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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

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👉चालीसवां अपडेट
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अगली सुबह
अपने कमरे में विक्रम एक फ़ोल्डींग सोफ़े पर खुद को फैला कर सर को ऊपर कर बैठा छत की ओर घूर रहा है l सामने टी पोय पर उसका फोन बजने लगता है l वह आगे झुक कर फोन उठाता है l

विक्रम - हैलो...
महांती - सर... मैं यहाँ ऑफिस में हूँ... सब पास खड़े हो कर देख रेख कर रहा हूँ.... सर दो पहर दो बजे तक आपको आ जाना है...
विक्रम - ठीक है... महांती... मैं पहुंच जाऊँगा....

इतना कह कर विक्रम अपना फोन वापस टी पोय पर रख देता है l दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आती है l विक्रम उस तरफ देखता है l वीर एक थ्री पीस शूट में अंदर आता है l

वीर - यह क्या... युवराज जी.... आप अभीतक तैयार ही नहीं हुए...
विक्रम - सिर्फ़ शूट ही पहनना है...
वीर - हाँ... पर आप... होस्ट हो.... आपको महांती के साथ होना चाहिए....
विक्रम सोफ़े का लिवर दबाता है तो सोफा सिकुड़ कर सीधा हो जाता है l विक्रम अपना हाथ बढ़ाता है तो वीर उसके हाथ पकड़ लेता है l विक्रम वीर के पकड़ के सहारे अपनी चेयर से उठता है l फ़िर कबॉड खोल कर अपना शूट निकालता है और पहनने लगता है l

तभी फोन फ़िर से बजने लगता है l वीर इस बार देखता है l फोन पर मार लकी चार्म डिस्प्ले हो रहा है l

विक्रम - किस का फोन है.... राजकुमार
वीर - आपके... बेताल का...
विक्रम - क्या.... बेताल...
वीर - जी... वही... जिनके सवालों के.. ज़वाब ढूँढते फिरते हैं...
विक्रम - ओ...
वीर - हाँ... यह बार और है... दंतकथाओं में... बेताल... पीठ पर सवार था.... यहाँ आपके दिलोदिमाग पर सवार है..
विक्रम - ठीक है... बजने दीजिए... जब बजते बजते कट जाए... तब फोन... म्यूट कर दीजिए...

वीर फोन उठाता है और रिंग बजना बंद होते ही,फोन का साइलेंस मोड़ ऑन कर देता है l फिर दोनों बाहर निकल कर गाड़ी में बैठते हैं l विक्रम गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा देता है l गाड़ी के अंदर

वीर - लगता है आपका मुड़... ठीक नहीं है...
विक्रम - इस बारे में... हम और बातेँ ना करें तो बेहतर है....
वीर - ठीक है.. हम उस बारे में... बात नहीं करते... पर क्या... हम ESS के बारे में... बात कर सकते हैं..
विक्रम - ESS के बारे में.... क्या बात करनी है...
वीर - हमें .... आप ESS में... एंगेज कर दीजिए... ताकि... हम बिजी रह सकें.... वरना... कुछ ही दिनों में... हम पागल ही जायेंगे....
विक्रम - ठीक है.... आप... क्या बनना पसंद करेंगे....
वीर - एक ऐसी पदवी... जहां से हम.... बातेँ कर सकें... अपने अंदर की भड़ास निकाल सकें... जरूरत पड़ने पर... किसीको... जी भर के गाली दे सकें....

विक्रम वीर की बातेँ सुनकर हँस देता है l यूँही बात करते करते फंक्शन हॉल की ओर बढ़ जाते हैं

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सेंट्रल जैल
जैल की कोठरी में विश्व अपने बिस्तर पर आलती पालती मार ऐसे बैठा हुआ है जैसे कोई योगी ध्यान में बैठा हुआ है और बीते शाम को गेम हॉल में जो हुआ उसके बारे में सोच रहा है l

-चार चार मुस्टंडे सांढ जैसे देह वाले, एक साधारण सा दिखने वाला आदमी डैनी भाई से पीटे, वह भी बुरी तरह l डैनी भाई उन लोगों को उठा उठा कर पटक पटक कर मार रहे थे l ऐसे तो किस्से कहानियों में सुना करता था या फिर फ़िल्मों में देखा करता था बिल्कुल वैसे ही l मुझे तो यकीन ही नहीं हो पा रहा है l डैनी भाई में कितना आत्मविश्वास था, तभी तो अपने कहाँ होने की खबर उन लोगों तक पहुँचाया, जो लोग इस जैल में सिर्फ़ डैनी भाई को मारने के लिए ही आए थे पर हुआ उल्टा डैनी भाई ने उन चार बंदों की हालत बहुत खराब कर दिया l मैंने तो बेकार में ही डैनी भाई के दुश्मनों से पंगा ले लिया l

विश्व इन्हीं ख़यालों में अपने आप में खोया हुआ है कि सेल के दरवाजे पर ठक ठक की आवाज़ आती है l विश्व का ध्यान टूटता है, देखता है वहाँ पर एक संत्री खड़ा है l

संत्री - क्यूँ भई... किन ख़यालों में... खोए हुए हो.... लंच का हुटर बज गया है... और तुम अभी भी... होश में नहीं हो...
विश्व - (थोड़ा हड बड़ा जाता है) क्या... लंच का समय हो गया....
संत्री - (सेल का दरवाजा खोलते हुए) जी हाँ... आज तुम... काम पर गए नहीं.... रोज तो कुछ ना कुछ करने की.. जिद करते रहते थे.... पर आज अपनी मांद से निकले ही नहीं....
विश्व - वह... मेरा तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रहा है... इसलिए... वैसे कल यहाँ कुछ मार पीट हुआ था ना...
संत्री - अरे हाँ... वह जो चार नए.... तेलुगु वाले थे ना.... उनको ऐसा मार पड़ा है... के साले अब हिंदी भी बोल रहे हैं... पहले सिर्फ तेलुगु में पका रहे थे.... अब हिंदी में बोल कर.... मदत मांग रहे हैं...
विश्व - अच्छा.... कुछ पता चला.... कौन किया है....
संत्री - श् श् श् श्.... मालुम तो है.... अगर तुमको आगे पता चले.... तो चुप ही रहना...
विश्व - क्यूँ...
संत्री - देख... हमे... यहाँ रहना है... अपने परिवार और बाल बच्चों के साथ.... किसीके लफड़े में... घुसना नहीं है.... और उनके टार्गेट नहीं बनना है.... और फिर कह रहा हूँ.... तुमको मालुम भी पड़े... तो इग्नोर करीयो....
विश्व - ठीक है....
संत्री - तो खाने के लिए.. जाओगे या नहीं....
विश्व - जी जरूर... जरूर... जाऊँगा...

कह कर विश्व अपने सेल से निकलता है और संत्री के साथ जल्दी जल्दी डायनिंग हॉल के तरफ जाता है l रास्ते में

विश्व - अच्छा... उन चारों का क्या हुआ...
संत्री - होना क्या था..... कैपिटल हॉस्पिटल को ले जाया गया है उन्हें....
विश्व - उनके ठीक होने के बाद... क्या वे लोग यहाँ पर आयेंगे....
संत्री - अरे नहीं.... उनका वकील आज सुबह ही..... अलग जगह शिफ्टिंग के लिए...
विश्व - क्यूँ... उन लोगों ने... नहीं बताया.... के उनके साथ किसने यह सब किया....
संत्री - उन्होंने कुछ नहीं बताया.... तुमने भी तो... किसीका कुछ फाड़ा था.... उसने कुछ बताया था क्या... उल्टा अपना पिछवाड़ा बचाने... अपने वकील के जरिए.... अलग जगह पर शिफ्ट हो गया... और.... भाई तुम अपने काम से.... मतलब रखो... यह पुलिस वाली इंक्वायरी बंद करो.... जाओ जाकर खाना खालो...

संत्री इतना कह कर वहाँ से चला जाता है l विश्व डायनिंग हॉल में पहुँच कर अपना हाथ मुहँ साफ कर लेने के बाद अपनी थाली लेकर लाइन में खड़ा हो जाता है और चोर नजरों से डैनी को ढूंढता है l पर उसे डैनी नहीं दिखता l थाली में खाना ले कर अपना निर्धारित टेबल पर बैठ जाता है l

-क्यूँ हीरो... आ गया...
विश्व - (अपनी नजरें उठाए बगैर) जी...
डैनी - (विश्व के पास बैठते हुए) मुझे ही ढूंढ रहा था ना...
विश्व - जी...
डैनी - क्यूँ...
विश्व - (अब सीधे डैनी को देखते हुए) वह मैं... अब आपके बारे में... जानना चाहता हूँ...
डैनी - अच्छा... वह क्यूँ...
विश्व - आप ही ने कल कहा था... की आपके बारे में जानने का वक्त आ गया है... इसलिए...
डैनी - (मुस्कराते हुए) ठीक है... हीरो... बस इतना जान ले... मैं कोई अच्छा आदमी तो... बिल्कुल नहीं हूँ...
विश्व - अच्छा या बुरा... मुझे इससे कोई मतलब नहीं है.... मुझे बस आपके बारे में... जानना है...
डैनी - ह्म्म्म्म... ठीक है... पहले खाना खतम कर ले... फिर तु अपना काम निपटा ले... फ़िर... लाइब्रेरी में बैठते हैं....
विश्व - जी....

