एक सौ तिरेपनवाँ अपडेट
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पुलिस कमिश्नरेट
एएसपी सुभाष सतपती की चैम्बर में विश्व और विक्रम दोनों बैठे हैं l तभी हाथों में कुछ फाइलें लेकर सतपती अंदर आता है
सतपती - सॉरी जेंटलमेन... आपको इंतजार करना पड़ा.
विश्व - आपने... हमें क्यूँ रोके रखा... हमने वीर की.. आखिरी ख्वाहिश के मुताबिक... श्री राम चंद्र भंजदेव मेडिकल कॉलेज में.. उसकी शव को हस्तांतर कर... राजगड़ चले जाना चाहते थे...
सतपती - अच्छा... तो वह सब फर्मालिटीस आपने पूरा कर लिए..
विक्रम - हाँ... वह सब हम पूरा कर चुके हैं... हमें बस राजगड़ निकलना था...
सतपती - उसके लिए भी सॉरी... कुछ इंफॉर्मेशन... विश्वा लिए और विक्रम साहब... आपके के लिए भी थे... अब चूँकि आप दोनों... वीर से जुड़े हुए हो... इसलिए... यह आप लोगों को बता देना... मुझे जरूरी लगा..
विक्रम - क्या इंफॉर्मेशन है सतपती जी..
सतपती - मैं यह कहना चाहता हूँ... के... (एक पॉज) झारपड़ा जेल के जेलर को सस्पेंड कर दिया गया है.... और उसके खिलाफ डिसीप्लीनरी इंक्वायरी बिठा दी गई है...
विश्व - वज़ह..
सतपती - चेट्टी एंड सन... वीर से... एक नहीं कई बार उन्होंने जैल में मुलाकात की थी... और उन्होंने वीर को तुम्हें और विक्रम को लेकर... थ्रेट भी किया था... इन सबकी एविडेंस... चाहे सीसीटीवी फुटेज हो... या रेकॉर्ड... सब को... उसने करप्ट किया था... जिसके वज़ह से... वीर ने अदालत में वह सूइसाइडल स्टेप लिया था..
विश्व - वह हम जानते हैं...
सतपती - नहीं असली वज़ह आप लोग नहीं जानते... चेट्टी एंड सन ने... आप लोगों को मारने की धमकी दी थी... वीर को... और द हैल पर हमले को... ट्रेलर कहा था... इसलिये वीर ने... तब से उन्हें मार देने की सोच रखा था...
विश्व - क्या यह वीर का लास्ट स्टेटमेंट में है... जो उसने मजिस्ट्रेट को दिया था...
सतपती - हूँ.. हूँ... और यह बात तो... चेट्टी ने भी अपने लास्ट स्टेटमेंट में कह चुका था...
विश्व - ओ...
विक्रम - सिर्फ इतना ही...
सतपती - जी नहीं... उसने... आई मीन वीर ने... और भी बहुत कुछ कहा था... जो मेरे हिसाब से... आपके लिए जानना बहुत ही जरूरी था... आई मीन...
विक्रम - (टोक कर) और क्या क्या कहा था वीर ने...
सतपती - विक्रम साहब... आप ने जब ESS शुरु की थी... तभी से आपने वीर को सीईओ बना दिया था...
विक्रम - हाँ...
सतपती - क्यूँ.... आई मीन... शायद वीर तब सिर्फ अठारह साल कर रहा होगा...
विक्रम - जी... तब वह बालिग हो चुका था...
सतपती - हूँ... मानता हूँ... पर छोटी उम्र में... यकीन करना मुश्किल है... पर क्यूंकि यह मरते वक़्त... वीर का आखिरी बयान है...
विक्रम - आप कहना क्या चाहते हैं... एएसपी साहब...
सतपती - वीर को सीईओ बना कर ESS को शुरु करने से... तब से लेकर वीर के... सीईओ रहने तक... यानी कुछ महीने पहले तक... आपके ESS के द्वारा जितने भी... अंडर कवर क्राइम हुए हैं... या जिस भी क्रिमिनल ऐक्टिविटी में... डायरेक्ट या इनडायरेक्ट इंनवॉल्व रहे हैं... उन सब गुनाहों के सारे इल्ज़ाम... वीर ने अपने सिर ले लिया है... इसलिए... आपको और आपके चाचा...मेरा मतलब छोटे राजा जी को... अब कानून ... यानी के हम क्लीन चिट दे रहे हैं.... (कह कर एक फाइल को विक्रम के सामने रख देता है)
विक्रम - क्लीन चिट मतलब....
सतपती - ESS के खिलाफ... होम मिनिस्ट्री में... एक कंप्लेंट पहुँचा था... कुछ इंनकंप्लीट सबूतों के साथ... वैसे... इसमें... चेट्टी एंड सन भी... इंनवॉल्व थे... इसलिए होम मिनिस्ट्री ने... एक अंडर कवर कमेटी बनाई थी... एक इंटरनल इंक्वायरी के जरिए... सबूतों को पक्का कर... ESS के खिलाफ एक्शन की तैयारी चल रही थी... वीर के सारे गुनाह कबूल कर लेने के बाद... आपको... और आपके छोटे राजा जी को... कानून से अब कोई खतरा नहीं है... जाते जाते... वीर आप दोनों को बचा गया...
विक्रम उस फाइल को टेबल से उठा कर सीने से लगा लेता है l उसके आँखों में कुछ बूंदे आंसुओं के चमक पड़ते हैं l फिर खुद को सम्भाल कर सतपती से पूछता है
विक्रम - और कुछ.
सतपती - हाँ... यह... (और एक फाइल निकाल कर विक्रम के सामने रख देता है) आपके घर और ऑफिस के सारे ऐसेट्स के डैमेज रिपोर्ट... हमने इंश्योरेंस कंपनी को दे दी है... आपको अच्छी खासी रकम मिल जाएगी...
विक्रम - और कुछ...
सतपती - हाँ... एक और खास ख़बर... हो सकता है... आने वाले दो या तीन दिन के अंदर... राजा साहब को गिरफ्तार कर लिया जाएगा...
विश्व - क्या...
सतपती - तुम क्यूँ चौंक गए विश्व... तुम्हें तो खुश होना चाहिए...
विश्व - हाँ पर... भैरव सिंह के खिलाफ... मजिस्ट्रेट इंक्वायरी चल रही है ना...
सतपती - हाँ ऑल मोस्ट खत्म हो चुका है... और उनकी परेशानी अब और भी बढ़ने वाली है...
विश्व - और भी बढ़ने वाली है मतलब...
सतपती - देखो विश्व... यह मत भूलो की... ओंकार चेट्टी ने... मरने से पहले जो स्टेटमेंट दिया था... उसको हमने... काफी कुछ सेंसर कर... पब्लिसाइज किया था... उन्होंने... काफी कुछ रौशनी डाला है... रुप फाउंडेशन करप्शन के उपर.... क्यूँकी जब यह केस अदालत में चल रही थी... तब वह... इंडारेक्टली... इस केस में इंनवॉल्व थे... उन्होंने... किसी का तो नहीं पर राजा साहब का नाम... बार बार लिया है... और तुम तो जानते हो... रुप फाउंडेशन के नए... एसआईटी का इनचार्ज मैं हूँ...
विश्व - ओह...
सतपती - इसलिए तुम अपनी तैयारी करो... क्यूंकि पीआईएल तुमने डाला हुआ है...
