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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

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Aksindian

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काला नाग भाई
उम्मीद का दिया जलाकर उसे आँधियो के हवाले मत किया करो

पिछले 3 दिन बहुत बेसब्री से निकले है

इंतहा हो गई इंतजार की
आई ना कुछ खबर मेरे यार की
 

Kala Nag

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Jabardastttt Updateeee.
शुक्रिया Jaguaar भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया
Danny aur Bhairav Singh ki mulakat padhke bahot maza aayaa. Danny ne ek pal ke liye hi sahi par Bhairav ke mann mein darr ka sanchar kardiya hai.
हाँ अब विश्व को सीरियसली लेने के लिए भैरव सिंह बाध्य हो जाएगा
Idher Roop ke saath gaadi mein mujhe lagta hai Rona hai. Aur ab mujhe lagta hai iss Rona ka band khud Vikram yaa Veer yaa phir dono mil ke bajayengee.
नहीं इतनी जल्दी रोणा इतना बड़ा कांड नहीं कर सकता
Dekhte hai ab Rona kyaa karta hai. Kyaa woh apne mansube mein kamyab hojaayega yaa phir issbaar Rona ko uske kiye ki jabardastt saza milegi.
रोणा की गुस्ताखी उसे एक खौफनाक मौत देगा
 

Kala Nag

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intezaar rahega Kala Nag bhai....


Intjaar bade bhai

Kala Nag bhai next update kab tak aayega?

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काला नाग भाई
उम्मीद का दिया जलाकर उसे आँधियो के हवाले मत किया करो

पिछले 3 दिन बहुत बेसब्री से निकले है

इंतहा हो गई इंतजार की
आई ना कुछ खबर मेरे यार की
भाई यों एक आध घंटा और उसके बाद पोस्ट कर रहा हूँ
 

Kala Nag

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👉एक सौ बत्तीसवां अपडेट
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सारे सिक्युरिटी गार्ड्स अपने सिर झुकाए खड़े थे l सामने राजसी एटीट्यूड के साथ पैर पर पैर रख कर दोनों हैंड रेस्ट पर हाथ रख कर भैरव सिंह अपने ठुड्डी पर हाथ रखकर बैठा हुआ था l तभी कुछ देर बाद उस बैठक वाले कमरे में पिनाक अपना सिर पकड़ कर आता है और विक्रम भी अपने कमरे से निकल कर लगभग वैसी हालत में कमरे में आता है l

पिनाक - आह... मेरा सिर... बहुत भारी लग रहा है... शुभोदय राजा साहब...
विक्रम - शुभोदय राजा साहब...
भैरव सिंह - आपको कुछ नहीं लग रहा युवराज...
विक्रम - हाँ... सिर इतना भारी लग रहा है कि... आह... लगता है... देर रात सोने की वज़ह से.. ऐसा लग रहा है...
भैरव सिंह - (पिनाक से) और आपका...
पिनाक - लगता है... शराब कुछ ज्यादा हो गया था.. शायद हैंग ओवर का असर है...
भैरव सिंह - ताज्जुब की बात है ना.... जो हालत आप दोनों की है... बिल्कुल वैसी ही हालत... रात को.. इस घर की पहरेदारी करने वाले हर सिक्युरिटी स्टाफ्स की भी हुई है...
विक्रम - (चौंकता है) ह्वाट...
भैरव सिंह - हाँ... अब सवाल है... कैसे और कब...
विक्रम - अगर ऐसा है... तो यह कोई साजिश लग रहा है... तब सवाल और भी हैं... कौन और क्यूँ...
पिनाक - क्या... घर में इतना बड़ा कांड हो गया... चोरी या डकैती के लिए... (गार्ड्स से) कौन आया था यहाँ...


सभी गार्ड्स अपना सिर झुकाए चुपचाप वैसे ही खड़े रहते हैं जैसे पहले से ही थे, तभी उन सभी गार्ड्स के इनचार्ज वहाँ पहुँचता है l उसके हाथ में एक पेपर पैक में पैक्ड कुछ था l वह उस पैकेट को हाथ में लिए अपने साथियों के साथ भैरव सिंह के सामने सिर झुका कर खड़ा हो जाता है l

भैरव सिंह - कुछ पता चला...
इनचार्ज - जी राजा साहब... हमारा एक आदमी जो नाइट शिफ्ट में था... वह गायब है... सीसीटीवी भी काम इसलिए करना बंद कर दिया... क्यूँकी.. (कहते कहते वह पेपर वाला पैकेट खोलता है, जिसके अंदर एक इलेक्ट्रॉनिक गैजेट निकाल कर दिखाते हुए) यह गैजेट सीसीटीवी की एक ट्रांसमीटर के केबल में लगा हुआ था... जिसके वज़ह से... सारे सीसीटीवी की ट्रांसमिशन डिस्टर्ब हुई और सिस्टम मालफंकशन करने लगे....
पिनाक - यह क्या है...
इनचार्ज - एक तरह का जैमर... ट्रांसमिशन जाम कर देता है...
विक्रम - (हैरान होते हुए) जैमर... मतलब... कल किसने घुसने की कोशिश की या...
इनचार्ज - पता नहीं... पर सारे के सारे... गार्ड्स... किसी के द्वारा इनहैलड एनास्थेसिक गैस से... आई मिन... स्लीपिंग गैस से इन्फेक्टेड थे...
विक्रम - ह्वाट... हाउ इट इज पॉसिबल...
इनचार्ज - आई एम सॉरी... बट इट हैपंड...
भैरव सिंह - क्या ऐसी है तुमारी सिक्युरिटी... यह तुम्हारे सिक्युरिटी संस्था के दामन पर... एक बदनुमा दाग है...
इनचार्ज - आई एम... सॉरी अगैन... राजा साहब...
भैरव सिंह - गेट आउट ऑफ हीयर....
इनचार्ज - राजा साहब...
भैरव सिंह - गेट.. आउट...

इनचार्ज अपने साथियों को लेकर वहाँ से बाहर चला जाता है l उन सबके जाने के बाद कमरे में भैरव सिंह, पिनाक और विक्रम रह जाते हैं


भैरव सिंह - पहली बार ऐसा हुआ कि हम अपनी सिक्युरिटी के वगैर बाहर स्टेट में हैं... पता नहीं हमारे सिक्युरिटी होती तो... यह सब होता या नहीं...
विक्रम - इन सबकी हालत देख कर... लगता है... हम सभी इनहैलड एनास्थेसिक से इन्फेक्ट हुए हैं... पर... (भैरव सिंह को देख कर) आपको देख कर ऐसा नहीं लगता है कि आप... इन्फेक्ट हुए हैं...

भैरव सिंह विक्रम की ओर घूर कर देखने लगता है l विक्रम भी भैरव सिंह की ओर देख रहा था कुछ देर बाद अपनी नजरें झुका लेता है l

भैरव सिंह - कभी कभी गणित भूल हो जाती है... पर जिंदगी सबक सिखाने से नहीं चूकती... सुबह तड़के हमारी नींद में खलल डाल कर कोई गया है...
पिनाक - क्या... इतनी चाक बंदोबस्त को धता बता कर कौन आया था...
भैरव सिंह - (कुछ देर चुप रह कर) वही... जिससे मिलना हमारा कलकत्ता आने का प्राथमिक उद्देश्य था...
पिनाक - ओह... मतलब वह माफिया... डैनी..
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म.... (दोनों अभी भी खड़े हुए थे) आप दोनों... बैठ सकते हैं....

विक्रम और पिनाक दोनों पास पड़े सोफ़े पर बैठ जाते हैं l उनके बैठने के बाद पिनाक भैरव सिंह से पूछता है

पिनाक - तो यहाँ का काम सब ख़तम हो गया है... इसका मतलब अब हम भुवनेश्वर जा सकते हैं...
भैरव सिंह - नहीं... सारे काम तमाम नहीं हुए हैं... आपके हिस्से का काम अभी बाकी है... वह काम खत्म होगी... हम भुवनेश्वर को निकल जाएंगे...
विक्रम - छोटे राजा जी का कौन सा काम...
भैरव सिंह - (पहले विक्रम को देखता है, फिर पिनाक की ओर देख कर) छोटे राजा जी... क्या अभी तक आपने... युवराज को बताया नहीं...
पिनाक - वह... हाँ.. हाँ... कल ही सारी जानकारी... सारी बातें... युवराज को हमने बताये थे...

भैरव सिंह विक्रम की ओर सवालिया नजर से देखता है l विक्रम भी भैरव सिंह को घूर के देखने की कोशिश करता है पर कुछ देर बाद नजरें झुका लेता है l


भैरव सिंह - क्या बात है युवराज... राजकुमार के विषय में... आपकी मन में कुछ नकारात्मक लग रहा है... आपकी नजरों में असंतोष... नाराजगी साफ दिख रहा है...
विक्रम - (थोड़ा अटक कर, बात घूमते हुए ) यह... डैनी का क्या चक्कर है...
भैरव सिंह - यह आपकी मतलब कि बात नहीं है...
विक्रम - मुझे लगा... आपसे जुड़े हर खास बात... मुझसे ताल्लुक़ रखता होगा...