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विक्रम की गाड़ी सेरेमनी हॉल के पार्किंग में पहुंच जाती है l गाड़ी से उतर कर दोनों भाई हॉल में आकर देखते हैं l ज्यादातर गेस्ट आ चुके हैं l दीवारों पर पोस्टर में मुख्य अतिथि का नाम बीरजा कींकर सामंतराय लिखा हुआ है l *** पार्टी के अध्यक्ष हैं l

विक्रम - महांती यह... महाशय कौन हैं...
महांती - क्या... युवराज जी... यह हमारे रूलिंग पार्टी *** के अध्यक्ष हैं... बीरजा कींकर सामंतराय जी हैं.... मुख्य मंत्री जी के.... अनुपस्थिति में... यह हमारे आज के मुख्य अतिथि हैं.... और यह अपने परिवार के साथ आ रहे हैं.....
विक्रम - अच्छा.... एक्चुएली कितने... गेस्ट... इनवाइटेड हैं... और कौन कौन हैं...
महांती - जी.. मीडिया वाले... कॉर्पोरेट वाले... पेज थ्री वाले और कुछ इंडस्ट्रीयलीस्ट भी.... यही करीब करीब... दो सौ लोग होंगे.... सर सिर्फ़ वही लोग आए हैं.... जो आजके डेमनस्ट्रेशन देखने के बाद.... आगे चलकर हमसे सर्विस लेंगे....
विक्रम - गुड.... और... (मुस्करा कर) अपने राइवल ग्रुप को...
महांती - (मुस्कराते हुए) जी बिल्कुल... रॉय ग्रुप को भी बुलाया है.... आखिर आधे से ज्यादा गार्ड्स... उनको छोड़ हमे... जॉइन कर चुके हैं...
विक्रम - शाबाश.... महांती....

तभी महांती की फोन बजने लगती है l महांती फोन उठा कर बात करता है फ़िर विक्रम से कहता है
- सर... चीफ गेस्ट अभी थोड़ी देर में पहुंच जाएंगे.... हमे उनके स्वागत के लिए जाना चाहिए....
विक्रम - हाँ जाओ....
महांती - क्या.... सर.... मैंने कहा हम... प्लीज
विक्रम - ह्म्म्म्म... ओके महांती... पर हमे इन सब की आदत नहीं है...
महांती - सर आप सिर्फ़ खड़े रहें.... और मैं जब परिचय करवाऊँ... आप बस उनसे हाथ मिलाएँ...
विक्रम - ठीक है चलो....

विक्रम और वीर महांती के साथ हॉल के गेट के बाहर खड़े हो जाते हैं l कमांडोज से घिरे एक गाड़ी आ कर रुकती है l एक बीरजा कींकर सामंतराय उतरते हैं l महांती उनसे विक्रम का परिचय करवाता है l विक्रम एक फ्लावर बॉके सामंतराय को देता है l सामंतराय जी बॉके लेकर विक्रम से हाथ मिलाते हैं l अचानक विक्रम की दिल की धड़कने बढ़ने लगती है l तभी सामंतराय के परिवार के बाकी लोग उतरते हैं, उनकी पत्नी और बेटी l विक्रम उतरने वालों में उनकी बेटी को देख कर हक्का बक्का रह जाता है l
विक्रम - (अपने मन में) शु श् श्... शुभ्रा... मर गए...

शुभ्रा विक्रम को आँखे सिकुड़ कर खा जाने वाली नजर से घूर रही है l उसकी नथुनों से निकल ने वाली साँसों की ताप विक्रम को साफ महसुस हो रही है l

विक्रम - (बहुत धीरे से) मर गए....

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विश्व करीब ढाई बजे लाइब्रेरी में आता है l वहाँ डैनी को कोई पेपर पढ़ते हुआ पता है l विश्व के पहुंचते ही डैनी वह पेपर रख देता है l विश्व उसके पास पहुंच गया l विश्व को देखते ही

