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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

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Rajesh

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👉एक सौ तेंतीसवां अपडेट
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अपनी कान से मोबाइल हटा कर पिनाक अपने सामने की मेज पर रख देता है l गंभीरता भरे उसके चेहरे पर धीरे धीरे एक मुस्कुराहट उभरती है जो सम्यक सम्यक गहरी हो जाती है l अपनी जगह से उठ कर कमरे से बाहर निकलता है और उस बंगले के लॉन के स्विमिंग पुल पर आता है, जहाँ भैरव सिंह अपना संध्या स्नान करते हुए तैर रहा था l पुल से कुछ दुर टु पीस बिकनी पहने कुछ अध नंगी लड़कियाँ बाथ रॉब और टावल लेकर खड़े थे l तैरते हुए भैरव सिंह पिनाक को आते देख लेता है l पिनाक के पुल के पास पहुँचते ही भैरव सिंह अपना तैरना रोक कर पुल से बाहर आ जाता है l उसके बाहर आते ही लड़कियाँ भागते हुए आती हैं और टावल से उसके बदन को साफ करने लगती हैं l भैरव सिंह एक लंगोट में दोनों हाथ फैलाए हुए खड़ा था, और लड़कियाँ उसके गिले बदन पर टावल चला रहीं थीं l बदन साफ हो जाने के बाद वह लड़कियाँ हट जाती हैं और दो लड़कियाँ भैरव सिंह को बाथ रॉब पहना देते हैं l जब यह सब हो रहा था, भैरव सिंह पिनाक को गौर से देखे जा रहा था l पिनाक के चेहरे से छलक रही खुशी का भैरव सिंह को आभास हो जाता है l

भैरव सिंह - (चुटकी बजा कर एक लड़की को) दो पेग बना कर लाओ....

वह लड़की भाग कर पास की फ्रिज से बोतल निकाल कर फौरन दो पेग बना कर लाती है, भैरव सिंह और पिनाक दोनों अपने अपने हाथ में पेग उठाते हैं l पिनाक उतावला हो रहा था चियर्स करने के लिए, पर भैरव सिंह अपना ग्लास आगे नहीं करता l पिनाक थोड़ा हैरान होता है और भैरव सिंह की ओर देखने लगता है l भैरव सिंह पास पड़े एक आर्म चेयर पर पैर के ऊपर पैर रख कर बैठ जाता है l पिनाक देखता है भैरव सिंह के आँखों में या चेहरे पर कोई भाव नहीं था एक दम भाव शून्य और सपाट l

पिनाक - वह राजा साहब...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...
पिनाक - वह... काम हो गया है...
भैरव सिंह - आपकी खुशी और उतावला पन देख कर हम समझ गए.... पर काम हुआ कहाँ तक है...
पिनाक - हमने जिसको यह काम सौंपा था... उसके आदमियों ने... उस बदजात लड़की को उठा लिया गया है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...
पिनाक - बहुत जल्द उसे ठिकाने लगा दी जाएगी...
भैरव सिंह - हूँ.... वैसे यह काम किया किसने...
पिनाक - हमारा अपना कोई भी इंवॉल्व नहीं है इसमें...
भैरव सिंह - और...
पिनाक - बस... जिंदा रखा है... कल किसी तरह... देर शाम तक मंगनी हो जाए... उसे भी हम गायब करवा देंगे... जैसे हम पहले अपने रास्ते आने वालों के साथ करते आए हैं....
भैरव सिंह - हूँम्म्म्... राजकुमार की क्या खबर है...
पिनाक - पता नहीं.... पर उन पर नजर रखने के लिए... अपने आदमियों से कह दिया है....
भैरव सिंह - (अब उस आर्म चेयर पर पीठ टीका कर फैल कर बैठ जाता है) छोटे राजा जी... बात यहां तक पहुंचनी नहीं चाहिए थी.. हमारे आगाह करने से पहले... आपको चौकन्ना हो जाना चाहिए था... बात को वहीं निपटा देना चाहिए था...
पिनाक - (बगल में पड़े एक कुर्सी पर बैठते हुए) आप ठीक कह रहे हैं... हमें पहले खबर लग गई थी... हमारे ESS के एक मुलाजिम से.... हमने उसे हल्के में लिया था... हमें उसी दिन गौर कर लेना चाहिए था... पर हमने सोचा... वह राजकुमार हैं.... आदतन उस लड़की के साथ वही करेंगे... जो उन्होंने दुसरे ल़डकियों के साथ किया है... पर...
भैरव सिंह - पर...
पिनाक - यह बदबख्त लड़की... दुसरों से चालक निकली... राजकुमार को ही फंसा दिया... और बात आपके आगाह करने तक आ गई... पर कोई नहीं... सिर्फ कल शाम तक...
भैरव सिंह - यानी हमारे आगाह करने से पहले... आपको भनक थी...
पिनाक - (थोड़ा हिचकिचाते हुए) जी...
भैरव सिंह - हूँम्म्... (भैरव सिंह खड़ा हो जाता है)
पिनाक - (भी खड़े होकर) क्या हुआ राजा साहब...
भैरव सिंह - (आगे की ओर चलते हुए) जानते ही छोटे राजा जी... हम कभी खून खराबा नहीं चाहते... अशांति नहीं चाहते... पर.... (थोड़ा रुक कर) ना यह दुनिया हमें अच्छा बनने देती है... ना ही उनका भगवान....
पिनाक - राजा साहब... वह कहते हैं ना अंत भला तो सब भला...
भैरव सिंह - अब अंत नहीं हुआ है छोटे राजा जी... अब देखना यह है... राजकुमार क्या करेंगे... कैसी रहेगी उनकी प्रतिक्रिया...
पिनाक - हाँ... हम भी यही सोच रहे हैं... फ़िलहाल भुवनेश्वर में अकेले हैं...
भैरव सिंह - वैसे कल शाम की क्या तैयारी है.... और किसे किसे ख़बर किया गया है...
पिनाक - छोटी रानी... शायद भुवनेश्वर पहुँच गई होंगी... या... पहुँचने वाली होंगी... प्रधान भुवनेश्वर में पहुँच चुका है... निर्मल सामल xxxxx होटल में... मंगनी की तैयारी कर रखा है... बस गिने चुने लोग आयेंगे... हाँ... अभी तक हमने मीडिया वालों को खबर नहीं की है....
भैरव सिंह - और राजकुमार... उनके बारे में... आपने कुछ नहीं कहा...
पिनाक - (थोड़ी हैरानी भरे नजर से देखते हुए) मतलब... हम समझे नहीं...
भैरव सिंह - राजकुमार उस बदजात को ढूंढेंगे जरुर... वह भी अपनी पुरी ताकत लगा कर...
पिनाक - ओ... फिर भी... राजकुमार को हासिल कुछ नहीं होगा... ना ESS से... ना ही पुलिस से या फिर प्रशासन से... हमने पुलिस को और प्रशासन को सम्भालने के लिए... प्रधान से कह दिया है... और जहाँ तक हमें खबर है... वह भुवनेश्वर पहुँच कर अपने काम में लग चुका है...
भैरव सिंह - हूँम्म्म... प्रधान से कह दीजिएगा... राजकुमार के आँखों के सामने ना आयें... (एक पॉज के बाद) शायद... इस मामले में युवराज जी से मदत लें...
पिनाक - हाँ.. यह तो हो सकता है... पर... चूँकि इस मामले में... आपकी पुर्ण सहमति है... इसलिए युवराज... चाह कर भी... राजकुमार की कोई मदत नहीं कर सकते....
भैरव सिंह - तो कल के लिए... हमारी ओर से क्या तैयारी है...
पिनाक - कल सुबह हम अपनी लाव लश्कर के साथ... चार्टर्ड प्लेन से भुवनेश्वर पहुँचेंगे... इस रात भर में... राजकुमार की अक्ल ठिकाने आ जाएगी... उन्हें दिलासा देते हुए... मंगनी के लिए युवराज तैयार करेंगे... एक आश दिलाते हुए... की वह बदजात लड़की मिल जायेगी.... तब तक वह कोई पागलपन ना करें...
भैरव सिंह - (चेहरे पर हल्की मुस्कराहट उभर जाती है) उस लड़की को उठाने वालों को... बोल दीजिए... यह लड़की उनके लिए तोहफा है... मजे करें...
पिनाक - इसीलिए तो उठावाया है... क्यूँकी अगर मार देते... तो एक तरफ राजकुमार को संभालना मुश्किल हो जाता और दुसरी तरफ भुवनेश्वर में लाश ठिकाने लगाना मुश्किल हो जाता... मैंने उन्हें स्ट्रीक्ट इंस्ट्रक्ट किया है... इससे पहले शहर में... लड़की के लिए कोई मूवमेंट शुरु हो... लड़की को भुवनेश्वर से जितनी दुर हो सके ले जाने के लिए बोल दिया है... उसके बाद लड़की के साथ जो चाहे करलें....

इतना कह कर पिनाक भैरव सिंह की ओर देखता है l भैरव सिंह अपना ग्लास बढ़ाता है, पिनाक भी खुश हो कर अपना ग्लास आगे कर चियर्स करता है l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


xxxx हॉस्पिटल के परिसर में एक काली रंग की मर्सिडीज रुकती है l गाड़ी से दो नौजवान उतरते हैं, विश्व और वीर l वीर बदहवास आगे आगे भागता है और विश्व उसके पीछे l कुछ देर बाद वीर और विश्व दोनों एक केबिन में पहुँचते हैं l उस केबिन में एक बुढ़ी औरत बैठी हुई सुबक रही थी और कुछ गार्ड्स उसके आसपास पास खड़े थे l वीर सीधे उस बुढ़ी औरत के आगे घुटने के बल बैठ जाता है l

वीर - क्या हुआ दादी... क्या हुआ अनु को..
दादी - (रोते हुए) पता नहीं दामाद जी... मुझे अनु की मोबाइल से फोन आया... खुद को डॉक्टर बोल रहा था... और मुझे इसी हस्पताल को तुरंत आने के लिए कहा... मैंने कारण पुछा तो बोला... मेरी पोती का हादसा हो गया है... इसलिए मैं भागी भागी आई... पर यहाँ अनु थी ही नहीं... (गार्ड्स की ओर इशारा कर) यह लोग कह रहे हैं... मेरी अनु यहाँ आई ही नहीं... मैंने अनु को फोन लगाया... पर फोन उसका बंद आ रहा है... मेरे पास तुम्हारा नंबर नहीं था... इन गार्ड्स ने तुम्हारा नंबर लाकर दी... तो मैंने तुम्हें फोन कर बुलाया...

यह सुनते ही वीर को झटका लगता है l विश्व भी सकते में आ जाता है l दोनों कॉफी डे में बात कर रहे थे कि अनु की दादी की फोन आया था l रो रो कर अनु अनु और सिटी हॉस्पिटल कह रही थी l इसलिए दोनों सिटी हॉस्पिटल पहुँचे थे l वीर खड़ा हो जाता है और पहले अनु की नंबर पर फोन लगाता है, पर नंबर बंद आ रहा था l वीर अपने ESS ऑफिस की रिसेप्शन में फोन लगाता है और अनु के बारे में पूछताछ करने लगता है l इतने में विश्व गार्ड्स के यूनीफॉर्म पर ESS की लोगो देख कर उन्हें दादी के लिए एक ग्लास पानी लाने के लिए बोलता है l

विश्व - (दादी के पास झुक कर) दादी... घबराईये मत... आपकी अनु को कुछ नहीं होगा... आप देखना बहुत जल्द अनु आपके सामने होगी...

इतने में वीर अपनी ऑफिस से सारी ख़बरें जुटा लेता है और विश्व की ओर देखता है l इतने में गार्ड पानी की ग्लास ले आता है l विश्व उसके हाथ से पानी की ग्लास लेकर

विश्व - दादी आप थोड़ा पानी पी लीजिए...

कह कर विश्व वीर के पास आता है l वीर को आँखों के इशारे से पूछता है क्या हुआ l

वीर - दादी तो शाम को हस्पताल आई है... जबकि अनु... दोपहर को ही ऑफिस से निकल गई थी...
विश्व - व्हाट...
वीर - हाँ... अनु को ऑफिस में फोन आया था... के रुटीन मेडिसन लाने जाते वक़्त... रास्ते में दादी की एक्सीडेंट हो गया... और वह सिटी हॉस्पिटल में है...

