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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

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*Index *
 
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Kala Nag

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Kala Nag भाई, आशा है कि आप सकुशल हैं।
लगता है कि इस चुनाव ने आपकी सारी ताकत चूस ली है। कोई बात नहीं, आप समुचित अवकाश ले लें।
हम बेचारे पाठक लोग इंतज़ार कर लेंगे :)
भाई चुनाव ने जो हाल किया पूछिये मत
कुछ सुस्ताना चाह रहा था के छुट्टियां मनाने मेरे घर में मेहमान आ गए
कोविड के बाद यह पहला मौका था जब घर पर इतने महमान आ गए
तो फुर्सत ही नहीं निकाल सका
खैर आज अपडेट प्रस्तुत कर दूँगा
 

Kala Nag

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Aapki is kahani ki baat hi kuch alag hai jab bhi padhta hu bas kho sa jata hu kahani me aapko salaam hai bhai

Bahut hi shandaar update hai bhai har baar ki tarah maza aa gaya
शुक्रिया Rajesh भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया
 
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Kala Nag

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प्रतिभा जी वाली बात बेहद बे-सर-पैर लगी। मेरी पहचान में एक दीदी हैं - उनको पहली लड़की हुई थी। दूसरी बार जब वो प्रेग्नेंट हुईं, तो उनको “विश्वास” था कि लड़का ही होगा। ऐसा विश्वास कि उसके अतिरिक्त कोई अन्य सच्चाई हो ही नहीं सकती। उनका चेहरा देखने वाला था जब उनको दूसरी बार भी लड़की ही हो गई। बच्चे तो दोनों ही अच्छे हैं! क्या लड़का, क्या लड़की! आपके चाहने, विश्वास करने, ज़िद्दियाने इत्यादि से प्रकृति की सच्चाई नहीं बदल सकती।

ख़ैर, ये कहानी है - इसलिए ओवर-एनालिसिस नहीं करनी चाहिए... अब आगे चलते हैं।

यह खुलासा बहुत रोचक था कि विक्रम और विश्व को रोकने का बंदोबस्त राजा ने ही करवाया था। सुभाष जी का कहना सही है... अगर यह खेल ड्रॉ हो गया... तो विश्व की जान खतरे में आ जाएगी।

चलो, अब कम से कम विक्रम ने भैरव के सामने ख़िलाफ़त शुरू कर ही दी। लॉन्ग टाइम पेंडिंग! भैरव का चरित्र पढ़ कर कभी कभी लगता है कि क्या कोई इतना मूर्ख हो सकता है कि झूठे अहंकार के सामने परिवार / सम्बन्ध की कोई हैसियत ही न रहे। लेकिन फिर आज कल के विभिन्न cultists (राजनीतिक, धार्मिक, खेल-कूद, इत्यादि) को देखता हूँ, तो लगता है कि यह तो आराम से हो सकता है। जब लोग अपने झूठे आराध्य के सामने, क्या अपने बाप, क्या माँ - किसी को भी नाप देते हैं, तो ये तो फिर भी राजा है। ताक़तवर है। ख़ैर, विक्रम का यह विरोध पढ़ कर अच्छा लगा - देर आया, लेकिन दुरुस्त।

पिनाक का शुभ्रा के पैर पड़ना देख कर सही लगा। माताएँ अमूनन आराध्य होती हैं... जो जीवन दे, लालन-पालन करे, वही भगवान है! और पिनाक के केस में वो यह भी सोच रहा होगा कि उसका वीर, अब शुभ्रा के गर्भ से आने वाला है। लिहाज़ा, वो सम्माननीय भी है। इस प्रकरण में भैरव का व्यवहार बचकाना लगा। अगर उसको लगता है कि केवल दौलत के बिनाह पर वो किसी को भी खरीद सकता है, तो वो इतना बड़ा स्ट्रैटेजिस्ट नहीं है, जितना वो स्वयं को सोच रहा है। अब उसके पास साम और भेद - यही दो विकल्प बचे हैं। दण्ड और दाम विक्रम एंड कंपनी पर असर नहीं करने वाले।

इस अपडेट के आखिरी हिस्से में विश्व का व्यवहार भी मूर्खतापूर्ण होता जा रहा है। वो भी गलती कर रहा है - स्वयं को इतना सक्षम मान कर कि जैसे वो अपने हिस्से के लोगों का रहनुमा हो! भैरव वाली ही गलती है यह। वीर ने जो किया, बहुत सोच-समझ कर किया। विक्रम, पिनाक, रूप इत्यादि जो कर रहे हैं, सोच समझ कर कर रहे हैं। उसी तरह, सीलु जिलु मिलु और टीलु भी! सबका बाप बनने की गलती नहीं करनी चाहिए विश्व को। सभी जानते हैं कि भैरव से दो-चार होने का कुछ दाम तो देना ही पड़ेगा।

संजू भाई की बात से सहमत हूँ - गाँव वाले पशु हैं। उनको जिधर हाँक दो, चले जाएँगे। उनके बारे में सोचना समय को व्यर्थ करना है। उनकी इतनी हैसियत ही नहीं कि विक्रम और उसके परिवार की तरफ़ देख भी सकें। मरा हुआ हाथी भी सवा लाख का होता है। विक्रम / पिनाक का वही स्टेचर है। “इस पुरे गाँव मे एक ही मर्द है , एक ही औरत है और वह दोनो सिर्फ और सिर्फ वैदेही है।” -- संजू भाई SANJU ( V. R. )


Kala Nag भाई, बड़ा आनंद आया। कैसे हैं आप? इलेक्शन ड्यूटी की कोई कहानी हो, तो बताएं! :)
मैं आपको प्रतिक्रिया पर कोई टिप्पणी करना नहीं चाहता l दिल दुखा है उस दर्द से मैं अवगत हूँ आहत भी हूँ पर क्या करूँ तीर निकल चुका है l कहानी अपनी अंतिम पड़ाव की ओर अग्रसर है l वैदेही निःसंदेह मुख्य पात्र है पर अन्न परोसने के चक्कर में खिचड़ी बन गई अब समेट रहा हूँ l कहानी का अंत पसंद आएगा ऐसी आशा व्यक्त कर रहा हूँ l
 
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Kala Nag

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एक ऐसी बुरी घटना जिसके बारे में कोई सोचता भी नहीं हैं, अगर वो हो जाए तो लोग अपना आपा खोकर किसी को भी, इंसान तो क्या भगवान को भी अपना दुश्मन बना लेते है, ऐसी ही एक-एक घटना यहां पर राजा साहब और वीर के संग हुई हैं ये घटनाएं ही बहुत भारी तूफान लेकर आती है।

जहां एक तरफ राजा साहब ने सोचा भी नहीं था की कोई उनके पूरे साम्राज्य पर एकसाथ हमला कर उन्हे अपने हो राजमहल में बंदी बना सकता है।

वहीं दूसरी तरफ वीर ने भी अपने प्रेम, अपनी प्रियतमा को को दिया है, जो की सबसे घातक सिद्ध होगा क्षेत्रपालो के लिए।
अब वीर को पिनाक सिंह के खून के अतिरिक्त किसी से कोई मतलब नहीं होगा।

तापस सेनापति का विश्व पर नजर रखना और उसे इतना बड़ा बैक-सपोर्ट देना ये लाजमी है क्योंकि उन्होंने भी तो वीआरएस किसी कारण वश ही लिया होगा ना और वो कारण अब पता भी लग गया की उन्हे पहले से ही ये अंदेशा था की राजा साहब को अकेले सिर्फ विश्व नहीं घेर पाएगा। इसलिए एक पिता होने के नाते उन्होंने अपने पुत्र को रक्षा के लिए शतरंज की ही तरह सेना का निर्माण कर दिया है। अब समझ आया की क्यों शतरंज खेला जा रहा हैं।

एक दम मस्त अपडेट भाई साहब
शुक्रिया मेरे दोस्त आपका बहुत बहुत शुक्रिया
 
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Kala Nag

Mr. X
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मित्रों
मिथुन संक्रांति को ओडिशा में रज पर्व कहा जाता है l कल ही घर से सारे मेहमान गए हैं l मैं कल से ही कहानी का अंश लिखने में व्यस्त था l
जिनके उत्सुकता का उत्तर ना दे पा रहा हूँ उनसे क्षमा चाहता हूँ l
आज रात दस बजे तक कहानी का अगला भाग प्रस्तुत कर दूँगा
आप के प्रेम व शुभकामनाओं के लिए तह दिल से आभार
 

Kala Nag

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👉एक सौ चौवनवाँ अपडेट
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सूरज ढल रहा था l रौशनी मद्धिम पड़ चुकी थी l अँधेरा धीरे धीरे बढ़ता जा रहा था l कनाल के सीढ़ियों पर विश्व उस ढलते सूरज को देख रहा था l उसके पास एक सीढ़ी के ऊपर कोई आकर बैठता है l विश्व मुड़कर देखता है, वह विक्रम था l विश्व वापस ढलते सूरज की ओर देखने लगता है l

विक्रम - तुम यहाँ क्या कर रहे हो...
विश्व - क्षितिज पर ढलते सूरज को... समझने की कोशिश कर रहा हूँ...
विक्रम - सूरज कोई संदेश दे रहा है क्या...
विश्व - पता नहीं...
विक्रम - (एक सीढ़ी उतर जाता है और विश्व के बराबर बैठ जाता है)
विश्व - कैसी गई तुम्हारी रात...
विक्रम - पता नहीं...
विश्व - क्यूँ... हाँ... उस घर में एसी नहीं है... शायद मच्छर भी होंगे... आदत जो नहीं होगी...
विक्रम - हाँ बात तो... सच है.. पर...
विश्व - पर...
विक्रम - (एक पॉज लेकर) वह घर तुम्हारा है ना... वैदेही जी कह रहीं थीं.. तुम्हारा जन्म उसी घर में हुआ था...
विश्व - हाँ हुआ होगा... दीदी ने कहा था... मुझे जन्म देकर मेरी माँ चल बसी थी... मेरे लिए मेरी दीदी ही मेरी माँ है और मेरे पिता भी... उसीने मुझे बोलना दिखाया... देखना सिखाया... चलना सिखाया और भागना भी... वह मेरे लिए देवी है...
विक्रम - वाकई वह देवी हैं... सिर्फ तुम्हारे लिए ही नहीं... गाँव वालों के लिए भी...
विश्व - हाँ... वह देवी है... वह कभी किसी में कभी फर्क़ नहीं की है... आज भी उन गाँव वालों के लिए ही डटी हुई है... जिन्होंने उसके बदकिस्मती की आवाज पर कोई जवाब तक नहीं दिया... जिन्होंने राजा के आदमियों के कहने पर... डायन समझ कर पत्थरों से मारा... उन सबको मेरे दीदी ने माफ कर दिया... वह बहुत मजबुत है... इतना कुछ होने के बावजूद... ना यह गाँव छोड़ा.. ना गाँव वालों को...
विक्रम - मैंने घर छोड़ दिया... गाँव छोड़ने की सोच रहा था... पर असमंजस में था... अपने साथ उन चार जिंदगियों को लेकर कहाँ जाता... मैं उस पसोपेश में था कि... तुम्हारी दीदी ने मुझे उस पसोपेश से बाहर निकाल दिया... और देखो ना... आज अपने अन्नपूर्णा भंडार से खाना भी भेज दिया...
विश्व - (कोई जवाब नहीं देता)
विक्रम - विश्व... मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है... तुम मुझसे कई गुना बेहतर हो... हर लिहाज से... फिर भी मैं तुम्हारे सामने अपने गुरुर पर कायम था... झूठा ही सही... तुमसे जीता भी और तुम्हारी माता जी से तुम्हारे लिए... हाथ जुड़वा कर अनुरोध भी करवाया... अपनी झूठी अहं को खुश करने के लिए... जानते हो... एक गुरूर हमें विरासत में मिली थी... क्षेत्रपाल के हाथ कभी आसमान नहीं देखती... किसी से मांगते नहीं... या तो छिनते हैं... या फिर दे देते हैं... शायद दीदी को यह मालुम था... इसलिए मेरी अहं की लाज रखते हुए... मेरे हाथों को फैलाने नहीं दीया... मुझे आसरा दे दी...
विश्व - दीदी है ही ऐसी... उसके दर से कोई कभी भी... खाली हाथ नहीं लौटता है...
विक्रम - इसीलिये तो मेरे मुहँ से बरबस निकल गया... के वह अन्नपूर्णा हैं...

कुछ देर के लिए दोनों चुप हो जाते हैं l सूरज लगभग डूबने को था l अंधेरा धीरे धीरे अपने सबाब पर छा रहा था l

विक्रम - सूरज शायद कुछ सेकेंड के बाद दिखे ना... क्या तुम्हें कोई संदेश मिला...
विश्व - नहीं... अभी तक नहीं... या फिर मेरी समझ में नहीं आया...
विक्रम - क्या तुम इसलिए परेशान हो... रुप मेरे साथ नहीं आई...
विश्व - नहीं... मैं जानता हूँ... वह क्यूँ नहीं आई... और मैं उनके लिए निश्चिंत हूँ...
विक्रम - (थोड़ा चिढ़ कर) ऐसा क्यूँ... विश्व... ऐसा क्यूँ... वह क्षेत्रपाल महल है... और वहाँ पर भैरव सिंह क्षेत्रपाल रह रहे हैं... तुमसे जितने के लिए... किसी भी हद तक जा सकते हैं... देखा नहीं... कटक में क्या हुआ... हमने वीर को खो दिया...
विश्व - (शांत पर खोए खोए लहजे में) हाँ... वीर को खो दिया... तुमने क्या खोया... मैं नहीं जानता विक्रम... पर मैंने जो खोया है... वह मैं बयान नहीं कर सकता... पहली बार... मुझे लगा... के... (विश्व आगे कुछ कह नहीं पाता)
विक्रम - मैं... मैं समझ सकता हूँ...
विश्व - नहीं... तुम नहीं समझ सकते... राजा भैरव सिंह ने... ना सिर्फ मुझे संदेशा दिया है... बल्कि तुम्हें भी संदेश दिया है...
विक्रम - मुझे...
विश्व - हाँ... तुम्हें... वीर को जो सजा अनु की आड़ में मिली है... उसका वज़ह वीर की बगावत है... और इसी में तुम्हारे लिए भी पैगाम है..
विक्रम - (हैरानी के मारे आँखे बड़ी हो जाती हैं) क्या...
विश्व - हाँ... अब तुमने भी बगावत कर दी है...
विक्रम - मैं हैरान नहीं होऊंगा... अगर राजा साहब ऐसा कई कदम उठाते हैं तो... जिन्होंने मेरी माँ को अपने रास्ते से हटा दिया हो... उनके लिए मेरी क्या कीमत...
विश्व - इसीलिए दीदी ने तुम्हें अपनी आँखों के सामने रखा है...
विक्रम - क्या... मतलब वैदेही जी को पहले से ही अंदेशा है...
विश्व - हाँ... (विश्व विक्रम की ओर मुड़ कर) वैसे तुम मुझे यहाँ ढूंढते हुए क्यूँ आए हो...
विक्रम - मुझे रुप की चिंता है... मैंने बुलाया था... पर वह नहीं मानी... उसे शायद तुम्हारा इंतजार है... तुम जाकर उसे क्यूँ नहीं ले आते...
विश्व - पहली बात... तुम जो इतनी आसानी से महल से निकल आए... उसकी वज़ह... राजा की मज़बूरी है... वर्ना तुम भी जानते हो... तुम्हारा महल से निकल आना कितना मुश्किल होता.... और रही राजकुमारी जी की बात... तो राजकुमारी जी ने... राजा साहब की अहंकार को छेड़ा है... मैं राजकुमारी जी को तभी जाकर लाऊंगा... जब भैरव सिंह का अहं... चरम पर होगी... भरम में होगी...
विक्रम - राजा साहब का अहंकार जब चरम पर होगी... तो तुम कहना क्या चाह रहे हो... राजा साहब की गिरफ्तारी नहीं होगी...
विश्व - सात साल जैल में गुजार कर आया हूँ... कानून का हर दाव पेच देख कर सीख कर आया हूँ... मैं किसके साथ उलझ रहा हूँ मैं जानता हूँ... वह ज्यादा देर तक... सलाखों के पीछे नहीं रहेगा... किसी ना किसी बहाने से बाहर आएगा... तब उसके घर के बाहर कोई कानूनी पहरा भी नहीं होगा... तब... तब जाकर मैं... राजकुमारी जी को ले आऊंगा...
विक्रम - तुम जानते भी हो तुम क्या कह रहे हो... तब तुम महल में दाखिल भी नहीं हो पाओगे... अगर ताकत की आजमाइश करोगे... तब भी नहीं जा पाओगे...
विश्व - विक्रम... मैंने तुमसे ज्यादा महल में अपने दिन गुजारे हैं.... मैं महल के हर कोने से... चप्पे-चप्पे से वाकिफ हूँ... मैं अगर अभी राजकुमारी को ले आया... तो राजकुमारी जी का अहं हार जाएगा... और वह मैं कभी होने नहीं दूँगा...
विक्रम - (यह सब सुन कर स्तब्ध हो जाता है) चाची माँ ने सच कहा था... राजा साहब जी के अहं से... किसी एक का अहं टकराया है... और वह रुप है... तुम... तुम वाकई... रुप के लिए ही बने हो... पर... तुम्हें नहीं लगता... तुम रुप को लेकर कुछ ज्यादा ही ओवर कंफिडेंट हो...
विश्व - नहीं... अब जब पूरा महल खाली है... ऐसे में बड़े राजा जी की देखभाल के लिए कोई अपना होना चाहिए... क्यूँकी कल नहीं तो परसों... राजा साहब को... अदालत में पेश होना ही होगा... तब तक... राजकुमारी जी पर कोई आँच नहीं आएगा...
विक्रम - ओह... तुम बहुत दूर की सोच रहे हो...
विश्व - नहीं... मैं पास की ही सोच रहा हूँ... अगर दूर की सोच पाया होता... तो अनु और वीर दोनों... (रुक जाता है)
विक्रम - (एक गहरी साँस लेकर) बात अगर हम वीर की छोड़ दें... तो तुम बहुत खुश किस्मत रहे हो... (विश्व, विक्रम की ओर देखता है) हाँ विश्वा... तुम्हारे जिंदगी में... हर रिश्ते की भरपाई हुई है... माँ बाप खो दिए... माँ बाप मिल भी गए... अच्छे मार्गदर्शक मिले... दोस्त मिले... पर मेरे पास सब थे... पास ही थे... पर सब एहसास ज़ज्बात मुर्दा था... रुप के आने के बाद... हर एक रिश्ता जी उठा...
विश्व - कुछ हद तक तुम सही हो... मैंने कभी अपनी किस्मत से कुछ चाहा नहीं... जो भी मिला... दोनों हाथों से बटोर लिया... माँ बाप का चेहरा याद नहीं है... क्यूँकी उनके जगह मैंने हमेशा दीदी को पाया है... बाकी जो भी रिश्ते है... सब के सब उपहार हैं... पर अब किसीको भी खोने से डर रहा हूँ...
विक्रम - क्या अब जो मिल रहा है... वह मेरे लिए उपहार है... क्या मुझे अपनी इस हालत का.... कद्र करना चाहिए... क्या मेरा वर्तमान... मेरा भविष्य है...