डैनी - आओ विश्व आओ... (विश्व जा कर डैनी के सामने वाली कुर्सी पर बैठ जाता है) ह्म्म्म्म... बोलो... अब तक तो तुमने मेरे बारे में... कुछ ना कुछ पता लगा लिया होगा...
विश्व - कुछ नहीं... पर रंगा को याद करने पर... मालूम पड़ा... यहाँ... आपके बारे में... दुसरे कैदी बहुत कुछ... जानते हैं... सिर्फ़... मुझे छोड़ कर... यहाँ कोई किसीसे भी... पंगा लेले... मगर आपसे कोई नहीं पंगा लेता...
डैनी - और यह सब समझने में... तुझे... बहुत टाइम लग गया....
विश्व - हाँ...
डैनी - तो विश्व... अब आते हैं... मेरी इंट्रोडक्सन पर.... मेरा नाम है... डैनियल फ्रेडरिक पॉल... छत्तीस परगना बंगाल से हूँ.... पिता एक पुलिस ऑफिसर थे और माता गृहिणी l हम घर में तीन भाई बहन थे l मैं मंझला मेरे ऊपर मेरा बड़ा भाई था और मुझसे छोटी एक बहन थी l मेरी बचपन में ही कुछ वाक्यात ऐसे हुए, जो मुझे जुर्म की राह में चलने के लिए, प्रेरित किया l एक दिन स्कुल छुट्टी थी तो मेरी माँ ने मुझे सब्जी लाने के लिए बाजार भेजा l बाजार में मैं जब सब्जी ख़रीद रहा था, तब मैंने देखा एक गुंडा सा दिखने वाला आदमी, एक चाकू निकाल कर चौक के बीचों-बीच एक टेबल पर गाड़ दिया और टेबल पर एक बक्सा रख दिया l उस बाजार में जितने भी लोग थे सभी कुछ कुछ पैसे निकाल कर उस बक्से में डाल रहे थे l सबके देखा देखी मैंने भी कुछ पैसे डाल कर घर चला गया l माँ ने जब बाकी के पैसों की बात पुछा, तो मैंने बाजार में जो हुआ सब बता दिया l माँ सब सुन कर चुप हो गई फिर माँ ने खाना बनाया और टिफिन में पैक कर थाने में पिताजी को देने को बोला l मैं टिफिन ले कर थाने गया l थाने में पहुंच कर देखा एक कोने में सारे पुलिस वाले लाइन हाजिरी में खड़े हुए हैं और वही गुंडा बड़े ऑफिसर की कुर्सी पर बैठा हुआ था और पुलिस वाले सब उसकी जी हजूरी कर रहे थे l फ़िर कुछ देर बाद हमारे इलाके का नेता आया और गुंडे के लिए पुलिस वालों की क्लास लिया और गुंडे के कंधे पर हाथ रख कर उसे अपने साथ अपनी गाड़ी में बिठा कर ले गया l वहीँ मालुम हुआ उस गुंडे का नाम सॉपन जॉडर था l सॉपन जॉडर वाली घटना ने मुझे इस तरह प्रभावित किया के आज मैं यहाँ तुम्हारे सामने ऐसे बैठा हुआ हूँ l
हमारे क्लास में एक लड़का हुआ करता था l हमारे क्लास में सीनियर था l क्यूंकि तीन सालों से फैल हो कर वहीँ पर जमा हुआ था l उससे सभी डरते थे l मैं भी l पर उस दिन घटना के बाद मैं थोड़ा बदल गया था l एक दिन क्लास में वह लड़का मेरी सीट पर बैठ कर मुझ पर धौंस झाड़ा और एक धक्का दिया l मैं गिर गया l मेरे स्कुल बैग से कंपस बॉक्स भी छिटक कर गिर गया l मैंने उस लड़के को गौर से देखा वह लड़का सच में बहुत तगड़ा था l पर मैंने उस दिन कुछ और करने का फैसला किया l मैं अपने कंपस बॉक्स से राउंडर निकाल कर अपने डेस्क पर गाड़ दिया l पहली बार वह लड़का डर गया और मुझे मेरी सीट वापस मिल गई l उस दिन मुझे ज्ञान मिला डर सबको लगता है l बस डराने वाला होना चाहिए l उस दिन और ज्ञान भी मुझे मिला l अगर दुश्मन चुन लिए हो तो उससे सावधान रहना चाहिए l उस दिन जब घर लौट रहा था रास्ते में उस लड़के ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर मेरी खूब धुनाई की l यह बात मुझे चुभ गई, भले ही वह मुझसे तगड़ा था पर उसने अपने दोस्तों के साथ मिलकर मुझे मारा था l मैंने घर में जिद करके कराटे क्लास सीखने लगा l ठीक एक साल बाद उसी लड़के और उसके साथियों को मैंने स्कुल में ही जमकर कुटा l परिणाम यह हुआ कि की प्रिन्सिपल ने पिताजी को बुलाकर मेरी शिकायत कर दी l घर पर पिताजी ने मार मार के बाकी कसर पुरी कर दी l मैं गुस्से में घर छोड़ कर चला गया l इत्तेफ़ाक से उसी गुंडे सॉपन जॉडर की गैंग में शामिल हो गया l फिर जुर्म की दुनिया की गाड़ी में बैठ कर चल निकला, एक ऐसी गाड़ी जिसमें ब्रेक ही नहीं थे l नए नए जवानी का जोश था, खुन में गर्मी बहुत थी और इगो.... इगो to रोम रोम में कूट कूट भरा था l इसीके चलते एक दिन अपने बॉस से नहीं पटा तो अलग हो कर मैंने अपनी गैंग बनाई l अपने एक्सपेरियंस को आधार बना कर सबको ट्रैन्ड किया l जिंदगी ने मुझे इतना दूर ले जा चुकी थी, के पीछे मुड़ कर देखा कोई था ही नहीं l ऐसे में मेरा परिवार मुझे बहुत याद आया l तो उनसे मिलने गया l पर वहीँ मालुम हुआ l सॉपन जॉडर से दुश्मनी के चलते उसने मेरे माँ बाप की हत्या करा दी थी l मेरी करनी कुछ मेरे सामने ऐसे आई l मेरे भाई और मेरी बहन दोनों ने मुझसे रिस्ता नकार दिया l मुझे तो अब हिसाब बराबर करना था इसलिए एक दिन एक जबरदस्त गैंगवार छिड़ गई और उस गैंगवार में मेरे बचपन का आदर्श सॉपन जॉडर मेरे ही हाथों मारा गया l उसके मरते ही उसकी सारी पोलिटिकल बैकअप और सपोर्ट मेरी तरफ शिफ्ट हो गया l मैं पूरे झारखंड, ओडिशा बंगाल और नॉर्थ ईस्ट प्रांत का अनबीटन डॉन बन चुका था l
हाँ अब डॉन तो बन चुका था, पर पता नहीं क्यूँ मुझे मारपीट में बहुत मज़ा आता था l इसलिए मैं अंडरग्राउंड फाइटिंग में हिस्सा लेने लगा....
विश्व - यह अंडरग्राउंड फाइटिंग क्या होता है...
डैनी - एक ऐसा वन टू वन फाइट होता है.... जिसमें कोई रूल नहीं होता.... कोई स्पेशल स्टाइल नहीं होता.... असल में वह मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स बेस्ड फाइट होता है.....
विश्व - ओ...
डैनी - हा हा हा हा हा... समझ गया... तुझे कुछ समझ में नहीं आया.... हा हा हा हा... I
विश्व - फ़िर....
डैनी - अंडर वर्ल्ड डॉन और पोलिटिकल रौडी बन चुका था... और मैं आज के दौर में... एक इंटरस्टेट क्रिमिनल हूँ.... मैं आज ओड़िशा में... इसलिए हूँ... क्यूँ की... बंगाल में... मेरे खिलाफ फाइल खुल गई है.... मैं अपनी बैकअप के लिए पहले से ही चल रही केस में... खुदको अरेस्ट करवाया... अब मैं यहाँ और डेढ़ साल रहने वाला हूँ..... क्यूंकि इतने में.... बंगाल में अगला चुनाव आ जाएगा और सरकार भी बदल जाएगा.... तब मैं यहां से चला जाऊँगा....
विश्व - बंगाल में.... आप तो कह रहे थे... की सारे पोलिटिकल सपोर्ट आपको मिल गया था...
डैनी - राजनीतिक पक्ष के विरुद्ध विपक्ष भी होता है.... और सबसे बड़ी बात.... जिसका ज्ञान.. कुछ महीने पहले हुआ.... राजनीतिक षडयंत्र में.... दिखता कुछ है.... वह करते कुछ हैं.... होता कुछ है और लोग.... समझते कुछ हैं...
विश्व - मतलब....
डैनी - सबसे बड़ा एक्जाम्पल तो तु है....
विश्व - मैं... वह कैसे...
डैनी - तुझे दिखाया कुछ.... उन्होंने किया कुछ.... तेरे साथ हुआ कुछ... और अंजाम में लोगों ने समझा कुछ.... विश्व रूप..... कुछ समझ में आया....
विश्व - (अपना सर हिला कर) हाँ...
डैनी - तुझे... जयंत सर के मौत के बारे में.... क्या महसूस होता है...
विश्व - मैं समझा नहीं....
डैनी - मुझे लगता है.... जयंत सर के साथ.... हुआ कुछ... दिखा कुछ... दिखाया गया कुछ.... और सबने समझा कुछ....
विश्व - हाँ.... उनके खिलाफ़... राजनीतिक षडयंत्र हुआ तो है... इसलिए... उनको दिल का दौरा पड़ा....
डैनी - पता नहीं विश्व... मैं जुर्म की दुनिया से... ताल्लुक रखता हूँ... जुर्म के हर दाव पेच से... वाकिफ़ हूँ.... इसलिए मुझे उनके मौत पर शक है...
विश्व - सच कहूँ तो... शक़ मुझे भी हुआ है... पर मेडिकल रिपोर्ट... में... कार्डीयाक अरेस्ट आया था....
डैनी - ह्म्म्म्म जानता हूँ... पता नहीं... शायद... मैं गलत भी हो सकता हूँ....
विश्व - शायद... पर आप यहाँ.... स्पेशल सेल में... क्यूँ रहते हैं...
डैनी - हाँ... क्यूंकि मैं यहाँ... पोलिटिकल गेस्ट हूँ....
विश्व - शायद इसलिए... आप सबकी खबर रख पाते हैं....
डैनी - इस मामले में... मैं प्रोफेशनल हूँ.... मेरा अपना नेटवर्क है... जब तु आया था... मैंने तेरे बारे में भी... सब कुछ जानकारी इकट्ठा किया जा.... कहीं तु.... मेरे दुश्मन के भेजा... कोई आदमी तो नहीं...
विश्व - ओ.... तो फिर यह मार पीट.... कैसे कर लेते हैं...
डैनी - कहा ना... मैं.. मार्शल आर्ट्स जानता हूँ...
विश्व - हाँ पर... जो आपसे लड़े थे... वह चार लोग भी... मार्शल आर्ट्स जानते थे.... ऐसा मुझे लगा.... पर वह आपके सामने टिक नहीं पाए....
डैनी - अरे वाह... अच्छा ओबजर्व किया है तुने... तो यह भी जान ले.... मेरे सामने... बड़े बड़े... मारकोस कमांडो तक टिक नहीं पाते.... फ़िर यह छछुंदर कैसे टिक जाते....
विश्व - क्या... आप.. कमांडोज से भिड़े हैं....
डैनी - हाँ... तभी तो... मैं इन सब में माहिर हूँ.....
विश्व - अच्छा...
डैनी - तुने... मुझे उनके बारे में... आगाह किया था... इस उपकार के बदले बोल... मैं तेरे लिए क्या कर सकता हूँ... बोल....
विश्व - मैं... ग्रैजुएशन को रेगुलर फॉर्मेट में.... पूरा करना चाहता हूँ.... अगर आप इसमे मेरी मदत कर पाएं तो.....
डैनी - ह्म्म्म्म.... मैं सोचा.... तु... कुछ और मांगेगा....
विश्व - नहीं मुझे अभी सिर्फ़.... ग्रैजुएशन की डिग्री चाहिए....
डैनी - ठीक है.... कल तुझसे... मेरा वकील जयंत मिलने आएगा.... उससे अपना प्रॉब्लम बता देना..... वह... तुम्हारा काम कर देगा....
विश्व - (हैरान हो कर) जयंत सर...
डैनी - नहीं नहीं... यह जयंत कुमार राउत नहीं है... यह मेरा अपना वकील है... जयंत चौधरी....
विश्व - ओ... अच्छा...

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सारे गेस्ट मुख्य अतिथि भी अपने भाषण में विक्रम के ESS को स्टार्टअप से तुलना करते हुए विक्रम की प्रशंसा कर रहे हैं l विक्रम चोर नजर से नीचे के पहली पंक्ति में बैठे लोगों के बीच बैठी शुभ्रा को देख रहा है l शुभ्रा आने के बाद से ही गुस्से भरी नजर से विक्रम को देखे जा रही है l विक्रम इधर उधर देखता है और मंच के पीछे की ओर चला जाता है और एक सुकून भरा सांस लेता है l
विक्रम - (एक गहरी सांस लेते हुए) चलो बच गए...(तभी पीछे से आवाज़ आती है)

- किससे...
विक्रम - (हड़बड़ाते हुए) क्क कौन... (शुभ्रा को देख कर) ओह्ह... आप...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म तो... किससे बच गए....
विक्रम - कक्क किसी से नहीं....
शुभ्रा - झूठ... झूठ बोलते हुए... शर्म नहीं आती...
विक्रम - मम्म कहाँ.. कक्क क्या झूठ बोला है...
शुभ्रा - आप हम से भाग रहे थे ना....
विक्रम - हाँ... न... न.. नहीं...
शुभ्रा - क्या.. हम इतने बुरे हैं....