यह सुन कर दादी अपनी जगह से उठ खड़ी हो जाती है l विश्व की भवें सिकुड़ जाती हैं l

दादी - क... क्या कह रहे हैं दामाद जी...
वीर - मैं समझने की कोशिश कर रहा हूँ दादी...
विश्व - लगता है... अनु का किडनैप हुआ है...
दादी - की नाप... मतलब...
विश्व - अपहरण...
दादी - अ.. अप.. हरण...

दादी रोते हुए बैठ जाती है l वीर की आँखे नम हो जाती है l बड़ी विवशता के साथ विश्व की ओर देखता है l विश्व गहरी सोच में डुबा हुआ था l वीर की फोन बज रहा था पर ना तो वीर, ना विश्व ना ही दादी की ध्यान उस फोन की ओर जा रहा था l एक गार्ड वीर को आवाज देता है

गार्ड - रा.. राजकुमार जी... (वीर नहीं सुनता) रा.. राजकुमार जी..
वीर - हँ... क्या... क्या हुआ...
गार्ड - वह आपका मोबाइल कब से बज रहा है... यह दुसरी बार बज रहा है...

गार्ड के चेताने पर वीर का ध्यान मोबाइल के तरफ जाता है l जैसे ही वह जेब से मोबाइल निकालता है मोबाइल पर रिंग बंद हो जाता है l वीर मोबाइल स्क्रीन पर मिस कॉल में अननोन नंबर लिखा देखता है l उसे देखते ही वीर की आँखे हैरानी से फैल जाती हैं l उसकी यह प्रतिक्रिया विश्व भी देख लेता है l अब मोबाइल फिरसे बजने लगती है l वीर कॉल लिफ्ट करते ही फोन बंद हो जाता है l वीर इसबार बहुत हैरान होता है l कुछ ही सेकेंड के बाद कमरे के दीवार पर लगा लैंडलाइन फोन बजने लगती है l कमरे में मौजूद सभी की नजरें उस बजती हुई फोन पर ठहर जाता है l एक गार्ड जा कर क्रैडल उठाता है

गार्ड - हैलो...
@ - फोन वीर को दो...
गार्ड - क्या...
@ - अबे... हराम के ढक्कन... फोन... उस वीर को दे...
गार्ड - (वीर की ओर देखते हुए) रा.. राजकुमार जी...
वीर - (झट से फोन लपक लेता है) हैलो...
@ - चु चु चु चु... वीर... यह क्या हो गया वीर...
वीर - कौन हो तुम... क्या चाहते हो...
@ - हा हा हा हा.... क्या बचकाना सवाल है... मैं जो चाहता था... वह मैंने कर दिया... मैंने तेरी अनु को उठा लिया...
वीर - (तड़प भरी आवाज़ में) कैसी है अनु... कहाँ है...
@ - आह... मज़ा आ गया... तेरी इस तड़प भरी आवाज सुन कर... दिल को बड़ा सुकून मिला...
वीर - (चिल्ला कर) मैं पूछता हूँ... कहाँ है अनु... (फोन पर वह शख्स हँसने लगता है) (वीर चेहरा और आवाज़ दोनों सख्त हो जाते हैं) मृत्युंजय... तु... मृत्युंजय ही है ना... (फोन पर उस शख्स की हँसी रुक जाती है) हाँ... तु मृत्युंजय ही है... (दादी मृत्युंजय की नाम सुन कर हैरान हो जाती है) चुप क्यूँ हो गया है... हराम जादे...
@ - (कुछ देर की चुप्पी बाद) सोच रहा था... हाँ कह दूँ... के मैं ही मृत्युंजय हूँ... तेरे से बचने के लिए इससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता... फिर सोचा... अपनी लोचा क्यूँ किसी बेचारे बेगुनाह पर थोप दूँ... ना मैं मृत्युंजय नहीं हूँ... पर जो भी हूँ... तुम क्षेत्रपालों से खार खाया हुआ हूँ... पर मजे की बात जानते हो... मैं क्षेत्रपालों के लिए ही काम करता हूँ...
वीर - क्या बकते हो...
@ - हाँ... राजकुमार... मैंने यह काम भी क्षेत्रपाल के लिए ही किया है...
वीर - क्या... क्या कहा तुने...
@ - वही... जो अभी सुना तुने...
वीर - (चिल्ला कर) किसने कहा था तुझे... क्या किया तुने मेरी अनु के साथ...
@ - किया तो कुछ नहीं... पर उसके साथ होगा बहुत कुछ...
वीर - कमीने...
@ - ना... भूतनी के ना... गाली नहीं... गनीमत सोच... मारा नहीं अब तक... वर्ना... मार चुका होता...
वीर - (थोड़ा नर्म पड़ते हुए) नहीं नहीं... उसे कुछ मत करना... तुम्हारी खुन्नस तो मेरे लिए है ना... तो कहो कहाँ आना है... मैं आ जाऊँगा... तुम अपनी खुन्नस मुझसे उतार लेना... अगर पैसा चाहिए तो बोलो... कितना रुपया चाहिए... मैं तुम्हें देने के लिए तैयार हूँ...
@ - अरे बाप रे... क्षेत्रपाल हो कर गिड़गिड़ा रहे हो...
वीर - प्लीज... अनु को छोड़ दो... (गिड़गिड़ाते हुए) प्लीज...
@ - वैसे छोटे क्षेत्रपाल... तुझे शुक्र मनाना चाहिए... जानता है... अनु के साथ जो भी कुछ होने वाला है... वह तेरी बहन के साथ भी हो सकता था....
वीर - (चिल्लाते हुए) हराम जादे...
@ - पर मैं तेरे दिल पर... आत्मा पर... तेरी मर्दानगी पर चोट पहुँचाना चाहता था... और इत्तेफाक देख... तेरे बाप ने ही मुझे अनु की सुपारी दी...
वीर - (स्तब्ध हो जाता है, उसकी आँखे फटी रह जाती है,) क.. क्या... कहा...
@ - हाँ प्यारे... तेरे बाप ने ही मुझे सुपारी दी... अनु को उठा लेने के लिए... जिसने क्षेत्रपाल घर की चौखट में घुसने की सोची... इससे पहले कि वह क्षेत्रपाल के घर की बिस्तर चढ़े... वह खुद अब बाजारु हरामियों की बिस्तर बन जाएगी... हाँ ऐसे में एक दो दिन बाद मर जाएगी... पर तु चिंता मत कर... उसकी आँखे... दिल... गुर्दे... फेफड़े... सब के सब बेच दी जाएगी...

फोन कट जाता है l वीर कुछ नहीं कह पाता l वह बेहद मज़बूरी और बेवसी के साथ अपना चेहरा मोड़ कर दादी और विश्व की ओर देखता है l दादी अभी भी उसे हैरानी के साथ देखे जा रही थी, वह धीरे धीरे वीर के पास जाती है l फोन पर हुई बातेँ किसीको भी सुनाई नहीं दी थी पर फिर भी विश्व, वीर की प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश कर रहा था l

दादी - दामाद जी... क्या आपने...मृत्युंजय कहा...
वीर - (आवाज़ बड़ी मुश्किल से निकलती है) वह... मुझे लगा शायद मृत्युंजय कह रहा है...
दादी - (डरते हुए) क्या वह मृत्युंजय था...
वीर - नहीं जानता दादी... नहीं... जानता...

दादी की रुलाई फुट जाती है l वीर उसे संभालता है और दोबारा कुर्सी पर बिठा देता है, उसके हाथ पकड़ कर नीचे घुटनों पर बैठ कर,

वीर - दादी... अनु मेरी पत्नी है... याद है... उस दिन माँ ने उसे कंगन पहनाया था... और तुमने अपनी मर्जी से अनु को मेरे हवाले कर दिया था... दादी... अनु में मेरी जान बस रही है... अभी मैं जिंदा हूँ... मतलब अनु जिंदा है... उसे खरोंच तक नहीं आया है... और मैं तुमसे वादा करता हूँ... चौबीस घंटे के अंदर... हम दोनों तुम्हारे सामने होंगे... यह वादा है मेरा....

इतना कह कर वीर उठ खड़ा होता है और गार्ड्स को दादी की देखरेख करने को कह कर कमरे से बाहर जाता है l उसे बाहर जाता देख विश्व भी उसके पीछे पीछे बाहर आता है l विश्व देखता है वीर लिफ्ट में घुस गया है l विश्व भागते हुए जब तक पहुँचा लिफ्ट बंद हो कर ऊपर की ओर जाने लगती है l विश्व भी सीढियों से ऊपर के हर मंजिल पर पहुँच कर लिफ्ट देखता है l अंत में लिफ्ट छत पर पहुँचता है l लिफ्ट से वीर तेजी से निकल कर एक किनारे पहुँचता है l विश्व उसके पास भागते हुए जाता है l

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एक कमरे में अनु एक कुर्सी पर बंधी हुई बैठी है l उसके मुहँ पर टेप चिपकी हुई है l अनु की आँखे बंद थीं l धीरे धीरे उसकी आँखे खुलती है l वह अपनी चारों तरफ का जायजा लेने लगती है फिर वह ऊपर की ओर देखती है l उसके सिर पर एक केनोपी में बल्ब मिंज मिंजा रहा था l वह अपने साथ हुए हादसे को समझने की कोशिश कर रही थी l उसे याद आता है वीर को पार्टी ऑफिस से बुलावा आया था इसलिए वह चला गया था l xxxx हस्पताल से उसकी दादी की मोबाइल से उसे कॉल आया था कि उसकी दादी की हालत अचानक खराब हो गई है l वह ऑफिस से बाहर भागते हुए गई और वीर के ड्राइवर के साथ गाड़ी से हस्पताल पहुँची थी l हस्पताल के डॉक्टर ने कहा कि उसकी दादी आई थी अपनी रेगुलर मेडिसन लेने और घर चली गई है l डॉक्टर ने ऐसा कोई फोन नहीं किया था, वह समझी शायद किसीने उसके साथ मज़ाक किया होगा l वह वापस लौटी और पार्किंग के बाहर खड़े हो कर हाथ से इशारा कर गाड़ी को बुलाया l गाड़ी उसके पास रुकते ही गाड़ी की डोर खोल कर बैठ गई l तभी ड्राइविंग सीट से उसके चेहरे पर एक स्प्रे आकर टकराई थी l वह देखी ड्राइवर वह नहीं था, पर इससे ज्यादा उसे कुछ दिखा नहीं, उसकी आँखे धीरे धीरे बंद हो गई कि अब खुल रही हैं l अब उसे समझ में आ गया है, उसका अपहरण हुआ है l पर उसे अपहरण करने के लिए उसके पास है क्या, तब उसे समझ में आता है कि वीर ने उसे अपने ड्राइवर के साथ गाड़ी देकर भेजते हुए क्यूँ उसका पीछा करता था l

अनु ऐसे ही अपनी उधेड़बुन खोई हुई थी, तभी उस कमरे का दरवाज़ा खुलता है l एक मर्दाना साया सा उस कमरे में आता है थोड़ी दुरी पर खड़ा हो जाता है l जैसे ही वह अनु को होश में देखता है वह तुरंत कमरे से बाहर चला जाता है l उसके यूँ चले जाने से अनु थोड़ी हैरान होती है l कुछ देर बाद वह आदमी एक दुसरे आदमी के साथ अंदर आता है l वह दुसरा आदमी कमरे में एक और कुर्सी को खिंच कर अनु के सामने बैठ जाता है और अपना हाथ बढ़ा कर अनु के मुहँ से टेप निकाल देता है l टेप के निकलते ही अनु थोड़ी चीख उठती है l

आदमी - यह दर्द कुछ भी नहीं है लड़की... इसके बाद जो तेरे साथ होने वाला है... वही तेरी जिंदगी बनने वाली है... और मौत भी तुझे उसी से मिलने वाली है...

