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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
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Kala Nag

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👉अड़तीसवां अपडेट
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अगले दिन
राजगड़
सुबह की धूप खिल रही है क्षेत्रपाल महल में एक गाड़ी आकर रुकती है l पिनाक सिंह उस गाड़ी से उतरता है और एक जोरदार अंगड़ाई लेता है l क्षेत्रपाल महल में वह सीधे नागेंद्र के कमरे की ओर जाता है l वहाँ नागेंद्र के सेवा में कुछ नौकर और नौकरानियां लगे हुए हैं l पिनाक के वहाँ पहुँचते ही नागेंद्र को छोड़ कर एक किनारे हो जाते हैं l

नागेंद्र - आइए... छोटे राजा जी... आइए... विराजे... (पास पड़े एक कुर्सी पर पिनाक बैठ जाता है) क्या आप विजयी हो कर लौटे हैं...
पिनाक - जी... आपका आशीर्वाद है... पार्टी में हमारी बात रख दी गई है...... पार्टी हाई कमांड तैयार हो गए हैं... इस बार बीएमसी चुनाव में... हम अप्रतिद्वंदी होंगे...
नागेंद्र - शाबाश... और युवराज.... वह क्यूँ नहीं आए...
पिनाक - जी उन्हीं की खबर देने ही आए हैं.... वह कॉलेज में... छात्र संगठन में.... अध्यक्ष चुन लिए गए हैं.... और अगले महीने *** तारीख को.... उनकी संस्था का... उद्घाटन समारोह है.... उस समारोह के उपरांत... वह और राजकुमार दोनों... राजगड़ पधारेंगे....
नागेंद्र - बहुत अच्छे... आपके साथ... राजा जी क्यूँ नहीं आए....
पिनाक - पर वह तो... कल सुबह ही.... राजगड़ के लिए... निकल गए थे...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म.... कोर्ट में... जीत की खुशी... मनाने के लिए.... हो सकता है... रंगमहल गए होंगे....
पिनाक - हाँ... शायद...
नागेंद्र - वह सुवर की औलाद... विश्व.... अपने औकात से आगे... निकल गया.... आख़िर हमे.. अपनी ही खेमे से निकल कर... बाहर जाने को... मज़बूर कर दिया...
पिनाक - हाँ... लोक शाही की... जरूरत जो है...
नागेंद्र - लोक शाही... कैसी लोक शाही.... हमने... लोक शाही को... हमारे ठोकर पर अब तक रखे हुए हैं... आज इस राज्य में... लोक शाही रेंग भी रही है.... तो हमारी राज शाही के वैशाखी पर...
पिनाक - जी... पर वह.... लोक शाही के अंजाम तक... पहुंच गया है...
नागेंद्र - एक तरह से.... अच्छा ही हुआ.... अब जब तक... इनकी नस्लें... रहेंगी... तब तक... क्षेत्रपाल महल की और... आँखे उठाने की हिम्मत... कोई नहीं करेगा....
पिनाक - जी... दुरुस्त... फ़रमाया... आपने...
नागेंद्र - अब आप जा सकते हैं... जाईए... छोटी रानी जी... हमारी खुब सेवा किए हैं.... उनसे मिल लीजिए...
पिनाक - जी.... जरूर... नागेंद्र - और हाँ.... समय निकाल कर.... रंगमहल जा कर.... राजा जी की.. खैर खबर.... आप स्वयं लें....
पिनाक - जी... जरूर नागेंद्र - देखिए... रंग महल की चमक... फीकी ना पड़े... यह अब पूरी तरह से... आपके लोगों के जिम्मे.... क्षेत्रपाल महल हमारा रौब.... और रंगमहल हमारा रुतबा है.... हमारी उम्र अब इजाजत नहीं दे रहा है.... और शरीर भी धीरे धीरे ज़वाब दे रहा है....
पिनाक - जी... अब आज्ञा.. चाहूँगा... (कह कर पिनाक उठ कर जाने लगता है)
नागेंद्र - छोटे राजा जी... (पिनाक रुक कर मुड़ कर देखता है) उस लड़की का क्या हुआ...
पिनाक - नहीं जानते.... पर इतना जरूर जानते हैं... कल राजा जी ने... उसे उसके हक़ की... दे दी गई है....

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वैदेही धीरे-धीरे अपनी आँखे खोलती है l तो खुद को एक कमरे में नीचे बिछे बिस्तर पर पाती है l उठ कर बैठ जाती है l उसके गालों पर अभी भी सूजन है, थोड़ा दर्द भी है l वह अपने गालों को छूती है तो उसे बीती शाम की बातेँ याद आती हैं l वह सोचती है वह चाटों के मार खाने के बाद बेहोश हो गई थी l तो उसे कौन लाया और यह किसी का घर है l पर किस का l कौन लाया उसे l यह सब सोचते हुए वह बाहर आती है l उसे लक्ष्मी दिखती है l


वैदेही - ओ... लक्ष्मी...(उसकी आवाज़ ऐसी सुनाई दी, जैसे उसके मुहँ में कुछ रख कर बात कर रही है) तो... यह तुम्हारा घर है....
लक्ष्मी - हाँ वैदेही... अब कैसा लग रहा है...
वैदेही - मैं यहाँ पहुंची कैसे.....
लक्ष्मी - मेरा मरद रात में... फैक्ट्री... नाइट् शिफ्ट काम के लिए निकल गया.... तो हम माँ बेटी.... चौराहे पर जा कर ले आए तुझे....
वैदेही - तुझे डर नहीं लगा....
लक्ष्मी - लगा था.... पर फिर याद आया... कल राजा साहब ने.... तेरे हुक्के पानी पर रोक हटा दी ना...
वैदेही - अच्छा.... तेरा यह उपकार... मुझ पर उधार रहा.... मैं अपने घर चलती हूँ....
लक्ष्मी - थोड़ी देर रुक जाती..... अपनी चेहरा तो देख...
वैदेही - नहीं... अब रुकना नहीं है.... मैं फिर बाद में मिलती हूँ... तुझसे....

कह कर वैदेही अपना सामान ले कर,लक्ष्मी के घर से निकल कर अपने घर की ओर चली जाती है l रास्ते में कुछ लोग उसे देख कर डर के मारे रास्ता छोड़ देते हैं और कुछ लोग उसके पीछे पीछे चलते हुए फब्तीयाँ कसते हैं l सबको अनसुना करके वैदेही अपने घर पर पहुंच जाती है l अपनी बैग से चाबी निकाल कर ताला खोल कर घर के अंदर आती है, फ़िर दरवाज़ा बंद कर अंदर की कुए में बाल्टी डाल कर पानी निकालती है और अपने ऊपर उड़ेल देती है l पानी ऊपर गिरते ही वह हांफने लगती है l धीरे धीरे उसका चेहरा कठोर हो जाती है

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टीवी की रिमोट हाथ में लेकर सारे न्यूज चैनल छान मारने के बाद रिमोट सोफ़े पर फेंक देती है, प्रतिभा l

तापस - क्या बात है.... आज किसका गुस्सा टीवी के रिमोट पर... उतारा जा रहा है....

प्रतिभा - कितने प्रदर्शन हुए,... कितने धरने पर बैठे.... ना जाने क्या क्या... नाटक किया गया.... पर देखो भुला देने के लिए.... एक दिन भी नहीं लगा.....
तापस - कमाल करती हो.... भाग्यवान.... कल ही तो तुमने मुझसे कहा था.... विश्व एक डाईवर्जन है... उसे सजा हुई.... काम खतम... अब लोग अपनी रोजी रोटी के लिए भाग दौड़ कर सकेंगे.... मीडिया वाले... नई मसालेदार ख़बरों की खोज में... लगेंगे.... राजनीतिक गिरगिट अपना रंग बदलेंगे.... ऐसे में विश्व... या मनरेगा से... क्या मतलब है...
प्रतिभा - हाँ... सेनापति जी.... आप ठीक कह रहे हैं....
तापस - वही तो... अब हमे भी... आगे बढ़ना चाहिए.....
प्रतिभा - हाँ आप ठीक कह रहे हैं.....
तापस - सच... (खुशी से चहकते हुए) तुम तैयार हो....
प्रतिभा - (आपनी आँखे सिकुड़ कर) यह आप.. किस बात की... तैयारी कर रहे हैं...
तापस - कमाल करती हो.... भाग्यवान.... अब... लड़का डॉक्टर... बन जाएगा.... बाहर... बिजी रहेगा.... तो हम क्यूँ ना... चौथे... सदस्य को... लाने की तैयारी करें...
प्रतिभा - (अपनी कमर पर दोनों हाथ रखकर) क्या कहा आपने...
तापस - अरे क्या... कहा मैंने... मैं.. तो बस यह कह रहा था... हम तीन हैं... चलो... चार बनने की... तैयारी करते हैं...
प्रतिभा - (सोफा पर से एक कुशन उठा कर तापस की फेंकती है) आपको शर्म नहीं आती.... बुढ़ापे में ऐसी बातेँ... करते हुए...
तापस - इस में... शर्माने की... क्या बात है... मैं कह रहा था... डॉक्टर विजय से बात करूँ.... ताकि हमारे.. लाट साहब के हाथ पीले कर दिया जाए...
प्रत्युष - मैं भी यही कह रहा था....
प्रतिभा - तु.... कब आया.... और.... बड़ों के बीच में.... तु क्यूँ... घुसा जा रहा है....
प्रत्युष - बड़ों... या बूढ़ों... पहले यह कंफर्म करो...
तापस - बुड्ढा किसको बोला....
प्रत्युष - अभी बोला कहाँ है... बस पुछा ही तो है...
प्रतिभा - मैंने सिर्फ़ इतना कहा.... बड़ों के बीच में नहीं आते....
प्रत्युष - आप दोनों वहाँ हो... मैं यहाँ हूँ... बीच में कहाँ हूँ.... बाकी बड़ों के... मतलब क्या हो सकता है.... आपको यह कहना चाहिए... बूढ़ों के बीच में नहीं आना चाहिए.... क्यूंकि जवान लड़का... बूढ़ों के बीच क्या करेगा...
तापस - तुने फ़िर बुढ़ा किसको कहा....
प्रत्युष - अब इस कमरे में... जवान कहो या बच्चा... वह सिर्फ़ मैं ही हूँ....
तापस - तु.... बुढ़ा होगा तु... तेरा बाप...
प्रत्युष - फ़िर से करेक्शन... सिर्फ़ बुढ़ा होगा तेरा बाप... यही कहावत है....
तापस - रुक अभी बताता हूँ...
प्रत्युष वहाँ से भाग जाता है l उसके भागते ही प्रतिभा हँस देती है l

तापस - वैसे जान... तुमने कुछ और भी सोचा था ना... (अपनी भौंवै नचा कर पूछता है)

प्रतिभा एक प्यार भरा गुस्से से तापस को देखती है, तापस पीछे मुड़ कर हँसते हुए भाग जाता है l

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एक कमरे में वीर डायनिंग टेबल पर नाश्ता कर रहा है l और बीच बीच में अटक कर कुछ सोच रहा है l विक्रम उसे कुछ देर से देखे जा रहा है l

विक्रम - क्या बात है... राजकुमार.... बड़ी गहरी सोच में हो....
वीर - हाँ हैं हम....
विक्रम - पढ़ाई को ले कर.....
वीर - ना... पढ़ाई जब कि ही नहीं.... तो उसकी सोचें ही क्यूँ....
विक्रम - तो खाते खाते बीच में.... आप अटक क्यूँ रहे हैं....
वीर - अब खाली दिमाग़... शैतान का घर... इसलिए.... बहुत बड़ी बात दिमाग़ में.... डाल कर सोच रहे हैं.... ताकि दिमाग़ खाली ना रहे....
विक्रम - अच्छा तो हमें भी... वाकिफ़ कराएं... आपके दिमाग में... क्या चल रहा है....
वीर - यही... के अगर आप... राजा साहब के जगह लेते हैं... तो तब जाहिर है... छोटे राजा तो हम ही होंगे.... तब... अब वाले छोटे राजा जी का.... डेजिग्नेशन क्या होगा... बस... यही सोच रहे हैं...