विक्रम क्या कहे कुछ समझ नहीं पा रहा है l फ़िर भी शुभ्रा से नजरें मिलाकर

विक्रम - नहीं आप नहीं... हम बुरे हैं...

शुभ्रा अपने दोनों हाथों को मोड़ कर दोनों कुहनियों में फंसा कर विक्रम को देखती है l

शुभ्रा - ओ... तो इसलिए... फोन नंबर पूछे.... फ़िर... चैटिंग की... अब जब चैटिंग खतम हो गई... मतलब निकल गया.... तो दोस्ती खतम.... (विक्रम कुछ नहीं कहता है, सर झुका कर खड़ा रहता है) मम्मी बिलकुल सही कहती हैं... मूँछ वालों पर... भरोसा करना ही नहीं चाहिए....
विक्रम - (हैरानी से) क्या... इसमे मूँछ कहाँ से आ गई...
शुभ्रा - मेरे पापा के मूँछ है... मम्मी उन पर बिल्कुल भरोसा नहीं करती है... और मुझे समझाया भी था... पर बेवक़ूफ़ जो ठहरी... बेवकूफी आख़िर कर ही ली....
विक्रम - मूंछो से भरोसे क्या संबंध....
शुभ्रा - आज कल मूँछ मुण्डों का दौर है.... जहां देखो मूछ मुंडे ही घुम रहे हैं... उस दौर में मुझे... एक बुरा मानस दिखता है.... तलवार की धार जैसी मूँछों वाला... सोचा बगुलों के बीच में... कोई हंस की तरह.. भरोसा क्यूँ ना किया जाए... आज पता चला... राजवंशीयों के ठाठ ही मूछें होती है.... बेकार में इतने दिन... भरोसे के नाम पर... वेस्ट हो गया....

विक्रम की हँसी निकल जाती है l फिर ख़ुद को सम्भाल कर शुभ्रा से

विक्रम - पर आप तो... हमारे इस प्रोग्राम में आने से मना कर दिया था... फ़िर आए कैसे....
शुभ्रा - आपने बताया कहाँ था.... प्रोग्राम के बारे में... आपने तो सस्पेंस बना रखा था... फ़िर भी पापा से पूछा भी था.... तो उन्होंने मना कर दिया.... पर देखिए ना... भगवान ने हमें आपके प्रोग्राम में आख़िर पहुंचा ही दिया... (थोड़ा मुहँ बना कर) आप इसलिए हमसे नाराज है ना...

शुभ्रा के ऐसे कहने पर विक्रम पूरी तरह से पिघल जाता है l

विक्रम - नहीं नहीं... ऐसी कोई बात नहीं है... हम नाराज बिलकुल नहीं हैं...
शुभ्रा - हाँ आखिर हम प्रजा जो ठहरे आपके... युवराज जी... (अपने गालों को पिचका कर छेड़ते हुए, कहती है )
विक्रम - वैसे आपको कब मालुम हुआ.... हम राजवंशी हैं....
शुभ्रा - अभी यहाँ पहुंच कर.... वैसे एक बात पूछें....
विक्रम - जी एक नहीं... सौ सवाल कीजिए.... पर पहेली मत पूछिए....
शुभ्रा - (अपनी आँखे नचा कर, एक शरारत भरी मुस्कान के साथ) क्यूँ... वह क्यूँ भला...
विक्रम - हमारे छोटे भाई आपको... बेताल कह रहे थे....
शुभ्रा - (खिलखिला कर हँसने लगती है) वह में पूछ रही थी (अचानक सिरीयस हो कर) कहीं ऐसा तो नहीं.... के आप राजवंशी सिर्फ... राजवंशीयों से ही दोस्ती रखते हैं.... गैर राजवंशीयों से नहीं....
विक्रम - अरे नहीं नहीं... ऐसी... बात नहीं... अच्छा... खाने के स्टॉल पर चलें... अभी तो कोई आने से रहा...
शुभ्रा - जी... युवराज जी...
विक्रम - प्लीज.... कम से कम... आप तो हमें... युवराज ना कहें...
शुभ्रा - (मासूमियत से) तो हम आपसे क्या कहें...
विक्रम - कुछ भी... दोस्त हैं.... कुछ ऐसा... जो एक खास दोस्त... ही बुलाए....
शुभ्रा - अच्छा... ठीक है... चलिए... सोचते हैं...

दोनों खाने के लिए बने स्टॉल की ओर जाते हैं l कुछ गार्ड्स वहाँ दो कुर्सी डाल देते हैं l यह दोनों वहाँ पर बैठ जाते हैं l

शुभ्रा - ओह... ओ.. क्या बात है... युवराज और उनके गेस्ट को... रॉयल ट्रीटमेंट....
विक्रम - ओह... कॉम ऑन....

शुभ्रा खिलखिला कर हँस देती है l शुभ्रा की हँसी देख कर विक्रम खो सा जाता है l

विक्रम - क्या लेंगी...
शुभ्रा - फ़िलहाल... अगर कॉफी मिल जाए तो...
विक्रम - (किसी को इशारा करता है) आप को कॉफी इतना पसंद है...
शुभ्रा - ऐसी बात नहीं है... आपको कॉफी डे... लिखा दिख जाता है... पर टी डे... कहीं नहीं दिखता है... है ना.... इसलिए कॉफी पसंद है.... (विक्रम उसे घूर कर देखता है) अच्छा बाबा... असल में... कॉफी ठंडा पिया जा सकता है.... गरम पिया जा सकता है.... आइसक्रीम के साथ पिया जा सकता है.... पता नहीं... क्या क्या किया जा सकता है.... पर चाय... बेड टी तक ही... ठीक लगती है...
विक्रम - बाप रे इतनी गहरी बात.... हमे नहीं मालूम था....
शुभ्रा - कोई बात नहीं... आपको हमारी संगत में... लोक ज्ञान मिलता रहेगा....

इतने में कॉफी आ जाती है l दोनों चुस्कियां भरने लगते हैं l

विक्रम - अच्छा... (थोड़ा गम्भीर हो कर) आपने कहा था.... आप जीवन में... कुछ करना चाहती हैं.... कोई गोल है क्या...
शुभ्रा - (विक्रम को देखे बगैर) है नहीं था... डॉक्टर बनना चाहती थी.... पर पापा को मंजूर नहीं था....
विक्रम - क्यूँ...
शुभ्रा - वह मुझे... एक ही कंडीशन में पढ़ाना चाहते थे.... अगर मैं उनके दोस्त के बेटे से शादी कर लूँ तो....
विक्रम - यह कैसा... कंडीशन है....
शुभ्रा - अब है तो है... क्या कर सकते हैं....
विक्रम - क्या आप मेडिकल पढ़ना चाहती हैं....
शुभ्रा - नहीं (बेफिक्री से कॉफी पीते हुए) अब अगर पापा शादी कराना चाहते हैं... तो कर लेंगे...
विक्रम - क्यूँ... अब आपका वह... कुछ करने की ख्वाहिश थी... उसका... क्या...
शुभ्रा - हाँ... पर अब कर ही क्या सकते हैं.... वैसे भी... एक साल तो बर्बाद हो चुका है... इसके लिए... मुझे अगले साल तक इंतजार करना होगा l अभी तो... साल का आधा सेशन भी खतम हो चुका है.... (कह कर शुभ्रा कॉफी खतम करती है, और बड़ी चाव से आँखे मूँद कर होठों पर बने बुलबुलों की धार पर हॉट फेरती है l उसकी इस अदा पर विक्रम की आह निकल जाती है l शुभ्रा अपनी आँखे झट से खोल देती है और विक्रम की ओर देखती है l विक्रम सकपका जाता है और अपना मुहँ दुसरी तरफ कर लेता है
Nice and beautiful update....
 

Kala Nag

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Nice and beautiful update....
धन्यबाद मेरे भाई बहुत बहुत धन्यबाद
 
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👉चालीसवां अपडेट
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अगली सुबह
अपने कमरे में विक्रम एक फ़ोल्डींग सोफ़े पर खुद को फैला कर सर को ऊपर कर बैठा छत की ओर घूर रहा है l सामने टी पोय पर उसका फोन बजने लगता है l वह आगे झुक कर फोन उठाता है l

विक्रम - हैलो...
महांती - सर... मैं यहाँ ऑफिस में हूँ... सब पास खड़े हो कर देख रेख कर रहा हूँ.... सर दो पहर दो बजे तक आपको आ जाना है...
विक्रम - ठीक है... महांती... मैं पहुंच जाऊँगा....

