नवासीवां अपडेट
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सुबह फोन की रिंग से वीर की नींद टूटती है l वह फोन को हाथ में लेकर नींद में ही
वीर - हैलो...
शुभ्रा - वीर क्या हुआ... नाश्ता नहीं करना है क्या...
वीर - नाश्ता... सुबह हो गई क्या...
शुभ्रा - क्या बात है... कल शाम को नंदिनी सो गई थी... आज तुम सोये हुए हो...
वीर झट से उठकर बैठता है l मोबाइल पर टाइम देखता है सुबह के आठ बज रहे थे l
वीर - ओह... (फोन पर) भाभी बस पाँच मिनट... (कह कर कॉल डिस्कनेक्ट कर देता है)
फिर उछल कर बेड से उठता है और सीधे बाथरुम में घुस जाता है l जल्दी जल्दी तैयार हो कर बाथरुम से निकलता है l वार्डरोब के पास पहुँच कर स्लाइड डोर सरकाता है l कपड़ों की इतनी भर मार है कि वह कंफ्यूज हो जाता है l
वीर - (अपने आप से) अनु को कौनसा रंग पसंद है.... आ..आह ..मुझे इतना भी मालुम नहीं है... छे...
वार्डरोब से कुछ कपड़े निकाल कर बेड पर डाल कर एक एक को अपने ऊपर डाल कर आईने के सामने देखने लगता है l उसे कुछ भी पसंद नहीं आता l
वीर - उँम्म्म्म... नहीं... (चिढ़ कर वह कपड़े फेंक देता है) (फिर उसके दिमाग का बत्ती जलता है) क्या प्रताप से पुछूं... अरे नहीं.. अनु की पसंद उसे कैसे पता होगा.... क्यूँ ना... जिसके लिए तैयार होना है... इसीसे पुछ लूँ... हाँ... अनु से ही सीधे पुछ लेता हूँ... (बेड पर पड़े मोबाइल को उठाता है और अनु को फोन लगाता है) (अनु फोन का फोन रिंग हो कर कट जाता है, पर अनु फोन नहीं उठाती)
अनु के फोन ना उठाने से वीर खीज जाता है l फिर अपने आप से बात करने लगता है
वीर - क्या हो गया अनु को... फोन क्यूँ नहीं उठा रही है... (फिर खुद को) अबे घोंचु... तु देर से उठा है... वह नहीं... और... घर के काम में बिजी होगी शायद... खैर... बेटा वीर... एक काम कर... उसकी प्यारी सी स्माईल को याद कर... और अपनी आँखे मूँद कर किसी एक ड्रेस पर हाथ रख दे... वही पहन कर चल...
इतना सोच कर वीर अपनी आँखे बंद कर ड्रेस इधर उधर करता है, फिर अक्कड़ बक्कड़ बॉम्बे बो करते हुए एक ड्रेस पर हाथ रखता है l वीर आँखे खोल कर देखता है एक फेडेड जिंस, सफेद शर्ट के साथ साथ काली जैकेट का सेट था l वीर वह कपड़े पहन लेता है, आईने के सामने खड़े होकर अपने बाल संवारने लगता है l उसके बाद अपने ऊपर फ्रेगनेश डाल कर कमरे से निकलता है l नीचे पहुँच कर देखता है, डायनिंग टेबल पर सभी बैठे हुए हैं और सभी उसीका इंतजार कर रहे हैं lवीर डायनिंग टेबल के पास आकर
वीर - हाय.. एवरी वन.. कैसे हैं आप...
कह कर वीर बैठ जाता है l खुद प्लेट निकाल कर अपने सामने रखता है फिर बाउल से टोस्ट निकाल कर मुहँ में ठूँस लेता है l सभी वीर को हैरान हो कर देखते हैं l वीर के मुहँ में टोस्ट है फिर भी वह और एक टोस्ट ठूँसते जा रहा था l
रुप - भैया... आर यु ओके... तुम ठीक तो होना...
वीर के मुहँ से बड़ी मुस्किल से निकलता है - उँ... उँ...
इशारे से अपने तरफ हाथ कर तर्जनी और अंगुठे से ओ बना कर बताता है कि वह ठीक है l फिर जूस का ग्लास उठा कर पीने लगता है l
शुभ्रा - संभल के... वीर...
वीर खांसने लगता है, शुभ्रा उसके तरफ जाने लगती है तो हाथ के इशारे से रुकने को कहता है वीर l
शुभ्रा - (उसके पास पहुँच कर उसके सिर को थपथपाते हुए) ओ हो... किस बात की जल्दी है तुम्हें...
वीर - (हांफते हुए) भाभी... आज मेरा बहुत इंपोर्टेंट काम है...
शुभ्रा - क्या काम है...
वीर - (नजरें चुराने लगता है और इधर उधर देखने लगता है)
शुभ्रा - पुछ रही हूँ... क्या काम है...
विक्रम - हाँ... बहुत ही खास काम है... अरे मैं तो भूल ही गया था... कल ही वीर को हमने एक इंपोर्टेंट काम सौंपा था...
शुभ्रा चुप रहती है, विक्रम की ओर देखती तो है पर विक्रम से कुछ नहीं कहती, वह आकर अपनी जगह पर बैठ जाती है l वीर अब हैरान हो कर विक्रम की ओर देखता है l विक्रम उसे आँख मारता है और अपनी पलकें झपका कर सिर हाँ में हिला देता है l वीर खुश हो जाता है l पर इन दोनों की कारस्तनी रुप के नजर में आ जाती है l
वीर - हाँ... हाँ भाभी... देखा भैया ने खुद काम दिया... अब भुल गए... देखो...
रुप - मुहँ बना कर... तो आज मुझे कॉलेज कौन ड्रॉप करने जाएगा...
वीर - आज... तुम एक काम करो... गुरु काका के साथ चले जाओ...
रुप - क्या... क्यूँ...
विक्रम - ओके... ओके.. वीर तुम उस काम से जाओ... मैं... मैं नंदिनी को कालेज में ड्रॉप कर दूँगा... क्यूँ.. ठीक है ना नंदिनी...
रुप - हाँ हाँ... जरूर...
वीर - ओह... थैंक्यू भैया... (अपनी जगह से उठ कर विक्रम को साइड से गले लगाते हुए) आप कितने अच्छे हो गए...
विक्रम - क्या... क्या मतलब है तेरा... इससे पहले मैं अच्छा नहीं था क्या... (यह सुनते ही शुभ्रा की हँसी निकल जाती है)
वीर - थे... थे भैया थे... पर आज बहुत ही अच्छे हो गए हो.... (कह कर उठ कर भागता है) बाय...
उसको यूँ भाग कर जाना सबको हैरान कर दिया था l सब मुहँ फाड़े दरवाजे से उसे गायब होते देख रहे थे l रुप दरवाजे के तरफ देखते हुए टोस्ट मुहँ में डालती है l
रुप - इइइह्ह्... टोस्ट में... तो... नमक नहीं है...
शुभ्रा और विक्रम - (चौंक कर) क्या... (दोनों का ध्यान टूटता है)
शुभ्रा - क्या.. टोस्ट में नमक नहीं है...
रुप - हाँ भाभी... बिल्कुल पिछली बार की तरह...
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विश्व नींद से जागता है l एक उबासी लेते हुए अपनी आँखे खोल कर देखता है, उसके बेड के किनारे एक चेयर पर प्रतिभा बैठी हुई है l विश्व को देख कर प्रतिभा मुस्कराते हुए
प्रतिभा - गुड मॉर्निंग बेटा...
विश्व - (उलट कर पेट के बल लेट कर) गुड मॉर्निंग माँ... (अचानक विश्व चौंक कर बैठ जाता है) माँ... यह क्या कर रही हो...
प्रतिभा - (विश्व की मोबाइल स्क्रॉल करते हुए) हूँम्म्म्म्म्... देख रही हूँ... मेरे बेटे को मोबाइल का इस्तेमाल कितना आ रहा है...
विश्व - (प्रतिभा के हाथ से अपना मोबाइल छीनते हुए) माँ... बहुत गलत बात है...
प्रतिभा - अच्छा...(अपनी आँखों को बड़ा कर सवालिया अंदाज में) गलत बात है...
