिन इस में उन की सहमति भी जरुरी थी। खाने के बाद उन से इस बारें में बात करनी पड़ेगी।

वाणी ने खाना लगा दिया था, हम दोनों चुपचाप खाना खाने लगे। पनीर की सब्जी बढ़िया बनी थी। भरपेट खाना खा कर बातें करने बैठ गये। वह चलने लगी तो मैनें उन्हें रोक कर कहा कि आप से कुछ बात करनी थी। वह चौक कर मेरी तरफ देखने लगी। मैनें कहा कि आराम से बैठिये, बताता हूँ। वह मेरे सामने बैठ गयी। मैं कुछ देर चुप रहा फिर बोला कि हो सकता है मेरी बात आप को बुरी लगें या आप को लगे कि मैं सिर्फ अपने बारें में सोच रहा हूँ या सिर्फ सेक्स की बात कर रहा हूँ, आप कुछ भी सोच सकती है लेकिन मैं आप की अवस्था को देख कर परेशान हूं और चाहता हूँ कि आप कुछ दिनों तक मेरे साथ यहां आ कर सोये।

इस से आप का डर कम होगा तथा आप आराम से सो पायेगी, जो आप की सेहत के लिये जरुरी है, इस काल में सेहत का सही रहना बहुत जरुरी है। यह कह कर मैं चुप हो गया। वह मेरी बात सुन कर कुछ देर सोचती रही, फिर बोली कि आप की बात सही है कि आज के माहौल में सेहत सही रहना पहली जरुरत है नहीं तो बहुत मुश्किल में पड़ सकती हुँ। हम साथ सोयेगें तो सेक्स भी करेगें यह तो होगा ही इस लिये शायद आप झिझक रहे थे। मैं यह सब समझती हूँ लेकिन इस समय तो जान बचाना पहली जरुरत है नैतिकता कि जब चिन्ता तब करेगें जब जीवित बचेगें। मैं अपने घर में और यहां भी अकेले सो नहीं पा रही हूँ कल भी सारी रात में करवटें बदलती रही लेकिन आप के पास इस लिये नहीं आयी कि आप यह ना समझे कि मैं सेक्स के लिये मरी जा रही हूँ।

मैनें अपने हाथ से उन के हाथ को दबाया और कहा कि जरुरी नहीं है कि हर रात सेक्स ही होगा लेकिन अगर आप बिना डर के सो पाती है तो सही रहेगा। इस कारण अगर और कुछ होता है तो उसे होने देते है। वह मेरी बात सुन कर मुस्कराई और बोली कि पता नहीं आप को मेरी इतनी चिन्ता क्यों है? मैनें कहा कि शायद आप मेरे को पसन्द आ गयी है इस कारण से अपने फायदे के लिये चिन्ता कर रहा हूँ, मुझे भी अकेले नींद नहीं आती, कुछ ना कुछ करना पड़ता है। वह यह सुन कर मुस्करा दी और बोली कि कितने साल हो गये आपकी शादी को? मैने कहा तीन साल। वह बोली तभी तो गर्मी बाकी है। मैनें कहा कि हम दोनों तो एक या दो दिन छोड़ कर सेक्स करते ही है। जितना समय बीत रहा है इसका आनंद बढ़ रहा है। वह बोली कि आज देखते है क्या होता है। मैं कुछ पुछने वाला था तो वह बोली कि जो आप पुछना चाहते है उस का इलाज किया हुआ है।मैं पील्स लेती हूँ तो आप उस बारें में ना सोचे। हम दो अनजानें स्त्री-पुरुष कितनी सहजता से जीवन की सबसे कठिन बातचीत कर रहे थे यह मेरे लिये आश्चर्य की बात थी। वह उठ कर बरतन ले कर चली गयी।

मैं फिर से ऑफिस के काम में लग गया। रात का खाना भी वही बना कर लायी थी। खाना खा कर हम दोनों फिर से बातें करने लगें। मैनें पुछा कि कब से आप को वह चीज दिखायी देने लगी है तो वह बोली कि लॉकडाउन लगने के दूसरे दिन से ऐसा हुआ है। मैनें कहा कि इस से पहले आप को नींद सही तरह से आती थी तो वह बोली कि मुझे गहरी नींद आती है, एक बार सोने के बाद रात में बीच में उठती नहीं हूँ, उस दिन नींद नहीं आने के कारण उठ कर बाथरुम जाने लगी तो उसे देखा, पहले लगा कि मेरा भ्रम है लेकिन ऐसा नहीं था। रात को ही ऐसा होने लगा।

मैनें पुछा कि कोई ऐसी बात तो नहीं हुई तो आप को अजीब लगी हो? वह बोली कि ऐसा कुछ नहीं है। कोई आया नहीं है। ना ही मैं कही गई थी। मैनें कहा कि कई बार हम जब परेशान होते है तो हमारा दिमाग ऐसी वस्तुओं की रचना कर लेता है। फिर वह चीजें हमें असली लगने लगती है। यह भी एक थ्योरी है। लेकिन आप के घर जा कर मुझे नेगेटिव एनर्जी महसुस हुई थी। इस लिये मैं आप के लिये और चिन्तित हूँ। इसी कारण से मैनें ऐसा खतरनाक कदम उठाया है जो हम दोनों की जिन्दगीयों में आग भी लगा सकता है। वह यह सुन कर बोली, आप सही कह रहे है, इस समय को कोई सहायता भी नहीं कर सकता है।

मैं और कहीं जा भी नहीं सकती, सिर्फ आप ही यहां पर नजदीक है। और आप से मेरी बन भी रही है। आप भी बहुत बड़ा खतरा उठा रहे है। मैनें सर हिलाया। कुछ देर बातें करने के बाद मैनें दरवाजा बंद किया और हम दोनों कमरें में सोने के लिये चले आये। दोनों बिस्तर पर एक एक किनारें पर लेट गये। कुछ देर ऐसे ही पड़े रहे फिर वाणी मेरी तरफ मुड़ी और बोली कि आज सब कुछ आराम से कर सकते है? मैनें कहा कि हां कर सकते है इस में कोई बाधा नहीं है। वह आज साड़ी पहने हुई थी। मैं भी बाक्सर पहन रहा था। गरमी शुरु हो गयी थी।

मैनें वाणी को अपने करीब किया और उन के होठों का चुम्बन ले कर कहा कि रात कैसी बीतेगी कह नहीं सकते? वह बोली कि अनुभव तो कहता है कि जोरदार रहेगी। यह कह कर वह मुझ से लिपट गयी और बोली कि मैं और आप एक पुरुष और औरत है इस के सिवा सब भुल जाईये। उन की बाहों का कसाब मेरी पीठ पर बढ़ गया। मैं उन के माथे पर चुम्बन ले कर उन की आंखों पर चुम कर होठों पर आ गया। फिर हम दोनों एक दूसरें को इस तरह चुमने लगे जैसे कोई प्रेमी युगल काफी दिनों बाद मिला हो। उन की जीभ मेरे मुह के अंदर अठखेलियां करने लगी।

मैं उसे चुसने लगा। काफी समय तक दोनों चुम्बन रत रहे, जब सांस फुल गयी तब अलग हुए। फिर मैं उन की गरदन को चुमने हुए नीचे छाती पर आ गया। 32इंच की पुष्ट छाती कसी हुई और ब्रा में होने के कारण मेरे होठ उस के साथ ज्यादा कुछ नहीं कर सकते थे सो उरोजों के बीच चुम्बन से ही काम चला रहे थे। हां मेरे हाथ ब्लाउज के ऊपर से छातियों को दबा रहे थे।

इस के बाद मैनें हाथ से उनकी कमर सहलाई और नीचे की तरफ हाथ किया तो वह पेटीकोट में फंस गया। मैनें ऊपर से ही योनि को सहलाया। वह भी मेरी छाती पर अपनी गरम सांस छोड़ रही थी। हाथ कपड़ें के ऊपर से निप्पलों को दबा रहें थे। मतलब यह की दोनों के शरीर वासना से भरे हुये थे और एक लम्बें संभोग के लिये तैयारी कर रहे थे। अब देर करने की कोई आवश्यकता नहीं थी सो मैनें उन की साड़ी उतार कर एक तरफ रख दी और ब्लाउज के हुक खोल कर उसे उतार दिया, स्किन कलर की ब्रा में कसे उरोज ललचा रहे थे सो जल्दी से हाथ पीठ के पीछे ले जा कर ब्रा के हुक भी निकाल दिये। इस के बाद ब्रा को भी अलग रख दिया।