इतना कह कर वह आदमी एक भद्दी मुस्कान मुस्कराता है l पर बदले में अनु कोई प्रतिक्रया नहीं देती l इससे वह आदमी थोड़ा झल्ला जाता है l

आदमी - लगता है... तुझे मेरी बात समझ में नहीं आई... क्या सोचने लगी...
अनु - यही के.. तुम हो कौन... मैंने तुम्हें कभी नहीं देखा...
आदमी - हा हा हा... क्या ग़ज़ब लड़की है... तुझे क्या लगता है... तुझ पर खार खा कर... तुझे उठा लिया क्या... (अपना चेहरा अनु के करीब लाते हुए) तेरे आशिक को सबक सिखाने के लिए... मैंने तुझे उठाया है....
अनु - (अनु एक सपाट भाव से उसे देखने लगती है)
आदमी - डर गई ना....
अनु - (अपना सिर हिला कर ना कहती है)
आदमी - (थोड़ी हैरानी के साथ अपने बायीं आँख का भवां उठा कर) मैंने तुझे उठा लाया... तुझे क्या... दुनिया में किसी को भी मालुम नहीं है... अभी इस वक़्त तु कहाँ है... और तु कह रही है... तुझे डर नहीं लग रहा...
अनु - (फिर से अपना सिर हिला कर ना कहती है)


उस आदमी के बगल में खड़ा आदमी झुकता है और कहता है l

- बॉस... जैसा इसके बारे में सुना था... है बिल्कुल वैसी... ट्यूब लाइट...
आदमी - (अपनी कुर्सी छोड़ खड़े होकर) इसको समझ में आए या ना आए... मैं सिर्फ इसको... इसकी होने वाली बर्बादी की वज़ह... इसका आशिक है... यही बताने आया था...

कह कर मुड़ जाता है और वे दोनों कमरे से जाने लगते हैं l जैसे ही वे दोनों दरवाजे के पास पहुँचते हैं l

अनु - तुम लोगों ने बहुत बड़ी गलती कर दी है.... अपनी मौत के दरवाजे... तुमने खोल दी है...

दोनों रुक जाते हैं, वह आदमी वापस अनु के पास आकर बैठ जाता है l

आदमी - अच्छा... तुझे ऐसा लगता है... चल बोल... तुझे ऐसा क्यूँ लगता है...
अनु - मैं... क्षेत्रपाल परिवार की होने वाली बहु हूँ...

यह सुनते ही वह आदमी और उसके साथ वाला बंदा दोनों मिलकर हँसने लगते हैं l अनु थोड़ी हैरान होती है l


आदमी - लड़की... तुझे गायब करने के लिए सुपारी... तेरे होने वाला ससुर ने दिया है... (कह कर हँसने लगता है, फिर अपनी हँसी रोक कर) मुझे मौके की तलाश थी... क्षेत्रपाल बंधुओं से बदला लेने की... इत्तेफाक से... उसी खानदान से हमें... सुपारी मिली...

यह सुन कर अनु हैरान होती है l उसका सिर झुक जाता है l अनु की हालत देख कर वह कहता है

आदमी - कितनी खुश फ़हमी में थी ना... क्षेत्रपाल परिवार की बहु समझने लगी थी खुद को... तुझे देखने के बाद... मैं भी सोच में पड़ गया था... तु कोई बड़ी खूबसूरत तो है नहीं... गोरी चिट्टी है नहीं... फिर... (अपना चेहरा अनु के पास ले जा कर) जो लड़की मिले उसे चख कर छोड़ने वाला राजकुमार... तु कैसे सलामत रह गई...
अनु - राजकुमार मुझसे प्यार करते हैं...
आदमी - यही तो... राजकुमार तुझसे प्यार करता है... और तु उसीकी कीमत उतार रही है...
अनु - तुम लोग मेरे साथ क्या कर लोगे...

उस आदमी के साथ खड़ा आदमी
- बहुत जल्द बहुत कुछ करेंगे... इतना कुछ के तेरी बस साँसे चलती रहेगी...
अनु - कुछ नहीं कर पाओगे.... मुझे खरोंच भी आई... मेरे राजकुमार तुम लोगों को जिंदा नहीं छोड़ेंगे...

हा हा हा हा हा....

वह आदमी और उसके साथ वाला बंदा हँसने लगते हैं l हँसते हँसते वह आदमी अनु से कहता है

आदमी - वाह क्या लड़की है... इसे अपनी आशिक का इंतजार है... जब कि इसे उठवाया ही इसके आशिक का बाप है... (लहजा बदल कर) तेरे उसी ससुर की इशारे का इंतज़ार है... इशारा होते ही... (सिटी मार कर अपने हाथ को सांप के फन की तरह बना कर एक बार बाएं से दाएं तरफ ले जाता है) और जब तु... मरेगी... तब तुझे इस बात का पछतावा होगा... क्षेत्रपाल राजकुमार से... दिल क्यूँ लगाया...
अनु - वह दिन कभी नहीं आएगा... मुझसे एक गलती हो गई... मैंने दादी माँ को हस्पताल से फोन नहीं किया... पर एक बात है... इस बात का पछतावा तो तुम लोगों को जरूर होगा... के तुमने मुझे क्यूँ अगवा किया...
आदमी - (हैरान हो कर) बड़ी इत्मिनान है तुझे... इतना यकीन...
अनु - हाँ है तो...
आदमी - क्या इसलिए... के तेरे साथ अभी तक कुछ किया नहीं...
अनु - तुमने अभी अभी मुझे ट्यूबलाइट कहा ना... पर ट्यूबलाइट जब जलता है ना.. बहुत जबरदस्त जलता है...
आदमी - अच्छा... तुझे क्या समझ में आया बोल तो सही...
अनु - यही की मैं सही सलामत हूँ.... वर्ना तुम लोगों के पास मौका तो बहुत था... मुझे ख़तम करने या बर्बाद करने के लिए... पर तुम लोगों ने ऐसा कुछ किया नहीं... मतलब उस क्षेत्रपाल नाम की आँधी...

अनु की यकीन भरी बातों को सुन कर उस आदमी की आँखे फैल जाती है l उसकी यह प्रतिक्रिया देख कर अनु उसे कहती है

अनु - मैं अभी तक सलामत हूँ... मतलब मैं अभी भी... उनकी पहुँच और उनके दायरे में हूँ... वह क्या हैं... कैसे हैं... यह मुझसे बेहतर तुम जानते हो... मुझे उससे कोई मतलब नहीं है... मुझे बस इतना यकीन है... मेरे लिए... जमीन आसमान एक कर देंगे...
आदमी - बहुत यकीन है तुझे उस बदबख्त पर... अपनी यह हालत देखने के बाद भी...
अनु - हाँ... मैं उनकी सुकून हूँ... मैं उनकी जुनून हूँ... तुमने उनकी जुनून को छेड़ा है... तुम्हारा अंजाम... तुम्हें लगता है कि तुमने मेरा अंजाम सोच रखा है... पर सच यह है कि... तुमने तुम्हारा अंजाम तय कर लिया है... तुमने यह सोचा था... के मैं पछताऊँ... राजकुमार से प्यार किया इसलिए... वह दिन तो कभी नहीं आएगा... पर तुम जरूर पछताओगे... लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी...

आदमी अपनी कुर्सी से उठ कर चला जाता है उसके पीछे पीछे वह बंदा भी चला जाता है और कमरे का दरवाज़ा बंद हो जाता है l


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विश्व भागते हुए हस्पताल की छत पर पहुँचता है l अपनी नजर चारों तरफ घुमाता है l एक कोने पर दीवार पर वीर उसे खड़ा दिख जाता है l

वीर - (आसमान की ओर देखते हुए चिल्लाता है) या... आ.. आ...

विश्व थोड़ी देर के लिए स्तब्ध हो जाता है l फिर आवाज देते हुए वीर के पास दौड़ता है

विश्व - वीर... (वीर को नीचे खिंच लेता है) यह करने जा रहे थे वीर...
वीर - (एक टूटी हुई मुस्कान के साथ विश्व की ओर देखता है) नहीं यार... मैं... आत्म हत्या करने नहीं आया हूँ... मैं रोना चाहता था... चीखना चाहता था... चिल्लाना चाहता था... हस्पताल के अंदर बोर्ड पर लिखा था... साइलेंस प्लीज... इसलिए छत पर आकर चिल्ला रहा था...
विश्व - (वीर को झकझोरते हुए) यह कैसी बातेँ कर रहे हो... होश में आओ...
वीर - हाँ... आ गया हूँ... होश में... जानते हो प्रताप.... अभी नीचे दादी से क्या वादा कर आया हूँ... चौबीस घंटे के भीतर... मैं अनु को लेकर उसके सामने खड़ा होऊँगा...
विश्व - तो ढूँढ लेंगे ना यार....
वीर - नहीं... नहीं ढूँढ सकते...
विश्व - क्यूँ नहीं ढूँढ सकते... तुम राजकुमार हो... तुम क्षेत्रपाल हो... तुम्हारे एक इशारे पर... यह पुरा सिस्टम और एडमिनिस्ट्रेशन अपनी पुरी ताकत झोंक देगा अनु को ढूंढ़ने के लिए...
वीर - (हँसने लगता है) हा हा हा हा... कुछ देर पहले मुझे भी यह खुश फ़हमी था... (फिर अचानक चेहरे पर दर्द उभर आता है) पर... जब मालुम हुआ... यह किडनैप मेरे बाप ने कराया है... तब मुझे मेरी औकात और हस्ती मालुम हो गई...
विश्व - फोन पर कौन था... (वीर चुप रहता है) क्या मृत्युंजय...
वीर - पता नहीं... पर जो भी था.. इतना जरूर कहा कि वह... मेरा दुश्मन है... और उसे अनु को उठवा ने के लिए सुपारी... मेरे बाप ने दी है... (विश्व की तरफ देख कर) अगर यह सच है... तो यह सारा सिस्टम और एडमिनिस्ट्रेशन मुझे पुचकारेगी और दिलासा देगी... पर नतीज़ा वही निकलेगा जो मेरा बाप चाहेगा...

कुछ देरी के लिए दोनों के दरमियान खामोशी पसर जाती है l धीरे धीरे अंधरे के गर्त में डूब रहा शहर की कोलाहल सुनाई दे रही थी l तभी वीर की फोन बजने लगती है l वीर झट से फोन निकाल कर देखता है l स्क्रीन पर भाभी लिखा आ रहा था l वीर थोड़ा हैरान होता है और खुदको नॉर्मल करते हुए फिर फोन लिफ्ट करता है l

वीर - हैलो...
शुभ्रा - हैलो वीर... कहाँ हो...
वीर - क्या हुआ भाभी... आप ऐसे क्यूँ पूछ रही हैं... मैं इस वक़्त वहीँ हूँ... जहां मुझे होना चाहिए...
शुभ्रा - माँ जी आई हुई हैं.. क्या तुम जानते हो...
वीर - (चौंकता है) क्या... माँ आई हुई है...
शुभ्रा - एक मिनट... तुम माँ से बात कर लो...
सुषमा - हैलो वीर...
वीर - क्या बात है माँ... तुम थोड़ी घबराई हुई लग रही हो... क्या हुआ...
सुषमा - कुछ नहीं बेटे... लगता है... भगवान को यह मंजुर नहीं.. के मैं अनु की दादी के सामने अपना सिर उठा कर खड़ी हो पाऊँ...
वीर - (आँखे हैरानी से फैल जाते हैं) यह तुम... कैसी बातेँ कर रही हो माँ... क्या हो गया है...
सुषमा - जानते हो... मुझे यहाँ किस बावत बुलाया गया है... कल xxxx होटल में.. शाम साढ़े सात बजे... तेरा मंगनी है... सुना है... कोई इंडस्ट्रियलिस्ट है... निर्मल सामल... उसकी बेटी से...
वीर - (हैरानी भरे आवाज में) कल मेरा मंगनी है... और मुझे खबर तक नहीं...
सुषमा - मुझे भी आज पता चला है बेटे...
वीर - ठीक है माँ.. मैं कुछ करता हूँ...