विश्व - और नहीं तो... किसीकी मोबाइल यूँ चेक करना... गलत बात नहीं है क्या...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... मुझे कहीं से भी गलत नहीं लगा....
विश्व - गलत नहीं लगा... क्यूँ नहीं लगा...
प्रतिभा - (विश्व की कान मरोड़ते हुए) क्यूँ रे... जब से आया था... कभी देर से नहीं जागा था... फिर आज यह उल्टी गंगा कैसे बहने लगी...
विश्व - आ... आह... आ... माँ... माँ... दर्द हो रहा है...
प्रतिभा - (कान को वैसे ही मरोड़ते हुए) मुझे आज तुझ पर उल्टे झाड़ू से मारना चाहिए था... रोज सुबह जल्दी उठ जाता था... आज इतने देर तक... घोड़े बेच कर सो रहा है...
विश्व - आह... आ... माँ... प्लीज छोड़ो ना... (कान छोड़ देती है) वह... रात को नींद ही नहीं आई माँ...
प्रतिभा - इसीलिए तो... वह कौन चुड़ैल है... जिसने मेरे बेटे की नींद उड़ा दी है... तेरी फोन में उसे ढूंढ रही थी....
विश्व - (तुनक कर) माँ... नंदिनी जी चुड़ैल नहीं हैं...
प्रतिभा - यह मैंने कब कहा... तु कह रहा है...
विश्व - देखो माँ झूठ मत बोलो...
प्रतिभा - मैंने कब झूठ बोला...
विश्व - आपने अभी नहीं कहा... किस चुड़ैल ने नींद दी...
प्रतिभा - हाँ... तो मैंने नंदिनी को चुड़ैल कब कहा...
विश्व - (चुप हो जाता है, किसी बेवक़ूफ़ की तरह आँखे मीट मीट करते हुए प्रतिभा को देखने लगता है)
उसकी ऐसी हालत देख कर प्रतिभा जोर जोर से हँसने लगती है l अचानक विश्व को समझ में आ जाता है उसने क्या बेवकूफ़ी कर दिया l वह शर्म के मारे तकिया उठा कर अपने मुहँ से चिपका लेता है l प्रतिभा की हँसी रुकती नहीं है तो विश्व उठ कर बाथ रुम में भाग जाता है l प्रतिभा हँसते हुए उसके कमरे से निकल कर ड्रॉइंग रुम में आती है l तभी हाथों में न्यूज पेपर की बंडल लिए तापस घर में वापस अंदर आता है l उसे देखते ही प्रतिभा की हँसी रुक जाती है और भवें सिकुड़ कर तापस को देखने लगती है l
तापस - क्या बात है जान... हमें देख कर अपनी हँसी क्यूँ रोक दी...
प्रतिभा - आज बाप बेटे में कोई शर्त लगा था क्या... वह आज घोड़े बेच कर सोया हुआ था... और आप जॉगिंग को गए... अब आ रहे हैं...
तापस - (आहें भरते हुए) हाय मेरी जान... आज तो मुझे घर आने को मन ही नहीं कर रहा था...
प्रतिभा - क्यूँ... आपको यह घर काटता है क्या...
तापस - अरे जान... आज तो मुझ पर मेरी जान का सुरूर है...
ना घर ना बाहर... दिल सबसे बे खबर है...
हर महफिल में आज चर्चे तेरे हो रहे हैं...
चर्चे मेरी जान की,... चर्चे में मेरी जान है... यह जान कर मेरी जान... मुझ पर यह खुमार है...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - जी बिलकुल...
प्रतिभा - कितनी घटिया शेर है...
विश्व - (कमरे में आते हुए) पर शायर तो मस्त है ना... माँ..
प्रतिभा - वाह क्या बात है... बाप का साथ देने बेटा पधारा है....
तापस - वाह भाग्यवान... क्या तुक बंदी किया है...
प्रतिभा - ऐ... एक मिनट... तुम दोनों का क्या चक्कर है... मुझे लगता है... तुम दोनों मिले हुए हो...
विश्व - मिले हुए तो हैं... कल रात तक... आपको बधाईयाँ और साक्षात्कार चल रहा था... इसलिए आज हमने प्लान किया है... आज फॅमिली टाइम... पहले मंदिर जाएंगे... फिर हम कोई होटल जाएंगे... लंच बाहर करेंगे... आप दोनों घर आ जाना... मैं ड्राइविंग स्कुल चला जाऊँगा...
प्रतिभा - हाँ ताकि अपना दिमाग को चैट वाली से चटवाना...
तापस - चैट वाली... दिमाग... यह क्या है...
विश्व - माँ.. माँ.. माँ.. (प्रतिभा के गले लग कर, धीरे से उसके कान में) माँ प्लीज... डैड को नहीं.. प्लीज...
प्रतिभा - (धीरे से) ठीक है... (फिर जोर से) ठीक है.. ठीक है... (विश्व से अलग होते हुए) हम कौनसे मंदिर जाएंगे...
विश्व - क्यूँ ना हम... पुरी चलें...
तापस - पर वह चैट वाली...
विश्व - डैड... पुरी में अच्छी चाट मिलती है... पहले सी बीच पर वही खाते हैं...
प्रतिभा - हाँ (चहकते हुए) बहुत अच्छा आइडिया है... (दोनों को) जाओ जाओ तैयार हो जाओ...
तापस अपने कमरे की ओर जाता है और चुपके से पीछे मुड़ कर देखता है प्रतिभा कमर पर हाथ रख कर खड़ी है और विश्व उसके सामने हाथ जोड़ कर कुछ गिड़गिड़ाता जैसा खड़ा है l
तास - यह माँ बेटे में क्या खिचड़ी पक रही है...
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वीर की गाड़ी सड़क पर भाग रही है l उसे शहर की चिकनी सड़क पर गाड़ी चलाते वक़्त लग रहा था जैसे वह बादलों के रास्तों से गुजर रहा है l वह खुशी के मारे रेडियो एफएम ऑन कर देता है l गाने सदा बाहर में एक गाना बज रहा था
"आज उनसे पहली मुला.. कात होगी..
फिर होगा क्या
क्या पता
क्या खबर..."
यह गाना सुनते ही खुशी के मारे गाड़ी के भीतर ही उछलते हुए गाने के बोल के साथ साथ गुनगुनाने लगता है l गाड़ी को लेकर शहर के एक बड़े फ्लोरीस्ट के दुकान के आगे लगाता है l दुकान अभी खुला नहीं था I बाहर लगे बोर्ड पर फ्लोरीस्ट का नंबर लिखा हुआ था l वीर बेताब हो कर उस बोर्ड पर लिखे एक नंबर पर फोन लगाता है l
- : हैलो...
वीर - यह तुम्हारा दुकान कितने बजे खुलेगा...
- : सर, और आधे घंटे के बाद खुल जाएगा...
वीर - अरे यार मुझे अभी जरूरत है...
- : सर अभी... (थोड़ा रुक जाता है) सर एक काम लीजिए...
वीर - हाँ बोलो...
- : सर आप पीछे के दरवाजे पर आ जाइए... जो भी पसंद है.. ले लीजिए... या फिर बनवा लीजिए...
वीर - ओह यार... थैंक्यू.. थैंक्यू...
वीर इतना कह कर दुकान के बगल के गली में जाता है और पीछे के रास्ते से दुकान में आता है l उसके साथ वह दुकानदार भी था l
बहुत बड़ा दुकान था l हर एक जगह पर तरह तरह के फूल कहीं बुके में, कहीं बकेट में सजे हुए हैं या भरे हुए हैं l वीर फूलों की ओर देखते हुए वीर के चेहरे पर मुस्कान उभर जाता है l वीर अपना मोबाइल निकालता है और अनु को कॉल करता है l इस बार अनु फोन उठा देती है
वीर - हैलो अनु...
अनु - हैलो... राजकुमार जी... (थोड़ी परेशानी भरी आवाज में )
वीर - अनु... क्या हुआ... घबराई हुई क्यूँ लग रही..
अनु - नहीं.. घबराई हुई नहीं हूँ... परेशान सी हूँ...
वीर - किस लिए...
अनु - राजकुमार जी... आप मृत्युंजय को जानते हैं ना...
वीर - (सोच में पड़ जाता है) कौन मृत्युंजय...
