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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
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Rajnish4322

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👉पैंसठवां अपडेट
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XXXX कॉलेज

रॉकी आज थोड़ा जल्दी आया है l पार्किंग पर नजर डालता है, नंदिनी की गाड़ी उसे कहीं नहीं दिखती है l मतलब नंदिनी के आने में अभी वक़्त है l वह अब अपनी प्लान को एक्जीक्यूट करने के लिए सीधा कैन्टीन की ओर जाता है l कैन्टीन में उसे छटी गैंग के सिर्फ दो जन बनानी और दीप्ति ही दिखते हैं l रॉकी उनके टेबल के पास वाले टेबल पर बैठ जाता है l

रॉकी - हैलो गर्ल्स...

बनानी और दीप्ति दोनों रॉकी की ओर देखते हैं I दोनों मुस्कराने की कोशिश करते हुए रॉकी से हाय कहते हैं l

रॉकी को उनका रिस्पांस ठंडा लगता है l इसलिए उनसे मुखातिब हो कर

रॉकी - अररे... मैं हूँ... रॉकी... आप ही के कॉलेज में पढ़ता हूँ... कॉमर्स स्ट्रीम में.... और इत्तेफ़ाक से आपके ही के कॉलेज का जनरल सेक्रेटरी भी हूँ.... (बनानी से) कम से कम आपको तो मुझे पहचान लेना चाहिए था... इतनी जल्दी भूल गईं....
बनानी - (थोड़ा घबरा कर) नहीं नहीं... सॉरी... सॉरी... वह मैं... भूली नहीं हूँ... पर आप आज ऐसे... सडन पुछ बैठे की... मैं कैसे रिएक्ट करूँ समझ में नहीं आया....


रॉकी अपनी टेबल से उठ कर उनके टेबल के पास आकर l

रॉकी - इफ यु डोंट माइंड... कैन आई सीट हीयर... (दोनों को कुछ जवाब नहीं सूझता) ओ ठीक है... सॉरी (कह कर वापस अपने टेबल पर बैठ जाता है)
बनानी - स... सॉरी रॉकी जी.... आपको अगर बुरा लगा तो... प्लीज... यु कैन सीट हीयर...
रॉकी - आर यु श्योर...
दीप्ति - प्लीज... क्योंकि आज कुछ पहली बार हो रहा है.... इसलि..ए.....
रॉकी - ओके... थैंक्यू... सिर्फ़ तब तक... जब तक आपके गैंग के दुसरे मेंबर्स और आपके लीडर नहीं आ जाते.... क्यूंकि तब तक मेरे फ्रेंड्स भी आ जाएंगे...

यह सुन कर दोनों मुस्करा देते हैं और अपना सिर हिला कर हाँ कहते हैं l रॉकी उनके पास बैठते हुए आवाज देता है

रॉकी - छोटू... ऑए... छोटू...
छोटू - जी रॉकी भैया...
रॉकी - चल एक स्पेशल टू बाय थ्री चाय... वह भी मलाई मारके...
बनानी - अरे... इसकी क्या जरूरत है...
रॉकी - कमाल करती हैं आप भी... एक ही टेबल पर बैठे हैं... दोस्ती के खातिर.... कहीं मुझसे दोस्ती करने से... कोई परेशानी है आपको...
बनानी - नहीं ऐसी बात नहीं है... पर हम इस तरह से... सिर्फ अपने ग्रुप में शेयर करते हैं...
रॉकी - ओ... चूंकि मैं आपका ग्रुप का नहीं हूँ... इसलिए...
दीप्ति - जी... ऐसी बात नहीं है...
बनानी - नहीं नहीं ऐसी बात बिल्कुल नहीं है... चाय ज्यादा पीने से त्वचा काला पड़ सकता है... फिर हमारे दुसरे दोस्त आएंगे... उनके साथ भी तो...
रॉकी - ओ... हाँ... यह बात तो है... ओके देन... ऑए छोटू... सिर्फ़ दो चाय इनको... मेरी तरफ से... (बनानी से) सॉरी... बाय...

इतना कह कर रॉकी वहाँ से काउंटर की ओर चल देता है और पैसे दे कर बाहर चला जाता है l उसके ऐसे जाने से बनानी को थोड़ा बुरा लगता है l दीप्ति भी उसे कोहनी मार कर इशारे से पूछती है, क्या हुआ...
बनानी अपना सिर ना में हिलाती है l क्यूँकी रॉकी का यूँ अचानक आना और ऐसे चले जाना बनानी को एंबार्समेंट फिल कराती है I

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वीर कांफ्रेंस हॉल में बैठ कर रिवॉल्वींग चेयर में बैठ कर झूल रहा है और बीच बीच में आँखे मूँद कर खुद से ही बड़बड़ा कर बातेँ करने लगता है l

महांती - राजकुमार जी... क्या कुछ खास सोच रहे हैं...
वीर - ह्म्म्म्म...
महांती - क्या मैं आपकी मदत कर सकता हूँ...
वीर - तुम्हारी ही मदत तो चाहिए मुझे...
महांती - कहिए... क्या मदत करूँ...
वीर - ओंकार चेट्टी...मुझे उसके बारे में जानना है... क्या खबर है उसकी...
महांती - तकरीबन ढाई साल पहले.... आपके परिवार से रिश्ते बिगड़ने के बाद... उनका बुरा दौर शुरू हो गया था... उन्हें पार्टी की टिकट भी नहीं मिली थी... फिर उनके बेटे के सारे स्कैंडल किसी बोतल में छुपी जिन की तरह बाहर निकल कर... उनकी सारी कमाई हुई इज़्ज़त को... मटियामेट कर दिया था... एक तरफ बेटा गया.. दुसरी तरफ मीडिया ने भी उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा... बेटे का इंतकाल और इलेक्शन में हार... बर्दाश्त नहीं हुआ... उन्हें दिल का दौरा पड़ा और ब्रैन हैमरेज भी हुआ... जिसके वजह से वह कोमा में चले गए...
वीर - तुमने अभी जो राम कहानी बताई... वह इस स्टेट का हर कुत्ता तक जानता होगा... मुझे वह बताओ... जो कोई नहीं जानता...
महांती - मतलब...
वीर - वह अभी है कहाँ... किस हालत में है... वगैरह... वगैरह...
महांती - राजकुमार... क्या आपको... उन पर शक़ हो रहा है...
वीर - हाँ... और हम इस लुका छुपी वाले शतरंज के खेल में... कौनसा खाना खाली रह गया है... जो हमारी नजरों से छूट गया है... मैं यह जानना चाहता हूँ...
महांती - ठीक है राजकुमार.... आपको दोपहर तक सब मालुम हो जाएगा...
वीर - गुड... तो फिर जाओ... अपनी काम पर लग जाओ...

महांती वहाँ से निकल जाता है और उसके पीछे पीछे वीर भी कांफ्रेंस हॉल से निकल कर सीधे अपने कैबिन में आता है l जैसे ही दरवाजा खोल कर अंदर आता है तो देखता है अनु एक कोने में कॉफी मेकर पर कॉफी बना रही है और कुछ सोच में खोई हुई है l अनु को वीर के उस कमरे में होने का बिल्कुल भी एहसास नहीं होता है l वीर चुपके से जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ कर अपनी आँखे मूँद कर बैठ जाता है और महांती के दिए अब तक के सभी इंफॉर्मेशन पर गौर करने लगता है l अचानक वह अपनी आँखे खोल देता है l उसके आँखों के सामने अनु हैरानी भरी नजरों से वीर की तरफ देखते हुए कॉफी की डिस्पोजेबल ग्लास लिए खड़ी है l

वीर - क्या बात है अनु... ऐसे क्यूँ खड़ी हो... बैठो
अनु - (वीर के सामने बैठकर) वह... आप... कब आए...
वीर - क्या... तुम्हें नहीं पता...
अनु - (बड़ी मासूमियत से अपना सिर हिला कर ना कहती है) आ... आप कॉफी पियेंगे...
वीर - हाँ... हाँ.. क्यूँ नहीं... (कह कर अनु के हाथ से कॉफी ले लेता है)
अनु - नहीं... (चिल्ला कर वीर की हाथ पकड़ लेती है)
वीर - क्या हुआ...
अनु - यह.. यह.. मेरा है...
वीर - यह ऑफिस मेरा है... यह कैबिन मेरा है... और मेरे इस कैबिन में जो भी है वह सब मेरा है...
अनु - मेरा मतलब है कि... यह मैंने अपने लिए बनाया था...
वीर - तो क्या हुआ... तुम अपने लिए एक और बना लो... (कह कर अपना हाथ छुड़ा कर कॉफी की एक सीप लेता है)
अनु - इ... इह्... यह मेरी झूठन थी...
वीर - (हैरान हो कर अनु को देखता है और कॉफी को देखता है, फिर कुछ सोचते हुए कॉफी की और एक सीप लेता है)
अनु - यह आपने फिर से... ओ.. ह्.. आप यह.. कैसे...
वीर - देखो अनु... ग्लास लेते वक़्त मुझे थोड़े ना पता था... कि यह तुम्हारा झूठन वाला ग्लास है... और अगर तुम्हारा झूठन वाला है तो क्या हुआ... अब इससे एक घूंट पीए या सौ घूंट... बात तो एक ही है ना...
अनु - छी... आप लाइये... मैं... मैं इसे फेंक कर और एक अच्छी सी कॉफी लाती हूँ...
वीर - (कॉफी को एक ही घूंट से खतम कर अनु को खाली ग्लास थमा देता है)

अनु उस खाली ग्लास को हैरान हो कर देखती है l वीर उसकी हालत देख कर मुस्करा देता है l

वीर - जाओ..... एक और स्ट्रॉन्ग कॉफी मेरे लिए बना कर लाओ....

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कैन्टीन में रॉकी बनानी और दीप्ति दोनों को हैरान व परेशान छोड़ अपने दोस्तों के पास कैन्टीन से निकल कर जा चुका था l उसके कैन्टीन से निकलने के कुछ देर बाद रुप कैन्टीन में दाखिल होती है, उसके पीछे पीछे तब्बसुम, इतिश्री और भाश्वती भी कैन्टीन में दाखिल होते हैं l सभी उसी टेबल पर बैठ जाते हैं l

दीप्ति - अरे यार आज बहुत मजेदार बात हुई... अपना कॉलेज का वह हीरो है ना... रॉकी... वह रॉकी आया था... पर हमारी बड्डे क्वीन ने कबाड़ा कर दिया...
तब्बसुम - अच्छा... ऐसा क्या किया हमारी बनानी ने...
दीप्ति - वह अपना चाय हमसे शेयर करना चाहता था... पर दोस्तों के खातिर... इसी मीटिंग के खातिर... बनानी ने कहा... ऐसा शेयरिंग हम सिर्फ अपने ग्रुप में करते हैं...
रुप - ठीक ही तो कहा उसने... हमारा गैंग छटी गैंग है... इसमें सातवें की कोई जगह नहीं है...
इतिश्री - बिल्कुल...
भाश्वती - वैसे लगता है हीरो... बड्डे क्वीन से दोस्ती करने के इरादे से आया था...
बनानी - तुम सब यहाँ मेरी खींचाई करने बैठे हो क्या... मैंने अपनी ग्रुप व दोस्ती को वैल्यू दी... और तुम लोग हो कि...
रुप - हाँ यार... बनानी को छेड़ो मत...
तब्बसुम - हाँ यार... हम अपनी चाय को किसी और से कैसे शेयर कर सकते हैं...
दीप्ति - अपनी चाय नहीं... हीरो अपना चाय हमसे शेयर करना चाहता था...
इतिश्री - पर उसकी दाल अपनी बनानी के आगे गली नहीं... (सभी हँस देते हैं)
रुप - कोई नहीं था... इसलिए उसने बनानी से बात की... अबकी बार ट्राय किया तो पीटेगा... क्यूँ दोस्तों...
सभी - बिल्कुल...
दीप्ति - बुरा ना मानना... मुझे तो लगता है... वह हमारे लीडर के लिए आया था... बनानी के जरिए चारा फेंकने की कोशिश कर रहा था...
रुप - तु चुप रह... उसे अगर दोस्ती करनी होती... तो सीधे बात करता... ऐसे घुमा घुमा कर क्यूँ कर रहा है... हूं.. ह्...
बनानी - ओह छोड़ो भी... एक लड़का क्या आया... हम उसे लेकर आपस में खिंचा तानी कर रहे हैं... क्यूँ...
भाश्वती - यह दीप्ति ने ही आग लगा कर तमाशा देख रही है....
दीप्ति - मैंने कौनसी आग लगाई है... मुझे जो फैक्ट लगा वह मैंने कह दिया...
रुप - जब तुने लाइव देखा... की वह घास डालने, बनानी के पास आया था... तो कमेंट्री में बॉल मेरे तरफ क्यूँ उछाल रही है....
दीप्ति - सॉरी सॉरी सॉरी... मजाक बहुत हो गया... हम कबाब हैं छटी गैंग के बड्डी... कोई सातवां नहीं बन सकता हमारे बीच हड्डी... (सभी यह सुन कर हँसते हुए ताली बजाते हैं)
तब्बसुम - वाह वाह क्या बात है... इरशाद... इरशाद...
भाश्वती - क्या बात है रुप... क्या सोच रही हो...
रुप - कुछ नहीं... यही की कॉलेज के पहले दिन हिम्मत दिखा कर जान पहचान बढ़ाने की कोशिश की... पर अब अगर दोस्ती हमने उससे कर ली है... तो अब दोस्ती वाला अप्रोच सीधे ना करते हुए... यूँ घुमा क्यूँ रहा है...
दीप्ति - ऐ... ऐ.. ऐ.. कहीं दीप जले कहीं दिल...
रुप - तु चुप कर... (कहते हुए उसे मारने को उठती है)