विश्व - ठीक है... (उठते हुए विक्रम से) चलें... (सतपती से) थैंक्यू... सतपती जी... हम अब आपसे विदा लेते हैं...
सतपती - विश यु बेस्ट ऑफ लॉक...
विक्रम - थैंक्यू..
दोनों उठते हैं और बाहर की ओर जाने लगते हैं l विक्रम अचानक रुक जाता है और सतपती की ओर मुड़ कर पूछता है
विक्रम - सतपती जी इफ यु डोंट माइंड... क्या आप बता सकते हैं... वे कौन लोग थे... जिन्होंने... ESS पर इंक्वायरी मांगी थी..
सतपती - आई एम सॉरी विक्रम साहब... कानून कुछ बातेँ डिस्क्लोज नहीं कर सकती... उन्होंने जब... इंक्वायरी की अपील की थी.. तब से उनका नाम और पहचान.. विटनेस प्रोटेक्शन एक्ट के तहत फ्रिज कर दिया गया है...
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दया नदी की कालीया घाट के पास एक गाड़ी रुकती है l गाड़ी की दरवाजा खुलता है l उस गाड़ी से अमिताभ रॉय उतरता है l वह घाट के चारों ओर नजर दौड़ाता है l एक जगह पर उसे पानी की गुज़रती धार के ऊपर वाली सीढ़ी पर केके बैठा हुआ दिखता है l वह उसीके तरफ जाता है l वहाँ पहुँच कर देखता है केके अपने पैरों को पानी के लहरों पर मार रहा है l
रॉय - गुड इवनिंग केके सर...
केके - (अपनी नजर घुमा कर उसे देखता है और फिर रॉय से नजर फ़ेर कर पानी पर अपने पैर चलाने लगता है)
रॉय - मैं आपको कहाँ कहाँ नहीं ढूँडा... पर मिले तो कहाँ... मिले...
केके - तुम यहाँ किस लिए आए हो रॉय... और तुम्हारा मुझसे क्या काम पड़ गया...
रॉय - चेट्टी की बातों में आकर... हमने क्षेत्रपाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया... अब वही चेट्टी नहीं रहा... सोचा है... आगे क्या होगा...
केके - सोचना क्या है... जो होना है... होगा... हाँ... तुम्हारे लिए अब परेशानी का सबब है... आखिर... तुम्हारे बीवी बच्चे हैं...
रॉय - हाँ.. है तो... वैसे एक खबर देनी थी आपको...
केके - बको....
रॉय - ESS को क्लीन चिट मिल गई है... (प्रतिक्रिया में केके अपना सिर हिलाता है, केके का इतना ठंडा प्रतिक्रिया देखने के बाद) क्या हुआ... आपको हैरानी नहीं हुई....
केके - नहीं... मेरी तकदीर कितना बड़ा झंड है... यह खबर साबित करती है... खैर... इससे मेरा कोई नुकसान नहीं हुआ है... हाँ... तुम्हारा जरुर हुआ है... तुमने जो ESS की साख गिरा कर अपनी रोटी सेंकने की सोची थी... वह रोटी अब जल गई है...
रॉय - हाँ... पर खेल में हम दोनों सामिल थे...
केके - दो नहीं चार... तुम्हें कोई फर्क़ नहीं पड़ा... पर मुझे तो उन दो बाप बेटे ने धोखा दिया... उस हरामी के पिल्लै ने... (कुछ कह नहीं पाता, आवाज घुट कर हलक में रह जाती है) (थोड़ी देर की चुप्पी के बाद) उन हरामी बाप बेटे ने... मुझे ना घर का छोड़ा.. ना किसी घाट का...
रॉय - तो फिर आप इस... कालीया घाट पर क्या कर रहे हैं...
केके - (अपनी जगह से उठता है और रॉय की तरफ मुड़ता है) यह घाट... तेरे बाप की तो नहीं है... अब बोल... तु मुझे क्यूँ ढूंढ रहा था...
रॉय - वह... केके साहब... मैं अब अपना कारोबार समेटने की सोच रहा हूँ... खबर भिजवा दी है... जोडार को... अपना सारा एस्टाब्लिशमेंट... जोडार को बेच कर चला जाऊँगा...
केके - बहुत अच्छे... यही सही रहेगा... वैसे भी... तुम्हारा एस्टाब्लिशमेंट बचा ही कितना है... बेच बाच के जितना निकाल सकते हो निकाल लो... और कहीं ऐसी जगह छुप जाओ... जहां.. विक्रम तुम्हें ढूंढ नहीं पाए.... उसे अब तक पता चल गया होगा... महांती की मौत के पीछे... तुम्हारी दिलचस्पी थी...
रॉय - हाँ... बात तो आपकी सही है... पर तसल्ली इस बात की है कि... विक्रम फ़िलहाल... राजगड़ निकल चुका है... जब तक वापस आएगा... तब तक... मैं भुवनेश्वर छोड़ कर... कहीं और चला जाऊँगा....
केके - गुड... बेस्ट ऑफ लक...
रॉय - आप... आप क्या करोगे... विक्रम आपके पीछे भी आ सकता है...
केके - आने दो... अब जो करना है करेगा... अब जीने की ख्वाहिश है ही किसको...
रॉय - मतलब... जब तक विक्रम नहीं आता... तब तक घर की खाट... विक्रम आए तो.... श्मशान घाट... (केके कोई जवाब नहीं देता) मुझे ऐक्चुयली एक काम था... (केके उसके तरफ़ सवालिया नज़रों से देखता है) मुझे सेटल होने के लिए कुछ पैसे चाहिये... आप की दौलत की सागर से... गागर जितनी कुछ दे दें... तो...
केके - भीख मांगने का... यह नया तरीका है क्या...
रॉय - केके साहब... अब आपके पैसे खाने के लिए भी तो कोई रहा नहीं... मैं कहाँ आपको सारी दौलत माँग रहा हूँ... इस नदी सी बहती दौलत से... कुछ छींटे ही तो माँग रहा हूँ...
केके - बड़े महंगे भिकारी हो... माँगने का तरीका भी अलग है... सुन बे भूतनी के... चेट्टी तेरे मेरे बीच में एक ब्रिज था.. वह गया.. तु उस किनारे... मैं इस किनारे...
रॉय - मैं अब आपके किनारे आया हूँ ना... वैसे भी... कितना उम्र है आपकी... पचपन या छप्पन होगी... मतलब एक पैर केले के छिलका पर... दूसरा पैर श्मशान घाट के गेट पर... इतनी दौलत... सड़ जाएंगी...
केके - मादर चोद... मेरे पैसे हैं... अगर सड़ती हैं... तो सड़ने दे... और सुन... अब तुने और कोई बकवास करी... तो मेरे सेक्यूरिटी यहीं पास ही है... तेरी खैर नहीं समझा...
रॉय - (झुंझला कर) समझ गया... अच्छी तरह से समझ गया.... जवान बेटा खोया है... वह मरा... तो रास्ते खुल गए क्यों... किसी जवान कली से शादी बना कर... बच्चा पैदा करने की ठानी है... मैं समझ गया...
केके - (रॉय को हैरान हो कर देखता है, थोड़ी देर बाद हँसने लगता है) हा हा हा हा...
रॉय - लगता है... पागल हो गया...
केके - (हँसते हुए) हाँ... हाँ... हा हा हा हा... हाँ हाँ...
रॉय - अबे बुढ़उ... होश में आ...
केके - क्यूँ...
रॉय - तु अब अखंड सिंगल नहीं बन गया है... बल्कि अखंड चुतिया लग रहा है...
