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Adultery लॉकडाउन

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Update 7

सुबह वाणी उठ कर चली गयी। मैं देर तक सोता रहा। काफी थकान सी लग रही थी। पत्नी का फोन आने पर ही जगा, वह बोली कि अभी तक सो रहे हो? मैनें कहा हां तो वह बोली कि अब उठ जाओं और दूध लेने चले जाओं नहीं तो दूध नहीं मिलेगा। पत्नी की बात सुन कर जल्दी से उठ कर कपड़ें पहने और दूध लेने के लिये निकल गया। जब दूकान पर पहुंचा तो दूध खत्म होने ही वाला था, ब्रेड ले कर वापस चल दिया, रास्तें में पड़ने वाली मेडीसन की दूकान पर जा कर कुछ चीजें खरीदीं और वापस घर आ गया। नहा धो कर पूजा करने के बाद नाश्ता बनाने की सोच रहा था तभी वाणी जी आ गयी, बोली कि आज कुछ बनाया नहीं है, अभी सो कर उठी हूँ आप का क्या प्रोग्राम हैं मैनें उन्हें बताया कि मैं भी देर से उठा था सो दूध ही ला पाया हूँ सोच रहा हूं कि ब्रेड सैंक कर नाश्ता कर लेता हूँ तो वह बोली कि यही सही रहेगा लाइयें मैं ब्रेड सेंक कर लाती हूँ यह कह कर वह किचन में चली गयी, मैं भी पीछे-पीछे गया और बोला कि मक्खन नहीं है घी लगा लिजियेगा। वह बोली कि यही कर लेती हूं वह ब्रेड सेंकने लगी और मैनें चाय बनाने रख दी। वह बोली कि आज तो बहुत थकान हो रही है। उठा ही नहीं जा रहा था। मैनें उन्हें कहा कि मेरा भी थकान के कारण बुरा हाल है। इस का कुछ करना पड़ेगा तो वह बोली कि रात को जो किया था शायद वही इस थकान का कारण है।

मैनें तो कभी इतनी देर प्यार नहीं किया है। शादी के समय भी इतना समय नहीं लगता था, अब तो ज्यादा से ज्यादा 4-5 मिनट में सब खत्म हो जाता है। हम लोग तो 30 से 40 मिनट तक प्यार कर रहे है। कुछ ज्यादा तो नहीं हो रहा है या आप कुछ दवाई तो नहीं खा रहे जिस का असर हो? मैनें ना में सिर हिलाया और कहा कि मुझे भी आश्चर्य हो रहा है कि संभोग इतना लम्बा कैसे चल रहा है। मैं भी ज्यादा से ज्यादा 10 मिनट में स्खलित हो जाता हूं, लेकिन आप के साथ तो 3 से 4 गुना समय लग रहा है, कुछ समझ नहीं आ रहा है। एक दो दिन रुक कर देखते है। ज्यादा थकान गलत है। वाणी नें कहा कि जैसा आप सही समझें वही करें। मैं तो आप के साथ हूँ। वैसे भी एक या दो दिन में मेरा महीना शुरु हो जायेगा तो कुछ हो नहीं सकेगा। मैनें मन ही मन सोचा कि मैं तो आज ही इस का इंतजाम करके आया था। लेकिन कहा कुछ नही। चुपचाप चाय ले कर ड्राइगरुम में आ गया वह ब्रेड ले कर मेरे पीछे आ गयी। हम दोनों नाश्ता करने लगे।

मैनें पुछा कि आज कुछ हुआ? तो वह बोली कि नहीं अभी तक तो कुछ नहीं दिखा है। मैनें कहा कि पति जी के क्या हाल है? वह बोली कि खाने की परेशानी हो रही है। लेकिन पुलिस बाहर नहीं जाने दे रही है, शायद खुद ही खाने का इंतजाम करेगी। नाश्ते के बाद वह बोली कि दोपहर को कुछ खास खाना है? मैनें मजाक में कहा कि आप मेजबान है जैसा आप खिलायेगी हम खा लेगे। वह मेरी बात सुन कर हंस पड़ी फिर बोली कि रात में तो आप ने सब कुछ चख ही लिया है, कुछ रह तो नहीं गया? मैनें कहा कि आप को पता होगा क्या रह गया है तो वह बोली कि पहली बार किसी ने मेरे शरीर को इस तरह से छुआ है। मज़ा आ गया था लगा कि आप से कहूं कि यही सब करते रहें। मैनें कहां कि हम लोग कुछ नया करने में डरते है खास तौर पर पत्नियां, पति को हाथ ही नहीं लगाने देती तो वह बोली कि आज कल की औरतें बदल गयी है। मैनें कहा हां बदली तो है लेकिन फिर भी खुल कर नहीं करती तो वह बोली कि ज्यादा बोल्डनैस को गलत समझा जाता है। यहीं मुख्य कारण है।

मैनें वाणी से कहा कि मैनें तो कुछ नया नहीं किया फिर उन्हें कैसे लगा कि कुछ नया है तो वह बोली कि जिस तरह से आप नें मेरे शरीर को चुमा ऐसा पहले कभी नहीं हुआ,

इतना चुमना तो होना ही चाहिये नहीं तो औरतें तैयार नहीं होती है।

लगता है कि आप ने बहुत औरतों को भोगा है

गलत आरोप है, आप दूसरी है, माने या ना माने

लगता तो नहीं है

कैसे?

जिस तरह से आप प्यार करते है, बड़े अनुभवी लगते है।

अपने पार्टनर को प्यार करने से पहले पुरी तरह से तैयार करना जरुरी है

आप को यह कैसे बता है।

बस पता है

कैसे

अब यह कैसे बताऊं?

पुरे शरीर में ऐसी आग पहले कभी नहीं लगी, और ऐसी बुझी भी नही, कुछ तो खास है आप में

कुछ खास नही है, बस थोड़े धैर्य की आवश्यकता होती है, जो शायद आज कल कम होती जा रही है

अभी तो मुझे लगता है कुछ तो आप ने अगली बार के लिये छोड़ ही दिया होगा

हो सकता है लेकिन जानबुझ कर ऐसा नहीं किया है।

थकान का क्या करें

इस का हल भी सोचते है, नहीं तो कुछ कर नहीं पायेगे

हां यह तो है

आज आराम करते है। केवल सोयेगे

देखते है क्या ऐसा हो सकेगा?

हो सकता है अगर हम दोनों चाहेगें तो

यही करना पडे़गा।

वैसे भी महीने के दौरान तो करना ही पड़ता

मैनें उस के कुछ सोचा था

मैनें भी सोचा था लेकिन अभी उसे भुल जाते है।

कहे तो आज अकेली सो कर देखूं

नहीं, आज तक की गयी सारी मेहनत बेकार हो जायेगी

हां यह तो है।

रात की रात को देखेगें, अभी तो दोपहर के खाने की बात करते है। राय दिजिये।

जो आप को सही लगे, कोई दाल बना ले उस के साथ रोटी

आटा ही तो नहीं है।

यहां होगा

आप ने देखा है

नहीं तो, लेकिन मेरा ख्याल है दो तीन दिन चल जायेगा

मैं देखती हूँ, क्या कर सकती हूँ कुछ नहीं मिला तो दाल चावल तो है ही।

आज मैं भी चैक करता हूँ कि वह भी कहीं खत्म ना हो रहे हो? पत्नी से पुछ कर देखता हूँ वही बतायेगी।

पुछ कर के मुझे फोन कर दिजियेगा। यह कह कर वाणी चली गयी। मैं भी पत्नी को फोन करने लगा। फोन पर पत्नी ने बताया कि दाल चावल का स्टाक काफी है, चिन्ता मत करो, हो सके तो आटे की एक थैली खरीद लाना। मैनें यह बात नोट कर ली। आज और कोई काम नहीं था सो घर साफ करने लगा और उसके बाद कपड़ें धोने में लग गया। फिर ध्यान आया तो वाणी को फोन करके बताया कि दाल चावल की कमी नहीं है आटा भी अभी है। वह बोली कि छोले चावल बनाते है मैं छोले बना रही हूँ आप चावल बना ले। मैनें हामी भर दी।

दोपहर के खाने का इंतजाम तो हो गया। दोपहर के खाने के बाद मैं तो काम में लग गया और वाणी वापस चली गयी। रात को हम दोनों नें दोपहर के छोले-चावल खा कर काम चला लिया। रात को वाणी जब सोने आयी तो जैसा पहले ही तय किया था कि आज सेक्स नहीं करेगें इस लिये हम दोनों चुपचाप सो गये। लेटने के बाद वाणी नें मेरे पास आने की कोशिश की लेकिन मैनें उस के इन प्रयासों को हवा नहीं दी। कुछ देर बाद हम दोनों सो गये। रात को नींद नहीं खुली। सुबह उठ कर वाणी तो अपने घर चली गयी।
 
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Update 8

मैं भी नींद खुलने के बाद सोया नहीं और बाहर बालकोनी में धुप का मजा लेता रहा, फिर कुछ देर बाद चाय बना कर पीने लगा। तभी घंटी बजी और वाणी के दर्शन हुये। वह भी अपनी चाय का कप हाथ में लिये हुये थी। मुझे चाय पीते देख कर बोली कि आज अकेले-अकेले चाय पी रहे है मैनें भी उसे देख कर कहा कि आप भी तो अकेले ही चाय पी रही है तो वह हंस कर बोली कि मेरे यहां तो चाय ही खत्म हो गयी, मुश्किल से एक कप चाय बन पायी। मैं तो आप के यहां चाय पीने ही आयी हूँ। मैनें उन से कहा कि आप अपनी चाय खत्म करके दूसरी चाय बना लेना, यह सुन कर वह बोली कि आप नहीं पीयेगें? मैनें कहा कि अभी तो चाय पी ही रहा हूँ कुछ देर बाद ही दूबारा चाय पी पाऊंगा। वह बोली कि मैं भी कुछ देर बाद ही चाय बनाती हूँ। यह कह कर हम दोनों चाय का स्वाद लेने लगे।

मैनें वाणी से पुछा कि आज घर में कैसा लगा? तो जबाव मिला कि अभी तक तो सब कुछ सही है। कुछ लगा नहीं। चाय पीने के बाद वाणी बोली कि कल आप ने मेरे को दूर क्यों कर दिया था? मैनें उस से पुछा कि दिन में जो तय किया था उसी के अनुसार किया था। वह शायद भुल गयी थी। बोली कि मुझे बड़ा बुरा लगा लेकिन फिर सोचा कि जैसी आप की मर्जी मैं क्या कर सकती हूँ। दोपहर की बात तो मुझे रात को याद ही नहीं आयी लेकिन नींद बढ़िया आयी थी रात को नींद खुली ही नहीं। मैनें कहा कि हम दोनों बहुत थके हुये है इस लिये आराम करना बहुत जरुरी है नहीं तो कुछ गलत होने के बाद कोई सहायता भी नहीं मिल पायेगी। इसी लिये मन पर काबु रखना पड़ेगा। वह कुछ नहीं बोली। कुछ देर बाद उन्होनें ही मौन तोड़ा और कहा कि मुझे राशन लाना है क्या करुं? मैनें कहा कि मैरे साथ चले जो कुछ मिले उसे दोनों ले कर आ जायेगे। इस के लिये वह राजी हो गयी। आज दूध लेने के लिये वह भी मेरे साथ गयी और राशन का सामान ले कर हम वापस आ गये।

इस सब में नाश्ते में बहुत देर हो गयी थी। ब्रेड सेंक कर उस के साथ ही नाश्ता कर लिया। दोपहर का खाना भी लेट ही हुआ। रात को सोते समय मैनें वाणी से कहा कि आप का महीना कब शुरु हो रहा है? वह बोली कि शायद आज या कल में स्टार्ट हो सकता है। बेड पर चुपचाप लेट गये। कुछ देर बाद शायद वाणी को लगा कि कुछ हो रहा है तो वह बाथरुम में चली गयी। जब आयी तो मुझे देख कर बोली की अब तो चार दिन तक कुछ कर नहीं सकतें। मैनें कहा कि दर्द तो नहीं होता वह बोली कि पहले दिन तो बहुत होता है। बाद में कम हो जाता है। मैनें कहा कि जो है उस का सामना तो करना ही पड़ेगा अगर ज्यादा मन होगा तो उसका भी हल खोजलेगे। मेरी बात सुन कर वह मेरी तरफ देख कर बोली कि कौन सा हल? मैनें कहा कि जो पहले दिन किया था वह तो करा जा सकता है। वह यह सुन कर मुस्कराई और बोली कि हर बात का ध्यान रखते है। मैनें कहा कि यह तो है ही। आप आराम करो। हम दोनों कुछ देर बातें करते रहे फिर सो गये।

सुबह वाणी को बहुत दर्द हो रहा था सो मैनें कहा कि चाय बना रहा हूँ आप पी कर जाना तो वह रुक गयी। मैं चाय बनाने चला गया। चाय बना कर लाया और एक कप चाय उन को दे कर मैं भी चाय पीने लगा। चाय पीते हुये वह बोली कि आज नाश्ता और खाना भी आप को बनाना पड़ेगा, मेरे से तो दर्द के कारण कुछ हो नहीं सकेगा। मैनें कहा कि आप चिन्ता ना करें। मेरी बात सुन कर वह बोली कि आप है तो कोई चिन्ता नहीं है। चाय पीने के बाद वह कुछ देर लेटी रही फिर अपने घर वापस चली गयी। मैं अपने कामों में लग गया। दूध ले कर आया और नहा कर नाश्ता बनाने की तैयारी करने लगा। इसी बीच पत्नी का फोन आया वह जानना चाहती थी कि सब कुछ सही चल रहा है तो मैंने उसे बताया कि सब कुछ सुचारु रुप से चल रहा है। वह यह सुन कर सन्तुष्ट दिखी। वाणी के बारें में मैं उसे कुछ बता नहीं रहा था।

अगले दो दिनों तक कुछ नहीं हुआ। कोई घटना नहीं घटी इस कारण से हम दोनों चुपचाप एक-दूसरे के साथ सोते रहे। चौथे दिन रात को जब सोने लगे तो वाणी बोली कि आज कुछ करना पड़ेगा मुझ से रुका नहीं जायेगा। मैं उस की बात सुन कर बोला कि तैयारी पुरी है आप को निराशा नहीं होगी। मेरी बात उस की समझ में नहीं आयी।

मैं उठ कर गया और जैल की टयूब ले कर आ गया। टयूब को देख कर वाणी के चेहरे पर हैरानी के भाव आये। मैनें कहा कि अभी पता चल जायेगा। यह कह कर मैं उन के पास बैठ गया। आज वह सुट पहने हुये थी। मैनें उन का चेहरा पकड़ कर उन के होठों पर अपनी मोहर लगा दी। प्रति उत्तर में उन के होठं भी मेरे होठों से चुपक गये। काफी देर तक हम दोनों एक दूसरे का चुम्बन लेते रहें। जब काफी देर हो गयी तो चुम्बन से अलग हो गये। मैनें हाथ से उन को स्तनों को ऊपर से सहलना और मसलना शुरु कर दिया। कुछ देर तक मैं ऐसा करता रहा इस से वाणी के शरीर में गर्मी आ गयी और वह आगे के लिये तैयार हो गयी थी। इस दौरान वह अपने दर्द को भी भुल गयी।