अब मेरे सामने 32 साइज के भरे स्तन थे और मैं उन का रस चुसने के लिये लालायित था सो मुह झुका कर उन के निप्पलों को एक एक करके चुसने लगा। वाणी को मुझ से एक ही शिकायत थी कि मैं जल्दबाजी करता हूँ तो मैं आज इस से बचना चाहता था लेकिन कुछ बातों में धैर्य रखना मुश्किल होत है सो ही हो रहा था। मेरे जोर-जोर से निप्पल चुसने के कारण उस के मुह से कराह निकल रही थी, लेकिन मन ही मन वह भी यह सब चाहती थी सो जो हो रहा था उस में भाग ले रही थी।

एक हाथ से दायें उरोज को मसल रहा था और दूसरें को पकड़ कर होठों से काट रहा था। उत्तेजना वश जो सही लग रहा था वह में वाणी के उरोजों के साथ कर रहा था। जोर से मुह में निगल कर चुसने की वजह से दातों के निशान भी बन रहे थे। लेकिन वासना की आग ने अंधा किया हुआ था। काफी देर तक उरोजों के साथ मेरा यह खेल चलता रहा फिर मेरे होठ कमर पर आ गये और कसी, सपाट कमर पर चुम्बन लेने लगे। खिसकते हुये नाभी की गहराई को जीभ से नापा और उस के नीचे की यात्रा आरम्भ कर दी। नीचे पेटीकोट के रुप में बाधा थी उस का नाड़ा खोल कर उसे नीचे किया और घुटनों तक कर दिया।

अब जांघों का सन्धिस्थल दिख रहा था लेकिन वह भी पेंटी से ढ़का हुआ था सो पेंटी के दोनों तरफ उगंली फंसा कर उसे भी घुटनों तक कर दिया। अब हल्कें बालों से ढ़की योनि के दर्शन हुये। पिछली बार इस के रस का स्वाद नहीं लिया था। शायद इसी लिये वाणी ने जल्दबाजी का ताना मारा था। इस बार ऐसा नहीं करना था सो आराम से नाक से उस की तीखी सी सुंगध को सुघा और जीभ को नीचे से लेकर ऊपर तक फिराया। कसैला सा स्वाद जीभ को मिला। उत्तेजना के कारण योनि से नमी बाहर आ रही थी।

केले के तने के समान कदंलीदार जांघों के देख कर मन शरारत करने को ललचा रहा था सो उन को चुमते हुये नीचे घुटनों तक आ गया फिर पेटीकोट और पेंटी को पंजों से नीचे कर के उतार दिया। पिडलियों को चुम कर दोनों पंजों की दसों ऊगलियों को होठों में ले कर चुमा। इस के बाद वाणी को पेट के बल कर के पिड़ालियों के पीछे के हिस्सें पर होठों की छाप लगातें हुये जांघों के ऊपर कुल्हों पर जा पहुंचा वहां मांसल 34 साइज के कुल्हों को हाथों से सहलाया और दातं से काटा और उन की गहराई में चुम्बन लिया। इस के बाद कमर के खम पर चुम कर रीढ़ की हड्डी को जीभ से चाटते हुये गरदन तक पहुंच गया। कंधों पर गहरें चुम्बन के निशान बन गये थे। वाणी कुनमुनायी की लव वाईट मत करो, लेकिन उस की बात सुन कौन रहा था। मैं उन की बगल में लेट गया फिर उन्हें उठा कर अपने ऊपर बिठा लिया।
 

sunoanuj

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Update 3

मुझे जोर से नींद आ रही थी लेकिन दिमाग उन की हालत देख कर परेशान था। कुछ देर के लिये आंख लगी थी कि दरवाजा खुलने की आवाज आयी और वह मेरे पास आ कर खड़ी हो गयी और बोली कि मुझे वहां पर भी डर लग रहा है आप भी वहां पर आ कर सो जाये। मैं सोच रहा था कि आज की रात कुछ ऐसा होगा जो मेरी पुरी जिन्दगी पर असर डालेगा। मैं इस बात से बचना चाहता था लेकिन वह मेरा हाथ पकड़ कर कमरें में ले गयी। तब मैनें ध्यान दिया कि वह मेक्सी पहने हुई थी।

मैं भी जल्दी में बाक्सर ही पहन पाया था। बेड पर आ कर वह लेट गयी और मैं भी दूसरें किनारे की तरफ लेट गया। उन के साथ एक बिस्तर पर लेटने में मुझे संकोच हो रहा था लेकिन इस समय कुछ किया नहीं जा सकता था। कुछ देर बाद वह चीख कर मुझ से लिपट गयी। वह थर थर कांप रही थी। मैनें उन्हें अपने से अलग किया और उन से पुछा कि वह डर क्यों रही है तो वह कुछ नहीं बोली लेकिन उन का कांपना बंद नहीं हुआ। डर के कारण वह पसीने से नहा गयी थी।

मैनें उन्हें अपने पास किया और उन को अपने से लिपटा कर पुछा कि क्या हुआ है? तो वह कुछ नहीं बोली, कुछ देर बाद उन्होनें कहा कि मैने कुछ ऐसा देखा है कि उसे याद करते ही मुझे डर लगने लगता है। मैनें उन्हें कस कर अपने से चिपका लिया, इस से उन का कांपना कुछ कम हुआ। उन का डर तो कम हो गया लेकिन मुझे जो डर था वह हो रहा था उन के शरीर की गर्मी से मेरे शरीर की गर्मी बढ़ रही थी। दो जवान शरीर एक दूसरे से चिपके हो तो जो हो सकता है वही हो रहा था। उन के मेरे साथ चिपकने के बाद मुझे पता चला कि वह मेक्सी के नीचे कुछ भी नहीं पहने हुये थी। शायद मेरी तरह ही सोने से पहले अंतः वस्त्र उतार देती होगी।

सारे उतार चढ़ाव मेरे शरीर पर अनुभव हो रहे थे। भरे पुष्ट उरोज और उन के तने कुचाग्र मेरी छाती में चुभ रहे थे। उन के चुभने के कारण वासना भरी उत्तेजना शरीर में भरती जा रही थी। मतिष्क इसे रोकने का प्रयास कर रहा था लेकिन शरीर के अंग कुछ और ही कर रहे थे। खुन का बहाव मेरी जांघों के बीच बढ़ गया था। सारा शरीर गर्म हो रहा था। कान भी गर्म हो गये थे। तभी उन के हाथ मेरे शरीर पर कस गये और हम दोनों के शरीर के बीच में दूरी खत्म हो गयी। अब तो वासना की आग पुरी तरह से लग गयी। उन के होठं मेरे होठों से चुपक गये और उन का रस पीने लगे। फिर मेरी जीभ उन के मुंह में जा कर अठखेलियां करने लगी। दोनों नें एक दूसरें के चेहरे को चुम-चुम कर गीला कर दिया। दोनों पर एक अलग ही तरह का नशा सा छा गया था, उस के कारण और कुछ सोचना समझना, दिखना बंद हो गया था।

मेरे होठ उन की गरदन से होते हुये वक्षस्थल तक आ गये। हाथ मेक्सी के उपर से ही उरोजों को सहलाने और मसलने लगे। इस के कारण वह मुह से आहहहहहहहहहह उहहहहहहहहहहह उईईईईईईईईईईईई की आवाज निकाल रही थी। हम दोनों इस खेल के पुराने खिलाड़ी थे। सो खेल को पुरी मस्ती से खेलनें लगें। मेरे हाथ उन के पिछवाड़ें के उभारों को सहलाते हुये उन की गहराई में समा गये। इस से वह कराहने लगी। अब हम दोनों को अपने कपड़ें अवरोध से लग रहे थे सो दोनों नें अपने कपड़ें उतार दिये। उन्होनें मेक्सी उतार दी और मैनें टीशर्ट और बाक्सर उतार दिया।