इतना कह कर विक्रम अपना फोन वापस टी पोय पर रख देता है l दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आती है l विक्रम उस तरफ देखता है l वीर एक थ्री पीस शूट में अंदर आता है l

वीर - यह क्या... युवराज जी.... आप अभीतक तैयार ही नहीं हुए...
विक्रम - सिर्फ़ शूट ही पहनना है...
वीर - हाँ... पर आप... होस्ट हो.... आपको महांती के साथ होना चाहिए....

विक्रम सोफ़े का लिवर दबाता है तो सोफा सिकुड़ कर सीधा हो जाता है l विक्रम अपना हाथ बढ़ाता है तो वीर उसके हाथ पकड़ लेता है l विक्रम वीर के पकड़ के सहारे अपनी चेयर से उठता है l फ़िर कबॉड खोल कर अपना शूट निकालता है और पहनने लगता है l

तभी फोन फ़िर से बजने लगता है l वीर इस बार देखता है l फोन पर मार लकी चार्म डिस्प्ले हो रहा है l

विक्रम - किस का फोन है.... राजकुमार
वीर - आपके... बेताल का...
विक्रम - क्या.... बेताल...
वीर - जी... वही... जिनके सवालों के.. ज़वाब ढूँढते फिरते हैं...
विक्रम - ओ...
वीर - हाँ... यह बात और है... दंतकथाओं में... बेताल... पीठ पर सवार था.... यहाँ आपके दिलोदिमाग पर सवार है..
विक्रम - ठीक है... बजने दीजिए... जब बजते बजते कट जाए... तब फोन... म्यूट कर दीजिए...

वीर फोन उठाता है और रिंग बजना बंद होते ही,फोन का साइलेंस मोड़ ऑन कर देता है l फिर दोनों बाहर निकल कर गाड़ी में बैठते हैं l विक्रम गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा देता है l गाड़ी के अंदर

वीर - लगता है आपका मुड़... ठीक नहीं है...
विक्रम - इस बारे में... हम और बातेँ ना करें तो बेहतर है....
वीर - ठीक है.. हम उस बारे में... बात नहीं करते... पर क्या... हम ESS के बारे में... बात कर सकते हैं..
विक्रम - ESS के बारे में.... क्या बात करनी है...
वीर - हमें .... आप ESS में... एंगेज कर दीजिए... ताकि... हम बिजी रह सकें.... वरना... कुछ ही दिनों में... हम पागल ही जायेंगे....
विक्रम - ठीक है.... आप... क्या बनना पसंद करेंगे....
वीर - एक ऐसी पदवी... जहां से हम.... बातेँ कर सकें... अपने अंदर की भड़ास निकाल सकें... जरूरत पड़ने पर... किसीको... जी भर के गाली दे सकें....

विक्रम वीर की बातेँ सुनकर हँस देता है l यूँही बात करते करते फंक्शन हॉल की ओर बढ़ जाते हैं

_____×_____×_____×_____×_____×_____×


सेंट्रल जैल
जैल की कोठरी में विश्व अपने बिस्तर पर आलती पालती मार ऐसे बैठा हुआ है जैसे कोई योगी ध्यान में बैठा हुआ है और बीते शाम को गेम हॉल में जो हुआ उसके बारे में सोच रहा है l

-चार चार मुस्टंडे सांढ जैसे देह वाले, एक साधारण सा दिखने वाला आदमी डैनी भाई से पीटे, वह भी बुरी तरह l डैनी भाई उन लोगों को उठा उठा कर पटक पटक कर मार रहे थे l ऐसे तो किस्से कहानियों में सुना करता था या फिर फ़िल्मों में देखा करता था बिल्कुल वैसे ही l मुझे तो यकीन ही नहीं हो पा रहा है l डैनी भाई में कितना आत्मविश्वास था, तभी तो अपने कहाँ होने की खबर उन लोगों तक पहुँचाया, जो लोग इस जैल में सिर्फ़ डैनी भाई को मारने के लिए ही आए थे पर हुआ उल्टा डैनी भाई ने उन चार बंदों की हालत बहुत खराब कर दिया l मैंने तो बेकार में ही डैनी भाई के दुश्मनों से पंगा ले लिया l

विश्व इन्हीं ख़यालों में अपने आप में खोया हुआ है कि सेल के दरवाजे पर ठक ठक की आवाज़ आती है l विश्व का ध्यान टूटता है, देखता है वहाँ पर एक संत्री खड़ा है l

संत्री - क्यूँ भई... किन ख़यालों में... खोए हुए हो.... लंच का हुटर बज गया है... और तुम अभी भी... होश में नहीं हो...
विश्व - (थोड़ा हड बड़ा जाता है) क्या... लंच का समय हो गया....
संत्री - (सेल का दरवाजा खोलते हुए) जी हाँ... आज तुम... काम पर गए नहीं.... रोज तो कुछ ना कुछ करने की.. जिद करते रहते थे.... पर आज अपनी मांद से निकले ही नहीं....
विश्व - वह... मेरा तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रहा है... इसलिए... वैसे कल यहाँ कुछ मार पीट हुआ था ना...
संत्री - अरे हाँ... वह जो चार नए.... तेलुगु वाले थे ना.... उनको ऐसा मार पड़ा है... के साले अब हिंदी भी बोल रहे हैं... पहले सिर्फ तेलुगु में पका रहे थे.... अब हिंदी में बोल कर.... मदत मांग रहे हैं...
विश्व - अच्छा.... कुछ पता चला.... कौन किया है....
संत्री - श् श् श् श्.... मालुम तो है.... अगर तुमको आगे पता चले.... तो चुप ही रहना...
विश्व - क्यूँ...
संत्री - देख... हमे... यहाँ रहना है... अपने परिवार और बाल बच्चों के साथ.... किसीके लफड़े में... घुसना नहीं है.... और उनके टार्गेट नहीं बनना है.... और फिर कह रहा हूँ.... तुमको मालुम भी पड़े... तो इग्नोर करीयो....
विश्व - ठीक है....
संत्री - तो खाने के लिए.. जाओगे या नहीं....
विश्व - जी जरूर... जरूर... जाऊँगा...

कह कर विश्व अपने सेल से निकलता है और संत्री के साथ जल्दी जल्दी डायनिंग हॉल के तरफ जाता है l रास्ते में

विश्व - अच्छा... उन चारों का क्या हुआ...
संत्री - होना क्या था..... कैपिटल हॉस्पिटल को ले जाया गया है उन्हें....
विश्व - उनके ठीक होने के बाद... क्या वे लोग यहाँ पर आयेंगे....
संत्री - अरे नहीं.... उनका वकील आज सुबह ही..... अलग जगह शिफ्टिंग के लिए... ऑर्डर ले कर पहुंच गया.....
विश्व - क्यूँ... उन लोगों ने... नहीं बताया.... के उनके साथ किसने यह सब किया....
संत्री - उन्होंने कुछ नहीं बताया.... तुमने भी तो... किसीका कुछ फाड़ा था.... उसने कुछ बताया था क्या... उल्टा अपना पिछवाड़ा बचाने... अपने वकील के जरिए.... अलग जगह पर शिफ्ट हो गया... और.... भाई तुम अपने काम से.... मतलब रखो... यह पुलिस वाली इंक्वायरी बंद करो.... जाओ जाकर खाना खालो...

संत्री इतना कह कर वहाँ से चला जाता है l विश्व डायनिंग हॉल में पहुँच कर अपना हाथ मुहँ साफ कर लेने के बाद अपनी थाली लेकर लाइन में खड़ा हो जाता है और चोर नजरों से डैनी को ढूंढता है l पर उसे डैनी नहीं दिखता l थाली में खाना ले कर अपना निर्धारित टेबल पर बैठ जाता है l

-क्यूँ हीरो... आ गया...
विश्व - (अपनी नजरें उठाए बगैर) जी...
डैनी - (विश्व के पास बैठते हुए) मुझे ही ढूंढ रहा था ना...
विश्व - जी...
डैनी - क्यूँ...
विश्व - (अब सीधे डैनी को देखते हुए) वह मैं... अब आपके बारे में... जानना चाहता हूँ...
डैनी - अच्छा... वह क्यूँ...
विश्व - आप ही ने कल कहा था... की आपके बारे में जानने का वक्त आ गया है... इसलिए...
डैनी - (मुस्कराते हुए) ठीक है... हीरो... बस इतना जान ले... मैं कोई अच्छा आदमी तो... बिल्कुल नहीं हूँ...
विश्व - अच्छा या बुरा... मुझे इससे कोई मतलब नहीं है.... मुझे बस आपके बारे में... जानना है...
डैनी - ह्म्म्म्म... ठीक है... पहले खाना खतम कर ले... फिर तु अपना काम निपटा ले... फ़िर... लाइब्रेरी में बैठते हैं....
विश्व - जी....