जवाब में विश्व चुप रहता है l फिर से दोनों के बीच खामोशी छा जाती है l विक्रम कुछ सोच कर उठ कर जाने लगता है l विश्व उसे पीछे से आवाज देता है

विश्व - विक्रम... (विक्रम रुक जाता है) अभी जो हालात हैं.. वह तुम्हारा वर्तमान है... शायद इसी में तुम्हारा भविष्य हो... जिसे तुम्हें अपने हाथों से संवारना है... मेरी दीदी गलत हो नहीं सकती...

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कमरे में वैदेही रात के खाने की तैयारी कर रही थी l गौरी कुछ चिंतित अवस्था में कमरे में आती है और एक कोने में जाकर कुर्सी पर बैठ जाती है l उसका सिर झुका हुआ था पर लग रहा था किसी गहरी सोच में खोयी हुई है l उसकी यह हालत देख कर वैदेही पूछती है l

वैदेही - क्या हुआ काकी... क्या हो गया... बड़ी गहरी सोच में डूबी हुई हो...

गौरी अपना सिर उठा कर वैदेही की ओर देखती है और हल्की सी मुस्कान चेहरे पर लाने की कोशिश करती है, पर उसका चेहरा उसका साथ नहीं दे रहा था l वैदेही अपना काम छोड़ कर उसके पास आती है l

वैदेही - क्या हुआ काकी... तुम किस बात पर परेशान हो...
गौरी - नहीं... नहीं तो...
वैदेही - देखो काकी... कुछ तो हुआ है... तुम कभी झूठ बोल पाई हो भला... हाँ तुम अगर बताना ना चाहो तो...
गौरी - नहीं... मैं तुम से कोई भी बात छुपाना नहीं चाहती... पर कैसे कहूँ... यह मैं समझ नहीं पा रही हूँ...
वैदेही - क्या बात बहुत गंभीर है...
गौरी - हाँ...
वैदेही - क्या मुझसे... या विशु से जुड़ी हुई है...
गौरी - हाँ भी और नहीं भी...
वैदेही - ओ हो काकी... बात की जलेबी मत बनाओ... सीधा सीधा कहो... बात क्या है...
गौरी - वह... आज महल में... एक तांत्रिक आया है...
वैदेही - तो... राजा तंतर मंतर कर बचने की कोशिश करेगा क्या...
गौरी - आज से सोलह सत्रह साल पहले... ऐसे ही एक तांत्रिक महल में आया था...
वैदेही - (चुप रहती है)
गौरी - उसके बाद... तेरी खोज शुरु हुई थी... (वैदेही की भौंहे सिकुड़ जाती हैं) हाँ... वैदेही... लगता है... कोई रश्म दोहराया जाएगा... गाँव में किसी ना किसी को उठाया जाएगा....
वैदेही - क्या बकवास कर रही हो काकी... राजा अभी नजर बंद है... ऐसे में...
गौरी - अगर राजा ने उसे बुलाया है... तो यकीनन... उसने आगे क्या करना है... कब करना है... सब सोच रखा होगा...
वैदेही - यह कैसा या कौनसा रश्म होगा काकी... जिसके लिए उसे किसी लड़की की जरूरत होगी... मेरे बाद तो वह रास्ता बंद हो गया था ना...
गौरी - यही तो मैं समझ नहीं पा रही हूँ... मुझे लगा था... तेरे साथ... तेरे बाद यह रश्म सब ख़तम हो गया था.... पर उस तांत्रिक का इस वक़्त यहाँ होना... मुझे आनेवाली किसी खतरे की आहट सुनाई दे रही है... बीच बीच में लड़कियाँ उठा ली जाती थी... या बाहर से उठाई गई लड़कियाँ लाई जा रही थी... पर वह सब भी... बहुत दिनों से बंद था.... अब तांत्रिक का यहाँ पर होने से... कहीं वह सब दोबारा शुरु ना हो जाए...
वैदेही - घबराओ मत काकी... राजा ने इस बार ऐसा कुछ किया तो... लोग पलटवार करेंगे...
गौरी - तेरे कहने का मतलब क्या है... राजा अगर गाँव में से किसीको उठा ले जाएगा... तो... तूने राजा के बेटे को कहीं इसी बात की ज़मानत की तरह रोका है...
वैदेही - नहीं काकी... तुमने ऐसा सोच कैसे लिया... विक्रम को उस वक़्त एक आश और आसरा की जरूरत थी... देने के लिए मेरे पास एक आसरा था... सो मैंने दे दी...
गौरी - मुझसे भूल हो गई तुझे समझने में... पर मुझे लगता है... कभी ना कभी... एक बहुत बड़ा हादसा होने वाला है... कहीं वह काली इतिहास खुद को दोहरा ना दे... पता नहीं इस बार... किस के घर की... लौ बुझ जाएगी...
वैदेही - नहीं काकी... ऐसा कुछ नहीं होगा... तब गाँव वाले मजबूर थे... डरते थे... पर अब अगर राजा ने ऐसी कोई जुर्रत की... तो गाँव वाले उसे सटीक जवाब देंगे... वैसे भी... अब राजा वह शेर है... जिसके मुहँ में ना दांत है... ना पंजे में नाखुन...
गौरी - फिर भी... वह है तो शैतान... अपनी शैतानी से बाज कैसे आएगा...
वैदेही - काकी... विशु कह रहा था... एक दो दिन में... राजा की गिरफ्तारी होने वाली है... उसके बाद तो जैल में सड़ेगा...
गौरी - फिर भी... डरना तो चाहिए... यह कानूनी खेल में... बड़े बड़े मछली छूट जाते हैं... जब कि छोटी मछलियाँ फंस जाते हैं...
वैदेही - ओह ओ काकी... तुम घबराओ मत... मैं और विशु... राजा भैरव के हर वार के लिए तैयार हैं... कम से कम... मेरे होते हुए... इस गाँव में वह इतिहास तो कोई नहीं दोहरा सकता...

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नागेंद्र बिस्तर पर लेता हुआ है l उसका स्वस्थ्य दिन व दिन गिरता जा रहा है l सुषमा नहीं है इसलिए नागेंद्र का खयाल रुप रख रही है l अपनी कुछ नौकरानियों के साथ l इस वक़्त रुप सेबती के साथ मिलकर नागेंद्र को खिलाने के बाद मुहँ और चेहरा साफ कर रही थी l एक और नौकरानी अंदर आती है l

नौकरानी - राजकुमारी जी... राजा साहब ने एक संदेश भेजा है...
रुप - कैसी संदेश...
नौकरानी - राजा साहब अभी इसी कमरे में आना चाहते हैं... उनके साथ एक बाबा हैं... वे बड़े राजा जी को देखने आये हैं और कुछ बातेँ करना चाहते हैं... आपको इसी वक़्त अंतर्महल जाने के लिए कहा है...
रुप - (कुछ सोचने लगती है) ठीक है...

वह सेबती को अपने साथ लेकर वहाँ से चली जाती है l उनके जाते ही भैरव सिंह एक तांत्रिक के साथ प्रवेश करता है l तांत्रिक को देखते ही नागेंद्र के आँखों में चमक आ जाती है l

तांत्रिक - कैसे हो राजा... ओ... बड़े राजा...

अपने टेढ़े थोबड़े को हिला कर पास पड़े कुर्सी पर बैठने के लिए इशारा करता है l तांत्रिक मुस्कराते हुए बैठ जाता है l नागेंद्र भैरव सिंह को इशारे से कुछ पूछता है, पर जवाब तांत्रिक देता है l

तांत्रिक - कुछ दिन पहले ही मुझे खबर भिजवाई थी... तब शायद छोटे राजकुमार जैल में थे... पर हम कुछ कारणों के चलते आ नहीं पाए... सब जानकर दुख हुआ... हाँ देर तो हो गई है... पर इतनी भी नहीं हुई के हम सब ठीक ना कर सकें...

यह सुन कर नागेंद्र हँसने लगता है l उसका चेहरा और भी भद्दा नजर आ रहा था l जब लार बहने लगती है तो भैरव सिंह पास पड़े एक ग़मछा को उठा कर नागेंद्र के तरफ बढ़ा देता है l नागेंद्र बड़ी मुश्किल से ग़मछा थामता है और अपना मुहँ पोंछने लगता है l तांत्रिक यह सब देख कर हँसते हुए कहता है l

तांत्रिक - हा हा हा... चलो अच्छा है... आप दोनों में अहंकार जश का तस है... अच्छी बात है... (भैरव से) तो राजा साहब... कहिये... क्यूँ याद किया और क्या चाहते हैं...
भैरव सिंह - एक अभिशाप से मुक्ति... बड़े राजा जी की हालत तो देख ही रहे हैं... छोटे छोड़ कर राजकुमार जी के साथ चले गए हैं... क्षेत्रपाल का रौब... रुतबा सब... ख़तम हो गया है... उसे वापस हासिल करना है... बरसों पहले.... ऐसी ही हालत थी... एक रस्म अदायगी हुई... फिर हम और ताकतवर बन कर उभरें... अब फिर से वही ताकत और हैसियत हासिल करनी है... पर कैसे... क्या उसी रस्म को दोहराना है... या कुछ और करना है...
तांत्रिक - राजा साहब... जब आपका विरासत संभालने के लिये... आपका वारिस ही छोड़ चला गया हो... फिर किसके लिए आप अपनी विरासत को समेटना चाहते हैं...
तांत्रिक - किसी रंडी को क्षेत्रपाल पर हावी होते... देख नहीं सकते... बड़े राजा जी से एक वादा किया है... वह अभी अधूरा है... उसे छोड़ नहीं सकते...
तांत्रिक - शाबाश.... आप सच में एक जुनूनी शख्स हैं... पर जब वारिस ही नहीं साथ में... फिर किस बात पर मोह...
भैरव - हमें... मसलने में... कुचलने में... रौंदने में जो सुकून मिलता है... हम उसे छोड़ नहीं सकते... जो गलतियां हुईं हमसे... उन्हें भुलाना चाहते हैं... फिर से नया इतिहास लिखना... बनाना चाहते हैं...
तांत्रिक - हा हा हा हा... शाबाश... राजा... आप एक शैतान हो... जो इंसानी खाल में बस कर भगवान के कुर्सी पर बैठना चाहता है... शाबाश...
भैरव सिंह - हाँ इसके लिए जो भी मंत्र का जाप हो करें... अपनी मंत्र सिद्धि से... हमारे रिष्ट खंडन करें...
तांत्रिक - इस बार तुम गलत हो राजा... हमें मंत्रों पर सिद्धि प्राप्त नहीं है... तंत्रों पर सिद्धि प्राप्त है... मंत्र सात्विक वालों के लिए होती है... हम तांत्रिक हैं... तामसिक सिद्धियों के लिए तंत्र साधना करते हैं... हमारी वृत्ति... प्रवृत्ति... आचरण... और संलिप्ती... पूर्णतः तामसिक होती है...
भैरव सिंह - तो वही सही... पर कीजिए कुछ... जैसा आपने सोलह साल पहले करवाया था...
तांत्रिक - वह बहुत ही वीभत्स था... पर सुना है... वह लड़की रंग महल से भाग गई थी... और उससे कोई बच्चा भी नहीं हुआ था...
भैरव सिंह - हाँ... अगर उससे कोई बच्चा हुआ होता... तो आपकी आवश्यकता यहां नहीं होती... हमें कल तक शायद गिरफ्तार कर लिया जाए... इसलिए रास्ता बताएं...
तांत्रिक - हाँ... यह बात भी सही कही... ठीक है... मेरे लिए एक दरी बिछा दो...

भैरव सिंह कमरे की एक बेल बजाता है l थोड़ी देर बाद भीमा भागते हुए आता है l भैरव सिंह उसे कमरे के बीचों-बीच फर्श पर एक दरी बिछाने के लिए कहता है l भीमा एक दरी बिछा देता है और एक कोने में जाकर खड़ा हो जाता है l तांत्रिक अपने थैले से एक कला कपड़ा निकाल कर दरी पर बिछा देता है l उस पर सफेद पाउडर से एक शैतानी यंत्र की चित्र बनाता है l उस पर कुछ कौड़ी शंख निकाल कर फेंकता है l कुछ गणना करने के बाद l

तांत्रिक - राजा... दो रास्ते हैं... तुम अपनी गरिमा वापस पा सकते हो... पर
भैरव सिंह - पर क्या...
तांत्रिक - तुमने अपने वारिसों को अपने जैसा नहीं बनाया... यही तुम्हारी सबसे बड़ी भूल है... पर एक मौका है... मेरी गणना बता रही है... तुम्हारे वंश में... एक उत्तराधिकारी आ रहा है... उसका जन्म अगर इसी महल में हो... तो उसका भाग्य तुम्हारे जीवन में... तुम्हारे सभी गरिमाओं को वापस ला सकता है... फिर तुम्हें उसकी परवरिश इसी महल के मध्य करना होगा... यह एक आसान तरीका है... और एक मुश्किल तरीका भी है... पर दोनों तरीकों के लिए... तुम्हें बाहर आना होगा... और इसी महल में रहकर हर एक कार्य को अंजाम देना होगा.... (भैरव सिंह कुछ सोच में पड़ जाता है) क्या सोचने लगे राजा...
भैरव सिंह - हो सकता है... हमारी गिरफ्तारी पर ज़मानत ना मिले... तो क्या जैल के भीतर से कुछ संभव हो सकता है...
तांत्रिक - नहीं राजा... तुम्हें इसी महल में आना होगा... तुम कैसे इस महल में वापस आओगे... यह तुम पर निर्भर है...
भैरव सिंह - ठीक है... दूसरा रास्ता...
तांत्रिक - क्यूँ... पहले तरीके में क्या असुविधा है...
भैरव सिंह - हम छह माह तक प्रतीक्षा नहीं कर सकते...
तांत्रिक - दूसरा तरीका वही है... जो सोलह वर्ष पूर्व बड़े राजा ने... रंग महल में किया था...
भैरव सिंह - उसकी कोई वज़ह...
तांत्रिक - हाँ... तुमको... एक राक्षसी विवाह करना होगा...
भैरव सिंह - यह राक्षसी विवाह क्या है...
तांत्रिक - विवाह अनेकों प्रकार के होते हैं... देव विवाह... मानव विवाह... गंधर्व विवाह और आसुरीक या राक्षसी विवाह... देव विवाह में दो समाज... दो प्रांत.. दो क्षेत्र में शांति व सौहार्द स्थापित करता है... मानव विवाह... दो परिवारों को जोड़ता है... गंधर्व विवाह... दो प्राणों को जोड़ता है... पर इन सबके विपरित राक्षसी विवाह होता है... इसमें पहले बलात्कार और अनिच्छा जोर जबरदस्ती विवाह किया जाता है.... पर...
भैरव सिंह - पर क्या...
तांत्रिक - वह लड़की तुम्हारे रंग महल में नहीं है... ना ही उससे कोई संतान है...
भैरव सिंह - तो क्या हुआ... बलात्कार तो किसी से भी हो सकता है...
तांत्रिक - नहीं राजा.. तुम्हारे परिवार में... सिर्फ और सिर्फ पाईकराय परिवार की औरतों के साथ ऐसा क्यूँ होता था... ताकि यह रस्म... सदेव जिंदा रह सके...
भैरव सिंह - इसका मतलब मुझे वह लड़की ढूंढनी होगी... जिसकी माँ के साथ...
तांत्रिक - हाँ राजा... अब तुम सही समझे... (तांत्रिक अब अपना सामान समेटने लगता है, फिर उसके बाद उठता है) ध्यान रहे... यह सब करने के लिए... तुम्हें इसी महल में आना होगा... तुम कुटिल हो... आ सकते हो.... जब किसी लड़की को उठा लाओ तो खबर करना... मैं तुरंत आ जाऊँगा...

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उदय भाग रहा था, यशपुर के गालियों में वह भाग रहा था l उसके पीछे विश्व के चार दोस्त लगे हुए थे l उदय भागते भागते एक घर के बागीचे में घुस जाता है और उस बागीचे के बीचों-बीच एक पत्थर था जिसके ऊपर हांफते हुए बैठ जाता है और अपनी साँसे दुरुस्त करने लगता है l सीलु मिलु जिलु और टीलु भी उसे घेरते हुए हांफ रहे थे l वे लोग भी घास पर बैठ कर अपनी साँसे दुरुस्त करने लगते हैं l सीलु अपना फोन निकाल कर विश्व को फोन पर इन्फॉर्म कर देता है l थोड़ी देर बाद विश्व वहाँ पर पहुँच जाता है l तब तक पाँचों अपना साँस दुरुस्त कर चुके थे l विश्व देखता है उदय बगीचे के बीचों-बीच एक पत्थर पर बैठा हुआ है और उसे चारों तरफ घेर कर उसके दोस्त बैठे हुए थे l

सीलु - भाई बहुत दौड़ाया है... इस कमबख्त ने...
टीलु - पर जब से बैठा हुआ है... बिल्कुल टुबक कर बैठा हुआ है...
विश्व - (उदय से) किसके पास हमें यहाँ लेकर आए हो... कौन है तुम्हारे पीछे.... किसके कहने पर तुम हमें यहाँ तक लेकर आए हो...
उदय - कमाल है... भगा मुझे रहे हो... और बोल रहे हो... मैं तुम लोगों को यहाँ लेकर आया हूँ...
विश्व - देख उदय... ज्यादा स्मार्ट मत बन... मेरा दिमाग फिरा हुआ है... इससे पहले कि कोई उल्टा सीधा करूँ... मेरे सवालों का ठीक ठीक जवाब दे...
उदय - देखो विश्व भाई... माना दिमाग तुम्हारा खूब चलता है... पर मैंने तुम्हें कहीं पर भी फंसाया नहीं... उल्टा मदद ही की है...
विश्व - मैंने तुझे अभी अभी कहा... मेरी खोपड़ी गरम मत कर... सीधी तरीके से बता... तू किसके लिए काम कर रहा है... और जब भाग गया था... वापस किस लिए आया है...

यह सारी बातें तुम मुझसे जान लो... (एक आवाज एक कोने से आती है, विश्व और उसके सारे दोस्त उस आवाज़ की तरफ घूम कर देखते हैं l शूट बूट में एक आदमी खड़ा था) विश्व... उर्फ विश्वा भाई... स्वागत है... आओ कमरे के अंदर चलते हैं... और गिले शिकवे दूर करते हैं...