दोनों बिना कपड़ों के होने के बाद एक-दूसरे के शरीर का अन्वेष्ण करने लगे। फिर एक दूसरे के अंगों का मर्दन शुरु हुआ और कराहट की आवाज कमरें में भर गयी। दोनों एक आदिम ज्वाला में जल रहे थे। मैनें उन के कुचाग्रों को मुह में ले कर जोर से पीना शुरु किया तो वह मेरी पीठ में अपने नाखुन गढ़ानें लगी। पीठ पर नाखुनों के निशानों की बाढ़ सी आ गयी। मेरा हाथ उन की जांघों के मघ्य की गहराई में जा कर उस के अंदर प्रवेश कर गया वहां उसे कोई प्रतिरोघ का सामना नहीं करना पड़ा।

कुछ देर अन्दर बाहर करने के बाद लगा कि अब रुकना बेकार है तो मैं उन की जांघों के मध्य बैठ गया और अपने लिंग को उन की योनि की पखुडियों के मध्य लगा दिया वहां इतनी नमी थी कि लिंग को अंदर जाने में कोई रुकावट नहीं हुई जब वह पुरा समा गया तब आह की आवाज उन के मुह से निकली। मैनें अपने कुल्हें ऊपर उठा कर पुरे जोर से धक्का दिया और फिर धक्का देने की प्रतियोगिता सी शुरु हो गयी ऊपर से मैं और नीचे से वह धक्कें लगा रही थी। इन धक्कों की गति बहुत अधिक थी। दोनों एक दूसरे को अपने में समा लेना चाहते थे। कुछ देर बाद करवट बदल कर वह मेरे ऊपर आ गयी और उन के कुल्हों की मार मेरी कमर पर पड़ने लगी। उन की गति बहुत तेज थी उस में बहुत शक्ति थी।

कुछ देर में मेरी कमर दर्द करने लगी। कमरा फचाफच की आवाजों से भर गया था। गरमी थी और पसीने से दोनों के बदन नहा गये थे। चरम पर पहुंचने में देर थी सो फिर करवट बदली और वह पेट के बल मेरे नीचे थी और में उन के कुल्हों के पीछे से वार कर रहा था उन के कुल्हें मेरे वार से पिचक से रहे थे वह कराह रही थी। लेकिन कोई रुकना नहीं चाहता था। फिर जाने क्या हुआ कि मेरा लिंग योनि ने निकल गया, दूबारा डालने के लिये कुल्हों की दरार के बीच लगाया तो वह योनि की बजाए गुदा की तरफ हो गया।

मैनें जोर लगाया तो वह गुदा में घुस गया। उन के मुह से तेज चीख निकली लेकिन मैं कुछ सुनने की अवस्था में नहीं था। मैनें पुरी ताकत लगा कर लिंग को गुदा में पुरा घुसेड़ दिया। लिंग योनि द्रव से चिकना होने के कारण पुरा अंदर घुस गया। नीचे से वह चीखती रही और मैं ऊपर से धक्कें लगाता रहा।

फिर से उन्हें करवट दिला कर पीठ के बल कर के योनि में लिंग डाला और शुरु हो गया इस बार उन के हाथ पैर भी मेरे शरीर पर कस गये और हम इसी अवस्था में संभोगरत रहे। कुछ देर के बाद मेरी आंखों के आगें सितारें चमचमाने लगे और मैं स्खलित हो गया। वह भी स्खलित हुई और मेरे लिंग नें गर्मागर्म द्रव की धार से स्नान कर लिया। लिंग संकुचित हो कर योनि से निकल गया और मैं भी उन के ऊपर से उठ कर उन की बगल में लेट गया। अपने जीवन में इतना जोरदार ताकत वाला आदिम संभोग मैनें तो नहीं किया था, इस कारण से में तो बुरी तरह से थक गया था और कुछ देर में ही सो गया।

सुबह शायद पांच बजे फोन में अलार्म बजा तो हम दोनों की नींद खुली, उन्होनें उठ कर मेक्सी डाली और बिस्तर से उठ कर दरवाजा बंद कर के चली गयी, मैं भी जल्दी से बाक्सर पहन कर बाहर लपका तो देखा कि वह अपना दरवाजा खोल कर घर में जा चुकी थी। मैं भी अपना दरवाजा बंद करके वापस बिस्तर पर आ गया। रात की थकान अभी तक थी। यह सोच ही रहा था कि रात को क्या हुआ कि मुझे फिर से नींद आ गयी और मैं सो गया।

एक घंटें बाद फिर से अलार्म की आवाज से नींद खुली तो लगा कि रात को जो हुआ वह सपना तो नहीं था। बिस्तर पर हाथ फिरा कर देखा तो वह सुखा था लेकिन उस पर शरीर के द्रवों के दाग लगे हुये थे इस का मतलब यह था कि सपना नहीं था सब कुछ वास्तविक रुप में घटा था।

उठ कर मैं नित्यक्रम में लग गया और जब नहा कर तैयार हुआ तो पत्नी का फोन आया, उस ने पुछा कि आज क्या खाना है तो मैनें कहा कि आज तुम मुझे आटा गुथना सिखायों, मैं पराठें बना कर खाऊंगा। वह इस के लिये तैयार हो गयी। मैनें परात में आटा लिया और पत्नी के बताए अनुसार पानी मिला कर उसे गुथना शुरु किया पहले तो यह बड़ा मुश्किल लगा लेकिन थोड़ी देर में ही मुझे समझ आ गया कि इसे कैसे गुथना है।

आटा गुथ कर उसे कुछ देर के लिये रख दिया और पराठें बनाने के लिये पत्नी से लेक्चचर सुना, सुन कर लगा कि मैं इन्हें तो बना लूगां, लेकिन जब बनाना शुरु किया तो पता चला कि पराठे बनाना इतना आसान भी नहीं है। लेकिन चार पराठें बना ही लियें, उन की फोटों देख कर पत्नी बोली कि पहली बार के हिसाब से सही लग रहे हैं। खा कर बताना कि कैसा स्वाद है? मैनें चाय बनाने रख दी, तभी घंटी बजी, जा कर दरवाजा खोला तो मिसेज गुप्ता यानी वाणी जी खड़ी थी बोली कि आज जब आप दूध लेने जाये तो सब्जी जरुर ले आना, कुछ भी नहीं है।

मैनें उन्हें देखा तो उन के चेहरें पर कल रात की घटना का कोई निशान नजर नहीं आया था वह पहली जैसी ही लग रही थी। कल रात की घटना, उन को देख कर लगा कि घटी ही नहीं थी। मैं घटना के बारें में सोच रहा था तभी मेरी तन्द्रा उन की आवाज ने तोड़ी कि आप ने नाश्ता कर लिया तो मैं बोला कि नहीं किया है लेकिन करने जा रहा हूँ तो जबाव मिला कि क्या है नाश्तें में? मैनें बताया कि पराठें बनायें है यह सुन कर वह आश्चर्य से बोली कि आप हर दिन मुझे कोई ना कोई शॉक सा देते है, देखे कैसे पराठें बनाये है? यह कह कर पर अंदर आ गयी, फिर किचन में जा कर वहां रखें पराठें देख कर बोली कि पराठें तो बढ़िया लग रहे है।

मैनें कहा कि आप भी मेरे साथ नाश्ता कर सकती है तो वह बोली कि हां पहले में घर बंद कर के आती हूं यह कह कर वह चली गयी। मैं पराठें और चाय लेकर ड्राइग रुम में आ गया। जब वह आयी तो बोली की चलिये खा कर देखते है कैसे बनें है? वह और मैं पराठें खाने बैठ गये। मैनें कहा कि पहली बार बनाये है अगर पसन्द ना आये तो भी खा लिजियेगा। वह हंस कर बोली कि आजकल ना करने का मौका ही नहीं है इस समय जो मिल रहा है वह नियामत है। दो-तीन कौर खा कर बोली कि पराठें तो सही बने है और स्वाद भी बढ़िया है। मैनें उन्हें बताया कि इस में मेरा ज्यादा योगदान नहीं है सारी कलाकारी मेरी पत्नी की है उस ने जैसा बताया वैसा ही मैनें किया है।