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विक्रम की गाड़ी सेरेमनी हॉल के पार्किंग में पहुंच जाती है l गाड़ी से उतर कर दोनों भाई हॉल में आकर देखते हैं l ज्यादातर गेस्ट आ चुके हैं l दीवारों पर पोस्टर में मुख्य अतिथि का नाम बीरजा कींकर सामंतराय लिखा हुआ है l *** पार्टी के अध्यक्ष हैं l

विक्रम - महांती यह... महाशय कौन हैं...
महांती - क्या... युवराज जी... यह हमारे रूलिंग पार्टी *** के अध्यक्ष हैं... बीरजा कींकर सामंतराय जी हैं.... मुख्य मंत्री जी के.... अनुपस्थिति में... यह हमारे आज के मुख्य अतिथि हैं.... और यह अपने परिवार के साथ आ रहे हैं.....
विक्रम - अच्छा.... एक्चुएली कितने... गेस्ट... इनवाइटेड हैं... और कौन कौन हैं...
महांती - जी.. मीडिया वाले... कॉर्पोरेट वाले... पेज थ्री वाले और कुछ इंडस्ट्रीयलीस्ट भी.... यही करीब करीब... दो सौ लोग होंगे.... सर सिर्फ़ वही लोग आए हैं.... जो आजके डेमनस्ट्रेशन देखने के बाद.... आगे चलकर हमसे सर्विस लेंगे....
विक्रम - गुड.... और... (मुस्करा कर) अपने राइवल ग्रुप को...
महांती - (मुस्कराते हुए) जी बिल्कुल... रॉय ग्रुप को भी बुलाया है.... आखिर आधे से ज्यादा गार्ड्स... उनको छोड़ हमे... जॉइन कर चुके हैं...
विक्रम - शाबाश.... महांती....

तभी महांती की फोन बजने लगती है l महांती फोन उठा कर बात करता है फ़िर विक्रम से कहता है
- सर... चीफ गेस्ट अभी थोड़ी देर में पहुंच जाएंगे.... हमे उनके स्वागत के लिए जाना चाहिए....
विक्रम - हाँ जाओ....
महांती - क्या.... सर.... मैंने कहा हम... प्लीज
विक्रम - ह्म्म्म्म... ओके महांती... पर हमे इन सब की आदत नहीं है...
महांती - सर आप सिर्फ़ खड़े रहें.... और मैं जब परिचय करवाऊँ... आप बस उनसे हाथ मिलाएँ...
विक्रम - ठीक है चलो....

विक्रम और वीर महांती के साथ हॉल के गेट के बाहर खड़े हो जाते हैं l कमांडोज से घिरे एक गाड़ी आ कर रुकती है l एक बीरजा कींकर सामंतराय उतरते हैं l महांती उनसे विक्रम का परिचय करवाता है l विक्रम एक फ्लावर बॉके सामंतराय को देता है l सामंतराय जी बॉके लेकर विक्रम से हाथ मिलाते हैं l अचानक विक्रम की दिल की धड़कने बढ़ने लगती है l तभी सामंतराय के परिवार के बाकी लोग उतरते हैं, उनकी पत्नी और बेटी l विक्रम उतरने वालों में उनकी बेटी को देख कर हक्का बक्का रह जाता है l
विक्रम - (अपने मन में) शु श् श्... शुभ्रा... मर गए...

शुभ्रा विक्रम को आँखे सिकुड़ कर खा जाने वाली नजर से घूर रही है l उसकी नथुनों से निकल ने वाली साँसों की ताप विक्रम को साफ महसुस हो रही है l

विक्रम - (बहुत धीरे से) मर गए....

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विश्व करीब ढाई बजे लाइब्रेरी में आता है l वहाँ डैनी को कोई पेपर पढ़ते हुआ पता है l विश्व के पहुंचते ही डैनी वह पेपर रख देता है l विश्व उसके पास पहुंच गया l विश्व को देखते ही