अनु - वह... आपके पार्टी में.. उसके पिता... एक कार्यकर्ता थे... उनके देहांत के बाद... आपने मृत्युंजय को ESS में नौकरी दिलाई...
वीर - (याद आता है) ओ अच्छा अच्छा... हाँ हाँ... क्या.. क्या हुआ है उसको...
अनु - उसको नहीं... उसकी माता जी का देहांत हो गया है...
वीर - तो उससे तुम्हारा क्या सम्बंध...
अनु - वह... एक्चुयली... वह दो महीने पहले... हमारे मोहल्ले में रहने आए थे... उसकी माँ... मेरी दादी से... अच्छी दोस्ती हो गई थी... इसलिए हम सब यहाँ आए हुए हैं...
वीर - यहाँ मतलब कहाँ...
अनु - सिटी हॉस्पिटल में...
वीर - तो परेशानी क्या है...
अनु - डॉक्टर... डेथ सर्टिफिकेट नहीं दे रहा है...
वीर - ह्म्म्म्म... (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) तो तुम कब तक फ्री हो पाओगी...
अनु - (अटक अटक कर बिनती करते हुए) राज कुमार जी.. हमारे ही कुलिग की माँ है... और हमारे हो मौहल्ले में एक मौत हुई है... प्लीज...
वीर - (चेहरा उतर जाता है) (बड़ी मुश्किल से बोल पाता है) ठीक है... फिर कभी...
अनु - (हैरानी भरे आवाज में) फिर कभी मतलब...
वीर - अरे यूहीं.. ऐसे ही...
अनु - ओ अच्छा... वैसे एक बिनती थी आपसे...
वीर - (अचानक जागते हुए) हाँ कहो अनु...
अनु - आप अगर यहाँ आते तो...
वीर - तुम चाहती हो... मैं वहाँ आऊँ...
अनु - (खुशी और उम्मीद भरी आवाज में) जी...
वीर - ठीक है... मैं आ रहा हूँ... सिटी हॉस्पिटल ही ना...
अनु - (खुशी भरी आवाज में) जी...
दुकान दार बहुत देर से उन दोनों की बातचीत सुन रहा था l वीर बेबस नजरों से उस दुकानदार को देखता है l दुकान दार वीर की ओर मुस्कराते हुए देख कर
दुकान दार - कोई बात नहीं सर... यह दुकान आपका ही है... आप जब भी आयेंगे... हम सर्विस देंगे...
वीर अपना पर्स निकालता है कुछ पैसे निकाल कर दुकान दार की तरफ बढ़ाता है l
दुकान दार - यह किस लिए सर...
वीर - देखो मैं बोनी करने आया था... पर कुछ ऐसा हो गया कि मैं... वगैर फुल लिए जा रहा हूँ...
दुकानदार - कोई बात नहीं सर... आपने इतना सोचा यही बहुत है...
वीर - नहीं.. (पैसों को उसके हाथ में रखते हुए) इसे एडवान्स समझ कर रख लो... क्यूंकि हर हाल में... मुझे आज नहीं तो कल फूल लेने ही हैं.... रख लो...
पैसे थमा कर वीर उस दुकान से निकल जाता है l और अपनी गाड़ी में बैठ जाता है l बड़े बेमन से गाड़ी स्टार्ट कर सिटी हॉस्पिटल के तरफ जाने लगता है l
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विक्रम अपनी गाड़ी में रुप के साथ कॉलेज की ओर जा रहा था I रुप मुस्कराते हुए विक्रम की ओर देख कर फिर अपनी नजरें बाहर की तरफ देखने लगती है l
विक्रम - क्या बात है नंदिनी... कुछ सवाल है मन में... पुछना चाहती हो... पुछ सकती हो...
रुप - हाँ... पर...
विक्रम - तुमने एक मुहँ खोला... तो खुशियाँ छा गई... काश के बचपन से ही... तुमसे बातेँ करता रहता... तो कभी ग़म ही नहीं होता जीवन में...
रुप चुप हो जाती है, डबडबाई आँखों से विक्रम की ओर देखती है l विक्रम को यह एहसास हो जाता है तो वह रुप से कहता
विक्रम - सॉरी... एंड...(रुप की ओर देखते हुए) थैंक्यू...
रुप - (खुद को संभालते हुए)क्यूँ...
विक्रम गाड़ी को स्लो करते हुए एक किनारे लगाता है और गाड़ी की स्टार्ट बंद कर देता है l
विक्रम - सॉरी इसलिए... की... पिता के बाद बड़ा भाई आता है... पिता का प्यार से तुम... मैं... हम सभी महरूम रहे.. पर जब भी... तुम्हें भाई की जरूरत थी... मैं तुम्हारे पास नहीं था.... और थैंक्यू इसलिए... की जब मैं मंजिल पर पहुँचने के लिए राह तलाश रहा था... तब तुमने मुझे राह दिखाया... जैसे कोई माँ करती है...(विक्रम की आँखे छलक पड़ती हैं)
रुप से और बर्दास्त नहीं होता वह अपनी दोनों हाथों से चेहरा ढक कर फफक फफक कर रोने लगती है l विक्रम उसे अपनी घुमाता है और बाहों में ले लेता है l
विक्रम - तु तो मेरा बच्चा है... मत रो... तुने बहुत रो लिया है... अब और नहीं... हम सभी तेरे गुनाहगार हैं... पर अब... तुझ पर हम प्यार ही प्यार लुटायेंगे.. बस गुड़िया बस...
विक्रम के बाहों में धीरे धीरे उसका रोना बंद होता है l विक्रम से अलग हो कर l
रुप - आप बड़े खराब हो भैया... रुला दिया मुझे...
विक्रम - बदले में तु जो भी सजा देगी... मुझे मंजुर है...
रुप - (मुस्कराते हुए) ठीक है... अभी आप गाड़ी चलाओ... मैं रास्ते में कुछ सजा आपके लिए सोचती हूँ...
विक्रम हँसते हुए गाड़ी स्टार्ट करता है और कॉलेज की तरफ ले जाने लगता है l गाड़ी में रुप कुछ सोच में डूब जाती है, अचानक उसकी आँखे चमकनें लगती है l तब तक कॉलेज की पार्किंग में गाड़ी पहुँच जाती है l
विक्रम - लो... तुम्हारा कॉलेज आ गया...
रुप - (थोड़ी झिझक के साथ) भैया... अगर मैं आज आपके लिए कोई सजा मुकर्रर करूँ तो...
विक्रम - (मुस्कराते हुए उसे देख कर) मैं अपना सिर झुका कर... खुशी से भुगत लूँगा...
रुप - ठीक है... तो फिर आज शाम सात बजे... आप घर जाओगे... और भाभी को मनाओगे...
विक्रम - (हकलाते हुए हैरानी भरे नजरों से) य...यह... क्केकैसा सजा है...
रुप - (मुहँ बना कर बैठ जाती है) मतलब... अभी कुछ देर पहले बड़ी बड़ी फेंक रहे थे...
विक्रम - नहीं ऐसी बात नहीं है... पर सबके सामने...
रुप - ठीक है... मैं नौकरों को बोल दूंगी... शाम को वह सब अपना छुट्टी कर लेंगे...
विक्रम - और तुम दोनों... मेरा मतलब.. तुम और वीर...
रुप - भैया... मेरा एक काम है... साथ से साढ़े सात बजे शायद...
विक्रम - क्या... कैसा काम... वह भी साथ से साढ़े साथ बजे...
रुप - (समझ गई गलती हो गई) (बात को संभालते हुए) वह असल में भैया... ड्राइविंग स्कुल के बाद आज भाश्वती के घर हो कर जाऊँगी... तो थोड़ी देर हो जाएगी...
विक्रम - ओ.. ठीक है... पर... (खुशी के साथ शर्माते हुए) वह... वीर...
रुप - (छेड़ते हुए) वीर भैया को... (अपनी भवें नचाते हुए) आप ही मनाओ...
विक्रम - (झिझकते हुए) वीर को... मैं.. क्या बताऊँ...
रुप - वह तो आप ही जानों... आख़िर सुबह... आपने वीर भैया पर इतना बड़ा फेवर जो किया है...