वाणी जी बोली कि लेकिन फिर भी बनाया तो आपने ही है। मैनें कहा जर्राऩवाजी है आप की। वह बोली कि आप बहुत जल्दी चीजें सीख लेते हैं। मैनें कहा हां यह गुण तो मुझ में है। वह नाश्ता करती रही फिर बोली कि दोपहर का खाना, मैं बना रही हूं। आप परेशानी मत किजियेगा। मैनें कहा कि आप क्यों मेरे लिये परेशान हो रही है? तो जबाव मिला की अकेली होने के कारण कुछ बनाने का मन ही नहीं करता है। आप के बहाने कुछ बनाने, खाने का मन तो करता है। आप इस के लिये मना नहीं करेंगें। मैनें कहा मैं क्यों मना करुंगा

मेरे साथ भी यही समस्या है अकेले होने के नाते किसी बात के लिये मन ही नहीं करता। बातें करते करते नाश्ता खत्म हो गया। वह वापस अपने घर चली गयी। मैं भी कुछ देर बाद दूध वगैरहा लाने के लिये तैयार हो कर निकल गया। सामान खरीद कर घर के लिये वापस चला तो ऐसे ही आयुर्वेद दवाईयों की दूकान पर चला गया। वहां से कुछ दवाईयां खरीद कर ऐसे ही कुछ ताकत के लिये पुछा तो उन्होनें शिलाजीत के केप्सुल का पैकेट पकड़ा दिया। दवाईयां लेकर घर पर आ गया। वाणी जी को उनके घर पर जा कर दूध और जो सब्जियां लाया था, दे आया।

घर पर वापस आ कर लाई दवाईयों को देखने लगा और फिर रोज खाने के लिये उन्हें अलग कर दिया। तभी ऑफिस से फोन आ गया। उस के बाद समय कब बीत गया पता नहीं चला। दरवाजे की घंटी बजी तो दरवाजा खोल दिया। वाणी जी खाना ले कर आयी थी। उन्हें इशारे से बताया कि मैं कॉल पर हूँ वह खाना शुरु कर सकती है लेकिन वह खाना किचन में रख कर आराम से मेरे इंतजार में बैठ गयी। जब काफी देर हो गयी तो टीवी चला कर समाचार देखने लगी। मैं जब कॉल खत्म करके उनके पास गया तो देखा कि चार बज रहे थे।

मैनें उन से पुछा कि खाना खा लिया तो वह बोली कि नहीं आप का इंतजार कर रही थी। मैनें कहा कि मेरी वजह से आप भुखी रह गयी तो वह बोली कि नहीं उल्टी बात है मेरी वजह से वह खाना खा रही है। मैं चुप रहा। वह किचन में जा कर खाना प्लेटों में लगा कर ले आयी। उन्होनें राजमा चावल बनाये थे, यह मेरी मनपसन्द चीज थी। मैं तो उन पर टूट पड़ा, मेरी जल्दी देख कर वह बोली कि आप हमेशा इतनी जल्दी में क्यों रहते है?

मैनें कहा कि राजमा चावल को देख कर मुझे कुछ हो जाता है। वह हंस कर बोली कि काफी है आराम से खाइयें, खत्म नहीं हो जायेगें। मैनें अपनी रफ्तार पर लगाम लगायी। वह खाते में सिर झुका कर मुस्करा कर बोली कि आप की जल्दी तो मैं देख चुकी हूँ। उन की बात पहले तो मेरी समझ में नहीं आयी लेकिन थोड़ी देर में समझ आयी तो पता चला कि वह रात की घटना की बात कर रही थी। हम दोनों खाना खाते रहे। खाने के बाद मैनें कहा कि राजमा चावल बचपन से मेरी मनपसन्द है आज बहुत दिनों बाद इतने स्वादिष्ट राजमा खाने को मिले थे इस लिये जल्दबाजी थी। अच्छी चीज को देख कर रुका नहीं जाता। वह मंद-मंद मुस्कराती रही।

खाना खत्म होने के बाद मैनें उन से पुछा कि रात को आप किस चीज से डर गयी थी तो वह बोली कि कह नहीं सकती मैनें क्या देखा था लेकिन अगर मैं कुछ देर और वहां रुकती तो शायद मेरी जान निकल जाती। मैनें बात आगे नहीं बढायी। वह बोली कि सब्जी बढ़िया है तीन-चार दिन का काम चल जायेगा। हफ्ता तो बीत गया है, बाकि समय भी बीत जायेगा। मैनें पुछा कि भाई साहब से बात हुई थी तो वह बोली कि हां हुई थी वह भी परेशान है कहीं निकल भी नहीं सकते। खाने की दिक्कत तो अभी तक नहीं हुई है आगे का कुछ कह नहीं सकते। फिर वह खाने के बरतन ले कर वापस चली गयी। मैं सोचने लगा कि रात की घटना वाणी जी को याद है, लेकिन उस की सच्चाई को लेकर मेरे मन में संशय था। मैं उस संभोग से इतना थक गया था कि अभी तक उबरा नहीं था। मुझे देर रात तक ऑफिस का काम भी करना था। लाई हुई दवाई में से शिलाजीत के केप्सुल निकाल कर खा लिये। सोचा कि देखते है इन का क्या असर होता है। टॉनिक की बहुत जरुरत थी।

रात को पत्नी की सहायता से सब्जी बनाई और खाना खा कर काम करने लगा। देर रात तक काम में डुबा रहा। उस के बाद सोनें चला गया। सोते समय भी मन में कल की घटना घुम रही थी। चाहें दूसरी औरत भोगने को मिली थी लेकिन भोगनें की परिस्थिति बहुत अजीबोंगरीब थी, सेक्स तो जोरदार हुआ था लेकिन मन उस का आनंद नहीं उठा पाया था। पत्नी से बेवफाई करने की भी चिन्ता थी। इन्हीं सब बातों को लेकर मन अशान्त था। बैचेनी खत्म नहीं हो रही थी सो पत्नी को फोन किया तो वह सो रही थी बोली कि क्या डर लग रहा है? तो मैनें कहा कि सच तो यही है कि डर लग रहा है लेकिन उसे सच नहीं बताया। बातें कर के फोन काट दिया। उसे कुछ बताने के हालात नहीं थे। थके होने के कारण कुछ देर में नींद आ गयी। रात को कोई घंटी नहीं बजी और मैं सुबह ही ऊठा। देखा तो छः बज रहे थे।

किचन में चाय बनाने लग गया। चाय बना कर पीने बैठा तो घंटी बजी। जा कर दरवाजा खोला तो वाणी जी खड़ी थी उन की हालत बड़ी खराब सी लग रही थी। वह चुपचाप अंदर आकर बैठ गयी। मैनें चाय के लिये पुछा तो कुछ नहीं बोली मैनें अपना चाय का प्याला उन के हाथ में थमा दिया और अपने लिये चाय बनाने किचन में चला गया। वहां से आया तो वह बोली कि रात को मुझे बहुत डर लगा लेकिन मैनें आप को परेशान करना उचित नहीं समझा। लेकिन मेरी हालत तो आप देख रहे है। मैं उन की बगल में बैठ गया और उन से पुछा कि आप ने क्या देखा? तो वह बोली कि एक लम्बें बालों वाली औरत घर में घुमती है। मुझे उस का पीछे का हिस्सा ही दिखायी देता है। चेहरा कभी नहीं दिखायी देता। मैनें पुछा कि पहले कभी ऐसा हुआ है तो वह बोली कि नहीं हम कई सालों से इस मकान में है कभी कुछ भी नहीं हुआ।

यह सुन कर मुझे लगा कि शायद अकेले होने की वजह से वह डर रही है तो उन्होनें कहा कि मैं तो महीनें में 15-20 दिन अकेले ही रहती हूं। ये तो अक्सर टूर पर जाते रहते है। ऐसा अनुभव कभी नहीं हुआ है। आप के सिवा और किसी को कुछ बता भी नहीं सकती। इन को भी नहीं बता सकती, नहीं तो वहाँ पर यह बहुत परेशान होगे। मैनें कहा यह तो सही बात है। चाय पीने के बाद आप के घर चल कर देखते है क्या बात है? यह कह कर मैं अपनी चाय लेने चला गया। हम दोनों चुपचाप चाय पीतें रहे। चाय खत्म होने के बाद मैं उन के साथ उन के घर चला आया। ताला खोल कर हम दोनों घर में प्रवेश कर गये।
बहुत ही शानदार अपडेट दिया है ! और कहानी में तड़का लगाया है बहुत जबरदस्त!