दीप्ति उठ कर भागते हुए काउंटर के पास जाती है और उसके पीछे पीछे रुप भी भाग कर वहाँ जाती है l काउंटर पर पहुँच कर दीप्ति रुप से बचने की कोशिश करते हुए l

दीप्ति - सॉरी सॉरी... मज़ाक कर रही थी...
रुप - मालुम है... तु मजाक कर रही थी... इसलिए अब आज चाय के साथ समोसे खिलायेगी तु... यह तेरी पॉनीश्मेंट है... (अपने बाकी दोस्तों के तरफ चिल्ला कर) आज दीप्ति समोसे की पार्टी दे रही है...
सभी - (दूर बैठे टेबल को पीटते हुए) वाव... जल्दी जल्दी...
दीप्ति - (उन सबको अपना हाथ दिखा कर) ठीक है... ठीक है... (काउंटर पर बैठे आदमी से) भैया... हमारे तीन बटा छह चाय और छह समोसे... (रुप की तरफ देख कर) लो ले ली मैंने तुम्हारी दी हुई पॉनीश्मेंट...
रुप - ठीक है... ठीक है... ज्यादा ड्रामा मत कर...
दीप्ति - अच्छा... नंदिनी.. तु हमेशा इस तरह के ट्रडिशनल आउट फिट में क्यूँ रहती है... कभी कोई मॉर्डन ट्राय कर ना... अच्छी दिखेगी...
रुप - मैं इनमे काफी कंफर्टेबल हूँ...
दीप्ति - (ख़ुद को दिखा कर) क्यूँ मैं जिंस और टॉप में... कंफर्टेबल नहीं हूँ क्या... और बनानी मिनी स्कॉट और टॉप में कंफर्टेबल नहीं है क्या... अब तब्बसुम को देख... वह कुर्ती और लेगींन्स में कंफर्टेबल नहीं है क्या...
रुप - बस बस बस... यह अपना अपना चॉइस है...
दीप्ति - अच्छा... यह बता सब ऐसे कपड़े क्यूँ पहन रहे हैं...
रुप - क्यूँ...
दीप्ति - वह इसलिए... ताकि... कुछ ठरकी नजरें उन्हें घूरे... और कुछ चोर नजरें उन्हें ताके...
रुप - छी... तु... ऐसे भी सोच लेती है... मतलब तुने अभी जो पहनी हुई है... वह किसी को अट्रैक्ट करने के लिए... अच्छा... वैसे कितने अट्रैक्ट हुए हैं... अबतक..
दीप्ति - कहाँ यार... हम कपड़ों में सोचते रह गए... पर तुने तो अट्रैक्ट करने के लिए... घड़ी देना शुरु कर दिया...
रुप - (अचानक से सीरियस हो जाती है)तुम्हें कैसे पता... तुमने..... देख लिया था क्या...
दीप्ति - हाँ... तभी तो... मुझे महसूस हुआ कि रॉकी का बनानी से बात करना तुझे अच्छा नहीं लगा...


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रॉकी कॉलेज के टेरस पर पहुँचता है l टेरस के एक कोने में उसके सभी दोस्त पानी के टंकी के आड़ में बैठे हुए हैं l रॉकी उनके पास आकर खड़ा होता है l

रॉकी - दोस्तों... कुछ डिस्कस करना है...
आशिष - हाँ बोल...
रॉकी - मिशन है... अपने बाइक के पीछे नंदिनी को बिठाना... पर सवाल यह है कि... कब... कैसे और कहाँ...
सुशील - हाँ यह तो हम जानते हैं.... पर यह अचानक तेरे दिमाग में... अभी... क्यूँ आया...
रॉकी - मिशन का अब आगे पीछे ऊपर नीचे सब जगह देखना होगा... राजु ने ठीक कहा था... दोस्ती पक्की करना चाहिए... इतनी पक्की.... के बाइक पर बैठ कर जाने के लिए... नंदिनी को सोचने की जरूरत भी नहीं पड़े...

सभी रॉकी को ऐसे घूरने लगते हैं जैसे वह कोई एलियन हो l

रवि - रॉकी... भाई मेरे... तेरी तबीयत तो ठीक है ना... कहीं रास्ते आते वक़्त सिर पर चोट तो नहीं लगी....
रॉकी - नहीं... मैं प्लान के मुताबिक गया था... बनानी से दोस्ती करने... पर कुछ सोच कर वापस आ गया....
राजु - अच्छा... ऐसा क्या सोच लिया तुने....
रॉकी - पहली बात... आओ मेरे साथ.. (कह कर रॉकी छत के एक कोने पर जाता है, सब उसके पास आकर खड़े होते हैं) वह देखो... (सबको उंगली से इशारा कर दिखाता है) वह रही नंदनी की गाड़ी...
राजु - हाँ... तो क्या हुआ...
रॉकी - वह गाड़ी जब तक... कॉलेज में है... नंदिनी मेरी बाइक पर कभी नहीं बैठेगी...
सुशील - क्यूँ नहीं बैठेगी... तुझे उससे दोस्ती... मजबूत और टिकाऊ करनी होगी...
रवि - हाँ... यह बात तो है.... और उससे पहले कभी मान लो... गाड़ी खराब भी हो गई... तो उनके पास गाड़ियों की कोई कमी तो नहीं है... एक फोन लगाते ही गाडियों की लाइन लग जाएगी....
रॉकी - बिल्कुल... तब मिशन... नंदिनी को अपनी बाइक के पीछे बिठाओ... कैसे पुरा होगा...
राजु - तु... उसे अपने बाइक पर बिठाने के लिए... इतना उतावला क्यूँ हो रहा है... अरे पहले उसके साथ... कैन्टीन में टेबल शेयर कर... स्नैक्स शेयर कर... फिर सोचना उसे अपने पीछे बिठाने के लिए...
रॉकी - (राजु से) गुड... गुड आइडिया... अब ब्रेक में... मैं उनके गैंग से दोस्ती कर उसके साथ चाय नाश्ता शेयर करूँगा....
राजु - देख रॉकी... अपना यह ग्रैजुएशन का फ़ाइनल ईयर है... अच्छे से खतम हो जाने दे... तुझे अगर आगे पढ़ना होगा... तो इसी कॉलेज में ही तुझे पढ़ना है ना... और नंदिनी कहीं भागी तो नहीं जा रही है.... फर्स्ट ईयर है उसका... धीरे-धीरे बात को आगे बढ़ा... बड़ी मुश्किल से तेरा... इम्प्रेशन जमा है... और वह उसे अपनी तरफ से तेरी तरफ दोस्ती तक लेकर आई है... अब थोड़ा स्लो हो जा... स्पीड मत बढ़ा... क्यूंकि तेरी खैरियत तब तक है... जब तक उसके भाई... तेरे बारे में अनजान हैं...
रॉकी - साले कुत्ते... जब भी भोंकता है... फाड़ के रख देता है...
राजु - देख तु मेरा दोस्त है... हरदम साथ देना ही है... पर अच्छा बुरा भी बताना जरूरी है... इसलिए कह रहा हूँ...
रॉकी - देख... मैंने एक बात एनालिसिस की है...
राजु - क्या....
रॉकी - नंदिनी के फैमिली की कमजोरी.... उनका क्षेत्रपाल होना... उन्हें अपने इसी सरनेम का अहं है... वहम है... इसके चलते नंदिनी की सिक्युरिटी को उस बुढ़े ड्राइवर के हाथों सौंप रखा है... जब कि खुद विक्रम आठ आठ गार्ड्स के साथ आता जाता रहता है... उन्हें लगता कि उनके नाम के चलते कोई नंदिनी की तरफ आँख भी उठा कर नहीं देखेगा... उनका यही वहम... मेरे लिए मौका ले कर आया है... और मैं इसे भुनाउंगा ज़रूर...
रवि - तु कहना क्या चाहता है...
रॉकी - मैं नंदिनी को... आज नहीं तो कल... पर एक दिन कॉलेज खतम होने के बाद.... अपने बाइक के पीछे बिठा कर.... उसके घर... द हैल में ड्रॉप करने जाऊँगा... वह या तो मेरे साथ खुशी खुशी जाएगी... या फिर मज़बूरी में... मगर जाएगी जरूर...
सब - क्या... (जैसे रॉकी ने कोई बम फोड़ दिया)
आशीष - क्या... खुशी खुशी या मज़बूरी... अबे जरा सोच... तु जब नंदिनी को ड्रॉप करेगा... क्या.... उसके किसी भी भाई के नजर में नहीं आएगा... कहीं तु इस भरम में तो नहीं है...
रॉकी - आ सकता हूँ... पर चूँकि तब तक नंदिनी के गुड़ बुक में... सबसे उपर मेरा नाम लिखवा चुका होऊँगा... तो उसके भाइयों के गुड बुक में भी नंदिनी खुद मेरा नाम लिखवा देगी....
सब - व्हाट....
सुशील - इसका मतलब ज़रूर तेरे दिमाग में कोई प्लान है....
रॉकी - (कुछ कहता नहीं है सिर्फ मुस्करा देता है)
राजु - रॉकी... सच सच बता... तु चाहता क्या है... अब मुझे क्षेत्रपाल से ज्यादा तेरे इरादों से डर लग रहा है....
रॉकी - मैं चाहता हूँ... एक दिन.... पुरे कॉलेज के सामने... नंदिनी.... एक सिरे से भागते हुए आए और मेरे गले से लग जाये.... और यह नजारा पुरा कॉलेज देखे...

सबकी आँखे फैल जाती है l सबके सब मुहँ फाड़े रॉकी को देखने लगते हैं l रॉकी सबकी ऐसी हालत देख कर मुस्कराने लगता है l

रॉकी - और जब कभी नंदिनी के भाई मुझे मारने आए.... तब वह मेरे लिए ढाल बनकर मेरे सामने खड़ी हो जाए.... बस यही दो छोटी ख्वाहिशें हैं...
रवि - अबे यह... ख्वाहिशें हैं... या एटम बम है...
आशीष - तुझे नहीं लगता तुने अपनी प्यार की गाड़ी को.. छह नंबर गियर पर डाल दिया है... जब कि रास्ता दो या तीन नंबर गियर मांग रहा है....
रॉकी - इश्क़ में रिस्क जरूरी है मेरे दोस्त... क्यूंकि इश्क़ अगर रिस्की हो तो महबूबा के साथ चुस्की खा सकते हो.. नहीं तो दोस्तों के साथ व्हिस्की शेयर करते रह जाओगे.....
राजु - आगे और कुछ मत बोल कमीने...
रॉकी - हा हा हा हा... यह दिव्य और अनूठी वाणी.... इस महान कमीने ने कहा है... लिख लो... फ्यूचर में काम आएगा.... हा हा हा...
राजु - हँस मत... हँस मत... पहले जब तुने नंदिनी से प्यार की बात की... तो मुझे लगा कि तु उसके प्यार में सीरियस है... पर अब तेरे प्यार में सीरियसनेस कम.... कुछ और.... शायद जल्दबाजी ज्यादा दिख रही है... देख... प्यार में पागल होना अलग बात है... और प्यार के लिए पागल होना अलग बात है... पर यह जो तु कर रहा है... यह पागलपन नहीं... जाहिल पन ज्यादा लग रहा है...
रॉकी - ले साले... कर दी ना फिर से गुड़ का गोबर... अबे यह फाइव जी का टाइम है... जल्दबाजी जरूरी है... बेशक मैदान में कोई और नहीं है... पर खुद से भी कंपटीशन जरूरी है... यह क्या दोस्तों (सबसे) साथ देने का वादा किया था... अब साथ देने से डर रहे हो...
रवि - हमने यह भी कहा था... तेरे प्यार की सच्चाई देख कर साथ दे रहे हैं... पर तेरी स्पीड देख कर डर भी रहे हैं...
रॉकी - ओह.. कॉमन फ्रेंड्स.... तुम लोग मेरे ताकत हो... डोंट फॉरगेट... हम टेढ़े मेढ़े येडे ग्रुप के हैं... वन फॉर ऑल... ऑल फॉर वन हैं...

रॉकी अपना हाथ आगे करता है l सभी एक के बाद एक उसके हाथ पर अपना हाथ रख देते हैं l

सुशील - हाँ बोल... अब तेरे मन में क्या आइडिया है...
रॉकी - देखो... आज के बाद आने वाले दो या तीन दिन में... मैं लगातार नंदिनी पर अपना इम्प्रेशन को अल्टीमेट लेवल तक बढ़ाने में... अपना जी जान लगा दूँगा... मतलब जैसा कि राजु ने कहा कि... कम से कम... कैन्टीन में टेबल के साथ.... चाय नास्ता नंदिनी से शेयर कर सकूं....
रवि - अच्छा..... और दो या तीन दिन बाद....
रॉकी - जस्ट इमेजिन... नंदिनी की गाड़ी कॉलेज से निकले... और कुछ दूर जाने के बाद... रास्ते में पंक्चर हो जाए...
सब - (आँखे और मुहँ फाड़ कर) क्या...
रॉकी - और उसके बाद....
आशीष - और उसके बाद तु... उसके गाड़ी के पास पहुँच कर... उसे लिफ्ट ऑफर करेगा... अगर राज़ी हुई... तो घर पर ड्रॉप करेगा....
रॉकी - हाँ.... देखा जिगर के छल्लो... पढ़ ली ना मेरे दिल की बात... इसलिए अब यह तीन दिन मेरा एक ही लक्ष... नंदिनी से दोस्ती का लेवल को बढ़ाना... और तुम लोगों का काम यह है कि सोचो.... सोचो तीन दिन बाद... उसकी गाड़ी बीच रास्ते में कैसे पंक्चर होगी....
सब - (बुझे स्वर में) ओके...
रॉकी - (राजु से) डर मत यार.... तेरे भाई को कुछ नहीं होगा....
राजु - ठीक है... बेस्ट ऑफ लक....