विक्रम - (सकपका जाता है) फेवर... कैसा फेवर...
रुप - (छेड़ते हुए) न..हीं... चिटींग नहीं... मैंने देख लिया था... आपने वीर भैया को आँख मारते हुए...
विक्रम - हाँ... हाँ... अच्छा... वह...
रुप - हाँ वह...
विक्रम - वह... (बात घुमाते हुए) वह... (कंधे उचकाते हुए) बस ऐसे ही...
रुप - तो ऐसे ही उनको... देर से आने के लिए कह दीजिए...
विक्रम - मैं... कैसे...
रुप - मैं तो आपके लिए मौका... बना रही हूँ... बाकी आप खुद भी तो कुछ करो...
विक्रम एक बेबस और उम्मीद भरी नजरों से रुप की ओर देखता है l रुप उसके बेबसी पर मुस्करा कर दिलासा देते हुए l
रुप - ठीक है भैया... मैं... मैं वीर भैया से बात करुँगी... पर...
विक्रम - (खुश होते हुए) पर क्या...
रुप - पहले आप बताओ... वीर भैया को आप आज ऐसे क्यूँ जाने दिया... की वह आपको गले से लगा लिया...
विक्रम - (हथियार डालने के अंदाज में, रुप की ओर देख कर) अच्छा चल... बता ही देता हूँ... (रुप बड़ी व्यग्रता के साथ देख रही है) उसे... एक लड़की से प्यार हो गया है... और शायद आज उससे जल्दी मिलने का वादा किया होगा... (फिर अपने आप में खोते हुए) वह उतावला पन... देख कर.. मुझे मेरे दिन याद आ गए... मैं उसकी हालत को समझते हुए... जाने दिया...
रुप - (हैरानी से अपनी आँखे बड़ी करते हुए) ओ... तो यह बात है...
रुप वीर की बात सोच कर गाड़ी से उतर जाती है और जाने लगती है l विक्रम पीछे से आवाज़ देता है l
विक्रम - नंदिनी...
रुप - (पीछे मुड़ कर) जी... भैया...
विक्रम - वह... शाम को... वीर...
रुप - (मुस्कराते हुए, अपनी पलकों को झपका कर) हो जाएगा...
विक्रम खुश होते हुए अपना गाड़ी घुमा कर कैम्पस से चला जाता है l उसके जाते ही रुप एक सुकून भरा सांस छोड़ते हुए अपनी सीने पर हाथ रखती है l
- हुस्स्स.. शाबाश नंदिनी... अच्छे से संभाल लीया... वरना होटल के बारे में क्या कहती... और कैसे कंवींस करती...
तभी उसे अपने कंधे पर किसीके हाथ को महसुस होती है l पीछे मुड़ कर देखती है तो दीप्ति और सारे दोस्त थे l
दीप्ति - क्या बात है नंदिनी... गाड़ी से उतरने के लिए इतना वक़्त...
रुप - वह.. (खुद को संभाल कर, सांस काबु में करती है) बड़े भैया से आज शाम की परमिशन ले रही थी...
सभी अब मिलकर अपने क्लास की ओर जाने लगते हैं l चलते चलते
बनानी - शाम को किस बात के लिए परमिशन...
भाश्वती - हाँ.. ड्राइविंग स्कुल का क्लास तो बराबर जा रही है तु...
रुप - अरे वह बनानी एक बार बता रही थी ना... मधु प्रकाशनी की मालकिन से मिलना चाहती थी...
सभी - ओ...
इतिश्री - इसका मतलब तु सचमुच कुछ लिख रही है...
बनानी - अरे छोड़ो ना...(रुप के मुस्करा कर देखते हुए) अगर यह बढ़िया लिख रही होगी.. तो छपेगी... हम पढ़ लेंगे... क्यूँ.. (अपनी नचा कर)
रुप अपनी जबड़ें भींच कर देखती है और कॉमर्स स्ट्रीम की ओर जाने लगती है l
दीप्ति - अरे वहाँ कहाँ जा रही है...
रुप - रॉकी से बात करने...
बनानी - उससे बात करने... वह क्या करेगा...
रुप - अरे वही तो मेरी मीटिंग अरेंज करेगा...
बनानी - तो उसके पास जाने की क्या बात है... फोन पर तो पुछ सकती है... बहन बनाया है उसने तुम्हें... इतना हक तो बनता है तुम्हारा...
दीप्ति - हाँ... इस बात के लिए... उसके पास जाने की क्या जरुरत है... तुझे तो रात को ही उससे बात कर लेनी चाहिए थी... तुझे तो रात को बताया भी था ना मैंने...
रुप - वह रात को... (कहते कहते रुक जाती है) वह... काम मेरा है... बहुत ही जरूरी... इसलिए फोन के वजाए... सीधे उससे बात करना चाहती हूँ...
बनानी - ओ... अच्छा ठीक है.. (अपने दोस्तों से) चलो हम क्लास चलते हैं...
रुप - (बनानी की कलाई पकड़ कर) तु कहाँ क्लास जा रही है... पहले मेरे साथ चल... (दुसरों को इशारे से जाने कहती है)
बनानी - अरे... मैं... मैं क्यूँ जाऊँ...
रुप - (बनानी को आँख दिखाते हुए) तु चलेगी तो... इम्पैक्ट अलग होगी... चल ना...
कह कर बनानी को खिंचते हुए कॉमर्स स्ट्रीम की ओर ले जाती है l
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सिटी हॉस्पिटल के परिसर में गाड़ी को पार्क कर वीर अंदर जाता है l उसे कैजुअलटी के बाहर अनु दिख जाती है l अनु उसकी दादी और कुछ लोग कैजुअलटी के बाहर पड़े चेयर पर बैठे बैठे हुए हैं l वीर को देख कर अनु के चेहरे पर एक रौनक सी छा जाती है l वह खड़ी हो जाती है l उसके साथ साथ वे लोग भी खड़े हो जाते हैं l
अनु - (शिकायत करते हुए) देखिए ना राजकुमार जी... यहाँ डॉक्टर हमें कितना परेशान कर रहे हैं...
वीर - क्या हुआ अनु...
अनु की दादी - (उदासी भरे आवाज में) देखिए ना राज कुमार जी... पिछले दो घंटे से... हम यहाँ बैठे हुए हैं... ना तो डॉक्टर... मृत्युंजय को सुनीति का मृत्यु प्रमाण पत्र दे रहा है... ना ही शव को ले जाने दे रहा है...
वीर - मृत्युंजय... कहाँ है वह...
तभी लोगों में से कोई मृत्युंजय को आवाज देता है, एक नौजवान लड़का भागते हुए आता है l जैसे ही वह वीर को देखता है सैल्यूट मारता है l वीर उसे पहचान जाता है l
वीर - क्या प्रॉब्लम है मृत्युंजय...
मृत्युंजय कहने की कोशिश करते हुए रो पड़ता है, वीर उसके कंधे पर हाथ रखता है तो मृत्युंजय वीर के गले से लग जाता है और रोने लगता है l वीर उसे दिलासा देते हुए उसके पीठ पर हाथ फेरते हुए सहलाता है l मृत्युंजय की पकड़ वीर के बदन पर और बढ़ जाता है l वीर को ऑकवर्ट लगता है, तभी अनु मृत्युंजय के पास आकर उसके कंधे पर हाथ रख कर झिंझोडती है l
अनु - मट्टू भाई... आप राजकुमार जी से अपना प्रॉब्लम कहो... देखो ना... हमारे मालिक हमारे लिए यहाँ तक आए हैं...
मृत्युंजय - (वीर से अलग हो कर... सिसकते हुए ) वह सुबह.. मैं... ड्यूटी के लिए निकल रहा था... माँ बाथरुम में गिर गई... मैं भाग कर पहुँचा तो देखा माँ की आँखे बाहर की निकल रही थी... और पुरा शरीर अकड़ रहा था... मुहँ में बहुत दर्द... दिख रहा था... मुझे कुछ समझ में नहीं आया.. मैंने... (अनु की दादी को दिखाते हुए) मैंने दादी को खबर की... अनु और दादी जी के आने के बाद... मैंने तुरंत ऑटो करके माँ को यहाँ ले आया... और डॉक्टर साहब ने यहाँ... मुर्दा घोषणा की... पर अब.. ना तो डेथ सर्टिफिकेट दे रहे हैं... ना ही शव ले जाने दे रहे हैं...