विश्व उस आदमी को पहचानने की कोशिश कर रहा था l इतने में उदय अपनी जगह से उठ खड़ा होता है और विश्व के करीब आकर कहता है

उदय - यह महोदय नरोत्तम पत्री हैं... इन्हीं की अंतर्गत वह केस है... जिसे इंस्पेक्टर दाशरथी दास एफआईआर नोट कर गृह मंत्रालय और कोर्ट में पेश किया था...

सभी पत्री की पीछे चलते हुए एक कमरे में आते हैं l पत्री सबको बैठने के लिए कहता है l सबके बैठने के बाद पत्री विश्व से पूछता है l

पत्री - हाँ तो विश्व... मेरा नाम और पहचान बताने की अब कोई जरूरत नहीं होगी... फिर भी तुम्हें बताये देता हूँ... मेरा नाम नरोत्तम पत्री है... मैं उस समय यशपुर में आया था... जब तुम जैल में हुआ करते थे... तभी से मैंने भैरव सिंह की टोह लेनी शुरु कर दी थी... तुम जिस केस में घिरे हुए थे... यकीन मानों... उसकी हर गवाह को... भैरव सिंह न्युट्र्लाइज कर चुका है... और वह जिस तरह का काईंया है... तुम समझ सकते हो... तुम्हारा आरटीआई और पीआईएल सिर्फ सुनवाई में ही रह जाता... नतीजे पर कभी नहीं पहुँचता...
विश्व - हाँ समझ सकता हूँ... पर इस में उदय की क्या भूमिका है... वह किसके तरफ है...
पत्री - उदय... वह सबके साथ है... पर वह... रिटायर्ड जैल सुपरिटेंडेंट तापस सेनापति जी तरफ है...
विश्व - क्या... (चौंकता है)
उदय - हाँ... तुम्हें लगता था कि मुझे... रोणा ने तुम्हारे पीछे लगाया था... पर असल में मैं रोणा के नाक के नीचे रह कर... तुम्हारी खैरियत की खबर... सेनापति सर जी को दिया करता था...
विश्व - डैड ने इस बारे में... मुझे कभी भी... कुछ भी नहीं कहा...
पत्री - उन्हें तुम्हारा बहुत खयाल है... या यूँ कहो... तुम्हारे भीतर... प्रतिभा जी की जान बसती है... और तापस जी की... प्रतिभा जी के भीतर... अपनी जान को बचाने के लिए... उन्होंने ही... अपने तरीके से... तुम्हारे लिए... यह सब किया है...
सीलु - वाव... सेनापति जी तो छुपे रूस्तम निकले...
पत्री - हाँ विश्व... तुम्हारे सगे पिता तो नहीं हैं... पर अपनी जीवन की पूरी अनुभूति और कोशिश झोंक दी... हवाओं के रुख को तुम्हारे तरफ मोड़ने के लिए...
विश्व - वह सब ठीक है... मुझे यह बताइए... इस मुलाकात के पीछे... आपका क्या प्लान है... और यह मुलाकात... इस टेंपोररी शेड में क्यूँ कर रहे हैं...
पत्री - वाव... तुमने अच्छा गेस किया... यह एक एक्सटेंशन नुमा कमरा... जिसके अंदर हम बैठे हुए हैं... कल ही बनाया गया है... और तुम लोगों के जाते ही... तोड़ दिया जाएगा...
विश्व - वज़ह...
पत्री - हम सब अभी भी... अंडर सर्विलांस में हैं... भैरव सिंह नजर बंद बेशक है... पर उसके वफादार अभी भी... कुत्तों की तरह सूंघते हुए... हमारी हरकतों के बारे में जानने के लिए... घूम रहे होंगे...
विश्व - वह सब आप ऑन ऑफिशियल लोगों की बात कर रहे हैं... मुझे यह भी एहसास है... सिस्टम में... भैरव सिंह के चट्टे बट्टे हैं...
पत्री - हाँ इसीलिए तुमको यहाँ बुलाया है... इस केस के बाबत...
विश्व - जी कहिये...
पत्री - मैंने हर एक गाँव वालों की गवाही ली... और उसके बाद उनसे तुम्हारे नाम की वकालत नामा में दस्तखत भी ले लिए...
विश्व - क्या...
पत्री - हाँ... अब इस केस को... गाँव वालों की तरफ़ से तुम लड़ने जा रहे हो...
विश्व - क्या... मैं गाँव वालों का केस लड़ुंगा... और मुझे मालूम नहीं है...
पत्री - ना... अब तुम मुझे हैरान कर रहे हो... मुझे लगता है... तुम्हें कमिश्नरेट में... सुभाष सतपती कह चुका है...
विश्व - मतलब... भैरव सिंह के खिलाफ इतना बड़ा नेक्सस बना है...
पत्री - और इस नेक्सस में... चाहे अनचाहे तुम भी अब शामिल हो...
विश्व - (कुछ देर चुप रहता है) भैरव सिंह गिरफ्तार कब होगा...
पत्री - कल... कल ही होगा...
विश्व - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) पत्री साहब... यह केस जिस तरह से बाहर आई है... इसके लिए जिस तरह की सबूत और गवाह चाहिए... मैंने उस पर कोई एक्सरसाइज नहीं की है...
पत्री - कोई मसला नहीं है... अभी कुछ खास गवाहों से मिलवा देता हूँ.... (पीछे मुड़ कर आवाज देता है) आ जाओ अंदर सब... (कुछ लोग अंदर आते हैं, उनमें से एक आदमी को देख कर विश्व चौंकता है और अपनी जगह से उठ खड़ा होता है, पत्री उसीके तरफ इशारा करते हुए) इन्हें तुम जानते तो नहीं हो... पर इनसे तुम्हारी मुलाकात हुई ज़रूर है... (विश्व को वह आदमी हैलो कहता है)
विश्व - हाँ... शायद बस में... आप ही थे... जो मुझे इस केस की डिटेल्स की लीड दे रहे थे...
आदमी - हाँ उस बस में... मैं ही आपका को - ट्रैवलर था... पर वह हमारी दूसरी मुलाकात थी... (कह कर अपना हाथ आगे करता है)
विश्व - (उससे हाथ मिलाता है) तो पहली मुलाकात... कब हुई थी...
आदमी - जिस दिन आप यशपुर में पहली बार बस से उतरे थे... एक मील की पत्थर पर... किसी ने यश पुर को... यम पुर लिखा था..... आप उसे मिटा कर यश पुर लिखे थे...
विश्व - हाँ हाँ... अब याद आया...
आदमी - उस दिन के बाद... मैंने पत्री सर जी से बात की... तब उन्होंने मुझे इंतजार करने के लिए कहा था... तुमने जैस ही पीआईएल दाखिल की.. उसके बाद मैंने... अखबार के जरिए... पहेली भेज कर... लीड देने की ठानी...
विश्व - आप सीधे सीधे मुलाकात करने की कोशिश क्यूँ नहीं की...
आदमी - मैंने मौत को बहुत ही करीब से देखा है... तुम शायद यकीन करो... मैं... नभवाणी न्यूज चैनल के.. रिपोर्टर प्रवीण रथ और उसकी बीवी के हत्या का चश्मदीद गवाह हूँ... (विश्व और उसके दोस्तों के मुहँ हैरानी के मारे खुल जाते हैं) हाँ विश्व बाबु... मैं ही हूँ... प्रवीण रथ की हत्या का चश्मदीद गवाह.... और अब की बार जो... आर्थिक कांड हुआ है... उसका भी मैं प्रामाणिक गवाह हूँ...
विश्व - मतलब... आप अब तक छुप कर थे... सामने अब क्यूँ आए हैं...
आदमी - अगर भैरव सिंह नजर बंद ना होता... तो हम लोग भी अभी न्युट्र्लाइज हो चुके होते... जिस तरह रुप फाउंडेशन केस में हुआ था...
विश्व - ओह... फिर भी... उसके आदमी आप लोगों को ढूंढ रहे होंगे...
आदमी - हाँ... हमने भी वही तरीका अपनाया... जो आपके केस में... श्रीधर परीड़ा ने किया... होली के बाद हम... अंडरग्राउंड हो गए...
पत्री - तो विश्व... यकीन मानों... इनकी गवाही... तुम्हें तुम्हारी मंजिल तक पहुँचा सकती है...
विश्व - (आदमी से) क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ...
आदमी - मेरा नाम सुधांशु मिश्रा है... मैं रेवेन्यू इंस्पेक्टर हूँ...

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पुलिस की वैन के साथ साथ कुछ जीप आकर क्षेत्रपाल महल के परिसर में रुकती हैं l एक गाड़ी से पत्री और कुछ लोग हाथों में फाइल लिए उतरते हैं l पुलिस की जीप से दास अपने सिपाहियों के साथ उतरता है l सब एक साथ महल के अंदर जाते हैं l महल के दीवान ए आम में बीचों-बीच एक सिंहासन पर भैरव सिंह बड़े रौब के साथ बैठा हुआ था l सभी आकर सिंहासन के सामने खड़े हो जाते हैं l भैरव सिंह अपना बायाँ पैर मोड़ कर दाहिने पैर पर रखता है l

भैरव सिंह - (पत्री से) कहिए... यश पुर के... पूर्व तहसीलदार... कैसे आना हुआ...
पत्री - हमने अदालत से वारंट निकलवा ली है... आज... अभी आपको हमारे साथ जाना होगा... कल आपकी... अदालत में पेशगी होगी...
भैरव सिंह - हा हा हा हा... तो.. मौका मिलते ही... तुमने अपना बदला ले लिया...
पत्री - यह कोई निजी मामला नहीं है... और बदला.. निजी मामला होता है... हम सरकारी मुलाजिम हैं... हमारी ईमानदारी... बेइमानों पर भारी पड़ती है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... यह पल हमें याद रहेगा...
पत्री - जी जरूर... सिर्फ आपको नहीं... हम उस इंसान को याद रहेगा... जिन्हें भगवान पर भरोसा होगा...

भैरव सिंह अपनी सिंहासन से उठता है और पत्री के सामने आता है आपने दोनों हाथ आगे बढ़ा देता है l दास हथकड़ी निकालता है तो पत्री उसे इशारे से हथकड़ी डालने के लिए कहता है l जैसे ही दास हथकड़ी डाल देता है, पत्री देखता है भैरव सिंह के चेहरे की पेशियां थर्राने लगते हैं l आँखों में खुन उतर आता है, अंगारों की तरह दहकने लगते हैं l


भैरव सिंह - भीमा... (भीमा भागते हुए आता है)
भीमा - हुकुम...
भैरव सिंह - बस हफ्ते दस दिन की बात है... तब तक... अपने सारे पट्ठों से वहीँ पर पहरेदारी करना... जहां पर यह पुलिस वाले कर रहे थे...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - और ध्यान रहे... तुम लोगों से सिर्फ... सेबती ही बात करेगी... डॉक्टरों और नर्सों को छोड़ कोई भी... महल के अंदर ना जा पाए...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - पत्री बाबु चलें...
पत्री - (दास से) चलो इन्हें गाड़ी में बिठा कर ले जाओ...
भैरव सिंह - पत्री बाबु... एक अनुरोध है....
पत्री - (हैरान हो कर) अनुरोध...
भैरव सिंह - हाँ पत्री बाबु.... (अपना हाथ दिखाते हुए) शेर जब जंजीरों से जकड़ा हुआ हो... अनुरोध ही कर सकता है...
पत्री - जी कहिये....
भैरव सिंह - इंस्पेक्टर दास से कहिये... हमें महल से गाड़ी से नहीं... पैदल ही लेकर चले...
पत्री - यह आप क्या कह रहे हैं...
भैरव सिंह - हाँ पत्री बाबु... हम उन बस्तियों से आज पैदल ही गुजरना चाहते हैं... जिन पर कभी... हुकूमत किया करते थे...

पत्री और दास एक दूसरे को हैरान हो कर देखते हैं l

पत्री - यह आप क्या कह रहे हैं राजा साहब... आप इस हालत में... लोगों के बीच में जाएंगे...
भैरव सिंह - हाँ पत्री बाबु... हम इन्हीं हथकड़ीयों जकड़े हुए... लोगों के बीच से होते हुए.... जाना चाहते हैं...
पत्री - नहीं... हम ऐसा नहीं कर सकते....
भैरव सिंह - देखो पत्री बाबु... हम अपनी मर्जी से... आपका सहयोग करना चाहते हैं... अगर आप हमारी अनुरोध को दर किनार करेंगे... तो आपको बहुत मुश्किल होगा... हमें यहाँ से ले जाते हुए....
पत्री - कुछ भी हो... हम आपको पैदल नहीं ले जा सकते...

तभी एक सिपाही दौड़ते हुए अंदर आता है l दास के कान पर कुछ कहता है l सुनने के बाद दास चौंकता है फिर वह आगे बढ़ कर पत्री के कानों में कुछ कहता है l पत्री भी चौंकता है और हैरानी के मारे भैरव सिंह की ओर देखने लगता है l

भैरव सिंह - पत्री साहब क्या हुआ... आपके गाडियों के टायरों में हवा नहीं है... (पत्री आँखे फाड़ कर भैरव सिंह को देखे जा रहा था) हैरान मत हो... इतनी सेक्योरिटी के बाद भी... टायरों में हवा क्यूँ नहीं है... यह राजगड़ है... और हम क्षेत्रपाल हैं... कुछ हमारे पीठ पीछे हो गया... उस पर इतरा कर... हमें गिरफतार करने आए हो... गिरफ्तारी हमने अपनी मर्जी से दी है... तो जाएंगे भी अपनी मर्जी से... यहाँ हमारी हुकूमत थी... है... और रहेगी...
दास - (पत्री से) सर... यह आदमी अगर अपनी ही बैजती करवाने पर तुला हुआ है... हम क्यूँ परेशान हों... हमें अदालत में इसे पेश करने के लिए हुकुम है... वही करते हैं ना... अगर अल्टरनेट अरेंजमेंट के लिए जाएंगे... वक़्त बर्बाद होगा...
पत्री - ठीक है राजा साहब... जैसी आपकी मर्जी... (सब से) चलो फिर...

सभी महल से निकलते हैं l भैरव सिंह हथकड़ी में महल की सीढ़ियों से उतरने लगता है l साथ में पत्री और कुछ अधिकारी और पुलिस वाले भी चलने लगते हैं l काफिला ऐसा लग रहा था जैसे भैरव सिंह आगे आगे सीना तान कर चल रहा था और सरकारी मुलाजिम व अधिकारी उसके पीछे उसे फॉलो करते हुए जा रहे थे l भैरव सिंह को ऐसे जाते हुए गाँव वाले देख रहे थे, ज्यादातर लोग भैरव सिंह की रौबदार चाल से डर कर छुप रहे थे पर छुप छुप कर देख रहे थे l काफिला मुख्य चौक पर पहुँचाता है l वहाँ पर भी हालत वैसी ही हो जाती है l लोग भैरव सिंह को देख कर दूर जाने लगते हैं पर छुप छुप कर देखने लगते हैं l वैदेही अपनी दुकान से बाहर आती है l वहाँ तक पहुँचने के बाद भैरव सिंह ठिठक जाता है और पत्री की ओर देख कर कहता है

भैरव सिंह - पत्री बाबु... मुझे यहाँ किसी से बात करनी है...
पत्री - किससे...
भैरव सिंह - वैदेही से... सिर्फ पाँच मिनट...
पत्री - ठीक है...

भैरव सिंह आगे बढ़ता है, वैदेही उसे देख कर अपने हाथ कुहनियों में फंसा कर उसके सामने खड़ी हो जाती है l

भैरव सिंह - बहुत खुस होगी आज तु...
वैदेही - हाँ... पर यह खुशी अधूरी है...
भैरव सिंह - तेरा भाई दिख नहीं रहा है....
वैदेही - क्यूँ यह बैजती कम लग रही है क्या...
भैरव सिंह - जानती है... मैं पैदल क्यूँ आया हूँ...
वैदेही - ताकि लोग समझे... के कानून के आगे... ना कोई राजा होता है... ना कोई खास...
भैरव सिंह - नहीं... शेर हमेशा शेर ही होता है... उसका आतंक हमेशा बरकरार रहता है... चाहे खुला हो... यह यूँ जंजीरों में... जरा नजर उठा कर देख... तुझे कोई नहीं दिखेगा... यह जिस छोटी सी जीत पर तुम लोग इतरा रहे हो... वह एक बुलबुला है... बहुत जल्द फूटने वाला है...
वैदेही - नियति तुझे बाँध कर... उन्हीं रास्तों पर चला रही है... जिन रास्तों पर कभी धूल उड़ाते गुजर रहा था... पर नियत नहीं बदली है तेरी... अकड़ और हेकड़ी... वही का वही है...
भैरव सिंह - हा हा हा हा... यह तु जिसे नियति कह रही है... उसे अभी अभी मैंने अपनी हाथों से लिखी है.... तुझसे जितनी भी वादा किया था... इसी चौक पर... वह सारे निभाए हैं मैंने... तूने जितने भी बद्दुआ दिए थे... उनमें से पाँच पूरे हो चुके हैं... और दो को पूरा होने नहीं दूँगा... वादा है मेरा... मैं वापस आऊँगा... और जो तकदीर राजगड़ की थी... जिसे क्षेत्रपाल सैकड़ों सालों पहले लिखे थे... वह मैं फिर से दोहराऊंगा...
वैदेही - अभी से इतना गुमान मत पाल भैरव सिंह... बस इतना याद रख... जब तक तु दायरे में रहेगा... तब तक तु और तेरी सल्तनत महफूज रहेगी... तु दायरा लांघेगा... तो तेरी सल्तनत मिट्टी की ढेर में तब्दील हो जाएगी...
भैरव सिंह - हाँ... यह हुई ना बात... तु जब जब मुझे कुरेदती है... मेरे अंदर का शैतान जाग जाता है... अब तु... तेरा भाई... यह पूरा राजगड़.... मेरी शैतानी देखेगा...
 