केके - (अपनी हँसी को रोक कर, अपनी जेब से वॉलेट निकाल कर उससे कुछ कुछ नोट निकालता है, और रॉय के हाथ में देकर) यह ले.. रख ले... जा मेरे नाम पर दारू के साथ सोढ़ा... मिनरल वॉटर पी ले जा... (रॉय उसे हैरानी के साथ घूरने लगता है) मैं वाकई... बेटे के ग़म में था... यही सोच रहा था... सब कुछ खत्म हो गया... इतनी जो दौलत मैंने कमाई है... इसका क्या करूँ... हा हा हा हा... चल अच्छा आइडिया दिया तुने...
केके - (नोट दिखा कर) यह मैं तेरे नाम को दारु पीयूंगा... जरुर पीयूंगा... बस इतना बता... तेरी कमर चलेगी भी... क्यूँकी वह कहते हैं ना... चाचा की लुगाई... पूरे मोहल्ले की भऊजाई..
केके - तु उसकी फिक्र मत कर... अब मैं जीम जाऊँगा... थोड़ा कसरत करूँगा... और शादी... जरूर करूँगा... अपनी दौलत के लिए वारिस पैदा करूँगा... हा हा हा...
रॉय - मुश्किल यह है कि तुम अभी साठ के नहीं हुए हो... वर्ना कहता... सठिया गए हैं... कौन लड़की तुमसे शादी करेगी... अगर करेगी भी तो वह तुमसे नहीं... तुम्हारी दौलत से करेगी...
केके - हाँ मेरी दौलत देख कर ही करेगी... और मैं अपनी दौलत दिखा कर शादी करूँगा... हा हा हा...
रॉय - सच में पागल हो गया तु... अरे उसे साठ के उमर में... खाट पर कैसे संभालोगे... बेटे के ग़म में... दिल का झटका खा कर उठे हो...
केके - वायग्रा खा कर... और तु मेरे दिल की मत सोच... तु अब अपनी सोच... मैं अब अपनी सोचूंगा...
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तापस ड्रॉइंग रुम में चेस बोर्ड पर ध्यान टिकाए बैठा हुआ था l तभी ट्रे में चाय की कप लेकर प्रतिभा कमरे में आती है l प्रतिभा चाय लेकर वहीँ खड़ी रहती है पर तापस की नजर चेस बर्ड पर स्थिर थी l
प्रतिभा - ओह हो... यह कैसी बीमारी है आपकी... जब प्रताप होता है तब आप यह चेस बोर्ड निकालते नहीं हैं... जब भी वह चला जाता है... आप इस बोर्ड को निकाल कर दोनों तरफ से खेलते हैं...
तापस - (प्रतिभा की ओर देख कर) अरे भाग्यवान... तुम कब आई...
प्रतिभा - अच्छा... आप इस खेल में इतना डूबे हुए हैं कि मेरे आने का एहसास तक नहीं हुआ...
तापस - अरे नहीं.. बस ऐसे ही...
प्रतिभा - झूठ मत बोलिए...
तापस - अरे भाग्यवान गुस्सा मत करो... मैं खेल कहाँ रहा था... मैं तो अब तक जो भी हुआ... उसे मन में एनालिसिस कर रहा था...
प्रतिभा - ओह...
प्रतिभा बैठ जाती है और चाय का कप तापस की ओर बढ़ा देती है l दोनों चुस्कियां भरने लगते हैं l प्रतिभा देखती है कि तापस अभी भी थोड़ा खोया खोया लग रहा था l इसलिए खामोशी को तोड़ते हुए प्रतिभा पूछती है l
प्रतिभा - आप क्या सोच रहे हैं... क्या प्रताप के बारे में...
तापस - हाँ...
प्रतिभा - सच कहूँ तो... अब मुझे भी डर लगने लगा है...
तापस - (सवालिया नजर से देखता है)
प्रतिभा - जिस तरह से... गुंडे तो गुंडे... बल्कि लोग भी... प्रताप और विक्रम को रोकने के लिए... आगे आए... उनकी जान की दुश्मन बन गए थे...
तापस - हाँ भाग्यवान... पर इन सब से निकलना प्रताप अच्छी तरह से जानता है... बस वक़्त साथ देना चाहिए...
प्रतिभा - हाँ मैं उस बात पर गुस्सा करती... या नाराजगी जाहिर करती पर... वीर के साथ वह हादसा हो गया...
तापस - जो हुआ... सो हो गया भाग्यवान... उससे आगे हो नहीं सकता था... इसलिए हुआ नहीं...
प्रतिभा - अगर ऐसा कुछ... (चुप हो जाती है)
तापस - अलबत्ता राजगड़ में ऐसा कुछ होगा नहीं... अगर कोई ऐसा करने की सोच भी रहा है... तो उससे बड़ा बेवक़ूफ़ कोई होगा नहीं...
प्रतिभा - भगवान करे ऐसा ही हो... पर आपने बताया नहीं... क्या एनालिसिस कर रहे थे...
तापस - अरे वही... वीर ने वादा किया वापस आने का... शुभ्रा से वादा लिया वापस बुलाने का... और कुछ ही सेकेंड में... उसे पता चल गया... की वह पेट से है और वीर ही जन्म लेगा... (प्रतिभा से ज़वाब कुछ नहीं मिलता तो उसके तरफ देख कर) क्या हुआ भाग्यवान... कुछ गलत पूछ बैठा क्या..
प्रतिभा - जी... बिल्कुल... पहली बात... जब किसी औरत को अपने पेट से होने की बात पता चलती है... तो वह सबसे पहले अपने पति से कहती है... अनु को जिस दिन पता चला था कि वह गर्भवती हुई है... उसी दिन शुभ्रा को भी अपने गर्भवती होने की बात पता चली... पर यह बात विक्रम से कह नहीं पाई... क्यूँकी विक्रम उस वक़्त राजगड़ में था... और राजगड़ की फोन लाइन डीसकनेक्टेड़ थी... और जब विक्रम वापस आया.. तो उसे वह मौका मिला ही नहीं के अपने गर्भवती होने की बात कह सके... वह मौका शुभ्रा को वीर ने दे दिया... और शुभ्रा ने विक्रम से कह दिया...
तापस - ह्म्म्म्म... पर भाग्यवान मान लो... अगर लड़की पैदा हुई तो...
प्रतिभा - नहीं होगी...
तापस - मान लो...
प्रतिभा - नहीं होगी...
तापस - क्यूँ...
प्रतिभा - यह अगर अति विश्वास या अंधविश्वास होता... तो शायद मैं आपसे बहस ना करती... पर मैंने शुभ्रा की आँखों में... विश्वास देखा था... इसीलिए देखना... लड़का ही होगा... और वह वीर ही होगा...
तापस - (हथियार डालने के अंदाज में) हूँह्म्म्म्म... शुभ्रा की विश्वास का तो पता नहीं... पर लगता है... तुम्हारा विश्वास ज़रूर पुख्ता है...
प्रतिभा - बस... हो गया...
तापस - जी जी... जी बिलकुल...
प्रतिभा - मैंने उसे गाड़ी में बिठा कर विदा करते हुए... शुभ्रा से कहा है... के वह अब अपना खयाल ज्यादा रखे... क्यूँकी वह अब अकेली जान नहीं है... और विक्रम से भी खासा हिदायत दी है...
तापस - (प्रतिभा की बात को काटते हुए) हाँ भई... आपका हुकुम हो... और कोई उस पर अमल ना करें... ऐसा तो हो ही नहीं सकता...