भैरव सिंह कुछ देर के लिए विक्रम की ओर देखते हुए सोचने लगता है फिर अपनी जगह से उठ खड़ा होता है l विक्रम और पिनाक भी उठ खड़े होते हैं l भैरव सिंह चलते हुए दीवार की ओर जाता है और इनके तरफ पीठ कर खड़ा होता है l फिर मुड़ कर विक्रम को देखते हुए

भैरव सिंह - राजवंशीयों की मूंछें हमेशा उपर की ओर तने होते हैं... (अपनी मूँछों के दोनों तरफ ताव दे कर) एक तरफ़ वंश के नाम का गौरव व अभिमान और दुसरी तरफ गरुर व अहंकार... जिसके दम पर बिना तोले भी कोई बोल बोल भी देने पर... उस बोल की वजन हाथी बराबर रहता है... अब तक की जिंदगी में अपनी नाक की आन के लिए जो कुछ भी किया... उसे पीछे मुड़ कर कभी नहीं देखा... पर (भैरव सिंह रुक जाता है)
विक्रम - पर...
भैरव सिंह - पर पहली बार... कोई वज़ह बना है... की हम... पीछे मुड़ कर देखने को मजबूर हो गए हैं... के सात साल पहले जो किया... उसे नजरअंदाज क्यूँ कर दिया था...
विक्रम - (एक पॉज लेने के बाद) विश्वा....
भैरव सिंह - हाँ... जिसका कद हमारे जुते से भी उपर नहीं था... वह डैनी को सीढ़ी बना कर... हमारे गिरेबां तक पहुँचने की जुगत में है...
विक्रम - इसका मतलब... सिर्फ हम ही बेहोश थे... आप होश में इसलिए रहे... डैनी आपसे मिलने आया था...
भैरव सिंह - हाँ...
पिनाक - तो विश्वा का क्या किया जाए...
भैरव सिंह - कुछ जरुरी बातेँ हमें कल मालुम हुई... अब देखना यह है कि... डैनी ने जितना उसके बारे में कहा... क्या वाकई वह उतना बड़ा छलांग लगा चुका है...
पिनाक - क्या मतलब...
भैरव सिंह - जुते मजबूत हों... तो राह में कील भी कंकर के बराबर होते हैं... अगर जुते कमजोर हों... तो कील जुते फाड़ कर तलवे को चुभेंगे.... अब सवाल है... इन सात सालों में... हमने कील को कंकर समझ कर अनदेखा किया... या हमारे जुते कमजोर पड़ गए...
पिनाक - अब वह क्या करेगा... ज्यादा से ज्यादा... रुप फाउंडेशन की केस को दोबारा उछालेगा...
भैरव सिंह - पर वह है किस काबिल... क्या जुते में छेद कर सकता है... जोडार ग्रुप के लिए निर्मल सामल का काम कैसे बिगाड़ेगा...
पिनाक - निर्मल सामल का प्रोजेक्ट को बिगाड़ने के लिए कुछ बचा ही नहीं है... प्रधान ने सब सेट कर दिया है... BDA से मंजुरी भी ले लिया है...
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... यह रिश्ता बहुत जरूरी है... केके का हमसे टूटने के बाद... हमें अपनी रियल एस्टेट की धाक को निर्मल सामल के जरिए फिर से एस्टाब्लीश करना है...
पिनाक - जी... अगर प्रधान सही जा रहा है... तो कोई अड़चन नहीं होगी आगे...
भैरव सिंह - बात अड़चन की नहीं है... रिश्ते की है... और यह रिश्ता हाथ से छूटना नहीं चाहिए... क्यूंकि पश्चिम ओडिशा में.. निर्मल सामल उतना ही हैसियत रखता है... जितना केके भुवनेश्वर में...

कह कर बैठ जाता है और इशारे से पिनाक और विक्रम को बैठने के लिए कहता है l पिनाक तो बैठ जाता है पर विक्रम खड़े ही रहता है l

भैरव सिंह - क्या हुआ युवराज...
विक्रम - ज़मी जमाया अपना धंधा और सिक्का जारी रखने के लिए... आपको यह रिश्ता चाहए... पर राजकुमार के दिल रखने के लिए नहीं.... उनके खुशी के लिए नहीं...
भैरव सिंह - (चेहरा भाव हीन हो जाता है) दिल... वह क्या होता है...
विक्रम - आपको मेरे दिल की ज़ज्बात का खयाल रहा... पर राजकुमार का...
भैरव सिंह - युवराज जी... बी मैच्योर... मत भूलिए... आप क्षेत्रपाल हैं.... यह क्षेत्रपाल होना अभिशाप नहीं वरदान है.... जो आपको... आपकी पहचान को इस स्टेट में रुतबा दिलाता है... यह सियासत और हुकूमत... हमारी जागीर है... कल को हमारी जगह आपको लेनी है... सो प्लीज बी मैच्योर... आपके सामने एक बनी बनाई सल्तनत होगी... जिस पर आपको हुकूमत करनी है....
विक्रम - किस किमत पर... अपने ही भाई की दिल को ठेस पहुँचा कर... उसका दिल तोड़ कर... हमने भी दिल लगाया था... हो सकता है... अपने ज़माने में आपने भी लगाया होगा...
भैरव सिंह - नहीं... जहां आपने दिल लगाया... हमने वहाँ अपना दिमाग लगाया... जिस रिश्ते से क्षेत्रपाल परिवार की नाक ऊंची हो... हम वहाँ समझौता कर सकते हैं...
विक्रम - नाक...
भैरव सिंह - हाँ राज कुमार नाक... एक नाक ही तो है... जिसकी ऊँचाई मूँछ की तख्त पर समाज में रुतबा देता है... इसी लिए तो... कुदरत ने... दिल को नाक नीचे की माले में.. और दिमाग को नाक से उपर की माले में रखा है... आप भी अब दिल से नहीं दिमाग से काम लीजिए...
विक्रम - मैं राजकुमार जी के लिए...
भैरव सिंह - (विक्रम की बात को काट कर) आपने दिल लगाया... आपके दिल का काम ख़तम हो गया... राजकुमार ने दिल लगाया... उसका काम भी ख़तम समझिए... राजकुमार ने जहां दिल लगाया.. वहाँ... हमने दिमाग लगाया तो पाया... राजकुमार की दिल की सुनेंगे तो हमारी नाक नीची हो जाएगी...

विक्रम और कुछ नहीं कह पाता l वह छटपटा जाता है l उसकी छटपटाहट भैरव सिंह के आखों से छुपती नहीं है l

भैरव सिंह - हम जानते हैं... राजकुमार थोड़े समय के लिए... टुटेंगे बहकेंगे... उस वक़्त उन्हें आपको ही संभलना होगा... और मंगनी के लिए तैयार करना होगा...
विक्रम - कैसे...
भैरव सिंह - वैसे... जैसे... रंगमहल प्रवेश में राजकुमार जी ने आपको संभाला था...
विक्रम - मतलब कभी भी... अनु का...
पिनाक - कभी भी नहीं... आज शाम तक हमें शायद खबर मिल जाएगी....


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वीर के केबिन में अनु आती है l वीर की केबिन खाली था l अनु अपने काम में लग जाती है l वह अटेंडेंट से कहलवा कर सारे फ्लावर पोट में ताजे फुल लगवा देती है l केबिन में खुशबूदार जैस्मीन की फ्रैगनेंश छिड़क देती है और कॉफी मेकर के क्रॉसर पॉट में कॉफी बिन डाल कर मुस्कराते हुए टेबल के सामने वाली कुर्सी पर बैठ जाती है और वीर का इंतजार करने लगती है l थोड़ी देर बाद केबिन का दरवाज़ा खुलता है l अनु की नज़र उस तरफ जाती है l वीर अंदर आ चुका था l हर रोज की तरह अपनी बाहें फैला देता है l अनु भी कुर्सी से उठ कर दौड़ते हुए वीर के गले लग जाती है l वीर उसे अपने चेहरे के बराबर उपर उठा लेता है l अनु के पैर फर्श से सात आठ इंच उपर हो जाती है l कुछ देर बाद अनु वीर से कहती है

अनु - राजकुमार जी...
वीर - ह्म्म्म्म...
अनु - मुझे उतारिए ना...
वीर - क्यूँ... तुम्हें कोई परेशानी हो रही है...
अनु - नहीं... (अपना चेहरा वीर के चेहरे के सामने लाकर) पर आप मुझे कब तक ऐसे उठाए रहेंगे...
वीर - जिंदगी भर... मरते दम तक... (वीर अनु को जोर से भींच लेता है)
अनु - प्लीज राजकुमार जी.. मुझे उतारिए ना.. कोई देख लेगा... तो क्या सोचेगा...
वीर - यही की... मालिक ने जीने वाली मालकिन को गले से लगा रखा है...
अनु - देखिए ना... मैंने कॉफी क्रॉसर पॉट में... कॉफी बिन रख दी है...
वीर - तो...
अनु - आपके लिए कॉफी बनाना है....