Ronit Singh92

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आपका फिर से स्वागत है काला नाग भाई। मुझे उम्मीद थी आप सकुशल एक बेहतरीन अपडेट के साथ वापस आएंगे और आप ने हमारी इच्छा पूरी कर दी इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। देर से आए लेकिन तंदुरुस्त आए।
 
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ANUJ KUMAR

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👉एक सौ चौवनवाँ अपडेट
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सूरज ढल रहा था l रौशनी मद्धिम पड़ चुकी थी l अँधेरा धीरे धीरे बढ़ता जा रहा था l कनाल के सीढ़ियों पर विश्व उस ढलते सूरज को देख रहा था l उसके पास एक सीढ़ी के ऊपर कोई आकर बैठता है l विश्व मुड़कर देखता है, वह विक्रम था l विश्व वापस ढलते सूरज की ओर देखने लगता है l

विक्रम - तुम यहाँ क्या कर रहे हो...
विश्व - क्षितिज पर ढलते सूरज को... समझने की कोशिश कर रहा हूँ...
विक्रम - सूरज कोई संदेश दे रहा है क्या...
विश्व - पता नहीं...
विक्रम - (एक सीढ़ी उतर जाता है और विश्व के बराबर बैठ जाता है)
विश्व - कैसी गई तुम्हारी रात...
विक्रम - पता नहीं...
विश्व - क्यूँ... हाँ... उस घर में एसी नहीं है... शायद मच्छर भी होंगे... आदत जो नहीं होगी...
विक्रम - हाँ बात तो... सच है.. पर...
विश्व - पर...
विक्रम - (एक पॉज लेकर) वह घर तुम्हारा है ना... वैदेही जी कह रहीं थीं.. तुम्हारा जन्म उसी घर में हुआ था...
विश्व - हाँ हुआ होगा... दीदी ने कहा था... मुझे जन्म देकर मेरी माँ चल बसी थी... मेरे लिए मेरी दीदी ही मेरी माँ है और मेरे पिता भी... उसीने मुझे बोलना दिखाया... देखना सिखाया... चलना सिखाया और भागना भी... वह मेरे लिए देवी है...
विक्रम - वाकई वह देवी हैं... सिर्फ तुम्हारे लिए ही नहीं... गाँव वालों के लिए भी...
विश्व - हाँ... वह देवी है... वह कभी किसी में कभी फर्क़ नहीं की है... आज भी उन गाँव वालों के लिए ही डटी हुई है... जिन्होंने उसके बदकिस्मती की आवाज पर कोई जवाब तक नहीं दिया... जिन्होंने राजा के आदमियों के कहने पर... डायन समझ कर पत्थरों से मारा... उन सबको मेरे दीदी ने माफ कर दिया... वह बहुत मजबुत है... इतना कुछ होने के बावजूद... ना यह गाँव छोड़ा.. ना गाँव वालों को...
विक्रम - मैंने घर छोड़ दिया... गाँव छोड़ने की सोच रहा था... पर असमंजस में था... अपने साथ उन चार जिंदगियों को लेकर कहाँ जाता... मैं उस पसोपेश में था कि... तुम्हारी दीदी ने मुझे उस पसोपेश से बाहर निकाल दिया... और देखो ना... आज अपने अन्नपूर्णा भंडार से खाना भी भेज दिया...
विश्व - (कोई जवाब नहीं देता)
विक्रम - विश्व... मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है... तुम मुझसे कई गुना बेहतर हो... हर लिहाज से... फिर भी मैं तुम्हारे सामने अपने गुरुर पर कायम था... झूठा ही सही... तुमसे जीता भी और तुम्हारी माता जी से तुम्हारे लिए... हाथ जुड़वा कर अनुरोध भी करवाया... अपनी झूठी अहं को खुश करने के लिए... जानते हो... एक गुरूर हमें विरासत में मिली थी... क्षेत्रपाल के हाथ कभी आसमान नहीं देखती... किसी से मांगते नहीं... या तो छिनते हैं... या फिर दे देते हैं... शायद दीदी को यह मालुम था... इसलिए मेरी अहं की लाज रखते हुए... मेरे हाथों को फैलाने नहीं दीया... मुझे आसरा दे दी...
विश्व - दीदी है ही ऐसी... उसके दर से कोई कभी भी... खाली हाथ नहीं लौटता है...
विक्रम - इसीलिये तो मेरे मुहँ से बरबस निकल गया... के वह अन्नपूर्णा हैं...

कुछ देर के लिए दोनों चुप हो जाते हैं l सूरज लगभग डूबने को था l अंधेरा धीरे धीरे अपने सबाब पर छा रहा था l

विक्रम - सूरज शायद कुछ सेकेंड के बाद दिखे ना... क्या तुम्हें कोई संदेश मिला...
विश्व - नहीं... अभी तक नहीं... या फिर मेरी समझ में नहीं आया...
विक्रम - क्या तुम इसलिए परेशान हो... रुप मेरे साथ नहीं आई...
विश्व - नहीं... मैं जानता हूँ... वह क्यूँ नहीं आई... और मैं उनके लिए निश्चिंत हूँ...
विक्रम - (थोड़ा चिढ़ कर) ऐसा क्यूँ... विश्व... ऐसा क्यूँ... वह क्षेत्रपाल महल है... और वहाँ पर भैरव सिंह क्षेत्रपाल रह रहे हैं... तुमसे जितने के लिए... किसी भी हद तक जा सकते हैं... देखा नहीं... कटक में क्या हुआ... हमने वीर को खो दिया...
विश्व - (शांत पर खोए खोए लहजे में) हाँ... वीर को खो दिया... तुमने क्या खोया... मैं नहीं जानता विक्रम... पर मैंने जो खोया है... वह मैं बयान नहीं कर सकता... पहली बार... मुझे लगा... के... (विश्व आगे कुछ कह नहीं पाता)
विक्रम - मैं... मैं समझ सकता हूँ...
विश्व - नहीं... तुम नहीं समझ सकते... राजा भैरव सिंह ने... ना सिर्फ मुझे संदेशा दिया है... बल्कि तुम्हें भी संदेश दिया है...
विक्रम - मुझे...
विश्व - हाँ... तुम्हें... वीर को जो सजा अनु की आड़ में मिली है... उसका वज़ह वीर की बगावत है... और इसी में तुम्हारे लिए भी पैगाम है..
विक्रम - (हैरानी के मारे आँखे बड़ी हो जाती हैं) क्या...
विश्व - हाँ... अब तुमने भी बगावत कर दी है...
विक्रम - मैं हैरान नहीं होऊंगा... अगर राजा साहब ऐसा कई कदम उठाते हैं तो... जिन्होंने मेरी माँ को अपने रास्ते से हटा दिया हो... उनके लिए मेरी क्या कीमत...
विश्व - इसीलिए दीदी ने तुम्हें अपनी आँखों के सामने रखा है...
विक्रम - क्या... मतलब वैदेही जी को पहले से ही अंदेशा है...
विश्व - हाँ... (विश्व विक्रम की ओर मुड़ कर) वैसे तुम मुझे यहाँ ढूंढते हुए क्यूँ आए हो...
विक्रम - मुझे रुप की चिंता है... मैंने बुलाया था... पर वह नहीं मानी... उसे शायद तुम्हारा इंतजार है... तुम जाकर उसे क्यूँ नहीं ले आते...
विश्व - पहली बात... तुम जो इतनी आसानी से महल से निकल आए... उसकी वज़ह... राजा की मज़बूरी है... वर्ना तुम भी जानते हो... तुम्हारा महल से निकल आना कितना मुश्किल होता.... और रही राजकुमारी जी की बात... तो राजकुमारी जी ने... राजा साहब की अहंकार को छेड़ा है... मैं राजकुमारी जी को तभी जाकर लाऊंगा... जब भैरव सिंह का अहं... चरम पर होगी... भरम में होगी...
विक्रम - राजा साहब का अहंकार जब चरम पर होगी... तो तुम कहना क्या चाह रहे हो... राजा साहब की गिरफ्तारी नहीं होगी...
विश्व - सात साल जैल में गुजार कर आया हूँ... कानून का हर दाव पेच देख कर सीख कर आया हूँ... मैं किसके साथ उलझ रहा हूँ मैं जानता हूँ... वह ज्यादा देर तक... सलाखों के पीछे नहीं रहेगा... किसी ना किसी बहाने से बाहर आएगा... तब उसके घर के बाहर कोई कानूनी पहरा भी नहीं होगा... तब... तब जाकर मैं... राजकुमारी जी को ले आऊंगा...
विक्रम - तुम जानते भी हो तुम क्या कह रहे हो... तब तुम महल में दाखिल भी नहीं हो पाओगे... अगर ताकत की आजमाइश करोगे... तब भी नहीं जा पाओगे...
विश्व - विक्रम... मैंने तुमसे ज्यादा महल में अपने दिन गुजारे हैं.... मैं महल के हर कोने से... चप्पे-चप्पे से वाकिफ हूँ... मैं अगर अभी राजकुमारी को ले आया... तो राजकुमारी जी का अहं हार जाएगा... और वह मैं कभी होने नहीं दूँगा...
विक्रम - (यह सब सुन कर स्तब्ध हो जाता है) चाची माँ ने सच कहा था... राजा साहब जी के अहं से... किसी एक का अहं टकराया है... और वह रुप है... तुम... तुम वाकई... रुप के लिए ही बने हो... पर... तुम्हें नहीं लगता... तुम रुप को लेकर कुछ ज्यादा ही ओवर कंफिडेंट हो...
विश्व - नहीं... अब जब पूरा महल खाली है... ऐसे में बड़े राजा जी की देखभाल के लिए कोई अपना होना चाहिए... क्यूँकी कल नहीं तो परसों... राजा साहब को... अदालत में पेश होना ही होगा... तब तक... राजकुमारी जी पर कोई आँच नहीं आएगा...
विक्रम - ओह... तुम बहुत दूर की सोच रहे हो...
विश्व - नहीं... मैं पास की ही सोच रहा हूँ... अगर दूर की सोच पाया होता... तो अनु और वीर दोनों... (रुक जाता है)
विक्रम - (एक गहरी साँस लेकर) बात अगर हम वीर की छोड़ दें... तो तुम बहुत खुश किस्मत रहे हो... (विश्व, विक्रम की ओर देखता है) हाँ विश्वा... तुम्हारे जिंदगी में... हर रिश्ते की भरपाई हुई है... माँ बाप खो दिए... माँ बाप मिल भी गए... अच्छे मार्गदर्शक मिले... दोस्त मिले... पर मेरे पास सब थे... पास ही थे... पर सब एहसास ज़ज्बात मुर्दा था... रुप के आने के बाद... हर एक रिश्ता जी उठा...
विश्व - कुछ हद तक तुम सही हो... मैंने कभी अपनी किस्मत से कुछ चाहा नहीं... जो भी मिला... दोनों हाथों से बटोर लिया... माँ बाप का चेहरा याद नहीं है... क्यूँकी उनके जगह मैंने हमेशा दीदी को पाया है... बाकी जो भी रिश्ते है... सब के सब उपहार हैं... पर अब किसीको भी खोने से डर रहा हूँ...
विक्रम - क्या अब जो मिल रहा है... वह मेरे लिए उपहार है... क्या मुझे अपनी इस हालत का.... कद्र करना चाहिए... क्या मेरा वर्तमान... मेरा भविष्य है...

जवाब में विश्व चुप रहता है l फिर से दोनों के बीच खामोशी छा जाती है l विक्रम कुछ सोच कर उठ कर जाने लगता है l विश्व उसे पीछे से आवाज देता है

विश्व - विक्रम... (विक्रम रुक जाता है) अभी जो हालात हैं.. वह तुम्हारा वर्तमान है... शायद इसी में तुम्हारा भविष्य हो... जिसे तुम्हें अपने हाथों से संवारना है... मेरी दीदी गलत हो नहीं सकती...

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कमरे में वैदेही रात के खाने की तैयारी कर रही थी l गौरी कुछ चिंतित अवस्था में कमरे में आती है और एक कोने में जाकर कुर्सी पर बैठ जाती है l उसका सिर झुका हुआ था पर लग रहा था किसी गहरी सोच में खोयी हुई है l उसकी यह हालत देख कर वैदेही पूछती है l

वैदेही - क्या हुआ काकी... क्या हो गया... बड़ी गहरी सोच में डूबी हुई हो...

गौरी अपना सिर उठा कर वैदेही की ओर देखती है और हल्की सी मुस्कान चेहरे पर लाने की कोशिश करती है, पर उसका चेहरा उसका साथ नहीं दे रहा था l वैदेही अपना काम छोड़ कर उसके पास आती है l

वैदेही - क्या हुआ काकी... तुम किस बात पर परेशान हो...
गौरी - नहीं... नहीं तो...
वैदेही - देखो काकी... कुछ तो हुआ है... तुम कभी झूठ बोल पाई हो भला... हाँ तुम अगर बताना ना चाहो तो...
गौरी - नहीं... मैं तुम से कोई भी बात छुपाना नहीं चाहती... पर कैसे कहूँ... यह मैं समझ नहीं पा रही हूँ...
वैदेही - क्या बात बहुत गंभीर है...
गौरी - हाँ...
वैदेही - क्या मुझसे... या विशु से जुड़ी हुई है...
गौरी - हाँ भी और नहीं भी...
वैदेही - ओ हो काकी... बात की जलेबी मत बनाओ... सीधा सीधा कहो... बात क्या है...
गौरी - वह... आज महल में... एक तांत्रिक आया है...
वैदेही - तो... राजा तंतर मंतर कर बचने की कोशिश करेगा क्या...
गौरी - आज से सोलह सत्रह साल पहले... ऐसे ही एक तांत्रिक महल में आया था...
वैदेही - (चुप रहती है)
गौरी - उसके बाद... तेरी खोज शुरु हुई थी... (वैदेही की भौंहे सिकुड़ जाती हैं) हाँ... वैदेही... लगता है... कोई रश्म दोहराया जाएगा... गाँव में किसी ना किसी को उठाया जाएगा....
वैदेही - क्या बकवास कर रही हो काकी... राजा अभी नजर बंद है... ऐसे में...
गौरी - अगर राजा ने उसे बुलाया है... तो यकीनन... उसने आगे क्या करना है... कब करना है... सब सोच रखा होगा...
वैदेही - यह कैसा या कौनसा रश्म होगा काकी... जिसके लिए उसे किसी लड़की की जरूरत होगी... मेरे बाद तो वह रास्ता बंद हो गया था ना...
गौरी - यही तो मैं समझ नहीं पा रही हूँ... मुझे लगा था... तेरे साथ... तेरे बाद यह रश्म सब ख़तम हो गया था.... पर उस तांत्रिक का इस वक़्त यहाँ होना... मुझे आनेवाली किसी खतरे की आहट सुनाई दे रही है... बीच बीच में लड़कियाँ उठा ली जाती थी... या बाहर से उठाई गई लड़कियाँ लाई जा रही थी... पर वह सब भी... बहुत दिनों से बंद था.... अब तांत्रिक का यहाँ पर होने से... कहीं वह सब दोबारा शुरु ना हो जाए...
वैदेही - घबराओ मत काकी... राजा ने इस बार ऐसा कुछ किया तो... लोग पलटवार करेंगे...
गौरी - तेरे कहने का मतलब क्या है... राजा अगर गाँव में से किसीको उठा ले जाएगा... तो... तूने राजा के बेटे को कहीं इसी बात की ज़मानत की तरह रोका है...
वैदेही - नहीं काकी... तुमने ऐसा सोच कैसे लिया... विक्रम को उस वक़्त एक आश और आसरा की जरूरत थी... देने के लिए मेरे पास एक आसरा था... सो मैंने दे दी...
गौरी - मुझसे भूल हो गई तुझे समझने में... पर मुझे लगता है... कभी ना कभी... एक बहुत बड़ा हादसा होने वाला है... कहीं वह काली इतिहास खुद को दोहरा ना दे... पता नहीं इस बार... किस के घर की... लौ बुझ जाएगी...
वैदेही - नहीं काकी... ऐसा कुछ नहीं होगा... तब गाँव वाले मजबूर थे... डरते थे... पर अब अगर राजा ने ऐसी कोई जुर्रत की... तो गाँव वाले उसे सटीक जवाब देंगे... वैसे भी... अब राजा वह शेर है... जिसके मुहँ में ना दांत है... ना पंजे में नाखुन...
गौरी - फिर भी... वह है तो शैतान... अपनी शैतानी से बाज कैसे आएगा...
वैदेही - काकी... विशु कह रहा था... एक दो दिन में... राजा की गिरफ्तारी होने वाली है... उसके बाद तो जैल में सड़ेगा...
गौरी - फिर भी... डरना तो चाहिए... यह कानूनी खेल में... बड़े बड़े मछली छूट जाते हैं... जब कि छोटी मछलियाँ फंस जाते हैं...
वैदेही - ओह ओ काकी... तुम घबराओ मत... मैं और विशु... राजा भैरव के हर वार के लिए तैयार हैं... कम से कम... मेरे होते हुए... इस गाँव में वह इतिहास तो कोई नहीं दोहरा सकता...

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नागेंद्र बिस्तर पर लेता हुआ है l उसका स्वस्थ्य दिन व दिन गिरता जा रहा है l सुषमा नहीं है इसलिए नागेंद्र का खयाल रुप रख रही है l अपनी कुछ नौकरानियों के साथ l इस वक़्त रुप सेबती के साथ मिलकर नागेंद्र को खिलाने के बाद मुहँ और चेहरा साफ कर रही थी l एक और नौकरानी अंदर आती है l

नौकरानी - राजकुमारी जी... राजा साहब ने एक संदेश भेजा है...
रुप - कैसी संदेश...
नौकरानी - राजा साहब अभी इसी कमरे में आना चाहते हैं... उनके साथ एक बाबा हैं... वे बड़े राजा जी को देखने आये हैं और कुछ बातेँ करना चाहते हैं... आपको इसी वक़्त अंतर्महल जाने के लिए कहा है...
रुप - (कुछ सोचने लगती है) ठीक है...

वह सेबती को अपने साथ लेकर वहाँ से चली जाती है l उनके जाते ही भैरव सिंह एक तांत्रिक के साथ प्रवेश करता है l तांत्रिक को देखते ही नागेंद्र के आँखों में चमक आ जाती है l

तांत्रिक - कैसे हो राजा... ओ... बड़े राजा...

अपने टेढ़े थोबड़े को हिला कर पास पड़े कुर्सी पर बैठने के लिए इशारा करता है l तांत्रिक मुस्कराते हुए बैठ जाता है l नागेंद्र भैरव सिंह को इशारे से कुछ पूछता है, पर जवाब तांत्रिक देता है l

तांत्रिक - कुछ दिन पहले ही मुझे खबर भिजवाई थी... तब शायद छोटे राजकुमार जैल में थे... पर हम कुछ कारणों के चलते आ नहीं पाए... सब जानकर दुख हुआ... हाँ देर तो हो गई है... पर इतनी भी नहीं हुई के हम सब ठीक ना कर सकें...