वीर फोन काट देता है और कुछ सोचते हुए घुटने के जितने ऊँचे एक पिलर पर बैठ जाता है l विश्व अब तक वीर की बातेँ सुन रहा था और अब वीर की हालत पर गौर कर रहा था l

विश्व - क्या हुआ वीर....
वीर - (हँसने लगता है) हा हा हा...
विश्व - वीर... फिर क्या हुआ...
वीर - (विश्व की ओर देखते हुए) प्रताप... तुमने पुरे जीवन काल में... मेरे परिवार के बड़े जो तोप बने घूमते हैं... उनसे बड़ा कमीना और हरामी... कभी देखे नहीं होगे... जानते हो अनु को किडनैप क्यूँ किया गया है... ताकि उसकी आड़ में... मुझे ब्लैक मैल कर... किसी और से मेरी पहले मंगनी और फिर शादी करा सके... हा हा हा... कहाँ मैं सोच रहा था... अपने बड़ों की इजाजत लेकर... अनु से शादी करूँगा... और कहाँ मेरे बड़ों ने... मेरे और मेरे तकदीर के साथ क्या मज़ाक किया...
विश्व - इसका मतलब... तुम्हारे घर में बड़ो को... तुम्हारे और अनु के बारे में सब मालुम था...
वीर - हाँ... और मैं समझ रहा था... बड़ों को अपनी काम से फुर्सत नहीं है.. इसलिए अपनी दिल की बात बता कर... अनु से शादी कर लूँगा... (विश्व चुप रहता है, विश्व को चुप देख कर) हैरान मत हो प्रताप... जानवरों में भी कुछ नस्लें होते हैं... जो भूख लगने पर... अपनी ही बच्चों को मार कर खा जाते हैं... और यह क्षेत्रपाल परिवार... कोई इंसानी नस्ल नहीं...


विश्व यह सुन कर स्तब्ध हो जाता है l वीर अपना सिर ऐसे हिला रहा था जैसे उसे सब समझ में आ चुका था l

वीर - विक्रम भैया... जब कलकत्ता गए... मुझे हिदायत देते हुए गए थे... मैं समझ नहीं पाया था... इसलिए यह तो पक्का है... मुझे ना मेरी एजेंसी से... ना ही सरकारी शासन व प्रशासन से... कोई मदत नहीं मिलेगी....

तभी एक गार्ड इन दोनों के पास पहुँचता है l वीर को सैल्यूट करता है और

गार्ड - सर... नीचे पुलिस आई हुई है... वह कह रहे हैं... उनके हाथ कुछ लगा है... आपको जानना चाहिए...

वीर चौंक कर विश्व की ओर देखता है और फिर तेजी से नीचे लॉबी में पहुँचता है l उसके साथ साथ विश्व और वह गार्ड पहुँचते हैं l लॉबी में एक इंस्पेक्टर अपने कुछ पुलिस कर्मियों के साथ हस्पताल के स्टाफ़ और गार्ड्स से पूछताछ कर रहा था l वह इंस्पेक्टर जैसे ही वीर को देखता है पूछताछ रोक कर वीर के पास आता है l

इंस्पेक्टर - राजकुमार जी... हैलो... (वीर कोई जवाब नहीं देता, इंस्पेक्टर थोड़ा अकवर्ड फिल करता है) वह बात दरअसल यह है कि... आम तौर पर गुमशुदगी की कंप्लेंट चौबीस घंटे के पहले ली नहीं जाती... पर...
वीर - पर आप लोगों को... कंप्लेंट किसने करा...
इंस्पेक्टर - जी कुछ घंटे पहले... हॉस्पिटल की एडमिनिस्ट्रेशन ने फोन पर गुमशुदगी की जानकारी दी थी...
वीर - यह गुमशुदगी नहीं है...
इंस्पेक्टर - जी तहकीकात में मालुम हुआ... यह अपहरण है... (वीर चुप रहता है) और यह वाक्या सीसीटीवी से मालुम हुआ...
वीर - सीसीटीवी से...
इंस्पेक्टर - जी सर... सीसीटीवी में चलते हुए टाइम स्क्रॉल को देख कर... आइए देखिए...

लॉबी में एक सादे कपड़े में बैठे एक शख्स लैपटॉप लेकर बैठा था l इंस्पेक्टर वीर को लेकर उसके पास पहुँचता है l विश्व भी उसके पास आता है तो इंस्पेक्टर उसे रोकता है l

इंस्पेक्टर - आप कौन...
वीर - यह मेरे साथ है... मेरा दोस्त है....
इंस्पेक्टर - ओके...

वह आदमी लैपटॉप पर चार विंडो क्लिप विडिओ चलाता है l सभी देखते हैं l अनु हस्पताल से निकल कर पार्किंग के पास जाकर अपने हाथ से इशारा कर गाड़ी बुलाती है l गाड़ी उसके पास आते ही वह गाड़ी में बैठ जाती है l वीडियो के खत्म होते ही इंस्पेक्टर वीर से कहता है

इंस्पेक्टर - जैसा कि आप देख रहे हैं... मिस अनु जी... गाड़ी में पौने पाँच बजे गाड़ी में बैठ कर जा रही हैं.... मतलब... हमें जब इत्तला मिली... सिर्फ डेढ़ घंटे बीते थे...
विश्व - एसक्युज मी... इंस्पेक्टर... इफ यु डोंट माइंड... क्या यह क्लिप फिर से चला सकते हैं...

यह सुन कर इंस्पेक्टर विश्व की अजीब ढंग से देखने लगता है l विश्व वीर की ओर इशारा करता है l वीर विश्व की ओर देखता है फिर इंस्पेक्टर को क्लिप चलाने के लिए इशारा करता है l इंस्पेक्टर उस आदमी से क्लिप चलाने के लिए कहता है l विश्व इस बार गौर से तीन चार बार क्लिप चला कर वीडियो अलग अलग कर देखता है l

विश्व - वीर... अनु की किडनैपिंग साढ़े बारह बजे से एक बजे के भीतर हुआ है... यह सारे क्लिप्स मॉर्फड है...
इंस्पेक्टर - व्हाट... (इंस्पेक्टर वीडियो देखने लगता है, फिर विश्व से) तुम्हें कैसे पता चला... तुम हमारी इनवेस्टिगेशन को मिस गाईड कर रहे हो... (वीर से) यह कौन है राजकुमार जी...
वीर - यह वकील हैं...

इंस्पेक्टर थोड़ा नर्म पड़ता है l फिर से वीडियो क्लिप्स देखने लगता है l पर उसे कुछ समझ में नहीं आता l

इंस्पेक्टर - (विश्व से) सर आपको कैसे मालुम हुआ...
विश्व - क्यूंकि कुछ ही टाइम में यह क्लिप्स मर्फ किया गया है... इसलिए कुछ लाकुना रह गया है... यह देखिए... अनु की साये को देखिए... छोटी सी साया उसके पैरों के नीचे दिख रही है... जबकि टाइम स्क्रॉल में पौने पाँच दिखा रहा है... पौने पाँच बजे का साया बड़ा होना चाहिए... जैसे कि उसके आसपास के साये हैं...
इंस्पेक्टर - (क्लिप को देखने के बाद अपने स्टाफ से) लगता है हमसे कुछ छूट गया है... चलो फिर से शुरू करते हैं... पुरी बारीकी से और सावधानी से... कॉम ऑन... (वीर से) राजकुमार जी... हम तहकीकात करने के बाद आप से बात करेंगे...

इतना कह कर इंस्पेक्टर अपने सह कर्मियों को लेकर वहाँ से चला जाता है l उनके जाते ही

वीर - प्रताप... एक बात समझ में नहीं आया... मान लो एक बजे किडनैप हुआ... तो किडनैप को पाँच बजे दिखाने की कोशिश क्यूँ की...
विश्व - वह इसलिए... ताकि तहकीकात को भटका सकें... उन्हें अनु को दुर ले जाने के लिए... एक टाइम लैप चाहिए... और यह सब... कोई पहुँची हुई टीम ने की है...
वीर - (एक दम असहायसा होकर) जहां क्षेत्रपाल ईनवॉल्व हो... वहाँ... (और कुछ कह नहीं पाता)
विश्व - हम पता कर लेंगे...
वीर - कैसे...

विश्व अपना मोबाइल निकालता है और एक कॉल लगाता है l उधर से कॉल लिफ्ट होते ही विश्व स्पीकर पर डाल देता है l

# - हैलो भाई... कहिए कैसे याद किया...

विश्व उस शख्स को अनु के बारे में और पुलिस की कहीं तहकीकात के बारे में सारी बातेँ बताता है l फोन पर वह शख्स सब सुनने के बाद कुछ देर के लिए चुप हो जाता है l

विश्व - क्या हुआ...
# - भाई... यह कोई बड़ा वाला पंगा लगता है... जिन्होंने भी यह हरकत की है... छकाने के लिए... जलेबी बनाया है...
विश्व - मतलब...
# - इसका मतलब हुआ है... की सबको अपने बनाए पहेली में घुमा कर... सही मौका मिलने पर... अनु को भुवनेश्वर से बाहर ले जाएंगे....
विश्व - कौन सा ग्रुप किया है... कोई आइडिया है...
# - भाई... मेरे को पता करने के लिए... थोड़ा वक़्त चाहिए...
वीर - वक़्त ही नहीं है... तुम कह रहे हो कि.. अनु को भुवनेश्वर से बाहर ले जाने जा सकते हैं... या फिर... ले जा चुके हों...
# - नहीं... इतनी जल्दी... आसान नहीं है... पर हो सकता है... रात बारह बजे के बाद... किसी भी रास्ते ले जा सकते हैं...
वीर - क्या... तो उन्हें रोकें कैसे...
# - आप कुछ भी कर के अगर शहर की नाकाबंदी करवा सकें... तो सुबह तक मैं आपको खबर निकाल सकता हूँ...
वीर - (चुप हो जाता है)
विश्व - अच्छा... तुम अपने काम पर लग जाओ... हम अपना काम करेंगे...
# - ठीक है भाई...

फोन कट जाता है l विश्व अपना मोबाइल को जेब में वापस रख देता है l वीर बेवसी के साथ दीवार पर पीठ टीका कर खड़ा हो जाता है l

विश्व - क्या हुआ...
वीर - जानते हो... यहाँ पुलिस तहकीकात के बहाने... सेंडी लगाने आई थी... मतलब हमें भटकाने आई थी... इन सबके पीछे... मेरा बाप है... यानी मुझे ना शासन से... ना प्रशासन से... मुझे मदत मिलने से रहा... (कांपती आवाज में) मेरी अनु को... शायद ढूंढ नहीं पाऊँगा... कास के विक्रम भाई मेरे पास होते... इस शहर की नाकाबंदी मैं किससे कह कर कर पाऊँगा...
विश्व - (वीर के कंधे पर हाथ रखकर) आज इस शहर की नाकाबंदी... होगी... शासन भी करेगा... प्रशासन भी करेगा... जब तक अनु नहीं मिल जाती... ना शासन सोयेगा... ना प्रशासन सोयेगा...

वीर हैरान हो कर विश्व को देखने लगता है l विश्व एक मुस्कराहट के साथ वीर को देखते हुए अपना मोबाइल निकालता है और एक फोन लगाता है l

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दरवाजे पर धक्का लगाते हुए पिनाक विक्रम के कमरे में घुसता है l विक्रम टीवी पर न्यूज देख रहा था, पीछे मुड़ कर देखता है पिनाक उसके पीछे चला आ रहा था l बड़ा खुश नजर आ रहा था l विक्रम टीवी को म्युट कर अपनी जगह से खड़ा होता है l

पिनाक - युवराज... कल आपका काम बहुत बढ़ गया है... इसलिए यह टीवी बंद कर दीजिए... और आराम कीजिए... हम सुबह सात साढ़े सात बजे... चार्टर्ड प्लेन से भुवनेश्वर जा रहे हैं...
विक्रम - कैसा काम छोटे राजा जी...
पिनाक - जो काम सौंपा था... वह काम हो गया है... राजकुमार की जिंदगी से... उस कांटे को हमेशा हमेशा के लिए बाहर निकाल दिया गया है...
bahut hi shandaar update hai bhai maza aa gaya
 
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Ajju Landwalia

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अपनी कान से मोबाइल हटा कर पिनाक अपने सामने की मेज पर रख देता है l गंभीरता भरे उसके चेहरे पर धीरे धीरे एक मुस्कुराहट उभरती है जो सम्यक सम्यक गहरी हो जाती है l अपनी जगह से उठ कर कमरे से बाहर निकलता है और उस बंगले के लॉन के स्विमिंग पुल पर आता है, जहाँ भैरव सिंह अपना संध्या स्नान करते हुए तैर रहा था l पुल से कुछ दुर टु पीस बिकनी पहने कुछ अध नंगी लड़कियाँ बाथ रॉब और टावल लेकर खड़े थे l तैरते हुए भैरव सिंह पिनाक को आते देख लेता है l पिनाक के पुल के पास पहुँचते ही भैरव सिंह अपना तैरना रोक कर पुल से बाहर आ जाता है l उसके बाहर आते ही लड़कियाँ भागते हुए आती हैं और टावल से उसके बदन को साफ करने लगती हैं l भैरव सिंह एक लंगोट में दोनों हाथ फैलाए हुए खड़ा था, और लड़कियाँ उसके गिले बदन पर टावल चला रहीं थीं l बदन साफ हो जाने के बाद वह लड़कियाँ हट जाती हैं और दो लड़कियाँ भैरव सिंह को बाथ रॉब पहना देते हैं l जब यह सब हो रहा था, भैरव सिंह पिनाक को गौर से देखे जा रहा था l पिनाक के चेहरे से छलक रही खुशी का भैरव सिंह को आभास हो जाता है l

भैरव सिंह - (चुटकी बजा कर एक लड़की को) दो पेग बना कर लाओ....