वीर अनु को तुरंत छोड़ देता है और अपनी कुर्सी पर बैठ कर अपना मुहँ फ़ेर लेता है l अनु वीर की यह बात देख कर मुस्कराते हुए कॉफी मेकर के पास जाती है और कॉफी मेकर को चलाती है l कुछ देर बाद दो ग्लास में कॉफी बना कर एक वीर को देती है, पर वीर लेने के बजाय मुहँ फ़ेर लेता है और यह जताता है जैसे वह अनु से नाराज़ है l अनु हँस देती है और एक मुखड़ा गाने लगती है

अनु - आप रूठे रहो... मैं मनाती रहूँ...
इन अदाओं पर और प्यार आता है...
थोड़े शिकवे भी हो.... थोड़ी शिकायत भी हो
तो जीने में और मजा आता है...
वीर - ओ हो... तो आज कल गाना भी सीख रही हो...
अनु - (हँसते हुए) क्या करूँ... आज कल आप बात बात पर... झूठ मूठ रूठ जो रहे हैं...
वीर - (अचानक अनु की तरफ घुम कर) मैं झूठ मूठ रूठ रहा हूँ....
अनु - हाँ... आप का मुझ पर रूठना... एक दम झूठ है...
वीर - अच्छा तुम्हें क्यूँ लगता है कि मेरी नाराजगी झूठी है...
वीर - इन पाँच छह महीनों में... आपको अच्छी तरह से जान गई हूँ... चाहे कुछ भी हो... आप मुझसे कभी रूठ ही नहीं सकते...
वीर - (हल्का से मुस्कराते हुए, बगल से एक चेयर खिंच कर लाता है और उस पर अनु को बिठाते हुए) अनु... क्या करूँ... तुम मुझ पर कभी रूठती जो नहीं हो...
अनु - मैं आपसे क्यूँ रूठुँ...
वीर - अरे... रूठना चाहिए... जानती हो... हर प्रेम कहानी में.. प्रेमिका कभी ना कभी रूठती जरूर है... और उसे उसका प्रेमी मनाता है... रूठना तो प्रेमिका का अधिकार है..
अनु - वह सब कहानियाँ हैं... हमारा प्यार कहानी नहीं है... सच है... और मैं जितना आपके जानने लगी हूँ... उतना आप पर मेरा प्यार बढ़ता ही जा रहा है....
वीर - अच्छा... (कॉफी की ग्लास उठा कर सीप लेते हुए) ऐसे क्या क्या जान गई हो मेरे बारे में...
अनु - यही के... भले ही रोज... आपकी गाड़ी मुझे ऑफिस लेने और घर छोड़ने जाती है... पर फिर भी... आप उस गाड़ी की पीछे पीछे रोज आते हैं... मेरी खैरियत के खातिर... है ना...
वीर - (थोड़ी हैरानी जताते हुए) वहम है तुम्हारा... जब मैंने तुम्हारे लिए... ड्राइवर रखा हुआ है... तो भला मैं तुम्हारे पीछे क्यूँ आऊँ...
अनु - आप ना.. आज कल झूठ भी बोलने लगे हो... झूठे...
वीर - मैं झूठ बोल रहा हूँ... (अनु मुस्कराते हुए वीर की ओर देखती है) अच्छा... ठीक है... ठीक है.... वैसे... तुम्हें कब पता चला... के मैं तुम्हारे पीछे आ रहा हूँ... जब कि मेरी गाड़ी तुम्हें लाने और ले जाने के लिए रखा है...
अनु - कल शाम को... और अभी भी आते वक़्त आप.. गाड़ी के पीछे ही आ रहे थे... और यह भी मालूम है... की मेरे घर के पास कुछ लोग हैं... जिन्हें आपने लगाए हैं... मुझ पर नजर रखने के लिए...
वीर - (ग्लास को रख कर, थोड़ी सीरियस हो कर) मैं क्यूँ तुम्हारे पीछे... (एक पॉज लेकर) तुम जानती हो ना... क्यूँ...
अनु - (अपना सिर हिलाते हुए) ह्म्म्म्म... कोई शायद... मुझे नुकसान पहुँचाना चाहता है...
वीर - (अनु की हाथ से ग्लास लेकर टेबल पर रख देता है और उसकी दोनों हाथ पकड़ कर, उसके आँखों में झांकते हुए) अनु... मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा...
अनु - मैं जानती हूँ... आप के होते हुए... मुझे कुछ नहीं होगा...
वीर - तुम्हें मुझ पर इतना भरोसा है... जब कि.. मेरा विश्वास हर एक दिन के साथ डोलता जा रहा है...
अनु - पर मेरा प्यार... मेरा विश्वास... हर एक दिन के साथ बढ़ता ही जा रहा है....

वीर अपनी जगह से खड़ा हो जाता है और अनु को अपने पास खिंच कर गले लगा लेता है l

अनु - आह... कभी कभी आप मुझे इतनी खुशी दे देते हैं कि... बर्दास्त करना... संभलना मुश्किल हो जाता है... सच कहूँ.... इतनी खुशी के साथ तो मर जाने को दिल करता है....

वीर अनु को अलग कर उसके मुहँ पर अपना हाथ रख देता है l

वीर - चुप.. यह क्या कह रही है.... मरने की बात कर रही है... यह भी नहीं सोच रही है... मैं तेरे वगैर जियुँगा कैसे...

अनु अपने मुहँ से वीर की हाथ निकाल कर चूमती है फिर उस हाथ को अपने गाल पर रखती है और वीर के आँखों में देखते हुए

अनु - कितना प्यार करते हैं मुझसे... मेरे साये तक को खरोंच नहीं सकता कोई... यह मैं जानती हूँ... कभी कभी मुझे अपनी किस्मत पर रस्क होता है... क्या मैं सच में जी रही हूँ... या सपना देख रही हूँ... कहाँ छोटे से खोली में रहने वाली.. कहाँ एक राजकुमार... कहाँ कहानी.. कहाँ हकीकत..
वीर - (दोनों हाथों में अनु की चेहरे को लेकर) कितनी बड़ी बड़ी बातेँ कर रही है... कहाँ से सीखा यह सब...
अनु - कहाँ से क्यूँ सीखुंगी... यह बातेँ मेरे दिल की है... आज मौका मिला तो कह दी...
वीर - (अनु की दोनों गालों को खिंचते हुए) ओह मेरी प्यारी अनु... तेरी यही सारी बातेँ सुनने के लिए ही तो... तुझसे शादी करना चाहता हूँ... सोने से पहले.. जागने के बाद तुझे अपने सामने देखना चाहता हूँ... तु मेरी जिंदगी का अटूट हिस्सा है... और तु अभी भी... सपना और हकीकत में उलझी हुई है...

अनु अपनी गाल से वीर के हाथों को हटाते हुए वीर की हाथों को पकड़ कर l

अनु - (थोड़ी उदासी भरी लहजे में) राजकुमार जी... माँ जी ने मुझे स्वीकारा... आपके भाई... भाभी... बहन ने भी मुझे स्वीकारा... हाँ मैं आपकी जिंदगी की हिस्सा हूँ.. पर... जिनके स्वीकारने पर... मैं आपके परिवार की हिस्सा बन पाती... उनकी स्वीकृति अभी तक नहीं मिली है ना...
वीर - मुझे भी तो उनकी मंजुरी लेनी है...
अनु - क्या... मुझे... स्वीकारेंगे...
वीर - उन्हें करना पड़ेगा... कौन नहीं जानता तेरे मेरे बारे में... हमारे ऑफिस के स्टाफ से लेकर हमारे परिवार तक सभी तो जानते हैं.. पर हाँ.. मैं अपने पिता और राजा साहब की सहमती लेना चाहता हूँ...
अनु - फिर...
वीर - फिर शादी... क्यूंकि... अब तकिए के साथ नहीं सो पा रहा हूँ....