यह सुन कर नागेंद्र हँसने लगता है l उसका चेहरा और भी भद्दा नजर आ रहा था l जब लार बहने लगती है तो भैरव सिंह पास पड़े एक ग़मछा को उठा कर नागेंद्र के तरफ बढ़ा देता है l नागेंद्र बड़ी मुश्किल से ग़मछा थामता है और अपना मुहँ पोंछने लगता है l तांत्रिक यह सब देख कर हँसते हुए कहता है l

तांत्रिक - हा हा हा... चलो अच्छा है... आप दोनों में अहंकार जश का तस है... अच्छी बात है... (भैरव से) तो राजा साहब... कहिये... क्यूँ याद किया और क्या चाहते हैं...
भैरव सिंह - एक अभिशाप से मुक्ति... बड़े राजा जी की हालत तो देख ही रहे हैं... छोटे छोड़ कर राजकुमार जी के साथ चले गए हैं... क्षेत्रपाल का रौब... रुतबा सब... ख़तम हो गया है... उसे वापस हासिल करना है... बरसों पहले.... ऐसी ही हालत थी... एक रस्म अदायगी हुई... फिर हम और ताकतवर बन कर उभरें... अब फिर से वही ताकत और हैसियत हासिल करनी है... पर कैसे... क्या उसी रस्म को दोहराना है... या कुछ और करना है...
तांत्रिक - राजा साहब... जब आपका विरासत संभालने के लिये... आपका वारिस ही छोड़ चला गया हो... फिर किसके लिए आप अपनी विरासत को समेटना चाहते हैं...
तांत्रिक - किसी रंडी को क्षेत्रपाल पर हावी होते... देख नहीं सकते... बड़े राजा जी से एक वादा किया है... वह अभी अधूरा है... उसे छोड़ नहीं सकते...
तांत्रिक - शाबाश.... आप सच में एक जुनूनी शख्स हैं... पर जब वारिस ही नहीं साथ में... फिर किस बात पर मोह...
भैरव - हमें... मसलने में... कुचलने में... रौंदने में जो सुकून मिलता है... हम उसे छोड़ नहीं सकते... जो गलतियां हुईं हमसे... उन्हें भुलाना चाहते हैं... फिर से नया इतिहास लिखना... बनाना चाहते हैं...
तांत्रिक - हा हा हा हा... शाबाश... राजा... आप एक शैतान हो... जो इंसानी खाल में बस कर भगवान के कुर्सी पर बैठना चाहता है... शाबाश...
भैरव सिंह - हाँ इसके लिए जो भी मंत्र का जाप हो करें... अपनी मंत्र सिद्धि से... हमारे रिष्ट खंडन करें...
तांत्रिक - इस बार तुम गलत हो राजा... हमें मंत्रों पर सिद्धि प्राप्त नहीं है... तंत्रों पर सिद्धि प्राप्त है... मंत्र सात्विक वालों के लिए होती है... हम तांत्रिक हैं... तामसिक सिद्धियों के लिए तंत्र साधना करते हैं... हमारी वृत्ति... प्रवृत्ति... आचरण... और संलिप्ती... पूर्णतः तामसिक होती है...
भैरव सिंह - तो वही सही... पर कीजिए कुछ... जैसा आपने सोलह साल पहले करवाया था...
तांत्रिक - वह बहुत ही वीभत्स था... पर सुना है... वह लड़की रंग महल से भाग गई थी... और उससे कोई बच्चा भी नहीं हुआ था...
भैरव सिंह - हाँ... अगर उससे कोई बच्चा हुआ होता... तो आपकी आवश्यकता यहां नहीं होती... हमें कल तक शायद गिरफ्तार कर लिया जाए... इसलिए रास्ता बताएं...
तांत्रिक - हाँ... यह बात भी सही कही... ठीक है... मेरे लिए एक दरी बिछा दो...

भैरव सिंह कमरे की एक बेल बजाता है l थोड़ी देर बाद भीमा भागते हुए आता है l भैरव सिंह उसे कमरे के बीचों-बीच फर्श पर एक दरी बिछाने के लिए कहता है l भीमा एक दरी बिछा देता है और एक कोने में जाकर खड़ा हो जाता है l तांत्रिक अपने थैले से एक कला कपड़ा निकाल कर दरी पर बिछा देता है l उस पर सफेद पाउडर से एक शैतानी यंत्र की चित्र बनाता है l उस पर कुछ कौड़ी शंख निकाल कर फेंकता है l कुछ गणना करने के बाद l

तांत्रिक - राजा... दो रास्ते हैं... तुम अपनी गरिमा वापस पा सकते हो... पर
भैरव सिंह - पर क्या...
तांत्रिक - तुमने अपने वारिसों को अपने जैसा नहीं बनाया... यही तुम्हारी सबसे बड़ी भूल है... पर एक मौका है... मेरी गणना बता रही है... तुम्हारे वंश में... एक उत्तराधिकारी आ रहा है... उसका जन्म अगर इसी महल में हो... तो उसका भाग्य तुम्हारे जीवन में... तुम्हारे सभी गरिमाओं को वापस ला सकता है... फिर तुम्हें उसकी परवरिश इसी महल के मध्य करना होगा... यह एक आसान तरीका है... और एक मुश्किल तरीका भी है... पर दोनों तरीकों के लिए... तुम्हें बाहर आना होगा... और इसी महल में रहकर हर एक कार्य को अंजाम देना होगा.... (भैरव सिंह कुछ सोच में पड़ जाता है) क्या सोचने लगे राजा...
भैरव सिंह - हो सकता है... हमारी गिरफ्तारी पर ज़मानत ना मिले... तो क्या जैल के भीतर से कुछ संभव हो सकता है...
तांत्रिक - नहीं राजा... तुम्हें इसी महल में आना होगा... तुम कैसे इस महल में वापस आओगे... यह तुम पर निर्भर है...
भैरव सिंह - ठीक है... दूसरा रास्ता...
तांत्रिक - क्यूँ... पहले तरीके में क्या असुविधा है...
भैरव सिंह - हम छह माह तक प्रतीक्षा नहीं कर सकते...
तांत्रिक - दूसरा तरीका वही है... जो सोलह वर्ष पूर्व बड़े राजा ने... रंग महल में किया था...
भैरव सिंह - उसकी कोई वज़ह...
तांत्रिक - हाँ... तुमको... एक राक्षसी विवाह करना होगा...
भैरव सिंह - यह राक्षसी विवाह क्या है...
तांत्रिक - विवाह अनेकों प्रकार के होते हैं... देव विवाह... मानव विवाह... गंधर्व विवाह और आसुरीक या राक्षसी विवाह... देव विवाह में दो समाज... दो प्रांत.. दो क्षेत्र में शांति व सौहार्द स्थापित करता है... मानव विवाह... दो परिवारों को जोड़ता है... गंधर्व विवाह... दो प्राणों को जोड़ता है... पर इन सबके विपरित राक्षसी विवाह होता है... इसमें पहले बलात्कार और अनिच्छा जोर जबरदस्ती विवाह किया जाता है.... पर...
भैरव सिंह - पर क्या...
तांत्रिक - वह लड़की तुम्हारे रंग महल में नहीं है... ना ही उससे कोई संतान है...
भैरव सिंह - तो क्या हुआ... बलात्कार तो किसी से भी हो सकता है...
तांत्रिक - नहीं राजा.. तुम्हारे परिवार में... सिर्फ और सिर्फ पाईकराय परिवार की औरतों के साथ ऐसा क्यूँ होता था... ताकि यह रस्म... सदेव जिंदा रह सके...
भैरव सिंह - इसका मतलब मुझे वह लड़की ढूंढनी होगी... जिसकी माँ के साथ...
तांत्रिक - हाँ राजा... अब तुम सही समझे... (तांत्रिक अब अपना सामान समेटने लगता है, फिर उसके बाद उठता है) ध्यान रहे... यह सब करने के लिए... तुम्हें इसी महल में आना होगा... तुम कुटिल हो... आ सकते हो.... जब किसी लड़की को उठा लाओ तो खबर करना... मैं तुरंत आ जाऊँगा...

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उदय भाग रहा था, यशपुर के गालियों में वह भाग रहा था l उसके पीछे विश्व के चार दोस्त लगे हुए थे l उदय भागते भागते एक घर के बागीचे में घुस जाता है और उस बागीचे के बीचों-बीच एक पत्थर था जिसके ऊपर हांफते हुए बैठ जाता है और अपनी साँसे दुरुस्त करने लगता है l सीलु मिलु जिलु और टीलु भी उसे घेरते हुए हांफ रहे थे l वे लोग भी घास पर बैठ कर अपनी साँसे दुरुस्त करने लगते हैं l सीलु अपना फोन निकाल कर विश्व को फोन पर इन्फॉर्म कर देता है l थोड़ी देर बाद विश्व वहाँ पर पहुँच जाता है l तब तक पाँचों अपना साँस दुरुस्त कर चुके थे l विश्व देखता है उदय बगीचे के बीचों-बीच एक पत्थर पर बैठा हुआ है और उसे चारों तरफ घेर कर उसके दोस्त बैठे हुए थे l

सीलु - भाई बहुत दौड़ाया है... इस कमबख्त ने...
टीलु - पर जब से बैठा हुआ है... बिल्कुल टुबक कर बैठा हुआ है...
विश्व - (उदय से) किसके पास हमें यहाँ लेकर आए हो... कौन है तुम्हारे पीछे.... किसके कहने पर तुम हमें यहाँ तक लेकर आए हो...
उदय - कमाल है... भगा मुझे रहे हो... और बोल रहे हो... मैं तुम लोगों को यहाँ लेकर आया हूँ...
विश्व - देख उदय... ज्यादा स्मार्ट मत बन... मेरा दिमाग फिरा हुआ है... इससे पहले कि कोई उल्टा सीधा करूँ... मेरे सवालों का ठीक ठीक जवाब दे...
उदय - देखो विश्व भाई... माना दिमाग तुम्हारा खूब चलता है... पर मैंने तुम्हें कहीं पर भी फंसाया नहीं... उल्टा मदद ही की है...
विश्व - मैंने तुझे अभी अभी कहा... मेरी खोपड़ी गरम मत कर... सीधी तरीके से बता... तू किसके लिए काम कर रहा है... और जब भाग गया था... वापस किस लिए आया है...

यह सारी बातें तुम मुझसे जान लो... (एक आवाज एक कोने से आती है, विश्व और उसके सारे दोस्त उस आवाज़ की तरफ घूम कर देखते हैं l शूट बूट में एक आदमी खड़ा था) विश्व... उर्फ विश्वा भाई... स्वागत है... आओ कमरे के अंदर चलते हैं... और गिले शिकवे दूर करते हैं...

विश्व उस आदमी को पहचानने की कोशिश कर रहा था l इतने में उदय अपनी जगह से उठ खड़ा होता है और विश्व के करीब आकर कहता है

उदय - यह महोदय नरोत्तम पत्री हैं... इन्हीं की अंतर्गत वह केस है... जिसे इंस्पेक्टर दाशरथी दास एफआईआर नोट कर गृह मंत्रालय और कोर्ट में पेश किया था...

सभी पत्री की पीछे चलते हुए एक कमरे में आते हैं l पत्री सबको बैठने के लिए कहता है l सबके बैठने के बाद पत्री विश्व से पूछता है l

पत्री - हाँ तो विश्व... मेरा नाम और पहचान बताने की अब कोई जरूरत नहीं होगी... फिर भी तुम्हें बताये देता हूँ... मेरा नाम नरोत्तम पत्री है... मैं उस समय यशपुर में आया था... जब तुम जैल में हुआ करते थे... तभी से मैंने भैरव सिंह की टोह लेनी शुरु कर दी थी... तुम जिस केस में घिरे हुए थे... यकीन मानों... उसकी हर गवाह को... भैरव सिंह न्युट्र्लाइज कर चुका है... और वह जिस तरह का काईंया है... तुम समझ सकते हो... तुम्हारा आरटीआई और पीआईएल सिर्फ सुनवाई में ही रह जाता... नतीजे पर कभी नहीं पहुँचता...
विश्व - हाँ समझ सकता हूँ... पर इस में उदय की क्या भूमिका है... वह किसके तरफ है...
पत्री - उदय... वह सबके साथ है... पर वह... रिटायर्ड जैल सुपरिटेंडेंट तापस सेनापति जी तरफ है...
विश्व - क्या... (चौंकता है)
उदय - हाँ... तुम्हें लगता था कि मुझे... रोणा ने तुम्हारे पीछे लगाया था... पर असल में मैं रोणा के नाक के नीचे रह कर... तुम्हारी खैरियत की खबर... सेनापति सर जी को दिया करता था...
विश्व - डैड ने इस बारे में... मुझे कभी भी... कुछ भी नहीं कहा...
पत्री - उन्हें तुम्हारा बहुत खयाल है... या यूँ कहो... तुम्हारे भीतर... प्रतिभा जी की जान बसती है... और तापस जी की... प्रतिभा जी के भीतर... अपनी जान को बचाने के लिए... उन्होंने ही... अपने तरीके से... तुम्हारे लिए... यह सब किया है...
सीलु - वाव... सेनापति जी तो छुपे रूस्तम निकले...
पत्री - हाँ विश्व... तुम्हारे सगे पिता तो नहीं हैं... पर अपनी जीवन की पूरी अनुभूति और कोशिश झोंक दी... हवाओं के रुख को तुम्हारे तरफ मोड़ने के लिए...
विश्व - वह सब ठीक है... मुझे यह बताइए... इस मुलाकात के पीछे... आपका क्या प्लान है... और यह मुलाकात... इस टेंपोररी शेड में क्यूँ कर रहे हैं...
पत्री - वाव... तुमने अच्छा गेस किया... यह एक एक्सटेंशन नुमा कमरा... जिसके अंदर हम बैठे हुए हैं... कल ही बनाया गया है... और तुम लोगों के जाते ही... तोड़ दिया जाएगा...
विश्व - वज़ह...
पत्री - हम सब अभी भी... अंडर सर्विलांस में हैं... भैरव सिंह नजर बंद बेशक है... पर उसके वफादार अभी भी... कुत्तों की तरह सूंघते हुए... हमारी हरकतों के बारे में जानने के लिए... घूम रहे होंगे...
विश्व - वह सब आप ऑन ऑफिशियल लोगों की बात कर रहे हैं... मुझे यह भी एहसास है... सिस्टम में... भैरव सिंह के चट्टे बट्टे हैं...
पत्री - हाँ इसीलिए तुमको यहाँ बुलाया है... इस केस के बाबत...
विश्व - जी कहिये...
पत्री - मैंने हर एक गाँव वालों की गवाही ली... और उसके बाद उनसे तुम्हारे नाम की वकालत नामा में दस्तखत भी ले लिए...
विश्व - क्या...
पत्री - हाँ... अब इस केस को... गाँव वालों की तरफ़ से तुम लड़ने जा रहे हो...
विश्व - क्या... मैं गाँव वालों का केस लड़ुंगा... और मुझे मालूम नहीं है...
पत्री - ना... अब तुम मुझे हैरान कर रहे हो... मुझे लगता है... तुम्हें कमिश्नरेट में... सुभाष सतपती कह चुका है...
विश्व - मतलब... भैरव सिंह के खिलाफ इतना बड़ा नेक्सस बना है...
पत्री - और इस नेक्सस में... चाहे अनचाहे तुम भी अब शामिल हो...
विश्व - (कुछ देर चुप रहता है) भैरव सिंह गिरफ्तार कब होगा...
पत्री - कल... कल ही होगा...
विश्व - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) पत्री साहब... यह केस जिस तरह से बाहर आई है... इसके लिए जिस तरह की सबूत और गवाह चाहिए... मैंने उस पर कोई एक्सरसाइज नहीं की है...
पत्री - कोई मसला नहीं है... अभी कुछ खास गवाहों से मिलवा देता हूँ.... (पीछे मुड़ कर आवाज देता है) आ जाओ अंदर सब... (कुछ लोग अंदर आते हैं, उनमें से एक आदमी को देख कर विश्व चौंकता है और अपनी जगह से उठ खड़ा होता है, पत्री उसीके तरफ इशारा करते हुए) इन्हें तुम जानते तो नहीं हो... पर इनसे तुम्हारी मुलाकात हुई ज़रूर है... (विश्व को वह आदमी हैलो कहता है)
विश्व - हाँ... शायद बस में... आप ही थे... जो मुझे इस केस की डिटेल्स की लीड दे रहे थे...
आदमी - हाँ उस बस में... मैं ही आपका को - ट्रैवलर था... पर वह हमारी दूसरी मुलाकात थी... (कह कर अपना हाथ आगे करता है)
विश्व - (उससे हाथ मिलाता है) तो पहली मुलाकात... कब हुई थी...
आदमी - जिस दिन आप यशपुर में पहली बार बस से उतरे थे... एक मील की पत्थर पर... किसी ने यश पुर को... यम पुर लिखा था..... आप उसे मिटा कर यश पुर लिखे थे...
विश्व - हाँ हाँ... अब याद आया...
आदमी - उस दिन के बाद... मैंने पत्री सर जी से बात की... तब उन्होंने मुझे इंतजार करने के लिए कहा था... तुमने जैस ही पीआईएल दाखिल की.. उसके बाद मैंने... अखबार के जरिए... पहेली भेज कर... लीड देने की ठानी...
विश्व - आप सीधे सीधे मुलाकात करने की कोशिश क्यूँ नहीं की...
आदमी - मैंने मौत को बहुत ही करीब से देखा है... तुम शायद यकीन करो... मैं... नभवाणी न्यूज चैनल के.. रिपोर्टर प्रवीण रथ और उसकी बीवी के हत्या का चश्मदीद गवाह हूँ... (विश्व और उसके दोस्तों के मुहँ हैरानी के मारे खुल जाते हैं) हाँ विश्व बाबु... मैं ही हूँ... प्रवीण रथ की हत्या का चश्मदीद गवाह.... और अब की बार जो... आर्थिक कांड हुआ है... उसका भी मैं प्रामाणिक गवाह हूँ...
विश्व - मतलब... आप अब तक छुप कर थे... सामने अब क्यूँ आए हैं...
आदमी - अगर भैरव सिंह नजर बंद ना होता... तो हम लोग भी अभी न्युट्र्लाइज हो चुके होते... जिस तरह रुप फाउंडेशन केस में हुआ था...
विश्व - ओह... फिर भी... उसके आदमी आप लोगों को ढूंढ रहे होंगे...
आदमी - हाँ... हमने भी वही तरीका अपनाया... जो आपके केस में... श्रीधर परीड़ा ने किया... होली के बाद हम... अंडरग्राउंड हो गए...
पत्री - तो विश्व... यकीन मानों... इनकी गवाही... तुम्हें तुम्हारी मंजिल तक पहुँचा सकती है...
विश्व - (आदमी से) क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ...
आदमी - मेरा नाम सुधांशु मिश्रा है... मैं रेवेन्यू इंस्पेक्टर हूँ...

