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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

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👉सैंतालीसवां अपडेट
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पांच महीने बाद
सेंट्रल जैल

डैनी अपने जीम में विंग-चुंग पर ब्लॉक्स और पंच्स प्रैक्टिस कर रहा है l उसके पास चित्त और समीर खड़े हैं l वसंत, हरीश और प्रणब कुछ दिन पहले रिहा हो कर जा चुके हैं l

समीर - दादा (डैनी से) जिस दिन से विश्व का बीए डिग्री की रिजल्ट आया है.... उस दिन से विश्व ने खुद को अपनी ही सेल में... खुद को आइसोलेट कर रखा है....
चित्त - हाँ दादा.... अच्छे नम्बरों से पास भी हुआ है... पर पता नहीं क्यूँ चार दिनों से खुद को बंद कर रखा है....
डैनी - (विंग चुंग पर अपना हाथ रोक कर) विश्व जो डिग्री हासिल किया है... वह उसका नहीं... उसके दीदी का सपना था... वह उस खुशी को अपनी दीदी के साथ बांटना चाहता था.... चुँकि उसकी दीदी अभी तक इस बाबत उससे कोई बात नहीं की... शायद इसलिए वह मायूस है....
समीर - हाँ... ठीक है... पर यह तो कोई बड़ी बात नहीं हुई... आपने उसे समझाया भी था... अपनी जज़्बातों को काबु करने के लिए....
चित्त - हाँ दादा... उसकी दीदी दूर राजगड़ में है... कोई प्रॉब्लम हुआ होगा... वरना हर पंद्रह दिन में एक बार तो आती ही थी...
डैनी - ह्म्म्म्म... एक काम करते हैं... चलकर उसी से पुछ लेते हैं...
दोनों - जी दादा...

फिर तीनों वहाँ से निकल कर अपने बैरक से निकल कर एक संत्री से विश्व के बारे में पूछते हैं l संत्री उन्हें बताता है कि वह अब भी अपने सेल में है l फिर डैनी उन दोनों को वहीँ छोड़ कर तीन नंबर बैरक में विश्व के सेल की ओर जाता है l डैनी उसके सेल के सामने आ कर खड़ा होता है l सेल के बाहर से देखता है l विश्व अपने बिस्तर पर सर झुकाए अपने दोनों कोहनी को अपने घुटनों पर रख कर बैठा हुआ है l

डैनी - विश्व...

विश्व अपना सर उठाता है l डैनी विश्व के चेहरे को गौर से देखता है l सपाट चेहरा आँखें पत्थरा गया है l उसके मन में क्या है बताना मुश्किल है l डैनी पास खड़े संत्री को इशारा करता है तो वह संत्री थोड़ा हिचकिचाते हुए सेल का दरवाज़ा खोलता है l डैनी अंदर आकर विश्व के पास बैठ जाता है l

डैनी - क्या बात है विश्व... तुम्हारे पास होने की खुशी... सभी कैदियों ने मनाया... सिवाय तुम्हारे... ऐसा क्यूँ...(विश्व कुछ नहीं कहता है चुप रहता है) तुम किस लिए मायूस हो... तुम्हारी दीदी तुम्हें बधाई देने नहीं आई इसलिए...
विश्व - मैं मायूस नहीं हूँ... और दीदी बधाई देने आई थी... पर उसे एक ऐसी बात पता चली... जिसे बताने के लिए वह हिम्मत नहीं कर पाई... तो लिख कर चिट्ठी में बता दिया... वह चिट्ठी जगन के हाथों भेज कर उस बात की जानकारी भेज दी... मैं उसी के मातम में हूँ...
डैनी - क्या... तुम मातम में हो...
विश्व - हाँ... याद है आपने मुझे एक दिन कहा था... साजिश या षडयंत्र में...किया कुछ जाता है... हो कुछ जाता है... दिखता कुछ है... दिखाया कुछ जाता है...
डैनी - हाँ... वैसे कौनसी षडयंत्र की बात कर रहे हो...