अनु शर्मा कर अपना हाथ छुड़ा लेती है और अपने हाथों से चेहरा छुपा कर वीर की तरफ पीठ कर मुड़ जाती है l वीर पीछे से आकर उसके कमर पर अपना हाथ का घेरा बना कर कस लेता है l

वीर - अनु...
अनु - हूँ...
वीर - आई लव यू...
अनु - हूँ...
वीर - क्या हूँ... मुझे भी जवाब दो...
अनु - ऊँ... हूँ...
वीर - क्यूँ...
अनु - छोड़िए ना... म्म्म्म.. मुझे शर्म आती है...
वीर - आह... किस लड़की से पाला पड़ा है... सिर्फ शर्माती रहती है...
अनु - (खि खि कर हँस देती है)
वीर - अनु...
अनु - ह्म्म्म्म...
वीर - मैं ना... यह चाहता हूँ... के जब हमारा प्यार भरा संसार बस जाए... तुम ना रोज सुबह देर से उठना... मैं तुम्हारे लिए कॉफी बना कर जगाउँगा... तुम मुझ पर हुकूमत करना... मैं तुम्हारी गुलामी करूँगा...
अनु - (अपने चेहरे से हाथ हटा कर) झुठे...
वीर - देखो मैं झूठ नहीं सच कह रहा हूँ... तुम्हें... (दोनों बाहें फैलाते हुए) अपनी दुनिया का रानी बना कर रखूँगा... तुम राज करना.. और मैं तुम्हारी सेवा...
अनु - झूठे...
वीर - तुम फिर से मुझे झूठा कहा...
अनु - (शर्माते हुए) ह्म्म्म्म...
वीर - बोलो क्या झूठ बोला मैंने...
अनु - आपको कॉफी बनाना कहाँ आता है... (खिल खिला कर हँस देती है)
वीर - तो... मैं सीख लूँगा... देखना तुमसे भी अच्छा कॉफी बना कर तुम्हें पीलाउँगा...
अनु - अच्छा जी...
वीर - हाँ जी... जब तुमसे प्यार करना... केयर करना सीख लिया है.. तो कॉफी बनाना भी सीख लूँगा... देख लेना...
अनु - पर मैंने कब कहाँ सिखाया है...
वीर - तुम्हें देखते देखते सीख लिया है... यह भी देख देख कर सीख लूँगा...
अनु - (हँसते हुए) ठीक है... ठीक है... देखेंगे...

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गाड़ी चलती जा रही थी और रुप अभी भी फंसी हुई थी, कभी सीट बेल्ट को निकालने की कोशिश कर रही थी तो कभी पीछे की ओर लुढ़की सीट की लिवर को खिंच कर सीधा करने की कोशिश कर रही थी पर चिल्ला नहीं रही थी l अंत में थक हार कर चिल्ला कर कहती है

रुप - गाड़ी... रोको... (गाड़ी फिर भी नहीं रुकती, तो फिर से चिल्ला कर) अनाम गाड़ी रोको...

चर्र्र्र्र्र्र् आवाज़ करती हुई गाड़ी रुक जाती है l ड्राइविंग सीट से पीछे की ओर मुड़ कर विश्व रुप की ओर देख कर मुस्कराता है, रुप अपना मुहँ और आँखे सिकुड़ कर जोर जोर से साँस लेते हुए विश्व को खा जाने वाली नजर से देख रही थी l

विश्व - हे हे हे... (मस्का मारने वाली हँसी हँसते हुए) आपको कैसे मालुम हुआ... के आपको मैं किडनैप कर लिए जा रहा हूँ...
रुप - पहले मुझे सीधा कर बिठाओ....
विश्व - नहीं पहले आप यह बताओ... आपको कैसे मालुम हुआ... के किडनैपर मैं ही हूँ...
रुप - देखो... अगर तुमने मेरी सीट को सीधा नहीं किया तो...
विश्व - तो...
रुप - तो मैं तुम्हें कच्चा ही चबा जाऊँगी...
विश्व - इसका मतलब यह हुआ कि... अगर मैंने सीधा कर दिया... तो आप मुझे फ्राई कर खा जाएंगी...
रुप - आ आह... अनाम...
विश्व - अरे कर दूँगा सीधा... इतनी परफेक्ट प्लानिंग के साथ किडनैप किया... पर फिर भी... आपको पता चल गया... कैसे... प्लीज बताइए ना...
रुप - मुझे इस सीट से पहले आजाद करो...
वीर - ना ना... मेरी प्लान को कैसे बेनकाब किया पहले आप बताओ...
रुप - उह... अच्छा सुनो... भले ही कार की विंड स्क्रीन ट्रांसपरेंट है... फिर भी तुम्हारा अक्स हल्के से दिख रहा था... अब समझ में आया...
विश्व - ओह शीट... आपकी दिमाग के आगे तो मैं गच्चा खा गया...
रुप - ओह ओ... अब मेरी सीट को नॉर्मल करोगे भी...
विश्व - हाँ हाँ... अभी लीजिए...

विश्व पहले ड्राइविंग सीट से उतरता है फिर रुप की तरफ की डोर खोल कर सिर्फ सीट बेल्ट की लॉक को खोल देता है l रुप झट से उठ कर कार के बाहर आ कर विश्व को दबोचने के लिए लपकती है l विश्व को पहले से ही अंदाजा था, ऐसा ही कुछ होगा वह भागने लगता है l रुप उसके पीछे भागने लगती है l

रुप - मैं कहती हूँ रुको...
विश्व - नहीं...
रुप - देखो अगर नहीं रुके तो...
विश्व - हाँ नहीं रुका तो...

रुप रुक जाती है और मुहँ फुला कर एक बेंच पर बैठ जाती है, विश्व जब देखता है रुप बैठ गई है तो वह धीरे धीरे बड़ी सावधानी के साथ रुप के पास आता है l रुप का चेहरा गुस्से से लाल हो चुकी थी और तमतमा रही थी l

विश्व - हे हे हे... राजकुमारी जी...
रुप - तुमने ऐसा मज़ाक क्यूँ किया...
विश्व - मैं आपको सर प्राइज देने आया था... कल रात को आपने दिल से आवाज दी... हम सुबह आपके सेवा में हाजिर हो गए...
रुप - अच्छा तो यह सेवा है..
विश्व - सर प्राइज के लिए इतना हक तो बनता है...
रुप - यू...

कह कर इसबार झपट्टा मारती है l विश्व पीठ के बल गिरता है रुप उसके उपर गिरती है l अब सीन कुछ ऐसा बन जाता है विश्व नीचे गिरा है और रुप उसके उपर उसके कलर पकड़ कर झींझोडते हुए उसके सीने पर मारने लगती है l

विश्व - राज कुमारी जी... देखिए हम एक पार्क में हैं... लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे...

रुप मारते मारते रुक जाती है l देखती है वाक़ई एक पार्क था, उसे अपनी हालत का भी अंदाजा हो जाता है l वह चारों तरफ नजरें दौड़ाती है, कोई नहीं था आस-पास पर वह विश्व के उपर थी, शर्म से उसके गाल लाल हो जाते हैं और विश्व के उपर से उठ कर चुप चाप बेंच पर आकर बैठ जाती है l विश्व भी नीचे जमीन से उठता है और उसी बेंच पर रुप से थोड़ी दुर बैठता है l

विश्व - आई एम सॉरी...
रुप - (शर्माते हुए) ऐसे कौन करता है...
विश्व - अपनी राजकुमारी के लिए ऐसा सिर्फ अनाम करता है...
रुप - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) कब आए और... मुझसे सीधे बात क्यूँ नहीं की...
विश्व - लो कर लो बात... एक सुबह से फोन बंद आ रहा था... तो कैसे बात करता... इसलिए अपनी मुहँ बोली बहन के जरिए... आपको आपके घर से निकाला... मैं कल रात को... एक लॉरी वाले की मदत से कटक पहुँचा... माँ की गाड़ी लेकर बस आपसे मिलने आ गया...
रुप - क्या... माँ ने पूछा नहीं...
विश्व - पूछा ना... पर बात जब उनकी बहु की हो... तो झट से गाड़ी की चाबी मेरे हाथों में थमा दी...
रुप - तो फिर भाश्वती... उसकी गाड़ी...
विश्व - मैंने उसे कॉन्टैक्ट किया... मैंने उसकी गाड़ी की सीट में थोड़ी छेड़छाड़ की... वह आपको ले आयीं... उसके बाद माँ की गाड़ी उसके हवाले कर... मैंने उसकी गाड़ी ले ली...

रुप शर्मा जाती है, फिर अचानक अपना मुड़ बदल कर गुस्से वाली एक्सप्रेशन दे कर मुहँ मोड़ देती है l

विश्व - पल दो पल में यह मौसम क्यूँ बदल जाती है...
कभी बहार तो कभी पतझड़ आ जाती है...
आपकी दीदार ए हुस्न को रात जाग कर आए हैं...
एक मुस्कान भरी नजरों से देख तो लीजिए...
इस कातिल हुस्न के हाथों कत्ल होने आए हैं...
रुप - (मुस्करा देती है, विश्व की ओर देखती है)
विश्व - वाव...
रुप - (अपनी एक टांग पर टांग रखती है फिर एक हल्की सी अंगड़ाई लेते हुए अपनी आँखों में मादकता भरी नजर से देखते हैं अपनी पलकों को आधी बंद कर इठलाते हुए अपनी गर्दन हिला कर अपने पास आने आने को इशारा करती है)
विश्व - (रुप की इस अंगड़ाई भरी आमंत्रण देख कर पहले विश्व का मुहँ खुला रह जाता है फिर हलक से थूक गटकता है) रा... राज... कु.. कुमारी जी... आ.. आपको... घ.. घ.. घर छोड़ दूँ...
रुप - (मादक भरे आवाज में) क्यूँ...
विश्व - अब दिन खुल गया है... भीड़ भी बढ़ने वाली है...
रुप - (अब एक बड़ी सी अंगड़ाई लेते हुए, विश्व की ओर थोड़ी खिसक कर) तो...
विश्व - तततत तो...
रुप - ह्म्म्म्म (और थोड़ी खिसक कर) तो...
विश्व - तो... (अब आवाज बदली हुई थी, बिल्ली जैसी) गगगगग.. गलती... हो गई.... फिर... कभी... आआआआपको... ऐसे नहीं... (अपनी गर्दन मुश्किल से ना में हिलाते हुए) नहीं बुलाउंगा...
रुप - (विश्व से लगभग एक फुट की दूरी पर) डर लग रहा है...
विश्व - (वही बिल्ली वाली आवाज में) हाँ... नहीं... हाँ...
रुप - कत्ल होने से... इतना डर लग रहा है...
विश्व - नहीं... हाँ.. नहीं...