विक्रम की खांसी निकल जाती है l थोड़ा पानी पी लेने के बाद वीर को घूर कर देखता है l

विक्रम - आपको और कुछ नहीं सूझा..... सोचने के लिए....
वीर - देखिए... युवराज जी... कभी ना कभी... बड़े राजा... सिधार जाएंगे... तब सब अपने अपने... डेजिग्नेशन से... प्रमोट होंगे.... तो मैं छोटे राजा जी के लिए... परेशान हूँ....
विक्रम - कास... आप अपने.... स्टडीज के लिए इतने परेशान होते...
वीर - परेशान होने से क्या होगा... ज्यादा से ज्यादा... आईएएस तो नहीं बनना है..... पर ऐसा पोजीशन हासिल करना है..... बड़े बड़े गोल्ड मेडलिस्ट आईएएस आगे पीछे घुमते हुए नजर आयेंगे....
विक्रम - बहुत दिमाग़ चल रहा है आपका...
वीर - कोई शक़...
विक्रम - चलो एक पहेली है... सुलझाके दिखाओ...
वीर - क्यूँ... किसी आईएएस से मेरा प्लेट साफ करवायेंगे क्या...
विक्रम - आप... यह आईएएस वालों के पीछे क्यूँ लगे हुए हैं...
वीर - क्यूंकि आपने... पढ़ाई की बात छेड़ दी...
विक्रम - अच्छा चलिए हमे माफ़ करें....
वीर - ठीक है... आप अपना पहेली पूछिए...
विक्रम - इस पहेली में... एक फोन नंबर है... जो आपको पता करना है...
वीर - अगर हमने पता कर दिया तो....
विक्रम - वादा रहा... किसी आईएएस से आपका प्लेट उठवाएंगे....
वीर - ठीक है... पहेली क्या है...
विक्रम - एक पायदानी सफर .... ऊपर से नीचे की ओर.... थमती है सफर... जब लगती है पंजे के जोड़े की जोर.... आगे नहीं सफ़र... मूड जाती है पीछे की ओर.... ना एक है ... ना दो ... ना तीन है ... ना चार... बस कुछ ऐसी है यह सफर.... इसी में है मेरा नंबर....
वीर - ह्म्म्म्म लगता है... किसी लड़की का नंबर है...
विक्रम -(झेप जाता है, हकलाने लगता है) हाँ.. हा.. व... न... ना.. नहीं... यह एक... द...द.. दोस्त का नंबर है...
वीर - तो इतना हकला क्यूँ... रहे हैं...
विक्रम - अरे भाई.... आप को... बताना है तो बताओ....
वीर - (टिशू पेपर से अपना होंठ साफ करते हुए) ठीक है... बहुत आसान है.... पर यह बताइए.... पहली... कितने दिन पहले की है...
विक्रम - (थोड़ा उदास होते हुए) क्या बताएं.... बीस दिन हो गए हैं...
वीर - क्या... आप... बीस दिन से... नहीं मिले हैं... आपस में...
विक्रम - हाँ.. क.. कौन... किससे...
वीर - वेरी सिंपल... आपकी गर्लफ्रेंड से...
विक्रम - य.. यह आ.. आ.. आप क.. क.. क्या कह रहे हैं...
वीर - तो ठीक है ना... आप हकला क्यूँ रहे हैं..
विक्रम - नहीं तो...
वीर - ठीक है... फिरसे... पहेली क्या है... बताइए...
विक्रम - एक पायदानी सफर .... ऊपर से नीचे की ओर.... थमती है सफर... जब लगती है पंजे के जोड़े की जोर.... आगे नहीं सफ़र... मूड जाती है पीछे की ओर.... ना एक है ... ना दो ... ना तीन है ... ना चार... बस कुछ ऐसी है यह सफर.... इसी में है मेरा नंबर....
वीर - ह्म्म्म्म एक पायदानी सफर... नीचे की ओर... पंजे की जोड़े ह्म्म्म्म...
मतलब पहले डिसेंडींग ऑर्डर.... फिर एसेंडींग ऑर्डर....
लो मिल गया... आपका नंबर...
विक्रम - क्या... मिल गया... क क्या है नंबर...
वीर - पायदानी सफ़र... ऊपर से नीचे की ओर मतलब 9876 पंजे की जोड़े ने रोका मतलब 55 फिर वापस भेज दिया ऊपर की ओर... 6789
उसमें... ना एक है ना दो है ना तीन है ना ही चार है.....
9876556789 बस यही नंबर है....
विक्रम - क्या... (हैरानी से चिल्लाते हुए) वाकई... वाव.. यह तो.. बहुत ही आसान था... हम तो बीस दिनों से... इसी भंवर में भटक रहे हैं...
वीर - आपको भी मालुम हो जाता... पर....
विक्रम - पर क्या....
वीर - पर अगर... अपने दिल के जगह... दिमाग़ का इस्तमाल किया होता...

विक्रम फिर से खांसने लगता है l वीर उसे अपनी आँखे सिकुड़ कर देखने लगता है l विक्रम कुछ नहीं कहता, अपना सर झुका कर कमरे से बाहर चला जाता है l

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वैदेही अपने कमरे में बैठ कर किन्ही ख़यालों में खोई हुई है अचानक वह उठती है और बाहर निकल कर उसी चौराहे पर पहुंचती है l जहां भैरव सिंह ने उस पर थप्पड़ बरसाये थे l वैदेही वहीँ खड़ी हो कर उसी जगह को देखती रहती है l कुछ मर्द वहाँ से गुज़रते हैं, पर जैसे ही वैदेही को देखते हैं वह लोग अपना रास्ता बदल कर चले जाते हैं l वैदेही वहीँ खड़ी हो कर उसी जगह को देख रही है और कुछ सोच रही है l उसके पास कुछ औरतें आती हैं l

एक औरत - क्या बात है.. वैदेही... तुम यहाँ पर क्यूँ खड़ी हो....
वैदेही - कुछ नहीं कुसुम भाभी... मैं यह सोच रही थी.... कितनी आसानी से... एक चौराहे से... किसी के घर की इज़्ज़त, किसी के घर की जन्नत, किसी के बाग की फूल... कोई आकर उठा ले जाता है... रौंदने के लिए... किसी... भाई का खुन नहीं खौलता.... किसी बाप का दिल नहीं... चीखता.... क्यूँ...
दूसरी औरत - सब का खुन... ठंडा हो चुका है... क्षेत्रपाल परिवार के दहशत से... नामर्द बन चुके हैं... सारे के सारे...
वैदेही - क्यूँ सावित्री मौसी...
सावित्री - शायद दुसरे के आंच से... खुद को इसलिए दूर रख रहे हैं... कहीं अपने दामन में... आग ना लग जाए...
वैदेही - पड़ोसी के घर की आग को ना बुझाया जाए... तो वह आग... खुद के मौहल्ले में भी... फैल सकता है...
कुसुम - यह समझते समझते... घर राख हो चुका होता है...
वैदेही - अब और वैसा... नहीं होगा... नहीं होना चाहिए... मैं.. होने ही नहीं दूंगी...

वह सारी औरतें वैदेही को देखते रह जाते हैं l उन्हें वैदेही के बातों से उसकी अंदर की निश्चितता का एहसास होने लगता है l

वैदेही - मुझे इसी जगह पर अपने लिए... कुछ चाहिए.... पर क्या... यही सोच रही हूँ.....
कुसुम - क्या... कोई जगह या घर ख़रीदना है क्या...
वैदेही -अरे हाँ... अगर मिल जाए तो... मिल सकता है... क्या...
कुसुम - पता नहीं... वह जो घर और थोड़ी सी जगह देख रही है ना... वह चगुली साबत.... बेचना चाहता था.... पर उसे... कीमत नहीं मिल रहा था....
वैदेही - क्या... क्यूँ बेचना चाहता था....
सावित्री - अरे... उसके माँ बाप चल बसे.... वह पहले से राजगड़ छोड़ कर चले जाना चाहता था.... पर उसे सरकारी कीमत भी कोई नहीं दे रहा था.... सब राजा साहब से डर कर....
वैदेही - कोई नहीं... उसे बोलो... मुझसे मिले... उसे उसकी कीमत मिल जाएगी....
सावित्री - क्या... तुम... पागल तो नहीं हो गई हो... राजा साहब से तुम नहीं डरती... पर चगुली...
वैदेही - तुम... फ़िकर मत करो... वह मैं सम्भाल लुंगी.... उसे कहो... वह मुझसे आकर मिले....

सारी औरतें उसे हैरान हो कर देखती है l वैदेही को वहाँ सोच में छोड़ कर अपनी अपनी घर की ओर चले जाते हैं l

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तापस अपने कैबिन में आकर अपने चेयर पर बैठ जाता है l अपनी टेबल पर फाइल निकाल कर देखने लगता है l तभी जगन आकर उसे सैल्यूट करता है l

तापस - क्या बात है... जगन...
जगन - वह सुबह से... विश्व... आपको.. कई बार... पुछ चुका है...
तापस - मुझे... पर क्यूँ...
जगन - यह तो वही जाने....
तापस - अच्छा जाओ... उसे बुलाओ...

जगन सैल्यूट कर बाहर चला जाता है l उसके जाते ही तापस एक गहरी सोच में पड़ जाता है l थोड़ी देर बाद विश्व दरवाजे पर खड़ा मिलता है l

तापस - अरे विश्व... आओ... तुम मुझे ढूंढ रहे थे....
विश्व - जी....
तापस - क्यूँ कोई काम था...
विश्व - जी.... मुझे आपसे कुछ मदत चाहिए था...
तापस - मदत... कैसी मदत....
विश्व - जी.. सर.. आपको शायद मालूम नहीं होगा.... मैं.. कॉरस्पांडींग में... इग्नू से... ग्रैजुएशन कर रहा हूँ... अभी सेकंड ईयर चल रहा है.... पांच महीने... वैसे ही... बरबाद हो चुके हैं... मैं इसे... कंप्लीट करना चाहता हूँ....
तापस - बहुत अच्छे... यह तो... बहुत बढ़िया बात है... तुम डीस्टेंस एजुकेशन में... कौन से फॉर्मेट और कौन से डिसीप्लीन में कर रहे हो...

विश्व उसे सब बताता है l विश्व से सब सुनने के बाद l

तापस - विश्व... तुम जिस फॉर्मेट में... कर रहे हो... वह रेगुलर स्टुडेंट्स के लिए है... जो प्राइवेट में पढ़ाई करते हैं... हर साल एक्जाम में... एपीयर करते हैं... और इस फॉर्मेट में.... तुमको पैरोल में बाहर जा कर... एक्जाम देना होगा.... और पैरोल में... बाहर निकलने के लिए... तुम्हें वकील की... जरूरत पड़ेगी....