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पुलिस की वैन के साथ साथ कुछ जीप आकर क्षेत्रपाल महल के परिसर में रुकती हैं l एक गाड़ी से पत्री और कुछ लोग हाथों में फाइल लिए उतरते हैं l पुलिस की जीप से दास अपने सिपाहियों के साथ उतरता है l सब एक साथ महल के अंदर जाते हैं l महल के दीवान ए आम में बीचों-बीच एक सिंहासन पर भैरव सिंह बड़े रौब के साथ बैठा हुआ था l सभी आकर सिंहासन के सामने खड़े हो जाते हैं l भैरव सिंह अपना बायाँ पैर मोड़ कर दाहिने पैर पर रखता है l

भैरव सिंह - (पत्री से) कहिए... यश पुर के... पूर्व तहसीलदार... कैसे आना हुआ...
पत्री - हमने अदालत से वारंट निकलवा ली है... आज... अभी आपको हमारे साथ जाना होगा... कल आपकी... अदालत में पेशगी होगी...
भैरव सिंह - हा हा हा हा... तो.. मौका मिलते ही... तुमने अपना बदला ले लिया...
पत्री - यह कोई निजी मामला नहीं है... और बदला.. निजी मामला होता है... हम सरकारी मुलाजिम हैं... हमारी ईमानदारी... बेइमानों पर भारी पड़ती है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... यह पल हमें याद रहेगा...
पत्री - जी जरूर... सिर्फ आपको नहीं... हम उस इंसान को याद रहेगा... जिन्हें भगवान पर भरोसा होगा...

भैरव सिंह अपनी सिंहासन से उठता है और पत्री के सामने आता है आपने दोनों हाथ आगे बढ़ा देता है l दास हथकड़ी निकालता है तो पत्री उसे इशारे से हथकड़ी डालने के लिए कहता है l जैसे ही दास हथकड़ी डाल देता है, पत्री देखता है भैरव सिंह के चेहरे की पेशियां थर्राने लगते हैं l आँखों में खुन उतर आता है, अंगारों की तरह दहकने लगते हैं l


भैरव सिंह - भीमा... (भीमा भागते हुए आता है)
भीमा - हुकुम...
भैरव सिंह - बस हफ्ते दस दिन की बात है... तब तक... अपने सारे पट्ठों से वहीँ पर पहरेदारी करना... जहां पर यह पुलिस वाले कर रहे थे...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - और ध्यान रहे... तुम लोगों से सिर्फ... सेबती ही बात करेगी... डॉक्टरों और नर्सों को छोड़ कोई भी... महल के अंदर ना जा पाए...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - पत्री बाबु चलें...
पत्री - (दास से) चलो इन्हें गाड़ी में बिठा कर ले जाओ...
भैरव सिंह - पत्री बाबु... एक अनुरोध है....
पत्री - (हैरान हो कर) अनुरोध...
भैरव सिंह - हाँ पत्री बाबु.... (अपना हाथ दिखाते हुए) शेर जब जंजीरों से जकड़ा हुआ हो... अनुरोध ही कर सकता है...
पत्री - जी कहिये....
भैरव सिंह - इंस्पेक्टर दास से कहिये... हमें महल से गाड़ी से नहीं... पैदल ही लेकर चले...
पत्री - यह आप क्या कह रहे हैं...
भैरव सिंह - हाँ पत्री बाबु... हम उन बस्तियों से आज पैदल ही गुजरना चाहते हैं... जिन पर कभी... हुकूमत किया करते थे...

पत्री और दास एक दूसरे को हैरान हो कर देखते हैं l

पत्री - यह आप क्या कह रहे हैं राजा साहब... आप इस हालत में... लोगों के बीच में जाएंगे...
भैरव सिंह - हाँ पत्री बाबु... हम इन्हीं हथकड़ीयों जकड़े हुए... लोगों के बीच से होते हुए.... जाना चाहते हैं...
पत्री - नहीं... हम ऐसा नहीं कर सकते....
भैरव सिंह - देखो पत्री बाबु... हम अपनी मर्जी से... आपका सहयोग करना चाहते हैं... अगर आप हमारी अनुरोध को दर किनार करेंगे... तो आपको बहुत मुश्किल होगा... हमें यहाँ से ले जाते हुए....
पत्री - कुछ भी हो... हम आपको पैदल नहीं ले जा सकते...

तभी एक सिपाही दौड़ते हुए अंदर आता है l दास के कान पर कुछ कहता है l सुनने के बाद दास चौंकता है फिर वह आगे बढ़ कर पत्री के कानों में कुछ कहता है l पत्री भी चौंकता है और हैरानी के मारे भैरव सिंह की ओर देखने लगता है l

भैरव सिंह - पत्री साहब क्या हुआ... आपके गाडियों के टायरों में हवा नहीं है... (पत्री आँखे फाड़ कर भैरव सिंह को देखे जा रहा था) हैरान मत हो... इतनी सेक्योरिटी के बाद भी... टायरों में हवा क्यूँ नहीं है... यह राजगड़ है... और हम क्षेत्रपाल हैं... कुछ हमारे पीठ पीछे हो गया... उस पर इतरा कर... हमें गिरफतार करने आए हो... गिरफ्तारी हमने अपनी मर्जी से दी है... तो जाएंगे भी अपनी मर्जी से... यहाँ हमारी हुकूमत थी... है... और रहेगी...
दास - (पत्री से) सर... यह आदमी अगर अपनी ही बैजती करवाने पर तुला हुआ है... हम क्यूँ परेशान हों... हमें अदालत में इसे पेश करने के लिए हुकुम है... वही करते हैं ना... अगर अल्टरनेट अरेंजमेंट के लिए जाएंगे... वक़्त बर्बाद होगा...
पत्री - ठीक है राजा साहब... जैसी आपकी मर्जी... (सब से) चलो फिर...

सभी महल से निकलते हैं l भैरव सिंह हथकड़ी में महल की सीढ़ियों से उतरने लगता है l साथ में पत्री और कुछ अधिकारी और पुलिस वाले भी चलने लगते हैं l काफिला ऐसा लग रहा था जैसे भैरव सिंह आगे आगे सीना तान कर चल रहा था और सरकारी मुलाजिम व अधिकारी उसके पीछे उसे फॉलो करते हुए जा रहे थे l भैरव सिंह को ऐसे जाते हुए गाँव वाले देख रहे थे, ज्यादातर लोग भैरव सिंह की रौबदार चाल से डर कर छुप रहे थे पर छुप छुप कर देख रहे थे l काफिला मुख्य चौक पर पहुँचाता है l वहाँ पर भी हालत वैसी ही हो जाती है l लोग भैरव सिंह को देख कर दूर जाने लगते हैं पर छुप छुप कर देखने लगते हैं l वैदेही अपनी दुकान से बाहर आती है l वहाँ तक पहुँचने के बाद भैरव सिंह ठिठक जाता है और पत्री की ओर देख कर कहता है

भैरव सिंह - पत्री बाबु... मुझे यहाँ किसी से बात करनी है...
पत्री - किससे...
भैरव सिंह - वैदेही से... सिर्फ पाँच मिनट...
पत्री - ठीक है...

भैरव सिंह आगे बढ़ता है, वैदेही उसे देख कर अपने हाथ कुहनियों में फंसा कर उसके सामने खड़ी हो जाती है l

भैरव सिंह - बहुत खुस होगी आज तु...
वैदेही - हाँ... पर यह खुशी अधूरी है...
भैरव सिंह - तेरा भाई दिख नहीं रहा है....
वैदेही - क्यूँ यह बैजती कम लग रही है क्या...
भैरव सिंह - जानती है... मैं पैदल क्यूँ आया हूँ...
वैदेही - ताकि लोग समझे... के कानून के आगे... ना कोई राजा होता है... ना कोई खास...
भैरव सिंह - नहीं... शेर हमेशा शेर ही होता है... उसका आतंक हमेशा बरकरार रहता है... चाहे खुला हो... यह यूँ जंजीरों में... जरा नजर उठा कर देख... तुझे कोई नहीं दिखेगा... यह जिस छोटी सी जीत पर तुम लोग इतरा रहे हो... वह एक बुलबुला है... बहुत जल्द फूटने वाला है...
वैदेही - नियति तुझे बाँध कर... उन्हीं रास्तों पर चला रही है... जिन रास्तों पर कभी धूल उड़ाते गुजर रहा था... पर नियत नहीं बदली है तेरी... अकड़ और हेकड़ी... वही का वही है...
भैरव सिंह - हा हा हा हा... यह तु जिसे नियति कह रही है... उसे अभी अभी मैंने अपनी हाथों से लिखी है.... तुझसे जितनी भी वादा किया था... इसी चौक पर... वह सारे निभाए हैं मैंने... तूने जितने भी बद्दुआ दिए थे... उनमें से पाँच पूरे हो चुके हैं... और दो को पूरा होने नहीं दूँगा... वादा है मेरा... मैं वापस आऊँगा... और जो तकदीर राजगड़ की थी... जिसे क्षेत्रपाल सैकड़ों सालों पहले लिखे थे... वह मैं फिर से दोहराऊंगा...
वैदेही - अभी से इतना गुमान मत पाल भैरव सिंह... बस इतना याद रख... जब तक तु दायरे में रहेगा... तब तक तु और तेरी सल्तनत महफूज रहेगी... तु दायरा लांघेगा... तो तेरी सल्तनत मिट्टी की ढेर में तब्दील हो जाएगी...
भैरव सिंह - हाँ... यह हुई ना बात... तु जब जब मुझे कुरेदती है... मेरे अंदर का शैतान जाग जाता है... अब तु... तेरा भाई... यह पूरा राजगड़.... मेरी शैतानी देखेगा...
super duper update
 
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Sidd19

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👉एक सौ चौवनवाँ अपडेट
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सूरज ढल रहा था l रौशनी मद्धिम पड़ चुकी थी l अँधेरा धीरे धीरे बढ़ता जा रहा था l कनाल के सीढ़ियों पर विश्व उस ढलते सूरज को देख रहा था l उसके पास एक सीढ़ी के ऊपर कोई आकर बैठता है l विश्व मुड़कर देखता है, वह विक्रम था l विश्व वापस ढलते सूरज की ओर देखने लगता है l

विक्रम - तुम यहाँ क्या कर रहे हो...
विश्व - क्षितिज पर ढलते सूरज को... समझने की कोशिश कर रहा हूँ...
विक्रम - सूरज कोई संदेश दे रहा है क्या...
विश्व - पता नहीं...
विक्रम - (एक सीढ़ी उतर जाता है और विश्व के बराबर बैठ जाता है)
विश्व - कैसी गई तुम्हारी रात...
विक्रम - पता नहीं...
विश्व - क्यूँ... हाँ... उस घर में एसी नहीं है... शायद मच्छर भी होंगे... आदत जो नहीं होगी...
विक्रम - हाँ बात तो... सच है.. पर...
विश्व - पर...
विक्रम - (एक पॉज लेकर) वह घर तुम्हारा है ना... वैदेही जी कह रहीं थीं.. तुम्हारा जन्म उसी घर में हुआ था...
विश्व - हाँ हुआ होगा... दीदी ने कहा था... मुझे जन्म देकर मेरी माँ चल बसी थी... मेरे लिए मेरी दीदी ही मेरी माँ है और मेरे पिता भी... उसीने मुझे बोलना दिखाया... देखना सिखाया... चलना सिखाया और भागना भी... वह मेरे लिए देवी है...
विक्रम - वाकई वह देवी हैं... सिर्फ तुम्हारे लिए ही नहीं... गाँव वालों के लिए भी...
विश्व - हाँ... वह देवी है... वह कभी किसी में कभी फर्क़ नहीं की है... आज भी उन गाँव वालों के लिए ही डटी हुई है... जिन्होंने उसके बदकिस्मती की आवाज पर कोई जवाब तक नहीं दिया... जिन्होंने राजा के आदमियों के कहने पर... डायन समझ कर पत्थरों से मारा... उन सबको मेरे दीदी ने माफ कर दिया... वह बहुत मजबुत है... इतना कुछ होने के बावजूद... ना यह गाँव छोड़ा.. ना गाँव वालों को...
विक्रम - मैंने घर छोड़ दिया... गाँव छोड़ने की सोच रहा था... पर असमंजस में था... अपने साथ उन चार जिंदगियों को लेकर कहाँ जाता... मैं उस पसोपेश में था कि... तुम्हारी दीदी ने मुझे उस पसोपेश से बाहर निकाल दिया... और देखो ना... आज अपने अन्नपूर्णा भंडार से खाना भी भेज दिया...
विश्व - (कोई जवाब नहीं देता)
विक्रम - विश्व... मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है... तुम मुझसे कई गुना बेहतर हो... हर लिहाज से... फिर भी मैं तुम्हारे सामने अपने गुरुर पर कायम था... झूठा ही सही... तुमसे जीता भी और तुम्हारी माता जी से तुम्हारे लिए... हाथ जुड़वा कर अनुरोध भी करवाया... अपनी झूठी अहं को खुश करने के लिए... जानते हो... एक गुरूर हमें विरासत में मिली थी... क्षेत्रपाल के हाथ कभी आसमान नहीं देखती... किसी से मांगते नहीं... या तो छिनते हैं... या फिर दे देते हैं... शायद दीदी को यह मालुम था... इसलिए मेरी अहं की लाज रखते हुए... मेरे हाथों को फैलाने नहीं दीया... मुझे आसरा दे दी...
विश्व - दीदी है ही ऐसी... उसके दर से कोई कभी भी... खाली हाथ नहीं लौटता है...
विक्रम - इसीलिये तो मेरे मुहँ से बरबस निकल गया... के वह अन्नपूर्णा हैं...

कुछ देर के लिए दोनों चुप हो जाते हैं l सूरज लगभग डूबने को था l अंधेरा धीरे धीरे अपने सबाब पर छा रहा था l

विक्रम - सूरज शायद कुछ सेकेंड के बाद दिखे ना... क्या तुम्हें कोई संदेश मिला...
विश्व - नहीं... अभी तक नहीं... या फिर मेरी समझ में नहीं आया...
विक्रम - क्या तुम इसलिए परेशान हो... रुप मेरे साथ नहीं आई...
विश्व - नहीं... मैं जानता हूँ... वह क्यूँ नहीं आई... और मैं उनके लिए निश्चिंत हूँ...
विक्रम - (थोड़ा चिढ़ कर) ऐसा क्यूँ... विश्व... ऐसा क्यूँ... वह क्षेत्रपाल महल है... और वहाँ पर भैरव सिंह क्षेत्रपाल रह रहे हैं... तुमसे जितने के लिए... किसी भी हद तक जा सकते हैं... देखा नहीं... कटक में क्या हुआ... हमने वीर को खो दिया...
विश्व - (शांत पर खोए खोए लहजे में) हाँ... वीर को खो दिया... तुमने क्या खोया... मैं नहीं जानता विक्रम... पर मैंने जो खोया है... वह मैं बयान नहीं कर सकता... पहली बार... मुझे लगा... के... (विश्व आगे कुछ कह नहीं पाता)
विक्रम - मैं... मैं समझ सकता हूँ...
विश्व - नहीं... तुम नहीं समझ सकते... राजा भैरव सिंह ने... ना सिर्फ मुझे संदेशा दिया है... बल्कि तुम्हें भी संदेश दिया है...
विक्रम - मुझे...
विश्व - हाँ... तुम्हें... वीर को जो सजा अनु की आड़ में मिली है... उसका वज़ह वीर की बगावत है... और इसी में तुम्हारे लिए भी पैगाम है..
विक्रम - (हैरानी के मारे आँखे बड़ी हो जाती हैं) क्या...
विश्व - हाँ... अब तुमने भी बगावत कर दी है...
विक्रम - मैं हैरान नहीं होऊंगा... अगर राजा साहब ऐसा कई कदम उठाते हैं तो... जिन्होंने मेरी माँ को अपने रास्ते से हटा दिया हो... उनके लिए मेरी क्या कीमत...
विश्व - इसीलिए दीदी ने तुम्हें अपनी आँखों के सामने रखा है...
विक्रम - क्या... मतलब वैदेही जी को पहले से ही अंदेशा है...
विश्व - हाँ... (विश्व विक्रम की ओर मुड़ कर) वैसे तुम मुझे यहाँ ढूंढते हुए क्यूँ आए हो...
विक्रम - मुझे रुप की चिंता है... मैंने बुलाया था... पर वह नहीं मानी... उसे शायद तुम्हारा इंतजार है... तुम जाकर उसे क्यूँ नहीं ले आते...
विश्व - पहली बात... तुम जो इतनी आसानी से महल से निकल आए... उसकी वज़ह... राजा की मज़बूरी है... वर्ना तुम भी जानते हो... तुम्हारा महल से निकल आना कितना मुश्किल होता.... और रही राजकुमारी जी की बात... तो राजकुमारी जी ने... राजा साहब की अहंकार को छेड़ा है... मैं राजकुमारी जी को तभी जाकर लाऊंगा... जब भैरव सिंह का अहं... चरम पर होगी... भरम में होगी...
विक्रम - राजा साहब का अहंकार जब चरम पर होगी... तो तुम कहना क्या चाह रहे हो... राजा साहब की गिरफ्तारी नहीं होगी...
विश्व - सात साल जैल में गुजार कर आया हूँ... कानून का हर दाव पेच देख कर सीख कर आया हूँ... मैं किसके साथ उलझ रहा हूँ मैं जानता हूँ... वह ज्यादा देर तक... सलाखों के पीछे नहीं रहेगा... किसी ना किसी बहाने से बाहर आएगा... तब उसके घर के बाहर कोई कानूनी पहरा भी नहीं होगा... तब... तब जाकर मैं... राजकुमारी जी को ले आऊंगा...
विक्रम - तुम जानते भी हो तुम क्या कह रहे हो... तब तुम महल में दाखिल भी नहीं हो पाओगे... अगर ताकत की आजमाइश करोगे... तब भी नहीं जा पाओगे...
विश्व - विक्रम... मैंने तुमसे ज्यादा महल में अपने दिन गुजारे हैं.... मैं महल के हर कोने से... चप्पे-चप्पे से वाकिफ हूँ... मैं अगर अभी राजकुमारी को ले आया... तो राजकुमारी जी का अहं हार जाएगा... और वह मैं कभी होने नहीं दूँगा...
विक्रम - (यह सब सुन कर स्तब्ध हो जाता है) चाची माँ ने सच कहा था... राजा साहब जी के अहं से... किसी एक का अहं टकराया है... और वह रुप है... तुम... तुम वाकई... रुप के लिए ही बने हो... पर... तुम्हें नहीं लगता... तुम रुप को लेकर कुछ ज्यादा ही ओवर कंफिडेंट हो...
विश्व - नहीं... अब जब पूरा महल खाली है... ऐसे में बड़े राजा जी की देखभाल के लिए कोई अपना होना चाहिए... क्यूँकी कल नहीं तो परसों... राजा साहब को... अदालत में पेश होना ही होगा... तब तक... राजकुमारी जी पर कोई आँच नहीं आएगा...
विक्रम - ओह... तुम बहुत दूर की सोच रहे हो...
विश्व - नहीं... मैं पास की ही सोच रहा हूँ... अगर दूर की सोच पाया होता... तो अनु और वीर दोनों... (रुक जाता है)
विक्रम - (एक गहरी साँस लेकर) बात अगर हम वीर की छोड़ दें... तो तुम बहुत खुश किस्मत रहे हो... (विश्व, विक्रम की ओर देखता है) हाँ विश्वा... तुम्हारे जिंदगी में... हर रिश्ते की भरपाई हुई है... माँ बाप खो दिए... माँ बाप मिल भी गए... अच्छे मार्गदर्शक मिले... दोस्त मिले... पर मेरे पास सब थे... पास ही थे... पर सब एहसास ज़ज्बात मुर्दा था... रुप के आने के बाद... हर एक रिश्ता जी उठा...
विश्व - कुछ हद तक तुम सही हो... मैंने कभी अपनी किस्मत से कुछ चाहा नहीं... जो भी मिला... दोनों हाथों से बटोर लिया... माँ बाप का चेहरा याद नहीं है... क्यूँकी उनके जगह मैंने हमेशा दीदी को पाया है... बाकी जो भी रिश्ते है... सब के सब उपहार हैं... पर अब किसीको भी खोने से डर रहा हूँ...
विक्रम - क्या अब जो मिल रहा है... वह मेरे लिए उपहार है... क्या मुझे अपनी इस हालत का.... कद्र करना चाहिए... क्या मेरा वर्तमान... मेरा भविष्य है...