अगले भाग की प्रतीक्षा में है!
 
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sunoanuj

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Update 5

मैं काम खत्म करके खाना बनाने लग गया, पत्नी से फोन पर जानकारी जुटा ली। वह भी शायद वहां पर व्यस्त थी। एक घंटें में खाना बन गया। साढें आठ बजे वाणी जी को फोन किया तो वह आ गयी। दोनों खाना खाने लगे। खाना खाते में वह बोली कि अरहर की दाल तो बढ़िया बनायी है, तो मैनें उन्हें बताया कि यह तरीका मेरी नानी का है बचपन में मैं देखा करता था अभी तक ध्यान में था। खाने के बाद मैनें उन से पुछा कि रात को अगर परेशानी ना हो तो यही पर सो जाये। मैं यहां बाहर सो जाऊँगा आप कमरें में अंदर से बंद करके सो जाना। वह यह सुन कर बोली कि आप से डर थोड़ी ना लगता है तो मैनें हंस कर कहा कि मैं अपने डर की बात कर रहा था। वह बोली कि वहां नींद नहीं आती है, यहीं सोना सही रहेगा।

आप जैसा कहते है वैसा ही करतें है। मैं थोड़ी देर में घर बंद कर के आती हूँ। वह यह कह कर चली गयी। मैं भी ऑफिस का काम खत्म करने लगा। दस बजे के आसपास घंटी बजी तो वह ही थी। अंदर आ कर बोली कि हर चीज अच्छी तरह से देख भाल कर के घर बंद करके आयी हूँ, सुबह ही पता चलेगा कि क्या हूआ? मैनें कहा कि आप चिन्ता ना करें आराम से सोने की कोशिश करें, कोई बात हो तो मैं तो बाहर सो ही रहा हूँ। वह बोली कि आप से कुछ देर बातें करनी है। मैनें कहा बैठियें, हम दोनों आराम से दीवान पर बैठ गये। वह बोली कि आप को मेरा व्यवहार कैसा लग रहा है? मैनें कहा यह कैसा प्रश्न है, वह बोली कि ऐसा तो नहीं लग रहा कि मैं कोई नाटक कर रही हूं।

मैनें कहा कि पहले तो कुछ समझ नहीं आ रहा था। लेकिन आप की हालत देख कर मन कुछ और माननें को तैयार नहीं हो रहा था। उस रात को जो कुछ हुआ उस के लिये मैं अब तक शर्मिंदा हूँ। वह बोली कि मुझे भी कुछ पता नहीं है क्या हुआ था लेकिन मेरी सांस सी घुट रही थी,आप समझ सकते है किसी अकेले आदमी के पास रात में जाना कितना मुश्किल काम है, लेकिन जब जान पर बनी हो तब कुछ और नहीं सुझता, जो सही लगा मैनें किया। आप ने तो मुझे अलग ही सुला दिया था लेकिन वहां भी अकेले में डर गयी थी।

आप के साथ सो कर ही कुछ चैन सा मिला, फिर क्या हुआ कह नहीं सकती, लेकिन आप ने उस दिन कुछ नहीं छोड़ा सब कुछ कर लिया। मैनें कहा कि मैं अब तक समझ नहीं पाया कि उस दिन मेरा संयम कैसे टूट गया? फिर जो कुछ मैनें उस दिन किया वह तो मैं पत्नी के साथ भी नहीं कर सका हूं। आप के साथ, मुझे सोच कर भी अपने पर गुस्सा आता है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि शायद हम दोनों बहुत दिनों से बिना सेक्स के थे और मेरा व्यवहार भी मुझे ही समझ नहीं आ रहा है। जो कुछ हुआ हम दोनों के कारण हुआ था किसी एक को दोष नहीं दे सकते। कुछ गलत था यह सही है लेकिन उस परिस्थिति में मेरी जान भी जा सकती थी ऐसा आज मुझे लगता है।

मैं चुपचाप सुन रहा था। वह बोली कि ना आप बेवफा है और ना मैं बेवफा हुँ। आप ने उस के बाद भी मुझे कुछ नहीं कहा है आज भी बंद कमरें में सोने के लिये कह रहे है। मैं आप पर विश्वास करके ही आप के पास आती हूँ। जो कुछ हमारें बीच में हो गया है या हो रहा हैं वह किसी को पता नहीं चलेगा यह मैं अपनी तरफ से कह सकती हूँ। मैनें कहा कि मेरे पर भी आप भरोसा कर सकती है। यह खास संकटकाल है इस में घटी घटना हम दोनों तक ही सीमित रहेगी। मेरी बात सुन कर वह मुस्कराई और बोली कि आप की पत्नी भाग्यशाली है जो आप जैसे पति उन को मिले है। मैं हंस कर बोला कि यह तो वह ही बेहतर बता सकती है।

अब तक मेरी झिझक दूर हो गयी थी, मैनें उन से पुछा कि उस रात मैनें आप से गुदा मैथुन कर डाला आप को बुरा तो नहीं लगा, मेरी बात सुन कर वाणी जी बोली कि नहीं, दर्द तो बहुत हुया था, लगा कि गुदा में आग लग गयी है लेकिन उस समय सारे शरीर में लावा सा बह रहा था।

दर्द भी अच्छा लग रहा था, मैनें शायद इतना लम्बा संभोग नहीं किया था। हम दोनों ही उस समय होश में नहीं थे जो आप कर रहे थे मैं बस उस में साथ दे रही थी मैने भी आप को शायद काटा था नोचा था? मैनें उन्हें बताया कि मेरी पीठ पर अभी भी उन के नाखुनों के लगाये जख्म भरे नहीं है। उन के नाखुन मेरे कुल्हों के मांस में गड़ गये थे। वह सब कुछ जो हम कर रहे थे पाशविक था। उस के बारें में जितना भी सोचता हूँ मुझे आश्चर्य होता है कि मैं इतना सब कैसे कर पाया।

होश में तो मैं किसी को जबरदस्ती पकड़ने की भी नहीं सोच सकता। वह बोली कि मुझे उस रात लगा कि आप को हर काम करने की बहुत जल्दी रहती है इस लिये आप सेक्स में इतनी जल्दबाजी कर रहे है। उस का आनंद नहीं ले रहे। मैनें कहा कि पता नहीं क्या पता मैं भी उस समय किसी और के वश में था। उस समय लग रहा था कि यह जो आग शरीर में लगी है वह जल्दी से बुझ जाये, लेकिन आग बुझने की बजाए भड़क रही थी। उस समय जाने कहाँ से ताकत आ गयी कि योनि की बजाए गुदा में लिंग डाल दिया, डाला ही नहीं पुरा घुसेड़ दिया, जहां तक मुझे पता है ऐसा करना पहली बार में बहुत कठिन है।

शायद लिंग पुरी तरह से चिकना हुआ पड़ा था, जरा ज्यादा जोर लगाया उसे जहां जगह मिली घुस गया। वाणी जी बोली कि मुझे तो लगा कि मैं मर जाऊंगी, मेरी शायद चीख भी निकली थी लेकिन आप पर कोई असर ही नहीं पड़ा आप अंदर बाहर करते रहे। बाद में मुझे मजा आने लगा था। तभी आप नें लिंग गुदा से निकाल कर मुझे सीधा करके फिर से योनि में डाल दिया। योनि तो सुन्न सी हो गयी थी। आप जब स्खलित हुये तो गर्म सा लगा। मैनें उन्हें बताया कि उस के बाद वह भी स्खलित हुई थी और मेरा सारा लिंग गर्म लावें से नहा गया था। जब मेरा लिंग बाहर निकला तभी मुझे आराम पड़ा था।