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ESS ऑफिस
दोपहर को महांती एक फाइल लेकर वीर के कैबिन में आता है l वह देखता है अनु एक कोने पर पड़े सोफ़े पर बैठी हुई है और सामने टेबल पर खाना प्लेट में लगा रही है, वीर शायद वॉशरुम में है l महांती को देख कर अनु उठ खड़ी होती है और सैल्यूट करती है l

महांती - राजकुमार जी कहाँ हैं...
अनु - जी वह... अभी वॉशरुम में हैं...
महांती - ह्म्म्म्म.... लगता है मैं गलत टाइम पर आ गया...
अनु - जी... सर... राजकुमार अभी आ जाएंगे... आप चाहें तो बाहर थोड़ा इंतजार कर सकते हैं...
महांती - (टेबल पर लगे खाने की ओर देखता है और अनु की ओर देख कर ) तुम मुझे बाहर जाने को कह रही हो...
अनु - (समझ जाती है) सर... पहले मुझे आप माफ करें... मैं... राजकुमार जी की... पर्सनल सेक्रेटरी कम अस्सिटेंट हूँ... अगर वह चाहें तो... आप से बात कर सकते हैं... मुझे उन्होंने खाना लगाने को कहा और यह हिदायत भी दी है... किसी भी तरह की डीस्टरबांस ना हो... इसलिए मैंने आपसे इस लहजे में बात की....
महांती - ठीक है... राजकुमार जी आयें तो उन्हें कह दीजियेगा... मैं कांफ्रेंस हॉल में उनका इंतजार कर रहा हूँ...
अनु - जी...

इतने में वीर वॉशरुम से बाहर आता है, वह अपने कैबिन में महांती को देख कर हैरान हो जाता है l

वीर - क्या बात है महांती...
महांती - सॉरी राजकुमार जी... जैसा कि मैंने कहा था.... ओंकार चेट्टी की खबर निकाल कर लाया था... उसके साथ कुछ और भी खबर था... पर मुझे आइडिया नहीं था... की यह लंच टाइम है...
वीर - ओके... तो आओ बैठो खाना खाते हुए बात करते हैं...
महांती - नो सर... मैं कांफ्रेंस हॉल में इंतजार कर लूँगा...
वीर - ठीक है... तुम चलो हम पीछे पीछे पहुँचते हैं...
महांती - ओके सर...(महांती कैबिन से निकल जाता है)

वीर टवेल से हाथ मुहँ पोंछ कर जाने को होता है कि अनु उसे दरवाजे के पास टोक देती है l

अनु - आप... आप ऐसे ना जाइए...
वीर - क्यूँ... क्या हुआ...
अनु - देखिए राजकुमार जी... आप हमारे अन्न दाता हैं... पर थाली में सजे अन्न... स्वयं माता अन्नपूर्णा हैं... एक बार थाली में आ गए... तो बिना ग्रहण किए मत जाइए... ऐसे में माता अन्नपूर्णा का अपमान होता है... और जिस काम के लिए जाएंगे... वह पूरा नहीं होगा...

वीर उसे कुछ देर देखता है फिर आकर टेबल पर बैठ कर जल्दी जल्दी खाना शुरू कर देता है l जल्दी जल्दी में खाना हलक में अटकता है तो खांसी निकल जाती है l अनु उसके सिर पर हल्की चपत लगाती है और वीर को पानी की ग्लास देती है l वीर खाना जल्दी खतम कर उठ जाता है और वॉशरुम में भाग कर जाता है अपना हाथ मुहँ साफ करने के लिए l हाथ मुहँ साफ करने के बाद जब बाहर आता है तो टवेल लिए अनु खड़ी मिलती है l वह हाथ मुहँ पोंछ कर अपनी कैबिन से बाहर जाते हुए दरवाज़े पर रुक जाता है l

वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - क्या तुमने खाना खाया...
अनु - (अपना सिर हिला कर ना कहती है)अभी थोड़ी देर में खा लुंगी....
वीर - क्यूँ...कब
अनु - वह मैं.. अब कैन्टीन में जा कर खा लुंगी...

वीर वापस कमरे में आता है और टिफिन में देखता है और भी खाना है l वह और एक प्लेट निकाल कर उसमें खाना परोस देता है

वीर - तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं है... तुम यहीं बैठ कर खा लो... और हाँ मेरे आने तक खाना खतम करो... प्लेट साफ कर... कमरा भी साफ कर देना... ठीक है...
अनु - (हैरान हो कर वीर को देखने लगती है)
वीर - अनु... हे.. ई.. खाना लगा दिया है... अब तुम अन्नपूर्णा का अपमान मत कर देना... मैं थोड़ी देर बाद आया....
अनु - (एक छोटी सी मुस्कान के साथ अपना सिर हाँ में हिलाती है)

वीर फौरन अनु को वहीँ छोड़ कर कांफ्रेंस हॉल की ओर जाता है

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द हैल
कॉलेज खतम कर रुप घर आ गई है और सीधे शुभ्रा के कमरे में पहुँचती है l किताब लिए शुभ्रा बेड पर बैठी, रुप देख कर मुस्करा देती है और रुप शुभ्रा के पास आकर धड़ाम से बिस्तर पर गिरती है l

शुभ्रा - क्या हुआ नंदिनी जी... आप थक गईं...
रुप - ओ भाभी प्लीज... आप मुझे आप ना कहें और जी भी ना कहें...
शुभ्रा - ठीक है... ठीक है... पहले यह बताओ... लंच यहीं करोगे या... डायनिंग हॉल चलें...
रुप - इतने बड़े डायनिंग हॉल में... सिर्फ हम दो तुच्छ प्राणी... नहीं भाभी ठीक नहीं लगेगा... आप खाना यहीँ मंगवा लो...
शुभ्रा - ठीक है... तो फिर जाओ... वॉशरुम में... फ्रेश हो कर आओ... मैं तब तक खाना मंगवा देती हूँ...
रुप - भाभी... मैं ऐसे ही खा लेती हूँ ना...
शुभ्रा - ऐ... बिल्कुल नहीं... जाओ हाथ मुहँ अच्छे से साफ कर यहाँ आओ... जाओ...

पर रुप बिस्तर से नहीं उठती है, तो शुभ्रा उसे खिंच कर उठाती है और धक्का देते हुए वॉशरुम में बंद कर देती है l

शुभ्रा - (वॉशरुम के बाहर से) पुरी तरह साफ होने के बाद ही दरवाजा खटखटाना... वरना अंदर ही रहोगी आज...
रुप - (अंदर से) ठीक है... जैसी आपकी हुकुम भाभीजी...

शुभ्रा रुप की बात सुनकर हँस देती है l और फोन पर नीचे किचन में खाने की फोन पर ऑर्डर कर देती है l शुभ्रा जैसे ही फोन रख देती है वॉशरुम के दरवाजे पर दस्तक होने लगती है l शुभ्रा जाकर दरवाजा खोल देती है l रुप शुभ्रा के बगल से निकल कर बेड पर छलांग लगा देती है और वहाँ आलती पालती मार कर बैठ जाती है l

शुभ्रा - ह्म्म्म्म... लगता है... आज पढ़ पढ़ कर नहीं... भाग भाग कर और भगा भगा कर थक गई थी..
रुप - भाभी... आप सब जान कर अनजान क्यूँ बन रहे हैं....
शुभ्रा - मतलब आज तुम्हारे कॉलेज का वह सो कॉल्ड हीरो... द हैल की हीरोइन के पीछे हाथ धो कर पड़ा था...
रुप - हाँ भाभी... आज तो मुझसे बातेँ करने के लिए... बहुत से तिकड़म आज़माया उसने... पर मैं उससे दूर ही रही... कोई चांस नहीं दी...
शुभ्रा - बेचारा... ऐसा क्यूँ... बहुत तड़पा रहे हो उसे...
रुप - वह क्या है ना भाभी... वह स्क्रिप्ट तो बहुत प्ले कर रहा है... पर यह जो द हैल की हीरोइन है ना... बस इनको पसंद ही नहीं आ रही है... (दोनों हँसते हैं)
शुभ्रा - चलो.... अब तुम अपनी कॉलेज लाइफ एंजॉय करने लगी हो...
रुप - हाँ भाभी... फिर भी कमी और खामी तो अभी भी हैं...
शुभ्रा - कैसी कमी... कैसी खामी...
रुप - मैं... मैं बिना सिक्युरिटी सर्विलांस के घुमना चाहती हूँ... अपने दोस्तों के साथ... कार में नहीं... उनके स्कूटी पर... उनके साथ...
शुभ्रा - रुप... इस मामले में... आई एम सॉरी... शादी से पहले मैं भी पुरी तरह से आजाद थी... पर जिस दिन मैं क्षेत्रपाल हुई... मेरी आजादी उसी दिन चली गई... अब तुम जनम से क्षेत्रपाल हो... और मुझे यकीन है... जिस दिन तुम्हारे नाम से यह क्षेत्रपाल सरनेम हट जाएगा... उस दिन असली आजादी महसूस करोगी....
रुप - भगवान करे आप जैसा कह रही हैं... वैसा ही हो... पर सच्च यह भी है... की मेरी किस्मत अब क्षेत्रपाल घराने से लेकर सिंह देओ घराने में तय कर दी गई है... इसलिए... कास मुझे आजादी क्षेत्रपाल रहते हुए अनुभव हो जाए...

शुभ्रा यह सुनकर चुप रहती है l शुभ्रा को चुप देख कर रुप भी खामोश हो जाती है l

शुभ्रा - अच्छा नंदिनी.... पार्टी तो रविवार को होगी... तुम्हारे कितने दोस्त आयेंगे...
रुप - हमारी छटी गैंग... बस... और कोई नहीं...
शुभ्रा - (खड़ी हो कर) तुम्हारे उस मजनू छाप हीरो को बुलाएं...
रुप - (अपनी मुहँ को सिकुड़ कर) भाभी... (कह कर शुभ्रा के ऊपर कुशन फेंकती है)

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ESS के कांफ्रेंस हॉल के प्रेजेंटेशन बोर्ड के सामने महांती खड़ा है और वीर उसके सामने बैठा हुआ है l

वीर - कहो महांती... क्या खबर लाए हो...
महांती - दो अहम जानकारी... आप तय करें कितना कारगर है...
वीर - ह्म्म्म्म... तो शुरु करो...
महांती - राजकुमार जी... आपका और युवराज जी का शक बिल्कुल सही था... यहाँ हमारे ऑफिस में कोई तो बंदा है... जो उनके लिए मुखबिरी कर रहा है...
वीर - कौन है वह मादरचोद...
महांती - अभी पता नहीं चल पाया है... जिसने भी की है... वह बहुत शातिराना तरीका आजमाया है...
वीर - हरामियों की तारीफ़ मत किया करो यार... बस कैसे पता चला हमारी गांड में दुसरा छेद है... यह बताओ...
महांती - राजकुमार जी... हमारे यहाँ जितने भी स्टाफ़ हैं... उनके सभी के रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर हमारे सर्विलांस में थे... इसलिए हमे मालुम नहीं पड़ा...
वीर - तो अब कैसे मालुम पड़ा...
महांती - टेलीफोन टावर के जरिए... उस दिन... उसी समय हमारे इसी लोकेशन से सिर्फ़ तीन कॉल गए थे... दो नंबर हमारे गार्ड्स के ही रजिस्टर्ड नंबर थे... पर एक नंबर 65xxxxx@#$ जो यहाँ किसी के नाम रजिस्टर्ड नहीं है.... उसी से कॉल बाहर गया था... और जिस नंबर पर गया था... वह एक कॉल सेंटर का फेक कस्टमर केयर नंबर था... और खेल वहीँ हुआ था...
वीर - उस फोन की आईएमई नंबर पता चला...
महांती - पता तो चला है... वह हमारे किसी भी एंम्पलोइ या स्टाफ के हैंडसेट से मैच नहीं हो रहा है... और अब वह डिजाबल्ड है... मतलब फिलहाल आउट ऑफ सर्विस है...
वीर - ह्म्म्म्म... क्या बात है महांती... हम सिक्युरिटी सर्विस देते हैं... इस सर्विस में पुरे ओड़िशा में हम पाओनीयर हैं... और एक आदमी हमारी ही ऑर्गनाइजेशन घुस कर सेंध लगा गया...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - ठीक है... कितने दिनों तक... बेशक वह अब नजरों से दूर है... पर अपनी मौत से नहीं... अब दुसरी जानकारी दो...
महांती - राजकुमार... ओंकार चेट्टी... अभी फ़िलहाल अंडर ट्रीटमेंट चल रहे हैं... उनकी मेडिकल रिपोर्ट बता रही है... वह कोमा में हैं... हालत में अभीतक कोई सुधार नहीं है...
वीर - ठीक है... पर अभी वह हैं कहाँ....
महांती - वह अभी... विशाखा पटनम के केयर हॉस्पिटल में पाँचवी फ्लोर के आईसीयु नंबर फाइव जीरो एइट में हैं... उनके देखभाल उनके रिस्तेदार कर रहे हैं...

