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Incest वशीकरण

Adonis

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आज पिताजी के 3 दिन की साधना संपन्न हो चुकी थी
अब देखना ये था की इसका क्या फायदा मिलता है उन्हे

क्या सच में इसके बाद वो हम दोनो को अपने वश में कर पाएँगे
ये तो आने वाला कल ही बताएगा

अब आगे
**********
अगले दिन मेरा कॉलेज था,
कल रात जब पिताजी ने मेरे बूब्स को मसला था तो उसके निशान सुबह तक थे वहां
नहाने के लिए बाथरूम में जब मैने कपड़े उतारे तो मेरे गोरे बूब्स पर हल्के लाल निशान सॉफ दिखाई दे रहे थे
और उनपर उंगलिया फिराई तो वो एहसास फिर से होने लगा मुझे जो रात को हुआ था

शायद आज तक किसी से मैं ये बात कह नही पाई थी पर सिर्फ़ मेरे बूब्स को कोई मसल दे तो मैं बिना किसी मंत्र के ही वशीभूत हो जाउंगी
बेकार के आडम्बर करने की कोई ज़रूरत ही ना पड़े
इतने सेन्सिटिव है मेरे बूब्स..



पर कॉलेज भी जाना था वरना अभी अपनी योनि को रगड़ कर पूरे मज़े ले लेती
इसलिए मैं तैयार होकर दीदी के साथ कॉलेज के लिए निकल गयी
पर मेरे दिमाग़ में कल रात की सारी बातें किसी मूवी की तरह चल रही थी
पढ़ने में भी मन नही लग रहा था
दिमाग में सिर्फ़ यही चल रहा था की आज पिताजी क्या करेंगे

घर आने के बाद मैने कपड़े चेंज किए और लंच करके अपने रूम में चली गयी
आज माँ की तबीयत थोड़ी ठीक नही थी , वो दवाई लेकर अपने कमरे में सो रही थी
पिताजी अभी कही गये हुए थे
इसलिए मैं भी सो गयी कुछ देर
करीब 1 घंटे बाद घर की बेल बजी तो मैं दौड़कर दरवाजा खोलने गयी
पिताजी ही थे और उनके पीछे-2 दीदी भी आ गयी
पिताजी अकेले होते तो पता चल पाता मुझे की क्या है उनके मन में
पर दीदी के सामने शायद वो ना कर पाए

मैने उनको खाना परोस कर दिया

पर पिताजी के दिमाग़ ने वो उपाय निकाल ही लिया जिसका मुझे इंतजार था
खाना खाते हुए वो बोले : “चंदा, आज बैंक में तेरा ख़ाता खुलवाना है, अभी मेरे साथ चल ज़रा “

मैने मुस्कुरा कर हां कर दी

कपड़े चेंज करके मैं पिताजी के साथ उनकी बुलेट पर बैठकर बैंक के लिए निकल गयी
पेपर्स पहले से तैयार थे, बैंक मैनेजर भी पिताजी को पहले से जानता था
इसलिए 20 मिनट में ही हमारा काम हो गया

फिर पिताजी बोले : “चल, कुछ देर खेतो से होकर चलते है, सूरज ने आज पानी छोड़ना था खेतो में , वो भी देख लेते है”

अब मेरे दिल मे कुछ-2 होने लगा था
क्योंकि खेतों तक का रास्ता काफी लम्बा था पतली पगडंडियो से होकर निकलता था
वहां जाते हुए मैं पिताजी को जकड़कर बैठी थी
ऐसा करते हुए मेरे बूब्स कई बार उनकी पीठ से रगड़ खा गये
उनके जिस्म का एहसास मेरे बूब्स पर रात वाला असर कर रहा था
जहाँ मैं बैठी थी, वहां एक गीला धब्बा बन चूका था

खेतो से करीब 10 मिनट पहले एक टूबवेल पर पिताजी ने बाइक रोक दी और पानी पीने लगे
वहां दूर -2 तक कोई नही था
चारों तरफ हरियाली फेली हुई थी

मैं भी पानी पीने के लिए जब झुकी तो मेरे गले से झाँक रहे बूब्स को देखकर पिताजी अपनी आँखे सेंक रहे थे
मैं जब वापिस बाइक के पास आई तो पिताजी कुछ देर के लिए वहां आकर रुक गये और चारों तरफ देखने लगे की कोई और तो नही देख रहा उन्हे
मैं : “क्या हुआ पिताजी, चलना नही है क्या ?”
पिताजी ने अपनी जेब से एक लाल धागे से बँधा तांबे का सिक्का निकाला
मुझे याद आ गया की ऐसा कुछ मैने उस किताब में भी देखा था

हालाँकि मैने उसके बारे में पढ़ा नही था क्योंकि इतना टाइम नही मिल पाया था पर ऐसा कुछ सिक्के टाइप का देखा था मैने

और तभी पिताजी बोले : “चंदा…..इसे गोर से देखती रहो….आँखे गाड़ कर देखो इसे….गोर से…”
मैं उस सिक्के को गोर से देखने लगी
और इसके बाद वो 1-10 तक की गिनती गिनने लगेऔर मेरी आँखो के सामने उस सिक्के को लहराते रहे

मुझे पता तो था की वो ऐसा मुझे वश में करने के लिए कर रहे है, जैसा की उस किताब का काम था
और मेरे हिसाब से ये सिक्का और वो गिनती उसी वशीकरण को पूरा करने का तरीका था, किताब के हिसाब से

किताब और पिताजी के हिसाब से मुझे उसके बाद उनके वश में हो जाना चाहिए था
अपनी सुध बुध खो देनी चाहिए थी
पर हो ये रहा था की मैं अपने पूरे होशो हवास में थी और उन्हे आँखे फाड़े देख रही थी