तापस की बातें सुनकर विश्व सोच में पड़ जाता है l वह अपनी नजरें झुका कर इधर उधर देखने लगता है l उसकी हरकत से परेशानी साफ़ झलक रहा है l तापस उसकी हालत देख कर

तापस - विश्व... (विश्व तापस की ओर देखता है) देखो तुम्हारी परेशानी मैं समझ सकता हूँ... पर इसमे प्रॉब्लम... क्या है... तुम भी जानते हो... और मैं भी जानता हूँ... जयंत सर जी के... हादसे के बाद... शायद ही कोई... वकील... तुम्हारे लिए आगे आए...
विश्व - सर... कोई और रास्ता नहीं है...
तापस - मैं... एक्सप्लोर करने की... कोशिश करता हूँ... चाहे रेगुलर हो या इरेगुलर... एक्जाम के लिए तो तुम्हें बाहर जाना पड़ेगा.... अगर एनुएली... एक बार में देना चाहो... तो... मैं कुछ बंदोबस्त कर सकता हूँ... पर इरेगुलर फॉर्मेट में... रेगुलर फॉर्मेट में.... मैं ज्यादा कुछ कर नहीं... पाऊँगा...

विश्व उदास हो जाता है l और दुखी मन से वह तापस को हाथ जोड़कर नमस्कार कर बाहर की ओर मुड़ता है l

तापस - विश्व... (विश्व रुक कर पीछे मुड़ कर देखता है) तुम दस पंद्रह दिन... सोचलो.... अगर फॉर्मेट बदलना चाहो... तो... बताना... मैं... मदत करने की.. कोशिश करूंगा....

विश्व कुछ नहीं कहता है l एक फीकी हँसी के साथ हाथ जोड़कर नमस्कार कर वापस चला जाता है l

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विक्रम गाड़ी भगा रहा है l सहर कब का पीछे छूट गया है पर गाड़ी सड़क पर भाग रहा है l आज विक्रम को एक अलग सी खुशी महसुस हो रही है l उसे समझ में नहीं आ रहा क्या करे क्या ना करे l बस गाड़ी भगाए जा रहा है l उसे लग रहा है जैसे वह उड़ रहा है, उड़ते उड़ते वह कहीं जा रहा है l यह एहसास उसे गुदगुदा रहा है l तभी उसका ध्यान टूटता है l वह गाड़ी की मीडिया स्क्रीन पर देखता है, महांती का नाम डिस्प्ले हो रहा है l फोन ऑन करने के बाद

विक्रम - गुड मार्निंग महांती.... वाव... क्या बात है.... क्या टाइमिंग है... ज़रूर आज कोई ज़बरदस्त ख़बर देने वाले हो....
महांती - क्या बात है... युवराज जी.... आपको तो जैसे.... पहले से ही आभास हो जाता है...
विक्रम - बस.... हो जाता है.... अब बोलो... क्या ख़बर है....
महांती - सर सबकुछ फाइनल हो गया है... हमारा ट्रेनिंग सेंटर... ऑफिस... और इनागुरेशन का दिन.... सब फाइनल हो गया है... बहुत ही ग्रांड ओपनिंग होगी.... मज़े की बात यह है कि... मुख्य मंत्री भी राजी हो गए हैं.... हमारे मुख्य अतिथि बनने के लिए....
विक्रम - वाव... वाव.... क्या बात है.... महांती... अब तारीख़ भी... बता दो....
महांती - सर आज से ठीक.... पंद्रह दिन के बाद.... ****** तारीख़ को... हमारे सिक्युरिटी सर्विस की इनागुराल सेरेमनी होगी.... बस... एक बात की... कंफर्मेशन लेनी थी आपसे....
विक्रम - हाँ कहो....
महांती - हम... हर... प्रिंट मीडिया और... इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अपनी... सिक्युरिटी सर्विस की... ऐड चलाएं....
विक्रम - बेशक.... करनी चाहिए.... भाई... तुम... पार्टनर हो... तुम्हारा हक़.... बनता है....
महांती - थैंक्यू... युवराज जी...
विक्रम - ओके पार्टनर.... प्रोसिड देन.... (कह कर विक्रम फोन काट देता है)

आज गाड़ी के भीतर गुनगुना रहा है l

कितनी हसरत है हमे...
तुमसे दिल लगाने की...
पास आने की तुम्हें...
जिंदगी में लाने की....

अचानक वह गाड़ी के ब्रेक लगाता है l वह बाहर निकालता है तो सामने रास्ता खतम मिलता है l सामने सिर्फ़ पानी और रेत दिखता है उसे l वह अपने सर के पीछे खुद ही चपत लगाता है और हँसने लगता है l वह फोन उठाता है फ़िर अपनी जेब में रख लेता है l ऐसा कई बार वह दोहराता है और उसे अपनी इसी हरकत पर हँसी भी आ रहा है और मजा भी आ रहा है l वहाँ पर तभी एक मछुआ जा रहा था l विक्रम उसे रोकता है

विक्रम - ऐ... भाई... जरा सुनो... यह कौनसी जगह है... मेरा मतलब... इस जगह का नाम क्या है....
मछुआ - इस जगह को... मुण्डुली कहते हैं... साहब....
विक्रम - अच्छा और इस नदी का नाम....
मछुआ - महानदी...
विक्रम - यह जगह बहुत अच्छी है.... यहाँ का नज़ारा भी बहुत बढ़िया है..... (कह कर विक्रम उस महुआ को पांच सौ रुपए निकाल कर देता है)
मछुआ - (वह मछुआ खुश होते हुए) साहब यहाँ का... सूर्यास्त भी बहुत खूबसूरत होता है....
विक्रम - अच्छा....
मछुआ - हाँ साहब...

इतना कह कर सलाम ठोक कर वहाँ से चला जाता है l विक्रम अपना फोन निकालता है और फोन अपनी लकी चार्म को फोन मिलाता है, पर उस तरफ फोन स्विच ऑफ मिलता है l उसका चेहरा उतर जाता है l कुछ सोच कर एक मैसेज टाइप करता है - हाई... आपका प्रेसिडेंट...
और पोस्ट कर देता है l फ़िर अपने कार के बॉनेट पर बैठ जाता है l

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पिनाक सिंह नागेंद्र से मिलने के बाद अपने कमरे की ओर जाने के वजाए क्षेत्रपाल महल से निकल कर अपने गाड़ी में बैठ बाहर निकल चुका है l सुषमा अपने कमरे में इंतजार करते रह गई l पिनाक नहीं आया, सुषमा को नौकरियों से खबर मिली l पिनाक जा चुका है l सुषमा अपने कमरे की दरवाजा बंद कर देती है l पिनाक की गाड़ी को ड्राइवर रंग महल की ओर लिए जा रहा है l
रंग महल में पहुंच कर पिनाक सिंह गाड़ी से उतर कर, सीधे एक गार्ड्स वालों के कमरे की ओर जाता है l वहाँ पहुँच कर भीमा के सामने अपने कमर पर हाथ रख कर खड़ा हो जाता है l भीमा उसे देख कर खड़ा हो जाता है l पिनाक इशारे से बाहर बुलाता है l भीमा बाहर आते ही पिनाक भीमा को साथ लेकर रंग महल के अंदर एक कमरे की ओर चलते हैं l

पिनाक - बड़े राजा जी को... कल राजा साहब जी का यहाँ... राजगड़ आने का खबर ही नहीं थी.... भीमा... क्या हुआ था कल....

भीमा राजगड़ में कल हुए घटना की जानकारी देता है l दोनों एक कमरे के सामने पहुंचते हैं l कमरा अंदर से बंद था l पिनाक इशारे से भीमा को दरवाजा खोलने को कहता है l भीमा डरते हुए हाथ जोड़ कर मना करता है,
भीमा- नहीं छोटे राजा जी... इस कमरे के भीतर..... जाने की हिम्मत... हम में... किसी में भी नहीं है... हमे माफ़ करें.....
भीमा के मना कर देने के बाद, पिनाक दरवाज़े पर हल्का सा धक्का देता है l दरवाज़ा खुल जाता है l पिनाक कमरे के अंदर झांकता है और कमरे में लाइट का स्विच ऑन करता है l कमरे में सिर्फ़ एक बिस्तर और उसके विपरीत दिशा के तरफ दीवार के शेल्फ शराब के बोतलों से भरी हुई है l उस कमरे में और कुछ भी नहीं है l सफ़ेद दीवार पर एक स्लाइडींग डोर दिखती है जो आधा खुला l वह कपड़ों का कबोड है l भैरव सिंह एक लुंगी पहन कर शराब के शेल्फ के पास लगे एल शेप्ड टेबल पर बैठा हुआ है l पिनाक कमरे के बाहर निकल जाता है और वह एक नौकर को भैरव सिंह के पास भेजता है, वह नौकर डरते हुए भैरव सिंह के पैरों पर झुक कर

नौकर - माफ़ी... हुकुम... माफी....
भैरव- (उसे देखता है) क्या है....
नौकर - वह... छोटे राजा जी आए हैं.... आपसे... मिलना चाहते हैं....
भैरव - ह्म्म्म्म.. भेज दो... उन्हें...

नौकर वैसे ही झुके हुए उल्टे पांव कमरे से बाहर निकल जाता है l उसको जाते हुए भैरव सिंह गौर से देख रहा है l नौकर के बाहर जाते ही भैरव सिंह हँसने लगता है l वह हँसते हुए शराब का और एक घूंट पीता है, फ़िर हँसता है l पिनाक कमरे में आकर भैरव को हँसते हुए देख कर

पिनाक - क्या बात है... राजा जी.... अपने आप क्यों... हँस रहे हैं...
भैरव - आपके आने से पहले... जो नौकर आया था... उसे... उल्टे पांव लौटते देख हँसी आ गई....
पिनाक - क्यूँ... कुछ गड़बड़ हो गया... क्या... यह तो उन लोगोंका.... हमारे प्रति सम्मान है....
भैरव - हाँ... आप बताओ.... यहाँ हमसे मिलने... क्यूँ आए.... और आप राजगड़ कब आए....
पिनाक - हम कल रात को... प्रधान और रोणा के साथ मिल कर.. यशपुर गए... वहाँ सर्किट हाउस में रात को रुके.... फिर सुबह ही निकले... राजगड़ पहुंचे..... बहुत दिनों से.... राजगड़ दूर रहे.... इसलिए दुरूस्त होने आ गए.....
भैरव - तो आपको... छोटी रानी जी के पास... होना चाहिए था.... अगर रंग महल के किसी कमरे में...आए हो... तो.. हमारे पास क्यूँ...
पिनाक - आप... कल रात आपके आने की खबर.... बड़े राजा जी को नहीं थी... वह जान कर परेशान हो रहे थे.....
भैरव - इसमे परेशानी की क्या बात है.... यह तो सब जानते हैं... हम या तो... क्षेत्रपाल महल में होंगे.... या फिर रंग महल में.... पर यह छोड़िए... बात कुछ और है.... पूछिए...
पिनाक - वह एक बात हमे ठीक नहीं लगा.... तो उस पर आपसे बात करने आए हैं....
भैरव - कौनसी बात....
पिनाक - आज आप ने... जिस तरह... वैदेही पर ... बीच चौराहे में... हाथ छोड़ा.... वह हमे ठीक नहीं लगा...
भैरव - जब बीच चौराहे से... लड़कियाँ... उठाए हैं... तब आपको बुरा नहीं लगा.... एक को चांटा क्या मारा... बुरा लग गया....
पिनाक - बीच चौराहे से... लड़की को एक मर्द ही उठा सकता है.... पर बीच चौराहे पर... हाथ उठाना.....
भैरव - बस... जुबान पर लगाम दो... (शराब का घूंट पी कर) छोटे राजा जी.... आज हम बहुत ही.. अच्छे मुड़ में हैं... और अच्छा हुआ.... यह प्रश्न आपने पुछा है....