विश्व कुछ कहता नहीं, अपने बिस्तर के कोने में से एक चिट्ठी निकाल कर डैनी को बढ़ा देता है l डैनी चिट्ठी खोल कर पढ़ना शुरू करता है

मेरे प्यारे भाई, मेरा आशिर्वाद l मैं राजगड़ से निकल कर भुवनेश्वर में आज पहुंची l मुझे तेरा एंरोलमेंट नंबर मालुम था l इसलिए बस से उतर कर बस स्टैंड में ही एक दुकान से एक पेपर ख़रीद ली l तेरा रिजल्ट देखने की अलग सी खुशी महसूस हो रही थी l पेपर के पन्ने पलट कर तेरा नंबर ढूंढ रही थी कि अचानक तेरा नंबर दिख गया l मेरी खुशी मुझसे संभले नहीं संभल रही थी l मैं खुशी के मारे बस स्टैंड में ही उछलने लगी l जब थोड़ी संभली तो एहसास हुआ कि मैं बस स्टैंड में हूँ और लोग मुझे घूर कर देख रहे हैं l मैं शर्म से दोहरी हो गई l फिर वहाँ से निकल कर एक मिठाई की दुकान ढूंढने लगी l मिठाई की दुकान तक पहुंचते पहुंचते मुझे लगा कोई मेरा पीछा कर रहा है l मैं जोर जोर से चली और मिठाई की दुकान पर पहुंच गई l कुछ कहने को मुहँ खोलने वाली ही थी के मैं अपने कंधे पर किसीके हाथ को महसूस किया l मैं तुरंत पलट गई तो देखा एक औरत बेचारी दुखियारी लग रही थी l मैंने उससे पूछा (चिट्ठी में लिखा सार को लेखक के द्वारा फ्लैशबैक की तरह प्रस्तुत किया जाएगा)

वैदेही - क्या बात है... और आप कौन हैं...
औरत - मेरा नाम... कल्याणी है.... आप वैदेही जी हैं ना...
वैदेही - जी... हाँ... मेरा नाम वैदेही है...
कल्याणी - मैं आप से मिलने... अभी राजगड़ निकलने वाली थी...
वैदेही - (हैरान हो कर) मुझसे... पर क्यूँ...
कल्याणी - मेरे पति... भुवनेश्वर कैपिटल हस्पताल में... जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं.... वह मरने से पहले आपसे माफ़ी माँगना चाहते हैं... इसलिए एक बार आप उनसे मिल लीजिए...
वैदेही - क्या... पर आपके पति हैं कौन... और उनका मुझसे क्या लेना देना...
कल्याणी - यह मैं आपको अभी नहीं बता सकती.... पर आप इतना जान लीजिए... वह अब तक इसलिए मौत को मात दिए हुए हैं... ताकि वह आपसे माफी मांग सकें...

वैदेही यह सुन कर हैरान हो गई और सोचने लगी-
- कौन है वह,.... उसका मेरे साथ क्या लेना देना... उसने मेरा क्या बिगाड़ा होगा... जो मुझसे माफ़ी मंगाना चाहता है...

यह सोच कर हैरान व परेशान वैदेही कल्याणी के साथ कैपिटल हस्पताल में पहुंची l जनरल वार्ड में कल्याणी एक बेड के पास खड़ी हो जाती है l वैदेही ने देखा एक बीमार और बुढ़ा आदमी उस बेड पर लेटा हुआ है l उसका जबड़ा एक तरफ मुड़ा हुआ है l कल्याणी उसे हिला कर उठाती है l वह बुढ़ा आदमी आँखे खोल कर वैदेही को देखने लगता है l जैसे ही उसे एहसास होता है वैदेही ही उसके सामने खड़ी है, उस आदमी की आँखे छलक जाती है l कल्याणी उस आदमी को उठा कर बिठाती है और खुद उसे पकड़ कर उसके पीछे बैठ जाती है l