मेरे दिलो दिमाग़ में उथल पुथल मच गयी
यानी जो क्रिया पिताजी ने मुझपर की थी वशीकरण की, उसने काम नही किया

इसका मतलब ये की पिताजी वो मज़े नही ले पाएँगे जो उन्होने सोचे होंगे
और उस से भी ज़्यादा
मैं उस मज़े से वंचित रह जाउंगी
नही नही
ऐसा नही हो सकता
ये वशीकरण काम करे या ना करे
मुझे तो उनके वश में होना ही है
चाहे मुझे नाटक ही क्यो ना करना पड़े

इसलिए मैं एकदम से स्थिर सी हो गयी, किसी बुत्त की तरह
जैसे किसी ने मेरे अंदर से मेरी आत्मा निकाल ली हो



पिताजी कुछ देर तक मुझे देखते रहे और फिर मेरी आँखो के सामने हाथ फेरकर देखने लगे की उनके मंत्र का असर हुआ है या नही

मैने कोई हरकत नही की
फिर वो बोले : “चंदा, अब जो मैं तुम्हे कहूँगा…वो तुम करोगी….समझी.”
मैं किसी रोबोट की तरहा बोली : “जी पिताजी, आप जो कहेंगे वो मैं करूँगी…”

ये सुनते ही पिताजी का चेहरा खिल उठा, उनकी साधना सफल हो गयी थी
उनके हिसाब से
क्योंकि ये सब तो मैं जान बूझकर कर रही थी
मैं चाहती तो अभी उन्हें उल्टा जवाब देकर सारा खेल धराशायी कर देती , पर मैंने ऐसा नहीं किया
मैं उन्हे इस बात का एहसास दिला रही थी की मैं उनके वश में आ चुकी हूँ
और उनका वशीकरण सफल हो गया है

पिताजी ने आस पास एक बार फिर से देखा, दूर - 2 तक कोई नही था
वो एकदम से मेरे करीब आए और मुझे बाहों मे भर कर मुझे अपने सीने से लगा लिया
हालाँकि आज से पहले भी मैं कई बार उनके गले लगी थी
पर ये आलिंगन अलग था
वो मेरी पीठ पर दबाव बनाकर मेरी छाती को अपने सीने से रगड़ रहे थे
उसे पीस रहे थे
मेरे निप्पल तो आपको पता ही है
ऐसी कोई भी हरकत से बिना किसी जनसभा के वो खड़े हो जाते है
और अपनी उपस्थिति दिखाने लगते है
मेरे निप्पल पिताजी के सीने में गड़ रहे थे
जो उन्होने भी महसूस किए

और फिर अचानक उन्होने मेरे चेहरे को पकड़ा और मेरी आँखो में देखकर बोले : “मुझे किस्स करो….मेरे होंठो पर…”

मैं किसी यंत्र से चलने वाली गुड़िया की भाँति उनके होंठो पर टूट पड़ी
ये वो पल था जब मैने अपनी लाइफ का पहला चुंबन किया था
उफफफफफफ्फ़
इस पल के लिए कितने समय से मैं तड़प रही थी



अक्सर सोचा करती थी की किसी को किस्स करने में कैसा फील होगा
और जब से पिताजी का ये रात वाला कार्यकर्म शुरू हुआ है, उसके बाद तो किस्स करने की ऐसी इच्छा होने लगी थी की मैं अपनी कलाई को ही किस्स करके उसकी प्रैक्टिस करती रहती थी
मोबाइल में भी जो वीडियोस देखे थे, उसमें सैक्स की शुरूवात किस्स से ही करते थे सब

और सच में
इस किस्स को करके पता चला की क्यो सबसे पहले होंठो पर ही टूट पड़ते है ये लोग
मेरा रस उनके मुँह में जा रहा था और उनका मेरे मुँह में
वो मेरे नरम रबड़ जैसे होंठो को अपने दांतो से धीरे-२ चबा रहे थे

उनके होंठो को पकड़कर मैं तब तक चूसती रही जब तक उन्होने खुद मुझे पीछे नही धकेल दिया
क्योंकि दोनो की साँसे चढ़ गयी थी वो किस्स करते-2

पिताजी भी मेरे जोश को देखकर अपनी किस्मत पर खुश हुए जा रहे थे
उनके हाथ एक कठपुतली जो लग गयी थी जो उनकी हर इच्छा को पूरी करने वाली थी

उन्होने हुक्म देकर मुझे रुकने के लिए कहा
और मैं एक आज्ञाकारी वशीकरण में फंसी लड़की की तरह उनकी बात मानकर फिर से बुत्त बनकर खड़ी हो गयी
पिताजी ने फिर से आस पास का जायज़ा लिया, कोई नही था
ये पिताजी की इतनी फट्ट क्यों रही है
मेरा तो मन कर रहा था की ये सब ऐसे ही चलता रहे
यार
कितना मज़ा आ रहा था
पर वो भी अपनी जगह सही थे
खुला इलाक़ा था वो
कोई देख लेता हम दोनो को ऐसा करते हुए तो वो किसी को मुँह दिखाने लायक नही रहते
मेरी लाइफ भी खराब हो जाती

पर जब उन्होने तसल्ली कर ली की कोई नही है तो फिर से वो मेरी तरफ देखकर बोले
“चंदा, अपना टॉप उतारो, मुझे तुम्हारे मुम्मे देखने है “

मुम्मे शब्द सुनते ही मुझे जैसे किसी ने करंट मार दिया हो
ये पिताजी मेरे बूब्स के पीछे क्यो पड़े रहते है
मुझे डर था की उन्होने मेरे निप्पल्स को एक बार छू लिया तो मैं रुक नही पाऊँगी
उन्हे कच्चा चबा जाउंगी मैं तो
और ऐसी जगह पर वो काम मैं करना नही चाहती थी
पर मजबूरी थी