वीर सब जानने के बाद कुछ देर चुप रहता है l और फिर महांती की ओर देखता है l

वीर - महांती... अब तक जितना भी इंफॉर्मेशन हमारे पास है... बहुत तो नहीं है... अगर वह मोबाइल वाला मिल जाएगा... तो शायद प्रॉब्लम सॉल्व...
महांती - आई थिंक सो...
वीर - देन गो अहेड...
महांती - ठीक है... राजकुमार...

इतना कह कर महांती उठ कर जाने लगता है पर दरवाज़े पर रुक जाता है l उसके कानों में ठक ठक की आवाज़ सुनाई देता है l वह मुड़ कर पीछे देखता है l वीर अपने दाहिने हाथ की मुट्ठी को चेयर की आर्म रेस्ट पर हल्के हल्के से पंच कर रहा है l

महांती - क्या हुआ राज कुमार... कोई खास बात...
वीर - (महांती की ओर देखता है और अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) ह्म्म्म्म... हमें ऐसा लग रहा है कि... यह जो भी इन्फॉर्मेशन हमारे पास.. अवेलेवल है... वह हमें भटकाने के लिए ही है.... बात कुछ और है...

महांती वीर की बात सुनकर हैरान हो जाता है बाहर जाने के वजाए वापस आकर वीर के बगल में बैठ जाता है l

महांती - राजकुमार जी... प्लीज एक्सप्लेन... मेरा भी दिमाग घुम रहा है...

वीर अपनी जगह से उठ कर प्रेजेंटेशन बोर्ड के पास जाता है और मार्कर पेन से तीन सर्कल बनाता है l और तीनों सर्कल के बीचों-बीच क्वेश्चन मार्क लगाता है l

वीर - हमें यह तीन सस्पेक्ट्स ढूंढने हैं....
महांती - (हैरान हो कर) तीन.... यह... यह तीसरा कहाँ से आया...
वीर - पहले तुम यह दो सर्कल के सस्पेक्ट्स के बारे में बताओ...
महांती - पहला... वह मास्टर माइंड... जो पर्दे के पीछे से चाल चल रहा है... दुसरा वह जो हमारे बीच में है... शायद हमारे गार्ड्स के बीच...
वीर - गुड...
महांती - पर तीसरा...
वीर - महांती.. हमारे अंदर की गट फिलिंग्स कह रही है... हमारे पास जितनी भी इंफॉर्मेशन है... उसमें यही एक मिसिंग है...
महांती - ऐसा क्या है राजकुमार जी....
वीर - जरा सोचो... बंगाल में आइकन ग्रुप एक वैल सेटल्ड बिजनस ग्रुप है... वह अगर अपना बिजनैस फैलाएंगे तो वह किसी के साथ वेंचर करेंगे... हमसे दुश्मनी क्यों करेंगे... क्यूंकि हमारी जो हैसियत ओड़िशा में है... उतनी हैसियत बंगाल में आइकन ग्रुप की नहीं है.... उन्हें अच्छी तरह से मालुम होगा... हम सिस्टम के जरिए इस मिट्टी पर... उनको उनके सोच से ज्यादा डैमेज दे सकते हैं या कर सकते हैं.... हमारी जितनी भी बिजनस प्रॉपर्टी है... वह सिर्फ़ राजगड़, यशपुर और उनके आसपास इलाक़ों में है... और यहाँ हम अपने सेक्यूरिटी सर्विस के दम पर.... हर बिजनस में जबरदस्ती के हिस्सेदार हैं... या यूँ कहो... हम लोकल भाषा में... हफ्ता लेते हैं... पार्टनर शिप के नाम पर... हाई रिटर्न विदाउट इन्वेस्टमेंट.... ऐसे में आइकन ग्रुप हमसे सीधे दुश्मनी पर क्यूँ उतरा है... जबकि उनके बैकग्राउंड में ऐसा कुछ भी नहीं है....
महांती - पाइंट तो है...
वीर - मतलब यह है कि... हम ने वही देखा है... जो हमें दिखाया गया है... जबकि हमें वह ढूंढना है... जो हमसे छुपाया गया है....
महांती - मतलब...
वीर - डेफीनेटली... कोई लोकल फाइनेंसर हैं... कोई बड़ा बिजनेसमैन... जो क्षेत्रपाल के हिस्सेदारी से खिज खाए हुआ है....
महांती - व्हाट....
वीर - (मुस्कराते हुए) हाँ महांती... आइ एम डैम श्योर.... आइकन ग्रुप के नाम के आड़ में... कोई और खेल खेल रहा है....
महांती - मैंने इस तरह से सोचा ही नहीं था.....
वीर - कोई नहीं... अब उनके नेटवर्क को जिस तरह से मार पड़ी है.... वह अब चौकन्ना है... हाँ वह भी... और हम भी.... तुम अपने तरीके से उन सबको ढूंढो... और हम... अपने तरीके से... उन हराम जादों को ढूंढेंगे....

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रॉकी अपने कमरे में बेड पर लेटा हुआ है l उसके चेहरे पर फ्रस्ट्रेशन और टेंशन दोनों दिख रहा है l क्यूँकी आज उसने कोशिश बहुत की, के किसी तरह से नंदिनी से बात करे I पर उसे सही मौका नहीं मिला l वह रवि को फोन लगाता है

रॉकी - हैलो...
रवि - क्या है भाई...
रॉकी - मुझे... नंदिनी का फोन नंबर चाहिए.... अभी इसी वक़्त...
रवि - अबे... मैं कहाँ से लाऊँ उसका नंबर....
रॉकी - अपनी गर्लफ्रेंड से...
रवि - अभी...
रॉकी - हाँ अभी...
रवि - अगर नंदिनी ने पुछा के कहाँ से...
रॉकी - तु फ़िकर ना कर... किसी का भी नाम बाहर नहीं आएगा...
रवि - ठीक है... मैं तुझे पाँच मिनट बाद फोन करता हूँ...
रॉकी - ठीक है (कह कर फोन काट देता है)

पाँच मिनट बाद रॉकी की मोबाइल बजने लगती है l वीर देखता है मोबाइल की डिस्प्ले पर एक अननोन नंबर दिख रहा है l पहले फोन नहीं उठाता है पर दोबारा रिंग होने पर फोन उठा लेता है l

रॉकी - (फोन उठा कर) हैलो...
- मैं... बोल रही हूँ...
रॉकी - मैं कौन...
- अररे मैं... मुझे नहीं पता था कि फोन पर आवाज इतनी बदल जाती है....
रॉकी - (चौंक कर और खुश होते हुए) ओह नंदिनी जी... आ.. आई एम सॉरी... सच... मैं... मैं आपकी आवाज नहीं पहचान पाया... अगेन सॉरी... पर आपको मेरा नंबर कहाँ से मिला...
नंदिनी - ढूंढने वाले तो भगवान को ढूंढ लेते हैं... यह तो सिर्फ़ फोन नंबर है...
रॉकी - हाँ... सो तो है...
नंदिनी - हमने आपकी नंबर ढूंढ लिया... पर लगता है... हम आपके लिए इतने जरूरी नहीं हैं... की आप हमारी नंबर ढूंढ सके...
रॉकी - नहीं... नहीं... ऐसी बात नहीं... वह... अगर हम... एक-दूसरे से नंबर एक्सचेंज किए होते... तो शायद ठीक रहता...
नंदिनी - हाँ यह बात तो है.... खैर आज मुझे लगा... आप मुझसे कुछ कहना चाहते थे... इसलिए मुझसे बात करने की कोशिश भी कर रहे थे... पर... अनफॉर्चुनेटली... मैं समय नहीं निकाल पाई...
रॉकी - जी... जी कोई बात नहीं...
नंदिनी - वैसे आप ने बताया नहीं... आप मुझे... ढूंढ किस लिए रहे थे....
रॉकी - (समझ में नहीं आता क्या जवाब दे) वह... बात.. दरअसल यह है कि... आपने मुझे दोस्ती का अनमोल गिफ्ट दिया... तो बदले में... मुझे भी कोई गिफ्ट देना चाहिए था... इसलिए आपकी पसंद कौनसी है... यह जानने के लिए आज आपसे... बात करने की कोशिश की....
नंदिनी - ओ... तो बात यह है... पर गिफ्ट तो गिफ्ट होता है... पसंद नहीं पूछी जाती...
रॉकी - नहीं फिर भी... आप बता देते तो...
नंदिनी - ठीक है.... अभी जल्दी किस बात की है.... मुझे सोचने के लिए कुछ दिन तो चाहिए ना...
रॉकी - जी... जी जरूर...
नंदिनी - तो रॉकी जी... बस एक रिक्वेस्ट है... हमें कभी बीच राह में देखें... तो नजरें मत फ़ेर लीजियेगा...
रॉकी - क्या बात कर रही हैं... नंदिनी जी... ऐसा कभी हो सकता है क्या...
नंदिनी - ठीक है.. रॉकी जी... मैं फोन रखती हूँ... कल कॉलेज में मिलते हैं... गुड नाइट...
रॉकी - जी... गुड नाइट...

फोन कट जाता है l रॉकी को बिल्कुल विश्वास ही नहीं होता कि नंदिनी ने उसे फोन किया और बातेँ भी की l वह खुशी के मारे अपने कमरे में कभी बेड के ऊपर तो कभी बेड के नीचे कूदने लगता है l तभी उसकी मोबाइल फिर से बजने लगता है l डिस्प्ले में इसबार रवि का नाम दिखने लगता है l वह खुदको काबु करने की कोशिश करता है l थोड़ा काबु पा लेने के बाद फोन उठाता है l

रवि - अबे साले कमीने... कब से फोन लगा रहा था... किससे मरवा रहा था बे...
रॉकी - चुप बे साले... फोन पर बिजी था... क्यूँ तेरा कॉल वेटिंग एक्टिवेट नहीं है क्या...
रवि - हाँ है ना... पर नंदिनी की फोन नंबर से ज्यादा इंपोर्टटेंट कॉल था क्या...
रॉकी - हाँ... यार... डैड का फोन था... कैसे काट देता...
रवि - ठीक है... ठीक है... मुझे नंबर मिल गया है... चल लिख...
रॉकी - मैसेज भी तो कर सकता था... भूतनी के...
रवि - अररे हाँ... चल कोई बात नहीं... लिख...
रॉकी - नहीं यार... अब दरकार नहीं है...
रवि - क्यूँ.... किसी और से हासिल कर लिया क्या...
रॉकी - नहीं... पर मन बदल गया है...
रवि - चलो अच्छा हुआ... तुने अपना मन बदल दिया... यह रोज रोज का टेंशन छुटा... भाड़ में जाए वह नंदिनी क्षेत्रपाल.... और भाड़ में जाए उसकी छटी गैंग... अपना टेढ़े मेढ़े येडे गैंग जिंदाबाद....
रॉकी - ओ.. हैलो... मैंने फोन नंबर ना लेने का मन बनाया था... इसका मतलब यह नहीं... की मैं नंदिनी को हासिल करना नहीं चाहता...
रवि - साला तु.... पागल हो गया है... खुद तो मरेगा.... हमको भी मरवायेगा...
रॉकी - ऑए... ठंड रख ठंड... फोन रख अब...
रवि - हाँ बे रख रहा हूँ... भगवान करे तेरे ख्वाबों खयालों में नंदिनी के वजाए... कोई भूतनी.. पिशाचनी... या डायन आए...
रॉकी - अबे चुप... रख साले फोन...

रवि अपना फोन काट देता है l रॉकी भी अपना फोन बेड पर फेंक कर सोने की कोशिश करता है l
Behatrin part
 

Lib am

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वीर का चरित्र विक्रम से ज्यादा सुलझा हुआ है
वह दुनिया दारी को समझने में विक्रम से ज्यादा प्रैक्टिकल है l
रॉकी की पर अब कतरने वाला है
अगले अपडेट में विश्व की संक्षिप्त भूमिका है
पर मेरे भाई विश्व सड़सठवां अपडेट में रिहा होने वाला है l
उसके बाद तो विश्वरूप ही मुख्य व प्रमुख होंगे
आपकी टिप्पणी और समीक्षा के लिये धन्यबाद
आप बहुत ही बेहतरीन लिख रहे हो ऐसे ही लगे रहो मुन्ना भाई mbbs
 

sunoanuj

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Bahut hi behtarin update mitr .. par abhi is update main rocky chapter ek unwanted ki trah laga … ya u kahun ki uski vajah se khani thodi sthil ho gayi … yeh bus mujhe laga baki aap isko anyatha nah le … bahut jabardast kahani hai 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

Kala Nag

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Bahut hi behtarin update mitr .. par abhi is update main rocky chapter ek unwanted ki trah laga … ya u kahun ki uski vajah se khani thodi sthil ho gayi … yeh bus mujhe laga baki aap isko anyatha nah le … bahut jabardast kahani hai 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
हर चरित्र हर पात्र की अपनी अपनी भूमिका है जब जब वह एक दुसरे के सामने आते रहेंगे वह सामने वाले की चरित्र और क़ाबिलियत को उजागर करते रहेंगे l
यहाँ भी एक पात्र की काबिलियत सामने आने वाली है तो उसके लिए प्लॉट बनाना पड़ रहा है
धन्यबाद मित्र बहुत बहुत धन्यबाद
 

Rajesh

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👉पैंसठवां अपडेट
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XXXX कॉलेज

रॉकी आज थोड़ा जल्दी आया है l पार्किंग पर नजर डालता है, नंदिनी की गाड़ी उसे कहीं नहीं दिखती है l मतलब नंदिनी के आने में अभी वक़्त है l वह अब अपनी प्लान को एक्जीक्यूट करने के लिए सीधा कैन्टीन की ओर जाता है l कैन्टीन में उसे छटी गैंग के सिर्फ दो जन बनानी और दीप्ति ही दिखते हैं l रॉकी उनके टेबल के पास वाले टेबल पर बैठ जाता है l

रॉकी - हैलो गर्ल्स...