वह लड़की भाग कर पास की फ्रिज से बोतल निकाल कर फौरन दो पेग बना कर लाती है, भैरव सिंह और पिनाक दोनों अपने अपने हाथ में पेग उठाते हैं l पिनाक उतावला हो रहा था चियर्स करने के लिए, पर भैरव सिंह अपना ग्लास आगे नहीं करता l पिनाक थोड़ा हैरान होता है और भैरव सिंह की ओर देखने लगता है l भैरव सिंह पास पड़े एक आर्म चेयर पर पैर के ऊपर पैर रख कर बैठ जाता है l पिनाक देखता है भैरव सिंह के आँखों में या चेहरे पर कोई भाव नहीं था एक दम भाव शून्य और सपाट l

पिनाक - वह राजा साहब...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...
पिनाक - वह... काम हो गया है...
भैरव सिंह - आपकी खुशी और उतावला पन देख कर हम समझ गए.... पर काम हुआ कहाँ तक है...
पिनाक - हमने जिसको यह काम सौंपा था... उसके आदमियों ने... उस बदजात लड़की को उठा लिया गया है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...
पिनाक - बहुत जल्द उसे ठिकाने लगा दी जाएगी...
भैरव सिंह - हूँ.... वैसे यह काम किया किसने...
पिनाक - हमारा अपना कोई भी इंवॉल्व नहीं है इसमें...
भैरव सिंह - और...
पिनाक - बस... जिंदा रखा है... कल किसी तरह... देर शाम तक मंगनी हो जाए... उसे भी हम गायब करवा देंगे... जैसे हम पहले अपने रास्ते आने वालों के साथ करते आए हैं....
भैरव सिंह - हूँम्म्म्... राजकुमार की क्या खबर है...
पिनाक - पता नहीं.... पर उन पर नजर रखने के लिए... अपने आदमियों से कह दिया है....
भैरव सिंह - (अब उस आर्म चेयर पर पीठ टीका कर फैल कर बैठ जाता है) छोटे राजा जी... बात यहां तक पहुंचनी नहीं चाहिए थी.. हमारे आगाह करने से पहले... आपको चौकन्ना हो जाना चाहिए था... बात को वहीं निपटा देना चाहिए था...
पिनाक - (बगल में पड़े एक कुर्सी पर बैठते हुए) आप ठीक कह रहे हैं... हमें पहले खबर लग गई थी... हमारे ESS के एक मुलाजिम से.... हमने उसे हल्के में लिया था... हमें उसी दिन गौर कर लेना चाहिए था... पर हमने सोचा... वह राजकुमार हैं.... आदतन उस लड़की के साथ वही करेंगे... जो उन्होंने दुसरे ल़डकियों के साथ किया है... पर...
भैरव सिंह - पर...
पिनाक - यह बदबख्त लड़की... दुसरों से चालक निकली... राजकुमार को ही फंसा दिया... और बात आपके आगाह करने तक आ गई... पर कोई नहीं... सिर्फ कल शाम तक...
भैरव सिंह - यानी हमारे आगाह करने से पहले... आपको भनक थी...
पिनाक - (थोड़ा हिचकिचाते हुए) जी...
भैरव सिंह - हूँम्म्... (भैरव सिंह खड़ा हो जाता है)
पिनाक - (भी खड़े होकर) क्या हुआ राजा साहब...
भैरव सिंह - (आगे की ओर चलते हुए) जानते ही छोटे राजा जी... हम कभी खून खराबा नहीं चाहते... अशांति नहीं चाहते... पर.... (थोड़ा रुक कर) ना यह दुनिया हमें अच्छा बनने देती है... ना ही उनका भगवान....
पिनाक - राजा साहब... वह कहते हैं ना अंत भला तो सब भला...
भैरव सिंह - अब अंत नहीं हुआ है छोटे राजा जी... अब देखना यह है... राजकुमार क्या करेंगे... कैसी रहेगी उनकी प्रतिक्रिया...
पिनाक - हाँ... हम भी यही सोच रहे हैं... फ़िलहाल भुवनेश्वर में अकेले हैं...
भैरव सिंह - वैसे कल शाम की क्या तैयारी है.... और किसे किसे ख़बर किया गया है...
पिनाक - छोटी रानी... शायद भुवनेश्वर पहुँच गई होंगी... या... पहुँचने वाली होंगी... प्रधान भुवनेश्वर में पहुँच चुका है... निर्मल सामल xxxxx होटल में... मंगनी की तैयारी कर रखा है... बस गिने चुने लोग आयेंगे... हाँ... अभी तक हमने मीडिया वालों को खबर नहीं की है....
भैरव सिंह - और राजकुमार... उनके बारे में... आपने कुछ नहीं कहा...
पिनाक - (थोड़ी हैरानी भरे नजर से देखते हुए) मतलब... हम समझे नहीं...
भैरव सिंह - राजकुमार उस बदजात को ढूंढेंगे जरुर... वह भी अपनी पुरी ताकत लगा कर...
पिनाक - ओ... फिर भी... राजकुमार को हासिल कुछ नहीं होगा... ना ESS से... ना ही पुलिस से या फिर प्रशासन से... हमने पुलिस को और प्रशासन को सम्भालने के लिए... प्रधान से कह दिया है... और जहाँ तक हमें खबर है... वह भुवनेश्वर पहुँच कर अपने काम में लग चुका है...
भैरव सिंह - हूँम्म्म... प्रधान से कह दीजिएगा... राजकुमार के आँखों के सामने ना आयें... (एक पॉज के बाद) शायद... इस मामले में युवराज जी से मदत लें...
पिनाक - हाँ.. यह तो हो सकता है... पर... चूँकि इस मामले में... आपकी पुर्ण सहमति है... इसलिए युवराज... चाह कर भी... राजकुमार की कोई मदत नहीं कर सकते....
भैरव सिंह - तो कल के लिए... हमारी ओर से क्या तैयारी है...
पिनाक - कल सुबह हम अपनी लाव लश्कर के साथ... चार्टर्ड प्लेन से भुवनेश्वर पहुँचेंगे... इस रात भर में... राजकुमार की अक्ल ठिकाने आ जाएगी... उन्हें दिलासा देते हुए... मंगनी के लिए युवराज तैयार करेंगे... एक आश दिलाते हुए... की वह बदजात लड़की मिल जायेगी.... तब तक वह कोई पागलपन ना करें...
भैरव सिंह - (चेहरे पर हल्की मुस्कराहट उभर जाती है) उस लड़की को उठाने वालों को... बोल दीजिए... यह लड़की उनके लिए तोहफा है... मजे करें...
पिनाक - इसीलिए तो उठावाया है... क्यूँकी अगर मार देते... तो एक तरफ राजकुमार को संभालना मुश्किल हो जाता और दुसरी तरफ भुवनेश्वर में लाश ठिकाने लगाना मुश्किल हो जाता... मैंने उन्हें स्ट्रीक्ट इंस्ट्रक्ट किया है... इससे पहले शहर में... लड़की के लिए कोई मूवमेंट शुरु हो... लड़की को भुवनेश्वर से जितनी दुर हो सके ले जाने के लिए बोल दिया है... उसके बाद लड़की के साथ जो चाहे करलें....

इतना कह कर पिनाक भैरव सिंह की ओर देखता है l भैरव सिंह अपना ग्लास बढ़ाता है, पिनाक भी खुश हो कर अपना ग्लास आगे कर चियर्स करता है l


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xxxx हॉस्पिटल के परिसर में एक काली रंग की मर्सिडीज रुकती है l गाड़ी से दो नौजवान उतरते हैं, विश्व और वीर l वीर बदहवास आगे आगे भागता है और विश्व उसके पीछे l कुछ देर बाद वीर और विश्व दोनों एक केबिन में पहुँचते हैं l उस केबिन में एक बुढ़ी औरत बैठी हुई सुबक रही थी और कुछ गार्ड्स उसके आसपास पास खड़े थे l वीर सीधे उस बुढ़ी औरत के आगे घुटने के बल बैठ जाता है l

वीर - क्या हुआ दादी... क्या हुआ अनु को..
दादी - (रोते हुए) पता नहीं दामाद जी... मुझे अनु की मोबाइल से फोन आया... खुद को डॉक्टर बोल रहा था... और मुझे इसी हस्पताल को तुरंत आने के लिए कहा... मैंने कारण पुछा तो बोला... मेरी पोती का हादसा हो गया है... इसलिए मैं भागी भागी आई... पर यहाँ अनु थी ही नहीं... (गार्ड्स की ओर इशारा कर) यह लोग कह रहे हैं... मेरी अनु यहाँ आई ही नहीं... मैंने अनु को फोन लगाया... पर फोन उसका बंद आ रहा है... मेरे पास तुम्हारा नंबर नहीं था... इन गार्ड्स ने तुम्हारा नंबर लाकर दी... तो मैंने तुम्हें फोन कर बुलाया...

यह सुनते ही वीर को झटका लगता है l विश्व भी सकते में आ जाता है l दोनों कॉफी डे में बात कर रहे थे कि अनु की दादी की फोन आया था l रो रो कर अनु अनु और सिटी हॉस्पिटल कह रही थी l इसलिए दोनों सिटी हॉस्पिटल पहुँचे थे l वीर खड़ा हो जाता है और पहले अनु की नंबर पर फोन लगाता है, पर नंबर बंद आ रहा था l वीर अपने ESS ऑफिस की रिसेप्शन में फोन लगाता है और अनु के बारे में पूछताछ करने लगता है l इतने में विश्व गार्ड्स के यूनीफॉर्म पर ESS की लोगो देख कर उन्हें दादी के लिए एक ग्लास पानी लाने के लिए बोलता है l

विश्व - (दादी के पास झुक कर) दादी... घबराईये मत... आपकी अनु को कुछ नहीं होगा... आप देखना बहुत जल्द अनु आपके सामने होगी...

इतने में वीर अपनी ऑफिस से सारी ख़बरें जुटा लेता है और विश्व की ओर देखता है l इतने में गार्ड पानी की ग्लास ले आता है l विश्व उसके हाथ से पानी की ग्लास लेकर

विश्व - दादी आप थोड़ा पानी पी लीजिए...

कह कर विश्व वीर के पास आता है l वीर को आँखों के इशारे से पूछता है क्या हुआ l

वीर - दादी तो शाम को हस्पताल आई है... जबकि अनु... दोपहर को ही ऑफिस से निकल गई थी...
विश्व - व्हाट...
वीर - हाँ... अनु को ऑफिस में फोन आया था... के रुटीन मेडिसन लाने जाते वक़्त... रास्ते में दादी की एक्सीडेंट हो गया... और वह सिटी हॉस्पिटल में है...

यह सुन कर दादी अपनी जगह से उठ खड़ी हो जाती है l विश्व की भवें सिकुड़ जाती हैं l

दादी - क... क्या कह रहे हैं दामाद जी...
वीर - मैं समझने की कोशिश कर रहा हूँ दादी...
विश्व - लगता है... अनु का किडनैप हुआ है...
दादी - की नाप... मतलब...
विश्व - अपहरण...
दादी - अ.. अप.. हरण...