आदमी - (पीड़ा भरे स्वर में) आपने मुझे नहीं पहचाना वैदेही जी....
वैदेही - (ना में सर हिलाते हुए) जी नहीं... माफ कीजिए... मैंने आपको नहीं पहचान पाई...
आदमी - मैं... मैं... मैं मानीया शासन का... पूर्व समिति सभ्य... दिलीप कुमार कर....
वैदेही - (आँखे हैरानी से फैल जाती है) क्या... फ़िर गुस्से से देखने लगती है)
कर - अपनी करनी सुध समेत भोग रहा हूँ... अपने किए पापों का भुगतान कर रहा हूँ...
वैदेही - तो मुझसे क्या काम पड़ गया... और सोच भी कैसे लिया... मैं तुम्हें माफ़ माफ़ कर दूंगी...
कर - जानता हूँ... मैं माफी के लायक नहीं हूँ... पर मैं सिर्फ़ माफी माँगना नहीं चाहता... बल्कि एक ऐसा अपराध जो हुआ.... पर किसी को मालुम ना हो पाया... वह मैं तुमको बता कर अपना प्रायश्चित आरंभ करना चाहता हूँ....
वैदेही - वह तो ठीक है... तुम्हारे बच्चे कहाँ हैं... दिखाई क्यूँ नहीं दे रहे हैं.... और तुम्हारी ऐसी हालत...
कर - (एक फीकी मगर पीड़ा भरी हँसी हँसता है) जब अदालत में मेरी पदवी और प्रार्थीत्व दोनों को रद्द कर दिया... मैं राजा साहब के किसी काम का नहीं रहा.... राजा क्षेत्रपाल ने मुझे और मेरी वफ़ादारी को भुला दिया... आखिर मैं जिस आग को अपनी मुट्ठी में रख कर वफादारी निभा रहा था.... उसी आग ने मेरे सिर्फ हाथ ही नहीं घर परिवार सब को निगल गया....
जब मैं खुद... अपने मरे हुए माँ बाप के नाम पर पैसा बटोरने लगा था... अपने माँ बाप का मैं नालायक बेटा निकला... तो मेरा बेटा तो राम या हरिश्चंद्र तो हो नहीं सकता था.... पहले मेरी बड़ी बेटी, जिसको बदचलन कह कर उसके पति ने छोड़ दिया था.... वह मेरे घर पर आ कर रहने लगी थी.... एक दिन मौका पाकर... घर में जितने भी गहने थे... सब के लेकर किसी के साथ भाग गई.... मुझे इस बात का सदमा पहुंचा और मैं लकवा ग्रस्त हो गया.... हूं हूं हूं (अपने आप पर हँसते हुए) मैंने अदालत में बीच जिरह में लकवा मारने की ऐक्टिंग की थी.... भगवान ने मुझे पूरा का पूरा लकवा ग्रस्त कर दिया.... मेरे इलाज के लिए एफडी तोड़ी गई और जायदाद बेची गई... वह सारे पैसे इक्कठे कर मेरा बेटा हमें लावारिस कर भाग गया.... यह मेरी अर्धांगिनी मेरी सेवा कर रही है... मेरे इलाज के लिए मेरी वफादारी की दुहाई देकर राजा साहब से मदत मांगने गई थी मेरी बीवी... बदले में राजा साहब ने अपनी रस्मों रिवाज के लिए... मेरी सबसे छोटी बेटी को रंगमहल की भेंट चढ़ा दी... (रोते हुए) जिस रंगमहल में मैंने एक वहशी जानवर की तरह तुम्हें नोचा था... उसी रंगमहल की बेदी पर मेरी बेटी की बलि चढ़ गई... बदले में राजा साहब मुझे इस सरकारी हस्पताल की बेड तक पहुंचा दिया... मैं खुद से पूछता रहा कि... मैं मर क्यूँ नहीं रहा हूँ... तो अंदर से एक आवाज़ आई... के एक अपराध है जिसे स्वीकारना है... और वह रहस्य बगैर बताए... यम राज मेरे प्राण हरेंगे नहीं... इसलिए कल्याणी को तुम्हारे पास भेजा था...
वैदेही - जो हुआ सच में तुम्हारा करनी थी... पर जो भी हुआ बहुत बुरा हुआ.... फिर भी वह कौन सा रहस्य... कौन सा अपराध....
कर - यक़ीन करो... मुझे बाद में मालुम पड़ा... पर अगर मालुम पड़ भी जाता तो... उस वक्त... मैं चुप ही रहता... पर आज जब जाने का समय आ गया है.... मुझे समझ में आ गया है... भगवान मुझसे उस अपराध को स्वीकार कराना ही चाहता है....
वैदेही - ठीक है... बताओ तो अब... क्या था वह अपराध....
कर - बताता हूँ.... (एक छोटा सा फ्लैशबैक)