भैरव की यह बात सुन कर पिनाक सकपका जाता है l उसे लगता है शायद बात बात में वह कुछ ज्यादा ही बोल गया l पिनाक इधर उधर देखने लगता है l जब भैरव सिंह कुछ नहीं बोलता है तो अपनी कुर्सी से उठ कर जाने लगता है l

भैरव - अगर सवाल किया है... तो ज़वाब भी लेते जाइए... छोटे राजा जी.....


पिनाक रुक जाता है l भैरव उसे बैठने के लिए इशारा करता है l पिनाक बैठ जाता है l भैरव एक ग्लास निकालता है और उसमें शराब डाल कर पिनाक की ओर बढ़ाता है l पिनाक वह ग्लास ले कर घूंट भरता है l भैरव एक और ग्लास निकालता है और आवाज़ देता है

भैरव - भीमा....
भीमा - हुकुम...
भैरव - यह लो.... (ग्लास को भीमा के तरफ उछालता है, भीमा उस ग्लास को कैच कर लेता है) अब इसे... घोट कर... तोड़ो...

भीमा अपने दोनों हाथों से दबाने लगता है l पर ग्लास बहुत ही मजबूत था, नहीं टूटता है l

भैरव - ठीक है... रहने दो... लाओ... ग्लास हमे दे दो... (भीमा से ग्लास को अपने हाथों में लेकर) छोटे राजा जी... आपने कभी किसीसे प्यार किया है....
पिनाक - (थोड़ा हँसते हुए) पता नहीं... राजा साहब... पता नहीं....
भैरव - और... (पिनाक के आँखों में देखते हुए) और... किसीसे नफरत की है....
पिनाक - नहीं जानते... शायद नहीं...
भैरव - करना चाहिए.... इंसान को... करना चाहिए...
पिनाक - क्या.... क्या करना चाहिए... प्यार या नफरत..
भैरव - कुछ भी...
पिनाक - तो क्या... आपने किसीसे... प्यार....
भैरव - प्यार....हा हा हा... माय फुट... हमने तो.... नफ़रत की है.... वह भी बड़ी... शिद्दत से.... (थोड़ा मुस्कराते हुए) और... वह भी हमसे.... उतनी ही नफ़रत करती है.... उतनी ही शिद्दत से....

भैरव सिंह इतना कह कर बोतल में जितना शराब बचा था, उसे एक ही सांस में पी लेता है l पिनाक उसे हैरानी से देख रहा है l

पिनाक - हम कुछ... समझे नहीं... राजा साहब...
भैरव - हम इंसान हैं... छोटे राजा जी... इंसान बहुत जज्बाती होता है... हर इंसान का वज़ूद के लिए.... एक एहसास... एक खास ज़ज्बात... जरूरी होता है.... जो उस इंसान को... उसके होने का... एहसास दिलाता है.... मुझे मेरे होने का एहसास... तब होता है... जब जब वैदेही के चेहरे पर... दर्द उभरता है.... पता नहीं क्यूँ... पर जब जब उसकी तकलीफ की वजह मैं होता हूँ... उसकी वह तकलीफ़ मुझे... जुनून के हद तक.... सुकून देता है....
(भैरव सिंह एक गहरी सांस छोड़ता है) उसके आँखों में अपने लिए... बेइंतहा नफरत जब देखता हूँ.... तब मुझे हिमालय जितने जैसा लगता है..... हा हा हा हा... जीने का मजा ही कुछ अलग हो जाता है.... (भैरव सिंह का चेहरा अचानक से कठोर हो जाता है, जबड़े भींच जाते हैं, आँखे अंगारों सा दहकने लगता है) जानते हैं... हम उस कमीनी से... क्यूँ इतना नफ़रत करते हैं.... क्यूंकि एक वही है.... जो मेरे अंदर के... पुरूषार्थ को... अहं को चोट पहुंचाई है.... एक वही है... जिसे देखता हूँ... तो खुद को हारा हुआ महसुस करता हूँ... उसके साथ यह रिश्ता... उसके होश सम्भालने से पहले से ही है.... जानते हैं... जब हमारे सामने... वह चेट्टी... अपने बेटे के लिए बोला.... बाप से बढ़कर बेटा.... वह लफ्ज़... मेरे लिए एक गाली था... थप्पड़ था... जानते हैं.... जब पहली बार..... हमे बड़े राजा जी.... रंग महल के भीतर लाए... हमने ऐयाशी की दुनिया में कदम रखा... तब... एक दिन वैदेही की माँ को जबरदस्ती.... अपने नीचे ला रहा था... तब वैदेही ने... अपने नन्हें नन्हें दांतों से मेरे हाथ पर काट लिया था.... नवा... नवा जवानी चढ़ रही थी... पहली बार... मैं अपनी अंदर की आग को शांत किए वगैर.... रंग महल से लौटे थे..... वह पहली हार था... हमारा.... हाँ यह बात और है.... तवज्जो नहीं दी थी हमने..... फ़िर एक दिन वह.... भाग गई रंग महल से... वह दुसरी हार थी... क्यूँकी हमे सिर्फ एक बात... मालुम था... उसे हमारा बीज ढोना था.... पर वह भाग निकली.... यह हार था.... फिर एक दिन मिली.... उसे लाते वक्त... रघुनाथ बीच में आया.... मार डाला हमने उसे....
पिनाक - क्या... रघुनाथ को आपने मारा.... वहाँ तो सब... हमारे आदमी गए हुए थे... ना...

भैरव - हाँ (उसके आँखों में एक शैतानी चमक दिखती है) मैंने उस दिन... भेष बदलकर... अपने ही आदमियों के साथ गया था... सबको... अपना मुहँ... ढंकने का हुकुम दिया था.... इसलिए... राजगड़ के लोगों को छोड़ो... वैदेही भी आज तक यही समझती है... उसे हमारे ही आदमियों ने उठाया था....
पिनाक - ओ....
भैरव - मेरे अंदर... मेरे हार को बदलने का अवसर जो था.... इसलिए... बीच में आने वाले हर एक को... मारने की... ठान लिया था हमने... पर उस दिन विश्व... बेहोश हो गया था.... जो बाद में... सुवर बनकर.... हमारे सामने आया... खैर छोड़ो... वह... (एक तरफ हाथ उठा कर इशारा करते हुए) उस बैठक में (भैरव सिंह हाथ के इशारे से दिखाता है) बड़े राजा जी ने.... उसकी नथ उतारी.... वह बेहोश हो गई थी.... बड़े राजा जी उसकी माँ को लेकर आखेट घर ले गए.... मेरे लिए बेहोश वैदेही को छोड़ कर... मैंने उसे इसी कमरे में ला कर... मार मार कर पहले होश में लाया... उसके होश में आते ही... ही ही ही... टुट पड़ा.... वह मेरे सीने के इस हिस्से को (अपने दाएं हाथ से बाएं सीने पर एक जगह फेरते हुए) फिरसे काट लिया था.... पर इस बार... मैं नहीं रुका... अपनी अंदर की को शांत किया... तब उठा... पर तब तक... उसकी हालत बहुत खराब हो चुकी थी.... पर मेरे अंदर का पुरुष को.... असीम तृप्ति मिल चुका था.... पहली बार... मुझे जीत का एहसास हुआ.... हस्पताल से वापस आने के बाद.... मैंने उसे अपने.. नीचे लाकर हर तरह से रौंदा... उसकी चीख, उसके दर्द... मुझे बहुत खुशी देती थी... पर धीरे धीरे... वह बेज़ान हो गई....किसी पुतले की तरह... उसे कोई एहसास नहीं हो रहा था... वह ना चीखती थी... ना चिल्लाती थी... बस बेज़ान सी नीचे पड़ी रहती थी... मुझे उससे कोई मतलब नहीं था.... पर वह.... पेट से नहीं हो रही थी... यह मेरी बहुत बड़ी हार थी.... मुझे मेरे मर्दानगी पर... शक़ करने पर... मज़बूर करदिया.... यह और एक हार थी मेरे लिए... जब डॉक्टर ने बताया... की वह बाँझ है.... तो यह मेरे लिए... बहुत ही तकलीफ देह थी.... मैं अपने... बाप दादा के वंशानुगत रिवाज को... हार गया था... मैं.. मैं अगर उसे मार देता... तो यह उसकी जीत होती... इसलिए... उसे चुड़ैल बता कर नंगी... राजगड़ के गालियों में दौड़ाया... उस पर पत्थर फीकवाया.... इस बार उसके चेहरे पर दर्द दिखा.... मुझे खुशी महसुस हुई.... पर ज्यादा देर के लिए नहीं.... विश्व जिसे मैंने भुला दिया था... वह बीच में आ गया.... मैं इस बार फ़िर हार गया था.... रंग महल से... कभी कोई औरत निकली ही नहीं थी... अगर निकली भी थी... तो लाश बनकर... पर इसबार वैदेही.... जिंदा थी... फ़िर उसने मुझे मेरे हारने का... एहसास दिलाया.... पर एक बात तो मालुम हुआ... विश्व उसकी दुखती रग है.... बस आगे की कहानी आप जानते हैं... (भैरव वही ग्लास उठाता है) छोटे राजा जी.... अगर हमने वैदेही पर ताकत... आजमाया होता... तो (ग्लास पर पकड़ मजबूत करते हुए) एक ही थप्पड़ से ही... मर गई होती...(कड़ की आवाज़ आती है) हम उसे तकलीफ में देखना... चाहते थे... उसके जज्बातों को कुरेदा.... एहसासों को.. नोचा...(कड़च) उसे तकलीफ़ पहुंचाई.... जो मुझे असीम खुशी दे गई..... (कड़चटाक की आवाज़ सुनाई देती है और ग्लास टुट कर भैरव सिंह के हाथ से गिरती है)
 

lone_hunterr

Titanus Ghidorah
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Story ka plot unique hai.... Updates bhi regular aate hai.... Storyline bhi badhiya thi par jab se flashback chalu hua hai badi boring ho gayi hai.... Present ko pahle padh lene se past ka andaja readers pahle hi laga lete hai usse phir se lagatar itna detail mein padhna bore kar deta hai .... Aur iss baat ka andaja aise laga sakte hai ki pure flashback ke updates mein kuch baate hata do jaise ki
1) Pratibha ne kaise saza dilai vishwa ko (vaise ye baat bhi keval 2 line ki hai ki Pratibha public lawer appointed thi aur sacchai usse baad mein pata chali)
2) Vishwa aur Vaidehi ka relation (Vo bhi thoda streched hai)
Aur bhi aisi ek do kuch information...
Baki pura flashback skip kar sakte hai, still story ki understanding pe koi farak nhi padega...
Court room ka discussion, ESS ka establishment, Pratibha ki family ka family humour time ye sab abhi tak ki storyline ko dekh ke lagta nhi ki final story plot mein kuch contribute karte hai..... Jab se flashback chalu hua hai story aage hi nhi badh rahi hai... Bas past ki information pe information mil rahi hai....
Even if itna detailed past jaroori hai to past and present dono parallel chale taki kuch aage badhti si lage story...
Ye ek suggestion hai baki writer ki apni Marzi
 
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Jaguaar

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अगले दिन
राजगड़
सुबह की धूप खिल रही है क्षेत्रपाल महल में एक गाड़ी आकर रुकती है l पिनाक सिंह उस गाड़ी से उतरता है और एक जोरदार अंगड़ाई लेता है l क्षेत्रपाल महल में वह सीधे नागेंद्र के कमरे की ओर जाता है l वहाँ नागेंद्र के सेवा में कुछ नौकर और नौकरानियां लगे हुए हैं l पिनाक के वहाँ पहुँचते ही नागेंद्र को छोड़ कर एक किनारे हो जाते हैं l