रुप फिर से गुस्सा दिखाते हुए बेंच के दुसरे सिरे पर खिसक कर चली जाती है तो विश्व अपनी साँसों को दुरुस्त करने लगता है l उसकी हालत ऐसी हो गई थी जैसे उसकी साँसे कब रुकी हुई थी l वह बड़ी बड़ी और गहरी साँस लेने लगता है l साँस थोड़ी दुरुस्त होने पर वह रुप की मुस्कराने की कोशिश करते हुए देखता है l

रुप - हुँह्ह्ह... फट्टु कहीं के...
विश्व - (थोड़ी ताव में आकर) ऐ... मैं कोई फट्टु वट्टु नहीं हूँ... याद नहीं... मैंने कैसे आपको प्रपोज किया था...
रुप - तो... उस बात को कितने दिन हो गए... और उस दिन तो फोन पर बड़े बड़े हांक रहे थे... आज मौका भी था दस्तूर भी था... (रुक जाती है)
विश्व - वह वह... जो भी हो... मैं.. मैं... फट्टु नहीं हूँ...
रुप - अच्छा नहीं हो...
विश्व - नहीं हूँ...
रुप - (विश्व की ओर थोड़ी खिसक जाती है) तो फिर मेरे गालों पर किस करो...
विश्व - क्या... (ऐसे रिएक्ट करता है जैसे उसके हाथों से तोते उड़ गए)
रुप - देखा... फट्टु...
विश्व - (थोड़े ताव में आकर) बस बहुत हुआ.. मैं अगर किस कर दूँ तो...
रुप - तो कर क्यूँ नहीं रहे हो...
विश्व - वह वह... ताकि... आपकी रुसवा ना हो...
रुप - ओ हैलो... वह मैं देख लुंगी... पहले यह साबित करो... तुम फट्टु नहीं हो...
विश्व - बस... (कह कर उठ जाता है) अब मैं साबित करके ही रहूँगा..
रुप - (अपनी मुहँ के पास उबासी लेते हुए चुटकी बजाती है) क्या तुम जितने शरारती हो... उतने फट्टु भी हो...
विश्व - इनॉफ...

कह कर विश्व रुप के बग़ल में दो फुट की दूरी पर बैठ जाता है l रुप मुस्कराते हुए अपना गाल विश्व की तरफ आगे करती है l विश्व पहले अपना नजर चारों तरफ घुमाता है फिर अपनी आँखे मूँद कर धीरे धीरे किस करने के लिए अपना होंठ बढ़ाता है l उसकी होंठ जितना आगे ले जा रहा था उतना ही अपनी आँखों को कसके बंद कर रहा था l आधा मिनट, फिर एक मिनट जाता है पर किस नहीं हो पा रहा था l रुप हैरान हो कर विश्व की ओर देखती है l करीब छह इंच की दूरी पर विश्व अपनी आँखे बंद कर किस करने की मुद्रा में रुका हुआ था l रुप अपना हाथ सिर पर मार कर बेंच के कोने तक सरक कर विश्व की ओर देखने लगती है l

बहुत कोशिश के बाद जब किस नहीं हो पाई तो पहले एक आँख खोल कर देखता है रुप मुहँ फुला कर विश्व को बेंच के सिरे पर बैठ कर देख रही थी l वह अपनी दुसरी आँख खोल कर अपनी हालत का जायजा लेता है l उसके दोनों हाथ उसके जांघों के बीच था और किस करने के मुद्रा में वह स्टैच्यु बना बैठा हुआ था l

विश्व - (खिसियाते हुए) ही ही ही...
रुप - सो मिस्टर बहादुर... वाह क्या बहादुरी दिखाई... छह इंच की दूरी भी तुमसे तय नहीं हो पाई...
विश्व - वह.. वह... इसलिए...
रुप - अच्छा... तो इसके लिए भी आपके पास... लॉजिक है...
विश्व - हाँ... वह इसलिए कि... प्यार में प्रेमी एक दूसरे की कमी को पूरा करते हैं... इसी में प्यार की पूर्णता है... मुझ में जो कमी है... वह आप पुरा करेंगी... आपके भीतर जो कमी है... वह मैं पुरा करूँगा...
रुप - (खीज कर, खड़ी हो जाती है) आआआह्ह्ह... मतलब... प्यार में... मुझे बेशरम होना पड़ेगा...
विश्व - (डर कर खड़ा हो जाता है) नहीं मेरा मतलब है...

रुप अब झपट्टा मारती है, विश्व के उपर पहले की तरह गिरती है l विश्व के बालों को पकड़ कर चेहरे को सीधा करती है और धीरे धीरे झुकती है, अंत में विश्व की नाक पर काटती है l

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बल्लभ प्रधान का घर
घर में कोई औरत नहीं है केवल कुछ नौकर हैं l वे सब बल्लभ के सामान पैक कर रहे थे l बल्लभ बाथरूम में फ्रेश हो रहा था l बाहर कमरे में एक कुर्सी पर रोणा बैठा हुआ था l ठुड्डी पर हाथ रख कर कुछ सोच में खोया हुआ सा लग रहा था l तभी उसकी मोबाइल पर मैसेज अलर्ट की ट्यून बजने से उसका ध्यान टूटता है l जेब से मोबाइल निकाल कर देखता है टोनी ने कुछ फोटो चाट मैसेज में भेजा था l रोणा की भवें सिकुड़ जाती हैं l वह टोनी के भेजे फोटों को डाउन लोड करने लगता है l जैसे जैसे फोटोस डाउन लोड होते जाते हैं उसके आँखे फड़फड़ाने लगते हैं और जबड़े सख्त होते जाते हैं, तुनक कर खड़ा हो जाता है l वह सारे फोटो देखने के बाद टोनी को फोन लगाता है l टोनी के फोन लिफ्ट करते ही

रोणा - यह सब क्या है...
टोनी - प्रेम के दो परिंदे हैं... चोंच लड़ा रहे हैं...
रोणा - मेरे जले पर नमक छिड़क रहा है तु...
टोनी - ना... ऐसी मेरी औकात या हिम्मत कहाँ...
रोणा - यह फोटोस कब की है...
टोनी - अभी कुछ देर पहले की... लाइव में था... इसलिए फोटो ले ली...
रोणा - विश्वा... अभी भुवनेश्वर में है...
टोनी - हाँ... इत्तेफाक से हाँ... आज वह गाड़ी... वह लड़की और उस लड़की के साथ विश्वा दिखा... इसलिए उनकी फोटो निकाल कर आपको भेज दिया...
रोणा - भोषड़ी के... मैंने लड़की की डिटेल निकाल कर भेजने को कहा था...
टोनी - आज पहली बार... गाड़ी और लड़की इकट्ठे दिखे हैं... पर कबाब में हड्डी... विश्वा भी है उसके साथ... आज का काम बस इतना ही...
रोणा - क्या मतलब इतना...
टोनी - लड़की के साथ विश्वा है... इसलिए मेरा काम आज के लिए इतना ही... अब आपके हिस्से का काम बचा है... वह निपटा कर मुझे फोन कीजिए...
रोणा - मेरे हिस्से कौनसा काम है...
टोनी - रोणा साहब... आपका यह काम उठाने से पहले मैंने कहा था... मैं विश्वा के हाथों... वह दुसरा नहीं बनना चाहता... इसलिए... जब आप मेरे लिए नई आइडेंटिटी की जुगाड़ कर लो... मुझे ख़बर कर दीजियेगा.... आपको डिटेल्स मिल जाएंगे...
रोणा - विश्वा से तेरी इतनी फटती है...
टोनी - मेरी तो सिर्फ फटती है... आपको तो एक नहीं तीन तीन बार फाड़ कर रख दी है... भुल गए...
रोणा - बे मादरचोद... अपनी औकात भुल रहा है...
टोनी - नहीं... अपनी हिफ़ाज़त की सोच रहा हूँ... यह आप भी जानते हो... विश्वा का नेट वर्क कितना तगड़ा है... मैं उसकी मौजूदगी में... उसके नेट में फंसना नहीं चाहता... खबर तो अब हर हाल में निकाल लूँगा ही... बस आप मेरे लिए... एक नई बंगाली आधार कार्ड... वोटर आईडी... जुगाड़ कर दीजिए.. मैं ओड़िशा छोड़ देना चाहता हूँ... विश्वा से दुर बहुत दुर चला जाना चाहता हूँ...
रोणा - ठीक है.... हफ्ते दस दिन में तैयार करवा दूँगा...
टोनी - और हाँ.... एक बात और...
रोणा - भौंक ले.. जो भी भौंकना है...
टोनी - बंगाल की कोई आदिवासी आइडेंटिटी चाहिए... और उसकी गिनती भारत की जन गणना की रजिस्टर में होनी चाहिए....
रोणा - ह्म्म्म्म... हो जाएगा.... आज से ठीक दस दिन के बाद... तुझे तेरे सामान मिल जाएंगे...
टोनी - तो मैं भी वादा करता हूँ... आपको दस दिन के बाद... इस लड़की की डिटेल्स मिल जाएगी...