चिलका झील में एक हाउस बोट में कॉकटेल पार्टी चल रही है l भैरव सिंह अपने सिहासन नुमा कुर्सी पर बैठा हुआ है l उसके दोनों तरफ पिनाक और ओंकार बैठे हुए हैं l हाउस बोट के उस हिस्से में एक धुन बज रही है और धुन के साथ साथ यश, बल्लभ, रोणा, परीडा और कर अपने हाथ में ग्लास लिए झूम रहे हैं l अचानक भैरव अपने हाथ में रिमोट लेता है और बज रही धुन को बंद कर देता है l नाच रहे वह पांचो भैरव की तरफ देखते हैं l

पिनाक - अररे... क्या राजा साहब.... आज विश्व का वकील... आपके डर से मारे मर गया... हमारे लोगों को... उसकी खुशियाँ तो मनाने दीजिए....
भैरव - बस बहुत हुआ नाच गाना.... अब मुख्य विषय पर चर्चा करें...
पिनाक - मुख्य विषय...
भैरव - हाँ... मुख्य विषय... जयंत अपनी मौत मरा नहीं है...
पिनाक - क्या....
ओंकार - हाँ छोटे राजा जी.... जयंत अपनी मौत नहीं मरा है... वह मेरे बेटे की दी हुई मौत मरा है...
परीडा - हाँ इसके गवाह हम सब हैं... क्यूंकि उस जयंत को इतनी बार जलील किया गया... हार्ट अटैक से मरना ही था... मर गया...
बल्लभ - हाँ पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में भी साफ... कार्डियक अरेस्ट आया है...
ओंकार - वह तो आएगा ही... पर उसे जलालत भरी मौत नहीं... प्री प्लान्ड मौत दी गई है...
कर - ओह ओ... यह पहेली पर पहेली बनाए जा रहे हैं... साफ साफ कहिए.... क्या हुआ है...
ओंकार - यश बताओ..
तुमने क्या किया और क्या हुआ....

यश हँसता है और वहीँ पर बनी बार काउंटर पर पहुंच कर एक एल्बो क्लचर निकालता है l फिर उस एल्बो क्लचर की ग्रीप को खोलता है l उस ग्रीप के अंदर सबको एक पतला सा स्टील की ट्यूब दिखता है l