नागेंद्र - आइए... छोटे राजा जी... आइए... विराजे... (पास पड़े एक कुर्सी पर पिनाक बैठ जाता है) क्या आप विजयी हो कर लौटे हैं...
पिनाक - जी... आपका आशीर्वाद है... पार्टी में हमारी बात रख दी गई है...... पार्टी हाई कमांड तैयार हो गए हैं... इस बार बीएमसी चुनाव में... हम अप्रतिद्वंदी होंगे...
नागेंद्र - शाबाश... और युवराज.... वह क्यूँ नहीं आए...
पिनाक - जी उन्हीं की खबर देने ही आए हैं.... वह कॉलेज में... छात्र संगठन में.... अध्यक्ष चुन लिए गए हैं.... और अगले महीने *** तारीख को.... उनकी संस्था का... उद्घाटन समारोह है.... उस समारोह के उपरांत... वह और राजकुमार दोनों... राजगड़ पधारेंगे....
नागेंद्र - बहुत अच्छे... आपके साथ... राजा जी क्यूँ नहीं आए....
पिनाक - पर वह तो... कल सुबह ही.... राजगड़ के लिए... निकल गए थे...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म.... कोर्ट में... जीत की खुशी... मनाने के लिए.... हो सकता है... रंगमहल गए होंगे....
पिनाक - हाँ... शायद...
नागेंद्र - वह सुवर की औलाद... विश्व.... अपने औकात से आगे... निकल गया.... आख़िर हमे.. अपनी ही खेमे से निकल कर... बाहर जाने को... मज़बूर कर दिया...
पिनाक - हाँ... लोक शाही की... जरूरत जो है...
नागेंद्र - लोक शाही... कैसी लोक शाही.... हमने... लोक शाही को... हमारे ठोकर पर अब तक रखे हुए हैं... आज इस राज्य में... लोक शाही रेंग भी रही है.... तो हमारी राज शाही के वैशाखी पर...
पिनाक - जी... पर वह.... लोक शाही के अंजाम तक... पहुंच गया है...
नागेंद्र - एक तरह से.... अच्छा ही हुआ.... अब जब तक... इनकी नस्लें... रहेंगी... तब तक... क्षेत्रपाल महल की और... आँखे उठाने की हिम्मत... कोई नहीं करेगा....
पिनाक - जी... दुरुस्त... फ़रमाया... आपने...
नागेंद्र - अब आप जा सकते हैं... जाईए... छोटी रानी जी... हमारी खुब सेवा किए हैं.... उनसे मिल लीजिए...
पिनाक - जी.... जरूर... नागेंद्र - और हाँ.... समय निकाल कर.... रंगमहल जा कर.... राजा जी की.. खैर खबर.... आप स्वयं लें....
पिनाक - जी... जरूर नागेंद्र - देखिए... रंग महल की चमक... फीकी ना पड़े... यह अब पूरी तरह से... आपके लोगों के जिम्मे.... क्षेत्रपाल महल हमारा रौब.... और रंगमहल हमारा रुतबा है.... हमारी उम्र अब इजाजत नहीं दे रहा है.... और शरीर भी धीरे धीरे ज़वाब दे रहा है....
पिनाक - जी... अब आज्ञा.. चाहूँगा... (कह कर पिनाक उठ कर जाने लगता है)
नागेंद्र - छोटे राजा जी... (पिनाक रुक कर मुड़ कर देखता है) उस लड़की का क्या हुआ...
पिनाक - नहीं जानते.... पर इतना जरूर जानते हैं... कल राजा जी ने... उसे उसके हक़ की... दे दी गई है....

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वैदेही धीरे-धीरे अपनी आँखे खोलती है l तो खुद को एक कमरे में नीचे बिछे बिस्तर पर पाती है l उठ कर बैठ जाती है l उसके गालों पर अभी भी सूजन है, थोड़ा दर्द भी है l वह अपने गालों को छूती है तो उसे बीती शाम की बातेँ याद आती हैं l वह सोचती है वह चाटों के मार खाने के बाद बेहोश हो गई थी l तो उसे कौन लाया और यह किसी का घर है l पर किस का l कौन लाया उसे l यह सब सोचते हुए वह बाहर आती है l उसे लक्ष्मी दिखती है l


वैदेही - ओ... लक्ष्मी...(उसकी आवाज़ ऐसी सुनाई दी, जैसे उसके मुहँ में कुछ रख कर बात कर रही है) तो... यह तुम्हारा घर है....
लक्ष्मी - हाँ वैदेही... अब कैसा लग रहा है...
वैदेही - मैं यहाँ पहुंची कैसे.....
लक्ष्मी - मेरा मरद रात में... फैक्ट्री... नाइट् शिफ्ट काम के लिए निकल गया.... तो हम माँ बेटी.... चौराहे पर जा कर ले आए तुझे....
वैदेही - तुझे डर नहीं लगा....
लक्ष्मी - लगा था.... पर फिर याद आया... कल राजा साहब ने.... तेरे हुक्के पानी पर रोक हटा दी ना...
वैदेही - अच्छा.... तेरा यह उपकार... मुझ पर उधार रहा.... मैं अपने घर चलती हूँ....
लक्ष्मी - थोड़ी देर रुक जाती..... अपनी चेहरा तो देख...
वैदेही - नहीं... अब रुकना नहीं है.... मैं फिर बाद में मिलती हूँ... तुझसे....

कह कर वैदेही अपना सामान ले कर,लक्ष्मी के घर से निकल कर अपने घर की ओर चली जाती है l रास्ते में कुछ लोग उसे देख कर डर के मारे रास्ता छोड़ देते हैं और कुछ लोग उसके पीछे पीछे चलते हुए फब्तीयाँ कसते हैं l सबको अनसुना करके वैदेही अपने घर पर पहुंच जाती है l अपनी बैग से चाबी निकाल कर ताला खोल कर घर के अंदर आती है, फ़िर दरवाज़ा बंद कर अंदर की कुए में बाल्टी डाल कर पानी निकालती है और अपने ऊपर उड़ेल देती है l पानी ऊपर गिरते ही वह हांफने लगती है l धीरे धीरे उसका चेहरा कठोर हो जाती है

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टीवी की रिमोट हाथ में लेकर सारे न्यूज चैनल छान मारने के बाद रिमोट सोफ़े पर फेंक देती है, प्रतिभा l

तापस - क्या बात है.... आज किसका गुस्सा टीवी के रिमोट पर... उतारा जा रहा है....

प्रतिभा - कितने प्रदर्शन हुए,... कितने धरने पर बैठे.... ना जाने क्या क्या... नाटक किया गया.... पर देखो भुला देने के लिए.... एक दिन भी नहीं लगा.....
तापस - कमाल करती हो.... भाग्यवान.... कल ही तो तुमने मुझसे कहा था.... विश्व एक डाईवर्जन है... उसे सजा हुई.... काम खतम... अब लोग अपनी रोजी रोटी के लिए भाग दौड़ कर सकेंगे.... मीडिया वाले... नई मसालेदार ख़बरों की खोज में... लगेंगे.... राजनीतिक गिरगिट अपना रंग बदलेंगे.... ऐसे में विश्व... या मनरेगा से... क्या मतलब है...
प्रतिभा - हाँ... सेनापति जी.... आप ठीक कह रहे हैं....
तापस - वही तो... अब हमे भी... आगे बढ़ना चाहिए.....
प्रतिभा - हाँ आप ठीक कह रहे हैं.....
तापस - सच... (खुशी से चहकते हुए) तुम तैयार हो....
प्रतिभा - (आपनी आँखे सिकुड़ कर) यह आप.. किस बात की... तैयारी कर रहे हैं...
तापस - कमाल करती हो.... भाग्यवान.... अब... लड़का डॉक्टर... बन जाएगा.... बाहर... बिजी रहेगा.... तो हम क्यूँ ना... चौथे... सदस्य को... लाने की तैयारी करें...
प्रतिभा - (अपनी कमर पर दोनों हाथ रखकर) क्या कहा आपने...
तापस - अरे क्या... कहा मैंने... मैं.. तो बस यह कह रहा था... हम तीन हैं... चलो... चार बनने की... तैयारी करते हैं...
प्रतिभा - (सोफा पर से एक कुशन उठा कर तापस की फेंकती है) आपको शर्म नहीं आती.... बुढ़ापे में ऐसी बातेँ... करते हुए...
तापस - इस में... शर्माने की... क्या बात है... मैं कह रहा था... डॉक्टर विजय से बात करूँ.... ताकि हमारे.. लाट साहब के हाथ पीले कर दिया जाए...
प्रत्युष - मैं भी यही कह रहा था....
प्रतिभा - तु.... कब आया.... और.... बड़ों के बीच में.... तु क्यूँ... घुसा जा रहा है....
प्रत्युष - बड़ों... या बूढ़ों... पहले यह कंफर्म करो...
तापस - बुड्ढा किसको बोला....
प्रत्युष - अभी बोला कहाँ है... बस पुछा ही तो है...
प्रतिभा - मैंने सिर्फ़ इतना कहा.... बड़ों के बीच में नहीं आते....
प्रत्युष - आप दोनों वहाँ हो... मैं यहाँ हूँ... बीच में कहाँ हूँ.... बाकी बड़ों के... मतलब क्या हो सकता है.... आपको यह कहना चाहिए... बूढ़ों के बीच में नहीं आना चाहिए.... क्यूंकि जवान लड़का... बूढ़ों के बीच क्या करेगा...
तापस - तुने फ़िर बुढ़ा किसको कहा....
प्रत्युष - अब इस कमरे में... जवान कहो या बच्चा... वह सिर्फ़ मैं ही हूँ....
तापस - तु.... बुढ़ा होगा तु... तेरा बाप...
प्रत्युष - फ़िर से करेक्शन... सिर्फ़ बुढ़ा होगा तेरा बाप... यही कहावत है....
तापस - रुक अभी बताता हूँ...
प्रत्युष वहाँ से भाग जाता है l उसके भागते ही प्रतिभा हँस देती है l

तापस - वैसे जान... तुमने कुछ और भी सोचा था ना... (अपनी भौंवै नचा कर पूछता है)

प्रतिभा एक प्यार भरा गुस्से से तापस को देखती है, तापस पीछे मुड़ कर हँसते हुए भाग जाता है l

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एक कमरे में वीर डायनिंग टेबल पर नाश्ता कर रहा है l और बीच बीच में अटक कर कुछ सोच रहा है l विक्रम उसे कुछ देर से देखे जा रहा है l

विक्रम - क्या बात है... राजकुमार.... बड़ी गहरी सोच में हो....
वीर - हाँ हैं हम....
विक्रम - पढ़ाई को ले कर.....
वीर - ना... पढ़ाई जब कि ही नहीं.... तो उसकी सोचें ही क्यूँ....
विक्रम - तो खाते खाते बीच में.... आप अटक क्यूँ रहे हैं....
वीर - अब खाली दिमाग़... शैतान का घर... इसलिए.... बहुत बड़ी बात दिमाग़ में.... डाल कर सोच रहे हैं.... ताकि दिमाग़ खाली ना रहे....
विक्रम - अच्छा तो हमें भी... वाकिफ़ कराएं... आपके दिमाग में... क्या चल रहा है....
वीर - यही... के अगर आप... राजा साहब के जगह लेते हैं... तो तब जाहिर है... छोटे राजा तो हम ही होंगे.... तब... अब वाले छोटे राजा जी का.... डेजिग्नेशन क्या होगा... बस... यही सोच रहे हैं...