मैनें उस का कुर्ता उतार दिया और अंदर पहली हुई ब्रा भी उतार दी। अब मेरे हाथ और होठं अपने मनपसन्द कार्य में लग गये। वाणी ने आहहहहहहहहहहह उईईईईईई आहहहहहहहहहहहह करना शुरु कर दिया। मैं एक हाथ से उस के उरोजों को दबा रहा था तथा दूसरें से उसकी पीठ सहला रहा था। पीठ के बाद हाथ नीचे जा कर कुल्हों की दरार के बीच चला गया। मेरी इस हरकत से वाणी के शऱीर में सिहरन होने लगी। कुछ देर बाद वाणी ने मेरी टी शर्ट उतार कर मेरी छाती पर चुम्बन करना शुरु कर दिया। निप्पलों को काट लिया। मेरे शरीर में करंट दौड़ गया। अब रुकना मुश्किल हो रहा था। उस ने मुझे खड़ा किया और मेरा ब्लोउर उतार कर ब्रीफ को भी नीचे कर दिया। अब मेरा लिंग तना हुआ उस के सामने सलाम की मुद्रा में खड़ा था। खुन के इकठ्ठा होने के कारण उस की कठोरता बढ़ गयी थी।

वाणी उसे सहलाती रही फिर उसे मुह में डाल लिया। अब कराहने की मेरी बारी थी। वह उसे लालीपॉप की तरह चुसती रही। कुछ देर बाद मैं उस के मुह में स्खलित हो गया लेकिन वाणी नें वीर्य की एक बुंद भी मुह से बाहर नहीं निकलने दी। अब लिंग का तनाव थोड़ा कम हो गया था मुझे लग रहा खा कि जिस छेद में इसे डालने का विचार है उस में जाने की अभी इस की हालात नहीं है। कुछ देर इंतजार करना पड़ेगा, शायद यही बात वह भी सोच रही थी।

बोली कि चिन्ता मत करो अभी इस को सही कर देती हूं। यह कह कर उस ने उसे फिर से मुंह में ले लिया और उस के सुपाड़े को जीभ से चाटने लगी। कुछ देर बाद लिंग फिर से वार करने के लिये तैयार हो गया। अब इंतजार करने का समय नहीं था सो मैनें वाणी को पेट के बल लिटाया और उस की सलवार और पेंटी उतार दी पेंटी के साथ पैड भी हट गया। वाणी बोली कि देखो इस पर खुन लगा है? मैनें देख कर कहा कि नहीं कोई दाग नहीं है तो वह बोली कि आज डिस्चार्ज नहीं हुआ है। चाहों तो आगे से भी कर सकते हो।

मैनें उस की बात पर ध्यान नहीं दिया और जैल की टयूब ले कर जैल उस की गांड पर और अपने लंड पर लगा लिया। इसके बाद उस की जांघों को अलग करके लंड को गांड के मुह पर लगा कर जोर लगाया, चिकनाहट होने के कारण लंड का अगला हिस्सा गांड में चला गया। वाणी कराही, मैनें और जोर लगा कर दूसरी बार में पुरा लंड उसकी गांड में डाल दिया। वह दर्द के कारण सिर पटकने लगी लेकिन मैने अपने कुल्हें ऊपर नीचे करने शुरु कर दिये। मेरा लंड उसी गांड में अंदर बाहर होने लगा। कुछ देर में ही वह भी नीचे से अपने कुल्हें ऊछालेनें लगी। गांड में कसाब होने के कारण कुछ देर बाद ही मैं स्खलित हो गया और वाणी की बगल में लेट गया।

वह पलटी और मेरी तरफ मुड़ कर बोली की अभी तो लंड में जान है क्यों ना चुत में डाल दो। मैनें उस की बात मान कर उस के ऊपर आ कर लंड को उसकी चुत में डाल दिया। लंड अंदर जा कर फिर से फुल गया और फचाफच करने लगा। तकरीबन दस मिनट तक संभोग चला और इस के बाद में उस की बगल में लेट गया। वह बोली कि आज तो हद हो गयी है। तीन तीन बार। मैनें कहा कि हर रोज कुछ नया ही होता है। वह मेरे करीब आ कर मुझे चुम कर बोली की सोचना बंद कर दो। सिर्फ आनंद लो। मैं तो तीन बार स्खलित हो कर थक गया था सो उस की बाहों में सो गया।

सुबह उठा तो उस की बाहों में ही था। वह शान्ति से सो रही थी। नीचे देखा तो हल्का सा दाग सा दिखा, शायद संभोग के बाद डिस्चार्ज हुआ था। वह कुनमुना कर उठ गयी, मुझे जगा देख कर वह बोली कि क्या देख रहे हो? मैनें उसे बताया कि रात को डिस्चार्ज हुआ है तो वह बोली कि ध्यान ही नहीं रहा कि पेंटी फिर से पहन लेती। मैनें कहा कि इसे छोड़ों वह मेरे तने लंड को देख कर बोली कि यह तो अभी भी तैयार है मैनें कहा क्या कहती हो, हो जायें एक दौर? तो वह बोली कि रात को तो डर सा ही लगा रहा। यह कह कर वह मेरे ऊपर आ गयी और लिंग को अपनी चुत में डाल कर हल्के से धक्का दे कर उसे चुत में समा लिया।

मेरे ऊपर बैठ कर वह लंड को समाने के प्रयास में लगी रही। फिर साथ में लेट गयी। अब मेरी बारी थी मैं उस के ऊपर था और जोर-जोर से धक्कें लगाता रहा। फिर चरम पर पहुंच कर वाणी के बगल में लेट गया।

वह मुझे देख कर बोली कि इतनी ताकत कहाँ से लाते हो? मैनें उसे चुम कर कहा कि यह तुम्हारा कमाल है इस में मेरा कोई योगदान नही है। वह मेरी तरफ अचरज से देख कर बोली कि ऐसा क्या? मैनें आंख मार कर हां कहा। जब वह जाने लगी तो उस की चाल बदल गयी थी, रात में दो बार और सुबह एक बार संभोग होनें से उसकी ऐसी हालत हो गयी थी। वह मेरी तरफ देख कर बोली कि दो दिन की कसर एक दिन में निकालोगें तो ऐसा ही होगा। मैं मुस्कराया तो वह बोली कि यह शैतानी है। मैनें कहा कि तुम जब पास में हो तो कंट्रोल ही नहीं होता। वह हंस कर लगड़ाती हुई घर के लिये चली गयी।

मैं चाय पीने लगा, चाय पीते समय मुझे लगा कि आज रात को कुछ हो सकता है पंद्रह दिन होने वाले है शायद मिस्टर गुप्ता आज रात को आ जाये इस लिये आज वाणी का मेरे साथ सोना सही नहीं रहेगा। यही विचार मेरे मन में जम गया। उस समय तो उसे भुल कर अन्य कामों में लग गया। रात को जब वाणी सोने आयी तो मैनें वाणी से अपने मन की बात शेयर कि वह भी बोली कि हां हो सकता है शायद कुछ ऐसा हो जाये मेरी बात तो हुई थी सुबह तब तक तो कुछ नहीं था लेकिन कह नहीं सकते। आज में अपने घर में सो जाती हूँ। मैनें उस से कहा कि वह अपने घर के दरवाजे की एक चाभी मुझे दे दे, और फोन पर मेरा नंबर निकाल कर उसे स्कीन पर रख कर सोये अगर जरुरत पड़े तो बस डायल को प्रेस कर दे मैं उस का दरवाजा खोल कर आ जाऊंगा। वह मेरी बात मान कर वापस चली गयी।

शायद 11 बजे होगे, मेरे फोन की घंटी बजी तो देखा कि वाणी का नाम था मैनें फोन उठा कर पुछा तो कुछ आवाज नहीं आयी, मुझे डर लग रहा था तो मैं भाग कर अपना दरवाजा खोल कर उस के दरवाजे पर चाभी लगा कर उसे खोला तो देखा कि दरवाजे के पास वाणी पड़ी थी और उस से कुछ दूर एक छोटी आकृति जो बालों से ढ़की थी वह खड़ी थी। उसे देख कर एक बार तो मैं भी डर से जम सा गया, फिर जब मुझे मामला समझ आया तो जल्दी से वाणी को बांहों में उठाया और दरवाजा बंद करके अपने घर की तरफ भागा। घर में आ कर वाणी को ऐसे ही जमीन पर लिटा कर दरवाजा कस कर बंद कर दिया।

इस के बाद मेरी सांस में सांस आयी। उस चीज को देख कर तो मेरी बुद्धि नें काम करना बंद कर दिया था, अब मैं वाणी का डर समझ पाया था। अपने को संभाल कर मैनें वाणी की तरफ ध्यान दिया वह जमीन पर बेहोश पड़ी थी उसे उठा कर दीवान पर लिटाया और हाथों से उस के चेहरें को थपथपाया लेकिन उस ने आंखें नहीं खोली तो किचन से पानी ला कर उस के चेहरे पर पानी के छिटें मारे तब जा कर उस ने आंखें खोली और मुझे सामने देख कर मुझ से लिपट गयी। मैं ने उसे कस करअपने से लिपटा लिया। वह वोली की आज तो वह मेरे पास ही आ गयी थी।

मैनें फोन मिलाया तो लेकिन उस ने हाथ पकड़ लिया था। यह सुन कर मैं बहुत डर गया। वाणी बोली कि उस को देखते ही मैं तो बेहोश हो गयी अगर तुम नहीं आते तो आज मैं तो मर ही जाती। मैनें उस की पीठ थपथपायी लेकिन मुझे भी पता था कि उस चीज का मेरे घर में आना कोई मुश्किल काम नहीं था। अगर वह यहां आ गयी तो हम दोनों क्या करेगें? मैं यही सोच कर डर रहा था लेकिन फिर मन में आया कि जो होगा देखा जायेगा। मैनें वाणी को अपने से अलग किया और उसे पानी पीने को दिया और उस से पुछा कि चाय पीयेगी तो वह बोली हां। मैं चाय बनाने के लिये पानी गैस पर रख कर वापस आया तो देखा कि वाणी सुबक रही थी। मैनें उस से कहा कि रोने से कुछ नहीं होगा, इस का सामना करना पड़ेगा। अब तुम अपने घर तो जा नहीं रही हो जाहें जो हो।
 
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Update 9

मेरी बात सुन कर उस ने सुबकना बंद कर दिया। मैं चाय लेने किचन में चला गया। चाय ला कर उसे दी और उस के पास बैठ गया। वह चाय पीने लगी। मैं उस से घटना क्रम पुछना तो चाहता था लेकिन इस से वह फिर डर जाती और यही मैं नहीं चाहता था सो चुपचाप उस की पीठ सहलाता रहा। जब चाय खत्म हो गयी तो वह बोली कि चलों आज तो तुम नें भी देख ली नहीं तो तुम ना जाने क्या क्या सोचते होगे? मैनें कहा कि मुझे तुम्हारी बात पर पुरा भरोसा था लेकिन कई चीजे तर्क से ऊपर होती है तो मन कई कारण सोचता है, इसी लिये मैं असमंजस में था लेकिन आज वह दूविधा खत्म हो गयी। इस के सिवा मैं कुछ नहीं कह सकता। यह कह कर मैनें उस का हाथ पकड़ा और उसे बेडरुम में ले गया।

वहां उसे बेड पर बिठा कर एक बार फिर से दरवाजा देखने चला गया। दरवाजा मजबुती से बंद था। लौट कर वाणी की बगल में लेट गया वह साड़ी पहने हुई थी। कुछ सोच कर मैं उठा और कपड़ों की अलमारी की तरफ चल दिया। उसे खोल कर मैनें अपना बाक्सर निकाला और एक टी शर्ट ले कर वापस आ गया। वाणी से कहा कि वह साड़ी उतार कर मेरा बाक्सर पहनले कुछ टाइट तो लगेगा लेकिन सोने के लिये सही रहेगा। ऊपर से टीशर्ट पहन ले, सोने में आराम रहेगा। वह मेरे को देख कर बोली कि तुम्हें साड़ी की चिन्ता है। मैनें कहा कि तुम्हारी चिन्ता है। इस लिये कह रहा हूँ, आराम से सो पाओंगी। इस के सिवा कुछ और नहीं है और जो है वह तुम्हारें कुल्हों पर चढ़ेगा नही।

मेरी बात सुन कर वह हंस दी और बोली कि मेरी जान निकल रही है और तुम ऐसी बात कर रहे हो। मैनें कहा कि उसे बार बार सोच कर डरने से अच्छा है कि कुछ और सोच कर उस तरफ से ध्यान हटाओं। उस ने मेरी बात मान ली और मेरे सामने ही साड़ी उतार कर ब्याउज भी उतार दिया और ब्रा और पेंटी में आ गयी फिर बाक्सर पहना, कुछ कसा सा था लेकिन आ गया, उसके बाद टी शर्ट डाल ली। इन कपड़ों में भी वह जंच रही थी।

मुझे घुरता देख बोली कि अब क्या इरादा है? मैनें कहा कि कुछ नही, बड़ी सेक्सी लग रही हो सो देख कर आंखें सेंक रहा हूँ। वह उठी और मैरे पास आ कर मुझ से लिपट कर बोली कि आज तो तुम नें बचा लिया। मैनें उसे कस कर अपने से चिपका लिया और बोला कि इस बात की शंका तो थी लेकिन तुम्हारी इज्जत के कारण ऐसा करने का विचार आया था लेकिन अब जो होगा देखा जायेगा। वहां तो तुम जा नहीं सकती। यह कह कर मैनें उस के होठों पर अपने होठं रख दिये। उस के होठं इतने गरम थे कि लगा कि मेरे होठों नें तवें को छु लिया है। हम दोनों एक दूसरें को चुमते रहें। कुछ देर बाद मैनें उसे गोद में उठाया और बेड पर लिटा दिया। फिर उस की बगल में आ कर लेट गया।

उस से कहने के लिये मेरे पास कुछ नहीं था। डर मुझे भी बहुत लग रहा था, कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैनें क्या देखा था, वह जिंदा था या मरा था असल में क्या था? वाणी मेरे सीनें से लग कर लेट गयी, मैं उस की पीठ सहलाता रहा। फिर जाने कब हम दोनों सो गये।

रात भर हमारी नींद नहीं खुली। सुबह जब मेरी आंख खुली तो वाणी निश्चिन्त हो कर सो रही थी। मैं उसे सोता देखता रहा, फिर उठ कर चाय बनाने के लिये किचन की तरफ चल दिया। घर का दरवाजा देखा वह बंद था। चाय बना कर दो कप ले कर बेडरुम में आया तो वह उठ कर बैठ गयी थी। अपने आपको देख रही थी। मुझे देख कर बोली कि कल रात को तुमनें यह कपड़ें दे कर अच्छा किया, पता ही नहीं चला कि कुछ पहन भी रखा है या नहीं। मैनें उसे बताया कि रात को पहननें के लिये मैं कॉटन की पुरानी टीशर्ट अलग रखता हूँ इन में आराम रहता है शरीर को काटती नहीं है। बाक्सर भी कॉटन का है वह भी आरामदायक है।