यश - यह है वह गन... जिससे मैंने जयंत को उसकी मौत शूट किया था....
रोणा - व्हाट...
बल्लभ - क्या... मतलब वकील जयंत को... हार्ट अटैक नहीं आया था...
परीडा - शूट किया तो कब किया... पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट में तो... कार्डियक अरेस्ट आया था...
भैरव - यही जानने के लिए... तो हमने वह मुख्य विषय पर चर्चा पुछा है....
यश - विथ माय प्लेजर... एट योर सर्विस सर... बुधवार को जब दिलीप की जिरह खतम हुई... राजा साहब भुवनेश्वर पहुंचे... मेरे पिताजी ने मुझे कहा कि किसी भी हाल में जयंत... राजा साहब की जिरह ना कर पाए... तो मैंने उसी रात अपनी लैब में जाकर... वन पॉइंट फाइव एमएम की एक पैलेट बनाया... उसमे राइसीन पॉइंट फाइव एमएम डाल कर उसे वैक्स से सील कर दिया... ऑन वेरी नेक्स्ट डे... मैंने प्रधान के हाथों मीडिया हाउस में खबर पहुंचाया के... यश वर्धन अपना मन्नत उतारने शनिवार को चांदनीचौक जगन्नाथ मंदिर जा रहा है.... तो मीडिया वाले छटपटाते हुए पहुंचे थे... स्टेट के यूथ आइकॉन के इंटरव्यू लेने... लगे हाथ मैंने प्रधान के भेजे हुए आदमी के हाथों जयंत की पिटाई की रिकॉर्डिंग करवा दी.... जब जयंत पीट के मेरे ऊपर गिरा... मैं उसे संभालने के बहाने... उसके पिछवाड़े पर फायर कर दिया... वह पैलेट उसके बॉडी के अंदर पहुंचने के बाद... जिस्म के अंदर की गर्मी से वैक्स पिघला होगा... फिर राइसीन उसके खून में मिल गया होगा.... फिर धीरे धीरे उसके खून को ज़माना शुरू किया होगा... और अड़तालीस घंटे बाद उसका दिल धड़कना बंद कर दिया... मरने के बाद पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट में कुछ नहीं मिला... बीकॉज आई एम ए फार्मास्यूटिकल् जिनीयस... हा हा हा हा...
(फ्लैशबैक खतम)

वैदेही - क्या... जयंत सर की हत्या हुई है...
कर - हाँ... मैं खुद इस बात का साक्षी हूँ... और मेरी मजबूरी यह है कि... मैं किसीके पास जाकर कह भी नहीं सकता था... क्यूंकि शासन व प्रशासन राजा साहब के गुलाम है...
वैदेही - तो मुझे क्यूँ बताया...
कर - यह कह कर मैं आज हल्का महसूस कर रहा हूँ.... (बहुत मुश्किल से अपना हाथ जोड़ कर) मैं जानता हूँ... मैं किसी तरह की माफी के योग्य नहीं हूँ... फ़िर भी मांग रहा हूँ... मैं जानता हूँ.. मुझे नर्क में जाना है... फिर भी एक शांति मिल गई है...

इतना कह कर दिलीप कर का सिर एक तरफ लुढ़क जाता है l उसकी बीवी नम आँखों से कर की खुली आँखों को बंद कर रोने लगती है l

चिट्ठी के अंत में
विशु, इसलिए मैं वह खुशी मना नहीं पाई जो कभी मेरा सपना था l क्यूँकी वह दुख बहुत भारी पड़ गया l मुझे माफ कर देना मेरे भाई l तेरी बेबस दीदी...

चिट्ठी खतम होते ही डैनी वह चिट्ठी विश्व को वापस कर देता है l

डैनी - आई एम सॉरी... (कह कर डैनी वहाँ से उठ जाता है) (सेल के दरवाजे पर पहुंच कर मुड़ कर) विश्व तुमने खुदको बहुत अच्छा संभाला है... तुमने अपने ग़म और मातम को अच्छे से जफ्त किया है... और हाँ... और दो दिन बाद... मैं यहाँ से जा रहा हूँ... तो दो दिन बाद मिलते हैं...

_____×_____×_____×_____×_____×_____×

दो दिन बाद
तापस के कैबिन में
डैनी - क्या सुपरिटेंडेंट सर... मेरा पट्ठा कब आएगा...
तापस - (गुस्से से) तुम जैसा छटा हुआ क्रिमिनल... विश्व को पिछले डेढ़ साल से कितना टॉर्चर किए हो... और अब क्या बाकी रह गया है... जिसकी कसर उससे मिलकर पूरा करना चाहते हो...
डैनी - क्या करे सुपरिटेंडेंट सर... बस प्यार हो गया है उससे...
तापस - जगन को भेजा है... उसे बुलाने के लिए... शायद वह आता ही होगा...
डैनी - ह्म्म्म्म...
तापस - तुमने अगर उसकी पढ़ाई में मदत ना किए होते... तो मैं हरगिज़ वह डील ना करवाता...
डैनी - क्या करे सर... उसकी किस्मत में लिखा था.... आप तो बस जरिया बन गए...

