क्या बात है भाई! वाह!! वाह!!!!
बल्लभ भी भैरव की टीम से टूट गया है और सरकारी गवाह बनने को तैयार हो गया। इस अपडेट को पढ़ कर यह समझ नहीं आ रहा है कि क्या भैरव कानून की लड़ाई लड़ने को इच्छुक भी है! लगता तो नहीं। होम मिनिस्टर को बंदी बना कर उसकी मंशा साफ़ है।
रंगा और रॉय पैसों के पहाड़ के लालच में कुछ भी करने को तैयार हो गए हैं। वैसे भी, यह आर पार की लड़ाई है। अगर उम्मीद के हिसाब से काम हो गया, तो वारे न्यारे, नहीं तो कुछ नहीं। सही किया उन्होंने। एक दाँव मारो, लेकिन अच्छे से! पूरे जी जान से।
विक्रम रंगा और रॉय को समाप्त कर तो देता है, लेकिन अब वो खुद भी बुरी तरह से ज़ख़्मी है, और उसके भविष्य के बारे में हमको कुछ पता नहीं। उसको जाना नहीं चाहिए। पहले ही वीर और अनु के रूप में दुःखद हानि हो चुकी है। अब विक्रम के रूप में नहीं होनी चाहिए - ख़ास कर तब, जब शुभ्रा स्वयं गर्भ से है।
हाँलाकि उस पूरे काण्ड के सीधे प्रसारण से भैरव सिंह की सच्चाई सामने तो आ जायेगी, लेकिन उससे कुछ होना नहीं है। आज कल देखिए न - जनता को सभी की असली सच्चाई पता रहती है। लेकिन न्यायालयों में होने वाली नौटंकियां जग-जाहिर हैं। टनों टन सबूत ले कर खड़े कर दो, लेकिन होता कुछ भी नहीं। आज कल involuntary murder की सज़ा निबंध लिखना होता है। सच तो यह है कि भैरव सिंह का न्याय अदालत में नहीं होगा - अगर होगा, तो नौटंकी जैसा ही कुछ होगा। यही लग रहा है कि जनता ही उसको अदालत से खींच कर मार मार कर अपना न्याय करेगी।
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