मैं रात को ब्रीफ उतार कर बाक्सर पहन कर सोता हूं अंगों को रात को आराम मिलता है और हवा भी लगती है। यह कह कर उसे उस का कप दे दिया। वह चाय पीने लगी। चाय पीने के बाद वह बोली कि अब में साड़ी पहन लेती हूँ। मैनें हां में सर हिलाया। वह खड़ी हो कर दोनों कपड़ें उतार कर साड़ी पहनने लगी। साड़ी पहन कर बोली की क्या कहते हो? घर जाऊं देखने? मैनें उसे हाथ से मना किया। वह रुक गयी। चाय पीने के बाद हम दोनों एक साथ उस के घर गये। दरवाजा खोला, कुछ नहीं दिखा।

अंदर सारा घर देखा कुछ नहीं दिखा। एक बात मेरी समझ में आयी कि जो कुछ वहां है वह दिन की रोशनी में सामने नहीं आता। सारे घर में घुम कर दरवाजा को ताला लगा कर हम दोनों वापस मेरे घर आ गये। वाणी नें अपने कपड़ें साथ ले लिये थे। वह नहानें चली गयी और मैं टीवी देखने लगा। टीवी देख कर पता चला कि लॉकडाउन सात दिन के लिये और बढ़ा दिया गया है। यह सुन कर निराशा हुई लेकिन कुछ कर नहीं सकता था। वाणी जब नहा कर बाहर आयी तो मैनें उसे यह खबर सुनायी तो वह बोली कि लगता है लॉकडाउन लम्बा चलेगा। रोग तो रुक ही नहीं रहा है। उस के बाद मैं नहानें चला गया। नहा कर मैं पूजा करने लगा।

वाणी मुझे पूजा करता देखती रही। पूजा खत्म होने के बाद मुझ से पुछने लगी कि यह सब तुम नें कहाँ से सीखा है? मैनें उसे बताया कि बचपन से मेरे यहां यह होता है सो अब मैं अपने घर में करता हूँ किसी से सिखने की जरुरत क्या है? वह बोली कि इन के यहाँ तो कुछ होता नहीं है। मैनें भी अपने यहां कुछ नहीं देखा। मैं यह सुन कर चुप रहा, किसी के संस्कारों के बारें में कोई टिप्पणी करना उचित नहीं लगा। वाणी बोली कि तुम मुझे सीखा लेना मैं अब करना शुरु करुंगी। मैनें सर हिलाया। वह मुझे देख कर बोली कि चुप क्यों हो? मैनें कहा कि दिमाग में कुछ और घुम रहा है, वह बोली कि वह तो मुझे पता है लेकिन मेरी बात का जबाव तो दो। मैनें कहा कि पूजा करना कठिन नहीं है सब सिखा दूगां। मेरी बात सुन कर उस के चेहरे पर संतोष झलका। मैनें कहा कि मैं दूध लेने जा रहा हूँ तो वह बोली कि मैं अकेली नहीं रहुँगी तुम्हारें साथ चलुगी।

मैनें कुछ नहीं कहा। हम दोनों दूध और कुछ सामान ले कर घर वापस आ गये। आ कर वाणी नें नाश्ता बनाया और हम दोनों नें नाश्ता कर लिया। नाश्तें के बाद वाणी बोली कि तुम्हें तो काम करना है, मैं क्या करुं? मैनें कहा कि टीवी देखों फिर दोपहर का खाना बनाना, तब तक मैं फ्री हो जाऊंगा। यह कह कर मैं कमरें में चला गया। काफी काम पेन्डीग पड़ें थे सो उन्हें आज पुरा करना था।

लॉकडाउन के बढ़ जाने के कारण अब तो ऑफलाइन काम ही करना पड़ेगा यह दिख रखा था सो उस के लिये भी सब को तैयार करना था। इसी सब में कब चार बज गये पता ही नहीं चला। जब कमरें से बाहर निकला तो देखा कि वाणी टीवी देखते देखते सो गयी है। लेकिन मेरे कदमों की आहट पा कर वह जग गयी और बोली कि आज दिन काटना मुश्किल हो रहा है। मैनें कहा कि कुछ पढ़ लेती तो वह बोली कि यह काम मुझ से नहीं होता। फिर वह खाना लेनें चली गयी।

खाना खा कर हम दोनों बैठे तो मैनें उस से पुछा कि कल रात को हुआ क्या था तो वह बोली कि 10 बजे के बाद मैं सारे घर को देख कर बंद कर रही थी तो मुझे कुछ अजीब सा लगा तो मैं उसे देखने के लिये कमरें में गयी लेकिन वहां पर कुछ नहीं था, फिर ऐसा लगा कि बाहर लॉबी में कोई है। लॉबी में आयी तो कोई नहीं था, तभी मैनें तुम्हारा नंबर मिलाने के लिये मोबाइल हाथ में लिया और नंबर को दबाने की कोशिश करते हुये दरवाजे की तरफ चली कि यह चीज अचानक मेरे सामने आ गयी और उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया कि मैं नंबर ना डाइल कर सकु, लेकिन तब तक मैं नंबर प्रेस कर चुकी थी, इस के बाद मुझे कुछ पता नहीं, मैं बेहोश हो गयी थी, तुम नें जब पानी मुह पर मारा तब मुझे होश आया।

मैं उस की सारी बात ध्यान से सुनता रहा, मैं यह समझने की कोशिश कर रहा था कि वह चीज क्या चाहती है, अभी तक तो वह कुछ कहती नहीं थी, लेकिन कल तो उस नें वाणी को रोकने की कोशिश की। दिन में कहां छुपी रहती है? यह भी पता नहीं था। तभी मुझे कुछ याद आया तो मैनें वाणी से पुछा कि वह यह सब शुरु होने से पहले छत पर तो नहीं गयी थी, वह अचरज से बोली कि तुम्हें कैसे पता? मैनें उसे बताया कि शायद वह तेल लगा कर रात को छत पर गयी होगी और कोई बुरी छाया उस से आकर्षित हो कर उस के साथ आ गयी है।

उसे कैसे भगाना है यह तो नहीं मालुम लेकिन अब कुछ-कुछ समझ में आ रहा है। वह बोली कि शाम हो गयी थी गर्मी सी लगी तो मैं छत पर टहलने चली गयी थी। उस से पहले मैनें बालों में तेल भी लगाया था। मैनें उसे बताया कि बचपन में मैनें अपनी नानी को मौसी वगैरहा को रात में तेल लगा कर बाहर जाने से रोकते सुना था सो वही बात ध्यान में आयी थी। वह बोली कि कोई हल भी है, मैनें कहा कि कोई हल मुझे तो पता नहीं है किसी से बात भी नहीं कर सकते। कोई आयेगा भी नहीं।

तभी मुझे याद आया कि नानी रात को बाहर जाते में कोई लोहे का चाकु या चीज साथ ले जाने को कहती थी। लेकिन इस बात का हमारी परिस्थिति में कोई उपयोग मुझे नहीं समझ आ रहा था। कुछ देर सोचने के बाद मैनें कहा कि हम शाम को तुम्हारें घर में पूजा करते है, दीपक जलाते है धुप लगाते है तथा सारे घर में गंगा जल छिड़कते है तो वह बोली कि मेरे पास तो गंगा जल भी नहीं है। मैनें कहा कि चिन्ता की कोई बात नहीं है मेरे पास है। हनुमान चालीसा का पाठ भी करेगें, वह इस सब के लिये राजी थी।
 
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Update 10

शाम को सात बजें हम दोनों हाथ मुंह धो कर उस के घर गये, वहां पर मंदिर में दीपक जलाया, धुप लगाई तथा गंगा जल एक कटोरी में भर कर रख लिया। हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद हनुमान जी की आरती करी। इस समय तक सब कुछ सही था लेकिन जब हम सारे घर में घुपदीप करने लगे, तथा मैं गंगा जल छिड़कने लगा तो बड़ी बदबु सी आने लगी, हमें डर तो लगा लेकिन हम हनुमान जी का नाम लेकर सारे घर में घुपदीप और गंगा जल छिड़कते रहें।

यह सब करने के कुछ देर बाद बदबु आनी बंद हो गयी। हम दोनों कुछ देर वहां पर रहे जब दीया बाती खत्म हो गयी तो उस के घर का दरवाजा बंद करके अपने घर वापस आ गये। हमें कुछ पता नहीं था कि हम क्या कर रहे है लेकिन कुछ ना करने से कुछ करना सही था। सो जैसा उल्टा-सीधा आता था वह कर रहे थे। काफी देर तक हमारे कान वाणी के घर की तरफ लगे रहे कि वहां से कोई आवाज तो नहीं आती लेकिन कुछ हुआ नहीं, या कह सकते है कि हमनें कुछ सुना नहीं।

अब हम दोनों थक से गये थे सो मैनें वाणी से कहा कि मैं दाल-चावल बना रहा हूं तो वह बोली कि मैं भी तुम्हारें साथ काम करती हूँ काम जल्दी हो जायेगा। हम दोनों दाल-चावल बनानें में लग गये। रात को खाना खा कर बैठे तो वाणी बोली कि तुमनें बदबु महसुस की थी? मैं हां में सर हिलाया तो वह बोली कि ऐसी ही बदबु उस ने कई बार महसुस की है। उस ने कहा कि लेकिन गंगा जल छिड़कने के बाद बदबु खत्म हो गयी थी। मैनें उसे बताया कि हम ने जो किया हो सकता है उस से वह चीज चली जाये और यह भी हो सकता है कि वह चीज गुस्सा हो कर और नुकसान करना शुरु कर दे।

हमें इंतजार करना पड़ेगा। वह बोली कि इस के सिवा हम कर भी क्या सकते है? वह सही कह रही थी हमारे पास और कोई चारा भी नहीं था। रात को सोने से पहले दोनों की अपने पति-पत्नी से बात हुई। इस के बाद हम कपड़ें बदल कर बेड पर आ गये।

मुझे जाने क्या लगा कि मैं बाहर गया और हाथों में गंगा जल ले कर आया और अपने और वाणी के ऊपर छिड़क दिया, यह देख कर वह बोली कि अब यह क्या है? मैनें कहा कि पता नहीं मेरे मन को लगा कि ऐसा करना चाहिये तो कर दिया। वह बोली कि लगता है तुम नॉरमल नहीं हो। मैनें कहा कि हां हो सकता है कल की घटना के बाद में बदल गया हूं लेकिन जो सही लगेगा वह तो करना ही पड़ेगा, बुरी शक्तियों से लड़ने का यही एकमात्र साधन है।

मेरे चुप होने के बाद मैनें देखा कि वाणी कांप सी रही थी, कुछ देर बाद उस की कंपकंपी बंद हुई, वह बोली की मुझे क्या हुआ था? मैनें उसे बताया कि हम इतनी देर तक वहां थे तो हो सकता है कि वह चीज हम पर सवार हो गयी हो, इसी लिये गंगा जल अपने ऊपर छिड़का था। वह बोली कि मुझे लगा कि मेरे शरीर में से कुछ निकल सा गया है।

मैं उस की बात सुन कर डर गया कि कहीं वह चीज मेरे यहां ना आ गयी हो, इसी लिये सारे घर को देखने के लिये चला गया। वाणी भी मेरे साथ-साथ थी। कहीं कुछ नहीं मिला या दिखा। इस से हम दोनों को संतोष सा मिला। नींद तो हमारी भाग गयी थी सो ऐसे ही लेट कर सोने की कोशिश करने लगे। वाणी बोली कि आप बिना मतलब मेरी परेशानी में पड़ गये है।

मैनें उस से कहा कि तेरी मेरी का समय चला गया है, अगर हमारे घर के आसपास कुछ ऐसा था तो देरसबेर हमें इस तरह की परेशानी का सामना करना ही पड़ता सो इस बारें में सोचना बंद कर दो। वह बोली कि आगे क्या विचार है मैनें कहा कि रोज सुबह शाम ऐसे ही पूजा करों, शायद कुछ सही हो जाये। वह बोली कि कल सुबह ही पता चलेगा कि क्या हुआ है। मैनें उस की बात में सहमति में सर हिलाया।

वह मेरे करीब आ कर बोली कि तुम मेरे क्या हो जो मेरे लिये इतना खतरा उठा रहे हो? मैनें उस के बालों में उगलियां फिराते हुये कहा कि पता नहीं क्या हूं लेकिन अब तुम मेरी जिम्मेदारी हो सो अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ। इस से भाग नहीं सकता। मेरी बात पर वाणी का सर मेरी छाती से टिक गया और वह सुबकने लगी उस के आंसु मेरी टीशर्ट को भिगो रहे थे। मैनें उस के सर को सहलाया और कहा कि तुम तो बड़ी बहादूर थी आज ऐसा क्या हुआ कि रो रही हो? तो वह बोली कि आज जो तुम ने किया वह कोई अपना भी नहीं करता, तुम नें इतना बड़ा खतरा उठा कर ऐसी चीज से पंगा ले लिया जो बहुत खतरनाक है।

मैनें कहा कि मरता क्या ना करता वाला चक्कर है, कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा अभी तो किसी से मदद भी नहीं मांग सकते। कही जा भी नहीं सकते, तुम्ही बताओं और क्या करता? वह कुछ नहीं बोली और सुबकती रही। हार कर मैनें उसे अपनी छाती से चिपका लिया।

इस से ज्यादा सान्तवना में उसे नहीं दे सकता था। अंदर से तो मैं भी बुरी तरह से डरा हुआ था लेकिन उस के सामने अपना डर जाहिर भी नहीं कर सकता था। इसी लिये चुपचाप पड़ा रहा। कुछ देर तक तो मैं उस की पीठ सहलाता रहा। कुछ देर बाद वाणी भी चुप हो गयी और मेरी टी शर्ट के ऊपर से ही मेरे निप्पलों को चुमने लगी। उस की यह हरकत मुझ में उत्तेजना भर रही थी। मैनें उसे होठों पर चुम कर उस की गरदन पर किस किया फिर उस के वक्ष के मध्य चुम्बन लेकर नीचे जाने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली ब्लाउज और ब्रा के कारण उरोज ढ़के हुये थे, मैनें उस के ब्लाउज को उस के कंधे से नीचे कर दिया और उस के एक उरोज को ब्रा और ब्लाउज से बाहर निकाल लिया।

वाणी के लिये कष्टकर था लेकिन मुझे उस के निप्पल चुसने को मिल गया। मैनें उस उरोज को काफी दबाया और मुह में लेकर चुसा और उसके बाद उसे अंदर डाल कर दूसरे उरोज को ब्रा से बाहर निकाल कर उस के साथ भी ऐसा ही किया। इस के बाद उस की नाभी को चुम कर उस के ऊपर बैठ कर उस की साड़ी को ऊपर कर के उस की पेंटी को ऊगंली से एक तरफ कर के अपने उत्तेजित लिंग को योनि में घुसेड़ दिया।

यह वाणी के लिये जबरदस्ती किया जाने वाला संभोग था लेकिन वह इस का विरोध नहीं कर रही थी।