तभी कमरे में विश्व आता है l डैनी को देख कर विश्व की आँखे फैल जाती है l क्यूँकी आज पहली बार विश्व डैनी को जैल के यूनीफॉर्म में नहीं शूट, बूट और गॉगल में देख रहा है l दूध सी सफेद शूट, लाल रंग की टाई और काले रंग की गॉगल में डैनी की शख्सियत बहुत ही रौबदार दिख रहा है l

डैनी - सुपरिटेंडेंट सर... क्या मुझे गेट तक छोड़ने विश्व जा सकता है....
तापस - (गुस्से से) ठीक है...

विश्व और डैनी दोनों गेट की ओर जाते हैं l चलते चलते विश्व

विश्व - आप तो एक महीने ज्यादा रुकने वाले थे...
डैनी - हाँ... पर बंगाल में सरकार बदल गई है... मेरे फेवर में एक केस खोल कर... हाउस अरेस्ट का ऑर्डर निकाला है... पैरालली ओड़िशा सरकार ने नो ऑबजेक्सन सर्टिफिकेट भी दे दिया है... इसलिए मुझे बंगाल पुलिस के हवाले कर दिया गया है....
विश्व - पर पुलिस तो अभी तक नहीं पहुंची है..
डैनी - बाहर मेरा इंतजार कर रहे हैं...
विश्व - ओ...
डैनी - (गेट के पास पहुंच कर रुक जाता है) विश्व... तुम बहुत अच्छे शिष्य हो... जिस पर कोई भी गुरु तुम पर नाज़ करेगा... जिसे सीखने के लिए मुझे अर्सा लगा.... तुमने वह सब डेढ़ सालों में सिख लिया...
विश्व - जो मैंने मांगा नहीं... फिरभी आपने मुझे दे दिया... आपने तो मुझे ऋणी कर दिया है...
डैनी - बस... एक बात जाते जाते... जो तुमने सीखा है... उसमे जितना शरीर का उपयोग होता है... उतना ही मन का भी उपयोग होता है... मतलब शरीर और मन का सामरिक उपयोग ही मार्शल आर्ट है....
कभी भी लड़ाई लंबी मत खींचना... और जब भी लड़ाई खतम करना चाहो... वर्म कलई का प्रयोग करना...
विश्व - ठीक है... याद रखूँगा...
डैनी - अब मैं जा रहा हूँ... आज से इस जैल की चारदीवारी से निकलने तक... तुम बहुत बदल चुके होगे... इन बदलाव के बीच भी एक बात याद रखना... अपने भीतर के विश्व को मत खो देना....
विश्व - जी... क्या हम फिर कभी मिलेंगे...
डैनी - यहाँ तो बिल्कुल भी नहीं... (विश्व हैरानी से डैनी को देखता है) कचहरी में, थाने में, जैल में और हस्पताल में कभी भी फिर मिलेंगे नहीं कहा जाता...
विश्व - ओ... माफ किजिये...
डैनी - कोई नहीं विश्व... हम मिलेंगे जरूर... पर यहाँ नहीं...
विश्व - जी...
डैनी - जानते हो मैं अब तक... क्यूँ ऐसे बातेँ कर रहा था.... (विश्व अपना सर ना में हिलाता है) तुम्हारा जज्बातों पर काबु देख रहा था... रीयल्ली यु मेड मी प्राउड...