वीर - (गुस्से से) कहाँ है डॉक्टर...
मृत्युंजय - अंदर है...
वीर - चलो मेरे साथ...
मृत्युंजय - हाँ... रा.. राजकुमार जी.. ए.. एक मिनट... (वीर रुक जाता है, मृत्युंजय अनु से) अनु... मेरी बहन.. तु दादी जी को लेकर घर चली जा... वहाँ घर में पुष्पा अकेली होगी... उसे संभालना प्लीज...
वीर - यह पुष्पा कौन है...
मृत्युंजय - जी मेरी छोटी बहन है... घर में अकेली है... बदहवास है...
वीर - (बड़े बेमन से) हाँ... अनु तुम दादी जी को लेकर... घर चली जाओ... यहाँ पर जो भी कुछ होगा... वह मैं देख लूँगा...
अनु - पर...
दादी - अरे राजकुमार जी और मृत्युंजय ठीक कह रहे हैं... उधर घर में बेचारी पुष्पा का क्या हाल हो रहा होगा... वैसे भी इन मामलों में औरतों का कोई काम नहीं होता... चल..
दादी अनु को खिंचते हुए वहाँ से ले जाती है l अनु भी अपना सिर झुकाए दादी के साथ वहाँ से जाने लगती है l वीर अनु को वहाँ से जाते हुए देख रहा था l अनु के हर कदम पर उसके दिल में टीस सी उठ रही थी l कहाँ आज वह अपने प्यार का इजहार करने वाला था और अब कहाँ आकर हॉस्पिटल में मृत्युंजय के लिए फंस गया है l अनु के जाने के बाद वीर मृत्युंजय के साथ कैजुअलटी के वार्ड में आता है l वहाँ एक बेड सुनीति की लाश पड़ी हुई थी l वीर सुनीति की शव को देखा l उस औरत की आँखे बंद है पर उसकी मुहँ थोड़ी खुली हुई थी l उसकी लाश को देख कर वीर की आँखें तरने लगती हैं l वीर अपनी नजरें लाश से हटा कर डॉक्टर की ओर देखता है जिसके साथ मृत्युंजय बात कर रहा था l वीर उसके पास पहुँचता है और मृत्युंजय से
वीर - क्या यही वह डॉक्टर है...
मृत्युंजय - हाँ राजकुमार जी...
वीर - क्या बात है डॉक्टर... क्यूँ परेशान कर रहे हैं इस बेचारे को..
डॉक्टर - हू आर यु... (इससे आगे कुछ नहीं बोल पाया)
चटाक की एक आवाज़ गूंज जाती है उस वार्ड में l सभी मौजूद लोग उस तरफ देखते हैं l
वीर - (गुर्राते हुए, मृत्युंजय को दिखा कर) अभी इस लड़के ने.. मुझे राजकुमार कहा... इतने भी समझ नहीं पाया... हम वीर सिंह क्षेत्रपाल हैं... क्षेत्रपाल हैं हम..
डॉक्टर की यह सुनते ही फट जाती है और वह हाथ जोड़ कर वीर के सामने गिड़गिड़ाते हुए
डॉक्टर - सो.. सॉरी... आई एम सॉरी...
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विक्रम रुप को कॉलेज में ड्रॉप करने के बाद, ऑफिस चला गया था, पर ऑफिस में उसका मन नहीं लगा l वह रूप के कहे बातों को याद करते हुए ऑफिस जल्दी निकल कर शुभ्रा के लिए कुछ गिफ्ट खरीदने के लिए पास वाले एक मॉल में आता है l मॉल की पार्किंग में गाड़ी को पार्क करता है l वहाँ पर ESS के ही सेक्यूरिटी वाले सिक्युरिटी दे रहे थे l विक्रम के गाड़ी से उतरते ही वहाँ पर मौजूद सभी गार्ड्स आकर विक्रम को सैल्यूट करने लगते हैं l विक्रम सबको ग्रीट करने के बाद मॉल के चौथी मंजिल पर बुटीक सेक्शन की ओर जाता है l बुटीक और फैब्रिक के एरिया में पहुँच कर वह अपनी नजरें घुमाता है l हर स्टॉल के आगे जनाना बुत, जिन्हें बहुत से फेशन वाले कपड़ों पहनाए गए हैं l उन कपड़ों में सजे बुतों को देख कर विक्रम अपनी आँखे बंद कर लेता है और अपनी कल्पनाओं में उन बुतों की जगह शुभ्रा को कल्पना करने लगता है l अपनी कल्पना में शुभ्रा पर कपड़ों को जांच करने के बाद उसे एक ड्रेस पसंद आता है l वह दुकान के अंदर जाता है और शुभ्रा के लिए वह ड्रेस पैक करवाता है l पेमेंट करने के बाद विक्रम उस पैकेट को लेकर पाँचवी मंजिल पर गहनों के बड़े बड़े ब्रांड वाले दुकान पर जाता है l गहनों के दुकान में भी लग भग हर स्टे में बहुत ही नक्काशी से बने गहनों से सजे बुत दिखते हैं l कपड़ों की तरह वह यहाँ पर भी हर बुत के सामने खड़े होकर उन गहनों को सजे बुतों में विक्रम शुभ्रा को कल्पना करने लगता है l एक हीरों के हार में शुभ्रा को कल्पना करता है l अपनी कल्पना में शुभ्रा को उन हीरो के हार में देख कर उसके चेहरे की रौनक कई गुना बढ़ जाती है l वह अपनी आँखे खोल कर दुकान दार को उस हार को पैक करने के लिए कहता है l दुकान दार झट से हार पैक करवा देता है l हार पैक हो रहा था के तभी विक्रम की नजर एक आदम कद जनाना पुतले पर पड़ता है l जिसे दुकान के बीचों-बीच एक काँच लगे खंबे से सटा कर खड़ा किया गया है और उसे एक खूब सूरत कमरबंद पहनाया गया है l विक्रम उस कमरबंद को देखता है और अपनी आँखे बंद कर उस कमरबंद को शुभ्रा के कमर पर कल्पना करने लगता है l आँखे बंद थी फिर भी विक्रम के होंटों पर एक गहरी मुस्कान उभर आता है l वह अपनी आँखे खोल कर उस पुतले के पास जाने लगता है l उस पुतले की दाहिना हाथ सर के ऊपर उठाए हुए है और बायाँ हाथ कमर पर रखी हुई l विक्रम की आँखे पुतले की कमर पर अटक गईं थीं के तभी पुतले के बाएं तरफ और हाथों के बीच एक चेहरा दिखता है जो लिफ्ट में बहुत से लोगों के बीच खड़ा है l उसे साफ दिखता है लिफ्ट का दरवाजा बंद हो रहा है l अचानक वह पीछे मुड़ता है l वह देखता है वह आदमी लिफ्ट नीचे जा रही है l वह जल्दी से दुकान से निकलता है और सीढियों से नीचे की ओर भागने लगता है l तभी सीढियों पर चढ़ रहे कुछ लड़कों से विक्रम टकरा जाता है l विक्रम के टकराने से उन लड़कों के हाथों पैकेट छिटक कर नीचे गिर जाता है और विक्रम उन पैकेट्स के वजह से सीढियों पर लड़खड़ा जाता है पर गिरता नहीं, खुद को संभाल लेता है l विक्रम उन लड़कों से टकराने के बाद भी उनके लिए नहीं रुकता है वह भागते हुए लिफ्ट का पीछा करने लगता है l लिफ्ट पहली मंजिल पर रुकती है l लिफ्ट के रुकने के बाद विक्रम लिफ्ट के बाहर खड़ा हो जाता है l लिफ्ट से एक एक कर सभी निकलने लगते हैं l लिफ्ट खाली हो जाता है पर उसे वह आदमी ना मिलता है ना दिखता है l इस नाकामी पर विक्रम खुद पर खीज जाता है l वह अपने कमर पर हाथ रख कर इधर उधर देखने लगता है l तभी उसकी नजर छत पर लगे सीसीटीवी कैमरे पर पड़ती है l वह सर्विलांस रुम की ओर जाने लगता है l पर ज्यादा दूर नहीं जा पाता, वही लड़के आकर विक्रम के आगे आकर खड़े हो जाते हैं l
विक्रम इन्हें गुस्से से देखता है, उसकी बायाँ भवां तन चुका है l
विक्रम - (दांत पिसते हुए) मेरा रास्ता क्यूँ रोका...