बनानी और दीप्ति दोनों रॉकी की ओर देखते हैं I दोनों मुस्कराने की कोशिश करते हुए रॉकी से हाय कहते हैं l

रॉकी को उनका रिस्पांस ठंडा लगता है l इसलिए उनसे मुखातिब हो कर

रॉकी - अररे... मैं हूँ... रॉकी... आप ही के कॉलेज में पढ़ता हूँ... कॉमर्स स्ट्रीम में.... और इत्तेफ़ाक से आपके ही के कॉलेज का जनरल सेक्रेटरी भी हूँ.... (बनानी से) कम से कम आपको तो मुझे पहचान लेना चाहिए था... इतनी जल्दी भूल गईं....
बनानी - (थोड़ा घबरा कर) नहीं नहीं... सॉरी... सॉरी... वह मैं... भूली नहीं हूँ... पर आप आज ऐसे... सडन पुछ बैठे की... मैं कैसे रिएक्ट करूँ समझ में नहीं आया....


रॉकी अपनी टेबल से उठ कर उनके टेबल के पास आकर l

रॉकी - इफ यु डोंट माइंड... कैन आई सीट हीयर... (दोनों को कुछ जवाब नहीं सूझता) ओ ठीक है... सॉरी (कह कर वापस अपने टेबल पर बैठ जाता है)
बनानी - स... सॉरी रॉकी जी.... आपको अगर बुरा लगा तो... प्लीज... यु कैन सीट हीयर...
रॉकी - आर यु श्योर...
दीप्ति - प्लीज... क्योंकि आज कुछ पहली बार हो रहा है.... इसलि..ए.....
रॉकी - ओके... थैंक्यू... सिर्फ़ तब तक... जब तक आपके गैंग के दुसरे मेंबर्स और आपके लीडर नहीं आ जाते.... क्यूंकि तब तक मेरे फ्रेंड्स भी आ जाएंगे...

यह सुन कर दोनों मुस्करा देते हैं और अपना सिर हिला कर हाँ कहते हैं l रॉकी उनके पास बैठते हुए आवाज देता है

रॉकी - छोटू... ऑए... छोटू...
छोटू - जी रॉकी भैया...
रॉकी - चल एक स्पेशल टू बाय थ्री चाय... वह भी मलाई मारके...
बनानी - अरे... इसकी क्या जरूरत है...
रॉकी - कमाल करती हैं आप भी... एक ही टेबल पर बैठे हैं... दोस्ती के खातिर.... कहीं मुझसे दोस्ती करने से... कोई परेशानी है आपको...
बनानी - नहीं ऐसी बात नहीं है... पर हम इस तरह से... सिर्फ अपने ग्रुप में शेयर करते हैं...
रॉकी - ओ... चूंकि मैं आपका ग्रुप का नहीं हूँ... इसलिए...
दीप्ति - जी... ऐसी बात नहीं है...
बनानी - नहीं नहीं ऐसी बात बिल्कुल नहीं है... चाय ज्यादा पीने से त्वचा काला पड़ सकता है... फिर हमारे दुसरे दोस्त आएंगे... उनके साथ भी तो...
रॉकी - ओ... हाँ... यह बात तो है... ओके देन... ऑए छोटू... सिर्फ़ दो चाय इनको... मेरी तरफ से... (बनानी से) सॉरी... बाय...

इतना कह कर रॉकी वहाँ से काउंटर की ओर चल देता है और पैसे दे कर बाहर चला जाता है l उसके ऐसे जाने से बनानी को थोड़ा बुरा लगता है l दीप्ति भी उसे कोहनी मार कर इशारे से पूछती है, क्या हुआ...
बनानी अपना सिर ना में हिलाती है l क्यूँकी रॉकी का यूँ अचानक आना और ऐसे चले जाना बनानी को एंबार्समेंट फिल कराती है I

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वीर कांफ्रेंस हॉल में बैठ कर रिवॉल्वींग चेयर में बैठ कर झूल रहा है और बीच बीच में आँखे मूँद कर खुद से ही बड़बड़ा कर बातेँ करने लगता है l

महांती - राजकुमार जी... क्या कुछ खास सोच रहे हैं...
वीर - ह्म्म्म्म...
महांती - क्या मैं आपकी मदत कर सकता हूँ...
वीर - तुम्हारी ही मदत तो चाहिए मुझे...
महांती - कहिए... क्या मदत करूँ...
वीर - ओंकार चेट्टी...मुझे उसके बारे में जानना है... क्या खबर है उसकी...
महांती - तकरीबन ढाई साल पहले.... आपके परिवार से रिश्ते बिगड़ने के बाद... उनका बुरा दौर शुरू हो गया था... उन्हें पार्टी की टिकट भी नहीं मिली थी... फिर उनके बेटे के सारे स्कैंडल किसी बोतल में छुपी जिन की तरह बाहर निकल कर... उनकी सारी कमाई हुई इज़्ज़त को... मटियामेट कर दिया था... एक तरफ बेटा गया.. दुसरी तरफ मीडिया ने भी उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा... बेटे का इंतकाल और इलेक्शन में हार... बर्दाश्त नहीं हुआ... उन्हें दिल का दौरा पड़ा और ब्रैन हैमरेज भी हुआ... जिसके वजह से वह कोमा में चले गए...
वीर - तुमने अभी जो राम कहानी बताई... वह इस स्टेट का हर कुत्ता तक जानता होगा... मुझे वह बताओ... जो कोई नहीं जानता...
महांती - मतलब...
वीर - वह अभी है कहाँ... किस हालत में है... वगैरह... वगैरह...
महांती - राजकुमार... क्या आपको... उन पर शक़ हो रहा है...
वीर - हाँ... और हम इस लुका छुपी वाले शतरंज के खेल में... कौनसा खाना खाली रह गया है... जो हमारी नजरों से छूट गया है... मैं यह जानना चाहता हूँ...
महांती - ठीक है राजकुमार.... आपको दोपहर तक सब मालुम हो जाएगा...
वीर - गुड... तो फिर जाओ... अपनी काम पर लग जाओ...

महांती वहाँ से निकल जाता है और उसके पीछे पीछे वीर भी कांफ्रेंस हॉल से निकल कर सीधे अपने कैबिन में आता है l जैसे ही दरवाजा खोल कर अंदर आता है तो देखता है अनु एक कोने में कॉफी मेकर पर कॉफी बना रही है और कुछ सोच में खोई हुई है l अनु को वीर के उस कमरे में होने का बिल्कुल भी एहसास नहीं होता है l वीर चुपके से जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ कर अपनी आँखे मूँद कर बैठ जाता है और महांती के दिए अब तक के सभी इंफॉर्मेशन पर गौर करने लगता है l अचानक वह अपनी आँखे खोल देता है l उसके आँखों के सामने अनु हैरानी भरी नजरों से वीर की तरफ देखते हुए कॉफी की डिस्पोजेबल ग्लास लिए खड़ी है l

वीर - क्या बात है अनु... ऐसे क्यूँ खड़ी हो... बैठो
अनु - (वीर के सामने बैठकर) वह... आप... कब आए...
वीर - क्या... तुम्हें नहीं पता...
अनु - (बड़ी मासूमियत से अपना सिर हिला कर ना कहती है) आ... आप कॉफी पियेंगे...
वीर - हाँ... हाँ.. क्यूँ नहीं... (कह कर अनु के हाथ से कॉफी ले लेता है)
अनु - नहीं... (चिल्ला कर वीर की हाथ पकड़ लेती है)
वीर - क्या हुआ...
अनु - यह.. यह.. मेरा है...
वीर - यह ऑफिस मेरा है... यह कैबिन मेरा है... और मेरे इस कैबिन में जो भी है वह सब मेरा है...
अनु - मेरा मतलब है कि... यह मैंने अपने लिए बनाया था...
वीर - तो क्या हुआ... तुम अपने लिए एक और बना लो... (कह कर अपना हाथ छुड़ा कर कॉफी की एक सीप लेता है)
अनु - इ... इह्... यह मेरी झूठन थी...
वीर - (हैरान हो कर अनु को देखता है और कॉफी को देखता है, फिर कुछ सोचते हुए कॉफी की और एक सीप लेता है)
अनु - यह आपने फिर से... ओ.. ह्.. आप यह.. कैसे...
वीर - देखो अनु... ग्लास लेते वक़्त मुझे थोड़े ना पता था... कि यह तुम्हारा झूठन वाला ग्लास है... और अगर तुम्हारा झूठन वाला है तो क्या हुआ... अब इससे एक घूंट पीए या सौ घूंट... बात तो एक ही है ना...
अनु - छी... आप लाइये... मैं... मैं इसे फेंक कर और एक अच्छी सी कॉफी लाती हूँ...
वीर - (कॉफी को एक ही घूंट से खतम कर अनु को खाली ग्लास थमा देता है)

अनु उस खाली ग्लास को हैरान हो कर देखती है l वीर उसकी हालत देख कर मुस्करा देता है l

वीर - जाओ..... एक और स्ट्रॉन्ग कॉफी मेरे लिए बना कर लाओ....

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कैन्टीन में रॉकी बनानी और दीप्ति दोनों को हैरान व परेशान छोड़ अपने दोस्तों के पास कैन्टीन से निकल कर जा चुका था l उसके कैन्टीन से निकलने के कुछ देर बाद रुप कैन्टीन में दाखिल होती है, उसके पीछे पीछे तब्बसुम, इतिश्री और भाश्वती भी कैन्टीन में दाखिल होते हैं l सभी उसी टेबल पर बैठ जाते हैं l

दीप्ति - अरे यार आज बहुत मजेदार बात हुई... अपना कॉलेज का वह हीरो है ना... रॉकी... वह रॉकी आया था... पर हमारी बड्डे क्वीन ने कबाड़ा कर दिया...
तब्बसुम - अच्छा... ऐसा क्या किया हमारी बनानी ने...
दीप्ति - वह अपना चाय हमसे शेयर करना चाहता था... पर दोस्तों के खातिर... इसी मीटिंग के खातिर... बनानी ने कहा... ऐसा शेयरिंग हम सिर्फ अपने ग्रुप में करते हैं...
रुप - ठीक ही तो कहा उसने... हमारा गैंग छटी गैंग है... इसमें सातवें की कोई जगह नहीं है...
इतिश्री - बिल्कुल...
भाश्वती - वैसे लगता है हीरो... बड्डे क्वीन से दोस्ती करने के इरादे से आया था...
बनानी - तुम सब यहाँ मेरी खींचाई करने बैठे हो क्या... मैंने अपनी ग्रुप व दोस्ती को वैल्यू दी... और तुम लोग हो कि...
रुप - हाँ यार... बनानी को छेड़ो मत...
तब्बसुम - हाँ यार... हम अपनी चाय को किसी और से कैसे शेयर कर सकते हैं...
दीप्ति - अपनी चाय नहीं... हीरो अपना चाय हमसे शेयर करना चाहता था...
इतिश्री - पर उसकी दाल अपनी बनानी के आगे गली नहीं... (सभी हँस देते हैं)
रुप - कोई नहीं था... इसलिए उसने बनानी से बात की... अबकी बार ट्राय किया तो पीटेगा... क्यूँ दोस्तों...
सभी - बिल्कुल...
दीप्ति - बुरा ना मानना... मुझे तो लगता है... वह हमारे लीडर के लिए आया था... बनानी के जरिए चारा फेंकने की कोशिश कर रहा था...
रुप - तु चुप रह... उसे अगर दोस्ती करनी होती... तो सीधे बात करता... ऐसे घुमा घुमा कर क्यूँ कर रहा है... हूं.. ह्...
बनानी - ओह छोड़ो भी... एक लड़का क्या आया... हम उसे लेकर आपस में खिंचा तानी कर रहे हैं... क्यूँ...
भाश्वती - यह दीप्ति ने ही आग लगा कर तमाशा देख रही है....
दीप्ति - मैंने कौनसी आग लगाई है... मुझे जो फैक्ट लगा वह मैंने कह दिया...
रुप - जब तुने लाइव देखा... की वह घास डालने, बनानी के पास आया था... तो कमेंट्री में बॉल मेरे तरफ क्यूँ उछाल रही है....
दीप्ति - सॉरी सॉरी सॉरी... मजाक बहुत हो गया... हम कबाब हैं छटी गैंग के बड्डी... कोई सातवां नहीं बन सकता हमारे बीच हड्डी... (सभी यह सुन कर हँसते हुए ताली बजाते हैं)
तब्बसुम - वाह वाह क्या बात है... इरशाद... इरशाद...
भाश्वती - क्या बात है रुप... क्या सोच रही हो...
रुप - कुछ नहीं... यही की कॉलेज के पहले दिन हिम्मत दिखा कर जान पहचान बढ़ाने की कोशिश की... पर अब अगर दोस्ती हमने उससे कर ली है... तो अब दोस्ती वाला अप्रोच सीधे ना करते हुए... यूँ घुमा क्यूँ रहा है...
दीप्ति - ऐ... ऐ.. ऐ.. कहीं दीप जले कहीं दिल...
रुप - तु चुप कर... (कहते हुए उसे मारने को उठती है)