लिंग उस की योनि में घर्षण करता हुआ गया क्यों कि कोई फोरप्ले नहीं हुआ था। पता नहीं मैनें सिर पर कैसा पागलपन सवार था कि मैं जो कुछ कर रहा था उस के बारे में सोच नहीं रहा था। उस की पेंटी मेरे लिंग से टकरा रही थी। कुछ देर योनि में लिंग अंदर बाहर करने के बाद मैनें लिंग को निकाल लिया, वाणी को पेट के बल लिटा कार उस के चुतड़ों से साड़ी हटा कर उस की योनि पर लिंग को लगाया लेकिन फिर उसे उस की गुदा पर लगा कर झटके से गुदा में डाल दिया। वाणी की चीख निकल गयी, मैं कुछ देर रुका फिर जोर लगा कर लिंग को पुरा उस की गुदा में घुसेड़ दिया।

कुछ पल रुकने के बाद मैनें लिंग को अंदर बाहर करना शुरु कर दिया। वाणी दर्द के कारण सिसक रही थी लेकिन मेरा ध्यान उस पर नहीं था मैं अपने काम में लगा रहा फिर कुछ देर बाद जब मुझे लगा कि मैं स्खलित होने वाला हूँ तो लिंग को गुदा से निकाल कर योनि में डाल दिया। फिर मेरे धक्के शुरु हो गये। कुछ देर बाद नीचे से वाणी भी मेरा साथ अपने कुल्हें उठा कर देने लगी। ऐसा ज्यादा देर नहीं चला, मैं बड़ें जोर से वाणी के अंदर स्खलित हो गया। अपने वीर्य की गरमी मुझ से ही बर्दाश्त नहीं हो रही थी। वाणी का क्या हाल होगा यह तो वह ही जानती होगी। इस के बाद में वाणी की बगल में लेट गया।

आज का संभोग, संभोग ना हो कर एक तरह से बलात्कार ही कहा जा सकता था, इस में वाणी को कोई सहयोग नहीं था, जो था वह मेरी जबरदस्ती ही थी। वाणी चुपचाप मुझे झेलती रही थी। मैं ऐसा कैसे कर रहा था वह यही समझ नहीं पा रही थी। मैनें उस की साड़ी सही करी और उस के उरोजों को ब्रा के अंदर कर के उस का ब्याउज सही कर दिया। वह मुझे ऐसा करते देखती रही। कुछ नहीं बोली।

हम दोनों चुपचाप पड़ें थे। अज्ञात शक्ति का डर और उस के ऊपर मेरा यह कांड उस के लिये तो आज हद ही हो गयी थी। मैं अब कुछ होश में था और अपने किये पर शर्मिदा था। समझ नहीं आ रहा था कि उस से कैसे माफी मांगु?। वाणी नें मेरी तरफ अपना मुह किया और मुझ से बोली कि आज यह क्या किया है, क्यों किया है? जब सब कुछ प्यार से मिल रहा था तो जबरदस्ती की क्या जरुरत थी।

आप का यह रुप मेरे को डरा रहा है। कुछ कहते क्यों नहीं हो? मैनें कुछ कहने के लिये मुह खोला फिर कुछ सोच कर उसे बंद कर लिया। वह यह देख रही थी, बोली कि कुछ तो हुआ है इतने दिन से आप के साथ हूं, आप ऐसे नहीं है,आज क्या हो गया है, बताते क्यों नहीं हो? उस नें अपनी बाहों से पकड़ कर मुझे झकझोड़ा, उस के झकझौड़ने के बाद मेरी तन्द्रा टुटी।

उसने यह महसुस कर लिया। मैनें उसे देख कर कहा कि क्या किया है मैनें? वह बोली कि तुम ने किया है और तुम्ही को नहीं पता? यह क्या है? मेरी आंखों में अचरज देख कर वह बोली कि कुछ तो बोलों क्या बात है? मैनें कहा क्या बात है क्या बोलू? वह बोली कि आज तुम नें मुझ से बलात्कार किया है, यह क्यों किया है। मैं तो तुम से प्यार कर ही रही थी, फिर ऐसा क्यों किया है तुम ने? मैनें उस से कहा कि मुझे पता नहीं क्या हो गया था जो मैनें ऐसा किया है।

तुम्हें तो पता है कि मैं कैसा हूँ? मैं तो तुम्हें सान्तव्ना देने के लिये तुम्हारी पीठ सहला रहा था, उस के बाद क्या हुआ मुझे नहीं पता। अभी जब तुम नें झकझौरा है उस से पहले का कुछ पता नहीं है। ऐसा क्या किया है मैनें जो तुम इतनी नाराज हो? वाणी हैरान हो कर बोली कि तुम्हें कुछ नहीं पता? मैनें ना में सर हिलाया। वह बोली कि ऐसा कैसे हो सकता है तुम मेरे साथ जो कर रहे थे वह तुम्हें पता नहीं है। यह बात मुझे समझ नहीं आ रही है। मैं चुपचाप रहा। वह भी चुप हो गयी।

हम दोनों के मध्य मौन परसा पड़ा था। कोई किसी की बात पर विस्वास नहीं कर रहा था। अंजान शक्ति का डर दिमाग से हट कर मेरे द्वारा किया गया दिमाग में था। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, मेरी सफाई वाणी को समझ नहीं आ रहा था। वह सही थी उसी नें सब कुछ भोगा था। हम दोनों बेड के दोनों किनारों पर हो कर लेटे रहे और कब सो गये पता नहीं चला।

सुबह जब आंख खुली तो वाणी वहां पर नहीं थी। मुझे लगा कि रात की बात से नाराज हो कर वह चली गयी है यही सोच कर मैं कमरे से बाहर आया लेकिन तभी वाणी बाथरुम से निकलती दिखायी दी। उसे देख कर मेरी जान में जान आयी। मुझे देख कर वह बोली कि चाय पियोगें? मैनें हां कही तो वह किचन में चली गयी, कुछ देर बाद वह चाय ले कर आ गयी।

हम दोनों ड्राइग रुम में बैठ कर चाय पीने लगे। चाय पीते समय भी हम दोनों चुप थे। वाणी ने ही शुरुआत करी और बोली कि मेरी रात की बात से नाराज हो? मैनें कहा नहीं नाराज नहीं हूं यह सोच कर हैरान हूँ कि मैनें वह सब कैसे किया? मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ तुम्हारें साथ जो मेरे भरोसे अपनी सारी जिन्दगी लगा कर बैठी है और वह भी वह बात जो हम दोनों रोज आराम से कर रहें थे।

एक तरफा प्यार तो मेरे दिमाग में आता ही नहीं है, फिर तुम्हारें अनुसार जबरदस्ती तो बहुत दूर की बात थी। तुम नें विरोध क्यों नहीं किया? मैनें उस से सवाल किया तो वह बोली कि अगर मेरा रक्षक ही ऐसा कर रहा था तो मैं किस से फरियाद करती, तुम्ही बताओं? उस की बात सही थी, वह किस के पास जाती। तभी मुझे कुछ समझ आया, मैनें कहा कि कल मैं भी तो तुम्हारें साथ घर में गया था, वही से कुछ हुआ है। मैनें तुम्हारें ऊपर तो गंगा जल छिड़क दिया था। अपने ऊपर नहीं छिड़का था, जो चीज तुम्हें परेशान कर सकती है वह चीज मुझे तुम्हारी मदद करने से रोक भी तो सकती है।

शायद ऐसा ही कुछ हुआ था। मैं अपने आप में नहीं था। तुम्हारें घर में जो भी कुछ है वह बहुत खतरनाक है। अगर दूबारा मैं कुछ ऐसा करु तो मुझे जबरदस्ती रोक देना। यही कह सकता हूँ। और कोई व्याख्या मेरे पास नहीं है। मेरी बात सुन कर वाणी बोली कि तुम्हारी बात सही है तुम नें अपने ऊपर गंगाजल नहीं छिड़का था उस का तुम पर और अधिक प्रभाव हो सकता था लेकिन शायद किसी वजह से कम प्रभाव हुआ। कल की बात से मुझे अब ज्यादा डर लगने लगा था।

वह शक्ति किसी को भी अपने प्रभाव में ले सकती है। अपना मनमाफिक काम करवा सकती है। यह बहुत खतरनाक बात थी। मैनें तय किया कि मैं वाणी के घर में नहीं जाऊंगा। वाणी मुझे चुप और सोचता देख कर बोली कि क्या सोच रहे हो? मैनें उसे बताया कि उस के घर जाने में अब मुझे डर लग रहा है। वह बोली कि कह तो सही रहे हो। लेकिन बताओं मैं क्या करुं? मैनें कहा कि अभी एक दो दिन तुम यहीं रहों। उस के बाद सोचेगें। अभी तो यह हम दोनों के बीच झगड़ा करवानें में लगी है। कुछ और भी हो सकता है। तुम मेरे से दूर ही रहना, पता नहीं और क्या कर बैठु? वह मेरी बात सुन कर हंसी और बोली कि तुम से दूर कैसै रह सकती हूँ यह तो कोई उपाय नहीं है।

मैनें कहा कि सावधानी तो बरत सकती हो। वह बोली कि रात की बात छोड़ो, कल की हरकत से तुम्हारें लिंग पर जो खरोंचें लगी है उन पर कुछ लगा लो, नहीं तो बुरी हालत हो सकती है। मैनें कहा कि चलों देखता हूं यह कह कर मैं बाथरुम में चला गया, वहां जा कर ब्रीफ उतार कर देखा तो वाणी सही कह रही थी, बुरी तरह से खरोचें लगी हुई थी। बाहर आ कर कमरें में जा कर ऐन्टीसेप्टीक क्रीम ढुढ़ी और फिर बाथरुम में जा कर उसे लिंग पर लगा लिया।

बाहर आ कर वाणी को धन्यवाद कहा तो वह बोली कि इस में मेरा भी फायदा है अगर जल्दी सही नहीं हुआ तो वह मेरे किसी काम का नहीं रहेगा। मैं उस की बात सुन कर मुस्कराया और बोला कि हर समय शरारत सुझती है। वह बोली कि और क्या करुं शैतानी भी छोड़ दू? यह कह कर वह मेरे से क्रीम ले कर बाथरुम में चली गयी। बाथरुम से आकर वह बोली कि कुछ भी कहो, जबरदस्ती में भी एक अलग ही मज़ा आता है। मैनें उस की तरफ देखा तो वह शरारत में आंख मार कर मुस्करा दी। मैं हैरानी से उसे देखता रहा और सोचने लगा कि औरतों को समझना किसी के बस की बात नहीं है।

मैं नहाने चला गया और नहा कर आने के बाद पूजा करने बैठ गया। वाणी भी पूजा करने हुये बड़े ध्यान से देखती रही। पूजा खत्म होने के बाद वह बोली की आज में घर मे पूजा करने जाऊं? मैनें कहा कि क्या कहुँ, कल की घटना के बाद कुछ समझ नहीं आ रहा है, मेरी बात सुन कर वह बोली कि मैनें तुम्हें पूजा करते देख लिया है, आज में अपने आप पूजा करके देखती हूँ, उस के बाद देखते है क्या होता है? इस के बाद वह अपने घर चली गयी, मेरे कान उस के घर की तरफ ही लगे रहे।

काफी देर बाद वह अपने घर से वापस आयी, आ कर उस ने बताया कि मैनें तुम्हारी तरह ही पूजा करी है। और कुछ करना है? मैनें कहा कि हो सके तो हनुमान चालीसा चला दो। वह बोली कि स्टीरियों पर हनुमान चालीसा चला कर आती हूँ यह कह कर वह चली गयी। कुछ देर बाद आयी तो बोली कि हनुमान चालीसा चलने के बाद कुछ बदलाव सा लग रहा है। मैनें उसे कहा कि अब वह वहां ना जाये। वह बोली कि नाश्ता बना रही हूं। वह नाश्ता बनाने चली गयी और में अखबार पढ़ने लगा।

उस में रोग के बारें में कोई अच्छी खबर नहीं थी। लॉकडाउन पुरी कठोरता से लगा हुआ था। कोई भी इधर से उधर नहीं जा सकता था।

कुछ देर बाद वाणी नाश्ता बना कर ले आयी और हम दोनों नाश्ता करने बैठ गये। मैनें उस से पुछा कि आज घर में कैसा माहौल लगा? तो जबाव मिला कि कुछ खास नहीं लगा, बदबु सी तो नहीं आ रही थी लेकिन कुछ साफ सा लग रहा था, मैनें उस से कहा कि वह कुछ कुछ देर बाद जा कर हनुमान चालीसा का दोबारा चला दिया करें। वह बोली कि जैसा तुम कहो। मैनें उस से कहा कि हमारें पास ज्यादा ऑप्सनस् नहीं है इस लिये जो समझ आ रहा है वही कर रहे है।
 
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Update 11

हनुमान जी तो ऐसी शक्तियों से रक्षा करने वालें मानें जाते है शायद उन के नाम का उच्चारण ही हमारी बाधा को दूर कर दे। उस ने कुछ नहीं कहा। नाश्ते के बाद मैं तो काम में उलझ गया और वह टीवी देखने में लग गयी। 3 बजे के बाद जब काम खत्म करके कमरें से बाहर आया तो देखा कि वह ड्राइगरुम में नहीं थी, किचन में गया तो वहां पर खाना बना रही थी, मुझे देख कर बोली कि मैनें सोचा कि तुम देर में खाते हो तो मैं देर में ही बनाती हूँ ताकि तुम खाना गरम खा सकों।

उस की यह बात सुन कर मुझे अपने अंदर बहुत शर्म महसुस हुई की मैं इस के साथ जबरदस्ती करता हूँ और एक यह है कि मेरे लिये अभी तक भुखी रह कर खाना बना रही है। मुझे लगा कि मुझे अपने व्यवहार के लिये वाणी से माफी मांगनी चाहिये। वह खाना ले कर ड्राइगरुम में आ गयी और हम दोनों खाना खाने लगे। दोनों चुप थे, क्या बात करें यह पता ही नहीं था। मैनें ही मौन तोड़ा और पुछा कि कितनी बार हनुमान चालीसा चलाया तो वह बोली कि चार बार तो चला चुकी हूँ। इस के बाद फिर मौन पसर गया। खाने के बाद हम दोनों सामान उठा कर किचन में रख आये।

फिर से ड्राइगरुम में आ कर बैठ गये। वाणी सोफे पर बैठी थी, मैं उठ कर उस के पास गया और उस के पेरों के पास जमीन पर बैठ कर बोला कि वाणी मैं अपने रात के व्यवहार के लिये बहुत शर्मिदा हूँ और तुम से माफी चाहता हूँ, मैनें कल जो भी किया, कैसे भी किया, बहुत गलत था, उस से तुम्हें जो मानसिक और शारीरिक कष्ट पहुंचा है उस के लिये मैं क्षमा चाहता हूँ, मैं कोई बहाना नहीं करना चाहता, जो गलत था वह गलत है, तुम मेरी शरण में थी और मैनें उस का गलत फायदा उठा कर जबरदस्ती की उस की जो सजा तुम सही समझों मुझे दे सकती हो।