विश्व कुछ नहीं कहता सिर्फ अपना सर हाँ में हिलाता है

डैनी - अच्छा विश्व... (कहकर विश्व को गले लगा लेता है) अब सफर तुम्हारा, राह तुम्हारी और मंजिल भी तुम्हारी... जिंदगी ने मौका दिया... तुम्हारे आने वाले कल को एक आयाम देने के लिए... पर फिरभी एक आखिरी सीख... फाइट योर औन बैटल... क्रांति हमेशा अकेले से शुरू होती है... किसीकी प्रतीक्षा नहीं की जाती है... बस लोग आकर जुड़ते हैं...
विश्व - पर यह मुझे आप क्यूँ कह रहे हैं...
डैनी - क्यूंकि मुझे आने वाले कल में सिर्फ़ क्रांति हो दिख रही है... और मैं आने वाले कल के क्रांतिकारी से बात कर रहा हूँ...

इतना कह कर गेट के बाहर चला जाता है डैनी और जैल के भीतर विश्व रह जाता है
तो जयंत सर की हत्या में यश का हाथ है और इसी चक्कर में कहीं प्रत्युष भी फंस कर मारा गया। विश्व को बदला लेने की एक और वजह भी मिल गई जयंत सर की हत्या। बेहतरीन अपडेट।
 

sunoanuj

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तो जयंत सर की हत्या में यश का हाथ है और इसी चक्कर में कहीं प्रत्युष भी फंस कर मारा गया। विश्व को बदला लेने की एक और वजह भी मिल गई जयंत सर की हत्या। बेहतरीन अपडेट।
ठीक कहा आपने भाई
 

Kala Nag

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Bahut hi Behtareen update hain Bhai, Danny ne Vsihwa ko jo fir milne ke liye kaha hain, ye milna ab zarur hoga Vishwa ki final fight ke samay..

Jayant Sir ki maut ka raaz bhi aakhir khul hi gaya, ab vishwa iska badla khub achche se lega Yash se....

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धन्यबाद मित्र बहुत बहुत धन्यबाद
अगला अपडेट कल देर रात तक देने की कोशिश करूंगा
 
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Kala Nag

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कभी कभी बाप के कुकर्मों की सजा उसके बेटों को भुगतनी पड़ती है । दिलीप कुमार कर के साथ ऐसा ही हुआ ।
वैसे तो असल खलनायक भैरव सिंह ही है बाकी सब तो उसके मोहरे है । लेकिन इन मोहरों में यश पक्का वजीर है जिसने हारती हुई बाजी को जीत में बदल दिया था । जयंत सर की हत्या यदि नहीं हुई होती तो भैरव सिंह की हार पक्की ही थी ।


नौ महीनों में विश्व ने मैराथन कोशिशें की और अब वो ऐसे सिचुएशन में आ गया है कि एक छोटी मोटी फौज का मुकाबला अकेले ही कर सके । इसका पुरा श्रेय डैनी और उनके साथियों को जाता है । युद्ध कलाओं में उसे पारंगत बना दिया उन्होंने ।
इस पुरे प्रकरण को राइटर ने बहुत ही खूबसूरती से बयां किया है । बहुत ज्यादा होम वर्क किया गया होगा इस चैप्टर को लिखने में । काफी रिसर्च की गई होगी ।
आउटस्टैंडिंग ब्लैक स्नेक भाई ।

हमेशा की तरह बेहतरीन लेखनी रही इन दोनों अपडेट्स में भी । मैं समझ सकता हूं कि ऐसे अपडेट लिखने में कितनी ज्यादा दिमाग खपाना पड़ता है...... कितनों बार लिखे गए शब्दों को डिलीट करके पुनः लिखना पड़ता है ..... और कितना ज्यादा समय देना पड़ता है ।
इसके लिए सच में आप बधाई के पात्र हैं ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड जगमग जगमग ।
🙏🙏बहुत बहुत धन्यबाद 🙏🙏
 

Kala Nag

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To weqt ho chla hai vishwa ka vishw banane or rup se milne ka tabhi tk vo vishwrup khlayega
सटीक विश्लेषण
 
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कोशिश मे हूँ
अगर कल देर रात तक ना दे पाया तो परसों सुबह तक दे दूँगा
 
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कोशिश मे हूँ
अगर कल देर रात तक ना दे पाया तो परसों सुबह तक दे दूँगा

Ok bhai waiting…
 
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