मैं उनके मन में कोई शक पैदा नही करना चाहती थी
इसलिए मैने अपने टॉप के सामने की तरफ के बटन खोलने शुरू कर दिए
और उसमें से अपने बूब्स को बाहर निकाल कर उनके सामने लहरा दिया



मेरे नंगे कड़क बूब्स अपनी आँखो के सामने देखकर पिताजी की आँखे तो फटी की फटी रह गयी
और मेरे 1 इंच लंबे निप्पल्स देखकर तो उनके मुँह में पानी ही आ गया
मैने अभी तक अपना टॉप पूरा उतारा नही था
क्योंकि मुझे भी किसी के आने का डर था
उसे उतारने के बाद दोबारा पहनना थोड़ा मुश्किल था

पर जो पिताजी को चाहिए था, वो मैने उनके सामने प्रस्तुत कर दिया था
मेरे बूब्स



उनके हाथ आगे आए और उन्होने उसे थाम लिया
मेरे मुँह से एक सिसकारी निकल गयी
वो मेरे चेहरे को देखने लगे
पर मैने आँखे बंद कर ली
पिताजी अपने दोनो हाथों से मेरे बूब्स को मसलने लगे
कल रात उन्होने यही काम मेरे कपड़ो के उपर से किया था
आज वो उन्हे नंगा पकड़ कर कर रहे थे

मैं मस्ती में भरकर ज़ोर से सिसकारियाँ मारने लगी

“सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स……. अहह……… उम्म्म्मममममम……”

और ऐसा करते हुए मैं खुद आगे आई और पिताजी के होंठो पर एक बार फिर से टूट पड़ी
इस बार की किस्स पहले से ज़्यादा जोश से भरी और रसीली थी
मेरे मुँह से निकला शहद पिताजी मुँह खोलकर पीए जा रहे थे
और नीचे उनके हाथ मेरे दोनो बूब्स को मसल रहे थे
अचानक दूर से एक ट्रैक्टर के आने की आवाज़ आई

पिताजी एक दम से अलग हुए और मुझे अपने कपड़े सही करने का आदेश दिया
और फिर उन्होने मेरी आँखो मे देखते हुए वो गिनती उल्टी पढ़नी शुरू कर दी
और अंत में मेरे चेहरे पर फूँक मारी
मैं समझ गयी की ये वशीकरण को तोड़ने का टोटका है

मैने भी ऐसी एक्टिंग की जैसे मैं अभी नींद से जागी हूँ
एक पल के लिए तो मैं अवाक सी होकर इधर उधर देखती रही
जान बूझकर मैने अपने बूब्स पर हाथ रखकर उन्हे सहलाया जैसे मुझे एहसास हो गया था की कोई उन्हे दबा रहा था
पर कौन ये पता नही
ऐसे भाव थे मेरे चेहरे पर
पिताजी ये देखकर मुस्कुराये जा रहे थे

ऐसे आश्चर्य के भाव लिए हुए मैने पिताजी से पूछा : “पिताजी…..क्या हुआ…..हम अभी तक यही रुके है….कुछ हुआ था क्या अभी….”

मैं जैसे कुछ सोचने समझने की एक्टिंग करने लगी
पिताजी : “अर्रे नही….मैने तो तुझे पानी पिलाया अभी….और मैं फिर मूतने गया था वहां , शायद तेरी आँख लग गयी थी….चल कोई ना, चलते है अब….”

तब तक वो ट्रैक्टर भी हमारी बगल से होता हुआ आगे निकल गया
और हम दोनो अपने खेतो की तरफ चल दिए
पीछे बैठी मैं अपनी एक्टिंग और चालाकी पर मुस्कुरा रही थी
और आगे बैठे पिताजी आने वाली संभावनाओ को सोचकर.....
Jakkas Update Yaara

Waiting for Next ...:smile::DD::tongue:B-):confused3:
 

Afruza

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bahot bahot hi umda erotic update hai yeh
 

Ammikaladla

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Too too hot,erotic and exciting story it is!!!
 

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Gjb writing skill hai
 

Sonieee

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Hamesha ki tarah lajavab updated kahani bahut rochak hone wali h .
 
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Ek number

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आज पिताजी के 3 दिन की साधना संपन्न हो चुकी थी
अब देखना ये था की इसका क्या फायदा मिलता है उन्हे

क्या सच में इसके बाद वो हम दोनो को अपने वश में कर पाएँगे
ये तो आने वाला कल ही बताएगा

अब आगे
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अगले दिन मेरा कॉलेज था,
कल रात जब पिताजी ने मेरे बूब्स को मसला था तो उसके निशान सुबह तक थे वहां
नहाने के लिए बाथरूम में जब मैने कपड़े उतारे तो मेरे गोरे बूब्स पर हल्के लाल निशान सॉफ दिखाई दे रहे थे
और उनपर उंगलिया फिराई तो वो एहसास फिर से होने लगा मुझे जो रात को हुआ था

शायद आज तक किसी से मैं ये बात कह नही पाई थी पर सिर्फ़ मेरे बूब्स को कोई मसल दे तो मैं बिना किसी मंत्र के ही वशीभूत हो जाउंगी
बेकार के आडम्बर करने की कोई ज़रूरत ही ना पड़े
इतने सेन्सिटिव है मेरे बूब्स..