जवाब में विश्व चुप रहता है l फिर से दोनों के बीच खामोशी छा जाती है l विक्रम कुछ सोच कर उठ कर जाने लगता है l विश्व उसे पीछे से आवाज देता है

विश्व - विक्रम... (विक्रम रुक जाता है) अभी जो हालात हैं.. वह तुम्हारा वर्तमान है... शायद इसी में तुम्हारा भविष्य हो... जिसे तुम्हें अपने हाथों से संवारना है... मेरी दीदी गलत हो नहीं सकती...

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कमरे में वैदेही रात के खाने की तैयारी कर रही थी l गौरी कुछ चिंतित अवस्था में कमरे में आती है और एक कोने में जाकर कुर्सी पर बैठ जाती है l उसका सिर झुका हुआ था पर लग रहा था किसी गहरी सोच में खोयी हुई है l उसकी यह हालत देख कर वैदेही पूछती है l

वैदेही - क्या हुआ काकी... क्या हो गया... बड़ी गहरी सोच में डूबी हुई हो...

गौरी अपना सिर उठा कर वैदेही की ओर देखती है और हल्की सी मुस्कान चेहरे पर लाने की कोशिश करती है, पर उसका चेहरा उसका साथ नहीं दे रहा था l वैदेही अपना काम छोड़ कर उसके पास आती है l

वैदेही - क्या हुआ काकी... तुम किस बात पर परेशान हो...
गौरी - नहीं... नहीं तो...
वैदेही - देखो काकी... कुछ तो हुआ है... तुम कभी झूठ बोल पाई हो भला... हाँ तुम अगर बताना ना चाहो तो...
गौरी - नहीं... मैं तुम से कोई भी बात छुपाना नहीं चाहती... पर कैसे कहूँ... यह मैं समझ नहीं पा रही हूँ...
वैदेही - क्या बात बहुत गंभीर है...
गौरी - हाँ...
वैदेही - क्या मुझसे... या विशु से जुड़ी हुई है...
गौरी - हाँ भी और नहीं भी...
वैदेही - ओ हो काकी... बात की जलेबी मत बनाओ... सीधा सीधा कहो... बात क्या है...
गौरी - वह... आज महल में... एक तांत्रिक आया है...
वैदेही - तो... राजा तंतर मंतर कर बचने की कोशिश करेगा क्या...
गौरी - आज से सोलह सत्रह साल पहले... ऐसे ही एक तांत्रिक महल में आया था...
वैदेही - (चुप रहती है)
गौरी - उसके बाद... तेरी खोज शुरु हुई थी... (वैदेही की भौंहे सिकुड़ जाती हैं) हाँ... वैदेही... लगता है... कोई रश्म दोहराया जाएगा... गाँव में किसी ना किसी को उठाया जाएगा....
वैदेही - क्या बकवास कर रही हो काकी... राजा अभी नजर बंद है... ऐसे में...
गौरी - अगर राजा ने उसे बुलाया है... तो यकीनन... उसने आगे क्या करना है... कब करना है... सब सोच रखा होगा...
वैदेही - यह कैसा या कौनसा रश्म होगा काकी... जिसके लिए उसे किसी लड़की की जरूरत होगी... मेरे बाद तो वह रास्ता बंद हो गया था ना...
गौरी - यही तो मैं समझ नहीं पा रही हूँ... मुझे लगा था... तेरे साथ... तेरे बाद यह रश्म सब ख़तम हो गया था.... पर उस तांत्रिक का इस वक़्त यहाँ होना... मुझे आनेवाली किसी खतरे की आहट सुनाई दे रही है... बीच बीच में लड़कियाँ उठा ली जाती थी... या बाहर से उठाई गई लड़कियाँ लाई जा रही थी... पर वह सब भी... बहुत दिनों से बंद था.... अब तांत्रिक का यहाँ पर होने से... कहीं वह सब दोबारा शुरु ना हो जाए...
वैदेही - घबराओ मत काकी... राजा ने इस बार ऐसा कुछ किया तो... लोग पलटवार करेंगे...
गौरी - तेरे कहने का मतलब क्या है... राजा अगर गाँव में से किसीको उठा ले जाएगा... तो... तूने राजा के बेटे को कहीं इसी बात की ज़मानत की तरह रोका है...
वैदेही - नहीं काकी... तुमने ऐसा सोच कैसे लिया... विक्रम को उस वक़्त एक आश और आसरा की जरूरत थी... देने के लिए मेरे पास एक आसरा था... सो मैंने दे दी...
गौरी - मुझसे भूल हो गई तुझे समझने में... पर मुझे लगता है... कभी ना कभी... एक बहुत बड़ा हादसा होने वाला है... कहीं वह काली इतिहास खुद को दोहरा ना दे... पता नहीं इस बार... किस के घर की... लौ बुझ जाएगी...
वैदेही - नहीं काकी... ऐसा कुछ नहीं होगा... तब गाँव वाले मजबूर थे... डरते थे... पर अब अगर राजा ने ऐसी कोई जुर्रत की... तो गाँव वाले उसे सटीक जवाब देंगे... वैसे भी... अब राजा वह शेर है... जिसके मुहँ में ना दांत है... ना पंजे में नाखुन...
गौरी - फिर भी... वह है तो शैतान... अपनी शैतानी से बाज कैसे आएगा...
वैदेही - काकी... विशु कह रहा था... एक दो दिन में... राजा की गिरफ्तारी होने वाली है... उसके बाद तो जैल में सड़ेगा...
गौरी - फिर भी... डरना तो चाहिए... यह कानूनी खेल में... बड़े बड़े मछली छूट जाते हैं... जब कि छोटी मछलियाँ फंस जाते हैं...
वैदेही - ओह ओ काकी... तुम घबराओ मत... मैं और विशु... राजा भैरव के हर वार के लिए तैयार हैं... कम से कम... मेरे होते हुए... इस गाँव में वह इतिहास तो कोई नहीं दोहरा सकता...

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नागेंद्र बिस्तर पर लेता हुआ है l उसका स्वस्थ्य दिन व दिन गिरता जा रहा है l सुषमा नहीं है इसलिए नागेंद्र का खयाल रुप रख रही है l अपनी कुछ नौकरानियों के साथ l इस वक़्त रुप सेबती के साथ मिलकर नागेंद्र को खिलाने के बाद मुहँ और चेहरा साफ कर रही थी l एक और नौकरानी अंदर आती है l

नौकरानी - राजकुमारी जी... राजा साहब ने एक संदेश भेजा है...
रुप - कैसी संदेश...
नौकरानी - राजा साहब अभी इसी कमरे में आना चाहते हैं... उनके साथ एक बाबा हैं... वे बड़े राजा जी को देखने आये हैं और कुछ बातेँ करना चाहते हैं... आपको इसी वक़्त अंतर्महल जाने के लिए कहा है...
रुप - (कुछ सोचने लगती है) ठीक है...

वह सेबती को अपने साथ लेकर वहाँ से चली जाती है l उनके जाते ही भैरव सिंह एक तांत्रिक के साथ प्रवेश करता है l तांत्रिक को देखते ही नागेंद्र के आँखों में चमक आ जाती है l

तांत्रिक - कैसे हो राजा... ओ... बड़े राजा...

अपने टेढ़े थोबड़े को हिला कर पास पड़े कुर्सी पर बैठने के लिए इशारा करता है l तांत्रिक मुस्कराते हुए बैठ जाता है l नागेंद्र भैरव सिंह को इशारे से कुछ पूछता है, पर जवाब तांत्रिक देता है l

तांत्रिक - कुछ दिन पहले ही मुझे खबर भिजवाई थी... तब शायद छोटे राजकुमार जैल में थे... पर हम कुछ कारणों के चलते आ नहीं पाए... सब जानकर दुख हुआ... हाँ देर तो हो गई है... पर इतनी भी नहीं हुई के हम सब ठीक ना कर सकें...

यह सुन कर नागेंद्र हँसने लगता है l उसका चेहरा और भी भद्दा नजर आ रहा था l जब लार बहने लगती है तो भैरव सिंह पास पड़े एक ग़मछा को उठा कर नागेंद्र के तरफ बढ़ा देता है l नागेंद्र बड़ी मुश्किल से ग़मछा थामता है और अपना मुहँ पोंछने लगता है l तांत्रिक यह सब देख कर हँसते हुए कहता है l

तांत्रिक - हा हा हा... चलो अच्छा है... आप दोनों में अहंकार जश का तस है... अच्छी बात है... (भैरव से) तो राजा साहब... कहिये... क्यूँ याद किया और क्या चाहते हैं...
भैरव सिंह - एक अभिशाप से मुक्ति... बड़े राजा जी की हालत तो देख ही रहे हैं... छोटे छोड़ कर राजकुमार जी के साथ चले गए हैं... क्षेत्रपाल का रौब... रुतबा सब... ख़तम हो गया है... उसे वापस हासिल करना है... बरसों पहले.... ऐसी ही हालत थी... एक रस्म अदायगी हुई... फिर हम और ताकतवर बन कर उभरें... अब फिर से वही ताकत और हैसियत हासिल करनी है... पर कैसे... क्या उसी रस्म को दोहराना है... या कुछ और करना है...
तांत्रिक - राजा साहब... जब आपका विरासत संभालने के लिये... आपका वारिस ही छोड़ चला गया हो... फिर किसके लिए आप अपनी विरासत को समेटना चाहते हैं...
तांत्रिक - किसी रंडी को क्षेत्रपाल पर हावी होते... देख नहीं सकते... बड़े राजा जी से एक वादा किया है... वह अभी अधूरा है... उसे छोड़ नहीं सकते...
तांत्रिक - शाबाश.... आप सच में एक जुनूनी शख्स हैं... पर जब वारिस ही नहीं साथ में... फिर किस बात पर मोह...
भैरव - हमें... मसलने में... कुचलने में... रौंदने में जो सुकून मिलता है... हम उसे छोड़ नहीं सकते... जो गलतियां हुईं हमसे... उन्हें भुलाना चाहते हैं... फिर से नया इतिहास लिखना... बनाना चाहते हैं...
तांत्रिक - हा हा हा हा... शाबाश... राजा... आप एक शैतान हो... जो इंसानी खाल में बस कर भगवान के कुर्सी पर बैठना चाहता है... शाबाश...
भैरव सिंह - हाँ इसके लिए जो भी मंत्र का जाप हो करें... अपनी मंत्र सिद्धि से... हमारे रिष्ट खंडन करें...
तांत्रिक - इस बार तुम गलत हो राजा... हमें मंत्रों पर सिद्धि प्राप्त नहीं है... तंत्रों पर सिद्धि प्राप्त है... मंत्र सात्विक वालों के लिए होती है... हम तांत्रिक हैं... तामसिक सिद्धियों के लिए तंत्र साधना करते हैं... हमारी वृत्ति... प्रवृत्ति... आचरण... और संलिप्ती... पूर्णतः तामसिक होती है...
भैरव सिंह - तो वही सही... पर कीजिए कुछ... जैसा आपने सोलह साल पहले करवाया था...
तांत्रिक - वह बहुत ही वीभत्स था... पर सुना है... वह लड़की रंग महल से भाग गई थी... और उससे कोई बच्चा भी नहीं हुआ था...
भैरव सिंह - हाँ... अगर उससे कोई बच्चा हुआ होता... तो आपकी आवश्यकता यहां नहीं होती... हमें कल तक शायद गिरफ्तार कर लिया जाए... इसलिए रास्ता बताएं...
तांत्रिक - हाँ... यह बात भी सही कही... ठीक है... मेरे लिए एक दरी बिछा दो...

भैरव सिंह कमरे की एक बेल बजाता है l थोड़ी देर बाद भीमा भागते हुए आता है l भैरव सिंह उसे कमरे के बीचों-बीच फर्श पर एक दरी बिछाने के लिए कहता है l भीमा एक दरी बिछा देता है और एक कोने में जाकर खड़ा हो जाता है l तांत्रिक अपने थैले से एक कला कपड़ा निकाल कर दरी पर बिछा देता है l उस पर सफेद पाउडर से एक शैतानी यंत्र की चित्र बनाता है l उस पर कुछ कौड़ी शंख निकाल कर फेंकता है l कुछ गणना करने के बाद l

तांत्रिक - राजा... दो रास्ते हैं... तुम अपनी गरिमा वापस पा सकते हो... पर
भैरव सिंह - पर क्या...
तांत्रिक - तुमने अपने वारिसों को अपने जैसा नहीं बनाया... यही तुम्हारी सबसे बड़ी भूल है... पर एक मौका है... मेरी गणना बता रही है... तुम्हारे वंश में... एक उत्तराधिकारी आ रहा है... उसका जन्म अगर इसी महल में हो... तो उसका भाग्य तुम्हारे जीवन में... तुम्हारे सभी गरिमाओं को वापस ला सकता है... फिर तुम्हें उसकी परवरिश इसी महल के मध्य करना होगा... यह एक आसान तरीका है... और एक मुश्किल तरीका भी है... पर दोनों तरीकों के लिए... तुम्हें बाहर आना होगा... और इसी महल में रहकर हर एक कार्य को अंजाम देना होगा.... (भैरव सिंह कुछ सोच में पड़ जाता है) क्या सोचने लगे राजा...
भैरव सिंह - हो सकता है... हमारी गिरफ्तारी पर ज़मानत ना मिले... तो क्या जैल के भीतर से कुछ संभव हो सकता है...
तांत्रिक - नहीं राजा... तुम्हें इसी महल में आना होगा... तुम कैसे इस महल में वापस आओगे... यह तुम पर निर्भर है...
भैरव सिंह - ठीक है... दूसरा रास्ता...
तांत्रिक - क्यूँ... पहले तरीके में क्या असुविधा है...
भैरव सिंह - हम छह माह तक प्रतीक्षा नहीं कर सकते...
तांत्रिक - दूसरा तरीका वही है... जो सोलह वर्ष पूर्व बड़े राजा ने... रंग महल में किया था...
भैरव सिंह - उसकी कोई वज़ह...
तांत्रिक - हाँ... तुमको... एक राक्षसी विवाह करना होगा...
भैरव सिंह - यह राक्षसी विवाह क्या है...
तांत्रिक - विवाह अनेकों प्रकार के होते हैं... देव विवाह... मानव विवाह... गंधर्व विवाह और आसुरीक या राक्षसी विवाह... देव विवाह में दो समाज... दो प्रांत.. दो क्षेत्र में शांति व सौहार्द स्थापित करता है... मानव विवाह... दो परिवारों को जोड़ता है... गंधर्व विवाह... दो प्राणों को जोड़ता है... पर इन सबके विपरित राक्षसी विवाह होता है... इसमें पहले बलात्कार और अनिच्छा जोर जबरदस्ती विवाह किया जाता है.... पर...
भैरव सिंह - पर क्या...
तांत्रिक - वह लड़की तुम्हारे रंग महल में नहीं है... ना ही उससे कोई संतान है...
भैरव सिंह - तो क्या हुआ... बलात्कार तो किसी से भी हो सकता है...
तांत्रिक - नहीं राजा.. तुम्हारे परिवार में... सिर्फ और सिर्फ पाईकराय परिवार की औरतों के साथ ऐसा क्यूँ होता था... ताकि यह रस्म... सदेव जिंदा रह सके...
भैरव सिंह - इसका मतलब मुझे वह लड़की ढूंढनी होगी... जिसकी माँ के साथ...
तांत्रिक - हाँ राजा... अब तुम सही समझे... (तांत्रिक अब अपना सामान समेटने लगता है, फिर उसके बाद उठता है) ध्यान रहे... यह सब करने के लिए... तुम्हें इसी महल में आना होगा... तुम कुटिल हो... आ सकते हो.... जब किसी लड़की को उठा लाओ तो खबर करना... मैं तुरंत आ जाऊँगा...

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उदय भाग रहा था, यशपुर के गालियों में वह भाग रहा था l उसके पीछे विश्व के चार दोस्त लगे हुए थे l उदय भागते भागते एक घर के बागीचे में घुस जाता है और उस बागीचे के बीचों-बीच एक पत्थर था जिसके ऊपर हांफते हुए बैठ जाता है और अपनी साँसे दुरुस्त करने लगता है l सीलु मिलु जिलु और टीलु भी उसे घेरते हुए हांफ रहे थे l वे लोग भी घास पर बैठ कर अपनी साँसे दुरुस्त करने लगते हैं l सीलु अपना फोन निकाल कर विश्व को फोन पर इन्फॉर्म कर देता है l थोड़ी देर बाद विश्व वहाँ पर पहुँच जाता है l तब तक पाँचों अपना साँस दुरुस्त कर चुके थे l विश्व देखता है उदय बगीचे के बीचों-बीच एक पत्थर पर बैठा हुआ है और उसे चारों तरफ घेर कर उसके दोस्त बैठे हुए थे l

सीलु - भाई बहुत दौड़ाया है... इस कमबख्त ने...
टीलु - पर जब से बैठा हुआ है... बिल्कुल टुबक कर बैठा हुआ है...
विश्व - (उदय से) किसके पास हमें यहाँ लेकर आए हो... कौन है तुम्हारे पीछे.... किसके कहने पर तुम हमें यहाँ तक लेकर आए हो...
उदय - कमाल है... भगा मुझे रहे हो... और बोल रहे हो... मैं तुम लोगों को यहाँ लेकर आया हूँ...
विश्व - देख उदय... ज्यादा स्मार्ट मत बन... मेरा दिमाग फिरा हुआ है... इससे पहले कि कोई उल्टा सीधा करूँ... मेरे सवालों का ठीक ठीक जवाब दे...
उदय - देखो विश्व भाई... माना दिमाग तुम्हारा खूब चलता है... पर मैंने तुम्हें कहीं पर भी फंसाया नहीं... उल्टा मदद ही की है...
विश्व - मैंने तुझे अभी अभी कहा... मेरी खोपड़ी गरम मत कर... सीधी तरीके से बता... तू किसके लिए काम कर रहा है... और जब भाग गया था... वापस किस लिए आया है...