विक्रम की खांसी निकल जाती है l थोड़ा पानी पी लेने के बाद वीर को घूर कर देखता है l

विक्रम - आपको और कुछ नहीं सूझा..... सोचने के लिए....
वीर - देखिए... युवराज जी... कभी ना कभी... बड़े राजा... सिधार जाएंगे... तब सब अपने अपने... डेजिग्नेशन से... प्रमोट होंगे.... तो मैं छोटे राजा जी के लिए... परेशान हूँ....
विक्रम - कास... आप अपने.... स्टडीज के लिए इतने परेशान होते...
वीर - परेशान होने से क्या होगा... ज्यादा से ज्यादा... आईएएस तो नहीं बनना है..... पर ऐसा पोजीशन हासिल करना है..... बड़े बड़े गोल्ड मेडलिस्ट आईएएस आगे पीछे घुमते हुए नजर आयेंगे....
विक्रम - बहुत दिमाग़ चल रहा है आपका...
वीर - कोई शक़...
विक्रम - चलो एक पहेली है... सुलझाके दिखाओ...
वीर - क्यूँ... किसी आईएएस से मेरा प्लेट साफ करवायेंगे क्या...
विक्रम - आप... यह आईएएस वालों के पीछे क्यूँ लगे हुए हैं...
वीर - क्यूंकि आपने... पढ़ाई की बात छेड़ दी...
विक्रम - अच्छा चलिए हमे माफ़ करें....
वीर - ठीक है... आप अपना पहेली पूछिए...
विक्रम - इस पहेली में... एक फोन नंबर है... जो आपको पता करना है...
वीर - अगर हमने पता कर दिया तो....
विक्रम - वादा रहा... किसी आईएएस से आपका प्लेट उठवाएंगे....
वीर - ठीक है... पहेली क्या है...
विक्रम - एक पायदानी सफर .... ऊपर से नीचे की ओर.... थमती है सफर... जब लगती है पंजे के जोड़े की जोर.... आगे नहीं सफ़र... मूड जाती है पीछे की ओर.... ना एक है ... ना दो ... ना तीन है ... ना चार... बस कुछ ऐसी है यह सफर.... इसी में है मेरा नंबर....
वीर - ह्म्म्म्म लगता है... किसी लड़की का नंबर है...
विक्रम -(झेप जाता है, हकलाने लगता है) हाँ.. हा.. व... न... ना.. नहीं... यह एक... द...द.. दोस्त का नंबर है...
वीर - तो इतना हकला क्यूँ... रहे हैं...
विक्रम - अरे भाई.... आप को... बताना है तो बताओ....
वीर - (टिशू पेपर से अपना होंठ साफ करते हुए) ठीक है... बहुत आसान है.... पर यह बताइए.... पहली... कितने दिन पहले की है...
विक्रम - (थोड़ा उदास होते हुए) क्या बताएं.... बीस दिन हो गए हैं...
वीर - क्या... आप... बीस दिन से... नहीं मिले हैं... आपस में...
विक्रम - हाँ.. क.. कौन... किससे...
वीर - वेरी सिंपल... आपकी गर्लफ्रेंड से...
विक्रम - य.. यह आ.. आ.. आप क.. क.. क्या कह रहे हैं...
वीर - तो ठीक है ना... आप हकला क्यूँ रहे हैं..
विक्रम - नहीं तो...
वीर - ठीक है... फिरसे... पहेली क्या है... बताइए...
विक्रम - एक पायदानी सफर .... ऊपर से नीचे की ओर.... थमती है सफर... जब लगती है पंजे के जोड़े की जोर.... आगे नहीं सफ़र... मूड जाती है पीछे की ओर.... ना एक है ... ना दो ... ना तीन है ... ना चार... बस कुछ ऐसी है यह सफर.... इसी में है मेरा नंबर....
वीर - ह्म्म्म्म एक पायदानी सफर... नीचे की ओर... पंजे की जोड़े ह्म्म्म्म...
मतलब पहले डिसेंडींग ऑर्डर.... फिर एसेंडींग ऑर्डर....
लो मिल गया... आपका नंबर...
विक्रम - क्या... मिल गया... क क्या है नंबर...
वीर - पायदानी सफ़र... ऊपर से नीचे की ओर मतलब 9876 पंजे की जोड़े ने रोका मतलब 55 फिर वापस भेज दिया ऊपर की ओर... 6789
उसमें... ना एक है ना दो है ना तीन है ना ही चार है.....
9876556789 बस यही नंबर है....
विक्रम - क्या... (हैरानी से चिल्लाते हुए) वाकई... वाव.. यह तो.. बहुत ही आसान था... हम तो बीस दिनों से... इसी भंवर में भटक रहे हैं...
वीर - आपको भी मालुम हो जाता... पर....
विक्रम - पर क्या....
वीर - पर अगर... अपने दिल के जगह... दिमाग़ का इस्तमाल किया होता...

विक्रम फिर से खांसने लगता है l वीर उसे अपनी आँखे सिकुड़ कर देखने लगता है l विक्रम कुछ नहीं कहता, अपना सर झुका कर कमरे से बाहर चला जाता है l

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वैदेही अपने कमरे में बैठ कर किन्ही ख़यालों में खोई हुई है अचानक वह उठती है और बाहर निकल कर उसी चौराहे पर पहुंचती है l जहां भैरव सिंह ने उस पर थप्पड़ बरसाये थे l वैदेही वहीँ खड़ी हो कर उसी जगह को देखती रहती है l कुछ मर्द वहाँ से गुज़रते हैं, पर जैसे ही वैदेही को देखते हैं वह लोग अपना रास्ता बदल कर चले जाते हैं l वैदेही वहीँ खड़ी हो कर उसी जगह को देख रही है और कुछ सोच रही है l उसके पास कुछ औरतें आती हैं l

एक औरत - क्या बात है.. वैदेही... तुम यहाँ पर क्यूँ खड़ी हो....
वैदेही - कुछ नहीं कुसुम भाभी... मैं यह सोच रही थी.... कितनी आसानी से... एक चौराहे से... किसी के घर की इज़्ज़त, किसी के घर की जन्नत, किसी के बाग की फूल... कोई आकर उठा ले जाता है... रौंदने के लिए... किसी... भाई का खुन नहीं खौलता.... किसी बाप का दिल नहीं... चीखता.... क्यूँ...
दूसरी औरत - सब का खुन... ठंडा हो चुका है... क्षेत्रपाल परिवार के दहशत से... नामर्द बन चुके हैं... सारे के सारे...
वैदेही - क्यूँ सावित्री मौसी...
सावित्री - शायद दुसरे के आंच से... खुद को इसलिए दूर रख रहे हैं... कहीं अपने दामन में... आग ना लग जाए...
वैदेही - पड़ोसी के घर की आग को ना बुझाया जाए... तो वह आग... खुद के मौहल्ले में भी... फैल सकता है...
कुसुम - यह समझते समझते... घर राख हो चुका होता है...
वैदेही - अब और वैसा... नहीं होगा... नहीं होना चाहिए... मैं.. होने ही नहीं दूंगी...

वह सारी औरतें वैदेही को देखते रह जाते हैं l उन्हें वैदेही के बातों से उसकी अंदर की निश्चितता का एहसास होने लगता है l

वैदेही - मुझे इसी जगह पर अपने लिए... कुछ चाहिए.... पर क्या... यही सोच रही हूँ.....
कुसुम - क्या... कोई जगह या घर ख़रीदना है क्या...
वैदेही -अरे हाँ... अगर मिल जाए तो... मिल सकता है... क्या...
कुसुम - पता नहीं... वह जो घर और थोड़ी सी जगह देख रही है ना... वह चगुली साबत.... बेचना चाहता था.... पर उसे... कीमत नहीं मिल रहा था....
वैदेही - क्या... क्यूँ बेचना चाहता था....
सावित्री - अरे... उसके माँ बाप चल बसे.... वह पहले से राजगड़ छोड़ कर चले जाना चाहता था.... पर उसे सरकारी कीमत भी कोई नहीं दे रहा था.... सब राजा साहब से डर कर....
वैदेही - कोई नहीं... उसे बोलो... मुझसे मिले... उसे उसकी कीमत मिल जाएगी....
सावित्री - क्या... तुम... पागल तो नहीं हो गई हो... राजा साहब से तुम नहीं डरती... पर चगुली...
वैदेही - तुम... फ़िकर मत करो... वह मैं सम्भाल लुंगी.... उसे कहो... वह मुझसे आकर मिले....

सारी औरतें उसे हैरान हो कर देखती है l वैदेही को वहाँ सोच में छोड़ कर अपनी अपनी घर की ओर चले जाते हैं l

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तापस अपने कैबिन में आकर अपने चेयर पर बैठ जाता है l अपनी टेबल पर फाइल निकाल कर देखने लगता है l तभी जगन आकर उसे सैल्यूट करता है l

तापस - क्या बात है... जगन...
जगन - वह सुबह से... विश्व... आपको.. कई बार... पुछ चुका है...
तापस - मुझे... पर क्यूँ...
जगन - यह तो वही जाने....
तापस - अच्छा जाओ... उसे बुलाओ...

जगन सैल्यूट कर बाहर चला जाता है l उसके जाते ही तापस एक गहरी सोच में पड़ जाता है l थोड़ी देर बाद विश्व दरवाजे पर खड़ा मिलता है l

तापस - अरे विश्व... आओ... तुम मुझे ढूंढ रहे थे....
विश्व - जी....
तापस - क्यूँ कोई काम था...
विश्व - जी.... मुझे आपसे कुछ मदत चाहिए था...
तापस - मदत... कैसी मदत....
विश्व - जी.. सर.. आपको शायद मालूम नहीं होगा.... मैं.. कॉरस्पांडींग में... इग्नू से... ग्रैजुएशन कर रहा हूँ... अभी सेकंड ईयर चल रहा है.... पांच महीने... वैसे ही... बरबाद हो चुके हैं... मैं इसे... कंप्लीट करना चाहता हूँ....
तापस - बहुत अच्छे... यह तो... बहुत बढ़िया बात है... तुम डीस्टेंस एजुकेशन में... कौन से फॉर्मेट और कौन से डिसीप्लीन में कर रहे हो...

विश्व उसे सब बताता है l विश्व से सब सुनने के बाद l

तापस - विश्व... तुम जिस फॉर्मेट में... कर रहे हो... वह रेगुलर स्टुडेंट्स के लिए है... जो प्राइवेट में पढ़ाई करते हैं... हर साल एक्जाम में... एपीयर करते हैं... और इस फॉर्मेट में.... तुमको पैरोल में बाहर जा कर... एक्जाम देना होगा.... और पैरोल में... बाहर निकलने के लिए... तुम्हें वकील की... जरूरत पड़ेगी....

तापस की बातें सुनकर विश्व सोच में पड़ जाता है l वह अपनी नजरें झुका कर इधर उधर देखने लगता है l उसकी हरकत से परेशानी साफ़ झलक रहा है l तापस उसकी हालत देख कर

तापस - विश्व... (विश्व तापस की ओर देखता है) देखो तुम्हारी परेशानी मैं समझ सकता हूँ... पर इसमे प्रॉब्लम... क्या है... तुम भी जानते हो... और मैं भी जानता हूँ... जयंत सर जी के... हादसे के बाद... शायद ही कोई... वकील... तुम्हारे लिए आगे आए...
विश्व - सर... कोई और रास्ता नहीं है...
तापस - मैं... एक्सप्लोर करने की... कोशिश करता हूँ... चाहे रेगुलर हो या इरेगुलर... एक्जाम के लिए तो तुम्हें बाहर जाना पड़ेगा.... अगर एनुएली... एक बार में देना चाहो... तो... मैं कुछ बंदोबस्त कर सकता हूँ... पर इरेगुलर फॉर्मेट में... रेगुलर फॉर्मेट में.... मैं ज्यादा कुछ कर नहीं... पाऊँगा...