प्रतिभा - ऑफ ओ... आपसे बात करना भी... कभी कभी लगता है... अपना सिर पत्थर से फोड़ना अच्छा रहेगा...
तापस - अरे जान... ऐसा ना कहो... मेरे तुम्हारे सिवा है ही कौन...
प्रतिभा - बस बस... बहुत हो गया... आपका यह... (चेस बोर्ड को दिखा कर) चेस बोर्ड है ना... इसके साथ अपना संसार बसा लीजिये...
कह कर खाली चाय की ग्लासों को उठा कर चली जाती है l इतने में कॉलिंग बेल की आवाज सुनाई देती है l तापस अपनी जगह से उठ कर दरवाजा खोलता है l अंदर उदय, सुभाष सतपती और सुप्रिया आते हैं l घंटी की आवाज सुन कर प्रतिभा भी बाहर आ जाती है l सुप्रिया प्रतिभा को देख कर गले से लग जाती है l
प्रतिभा - (सुप्रिया को अलग करते हुए) क्या बात है... इस टाईम पर तुम लोग...
सुप्रिया - वह विक्रम और प्रताप जा रहे हैं... तो उन्हें सी ऑफ करने आए थे...
प्रतिभा - तो तुम लोग लेट हो गए हो... अभी घंटे भर पहले ही निकल गए हैं...
सुप्रिया - ओह... तो हम चलते हैं... हमारा यहाँ आना बेकार गया...
प्रतिभा - मारूंगी तुम्हें... क्या बेकार गया... हम हैं ना.. दोनों खाली बैठे हैं... तुम लोगों को बिना खाए तो जाने नहीं दूंगी... चलो मेरे साथ...
कहते हुए प्रतिभा सुप्रिया को किचन के अंदर खिंच ले गई l उनके जाते ही तापस उदय और सुभाष को बैठने के लिए इशारा करता है l तीनों बैठ जाते हैं l तापस किचन की ओर चोर नजर से देखता है फिर सुभाष की तरफ देख कर
तापस - (धीमी आवाज में) अच्छा किया... सुप्रिया को ले आए...
सुभाष - हाँ... प्राइवेसी के लिए... उसे लाना बहुत जरूरी था...
तापस - तो... कुछ पता चला...
सुभाष - आपका अनुमान बिल्कुल सही था... हिंडोल के आसपास... विश्व और विक्रम पर जो हमला हुआ था... उसमें चेट्टी एंड ग्रुप का कोई हाथ नहीं था...
उदय - ओह माय गॉड... तो इस बात का चेट्टी ने डिनाय क्यूँ नहीं किया...
सुभाष - गोली लगने के बाद.. चेट्टी सीधे मेडिकल बेड पर गया... उसे उसके आदमियों से कोई इंफॉर्मेशन नहीं मिला था... चूँकि वह हर हाल में विश्व को रोकना चाहता था... इसलिए उसने कोई डीनाय नहीं किया...
उदय - कमाल है... इसका मतलब... विश्व विक्रम और चेट्टी के बीच कोई तीसरा खिलाड़ी भी घुस आया है...
सुभाष - हाँ लगता तो यही है... पर वह है कौन... यह पता नहीं चल पाया... सिर्फ हिंडोल इलाक़ा नहीं... चांदनी चौक... बक्शी बाजार... तक बच्चा चोर की अफवाह फैली हुई थी... विश्व और विक्रम... हिंडोल को छोड़... उन इलाक़ों से भी गुजरते... तब भी... उनके साथ यही हालत होती...
उदय - क्या...
सुभाष और उदय दोनों तापस की ओर देखते हैं l तापस की भौहें सिकुड़ी हुई थी और गहरी सोच में डूबा हुआ था l
सुभाष - सर... मैं समझ सकता हूँ... आप इस वक़्त किस सोच में हैं... क्यूँकी सबके साथ साथ विश्व भी यही सोचता होगा... के वह हमला.. चेट्टी ने करवाया होगा...
तापस - नहीं... विश्व जानता है.. यह हमला उस पर किसने करवाया है...
उदय और सुभाष - (चौंकते हुए) क्या...
तापस - हाँ... विश्व को अच्छी तरह से मालूम है... उस दिन हिंडोल के आसपास इलाके में... उन पर हमला किसने और क्यूँ करवाया था...
सुभाष - क्या विश्व को उस हमले का अंदेशा था...
तापस - नहीं... पर हमले के बाद... उसे अंदाजा हो गया... किसने और क्यूँ हमला करवाया...
सुभाष - किसने...
तापस - राजा भैरव सिंह...
उदय और सुभाष - क्या...
तभी प्रतिभा और सुप्रिया नाश्ते की ट्रे लेकर आते हैं और सोफ़े के सामने की टी पोए पर प्लेट लगाने लगते हैं l उन्हें खाने की हिदायत देकर प्रतिभा सुप्रिया को लेकर बेड रूम में चली जाती है l
सुभाष - मैं समझ नहीं पाया.. राजा तो हाउस अरेस्ट है... फिर वह कैसे... यह सब...
तापस - वह हाउस अरेस्ट है... पर सिस्टम तो नहीं... उसे जब जो इन्फॉर्मेशन पास करना होता है... कर देता है...
उदय - पर सिस्टम तो... अभी राजा के खिलाफ है ना...
तापस - पूरा सिस्टम नहीं.. सिस्टम का एक धड़ा... सिस्टम में अभी भी कुछ लोग हैं... जो उससे अपनी वफादारी निभा रहे हैं...
सुभाष - विश्व पर हमला कर... क्या वीर की केस को बिगाड़ना चाहता था...
तापस - नहीं... वीर अगर कुछ भी ना करता... तब अदालत एक और डेट दे देता... तब वीर के लिए... एक और वकील खड़ा किया जा सकता था... राजा अपने केस से प्रताप को हटाना चाहता था...
उदय - कैसे... विश्व तो... आरटीआई कार्यकर्ता है ना...
सुभाष - वीर के केस के सिलसिले में... लोगों के हाथों... बच्चा चोर की पहचान में मारा जाता... भीड़ तंत्र की साजिश... चेट्टी पर जाता... राजा का रास्ता साफ हो जाता...
उदय - ओ...
तापस - प्रताप... उस खेल को... उसी वक़्त समझ गया था... पर...
सुभाष - तो क्या विश्व की जान खतरे में है...
तापस - राजगड़ में... ना अभी नहीं...
उदय - यह आप कैसे कह सकते हैं... राजा साहब के हिस्से... एक और हार आया... वह अब तिलमिला रहा होगा... विश्व को मारने के लिए... मौके की तलाश में होगा...
तापस - हाँ... पर फ़िलहाल के लिए... प्रताप का जान को कोई खतरा नहीं है... पर...
सुभाष - पर...
तापस - (चेस बोर्ड की ओर दिखाते हुए) यह शतरंज का खेल अब बहुत ही खतरनाक होता जा रहा है...
उदय और सुभाष दोनों चेस बोर्ड की ओर देखने लगते हैं l काली गोटी का सिर्फ शाह था और एक प्यादा पर सफेद गोटी के शाह के साथ कुछ प्यादे और एक हाथी था l
तापस - ऐसे सिचुएशन में... तुम लोग क्या करोगे...
उदय - काली गोटी वाले की हार होगी...
सुभाष - ड्रॉ भी किया जा सकता है... पर...
उदय - कैसे... सफेद गोटी वाला राजी ही क्यूँ होगा...