एक लड़का - तुझ बत्तमीज को तमीज सिखाने...
विक्रम - अच्छा... तो फिर सीखाओ...
वह लड़कें आपस में एक दुसरे को देखने लगते हैं l फिर उनमें से एक आगे आता है और विक्रम के गिरेबान को पकड़ने की कोशिश करता है l पर उसका हाथ विक्रम के गिरेबां तक नहीं पहुँच पाता, विक्रम एक थप्पड़ मारता है, जिससे वह लड़का वहीँ नीचे गिर जाता है l उसे फर्श पर गिरे देख कर सारे लड़के विक्रम की ओर देख कर कांपने लगते हैं l
विक्रम - कोई और है... जो मुझे तमीज सिखाएगा...(कह कर उन लड़कों के तरफ जाता है)
वह लड़के डर के मारे पीछे हटने लगते हैं l तभी कुछ गार्ड्स वहाँ पर पहुँच जाते हैं और विक्रम को पहचान लेते हैं l विक्रम को सैल्यूट करते हैं l विक्रम पहले उन गार्ड्स को देखता है और हाथ से इशारा करते हुए उन्हें वहाँ से जाने को कहता है l उनके जाते ही विक्रम उस नीचे गिरे लड़के की तरफ हाथ बढ़ाता है l वह लड़का विक्रम का हाथ थाम कर उठता है l उसके खड़े हो जाने के बाद
विक्रम - सॉरी... थोड़ा बत्तमीज हो गया था... तुम्हारे साथ जो भी हुआ... उसके लिए फिर से सॉरी...
लड़का - क.. कोई बात नहीं सर... आई एम ओके नाउ...
विक्रम - थैंक्यू... एक्चुयली... किसी और का गुस्सा... तुम पर उतर गया... जाओ.. एंजॉय करो...
विक्रम वहाँ से निकलता है और वापस सीढ़ियों तक जाने लगता है कि तभी उसे याद आता है कि वह शुभ्रा के लिए एक हीरों का हार पसंद किया था l वह फौरन सीढियों से उस दुकान की ओर भागता है l
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शमशान में सुनीति की क्रिया कर्म हो चुका था l शव को मुखाग्नि देने के बाद रिवाज के अनुसार मृत्युंजय बिना पीछे मुड़े अपना घर जा चुका था, धीरे धीरे चिता की लपटें धीमी होती जा रही थी l श्मशान पुरी तरह से खाली हो चुका था, पर उन चिता की मंद पड़ते लपटों को देख कर वीर किन्हीं ख़यालों में खोया हुआ था l उसका ध्यान टूटता है जब जेब में रखे उसका मोबाइल बजने लगता है l वह फोन निकाल कर डिस्प्ले में देखता है, अनु कॉल कर रही थी l
वीर - हाँ... बोलो अनु...
अनु - (आवाज में एक खुशी लिए) राजकुमार जी... आज आपने जो भी किया जितना भी किया... थैंक्यू...
वीर - अनु... कम से कम तुम तो मुझे कभी थैंक्यू ना कहो...
अनु - (शर्मा कर) नहीं ऐसी बात नहीं है... आज लगता था... आपको कोई जरूरी काम था...(शायद आगे कुछ कहना चाहती थी पर चुप हो जाती है)
वीर - (अनु की चुप्पी को समझ जाता है) हाँ अनु... आज एक बहुत जरूरी काम था... जो कि मुझे करना था... पर नहीं कर पाया...
अनु - ओह... सॉरी राजकुमार जी...
वीर - अरे नहीं... बेशक वह काम जरूरी है... पर उसके लिए भी वक़्त है... मैं... आज नहीं करपाया तो क्या हुआ... कल या परसों कर लूँगा...
अनु - (आवाज में खुशी के साथ) पर आज आपने जो भी किया... जानते हैं.. हमारे बस्ती में... मुहल्ले में सब आपके गुण गाते नहीं थक रहे हैं...
वीर - क्यूँ ऐसा क्या खास कर दिया...
अनु - राजकुमार जी... एक मुलाजिम के लिए... मालिक का खुद आना और इतना कुछ करना... आज के ज़माने में कौन करता है ऐसा... सब लोग आपकी तारीफ कर रहे हैं... (आवाज़ में शिकायत भरे लहजे में, धीरे से) बस यह दादी ही नहीं समझती...
वीर - (ठीक से समझ नहीं पाता) क्या... क्या कहा तुमने...
अनु - कुछ नहीं... कुछ नहीं...
वीर - अच्छा... कल ड्यूटी आओगी...
अनु - (झिझकते हुए) जाना तो.. चाहती हूँ... पर
वीर - पर.. पर क्या..
अनु - दादी कह रही है... चूंकि वह हमारे अच्छे पड़ोसी थे... इसलिए कम से कम तीन दिन के बाद शुद्धि हो कर जाना...
वीर - मतलब...
अनु - मैं... मैं... शनिवार को आऊंगी...
वीर - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) ठीक है अनु...
अनु - अच्छा राजकुमार जी... रखती हूँ फोन...
वीर - ह्म्म्म्म...
अनु के फोन काटते वीर अपना फोन को जेब में रख कर अपनी गाड़ी के पास जाता है l डोर खोल कर गाड़ी में बैठता है और स्टार्ट कर गाड़ी को श्मशान से बाहर ले जाते हुए सड़क पर दौड़ता है l अपने ख़यालों में वह खोया है तभी उसका फोन बजने लगता है l फोन जेब से निकलने की कोशिश में फोन नीचे गिर जाता है l इसलिए गाड़ी को ब्रेक लगा कर वह गाड़ी को साइड करता है l गाड़ी के रुकने के बाद जब फोन उठाता है तो फोन की रिंग बंद हो जाती है l फोन पर डिस्प्ले में सिर्फ प्राइवेट नंबर लिखा देखता है l फोन को गाड़ी के सीट पर फेंकते हुए फ़िर से गाड़ी स्टार्ट करने को होता है कि फोन दुबारा बजने लगता है l वीर डिस्प्ले देख कर इस बार चौंकता है, क्यूंकि डिस्प्ले पर उसीका नंबर दिख रहा था l वह फोन उठाता है
वीर - हैलो...
कॉलर - कमाल है... तु श्मशान में है... डिस्प्ले पर तेरा नंबर है... फिर भी तेरी आवाज में कंपकंपी नहीं... इतना सूखा जवाब... हैलो...
वीर - हैलो... कौन बोल रहा है...
कॉलर - मैं वही हूँ बे... जिसने तेरे बाप की गांड मारी थी...
वीर - (गुस्से में आकर) हराम ज़ादे...
कॉलर - हाँ.. यह तारीफ... ठीक है...
वीर - बोल क्यूँ फोन किया.... कहाँ है तु...
कॉलर - ना ना... गुस्सा नहीं... मैं हराम जादा हूँ... पर तु तो मादर चोद है... गुस्सा क्यूँ कर रहा है...
वीर - (चिल्लाते हुए) हराम जादे... कुत्ते कमीने... भोषड़ी के...
कॉलर - आह... वाह.. कितनी ठंडक पहुँच रही है... जब तुम क्षेत्रपालों को... चिढ़ते... तड़पते देखता हूँ....
वीर - हम जान गए हैं... मादर चोद... तु महानायक और चेट्टी का कोई गुर्गा है.. या उनका कोई मुर्गा... जो उनके लिए बांग दे रहा है....
कॉलर - हा हा हा हा हा हा.... ना मैं महानायक हूँ... ना मैं चेट्टी हूँ... मैं खिलाड़ी हूँ... यह दोनों मेरे प्यादे...
यह सुनते ही वीर के कान खड़े हो जाते हैं l उसकी आँखे हैरानी के मारे बड़ी हो जाती हैं l
कॉलर - क्यूँ हिल गया ना... हा हा हा हा... तभी तो तुझे मादर चोद बोला... क्यूँ है ना...