दादी रोते हुए बैठ जाती है l वीर की आँखे नम हो जाती है l बड़ी विवशता के साथ विश्व की ओर देखता है l विश्व गहरी सोच में डुबा हुआ था l वीर की फोन बज रहा था पर ना तो वीर, ना विश्व ना ही दादी की ध्यान उस फोन की ओर जा रहा था l एक गार्ड वीर को आवाज देता है

गार्ड - रा.. राजकुमार जी... (वीर नहीं सुनता) रा.. राजकुमार जी..
वीर - हँ... क्या... क्या हुआ...
गार्ड - वह आपका मोबाइल कब से बज रहा है... यह दुसरी बार बज रहा है...

गार्ड के चेताने पर वीर का ध्यान मोबाइल के तरफ जाता है l जैसे ही वह जेब से मोबाइल निकालता है मोबाइल पर रिंग बंद हो जाता है l वीर मोबाइल स्क्रीन पर मिस कॉल में अननोन नंबर लिखा देखता है l उसे देखते ही वीर की आँखे हैरानी से फैल जाती हैं l उसकी यह प्रतिक्रिया विश्व भी देख लेता है l अब मोबाइल फिरसे बजने लगती है l वीर कॉल लिफ्ट करते ही फोन बंद हो जाता है l वीर इसबार बहुत हैरान होता है l कुछ ही सेकेंड के बाद कमरे के दीवार पर लगा लैंडलाइन फोन बजने लगती है l कमरे में मौजूद सभी की नजरें उस बजती हुई फोन पर ठहर जाता है l एक गार्ड जा कर क्रैडल उठाता है

गार्ड - हैलो...
@ - फोन वीर को दो...
गार्ड - क्या...
@ - अबे... हराम के ढक्कन... फोन... उस वीर को दे...
गार्ड - (वीर की ओर देखते हुए) रा.. राजकुमार जी...
वीर - (झट से फोन लपक लेता है) हैलो...
@ - चु चु चु चु... वीर... यह क्या हो गया वीर...
वीर - कौन हो तुम... क्या चाहते हो...
@ - हा हा हा हा.... क्या बचकाना सवाल है... मैं जो चाहता था... वह मैंने कर दिया... मैंने तेरी अनु को उठा लिया...
वीर - (तड़प भरी आवाज़ में) कैसी है अनु... कहाँ है...
@ - आह... मज़ा आ गया... तेरी इस तड़प भरी आवाज सुन कर... दिल को बड़ा सुकून मिला...
वीर - (चिल्ला कर) मैं पूछता हूँ... कहाँ है अनु... (फोन पर वह शख्स हँसने लगता है) (वीर चेहरा और आवाज़ दोनों सख्त हो जाते हैं) मृत्युंजय... तु... मृत्युंजय ही है ना... (फोन पर उस शख्स की हँसी रुक जाती है) हाँ... तु मृत्युंजय ही है... (दादी मृत्युंजय की नाम सुन कर हैरान हो जाती है) चुप क्यूँ हो गया है... हराम जादे...
@ - (कुछ देर की चुप्पी बाद) सोच रहा था... हाँ कह दूँ... के मैं ही मृत्युंजय हूँ... तेरे से बचने के लिए इससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता... फिर सोचा... अपनी लोचा क्यूँ किसी बेचारे बेगुनाह पर थोप दूँ... ना मैं मृत्युंजय नहीं हूँ... पर जो भी हूँ... तुम क्षेत्रपालों से खार खाया हुआ हूँ... पर मजे की बात जानते हो... मैं क्षेत्रपालों के लिए ही काम करता हूँ...
वीर - क्या बकते हो...
@ - हाँ... राजकुमार... मैंने यह काम भी क्षेत्रपाल के लिए ही किया है...
वीर - क्या... क्या कहा तुने...
@ - वही... जो अभी सुना तुने...
वीर - (चिल्ला कर) किसने कहा था तुझे... क्या किया तुने मेरी अनु के साथ...
@ - किया तो कुछ नहीं... पर उसके साथ होगा बहुत कुछ...
वीर - कमीने...
@ - ना... भूतनी के ना... गाली नहीं... गनीमत सोच... मारा नहीं अब तक... वर्ना... मार चुका होता...
वीर - (थोड़ा नर्म पड़ते हुए) नहीं नहीं... उसे कुछ मत करना... तुम्हारी खुन्नस तो मेरे लिए है ना... तो कहो कहाँ आना है... मैं आ जाऊँगा... तुम अपनी खुन्नस मुझसे उतार लेना... अगर पैसा चाहिए तो बोलो... कितना रुपया चाहिए... मैं तुम्हें देने के लिए तैयार हूँ...
@ - अरे बाप रे... क्षेत्रपाल हो कर गिड़गिड़ा रहे हो...
वीर - प्लीज... अनु को छोड़ दो... (गिड़गिड़ाते हुए) प्लीज...
@ - वैसे छोटे क्षेत्रपाल... तुझे शुक्र मनाना चाहिए... जानता है... अनु के साथ जो भी कुछ होने वाला है... वह तेरी बहन के साथ भी हो सकता था....
वीर - (चिल्लाते हुए) हराम जादे...
@ - पर मैं तेरे दिल पर... आत्मा पर... तेरी मर्दानगी पर चोट पहुँचाना चाहता था... और इत्तेफाक देख... तेरे बाप ने ही मुझे अनु की सुपारी दी...
वीर - (स्तब्ध हो जाता है, उसकी आँखे फटी रह जाती है,) क.. क्या... कहा...
@ - हाँ प्यारे... तेरे बाप ने ही मुझे सुपारी दी... अनु को उठा लेने के लिए... जिसने क्षेत्रपाल घर की चौखट में घुसने की सोची... इससे पहले कि वह क्षेत्रपाल के घर की बिस्तर चढ़े... वह खुद अब बाजारु हरामियों की बिस्तर बन जाएगी... हाँ ऐसे में एक दो दिन बाद मर जाएगी... पर तु चिंता मत कर... उसकी आँखे... दिल... गुर्दे... फेफड़े... सब के सब बेच दी जाएगी...

फोन कट जाता है l वीर कुछ नहीं कह पाता l वह बेहद मज़बूरी और बेवसी के साथ अपना चेहरा मोड़ कर दादी और विश्व की ओर देखता है l दादी अभी भी उसे हैरानी के साथ देखे जा रही थी, वह धीरे धीरे वीर के पास जाती है l फोन पर हुई बातेँ किसीको भी सुनाई नहीं दी थी पर फिर भी विश्व, वीर की प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश कर रहा था l

दादी - दामाद जी... क्या आपने...मृत्युंजय कहा...
वीर - (आवाज़ बड़ी मुश्किल से निकलती है) वह... मुझे लगा शायद मृत्युंजय कह रहा है...
दादी - (डरते हुए) क्या वह मृत्युंजय था...
वीर - नहीं जानता दादी... नहीं... जानता...

दादी की रुलाई फुट जाती है l वीर उसे संभालता है और दोबारा कुर्सी पर बिठा देता है, उसके हाथ पकड़ कर नीचे घुटनों पर बैठ कर,

वीर - दादी... अनु मेरी पत्नी है... याद है... उस दिन माँ ने उसे कंगन पहनाया था... और तुमने अपनी मर्जी से अनु को मेरे हवाले कर दिया था... दादी... अनु में मेरी जान बस रही है... अभी मैं जिंदा हूँ... मतलब अनु जिंदा है... उसे खरोंच तक नहीं आया है... और मैं तुमसे वादा करता हूँ... चौबीस घंटे के अंदर... हम दोनों तुम्हारे सामने होंगे... यह वादा है मेरा....

इतना कह कर वीर उठ खड़ा होता है और गार्ड्स को दादी की देखरेख करने को कह कर कमरे से बाहर जाता है l उसे बाहर जाता देख विश्व भी उसके पीछे पीछे बाहर आता है l विश्व देखता है वीर लिफ्ट में घुस गया है l विश्व भागते हुए जब तक पहुँचा लिफ्ट बंद हो कर ऊपर की ओर जाने लगती है l विश्व भी सीढियों से ऊपर के हर मंजिल पर पहुँच कर लिफ्ट देखता है l अंत में लिफ्ट छत पर पहुँचता है l लिफ्ट से वीर तेजी से निकल कर एक किनारे पहुँचता है l विश्व उसके पास भागते हुए जाता है l

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एक कमरे में अनु एक कुर्सी पर बंधी हुई बैठी है l उसके मुहँ पर टेप चिपकी हुई है l अनु की आँखे बंद थीं l धीरे धीरे उसकी आँखे खुलती है l वह अपनी चारों तरफ का जायजा लेने लगती है फिर वह ऊपर की ओर देखती है l उसके सिर पर एक केनोपी में बल्ब मिंज मिंजा रहा था l वह अपने साथ हुए हादसे को समझने की कोशिश कर रही थी l उसे याद आता है वीर को पार्टी ऑफिस से बुलावा आया था इसलिए वह चला गया था l xxxx हस्पताल से उसकी दादी की मोबाइल से उसे कॉल आया था कि उसकी दादी की हालत अचानक खराब हो गई है l वह ऑफिस से बाहर भागते हुए गई और वीर के ड्राइवर के साथ गाड़ी से हस्पताल पहुँची थी l हस्पताल के डॉक्टर ने कहा कि उसकी दादी आई थी अपनी रेगुलर मेडिसन लेने और घर चली गई है l डॉक्टर ने ऐसा कोई फोन नहीं किया था, वह समझी शायद किसीने उसके साथ मज़ाक किया होगा l वह वापस लौटी और पार्किंग के बाहर खड़े हो कर हाथ से इशारा कर गाड़ी को बुलाया l गाड़ी उसके पास रुकते ही गाड़ी की डोर खोल कर बैठ गई l तभी ड्राइविंग सीट से उसके चेहरे पर एक स्प्रे आकर टकराई थी l वह देखी ड्राइवर वह नहीं था, पर इससे ज्यादा उसे कुछ दिखा नहीं, उसकी आँखे धीरे धीरे बंद हो गई कि अब खुल रही हैं l अब उसे समझ में आ गया है, उसका अपहरण हुआ है l पर उसे अपहरण करने के लिए उसके पास है क्या, तब उसे समझ में आता है कि वीर ने उसे अपने ड्राइवर के साथ गाड़ी देकर भेजते हुए क्यूँ उसका पीछा करता था l

अनु ऐसे ही अपनी उधेड़बुन खोई हुई थी, तभी उस कमरे का दरवाज़ा खुलता है l एक मर्दाना साया सा उस कमरे में आता है थोड़ी दुरी पर खड़ा हो जाता है l जैसे ही वह अनु को होश में देखता है वह तुरंत कमरे से बाहर चला जाता है l उसके यूँ चले जाने से अनु थोड़ी हैरान होती है l कुछ देर बाद वह आदमी एक दुसरे आदमी के साथ अंदर आता है l वह दुसरा आदमी कमरे में एक और कुर्सी को खिंच कर अनु के सामने बैठ जाता है और अपना हाथ बढ़ा कर अनु के मुहँ से टेप निकाल देता है l टेप के निकलते ही अनु थोड़ी चीख उठती है l

आदमी - यह दर्द कुछ भी नहीं है लड़की... इसके बाद जो तेरे साथ होने वाला है... वही तेरी जिंदगी बनने वाली है... और मौत भी तुझे उसी से मिलने वाली है...

इतना कह कर वह आदमी एक भद्दी मुस्कान मुस्कराता है l पर बदले में अनु कोई प्रतिक्रया नहीं देती l इससे वह आदमी थोड़ा झल्ला जाता है l

आदमी - लगता है... तुझे मेरी बात समझ में नहीं आई... क्या सोचने लगी...
अनु - यही के.. तुम हो कौन... मैंने तुम्हें कभी नहीं देखा...
आदमी - हा हा हा... क्या ग़ज़ब लड़की है... तुझे क्या लगता है... तुझ पर खार खा कर... तुझे उठा लिया क्या... (अपना चेहरा अनु के करीब लाते हुए) तेरे आशिक को सबक सिखाने के लिए... मैंने तुझे उठाया है....
अनु - (अनु एक सपाट भाव से उसे देखने लगती है)
आदमी - डर गई ना....
अनु - (अपना सिर हिला कर ना कहती है)
आदमी - (थोड़ी हैरानी के साथ अपने बायीं आँख का भवां उठा कर) मैंने तुझे उठा लाया... तुझे क्या... दुनिया में किसी को भी मालुम नहीं है... अभी इस वक़्त तु कहाँ है... और तु कह रही है... तुझे डर नहीं लग रहा...
अनु - (फिर से अपना सिर हिला कर ना कहती है)


उस आदमी के बगल में खड़ा आदमी झुकता है और कहता है l

- बॉस... जैसा इसके बारे में सुना था... है बिल्कुल वैसी... ट्यूब लाइट...
आदमी - (अपनी कुर्सी छोड़ खड़े होकर) इसको समझ में आए या ना आए... मैं सिर्फ इसको... इसकी होने वाली बर्बादी की वज़ह... इसका आशिक है... यही बताने आया था...