उन्होनें भी कहा कि इस के बाद उन के शरीर को आराम मिला था और वह गहरी नींद में सो गयी थी। मैनें भी कहा कि यही मेरा भी हाल हुआ था। हम दोनों एक दूसरे के साथ इतनी सरलता से यह बातें कर रहे थे इतनी सहजता से तो मैं यह बातें अपनी पत्नी से भी नहीं कर पाता, जबकि वह ऐसी बातें आराम से कर लेती है। वह बोली कि आप के साथ मैं सहज महसुस कर रही हूँ। इस का कारण रात का संभोग तो नहीं हो सकता। वह तो इस सहजता की वजह से हुआ था।

मैनें वाणी जी से कहा कि उस दिन से पहले मैनें किसी के साथ गुदा मैथुन नहीं किया था। वह मुस्कराई और बोली कि एक बार इन्होनें ट्राई किया था लेकिन अंदर नहीं जा पाये थे। आप तो एक बार में ही पुरा अंदर डाल दिया था। उस समय आप में बहुत ताकत आ गयी थी। मैनें सहमति में सर हिलाया। वह मुस्कराई और बोली कि दूबारा कभी ऐसा होगा तो आप जल्दीबाजी मत करना। मैं उन की तरफ देखता रह गया। वह मेरी तरफ देख कर बोली कि किसी भी औरत को ऐसी संतुष्टि की लालसा होती है, मैनें उस का स्वाद चख लिया है तो लालसा जग गयी है। लेकिन आप के बारें में कह नहीं सकती? मैनें उन की आंखों में देख कर कहा कि मैं आप से सहमत हूँ, वैसा संभोग तो मैनें कभी नहीं किया। आगे का कुछ कह नहीं सकता। मेरी बात सुन कर वह मुस्कराई और उठ कर कमरें में चली गयी। कुछ देर बाद दरवाजा बंद होने की आवाज आयी। मैं भी दीवान पर लेट गया। नींद अभी आसानी से कहा आनी थी। कहानी तो अभी शुरु हो रही थी। आगे क्या होगा यह कौन बता सकता था?

रात बिना किसी घटना के बीत गयी। सुबह उठ कर वह चाय पी कर जाने लगी तो मेरी तरफ देख कर बोली कि आप बहुत संयमी है, किसी औरत के साथ बिना उसे छुये अलग से सो पाये यह आप के संयम को दर्शाता है। फिर वह मुस्कराती हूई चली गयी।

मैं पहले दूध लेने गया और वापस आ कर नहा धो कर नाश्ता बनाने लग गया। नाश्ता करने के बाद कुछ देर आराम करनें के लिये बैठ गया। कुछ देर बाद घंटी बजी और दरवाजे पर वाणी जी दिखाई दी। अंदर आने के बाद वह बोली कि आज दोपहर का खाना मैं बना रही हूँ, बताए क्या खाना चाहते है? मैनें उन से कहा कि मैं इस बारें में क्या कहुं? वह बोली कि कल दूध से पनीर बनाया था, सो पनीर की सब्जी बनाती हूँ उस के साथ चावल सही लगते है। मैनें सहमति में सर हिलाया तो वह बोली कि दो-तीन बजे तक खाना बना कर लाती हूँ आप अपना काम खत्म कर लिजियेगा। यह कह कर वह चली गयी।

मैं अपने कामों में लग गया। दोपहर के खाने के बारें में सोचने की आवश्यकता नहीं है। जरुरी काम करके ऑफिस का काम करने बैठ गया। तीन बजें घंटी बजी और वाणी जी खाना ले कर अंदर आ गयी। मैनें उन्हें कहा कि वह कुछ देर इंतजार करें मैं काम खत्म करके खाना खाने आता हूँ। वह टीवी देखने बैठ गयी। मैं वापिस काम में लग गया। चार बजे के करीब काम से छुटकारा पा कर वाणी जी के पास आया तो वह टीवी देखते देखतें सो गयी थी। मेरे ड्राइगरुम में आने की आहट पा कर वह उठ कर बैठ गयी। बोली कि आंख लग गयी थी। मैं कुछ नहीं बोला लेकिन यह समझ आ गया कि कल रात वह सही तरीके से सो नहीं पायी थी। आज इस का कोई उपाय करना पड़ेगा। लेकिन इस में उन की सहमति भी जरुरी थी। खाने के बाद उन से इस बारें में बात करनी पड़ेगी।

वाणी ने खाना लगा दिया था, हम दोनों चुपचाप खाना खाने लगे। पनीर की सब्जी बढ़िया बनी थी। भरपेट खाना खा कर बातें करने बैठ गये। वह चलने लगी तो मैनें उन्हें रोक कर कहा कि आप से कुछ बात करनी थी। वह चौक कर मेरी तरफ देखने लगी। मैनें कहा कि आराम से बैठिये, बताता हूँ। वह मेरे सामने बैठ गयी। मैं कुछ देर चुप रहा फिर बोला कि हो सकता है मेरी बात आप को बुरी लगें या आप को लगे कि मैं सिर्फ अपने बारें में सोच रहा हूँ या सिर्फ सेक्स की बात कर रहा हूँ, आप कुछ भी सोच सकती है लेकिन मैं आप की अवस्था को देख कर परेशान हूं और चाहता हूँ कि आप कुछ दिनों तक मेरे साथ यहां आ कर सोये।

इस से आप का डर कम होगा तथा आप आराम से सो पायेगी, जो आप की सेहत के लिये जरुरी है, इस काल में सेहत का सही रहना बहुत जरुरी है। यह कह कर मैं चुप हो गया। वह मेरी बात सुन कर कुछ देर सोचती रही, फिर बोली कि आप की बात सही है कि आज के माहौल में सेहत सही रहना पहली जरुरत है नहीं तो बहुत मुश्किल में पड़ सकती हुँ। हम साथ सोयेगें तो सेक्स भी करेगें यह तो होगा ही इस लिये शायद आप झिझक रहे थे। मैं यह सब समझती हूँ लेकिन इस समय तो जान बचाना पहली जरुरत है नैतिकता कि जब चिन्ता तब करेगें जब जीवित बचेगें। मैं अपने घर में और यहां भी अकेले सो नहीं पा रही हूँ कल भी सारी रात में करवटें बदलती रही लेकिन आप के पास इस लिये नहीं आयी कि आप यह ना समझे कि मैं सेक्स के लिये मरी जा रही हूँ।

मैनें अपने हाथ से उन के हाथ को दबाया और कहा कि जरुरी नहीं है कि हर रात सेक्स ही होगा लेकिन अगर आप बिना डर के सो पाती है तो सही रहेगा। इस कारण अगर और कुछ होता है तो उसे होने देते है। वह मेरी बात सुन कर मुस्कराई और बोली कि पता नहीं आप को मेरी इतनी चिन्ता क्यों है? मैनें कहा कि शायद आप मेरे को पसन्द आ गयी है इस कारण से अपने फायदे के लिये चिन्ता कर रहा हूँ, मुझे भी अकेले नींद नहीं आती, कुछ ना कुछ करना पड़ता है। वह यह सुन कर मुस्करा दी और बोली कि कितने साल हो गये आपकी शादी को? मैने कहा तीन साल। वह बोली तभी तो गर्मी बाकी है। मैनें कहा कि हम दोनों तो एक या दो दिन छोड़ कर सेक्स करते ही है। जितना समय बीत रहा है इसका आनंद बढ़ रहा है। वह बोली कि आज देखते है क्या होता है। मैं कुछ पुछने वाला था तो वह बोली कि जो आप पुछना चाहते है उस का इलाज किया हुआ है।मैं पील्स लेती हूँ तो आप उस बारें में ना सोचे। हम दो अनजानें स्त्री-पुरुष कितनी सहजता से जीवन की सबसे कठिन बातचीत कर रहे थे यह मेरे लिये आश्चर्य की बात थी। वह उठ कर बरतन ले कर चली गयी।