यह सारी बातें तुम मुझसे जान लो... (एक आवाज एक कोने से आती है, विश्व और उसके सारे दोस्त उस आवाज़ की तरफ घूम कर देखते हैं l शूट बूट में एक आदमी खड़ा था) विश्व... उर्फ विश्वा भाई... स्वागत है... आओ कमरे के अंदर चलते हैं... और गिले शिकवे दूर करते हैं...

विश्व उस आदमी को पहचानने की कोशिश कर रहा था l इतने में उदय अपनी जगह से उठ खड़ा होता है और विश्व के करीब आकर कहता है

उदय - यह महोदय नरोत्तम पत्री हैं... इन्हीं की अंतर्गत वह केस है... जिसे इंस्पेक्टर दाशरथी दास एफआईआर नोट कर गृह मंत्रालय और कोर्ट में पेश किया था...

सभी पत्री की पीछे चलते हुए एक कमरे में आते हैं l पत्री सबको बैठने के लिए कहता है l सबके बैठने के बाद पत्री विश्व से पूछता है l

पत्री - हाँ तो विश्व... मेरा नाम और पहचान बताने की अब कोई जरूरत नहीं होगी... फिर भी तुम्हें बताये देता हूँ... मेरा नाम नरोत्तम पत्री है... मैं उस समय यशपुर में आया था... जब तुम जैल में हुआ करते थे... तभी से मैंने भैरव सिंह की टोह लेनी शुरु कर दी थी... तुम जिस केस में घिरे हुए थे... यकीन मानों... उसकी हर गवाह को... भैरव सिंह न्युट्र्लाइज कर चुका है... और वह जिस तरह का काईंया है... तुम समझ सकते हो... तुम्हारा आरटीआई और पीआईएल सिर्फ सुनवाई में ही रह जाता... नतीजे पर कभी नहीं पहुँचता...
विश्व - हाँ समझ सकता हूँ... पर इस में उदय की क्या भूमिका है... वह किसके तरफ है...
पत्री - उदय... वह सबके साथ है... पर वह... रिटायर्ड जैल सुपरिटेंडेंट तापस सेनापति जी तरफ है...
विश्व - क्या... (चौंकता है)
उदय - हाँ... तुम्हें लगता था कि मुझे... रोणा ने तुम्हारे पीछे लगाया था... पर असल में मैं रोणा के नाक के नीचे रह कर... तुम्हारी खैरियत की खबर... सेनापति सर जी को दिया करता था...
विश्व - डैड ने इस बारे में... मुझे कभी भी... कुछ भी नहीं कहा...
पत्री - उन्हें तुम्हारा बहुत खयाल है... या यूँ कहो... तुम्हारे भीतर... प्रतिभा जी की जान बसती है... और तापस जी की... प्रतिभा जी के भीतर... अपनी जान को बचाने के लिए... उन्होंने ही... अपने तरीके से... तुम्हारे लिए... यह सब किया है...
सीलु - वाव... सेनापति जी तो छुपे रूस्तम निकले...
पत्री - हाँ विश्व... तुम्हारे सगे पिता तो नहीं हैं... पर अपनी जीवन की पूरी अनुभूति और कोशिश झोंक दी... हवाओं के रुख को तुम्हारे तरफ मोड़ने के लिए...
विश्व - वह सब ठीक है... मुझे यह बताइए... इस मुलाकात के पीछे... आपका क्या प्लान है... और यह मुलाकात... इस टेंपोररी शेड में क्यूँ कर रहे हैं...
पत्री - वाव... तुमने अच्छा गेस किया... यह एक एक्सटेंशन नुमा कमरा... जिसके अंदर हम बैठे हुए हैं... कल ही बनाया गया है... और तुम लोगों के जाते ही... तोड़ दिया जाएगा...
विश्व - वज़ह...
पत्री - हम सब अभी भी... अंडर सर्विलांस में हैं... भैरव सिंह नजर बंद बेशक है... पर उसके वफादार अभी भी... कुत्तों की तरह सूंघते हुए... हमारी हरकतों के बारे में जानने के लिए... घूम रहे होंगे...
विश्व - वह सब आप ऑन ऑफिशियल लोगों की बात कर रहे हैं... मुझे यह भी एहसास है... सिस्टम में... भैरव सिंह के चट्टे बट्टे हैं...
पत्री - हाँ इसीलिए तुमको यहाँ बुलाया है... इस केस के बाबत...
विश्व - जी कहिये...
पत्री - मैंने हर एक गाँव वालों की गवाही ली... और उसके बाद उनसे तुम्हारे नाम की वकालत नामा में दस्तखत भी ले लिए...
विश्व - क्या...
पत्री - हाँ... अब इस केस को... गाँव वालों की तरफ़ से तुम लड़ने जा रहे हो...
विश्व - क्या... मैं गाँव वालों का केस लड़ुंगा... और मुझे मालूम नहीं है...
पत्री - ना... अब तुम मुझे हैरान कर रहे हो... मुझे लगता है... तुम्हें कमिश्नरेट में... सुभाष सतपती कह चुका है...
विश्व - मतलब... भैरव सिंह के खिलाफ इतना बड़ा नेक्सस बना है...
पत्री - और इस नेक्सस में... चाहे अनचाहे तुम भी अब शामिल हो...
विश्व - (कुछ देर चुप रहता है) भैरव सिंह गिरफ्तार कब होगा...
पत्री - कल... कल ही होगा...
विश्व - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) पत्री साहब... यह केस जिस तरह से बाहर आई है... इसके लिए जिस तरह की सबूत और गवाह चाहिए... मैंने उस पर कोई एक्सरसाइज नहीं की है...
पत्री - कोई मसला नहीं है... अभी कुछ खास गवाहों से मिलवा देता हूँ.... (पीछे मुड़ कर आवाज देता है) आ जाओ अंदर सब... (कुछ लोग अंदर आते हैं, उनमें से एक आदमी को देख कर विश्व चौंकता है और अपनी जगह से उठ खड़ा होता है, पत्री उसीके तरफ इशारा करते हुए) इन्हें तुम जानते तो नहीं हो... पर इनसे तुम्हारी मुलाकात हुई ज़रूर है... (विश्व को वह आदमी हैलो कहता है)
विश्व - हाँ... शायद बस में... आप ही थे... जो मुझे इस केस की डिटेल्स की लीड दे रहे थे...
आदमी - हाँ उस बस में... मैं ही आपका को - ट्रैवलर था... पर वह हमारी दूसरी मुलाकात थी... (कह कर अपना हाथ आगे करता है)
विश्व - (उससे हाथ मिलाता है) तो पहली मुलाकात... कब हुई थी...
आदमी - जिस दिन आप यशपुर में पहली बार बस से उतरे थे... एक मील की पत्थर पर... किसी ने यश पुर को... यम पुर लिखा था..... आप उसे मिटा कर यश पुर लिखे थे...
विश्व - हाँ हाँ... अब याद आया...
आदमी - उस दिन के बाद... मैंने पत्री सर जी से बात की... तब उन्होंने मुझे इंतजार करने के लिए कहा था... तुमने जैस ही पीआईएल दाखिल की.. उसके बाद मैंने... अखबार के जरिए... पहेली भेज कर... लीड देने की ठानी...
विश्व - आप सीधे सीधे मुलाकात करने की कोशिश क्यूँ नहीं की...
आदमी - मैंने मौत को बहुत ही करीब से देखा है... तुम शायद यकीन करो... मैं... नभवाणी न्यूज चैनल के.. रिपोर्टर प्रवीण रथ और उसकी बीवी के हत्या का चश्मदीद गवाह हूँ... (विश्व और उसके दोस्तों के मुहँ हैरानी के मारे खुल जाते हैं) हाँ विश्व बाबु... मैं ही हूँ... प्रवीण रथ की हत्या का चश्मदीद गवाह.... और अब की बार जो... आर्थिक कांड हुआ है... उसका भी मैं प्रामाणिक गवाह हूँ...
विश्व - मतलब... आप अब तक छुप कर थे... सामने अब क्यूँ आए हैं...
आदमी - अगर भैरव सिंह नजर बंद ना होता... तो हम लोग भी अभी न्युट्र्लाइज हो चुके होते... जिस तरह रुप फाउंडेशन केस में हुआ था...
विश्व - ओह... फिर भी... उसके आदमी आप लोगों को ढूंढ रहे होंगे...
आदमी - हाँ... हमने भी वही तरीका अपनाया... जो आपके केस में... श्रीधर परीड़ा ने किया... होली के बाद हम... अंडरग्राउंड हो गए...
पत्री - तो विश्व... यकीन मानों... इनकी गवाही... तुम्हें तुम्हारी मंजिल तक पहुँचा सकती है...
विश्व - (आदमी से) क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ...
आदमी - मेरा नाम सुधांशु मिश्रा है... मैं रेवेन्यू इंस्पेक्टर हूँ...

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पुलिस की वैन के साथ साथ कुछ जीप आकर क्षेत्रपाल महल के परिसर में रुकती हैं l एक गाड़ी से पत्री और कुछ लोग हाथों में फाइल लिए उतरते हैं l पुलिस की जीप से दास अपने सिपाहियों के साथ उतरता है l सब एक साथ महल के अंदर जाते हैं l महल के दीवान ए आम में बीचों-बीच एक सिंहासन पर भैरव सिंह बड़े रौब के साथ बैठा हुआ था l सभी आकर सिंहासन के सामने खड़े हो जाते हैं l भैरव सिंह अपना बायाँ पैर मोड़ कर दाहिने पैर पर रखता है l

भैरव सिंह - (पत्री से) कहिए... यश पुर के... पूर्व तहसीलदार... कैसे आना हुआ...
पत्री - हमने अदालत से वारंट निकलवा ली है... आज... अभी आपको हमारे साथ जाना होगा... कल आपकी... अदालत में पेशगी होगी...
भैरव सिंह - हा हा हा हा... तो.. मौका मिलते ही... तुमने अपना बदला ले लिया...
पत्री - यह कोई निजी मामला नहीं है... और बदला.. निजी मामला होता है... हम सरकारी मुलाजिम हैं... हमारी ईमानदारी... बेइमानों पर भारी पड़ती है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... यह पल हमें याद रहेगा...
पत्री - जी जरूर... सिर्फ आपको नहीं... हम उस इंसान को याद रहेगा... जिन्हें भगवान पर भरोसा होगा...

भैरव सिंह अपनी सिंहासन से उठता है और पत्री के सामने आता है आपने दोनों हाथ आगे बढ़ा देता है l दास हथकड़ी निकालता है तो पत्री उसे इशारे से हथकड़ी डालने के लिए कहता है l जैसे ही दास हथकड़ी डाल देता है, पत्री देखता है भैरव सिंह के चेहरे की पेशियां थर्राने लगते हैं l आँखों में खुन उतर आता है, अंगारों की तरह दहकने लगते हैं l


भैरव सिंह - भीमा... (भीमा भागते हुए आता है)
भीमा - हुकुम...
भैरव सिंह - बस हफ्ते दस दिन की बात है... तब तक... अपने सारे पट्ठों से वहीँ पर पहरेदारी करना... जहां पर यह पुलिस वाले कर रहे थे...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - और ध्यान रहे... तुम लोगों से सिर्फ... सेबती ही बात करेगी... डॉक्टरों और नर्सों को छोड़ कोई भी... महल के अंदर ना जा पाए...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - पत्री बाबु चलें...
पत्री - (दास से) चलो इन्हें गाड़ी में बिठा कर ले जाओ...
भैरव सिंह - पत्री बाबु... एक अनुरोध है....
पत्री - (हैरान हो कर) अनुरोध...
भैरव सिंह - हाँ पत्री बाबु.... (अपना हाथ दिखाते हुए) शेर जब जंजीरों से जकड़ा हुआ हो... अनुरोध ही कर सकता है...
पत्री - जी कहिये....
भैरव सिंह - इंस्पेक्टर दास से कहिये... हमें महल से गाड़ी से नहीं... पैदल ही लेकर चले...
पत्री - यह आप क्या कह रहे हैं...
भैरव सिंह - हाँ पत्री बाबु... हम उन बस्तियों से आज पैदल ही गुजरना चाहते हैं... जिन पर कभी... हुकूमत किया करते थे...

पत्री और दास एक दूसरे को हैरान हो कर देखते हैं l

पत्री - यह आप क्या कह रहे हैं राजा साहब... आप इस हालत में... लोगों के बीच में जाएंगे...
भैरव सिंह - हाँ पत्री बाबु... हम इन्हीं हथकड़ीयों जकड़े हुए... लोगों के बीच से होते हुए.... जाना चाहते हैं...
पत्री - नहीं... हम ऐसा नहीं कर सकते....
भैरव सिंह - देखो पत्री बाबु... हम अपनी मर्जी से... आपका सहयोग करना चाहते हैं... अगर आप हमारी अनुरोध को दर किनार करेंगे... तो आपको बहुत मुश्किल होगा... हमें यहाँ से ले जाते हुए....
पत्री - कुछ भी हो... हम आपको पैदल नहीं ले जा सकते...

तभी एक सिपाही दौड़ते हुए अंदर आता है l दास के कान पर कुछ कहता है l सुनने के बाद दास चौंकता है फिर वह आगे बढ़ कर पत्री के कानों में कुछ कहता है l पत्री भी चौंकता है और हैरानी के मारे भैरव सिंह की ओर देखने लगता है l

भैरव सिंह - पत्री साहब क्या हुआ... आपके गाडियों के टायरों में हवा नहीं है... (पत्री आँखे फाड़ कर भैरव सिंह को देखे जा रहा था) हैरान मत हो... इतनी सेक्योरिटी के बाद भी... टायरों में हवा क्यूँ नहीं है... यह राजगड़ है... और हम क्षेत्रपाल हैं... कुछ हमारे पीठ पीछे हो गया... उस पर इतरा कर... हमें गिरफतार करने आए हो... गिरफ्तारी हमने अपनी मर्जी से दी है... तो जाएंगे भी अपनी मर्जी से... यहाँ हमारी हुकूमत थी... है... और रहेगी...
दास - (पत्री से) सर... यह आदमी अगर अपनी ही बैजती करवाने पर तुला हुआ है... हम क्यूँ परेशान हों... हमें अदालत में इसे पेश करने के लिए हुकुम है... वही करते हैं ना... अगर अल्टरनेट अरेंजमेंट के लिए जाएंगे... वक़्त बर्बाद होगा...
पत्री - ठीक है राजा साहब... जैसी आपकी मर्जी... (सब से) चलो फिर...

सभी महल से निकलते हैं l भैरव सिंह हथकड़ी में महल की सीढ़ियों से उतरने लगता है l साथ में पत्री और कुछ अधिकारी और पुलिस वाले भी चलने लगते हैं l काफिला ऐसा लग रहा था जैसे भैरव सिंह आगे आगे सीना तान कर चल रहा था और सरकारी मुलाजिम व अधिकारी उसके पीछे उसे फॉलो करते हुए जा रहे थे l भैरव सिंह को ऐसे जाते हुए गाँव वाले देख रहे थे, ज्यादातर लोग भैरव सिंह की रौबदार चाल से डर कर छुप रहे थे पर छुप छुप कर देख रहे थे l काफिला मुख्य चौक पर पहुँचाता है l वहाँ पर भी हालत वैसी ही हो जाती है l लोग भैरव सिंह को देख कर दूर जाने लगते हैं पर छुप छुप कर देखने लगते हैं l वैदेही अपनी दुकान से बाहर आती है l वहाँ तक पहुँचने के बाद भैरव सिंह ठिठक जाता है और पत्री की ओर देख कर कहता है

भैरव सिंह - पत्री बाबु... मुझे यहाँ किसी से बात करनी है...
पत्री - किससे...
भैरव सिंह - वैदेही से... सिर्फ पाँच मिनट...
पत्री - ठीक है...

भैरव सिंह आगे बढ़ता है, वैदेही उसे देख कर अपने हाथ कुहनियों में फंसा कर उसके सामने खड़ी हो जाती है l

भैरव सिंह - बहुत खुस होगी आज तु...
वैदेही - हाँ... पर यह खुशी अधूरी है...
भैरव सिंह - तेरा भाई दिख नहीं रहा है....
वैदेही - क्यूँ यह बैजती कम लग रही है क्या...
भैरव सिंह - जानती है... मैं पैदल क्यूँ आया हूँ...
वैदेही - ताकि लोग समझे... के कानून के आगे... ना कोई राजा होता है... ना कोई खास...
भैरव सिंह - नहीं... शेर हमेशा शेर ही होता है... उसका आतंक हमेशा बरकरार रहता है... चाहे खुला हो... यह यूँ जंजीरों में... जरा नजर उठा कर देख... तुझे कोई नहीं दिखेगा... यह जिस छोटी सी जीत पर तुम लोग इतरा रहे हो... वह एक बुलबुला है... बहुत जल्द फूटने वाला है...
वैदेही - नियति तुझे बाँध कर... उन्हीं रास्तों पर चला रही है... जिन रास्तों पर कभी धूल उड़ाते गुजर रहा था... पर नियत नहीं बदली है तेरी... अकड़ और हेकड़ी... वही का वही है...
भैरव सिंह - हा हा हा हा... यह तु जिसे नियति कह रही है... उसे अभी अभी मैंने अपनी हाथों से लिखी है.... तुझसे जितनी भी वादा किया था... इसी चौक पर... वह सारे निभाए हैं मैंने... तूने जितने भी बद्दुआ दिए थे... उनमें से पाँच पूरे हो चुके हैं... और दो को पूरा होने नहीं दूँगा... वादा है मेरा... मैं वापस आऊँगा... और जो तकदीर राजगड़ की थी... जिसे क्षेत्रपाल सैकड़ों सालों पहले लिखे थे... वह मैं फिर से दोहराऊंगा...
वैदेही - अभी से इतना गुमान मत पाल भैरव सिंह... बस इतना याद रख... जब तक तु दायरे में रहेगा... तब तक तु और तेरी सल्तनत महफूज रहेगी... तु दायरा लांघेगा... तो तेरी सल्तनत मिट्टी की ढेर में तब्दील हो जाएगी...
भैरव सिंह - हाँ... यह हुई ना बात... तु जब जब मुझे कुरेदती है... मेरे अंदर का शैतान जाग जाता है... अब तु... तेरा भाई... यह पूरा राजगड़.... मेरी शैतानी देखेगा...
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