फोन कट जाता है, रोणा अपनी नजरें घुमाता है तो कमरे में हाथ में टावल लिए बल्लभ खड़ा था l बल्लभ अपनी भवें सिकुड़ कर रोणा को देख रहा था l

रोणा - तु कब आया...
बल्लभ - जब तु फोन पर लगा हुआ था... (टावल को बेड के उपर फेंकते हुए) यह तु किसके साथ बकचोदी कर रहा था....

रोणा अपना मोबाइल बल्लभ के हाथ में देता है l बल्लभ सारे फोटोस देखने लगता l सारे फोटो देख लेने के बाद मोबाइल को वापस लौटाते हुए l

बल्लभ - ह्म्म्म्म... बड़े अच्छे फोटो निकाले हैं... टोनी ने...
रोणा - (बिदक कर) अब तु भी शुरु हो गया...
बल्लभ - नहीं कसम से... मैं पक्का कह सकता हूँ... यह सारे फोटो... डीएसएलआर कैमरा से लिया होगा...
रोणा - मेरी पहले से ही सुलगी हुई है... भोषड़ी के... तेल छिड़क रहा है...
बल्लभ - छिड़क नहीं रहा हूँ... तुझे अभी से आगाह कर रहा हूँ... जरा सोच यही फोटो... कल राजा साहब के हाथ लगे... तो क्या होगा... (रोणा चुप रहता है) तुने ही कहा है... की इस लड़की की... विश्व से कोई संबंध नहीं है...
रोणा - मैंने कहा ना... यह मामला पुरी तरह निजी है...
बल्लभ - यह लड़की जो तेरे दिमाग पर नाच रही है... तेरी मति भ्रष्ट हो गई है... अबे राजा साहब के दुश्मनों से कोई निजी खुन्नस नहीं पाल सकता...
रोणा - हाँ हाँ हाँ... (थोड़े ऊँचे आवाज़ में) जानता हूँ... पर इस लड़की को मैं अपनी पर्सनल रखैल बना कर रखना चाहता हूँ... समझा... (बल्लभ बिना कोई प्रतिक्रिया के चुपचाप उसे देख रहा था) (रोणा भी अपनी नजरें चुराते हुए) राजा साहब को आभास हुआ तो... वह लड़की अब तक रंग महल की भेंट चढ़ चुकी होती... (फिर अचानक लहजा बदल जाता है) मैं.. उसे एक बार सही... पर विश्व के सामने उसकी लेना चाहता हूँ... जितना घिन मुझे अपने आप से हो रही है... विश्वा भी खुद से उतना ही नफरत करेगा... अपनी बेबसी पर... रोएगा...
बल्लभ - उससे पहले... कहीं वैसा ही हालत तेरी ना हो जाए... (एक कुर्सी पर बैठ जाता है)
रोणा - कभी कभी एक बड़ी बाजी जीत ने के लिए... एक बड़ा दाव लगाना पड़ता है... सो मैंने लगा दिया है... जब जो होगा... तब देखा जाएगा... खैर... (दुसरे कुर्सी पर बैठते हुए) तु जिस वज़ह से आया था... वह तो पुरा हो गया है... क्या इसीलिए तु अब जा रहा है...
बल्लभ - हाँ मैं यहाँ खबर लेने आया था... ले लिया... पर अभी मैं कलकत्ता नहीं... भुवनेश्वर जा रहा हूँ... चल तु भी चल...
रोणा - क्यूँ कोई खास बात...
बल्लभ - हाँ... परसों राजकुमार जी की मंगनी है...
रोणा - (चौंकते हुए) क्या... इतनी जल्दी... वह भी बिना कोई शोर शराबे के...
बल्लभ - राजा साहब ने तय की है... चट मंगनी... पट शादी...
रोणा - जाहिर है... रिसेप्शन राजगड़ में होगी...
बल्लभ - हाँ इसलिये चल... भुवनेश्वर में थोड़ा फ्रेश हो जाएगा...
रोणा - नहीं तु जा... अब भुवनेश्वर नहीं... कुछ ऐसा करूँगा की विश्वा यहीं आकर अपना सिर फोड़ेगा..
बल्लभ - आआआआहहह... (चिढ़ जाता है) विश्वा तेरे सिर पर भूत बन कर छाया हुआ है... पर कोई ना... मैंने उसका इलाज ढूंढ लिया है... बस यह मंगनी हो जाने दे.... फिर देखना विश्वा का रोग कैसे छु मंतर होता है...
रोणा - (अपनी भवें सिकुड़ कर) क्यूँ ऐसा कौनसा तीर मारने वाला है...

इसबार बल्लभ थोड़ी उत्सुकता के साथ अपनी कुर्सी को खिंच कर रोणा के पास लाता है l

बल्लभ - विश्वा... इतना सब कैसे कर लेता है... कभी सोचा है... (रोणा सिर हिला कर ना कहता है) उसकी वज़ह है... जोडार ग्रुप्स ऑफ कंपनी का मालिक स्वपन जोडार...
रोणा - क्या...
बल्लभ - हाँ... स्वपन जोडार... कंस्ट्रक्शन फिल्ड में धीरे धीरे अपना सिक्का जमा रहा है... विश्वा उसका लीगल एडवाइजर है... और सबसे अहम बात.. उसकी अपनी सिक्युरिटी सर्विस भी है...
रोणा - (हैरानी भरे नजरों से बल्लभ की ओर देखने लगता है)
बल्लभ - हाँ हाँ हाँ... अब तु ठीक सोच रहा है... विश्वा अपनी लीगल एडवाइज के बदले... जोडार के सेक्यूरिटी एजेंसी की हेल्प ले रहा है... तभी तो वह हम पर इसीलिए भारी पड़ा...
रोणा - ओ... अच्छा... तो यह राज है... उसके नेट वर्क की... पर तु करना क्या चाहता है...
बल्लभ - (अपनी सीट पर आराम से टिक कर बैठते हुए) मैंने जोडार की बर्बादी की कागजात पर... BDA की अप्रूवल ले ली है... राजकुमार की मंगनी और शादी भी इसी बात से जुड़ी हुई है...
रोणा - (नासमझ की तरह) क्या... मैं कुछ भी नहीं समझा...
बल्लभ - बताता हूँ सुन... याद है... मैं हमेशा कहा करता था... जहां दिमाग लगे... वहां ताकत इस्तमाल नहीं करना चाहिए... विश्वा हर बार हम पर भारी पड़ा... वज़ह तलाशी तो जोडार का खेल समझ में आया... यानी अगर जोडार ख़तम तो विश्वा का तेवर ख़तम....
रोणा - अभी भी... मैं समझ नहीं पाया... राजकुमार की मंगनी और शादी से... जोडार कैसे ख़तम होगा...
बल्लभ - अबे भुतनी के... हमेशा की तरह उतावला क्यूँ हो रहा है... मेरी बातों को गौर से सुन... जोडार अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी वेंचर में अपना सबकुछ लगा दिया है... एक डुप्लेक्स हाउसिंग सोसाईटी की प्रोजेक्ट... हम उसकी इस प्रोजेक्ट को फैल कर रहे हैं... एवज में... राजकुमार की शादी करा रहे हैं...
रोणा - कैसे...
बल्लभ - उसी हाउसिंग प्रोजेक्ट के सामने वाली जमीन पर... जो कि ना तो सरकारी है.. ना ही निजी... उसी जमीन पर निर्मल सामल अपना एक डुप्लेक्स सोसाइटी का मेगा प्रोजेक्ट ला रहे हैं... वह भी जोडार ग्रुप्स के आधे दाम में...
रोणा - ओ... इस तरह से... जोडार ग्रुप के घर... अनसोल्ड रह जाएंगे... इससे कंपनी डूब जाएगी...
बल्लभ - और विश्वा का विष दांत भी गिर जाएंगे... वह ऐसा सांप बन कर रह जाएगा... जिसका फन तो होगा... पर दांत नहीं होगा... और ऐसे सांपों को कुचलने में तुझे बड़ा मजा आता है ना...