तापस - बिल्कुल... तुम दोनों सही हो... पर क्या तुमने सोलह घर की चाल के बारे में सुना है...
सुभाष - पर वह इंटरनेशनली अप्रूव्ड नहीं है...
तापस - यह मत भूलो यह खेल... भारत में जन्मा है... इसके सारे नियम... भारत में प्रयोग में लाए जाते हैं...
उदय - तो यह सोलह घर की चाल चलेगा कौन... और किसके खिलाफ...
सुभाष - राजा... राजा भैरव सिंह... सिस्टम के खिलाफ...
तापस - बिल्कुल...
सुभाष - खेल को ड्रॉ करने के लिए... यह एक तरीका है... खेल अगर ड्रॉ हो गया... तो विश्व की जान खतरे में आ जायेगा... क्यूँकी विश्व की जरूरत... ना सिस्टम को होगी... ना ही राजा को... (कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है)
उदय - पर राजा ड्रॉ खेलना भी चाहेगा... तो भी... सिस्टम क्यूँ ड्रॉ चाहेगा...
तापस - यह राजनीति है... बड़ी कुत्ती चीज़ है... इसमे ना कोई दोस्त होता है.. ना कोई दुश्मन... सब नाते मतलब के होते हैं... राजा ने... होम मिनिस्टर को अपना ताकत का एहसास कराया था... बदले में... होम मिनिस्टर ने उसे एहसास दिला दिया... जंग में... हालात के हिसाब से... तरकीबें बदलती रहती हैं... प्रताप को इस बात का अंदाजा हो गया है... अब देखना है... राजा क्या कदम उठाता है... उदय...
उदय - जी...
तापस - तुम्हें... राजगड़ जाना होगा...
उदय - क्या... वहाँ पर... मेरे दो दुश्मन होंगे... विश्व मुझ पर खार खाए बैठा होगा... और उधर राजा के आदमी मुझे ढूंढ रहे होंगे...
तापस - घबराओ मत... मैंने पत्री सर से बात कर ली है... तुम उनके इंवेस्टिगेशन टीम में शामिल होगे... तुम पर कोई आँच नहीं आएगी... तुम मेरी तरफ से.. प्रताप पर नजर रखोगे...
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कुर्सी पर बैठा अपने कमरे में भैरव सिंह आँखे बंद कर किसी सोच में खोया हुआ था l दरवाजे पर दस्तक होता है, भैरव सिंह दरवाजे की ओर देखता है l भीमा खड़ा हुआ था l
भीमा - हुकुम...
भैरव सिंह - हूँ कहो...
भीमा - युवराज आ गए हैं... सीधे आपसे मिलने आ रहे हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... उन्हें आने दो... और हमें अकेला छोड़ दो...
भीमा - जी हुकुम....
भीमा उल्टे पाँव सिर झुका कर लौट जाता है l कुछ ही पल के बाद कमरे में व्यस्त विक्रम आता है और दरवाजे के पास ठिठक जाता है l भैरव सिंह विक्रम को ओर देखता है, चेहरे पर दाढ़ी बढ़ी हुई थी बाल अस्तव्यस्त थे l
भैरव सिंह - हमें अफ़सोस है...
विक्रम - समझ सकता हूँ... आपका काम नाकाम जो हो गया...
भैरव सिंह - हमारा काम... क्या कहना चाहते हैं आप...
विक्रम - आप अच्छी तरह से जानते हैं... मैं उसे दोहराना नहीं चाह रहा... बस एक अनुरोध है... आप अपने कमरे से ना निकलें...
भैरव सिंह - ओ... सरकार हमें घर में कैद कर लिया है... आप हमें... हमारे ही कमरे में कैद कर रहे हैं...
विक्रम - ना मेरी औकात है... ना ही कोई इच्छा... बस छोटा सा अनुरोध है...
भैरव सिंह - क्यूँ... ऐसी क्या नौबत आ गई... के आप हमसे अनुरोध कर रहे हैं...
विक्रम - वीर की अंतिम इच्छा थी... मैं चाचा और चाची जी को... यहाँ से ले जाऊँ... और उन्हें ले जाते वक़्त... मैं आपसे किसी भी तरह की... बेअदबी करना नहीं चाहता... इसलिए... (भैरव सिंह की भौहें तन जाती हैं, दांत से कट कट की आवाज़ आने लगती है)
भैरव सिंह - हमसे बेअदबी... वज़ह...
विक्रम - मैं... आपको वीर का कातिल मानता हूँ... और यह बात मैं चाचा और चाची जी को यह बताना नहीं चाहता... उनको समझाके यहाँ से ले ले जाना चाहता हूँ... उन्हें ले जाते वक़्त... अपनी आँखों के सामने... मैं आपको देखना नहीं चाहता...
भैरव सिंह - तो आप हमसे... अभी से बेअदबी कर रहे हैं... आपकी हिम्मत कैसे हुई... हम पर वीर की कत्ल का इल्ज़ाम लगाने की...
विक्रम - (एक पॉज लेकर भैरव सिंह के और करीब आकर) राजा साहब... मेरा पाला ओंकार चेट्टी से पहले भी पड़ चुका है... उसकी दिमाग की रेंज को मैं जानता हूँ... हिंडोल में हमारे साथ जो भी हुआ... उससे... चेट्टी का कोई लेना देना नहीं है...
भैरव सिंह - यह तोहमत लगाने से पहले थोड़ा सोच लेते... हम यहाँ नजर बंद हैं...
विक्रम - मेरी नस नस में आपका खून... आपका विचार दौड़ रहा है... मुझे आपको सोच की रेंज का भी पता है...
भैरव सिंह - ओ... लगता है... विश्वा ने अच्छी पट्टी पढ़ाई है...
विक्रम - वह मुझसे... हम सभी से कहीं ज्यादा समझदार है... उसे समझते देर नहीं लगी होगी... पर वह रिश्तों को कदर करना जानता है... समझता है... इसलिए उसने कोई शिकायत नहीं की... उल्टा... वीर को ना बचा पाने की वज़ह खुद को मान रहा है....(आवाज सख्त कर) ऐसा आपने... क्यूँ किया...
भैरव सिंह - गुस्ताख... हम राजा साहब हैं... क्षेत्रपाल हैं... हारना हमें मंजूर नहीं है... इसलिए हम हमेशा अपने दुश्मनों को... या तो हटा दिया करते थे... या मिटा दिया करते थे... आपसे अच्छा तो वीर निकला... अपने बाप के दुश्मनों को रास्ते हटा दिया... सारे इल्ज़ाम अपने सिर लेकर... क्षेत्रपाल नाम पर से कलंक मिटा दिया... वही असली बेटा होता है... तुमने क्या किया... मौका था... अपने बाप के खातिर... उसे रास्ते से हटा सकते थे... पर नहीं... जहां तुमसे कुछ नहीं हुआ... तब मुझे यह कदम उठाना पड़ा...
विक्रम - और उसकी कीमत... वीर को हमने खो दिया...
भैरव सिंह - वीर ने वह रास्ता खुद चुना था... उससे जल्दबाजी हो गई...
विक्रम - पहली बात... यह तो साबित हो गया... आप चाहते तो... वकीलों की फौज खड़ा कर सकते थे... पर किया नहीं... और जो उसे बचा सकता था... उसे आपने मारने के लिए... कोई कसर छोड़ा नहीं...
भैरव सिंह - बस... बहुत हो गया... अपनी सीमा लांघ रहे हो... मत भूलो... हम राजा साहब हैं...