मैं फिर से ऑफिस के काम में लग गया। रात का खाना भी वही बना कर लायी थी। खाना खा कर हम दोनों फिर से बातें करने लगें। मैनें पुछा कि कब से आप को वह चीज दिखायी देने लगी है तो वह बोली कि लॉकडाउन लगने के दूसरे दिन से ऐसा हुआ है। मैनें कहा कि इस से पहले आप को नींद सही तरह से आती थी तो वह बोली कि मुझे गहरी नींद आती है, एक बार सोने के बाद रात में बीच में उठती नहीं हूँ, उस दिन नींद नहीं आने के कारण उठ कर बाथरुम जाने लगी तो उसे देखा, पहले लगा कि मेरा भ्रम है लेकिन ऐसा नहीं था। रात को ही ऐसा होने लगा।

मैनें पुछा कि कोई ऐसी बात तो नहीं हुई तो आप को अजीब लगी हो? वह बोली कि ऐसा कुछ नहीं है। कोई आया नहीं है। ना ही मैं कही गई थी। मैनें कहा कि कई बार हम जब परेशान होते है तो हमारा दिमाग ऐसी वस्तुओं की रचना कर लेता है। फिर वह चीजें हमें असली लगने लगती है। यह भी एक थ्योरी है। लेकिन आप के घर जा कर मुझे नेगेटिव एनर्जी महसुस हुई थी। इस लिये मैं आप के लिये और चिन्तित हूँ। इसी कारण से मैनें ऐसा खतरनाक कदम उठाया है जो हम दोनों की जिन्दगीयों में आग भी लगा सकता है। वह यह सुन कर बोली, आप सही कह रहे है, इस समय को कोई सहायता भी नहीं कर सकता है।

मैं और कहीं जा भी नहीं सकती, सिर्फ आप ही यहां पर नजदीक है। और आप से मेरी बन भी रही है। आप भी बहुत बड़ा खतरा उठा रहे है। मैनें सर हिलाया। कुछ देर बातें करने के बाद मैनें दरवाजा बंद किया और हम दोनों कमरें में सोने के लिये चले आये। दोनों बिस्तर पर एक एक किनारें पर लेट गये। कुछ देर ऐसे ही पड़े रहे फिर वाणी मेरी तरफ मुड़ी और बोली कि आज सब कुछ आराम से कर सकते है? मैनें कहा कि हां कर सकते है इस में कोई बाधा नहीं है। वह आज साड़ी पहने हुई थी। मैं भी बाक्सर पहन रहा था। गरमी शुरु हो गयी थी।

मैनें वाणी को अपने करीब किया और उन के होठों का चुम्बन ले कर कहा कि रात कैसी बीतेगी कह नहीं सकते? वह बोली कि अनुभव तो कहता है कि जोरदार रहेगी। यह कह कर वह मुझ से लिपट गयी और बोली कि मैं और आप एक पुरुष और औरत है इस के सिवा सब भुल जाईये। उन की बाहों का कसाब मेरी पीठ पर बढ़ गया। मैं उन के माथे पर चुम्बन ले कर उन की आंखों पर चुम कर होठों पर आ गया। फिर हम दोनों एक दूसरें को इस तरह चुमने लगे जैसे कोई प्रेमी युगल काफी दिनों बाद मिला हो। उन की जीभ मेरे मुह के अंदर अठखेलियां करने लगी।

मैं उसे चुसने लगा। काफी समय तक दोनों चुम्बन रत रहे, जब सांस फुल गयी तब अलग हुए। फिर मैं उन की गरदन को चुमने हुए नीचे छाती पर आ गया। 32इंच की पुष्ट छाती कसी हुई और ब्रा में होने के कारण मेरे होठ उस के साथ ज्यादा कुछ नहीं कर सकते थे सो उरोजों के बीच चुम्बन से ही काम चला रहे थे। हां मेरे हाथ ब्लाउज के ऊपर से छातियों को दबा रहे थे।

इस के बाद मैनें हाथ से उनकी कमर सहलाई और नीचे की तरफ हाथ किया तो वह पेटीकोट में फंस गया। मैनें ऊपर से ही योनि को सहलाया। वह भी मेरी छाती पर अपनी गरम सांस छोड़ रही थी। हाथ कपड़ें के ऊपर से निप्पलों को दबा रहें थे। मतलब यह की दोनों के शरीर वासना से भरे हुये थे और एक लम्बें संभोग के लिये तैयारी कर रहे थे। अब देर करने की कोई आवश्यकता नहीं थी सो मैनें उन की साड़ी उतार कर एक तरफ रख दी और ब्लाउज के हुक खोल कर उसे उतार दिया, स्किन कलर की ब्रा में कसे उरोज ललचा रहे थे सो जल्दी से हाथ पीठ के पीछे ले जा कर ब्रा के हुक भी निकाल दिये। इस के बाद ब्रा को भी अलग रख दिया।

अब मेरे सामने 32 साइज के भरे स्तन थे और मैं उन का रस चुसने के लिये लालायित था सो मुह झुका कर उन के निप्पलों को एक एक करके चुसने लगा। वाणी को मुझ से एक ही शिकायत थी कि मैं जल्दबाजी करता हूँ तो मैं आज इस से बचना चाहता था लेकिन कुछ बातों में धैर्य रखना मुश्किल होत है सो ही हो रहा था। मेरे जोर-जोर से निप्पल चुसने के कारण उस के मुह से कराह निकल रही थी, लेकिन मन ही मन वह भी यह सब चाहती थी सो जो हो रहा था उस में भाग ले रही थी।

एक हाथ से दायें उरोज को मसल रहा था और दूसरें को पकड़ कर होठों से काट रहा था। उत्तेजना वश जो सही लग रहा था वह में वाणी के उरोजों के साथ कर रहा था। जोर से मुह में निगल कर चुसने की वजह से दातों के निशान भी बन रहे थे। लेकिन वासना की आग ने अंधा किया हुआ था। काफी देर तक उरोजों के साथ मेरा यह खेल चलता रहा फिर मेरे होठ कमर पर आ गये और कसी, सपाट कमर पर चुम्बन लेने लगे। खिसकते हुये नाभी की गहराई को जीभ से नापा और उस के नीचे की यात्रा आरम्भ कर दी। नीचे पेटीकोट के रुप में बाधा थी उस का नाड़ा खोल कर उसे नीचे किया और घुटनों तक कर दिया।

अब जांघों का सन्धिस्थल दिख रहा था लेकिन वह भी पेंटी से ढ़का हुआ था सो पेंटी के दोनों तरफ उगंली फंसा कर उसे भी घुटनों तक कर दिया। अब हल्कें बालों से ढ़की योनि के दर्शन हुये। पिछली बार इस के रस का स्वाद नहीं लिया था। शायद इसी लिये वाणी ने जल्दबाजी का ताना मारा था। इस बार ऐसा नहीं करना था सो आराम से नाक से उस की तीखी सी सुंगध को सुघा और जीभ को नीचे से लेकर ऊपर तक फिराया। कसैला सा स्वाद जीभ को मिला। उत्तेजना के कारण योनि से नमी बाहर आ रही थी।

केले के तने के समान कदंलीदार जांघों के देख कर मन शरारत करने को ललचा रहा था सो उन को चुमते हुये नीचे घुटनों तक आ गया फिर पेटीकोट और पेंटी को पंजों से नीचे कर के उतार दिया। पिडलियों को चुम कर दोनों पंजों की दसों ऊगलियों को होठों में ले कर चुमा। इस के बाद वाणी को पेट के बल कर के पिड़ालियों के पीछे के हिस्सें पर होठों की छाप लगातें हुये जांघों के ऊपर कुल्हों पर जा पहुंचा वहां मांसल 34 साइज के कुल्हों को हाथों से सहलाया और दातं से काटा और उन की गहराई में चुम्बन लिया। इस के बाद कमर के खम पर चुम कर रीढ़ की हड्डी को जीभ से चाटते हुये गरदन तक पहुंच गया। कंधों पर गहरें चुम्बन के निशान बन गये थे। वाणी कुनमुनायी की लव वाईट मत करो, लेकिन उस की बात सुन कौन रहा था। मैं उन की बगल में लेट गया फिर उन्हें उठा कर अपने ऊपर बिठा लिया।
बहुत जबरदस्त कामुक अपडेट है …इस अपडेट में लगा कुछ हिस्सा रह गया है !