वीर - (अपनी दांत पिसते हुए) कमीने... जिस दिन तु मेरे सामने होगा... वह दिन तेरी जिंदगी का आखिरी दिन होगा...
कॉलर - हा हा हा हा... ओ हो हो हो... ऐ हे हे हे... जोक ऑफ द सेंचुरी... हा हा हा हा...
(वीर कसमसा जाता है) क्यूँ... क्या हुआ... कुछ डायलॉग नहीं मारेगा...
वीर - (अपनी जबड़े भींच कर फोन को सुन रहा है)
कॉलर - मैं... मेडिकल में था... तुझे देख रहा था... सुनीति के मरने पर... उसका बेटा रो रहा था... समझ में आता है... पर मादर चोद तु क्यूँ रो रहा था...
वीर - (हैरानी से मुहँ खुला रह जाता है)
कॉलर - हा हा हा हा हा हा... कुछ याद आया... सुनीति को अपने नीचे सुलाता था... जब उसके पति गदाधर नायक ने तुम दोनों को रंगे हाथ पकड़ा था.. तब... तुने उसके पति को मार कर पंखे से टांग दिया था... याद है...
वीर - (यह सब सुन कर एक दम से शुन हो जाता है)
कॉलर - तुने अपने पाप ढकने के लिए... उसके बेटे को ESS में नौकरी भी दिला दी... वह बेचारा.. तुझे भगवान मानने लगा है... क्यूंकि उसे सच्चाई मालुम जो नहीं है...
वीर - (बड़ी मुशिकल से अपनी हलक से आवाज़ निकाल कर) यह... यह सब...
कॉलर - अरे मैं तो तुम क्षेत्रपालों की हर एक कि... कुंडली जानता हूँ... इसलिए तो... तुझे मादर चोद कह रहा हूँ... मादर चोद... (वीर चुप रहता है) क्यूँ बोल नहीं फुट रहे हैं तेरे... तुम सालों... दुसरों की माँ बेटियों को नीचे लाने वालों... अपनी माँ बहन के साथ घर में रहते हो... या उन्हें भी अपने नीचे लाते रहते हो...
वीर - (चीखता है) हरामजादे... कुत्ते... कमीने... भोषड़ी के... मादरचोद... रंडी की औलाद... (हांफने लगता है)
कॉलर - बस इतना ही....
वीर - कुत्ते... गटर के... सुन मेरा वादा है तुझसे... तुझे मैं ही मरूंगा... म्युनिसिपलटी के दिए... गली के कुत्तों को दिए मौत से भी बत्तर मौत...
कॉलर - वाह... अब तो वाकई... मजा आने वाला है... चल एक काम करते हैं... कुछ दिनों के लिए... तेरे बाप से फोकस हटाते हैं... तुझ पर फोकस डालते हैं... अब पुरा शहर देखेगा... वीर को कुत्ते की तरह गालियों में दौड़ते हुए... भागते हुए... खुद को बचाते हुए...
वीर - एक मशवरा देना चाहता हूँ...
कॉलर - हाँ... बोल बोल...
वीर - तुझे मौका मिले... तो मुझे खतम कर देना... क्यूँकी मैं तेरा मौत हूँ...
कॉलर - अच्छा.... हा हा हा हा हा हा... मैं तो डर गया... हा हा हा हा हा हा... (थोड़ी देर की चुप्पी के बाद) अब तु तैयार रहना... बहुत जल्द यह भुवनेश्वर शहर... तेरे लिए हादसों का शहर बनने वाला है...
फोन कट जाता है l वीर हैरान रह जाता है l अपना अतीत को इस तरह से अपने दुश्मन के मुहँ से सुनने के बाद वीर को थोड़ा दुख पहुँचता है और थोड़ा डर भी लगने लगता है कि, अगर अनु को कहीं उसके काली अतीत के बारे में मालुम पड़ा तो... कैसे उसका सामना करेगा... उसके मासूम से चेहरे पर शिकन के बारे सोचते कि वीर की हालत खस्ता लगता है l स्टियरिंग पर उसके हाथ कांपने लगते हैं l कुछ सोचने के बाद वीर अपना फोन निकालता है और राजगड़ फोन लगाता है l उधर एक नौकर फोन उठाता है l
नौकर - हैलो...
वीर - हम राजकुमार बोल रहे हैं...
नौकर - हुकुम राजकुमार जी...
वीर - जाओ... छोटी रानी जी को फोन दो...
नौकर - जी हुकुम...
थोड़ी देर बाद फोन पर सुषमा - हैलो...
वीर - माँ... (कुछ कह नहीं पाता, रो देता है)
सुषमा - क्य..(घबराते हुए) क्या... हुआ... रो क्यूँ रहा है...
वीर - (रोते हुए) माँ.. मैं आ रहा हूँ... प्लीज... माँ मैं आ रहा हूँ... तुम्हारे पास... मुझे तुम्हारी गोद में अपना चेहरा छुपा कर रोना है माँ... प्लीज...
सुषमा को हैरानी होती है l वीर इतना जल्दी टुट नहीं सकता था l जरूर बात कुछ और है l
सुषमा - ठीक है बेटा... आजा... मैं तेरी राह देख रही हूँ... आजा...
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बस में ज्यादा सबारी नहीं है, पर जितने भी हैं उनमें तीन जन ड्राइविंग स्कुल से साथ चढ़े थे और तीन जन वाली सीट में भाश्वती, रुप और विश्व बैठे बातेँ करते हुए जा रहे थे l पहले भाश्वती की स्टॉप आ जाती है l वह इन दोनों को बाय कह कर उतर जाती है l भाश्वती के उतर जाने के बाद विश्व और रुप के बीच कुछ देर के लिए खामोशी छा जाती है l थोड़ी देर बाद अपना गला साफ करते हुए खरासते हुए विश्व बोलना शुरु करता है l
विश्व - क्या बात है... आज आप किसी और रूट में जा रहे हैं...
रुप - हाँ... एक्चुयली... मुझे एक दोस्त से मिलने जाना है... और इत्तेफ़ाकन.. वह जगह... कटक रोड पर है...
विश्व - ओ.. अच्छा... (फिर कुछ देर की खामोशी) जानते हैं... सुकुमार अंकल... सीधे शुक्रवार को आयेंगे... फाइनल टेस्ट देनें...
रुप - हाँ... क्या कर सकते हैं... वह थोड़े टेंशन में जो हैं...
विश्व - आज आते... तो मैं परेशानी की वजह पुछता... पर वह आए ही नहीं..
रुप - क्या पुछते... बताया तो था तुम्हें...
विश्व - हाँ.. अगर मैं होता तो... मुझे डिटेल में बताते...
रुप - (बिदक जाती है) मतलब... मैंने तुम्हें जितना बताया वह कम था...
विश्व - नहीं... मेरा मतलब है...
रुप - (मजाकिया अंदाज में) अरे हाँ.. मैंने तो तुम्हें जानबूझ कर सिर्फ ट्रेलर ही बताया है....है ना... सुकुमार अंकल होते तो... वह तुमको पुरा फिल्म बताते... नहीं... हूँह्ह्.. (मुहँ घुमा कर खिड़की की तरफ देखने लगती है)
विश्व रुप को गुस्सा देख कर उससे ज्यादा बात करना मुनासिब नहीं समझता है, इसलिए चुप हो जाता है l
रुप - कितने मीन हो...
विश्व - क्या.. मैं.. मैंने अभी क्या किया... मैं तो चुपचाप बैठा हूँ...
रुप - वही तो... मैं रूठ कर बैठी हुई हूँ... तुम मना भी नहीं सकते...
विश्व - क्यूँ...
रुप - अरे... लड़की हूँ... इतना तो करना ही चाहिए तुम्हें...
विश्व - यह कैसा लॉजिक है... रूठने और मनाने के लिए... लड़की होने की लिबर्टी ले रहे हो आप...
रुप - क्यूँ ना लूँ... दोस्त हूँ... इतना तो हक रखती हूँ...
विश्व - मैं भी तो दोस्त हूँ आपका... मुझे भी कुछ हक होने चाहिये...
रुप - हाँ तो हमारे दरबार में... अपना हक बताओ... जताओ...
विश्व - क्या... आपका दरबार...