दीप्ति उठ कर भागते हुए काउंटर के पास जाती है और उसके पीछे पीछे रुप भी भाग कर वहाँ जाती है l काउंटर पर पहुँच कर दीप्ति रुप से बचने की कोशिश करते हुए l

दीप्ति - सॉरी सॉरी... मज़ाक कर रही थी...
रुप - मालुम है... तु मजाक कर रही थी... इसलिए अब आज चाय के साथ समोसे खिलायेगी तु... यह तेरी पॉनीश्मेंट है... (अपने बाकी दोस्तों के तरफ चिल्ला कर) आज दीप्ति समोसे की पार्टी दे रही है...
सभी - (दूर बैठे टेबल को पीटते हुए) वाव... जल्दी जल्दी...
दीप्ति - (उन सबको अपना हाथ दिखा कर) ठीक है... ठीक है... (काउंटर पर बैठे आदमी से) भैया... हमारे तीन बटा छह चाय और छह समोसे... (रुप की तरफ देख कर) लो ले ली मैंने तुम्हारी दी हुई पॉनीश्मेंट...
रुप - ठीक है... ठीक है... ज्यादा ड्रामा मत कर...
दीप्ति - अच्छा... नंदिनी.. तु हमेशा इस तरह के ट्रडिशनल आउट फिट में क्यूँ रहती है... कभी कोई मॉर्डन ट्राय कर ना... अच्छी दिखेगी...
रुप - मैं इनमे काफी कंफर्टेबल हूँ...
दीप्ति - (ख़ुद को दिखा कर) क्यूँ मैं जिंस और टॉप में... कंफर्टेबल नहीं हूँ क्या... और बनानी मिनी स्कॉट और टॉप में कंफर्टेबल नहीं है क्या... अब तब्बसुम को देख... वह कुर्ती और लेगींन्स में कंफर्टेबल नहीं है क्या...
रुप - बस बस बस... यह अपना अपना चॉइस है...
दीप्ति - अच्छा... यह बता सब ऐसे कपड़े क्यूँ पहन रहे हैं...
रुप - क्यूँ...
दीप्ति - वह इसलिए... ताकि... कुछ ठरकी नजरें उन्हें घूरे... और कुछ चोर नजरें उन्हें ताके...
रुप - छी... तु... ऐसे भी सोच लेती है... मतलब तुने अभी जो पहनी हुई है... वह किसी को अट्रैक्ट करने के लिए... अच्छा... वैसे कितने अट्रैक्ट हुए हैं... अबतक..
दीप्ति - कहाँ यार... हम कपड़ों में सोचते रह गए... पर तुने तो अट्रैक्ट करने के लिए... घड़ी देना शुरु कर दिया...
रुप - (अचानक से सीरियस हो जाती है)तुम्हें कैसे पता... तुमने..... देख लिया था क्या...
दीप्ति - हाँ... तभी तो... मुझे महसूस हुआ कि रॉकी का बनानी से बात करना तुझे अच्छा नहीं लगा...


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रॉकी कॉलेज के टेरस पर पहुँचता है l टेरस के एक कोने में उसके सभी दोस्त पानी के टंकी के आड़ में बैठे हुए हैं l रॉकी उनके पास आकर खड़ा होता है l

रॉकी - दोस्तों... कुछ डिस्कस करना है...
आशिष - हाँ बोल...
रॉकी - मिशन है... अपने बाइक के पीछे नंदिनी को बिठाना... पर सवाल यह है कि... कब... कैसे और कहाँ...
सुशील - हाँ यह तो हम जानते हैं.... पर यह अचानक तेरे दिमाग में... अभी... क्यूँ आया...
रॉकी - मिशन का अब आगे पीछे ऊपर नीचे सब जगह देखना होगा... राजु ने ठीक कहा था... दोस्ती पक्की करना चाहिए... इतनी पक्की.... के बाइक पर बैठ कर जाने के लिए... नंदिनी को सोचने की जरूरत भी नहीं पड़े...

सभी रॉकी को ऐसे घूरने लगते हैं जैसे वह कोई एलियन हो l

रवि - रॉकी... भाई मेरे... तेरी तबीयत तो ठीक है ना... कहीं रास्ते आते वक़्त सिर पर चोट तो नहीं लगी....
रॉकी - नहीं... मैं प्लान के मुताबिक गया था... बनानी से दोस्ती करने... पर कुछ सोच कर वापस आ गया....
राजु - अच्छा... ऐसा क्या सोच लिया तुने....
रॉकी - पहली बात... आओ मेरे साथ.. (कह कर रॉकी छत के एक कोने पर जाता है, सब उसके पास आकर खड़े होते हैं) वह देखो... (सबको उंगली से इशारा कर दिखाता है) वह रही नंदनी की गाड़ी...
राजु - हाँ... तो क्या हुआ...
रॉकी - वह गाड़ी जब तक... कॉलेज में है... नंदिनी मेरी बाइक पर कभी नहीं बैठेगी...
सुशील - क्यूँ नहीं बैठेगी... तुझे उससे दोस्ती... मजबूत और टिकाऊ करनी होगी...
रवि - हाँ... यह बात तो है.... और उससे पहले कभी मान लो... गाड़ी खराब भी हो गई... तो उनके पास गाड़ियों की कोई कमी तो नहीं है... एक फोन लगाते ही गाडियों की लाइन लग जाएगी....
रॉकी - बिल्कुल... तब मिशन... नंदिनी को अपनी बाइक के पीछे बिठाओ... कैसे पुरा होगा...
राजु - तु... उसे अपने बाइक पर बिठाने के लिए... इतना उतावला क्यूँ हो रहा है... अरे पहले उसके साथ... कैन्टीन में टेबल शेयर कर... स्नैक्स शेयर कर... फिर सोचना उसे अपने पीछे बिठाने के लिए...
रॉकी - (राजु से) गुड... गुड आइडिया... अब ब्रेक में... मैं उनके गैंग से दोस्ती कर उसके साथ चाय नाश्ता शेयर करूँगा....
राजु - देख रॉकी... अपना यह ग्रैजुएशन का फ़ाइनल ईयर है... अच्छे से खतम हो जाने दे... तुझे अगर आगे पढ़ना होगा... तो इसी कॉलेज में ही तुझे पढ़ना है ना... और नंदिनी कहीं भागी तो नहीं जा रही है.... फर्स्ट ईयर है उसका... धीरे-धीरे बात को आगे बढ़ा... बड़ी मुश्किल से तेरा... इम्प्रेशन जमा है... और वह उसे अपनी तरफ से तेरी तरफ दोस्ती तक लेकर आई है... अब थोड़ा स्लो हो जा... स्पीड मत बढ़ा... क्यूंकि तेरी खैरियत तब तक है... जब तक उसके भाई... तेरे बारे में अनजान हैं...
रॉकी - साले कुत्ते... जब भी भोंकता है... फाड़ के रख देता है...
राजु - देख तु मेरा दोस्त है... हरदम साथ देना ही है... पर अच्छा बुरा भी बताना जरूरी है... इसलिए कह रहा हूँ...
रॉकी - देख... मैंने एक बात एनालिसिस की है...
राजु - क्या....
रॉकी - नंदिनी के फैमिली की कमजोरी.... उनका क्षेत्रपाल होना... उन्हें अपने इसी सरनेम का अहं है... वहम है... इसके चलते नंदिनी की सिक्युरिटी को उस बुढ़े ड्राइवर के हाथों सौंप रखा है... जब कि खुद विक्रम आठ आठ गार्ड्स के साथ आता जाता रहता है... उन्हें लगता कि उनके नाम के चलते कोई नंदिनी की तरफ आँख भी उठा कर नहीं देखेगा... उनका यही वहम... मेरे लिए मौका ले कर आया है... और मैं इसे भुनाउंगा ज़रूर...
रवि - तु कहना क्या चाहता है...
रॉकी - मैं नंदिनी को... आज नहीं तो कल... पर एक दिन कॉलेज खतम होने के बाद.... अपने बाइक के पीछे बिठा कर.... उसके घर... द हैल में ड्रॉप करने जाऊँगा... वह या तो मेरे साथ खुशी खुशी जाएगी... या फिर मज़बूरी में... मगर जाएगी जरूर...
सब - क्या... (जैसे रॉकी ने कोई बम फोड़ दिया)
आशीष - क्या... खुशी खुशी या मज़बूरी... अबे जरा सोच... तु जब नंदिनी को ड्रॉप करेगा... क्या.... उसके किसी भी भाई के नजर में नहीं आएगा... कहीं तु इस भरम में तो नहीं है...
रॉकी - आ सकता हूँ... पर चूँकि तब तक नंदिनी के गुड़ बुक में... सबसे उपर मेरा नाम लिखवा चुका होऊँगा... तो उसके भाइयों के गुड बुक में भी नंदिनी खुद मेरा नाम लिखवा देगी....
सब - व्हाट....
सुशील - इसका मतलब ज़रूर तेरे दिमाग में कोई प्लान है....
रॉकी - (कुछ कहता नहीं है सिर्फ मुस्करा देता है)
राजु - रॉकी... सच सच बता... तु चाहता क्या है... अब मुझे क्षेत्रपाल से ज्यादा तेरे इरादों से डर लग रहा है....
रॉकी - मैं चाहता हूँ... एक दिन.... पुरे कॉलेज के सामने... नंदिनी.... एक सिरे से भागते हुए आए और मेरे गले से लग जाये.... और यह नजारा पुरा कॉलेज देखे...

सबकी आँखे फैल जाती है l सबके सब मुहँ फाड़े रॉकी को देखने लगते हैं l रॉकी सबकी ऐसी हालत देख कर मुस्कराने लगता है l

रॉकी - और जब कभी नंदिनी के भाई मुझे मारने आए.... तब वह मेरे लिए ढाल बनकर मेरे सामने खड़ी हो जाए.... बस यही दो छोटी ख्वाहिशें हैं...
रवि - अबे यह... ख्वाहिशें हैं... या एटम बम है...
आशीष - तुझे नहीं लगता तुने अपनी प्यार की गाड़ी को.. छह नंबर गियर पर डाल दिया है... जब कि रास्ता दो या तीन नंबर गियर मांग रहा है....
रॉकी - इश्क़ में रिस्क जरूरी है मेरे दोस्त... क्यूंकि इश्क़ अगर रिस्की हो तो महबूबा के साथ चुस्की खा सकते हो.. नहीं तो दोस्तों के साथ व्हिस्की शेयर करते रह जाओगे.....
राजु - आगे और कुछ मत बोल कमीने...
रॉकी - हा हा हा हा... यह दिव्य और अनूठी वाणी.... इस महान कमीने ने कहा है... लिख लो... फ्यूचर में काम आएगा.... हा हा हा...
राजु - हँस मत... हँस मत... पहले जब तुने नंदिनी से प्यार की बात की... तो मुझे लगा कि तु उसके प्यार में सीरियस है... पर अब तेरे प्यार में सीरियसनेस कम.... कुछ और.... शायद जल्दबाजी ज्यादा दिख रही है... देख... प्यार में पागल होना अलग बात है... और प्यार के लिए पागल होना अलग बात है... पर यह जो तु कर रहा है... यह पागलपन नहीं... जाहिल पन ज्यादा लग रहा है...
रॉकी - ले साले... कर दी ना फिर से गुड़ का गोबर... अबे यह फाइव जी का टाइम है... जल्दबाजी जरूरी है... बेशक मैदान में कोई और नहीं है... पर खुद से भी कंपटीशन जरूरी है... यह क्या दोस्तों (सबसे) साथ देने का वादा किया था... अब साथ देने से डर रहे हो...
रवि - हमने यह भी कहा था... तेरे प्यार की सच्चाई देख कर साथ दे रहे हैं... पर तेरी स्पीड देख कर डर भी रहे हैं...
रॉकी - ओह.. कॉमन फ्रेंड्स.... तुम लोग मेरे ताकत हो... डोंट फॉरगेट... हम टेढ़े मेढ़े येडे ग्रुप के हैं... वन फॉर ऑल... ऑल फॉर वन हैं...