डैनी - आओ विश्व आओ... (विश्व जा कर डैनी के सामने वाली कुर्सी पर बैठ जाता है) ह्म्म्म्म... बोलो... अब तक तो तुमने मेरे बारे में... कुछ ना कुछ पता लगा लिया होगा...
विश्व - कुछ नहीं... पर रंगा को याद करने पर... मालूम पड़ा... यहाँ... आपके बारे में... दुसरे कैदी बहुत कुछ... जानते हैं... सिर्फ़... मुझे छोड़ कर... यहाँ कोई किसीसे भी... पंगा लेले... मगर आपसे कोई नहीं पंगा लेता...
डैनी - और यह सब समझने में... तुझे... बहुत टाइम लग गया....
विश्व - हाँ...
डैनी - तो विश्व... अब आते हैं... मेरी इंट्रोडक्सन पर.... मेरा नाम है... डैनियल फ्रेडरिक पॉल... छत्तीस परगना बंगाल से हूँ.... पिता एक पुलिस ऑफिसर थे और माता गृहिणी l हम घर में तीन भाई बहन थे l मैं मंझला मेरे ऊपर मेरा बड़ा भाई था और मुझसे छोटी एक बहन थी l मेरी बचपन में ही कुछ वाक्यात ऐसे हुए, जो मुझे जुर्म की राह में चलने के लिए, प्रेरित किया l एक दिन स्कुल छुट्टी थी तो मेरी माँ ने मुझे सब्जी लाने के लिए बाजार भेजा l बाजार में मैं जब सब्जी ख़रीद रहा था, तब मैंने देखा एक गुंडा सा दिखने वाला आदमी, एक चाकू निकाल कर चौक के बीचों-बीच एक टेबल पर गाड़ दिया और टेबल पर एक बक्सा रख दिया l उस बाजार में जितने भी लोग थे सभी कुछ कुछ पैसे निकाल कर उस बक्से में डाल रहे थे l सबके देखा देखी मैंने भी कुछ पैसे डाल कर घर चला गया l माँ ने जब बाकी के पैसों की बात पुछा, तो मैंने बाजार में जो हुआ सब बता दिया l माँ सब सुन कर चुप हो गई फिर माँ ने खाना बनाया और टिफिन में पैक कर थाने में पिताजी को देने को बोला l मैं टिफिन ले कर थाने गया l थाने में पहुंच कर देखा एक कोने में सारे पुलिस वाले लाइन हाजिरी में खड़े हुए हैं और वही गुंडा बड़े ऑफिसर की कुर्सी पर बैठा हुआ था और पुलिस वाले सब उसकी जी हजूरी कर रहे थे l फ़िर कुछ देर बाद हमारे इलाके का नेता आया और गुंडे के लिए पुलिस वालों की क्लास लिया और गुंडे के कंधे पर हाथ रख कर उसे अपने साथ अपनी गाड़ी में बिठा कर ले गया l वहीँ मालुम हुआ उस गुंडे का नाम सॉपन जॉडर था l सॉपन जॉडर वाली घटना ने मुझे इस तरह प्रभावित किया के आज मैं यहाँ तुम्हारे सामने ऐसे बैठा हुआ हूँ l
हमारे क्लास में एक लड़का हुआ करता था l हमारे क्लास में सीनियर था l क्यूंकि तीन सालों से फैल हो कर वहीँ पर जमा हुआ था l उससे सभी डरते थे l मैं भी l पर उस दिन घटना के बाद मैं थोड़ा बदल गया था l एक दिन क्लास में वह लड़का मेरी सीट पर बैठ कर मुझ पर धौंस झाड़ा और एक धक्का दिया l मैं गिर गया l मेरे स्कुल बैग से कंपस बॉक्स भी छिटक कर गिर गया l मैंने उस लड़के को गौर से देखा वह लड़का सच में बहुत तगड़ा था l पर मैंने उस दिन कुछ और करने का फैसला किया l मैं अपने कंपस बॉक्स से राउंडर निकाल कर अपने डेस्क पर गाड़ दिया l पहली बार वह लड़का डर गया और मुझे मेरी सीट वापस मिल गई l उस दिन मुझे ज्ञान मिला डर सबको लगता है l बस डराने वाला होना चाहिए l उस दिन और ज्ञान भी मुझे मिला l अगर दुश्मन चुन लिए हो तो उससे सावधान रहना चाहिए l उस दिन जब घर लौट रहा था रास्ते में उस लड़के ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर मेरी खूब धुनाई की l यह बात मुझे चुभ गई, भले ही वह मुझसे तगड़ा था पर उसने अपने दोस्तों के साथ मिलकर मुझे मारा था l मैंने घर में जिद करके कराटे क्लास सीखने लगा l ठीक एक साल बाद उसी लड़के और उसके साथियों को मैंने स्कुल में ही जमकर कुटा l परिणाम यह हुआ कि की प्रिन्सिपल ने पिताजी को बुलाकर मेरी शिकायत कर दी l घर पर पिताजी ने मार मार के बाकी कसर पुरी कर दी l मैं गुस्से में घर छोड़ कर चला गया l इत्तेफ़ाक से उसी गुंडे सॉपन जॉडर की गैंग में शामिल हो गया l फिर जुर्म की दुनिया की गाड़ी में बैठ कर चल निकला, एक ऐसी गाड़ी जिसमें ब्रेक ही नहीं थे l नए नए जवानी का जोश था, खुन में गर्मी बहुत थी और इगो.... इगो तो रोम रोम में कूट कूट कर भरा था l इसीके चलते एक दिन अपने बॉस से नहीं पटा तो अलग हो कर मैंने अपनी गैंग बनाई l अपने एक्सपेरियंस को आधार बना कर सबको ट्रैन्ड किया l जिंदगी ने मुझे इतना दूर ले जा चुकी थी, के पीछे मुड़ कर देखा कोई था ही नहीं l ऐसे में मेरा परिवार मुझे बहुत याद आया l तो उनसे मिलने गया l पर वहीँ मालुम हुआ l सॉपन जॉडर से दुश्मनी के चलते उसने मेरे माँ बाप की हत्या करा दी थी l मेरी करनी कुछ इस तरह मेरे सामने आई l मेरे भाई और मेरी बहन दोनों ने मुझसे रिस्ता नकार दिया l मुझे तो अब हिसाब बराबर करना था इसलिए एक दिन एक जबरदस्त गैंगवार छिड़ गई और उस गैंगवार में मेरे बचपन का आदर्श सॉपन जॉडर मेरे ही हाथों मारा गया l उसके मरते ही उसकी सारी पोलिटिकल बैकअप और सपोर्ट मेरी तरफ शिफ्ट हो गया l मैं पूरे झारखंड, ओडिशा बंगाल और नॉर्थ ईस्ट प्रांत का अनबीटन डॉन बन चुका था l
हाँ अब डॉन तो बन चुका था, पर पता नहीं क्यूँ मुझे मारपीट में बहुत मज़ा आता था l इसलिए मैं अंडरग्राउंड फाइटिंग में हिस्सा लेने लगा....
विश्व - यह अंडरग्राउंड फाइटिंग क्या होता है...
डैनी - एक ऐसा वन टू वन फाइट होता है.... जिसमें कोई रूल नहीं होता.... कोई स्पेशल स्टाइल नहीं होता.... असल में वह मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स बेस्ड फाइट होता है.....
विश्व - ओ...
डैनी - हा हा हा हा हा... समझ गया... तुझे कुछ समझ में नहीं आया.... हा हा हा हा... I
विश्व - फ़िर....
डैनी - अंडर वर्ल्ड डॉन और पोलिटिकल रौडी बन चुका था... और मैं आज के दौर में... एक इंटरस्टेट क्रिमिनल हूँ.... मैं आज ओड़िशा में... इसलिए हूँ... क्यूँ की... बंगाल में... मेरे खिलाफ फाइल खुल गई है.... मैं अपनी बैकअप के लिए पहले से ही चल रही केस में... खुदको अरेस्ट करवाया... अब मैं यहाँ और डेढ़ साल रहने वाला हूँ..... क्यूंकि इतने में.... बंगाल में अगला चुनाव आ जाएगा और सरकार भी बदल जाएगा.... तब मैं यहां से चला जाऊँगा....
विश्व - बंगाल में.... आप तो कह रहे थे... की सारे पोलिटिकल सपोर्ट आपको मिल गया था...
डैनी - राजनीतिक पक्ष के विरुद्ध विपक्ष भी होता है.... और सबसे बड़ी बात.... जिसका ज्ञान.. कुछ महीने पहले हुआ.... राजनीतिक षडयंत्र में.... दिखता कुछ है.... वह करते कुछ हैं.... होता कुछ है और लोग.... समझते कुछ हैं...
विश्व - मतलब....
डैनी - सबसे बड़ा एक्जाम्पल तो तु है....
विश्व - मैं... वह कैसे...
डैनी - तुझे दिखाया कुछ.... उन्होंने किया कुछ.... तेरे साथ हुआ कुछ... और अंजाम में लोगों ने समझा कुछ.... विश्व रूप..... कुछ समझ में आया....
विश्व - (अपना सर हिला कर) हाँ...
डैनी - तुझे... जयंत सर के मौत के बारे में.... क्या महसूस होता है...
विश्व - मैं समझा नहीं....
डैनी - मुझे लगता है.... जयंत सर के साथ.... हुआ कुछ... दिखा कुछ... दिखाया गया कुछ.... और सबने समझा कुछ....
विश्व - हाँ.... उनके खिलाफ़... राजनीतिक षडयंत्र हुआ तो है... इसलिए... उनको दिल का दौरा पड़ा....
डैनी - पता नहीं विश्व... मैं जुर्म की दुनिया से... ताल्लुक रखता हूँ... जुर्म के हर दाव पेच से... वाकिफ़ हूँ.... इसलिए मुझे उनके मौत पर शक है...
विश्व - सच कहूँ तो... शक़ मुझे भी हुआ है... पर मेडिकल रिपोर्ट... में... कार्डीयाक अरेस्ट आया था....
डैनी - ह्म्म्म्म जानता हूँ... पता नहीं... शायद... मैं गलत भी हो सकता हूँ....
विश्व - शायद... पर आप यहाँ.... स्पेशल सेल में... क्यूँ रहते हैं...
डैनी - हाँ... क्यूंकि मैं यहाँ... पोलिटिकल गेस्ट हूँ....
विश्व - शायद इसलिए... आप सबकी खबर रख पाते हैं....
डैनी - इस मामले में... मैं प्रोफेशनल हूँ.... मेरा अपना नेटवर्क है... जब तु आया था... मैंने तेरे बारे में भी... सब कुछ जानकारी इकट्ठा किया जा.... कहीं तु.... मेरे दुश्मन के भेजा... कोई आदमी तो नहीं...
विश्व - ओ.... तो फिर यह मार पीट.... कैसे कर लेते हैं...
डैनी - कहा ना... मैं.. मार्शल आर्ट्स जानता हूँ...
विश्व - हाँ पर... जो आपसे लड़े थे... वह चार लोग भी... मार्शल आर्ट्स जानते थे.... ऐसा मुझे लगा.... पर वह आपके सामने टिक नहीं पाए....
डैनी - अरे वाह... अच्छा ओबजर्व किया है तुने... तो यह भी जान ले.... मेरे सामने... बड़े बड़े... मारकोस कमांडो तक टिक नहीं पाते.... फ़िर यह छछुंदर कैसे टिक जाते....
विश्व - क्या... आप.. कमांडोज से भिड़े हैं....
डैनी - हाँ... तभी तो... मैं इन सब में माहिर हूँ.....
विश्व - अच्छा...
डैनी - तुने... मुझे उनके बारे में... आगाह किया था... इस उपकार के बदले बोल... मैं तेरे लिए क्या कर सकता हूँ... बोल....
विश्व - मैं... ग्रैजुएशन को रेगुलर फॉर्मेट में.... पूरा करना चाहता हूँ.... अगर आप इसमे मेरी मदत कर पाएं तो.....
डैनी - ह्म्म्म्म.... मैं सोचा.... तु... कुछ और मांगेगा....
विश्व - नहीं मुझे अभी सिर्फ़.... ग्रैजुएशन की डिग्री चाहिए....
डैनी - ठीक है.... कल तुझसे... मेरा वकील जयंत मिलने आएगा.... उससे अपना प्रॉब्लम बता देना..... वह... तुम्हारा काम कर देगा....
विश्व - (हैरान हो कर) जयंत सर...
डैनी - नहीं नहीं... यह जयंत कुमार राउत नहीं है... यह मेरा अपना वकील है... जयंत चौधरी....
विश्व - ओ... अच्छा...

_____×_____×_____×_____×_____×_____×

सारे गेस्ट मुख्य अतिथि भी अपने भाषण में विक्रम के ESS को स्टार्टअप से तुलना करते हुए विक्रम की प्रशंसा कर रहे हैं l विक्रम चोर नजर से नीचे के पहली पंक्ति में बैठे लोगों के बीच बैठी शुभ्रा को देख रहा है l शुभ्रा आने के बाद से ही गुस्से भरी नजर से विक्रम को देखे जा रही है l विक्रम इधर उधर देखता है और मंच के पीछे की ओर चला जाता है और एक सुकून भरा सांस लेता है l
विक्रम - (एक गहरी सांस लेते हुए) चलो बच गए...(तभी पीछे से आवाज़ आती है)

- किससे...
विक्रम - (हड़बड़ाते हुए) क्क कौन... (शुभ्रा को देख कर) ओह्ह... आप...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म तो... किससे बच गए....
विक्रम - कक्क किसी से नहीं....
शुभ्रा - झूठ... झूठ बोलते हुए... शर्म नहीं आती...
विक्रम - मम्म कहाँ.. कक्क क्या झूठ बोला है...
शुभ्रा - आप हम से भाग रहे थे ना....
विक्रम - हाँ... न... न.. नहीं...
शुभ्रा - क्या.. हम इतने बुरे हैं....

विक्रम क्या कहे कुछ समझ नहीं पा रहा है l फ़िर भी शुभ्रा से नजरें मिलाकर

विक्रम - नहीं आप नहीं... हम बुरे हैं...