पर कॉलेज भी जाना था वरना अभी अपनी योनि को रगड़ कर पूरे मज़े ले लेती
इसलिए मैं तैयार होकर दीदी के साथ कॉलेज के लिए निकल गयी
पर मेरे दिमाग़ में कल रात की सारी बातें किसी मूवी की तरह चल रही थी
पढ़ने में भी मन नही लग रहा था
दिमाग में सिर्फ़ यही चल रहा था की आज पिताजी क्या करेंगे

घर आने के बाद मैने कपड़े चेंज किए और लंच करके अपने रूम में चली गयी
आज माँ की तबीयत थोड़ी ठीक नही थी , वो दवाई लेकर अपने कमरे में सो रही थी
पिताजी अभी कही गये हुए थे
इसलिए मैं भी सो गयी कुछ देर
करीब 1 घंटे बाद घर की बेल बजी तो मैं दौड़कर दरवाजा खोलने गयी
पिताजी ही थे और उनके पीछे-2 दीदी भी आ गयी
पिताजी अकेले होते तो पता चल पाता मुझे की क्या है उनके मन में
पर दीदी के सामने शायद वो ना कर पाए

मैने उनको खाना परोस कर दिया

पर पिताजी के दिमाग़ ने वो उपाय निकाल ही लिया जिसका मुझे इंतजार था
खाना खाते हुए वो बोले : “चंदा, आज बैंक में तेरा ख़ाता खुलवाना है, अभी मेरे साथ चल ज़रा “

मैने मुस्कुरा कर हां कर दी

कपड़े चेंज करके मैं पिताजी के साथ उनकी बुलेट पर बैठकर बैंक के लिए निकल गयी
पेपर्स पहले से तैयार थे, बैंक मैनेजर भी पिताजी को पहले से जानता था
इसलिए 20 मिनट में ही हमारा काम हो गया

फिर पिताजी बोले : “चल, कुछ देर खेतो से होकर चलते है, सूरज ने आज पानी छोड़ना था खेतो में , वो भी देख लेते है”

अब मेरे दिल मे कुछ-2 होने लगा था
क्योंकि खेतों तक का रास्ता काफी लम्बा था पतली पगडंडियो से होकर निकलता था
वहां जाते हुए मैं पिताजी को जकड़कर बैठी थी
ऐसा करते हुए मेरे बूब्स कई बार उनकी पीठ से रगड़ खा गये
उनके जिस्म का एहसास मेरे बूब्स पर रात वाला असर कर रहा था
जहाँ मैं बैठी थी, वहां एक गीला धब्बा बन चूका था

खेतो से करीब 10 मिनट पहले एक टूबवेल पर पिताजी ने बाइक रोक दी और पानी पीने लगे
वहां दूर -2 तक कोई नही था
चारों तरफ हरियाली फेली हुई थी

मैं भी पानी पीने के लिए जब झुकी तो मेरे गले से झाँक रहे बूब्स को देखकर पिताजी अपनी आँखे सेंक रहे थे
मैं जब वापिस बाइक के पास आई तो पिताजी कुछ देर के लिए वहां आकर रुक गये और चारों तरफ देखने लगे की कोई और तो नही देख रहा उन्हे
मैं : “क्या हुआ पिताजी, चलना नही है क्या ?”
पिताजी ने अपनी जेब से एक लाल धागे से बँधा तांबे का सिक्का निकाला
मुझे याद आ गया की ऐसा कुछ मैने उस किताब में भी देखा था

हालाँकि मैने उसके बारे में पढ़ा नही था क्योंकि इतना टाइम नही मिल पाया था पर ऐसा कुछ सिक्के टाइप का देखा था मैने

और तभी पिताजी बोले : “चंदा…..इसे गोर से देखती रहो….आँखे गाड़ कर देखो इसे….गोर से…”
मैं उस सिक्के को गोर से देखने लगी
और इसके बाद वो 1-10 तक की गिनती गिनने लगेऔर मेरी आँखो के सामने उस सिक्के को लहराते रहे

मुझे पता तो था की वो ऐसा मुझे वश में करने के लिए कर रहे है, जैसा की उस किताब का काम था
और मेरे हिसाब से ये सिक्का और वो गिनती उसी वशीकरण को पूरा करने का तरीका था, किताब के हिसाब से

किताब और पिताजी के हिसाब से मुझे उसके बाद उनके वश में हो जाना चाहिए था
अपनी सुध बुध खो देनी चाहिए थी
पर हो ये रहा था की मैं अपने पूरे होशो हवास में थी और उन्हे आँखे फाड़े देख रही थी

मेरे दिलो दिमाग़ में उथल पुथल मच गयी
यानी जो क्रिया पिताजी ने मुझपर की थी वशीकरण की, उसने काम नही किया

इसका मतलब ये की पिताजी वो मज़े नही ले पाएँगे जो उन्होने सोचे होंगे
और उस से भी ज़्यादा
मैं उस मज़े से वंचित रह जाउंगी
नही नही
ऐसा नही हो सकता
ये वशीकरण काम करे या ना करे
मुझे तो उनके वश में होना ही है
चाहे मुझे नाटक ही क्यो ना करना पड़े

इसलिए मैं एकदम से स्थिर सी हो गयी, किसी बुत्त की तरह
जैसे किसी ने मेरे अंदर से मेरी आत्मा निकाल ली हो



पिताजी कुछ देर तक मुझे देखते रहे और फिर मेरी आँखो के सामने हाथ फेरकर देखने लगे की उनके मंत्र का असर हुआ है या नही

मैने कोई हरकत नही की
फिर वो बोले : “चंदा, अब जो मैं तुम्हे कहूँगा…वो तुम करोगी….समझी.”
मैं किसी रोबोट की तरहा बोली : “जी पिताजी, आप जो कहेंगे वो मैं करूँगी…”

ये सुनते ही पिताजी का चेहरा खिल उठा, उनकी साधना सफल हो गयी थी
उनके हिसाब से
क्योंकि ये सब तो मैं जान बूझकर कर रही थी
मैं चाहती तो अभी उन्हें उल्टा जवाब देकर सारा खेल धराशायी कर देती , पर मैंने ऐसा नहीं किया
मैं उन्हे इस बात का एहसास दिला रही थी की मैं उनके वश में आ चुकी हूँ
और उनका वशीकरण सफल हो गया है