विक्रम - जी राजा साहब... इसलिए तो मैंने अनुरोध किया... मैं अब चाचाजी को समझा बुझा कर ले जाऊँगा... आप तब तक... अपने कमरे में ही रहें... क्यूँकी... (आवाज़ में भारी पन आ जाती है) वीर मेरे लिए बहुत मायने रखता था... कहीं आपको सामने देख कर... मेरे वही ज़ज्बात फुट ना पड़े... (कह कर मुड़ कर जाने लगता है)
भैरव सिंह - बहुत दर्द देता है... (विक्रम रुक जाता है) जब अपनी ही औलाद... हार की वज़ह बनता है... (विक्रम मुड़ कर देखने लगता है)
विक्रम - दर्द... ज़ज्बात... एहसास... यह सब इंसानों के लिए होते हैं....
भैरव सिंह - कहना क्या चाहते हो...
विक्रम - आप मतलब परस्त... खुदगर्ज तो हैं... पर इंसान हरगिज नहीं... क्षेत्रपाल की केंचुली में छुपे वह शैतान हैं... जो खुद को हर किसी का विधाता बना बैठा है... जिसकी तरह बनने के लिए... मैंने और वीर ने कई बार कोशिश की... पर... पर अच्छा ही हुआ... हम आपके जैसे नहीं बन पाये...
भैरव सिंह - हाँ... ठीक कहा तुमने... विधाता हैं हम... राजगड़ यशपुर ही नहीं... हर उस साँस लेकर जीने वाले की... विधाता हैं हम... और तुम अपने विधाता से टकराओ मत...
विक्रम - नहीं मैं टकरा नहीं रहा... मैं अनुरोध कर रहा हूँ... अब तक की हमारी तकदीर आपने लिखी है... बस कुछ पल के लिए... मुझे मेरी तकदीर को परखने दीजिए... मुझे चाचा और चाची जी को यहाँ से ले जाने दीजिए...
भैरव सिंह - हर वह वाक्या... या हर वह हादसा... जिसमें क्षेत्रपाल की हार लिखी हो... वह हरगिज नहीं होगी... ना तो तुम... ना ही पिनाक और सुषमा... कोई नहीं जाएगा...
विक्रम - अपने बेटे से हार जीत का यह भरम पालने लगे हैं... मुझसे लिया हुआ एक वादा... और मेरा किया हुआ वादा... पूरा करना है...
भैरव सिंह - तुम्हें इसी घर के चार दीवारी के अंदर रहकर पूरा करना है... इसी में... हमारी जीत है... वर्ना एक रंडी की बद्दुआ जीत जाएगी...
विक्रम - मुझे कोई मतलब नहीं है... आज मैं तय कर आया हूँ... चाचा और चाची दोनों को ले जाऊँगा... आपसे जो बन पड़ता है... कीजिए...
विक्रम इतना कह कर पलट कर चला जाता है l भैरव सिंह गहरी गहरी साँस लेने लगता है l कमरे की दीवार पर लगे एक स्विच दबाता है l जिससे एक कॉलिंग बेल बजती है l भीमा दौड़ते हुए आता है l उधर विक्रम सीधे जाकर दीवान ए खास में पहुँचता है l वहाँ देखता है पहले से ही रुप और सुषमा शुभ्रा को लेकर एक सोफ़े पर बैठे हुए हैं l तीनों के आँखों में आँसू थे l विक्रम पिनाक की ओर देखता है वह मुहँ फाड़े बेवक़ूफ़ों की तरह तीनों औरतों को देखे जा रहा था l पिनाक के चेहरे पर दाढ़ी बढ़ी हुई थीं बालों के रंग छूटने लगे थे शायद सब सफेद दिख रहे थे l विक्रम को देखते ही पिनाक अपनी जगह से उठता है और विक्रम के पास आता है और विक्रम की कॉलर पकड़ कर पूछने लगता है
पिनाक - तुम... वीर को अपने साथ नहीं लाए... मैंने वादा लिया था तुमसे... तुम नहीं निभा पाए...
विक्रम - मैं शायद हार गया था... पर आपके वीर ने मुझे हारने नहीं दिया...
पिनाक - (आश भरी आँखों में एक चमक आ जाती है) मतलब... वीर... वीर...
विक्रम - मैं वीर को नहीं लाया हूँ चाचाजी... मेरा तो सिर शर्म और ग्लानि के चलते झुक गया था... पर अगर आज अपना सिर उठा कर यहाँ आया हूँ... तो वज़ह वीर ही है... हाँ चाचाजी... मुझे यहाँ वीर ही लाया है... ताकि मैं यहाँ से... इस नर्क से... आप दोनों को ले जाऊँ...
पिनाक - वीर... तुम्हें... ल.. लाया है...
विक्रम - हाँ चाचाजी...
विक्रम शुभ्रा को इशारा करता है l शुभ्रा अपनी जगह से उठकर आती है l विक्रम पिनाक का हाथ लेकर शुभ्रा के पेट पर रख देता है l
विक्रम - वीर... अब फिर से आएगा चाचाजी.... जो कसर प्यार की अनुराग की रह गई है... वह आपसे लेने दुबारा आ रहा है... (पिनाक एक निराशा और आश्चर्य भाव से देखता है) हाँ चाचाजी... मैं कोई कहानी नहीं कह रहा हूँ... वीर ने.. शुभ्रा जी से वादा लिया है... उनका बेटा बनकर वापस आएगा...
पिनाक की रुलाई फुट पड़ती है l रोते रोते वह अपने घुटनों पर आ जाता है और शुभ्रा की पैर पकड़ लेता है l शुभ्रा ग्लानि बोध के चलते असहज हो कर पीछे हट जाती है l
पिनाक - हाँ बहु हाँ... वीर ने सही वादा माँगा है तुमसे... वह और मैं... कभी साथ नहीं थे... पर तुम्हारी और विक्रम के बीच दूरियाँ बनाने के लिए... मिलकर कोशिश जरूर की थी... आज वह उसका प्रायश्चित करने फिरसे आएगा... नहीं नहीं... आ रहा है...
कह कर रोने लगता है l विक्रम झुक कर पिनाक को उपर उठाता है और कहता है l
विक्रम - आपने मान लिया... मेरा मान रख दिया... अब हमें चलना चाहिए... चलिए...
सभी खड़े होकर जब कमरे से निकलने वाले होते हैं तब दरवाजे पर भैरव सिंह को देख कर रुक जाते हैं l भैरव सिंह का चेहरा बाट सख्त हो गया था और जबड़े भींचे हुए थे l विक्रम आगे आता है
विक्रम - आज आप ना तो हमारे रास्ते में आयेंगे... ना ही रोकने के लिए कोई कोशिश करेंगे... मैंने आपको समझा दिया था...
भैरव सिंह - राजा को समझाया नहीं जाता... सलाह दी जाती है... हमारी जुतें पैर में आ गए... मतलब यह नहीं कि आप हमें समझाने की औकात पर आ गए... मत भूलिए... यह राजगड़ है... हम कुछ भी कर सकते हैं...
विक्रम - जानता हूँ... आप कुछ भी कर सकते हैं... और क्या कर सकते हैं.. मैं देख चुका हूँ... पर आज नहीं... आज हमें जाने दीजिए... आपकी भी इज़्ज़त रहेगी... और मेरे वचन का मान भी रह जाएगा....