विश्व उदास हो जाता है l और दुखी मन से वह तापस को हाथ जोड़कर नमस्कार कर बाहर की ओर मुड़ता है l

तापस - विश्व... (विश्व रुक कर पीछे मुड़ कर देखता है) तुम दस पंद्रह दिन... सोचलो.... अगर फॉर्मेट बदलना चाहो... तो... बताना... मैं... मदत करने की.. कोशिश करूंगा....

विश्व कुछ नहीं कहता है l एक फीकी हँसी के साथ हाथ जोड़कर नमस्कार कर वापस चला जाता है l

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विक्रम गाड़ी भगा रहा है l सहर कब का पीछे छूट गया है पर गाड़ी सड़क पर भाग रहा है l आज विक्रम को एक अलग सी खुशी महसुस हो रही है l उसे समझ में नहीं आ रहा क्या करे क्या ना करे l बस गाड़ी भगाए जा रहा है l उसे लग रहा है जैसे वह उड़ रहा है, उड़ते उड़ते वह कहीं जा रहा है l यह एहसास उसे गुदगुदा रहा है l तभी उसका ध्यान टूटता है l वह गाड़ी की मीडिया स्क्रीन पर देखता है, महांती का नाम डिस्प्ले हो रहा है l फोन ऑन करने के बाद

विक्रम - गुड मार्निंग महांती.... वाव... क्या बात है.... क्या टाइमिंग है... ज़रूर आज कोई ज़बरदस्त ख़बर देने वाले हो....
महांती - क्या बात है... युवराज जी.... आपको तो जैसे.... पहले से ही आभास हो जाता है...
विक्रम - बस.... हो जाता है.... अब बोलो... क्या ख़बर है....
महांती - सर सबकुछ फाइनल हो गया है... हमारा ट्रेनिंग सेंटर... ऑफिस... और इनागुरेशन का दिन.... सब फाइनल हो गया है... बहुत ही ग्रांड ओपनिंग होगी.... मज़े की बात यह है कि... मुख्य मंत्री भी राजी हो गए हैं.... हमारे मुख्य अतिथि बनने के लिए....
विक्रम - वाव... वाव.... क्या बात है.... महांती... अब तारीख़ भी... बता दो....
महांती - सर आज से ठीक.... पंद्रह दिन के बाद.... ****** तारीख़ को... हमारे सिक्युरिटी सर्विस की इनागुराल सेरेमनी होगी.... बस... एक बात की... कंफर्मेशन लेनी थी आपसे....
विक्रम - हाँ कहो....
महांती - हम... हर... प्रिंट मीडिया और... इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अपनी... सिक्युरिटी सर्विस की... ऐड चलाएं....
विक्रम - बेशक.... करनी चाहिए.... भाई... तुम... पार्टनर हो... तुम्हारा हक़.... बनता है....
महांती - थैंक्यू... युवराज जी...
विक्रम - ओके पार्टनर.... प्रोसिड देन.... (कह कर विक्रम फोन काट देता है)

आज गाड़ी के भीतर गुनगुना रहा है l

कितनी हसरत है हमे...
तुमसे दिल लगाने की...
पास आने की तुम्हें...
जिंदगी में लाने की....

अचानक वह गाड़ी के ब्रेक लगाता है l वह बाहर निकालता है तो सामने रास्ता खतम मिलता है l सामने सिर्फ़ पानी और रेत दिखता है उसे l वह अपने सर के पीछे खुद ही चपत लगाता है और हँसने लगता है l वह फोन उठाता है फ़िर अपनी जेब में रख लेता है l ऐसा कई बार वह दोहराता है और उसे अपनी इसी हरकत पर हँसी भी आ रहा है और मजा भी आ रहा है l वहाँ पर तभी एक मछुआ जा रहा था l विक्रम उसे रोकता है

विक्रम - ऐ... भाई... जरा सुनो... यह कौनसी जगह है... मेरा मतलब... इस जगह का नाम क्या है....
मछुआ - इस जगह को... मुण्डुली कहते हैं... साहब....
विक्रम - अच्छा और इस नदी का नाम....
मछुआ - महानदी...
विक्रम - यह जगह बहुत अच्छी है.... यहाँ का नज़ारा भी बहुत बढ़िया है..... (कह कर विक्रम उस महुआ को पांच सौ रुपए निकाल कर देता है)
मछुआ - (वह मछुआ खुश होते हुए) साहब यहाँ का... सूर्यास्त भी बहुत खूबसूरत होता है....
विक्रम - अच्छा....
मछुआ - हाँ साहब...

इतना कह कर सलाम ठोक कर वहाँ से चला जाता है l विक्रम अपना फोन निकालता है और फोन अपनी लकी चार्म को फोन मिलाता है, पर उस तरफ फोन स्विच ऑफ मिलता है l उसका चेहरा उतर जाता है l कुछ सोच कर एक मैसेज टाइप करता है - हाई... आपका प्रेसिडेंट...
और पोस्ट कर देता है l फ़िर अपने कार के बॉनेट पर बैठ जाता है l

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पिनाक सिंह नागेंद्र से मिलने के बाद अपने कमरे की ओर जाने के वजाए क्षेत्रपाल महल से निकल कर अपने गाड़ी में बैठ बाहर निकल चुका है l सुषमा अपने कमरे में इंतजार करते रह गई l पिनाक नहीं आया, सुषमा को नौकरियों से खबर मिली l पिनाक जा चुका है l सुषमा अपने कमरे की दरवाजा बंद कर देती है l पिनाक की गाड़ी को ड्राइवर रंग महल की ओर लिए जा रहा है l
रंग महल में पहुंच कर पिनाक सिंह गाड़ी से उतर कर, सीधे एक गार्ड्स वालों के कमरे की ओर जाता है l वहाँ पहुँच कर भीमा के सामने अपने कमर पर हाथ रख कर खड़ा हो जाता है l भीमा उसे देख कर खड़ा हो जाता है l पिनाक इशारे से बाहर बुलाता है l भीमा बाहर आते ही पिनाक भीमा को साथ लेकर रंग महल के अंदर एक कमरे की ओर चलते हैं l

पिनाक - बड़े राजा जी को... कल राजा साहब जी का यहाँ... राजगड़ आने का खबर ही नहीं थी.... भीमा... क्या हुआ था कल....

भीमा राजगड़ में कल हुए घटना की जानकारी देता है l दोनों एक कमरे के सामने पहुंचते हैं l कमरा अंदर से बंद था l पिनाक इशारे से भीमा को दरवाजा खोलने को कहता है l भीमा डरते हुए हाथ जोड़ कर मना करता है,
भीमा- नहीं छोटे राजा जी... इस कमरे के भीतर..... जाने की हिम्मत... हम में... किसी में भी नहीं है... हमे माफ़ करें.....
भीमा के मना कर देने के बाद, पिनाक दरवाज़े पर हल्का सा धक्का देता है l दरवाज़ा खुल जाता है l पिनाक कमरे के अंदर झांकता है और कमरे में लाइट का स्विच ऑन करता है l कमरे में सिर्फ़ एक बिस्तर और उसके विपरीत दिशा के तरफ दीवार के शेल्फ शराब के बोतलों से भरी हुई है l उस कमरे में और कुछ भी नहीं है l सफ़ेद दीवार पर एक स्लाइडींग डोर दिखती है जो आधा खुला l वह कपड़ों का कबोड है l भैरव सिंह एक लुंगी पहन कर शराब के शेल्फ के पास लगे एल शेप्ड टेबल पर बैठा हुआ है l पिनाक कमरे के बाहर निकल जाता है और वह एक नौकर को भैरव सिंह के पास भेजता है, वह नौकर डरते हुए भैरव सिंह के पैरों पर झुक कर

नौकर - माफ़ी... हुकुम... माफी....
भैरव- (उसे देखता है) क्या है....
नौकर - वह... छोटे राजा जी आए हैं.... आपसे... मिलना चाहते हैं....
भैरव - ह्म्म्म्म.. भेज दो... उन्हें...

नौकर वैसे ही झुके हुए उल्टे पांव कमरे से बाहर निकल जाता है l उसको जाते हुए भैरव सिंह गौर से देख रहा है l नौकर के बाहर जाते ही भैरव सिंह हँसने लगता है l वह हँसते हुए शराब का और एक घूंट पीता है, फ़िर हँसता है l पिनाक कमरे में आकर भैरव को हँसते हुए देख कर

पिनाक - क्या बात है... राजा जी.... अपने आप क्यों... हँस रहे हैं...
भैरव - आपके आने से पहले... जो नौकर आया था... उसे... उल्टे पांव लौटते देख हँसी आ गई....
पिनाक - क्यूँ... कुछ गड़बड़ हो गया... क्या... यह तो उन लोगोंका.... हमारे प्रति सम्मान है....
भैरव - हाँ... आप बताओ.... यहाँ हमसे मिलने... क्यूँ आए.... और आप राजगड़ कब आए....
पिनाक - हम कल रात को... प्रधान और रोणा के साथ मिल कर.. यशपुर गए... वहाँ सर्किट हाउस में रात को रुके.... फिर सुबह ही निकले... राजगड़ पहुंचे..... बहुत दिनों से.... राजगड़ दूर रहे.... इसलिए दुरूस्त होने आ गए.....
भैरव - तो आपको... छोटी रानी जी के पास... होना चाहिए था.... अगर रंग महल के किसी कमरे में...आए हो... तो.. हमारे पास क्यूँ...
पिनाक - आप... कल रात आपके आने की खबर.... बड़े राजा जी को नहीं थी... वह जान कर परेशान हो रहे थे.....
भैरव - इसमे परेशानी की क्या बात है.... यह तो सब जानते हैं... हम या तो... क्षेत्रपाल महल में होंगे.... या फिर रंग महल में.... पर यह छोड़िए... बात कुछ और है.... पूछिए...
पिनाक - वह एक बात हमे ठीक नहीं लगा.... तो उस पर आपसे बात करने आए हैं....
भैरव - कौनसी बात....
पिनाक - आज आप ने... जिस तरह... वैदेही पर ... बीच चौराहे में... हाथ छोड़ा.... वह हमे ठीक नहीं लगा...
भैरव - जब बीच चौराहे से... लड़कियाँ... उठाए हैं... तब आपको बुरा नहीं लगा.... एक को चांटा क्या मारा... बुरा लग गया....
पिनाक - बीच चौराहे से... लड़की को एक मर्द ही उठा सकता है.... पर बीच चौराहे पर... हाथ उठाना.....
भैरव - बस... जुबान पर लगाम दो... (शराब का घूंट पी कर) छोटे राजा जी.... आज हम बहुत ही.. अच्छे मुड़ में हैं... और अच्छा हुआ.... यह प्रश्न आपने पुछा है....

भैरव की यह बात सुन कर पिनाक सकपका जाता है l उसे लगता है शायद बात बात में वह कुछ ज्यादा ही बोल गया l पिनाक इधर उधर देखने लगता है l जब भैरव सिंह कुछ नहीं बोलता है तो अपनी कुर्सी से उठ कर जाने लगता है l

भैरव - अगर सवाल किया है... तो ज़वाब भी लेते जाइए... छोटे राजा जी.....