रोणा की आँखों में एक चमक दिखने लगता है l वह एक अंदरुनी खुशी के साथ चेयर से उठ खड़ा होता है l

रोणा - वाह वकील वाह... तेरे मुहँ में घी शक्कर... अगर सच में ऐसा हो गया... तो कसम से... तु जो बोलेगा.. मैं हार जाऊँगा...
बल्लभ - बैठ जा खाकी वाले बैठ जा... बोला तो था तुझे... और राजा साहब के सारे कारींदों को... पर किसीने मेरी बात नहीं सुनी... सबकी चूल मची थी...
रोणा - (बैठते हुए) सच कह रहा था तु... हर बात ताकत से नहीं सुलझाने चाहिए... दिमाग का भी कभी कभी इस्तमाल करनी चाहिए...

तभी एक नौकर आकर खबर करता है कि उसका सारा सामान पैक हो चुका है l बल्लभ उन्हें बाहर इंतजार करने के लिए कहता है l नौकर जाने के बाद

बल्लभ - वही मैं ना जाने कब से कह रहा था... के दिमाग वकील रखता है... इसलिए अब तुझे बोल रहा हूँ... चल मेरे साथ... अपना दिमाग रिफ्रेश करने...
रोणा - नहीं वकील नहीं... तु जिस काम के लिए जा रहा है... वह कर... साथ में मेरा एक काम कर देना...
बल्लभ - तेरा कौनसा काम...
रोणा - मैं अपने एक बंदे को खबर कर दूँगा... वह तुझे एक पार्सल देगा... मेरे लिए... तुझे वह पार्सल लाना है...
बल्लभ - पार्सल... क्या होगा उसमें...
रोणा - तकदीर...

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शाम का वक़्त था
xxxx मॉल की कॉफी डे शॉप के सामने लगे टेबल पर वीर बैठा अपने ख़यालों में खोया हुआ था l थोड़ी देर बाद उसके सामने दो कॉफी ग्लास कोई रख देता है l वीर ग्लास रखने वाले को नजर उठा कर देखता है l वह शख्स और कोई नहीं था उसका दोस्त प्रताप था l वीर बेहद खुशी के साथ अपनी जगह से उठता है और प्रताप के गले लग जाता है l विश्व भी उसे गले लगा लेता है l वीर बहुत ही भावुक हो जाता है l मॉल में सभी की नजर वहीँ पर ठहर जाता है l

वीर - (भावुकता में कहे जा रहा था) मेरे यार.. मेरे दोस्त... शुक्रिया... बहुत बहुत शुक्रिया...
विश्व - पहले बैठ जाते हैं... लोग अपने काम बंद कर हमें घुर रहे हैं...

यह सुन कर वीर विश्व से अलग होता है l दोनों अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते हैं और अपनी अपनी कॉफी की ग्लास उठाकर चुस्कियां लेने लगते हैं l

वीर - थैंक्स यार... तुम आ गए... ऐसा लग रहा है... मैंने दुनिया जीत ली है...
विश्व - मेरा आने का प्रोग्राम तो था... पर दो तीन दिन बाद.... फोन पर तुमने जिस तरह से बात की... मुझे लगा तुम टूट से गए हो... तुम्हारी आवाज में दर्द बहुत था... इसलिए सब छोड़ कर आ गया...
वीर - हाँ यार.. किसी ने सच ही कहा है... a friend in need is a friend indeed...
विश्व - (कॉफी की सीप लेते हुए) वैसे... क्या need है तुम्हारी...
वीर - बताता हूँ... वैसे दोस्तों के लिए एक और कहावत भी बड़ी मशहूर है... (विश्व अपना भवें नचा कर सवाल इशारे से पूछता है) when Love leaves tears in eyes... Friendship brings chears in life...
विश्व - क्या हुआ... तुम प्यार और दोस्ती के बारे में क्यूँ कह रहे हो... अनु ने कुछ किया क्या...
वीर - नहीं नहीं यार... अनु है... तो जिंदगी है... जिंदगी में रंग है.. खुशी है... इससे पहले मैं जिंदा ही कहाँ था... (बात बदल देता है) वैसे तुम्हारी शेरनी की क्या खबर है....
विश्व - (सवाल से थोड़ा असमंजस हो जाता है) वह... वह ठीक ही है...
वीर - क्या मतलब...
विश्व - अरे यार... क्या कहूँ... शेरनी है... झपटती है... पंजा मारती है... (अपनी नाक सहलाते हुए) काटती भी है...
वीर - अच्छा... तुम उसे अपने उपर हावी होने देते हो...
विश्व - हाँ... क्यूँ नहीं... मैं दुनिया से जीतने की कुव्वत रखता हूँ... एक उसी के आगे हारने से अच्छा लगता है... दुनिया पर हुकुमत करने का जिगर रखता हूँ... पर उसीकी गुलामी मुझे खुशी देती है... पर बात मेरी करने तो नहीं बैठे हैं...
वीर - हाँ... बात तुम्हारी नहीं है... मेरी है..
विश्व - क्या बात अनु से ताल्लुक रखता है... (वीर अपना सिर हिला कर हाँ में उत्तर देता है) तो बोलो यार... तुम्हारे दिल में कौन सी टीस है... बोलो तो सही...
वीर - यार... यह प्यार व्यार क्या होता है... यह तुमने मुझे बताया है... इस एहसास में जीना भी क्या ग़ज़ब लगता है यार... जी करता है... खुद बिछ जाऊँ उसके राह में... हर नाज़ ओ अंदाज को उठा लूँ अपनी पलकों पे... अपनी हर आगाज़ उसके बाहों से शुरु हो... हर अंजाम उसके आगोश में हासिल करना चाह रहा हूँ... अपने प्यार की चमन में... फूलों का बहार देखना चाहता हूँ... पता नहीं क्या क्या करना चाहता हूँ... पर जो भी हो... अब अनु के नाम हर सुबह हर शाम कर देना चाहता हूँ...

कहते कहते वीर रुक जाता है, ज़वाब में विश्व कोई प्रतिक्रिया नहीं देता l थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच में एक चुप्पी पसर जाती है l थोड़ी देर बाद चुप्पी तोड़ते हुए

वीर - कुछ समझे...
विश्व - ह्म्म्म्म... तुम अनु से शादी करना चाहते हो...
वीर - हाँ... पर...
विश्व - शायद बड़े राजी नहीं हो रहे हैं...
वीर - नहीं बात वह नहीं है... उन तक शायद बात पहुँची भी ना हो... मैंने सिर्फ माँ से... भैया और भाभी से... और बहन नंदिनी से कहा है... राजा साहब को बता कर... जल्द से जल्द शादी करना चाहता हूँ...
विश्व - तो राजा साहब से डरते हो क्या... या उनकी इंकार से...
वीर - नहीं... अपने प्यार के लिए... मैं किसी का भी सामना कर सकता हूँ...
विश्व - यार तुम साफ साफ कहो ना... तुम्हें मेरी मदत कहाँ पर चाहिए...
वीर - (एक पॉज लेता है) यार मैं अनु के लिए डर रहा हूँ... अनु का मुझसे छिन जाने का डर सता रहा है...
विश्व - पर तुम तो अभी कह रहे थे... अनु और तुम्हारे बीच सब ठीक है...
वीर - अनु और मेरे बीच कोई तीसरा आ रहा है... जो मुझसे अनु को छीन ने की कोशिश में है...
विश्व - मतलब कोई अनु को स्टॉक कर रहा है क्या...
वीर - अरे यार तुम बात को समझ नहीं रहे हो...
विश्व - तो समझाओ ना... तुम बात भी कहाँ ठीक से कह रहे हो...

वीर अपने शर्ट के एक दो बटन खोलता है l अपने हाथ के आस्तीन के भी बटन खोलता है l विश्व महसुस करता है वीर कहना बहुत कुछ चाह रहा है पर वह गहरी दुविधा में है, क्या कहे कैसे कहे l

विश्व - (वीर के हाथ में हाथ रखकर) वीर... मुझे दोस्त मान कर बुलाया है... तो विश्वास रखो... मुझसे जो बन पड़ेगा... मैं करूँगा...
वीर - (विश्व की हाथ पर अपना हाथ रखकर) मैं जानता हूँ प्रताप... पर मेरी प्रॉब्लम यह है कि... मैं तुम्हारे जैसे नहीं हूँ... तुम वह खुली किताब हो... जिसके पन्ने साफ हैं... पर मेरी जिंदगी की किताब के पन्ने गहरे स्याह हैं... फिर भी मैं आज तुम्हें सब कुछ बताऊँगा... बस मेरे दोस्त मुझे इस भंवर से निकाल देना...
विश्व - मैंने कहा ना... मुझसे जो भी... जितना भी बन पड़ेगा... मैं करूँगा...
वीर - तुम शायद जानते होगे... पाँच साढ़े पाँच महीने पहले छोटे राजा... यानी मेरे पिता जी पर एक स्नाइपर शॉट हमला हुआ था... जब वह पार्टी मीटिंग से लौट रहे थे...