रॉकी अपना हाथ आगे करता है l सभी एक के बाद एक उसके हाथ पर अपना हाथ रख देते हैं l

सुशील - हाँ बोल... अब तेरे मन में क्या आइडिया है...
रॉकी - देखो... आज के बाद आने वाले दो या तीन दिन में... मैं लगातार नंदिनी पर अपना इम्प्रेशन को अल्टीमेट लेवल तक बढ़ाने में... अपना जी जान लगा दूँगा... मतलब जैसा कि राजु ने कहा कि... कम से कम... कैन्टीन में टेबल के साथ.... चाय नास्ता नंदिनी से शेयर कर सकूं....
रवि - अच्छा..... और दो या तीन दिन बाद....
रॉकी - जस्ट इमेजिन... नंदिनी की गाड़ी कॉलेज से निकले... और कुछ दूर जाने के बाद... रास्ते में पंक्चर हो जाए...
सब - (आँखे और मुहँ फाड़ कर) क्या...
रॉकी - और उसके बाद....
आशीष - और उसके बाद तु... उसके गाड़ी के पास पहुँच कर... उसे लिफ्ट ऑफर करेगा... अगर राज़ी हुई... तो घर पर ड्रॉप करेगा....
रॉकी - हाँ.... देखा जिगर के छल्लो... पढ़ ली ना मेरे दिल की बात... इसलिए अब यह तीन दिन मेरा एक ही लक्ष... नंदिनी से दोस्ती का लेवल को बढ़ाना... और तुम लोगों का काम यह है कि सोचो.... सोचो तीन दिन बाद... उसकी गाड़ी बीच रास्ते में कैसे पंक्चर होगी....
सब - (बुझे स्वर में) ओके...
रॉकी - (राजु से) डर मत यार.... तेरे भाई को कुछ नहीं होगा....
राजु - ठीक है... बेस्ट ऑफ लक....

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ESS ऑफिस
दोपहर को महांती एक फाइल लेकर वीर के कैबिन में आता है l वह देखता है अनु एक कोने पर पड़े सोफ़े पर बैठी हुई है और सामने टेबल पर खाना प्लेट में लगा रही है, वीर शायद वॉशरुम में है l महांती को देख कर अनु उठ खड़ी होती है और सैल्यूट करती है l

महांती - राजकुमार जी कहाँ हैं...
अनु - जी वह... अभी वॉशरुम में हैं...
महांती - ह्म्म्म्म.... लगता है मैं गलत टाइम पर आ गया...
अनु - जी... सर... राजकुमार अभी आ जाएंगे... आप चाहें तो बाहर थोड़ा इंतजार कर सकते हैं...
महांती - (टेबल पर लगे खाने की ओर देखता है और अनु की ओर देख कर ) तुम मुझे बाहर जाने को कह रही हो...
अनु - (समझ जाती है) सर... पहले मुझे आप माफ करें... मैं... राजकुमार जी की... पर्सनल सेक्रेटरी कम अस्सिटेंट हूँ... अगर वह चाहें तो... आप से बात कर सकते हैं... मुझे उन्होंने खाना लगाने को कहा और यह हिदायत भी दी है... किसी भी तरह की डीस्टरबांस ना हो... इसलिए मैंने आपसे इस लहजे में बात की....
महांती - ठीक है... राजकुमार जी आयें तो उन्हें कह दीजियेगा... मैं कांफ्रेंस हॉल में उनका इंतजार कर रहा हूँ...
अनु - जी...

इतने में वीर वॉशरुम से बाहर आता है, वह अपने कैबिन में महांती को देख कर हैरान हो जाता है l

वीर - क्या बात है महांती...
महांती - सॉरी राजकुमार जी... जैसा कि मैंने कहा था.... ओंकार चेट्टी की खबर निकाल कर लाया था... उसके साथ कुछ और भी खबर था... पर मुझे आइडिया नहीं था... की यह लंच टाइम है...
वीर - ओके... तो आओ बैठो खाना खाते हुए बात करते हैं...
महांती - नो सर... मैं कांफ्रेंस हॉल में इंतजार कर लूँगा...
वीर - ठीक है... तुम चलो हम पीछे पीछे पहुँचते हैं...
महांती - ओके सर...(महांती कैबिन से निकल जाता है)

वीर टवेल से हाथ मुहँ पोंछ कर जाने को होता है कि अनु उसे दरवाजे के पास टोक देती है l

अनु - आप... आप ऐसे ना जाइए...
वीर - क्यूँ... क्या हुआ...
अनु - देखिए राजकुमार जी... आप हमारे अन्न दाता हैं... पर थाली में सजे अन्न... स्वयं माता अन्नपूर्णा हैं... एक बार थाली में आ गए... तो बिना ग्रहण किए मत जाइए... ऐसे में माता अन्नपूर्णा का अपमान होता है... और जिस काम के लिए जाएंगे... वह पूरा नहीं होगा...

वीर उसे कुछ देर देखता है फिर आकर टेबल पर बैठ कर जल्दी जल्दी खाना शुरू कर देता है l जल्दी जल्दी में खाना हलक में अटकता है तो खांसी निकल जाती है l अनु उसके सिर पर हल्की चपत लगाती है और वीर को पानी की ग्लास देती है l वीर खाना जल्दी खतम कर उठ जाता है और वॉशरुम में भाग कर जाता है अपना हाथ मुहँ साफ करने के लिए l हाथ मुहँ साफ करने के बाद जब बाहर आता है तो टवेल लिए अनु खड़ी मिलती है l वह हाथ मुहँ पोंछ कर अपनी कैबिन से बाहर जाते हुए दरवाज़े पर रुक जाता है l

वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - क्या तुमने खाना खाया...
अनु - (अपना सिर हिला कर ना कहती है)अभी थोड़ी देर में खा लुंगी....
वीर - क्यूँ...कब
अनु - वह मैं.. अब कैन्टीन में जा कर खा लुंगी...

वीर वापस कमरे में आता है और टिफिन में देखता है और भी खाना है l वह और एक प्लेट निकाल कर उसमें खाना परोस देता है

वीर - तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं है... तुम यहीं बैठ कर खा लो... और हाँ मेरे आने तक खाना खतम करो... प्लेट साफ कर... कमरा भी साफ कर देना... ठीक है...
अनु - (हैरान हो कर वीर को देखने लगती है)
वीर - अनु... हे.. ई.. खाना लगा दिया है... अब तुम अन्नपूर्णा का अपमान मत कर देना... मैं थोड़ी देर बाद आया....
अनु - (एक छोटी सी मुस्कान के साथ अपना सिर हाँ में हिलाती है)

वीर फौरन अनु को वहीँ छोड़ कर कांफ्रेंस हॉल की ओर जाता है

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द हैल
कॉलेज खतम कर रुप घर आ गई है और सीधे शुभ्रा के कमरे में पहुँचती है l किताब लिए शुभ्रा बेड पर बैठी, रुप देख कर मुस्करा देती है और रुप शुभ्रा के पास आकर धड़ाम से बिस्तर पर गिरती है l

शुभ्रा - क्या हुआ नंदिनी जी... आप थक गईं...
रुप - ओ भाभी प्लीज... आप मुझे आप ना कहें और जी भी ना कहें...
शुभ्रा - ठीक है... ठीक है... पहले यह बताओ... लंच यहीं करोगे या... डायनिंग हॉल चलें...
रुप - इतने बड़े डायनिंग हॉल में... सिर्फ हम दो तुच्छ प्राणी... नहीं भाभी ठीक नहीं लगेगा... आप खाना यहीँ मंगवा लो...
शुभ्रा - ठीक है... तो फिर जाओ... वॉशरुम में... फ्रेश हो कर आओ... मैं तब तक खाना मंगवा देती हूँ...
रुप - भाभी... मैं ऐसे ही खा लेती हूँ ना...
शुभ्रा - ऐ... बिल्कुल नहीं... जाओ हाथ मुहँ अच्छे से साफ कर यहाँ आओ... जाओ...

पर रुप बिस्तर से नहीं उठती है, तो शुभ्रा उसे खिंच कर उठाती है और धक्का देते हुए वॉशरुम में बंद कर देती है l

शुभ्रा - (वॉशरुम के बाहर से) पुरी तरह साफ होने के बाद ही दरवाजा खटखटाना... वरना अंदर ही रहोगी आज...
रुप - (अंदर से) ठीक है... जैसी आपकी हुकुम भाभीजी...

शुभ्रा रुप की बात सुनकर हँस देती है l और फोन पर नीचे किचन में खाने की फोन पर ऑर्डर कर देती है l शुभ्रा जैसे ही फोन रख देती है वॉशरुम के दरवाजे पर दस्तक होने लगती है l शुभ्रा जाकर दरवाजा खोल देती है l रुप शुभ्रा के बगल से निकल कर बेड पर छलांग लगा देती है और वहाँ आलती पालती मार कर बैठ जाती है l

शुभ्रा - ह्म्म्म्म... लगता है... आज पढ़ पढ़ कर नहीं... भाग भाग कर और भगा भगा कर थक गई थी..
रुप - भाभी... आप सब जान कर अनजान क्यूँ बन रहे हैं....
शुभ्रा - मतलब आज तुम्हारे कॉलेज का वह सो कॉल्ड हीरो... द हैल की हीरोइन के पीछे हाथ धो कर पड़ा था...
रुप - हाँ भाभी... आज तो मुझसे बातेँ करने के लिए... बहुत से तिकड़म आज़माया उसने... पर मैं उससे दूर ही रही... कोई चांस नहीं दी...
शुभ्रा - बेचारा... ऐसा क्यूँ... बहुत तड़पा रहे हो उसे...
रुप - वह क्या है ना भाभी... वह स्क्रिप्ट तो बहुत प्ले कर रहा है... पर यह जो द हैल की हीरोइन है ना... बस इनको पसंद ही नहीं आ रही है... (दोनों हँसते हैं)
शुभ्रा - चलो.... अब तुम अपनी कॉलेज लाइफ एंजॉय करने लगी हो...
रुप - हाँ भाभी... फिर भी कमी और खामी तो अभी भी हैं...
शुभ्रा - कैसी कमी... कैसी खामी...
रुप - मैं... मैं बिना सिक्युरिटी सर्विलांस के घुमना चाहती हूँ... अपने दोस्तों के साथ... कार में नहीं... उनके स्कूटी पर... उनके साथ...
शुभ्रा - रुप... इस मामले में... आई एम सॉरी... शादी से पहले मैं भी पुरी तरह से आजाद थी... पर जिस दिन मैं क्षेत्रपाल हुई... मेरी आजादी उसी दिन चली गई... अब तुम जनम से क्षेत्रपाल हो... और मुझे यकीन है... जिस दिन तुम्हारे नाम से यह क्षेत्रपाल सरनेम हट जाएगा... उस दिन असली आजादी महसूस करोगी....
रुप - भगवान करे आप जैसा कह रही हैं... वैसा ही हो... पर सच्च यह भी है... की मेरी किस्मत अब क्षेत्रपाल घराने से लेकर सिंह देओ घराने में तय कर दी गई है... इसलिए... कास मुझे आजादी क्षेत्रपाल रहते हुए अनुभव हो जाए...

शुभ्रा यह सुनकर चुप रहती है l शुभ्रा को चुप देख कर रुप भी खामोश हो जाती है l

शुभ्रा - अच्छा नंदिनी.... पार्टी तो रविवार को होगी... तुम्हारे कितने दोस्त आयेंगे...
रुप - हमारी छटी गैंग... बस... और कोई नहीं...
शुभ्रा - (खड़ी हो कर) तुम्हारे उस मजनू छाप हीरो को बुलाएं...
रुप - (अपनी मुहँ को सिकुड़ कर) भाभी... (कह कर शुभ्रा के ऊपर कुशन फेंकती है)

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ESS के कांफ्रेंस हॉल के प्रेजेंटेशन बोर्ड के सामने महांती खड़ा है और वीर उसके सामने बैठा हुआ है l

वीर - कहो महांती... क्या खबर लाए हो...
महांती - दो अहम जानकारी... आप तय करें कितना कारगर है...
वीर - ह्म्म्म्म... तो शुरु करो...
महांती - राजकुमार जी... आपका और युवराज जी का शक बिल्कुल सही था... यहाँ हमारे ऑफिस में कोई तो बंदा है... जो उनके लिए मुखबिरी कर रहा है...
वीर - कौन है वह मादरचोद...
महांती - अभी पता नहीं चल पाया है... जिसने भी की है... वह बहुत शातिराना तरीका आजमाया है...
वीर - हरामियों की तारीफ़ मत किया करो यार... बस कैसे पता चला हमारी गांड में दुसरा छेद है... यह बताओ...
महांती - राजकुमार जी... हमारे यहाँ जितने भी स्टाफ़ हैं... उनके सभी के रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर हमारे सर्विलांस में थे... इसलिए हमे मालुम नहीं पड़ा...
वीर - तो अब कैसे मालुम पड़ा...
महांती - टेलीफोन टावर के जरिए... उस दिन... उसी समय हमारे इसी लोकेशन से सिर्फ़ तीन कॉल गए थे... दो नंबर हमारे गार्ड्स के ही रजिस्टर्ड नंबर थे... पर एक नंबर 65xxxxx@#$ जो यहाँ किसी के नाम रजिस्टर्ड नहीं है.... उसी से कॉल बाहर गया था... और जिस नंबर पर गया था... वह एक कॉल सेंटर का फेक कस्टमर केयर नंबर था... और खेल वहीँ हुआ था...
वीर - उस फोन की आईएमई नंबर पता चला...
महांती - पता तो चला है... वह हमारे किसी भी एंम्पलोइ या स्टाफ के हैंडसेट से मैच नहीं हो रहा है... और अब वह डिजाबल्ड है... मतलब फिलहाल आउट ऑफ सर्विस है...
वीर - ह्म्म्म्म... क्या बात है महांती... हम सिक्युरिटी सर्विस देते हैं... इस सर्विस में पुरे ओड़िशा में हम पाओनीयर हैं... और एक आदमी हमारी ही ऑर्गनाइजेशन घुस कर सेंध लगा गया...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - ठीक है... कितने दिनों तक... बेशक वह अब नजरों से दूर है... पर अपनी मौत से नहीं... अब दुसरी जानकारी दो...
महांती - राजकुमार... ओंकार चेट्टी... अभी फ़िलहाल अंडर ट्रीटमेंट चल रहे हैं... उनकी मेडिकल रिपोर्ट बता रही है... वह कोमा में हैं... हालत में अभीतक कोई सुधार नहीं है...
वीर - ठीक है... पर अभी वह हैं कहाँ....
महांती - वह अभी... विशाखा पटनम के केयर हॉस्पिटल में पाँचवी फ्लोर के आईसीयु नंबर फाइव जीरो एइट में हैं... उनके देखभाल उनके रिस्तेदार कर रहे हैं...