पिताजी ने आस पास एक बार फिर से देखा, दूर - 2 तक कोई नही था
वो एकदम से मेरे करीब आए और मुझे बाहों मे भर कर मुझे अपने सीने से लगा लिया
हालाँकि आज से पहले भी मैं कई बार उनके गले लगी थी
पर ये आलिंगन अलग था
वो मेरी पीठ पर दबाव बनाकर मेरी छाती को अपने सीने से रगड़ रहे थे
उसे पीस रहे थे
मेरे निप्पल तो आपको पता ही है
ऐसी कोई भी हरकत से बिना किसी जनसभा के वो खड़े हो जाते है
और अपनी उपस्थिति दिखाने लगते है
मेरे निप्पल पिताजी के सीने में गड़ रहे थे
जो उन्होने भी महसूस किए

और फिर अचानक उन्होने मेरे चेहरे को पकड़ा और मेरी आँखो में देखकर बोले : “मुझे किस्स करो….मेरे होंठो पर…”

मैं किसी यंत्र से चलने वाली गुड़िया की भाँति उनके होंठो पर टूट पड़ी
ये वो पल था जब मैने अपनी लाइफ का पहला चुंबन किया था
उफफफफफफ्फ़
इस पल के लिए कितने समय से मैं तड़प रही थी



अक्सर सोचा करती थी की किसी को किस्स करने में कैसा फील होगा
और जब से पिताजी का ये रात वाला कार्यकर्म शुरू हुआ है, उसके बाद तो किस्स करने की ऐसी इच्छा होने लगी थी की मैं अपनी कलाई को ही किस्स करके उसकी प्रैक्टिस करती रहती थी
मोबाइल में भी जो वीडियोस देखे थे, उसमें सैक्स की शुरूवात किस्स से ही करते थे सब

और सच में
इस किस्स को करके पता चला की क्यो सबसे पहले होंठो पर ही टूट पड़ते है ये लोग
मेरा रस उनके मुँह में जा रहा था और उनका मेरे मुँह में
वो मेरे नरम रबड़ जैसे होंठो को अपने दांतो से धीरे-२ चबा रहे थे

उनके होंठो को पकड़कर मैं तब तक चूसती रही जब तक उन्होने खुद मुझे पीछे नही धकेल दिया
क्योंकि दोनो की साँसे चढ़ गयी थी वो किस्स करते-2

पिताजी भी मेरे जोश को देखकर अपनी किस्मत पर खुश हुए जा रहे थे
उनके हाथ एक कठपुतली जो लग गयी थी जो उनकी हर इच्छा को पूरी करने वाली थी

उन्होने हुक्म देकर मुझे रुकने के लिए कहा
और मैं एक आज्ञाकारी वशीकरण में फंसी लड़की की तरह उनकी बात मानकर फिर से बुत्त बनकर खड़ी हो गयी
पिताजी ने फिर से आस पास का जायज़ा लिया, कोई नही था
ये पिताजी की इतनी फट्ट क्यों रही है
मेरा तो मन कर रहा था की ये सब ऐसे ही चलता रहे
यार
कितना मज़ा आ रहा था
पर वो भी अपनी जगह सही थे
खुला इलाक़ा था वो
कोई देख लेता हम दोनो को ऐसा करते हुए तो वो किसी को मुँह दिखाने लायक नही रहते
मेरी लाइफ भी खराब हो जाती

पर जब उन्होने तसल्ली कर ली की कोई नही है तो फिर से वो मेरी तरफ देखकर बोले
“चंदा, अपना टॉप उतारो, मुझे तुम्हारे मुम्मे देखने है “

मुम्मे शब्द सुनते ही मुझे जैसे किसी ने करंट मार दिया हो
ये पिताजी मेरे बूब्स के पीछे क्यो पड़े रहते है
मुझे डर था की उन्होने मेरे निप्पल्स को एक बार छू लिया तो मैं रुक नही पाऊँगी
उन्हे कच्चा चबा जाउंगी मैं तो
और ऐसी जगह पर वो काम मैं करना नही चाहती थी
पर मजबूरी थी

मैं उनके मन में कोई शक पैदा नही करना चाहती थी
इसलिए मैने अपने टॉप के सामने की तरफ के बटन खोलने शुरू कर दिए
और उसमें से अपने बूब्स को बाहर निकाल कर उनके सामने लहरा दिया



मेरे नंगे कड़क बूब्स अपनी आँखो के सामने देखकर पिताजी की आँखे तो फटी की फटी रह गयी
और मेरे 1 इंच लंबे निप्पल्स देखकर तो उनके मुँह में पानी ही आ गया
मैने अभी तक अपना टॉप पूरा उतारा नही था
क्योंकि मुझे भी किसी के आने का डर था
उसे उतारने के बाद दोबारा पहनना थोड़ा मुश्किल था

पर जो पिताजी को चाहिए था, वो मैने उनके सामने प्रस्तुत कर दिया था
मेरे बूब्स



उनके हाथ आगे आए और उन्होने उसे थाम लिया
मेरे मुँह से एक सिसकारी निकल गयी
वो मेरे चेहरे को देखने लगे
पर मैने आँखे बंद कर ली
पिताजी अपने दोनो हाथों से मेरे बूब्स को मसलने लगे
कल रात उन्होने यही काम मेरे कपड़ो के उपर से किया था
आज वो उन्हे नंगा पकड़ कर कर रहे थे

मैं मस्ती में भरकर ज़ोर से सिसकारियाँ मारने लगी

“सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स……. अहह……… उम्म्म्मममममम……”