भैरव सिंह - तुम लोगों का... इस वक़्त... महल से जाना... हमारे लिए बड़ी हार होगी... और यह हमें कतई स्वीकार नहीं... हो सकता है... दो तीन दिन में... हमें गिरफ्तार कर... कोर्ट में पेश किया जाएगा... तब तुम लोग चले जाना...
विक्रम - नहीं राजा साहब... नहीं... यह मसला हार या जीत का नहीं है... उससे भी बढ़कर है... इसे सलाह नहीं दिया जाता... समझाया जाता है... और भले ही आपका जुता मेरे पैर आ गया हो... पर समझाने की औकात नहीं है...
भैरव सिंह - हम तुम्हें समझाने आए थे... अब आगाह कर रहे हैं... नहीं तो...
विक्रम - नहीं तो... क्या... ज्यादा से ज्यादा आप वही करेंगे... जो आपने हमारी माँ के साथ किया था...
भैरव सिंह - (हैरानी के मारे आँखे फैल जाते हैं) क... क्या.. क्या किया था...
विक्रम - इतना तो ज़रूर कह सकता हूँ... मेरी माँ ने आत्महत्या नहीं की थी...
भैरव सिंह रास्ते से हट जाता है l विक्रम सबको साथ ले जाने के लिए पलटता है, और सबसे इशारा कर अपने साथ आने के लिए कहता है l सभी आगे जाते हैं पर रुप रुक जाती है l
विक्रम - क्या हुआ रुप... चलो मैं यहाँ से... सबको ले जाने आया हूँ...
रुप - नहीं भैया... इस घर से मैं ऐसे नहीं जाऊँगी... वैसे भी दादाजी की हालत ठीक नहीं है... कोई तो अपना होना चाहिए... उनकी देखभाल के लिए... शायद यही वह ऋण है... जो मुझे जाने से रोक रही है...
विक्रम - नहीं रुप... तुम अकेली यहाँ कैसे रहोगी... तुम यहाँ रहोगी तो... मुझे चैन नहीं रहेगा...
रुप - घबराओ मत भैया... मैंने राजा साहब से वादा किया था... जब भी जाऊँगी... सिर उठा कर... आँखों में आँखे डाल कर जाऊँगी... ऐसी हालत में... तो बिल्कुल नहीं...
विक्रम कुछ कहने को होता है कि सुषमा उसके कंधे पर हाथ रखकर रोक देती है l रुप आँखों में आँसू लिए अंतर्महल की ओर भाग जाती है l रुप के वहाँ से चले जाने के बाद विक्रम शुभ्रा, सुषमा और पिनाक को अपने साथ लेकर बाहर की जाने लगता है l
भैरव सिंह - (रौबदार आवाज में) विक्रम... (विक्रम के कदम ठिठक जाती है) तुम्हारा अगला कदम... तुम्हें क्षेत्रपाल के हर विरासत से अलग कर देगा... ना नाम से... ना दौलत और रुतबे से... किसी भी तरह से कोई भी वास्ता नहीं रहेगा... हम तुम्हें हर एक चीज़ से बे दखल कर देंगे...
विक्रम अपना कदम आगे बढ़ाता है और कुछ कदम आगे बढ़ाने के बाद फिर रुक जाता है l फिर वह शुभ्रा, सुषमा और पिनाक को छोड़ कर मुड़ता है और भैरव सिंह के सामने आकर खड़ा होता है l भैरव सिंह के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान उभर जाती है l विक्रम अपनी जेब से कुछ कागजात निकालता है और भैरव सिंह की ओर बढ़ा देता है l
विक्रम - कहने को भूल गया था... भुवनेश्वर में जो कुछ प्रॉपर्टी बनाया था... वह आपके नाम,रौब और रुतबे के दम पर बनाया था... यह उसकी इंश्योरेंस पेपर है... मैंने पहले से ही नॉमिनेशन पर आपका नाम लिख दिया था... यह आपको दिए जा रहा हूँ... अच्छा हुआ... आपने मुझे बेदखल करने की बात कही... और मैं आज बेदखल हो गया.. माँ को दिया हुआ वादा भी नहीं टूटा...
भैरव सिंह उन कागजातों को अपने हाथों में लेकर फेंक देता है l पर विक्रम कोई प्रतिक्रिया नहीं देता बल्कि बिना पीछे देखे सबको लेकर बाहर चला जाता है l पीछे भैरव सिंह का चेहरा गुस्से और असहायता में तमतमा रहा था l
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विश्व किसी गहरी सोच में डूबा हुआ है l उसके पास सारे दोस्त सीलु जिलु मिलु और टीलु बैठे हुए हैं l उनके चेहरे पर मायूसी के साथ साथ टेंशन दिख रही थी l वैदेही कमरे में आती है l
वैदेही - क्या हुआ... तुम सबके चेहरे... ऐसे लटके क्यूँ हैं... (किसीसे कोई जवाब नहीं मिलता) सीलु... क्या बात है...
सीलु - हम भी तभी से यही सोच रहे हैं दीदी... भाई जब से आए हैं... पता नहीं किस सोच में खोए हुए हैं...
वैदेही - तो उससे पूछा क्यूँ नहीं...
मिलु - पूछा था... पर जवाब ही नहीं मिला...
जिलु - या फिर हम जानते हैं...
टीलु - शायद इसीलिए... हम भी मुहँ लटकाये भाई का साथ दे रहे हैं...
वैदेही - क्या... (फिर कुछ सोचने के बाद) ओ... विशु...
विश्व - (जैसे होश में आता है) जी... जी दीदी...
वैदेही - क्या.. वीर के बारे में सोच कर परेशान हो रहे हो....
विश्व - मेरा सोचना और परेशान होना... वीर के लिए नहीं है दीदी...
वैदेही - फ़िर...
विश्व - वह... मैं... (कह नहीं पाता)
सीलु - भाई... तुम बताओ या ना बताओ... हम जानते हैं...
वैदेही - मैं जब से आई हूँ... क्या चल रहा है यहाँ... कोई कुछ कह रहा है..
टीलु - दीदी... भाई सोच रहे हैं... वह हमें... यहाँ से चले जाने के लिए कैसे कहें...
वैदेही - क्या... विशु...
विश्व - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) हाँ दीदी... वीर को खोने का दर्द... मैं फिर से अपने दिल पर ले नहीं सकता...
जिलु - फिर भी हम तुम्हारे दिल की बात समझ गए... है ना.. (विश्व चुप रहता है) देखा दीदी... भाई इस लड़ाई से हमें दूर रखना चाहता है... पर यह अच्छी तरह से जानता है... हम घर के वह कुत्ते हैं... जो लतिया जाने के बाद भी... दुम हिलाते रहेंगे... पर घर या मुहल्ला छोड़ कर नहीं जाएंगे...
वैदेही - विशु... तु इन लोगों को... यहाँ से भगाना क्यूँ चाहता है...
विश्व कुछ नहीं कहता है, वह अपनी जगह से उठाता है, कमरे के खिड़की के पास आता है और बाहर झाँकने लगता है l फिर अपनी आँखे बंद कर लेता है l
वैदेही - विशु... मैंने तुमसे कुछ पूछा...
मिलु - दीदी... माना कि वीर.. भाई का अच्छा दोस्त था... शायद हमसे भी बेहतर... पर वह विश्वा भाई की गलती से नहीं मरा... अपनी गलती से मरा...
सिलु - हाँ...
जिलु - और हम ऐसी बेवकूफी थोड़े ना करेंगे...