वीर सब जानने के बाद कुछ देर चुप रहता है l और फिर महांती की ओर देखता है l

वीर - महांती... अब तक जितना भी इंफॉर्मेशन हमारे पास है... बहुत तो नहीं है... अगर वह मोबाइल वाला मिल जाएगा... तो शायद प्रॉब्लम सॉल्व...
महांती - आई थिंक सो...
वीर - देन गो अहेड...
महांती - ठीक है... राजकुमार...

इतना कह कर महांती उठ कर जाने लगता है पर दरवाज़े पर रुक जाता है l उसके कानों में ठक ठक की आवाज़ सुनाई देता है l वह मुड़ कर पीछे देखता है l वीर अपने दाहिने हाथ की मुट्ठी को चेयर की आर्म रेस्ट पर हल्के हल्के से पंच कर रहा है l

महांती - क्या हुआ राज कुमार... कोई खास बात...
वीर - (महांती की ओर देखता है और अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) ह्म्म्म्म... हमें ऐसा लग रहा है कि... यह जो भी इन्फॉर्मेशन हमारे पास.. अवेलेवल है... वह हमें भटकाने के लिए ही है.... बात कुछ और है...

महांती वीर की बात सुनकर हैरान हो जाता है बाहर जाने के वजाए वापस आकर वीर के बगल में बैठ जाता है l

महांती - राजकुमार जी... प्लीज एक्सप्लेन... मेरा भी दिमाग घुम रहा है...

वीर अपनी जगह से उठ कर प्रेजेंटेशन बोर्ड के पास जाता है और मार्कर पेन से तीन सर्कल बनाता है l और तीनों सर्कल के बीचों-बीच क्वेश्चन मार्क लगाता है l

वीर - हमें यह तीन सस्पेक्ट्स ढूंढने हैं....
महांती - (हैरान हो कर) तीन.... यह... यह तीसरा कहाँ से आया...
वीर - पहले तुम यह दो सर्कल के सस्पेक्ट्स के बारे में बताओ...
महांती - पहला... वह मास्टर माइंड... जो पर्दे के पीछे से चाल चल रहा है... दुसरा वह जो हमारे बीच में है... शायद हमारे गार्ड्स के बीच...
वीर - गुड...
महांती - पर तीसरा...
वीर - महांती.. हमारे अंदर की गट फिलिंग्स कह रही है... हमारे पास जितनी भी इंफॉर्मेशन है... उसमें यही एक मिसिंग है...
महांती - ऐसा क्या है राजकुमार जी....
वीर - जरा सोचो... बंगाल में आइकन ग्रुप एक वैल सेटल्ड बिजनस ग्रुप है... वह अगर अपना बिजनैस फैलाएंगे तो वह किसी के साथ वेंचर करेंगे... हमसे दुश्मनी क्यों करेंगे... क्यूंकि हमारी जो हैसियत ओड़िशा में है... उतनी हैसियत बंगाल में आइकन ग्रुप की नहीं है.... उन्हें अच्छी तरह से मालुम होगा... हम सिस्टम के जरिए इस मिट्टी पर... उनको उनके सोच से ज्यादा डैमेज दे सकते हैं या कर सकते हैं.... हमारी जितनी भी बिजनस प्रॉपर्टी है... वह सिर्फ़ राजगड़, यशपुर और उनके आसपास इलाक़ों में है... और यहाँ हम अपने सेक्यूरिटी सर्विस के दम पर.... हर बिजनस में जबरदस्ती के हिस्सेदार हैं... या यूँ कहो... हम लोकल भाषा में... हफ्ता लेते हैं... पार्टनर शिप के नाम पर... हाई रिटर्न विदाउट इन्वेस्टमेंट.... ऐसे में आइकन ग्रुप हमसे सीधे दुश्मनी पर क्यूँ उतरा है... जबकि उनके बैकग्राउंड में ऐसा कुछ भी नहीं है....
महांती - पाइंट तो है...
वीर - मतलब यह है कि... हम ने वही देखा है... जो हमें दिखाया गया है... जबकि हमें वह ढूंढना है... जो हमसे छुपाया गया है....
महांती - मतलब...
वीर - डेफीनेटली... कोई लोकल फाइनेंसर हैं... कोई बड़ा बिजनेसमैन... जो क्षेत्रपाल के हिस्सेदारी से खिज खाए हुआ है....
महांती - व्हाट....
वीर - (मुस्कराते हुए) हाँ महांती... आइ एम डैम श्योर.... आइकन ग्रुप के नाम के आड़ में... कोई और खेल खेल रहा है....
महांती - मैंने इस तरह से सोचा ही नहीं था.....
वीर - कोई नहीं... अब उनके नेटवर्क को जिस तरह से मार पड़ी है.... वह अब चौकन्ना है... हाँ वह भी... और हम भी.... तुम अपने तरीके से उन सबको ढूंढो... और हम... अपने तरीके से... उन हराम जादों को ढूंढेंगे....

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रॉकी अपने कमरे में बेड पर लेटा हुआ है l उसके चेहरे पर फ्रस्ट्रेशन और टेंशन दोनों दिख रहा है l क्यूँकी आज उसने कोशिश बहुत की, के किसी तरह से नंदिनी से बात करे I पर उसे सही मौका नहीं मिला l वह रवि को फोन लगाता है

रॉकी - हैलो...
रवि - क्या है भाई...
रॉकी - मुझे... नंदिनी का फोन नंबर चाहिए.... अभी इसी वक़्त...
रवि - अबे... मैं कहाँ से लाऊँ उसका नंबर....
रॉकी - अपनी गर्लफ्रेंड से...
रवि - अभी...
रॉकी - हाँ अभी...
रवि - अगर नंदिनी ने पुछा के कहाँ से...
रॉकी - तु फ़िकर ना कर... किसी का भी नाम बाहर नहीं आएगा...
रवि - ठीक है... मैं तुझे पाँच मिनट बाद फोन करता हूँ...
रॉकी - ठीक है (कह कर फोन काट देता है)

पाँच मिनट बाद रॉकी की मोबाइल बजने लगती है l वीर देखता है मोबाइल की डिस्प्ले पर एक अननोन नंबर दिख रहा है l पहले फोन नहीं उठाता है पर दोबारा रिंग होने पर फोन उठा लेता है l

रॉकी - (फोन उठा कर) हैलो...
- मैं... बोल रही हूँ...
रॉकी - मैं कौन...
- अररे मैं... मुझे नहीं पता था कि फोन पर आवाज इतनी बदल जाती है....
रॉकी - (चौंक कर और खुश होते हुए) ओह नंदिनी जी... आ.. आई एम सॉरी... सच... मैं... मैं आपकी आवाज नहीं पहचान पाया... अगेन सॉरी... पर आपको मेरा नंबर कहाँ से मिला...
नंदिनी - ढूंढने वाले तो भगवान को ढूंढ लेते हैं... यह तो सिर्फ़ फोन नंबर है...
रॉकी - हाँ... सो तो है...
नंदिनी - हमने आपकी नंबर ढूंढ लिया... पर लगता है... हम आपके लिए इतने जरूरी नहीं हैं... की आप हमारी नंबर ढूंढ सके...
रॉकी - नहीं... नहीं... ऐसी बात नहीं... वह... अगर हम... एक-दूसरे से नंबर एक्सचेंज किए होते... तो शायद ठीक रहता...
नंदिनी - हाँ यह बात तो है.... खैर आज मुझे लगा... आप मुझसे कुछ कहना चाहते थे... इसलिए मुझसे बात करने की कोशिश भी कर रहे थे... पर... अनफॉर्चुनेटली... मैं समय नहीं निकाल पाई...
रॉकी - जी... जी कोई बात नहीं...
नंदिनी - वैसे आप ने बताया नहीं... आप मुझे... ढूंढ किस लिए रहे थे....
रॉकी - (समझ में नहीं आता क्या जवाब दे) वह... बात.. दरअसल यह है कि... आपने मुझे दोस्ती का अनमोल गिफ्ट दिया... तो बदले में... मुझे भी कोई गिफ्ट देना चाहिए था... इसलिए आपकी पसंद कौनसी है... यह जानने के लिए आज आपसे... बात करने की कोशिश की....
नंदिनी - ओ... तो बात यह है... पर गिफ्ट तो गिफ्ट होता है... पसंद नहीं पूछी जाती...
रॉकी - नहीं फिर भी... आप बता देते तो...
नंदिनी - ठीक है.... अभी जल्दी किस बात की है.... मुझे सोचने के लिए कुछ दिन तो चाहिए ना...
रॉकी - जी... जी जरूर...
नंदिनी - तो रॉकी जी... बस एक रिक्वेस्ट है... हमें कभी बीच राह में देखें... तो नजरें मत फ़ेर लीजियेगा...
रॉकी - क्या बात कर रही हैं... नंदिनी जी... ऐसा कभी हो सकता है क्या...
नंदिनी - ठीक है.. रॉकी जी... मैं फोन रखती हूँ... कल कॉलेज में मिलते हैं... गुड नाइट...
रॉकी - जी... गुड नाइट...

फोन कट जाता है l रॉकी को बिल्कुल विश्वास ही नहीं होता कि नंदिनी ने उसे फोन किया और बातेँ भी की l वह खुशी के मारे अपने कमरे में कभी बेड के ऊपर तो कभी बेड के नीचे कूदने लगता है l तभी उसकी मोबाइल फिर से बजने लगता है l डिस्प्ले में इसबार रवि का नाम दिखने लगता है l वह खुदको काबु करने की कोशिश करता है l थोड़ा काबु पा लेने के बाद फोन उठाता है l

रवि - अबे साले कमीने... कब से फोन लगा रहा था... किससे मरवा रहा था बे...
रॉकी - चुप बे साले... फोन पर बिजी था... क्यूँ तेरा कॉल वेटिंग एक्टिवेट नहीं है क्या...
रवि - हाँ है ना... पर नंदिनी की फोन नंबर से ज्यादा इंपोर्टटेंट कॉल था क्या...
रॉकी - हाँ... यार... डैड का फोन था... कैसे काट देता...
रवि - ठीक है... ठीक है... मुझे नंबर मिल गया है... चल लिख...
रॉकी - मैसेज भी तो कर सकता था... भूतनी के...
रवि - अररे हाँ... चल कोई बात नहीं... लिख...
रॉकी - नहीं यार... अब दरकार नहीं है...
रवि - क्यूँ.... किसी और से हासिल कर लिया क्या...
रॉकी - नहीं... पर मन बदल गया है...
रवि - चलो अच्छा हुआ... तुने अपना मन बदल दिया... यह रोज रोज का टेंशन छुटा... भाड़ में जाए वह नंदिनी क्षेत्रपाल.... और भाड़ में जाए उसकी छटी गैंग... अपना टेढ़े मेढ़े येडे गैंग जिंदाबाद....
रॉकी - ओ.. हैलो... मैंने फोन नंबर ना लेने का मन बनाया था... इसका मतलब यह नहीं... की मैं नंदिनी को हासिल करना नहीं चाहता...
रवि - साला तु.... पागल हो गया है... खुद तो मरेगा.... हमको भी मरवायेगा...
रॉकी - ऑए... ठंड रख ठंड... फोन रख अब...
रवि - हाँ बे रख रहा हूँ... भगवान करे तेरे ख्वाबों खयालों में नंदिनी के वजाए... कोई भूतनी.. पिशाचनी... या डायन आए...
रॉकी - अबे चुप... रख साले फोन...

रवि अपना फोन काट देता है l रॉकी भी अपना फोन बेड पर फेंक कर सोने की कोशिश करता है l
Awesome update bro maza aa gaya



Waiting for the next update bro
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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भाई मैंने अपने कॉलेज जीवन के अनुभव को यहाँ पर जगह दी है
इस तहजीब के बारे में मैं संपूर्ण अनभिज्ञ हूँ
अरे इसीलिए तो बताया
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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यही तो हमारी संस्कृति है
और वीर भी इन्हीं चीजों से प्रभावित होने वाला है
अनजाने में ही दोनों एक दूसरे को आकर्षित करने लगे हैं
यह बात कुछ और अपडेट्स के बाद वीर को मालुम होगा और उसमें विश्व की बहुत बड़ी भूमिका रहेगी
अनु अच्छी लग रही है - उसका भोलापन, और उसकी सादगी। मैंने पहले भी लिखा था, कि ये बातें कोई कमज़ोरी नहीं होतीं।
good work!!
 
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