अगर परिस्थिति ऐसी ना होती तो मैं तुम्हें अपना चेहरा भी नहीं दिखाता। मेरी यह बात सुन कर वाणी कुछ क्षण अवाक् सी बैठी रही, फिर बोली कि मुझे पता है तुम ऐसे नहीं हो, जो कुछ हुआ वो गलत था लेकिन उस के लिये अब मुझे शर्मिदा मत करों। तुम नें अपनी गलती मान ली है बात खत्म, लेकिन तुम ही मेरा सहारा हो तो अपने आप को इस बात के लिये कोसना बंद कर दो। मैरें साथ तो कई दिनों से गलत हो रहा है, कल की घटना तो उस का परिणाम ही हो सकती है। सब कुछ भुल जायो और हम दोनों को उस चीज से बचाने का कोई तरीका सोचों।

मैनें कहा कि दिमाग ने काम करना बंद कर दिया है यही समझ आ रहा है कि हनुमान जी ही हमें इस विपदा से बाहर निकालेगें। कहते है कि अगर हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ किया जाये तो हर बाधा दूर हो जाती है। हम विधि-विधान तो नहीं जानते लेकिन उन का नाम तो ले सकते है। वह कुछ नहीं बोली। इसी बीच मुझे याद आया कि एक बार किसी पंड़ित जी से मिला था जो बाहरी बाधा दूर करते थे। शायद उन का नंबर हो, यह सोच कर फोन खंगालने लगा।

किस्मत की बात थी उन का नंबर मिल गया। उन का नंबर मिलाया तो उन्होनें ही फोन उठाया अपना परिचय दिया तो वह पहचान गये। उन को समस्या बतायी तो वह बोले कि कोई साया आपके मकान के आसपास रहता होगा, रात को तेल लगा कर जाने के कारण आकर्षित हो कर आ गया है, पता नहीं कितना शक्तिशाली है,लेकिन कुछ उपाय बता रहा हूँ इन को कर के देखों, फिर वह बोले कि एक साफ गिलास में पानी लो, मैनें वाणी से कह कर पानी मगायां तो उन्होनें कहा कि फोन की आवाज फुल करके फोन के स्पीकर को पानी के गिलास के ऊपर करीब रखो, मैनें ऐसा ही किया, फिर वह कोई मंत्र का पाठ करने लगे। जब पाठ खत्म हो गया तो बोले की इस पानी को किसी बड़े बरतन में पानी ले कर उस में मिला दो और एक मंत्र लिख लो इस का जाप करते हुये अभी जा कर सारे घर में छिड़क दो अपने घर में भी छिड़क देना, तथा बाद में अपने ऊपर भी छिड़क देना, भगवान् भली करेगें। यह कह कर उन्होनें फोन काट दिया।

मैनें वाणी को सारी बात बतायी और उस से बरतन में पानी लाने को कहा, वह बरतन में पानी ले कर आ गयी। मैनें गिलास का पानी उस में मिला दिया और हम दोनों वाणी के घर की तरफ चल दिये। उस के घर के दरवाजा खोल कर अंदर गये और सारे घर में जल छिड़कना शुरु कर दिया, जल छिड़कते ही बड़ी बदबु आनी शुरु हो गयी, लेकिन हम नें जल छिड़कना जारी रखा। वहां जल छिड़क कर हम दोनों ताला लगा कर उस के दरवाजे पर भी जल छिड़क कर अपने घर आ गये, यहां भी मैनें सारे घर में जल छिड़का, यहां ऐसा कुछ खास हमें नहीं लगा।

इसके बाद में मैनें वाणी पर अच्छी तरह से जल छिड़का और सबसे बाद में अपने पर वह जल छिड़का तो मुझे लगा कि मैं हल्का सा हो गया हूँ। मैनें हाथ जोड़ कर प्रार्थना कि की भगवान हम पर कृपा करों। यह काम करते करते शाम घिर आयी थी। मन तो कह रहा था कि वाणी के घर जा कर देखे लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी। पंड़ित जी को फोन करके बताया कि जैसा कहा था वैसा ही किया है तो वह बोले कि गिलास पानी ले लो, फिर से उन्होनें उसे मंत्र से अभिमंत्रित कर दिया और कहा कि रात में अगर कुछ लगे तो उस पर इसे छिड़क देना सारा मत खर्च करना सुबह तक के लिये बचा कर रखना, केवल कुछ बुंद ही डालनी है। मैनें उन्हें धन्यवाद दिया तो वह बोले कि मेरा तो काम ही ऐसे पीडि़तों की सहायता करना ही है।

हम दोनों की भुख मर सी गयी थी लेकिन वाणी ने दाल-चावल बना लिये थे सो हम दोनों नें उन्हें खा लिया। आज हमें नींद नहीं आनी थी, जो उपाय हमने किया था उस की प्रतिक्रिया भी देखनी थी। हमें नहीं पता था कि क्या होगा? हम तो बस प्रार्थना कर सकते थे। रात गहराती रही, हम इंतजार में थे कि कब कुछ हो जाये लेकिन एक बार बड़ी गंदी बदबु का आभास तो हुआ लेकिन जल्दी ही वह उड़ गयी। नींद भरी आंखों से हम ने सारी रात काटी, लेकिन रात को कुछ नहीं हुआ। सुबह उठ कर जल हाथ में ले कर हम दोनों वाणी के घर में घुसे तो वहां बड़ी बदबु आ रही थी लेकिन हमारे जल छिड़कते ही वह बदबु खत्म हो गयी, लगा कि घर में ताजी हवा चल रही है। माहौल खुशनुमा सा हो गया। वाणी बोली कि तुम यही बैठों में नहा कर पूजा कर लेती हूँ। मैं वही बैठ गया वह नहाने चली गयी, नहा कर आयी तो पूजा करने लगी और फिर सारे घर में घुप बत्ती करके बोली कि चलो तुम्हारें यहां चलते है, कहीं वहां ना चली गयी हो। मेरे मन में भी यही आशंका थी। अपने घर में आ कर मैनें जल छिड़कना शुरु किया तो हल्की सी बदबु का अहसास सा हुआ लेकिन फिर वह भी गायब हो गयी। जल छिड़क कर कुछ जल मैनें अपने और वाणी पर भी छिड़क दिया। इस के बाद मैं नहाने चला गया और नहाने के बाद पूजा करने के लिये बैठ गया। पूजा करने के बाद घुप-बत्ती करने के बाद माहौल हल्का हो गया। वाणी बोली कि क्या खाना है नाश्तें में आज में तुम से बड़ी खुश हुं।

मैनें भी मजाक में कहा कि आलु के पराठें पेश किये जाये तो वह बोली कि उस के लिये कुछ समय इंतजार करों। तुम्हारी इच्छा पुरी होगी। यह कह कर वह किचन में चली गयी। मुझे भी लगा कि माहौल वाकई हल्का हो गया है। कुछ देर बाद वह आलु के पराठें ले कर आ गयी । हम दोनों पराठें खाने लगे। वह बोली कि पंड़ित जी की याद कैसे आयी? मैनें कहा कि जब सकंट आता है तो उस का हल भी मिलता है। इन से किसी ने मिलवाया था, मैनें नंबर भी लिया था, लेकिन याद नहीं आ रहा था।

आज अचानक याद आया और उन्होनें सहायता भी की, ऐसा होना भी ईश्वर की मर्जी ही कही जा सकती है। आशा करे कि यह बाधा अब दूर हो गयी हो। वह बोली कि ऐसा ही हो। हम दोनों नाश्तें के बाद फिर से वाणी के घर का चक्कर लगा कर आये, वहां अब की बार मुझे कोई नेगेटिव एनर्जी महसुस नहीं हुई। हम कुछ देर वहां पर रहे और फिर वापस आ गये। शंका फिर भी मन थी लेकिन मन में कुछ तो ढाढस बधा ही था। दोपहर के खाने के बाद कुछ देर आराम करने के बाद फिर वाणी के घर का चक्कर लगा कर आये। कुछ बदलाव नहीं मिला। कुछ चैन पड़ा। शाम की चाय पर हम दोनों नें तय किया की अगले दो दिन तक हम दोनों अलग-अलग सोयेगें, वाणी कमरें में और मैं ड्राइगरुम में।
 
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Update 12

रात को ऐसा ही हुआ हम दोनों काफी देर तक गप्प मारते रहे फिर सोने चले गये। रात बिना किसी परेशानी के गुजर गयी। सुबह वाणी के घर में भी कुछ नहीं मिला या लगा। वाणी ने पूजा की और अन्य कार्य किये। अभी वह वहां अकेले रुकने के लिये तैयार नहीं थी मैं भी ऐसा नहीं चाहता था। दूसरा दिन भी आराम से गुजर गया, रात भी आयी और चली गयी। सुबह वाणी बोली कि आज क्या करें? मैनें कहा कि जैसा कर रहे है वैसा ही करेगें। कई दिन गुजर गये, कुछ खराब नहीं हुआ। हम दोनों भी एक दूसरें से दूर ही रहे।

लॉकडाउन और बढ़ गया था। हफ्ते बाद एक रात वाणी नें रात अपने घर में अकेले गुजारी। रात में कुछ नहीं हुआ, वह रात में कई बार जगी और पुरे घर में घुम कर देखा, उसे कुछ नहीं दिखा। सुबह उस ने मुझे बताया कि वह अभी भी अकेले नहीं रह सकती है, इस बार अगर कुछ हुआ तो मैं मरी ही मिलुंगी। मैं उस के जीवन के साथ कोई खतरा उठाना नहीं चाहता था सो यह तय हुआ कि वह मेरे साथ ही रहेगी। जब उस के पति आयेगें तब सोचेगें उन्हें क्या बताना है। मैं भी देखुंगा कि अपनी पत्नी को क्या बताऊं। मेरी बात से उस के चेहरे पर संतोष नजर आया।

समय ऐसे ही गुजर रहा था, लॉकडाउन खत्म ही नहीं हो रहा था। एक महीना गुजर चुका था। हम दोनों के बीच अच्छा सामजस्य बन गया था। हम दोनों जानते थे कि यह संबंध तभी तक है जब तक किसी का पति या पत्नी वापस नहीं आता या आती। संकट के समय बने संबंध वैसे तो गहरे और लम्बें चलते है लेकिन हमारा संबंध लम्बा नहीं चलने वाला था क्योकि वह दो परिवारों को तोड़ सकता था सो हम दोनों समय का सदुपयोग कर रहे थे सेक्स का मजा ले रहे थे तथा एक दूसरें की संकट के समय रक्षा कर रहे थे। मेरी कोशिश थी कि हम दोनों के बीच कोई गहरा संबंध ना बने लेकिन अपना चाहा कब होता है? हम दोनों के बीच संबंध गहरा होता जा रहा था, उस शक्ति के कारण हम दोनों डरें हुये थे।

लेकिन फिर भी उस का सामना कर रहें थे। लग रहा था कि उस शक्ति नें वाणी का पीछा छोड़ दिया था लेकिन वह अभी भी अपने घर में अकेली रहने को मानसिक तौर पर तैयार नहीं थी, मैं भी नहीं चाहता था कि वह दूबारा फिर उसी अनुभव से गुजरें। दोनों साथ साथ सोते थे। संभोग भी करते थे। दिन में दोनों अपने घरों में रहने की कोशिश करते थे। दोनों के मन में एक दूसरें के प्रति प्रेम उत्पन्न हो चुका था लेकिन दोनों में से कोई भी इसे व्यक्त नहीं करना चाहता था। उसे अपनी मजबुरी पता थी।

तीन महीने बाद लॉकडाउन में छुट मिलनी शुरु हुई तो सबसे पहले वाणी के पति बहुत परेशानी के साथ वापस आ पाये। उनको 15 दिनों तक क्वारनटायिन रहना पड़ा। वाणी का मुझ से मिलना कम हो गया, केवल सुबह दूध लाने के समय ही उस से मिलना हो पाता था। उस समय भी उस के चेहरे पर परिचय के भाव परिलक्षित नहीं होते थे। मैं भी अपरिचितों की तरह ही बरताव करता था। कुछ समय के बाद मेरी पत्नी भी वापस आ गयी, उस के आने के बाद मैं बड़ा खुश था, उस को लेकर मेरी चिन्ता उस के सामने रहने से कम हो गयी थी। वह भी इतने दिनों तक मेरे से दूर रहने के कारण मुझ से ज्यादा करीब हो गयी थी।

मैनें उसे वाणी और उस के घर में हुई घटना के बारें में कुछ नहीं बताया था। वाणी और मैनें तय किया था कि जब तक जरुरत ना हो हम इस बात को किसी को नहीं बतायेगें। हम उसी का पालन कर रहे थे। मेरी और मेरी पत्नी की सेक्स लाइफ पहले ही काफी बढ़िया थी, एक-दूसरे से दूर रहने के बाद अब वह और जोरदार हो गयी थी।

कुछ दिनों बाद मैनें वह घर छोड़ दिया, मेरी तरक्की हो गयी थी और मैं अपने लिये बड़ा घर लेना चाहता था, इस लिये मौका मिलते ही वहां से निकल गया। लॉकडाउन में घटी घटना से मुझे अभी भी डर लगता था, उस समय तो पता नहीं मुझ में कहां से हिम्मत आ गयी थी मुझे पता नहीं चला। घर बदलतें समय मेरी मुलाकात वाणी से नहीं हुई। बाद में पत्नी नें बताया कि वह अपने नये घर का पता उन को दे कर आयी थी कि कभी कोई पत्र वगैरहा आये तो हमें वह संपर्क कर सके। यह जान कर मुझे अच्छा लगा कि वाणी को पता है कि मैं कहां हूँ। मैं यहां आ कर अपने जीवन में व्यस्त था। अतीत की बातें मन की गहराई में दब गयी थी।

एक दिन अकेला किसी मॉल में घुम रहा था, तभी किसी नें पीछे से मेरा नाम पुकारा, उस आवाज को मैं भुल नहीं सकता था। यह वाणी की आवाज थी, वह लपकती हुई आ रही थी। उस के साथ भी कोई नहीं था। मेरे पास आ कर वह बोली कि कैसे है? मैनें नमस्कार करके कहा कि सही हूं आप बताये कैसी है? वह बोली कि मुझे देख कर कैसा लग रहा है? तो मैं बोला कि सही लग रही हो।

यह सुन कर वह बोली कि हम नें भी वह मकान छोड़ दिया है। नयी जगह आ गये है। बड़ा घर लिया है। अपना ही खरीद लिया है। सब सही चल रहा है। मैनें पुछा कि साहब कहाँ है तो वह बोली कि साहब तो टूर पर है। तुम अकेले कैसे हो? मैनें उसे बताया कि मैडम किसी शादी में गयी है। वह बोली कि चलों कॉफी पीते है। हम दोनों कॉफी हाउस में आ कर बैठ गये।