विश्व - (कड़क आवाज में) बस... वीर ने जो किया... वह कोई बेवकूफी नहीं थी... वह उसका जुनून था... अपने प्यार के लिए... रही उसके मरने की बात... मुझसे थोड़ी गलती हुई तो है...
वैदेही - कैसी गलती...
विश्व - (पीछे मुड़ता है) मैं इस बार थोड़ा चूक गया... दीदी... मुझे... ओंकार का खयाल तो रहा... पर.. मैं... भैरव सिंह को... अपनी दिमाग से हटा दिया था...
सभी - भैरव सिंह...
वैदेही - कटक में... भैरव सिंह कहाँ से आ गया...
विश्व - दीदी... कटक में... हिंडोल में जो हमला हुआ था... वह मेरे लिए था... पर वह हमला... ओंकार चेट्टी ने नहीं... बल्कि भैरव सिंह ने करवाया था... (सबकी आँखे शॉक के मारे फैल जाती हैं) हाँ...
वैदेही - इस बात का पता तुझे कब चला...
विश्व - ओंकार जिन बंदों को पीछे छोड़ा था... वह सब... रॉय सेक्यूरिटी के थे... पर जो लोग हम पर हमला किए थे... उनके पास... मेरी पहचान एक बच्चा चोर की थी... ऐसा उन्हें दो तीन दिन पहले से ही बता दिया गया था...
वैदेही - तु उसी रास्ते से जाएगा... यह उन्हें कैसे पता चला...
विश्व - उन्हें पता नहीं था... इसीलिए... कोर्ट के आसपास... कुछ इलाक़ों में यह बात फैलाई गई थी... मेरी फोटो के साथ...
वैदेही - तु कहना क्या चाहता है...लोगों के पास यह खबर थी... तो उन्होंने पुलिस को खबर क्योँ नहीं किया...
विश्व - पुलिस ने ही.. उन तक यह खबर फैलाई थी...
वैदेही - क्या...
विश्व - हाँ... व्यवस्था में अभी भी... राजा के वफादार मौजूद हैं... उसने यह कांड कर मुझ तक खबर पहुँचा दिया है... के वह मेरे आसपास लोगों तक कभी भी पहुँच सकता है...
सीलु - फिर भी हम तुम्हें छोड़ कर नहीं जाएंगे...
विश्व - देखो...
टीलु - हम नहीं देखेंगे... तुम सुनो... राजा उस सांप की तरह है... जो भूख लगने पर... अपने बच्चों तक को खा सकता है... पर हम अब तुम्हारे लिए... तुम्हारे साथ जी रहे हैं... मरेंगे भी तुम्हारे लिए...
विश्व - ओ हो... तुम लोग समझ क्यूँ रहे हो... मैं अपनी स्वार्थ के लिए तुम लोगों की बलि नहीं ले सकता...
मिलु - क्या कहा तुमने... बलि... अपना स्वार्थ... तुमने हमें भाई कहा था... माना था... (वैदेही से) दीदी... हम चार अनाथ थे... रिश्ता... विश्वा भाई के आने के बाद... भाई से आपसे जुड़ा...
जिलु - हाँ दीदी... हम विश्वा भाई की बात मान लेंगे... बस तुम इतना कह दो... जब मुहँ पोछने के लिए... तुमने अपना आँचल दिया था... विश्वा भाई और हमको अलग सोच कर दिया था... या... अपना भाई समझ कर दिया था...
वैदेही चुप रहती है l वह विश्व के तरफ असहाय दृष्टि से देखती है l विश्व उसकी विवशता समझ सकता था l क्यूँ की वह खुद भी विवश ही था l तभी कुछ लोग बाहर से वैदेही को आवाज़ देते हैं l सभी लोग बाहर जाते हैं l
वैदेही - क्या हुआ... क्या हो गया...
एक - दीदी ... युवराज... और छोटे राजा... पैदल कहीं चले जा रहे हैं... उनके साथ दो औरतें भी हैं...
विश्व उस आदमी के साथ उस दिशा में जाने लगता है l उसके पीछे पीछे वैदेही और वह चार भी जाने लगते हैं l कुछ दूर जाने के बाद उन्हें विक्रम, पिनाक, शुभ्रा और सुषमा दिखते हैं l गाँव वाले कुछ दूरी बना कर उनके पीछे चल रहे थे l
विश्व - (विक्रम से) यह.. आप सब... पैदल... कहाँ जा रहे हैं...
विक्रम - महल, दौलत... रौब रुतबा... यह सब हमें और रास नहीं आई... इसलिए सड़क पर आ गए...
विश्व - सड़क पर...
विक्रम - हाँ... जो वीर ने किया था... वही मैंने भी किया... पर मुझे बहुत देर हो गई...
विश्व - अब... आगे...
विक्रम - जहां तकदीर ले जाए...
वैदेही - युवराज... आपकी धर्मपत्नी पेट से हैं... हैं ना...
विक्रम - जी...
वैदेही - युवराज... आपके पुरखों ने... इन्हीं गाँव वालों पर.. जुल्म की इन्तेहा कर दी थी... क्या आप इन्हीं गाँव वालों के बीच रह सकते हैं... (विक्रम अपनी भौहें सिकुड़ कर वैदेही की ओर देखता है) इसमे हैरान होने वाली कोई बात नहीं है युवराज... अब की लड़ाई में... गाँव वालों पर हुए हर अत्याचार का हिसाब होगा... अगर आप उनके बीच रहेंगे... तो उन्हें जीत का भरोसा होगा...
सुषमा - हमें लोग अपनी समाज में क्यूँ स्वीकार करेंगे... पुरखों की गुस्से का दावानल... हमें जला भी सकता है...
वैदेही - मैं इस बात की आश्वासन दे सकती हूँ... मेरे जीते जी... आप पर कोई आँच भी नहीं आएगी....
गाँव वाले आपस में खुसुर-पुसुर करने लगते हैं l शुभ्रा विक्रम की बांह को कस कर पकड़ लेती है l विश्व और उसके सारे दोस्त वैदेही की बात से हैरान थे l विक्रम शुभ्रा की हाथ छुड़ाता है और वैदेही के सामने हाथ जोड़ कर कहता है
विक्रम - आप सच में... अन्नपूर्णा हैं... मैं आपकी कही इस बात को मानता हूँ... जब तक लोगों का केस में न्याय नहीं मिल जाता... चाहे मुझे इनसे घृणा मिले या प्यार... इनके बीच मैं रहूँगा...
Behad shandar update he
Kala Nag Bhai,
Vir marte marte ek achcha kaam kar gaya...............sabhi bure kaamo ka ilzam apne sar lekar usne vikram aur pinak ko bacha lliya
Vishwa ko pata tha ki us apr hamla hairav singh ne karwaya he..........aur uski chaal bhi bahut hi solid thi........
Vishwa ki photo bachcha chor ke rup me pehle se pure ilake me circulate karwa di thi wo bhi police ki help se......
Vikram ne aakhir mahal ko chhod hi diya.............ye ek aur keel gad gayi he bherav singh ke tabut me.........
Rup ne apna wada nibhaya.......wo mahal se jayegi to aankho se aankhe milakar............vishwa ke sath
Zilu, Silu aur Tilu wala scene bahut hi badhiya aur emotional raha...........sachche dosto ki tarah ye tino bhi vishwa ka marte dam tak sath nahi chhodne wale.........
Vaidehi ki baat mankar ab vikram sabke sath gaanv me hi rahega...............vishwa ko iska fayda jarur milega
Agli update ki pratiksha rahegi Bhai