और ऐसा करते हुए मैं खुद आगे आई और पिताजी के होंठो पर एक बार फिर से टूट पड़ी
इस बार की किस्स पहले से ज़्यादा जोश से भरी और रसीली थी
मेरे मुँह से निकला शहद पिताजी मुँह खोलकर पीए जा रहे थे
और नीचे उनके हाथ मेरे दोनो बूब्स को मसल रहे थे
अचानक दूर से एक ट्रैक्टर के आने की आवाज़ आई

पिताजी एक दम से अलग हुए और मुझे अपने कपड़े सही करने का आदेश दिया
और फिर उन्होने मेरी आँखो मे देखते हुए वो गिनती उल्टी पढ़नी शुरू कर दी
और अंत में मेरे चेहरे पर फूँक मारी
मैं समझ गयी की ये वशीकरण को तोड़ने का टोटका है

मैने भी ऐसी एक्टिंग की जैसे मैं अभी नींद से जागी हूँ
एक पल के लिए तो मैं अवाक सी होकर इधर उधर देखती रही
जान बूझकर मैने अपने बूब्स पर हाथ रखकर उन्हे सहलाया जैसे मुझे एहसास हो गया था की कोई उन्हे दबा रहा था
पर कौन ये पता नही
ऐसे भाव थे मेरे चेहरे पर
पिताजी ये देखकर मुस्कुराये जा रहे थे

ऐसे आश्चर्य के भाव लिए हुए मैने पिताजी से पूछा : “पिताजी…..क्या हुआ…..हम अभी तक यही रुके है….कुछ हुआ था क्या अभी….”

मैं जैसे कुछ सोचने समझने की एक्टिंग करने लगी
पिताजी : “अर्रे नही….मैने तो तुझे पानी पिलाया अभी….और मैं फिर मूतने गया था वहां , शायद तेरी आँख लग गयी थी….चल कोई ना, चलते है अब….”

तब तक वो ट्रैक्टर भी हमारी बगल से होता हुआ आगे निकल गया
और हम दोनो अपने खेतो की तरफ चल दिए
पीछे बैठी मैं अपनी एक्टिंग और चालाकी पर मुस्कुरा रही थी
और आगे बैठे पिताजी आने वाली संभावनाओ को सोचकर.....
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malikarman

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आज पिताजी के 3 दिन की साधना संपन्न हो चुकी थी
अब देखना ये था की इसका क्या फायदा मिलता है उन्हे

क्या सच में इसके बाद वो हम दोनो को अपने वश में कर पाएँगे
ये तो आने वाला कल ही बताएगा

अब आगे
**********
अगले दिन मेरा कॉलेज था,
कल रात जब पिताजी ने मेरे बूब्स को मसला था तो उसके निशान सुबह तक थे वहां
नहाने के लिए बाथरूम में जब मैने कपड़े उतारे तो मेरे गोरे बूब्स पर हल्के लाल निशान सॉफ दिखाई दे रहे थे
और उनपर उंगलिया फिराई तो वो एहसास फिर से होने लगा मुझे जो रात को हुआ था

शायद आज तक किसी से मैं ये बात कह नही पाई थी पर सिर्फ़ मेरे बूब्स को कोई मसल दे तो मैं बिना किसी मंत्र के ही वशीभूत हो जाउंगी
बेकार के आडम्बर करने की कोई ज़रूरत ही ना पड़े
इतने सेन्सिटिव है मेरे बूब्स..



पर कॉलेज भी जाना था वरना अभी अपनी योनि को रगड़ कर पूरे मज़े ले लेती
इसलिए मैं तैयार होकर दीदी के साथ कॉलेज के लिए निकल गयी
पर मेरे दिमाग़ में कल रात की सारी बातें किसी मूवी की तरह चल रही थी
पढ़ने में भी मन नही लग रहा था
दिमाग में सिर्फ़ यही चल रहा था की आज पिताजी क्या करेंगे

घर आने के बाद मैने कपड़े चेंज किए और लंच करके अपने रूम में चली गयी
आज माँ की तबीयत थोड़ी ठीक नही थी , वो दवाई लेकर अपने कमरे में सो रही थी
पिताजी अभी कही गये हुए थे
इसलिए मैं भी सो गयी कुछ देर
करीब 1 घंटे बाद घर की बेल बजी तो मैं दौड़कर दरवाजा खोलने गयी
पिताजी ही थे और उनके पीछे-2 दीदी भी आ गयी
पिताजी अकेले होते तो पता चल पाता मुझे की क्या है उनके मन में
पर दीदी के सामने शायद वो ना कर पाए

मैने उनको खाना परोस कर दिया

पर पिताजी के दिमाग़ ने वो उपाय निकाल ही लिया जिसका मुझे इंतजार था
खाना खाते हुए वो बोले : “चंदा, आज बैंक में तेरा ख़ाता खुलवाना है, अभी मेरे साथ चल ज़रा “

मैने मुस्कुरा कर हां कर दी

कपड़े चेंज करके मैं पिताजी के साथ उनकी बुलेट पर बैठकर बैंक के लिए निकल गयी
पेपर्स पहले से तैयार थे, बैंक मैनेजर भी पिताजी को पहले से जानता था
इसलिए 20 मिनट में ही हमारा काम हो गया

फिर पिताजी बोले : “चल, कुछ देर खेतो से होकर चलते है, सूरज ने आज पानी छोड़ना था खेतो में , वो भी देख लेते है”

अब मेरे दिल मे कुछ-2 होने लगा था
क्योंकि खेतों तक का रास्ता काफी लम्बा था पतली पगडंडियो से होकर निकलता था
वहां जाते हुए मैं पिताजी को जकड़कर बैठी थी
ऐसा करते हुए मेरे बूब्स कई बार उनकी पीठ से रगड़ खा गये
उनके जिस्म का एहसास मेरे बूब्स पर रात वाला असर कर रहा था
जहाँ मैं बैठी थी, वहां एक गीला धब्बा बन चूका था