मेज पर आमने सामने बैठे एक दूसरे को देखते रहे। वाणी बोली कि कुछ बोलते क्यों नही? मैं उसे देखता रहा और बोला कि क्या बोलु? क्या सुनना चाहती हो। वह बोली कि जो सुनना चाहती हूँ वह तुम कह नहीं सकते। यह मुझे पता है इस लिये ज्यादा की चाहत नहीं है। लेकिन चुप तो मत रहो। मैं हंस दिया और बोला कि यार उन दिनों मैं ही बोलता था, अब तुम्हारी बारी है तुम बताओं क्या चल रहा है।

वह बोली यह हुई ना कोई बात। वाणी बोली कि आज तुम से एक बात कहना चाहती हूँ बुरा मत मानना, मैनें कहा कि अब क्या बुरा मानना। वह बोली कि तुम नें मुझे दूसरा जीवन दिया है और मैं इतनी अभागी हूँ कि अपने जीवन दाता को धन्यवाद भी नहीं दे सकती। मैं बोला अब यह क्या बात हूई? वह बोली कि तुम नहीं समझोगें, इन दिनों खाली समय में मैनें यह समझा है कि उन दिनों तुम नें अपना सब कुछ दांव पर लगा कि मुझ अजनबी के लिये इतना सब कुछ किया, तुम्हारा मेरा कुछ ना कुछ संबंध तो है।

उस की बात सुन कर मैनें मुस्करा कर कहा कि अब तुम बड़ी-बड़ी बातें करने लगी हो, यह बदलाव आया है। वह बोली बात को घुमाओं मत सीधा जबाव दो।मैनें कहा कि हमने पहले ही तय किया था कि इस सवाल का जबाव कभी नहीं पुछेगें। आज क्या जरुरत पड़ गयी? वह बोली कि तुम से दूबारा मिलना नहीं हुआ, तुम्हारी पत्नी ने पता तो बता दिया लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हुई मिलने की, लेकिन भाग्य नें आज फिर मिला दिया है।

तुम्हें नहीं लगता कि कोई हमें एक साथ करना चाहता है। मैनें उसे ध्यान से देखा और फिर कहा कि बड़ी खतरनाक बातें कर रही हो। वह बोली कि बात सही है या नहीं है यह बताओं? मैनें कहा कि तुम्हारी बात सही है, लेकिन और सारी बातें इस से भी ज्यादा सही हैं। वह यह सुन कर चुप रही और कुछ सोच कर बोली कि कुछ मागूं तो मिलेगा। मैनें उसे देख कर कहा कि उसे इतनी छुट तो है ही। वह बोली कि एक दिन मेरे साथ बिताओं। मैनें कहा कि जानबुझ कर खतरा मौल क्यों ले रही हो।

वह बोली कि इस पर बाद में बात करतें है। तब तक कॉफी भी आ गयी थी। हम दोनों चुपचाप कॉफी का सिप लेते रहे। कॉफी खत्म होने के बाद बाहर आ गये। बाहर घुमते में उस ने पुछा कि मैनें कुछ गलत तो नहीं मांगा? मैनें कहा कि कहाँ चलना है तो वह बोली कि तुम्हारें घर चल सकते है? मैनें कहा कि हां यही सही रहेगा। तुम्हारें घर जाना सही नहीं है और किसी होटल में मैं नहीं जाना चाहता। वह बोली कि चलों इसी बहाने तुम्हारा घर भी देख लुगी, फिर पता नहीं कब मिलो।

मैनें उसे साथ में लिया और अपने घर के लिये चल दिया। हमारी कालोनी अभी नयी बसी थी सो ज्यादा आबादी नहीं थी। इस लिये यहां किसी का आना सुरक्षित था। घर में जा कर कार अंदर खड़ी कर दी फिर वाणी को लेकर घर के अंदर आ गया। घर देखकर वह खुश हो गयी और बोली कि पुराने वाले से तो बहुत बड़ा है, मैनें उसे बताया कि वह बहुत छोटा था सो जैसे ही मौका मिला बड़ा घर ले लिया, उस ने बताया कि उन का नया घर भी पहले वाले से बड़ा है। मैनें उस से पुछा कि क्या पियेगी? वह बोली कि तुम बताओं क्या पिला सकते हो? मैनें शरारत से पुछा कि चुनौती दे रही हो क्या? तो जबाव मिला कि तुम कितने बदमाश हो मुझ से ज्यादा कौन जानता है, मैं कुछ हार्ड की बात कर रही थी, चाय तो तुम्हारें साथ काफी बार पी है, इस लिये कुछ अलग पीना चाहती हूं।

मैनें कहा कि ऐसा कहो ना, बताओं क्या पीना है। स्काच, व्हिस्की या वोदका वह बोली कि मैं तो बियर की सोच रही थी। मैनें कहा कि बियर भी है, चलों उसी से शुरुआत करते है, यह कह कर मैं फ्रीज से बियर की ठंड़ी बोतल निकाल कर लाया और दो गिलासों में डाल कर एक गिलास उस को दे दिया। हम दोनों ने चियर्स करके पीना शुरु कर दिया। दो बोतल जब खत्म हो गयी तो मैं बोला कि अब कुछ और पीते है यह कह कर मैनें दो पैग स्काच के बनाये और नमकीन के साथ दोनों सिप लेने लगे। हम दोनों पर अब नशा चढ़ गया था। मैनें उस से कहा कि नशें के बाद क्या करोगी तो वह बोली कि वही जो किया करतें थे।

उस के इरादें साफ थे। वह उठी और मेरे से चिपक गयी और उस के होठं मेरे होठों से चिपक गये। हम दोनों ऐसे एक दूसरें को चुम रहे थे मानों जमाने के बिछुड़ें प्रेमी मिले हो। प्रेमी तो हम थे लेकिन साफ-साफ मानते नहीं थे। दोनों की जीभ एक दूसरें के मुंह में अठखेलियां करती रही। जब इस से थक गये तो एक-दूसरें के चेहरे को चुमते रहें। चेहरे के बाद गरदन और फिर छाती का नंबर था।

वह साड़ी पहने थी सो उस की साड़ी उतर गयी, अब वह ब्लाउज और पेटीकोट में मेरे सामने थी। नशें के कारण हम दोनों झुम से रहे थे। फिर मैनें उस का ब्लाउज उतार दिया और उस के बाद उसकी ब्रा का नंबर आया। उस के उरोज थोड़ें ज्यादा भर गये थे। उन के निप्पलों का स्वाद मेरे होठों को मालुम था सो वह अपनी प्यारी चीज का चखने में लग गये। इस से वाणी की सिसकियां निकलने लगी।

मेरे हाथ उस के उरोजों को जोर जोर से मसल रहे थे। वह आहहहहहहहहहह उईईईईईईईईई उहहहहहहहहहह कर रही थी लेकिन मेरी उत्तेजना उन को सुन कर बढ़ जा रही थी।

मेरी हथेली में उस के उरोज समा नहीं रहे थे यह देख कर वह बोली कि इन का साइज बढ़ गया है। तुम ने ही किया है। उस दौरान वजन तो नहीं बढ़ा लेकिन इन का साइज बढ़ गया। मेरे पति को तो यह महसुस नहीं हुआ है लेकिन तुम ने आज महसुस कर लिया होगा। मैनें सर हिलाया।

उस की कमर उतनी ही पतली थी, सपाट थी नाभी को चुम कर मैं नीचे बढ़ा तो उस ने मेरा सिर पकड़ लिया और उसे उठा कर अपने मुह से सटा लिया और चुमने लगी। मैनें हाथ डाल कर पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसे नीचे गिरा दिया। अब मेरा हाथ उस की पेंटी के ऊपर घुम रहा था। मैनें हाथ पेंटी में घुसेड़ दिया और फिर योनि के अंदर अपनी ऊंगली डाल दी, और उसे अंदर बाहर करना शुरु कर लिया इस दौरान मुझे उस का जीस्पाट मिल गया और मैं उसे सहलाकर वाणी को उत्तेजित करने लगा थोड़ी देर बाद वाणी की बांहें मेरी गरदन पर कस गयी और उस के पांव आपस में कस गये। इस का मतलब था कि वह स्खलित हो गयी थी।

उस की आंखें बंद थी और उस ने मेरा चेहरा पास कर के उस को गहरे चुम्बनों से ढ़क दिया। उस की जांघों के मध्य मेरा हाथ अपना काम करता रहा। कुछ देर बाद मैनें उसे पेंटी से बाहर कर लिया। पेंटी भीग गयी थी। अब उसे उतारने का मौका था सो उसे नीचे कर के उतार दिया इस कारण से मैं झुक कर उस के पैरों की तरफ हुआ तो वाणी नें मेरे पैरों को अपने ऊपर कर के मेरी जींस को खोल कर नीचे से ब्रीफ के अंदर से लिंग को निकाल कर मुह में ले लिया।

अब मेरे पास को चारा नहीं था मैं भी 69 की मुद्रा में आ कर उस की योनि के रस का रसास्वादन करने लगा। उस की योनि के होठों को अलग करके मेरी जीभ उस के अंदर के रस को चाटने लगी। वाणी अभी तो स्खलित हुई थी सो उस की योनि पानी से भरी थी। उस पर मेरी जीभ की बदमाशियों नें उस को कराहने को मजबुर कर दिया था। उस ने भी मेरे लिंग को पुरा निगल कर उसे चुस कर मुझे कराहने को मजबुर किया।

हम दोनों कुछ देर तक इस का मजा लेते रहे फिर जब मैं उस के मुह में स्खलित हुआ तो उस ने लिंग को पुरी तरह से चाट कर साफ कर दिया लेकिन मुझे अपनी गिरफ्त से मुक्त कर दिया।

मैनें उठ कर उसे उल्टा किया और उस की पीठ को चुमना शुरु किया फिर मेरी जीभ उस की ऊचाईयों की गहराई में उस की गुदा को चाटने लगी। जीभ के बाद मैनें अपना अगुंठा उस की गुदा में डाल दिया, उसे यह अच्छा लगा, अगुठें के बाद ऊगंली डाल कर उसे अंदर बाहर किया वह गुदा मैथुन के लिये तैयार थी, चिकनाई की आवश्यकता आज नही थी, लेकिन मुझे लगा कि वह आज पीछे से करना नहीं चाहती थी। उस ने करवट बदल कर मेरा मजा खत्म कर दिया। उस की बाहें मेरी कमीज ऊतारने में लग गयी मैनें उस की सहायता की और अपने कपड़ें उतार दिये। इस के बाद रुकने का कोई कारण नहीं था सो मैं उस की जांघों के मध्य बैठ गया और अपने फुले लिंग को उस की योनि के मुह पर रख का धक्का दिया, पहली बार में ही लिंग आधे से ज्यादा अंदर चला गया, बाकी उस ने कुल्हें उछाल कर अंदर कर लिया।

हम दोनों जोर जोर से धक्कें लगा रहे थे, कुछ तो शराब का नशा कुछ मिलन का नशा संभोग देर तक चलने वाला था।

कुछ समय बाद वह मेरे ऊपर थी और अपनी कमर हिला कर कुल्हों के अंदर लिंग को समा रही थी। जब वह थक गयी तो मैं फिर से उस के ऊपर आ गया और हम दोनों जोर जोर से धक्कें लगाने लगे। कोई आधा घंटा बीत गया था लेकिन संभोग खत्म नही हो रहा था। मेरा शरीर गर्मी से जल रहा था। फिर ज्वालामुखी फट गया और मैं वाणी के ऊपर गिर गया, उस के पांवों और बाहों नें मुझे कस कर जकड़ लिया।

काफी देर तक हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे फिर उस ने अपना कसाव कम किया और मैं उस के ऊपर से उतर कर उस की बगल में लेट गया। वह मेरी तरफ मुड़ी और बोली कि आज कोई शरारत मत करना। जो कुछ करना है आगे से करों। मैनें उस से पुछा कि कुछ करने की ताकत बची है? तो वह बोली कि देखते है। यह कह कर वह मेरे लिंग से खेलने लगी जो थक कर पस्त पड़ा था।

मैनें उस से कहा कि इसे अभी समय लगेगा तो वह बोली कि मैं इसे अच्छी तरह से जानती हूँ यह अपनी मालकिन की बात मान कर अभी तैयार हो जायेगा। उसकी बात सही निकली कुछ देर बाद ही मेरा लिंग फिर से तैयार था, हम दोनों फिर से उसी पुरातन खेल में लग गये जिसे अभी खेल चुके थे लेकिन मन में संतोष नहीं था। इस बार बहुत समय लगा मेरी कमर दर्द कर गयी लेकिन स्खलन हो ही नहीं रहा था नीचे से वाणी भी कराह रही थी लेकिन कुछ करा नहीं जा सकता था।

कुछ देर रुक कर मैनें उस की टांगें अपने कंधों पर रख कर उस की योनि में लिंग डाला इस से उस की योनि बहुत कस गयी थी, कसाव बढ़ गया था, उसे दर्द तो हो रहा था लेकिन वह कुछ कह नहीं रही थी। कोई पांच मिनट बाद तुफान उतर गया और मैं उस के ऊपर लेट गया, वह मुझे नीचे उतरने नही दे रही थी। कुछ देर बाद उस नें मुझे अपने उपर से नीचे उतरने दिया।

आज तो मेरा लिंग भी दर्द से भर गया था। सुन्न सा हो गया था। उस ने कुछ देर बाद उठ कर मुझे चुमा और बोली कि अब मुझे जाना चाहिये। बताओं कैसा रहा यह मिलन? मैनें कहा कि हमारा तो हर मिलन जोरदार होता है। वह बोली कि पता नहीं अब यह मिलन हो पाये या नहीं लेकिन देखते है। यह कह कर वह बाथरुम गयी और वहां से आ कर कपड़ें पहन कर तैयार हो गयी। जब वह चलने लगी तो बोली कि मुझ से मिलने की कोशिश मत करना ना मैं करुगी, अगर किस्मत चाहेगी तभी हम मिलेगे। मैं कुछ कह पाता इस से पहले वह दरवाजा खोल कर बाहर निकल गयी। मैं यह सोचता रहा कि मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा? मैनें अपने को चुटकी काट कर पक्का किया की यह कोई सपना नहीं था।

वह असल में यहां थी, बिस्तर उस की गवाही दे रहा था, चद्दर पर बड़े बड़े दाग लगे थें। मेरी जांघें वीर्य और उस की योनि द्रव से भीगी हुई थी। मुझे नशा सा हो रहा था सो दरवाजा बंद करके बेड पर आ कर लेट गया। ना जाने कब सो गया।

शाम को जब नींद खुली तो शाम हो चुकी थी। अंधेरा घिर आया था मैं थका सा महसुस कर रहा था। बाथरुम में जा कर शरीर को साफ किया और कपड़ें पहन लिये। चाय बना कर पीने लगा तभी फोन बजा, उठाया तो दूसरी तरफ से वही थी बोली कि सपना नहीं था, लेकिन सचाई मानने की हिम्मत किसी में नहीं है इस लिये आराम करो। मेरा हाल बुरा है, गोली लेकर सोती हूँ। यह कह कर फोन काट दिया।