कह कर मुड़ जाता है और वे दोनों कमरे से जाने लगते हैं l जैसे ही वे दोनों दरवाजे के पास पहुँचते हैं l

अनु - तुम लोगों ने बहुत बड़ी गलती कर दी है.... अपनी मौत के दरवाजे... तुमने खोल दी है...

दोनों रुक जाते हैं, वह आदमी वापस अनु के पास आकर बैठ जाता है l

आदमी - अच्छा... तुझे ऐसा लगता है... चल बोल... तुझे ऐसा क्यूँ लगता है...
अनु - मैं... क्षेत्रपाल परिवार की होने वाली बहु हूँ...

यह सुनते ही वह आदमी और उसके साथ वाला बंदा दोनों मिलकर हँसने लगते हैं l अनु थोड़ी हैरान होती है l


आदमी - लड़की... तुझे गायब करने के लिए सुपारी... तेरे होने वाला ससुर ने दिया है... (कह कर हँसने लगता है, फिर अपनी हँसी रोक कर) मुझे मौके की तलाश थी... क्षेत्रपाल बंधुओं से बदला लेने की... इत्तेफाक से... उसी खानदान से हमें... सुपारी मिली...

यह सुन कर अनु हैरान होती है l उसका सिर झुक जाता है l अनु की हालत देख कर वह कहता है

आदमी - कितनी खुश फ़हमी में थी ना... क्षेत्रपाल परिवार की बहु समझने लगी थी खुद को... तुझे देखने के बाद... मैं भी सोच में पड़ गया था... तु कोई बड़ी खूबसूरत तो है नहीं... गोरी चिट्टी है नहीं... फिर... (अपना चेहरा अनु के पास ले जा कर) जो लड़की मिले उसे चख कर छोड़ने वाला राजकुमार... तु कैसे सलामत रह गई...
अनु - राजकुमार मुझसे प्यार करते हैं...
आदमी - यही तो... राजकुमार तुझसे प्यार करता है... और तु उसीकी कीमत उतार रही है...
अनु - तुम लोग मेरे साथ क्या कर लोगे...

उस आदमी के साथ खड़ा आदमी
- बहुत जल्द बहुत कुछ करेंगे... इतना कुछ के तेरी बस साँसे चलती रहेगी...
अनु - कुछ नहीं कर पाओगे.... मुझे खरोंच भी आई... मेरे राजकुमार तुम लोगों को जिंदा नहीं छोड़ेंगे...

हा हा हा हा हा....

वह आदमी और उसके साथ वाला बंदा हँसने लगते हैं l हँसते हँसते वह आदमी अनु से कहता है

आदमी - वाह क्या लड़की है... इसे अपनी आशिक का इंतजार है... जब कि इसे उठवाया ही इसके आशिक का बाप है... (लहजा बदल कर) तेरे उसी ससुर की इशारे का इंतज़ार है... इशारा होते ही... (सिटी मार कर अपने हाथ को सांप के फन की तरह बना कर एक बार बाएं से दाएं तरफ ले जाता है) और जब तु... मरेगी... तब तुझे इस बात का पछतावा होगा... क्षेत्रपाल राजकुमार से... दिल क्यूँ लगाया...
अनु - वह दिन कभी नहीं आएगा... मुझसे एक गलती हो गई... मैंने दादी माँ को हस्पताल से फोन नहीं किया... पर एक बात है... इस बात का पछतावा तो तुम लोगों को जरूर होगा... के तुमने मुझे क्यूँ अगवा किया...
आदमी - (हैरान हो कर) बड़ी इत्मिनान है तुझे... इतना यकीन...
अनु - हाँ है तो...
आदमी - क्या इसलिए... के तेरे साथ अभी तक कुछ किया नहीं...
अनु - तुमने अभी अभी मुझे ट्यूबलाइट कहा ना... पर ट्यूबलाइट जब जलता है ना.. बहुत जबरदस्त जलता है...
आदमी - अच्छा... तुझे क्या समझ में आया बोल तो सही...
अनु - यही की मैं सही सलामत हूँ.... वर्ना तुम लोगों के पास मौका तो बहुत था... मुझे ख़तम करने या बर्बाद करने के लिए... पर तुम लोगों ने ऐसा कुछ किया नहीं... मतलब उस क्षेत्रपाल नाम की आँधी...

अनु की यकीन भरी बातों को सुन कर उस आदमी की आँखे फैल जाती है l उसकी यह प्रतिक्रिया देख कर अनु उसे कहती है

अनु - मैं अभी तक सलामत हूँ... मतलब मैं अभी भी... उनकी पहुँच और उनके दायरे में हूँ... वह क्या हैं... कैसे हैं... यह मुझसे बेहतर तुम जानते हो... मुझे उससे कोई मतलब नहीं है... मुझे बस इतना यकीन है... मेरे लिए... जमीन आसमान एक कर देंगे...
आदमी - बहुत यकीन है तुझे उस बदबख्त पर... अपनी यह हालत देखने के बाद भी...
अनु - हाँ... मैं उनकी सुकून हूँ... मैं उनकी जुनून हूँ... तुमने उनकी जुनून को छेड़ा है... तुम्हारा अंजाम... तुम्हें लगता है कि तुमने मेरा अंजाम सोच रखा है... पर सच यह है कि... तुमने तुम्हारा अंजाम तय कर लिया है... तुमने यह सोचा था... के मैं पछताऊँ... राजकुमार से प्यार किया इसलिए... वह दिन तो कभी नहीं आएगा... पर तुम जरूर पछताओगे... लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी...

आदमी अपनी कुर्सी से उठ कर चला जाता है उसके पीछे पीछे वह बंदा भी चला जाता है और कमरे का दरवाज़ा बंद हो जाता है l


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विश्व भागते हुए हस्पताल की छत पर पहुँचता है l अपनी नजर चारों तरफ घुमाता है l एक कोने पर दीवार पर वीर उसे खड़ा दिख जाता है l

वीर - (आसमान की ओर देखते हुए चिल्लाता है) या... आ.. आ...

विश्व थोड़ी देर के लिए स्तब्ध हो जाता है l फिर आवाज देते हुए वीर के पास दौड़ता है

विश्व - वीर... (वीर को नीचे खिंच लेता है) यह करने जा रहे थे वीर...
वीर - (एक टूटी हुई मुस्कान के साथ विश्व की ओर देखता है) नहीं यार... मैं... आत्म हत्या करने नहीं आया हूँ... मैं रोना चाहता था... चीखना चाहता था... चिल्लाना चाहता था... हस्पताल के अंदर बोर्ड पर लिखा था... साइलेंस प्लीज... इसलिए छत पर आकर चिल्ला रहा था...
विश्व - (वीर को झकझोरते हुए) यह कैसी बातेँ कर रहे हो... होश में आओ...
वीर - हाँ... आ गया हूँ... होश में... जानते हो प्रताप.... अभी नीचे दादी से क्या वादा कर आया हूँ... चौबीस घंटे के भीतर... मैं अनु को लेकर उसके सामने खड़ा होऊँगा...
विश्व - तो ढूँढ लेंगे ना यार....
वीर - नहीं... नहीं ढूँढ सकते...
विश्व - क्यूँ नहीं ढूँढ सकते... तुम राजकुमार हो... तुम क्षेत्रपाल हो... तुम्हारे एक इशारे पर... यह पुरा सिस्टम और एडमिनिस्ट्रेशन अपनी पुरी ताकत झोंक देगा अनु को ढूंढ़ने के लिए...
वीर - (हँसने लगता है) हा हा हा हा... कुछ देर पहले मुझे भी यह खुश फ़हमी था... (फिर अचानक चेहरे पर दर्द उभर आता है) पर... जब मालुम हुआ... यह किडनैप मेरे बाप ने कराया है... तब मुझे मेरी औकात और हस्ती मालुम हो गई...
विश्व - फोन पर कौन था... (वीर चुप रहता है) क्या मृत्युंजय...
वीर - पता नहीं... पर जो भी था.. इतना जरूर कहा कि वह... मेरा दुश्मन है... और उसे अनु को उठवा ने के लिए सुपारी... मेरे बाप ने दी है... (विश्व की तरफ देख कर) अगर यह सच है... तो यह सारा सिस्टम और एडमिनिस्ट्रेशन मुझे पुचकारेगी और दिलासा देगी... पर नतीज़ा वही निकलेगा जो मेरा बाप चाहेगा...

कुछ देरी के लिए दोनों के दरमियान खामोशी पसर जाती है l धीरे धीरे अंधरे के गर्त में डूब रहा शहर की कोलाहल सुनाई दे रही थी l तभी वीर की फोन बजने लगती है l वीर झट से फोन निकाल कर देखता है l स्क्रीन पर भाभी लिखा आ रहा था l वीर थोड़ा हैरान होता है और खुदको नॉर्मल करते हुए फिर फोन लिफ्ट करता है l

वीर - हैलो...
शुभ्रा - हैलो वीर... कहाँ हो...
वीर - क्या हुआ भाभी... आप ऐसे क्यूँ पूछ रही हैं... मैं इस वक़्त वहीँ हूँ... जहां मुझे होना चाहिए...
शुभ्रा - माँ जी आई हुई हैं.. क्या तुम जानते हो...
वीर - (चौंकता है) क्या... माँ आई हुई है...
शुभ्रा - एक मिनट... तुम माँ से बात कर लो...
सुषमा - हैलो वीर...
वीर - क्या बात है माँ... तुम थोड़ी घबराई हुई लग रही हो... क्या हुआ...
सुषमा - कुछ नहीं बेटे... लगता है... भगवान को यह मंजुर नहीं.. के मैं अनु की दादी के सामने अपना सिर उठा कर खड़ी हो पाऊँ...
वीर - (आँखे हैरानी से फैल जाते हैं) यह तुम... कैसी बातेँ कर रही हो माँ... क्या हो गया है...
सुषमा - जानते हो... मुझे यहाँ किस बावत बुलाया गया है... कल xxxx होटल में.. शाम साढ़े सात बजे... तेरा मंगनी है... सुना है... कोई इंडस्ट्रियलिस्ट है... निर्मल सामल... उसकी बेटी से...
वीर - (हैरानी भरे आवाज में) कल मेरा मंगनी है... और मुझे खबर तक नहीं...
सुषमा - मुझे भी आज पता चला है बेटे...
वीर - ठीक है माँ.. मैं कुछ करता हूँ...

वीर फोन काट देता है और कुछ सोचते हुए घुटने के जितने ऊँचे एक पिलर पर बैठ जाता है l विश्व अब तक वीर की बातेँ सुन रहा था और अब वीर की हालत पर गौर कर रहा था l

विश्व - क्या हुआ वीर....
वीर - (हँसने लगता है) हा हा हा...
विश्व - वीर... फिर क्या हुआ...
वीर - (विश्व की ओर देखते हुए) प्रताप... तुमने पुरे जीवन काल में... मेरे परिवार के बड़े जो तोप बने घूमते हैं... उनसे बड़ा कमीना और हरामी... कभी देखे नहीं होगे... जानते हो अनु को किडनैप क्यूँ किया गया है... ताकि उसकी आड़ में... मुझे ब्लैक मैल कर... किसी और से मेरी पहले मंगनी और फिर शादी करा सके... हा हा हा... कहाँ मैं सोच रहा था... अपने बड़ों की इजाजत लेकर... अनु से शादी करूँगा... और कहाँ मेरे बड़ों ने... मेरे और मेरे तकदीर के साथ क्या मज़ाक किया...
विश्व - इसका मतलब... तुम्हारे घर में बड़ो को... तुम्हारे और अनु के बारे में सब मालुम था...
वीर - हाँ... और मैं समझ रहा था... बड़ों को अपनी काम से फुर्सत नहीं है.. इसलिए अपनी दिल की बात बता कर... अनु से शादी कर लूँगा... (विश्व चुप रहता है, विश्व को चुप देख कर) हैरान मत हो प्रताप... जानवरों में भी कुछ नस्लें होते हैं... जो भूख लगने पर... अपनी ही बच्चों को मार कर खा जाते हैं... और यह क्षेत्रपाल परिवार... कोई इंसानी नस्ल नहीं...