खेतो से करीब 10 मिनट पहले एक टूबवेल पर पिताजी ने बाइक रोक दी और पानी पीने लगे
वहां दूर -2 तक कोई नही था
चारों तरफ हरियाली फेली हुई थी

मैं भी पानी पीने के लिए जब झुकी तो मेरे गले से झाँक रहे बूब्स को देखकर पिताजी अपनी आँखे सेंक रहे थे
मैं जब वापिस बाइक के पास आई तो पिताजी कुछ देर के लिए वहां आकर रुक गये और चारों तरफ देखने लगे की कोई और तो नही देख रहा उन्हे
मैं : “क्या हुआ पिताजी, चलना नही है क्या ?”
पिताजी ने अपनी जेब से एक लाल धागे से बँधा तांबे का सिक्का निकाला
मुझे याद आ गया की ऐसा कुछ मैने उस किताब में भी देखा था

हालाँकि मैने उसके बारे में पढ़ा नही था क्योंकि इतना टाइम नही मिल पाया था पर ऐसा कुछ सिक्के टाइप का देखा था मैने

और तभी पिताजी बोले : “चंदा…..इसे गोर से देखती रहो….आँखे गाड़ कर देखो इसे….गोर से…”
मैं उस सिक्के को गोर से देखने लगी
और इसके बाद वो 1-10 तक की गिनती गिनने लगेऔर मेरी आँखो के सामने उस सिक्के को लहराते रहे

मुझे पता तो था की वो ऐसा मुझे वश में करने के लिए कर रहे है, जैसा की उस किताब का काम था
और मेरे हिसाब से ये सिक्का और वो गिनती उसी वशीकरण को पूरा करने का तरीका था, किताब के हिसाब से

किताब और पिताजी के हिसाब से मुझे उसके बाद उनके वश में हो जाना चाहिए था
अपनी सुध बुध खो देनी चाहिए थी
पर हो ये रहा था की मैं अपने पूरे होशो हवास में थी और उन्हे आँखे फाड़े देख रही थी

मेरे दिलो दिमाग़ में उथल पुथल मच गयी
यानी जो क्रिया पिताजी ने मुझपर की थी वशीकरण की, उसने काम नही किया

इसका मतलब ये की पिताजी वो मज़े नही ले पाएँगे जो उन्होने सोचे होंगे
और उस से भी ज़्यादा
मैं उस मज़े से वंचित रह जाउंगी
नही नही
ऐसा नही हो सकता
ये वशीकरण काम करे या ना करे
मुझे तो उनके वश में होना ही है
चाहे मुझे नाटक ही क्यो ना करना पड़े

इसलिए मैं एकदम से स्थिर सी हो गयी, किसी बुत्त की तरह
जैसे किसी ने मेरे अंदर से मेरी आत्मा निकाल ली हो



पिताजी कुछ देर तक मुझे देखते रहे और फिर मेरी आँखो के सामने हाथ फेरकर देखने लगे की उनके मंत्र का असर हुआ है या नही

मैने कोई हरकत नही की
फिर वो बोले : “चंदा, अब जो मैं तुम्हे कहूँगा…वो तुम करोगी….समझी.”
मैं किसी रोबोट की तरहा बोली : “जी पिताजी, आप जो कहेंगे वो मैं करूँगी…”

ये सुनते ही पिताजी का चेहरा खिल उठा, उनकी साधना सफल हो गयी थी
उनके हिसाब से
क्योंकि ये सब तो मैं जान बूझकर कर रही थी
मैं चाहती तो अभी उन्हें उल्टा जवाब देकर सारा खेल धराशायी कर देती , पर मैंने ऐसा नहीं किया
मैं उन्हे इस बात का एहसास दिला रही थी की मैं उनके वश में आ चुकी हूँ
और उनका वशीकरण सफल हो गया है

पिताजी ने आस पास एक बार फिर से देखा, दूर - 2 तक कोई नही था
वो एकदम से मेरे करीब आए और मुझे बाहों मे भर कर मुझे अपने सीने से लगा लिया
हालाँकि आज से पहले भी मैं कई बार उनके गले लगी थी
पर ये आलिंगन अलग था
वो मेरी पीठ पर दबाव बनाकर मेरी छाती को अपने सीने से रगड़ रहे थे
उसे पीस रहे थे
मेरे निप्पल तो आपको पता ही है
ऐसी कोई भी हरकत से बिना किसी जनसभा के वो खड़े हो जाते है
और अपनी उपस्थिति दिखाने लगते है
मेरे निप्पल पिताजी के सीने में गड़ रहे थे
जो उन्होने भी महसूस किए

और फिर अचानक उन्होने मेरे चेहरे को पकड़ा और मेरी आँखो में देखकर बोले : “मुझे किस्स करो….मेरे होंठो पर…”

मैं किसी यंत्र से चलने वाली गुड़िया की भाँति उनके होंठो पर टूट पड़ी
ये वो पल था जब मैने अपनी लाइफ का पहला चुंबन किया था
उफफफफफफ्फ़
इस पल के लिए कितने समय से मैं तड़प रही थी



अक्सर सोचा करती थी की किसी को किस्स करने में कैसा फील होगा
और जब से पिताजी का ये रात वाला कार्यकर्म शुरू हुआ है, उसके बाद तो किस्स करने की ऐसी इच्छा होने लगी थी की मैं अपनी कलाई को ही किस्स करके उसकी प्रैक्टिस करती रहती थी
मोबाइल में भी जो वीडियोस देखे थे, उसमें सैक्स की शुरूवात किस्स से ही करते थे सब

और सच में
इस किस्स को करके पता चला की क्यो सबसे पहले होंठो पर ही टूट पड़ते है ये लोग
मेरा रस उनके मुँह में जा रहा था और उनका मेरे मुँह में
वो मेरे नरम रबड़ जैसे होंठो को अपने दांतो से धीरे-२ चबा रहे थे