मैं चाय पीते पीते सोचता रहा कि वाणी मेरे जीवन में ऐसे क्यों आती है? इस का कोई जबाव मुझे नहीं मिला तो मैनें इस बारें में सोचना बंद कर दिया। चाय खत्म करके टीवी खोल कर बैठ गया।
 

sunoanuj

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Update 6

उन की जांघों का जोड़ मेरे मुह के सामने था। मैनें हाथों से उन के कुल्हों को अपने चेहरे की तरफ कर के योनि पर अपनी जीभ लगा दी। अब में आराम से उन की योनि को चाट सकता था, यही करने का मेरा इरादा था सो मेरी जीभ नें योनि के अंदर प्रवेश किया और उस के कसैले रस को चखना शुरु कर दिया। इस के कारण वाणी नें उत्तेजना के कारण कांपना शुरु कर दिया था। जैसे-जैसे में योनि को चख रहा था वैसे-वैस उन की कंपकंपी बढ़ती जा रही थी। मेरे दोनों हाथ उन के उरोजों को मसल रहे थे। उत्तेजना के कारण वह हिल रही थी लेकिन मेरे मुह से हट नहीं रही थी। उन्हें भी इस में आनंद आ रहा था। मैनें दोनों हाथों को उरोजों से हटा कर उन के चुतड़ो को पकड़ कर अपने चेहरें से चिपका लिया।

उन की योनि को होठों से चाटने की मेरी क्रिया जारी रही, कुछ देर बाद मैनें उन्हें ऊपर से उठा कर अपनी बगल में लिटा लिया। अब की बार में उन के ऊपर आ गया। अब वाणी के चेहरे पर मैं बैठा था मेरा लिंग उन के मुह पर टक्कर दे रहा था। कुछ देर तक तो वह ऐसे ही रही फिर वाणी ने उसे पकड़ कर अपने मुह में ले लिया, शायद पहले मन में कोई हिचक थी लेकिन एक बार मुंह में लेने के बाद उन्होनें उसे लॉलीपॉप की तरह से चुसना शुरु कर दिया अब मेरे कराहने की बारी थी। लेकिन मुझे बहुत मज़ा आ रहा था, ऐसा लग रहा था कि शायद में उन के मुह में ही ना स्खलित ना हो जाऊं लेकिन शायद यही सोच कर उन्होनें लिंग को मुंह से निकाल दिया और उसे हाथ से सहलाने लगी।

मेरी भी हालत सही नहीं थी, इस लिये मैं फिर से उन की बगल में आ गया। वह पलट कर मेरे सामने आ गयी और बोली कि यह रुप कहां छिपा रखा था? मैनें पुछा कि मुझ से मिली कितनी बार है आप? वह बोली कि रोज तो मिल रही हूँ। मैनें कहा कि धीरे-धीरे ही तो पता चलेगा नहीं तो आप को शॉक नहीं लग जायेगा। वह बोली कि मेरे को तो रोज शॉक लग ही रहे हैं। यह कह कर वह मेरे ऊपर झुक गयी और मुझें चुमने लगी होठों के बाद निप्पलों का नंबर आया फिर नाभी से होते हुऐ उन के होठ लिंग को छोड़ कर पुरी जाँघों को चुम कर वापस होठों पर आ कर ठहर गये। मैनें आलिंगन में लेकर कस कर जकड़ लिया तो बोली कि इस तरह तो दम निकल जायेगा मैं किसी काम की नहीं रहुंगी।

मैनें अपनी पकड़ कम कर दी। वाणी मेरी पकड़ से छुट गयी और बैठ गयी फिर हाथ से लिंग को योनि के मुख पर लगा कर अपनें कुल्हों को धक्का दिया, इतना लम्बा फॉरप्ले होने के बाद योनि में कोई प्रतिरोध नहीं था सो लिंग अंदर चला गया। वह धीमी गति से उसे अंदर लेती रही। जब पुरा घुस गया तो उन के धक्कें तेज हो गये। मेरी कमर को उन्हें झेलना पड़ रहा था। मैं उन के लटकें उरोजो को सहलाता रहा। कुछ देर में वह थक गयी और बगल में लेट गयी। अब मेरा नंबर था सो मैं उन के ऊपर आ गया और मैनें लिंग योनि में डाल दिया और पहली बार में ही पुरा अंदर घुस गया। शायद बच्चेदानी के मुंह पर लिंग का सुपारा लगा था इस लिये वाणी कराहने लगी। अब मेरी गति बढ़ गयी और मैं पुरे जोर से धक्के लगा रहा था। वाणी भी नीचे से अपने कुल्हों को उछाल कर मेरा साथ दे रहे थी, करीब दस मिनट तक संभोग चलता रहा फिर में उन की बगल में लेट गया।

स्खलन अभी दूर था, दूसरा आसन लगाने के लिये मैनें उन्हें बगल में लिटा लिया वाणी की पीठ मेरी तरफ थी उनके पीछे से मैनें उन के अंदर प्रवेश किया। शायद दर्द भी हुआ हो लेकिन दो तीन धक्कों के बाद वह शान्त हो गयी और कुल्हों को हिला कर लिंग को अंदर लेने लगी। मैं हाथो से उन के उरोजों को मसल रहा था फिर मैनें उन का मुह अपनी तरफ कर के चुम्बन लिया, हम दोनों गहरें चुम्बन में डुब गये दोनों के शरीर के नीचे के हिस्से अपने काम में व्यस्त थे। शरीर में गर्मी बढ़ती जा रही थी और शरीर चल सा रहा था लग रहा था कि अब इस से छुटकारा मिलना चाहिये। मैनें यही सोच कर अपना लिंग बाहर निकाल लिया। वाणी को लगा कि अब में गुदा मैथुन करुंगा यही सोच कर वह पेट के बल लेट गयी, लेकिन मैं कुछ और सोच रहा था इस लिये मैनें उन्हें पलट कर पीठ के बल किया और उन के दोनों पांव अपने कंधों पर रख कर अपने लिंग को योनि में घुसेड़ दिया इस आसन के कारण योनि कस गयी थी सो लिंग बहुत कसा हुआ अंदर बाहर हो रहा था। वाणी आहहहहहहहहहहहहह उईईईईईईईईईईईई उहहहहहहहहहहहह करने लगी थी। मुझे स्खलित होना था नहीं तो मैं ऐसे ही संभोग खत्म कर देता।

वाणी ने मेरे कंधें पर हाथ रख कर पांव नीचे करने का इशारा किया तो मैनें उन्हें नीचे कर लिया फिर पुरे जोर से शरीर को एक लाइन में कर के जोर से धक्कें लगाने शुरु कर दिये। नीचे से वाणी कराह रही थी, फिर अचानक मेरी आंखों के आगें सितारें चमचमा गये और सारा शरीर अकड़ गया। मैं स्खलित हो गया था। सारे शरीर में करंट सा दौड़ रहा था। गति धीमी जरुर हो गयी लेकिन रुकी नहीं। कुछ देर बाद वाणी का शरीर भी अकड़ गया और उस के पांव मेरी कमर पर लिपट गये यह दर्शा रहा था कि वह भी स्खलित हो गयी थी।

कुछ देर मैं धक्के लगाता रहा फिर लिंग के बाहर निकल जाने के कारण वाणी की बगल में लेट गया। हम दोनों की सांसे बड़ी तेज चल रही थी शरीर पसीने से नहाये हुये थे। मुह सुख रहे थे। तुफान उतर गया था। कुछ देर के बाद जब सांसे सही हुई तो वाणी मेरी तरफ मुड़ कर बोली कि आज तो जान निकलना ही बाकी रह गया था। मैनें उन को चुम कर कहा कि आज तो जल्दबाजी नही की। वह बोली कि यही तो मैं चाहती थी, वही सब आप ने किया है। फिर वह बोली कि पीछे से क्यों नहीं किया तो मैनें कहा कि उसे करने का मन नहीं कर रहा था सो नही किया। वह बोली कि मेरे मन का सब कुछ किया है। मैनें उन्हें अपनी बांहों में कस कर जकड़ लिया और हम दोनों कुछ देर बाद ऐसे ही सो गये।
बहुत ही शानदार और कामुक अपडेट दिया है! एक दम झकास!

ऐसे ही लिखते रहो आप! 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

sunoanuj

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रात को ऐसा ही हुआ हम दोनों काफी देर तक गप्प मारते रहे फिर सोने चले गये। रात बिना किसी परेशानी के गुजर गयी। सुबह वाणी के घर में भी कुछ नहीं मिला या लगा। वाणी ने पूजा की और अन्य कार्य किये। अभी वह वहां अकेले रुकने के लिये तैयार नहीं थी मैं भी ऐसा नहीं चाहता था। दूसरा दिन भी आराम से गुजर गया, रात भी आयी और चली गयी। सुबह वाणी बोली कि आज क्या करें? मैनें कहा कि जैसा कर रहे है वैसा ही करेगें। कई दिन गुजर गये, कुछ खराब नहीं हुआ। हम दोनों भी एक दूसरें से दूर ही रहे।

लॉकडाउन और बढ़ गया था। हफ्ते बाद एक रात वाणी नें रात अपने घर में अकेले गुजारी। रात में कुछ नहीं हुआ, वह रात में कई बार जगी और पुरे घर में घुम कर देखा, उसे कुछ नहीं दिखा। सुबह उस ने मुझे बताया कि वह अभी भी अकेले नहीं रह सकती है, इस बार अगर कुछ हुआ तो मैं मरी ही मिलुंगी। मैं उस के जीवन के साथ कोई खतरा उठाना नहीं चाहता था सो यह तय हुआ कि वह मेरे साथ ही रहेगी। जब उस के पति आयेगें तब सोचेगें उन्हें क्या बताना है। मैं भी देखुंगा कि अपनी पत्नी को क्या बताऊं। मेरी बात से उस के चेहरे पर संतोष नजर आया।

समय ऐसे ही गुजर रहा था, लॉकडाउन खत्म ही नहीं हो रहा था। एक महीना गुजर चुका था। हम दोनों के बीच अच्छा सामजस्य बन गया था। हम दोनों जानते थे कि यह संबंध तभी तक है जब तक किसी का पति या पत्नी वापस नहीं आता या आती। संकट के समय बने संबंध वैसे तो गहरे और लम्बें चलते है लेकिन हमारा संबंध लम्बा नहीं चलने वाला था क्योकि वह दो परिवारों को तोड़ सकता था सो हम दोनों समय का सदुपयोग कर रहे थे सेक्स का मजा ले रहे थे तथा एक दूसरें की संकट के समय रक्षा कर रहे थे। मेरी कोशिश थी कि हम दोनों के बीच कोई गहरा संबंध ना बने लेकिन अपना चाहा कब होता है? हम दोनों के बीच संबंध गहरा होता जा रहा था, उस शक्ति के कारण हम दोनों डरें हुये थे।

लेकिन फिर भी उस का सामना कर रहें थे। लग रहा था कि उस शक्ति नें वाणी का पीछा छोड़ दिया था लेकिन वह अभी भी अपने घर में अकेली रहने को मानसिक तौर पर तैयार नहीं थी, मैं भी नहीं चाहता था कि वह दूबारा फिर उसी अनुभव से गुजरें। दोनों साथ साथ सोते थे। संभोग भी करते थे। दिन में दोनों अपने घरों में रहने की कोशिश करते थे। दोनों के मन में एक दूसरें के प्रति प्रेम उत्पन्न हो चुका था लेकिन दोनों में से कोई भी इसे व्यक्त नहीं करना चाहता था। उसे अपनी मजबुरी पता थी।

तीन महीने बाद लॉकडाउन में छुट मिलनी शुरु हुई तो सबसे पहले वाणी के पति बहुत परेशानी के साथ वापस आ पाये। उनको 15 दिनों तक क्वारनटायिन रहना पड़ा। वाणी का मुझ से मिलना कम हो गया, केवल सुबह दूध लाने के समय ही उस से मिलना हो पाता था। उस समय भी उस के चेहरे पर परिचय के भाव परिलक्षित नहीं होते थे। मैं भी अपरिचितों की तरह ही बरताव करता था। कुछ समय के बाद मेरी पत्नी भी वापस आ गयी, उस के आने के बाद मैं बड़ा खुश था, उस को लेकर मेरी चिन्ता उस के सामने रहने से कम हो गयी थी। वह भी इतने दिनों तक मेरे से दूर रहने के कारण मुझ से ज्यादा करीब हो गयी थी।

मैनें उसे वाणी और उस के घर में हुई घटना के बारें में कुछ नहीं बताया था। वाणी और मैनें तय किया था कि जब तक जरुरत ना हो हम इस बात को किसी को नहीं बतायेगें। हम उसी का पालन कर रहे थे। मेरी और मेरी पत्नी की सेक्स लाइफ पहले ही काफी बढ़िया थी, एक-दूसरे से दूर रहने के बाद अब वह और जोरदार हो गयी थी।

कुछ दिनों बाद मैनें वह घर छोड़ दिया, मेरी तरक्की हो गयी थी और मैं अपने लिये बड़ा घर लेना चाहता था, इस लिये मौका मिलते ही वहां से निकल गया। लॉकडाउन में घटी घटना से मुझे अभी भी डर लगता था, उस समय तो पता नहीं मुझ में कहां से हिम्मत आ गयी थी मुझे पता नहीं चला। घर बदलतें समय मेरी मुलाकात वाणी से नहीं हुई। बाद में पत्नी नें बताया कि वह अपने नये घर का पता उन को दे कर आयी थी कि कभी कोई पत्र वगैरहा आये तो हमें वह संपर्क कर सके। यह जान कर मुझे अच्छा लगा कि वाणी को पता है कि मैं कहां हूँ। मैं यहां आ कर अपने जीवन में व्यस्त था। अतीत की बातें मन की गहराई में दब गयी थी।

एक दिन अकेला किसी मॉल में घुम रहा था, तभी किसी नें पीछे से मेरा नाम पुकारा, उस आवाज को मैं भुल नहीं सकता था। यह वाणी की आवाज थी, वह लपकती हुई आ रही थी। उस के साथ भी कोई नहीं था। मेरे पास आ कर वह बोली कि कैसे है? मैनें नमस्कार करके कहा कि सही हूं आप बताये कैसी है? वह बोली कि मुझे देख कर कैसा लग रहा है? तो मैं बोला कि सही लग रही हो।

यह सुन कर वह बोली कि हम नें भी वह मकान छोड़ दिया है। नयी जगह आ गये है। बड़ा घर लिया है। अपना ही खरीद लिया है। सब सही चल रहा है। मैनें पुछा कि साहब कहाँ है तो वह बोली कि साहब तो टूर पर है। तुम अकेले कैसे हो? मैनें उसे बताया कि मैडम किसी शादी में गयी है। वह बोली कि चलों कॉफी पीते है। हम दोनों कॉफी हाउस में आ कर बैठ गये।

मेज पर आमने सामने बैठे एक दूसरे को देखते रहे। वाणी बोली कि कुछ बोलते क्यों नही? मैं उसे देखता रहा और बोला कि क्या बोलु? क्या सुनना चाहती हो। वह बोली कि जो सुनना चाहती हूँ वह तुम कह नहीं सकते। यह मुझे पता है इस लिये ज्यादा की चाहत नहीं है। लेकिन चुप तो मत रहो। मैं हंस दिया और बोला कि यार उन दिनों मैं ही बोलता था, अब तुम्हारी बारी है तुम बताओं क्या चल रहा है।