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उन की जांघों का जोड़ मेरे मुह के सामने था। मैनें हाथों से उन के कुल्हों को अपने चेहरे की तरफ कर के योनि पर अपनी जीभ लगा दी। अब में आराम से उन की योनि को चाट सकता था, यही करने का मेरा इरादा था सो मेरी जीभ नें योनि के अंदर प्रवेश किया और उस के कसैले रस को चखना शुरु कर दिया। इस के कारण वाणी नें उत्तेजना के कारण कांपना शुरु कर दिया था। जैसे-जैसे में योनि को चख रहा था वैसे-वैस उन की कंपकंपी बढ़ती जा रही थी। मेरे दोनों हाथ उन के उरोजों को मसल रहे थे। उत्तेजना के कारण वह हिल रही थी लेकिन मेरे मुह से हट नहीं रही थी। उन्हें भी इस में आनंद आ रहा था। मैनें दोनों हाथों को उरोजों से हटा कर उन के चुतड़ो को पकड़ कर अपने चेहरें से चिपका लिया।

उन की योनि को होठों से चाटने की मेरी क्रिया जारी रही, कुछ देर बाद मैनें उन्हें ऊपर से उठा कर अपनी बगल में लिटा लिया। अब की बार में उन के ऊपर आ गया। अब वाणी के चेहरे पर मैं बैठा था मेरा लिंग उन के मुह पर टक्कर दे रहा था। कुछ देर तक तो वह ऐसे ही रही फिर वाणी ने उसे पकड़ कर अपने मुह में ले लिया, शायद पहले मन में कोई हिचक थी लेकिन एक बार मुंह में लेने के बाद उन्होनें उसे लॉलीपॉप की तरह से चुसना शुरु कर दिया अब मेरे कराहने की बारी थी। लेकिन मुझे बहुत मज़ा आ रहा था, ऐसा लग रहा था कि शायद में उन के मुह में ही ना स्खलित ना हो जाऊं लेकिन शायद यही सोच कर उन्होनें लिंग को मुंह से निकाल दिया और उसे हाथ से सहलाने लगी।

मेरी भी हालत सही नहीं थी, इस लिये मैं फिर से उन की बगल में आ गया। वह पलट कर मेरे सामने आ गयी और बोली कि यह रुप कहां छिपा रखा था? मैनें पुछा कि मुझ से मिली कितनी बार है आप? वह बोली कि रोज तो मिल रही हूँ। मैनें कहा कि धीरे-धीरे ही तो पता चलेगा नहीं तो आप को शॉक नहीं लग जायेगा। वह बोली कि मेरे को तो रोज शॉक लग ही रहे हैं। यह कह कर वह मेरे ऊपर झुक गयी और मुझें चुमने लगी होठों के बाद निप्पलों का नंबर आया फिर नाभी से होते हुऐ उन के होठ लिंग को छोड़ कर पुरी जाँघों को चुम कर वापस होठों पर आ कर ठहर गये। मैनें आलिंगन में लेकर कस कर जकड़ लिया तो बोली कि इस तरह तो दम निकल जायेगा मैं किसी काम की नहीं रहुंगी।

मैनें अपनी पकड़ कम कर दी। वाणी मेरी पकड़ से छुट गयी और बैठ गयी फिर हाथ से लिंग को योनि के मुख पर लगा कर अपनें कुल्हों को धक्का दिया, इतना लम्बा फॉरप्ले होने के बाद योनि में कोई प्रतिरोध नहीं था सो लिंग अंदर चला गया। वह धीमी गति से उसे अंदर लेती रही। जब पुरा घुस गया तो उन के धक्कें तेज हो गये। मेरी कमर को उन्हें झेलना पड़ रहा था। मैं उन के लटकें उरोजो को सहलाता रहा। कुछ देर में वह थक गयी और बगल में लेट गयी। अब मेरा नंबर था सो मैं उन के ऊपर आ गया और मैनें लिंग योनि में डाल दिया और पहली बार में ही पुरा अंदर घुस गया। शायद बच्चेदानी के मुंह पर लिंग का सुपारा लगा था इस लिये वाणी कराहने लगी। अब मेरी गति बढ़ गयी और मैं पुरे जोर से धक्के लगा रहा था। वाणी भी नीचे से अपने कुल्हों को उछाल कर मेरा साथ दे रहे थी, करीब दस मिनट तक संभोग चलता रहा फिर में उन की बगल में लेट गया।

स्खलन अभी दूर था, दूसरा आसन लगाने के लिये मैनें उन्हें बगल में लिटा लिया वाणी की पीठ मेरी तरफ थी उनके पीछे से मैनें उन के अंदर प्रवेश किया। शायद दर्द भी हुआ हो लेकिन दो तीन धक्कों के बाद वह शान्त हो गयी और कुल्हों को हिला कर लिंग को अंदर लेने लगी। मैं हाथो से उन के उरोजों को मसल रहा था फिर मैनें उन का मुह अपनी तरफ कर के चुम्बन लिया, हम दोनों गहरें चुम्बन में डुब गये दोनों के शरीर के नीचे के हिस्से अपने काम में व्यस्त थे। शरीर में गर्मी बढ़ती जा रही थी और शरीर चल सा रहा था लग रहा था कि अब इस से छुटकारा मिलना चाहिये। मैनें यही सोच कर अपना लिंग बाहर निकाल लिया। वाणी को लगा कि अब में गुदा मैथुन करुंगा यही सोच कर वह पेट के बल लेट गयी, लेकिन मैं कुछ और सोच रहा था इस लिये मैनें उन्हें पलट कर पीठ के बल किया और उन के दोनों पांव अपने कंधों पर रख कर अपने लिंग को योनि में घुसेड़ दिया इस आसन के कारण योनि कस गयी थी सो लिंग बहुत कसा हुआ अंदर बाहर हो रहा था। वाणी आहहहहहहहहहहहहह उईईईईईईईईईईईई उहहहहहहहहहहहह करने लगी थी। मुझे स्खलित होना था नहीं तो मैं ऐसे ही संभोग खत्म कर देता।

वाणी ने मेरे कंधें पर हाथ रख कर पांव नीचे करने का इशारा किया तो मैनें उन्हें नीचे कर लिया फिर पुरे जोर से शरीर को एक लाइन में कर के जोर से धक्कें लगाने शुरु कर दिये। नीचे से वाणी कराह रही थी, फिर अचानक मेरी आंखों के आगें सितारें चमचमा गये और सारा शरीर अकड़ गया। मैं स्खलित हो गया था। सारे शरीर में करंट सा दौड़ रहा था। गति धीमी जरुर हो गयी लेकिन रुकी नहीं। कुछ देर बाद वाणी का शरीर भी अकड़ गया और उस के पांव मेरी कमर पर लिपट गये यह दर्शा रहा था कि वह भी स्खलित हो गयी थी।

कुछ देर मैं धक्के लगाता रहा फिर लिंग के बाहर निकल जाने के कारण वाणी की बगल में लेट गया। हम दोनों की सांसे बड़ी तेज चल रही थी शरीर पसीने से नहाये हुये थे। मुह सुख रहे थे। तुफान उतर गया था। कुछ देर के बाद जब सांसे सही हुई तो वाणी मेरी तरफ मुड़ कर बोली कि आज तो जान निकलना ही बाकी रह गया था। मैनें उन को चुम कर कहा कि आज तो जल्दबाजी नही की। वह बोली कि यही तो मैं चाहती थी, वही सब आप ने किया है। फिर वह बोली कि पीछे से क्यों नहीं किया तो मैनें कहा कि उसे करने का मन नहीं कर रहा था सो नही किया। वह बोली कि मेरे मन का सब कुछ किया है। मैनें उन्हें अपनी बांहों में कस कर जकड़ लिया और हम दोनों कुछ देर बाद ऐसे ही सो गये।
 
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