उनके होंठो को पकड़कर मैं तब तक चूसती रही जब तक उन्होने खुद मुझे पीछे नही धकेल दिया
क्योंकि दोनो की साँसे चढ़ गयी थी वो किस्स करते-2

पिताजी भी मेरे जोश को देखकर अपनी किस्मत पर खुश हुए जा रहे थे
उनके हाथ एक कठपुतली जो लग गयी थी जो उनकी हर इच्छा को पूरी करने वाली थी

उन्होने हुक्म देकर मुझे रुकने के लिए कहा
और मैं एक आज्ञाकारी वशीकरण में फंसी लड़की की तरह उनकी बात मानकर फिर से बुत्त बनकर खड़ी हो गयी
पिताजी ने फिर से आस पास का जायज़ा लिया, कोई नही था
ये पिताजी की इतनी फट्ट क्यों रही है
मेरा तो मन कर रहा था की ये सब ऐसे ही चलता रहे
यार
कितना मज़ा आ रहा था
पर वो भी अपनी जगह सही थे
खुला इलाक़ा था वो
कोई देख लेता हम दोनो को ऐसा करते हुए तो वो किसी को मुँह दिखाने लायक नही रहते
मेरी लाइफ भी खराब हो जाती

पर जब उन्होने तसल्ली कर ली की कोई नही है तो फिर से वो मेरी तरफ देखकर बोले
“चंदा, अपना टॉप उतारो, मुझे तुम्हारे मुम्मे देखने है “

मुम्मे शब्द सुनते ही मुझे जैसे किसी ने करंट मार दिया हो
ये पिताजी मेरे बूब्स के पीछे क्यो पड़े रहते है
मुझे डर था की उन्होने मेरे निप्पल्स को एक बार छू लिया तो मैं रुक नही पाऊँगी
उन्हे कच्चा चबा जाउंगी मैं तो
और ऐसी जगह पर वो काम मैं करना नही चाहती थी
पर मजबूरी थी

मैं उनके मन में कोई शक पैदा नही करना चाहती थी
इसलिए मैने अपने टॉप के सामने की तरफ के बटन खोलने शुरू कर दिए
और उसमें से अपने बूब्स को बाहर निकाल कर उनके सामने लहरा दिया



मेरे नंगे कड़क बूब्स अपनी आँखो के सामने देखकर पिताजी की आँखे तो फटी की फटी रह गयी
और मेरे 1 इंच लंबे निप्पल्स देखकर तो उनके मुँह में पानी ही आ गया
मैने अभी तक अपना टॉप पूरा उतारा नही था
क्योंकि मुझे भी किसी के आने का डर था
उसे उतारने के बाद दोबारा पहनना थोड़ा मुश्किल था

पर जो पिताजी को चाहिए था, वो मैने उनके सामने प्रस्तुत कर दिया था
मेरे बूब्स



उनके हाथ आगे आए और उन्होने उसे थाम लिया
मेरे मुँह से एक सिसकारी निकल गयी
वो मेरे चेहरे को देखने लगे
पर मैने आँखे बंद कर ली
पिताजी अपने दोनो हाथों से मेरे बूब्स को मसलने लगे
कल रात उन्होने यही काम मेरे कपड़ो के उपर से किया था
आज वो उन्हे नंगा पकड़ कर कर रहे थे

मैं मस्ती में भरकर ज़ोर से सिसकारियाँ मारने लगी

“सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स……. अहह……… उम्म्म्मममममम……”

और ऐसा करते हुए मैं खुद आगे आई और पिताजी के होंठो पर एक बार फिर से टूट पड़ी
इस बार की किस्स पहले से ज़्यादा जोश से भरी और रसीली थी
मेरे मुँह से निकला शहद पिताजी मुँह खोलकर पीए जा रहे थे
और नीचे उनके हाथ मेरे दोनो बूब्स को मसल रहे थे
अचानक दूर से एक ट्रैक्टर के आने की आवाज़ आई

पिताजी एक दम से अलग हुए और मुझे अपने कपड़े सही करने का आदेश दिया
और फिर उन्होने मेरी आँखो मे देखते हुए वो गिनती उल्टी पढ़नी शुरू कर दी
और अंत में मेरे चेहरे पर फूँक मारी
मैं समझ गयी की ये वशीकरण को तोड़ने का टोटका है

मैने भी ऐसी एक्टिंग की जैसे मैं अभी नींद से जागी हूँ
एक पल के लिए तो मैं अवाक सी होकर इधर उधर देखती रही
जान बूझकर मैने अपने बूब्स पर हाथ रखकर उन्हे सहलाया जैसे मुझे एहसास हो गया था की कोई उन्हे दबा रहा था
पर कौन ये पता नही
ऐसे भाव थे मेरे चेहरे पर
पिताजी ये देखकर मुस्कुराये जा रहे थे

ऐसे आश्चर्य के भाव लिए हुए मैने पिताजी से पूछा : “पिताजी…..क्या हुआ…..हम अभी तक यही रुके है….कुछ हुआ था क्या अभी….”

मैं जैसे कुछ सोचने समझने की एक्टिंग करने लगी
पिताजी : “अर्रे नही….मैने तो तुझे पानी पिलाया अभी….और मैं फिर मूतने गया था वहां , शायद तेरी आँख लग गयी थी….चल कोई ना, चलते है अब….”

तब तक वो ट्रैक्टर भी हमारी बगल से होता हुआ आगे निकल गया
और हम दोनो अपने खेतो की तरफ चल दिए
पीछे बैठी मैं अपनी एक्टिंग और चालाकी पर मुस्कुरा रही थी
और आगे बैठे पिताजी आने वाली संभावनाओ को सोचकर.....
Khatarnak hone wala hai kuchh
 
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