वीर सारी बातेँ बताने लगता है, एक एक करके वह इन पाँच महीनों में जो भी कुछ झेला था सब बता देता है l सारी बातेँ बताने के बाद एक ग्लानि भाव से उसका सिर झुक जाता है l विश्व को एहसास होता है तो वीर को दिलासा देते हुए उसके हाथ पर हाथ रख देता है l

वीर - (वैसे ही अपना सिर झुकाए) यार यही मेरी कहानी है... जो बात मुझसे जुड़ी हुई थी मैंने सब बता दिया है... (एक छटपटाहट के साथ) यार मैं... अनु को किसी कीमत पर खो नहीं सकता... बात अगर मेरी जान की होती तो मैं सामना कर सकता था... पर मेरी अनु की है... मेरे कुकर्मों की कीमत... अनु नहीं चुका सकती... उस दुश्मन को बदला ही लेना है... तो सीधे मुझसे क्यूँ नहीं ले लेता...

कह कर विश्व की ओर देखता है l विश्व अपनी सोच में डूबा हुआ था l वीर विश्व की हाथ को हिला कर उसका ध्यान खिंचता है l

वीर - क्या सोच रहे थे...
विश्व - कुछ सवाल करता हूँ... जितना भी याद हो मुझसे कहना...
वीर - ठीक है... पूछो...
विश्व - तुम्हारे पिता... यानी छोटे राजा जी पर जो हमला हुआ था... वह बड़े बड़े न्यूज पेपर की हेड लाइन बनी थी... इस लिए मुझे मालुम है... पर यह सब की नींव उससे पहले ही पड़ी होगी... अच्छा इन छह महीनों में... तुम्हारे जिंदगी में... मतलब भुवनेश्वर में या तुम्हारे ऑफिस में कौन कौन आया है...
वीर - (सोचते हुए) इन छह महीनों में... नंदिनी... मृत्युंजय और अनु... इन तीनों के सिवा...
विश्व - ठीक है... इन तीनों को तुम अपने तरीके से विश्लेषण करो...
वीर - क्या बात कर रहे हो... नंदिनी बहन है मेरी... आज अगर मैं बदला हूँ... उसकी वज़ह से... और अनु को तो तुम जानते ही हो... तुमने देखा भी है उसे... और मृत्युंजय के बारे में... मैं... मैं उसका गुनहगार हूँ यार...

विश्व अपनी आँखे बंद कर फिर से सोचने लगता है, थोड़ी देर बाद अपनी आँखे खोल कर वीर की ओर देखता है

विश्व - कल किसीका पीछा किया था...
वीर - हाँ... मेरे जनम दिन में... मैं अनु को रिटर्न खुशी देना चाहता था... जो उसने मुझे अपनी जनम दिन पर दी थी... उस दिन पुरी कोणार्क मेराइन ड्राइव बीच में... जो दो लड़के अनु को छेड़े थे... उन्हीं में से एक मुझे पार्टी ऑफिस में दिख गया... तो मैं उसके पीछे भगा... यह उसी अनजान दुश्मन का आदमी था... उसके पुलिस हेड क्वार्टर सरेंडर के बाद... उस दुश्मन का फोन आया था...
विश्व - ह्म्म्म्म... (फिर सोचने लगता है)
वीर - (थोड़ी देर बाद) कुछ सोचा... कौन हो सकता है...
विश्व - ह्म्म्म्म... एक बात तो तुम्हारे मरहूम महांती बाबु ने सही कहा था... वगैर जांच और इंटरव्यू के जो तुम्हारे ESS में जॉइन किए थे... उन्हीं में कोई एक है...
वीर - हाँ... विक्रम भैया का भी यही मानना था...
विश्व - इस बात पर मैं... विक्रम से इत्तेफाक रखता हूँ...
वीर - तो क्या अनु...
विश्व - ना ना ना... अनु को तो महांती बाबु ने क्लियरेंस दे दिया था ना...
वीर - तो इसका मतलब... सबकी फाइल फिर से जांचनी होगी...
विश्व - शायद उसकी जरूरत ना पड़े..
वीर - कैसे...
विश्व - मुझे एक बार तुम मृत्युंजय से बात करा सकते हो...
वीर - (थोड़ा हैरान होता है) क्या तुम मृत्युंजय पर शक कर रहे हो...
विश्व - देखो वीर... मृत्युंजय के ESS जॉइन होने से पहले... और बाद में... जो भी उसके साथ हुआ... मुझे उस पर सिंपथी है... यहाँ तक कि उसके बहन के साथ जो हुआ... बहुत ही गलत हुआ... पर मैं अपनी शक दुर करने के लिए... उसके साथ एक बार बात करना चाहता हूँ...
वीर - पर वह तो हस्पताल से चला गया... अब कहाँ गया... हम में से कोई नहीं जानता... (थोड़ी देर चुप रह कर) पर तुम्हारा उस पर शक की वज़ह...
विश्व - देखो वीर... तुम्हारे परिवार के कई दुश्मन हो सकते हैं... पर जिस तरह से... तुम्हारे पिता या तुम पर यह सब कांड हुआ है... कोई बाहर से आकर नहीं कर सकता... कोई पास रह कर ही यह सब कर सकता है... यह सब देख कर मुझे मृत्युंजय पर शक तो हो रहा है... पर उसकी बहन की मौत.... मुझे कंफ्यूज भी कर रही है...
वीर - प्रताप... प्लीज... तुम मुझे डिटेल्स में समझाओगे...
विश्व - साढ़े पाँच महीने पहले... मृत्युंजय तुम्हारा रिकमेंडेशन पर ESS में जॉइन होता है... और यह सब कांड करने के लिए उसके पास वज़ह दिखती है...
वीर - (थोड़ा सीरियस हो जाता है) वह जो भी सब हुआ... एक अकेला कैसे कर सकता है...
विश्व - मैं कब कह रहा हूँ अकेला कर रहा था... मैं बस यह कह रहा हूँ... उसे मालुम था... तुम्हारी रिकमेंडेशन की क्या वाल्यू है... तुम्हारे राजनीतिक दुश्मन... व्यापारिक दुश्मन... और निजी तौर पर दुश्मनी रखने वालों के साथ मिलकर ऐसा किया हो सकता है... ऐसा मेरा अनुमान है... (वीर विश्व की बातों को गौर से सुन रहा था और चुप था) मृत्युंजय के पास वज़ह था... उसकी बाप की हत्या हुई थी... उसकी माँ की नाजायज सबंध... यह सब मृत्युंजय जैसा कॉलेज जाने वाला स्टूडेंट... ना जान पाया हो... मुझे नहीं लगता...
वीर - पर उसकी बहन की हत्या...
विश्व - इसी लिए तो... मैं मृत्युंजय से एक बार बात करना चाहता हूँ... उससे बात कर लेने के बाद... अगर वह बेकसूर निकला... तो हम दूसरों पर तहकीकात कर सकते हैं...
वीर - उसकी बहन की हत्या के बाद भी... तुम्हारी उस पर शक की वज़ह...
विश्व - उसका अनु के जरिए... अपनी पोस्टिंग करवाना... उसका हस्पताल से जिस तरह से गायब होना... यह कोई आम आदमी नहीं कर सकता... यही वज़ह है कि मुझे लिंक जोड़ने पर मजबूर कर देता है... मुझे लगता है... महांती को शायद उसकी भनक लग गई थी... इसलिए उसे अपने साथ लेकर तुम लोगों के पास शायद आ रहे थे... एक्सीडेंट हो गया... महांती बाबु मारे गए... पर मृत्युंजय बच जाता है... गाड़ी अंदर बैठ कर ही कोई आसानी से... फ्रेगनैंस बॉटल ए सी वेंट से बदल सकता है... और सोने पे सुहागा देखो... एक्सीडेंट के स्पॉट पर... उन लोगों को रेस्क्यू किया कौन... रॉय ग्रुप सिक्युरिटी के लोग... जो महांती बाबु के बिजनैस राइवल...

वीर यह सब सुन कर स्तब्ध हो जाता है, उसे बहुत जोर का शॉक लगा था l उसके मन में कहीं ना कहीं विश्व की बात बैठ जाता है l

विश्व - है... है वीर... देखो हो सकता है... वह इनोसेंट हो... यह मेरा अनुमान सिर्फ है... एक बार उससे बात करवा दो... फिर शायद हम कोई कंक्लुजन लें...
वीर - पर मैं उसे कहाँ ढूंढु... वह हस्पताल से ऐसे गायब हुआ कि... उसका फोन नंबर भी तभी से आउट ऑफ सर्विस आ रहा है..
 

Sidd19

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