वह बोली यह हुई ना कोई बात। वाणी बोली कि आज तुम से एक बात कहना चाहती हूँ बुरा मत मानना, मैनें कहा कि अब क्या बुरा मानना। वह बोली कि तुम नें मुझे दूसरा जीवन दिया है और मैं इतनी अभागी हूँ कि अपने जीवन दाता को धन्यवाद भी नहीं दे सकती। मैं बोला अब यह क्या बात हूई? वह बोली कि तुम नहीं समझोगें, इन दिनों खाली समय में मैनें यह समझा है कि उन दिनों तुम नें अपना सब कुछ दांव पर लगा कि मुझ अजनबी के लिये इतना सब कुछ किया, तुम्हारा मेरा कुछ ना कुछ संबंध तो है।

उस की बात सुन कर मैनें मुस्करा कर कहा कि अब तुम बड़ी-बड़ी बातें करने लगी हो, यह बदलाव आया है। वह बोली बात को घुमाओं मत सीधा जबाव दो।मैनें कहा कि हमने पहले ही तय किया था कि इस सवाल का जबाव कभी नहीं पुछेगें। आज क्या जरुरत पड़ गयी? वह बोली कि तुम से दूबारा मिलना नहीं हुआ, तुम्हारी पत्नी ने पता तो बता दिया लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हुई मिलने की, लेकिन भाग्य नें आज फिर मिला दिया है।

तुम्हें नहीं लगता कि कोई हमें एक साथ करना चाहता है। मैनें उसे ध्यान से देखा और फिर कहा कि बड़ी खतरनाक बातें कर रही हो। वह बोली कि बात सही है या नहीं है यह बताओं? मैनें कहा कि तुम्हारी बात सही है, लेकिन और सारी बातें इस से भी ज्यादा सही हैं। वह यह सुन कर चुप रही और कुछ सोच कर बोली कि कुछ मागूं तो मिलेगा। मैनें उसे देख कर कहा कि उसे इतनी छुट तो है ही। वह बोली कि एक दिन मेरे साथ बिताओं। मैनें कहा कि जानबुझ कर खतरा मौल क्यों ले रही हो।

वह बोली कि इस पर बाद में बात करतें है। तब तक कॉफी भी आ गयी थी। हम दोनों चुपचाप कॉफी का सिप लेते रहे। कॉफी खत्म होने के बाद बाहर आ गये। बाहर घुमते में उस ने पुछा कि मैनें कुछ गलत तो नहीं मांगा? मैनें कहा कि कहाँ चलना है तो वह बोली कि तुम्हारें घर चल सकते है? मैनें कहा कि हां यही सही रहेगा। तुम्हारें घर जाना सही नहीं है और किसी होटल में मैं नहीं जाना चाहता। वह बोली कि चलों इसी बहाने तुम्हारा घर भी देख लुगी, फिर पता नहीं कब मिलो।

मैनें उसे साथ में लिया और अपने घर के लिये चल दिया। हमारी कालोनी अभी नयी बसी थी सो ज्यादा आबादी नहीं थी। इस लिये यहां किसी का आना सुरक्षित था। घर में जा कर कार अंदर खड़ी कर दी फिर वाणी को लेकर घर के अंदर आ गया। घर देखकर वह खुश हो गयी और बोली कि पुराने वाले से तो बहुत बड़ा है, मैनें उसे बताया कि वह बहुत छोटा था सो जैसे ही मौका मिला बड़ा घर ले लिया, उस ने बताया कि उन का नया घर भी पहले वाले से बड़ा है। मैनें उस से पुछा कि क्या पियेगी? वह बोली कि तुम बताओं क्या पिला सकते हो? मैनें शरारत से पुछा कि चुनौती दे रही हो क्या? तो जबाव मिला कि तुम कितने बदमाश हो मुझ से ज्यादा कौन जानता है, मैं कुछ हार्ड की बात कर रही थी, चाय तो तुम्हारें साथ काफी बार पी है, इस लिये कुछ अलग पीना चाहती हूं।

मैनें कहा कि ऐसा कहो ना, बताओं क्या पीना है। स्काच, व्हिस्की या वोदका वह बोली कि मैं तो बियर की सोच रही थी। मैनें कहा कि बियर भी है, चलों उसी से शुरुआत करते है, यह कह कर मैं फ्रीज से बियर की ठंड़ी बोतल निकाल कर लाया और दो गिलासों में डाल कर एक गिलास उस को दे दिया। हम दोनों ने चियर्स करके पीना शुरु कर दिया। दो बोतल जब खत्म हो गयी तो मैं बोला कि अब कुछ और पीते है यह कह कर मैनें दो पैग स्काच के बनाये और नमकीन के साथ दोनों सिप लेने लगे। हम दोनों पर अब नशा चढ़ गया था। मैनें उस से कहा कि नशें के बाद क्या करोगी तो वह बोली कि वही जो किया करतें थे।

उस के इरादें साफ थे। वह उठी और मेरे से चिपक गयी और उस के होठं मेरे होठों से चिपक गये। हम दोनों ऐसे एक दूसरें को चुम रहे थे मानों जमाने के बिछुड़ें प्रेमी मिले हो। प्रेमी तो हम थे लेकिन साफ-साफ मानते नहीं थे। दोनों की जीभ एक दूसरें के मुंह में अठखेलियां करती रही। जब इस से थक गये तो एक-दूसरें के चेहरे को चुमते रहें। चेहरे के बाद गरदन और फिर छाती का नंबर था।

वह साड़ी पहने थी सो उस की साड़ी उतर गयी, अब वह ब्लाउज और पेटीकोट में मेरे सामने थी। नशें के कारण हम दोनों झुम से रहे थे। फिर मैनें उस का ब्लाउज उतार दिया और उस के बाद उसकी ब्रा का नंबर आया। उस के उरोज थोड़ें ज्यादा भर गये थे। उन के निप्पलों का स्वाद मेरे होठों को मालुम था सो वह अपनी प्यारी चीज का चखने में लग गये। इस से वाणी की सिसकियां निकलने लगी।

मेरे हाथ उस के उरोजों को जोर जोर से मसल रहे थे। वह आहहहहहहहहहह उईईईईईईईईई उहहहहहहहहहह कर रही थी लेकिन मेरी उत्तेजना उन को सुन कर बढ़ जा रही थी।

मेरी हथेली में उस के उरोज समा नहीं रहे थे यह देख कर वह बोली कि इन का साइज बढ़ गया है। तुम ने ही किया है। उस दौरान वजन तो नहीं बढ़ा लेकिन इन का साइज बढ़ गया। मेरे पति को तो यह महसुस नहीं हुआ है लेकिन तुम ने आज महसुस कर लिया होगा। मैनें सर हिलाया।

उस की कमर उतनी ही पतली थी, सपाट थी नाभी को चुम कर मैं नीचे बढ़ा तो उस ने मेरा सिर पकड़ लिया और उसे उठा कर अपने मुह से सटा लिया और चुमने लगी। मैनें हाथ डाल कर पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसे नीचे गिरा दिया। अब मेरा हाथ उस की पेंटी के ऊपर घुम रहा था। मैनें हाथ पेंटी में घुसेड़ दिया और फिर योनि के अंदर अपनी ऊंगली डाल दी, और उसे अंदर बाहर करना शुरु कर लिया इस दौरान मुझे उस का जीस्पाट मिल गया और मैं उसे सहलाकर वाणी को उत्तेजित करने लगा थोड़ी देर बाद वाणी की बांहें मेरी गरदन पर कस गयी और उस के पांव आपस में कस गये। इस का मतलब था कि वह स्खलित हो गयी थी।

उस की आंखें बंद थी और उस ने मेरा चेहरा पास कर के उस को गहरे चुम्बनों से ढ़क दिया। उस की जांघों के मध्य मेरा हाथ अपना काम करता रहा। कुछ देर बाद मैनें उसे पेंटी से बाहर कर लिया। पेंटी भीग गयी थी। अब उसे उतारने का मौका था सो उसे नीचे कर के उतार दिया इस कारण से मैं झुक कर उस के पैरों की तरफ हुआ तो वाणी नें मेरे पैरों को अपने ऊपर कर के मेरी जींस को खोल कर नीचे से ब्रीफ के अंदर से लिंग को निकाल कर मुह में ले लिया।

अब मेरे पास को चारा नहीं था मैं भी 69 की मुद्रा में आ कर उस की योनि के रस का रसास्वादन करने लगा। उस की योनि के होठों को अलग करके मेरी जीभ उस के अंदर के रस को चाटने लगी। वाणी अभी तो स्खलित हुई थी सो उस की योनि पानी से भरी थी। उस पर मेरी जीभ की बदमाशियों नें उस को कराहने को मजबुर कर दिया था। उस ने भी मेरे लिंग को पुरा निगल कर उसे चुस कर मुझे कराहने को मजबुर किया।

हम दोनों कुछ देर तक इस का मजा लेते रहे फिर जब मैं उस के मुह में स्खलित हुआ तो उस ने लिंग को पुरी तरह से चाट कर साफ कर दिया लेकिन मुझे अपनी गिरफ्त से मुक्त कर दिया।

मैनें उठ कर उसे उल्टा किया और उस की पीठ को चुमना शुरु किया फिर मेरी जीभ उस की ऊचाईयों की गहराई में उस की गुदा को चाटने लगी। जीभ के बाद मैनें अपना अगुंठा उस की गुदा में डाल दिया, उसे यह अच्छा लगा, अगुठें के बाद ऊगंली डाल कर उसे अंदर बाहर किया वह गुदा मैथुन के लिये तैयार थी, चिकनाई की आवश्यकता आज नही थी, लेकिन मुझे लगा कि वह आज पीछे से करना नहीं चाहती थी। उस ने करवट बदल कर मेरा मजा खत्म कर दिया। उस की बाहें मेरी कमीज ऊतारने में लग गयी मैनें उस की सहायता की और अपने कपड़ें उतार दिये। इस के बाद रुकने का कोई कारण नहीं था सो मैं उस की जांघों के मध्य बैठ गया और अपने फुले लिंग को उस की योनि के मुह पर रख का धक्का दिया, पहली बार में ही लिंग आधे से ज्यादा अंदर चला गया, बाकी उस ने कुल्हें उछाल कर अंदर कर लिया।

हम दोनों जोर जोर से धक्कें लगा रहे थे, कुछ तो शराब का नशा कुछ मिलन का नशा संभोग देर तक चलने वाला था।

कुछ समय बाद वह मेरे ऊपर थी और अपनी कमर हिला कर कुल्हों के अंदर लिंग को समा रही थी। जब वह थक गयी तो मैं फिर से उस के ऊपर आ गया और हम दोनों जोर जोर से धक्कें लगाने लगे। कोई आधा घंटा बीत गया था लेकिन संभोग खत्म नही हो रहा था। मेरा शरीर गर्मी से जल रहा था। फिर ज्वालामुखी फट गया और मैं वाणी के ऊपर गिर गया, उस के पांवों और बाहों नें मुझे कस कर जकड़ लिया।

काफी देर तक हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे फिर उस ने अपना कसाव कम किया और मैं उस के ऊपर से उतर कर उस की बगल में लेट गया। वह मेरी तरफ मुड़ी और बोली कि आज कोई शरारत मत करना। जो कुछ करना है आगे से करों। मैनें उस से पुछा कि कुछ करने की ताकत बची है? तो वह बोली कि देखते है। यह कह कर वह मेरे लिंग से खेलने लगी जो थक कर पस्त पड़ा था।

मैनें उस से कहा कि इसे अभी समय लगेगा तो वह बोली कि मैं इसे अच्छी तरह से जानती हूँ यह अपनी मालकिन की बात मान कर अभी तैयार हो जायेगा। उसकी बात सही निकली कुछ देर बाद ही मेरा लिंग फिर से तैयार था, हम दोनों फिर से उसी पुरातन खेल में लग गये जिसे अभी खेल चुके थे लेकिन मन में संतोष नहीं था। इस बार बहुत समय लगा मेरी कमर दर्द कर गयी लेकिन स्खलन हो ही नहीं रहा था नीचे से वाणी भी कराह रही थी लेकिन कुछ करा नहीं जा सकता था।

कुछ देर रुक कर मैनें उस की टांगें अपने कंधों पर रख कर उस की योनि में लिंग डाला इस से उस की योनि बहुत कस गयी थी, कसाव बढ़ गया था, उसे दर्द तो हो रहा था लेकिन वह कुछ कह नहीं रही थी। कोई पांच मिनट बाद तुफान उतर गया और मैं उस के ऊपर लेट गया, वह मुझे नीचे उतरने नही दे रही थी। कुछ देर बाद उस नें मुझे अपने उपर से नीचे उतरने दिया।

आज तो मेरा लिंग भी दर्द से भर गया था। सुन्न सा हो गया था। उस ने कुछ देर बाद उठ कर मुझे चुमा और बोली कि अब मुझे जाना चाहिये। बताओं कैसा रहा यह मिलन? मैनें कहा कि हमारा तो हर मिलन जोरदार होता है। वह बोली कि पता नहीं अब यह मिलन हो पाये या नहीं लेकिन देखते है। यह कह कर वह बाथरुम गयी और वहां से आ कर कपड़ें पहन कर तैयार हो गयी। जब वह चलने लगी तो बोली कि मुझ से मिलने की कोशिश मत करना ना मैं करुगी, अगर किस्मत चाहेगी तभी हम मिलेगे। मैं कुछ कह पाता इस से पहले वह दरवाजा खोल कर बाहर निकल गयी। मैं यह सोचता रहा कि मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा? मैनें अपने को चुटकी काट कर पक्का किया की यह कोई सपना नहीं था।

वह असल में यहां थी, बिस्तर उस की गवाही दे रहा था, चद्दर पर बड़े बड़े दाग लगे थें। मेरी जांघें वीर्य और उस की योनि द्रव से भीगी हुई थी। मुझे नशा सा हो रहा था सो दरवाजा बंद करके बेड पर आ कर लेट गया। ना जाने कब सो गया।

शाम को जब नींद खुली तो शाम हो चुकी थी। अंधेरा घिर आया था मैं थका सा महसुस कर रहा था। बाथरुम में जा कर शरीर को साफ किया और कपड़ें पहन लिये। चाय बना कर पीने लगा तभी फोन बजा, उठाया तो दूसरी तरफ से वही थी बोली कि सपना नहीं था, लेकिन सचाई मानने की हिम्मत किसी में नहीं है इस लिये आराम करो। मेरा हाल बुरा है, गोली लेकर सोती हूँ। यह कह कर फोन काट दिया।

मैं चाय पीते पीते सोचता रहा कि वाणी मेरे जीवन में ऐसे क्यों आती है? इस का कोई जबाव मुझे नहीं मिला तो मैनें इस बारें में सोचना बंद कर दिया। चाय खत्म करके टीवी खोल कर बैठ गया।
Bahut hee gajab likh rahe ho mitr … kahani mai suspense kya hai iska Abhi tak khulasa nahi hua hai ! 👏🏻👏🏻👏🏻
 

kamdev99008

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बहुत जबर्दस्त कहानी
 
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