विश्व यह सुन कर स्तब्ध हो जाता है l वीर अपना सिर ऐसे हिला रहा था जैसे उसे सब समझ में आ चुका था l

वीर - विक्रम भैया... जब कलकत्ता गए... मुझे हिदायत देते हुए गए थे... मैं समझ नहीं पाया था... इसलिए यह तो पक्का है... मुझे ना मेरी एजेंसी से... ना ही सरकारी शासन व प्रशासन से... कोई मदत नहीं मिलेगी....

तभी एक गार्ड इन दोनों के पास पहुँचता है l वीर को सैल्यूट करता है और

गार्ड - सर... नीचे पुलिस आई हुई है... वह कह रहे हैं... उनके हाथ कुछ लगा है... आपको जानना चाहिए...

वीर चौंक कर विश्व की ओर देखता है और फिर तेजी से नीचे लॉबी में पहुँचता है l उसके साथ साथ विश्व और वह गार्ड पहुँचते हैं l लॉबी में एक इंस्पेक्टर अपने कुछ पुलिस कर्मियों के साथ हस्पताल के स्टाफ़ और गार्ड्स से पूछताछ कर रहा था l वह इंस्पेक्टर जैसे ही वीर को देखता है पूछताछ रोक कर वीर के पास आता है l

इंस्पेक्टर - राजकुमार जी... हैलो... (वीर कोई जवाब नहीं देता, इंस्पेक्टर थोड़ा अकवर्ड फिल करता है) वह बात दरअसल यह है कि... आम तौर पर गुमशुदगी की कंप्लेंट चौबीस घंटे के पहले ली नहीं जाती... पर...
वीर - पर आप लोगों को... कंप्लेंट किसने करा...
इंस्पेक्टर - जी कुछ घंटे पहले... हॉस्पिटल की एडमिनिस्ट्रेशन ने फोन पर गुमशुदगी की जानकारी दी थी...
वीर - यह गुमशुदगी नहीं है...
इंस्पेक्टर - जी तहकीकात में मालुम हुआ... यह अपहरण है... (वीर चुप रहता है) और यह वाक्या सीसीटीवी से मालुम हुआ...
वीर - सीसीटीवी से...
इंस्पेक्टर - जी सर... सीसीटीवी में चलते हुए टाइम स्क्रॉल को देख कर... आइए देखिए...

लॉबी में एक सादे कपड़े में बैठे एक शख्स लैपटॉप लेकर बैठा था l इंस्पेक्टर वीर को लेकर उसके पास पहुँचता है l विश्व भी उसके पास आता है तो इंस्पेक्टर उसे रोकता है l

इंस्पेक्टर - आप कौन...
वीर - यह मेरे साथ है... मेरा दोस्त है....
इंस्पेक्टर - ओके...

वह आदमी लैपटॉप पर चार विंडो क्लिप विडिओ चलाता है l सभी देखते हैं l अनु हस्पताल से निकल कर पार्किंग के पास जाकर अपने हाथ से इशारा कर गाड़ी बुलाती है l गाड़ी उसके पास आते ही वह गाड़ी में बैठ जाती है l वीडियो के खत्म होते ही इंस्पेक्टर वीर से कहता है

इंस्पेक्टर - जैसा कि आप देख रहे हैं... मिस अनु जी... गाड़ी में पौने पाँच बजे गाड़ी में बैठ कर जा रही हैं.... मतलब... हमें जब इत्तला मिली... सिर्फ डेढ़ घंटे बीते थे...
विश्व - एसक्युज मी... इंस्पेक्टर... इफ यु डोंट माइंड... क्या यह क्लिप फिर से चला सकते हैं...

यह सुन कर इंस्पेक्टर विश्व की अजीब ढंग से देखने लगता है l विश्व वीर की ओर इशारा करता है l वीर विश्व की ओर देखता है फिर इंस्पेक्टर को क्लिप चलाने के लिए इशारा करता है l इंस्पेक्टर उस आदमी से क्लिप चलाने के लिए कहता है l विश्व इस बार गौर से तीन चार बार क्लिप चला कर वीडियो अलग अलग कर देखता है l

विश्व - वीर... अनु की किडनैपिंग साढ़े बारह बजे से एक बजे के भीतर हुआ है... यह सारे क्लिप्स मॉर्फड है...
इंस्पेक्टर - व्हाट... (इंस्पेक्टर वीडियो देखने लगता है, फिर विश्व से) तुम्हें कैसे पता चला... तुम हमारी इनवेस्टिगेशन को मिस गाईड कर रहे हो... (वीर से) यह कौन है राजकुमार जी...
वीर - यह वकील हैं...

इंस्पेक्टर थोड़ा नर्म पड़ता है l फिर से वीडियो क्लिप्स देखने लगता है l पर उसे कुछ समझ में नहीं आता l

इंस्पेक्टर - (विश्व से) सर आपको कैसे मालुम हुआ...
विश्व - क्यूंकि कुछ ही टाइम में यह क्लिप्स मर्फ किया गया है... इसलिए कुछ लाकुना रह गया है... यह देखिए... अनु की साये को देखिए... छोटी सी साया उसके पैरों के नीचे दिख रही है... जबकि टाइम स्क्रॉल में पौने पाँच दिखा रहा है... पौने पाँच बजे का साया बड़ा होना चाहिए... जैसे कि उसके आसपास के साये हैं...
इंस्पेक्टर - (क्लिप को देखने के बाद अपने स्टाफ से) लगता है हमसे कुछ छूट गया है... चलो फिर से शुरू करते हैं... पुरी बारीकी से और सावधानी से... कॉम ऑन... (वीर से) राजकुमार जी... हम तहकीकात करने के बाद आप से बात करेंगे...

इतना कह कर इंस्पेक्टर अपने सह कर्मियों को लेकर वहाँ से चला जाता है l उनके जाते ही

वीर - प्रताप... एक बात समझ में नहीं आया... मान लो एक बजे किडनैप हुआ... तो किडनैप को पाँच बजे दिखाने की कोशिश क्यूँ की...
विश्व - वह इसलिए... ताकि तहकीकात को भटका सकें... उन्हें अनु को दुर ले जाने के लिए... एक टाइम लैप चाहिए... और यह सब... कोई पहुँची हुई टीम ने की है...
वीर - (एक दम असहायसा होकर) जहां क्षेत्रपाल ईनवॉल्व हो... वहाँ... (और कुछ कह नहीं पाता)
विश्व - हम पता कर लेंगे...
वीर - कैसे...

विश्व अपना मोबाइल निकालता है और एक कॉल लगाता है l उधर से कॉल लिफ्ट होते ही विश्व स्पीकर पर डाल देता है l

# - हैलो भाई... कहिए कैसे याद किया...

विश्व उस शख्स को अनु के बारे में और पुलिस की कहीं तहकीकात के बारे में सारी बातेँ बताता है l फोन पर वह शख्स सब सुनने के बाद कुछ देर के लिए चुप हो जाता है l

विश्व - क्या हुआ...
# - भाई... यह कोई बड़ा वाला पंगा लगता है... जिन्होंने भी यह हरकत की है... छकाने के लिए... जलेबी बनाया है...
विश्व - मतलब...
# - इसका मतलब हुआ है... की सबको अपने बनाए पहेली में घुमा कर... सही मौका मिलने पर... अनु को भुवनेश्वर से बाहर ले जाएंगे....
विश्व - कौन सा ग्रुप किया है... कोई आइडिया है...
# - भाई... मेरे को पता करने के लिए... थोड़ा वक़्त चाहिए...
वीर - वक़्त ही नहीं है... तुम कह रहे हो कि.. अनु को भुवनेश्वर से बाहर ले जाने जा सकते हैं... या फिर... ले जा चुके हों...
# - नहीं... इतनी जल्दी... आसान नहीं है... पर हो सकता है... रात बारह बजे के बाद... किसी भी रास्ते ले जा सकते हैं...
वीर - क्या... तो उन्हें रोकें कैसे...
# - आप कुछ भी कर के अगर शहर की नाकाबंदी करवा सकें... तो सुबह तक मैं आपको खबर निकाल सकता हूँ...
वीर - (चुप हो जाता है)
विश्व - अच्छा... तुम अपने काम पर लग जाओ... हम अपना काम करेंगे...
# - ठीक है भाई...

फोन कट जाता है l विश्व अपना मोबाइल को जेब में वापस रख देता है l वीर बेवसी के साथ दीवार पर पीठ टीका कर खड़ा हो जाता है l

विश्व - क्या हुआ...
वीर - जानते हो... यहाँ पुलिस तहकीकात के बहाने... सेंडी लगाने आई थी... मतलब हमें भटकाने आई थी... इन सबके पीछे... मेरा बाप है... यानी मुझे ना शासन से... ना प्रशासन से... मुझे मदत मिलने से रहा... (कांपती आवाज में) मेरी अनु को... शायद ढूंढ नहीं पाऊँगा... कास के विक्रम भाई मेरे पास होते... इस शहर की नाकाबंदी मैं किससे कह कर कर पाऊँगा...
विश्व - (वीर के कंधे पर हाथ रखकर) आज इस शहर की नाकाबंदी... होगी... शासन भी करेगा... प्रशासन भी करेगा... जब तक अनु नहीं मिल जाती... ना शासन सोयेगा... ना प्रशासन सोयेगा...

वीर हैरान हो कर विश्व को देखने लगता है l विश्व एक मुस्कराहट के साथ वीर को देखते हुए अपना मोबाइल निकालता है और एक फोन लगाता है l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


दरवाजे पर धक्का लगाते हुए पिनाक विक्रम के कमरे में घुसता है l विक्रम टीवी पर न्यूज देख रहा था, पीछे मुड़ कर देखता है पिनाक उसके पीछे चला आ रहा था l बड़ा खुश नजर आ रहा था l विक्रम टीवी को म्युट कर अपनी जगह से खड़ा होता है l

पिनाक - युवराज... कल आपका काम बहुत बढ़ गया है... इसलिए यह टीवी बंद कर दीजिए... और आराम कीजिए... हम सुबह सात साढ़े सात बजे... चार्टर्ड प्लेन से भुवनेश्वर जा रहे हैं...
विक्रम - कैसा काम छोटे राजा जी...
पिनाक - जो काम सौंपा था... वह काम हो गया है... राजकुमार की जिंदगी से... उस कांटे को हमेशा हमेशा के लिए बाहर निकाल दिया गया है...


Bahut hi behtareen update he Kala Nag Bhai,

Anu ke kidnap se kshetrapalo ka asli patan shuru ho gaya he...........ab anu ko dhundhane me Vishwa bhi involve ho chuka he............Anu ko to Vir aur Vishwa dhundh hi lenge.............aur ho sakta he us anjaan caller ka bhi khatma lage haath ho jaye..........

Keep posting Bhai
 

Emre

Update time se de diya kro...bs aur Kuch nhi kehna
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Gajab krte ho Miya....update itna late kaiko dete baba...apun ko update jldi mangta....kaiko Khali phokat me time khoti kr rela hai .....,...
 
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गज़ब दादा! ग़ज़ब!
धन्यवाद बंधु
बस इतना ही लिख पाऊँगा इस अपडेट के लिए!
बहुत ही बढ़िया - थ्रिलर का असली आनंद अब आया है!
गज़ब!!!
जी अब केवल थ्रिल ही थ्रिल ही होगा
और पुरस्कार के लिए बहुत बहुत बधाईयाँ! आपसे हमको यही उम्मीदें थीं!
धन्यवाद फिर से आभार तह दिल से
 

Kala Nag

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Kala Nag

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Bahut hi badhiya update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and beautiful update.....
शुक्रिया कश्यप भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया
 
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