रुप - हाँ... (बड़े शोख अंदाज में) आख़िर तुमने ही तो हमें... राजकुमारी बनाया है...
विश्व उसकी यह अदा देख कर मुस्करा देता है और अपना चेहरा घुमा लेता है l
रुप - देखो... तुमने अभी भी... हमें नहीं मनाया...
विश्व - (हँसते हुए) आप बिना अपना हक जताये मानोगे नहीं...
रुप - नहीं..
विश्व - (अपने कान पकड़ कर) हे राजकुमारी जी... इस कमबख्त को.. माफ़ी दे दीजिए.. बड़ी मेहरबानी होगी...
रुप - हाँ... अब ठीक है... बहुत अच्छे... हम खुश हुए...
विश्व - अच्छा... तो इसी खुशी में... वह सुकुमार अंकल जी फिल्म ही बता दीजिए...
रुप आँखे सिकुड़ कर जबड़े भींच कर विश्व को देखती है l विश्व को उसकी यह हरकत देख कर डरने की एक्टिंग करता है, फिर दोनों हँसने लगते हैं l
विश्व - (चेहरे पर अनुरोध की भाव लाकर) प्लीज...
रुप - (अपना सिर हिलाते हुए कहना शुरू करती है) सुकुमार अंकल पुरी जिले के नीमापड़ा गांव से हैं... उनके घर में सिर्फ उन्हीं की पढ़ाई अच्छी थी.... इसलिए स्कॉलरशिप के चलते आगे की पढ़ाई के लिए कटक आ गए थे... फिर जब नौकरी लगी... जल्द व्याह भी हो गया था... बच्चे भी जल्दी हुए... तब उनके पढ़ाई सुर उच्च शिक्षा के लिए... अपना रैन बसेरा भुवनेश्वर में बसा लिया... और नौकरी, बीवी और बच्चों में इतना खो गए कि गांव बहुत पीछे छूट गया... शायद यही उनकी बहुत बड़ी गलती थी... उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी बच्चों को समर्पित कर दी... बच्चे उच्च शिक्षा के बाद अच्छे नौकरी में भी लग गए... उनकी भी शादी हो गई... अब नौकरी में सब घर से दुर तो होते ही रहते हैं... उनके बच्चे... और बच्चों के बच्चे... विदेश में बस गए... और भारत आना एकदम से छोड़ दिया... पिछले साल इस दुख में आंटी जी को दिल का दौरा पड़ा था... तब इन दोनों को देखने उनके बच्चे कुछ ही दिनों के लिए आए थे... तब अंकल ने उनके बच्चों से और बहुओं से बिनती की... के अब वह लोग इतने लायक और पैसा कमाने वाले हो चुके हैं कि भुवनेश्वर में सेटल होने में कोई दिक्कत नहीं होगी... आख़िर इतना बड़ा घर और उनके कमाए पैसे... कुछ तो काम आयेंगे... तब उनके बहुओं ने जो जवाब दिया... वह उन्हें झिंझोड कर रख दिया...
विश्व - ऐसा क्या कह दिया उन्होंने...
रुप - उनके बहु ने अंकल से सवाल किया... की वह पुरी के नीमापड़ा गांव छोड़ कर... भुवनेश्वर में क्यों बसे... तब अंकल ने उच्च शिक्षा और अच्छी नौकरी की बात कही... तब उनके बहु ने जो कहा... उससे अंकल चुप हो गए थे... उनके बहु ने कहा... जब वह उच्च शिक्षा और अच्छी नौकरी के लिए... गांव छोड़ कर भुवनेश्वर में बस सकते हैं... तो अच्छी शिक्षा और अच्छी नौकरी के लिए... उनका विदेश में बसना कहाँ से गलत है...
विश्व - ओह... हाँ जवाब तो बहुत तगड़ा है....
रुप - तभी तो... अंकल भी सदमा लगा था... पर आंटी के लिए खुद को संभाल लिया... पर अब उनके बच्चे पोते पोतीयों के साथ आए हैं... उनके सारे प्रॉपर्टी बेचने के लिए कह रहे हैं... ताकि उन पैसों से... स्टेटस में घर खरीद सकें... और बदले में
उनके बच्चे बारी बारी से कुछ महीने आंटी जी को अपने साथ रखेंगे और कुछ महीने अंकल जी को... पर दोनों के एक साथ नहीं रखेंगे...
विश्व - ओ... तभी अंकल उस दिन इतने बुझे हुए थे...
रुप - हाँ... आंटी जी पोते पोतीयों के मोह में... अंकल जी को मजबूर कर रही हैं... प्रॉपर्टी बेचने के लिए...
विश्व - ह्म्म्म्म... तो बात यह है... पर अंकल जी की सोच बिल्कुल ठीक है..
रुप - हाँ... पर आंटी के सामने वह प्रूफ करना चाहते हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म.. एक बात कहूँ...
रुप - क्या...
विश्व - अंकल और आंटी.. थ्योरी में जी रहे हैं.... और उनके बच्चे... प्रैक्टिकल में...
रुप - हाँ इस थ्योरी और प्रैक्टिकल के बीच जो... तोल मोल होता है.. यही इंसान को बहुत दुख देता है...
विश्व - ठीक है... आप कैसा साल्यूशंस चाहते हैं...
रुप - सच बताऊँ... मैं चाहती हूँ... के कोई साथ दे या ना दे... पर अंकल और आंटी साथ रहे... बिल्कुल अपने अंतिम श्वास तक...
विश्व - ह्म्म्म्म... ठीक है... तब तो जरूर कुछ करना है...
इतने में होटल ब्लू इन की स्टॉपेज आ जाती है l रुप उस स्टॉपेज पर उतर कर विश्व को बाय करती है और उतर जाती है l विश्व भी उसे बाय करता है l बस चलने लगती है l विश्व रुप को और रुप विश्व को तब तक देखते हैं जब तक एक दुसरे के आँखों से ओझल नहीं हो जाते
आज का दिन वीर के लिए कुछ ज्यादा ही बुरा निकला, पहले वो अनु से इजहार ए मोहब्बत नही कर पाया फिर हॉस्पिटल में सुनीति को देख के अपनी हरकत याद आ गई और फिर उस फोन कॉल ने उसको इश्क के आसमान से हकीकत की जमीन पर ऐसा पटका की उसकी हिम्मत, चाहत और सपने सब टूटते नजर आने लगे है और ऐसे वक्त में इंसान को एक ही सहारा नजर आता है वो है उसकी मां जो उसको निस्वार्थ भाव से ममता के आंचल में सुला लेती है।
मगर एक हकीकत ये भी है कि जिस दिन अनु को सच्ची पता चलेगी तो क्या वीर अनु की प्रेम कहानी भी शुभ्रा विक्की वाले मोड़ पर पहुंच जाएगी?
विक्रम को भी शाम के लिए एक आशा की किरण नजर आई है अपने और शुभ्रा के रिश्तों को फिर से ठीक करने की मगर शॉपिंग करते हुए उसे उस अनजान इंसान की झलक दिख जाती है जिसने विक्रम के वजूद को अंदर तक तहस नहस करके रख दिया है।
अब रूप वापस उसी अल्हड़ राजकुमारी को वापस ला रही है जो अनाम की चाहत और जरूरत दोनो ही है और शायद इसिंतरह वो प्रताप के अंदर से अनाम को निकल का बाहर लाएगी?
अब बात करते इस कहानी कि तो इसके लिए ये ही पंक्तियां निकलती है
मुझे मोहब्बत सी हो गई है
हा तेरी आदत सी हो गई है
जहा भी जाऊ मेरे लिए तो
तो एक जरूरत सी हो गई है
दिल तो चाहता है कि अपडेट रोज मिले मगर फिर दिमाग समझता है कि लेखक महोदय की अपनी एक जिंदगी है जिसमे उनके उपर व्यवसायिक, सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारिया भी है तो दिल ने दिमाग से मांडवाली करते हुए है दूसरे दिन अपडेट का प्रस्ताव पारित कर दिया। देखना ये है की लेखक महोदय इस प्रस्ताव पर मोहर लगाते है की नही क्योंकि अपना
दिल है की मानता नहीं
अब तो तारीफ के लिए विशेषण भी कम पड रहे है।