शुभ्रा अपने दोनों हाथों को मोड़ कर दोनों कुहनियों में फंसा कर विक्रम को देखती है l

शुभ्रा - ओ... तो इसलिए... फोन नंबर पूछे.... फ़िर... चैटिंग की... अब जब चैटिंग खतम हो गई... मतलब निकल गया.... तो दोस्ती खतम.... (विक्रम कुछ नहीं कहता है, सर झुका कर खड़ा रहता है) मम्मी बिलकुल सही कहती हैं... मूँछ वालों पर... भरोसा करना ही नहीं चाहिए....
विक्रम - (हैरानी से) क्या... इसमे मूँछ कहाँ से आ गई...
शुभ्रा - मेरे पापा के मूँछ है... मम्मी उन पर बिल्कुल भरोसा नहीं करती है... और मुझे समझाया भी था... पर बेवक़ूफ़ जो ठहरी... बेवकूफी आख़िर कर ही ली....
विक्रम - मूंछो से भरोसे क्या संबंध....
शुभ्रा - आज कल मूँछ मुण्डों का दौर है.... जहां देखो मूछ मुंडे ही घुम रहे हैं... उस दौर में मुझे... एक बुरा मानस दिखता है.... तलवार की धार जैसी मूँछों वाला... सोचा बगुलों के बीच में... कोई हंस की तरह.. भरोसा क्यूँ ना किया जाए... आज पता चला... राजवंशीयों के ठाठ ही मूछें होती है.... बेकार में इतने दिन... भरोसे के नाम पर... वेस्ट हो गया....

विक्रम की हँसी निकल जाती है l फिर ख़ुद को सम्भाल कर शुभ्रा से

विक्रम - पर आप तो... हमारे इस प्रोग्राम में आने से मना कर दिया था... फ़िर आए कैसे....
शुभ्रा - आपने बताया कहाँ था.... प्रोग्राम के बारे में... आपने तो सस्पेंस बना रखा था... फ़िर भी पापा से पूछा भी था.... तो उन्होंने मना कर दिया.... पर देखिए ना... भगवान ने हमें आपके प्रोग्राम में आख़िर पहुंचा ही दिया... (थोड़ा मुहँ बना कर) आप इसलिए हमसे नाराज है ना...

शुभ्रा के ऐसे कहने पर विक्रम पूरी तरह से पिघल जाता है l

विक्रम - नहीं नहीं... ऐसी कोई बात नहीं है... हम नाराज बिलकुल नहीं हैं...
शुभ्रा - हाँ आखिर हम प्रजा जो ठहरे आपके... युवराज जी... (अपने गालों को पिचका कर छेड़ते हुए, कहती है )
विक्रम - वैसे आपको कब मालुम हुआ.... हम राजवंशी हैं....
शुभ्रा - अभी यहाँ पहुंच कर.... वैसे एक बात पूछें....
विक्रम - जी एक नहीं... सौ सवाल कीजिए.... पर पहेली मत पूछिए....
शुभ्रा - (अपनी आँखे नचा कर, एक शरारत भरी मुस्कान के साथ) क्यूँ... वह क्यूँ भला...
विक्रम - हमारे छोटे भाई आपको... बेताल कह रहे थे....
शुभ्रा - अच्छा (खिलखिला कर हँसने लगती है) वह... वह में पूछ रही थी (अचानक सिरीयस हो कर) कहीं ऐसा तो नहीं.... के आप राजवंशी सिर्फ... राजवंशीयों से ही दोस्ती रखते हैं.... गैर राजवंशीयों से नहीं....
विक्रम - अरे नहीं नहीं... ऐसी... बात नहीं... अच्छा... खाने के स्टॉल पर चलें... अभी तो कोई आने से रहा...
शुभ्रा - जी... युवराज जी...
विक्रम - प्लीज.... कम से कम... आप तो हमें... युवराज ना कहें...
शुभ्रा - (मासूमियत से) तो हम आपसे क्या कहें...
विक्रम - कुछ भी... दोस्त हैं.... कुछ ऐसा... जो एक खास दोस्त... ही बुलाए....
शुभ्रा - अच्छा... ठीक है... चलिए... सोचते हैं...

दोनों खाने के लिए बने स्टॉल की ओर जाते हैं l कुछ गार्ड्स वहाँ दो कुर्सी डाल देते हैं l यह दोनों वहाँ पर बैठ जाते हैं l

शुभ्रा - ओह... ओ.. क्या बात है... युवराज और उनके गेस्ट को... रॉयल ट्रीटमेंट....
विक्रम - ओह... कॉम ऑन....

शुभ्रा खिलखिला कर हँस देती है l शुभ्रा की हँसी देख कर विक्रम खो सा जाता है l

विक्रम - क्या लेंगी...
शुभ्रा - फ़िलहाल... अगर कॉफी मिल जाए तो...
विक्रम - (किसी को इशारा करता है) आप को कॉफी इतना पसंद है...
शुभ्रा - ऐसी बात नहीं है... आपको कॉफी डे... लिखा दिख जाता है... पर टी डे... कहीं नहीं दिखता है... है ना.... इसलिए कॉफी पसंद है.... (विक्रम उसे घूर कर देखता है) अच्छा बाबा... असल में... कॉफी ठंडा पिया जा सकता है.... गरम पिया जा सकता है.... आइसक्रीम के साथ पिया जा सकता है.... पता नहीं... क्या क्या किया जा सकता है.... पर चाय... बेड टी तक ही... ठीक लगती है...
विक्रम - बाप रे इतनी गहरी बात.... हमे नहीं मालूम था....
शुभ्रा - कोई बात नहीं... आपको हमारी संगत में... लोक ज्ञान मिलता रहेगा....

इतने में कॉफी आ जाती है l दोनों चुस्कियां भरने लगते हैं l

विक्रम - अच्छा... (थोड़ा गम्भीर हो कर) आपने कहा था.... आप जीवन में... कुछ करना चाहती हैं.... कोई गोल है क्या...
शुभ्रा - (विक्रम को देखे बगैर) है नहीं था... डॉक्टर बनना चाहती थी.... पर पापा को मंजूर नहीं था....
विक्रम - क्यूँ...
शुभ्रा - वह मुझे... एक ही कंडीशन में पढ़ाना चाहते थे.... अगर मैं उनके दोस्त के बेटे से शादी कर लूँ तो....
विक्रम - यह कैसा... कंडीशन है....
शुभ्रा - अब है तो है... क्या कर सकते हैं....
विक्रम - क्या आप मेडिकल पढ़ना चाहती हैं....
शुभ्रा - नहीं (बेफिक्री से कॉफी पीते हुए) अब अगर पापा शादी कराना चाहते हैं... तो कर लेंगे...
विक्रम - क्यूँ... अब आपका वह... कुछ करने की ख्वाहिश थी... उसका... क्या...
शुभ्रा - हाँ... पर अब कर ही क्या सकते हैं.... वैसे भी... एक साल तो बर्बाद हो चुका है... इसके लिए... मुझे अगले साल तक इंतजार करना होगा l अभी तो... साल का आधा सेशन भी खतम हो चुका है.... (कह कर शुभ्रा कॉफी खतम करती है, और बड़ी चाव से आँखे मूँद कर होठों पर बने बुलबुलों की धार पर हॉट फेरती है l उसकी इस अदा पर विक्रम की आह निकल जाती है l शुभ्रा अपनी आँखे झट से खोल देती है और विक्रम की ओर देखती है l विक्रम सकपका जाता है और अपना मुहँ दुसरी तरफ कर लेता है
Superbbb Updateee


Aur ek baat 36 pargana nhi hota 24 pargana hota hai. North aur South 24 parganas
 

Kala Nag

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Shandar update hain Bhai, Danny ke character ka aage chalkar bahot hi bada role hone wala hain, Shubhra aur Vikram ki dosti ab aage badhne lagi hain, waiting for next update
धन्यबाद मेरे भाई
हाँ विश्व के जीवन में कुछ महत्वपूर्ण चरित्र हैं जो विश्व में बदलाव के लिए सहायक हुए हैं
जयंत की तरह डैनी भी उनमें से एक है
इस कहानी में तीन तीन प्रेम कहानियाँ है और तीनों के अपने अपने आयाम है
और तीनों एक दूसरे से अलग भी हैं
धन्यबाद फिरसे
 

Kala Nag

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Superbbb Updateee


Aur ek baat 36 pargana nhi hota 24 pargana hota hai. North aur South 24 parganas
सटीक आपने जो भी कहा सब सच है
पर बंधु कुछ अवास्तव भी रखना जरूरी है l जैसे ओड़िशा में कहीं पर भी राजगड़ या यशपुर नहीं है l भुवनेश्वर में सेंट्रल जैल ही नहीं है l बस कुछ वास्तव और अवास्तव की भूल भुलेइयां है
धन्यबाद दिल से
 

Kala Nag

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