पिनाक रुक जाता है l भैरव उसे बैठने के लिए इशारा करता है l पिनाक बैठ जाता है l भैरव एक ग्लास निकालता है और उसमें शराब डाल कर पिनाक की ओर बढ़ाता है l पिनाक वह ग्लास ले कर घूंट भरता है l भैरव एक और ग्लास निकालता है और आवाज़ देता है

भैरव - भीमा....
भीमा - हुकुम...
भैरव - यह लो.... (ग्लास को भीमा के तरफ उछालता है, भीमा उस ग्लास को कैच कर लेता है) अब इसे... घोट कर... तोड़ो...

भीमा अपने दोनों हाथों से दबाने लगता है l पर ग्लास बहुत ही मजबूत था, नहीं टूटता है l

भैरव - ठीक है... रहने दो... लाओ... ग्लास हमे दे दो... (भीमा से ग्लास को अपने हाथों में लेकर) छोटे राजा जी... आपने कभी किसीसे प्यार किया है....
पिनाक - (थोड़ा हँसते हुए) पता नहीं... राजा साहब... पता नहीं....
भैरव - और... (पिनाक के आँखों में देखते हुए) और... किसीसे नफरत की है....
पिनाक - नहीं जानते... शायद नहीं...
भैरव - करना चाहिए.... इंसान को... करना चाहिए...
पिनाक - क्या.... क्या करना चाहिए... प्यार या नफरत..
भैरव - कुछ भी...
पिनाक - तो क्या... आपने किसीसे... प्यार....
भैरव - प्यार....हा हा हा... माय फुट... हमने तो.... नफ़रत की है.... वह भी बड़ी... शिद्दत से.... (थोड़ा मुस्कराते हुए) और... वह भी हमसे.... उतनी ही नफ़रत करती है.... उतनी ही शिद्दत से....

भैरव सिंह इतना कह कर बोतल में जितना शराब बचा था, उसे एक ही सांस में पी लेता है l पिनाक उसे हैरानी से देख रहा है l

पिनाक - हम कुछ... समझे नहीं... राजा साहब...
भैरव - हम इंसान हैं... छोटे राजा जी... इंसान बहुत जज्बाती होता है... हर इंसान का वज़ूद के लिए.... एक एहसास... एक खास ज़ज्बात... जरूरी होता है.... जो उस इंसान को... उसके होने का... एहसास दिलाता है.... मुझे मेरे होने का एहसास... तब होता है... जब जब वैदेही के चेहरे पर... दर्द उभरता है.... पता नहीं क्यूँ... पर जब जब उसकी तकलीफ की वजह मैं होता हूँ... उसकी वह तकलीफ़ मुझे... जुनून के हद तक.... सुकून देता है....
(भैरव सिंह एक गहरी सांस छोड़ता है) उसके आँखों में अपने लिए... बेइंतहा नफरत जब देखता हूँ.... तब मुझे हिमालय जितने जैसा लगता है..... हा हा हा हा... जीने का मजा ही कुछ अलग हो जाता है.... (भैरव सिंह का चेहरा अचानक से कठोर हो जाता है, जबड़े भींच जाते हैं, आँखे अंगारों सा दहकने लगता है) जानते हैं... हम उस कमीनी से... क्यूँ इतना नफ़रत करते हैं.... क्यूंकि एक वही है.... जो मेरे अंदर के... पुरूषार्थ को... अहं को चोट पहुंचाई है.... एक वही है... जिसे देखता हूँ... तो खुद को हारा हुआ महसुस करता हूँ... उसके साथ यह रिश्ता... उसके होश सम्भालने से पहले से ही है.... जानते हैं... जब हमारे सामने... वह चेट्टी... अपने बेटे के लिए बोला.... बाप से बढ़कर बेटा.... वह लफ्ज़... मेरे लिए एक गाली था... थप्पड़ था... जानते हैं.... जब पहली बार..... हमे बड़े राजा जी.... रंग महल के भीतर लाए... हमने ऐयाशी की दुनिया में कदम रखा... तब... एक दिन वैदेही की माँ को जबरदस्ती.... अपने नीचे ला रहा था... तब वैदेही ने... अपने नन्हें नन्हें दांतों से मेरे हाथ पर काट लिया था.... नवा... नवा जवानी चढ़ रही थी... पहली बार... मैं अपनी अंदर की आग को शांत किए वगैर.... रंग महल से लौटे थे..... वह पहली हार था... हमारा.... हाँ यह बात और है.... तवज्जो नहीं दी थी हमने..... फ़िर एक दिन वह.... भाग गई रंग महल से... वह दुसरी हार थी... क्यूँकी हमे सिर्फ एक बात... मालुम था... उसे हमारा बीज ढोना था.... पर वह भाग निकली.... यह हार था.... फिर एक दिन मिली.... उसे लाते वक्त... रघुनाथ बीच में आया.... मार डाला हमने उसे....
पिनाक - क्या... रघुनाथ को आपने मारा.... वहाँ तो सब... हमारे आदमी गए हुए थे... ना...

भैरव - हाँ (उसके आँखों में एक शैतानी चमक दिखती है) मैंने उस दिन... भेष बदलकर... अपने ही आदमियों के साथ गया था... सबको... अपना मुहँ... ढंकने का हुकुम दिया था.... इसलिए... राजगड़ के लोगों को छोड़ो... वैदेही भी आज तक यही समझती है... उसे हमारे ही आदमियों ने उठाया था....
पिनाक - ओ....
भैरव - मेरे अंदर... मेरे हार को बदलने का अवसर जो था.... इसलिए... बीच में आने वाले हर एक को... मारने की... ठान लिया था हमने... पर उस दिन विश्व... बेहोश हो गया था.... जो बाद में... सुवर बनकर.... हमारे सामने आया... खैर छोड़ो... वह... (एक तरफ हाथ उठा कर इशारा करते हुए) उस बैठक में (भैरव सिंह हाथ के इशारे से दिखाता है) बड़े राजा जी ने.... उसकी नथ उतारी.... वह बेहोश हो गई थी.... बड़े राजा जी उसकी माँ को लेकर आखेट घर ले गए.... मेरे लिए बेहोश वैदेही को छोड़ कर... मैंने उसे इसी कमरे में ला कर... मार मार कर पहले होश में लाया... उसके होश में आते ही... ही ही ही... टुट पड़ा.... वह मेरे सीने के इस हिस्से को (अपने दाएं हाथ से बाएं सीने पर एक जगह फेरते हुए) फिरसे काट लिया था.... पर इस बार... मैं नहीं रुका... अपनी अंदर की को शांत किया... तब उठा... पर तब तक... उसकी हालत बहुत खराब हो चुकी थी.... पर मेरे अंदर का पुरुष को.... असीम तृप्ति मिल चुका था.... पहली बार... मुझे जीत का एहसास हुआ.... हस्पताल से वापस आने के बाद.... मैंने उसे अपने.. नीचे लाकर हर तरह से रौंदा... उसकी चीख, उसके दर्द... मुझे बहुत खुशी देती थी... पर धीरे धीरे... वह बेज़ान हो गई....किसी पुतले की तरह... उसे कोई एहसास नहीं हो रहा था... वह ना चीखती थी... ना चिल्लाती थी... बस बेज़ान सी नीचे पड़ी रहती थी... मुझे उससे कोई मतलब नहीं था.... पर वह.... पेट से नहीं हो रही थी... यह मेरी बहुत बड़ी हार थी.... मुझे मेरे मर्दानगी पर... शक़ करने पर... मज़बूर करदिया.... यह और एक हार थी मेरे लिए... जब डॉक्टर ने बताया... की वह बाँझ है.... तो यह मेरे लिए... बहुत ही तकलीफ देह थी.... मैं अपने... बाप दादा के वंशानुगत रिवाज को... हार गया था... मैं.. मैं अगर उसे मार देता... तो यह उसकी जीत होती... इसलिए... उसे चुड़ैल बता कर नंगी... राजगड़ के गालियों में दौड़ाया... उस पर पत्थर फीकवाया.... इस बार उसके चेहरे पर दर्द दिखा.... मुझे खुशी महसुस हुई.... पर ज्यादा देर के लिए नहीं.... विश्व जिसे मैंने भुला दिया था... वह बीच में आ गया.... मैं इस बार फ़िर हार गया था.... रंग महल से... कभी कोई औरत निकली ही नहीं थी... अगर निकली भी थी... तो लाश बनकर... पर इसबार वैदेही.... जिंदा थी... फ़िर उसने मुझे मेरे हारने का... एहसास दिलाया.... पर एक बात तो मालुम हुआ... विश्व उसकी दुखती रग है.... बस आगे की कहानी आप जानते हैं... (भैरव वही ग्लास उठाता है) छोटे राजा जी.... अगर हमने वैदेही पर ताकत... आजमाया होता... तो (ग्लास पर पकड़ मजबूत करते हुए) एक ही थप्पड़ से ही... मर गई होती...(कड़ की आवाज़ आती है) हम उसे तकलीफ में देखना... चाहते थे... उसके जज्बातों को कुरेदा.... एहसासों को.. नोचा...(कड़च) उसे तकलीफ़ पहुंचाई.... जो मुझे असीम खुशी दे गई..... (कड़चटाक की आवाज़ सुनाई देती है और ग्लास टुट कर भैरव सिंह के हाथ से गिरती है)
Awesome Updateeee
 

Kala Nag

Mr. X
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Story ka plot unique hai.... Updates bhi regular aate hai.... Storyline bhi badhiya thi par jab se flashback chalu hua hai badi boring ho gayi hai.... Present ko pahle padh lene se past ka andaja readers pahle hi laga lete hai usse phir se lagatar itna detail mein padhna bore kar deta hai .... Aur iss baat ka andaja aise laga sakte hai ki pure flashback ke updates mein kuch baate hata do jaise ki
1) Pratibha ne kaise saza dilai vishwa ko (vaise ye baat bhi keval 2 line ki hai ki Pratibha public lawer appointed thi aur sacchai usse baad mein pata chali)
2) Vishwa aur Vaidehi ka relation (Vo bhi thoda streched hai)
Aur bhi aisi ek do kuch information...
Baki pura flashback skip kar sakte hai, still story ki understanding pe koi farak nhi padega...
Court room ka discussion, ESS ka establishment, Pratibha ki family ka family humour time ye sab abhi tak ki storyline ko dekh ke lagta nhi ki final story plot mein kuch contribute karte hai..... Jab se flashback chalu hua hai story aage hi nhi badh rahi hai... Bas past ki information pe information mil rahi hai....
Even if itna detailed past jaroori hai to past and present dono parallel chale taki kuch aage badhti si lage story...
Ye ek suggestion hai baki writer ki apni Marzi
आपका इल्ज़ाम सर आँखों पर
असल में, मैं कोई लेखक नहीं हूँ पर लेखन आजमा जरूर रहा हूँ...
मित्र जब कहानी शुरू हुई थी तब मुझे भी नहीं मालुम था मैं यहाँ तक पहुंच पाउंगा l पर पहुंच गया
मित्र यह अपडेट शायद अनावश्यक था पर मुझे एक कड़ी चाहिए थी इसलिए इसे यूँ आगे बढ़ाया है l अब आगे कहानी भागेगी l मैं भगा सकता था l पर कोर्ट रूम ड्रामा के लिए कुछ भाइयों ने आग्रह किया था, इसलिए वह मैंने खिंचा था l अब देखता हूँ, मैं क्या कर सकता हूँ
 

sunoanuj

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Bahut hi behtarin update… keshatarpal ka dard samne aaya… uski nafrat ka matlab saamne aaya …
 
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